जानें कैसे बदल जायेंगे जीसैट-30 के बाद टीवी देखने और फोन सुनने का अनुभव

मेरे ऑफिस में काम करने वाली टाइपिस्ट कल शाम मुझे फोन पर किसी से 15-20 मिनट तक जीसैट-30 पर बात करते सुनने के बाद,मेरे पास आयी और कहा,’सर आपसे एक बात पूछ सकती हूं ?’ मैंने कहा, ‘हां पूछो ?’ तो,उसने कहा , ‘सर आप आज सुबह से जो इस जीसैट की बात कर रहे हो इससे हमें क्या फायदा होगा?’मैंने यह सवाल सुनकर महसूस किया कि यह एक मेरी टाइपिस्ट भर का सवाल नहीं है बल्कि बहुत से लोग यह जानना चाहते हैं कि टीवी चैनलों के एंकर जिस जीसैट-30 के सफल प्रक्षेपण को देश और इसरो की बहुत बड़ी सफलता बता रहे हैं आखिर उसका देश के आम लोगों का क्या फायदा होगा ? इस लेख में इन्हीं आम सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश की जायेगी.

कितनी बड़ी उपलब्धि है जीसैट-30 का प्रक्षेपण

शुक्रवार [17 जनवरी 2020] को तड़के 2:35 बजे फ्रेंच गुआना के कौरू स्थित स्पेस सेंटर, ‘यूरोपियन रॉकेट एरियन 5-वीटी 252’ से हिन्दुस्तान का अब तक का सबसे ताकतवर संचार उपग्रह लांच किया गया.लांच किये जाने के करीब 38 मिनट 25 सेकंड बाद ही यह जियो-इलिप्टिकल ऑर्बिट में स्थापित हो गया.इसका वजन 3357 किलोग्राम है.हालांकि यह अब तक का सबसे वजनी संचार उपग्रह नहीं है है. भारत का अब तक का सबसे वज़नी उपग्रह जीसैट-11 था जो इसी यूरोपीय स्पेस एजेंसी से 5 दिसंबर 2018 को प्रक्षेपित किया गया था. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) के मुताबिक़ जीसैट-11 का वज़न 5,854 किलोग्राम था.यह उसका बनाया अब तक का सबसे भारी सैटेलाइट है.यह सैटेलाइट इतना बड़ा था कि इसका हर सोलर पैनल किसी सेडान कार के बराबर था.बहरहाल जीसैट-30 वजन में भले जीसैट-11 से कम हो लेकिन ताकतवर उससे कहीं ज्यादा है.

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जीसैट-11 जहां14 गीगाबाइट/सेकेंड तक की डेटा ट्रांसफ़र स्पीड के साथ हाई बैंडविथ कनेक्टिविटी दे सकते था,वहीं यह 2-20गीगाबाइट/सेकेंड की डेटा ट्रांसफर स्पीड देगा. यह अगले 15 साल तक काम करेगा और देश की संचार व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव लाएगा.

इस डेटा ट्रांसफर स्पीड का फायदा क्या होगा ?

इंटरनेट की स्पीड बढ़ जाने से सिर्फ लैपटॉप में बिना बफरिंग फिल्म देखने का सुख ही नहीं मिलेगा ,इससे और भी कई सहूलियत होंगी.

  • कॉल ड्राप कम होगी या बिलकुल नहीं होगी.
  • आसानी से डेटा ट्रांसफर होगा तो ई-कामर्स की दर और मात्रा दोनों बढ़ जायेगी.मतलब व्यापार ज्यादा होगा.फायदा ज्यादा होगा.नौकरियां ज्यादा होंगी.
  • इसरो प्रमुख ने बताया है कि इसके बाद भारत के द्वीपों में और बंगाल की खाड़ी,मध्यपूर्व तथा आस्ट्रेलिया में नेटवर्क ज्यादा मजबूत हो जाएगा.
  • इससे देश में जहां आज नेटवर्क नहीं है,वहां भी नेटवर्क का विस्तार होगा.
  • इसका एक बड़ा फ़ायदा ये होगा कि किसी वजह से जब कभी फ़ाइबर काम नहीं कर रहा होगा तो भी इंटरनेट पूरी तरह बंद नहीं होगा यह सैटेलाइट के ज़रिए वो चलता रहेगा.
  • जीसैट-30 डीटीएच सेवाओं में क्रांतिकारी सुधार करेगा.इस संचार उपग्रह में दो सोलर पैनल और बैटरी लगी हैं.ये इसे ऊर्जा प्रदान करेंगी.

जी-5 की शुरुआत के लिए यह ठोस कदम  

इसरो के ताकतवर संचार उपग्रह जीसैट-30 के सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित हो जाने के साथ ही अब भारत सरकार की यह बात विश्वसनीय हो चली है कि इस साल के अंत यानी 2020 के अंत तक देश में 5 जी नेटवर्क शुरू हो जायेगा.गौरतलब है कि जीसैट-30 संचार उपग्रह इनसैट-4 ए की जगह लेगा,जिसे साल 2005 में लांच  किया गया था.जीसैट-30 से सबसे ज्यादा उम्मीद जी-5 की संचार सुविधाओं को व्योहारिक जामा पहनाये जाने को लेकर ही है.साल 2019 में भारत में 65 करोड़ से अधिक इंटरनेट उपभोक्ता थे,जो कि चीन के बाद सबसे ज्यादा हैं. 2020 में इनके और ज्यादा बढ़ने की उम्मीद है.अगर कहा जाय कि जीसैट-30 का भारत की अर्थव्यवस्था और लोगों की खुशहाली से भी रिश्ता है तो यह अतिश्योक्ति नहीं होगी.

इंटरनेट बनेगा हैसियत का आधार

भविष्य में ‘हैव और हैव्स नॉट’ का निर्धारण डिज़िटल और गैर डिजिटल आबादी के रूप में भी होने वाला है.क्योंकि 5 जी अगली पीढी की अल्ट्रा लो लेटेंसी के साथ आज के मुकाबले बहुत तेज़ और बेहद विश्वसनीय संचार सेवाएं प्रदान करने वाली तकनीक है.भारत सरकार के एक आंकलन के मुताबिक़ साल 2035 तक यह तकनीक 1 ट्रिलियन डॉलर तक की अर्थव्यवस्था पैदा करने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी. अनुमान है कि भारत में 5जी नेटवर्क का सुदृढ़ जाल बिछाने में  60-70 बिलियन डॉलर का निवेश होगा इससे बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा होगा.

इंटरनेट का बढेगा दायरा

हिन्दुस्तान की करीब 65 प्रतिशत आबादी अभी भी ग्रामीण या कस्बाई क्षेत्र में निवास करती है.इस आबादी में सिर्फ 60 प्रतिशत लोगों तक ही दूरसंचार सेवाओं की पहुँच है.इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए आगामी सालों में दूरसंचार क्षेत्र के विकास में भारत के ग्रामीण क्षेत्र का महत्त्वपूर्ण योगदान होगा. जीसैट-30 इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा.भारत की राष्ट्रीय डिजिटल संचार नीति जो कि साल 2018 में प्रकाश में आयी थी,उसमें इस क्षेत्र के लिये साल 2022 तक 100 बिलियन डॉलर के निवेश का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. इस निवेश के जरिये दूर-संचार के क्षेत्र में 40 लाख से ज्यादा रोज़गार सृजित होंगे.

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आपदाओं के समय रेस्क्यू में मददगार रहेगा

जीसैट-30 भू-आकाशीय सुविधाओं,मौसम संबंधी जानकारी और भविष्यवाणी करने में तथा आपदाओं के समय खोजबीन व रेस्क्यू ऑपरेशन में क्रांतिकारी विश्वसनीयता लायेगा. इसलिए भी समय से हुआ यह एक जरूरी प्रक्षेपण है क्योंकि देश में  अरबों डॉलर की कीमत का  ऑप्टिकल फाइबर बिछाया जा चुका है.जिससे अब जी-5 जितना जल्दी शुरू हो अच्छा है. जीसैट-30 सैटेलाइट इन तमाम जरूरतों को पूरा करेगा.इसरो के चेयरमैन के.सिवन के मुताबिक साल 2020 में इसरो लगभग 10 सैटेलाइट्स लांच करने की योजना पर काम कर रहा है. जिनमें  आदित्य एल1 मिशन सर्वाधिक महत्वाकांक्षी होगा.यह सफलता उन सबका रास्ता बनाएगी.

मातृत्व या करियर

शुभ्रा को नौकरी से रिजाइन देना पड़ा, क्योंकि वह प्रैगनैंट थी और डाक्टर ने उसे आराम की सलाह दी थी. वैसे भी कुछ कंपनियां प्रैगनैंट महिलाओं को नौकरी पर रखना पसंद नहीं करतीं, क्योंकि उन्हें लगता है कि जिम्मेदारियां बढ़ने के कारण वे अब जौब पर पूरा ध्यान नहीं दे पाएंगी, जबकि वे अपनी घर व बाहर दोनों की जिम्मेदारियों को बखूबी निभाना जानती हैं. फिर भी उन की फैमिली प्लानिंग उन के करियर के बीच बाधा बन जाती है. यही डर उन्हें फैमिली प्लानिंग के बारे में सोचने नहींदेता.

क्या कहता है सर्वे

लंदन बिजनैस स्कूल के नए सर्वेक्षण के अनुसार 70% महिलाएं करियर से ब्रेक ले कर चिंतित हैं. उन के लिए करियर ब्रेक लेने का मतलब आमतौर पर मातृत्व अवकाश के लिए समय निकालना या फिर बच्चों की देखभाल के लिए कार्यस्थल से पीछे हटना है.

पिछले साल लेबर पार्टी की रिसर्च के अनुसार 50 हजार से अधिक महिलाओं को मातृत्व अवकाश से लौटने के बाद नौकरी से निकाल दिया गया.

कंपनियां खोती हैं बड़ा टेलैंट

आज पुरुष ही नहीं, बल्कि महिलाएं भी हर क्षेत्र में परचम लहरा रही हैं. उन्होंने अपने टेलैंट से साबित कर दिया है कि वे अकेले ही सबकुछ कर सकती हैं. उन्होंने अपनी घर तक ही सिमटी इमेज को बदला है. आइए, जानते हैं कुछ ऐसी शख्सीयतों के बारे में जिन का नाम दुनियाभर में मशहूर है:

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इंदिरा नूई पेप्सिको कंपनी की प्रैसिडैंट व सीईओ रहीं और अपनी उपलब्धियों के लिए सम्मानित भी हो चुकी हैं.

चंदा कोचर आईसीआईसीआई बैंक की एमडी और सीईओ रही हैं. इन के नेतृत्व में आईसीआईसीआई बैंक ने भारत में बैस्ट बैंक रीटेल का अवार्ड जीता है. आजकल वैसे चंदा कोचर कई घोटालों में आरोपी हैं.

मिताली राज महिला क्रिकेट टीम की कप्तान रही हैं, जिन्होंने एकदिवसीय क्रिकेट में सब से ज्यादा रन बनाए, जिस के लिए उन्हें अर्जुन पुरस्कार, पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया. ऐसे में अगर हम महिलाओं को कम आंकते तो वे कैसे देशदुनिया में नाम कमा पातीं?

सवाल यह है कि क्यों कंपनियां अपनी इतनी होनहार कर्मचारियों को खो रही हैं? इसलिए कि मां बनने के बाद वे अपने बच्चे की जिम्मेदारियों के चलते कंपनी में अच्छी तरह काम नहीं कर पाएंगी? यह सचाई नहीं है. वे बखूबी सबकुछ अच्छी तरह मैनेज कर सकती हैं. कंपनियां उन से इस मौके को छीन कर टेलैंट को घर तक ही सीमित रखने पर मजबूर कर रही हैं. उन्हें अपनी सोच बदलनी होगी, तभी देश आगे बढ़ कर सोच पाएगा.

बदली है महिलाओं की सोच

पहले जहां महिलाएं घर की चारदीवारी तक सीमित रहती थीं और घर के पुरुषों पर ही परिवार की जिम्मेदारी होती थी, लेकिन अब समय व स्थितियां बदलने से वे भी घर व बाहर दोनों की जिम्मेदारियां बखूबी निभाने लगी हैं. अब वे परिवार संग कंधे से कंधा मिला कर चलने लगी हैं. उन का फोकस अब करियर बनाने पर ज्यादा होने लगा है.

फैमिली प्लानिंग में देरी

हाई क्वालिफिकेशन को यों ही घर तक सीमित रखना आज की नारी को गंवारा नहीं. वह शादी भी तब करना पसंद करती है जब उस काबिल हो जाती है. उसे किसी चीज के लिए किसी के आगे मुहताज होना अच्छा नहीं लगता. इसी कारण जब वह मन बना कर अपने काबिल जीवनसाथी ढूंढ़ लेती है तभी शादी करती है ताकि किसी भी तरह की कोई फाइनैंशियल प्रौब्लम आड़े न आए.

शादी होने के बाद परिवार वालों की ओर से फैमिली प्लानिंग के बारे में सोचने का जोर डलने लगता है. लेकिन आज की जैनरेशन इस में देरी करने में ही सम झदारी सम झती है खासकर कामकाजी महिलाएं. वे नहीं चाहतीं कि फैमिली प्लानिंग के कारण उन की जौब छूटे. इसी डर से वे इसे डिले करती हैं.

पैसा कमाने की ज्यादा चाह भी सही नहीं

दिल्ली के केशव पुरम इलाके में रहने वाली प्रीति जो आईटी सैक्टर में जौब करती हैं, के हसबैंड भी इसी प्रोफैशन में हैं. उन की शादी को 6 साल हो गए हैं. अब जब उन्हें लगा कि उन की लाइफ सैटल हो गई है तो उन्होंने बच्चे के बारे में सोचा. मगर उन्हें सफलता नहीं मिली. डाक्टरी चैकअप में उन्हें पता चला कि

उम्र ज्यादा हो जाने व अन्य कारणों के चलते उन्हें मां बनने में परेशानी आ रही है. अब यही सोचसोच कर कि कब वे मां बन पाएंगी उन की लाइफ स्टै्रसफुल हो गई है. आज उन के पास बेशुमार पैसा तो है मगर वे करियर व पैसे की अंधी दौड़ के कारण मातृत्व सुख से वंचित हैं.

वर्क ऐट होम का विकल्प भी

अगर आप सिर्फ यह सोचते हैं कि जौब का मतलब सिर्फ औफिस में जा कर ही जौब करना होता है तो ऐसा नहीं है. आप घर पर काम कर के भी जौब जारी रख सकती हैं.

आज तो इंटरनैट की दुनिया में नौकरियों की कमी ही नहीं है. बस मन में कुछ करने का जज्बा और आप के पास हुनर का होना जरूरी है. इस से आप अपने करियर को भी ब्रेक लगने से रोक सकती हैं और इस से फैमिली प्लानिंग भी प्रभावित नहीं होगी. जैसे आप घर बैठे फ्रीलांसिंग, टिफिन सिस्टम, ट्यूशन पढ़ाना, ट्रांसलेशन वर्क, ब्लौगिंग आदि काम कर सकती हैं. यह आप के करियर को आगे बढ़ाने के साथसाथ धन कमाने का अच्छा माध्यम बन सकता है. तो अब यह न सोचें कि शादी व बच्चे से आप के करियर में ब्रेक लगेगा.

करियर की खातिर नहीं की शादी

राजनीतिक व गैरराजनीतिक जगत की ऐसी कई जानीमानी हस्तियां हैं, जिन्होंने करियर की खातिर शादी नहीं की:

तब्बू: भारतीय सिनेमा की जानीमानी ऐक्ट्रैस तब्बू, जो इस समय 47 साल की हैं, पिछले 2 दशकों में विभिन्न शैलियों की कई फिल्मों में अभिनय किया. उन्हें शादी के बंधन में बंध कर बच्चे पैदा करने की कोई जल्दी नहीं है, क्योंकि वे अभी अपने करियर पर फोकस जो करना चाहती हैं.

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सुष्मिता सेन: सुष्मिता सेन 1994 में मिस यूनिवर्स का खिताब जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. उन्होंने 2 लड़कियों को गोद लिया. वे उन के साथ ही क्वालिटी टाइम स्पैंड करना चाहती हैं. किसी भी तरह के बंधन में बंधना उन्हें फिलहाल पसंद नहीं. वे रिलेशनशिप में भी रह चुकी हैं. वे अपनी शर्तों पर जीना पसंद करती हैं और करियर में ऊंचाइयां छूना चाहती हैं.

मायावती: मायावती जो 4 बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं, ने अपने राजनीतिक करियर में ब्रेक न लगे, इसलिए शादी नहीं की.

बढ़ती उम्र में ट्राय करें मेकअप के 40 टिप्स

थोड़ी उम्र बढ़ने पर शरीर में कोलोजन कम होने लगता है और स्किन टैक्स्चर में परिवर्तन आ जाता है. इस का परिणाम यह होता है कि स्किन पहले जैसी मुलायम और लचीली नहीं रहती और नमी कम होने से झुर्रियां दिखने लगती हैं. ऐसे में इन बदलावों को छिपाने और सुंदर दिखने के लिए मेकअप की बहुत जरूरत होती है. किंतु मेकअप करने की सही जानकारी न होने से चेहरा सुंदर दिखने की जगह भद्दा दिखने लगता है. अत: इन टिप्स पर गौर कर बढ़ती उम्र में भी अपनी सुंदरता से सब को मंत्रमुग्ध कर सकती हैं:

1. स्किन की नमी बनी रहे, इस के लिए हाइड्रेटिंग प्राइमर का इस्तेमाल करना ठीक होगा.

2. फाउंडेशन या बेस क्रीम स्किन से मेल खाते रंग से 1 शेड कम चुनी जाए तो उम्र कई गुना कम दिखेगी.

3. बीबी क्रीम को अपना साथी बना लें. मेकअप से पहले चेहरा इस से कवर करें.

4. चेहरे पर दागधब्बे अधिक हों तो बीबी की जगह सीसी क्रीम का प्रयोग करें.

5. फाउंडेशन लगाने के लिए ब्रश या ब्यूटी ब्लैंडर स्पंज का इस्तेमाल करते हुए तब तक ब्लैंड करें जब तक वह स्मूद न हो जाए तथा चेहरे की बारीक धारियां छिप न जाएं. हाथ के प्रयोग से फाउंडेशन ऊपरी सतह पर ठहर जाएगा और चेहरा जवां दिखने की जगह असामान्य दिखने लगेगा.

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6. फेस पाउडर का प्रयोग कम ही करें और ऐसे स्थान पर तो बिलकुल ही न करें जहां उम्र की लकीरें दिख रही हों जैसेकि आंखों के आसपास. वहां पाउडर अप्लाई करने से ‘क्रो फीट’ साफसाफ दिखने लगते हैं.

7. ‘टी जोन’ यानी माथे, नाक, मुंह के आसपास के हिस्से और ठोड़ी पर हाइलाइटर का प्रयोग करने से वहां चमक दिखने लगती है, जिस से चेहरे की झुर्रियों पर ध्यान नहीं जाता. हाइलाइटर अपनी स्किन टोन के अनुसार चुनें. ध्यान रहे कि वह लिक्विड फौर्म में हो.

8. चेहरे की तरह गरदन पर भी प्राइमर व फाउंडेशन लगाएं वरना गले पर पड़ी झुर्रियां चेहरे की सुंदरता खराब कर सकती हैं.

9. ब्लश का एक टच ही खूबसूरती में निखार लाता है. हलका गुलाबी या पीच रंग का ब्लश इस आयु के लिए ठीक रहेगा.

10. कंसीलर लिक्विड लगाना ठीक है, थिक या वाटरप्रूफ कंसीलर नहीं. इस उम्र में आंखों के आसपास की स्किन काली होने लगती है और झुर्रियां भी अपना असर दिखाने लगती हैं. थिक या वाटरप्रूफ कंसीलर स्किन में जज्ब नहीं हो पाता. फलस्वरूप उस हिस्से को ठीक ढंग से छिपा नहीं पाते.

11. इस आयु में भौंहों के बालों में थोड़ा गैप दिखने लगता है. इसे आईब्रो पैंसिल से भर कर सही आकार दिया जा सकता है. काले रंग की जगह नैचुरल ब्राउन पैंसिल का प्रयोग करना ठीक होगा.

12. आईब्रोज ग्रोथ सीरम से भी आईब्रोज को सही आकार दिया जा सकता है. यह आईब्रोज को चमक भी देता है, जिस से चेहरा युवा दिखता है.

13. इस उम्र में आईशैडो न्यूट्रल कलर का ही फबता है. हलके रंग के आईशैडो की लेयर लगाने के बाद क्रीज लाइन पर उस रंग से 1 शेड गहरी लेयर लगाई जाए तो पल में नैचुरल और सुंदर दिखेंगी.

14. इस आयु में आईशैडो के बहुत गहरे और चमकीले रंग या फिर कांतिहीन जैसे ग्रे कलर के प्रयोग से बचना चाहिए. गहरे रंग के प्रयोग से जहां आंखों में बनावटीपन लगता है वहीं चमकरहित रंग का प्रयोग आंखों में थकान के रूप में दिखने लगता है.

15. विवाह आदि के लिए शिमर आईशैडो का प्रयोग व दिन के समय पार्टी के लिए तैयार होना हो तो साटन फिनिश आईशैडो लगाना सही होगा.

16. नीचे की पलकों पर मसकारा लगाने से झुर्रियां उभर कर दिखने लगती हैं. अत: केवल ऊपरी पलकों पर ही इस का प्रयोग ठीक होगा.

17. लिक्विड लाइनर की जगह जैल बेस्ड लाइनर का प्रयोग बेहतर नतीजा देता है.

18. आईलाइनर की चौड़ी लाइन न लगा कर पलकों पर पतली सी रेखा खींचें.

19. इस आयु में विंग्ड आईलाइनर लगाने से बचना चाहिए.

20. कभीकभी पलकों के बाल इस उम्र में झड़ कर कम होने लगते हैं. यदि ऐसा है तो आर्टिफिशियल लैशेज का प्रयोग कर उन्हें घना रूप दिया जा सकता है.

21. किसी समारोह के लिए मेकअप करते हुए आंखों के नीचे डार्क सर्कल्स छिपाने के लिए ल्यूमिनस कंसीलर का प्रयोग करना सही होगा.

22. यदि आंखों पर चश्मा लगा है तो उस के निशान से बचने के लिए अधिक मेकअप करने की भूल न करें वरना चश्मा पहनने पर मेकअप बाहर निकलता प्रतीत होता है.

23. लिपस्टिक लगाने से पहले डैड स्किन को हटाने के लिए ऐक्सफौलिएशन करना ठीक होगा.

24. इस आयु में होंठों पर खुश्की रहती है, इसलिए ऐक्सफौलिएशन के बाद मौइस्चराइज्ड लिप बाम लगा कर हाइड्रेट करना सही कदम होगा.

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25. यदि होंठ पिगमैंटेड हैं, तो हलका सा कंसीलर लगा कर अपनी पसंद का लिपस्टिक शेड अप्लाई करें.

26. गहरे रंग इस्तेमाल करने से परहेज न करें. बस वे रंग थोड़ा कालापन लिए हुए न हों और न ही ब्राइट लुक दें. जैसे यदि मैरून शेड का प्रयोग करना हो तो वाइन की जगह रोज या ब्रिक शेड का प्रयोग होंठों को नई परिभाषा देगा.

27. मौइस्चर रिच लिपस्टिक का इस्तेमाल करना सही होगा.

28. इस आयु में स्किन के टिशूज सिकुड़ने लगते हैं, जिस से होंठ भी सिकुड़े हुए और पतले दिखते हैं, इसलिए लिपस्टिक लगाने से पहले लिपलाइनर का प्रयोग करना सही कदम होगा. इस के प्रयोग से होंठ बड़े और शेप में दिखाई देंगे.

29. होंठों को उभरा हुआ दिखाने के लिए लिपग्लौस सही माध्यम है.

30. बालों को खुला छोड़ देने से उम्र कम दिखती है. इस के विपरीत बन बड़ी उम्र का लुक देता है और पोनी करना बचकानापन सा लगता है.

31. बाल रंगने के लिए उन के रंग से 1 शेड हलका कलर इस्तेमाल करना सही होगा.

32. मेकअप करते हुए चेहरे का एक हिस्सा ही अधिक ब्राइट दिखाएं जैसे यदि लिपस्टिक का रंग गहरा है तो बिंदी हलके रंग की या साइज में छोटी चुनना बेहतर होगा. शिमर आईशैडो का इस्तेमाल किया हो तो मैट लिपस्टिक का चुनाव करना ठीक होगा.

33. ‘थोड़ा ही काफी है’ का पालन करते हुए भारीभरकम मेकअप से बचना चाहिए.

34. इस उम्र में शरीर की स्किन में रूखापन अधिक हो जाता है. चेहरे पर मेकअप हो, किंतु हाथपैर ड्राई हों तो देखने में भद्दे लगते हैं. इस के लिए नहाने के बाद बौडी बटर का प्रयोग करना उचित होगा.

35. प्रतिदिन ऐंटीएजिंग क्रीम का चेहरे पर प्रयोग स्किन में कोलोजन की मात्रा बढ़ा कर उसे जवां बनाए रखने में सहायक होता है.

36. आंखों के आसपास के कालेपन और झुर्रियों को कम करने के लिए सोने से पहले आंखों के नीचे अंडर आई क्रीम या जैल का प्रयोग किया जाना चाहिए.

37. गरमियों में चेहरे की स्किन के झुलसने, ब्राउन स्पौट्स पड़ने की संभावना बढ़ जाती है, इसलिए एसपीएफ को अपने रूटीन में शामिल करें. दिन में 2 बार आइस क्यूब्स से चेहरे की मसाज झुर्रियों को दूर करती है.

38. सर्दियों में प्रत्येक सप्ताह स्पून मसाज करना झुर्रियों को कम करने में कारगर सिद्ध होगा. इस के लिए औलिव औयल को गरम कर उस में चम्मच डुबो कर उस के उभरे हिस्से से चेहरे की मालिश करते हुए सर्कल्स पर हलका दबाव डालना चाहिए. मालिश 2 मिनट का गैप रखते हुए 10-15 मिनट तक करें.

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39. लगभग 20 दिनों के अंतराल पर फेशियल करवाते रहना चाहिए. इस में रिंकल्स व स्किन के ढीलेपन को दूर कर कसाव लाने वाला फेस पैक इस्तेमाल हो.

40. सीटीईएमपी यानी क्लींजिंग, टोनिंग, ऐक्सफौलिएशन, मौइस्चराइजिंग और प्रोटैक्शन को साथी बनाएं. ये सभी बढ़ती उम्र की स्किन पर निखार लाते हैं.

मां मां होती है: भाग-2

पिछला भाग पढ़ने के लिए- मां मां होती है: भाग-1

दामाद तानाशाही से जब ऊब जाता तो 2-4 दिनों को अपने घरपरिवार, जोकि दिल्ली में था, से मिलने को चल देता. प्रज्ञा अपनी मां को समझाए या पति को, समझ न पाती. किसी तरह अपनी गृहस्थी बचाने की कोशिश में जुटी रहती. इन 4 सालों में वह 2 बच्चों की मां बन गई. खर्चे बढ़ने लगे थे और मां अपनी पैंशन का एक पैसा खर्च करना नहीं चाहतीं. वे उलटा उन दोनों को सुनाती रहतीं, ‘यह तनख्वाह जो प्रज्ञा को मिलती है अपने बाप की जगह पर मिलती है.’ उन का सीधा मतलब होता कि उन्हें पैसे की धौंस न देना.

आंटी आएदिन अपने मायके वालों को दावत देने को तैयार रहतीं. वे खुद भी बहुत चटोरी थीं, इसीलिए लोगों को घर बुला कर दावत करातीं. जब भी उन्हें पता चलता कि इलाहाबाद से उन के भाई या बनारस से बहन लखनऊ किसी शादी में शामिल हो रहे हैं तो तुरंत अपने घर पर खाने, रुकने का निमंत्रण देने को तैयार हो जातीं.

घर में जगह कम होने की वजह से जो भी आता, भोजन के पश्चात रुकने के लिए दूसरी जगह चला जाता. मगर उस के लिए उत्तम भोजन का प्रबंध करने में प्रज्ञा के बजट पर बुरा असर पड़ता. वह मां को लाख समझाती, ‘देखो मम्मी, मामा, मौसी लोग तो संपन्न हैं. वे अपने घर में क्या खाते हैं क्या नहीं, हमें इस बात से कोई मतलब नहीं है. मगर वे हमारे घर आए हैं तो जो हम खाते हैं वही तो खिलाएंगे. वैसे भी हमारी परेशानियों में किस ने आर्थिक रूप से कुछ मदद की है जो उन के स्वागत में हम पलकपांवड़े बिछा दें.’ लेकिन आंटी के कानों में जूं न रेंगती. उन्हें अपनी झूठी शान और अपनी जीभ के स्वाद से समझौता करना पसंद नहीं था.

आंटी को आंखों से कम दिखने लगा था. एक दिन रिकशे से उतर कर भीतर आ रही थीं, तो पत्थर से ठोकर खा कर गिर पड़ीं. अब तो अंधेरा होते ही उन का हाथ पकड़ कर अंदरबाहर करना पड़ता. अब उन्होंने एक नया नाटक सीख लिया. दिनरात टौर्च जला कर घूमतीं. प्रज्ञा अपने कमरे में ही अपने छोटे बच्चों को भी सुलाती क्योंकि उस की मां तो अपने कमरे में बच्चों को घुसने भी न देतीं, अपने तख्त पर सुलाना तो दूर की बात थी. आंटी को फिर भी चैन न पड़ता. रात में उन के कमरे का दरवाजा खटका कर कभी दवा पूछतीं तो कभी पानी मांगतीं.

आंटी के कमरे की बगल में ही रसोईघर है, मगर रसोईघर से पानी लेना छोड़, वे प्रज्ञा और महेश को डिस्टर्ब करतीं. ऐसा वे उस दिन जरूर करतीं जब उन्हें उन के कमरे से हंसीमजाक की आवाज सुनाई देती. प्रज्ञा अपनी मां को क्या कहती, लेकिन महेश का मूड औफ हो जाता. आंटी उन की शादीशुदा जिंदगी में सेंध लगाने लगी थीं. इस बीच आंटी की दोनों आंखों के मोतियांबिंद के औपरेशन भी हुए. उस समय भी दोनों पतिपत्नी ने पूरा खयाल रखा. फिर भी आंटी का असंतोष बढ़ता ही गया.

उधर, कुसुम के बीमार ससुर जब चल बसे तब जा कर उस के मायके  के फेरे बढ़ने लगे. ऐसे में आंटी कुसुम से, प्रज्ञा की खूब बुराई करतीं और अपना रोना रोतीं, ‘वे दोनों अपने कमरे में मग्न रहते हैं. मेरा कोई ध्यान नहीं रखता. मेरी दोनों आंखें फूट गई हैं.’ कुसुम समझाबुझा कर चली जाती. इधर महेश का मन ऊबने लगा था. एक तो उस की आमदनी व काम में कोई इजाफा नहीं हो रहा था, ऊपर से सास के नखरे. प्रज्ञा और उस के बीच झगड़े बढ़ने लगे थे. प्रज्ञा न तो मां को छोड़ सकती थी, न ही पति को. दोनों की बातें सुन वह चुप रहती.

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प्रज्ञा का प्रमोशन और ट्रांसफर जब दिल्ली हो गया तो उस ने चैन की सांस ली और अपनी मां से भी दिल्ली चलने को कहा तो उन्होंने साफ मना कर दिया. वे अपनी सत्संग मंडली छोड़ कर कहीं जाना नहीं चाहती थीं. प्रज्ञा के खर्चे दिनोंदिन बढ़ ही रहे थे. महेश की कोई निश्चित आमदनी नहीं थी. प्रज्ञा ने कुसुम को बुलाया कि वह मां को समझाबुझा कर साथ में दिल्ली चलने को तैयार करे. मगर वे अपना घर छोड़ने को तैयार ही न हुईं. अंत में यह फैसला हुआ कि प्रज्ञा अपने परिवार के साथ दिल्ली चली जाए और कुसुम अपने पति के साथ मायके रहने आ जाएगी. अपनी ससुराल के एक हिस्से को कुसुम ने किराए पर चढ़ा दिया और अपनी मां के संग रहने को चली आई. आखिर वे दोनों अपनी मां को अकेले कैसे छोड़ देतीं, वह भी 70 साल की उम्र में.

कुसुम मायके में रहने आ गई. किंतु अभी तक तो वह मां से प्रज्ञा की ढेरों बुराइयों को सुन दीदी, जीजाजी को गलत समझती थी. अब जब ऊंट पहाड़ के नीचे आया तो उसे पता चला कि उस की मां दूसरों को कितना परेशान करती हैं. उस की 2 छोटी बेटियां भी थीं और घर में केवल 2 ही कमरे, इसीलिए वह अपनी बेटियों को मां के साथ सुलाने लगी.

मां को यह मंजूर नहीं था, कहने लगीं, ‘प्रज्ञा के बच्चे उस के साथ ही उस के कमरे में सोते थे, मैं किसी को अपने साथ नहीं सुला सकती.’ कुसुम ने 2 फोल्ंिडग चारपाई बिछा कर अपनी बेटियों के सोने का इंतजाम कर दिया और बोली, ‘पति को, बच्चों को अपने संग सुलाना पसंद नहीं है. और अगर कोई तुम्हारा सामान छुएगा तो मैं घर में ही हूं, जितनी बार कहोगी मैं उतनी बार धो कर साफ कर दूंगी.’ उस की मां इस पर क्या जवाब देतीं.

आंटी प्रज्ञा को तो अनुकंपा नौकरी के कारण खरीखोटी सुना देती थीं, मगर कुसुम से जब पैसों को ले कर बहस होती तो उस के सामने पासबुक और चैकबुक ले कर खड़ी हो जातीं और पूछतीं, ‘कितना खर्चा हो गया तेरा, बोल, अभी चैक काट कर देती हूं.’ कुसुम उन का नाटक देख वहां से हट जाती.

प्रज्ञा तो अपनी जौब की वजह से शाम को ही घर आती थी और घर में बच्चे महेश के संग रहते थे. शाम को थकीहारी लौटने के बाद किसी किस्म की बहस या तनाव से बचना चाहती. सो, वह अपनी मां की हर बात को सुन कर, उन्हें शांत रखने की कोशिश करती. मगर कुसुम घरेलू महिला होने के कारण दिनभर मां की गतिविधियों पर नजर रखती. वह आंटी की गलत बातों का तुरंत विरोध करती. आंटी ने प्रज्ञा को परेशान करने के लिए जो नाटक शुरू किए थे, अब वे उन की आदत और सनक में बदल चुके थे.

कुछ दिन तो आंटी शांत रहीं, मगर फिर कुसुम के सुखी गृहस्थ जीवन में आग लगाने में जुट गईं. कुसुम रात में आंटी को दवा खिला व सिरहाने पानी रख और अपनी बेटियों को सुला कर ही अपने कमरे में जाती. लेकिन आंटी को कहां चैन पड़ता. रात में टौर्च जला कर पूरे घर में घूमतीं. कभी अचानक ही दरवाजा खटका देतीं और अंदर घुस कर टौर्च से इधरउधर रोशनी फेंकतीं. उन से पूछो, तो कहतीं, ‘मुझे कहां दिखता हैं, मैं तो इसे रसोईघर समझ रही थी.’

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रमेश को अपनी निजी जिंदगी में

दखलंदाजी बिलकुल पसंद नहीं थी.

अपनी बीवी के कहने से वह यहां रहने तो आ गया था मगर उस का छोटे से घर में दम घुटता था. साथ ही, उसे दिनभर सास के सौ नखरे सुनने को मिलते ही, रात में भी वे उन्हें चैन से सोने न देतीं. कुसुम मां को छोड़ नहीं सकती थी और प्रज्ञा से भी क्या कहती. अब तक वह ही तो इतने वर्षो तक मां को संभाले रही थी.

आगे पढ़ें- दोनों बहनों में केवल फोन से ही बातें…

शक्ति-अस्तित्व के एहसास की में आएगा लीप, अपने अस्तित्व से अनजान, हीर बढ़ा रही है नई उम्मीदों की ओर कदम

कलर्स के शो, ‘शक्ति-अस्तित्व के एहसास की ‘ में अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती सौम्या की कहानी में जल्द नया अध्याय जुड़ने वाला है. जहाँ किन्नर होने के कारण सौम्या का पूरा बचपन पिता की नफरत में बीता तो वहीं शादी के बाद भी ससुराल वालों की नफरत को झेलना पड़ा. इन सब कठिनाइयों के बीच, उसका सबसे बड़ा सहारा बना उसका पति हरमन.  उसने अपने संघर्ष और नेक इरादों से उसने ना सिर्फ अपने पति का समर्थन जीता, बल्कि दुनिया की नजरों में अपना अस्तित्व कायम किया. सौम्या की ही तरह, हीर भी एक किन्नर है और शुरू होने जा रहा है कहानी का एक नया अध्याय. आइए आपको बताते हैं क्या है हीर की कहानी…

सौम्या की तरह किन्नर है हीर

हरमन और माही की बेटी है हीर, जिसे सौम्या ने हमेशा अपनी बेटी की तरह माना है. हीर भी सौम्या की ही तरह किन्नर है, जिसे दुनिया की नजरों से बचाने की सौम्या और प्रीतो ने कसम खायी है. यही कारण है कि हीर को प्रीतो की निगरानी और भरोसे पर छोड़कर, सौम्या ने उससे दूर जाने का फैसला किया. ये कठोर निर्णय सौम्या के लिए भी आसान नही था, लेकिन हीर को किन्नरों की दुनिया से दूर रखना ज्यादा जरूरी था.

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अपने अस्तित्व से अनजान है हीर

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सौम्या की तरह, हीर एक बेहद खूबसूरत और प्यारी लड़की है, पर स्वभाव से बिल्कुल अपने पिता हरमन की तरह है. हीर अब बड़ी हो गई है, लेकिन उसे अपने किन्नर होने का एहसास नही है. हर आम लड़की की तरह वो भी अपने सपनों के राजकुमार से मिलने की ख्वाहिश में जीती है.

 

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Miliye #Heer se aur dekhiye uski kahani ka har roop 20 Jan se raat 8 baje sirf #Shakti par! @jigyasa_07 Anytime on @voot

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हीर को आत्मनिर्भर बनाना चाहती है प्रीतो

हीर के सपनों से अलग प्रीतो चाहती है कि हीर अपना भविष्य बनाने पर ध्यान दे ताकि जब उसे अपने अस्तित्व का पता चले तो वो इस सच का डटकर सामना कर सके. इस वजह से प्रीतो, हीर के नजदीक किसी लड़के की परछाई तक नही पड़ने देती, यहाँ तक की फोन, टीवी और इंटरनेट से भी दूर ही रखा जाता है हीर को. लेकिन हीर की जिद है, अपने सपनों के राजकुमार से मिलने की और एक नई लव स्टोरी लिखने की.

क्या हीर की जिद, उसे अपने राजकुमार से मिला पाएगी? क्या प्रीतो, हीर को अपने तरीके से जिंदगी जीने पर मजबूर कर सकेगी? क्या होगा जब हीर को होगा अपनी असलियत का एहसास? इन सब सवालों के जवाब जानने के लिए देखिए, शक्ति- अस्तित्व के एहसास की, सोमवार से शुक्रवार, रात 8 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

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हाई हील्स के साथ खुद को दें ग्लैमरस लुक

इस होली अगर आपको अपनी पर्सनैलिटी को ग्लैमरस लुक देना हो तो उस के लिए सिर्फ सैक्सी ड्रैस ही काफी नहीं है, हाई हील्स भी जरूरी हैं. हाई हील्स पहनते ही एक अलग तरह का आत्मविश्वास आ जाता है. बात जब आप की सैंडिल्स की हो तो उन्हें भी आप फैशन और ड्रैस के मुताबिक आपको बाजार में कई तरह के औप्शन मिल जाएंगे. अब सैंडिल्स की हील्स में भी काफी वैरायटियां आ गई हैं. तो आइए जानें फिर सैक्सी ड्रैस और हाई हील्स के साथ कैसे दें खुद को ग्लैमरस लुक.

क्या पहनें

अगर आप हाई हील्स पहनने जा रही हैं तो स्टिलैटो पहन सकती हैं. इस से आप आधुनिक दिखेंगी और आप का पोश्चर भी बौडी के हिसाब से बदल जाएगा. सारा दिन घर पर आराम से रह सकें, इस के लिए किटन हील्स सही रहेंगी. आप लंबी दिखें और चलने में भी आसानी रहे, इस के लिए वेज हील्स का कहना ही क्या.

 

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यदि आप दुलहन बनने जा रही हैं तो लकड़ी की, हाथ से बनी हुई और ऐक्रैलिक हील्स, जो कांच की हील का लुक देती हैं, पहनें. इन के साथ ही मैटल और स्टील की पतली लेयर से कवर की हुई हील्स को न भूल जाएं. ये आप के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने में मदद करेंगी. और सब से बढि़या तो पालीयूरेथेन सोल वाली हील्स पहनें. ये बहुत ही टिकाऊ और मजबूत होती हैं.

खरीदने से पहले

हाई हील्स के सैंडिल्स या जूते आप के पैरों में कितने फिट हैं, जानने के लिए पहन कर और थोड़ा चल कर देख लें. अपने पैरों की शेप के हिसाब से ही हील वाले सैंडिल्स खरीदें. अगर आप के पांवों की शेप जूते की शेप से नहीं मिलती तो आप को पीठदर्द की शिकायत हो सकती है.

टैलेंट के साथ ग्लैमर का तड़का

महिला खिलाड़ी सिर्फ खेल में अपने बेहतरीन प्रदर्शन से ही नहीं जानी जातीं, बल्कि ग्लैमर के जलवों के मामले में भी उन का कोई सानी नहीं. अपनी खूबसूरती और स्टाइल की वजह से भी वे सुर्खियों में रहती हैं. चाहे टेनिस स्टार हो, बैडमिंटन स्टार, उन की बात अलग ही दिखती है. आइए, एक नजर डालते हैं खेल की दुनिया की कुछ खूबसूरत महिला खिलाडि़यों पर जो अपनी खूबसूरती और ग्लैमर के लिए जानी जाती हैं:

साइना नेहवाल

दुनिया की शीर्ष बैडमिंटन खिलाडि़यों में शामिल साइना नेहवाल भारत की सब से सफल महिला खिलाडि़यों में से एक हैं. वे न केवल खेल, बल्कि फैशन की दुनिया में भी सक्रिय हैं. वे चैरिटी कार्यक्रमों में हिस्सा ले कर रैंप पर भी जलवा दिखा चुकी हैं. अपने बिंदास लुक और प्राकृतिक खूबसूरती से लोगों को दीवाना बनाती रही हैं. साइना देश के लिए कौमनवैल्थ गेम्स में गोल्ड मैडल भी जीत चुकी हैं. उन्हें भारत के तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्मभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है.

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दीपिका पल्लीकल

दीपिका पल्लीकल भारतीय खेलों की दुनिया में उभरता बड़ा नाम है. वे दुनिया की शीर्ष 10 स्क्वैश खिलाडि़यों में भी शामिल रह चुकी हैं. उन्हें खेलों में उल्लेखनीय योगदान के लिए 2012 में अर्जुन अवार्ड और 2014 में पद्मश्री सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है. खेल के अलावा ग्लैमर और खूबसूरती में भी दीपिका का कोई जवाब नहीं.

प्राची तहलान

नैटबौल की भारतीय खिलाड़ी प्राची तहलान भी गजब की खूबसूरत हैं. 2010 में दिल्ली कौमनवैल्थ गेम के समय भारतीय टीम की कमान संभालने वाली प्राची तहलान नैटबौल और बौस्केटबाल की प्रोफैशनल प्लेयर हैं. 25 साल की प्राची दिल्ली की जाट फैमिली से ताल्लुक रखती हैं. खेल के साथ ही उन की खूबसूरती और चुलबुलेपन को देख भी लोग उन के दीवाने हो जाते हैं. खूबसूरत प्राची को ‘क्वीन औफ द कोर्ट’ निक नेम भी मिला हुआ है.

ज्वाला गुट्टा

प्रोफैशनल बैडमिंटन प्लेयर ज्वाला गुट्टा ने देश के लिए बहुत मैडल जीते हैं. उन्होंने दिल्ली कौमनवैल्थ गेम्स में भारत के लिए 2 स्वर्ण और 1 रजत पदक जीता था. अपनी खूबसूरती से भी वे लोगों को आकर्षित करती हैं. उन के ग्लैमरस फोटोशूट को भला कौन भूल सकता है.

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ऐलिस पेरी

आस्ट्रेलिया टीम की सब से खूबसूरत और ग्लैमरस खिलाड़ी ऐलिस पेरी अपने खेल के साथसाथ अपनी सुंदरता के लिए भी चर्चा में रहती हैं. ऐलिस पेरी आस्ट्रेलिया की पहली ऐसी महिला खिलाड़ी हैं, जिन्होंने आस्ट्रेलिया के लिए क्रिकेट और फुटबौल दोनों के ही वर्ल्ड कप में हिस्सा लिया. ऐलिस पेरी अकसर अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अपनी खूबसूरती के जलवे बिखेरती रहती हैं.

सारा जेन टेलर

इंगलैंड की विकेटकीपर व बल्लेबाज सारा टेलर अपने आक्रामक खेल के साथसाथ अपनी खूबसूरती के लिए भी मशहूर हैं. सारा की गिनती विश्व की सब से खूबसूरत महिला क्रिकेटरों में की जाती है. सारा इंगलैंड के लिए वनडे में सलामी बल्लेबाज का किरदार निभाती हैं. 2013 में उन्हें महिला टी20 के ‘क्रिकेटर औफ द ईयर’ अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था.

हौली फर्लिंग

आस्ट्रेलिया की सब से खूबसूरत महिला क्रिकेटरों में हौली फर्लिंग का भी नाम शामिल है. उन्होंने क्रिकेट में अपने कैरियर की शुरुआत 2003 में पाकिस्तान के खिलाफ वनडे मैच खेल कर की थी. इस मैच में उन्होंने 9 विकेट हासिल कर सब को हैरान कर दिया था. अपने खेल के साथसाथ उन्होंने अपनी सुंदरता से भी लोगों को अपना दीवाना बनाया हुआ है. महिलाओं को पुरुषों के समान दर्जा और अधिकार न देने वाले रूढि़वादी समाज को आईना दिखाती है इन महिलाओं की सफलता. खेल के क्षेत्र में भी अव्वल साबित हो रही महिलाएं जल्द ही पुरुषों से आगे निकल जाएंगी इस में कोई संशय नहीं.

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बिग बौस 13: असीम के लिए दोबारा शो में एंट्री लेंगी हिमांशी खुराना, ऐसे कराया मेकओवर

कलर्स के शो, ‘बिग बौस’ 13 में इन दिनों इमोशनल माहौल चल रहा है. बिग बौस कंटेस्टेंट की फैमिली आने के बाद शो में शांति का माहौल है. वहीं खबर है कि जल्द ही असीम रियाज की खास और पुरानी कंटेस्टेंट हिमांशी खुराना शो में धमाल मचाने वाली हैं. हाल ही में सोशल मीडिया में हिमांशी खुराना का नया लुक सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जो फैंस को काफी पसंद आ रहा है. आइए आपको दिखाते हैं हिमांशी खुराना के मेकओवर की खास फोटोज…

हिमांशी खुराना का लुक हुआ वायरल

सोशल मीडिया पर वायरल फोटोज में हिमांशी खुराना रेड कलर के आउटफिट में नजर आ रही हैं. वहीं हेयरस्टाइल की बात करें तो हिमांशी ने बाल छोटे करा लिए हैं, जिसमें उनका लुक देखने लायक है. हिमांशी खुराना की ये फोटोड सोशल मीडिया पर वायरल हो गई हैं, जिसके बाद उनके फैंस इस लुक की तारीफ कर रहे हैं.

 

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?? you are my meow meow

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बिग बौस 13 में फिर एंट्री लेंगी हिमांशी

बिग बौस 13 में हिमांशी एक मेहमान के तौर पर जाने वाली हैं. यहां पर वह असीम रियाज के साथ कुछ समय बिताएंगी. वहीं जब से लोगों को पता चला है कि हिमांशी खुराना बिग बौस 13 के घर में नजर आने वाली हैं. लोगों की खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा. फैंस असीम और हिमांशी को साथ देखने के लिए काफी उत्साहित हैं.

असीम के लिए बौयफ्रेंड को छोड़ चुकी हैं हिमांशी

हाल ही में पराग त्यागी ने इस बात का खुलासा किया था कि हिमांशी खुराना ने असीम के लिए अपने बौयफ्रेंड के साथ ब्रेकअप कर लिया है. वहीं कहा जा रहा है कि बिग बौस 13 के घर में जाते ही हिमांशी खुराना अपने प्यार का इजहार करने वाली हैं. यह बात तो असीम रियाज के लिए काफी स्पेशल होने वाली है.

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असीम कर चुके हैं प्यार का इजहार

बिग बौस 13 में रहते हुए असीम रियाज ने हिमांशी खुराना के लिए अपना प्यार जाहिर किया था, लेकिन हिमांशी ने कहा था कि शो के बाहर उनका एक बौयफ्रेंड है.

बता दें, आए दिन सोशल मीडिया पर हिमांशी खुराना कोई न कोई फोटोज शेयर करती ही रहती हैं. वहीं वह पंजाबी गानों और फिल्मों में अपनी एक्टिंग से फैंस का दिल जीत चुकी हैं.

Best Family Drama : मां मां होती है

Best Family Drama : उस दिन सोशल नैटवर्किंग साइट पर जन्मदिन का केक काटती हुई प्रज्ञा और कुसुम का अपनी मां के साथ फोटो देख कर मुझे बड़ा सुकून मिला. नीचे फटाफट कमैंट डाल दिया मैं ने, ‘‘आंटी को स्वस्थ देख कर बहुत अच्छा लगा.’’ सालभर पहले कुसुम अपने पति के लखनऊ से दिल्ली स्थानांतरण के समय जिस प्रकार अपनी मां को ऐंबुलैंस में ले कर गई थी, उसे देख कर तो यही लग रहा था कि वे माह या 2 माह से ज्यादा नहीं बचेंगी. दिल्ली में उस की बड़ी बहन (Best Family Drama) प्रज्ञा पहले से अपनी ससुराल वालों के साथ पुश्तैनी घर में रह कर अपनी गृहस्थी संभाल रही थी.

जब कुसुम के पति का भी दिल्ली का ट्रांसफर और्डर आया तो 6 माह से बिस्तर पर पड़ी मां को ले कर वह भी चल पड़ी. यहां लखनऊ में अपनी 2 छोटी बेटियों के साथ बीमार मां की जिम्मेदारी वह अकेले कैसे उठाती. बड़ी बहन का भी बारबार छुट्टी ले कर लखनऊ आना मुश्किल हो रहा था.

प्रज्ञा और कुसुम दोनों जब हमारे घर के बगल में खाली पड़े प्लौट में मकान बनवाने आईं तभी उन से परिचय हुआ था. उन के पिता का निधन हुए तब 2 वर्ष हो गए थे. उन की मां  हमारे ही घर बैठ कर बरामदे से मजदूरों को देखा करतीं और शाम को पास ही में अपने किराए के मकान में लौट जातीं. वे अकसर अपने पति को याद कर रो पड़तीं. उन्हीं से पता चला था कि बड़ी बेटी प्रज्ञा 12वीं में और छोटी बेटी कुसुम छठवीं कक्षा में ही थी जब उन के पति को दिल का दौरा पड़ा. जिसे वे एंग्जाइटी समझ कर रातभर घरेलू उपचार करती रहीं और सुबह तक सही उपचार के अभाव में उन की मौत हो गई.

वे हमेशा अपने को कोसती रहतीं, कहतीं, ‘प्रज्ञा को अपने पिता की जगह सरकारी क्लर्क की नौकरी मिल गई है, उस का समय तो अच्छा ही रहा. पहले पिता की लाड़ली रही, अब पिता की नौकरी पा गई. छोटी कुसुम ने क्या सुख देखा? उस के सिर से पिता का साया ही उठ गया है.’

दरअसल, अंकल बहुत खर्चीले स्वभाव के थे. महंगे कपड़े, बढि़या खाना और घूमनेफिरने के शौकीन. इसीलिए फंड के रुपयों के अलावा बचत के नाम पर बीमा की रकम तक न थी.

प्रज्ञा हमेशा कहती, ‘मैं ही इस का पिता हूं. मैं इस की पूरी जिम्मेदारी लेती हूं. इस को भी अपने पैरों पर खड़ा करूंगी.’

आंटी तुनक पड़तीं, ‘कहने की बातें हैं बस. कल जब तुम्हारी शादी हो जाएगी, तो तुम्हारी तनख्वाह पर तुम्हारे पति का हक हो जाएगा.’

किसी तरह से 2 कमरे, रसोई का सैट बना कर वे रहने आ गए. अपनी मां की पैंशन प्रज्ञा ने बैंक में जमा करनी शुरू कर दी और उस की तनख्वाह से ही घर चलता. उस पर भी आंटी उसे धौंस देना न भूलतीं, ‘अपने पापा की जगह तुझे मिल गई है. कल को अपनी ससुराल चली जाएगी, फिर हमारा क्या होगा? तेरे पापा तो खाने में इतनी तरह के व्यंजन बनवाते थे. यह खाना मुझ से न खाया जाएगा.’ और भी न जाने क्याक्या बड़बड़ाते हुए दिन गुजार देतीं.

कुसुम सारे घर, बाहर के काम देखती. साथ ही अपनी पढ़ाई भी करती. बड़ी बहन सुबह का नाश्ता बना कर रख जाती, फिर शाम को ही घर लौट कर आती. वह रास्ते से कुछ न कुछ घरेलू सामान ले कर ही आती.

दोनों बहनें अपने स्तर पर कड़ी मेहनत करतीं, पर आंटी की झुंझलाहट बढ़ती ही जा रही थी. कभी पति, तो कभी अपना मनपसंद खाना, तरहतरह के आचार, पापड़, बडि़यां सब घर में ही तैयार करवातीं.

छुट्टी के दिन दोनों बहनें आचार, पापड़, बडि़यां धूप में डालती दिख जातीं. मेरे पूछने पर बोल पड़तीं, ‘पापा खाने के शौकीन थे तभी से मां को भी यही सब खाने की आदत हो गई है. न बनाओ, तो बोल पड़ती हैं, ‘जितना राजपाट था मेरा, तेरे पिता के साथ ही चला गया. अब तो तुम्हारे राज में सूखी रोटियां ही खानी पड़ रही हैं.’

उन दोनों बहनों को दिनरात मेहनत करते देख बहुत दुख भी होता. समय गुजरता गया, जल्द ही छोटी बहन की एमए की शिक्षा पूरी हो गई. प्रज्ञा 30 साल की हो गई. जब आंटी पर चारों तरफ से दबाव पड़ने लगा कि ‘प्रज्ञा की शादी कब करोगी?’ तो उन्होंने उलटा लोगों से ही कह दिया, ‘मैं अकेली औरत कहां जाऊंगी, तुम लोग ही कहीं देखभाल कर रिश्ता बता देना.’

दरअसल, उन्हें बेटियों की शादी की कोई जल्दी नहीं थी जबकि दोनों बेटियां विवाहयोग्य हो गई थीं. ज्यादातर रिश्ते इसी बात पर टूट जाते कि पिता नहीं, भाई भी नहीं, कौन मां की जिम्मेदारी जिंदगीभर उठाएगा. आखिर, प्रज्ञा की शादी तय हो ही गई.

पता चला कि लड़का बेरोजगार है और यों ही छोटेमोटे बिजली के काम कर के अपना खर्चा चलाता है. महेश का परिवार दिल्ली के पुराने रईस लोगों में से एक था, 4 बड़े भाई थे, सभी अच्छे पद पर नियुक्त थे. सो, सब से छोटे भाई के लिए कमाऊ पत्नी ला कर उन्होंने अपना कर्तव्य पूरा कर दिया.

महेश अब घरजमाई बन कर रहने लखनऊ आ गया. आंटी का बहुत खयाल रखता. मगर आंटी उसे ताना मारने से न चूकतीं. कुसुम ने प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना और घर में ट्यूशन ले कर घरखर्च में योगदान देना शुरू कर दिया था.

नवविवाहितों को 2 कमरों के घर में कोई एकांत नहीं मिल पाता था, ऊपर से मां की बेतुकी बातें भी सुननी पड़तीं. प्रज्ञा ने कभी भी इस बात को ले कर कोई शिकायत नहीं की, बल्कि वह जल्द से जल्द कुसुम के रिश्ते के लिए प्रयासरत हो उठी.

अपनी ससुराल की रिश्तेदारी में ही प्रज्ञा ने कुसुम का रिश्ता तय कर दिया. रमेश सरकारी दफ्तर में क्लर्क था और उस के घर में बीमार पिता के अलावा और कोई जिम्मेदारी नहीं थी. उस से बड़ी 2 बहनें थीं और दोनों ही दूसरे शहरों में विवाहित थीं. कुसुम की विदाई लखनऊ में ही दूसरे छोर में हो गई. सभी ने प्रज्ञा को बहुत बधाइयां दीं कि उस ने अपनी जिम्मेदारियों को बहुत ही अच्छे ढंग से निभाया.

अब आंटी का दिलोदिमाग कुसुम के विवाह की चिंता से मुक्त हो गया था. कोई उद्देश्य जिंदगी में बाकी नहीं रहने से उन के खाली दिमाग में झुंझलाहट बढ़ने लगी थी. वे अकसर अपने दामाद महेश से उलझ पड़तीं. बेचारी प्रज्ञा औफिस से थकीमांदी आती और घर पहुंच कर सासदामाद का झगड़ा निबटाती.

धीरेधीरे आंटी को सफाई का मीनिया चढ़ता ही जा रहा था. अब वे घंटों बाथरूम को रगड़ कर चमकातीं. दिन में 2 से 3 बार स्नान करने लगतीं. अपने कपड़ों को किसी के छू लेने भर से दोबारा धोतीं. अपनी कुरसी, अपने तख्त पर किसी को हाथ भी धरने न देतीं.

वे अपने खोल में सिमटती जा रही थीं. पहले अपने भोजन के बरतन अलग किए, फिर स्नानघर के बालटीमग भी नए ला कर अपने तख्त के नीचे रख लिए.

प्रज्ञा के पूछने पर बोलीं, ‘मेरा सामान कोई छुए तो मुझे बहुत घिन आती है, बारबार मांजना पड़ता है. अब मैं ने अपने इस्तेमाल का सारा सामान अलग कर लिया है. अब तुम लोग इसे हाथ भी मत लगाना.’ प्रज्ञा को अपने पति महेश के समक्ष शर्मिंदगी उठानी पड़ती. हर समय घर में शोर मचा रहता, ‘बिना नहाए यह न करो, वह न करो, मेरी चीजों को न छुओ, मेरे वस्त्रों से दूर रहो’ आदिआदि.

दामाद तानाशाही से जब ऊब जाता तो 2-4 दिनों को अपने घरपरिवार, जोकि दिल्ली में था, से मिलने को चल देता. प्रज्ञा अपनी मां को समझाए या पति को, समझ न पाती. किसी तरह अपनी गृहस्थी बचाने की कोशिश में जुटी रहती. इन 4 सालों में वह 2 बच्चों की मां बन गई. खर्चे बढ़ने लगे थे और मां अपनी पैंशन का एक पैसा खर्च करना नहीं चाहतीं. वे उलटा उन दोनों को सुनाती रहतीं, ‘यह तनख्वाह जो प्रज्ञा को मिलती है अपने बाप की जगह पर मिलती है.’ उन का सीधा मतलब होता कि उन्हें पैसे की धौंस न देना.

आंटी आएदिन अपने मायके वालों को दावत देने को तैयार रहतीं. वे खुद भी बहुत चटोरी थीं, इसीलिए लोगों को घर बुला कर दावत करातीं. जब भी उन्हें पता चलता कि इलाहाबाद से उन के भाई या बनारस से बहन लखनऊ किसी शादी में शामिल हो रहे हैं तो तुरंत अपने घर पर खाने, रुकने का निमंत्रण देने को तैयार हो जातीं.

घर में जगह कम होने की वजह से जो भी आता, भोजन के पश्चात रुकने के लिए दूसरी जगह चला जाता. मगर उस के लिए उत्तम भोजन का प्रबंध करने में प्रज्ञा के बजट पर बुरा असर पड़ता. वह मां को लाख समझाती, ‘देखो मम्मी, मामा, मौसी लोग तो संपन्न हैं. वे अपने घर में क्या खाते हैं क्या नहीं, हमें इस बात से कोई मतलब नहीं है. मगर वे हमारे घर आए हैं तो जो हम खाते हैं वही तो खिलाएंगे. वैसे भी हमारी परेशानियों में किस ने आर्थिक रूप से कुछ मदद की है जो उन के स्वागत में हम पलकपांवड़े बिछा दें.’ लेकिन आंटी के कानों में जूं न रेंगती. उन्हें अपनी झूठी शान और अपनी जीभ के स्वाद से समझौता करना पसंद नहीं था.

आंटी को आंखों से कम दिखने लगा था. एक दिन रिकशे से उतर कर भीतर आ रही थीं, तो पत्थर से ठोकर खा कर गिर पड़ीं. अब तो अंधेरा होते ही उन का हाथ पकड़ कर अंदरबाहर करना पड़ता. अब उन्होंने एक नया नाटक सीख लिया. दिनरात टौर्च जला कर घूमतीं. प्रज्ञा अपने कमरे में ही अपने छोटे बच्चों को भी सुलाती क्योंकि उस की मां तो अपने कमरे में बच्चों को घुसने भी न देतीं, अपने तख्त पर सुलाना तो दूर की बात थी. आंटी को फिर भी चैन न पड़ता. रात में उन के कमरे का दरवाजा खटका कर कभी दवा पूछतीं तो कभी पानी मांगतीं.

आंटी के कमरे की बगल में ही रसोईघर है, मगर रसोईघर से पानी लेना छोड़, वे प्रज्ञा और महेश को डिस्टर्ब करतीं. ऐसा वे उस दिन जरूर करतीं जब उन्हें उन के कमरे से हंसीमजाक की आवाज सुनाई देती. प्रज्ञा अपनी मां को क्या कहती, लेकिन महेश का मूड औफ हो जाता. आंटी उन की शादीशुदा जिंदगी में सेंध लगाने लगी थीं. इस बीच आंटी की दोनों आंखों के मोतियांबिंद के औपरेशन भी हुए. उस समय भी दोनों पतिपत्नी ने पूरा खयाल रखा. फिर भी आंटी का असंतोष बढ़ता ही गया.

उधर, कुसुम के बीमार ससुर जब चल बसे तब जा कर उस के मायके  के फेरे बढ़ने लगे. ऐसे में आंटी कुसुम से, प्रज्ञा की खूब बुराई करतीं और अपना रोना रोतीं, ‘वे दोनों अपने कमरे में मग्न रहते हैं. मेरा कोई ध्यान नहीं रखता. मेरी दोनों आंखें फूट गई हैं.’ कुसुम समझाबुझा कर चली जाती. इधर महेश का मन ऊबने लगा था. एक तो उस की आमदनी व काम में कोई इजाफा नहीं हो रहा था, ऊपर से सास के नखरे. प्रज्ञा और उस के बीच झगड़े बढ़ने लगे थे. प्रज्ञा न तो मां को छोड़ सकती थी, न ही पति को. दोनों की बातें सुन वह चुप रहती.

प्रज्ञा का प्रमोशन और ट्रांसफर जब दिल्ली हो गया तो उस ने चैन की सांस ली और अपनी मां से भी दिल्ली चलने को कहा तो उन्होंने साफ मना कर दिया. वे अपनी सत्संग मंडली छोड़ कर कहीं जाना नहीं चाहती थीं. प्रज्ञा के खर्चे दिनोंदिन बढ़ ही रहे थे. महेश की कोई निश्चित आमदनी नहीं थी. प्रज्ञा ने कुसुम को बुलाया कि वह मां को समझाबुझा कर साथ में दिल्ली चलने को तैयार करे. मगर वे अपना घर छोड़ने को तैयार ही न हुईं. अंत में यह फैसला हुआ कि प्रज्ञा अपने परिवार के साथ दिल्ली चली जाए और कुसुम अपने पति के साथ मायके रहने आ जाएगी. अपनी ससुराल के एक हिस्से को कुसुम ने किराए पर चढ़ा दिया और अपनी मां के संग रहने को चली आई. आखिर वे दोनों अपनी मां को अकेले कैसे छोड़ देतीं, वह भी 70 साल की उम्र में.

कुसुम मायके में रहने आ गई. किंतु अभी तक तो वह मां से प्रज्ञा की ढेरों बुराइयों को सुन दीदी, जीजाजी को गलत समझती थी. अब जब ऊंट पहाड़ के नीचे आया तो उसे पता चला कि उस की मां दूसरों को कितना परेशान करती हैं. उस की 2 छोटी बेटियां भी थीं और घर में केवल 2 ही कमरे, इसीलिए वह अपनी बेटियों को मां के साथ सुलाने लगी.

मां को यह मंजूर नहीं था, कहने लगीं, ‘प्रज्ञा के बच्चे उस के साथ ही उस के कमरे में सोते थे, मैं किसी को अपने साथ नहीं सुला सकती.’ कुसुम ने 2 फोल्ंिडग चारपाई बिछा कर अपनी बेटियों के सोने का इंतजाम कर दिया और बोली, ‘पति को, बच्चों को अपने संग सुलाना पसंद नहीं है. और अगर कोई तुम्हारा सामान छुएगा तो मैं घर में ही हूं, जितनी बार कहोगी मैं उतनी बार धो कर साफ कर दूंगी.’ उस की मां इस पर क्या जवाब देतीं.

आंटी प्रज्ञा को तो अनुकंपा नौकरी के कारण खरीखोटी सुना देती थीं, मगर कुसुम से जब पैसों को ले कर बहस होती तो उस के सामने पासबुक और चैकबुक ले कर खड़ी हो जातीं और पूछतीं, ‘कितना खर्चा हो गया तेरा, बोल, अभी चैक काट कर देती हूं.’ कुसुम उन का नाटक देख वहां से हट जाती.

प्रज्ञा तो अपनी जौब की वजह से शाम को ही घर आती थी और घर में बच्चे महेश के संग रहते थे. शाम को थकीहारी लौटने के बाद किसी किस्म की बहस या तनाव से बचना चाहती. सो, वह अपनी मां की हर बात को सुन कर, उन्हें शांत रखने की कोशिश करती. मगर कुसुम घरेलू महिला होने के कारण दिनभर मां की गतिविधियों पर नजर रखती. वह आंटी की गलत बातों का तुरंत विरोध करती. आंटी ने प्रज्ञा को परेशान करने के लिए जो नाटक शुरू किए थे, अब वे उन की आदत और सनक में बदल चुके थे.

कुछ दिन तो आंटी शांत रहीं, मगर फिर कुसुम के सुखी गृहस्थ जीवन में आग लगाने में जुट गईं. कुसुम रात में आंटी को दवा खिला व सिरहाने पानी रख और अपनी बेटियों को सुला कर ही अपने कमरे में जाती. लेकिन आंटी को कहां चैन पड़ता. रात में टौर्च जला कर पूरे घर में घूमतीं. कभी अचानक ही दरवाजा खटका देतीं और अंदर घुस कर टौर्च से इधरउधर रोशनी फेंकतीं. उन से पूछो, तो कहतीं, ‘मुझे कहां दिखता हैं, मैं तो इसे रसोईघर समझ रही थी.’

रमेश को अपनी निजी जिंदगी में

दखलंदाजी बिलकुल पसंद नहीं थी.

अपनी बीवी के कहने से वह यहां रहने तो आ गया था मगर उस का छोटे से घर में दम घुटता था. साथ ही, उसे दिनभर सास के सौ नखरे सुनने को मिलते ही, रात में भी वे उन्हें चैन से सोने न देतीं. कुसुम मां को छोड़ नहीं सकती थी और प्रज्ञा से भी क्या कहती. अब तक वह ही तो इतने वर्षो तक मां को संभाले रही थी.

दोनों बहनों में केवल फोन से ही बातें होतीं. कुसुम मां की खाने की फरमाइशें देख कर हैरान हो जाती. अगर कुछ कहो तो मां वही पुराना राग अलापतीं, ‘तुम्हारे पापा होते तो आज मेरी यह गत न होती.’ यह सब सुन कर वह भी चुप हो जाती. मगर रमेश उबलने लगा था. उस ने पीना शुरू कर दिया. अकसर देररात गए घर आता और बिस्तर पर गिरते ही सो जाता.

कुसुम कुछ समझानाबुझाना चाहती भी, तो वह अनसुना कर जाता. दोनों के बीच का तनाव बढ़ने लगा था. मगर आंटी को सिर्फ समय से अपनी सफाई, पूजा, सत्संग और भोजन से मतलब था. इन में कोई कमी हो जाए, तो चीखचीख कर वे घर सिर पर उठा लेतीं. अब हर वक्त प्रज्ञा को याद करतीं कि वह ऐसा करती थी, महेश मेरी कितनी सेवा करता था आदिआदि.

यह सब सुन कर रमेश का खून खौल जाता. असल में महेश अपने भाइयों में सब से छोटा होने के कारण सब की डांट सुनने का आदी था. लेकिन रमेश 2 बहनों का एकलौता भाई होने के कारण लाड़ला पुत्र था. उस के बरदाश्त की सीमा जब खत्म हो गई तो एक रात वह वापस घर ही नहीं आया.

सब जगह फोन कर कुसुम हाथ पर हाथ धर कर बैठ गई. सुबह ननद

का फोन आया कि वह हमारे घर में

है. कानपुर से लखनऊ की दूरी महज

2-3 घंटे की तो है, सारी रात वह कहां था? इस का कोई जवाब ननद के पास भी नहीं था. फिर तो वह हर 15 दिन में बिना बताए गायब हो जाता और पूछने पर तलाक की धमकी देने लगा. कभी कहता, ‘कौन सा सुख है इस शादी से, अंधी लड़ाका सास और बेवकूफ बीवी, न दिन में चैन न रात में.’

कुसुम के शादीशुदा जीवन में तलाक की काली छाया मंडराने लगी थी. वह अकसर मेरे सामने रो पड़ती. आंटी किसी की बात सुनने को तैयार ही नहीं थीं. उस दिन उन की चीखपुकार सुन कर मैं उन से मिलने चली गई. पता चला कुसुम की छोटी बेटी रिनी की गेंद उछल कर उन के कमरे में चली गई. बस, इतने में ही उन्होंने घर सिर पर ले रखा था. पूरा कमरा धोया गया. दरवाजे, खिड़की, परदे, चादर सब धुलने के बाद ही उन्हें संतुष्टि हुई.

कुसुम ने बताया, ‘वह अपनी बेटियों को सिर्फ सोते समय ही मां के कमरे में ले जाती है. बाकी समय वह अपना कमरा बंद कर बैठी रहती है ताकि रिनी और मिनी उन के सामान को हाथ न लगा सकें. वैसे, मिनी 6 साल की हो गई है और बहुत समझदार भी है. वह दिन में तो स्कूल चली जाती है और शाम को दूसरे कमरे में ही बैठ कर अपना होमवर्क करती है, या फिर बाहर ही खेलती रहती है. लेकिन रिनी थोड़ी शैतान है. उसे नानी का बंद कमरा बहुत आकर्षित करता है. वह उस में घुसने के मौके तलाश करती रहती है.

‘रिनी दिनभर घर में ही रहती है और स्कूल भी नहीं जाती है. आज जब मां रसोई तक उठ कर गईं तो दरवाजा खुला रह गया. रिनी ने अपनी गेंद उछाल कर नानी के कमरे में डाल दी. फिर भाग कर उठाने चली गई. क्या कहूं इसे? 3 साल की छोटी बच्ची से ऐसा क्या अपराध हो गया जो मेरी मां ने हम दोनों को इतने कटु वचन सुना दिए.’

तभी आंटी कमरे से निकल कर मुझ से उलझ पड़ीं, ‘तुम्हारी मां ने तो तुम लोगों को कोई साफसफाई सिखाई नहीं है. मैं ने प्रज्ञा और कुसुम को कैसे काम सिखाया, मैं ही जानती हूं. मगर अपनी औलादों को यह कुछ न सिखा सकी. मैं मर क्यों नहीं जाती. क्या यही दिन देखने बाकी रह गए थे. बेटियों के रहमोकरम पर पड़ी हूं. इसी बात का फायदा उठा कर सब मुझे परेशान करते हैं. कुसुम, तेरी भी 2 बेटियां हैं. तू भी जब मेरी स्थिति में आएगी न, तब तुझे पता चलेगा.’

मैं यह सब सुन कर सन्न रह गई. ऐसा अनर्गल प्रलाप, वह भी अपनी बेटी के लिए. कुसुम अपनी बेटी को गोद में ले कर मुझे छोड़ने गेट तक आ गई.

‘ऐसी मां देखी है कभी जो सिर्फ और सिर्फ अपने लिए जी रही हो?’

मैं क्या जवाब देती?

‘रमेश भी परेशान हो चुका है इन की हरकतों से, हमारे दांपत्य जीवन में भी सन्नाटा पसरा रहता है. जरा भी आहट पा, कमरे के बाहर मां कान लगा कर सुनने को खड़ी रहती हैं कि कहीं हम उन की बुराई तो नहीं कर रहे हैं. ऐसे माहौल में हमारे संबंध नौर्मल कैसे रह सकते हैं? अब तो रमेश को भी घर से दूर भागने का बहाना चाहिए. पता नहीं अपनी बहनों के घर जाता है या कहीं और? किस मुंह से उस से जवाब तलब करूं. जब अपनी मां ही ऐसी हो तो दूसरे से क्या उम्मीद रखना.’

आंटी का सनकीपन बढ़ता ही जा रहा था. उस दिन रिनी का जन्मदिन था, जिसे मनाने के लिए कुसुम और उस की मां में पहले ही बहुत बहस हो चुकी थी. आंटी का कहना था, ‘घर में बच्चे आएंगे तो यहांवहां दौड़ेंगे, सामान छुएंगे.’

कुसुम ने कहा, ‘तुम 2-3 घंटे अपने कमरे को बंद कर बैठ जाना, न तुम्हें कोई छुएगा न ही तुम्हारे सामान को.’

जब आंटी की बात कुसुम ने नहीं सुनी तो वे बहुत ही गुस्से में आ गईं. जन्मदिन की तैयारियों में जुटी कुसुम की उन्होंने कोई मदद नहीं की. मैं ही सुबह से 2-3 बार उस की मदद करने को जा चुकी थी. शाम को सिर्फ 10-12 की संख्या में बच्चे एकत्रित हुए और दोढाई घंटे में लौट गए.

आंटी कमरे से बाहर नहीं आईं. 8 बज गए तो कुसुम ने आंटी को डिनर के लिए पुकारा. तब जा कर वे अपने कोपभवन से बाहर निकलीं. शायद, उन्हें जोरों की भूख लग गई थी. वे अपनी कुरसी ले कर आईं और बरामदे में बैठ गईं. तभी रमेश अपने किसी मित्र को साथ ले कर घर में पहुंचा. उन्हें अनदेखा कर कुसुम से अपने मित्र का परिचय करा कर वह बोला, ‘यह मेरा बचपन का मित्र जीवन है. आज अचानक गोल मार्केट में मुलाकात हो गई. इसीलिए मैं इसे अपने साथ डिनर पर ले कर आ गया कि थोड़ी गपशप साथ में हो जाएगी.’

कुसुम दोनों को खाना परोसने को उठ कर रसोई में पहुंची ही थी कि बरामदे से पानी गिराने और चिल्लाने की आवाज आने लगी. आंटी साबुन और पानी की बालटी ले कर अपनी कुरसी व बरामदे की धुलाई में जुट गई थीं.

दरअसल, जीवन ने बरामदे में बैठ कर सिगरेट पीते समय आंटी की कुरसी का इस्तेमाल कर लिया था. आंटी रसोई से खाना खा कर जब निकलीं तो जीवन को अपनी कुरसी पर बैठा देख आगबबूला हो गईं. और फिर क्या था. अपने रौद्र रूप में आ गईं. जीवन बहुत खिसियाया, रमेश और कुसुम भी मेहमान के आगे शर्म से गड़ गए. दोनों ने जीवन को मां की मानसिक स्थिति ठीक न होने का हवाला दे कर बात संभाली.

दरअसल, आंटी अपने पति की मृत्यु के बाद से खुद को असुरक्षित महसूस करने लगी थीं. वे ज्यादा पढ़ीलिखी न होने के कारण हीनभावना से ग्रस्त रहतीं. दूसरे लोगों से यह सुनसुन कर कि तुम्हारा कोई बेटा ही नहीं है, उन्होंने अपनी पकड़ बेटियों पर बनाए रखने के लिए जो चीखपुकार और धौंस दिखाने का रास्ता अख्तियार कर लिया था, वह बेटियों को बहुत भारी पड़ रहा था.

एक दिन आंटी रात में टौर्च जला कर घूम रही थीं कि किसी सामान में उलझ कर गिर पड़ीं. उन के सिर में अंदरूनी चोट आ गई थी. उस दिन से जो बिस्तर में पड़ीं तो उठ ही न पाईं. 6 महीने गुजर गए, लगता था कि अब गईं कि तब गईं. इसी बीच रमेश का भी तबादला दिल्ली हो गया. कुसुम ने अपनी मां को ऐंबुलैंस में दिल्ली ले जाने का फैसला कर लिया. जब वे जा रही थीं तब यही कह रही थीं, ‘पता नहीं वे दिल्ली तक सहीसलामत पहुंच भी पाएंगी या नहीं.’

मौका पाते ही मैं ने कुसुम को फोन लगाया और हालचाल पूछे. उस ने बताया, ‘‘यहां दीदी के ससुराल वालों का बहुत बड़ा पुश्तैनी घर है. मैं ने भी इसी में एक हिस्से को किराए पर ले लिया है. अब हम दोनों बहनें मिल कर उन की देखभाल कर लेती हैं अपनीअपनी सुविधानुसार.’’

‘‘और तुमहारे पति का मिजाज कैसा है?’’

‘‘उन की तो एक ही समस्या रहती थी हमारी प्राइवेसी की, वह यहां आ कर सुलझ गई. मैं भी अपने पति और बच्चों को पूरा समय दे पाती हूं.’’ उस की आवाज की खनक मैं महसूस कर रही थी.

‘‘और आंटी खुश हैं कि नहीं? या हमेशा की तरह खीझती रहती हैं?’’

‘‘मां को तो अल्जाइमर रोग लग गया है. वे सबकुछ भूल जाती हैं. कभीकभी कुछ बातें याद भी आ जाती हैं तो थोड़ाबहुत बड़बड़ाने लगती हैं. वैसे, शांत ही रहती हैं. अब वे ज्यादा बातें नहीं करतीं. बस, उन का ध्यान रखना पड़ता है कि वे अकेले न निकलें घर से. यहां दीदी के ससुराल वालों का पूरा सहयोग मिलता है.’’

‘‘तुम्हारी मां धन्य हैं जो इतनी समझदार बेटियां मिली हैं उन को.’’

‘‘मैं तो हमेशा मां की जगह पर खुद को रख कर देखती थी और इसीलिए शांत मन से उन के सारे काम करती थी. मेरी भी 2 बेटियां हैं. मां पहले ऐसी नहीं थीं. पापा का अचानक जीवन के बीच भंवर में छोड़ जाना वे बरदाश्त न कर सकीं और मानसिक रूप से निर्बल होती चली गईं. शायद वे अपने भविष्य को ले कर भयभीत हो उठी थीं. चलो, अब सब ठीक है, जैसी भी हैं आखिर वे हमारी मां हैं और मां सिर्फ मां होती है.’’

और मैं उस की बात से पूरी तरह सहमत हूं.

औनलाइन डेटिंग के खतरे

लखनऊ से कोटा इंजीनियरिंग करने गए शिविन की एक चूक पूरे परिवार ने  झेली. शिविन ने पूर्वा से औनलाइन डेटिंग शुरू की, दोस्ती बढ़ती गई. शिविन के कमरे पर पूर्वा मिलने भी आ गई, दोनों तेजी से आगे बढ़ते जा रहे थे. नौबत यहां तक आ गई कि दोनों लिवइन में रहने लगे. पूर्वा ने उसे यही बताया था कि वह दिल्ली से सबकुछ छोड़ कर उस के प्यार में उस के साथ रहने आ गई है, उस का और कोई है ही नहीं. सालभर दोनों पतिपत्नी की तरह साथ रहे. शिविन के घरवालों को बेटे के लिवइन की भनक भी नहीं लगी. सालभर बाद पूर्वा ने शिविन पर शादी करने का दबाव बनाया तो शिविन ने अभी शादी करने से साफ मना कर दिया. अभी उस का कैरियर सैट होने में काफी समय था.

पूर्वा ने दूसरा रंग दिखाया, पुलिस में जा कर रेप केस करने की धमकी दी. शिविन बौखला गया. घरवालों को पूरी बात बतानी पड़ गई. पूर्वा के साथ घरवालों की मीटिंग हुई तो उस ने शिविन का पीछा छोड़ने की कीमत साफसाफ 10 लाख रुपए मांगी, नहीं तो पुलिस केस करने की धमकी दी. उस के पास बहुत से सुबूत ऐसे भी थे जिन से शिविन फंस सकता था. शिविन की फैमिली ने वकील से सलाह ली. वकील ने भी शिविन के कैरियर को देखते हुए पैसे दे कर जान छुड़ाने की ही बात की, नहीं तो बड़ी परेशानी होने का डर था. शिविन और उस की फैमिली लंबे समय तक इस घटना से उबर नहीं पाए. बिना जांचेपरखे औनलाइन डेटिंग ने इन सब को बहुत मानसिक और आर्थिक नुकसान पहुंचाया.

औनलाइन डेटिंग का खतरा जैसन लौरेंस के केस में खुल कर सामने आया, जब पता चला कि जैसन ने डेटिंग साइट पर मिलने के बाद 5 औरतों का रेप किया और 2 औरतों पर मिलने के बाद हमला भी किया. 50 वर्षीय जैसन ने वैबसाइट पर कई औरतों से संपर्क किया था. इन अपराधों के लिए उसे आजीवन कारावास मिला. इस डेटिंग वैबसाइट ने हमलावर की प्रोफाइल 4 शिकायतों के बाद भी नहीं हटाई थी.

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सिएटल की 3 बच्चों की 40 वर्षीया मां इंग्रिड लाइन की हत्या ने साइबर रोमांस की दुनिया को हिला कर रख दिया. लाइन अपनी डेट 38 वर्षीय जौन रौबर्ट से मिलने के बाद गायब हो गई थी. उस के पूर्व पति ने उस के गुमशुदा होने की रिपोर्ट की. पुलिस को एक डस्टबिन में उस का कटा सिर, क्षतविक्षत शरीर मिला. दोस्तों ने बताया कि लाइन रौबर्ट से कुछ दिनों पहले एक औनलाइन डेटिंग साइट पर ही मिली थी. लाइन के केस में यह पता नहीं चल पाया कि वह इस डेट से पहले भी कितना साथ थे, पर दोस्तों ने यह बताया कि वह डेट के बाद से ही मिसिंग थी.

रौबर्ट बहुत बाद में पकड़ा गया तो उस ने अपना गुनाह कुबूल कर लिया.

चौबीसों घंटे दुनिया से जुड़े रह कर लोग यह बहाना तो कर सकते हैं कि उन के पास ऐक्सरसाइज का टाइम नहीं है या कहीं आनेजाने का टाइम नहीं है, पर कोई स्पैशल ढूंढ़ने में उन के लिए टाइम निकालना उतना मुश्किल भी नहीं रहा है. लोगों के पास भी टाइम कम है, उन के पास किसी कैफे या किसी पार्टी में मिलने जाने का टाइम नहीं है. अब औनलाइन पार्टनर्स ढूंढ़ने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है. कई बार किसी से मिलने जाने पर, उस से बात करने के बाद महसूस हो जाता है कि आप दोनों में कुछ कौमन नहीं है, बात आगे नहीं बढ़ेगी. इस से वयस्क औनलाइन डेटिंग से बच जाते हैं.

बच्चे और युवा अकसर इंटरनैट पर टारगेट बन जाते हैं. बच्चे अपनी उम्र के लोगों के साथ चैट करते जाते हैं. चाइल्ड सैक्स औफेंडर्स युवा लड़कियों की तलाश में रहते हैं. पेरैंट्स को बहुत ध्यान रखना चाहिए. कई कारणों से लोग औनलाइन डेटिंग करना शुरू करते हैं, 57 फीसदी मौजमस्ती के लिए जबकि कुछ ही गंभीर सार्थक रिश्ते के लिए और 13 फीसदी सैक्स के लिए. इन में 74 फीसदी औनलाइन डेटर्स एकदूसरे से  झूठ बोलते हैं.

क्या सच में सच्चा प्यार मिलना इतना आसान हो गया है? हां, औनलाइन डेटिंग आप का समय बचा देती है पर यह इतनी भी ठीकठाक चीज नहीं है. वर्चुअल वर्ल्ड के अलग खतरे हैं, अलग वार्निंग्स हैं, राइट स्वाइप या क्लिक करने से पहले कुछ चीजों को जानना अच्छा है.

आप जिस व्यक्ति से बात कर रहे हैं वह आप को सुपर स्वीट लग रहा है. आप को लगेगा कि आप को अपने लिए सही इंसान मिल गया. पर हर व्यक्ति स्क्रीन के पीछे स्वयं को छिपा सकता है और एक मुखौटा ओढ़ सकता है. यह जान लें कि हो सकता है आप किसी कुटिल व्यक्ति से बात कर रहे हों. काउंसलर डा. देशमुख कहते हैं, ‘‘जब तक आप किसी से फेस टू फेस न मिलें, इमोशनली उस से न जुड़ें, आम बातें न करें, तब तक उसे जान या पहचान नहीं सकते. अधिकांश लोग  झूठ बोल रहे होते हैं और आप के सामने उन की सही पर्सनैलिटी नहीं आती है.

‘‘मैं एक यंग लड़की को जानता हूं जिस ने इंस्टाग्राम पर एक लड़के से सैंटिमैंटल मैसेज शेयर किए थे. उस ने अपनेआप को काफी यंग और सिंगल बताया था. वह असल में मैरिड था, जब बात खुल गई, वह भाग गया. लड़की बहुत दुखी हुई. इसलिए पहले उस इंसान से मिलें, फिर आगे फैसला करें. एक अजनबी को अपने जीवन में प्रवेश करवाने से पहले अलर्ट रहें. जब वह स्क्रीन के पीछे हो तो उसे सामने लाना आसान नहीं है.’’

अपने औनलाइन वर्ल्ड में किसी को बहुत जल्दी ऐड न करें. मुंबई की ग्राफिक डिजाइनर नेहा कहती हैं, ‘‘मैं एक व्यक्ति से औनलाइन मिली. वह बहुत शर्मिला लगा और वह मु झ से बात कर के बहुत खुश था. 2 दिनों में ही हम ने एकदूसरे के परिवार, काम, शौक सब शेयर कर लिए. फिर मु झे अपने फेसबुक पेज पर ऐड करने में कोई बुराई नहीं लगी. पर मैं तब हैरान हुई जब मैं ने देखा कि उस ने मेरी फ्रैंड्स की प्रोफाइल पर जा कर पोस्ट्स लाइक करनी शुरू कर दीं. यह भी नहीं सोचा कि मु झे कैसा लगेगा. जल्दी ही वह एक फ्रैंड की फ्रैंड से बहुत फ्रैंडली भी हो गया. मु झे धक्का लगा, मैं ने उसे अपने अकाउंट से हटा दिया और फिर कभी उस से बात नहीं की.’’

किसी से मीठीमीठी बातें करना, फिर उन की पर्सनल चीजें जानना, फोटोज शेयर करना, इन सब में बहुत धोखा भी होता है. ये चीजें कभीकभी ब्लैकमेलिंग की नौबत तक ले जाती हैं. क्लीनिकल मनोवैज्ञानिक डा. आरती का कहना है, ‘‘आप स्क्रीन पर किसी पर विश्वास नहीं कर सकते, इसलिए अपनी कोई भी पर्सनल जानकारी या फोटोज शेयर न करें. आप को नहीं पता कि सामने वाला ये चीजें कैसे यूज करेगा. यदि कोई सचमुच आप को पसंद करता है तो उस से पहले मिलें, बातें करें. फिर देखें कि आप वास्तविकता जान कर उस की तरफ कितनी आकर्षित हैं.’’

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कभी भी किसी को अपनी पर्सनल डिटेल्स या कोई पेमैंट औनलाइन न दें. इस चीज में स्त्रीपुरुष दोनों ही ठगी के शिकार होते हैं. मुंबई के 62 वर्षीय प्रशांत कुलकर्णी ने एक डेटिंग वैबसाइट फ्रौड में अपनी सारी सेविंग्स, पोस्ट रिटायरमैंट के फंड्स, सब खो दिए. उन्होंने एक महिला से सालभर डेटिंग के लिए रजिस्टर किया था. रजिस्टर करने के बाद उन्हें रजिस्ट्रेशन फीस देने के लिए कहा गया. उन्हें कुछ महिलाएं दिखाई गईं और डेटिंग पैकेज दिया गया. उस महिला ने कई चीजें जैसे पुलिस वैरिफिकेशन, इंश्योरैंस और कईर् चीजों के लिए पेमैंट करने के लिए कहा.

प्रशांत से जितना कहा जाता रहा वे देते गए. इसलिए कोई भी इमोशनल बात शुरू करने से पहले बहुत अलर्ट रहें. हो सकता है आप की किसी दोस्त को अपना मनपसंद साथी औनलाइन मिल गया हो और वह खुश हो. पर इस का मतलब यह नहीं कि आप के साथ भी ऐसा होगा. सारे औनलाइन रोमांस सच नहीं होते. बाहर की दुनिया में कई सिंगल्स हैं जो अच्छा पार्टनर ढूंढ़ रहे हैं. बाहर जाएं, अपनी तलाश सोचसम झ कर जारी रखें. नुकसान उठाने से बचें.

दुनिया में लगभग 8 हजार डेटिंग साइट्स हैं जो पहले दिख जाए वही न चुन लें. जिस की सफलता के बारे में आप ने दोस्तों, परिवार से सुना हो, वही चुनें.                                 –

 खास टिप्स

– किसी से मिलने से पहले आराम से सोचें. जल्दबाजी में मिलने का फैसला न करें.

– आप जिस से भी औनलाइन मिलें, उस की खोजबीन करने से न डरें.

– गूगल इमेजेस का प्रयोग कर के चैक करें कि जो फोटो वे यूज कर रहे हैं, किसी से संबंध तो नहीं रखतीं. सोशल मीडिया साइट भी यह देखने के लिए चैक कर लें कि वे सचमुच अस्तित्व भी रखते हैं या नहीं. यदि कुछ भी ठीक न लग रहा हो, तो बात करना बंद करने से डरें नहीं.

– भले ही आप दूसरीतीसरी बार डेट पर गई हों, यह याद रखें कि औनलाइन मिलने वाला अजनबी ही है. हमेशा किसी को बता कर ही मिलने जाएं.

– किसी से औनलाइन बात करना, उस से फोन पर बात करने या वीडियो पर बात करने से बिलकुल अलग है. इस तरह से बात करने से आप को उस व्यक्ति के बारे में ज्यादा पता चल सकता है. रियल लाइफ में किसी से मिलने से पहले इन दोनों तरीकों में से एक तरीके से उस से बात जरूर कर लें.

– उस व्यक्ति का सोशल मीडिया अकाउंट अच्छी तरह से चैक कर लें. उस पर थोड़ी रिसर्च कर लें. इस से उस के बारे में काफीकुछ पता चल जाता है. किसी दोस्त की सलाह जरूर लें.

– कुछ भी संदेह हो तो उसे ब्लौक करने में देर न करें.

– अगर उस से मिलने जा रही हैं तो पब्लिक प्लेस पर ही मिलें. पहली बार में ही उस के न घर जाएं, न अपने घर बुलाएं.

– आप को देख कर लड़की को ऐसा न लगे कि आप डेट को ले कर बहुत उत्साहित हैं. नौर्मल बिहेव करें.

– व्यक्ति का व्यक्तित्व उस के कपड़ों से झलकता है. इसलिए कपड़ों का चयन सोचसमझ कर करें. ओवरड्रैस हो कर न जाएं.

– कुछ भी आपत्तिजनक होने पर फौरन उठ कर चली जाएं, बात वहीं खत्म करें.

जैसा आप ने सोचा वैसा नहीं हुआ, तो निराश होने की जरूरत नहीं है. आप को अपनी पसंद का साथी आगे जरूर मिलेगा. किसी खतरे में पड़ने से अच्छा है, सचेत रहें, सोचसम झ कर फैसला करें.        

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