छोटी सरदारनी: लोहड़ी सेलिब्रेशन के दौरान मेहर को पता चलेगी परम की ये बात

कलर्स के शो छोटी सरदारनी में 2 महीने का लीप आ गया है, जिसके बाद परम के दस्तरबंदी और लोहरी सेलिब्रेशन के कारण गिल परिवार में खुशियों का माहौल है. वहीं मेहर भी अपने होने वाले बच्चे के साथ अपनी इस नई जिंदगी में खुश है, लेकिन क्या ये खुशियां बनीं रहेंगी. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

मेहर और हरलीन के बीच बढ़ रही हैं दूरियां

अब तक आपने देखा कि हरलीन दस्तरबंदी सेलिब्रेशन के लिए परम को पगड़ी पहनाने की कोशिश करती है, लेकिन परम पग पहनने से इंकार कर देता है. इस बात से हरलीन अपनी सास और ननद के सामने अपमानित महसूस करती है और सोचती है कि इन सबके लिए मेहर जिम्मेदार है.

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लोहरी सेलिब्रेशन में सरब देता है मेहर को गिफ्ट

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मेहर और सरब की दोस्ती गहरी हो रही है. वहीं सरब, मेहर को पायल गिफ्ट करता है और फिर मेहर से सरब अपना गिफ्ट मांगता है. मेहर कहती है कि सरब जो मांगना चाहे मांग ले, मेहर उसकी हर ख्वाहिश पूरी करेगी. इस बात पर सरब, मेहर से उसके साथ सात जन्मों का साथ मांगता है.

मेहर को पता चलेगी परम की ये बात

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सेलिब्रेशन के दौरान, मेहर देखती है कि परम गायब है. मेहर परम को वौशरूम से बाहर निकलते हुए देखती है, जहां वह फ्लश करना भूल जाता है. यहां मेहर देखती है कि परम का यूरीन पीला है और उसमें खून भी आ रहा है. ये देखकर मेहर बुरी तरह घबरा जाती है.

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अब देखना ये है कि आखिर क्या हुआ है परम को? क्या मेहर और सरब की जिंदगी में आने वाला है कोई बड़ा तूफान? जानने के लिए देखते रहिए ‘छोटी सरदारनी’, सोमवार से शनिवार, रात 7:30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

मां जल्दी आना: भाग-3

‘‘कहां हो भाई खानावाना मिलेगा… 9 बजने जा रहे हैं.’’ मैं ने अपने खुले बालों का जूड़ा बनाया और फटाफट किचन में जा पहुंची. देखा तो मां ने रात के डिनर की पूरी तैयारी कर ही दी थी बस केवल परांठे बनाने शेष थे. मैं ने फुर्ती से गैस जलाई और सब को गरमागरम परांठे खिलाए. सारे काम समाप्त कर के मैं अपने बैडरूम में आ गई. अमन तो लेटते ही खर्राटे लेने लगे थे पर मैं तो अभी अपने विगत से ही बाहर नहीं आ पाई थी. आज भी वह दिन मुझे याद है जब मां को देखने गई मैं वापस मां को अपने साथ ले कर लौटी थी. मुझे एअरपोर्ट पर लेने आए अमन ने मां के आने पर उत्साह नहीं दिखाया था बल्कि घर आ कर तल्ख स्वर में बोले,’’ ये सब क्या है विनू मुझ से बिना पूछे इतना बड़ा निर्णय तुम ने कैसे ले लिया.

‘‘कैसे मतलब… अपनी मां को अपने साथ लाने के लिए मुझे तुम से परमीशन लेनी पड़ेगी.’’ मैं ने भी कुछ व्यंग्यात्मक स्वर में उतर दिया था.

‘‘क्यों अब क्यों नहीं ले गया इन का सगा बेटा इन्हें अपने साथ जिस के लिए इन्होंने बेटी तो क्या दामादों तक को सदैव नजरंदाज किया.’’

‘‘अमन आखिर वे मेरी मां हैं… वह नहीं ले गया तभी तो मैं ले कर आई हूं. मां हैं वो मेरी ऐसे ही तो नहीं छोड़ दूंगी.’’ मेरी बात सुन कर अमन चुप तो हो गए पर कहीं न कहीं अपनी बातों से मुझे जता गए कि मां का यहां लाना उन्हें जंचा नहीं. इस के बाद मेरी असली परीक्षा प्रारंभ हो गई थी. अपने 20 साल के वैवाहिक जीवन में मैं ने अमन का जो रूप आज तक नहीं देखा था वह अब मेरे सामने आ रहा था.

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घर आ कर सब से बड़ा यक्षप्रश्न था हमारे 2 बैडरूम के घर में मां को ठहराने का. 10 वर्षीय बेटी अवनि के रूम में मां का सामान रखा तो अवनि एकदम बिदक गई. अपने कमरे में साम्राज्ञी की भांति अब तक एकछत्र राज करती आई अवनि नानी के साथ कमरा शेयर करने को तैयार नहीं थी. बड़ी मुश्किल से मैं ने उसे समझाया तब कहीं मानी पर रात को तो अपना तकिया और चादर ले कर उस ने हमारे बैड पर ही अपने पैर पसार लिए कि ‘‘आज तो मैं आप लोगों के साथ सोउंगी भले ही कल से नानी के साथ सो जाउंगी.’’

पर जैसे ही अमन सोने के लिए कमरे में आए तो अवनि को बैडरूम में देख कर चौंक गए.

‘‘लो अब प्राइवेसी भी नहीं रही.’’

‘‘आज के लिए थोड़ा एडजस्ट कर लो कल से तो अवनि नानी के साथ ही सोएगी.’’ मैं ने दबी आवाज में कहा कि कहीं मां न सुन लें.

‘‘एडजस्ट ही तो करना है, और कर भी क्या सकते हैं.’’ अमन ने कुछ इस अंदाज में कहा मानो जो हो रहा है वह उन्हें लेशमात्र भी पसंद नहीं आ रहा पर उन्हें इग्नोर करने के अलावा मेरे पास कोई चारा भी नहीं था. मां को सुबह जल्दी उठने की आदत रही है सो सुबह 5 बजे उठ कर उन्होंने किचन में बर्तन खड़खड़ाने प्रारंभ कर दिए थे. मैं मुंह के ऊपर से चादर तान कर सब कुछ अनसुना करने का प्रयास करने लगी. अभी मेरी फिर से आंख लगी ही थी कि अमन की आवाज मेरे कानों में पड़ी.

‘‘विनू ये मम्मी की घंटी की आवाज बंद कराओ मैं सो नहीं पा रहा हूं.’’ मैं ने लपक कर मुंह से चादर हटाई तो मां की मंदिर की घंटी की आवाज मेरे कानों में भी शोर मचाने लगी. सुबह के सर्दी भरे दिनों में भी मैं रजाई में से बाहर आई और किसी तरह मां की घंटी की आवाज को शांत किया. जब से मां आईं मेरे लिए हर दिन एक नई चुनौती ले कर आता. 2 दिन बाद रात को जैसे ही मैं सोने की तैयारी कर रही थी कि अवनि ने पिनपिनाते हुए बैडरूम में प्रवेश किया.

‘‘मम्मी मैं नानी के पास तो नहीं सो सकती, वे इतने खर्राटे लेती हैं कि

मैं सो ही नहीं पाती.’’ और वह रजाई तान कर सो गई. अमन का रात का कुछ प्लान था जो पूरी तरह चौपट हो गया था और वे मुझे घूरते हुए करवट ले कर सो गए थे बस मेरी आंखों में नींद नहीं थी. अगले दिन अमन को जल्दी औफिस जाना था पर जैसे ही वे सुबह उठे तो बाथरूम पर मां का कब्जा था उन्हें सुबह जल्दी नहाने का आदत जो थी. बाथरूम बंद देख कर अमन अपना आपा खो बैठे.

‘‘विनू मैं लेट हो जाऊंगा मम्मी से कहो हमारे औफिस जाने के बाद नहाया करें उन्हें कौन सा औफिस जाना है.’’

‘‘अरे औफिस नहीं जाना है तो क्या हुआ बेटा चाय तो पीनी है न और तुम जानते हो कि मैं बिना नहाए चाय भी नहीं पीती.’’ मां ने बाथरूम से बाहर निकल कर सफाई देते हुए कहा. जिंदगीभर अपनी शर्तों पर जीतीं आईं मां के लिए स्वयं को बदलना बहुत मुश्किल था और अमन मेरे साथ कोऔपरेट करने को तैयार नहीं थे. इस सब के बीच मैं खुद को तो भूल ही गई थी. किसी तरह तैयार हो कर लेटलतीफ बैंक पहुंचती और शाम को बैंक से निकलते समय दिमाग में बस घर की समस्याएं ही घूमतीं. इस से मेरा काम भी प्रभावित होने लगा था. मेरी हालत ज्यादा दिनों तक बैंक मैनेजर से छुपी नहीं रह सकी और एक दिन मैनेजर ने मुझे अपने केबिन में बुला ही भेजा.

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‘‘बैठो विनीता क्या बात है पिछले कुछ दिनों से देख रही हूं तुम कुछ परेशान सी लग रही हो. यदि कोई ऐसी समस्या है जिस में मैं तुम्हारी मदद कर सकती हूं तो बताओ. अपने काम में सदैव परफैक्शन को इंपोर्टैंस देने वाली विनीता के काम में अब खामियां आ रही हैं इसीलिए मैं ने तुम्हें बुलाया.’’

‘‘नहीं मैम ऐसी कोई बात नहीं है बस कुछ दिनों से तबियत ठीक नहीं चल रही है. सौरी अब मैं आगे से ध्यान रखूंगी.’’ कह कर मैं मैडम के केबिन से बाहर आ गई. क्या कहूं मैडम से कि बेटियां कितनी भी पढ़ लिख लें, आत्मनिर्भर हो जाएं पर अपने मातापिता को अपने साथ रखने या उन की जिम्मेदारी उठाने के लिए पति का मुंह ही देखना पड़ता है.

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नए साल में और अधिक अच्छा काम करने की इच्छा रखती हूं – तृप्ति टोडरमल   

मराठी फिल्म और नाटक ‘सविता दामोदर परांजपे’ फिल्म से चर्चा में आने वाली निर्माता और मराठी अभिनेत्री तृप्ति टोडरमल मुंबई की है. उसके पिता मधुकर टोडरमल भी जाने – माने अभिनेता और लेखक थे. बचपन से ही तृप्ति को कला का माहौल मिला है और आज इस सफलता का श्रेय अपने माता-पिता को देती है, जिन्होंने हमेशा उसे हर काम में साथ देने के अलावा आज़ादी भी दी है. तृप्ति अपने इस कामयाब जिंदगी से बहुत खुश है और उन्होंने इसे शेयर किया है ख़ास गृहशोभिका के लिए, पेश है कुछ अंश.

सवाल-इस क्षेत्र में आने की प्रेरणा कैसे मिली?

मेरे पिता मराठी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े रहने की वजह से बचपन से ही मुझे ये माहौल मिला है. वे इस इंडस्ट्री के पायोनियर माने जाते थे, ऐसे में कुछ और सोचना संभव नहीं था. इसके अलावा जॉन अब्राहम मेरा अच्छा दोस्त है और उन्हें एक मराठी फिल्म बनानी थी,जिसमें उन्होंने मुझे ही प्रोड्यूस करने के साथ-साथ अभिनय करने को कहा और मैंने किया. ये फिल्म ‘सविता दामोदर परांजपे’ थी और यही से मेरी जर्नी शुरू हो गयी. इसके बाद मैंने कई फिल्में मराठी में की है.

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सवाल-क्या बचपन से कला का माहौल होने के बावजूद भी आपने किसी प्रकार का प्रशिक्षण अभिनय के लिए लिया?

अभिनय मेरे खून में है और मुझे इसका पैशन है, जो मुझे मेरे पिता से ही मिला है.मैंने किसी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं लिया. सविता की भूमिका को निभाने के लिए मैंने निर्देशक का सहारा लिया. असल में ये रीमा लागू की एक नाटक थी, जो मुझे बहुत पसंद थी. इसमें मेरी भूमिका स्प्लिट पर्सनालिटी की थी. ये एक सच्ची कहानी थी. इसे ही मैंने फिल्म बनाने की सोची. उसके लिए मैंने खुद बहुत ट्रेनिंग ली ,क्योंकि इसमें मुझे दो भूमिका निभानी थी. आवाज पर भी मुझे बहुत काम करना था. मैंने इसकी राईट ली थी. मेहनत बहुत थी, 6 महीने तक मैं बाहर नहीं निकली थी. ये एक थ्रिलर फिल्म थी. अलग वोकल पर बहुत काम किया. लेखक ने इसमें बहुत सहयोग दिया. सॉफ्ट वाला चरित्र आसान था और वह मैं हूं. उसके साथ मेरा लगाव बहुत हो गया था.

सवाल-इंटेंस चरित्र से निकलना कितना मुश्किल होता है?

बहुत मुश्किल होता है. भावनात्मक जुड़ाव बहुत अधिक हो जाता है. उससे निकलना पड़ता है और इसे मैंने अब सीख लिया है.

सवाल-आपकी जर्नी कैसी रही?

मैं अपने चरित्र को लेकर बहुत चूजी हूं,क्योंकि पहली फिल्म में मैंने मुख्य भूमिका निभाई और बहुत सारे अवार्ड मिले. दर्शकों ने इसे पसंद भी किया. इसके बाद मैंने बहुत सारी फिल्मों को मना भी किया. मुझे ऐतिहासिक चरित्र निभाना बहुत पसंद है. मेरी मराठी फिल्म ‘फत्ते शिकस्त’ में मैंने एक योद्धा की भूमिका निभाई है, जो मेरे लिए चुनौतीपूर्ण थी. उसके लिए मैंने घुड़सवारी और तलवार चलाना सीखा है. इससे मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला. इसके अलावा सोहैल खान के साथ एक वेब शो हिंदी में कर रही हूं. उसमें भी मेरी मुख्य भूमिका है. इसके अलावा ‘जंग जौहर’ में भी अभिनय करने वाली हूं.

सवाल-अभी आपकी संघर्ष क्या रहती है?

एक कलाकार हमेशा आगे अच्छा काम करने की इच्छा रखता है. किसी चरित्र को ना कहना हाँ कहने से आसान होता है. हाँ करने के बाद जर्नी उस फिल्म के साथ शुरू हो जाती है, ऐसे में आपको पिछले फिल्म से अच्छा करने की चुनौती रहती है. अवार्ड है तो आशाएं अधिक हो जाती है. ये प्रतियोगिता खुद से ही होता है. ये लगातार अंदर से चलता रहता है और यही सोच उसे आगे ले जाती है अगर किसी ने ये समझ लिया है कि वह परफेक्ट है तो उसकी ग्रोथ रुक जाती है. मैं बहुत मेहनती हूं. सोशल मीडिया पर मुझे कोई रूचि नहीं. पर्सनल लाइफ को शेयर करना पसंद नहीं. मैं एक प्राइवेट पर्सन हूं और अभिनय को जॉब समझती हूं.

सवाल-पिता की किस सीख को जीवन में उतरती है?

मेरे माता-पिता दोनों अब नहीं रहे. पहली फिल्म के रिलीज से पहले ही पिता की तबियत ख़राब हो गयी थी,लेकिन उन्होंने रिलीज से पहले उस फिल्म को देखा और मुझे आशीर्वाद दिया था, जिसका फल मुझे आज मिल रहा है. माँ ने मेरी जर्नी थोड़ी देखी है. एक साल बाद उनकी भी मृत्यु हो गयी. मैं उनके आदर्शों को हमेशा फोलो करती हूं.

सवाल-निर्माता और अभिनेत्री में किसे अधिक एन्जॉय करती है?

मुझे अभिनय करना पसंद है, क्योंकि उसमें अधिक सोचना नहीं पड़ता और रात को आप अच्छी नीद ले सकते है, जबकि निर्माता बनने पर आपको फिल्म की पूरी जिम्मेदारी लेनी पड़ती है और ये एक बच्चे को पालने के जैसा होता है.

सवाल-क्या कोई ड्रीम प्रोजेक्ट है?

मुझे संजय लीला भंसाली की फिल्म करने की इच्छा है. वे बहुत अच्छा काम करते है. भूमिका मैं मराठी ‘तारा रानी’ की करना चाहती हूं, जो एक योद्धा थी. इसके अलावा एक लिजेंड्री एक्ट्रेस की भूमिका करना चाहती हूं.

सवाल-कितनी फूडी है और फैशन कितना पसंद करती है?

मुझे हर तरह के व्यंजन पसंद है. सबकुछ खाती हूं, किसी प्रकार की डाइटिंग नहीं करती. मैं हर तरह की खाना बना लेती हूं. फैशन में मुझे ब्रांडेड और क्लासी कपड़े अधिक पसंद है. निवेदिता साबू और मनीष मल्होत्रा के कपड़े मैं अधिक पहनती हूं.

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सवाल-नए साल में क्या संकल्प है?

मुझे अच्छा काम करने की इच्छा है, ताकि मैं अपने पिता के नाम को आगे ले जा सकूँ.

सवाल-गृहशोभिका के जरिये क्या संदेश देना चाहती है?

नए साल में महिलाओं को सम्मान करना सीखे. उनका अपमान करना बंद करें.

हीरो से ज्यादा एक्टर बनने की जरुरत है – सनी सिंह

फिल्म ‘प्यार का पंचनामा 2’ से अभिनय कैरियर में चर्चित होने वाले सनी सिंह, एक्शन डायरेक्टर जय सिंह निज्जर के बेटे है. बचपन से ही उन्हें कला का माहौल मिला है इसलिए इससे परे उन्होंने कुछ नहीं सोचा. उन्हें कॉमेडी फिल्में बहुत पसंद है और कई ऐसी फिल्में कर चुके है. टीवी पर भी उन्होंने काम किया है. उनकी फिल्म ‘जय मम्मी जी’ में वे कार्तिक भाटिया की भूमिका निभा रहे है, शांत और खुश मिजाज़ सनी सिंह से हुई बातचीत के कुछ अंश इस प्रकार है.

सवाल-इस फिल्म का आकर्षण आपके लिए क्या थी?

इस फिल्म में मम्मी मेरे लिए ख़ास थी, क्योंकि कई कॉमेडी की फिल्में बनती है,पर ये फिल्म कई मम्मियों को केंद्र में रखकर बनायीं गयी पहली फिल्म है. शूट करते हुए और माँ को बताते हुए बहुत मज़ा आया. मैं माँ की डांट को हमेशा यहाँ पर मिस करता हूं. नहीं डांटे तो खाली-खाली लगता है. ये सब इस फिल्म में है और यही मुझे अच्छा लगा था.

सवाल-रियल लाइफ में आप मम्मास बॉय कितने है और कितनी डांट सुननी पड़ती है?

जब डांटती है तो हर कोई हिल जाता है, मेरी दो बहने बड़ी है. मैं सबसे छोटा हूं. इसलिए पैमपर्ड चाइल्ड हूं. परीक्षा में फेल होने पर भी अधिक नहीं डांटती थी, लेकिन कई बार कुछ गलत करने पर बहुत गुस्सा हो जाती थी, पर मैं मना तो लेता हूं. माँ से मैं हर बात शेयर करता हूं, कॉलेज में कई बार लड़कियों की चिट्ठियां आने पर मुझे डांटती थी पर अपनी सहेलियों को बताकर खुश होती थी. मुझे प्यार और शादी उस लड़की से करनी है जो अपने माता-पिता से प्यार करें और रूटेड हो.

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सवाल-आपके भविष्य में मां की भूमिका कितनी है? इस बारें में आपकी सोच क्या है?

उसे कह पाना मुश्किल है. उनसे ही मेरा संसार है, एक माँ बिना शर्तों के बच्चे से प्यार करती है. बचपन में मैं बहुत शरारती था. पहले कुछ कहने पर वे मना करती थी पर बाद में हां कर देती थी. मैं कितनी भी व्यस्त रहूं, माँ को समय हर दिन देता हूं. मैंने उनके लिए एक ट्रोफी बनाकर दी है, क्योंकि वह मेरी बेस्ट माँ है. वह घरेलू माँ है, इसलिए मैं कभी-कभी उन्हें कुछ अच्छी सरप्राइज गिफ्ट भी देता हूं. समय मिलने पर फिल्में देखने या घूमने भी साथ में जाता हूं.

सवाल-आप अपनी जर्नी को कैसे देखते है?

मुझे लगता है कि मैंने कई फिल्में की है और कर भी रहा हूं, इतना काम मेरे लिए काफी है और मैं संतुष्ट हूं. फिल्मों के हिट होने या फ्लॉप होने से मैं अधिक समबन्ध नहीं रखता.मैंने मेहनत की है और फिल्म सफल होनी चाहिए. हर सफल कलाकार फ्लॉप फिल्में देता है. वह किये बिना आप आगे नहीं बढ़ सकते, क्योंकि फैल्योर आपको जिंदगी के बारें में बताती है और उससे आप बहुत कुछ सीखते है. काम करना कभी बंद नहीं करना चाहिए, इससे उसका फल अवश्य मिलता है. काम के लिए अधिक सोचने की जरुरत होती है. काम के बाद का समय मेरे परिवार के लिए होता है.

सवाल-किसी फिल्म को चुनते समय किस बात का खास ध्यान रखते है?

मैं कभी भी अधिक नहीं सोचता.स्क्रिप्ट पढने के बाद अगर अच्छी लगती है तो मैं निर्देशक के बारें में भी नहीं सोचता. प्रोड्यूसर के बारें में अधिक सोचता हूं, क्योंकि वही फिल्म को अच्छी तरह से पर्दे पर लाने की कोशिश करता है. हीरो से अधिक एक्टर बनना अधिक जरुरी है. मैं अच्छा काम करने की इच्छा रखता हूं.

सवाल-फिल्मों के सफल होने की वजह क्या मानते है?

निर्देशक और कहानी ये दोनों चीजे सबसे पहले आती है, इसके बाद कलाकार की बारी आती है. मेरी पहली फिल्म में निर्देशक ने सभी नए कलाकारों को मौका दिया ये बड़ी बात थी, लेकिन फिल्म सफल रही और सभी अच्छा काम कर रहे है. मेरे पिता जय सिंह निज्जर एक एक्शन डायरेक्टर है. उनके साथ भी एक फिल्म मैंने की थी, जो नहीं चल पायी. उनके सेट पर मैं बहुत कम जाता था.

सवाल-क्या पिता की वजह से इंडस्ट्री में काम मिलना आसान हुआ?

मैं काफी लोगों को जानता था, क्योंकि पार्टी में लोग आते थे. बचपन में मैंने देखा है, पर मुझे एक्टिंग करना है, उसकी तैयारी मुझे करनी पड़ी. मैं असफलता को अधिक महत्व नहीं देता. एक फिल्म का मिलना ही मेरे लिए बड़ी बात है. मैं छोटी भूमिका भी अच्छी हो, तो करने के लिए मना नहीं करता. डिजिटल पर भी काम करने की इच्छा रखता हूं.

सवाल-क्या पिता से एक्शन की तकनीक सीखी है?

मैंने अधिक नहीं सीखा है, वे ज्योही कुछ सीखाने की कोशिश करते थे मैं कुछ बहाना बना देता था. वे अभी भी एक्टिव है और फिल्मों में एक्शन का काम कर रहे है. उन्होंने कामयाबी बहुत मुश्किल से पायी है, कई बार मैंने उन्हें चोट लगते हुए भी देखा है. वे स्टंट बहुत बहादुरी से करते थे.  आज चाहते है कि मैं भी सफलता प्राप्त करूँ. वे जो भी कहते है हम आँख मूदकर फोलो करते है.

सवाल-किसकी बायोपिक करना चाहते है?

अक्षय कुमार, अजय देवगन, भगत सिंह जैसे किसी की भी बायोपिक में काम करने की इच्छा रखता हूं.

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सवाल-माँ के हाथ का बनाया क्या खाना पसंद करते है?

गुड़ शक्कर और रोटी. पंजाब के गाँव में बनने वाली ये डिश मुझे बहुत पसंद है.

सवाल-यूथ को क्या सन्देश देना चाहते है?

आज के यूथ किसी भी चीज से बहुत अधिक प्रभावित हो जाते है, उनसे मेरा कहना है कि किसी भी नशे की लत में न पड़े. अपनी जर्नी पर ध्यान दे, दूसरे की दिशा में न चले. समय मिले तो परिवार के साथ बिताएं.

सर्दियों में फायदेमंद है ताजा मेथी का सेवन

सदियों में ताजा मेथी बाजार में आराम से मिलती है. मेथी की सुगंध और स्वाद भारतीय भोजन का विशेष अंग है. मेथी के पत्तों को कच्चा खाने की परंपरा नहीं है. आलू के साथ महीन महीन काट कर सूखी सब्ज़ी या मेथी के पराठे आम तौर पर हर घर में खाए जाते हैं. लेकिन गाढ़े सागों के मिश्रण में इसका प्रयोग लाजवाब सुगंध देता है, उदाहरण के लिए सरसों के साग, मक्का मलाई या पालक पनीर के पालक में.

हमारे व्यजनो का स्वाद बढ़ाने के साथ साथ ही यह हमारे सेहत के लिए फायदेमंद भी होता है. मेथी में लौह तत्व भरपूर होते हैं, इसलिये रक्त अभाव होने पर यह बहुत लाभकारी होती है. प्रति 100 ग्राम मेथी दाना में आर्द्रता – 13.70 ग्राम, प्रोटीन – 26.20 ग्राम ,वसा – 5.80 ग्राम ,मिनरल्स – 3.0 ग्राम ,फाइबर – 7.20 ग्राम ,कार्बोहाइड्रेट – 44.1 ग्राम ,एनर्जी – 333.0 किलो कैलरी ,कैल्शियम – 160.0 मिग्रा. फास्फोरस – 370.0 मिग्रा. ,आयरन –  6.50 मिग्रा. होता है. इसके बीजों में फॉस्फेट, लेसिथिन और न्यूक्लिओ-अलब्यूमिन होने से ये कॉड लिवर ऑयल जैसे पोषक और बल प्रदान करने वाले होते हैं. इसमें फोलिक एसिड, मैग्नीशियम, सोडियम,जिंक, कॉपर, नियासिन, थियामिन, कैरोटीन आदि पोषक तत्व पाए जाते हैं.

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इसके पत्तों को निचोड़कर रस निकालकर उसमें बराबर मात्रा में शहद मिलाकर सेवन करने से यकृत, पीलिया एवं पित्ताशय के रोगों में लाभ होता है. इसके रस में मधुमेह की प्रारंभिक अवस्था में ही रोग का नाश करने की क्षमता होती है.

– चोट लगने पर मेथी के पत्तों की पोटली बांधने या लेप लगाने से चोट की सूजन मिटती है.

– शरीर के जले हुए स्थान पर इसके पत्तों को पीसकर लगाने से जलन मिटती है तथा शरीर का दाह शांत होता है.

– घी के साथ मेथी के भूने हुए पत्ते खाने से अतिसार अर्थात् पतले दस्त दूर होते हैं.

– मेथी प्राकृतिक शैम्पू के रूप में भी बहुत गुणकारी है. स्ान से पहले मेथी की पत्तियों को पीसकर सिर के बालों में लगाते रहने से बालों की रूसी दूर होती है तथा बाल काले व मुलायम हो जाते हैं.

– मेथी की पिसी हुई पत्तियों का लेप लगाने से चेहरे के मुंहासे व कालापन तथा चेहरे की झाईयां दूर हो जाती है.

– नेत्र विकारों खासकर आंखों की जलन, प्रदाह तथा आंखों से अत्यधिक पानी आने पर मेथी की पत्तियों का रस आंखों में डालने से अत्यन्त लाभ होता है.

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दूसरों से ही क्यों उम्मीद रखें

हम सबमें परफेक्ट ब्यूटी की चाह इस कदर घर कर गई है कि इसने एक पागलपन का रूप ले लिया है.इसके कारण लोग जैसे दिखते हैं,उसे वे या तो बदसूरत समझ लेते हैं या उसमें बहुत सुधार करने की कोशिश करने लगते हैं.वास्तव में यह सोच   हमारे आत्मसम्मान को कम कर देती है. यदि यह भावना हद से ज्यादा बढ़ जाये तो किसी के भी दिल और दिमाग पर इसका बुरा असर दिखने लगता है.अब अगर आप 40 बरस की हो गयी हैं तो दुनिया की कोई ऐसी ताकत नहीं है जो आपको ऐसा बना दे कि आप 21 साल की दिखने लगें. लेकिन हम हैं कि मानते ही नहीं हैं.अपने चेहरे पर उम्र के साथ आने वाली झुर्रियों को कम करने के लिए हम बेतहाशा एंटीरिंकल क्रीमों का इस्तेमाल करने लगती हैं.लेकिन इस सबसे हमें कुछ ख़ास हासिल नहीं होता. क्योंकि उम्र के साथ बुढ़ापा बहुत स्वभाविक है.इसे न स्वीकार करके हम अपनी सेहत से ही खिलवाड़ करने लगते हैं.

हम ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि ब्यूटी प्रोडक्ट्स और क्रीम हमें सिर्फ इन उत्पादों की खूबियां बताते हैं.इनसे होने वाले बुरे असर को नहीं.वास्तव में  हमें अपने आपसे प्यार करना खुद ही सीखना होगा.खुद की तुलना खुद से करने के लिए निर्णय करने का अधिकार भी खुद को ही देना होगा.हम उन लोगों से ईर्ष्या करते हैं, जो मोटे दिखने के बावजूद खुश रहते हैं. हमें यह देखकर बड़ी हैरानी होती है कि एक मोटी लड़की आखिर ऐसा टॉप कैसे पहन सकती है जिसमें उसकी बड़ी टमी दिखायी देती है ?  यकीन मानिए यह वह लड़की है जो अपने आपको खुद की नजरों में बेहद ऊंचा समझती है.

वास्तव में हमारे भीतर की भावना ही हमें अपने आपके प्रति प्यार करना सिखाती है.यही हमें एक जीवन दृष्टि देती है.यदि हम अपने आपसे प्यार करना नहीं सीख पाते हैं तो हमारे भीतर का आत्मविश्वास चूर चूर हो जाता है. हिम्मत टूट जाती है.हम जीवन की चुनौतियों का सामना कर पाने में खुद को अक्षम पाते हैं.खुद को पसंद न कर पाने की यह भावना हमारे भीतर से ही आती है. धीरे धीरे यह हमारे व्यक्तित्व को छोटा साबित करती है.इस तरह धीरे धीरे हम खुद ही अपना विनाश करने लगते हैं.इसके विपरीत जब हम अपने आपसे प्यार करना सीख लेते हैं तो हम बेहद रचनात्मक और पॉजिटिव सोच रखने लगते हैं.सवाल है हम इस तरह के कंफर्ट जोन को आखिर कैसे हासिल करें?

खुद को स्वीकार करना सीखें

खुद से बार बार कहें मैं जैसी हूं.खुद को स्वीकार करती हूं. एक बार अगर आप इस बात को स्वीकार कर लेती हैं तो आपके भीतर एक नया आत्मविश्वास जागृत होता है जिससे आप एक नयी ताकत महसूस करती हैं.

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कोई दूसरा भला आपका आकलन क्यों करें?

दूसरों में भला ऐसी कौन सी योग्यता है कि वह आपका आकलन  करें ? आप उन्हें ऐसा करने की छूट ही क्यों देते हैं ? खुद का आकलन करने के लिए अपना पैमाना, खुद ही निर्धारित करें.कल्पना कीजिये कि आप किसी प्रतियोगिता में हिस्सा ले रही  हैं,जिसमें आपकी भूमिका निर्णायक की है. इस काल्पनिक प्रतियोगिता में अपना आकलन बिना किसी भेदभाव के करें. साथ ही अपने लिए इस तरह का पैमाना निर्धारित करें जिसमें आप सौ प्रतिशत खरे उतरें.

अपनी मंजिल खुद तय करें

अपने भीतर छिपी प्रतिभा, योग्यता, पैशन को पहचानें. इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपके इर्दगिर्द कितने नेगेटिव सोच के लोग हैं.आप अपना रास्ता खुद बनायें.खुद से प्यार करना जिंदगी का वह जज्बा है जिसके बिना आप ताउम्र खुद को  प्यार ही नहीं कर पाते.

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गुस्से को काबू में रखने की कला उर्फ़ द आर्ट ऑफ़ पेशेंस

कोई ‘सी’ हो या ‘ही’ अपने गुस्से को काबू में रखना सबको आना चाहिए.क्योंकि  जिस तरह अपवाद के लिए ही सही,दुनिया में अब तक एक भी ऐसा इंसान नहीं हुआ,जो कभी मरा न हो. ठीक उसी तरह से धरती में आज तक कोई एक भी महिला या पुरुष ऐसा नहीं हुआ,जिसे जीवन में कभी गुस्सा न आता हो.जी हां,दुर्गुण होते हुए भी गुस्से का यह गुण सबमें होता है.फिर भी मनोविदों से लेकर डॉक्टरों तक की राय यही है कि इससे हर हाल में बचना चाहिए क्योंकि –

-गुस्सा हमारी परफोर्मेंस को 70%तक घटा देता है.

-हार्वर्ड बिजनेस स्कूल के एक शोध अध्ययन के मुताबिक़ गुस्सैल स्वभाव के चलते प्रमोशन की  50% संभावनाएं कम हो जाती हैं.

-गुस्सा हमारी शब्दावली को बेहद जहरीली बना देता है.यह हमारी तमाम खूबियों और उपलब्धियों को बेमानी बना देता है.

-गुस्सा किसी अच्छेखासे समझदार शख्स की इमेज को भी मिनटों में ध्वस्त कर देता है.

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-कुछ देर भर के गुस्से से सालों पुराने मजबूत समझे जाने वाले संबंध भी टूट जाते हैं.

-ज़रा जरा सी बात पर गुस्सा आ जाना हमारी सबसे बड़ी कमज़ोरी होती है.क्योंकि इससे हम अपना प्रभावी व्यक्तित्व खो देते हैं.

-तमाम वार स्टडी बताती हैं कि गुस्सा हमारे मनोबल को ही नहीं निर्णय लेने की क्षमता को भी कम करता है.

-गुस्सा किसी की भी नजरों में हमारे सम्मान को कम कर देता है.

गुस्से को काबू में कैसे करें ?

जब लगे कि न चाहते हुए भी गुस्से के  चक्रव्यूह में फंसते जा रहे हैं तो खूब पानी पीएं.संभव हो तो एक लंबी वाक पर चले जाएं. अगर कर सकते हों तो कोई भी समय हो कसरत करना शुरू कर दें .बिना मन लगे भी सकारात्मक और क्रिएटिव काम करने लगें.कुछ देर तो बहुत बेचैनी होगी लेकिन फिर धीरे धीरे आप कूल डाउन होने लगते हैं. अगर आपको कोई म्यूजिकल इंस्ट्रुमेंट बजाना आता है तो बिना कुछ सोचे बजाने लगें,भले मन न लगे पर जल्द ही आपका गुस्सा कम होना शुरू हो जाएगा.छात्र हैं या अकेले रहते हैं तो अपना कमरा साफ करने लगें.दफ्तर में हों तो अपनी डेस्क साफ करने की कोशिश करें.पिक्चर देखने जाएं.किसी दोस्त को फोन घुमा दें.कोई पसंदीदा चैनल देखने लगें.मजाक और चुटकुले भी तनाव दूर करने के तरीके हैं.योगा,मेडिटेशन और कांगनेटिव तकनीक भी तनाव और गुस्से को दूर करने में कारगर होती हैं,इन्हें भी आजमाएं.

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– अमेरिकन फिजियोलॉजिकल एसोसिएशसन के मुताबिक़ ‘गुस्सा विपरीत परिस्थितियों की अभिव्यक्ति है.

– हारवर्ड में मनोविज्ञान के एक प्रोफेसर जेरोम कगान के मुताबिक़ हर व्यक्ति में अपना पैदायशी स्वभाव होता है.

– गुस्सा कई किस्म की मेडिकल समस्या का नाम है मसलन-सोशल एनग्जाइटी, फोबिया, ऑब्सेसिव-कम्पलसिव, पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस और सबसे ऊपर एनग्जाइटी डिसॉर्डर .

पशुओं के प्रति क्रूरता और मानव स्वभाव

अब अदालतों को भी सम झ आ रहा है कि पशुओं पर क्रूरता से राष्ट्र का क्या अहित होता है और उसी के अनुसार निर्णय देने शुरू किए हैं. पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश राजीव शर्मा ने पशु क्रूरता पर सब से उत्तम निर्णय दिए हैं. प्रकृति और पर्यावरण पर तुरंत और प्र्रभावशाली निर्णय देने में वे सदैव अग्रणी रहे हैं. उन्होंने ही गंगा जैसी नदियों और पशुजगत को न्यायायिक व्यक्ति मानने के महत्त्वपूर्ण निर्णय दिए है.

यही नहीं उन्होंने पुलिस प्र्राथमिकियों से जाति के नाम निकालने, किसानों की आत्महत्याओं, मृत्युदंड प्राप्त कैदियों को सौलिटैरी कौन्फाइंमैंट में रखने की कुप्रथा पर निर्णय दिए हैं.

अभी हाल ही में न्यायाधीश संजय करोल और अरिंदम लोध ने त्रिपुरा में मंदिरों में पशुबलि पर निर्णय दिए हैं. इन्होंने पुजारियों के लालच और मुफ्त के खाने और दान की ललक को सम झते हुए इस बीभत्स, अमानवीय बलि को संस्कृति के नाम पर स्वीकार करवाने की जिद को असंवैधानिक करार दिया है और तब जा कर 525 वर्ष बाद अगरतला के दुर्गाबाड़ी मंदिर में बलि प्रथा समाप्त हुई है.

घरेलू हिंसा के लिए भी जिम्मेदार

दुनियाभर में, जहां भी सरकारें निकम्मी या आलसी हैं, अदालतें ही पशुओं को अनावश्यक क्रूरता से बचा रही हैं. 19 अगस्त, 2019 को राष्ट्रीय बाल व पारिवारिक अदालत परिषद ने एक प्रस्ताव पारित किया कि पशु क्रूरता का सीधा संबंध मनुष्यों में आपसी पारिवारिक हिंसा से जुड़ा है.

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जिन घरों में पशुओं के साथ क्रूरता भरा व्यवहार होता है, वहां घरेलू हिंसा भी ज्यादा होती है. एक शोध के अनुसार 43% वे अमेरिकी जिन्होंने 1988 से 2012 में स्कूलों में निर्दोष बच्चों को गोलियों का शिकार बनाया पशुओं के प्रति क्रूरता के मामलों में भी अभियुक्त रहे हैं.

1 जनवरी, 2019 से अमेरिका की गुप्तचर एजेंसी एफबीआई (फैडरल ब्यूरो औफ इनवैस्टिगेशन) ने अपराधियों के चोरी, मारपीट के मामलों के साथ पशु क्रूरता के मामलों को भी अपने डेटा बेस में रखना शुरू कर दिया है.

स्वभाव में ही क्रूरता

अमेरिका में शैरिफों की संस्था ने भी यह चेतावनी दी है कि पशुओं के प्रति जो लोग कू्रर होते हैं उन के बाद में गंभीर अपराध करने के चांस बढ़ जाते हैं. अत: पशुओं के प्रति कू्रर लोगों पर नजर रखना जरूरी है.

पशुओं के प्रति क्रूर लोग अपने ही बच्चों, पत्नी व मातापिता तक के प्रति कू्रर भावना रखते हैं. लोगों को यह भ्रम छोड़ना होगा कि पशुओं के प्रति क्रूरता केवल पशुओं के लिए हानिकारक है. अपने बैल के नाजुक अंगों में डंडा मारने वाला गाड़ीवान या भैंस को पीट कर दूध निकालने वाला दूधिया अपने घर में भी क्रूर हो तो कोई बड़ी बात नहीं है.

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अदालतों को इस विषय को और गंभीरता

से लेना चाहिए, क्योंकि अधिकतर देशों का कानून अदालतों को इस तरह के अधिकार देता है कि वे उन क्षेत्रों में कानून बना दें जहां सरकार ने कोई कानून न बनाया हो.

शुभारंभ: राजा-राजी की शादी में आएगा धमाकेदार ट्विस्ट, क्या कीर्तिदा को रोक पाएगी आशा?

कलर्स के शो शुभारंभ में राजा और रानी की शादी का दिन आखिरकार आ गया है. वहीं राजा की माँ, आशा ने भी कीर्तिदा की योजना पर पानी फेरने की पूरी तैयारी कर ली है, लेकिन कीर्तिदा भी हार मानने वाली नहीं है. आइए आपको बताते हैं कीर्तिदा को रोकने के लिए क्या करने वाली है आशा… 

शादी रोकने की योजना बनाने में व्यस्त है कीर्तिदा

पिछले एपिसोड में आपने देखा कि राजा-रानी जहाँ अपनी शादी से पहले के खुशियों के पलों में खुश होते हैं तो वहीं कीर्तिदा शादी रोकने के लिए चाल चलने की योजना बनाने में व्यस्त होती है. 

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आशा ने किया कीर्तिदा को शादी से दूर

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कीर्तिदा के शादी को रोकने की योजना को नाकाम करने के लिए आशा एक कदम उठाती है और वह कीर्तिदा को स्टोर रूम में बंद कर देती है, लेकिन राजा कीर्तिदा के बिना शादी की रस्मों को निभाने से मना कर देता है. वहीं आशा पूरे परिवार को ये यकीन दिलाती है कि राजा-रानी की शादी बिना रूकावट के हो जाए, इसलिए कीर्तिदा ने शादी से दूर रहने का खुद ही प्रण लिया है.

शादी की रस्में निभाएंगे राजा-रानी

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आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि राजा अपनी माँ की बात मानकर शादी की रस्में निभाने के लिए मान जाएगा, जिसके बाद राजा और रानी शादी की रस्मों को निभाते हुए नजर आएंगे. वहीं आशा इस बात से परेशान रहेगी कि कीर्तिदा कहीं कमरे से बाहर न निकल जाए. 

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अब देखना ये है कि क्या कीर्तिदा स्टोर रूम से निकलकर राजा और रानी की शादी रोकने में कामयाब हो पाएगी? जानने के लिए देखते रहिए शुभारंभ, सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे, सिर्फ कलर्स पर. 

अजय देवगन ने बताया सफल शादी का राज, 20 साल से फौलो कर रहे हैं ये Rule

फिल्म ‘फूल और कांटे’ से अपने अभिनय कैरियर की शुरुआत करने वाले अजय देवगन निर्माता, निर्देशक भी है. उन्होंने एक्शन फिल्मों के अलावा हर तरीके की फिल्मों में नाम कमाया. बहुत शांत और कम बोलने वाले अजय देवगन हर फिल्म को चुनौती समझते है और दिन रात मेहनत करते है. उन्हें हर नया विषय आकर्षित करता है, यही वजह है कि उन्होंने फिल्म ‘तानाजी- द अनसंग हीरो’ में तानाजी की भूमिका निभाई और वे इसके निर्माता भी है. ये पहली ऐतिहासिक एक्शन फिल्म है, जिसे थ्री डी में फिल्माया गया है. उन्होंने इस फिल्म की थ्री डी को फिल्माने में भारतीय एक्सपर्ट को लिया है,जिससे उन्हें इस फिल्म को करने में समय लगा. ये फिल्म हिंदी और मराठी में रिलीज होने वाली है. वे अपनी फिल्म को लेकर बहुत खुश है पेश है कुछ अंश.

सवाल-साल 2020 की ये एक बड़ी फिल्म आप लोगों तक थ्री डी में पहुंचा रहे है, इसका ख्याल कैसे आया?

इसे थ्री डी में करना जरुरी था, क्योंकि आपने ऐसी फिल्म देखी नहीं है. जो तकनीक मैंने इसमें प्रयोग की है, वह आज तक हमारे देश में देखी नहीं गयी है. ये सारे कमाल हमारे देश के लोगों ने किया है. मैं हमेशा ऐसी कोशिश करता हूं कि मैं कुछ नयी चीजों की शुरुआत फिल्मों में करूँ और मैंने पहले किया भी है. इस फिल्म को करने में 4 साल का समय लगा.

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सवाल- तानाजी के लिए कितनी रिसर्च करनी पड़ी? ऐसी फिल्में बनाना कितना मुश्किल होता है?

ये सोलहवीं सदी की इतिहास है और उनके बारें में अधिक कुछ लिखा हुआ नहीं है, ऐसे रिसर्च के बाद एक कहानी बनानी पड़ी, जो दर्शकों को अच्छा लगे. इसके अलावा लेखक ने कई इतिहासकारों और परिवार वालों से मिले और जानकारी हासिल की.

ऐसी फिल्में बनाना बहुत मुश्किल होता है हर चीज क्रिएट करनी पड़ती है. कहानी को ठीक करना पड़ता है. इसके बावजूद भी देश इतना बंटा हुआ है कि कंट्रोवर्सी आ ही जाती है. इस फिल्म को बनाने का उद्देश्य यह भी है कि हमें आज़ादी मुश्किल से मिली है. इसलिए उसका ख्याल आज के यूथ को रखने की जरुरत है. इसके अलावा एक्शन सीन्स, तकनीक आदि कठिन थे.

सवाल- तकनीक का ज्ञान आपमें सालों से है, इसकी जानकारी आपने कैसे प्राप्त की?

मैंने अपने पिता से काफी जानकारी हासिल की है. 10 साल की उम्र से मैंने इसमें कदम रखा था और उनके साथ उस समय फिल्मों के बनने की पूरी प्रोसेस को मैं देखता और करता भी था. इसी से मेरी रूचि इसमें सालों से है. तब काम करना बहुत मुश्किल था अब तो बटन दबाते ही सब काम हो जाता है. तकनीक की वजह से आज काम करना आसान हो गया है.

सवाल- काजोल के साथ सालों बाद फिर से काम करने का अनुभव कैसा रहा?

पहले जैसा ही था. मैंने ही उसे इस फिल्म को करने के लिए कहा था, क्योंकि तानाजी ने जीवन में बहुत त्याग किये है, लेकिन उनके परिवार का त्याग सबसे अधिक रहा , क्योंकि किसी भी मुश्किल घडी में पत्नी चेहरे पर मुस्कान लिए पति को टिका लगाकर विदा करती थी, जबकि वह जानती थी कि इसके बाद वे युद्ध से लौटकर आ सकते है या नहीं भी, पर इसका शिकन वे अपने पति को ज़ाहिर नहीं करती थी और ऐसी भूमिका काजोल के अलावा कोई नहीं कर सकता था, क्योंकि इसमें पत्नी के भाव को दिखाना कठिन था. कहानी सुनने के बाद उसने भी हां कर दी.

सवाल- क्या आप मानते है कि महिलाओं का त्याग आज भी कायम है?

ये मैं मानता हूं कि महिलाओं ने हमेशा से त्याग हर जगह हर देश में किया है. कोई भी इंसान महिला के सहयोग के बिना आगे नहीं बढ़ सकता, फिर चाहे वह माँ, पत्नी, बहन या बेटी क्यों न हो. सबसे पहले वह एक महिला के बिना तो पैदा ही नहीं हो सकता, न पल सकता है और न  बड़ा हो सकता है.

सवाल- आप दोनों की 20 साल की शादीशुदा जिंदगी का राज क्या है?

हम दोनों ने कभी एक दूसरे की जिंदगी में दखल नहीं दिया. स्पेस दिया, दोनों को अपने काम करने की आजादी मिली. इससे आप जो करना चाहे कर पाते है और एक दूसरे को रेस्पेक्ट भी मिलता है. वह एक पत्नी और कलाकार के रूप में भी परफेक्ट है.

सवाल-आप अभिनेता, निर्माता, निर्देशक सब कुछ किया है, मुश्किल किसमें होती है? आपको दर्शकों का प्यार खूब मिलता है, इसकी वजह क्या मानते है?

मैं जो भी काम करता हूं उसी में मुश्किल अनुभव करता हूं.  हर काम की अपनी समस्याएं है. मुझे दर्शकों का प्यार हमेशा मिला है, इसकी वजह है सही फिल्म का करना, जिसकी कोशिश मैं लगातार करता हूं. अगर आप कुछ गलत काम न करे, तो दर्शक हमेशा आपको देखना पसंद करते है.

सवाल- छात्र जीवन में  आपको किस विषय से प्यार था?

मुझे इतिहास हमेशा से पसंदीदा विषय रहा है, अंकगणित मुझे समझ में कम आती थी. इतिहास आज भी मुझे पसंद है.

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सवाल- क्या इस तरह की कई और फिल्में बनाने की इच्छा है?

अभी हम आगे किसी और योद्धा को लेने की कोशिश करेंगे, क्योंकि इसमें केवल इतिहास से ही नहीं, आज भी कई ऐसे पुरुष और महिलाएं है, जो काम कर रहे है, पर उन्हें कोई जानता नहीं है. मैं ऐसे सभी पर फिल्म बनाने की इच्छा रखता हूं, ताकि पूरी दुनिया और देश उनके बारें में जान सकें.

सवाल-समय के साथ इंडस्ट्री कितनी बदली है? फिटनेस के लिए क्या करते है?

आज इंडस्ट्री प्रोफेशनल तरीके से काम करती है, दोस्ती यारी अब कम हो चुकी है, सभी काम में लगे है. ये स्ट्रेसफुल है. काम के लिए अच्छा है, पर हेल्थ के लिए ठीक नहीं, पर मेरी कोशिश रहती है कि 9 टू 6 काम करूँ. मैं हमेशा से ही अनुशाषित जीवन बिताना पसंद करता हूं. फिटनेस के लिए व्यायाम और डाइट करता हूं.

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