अब सख्ती से पेश आने की जरूरत

राहुल गांधी का रेप इन इंडिया रिमार्क भारतीय जनता पार्टी को ज्यादा ही खला. गनीमत है कि उस के मंत्रियों, संतरियों ने चौकीदार चोर है के कटाक्ष के दौरान किए मैं हूं चौकीदार की तर्ज पर मैं हूं रेपिस्ट लिखना शुरू नहीं किया जबकि इस पर सोचा जरूर गया होगा. जिस तरह देश में रेप की खबरें फैली हुई हैं उस से लगता तो यही है कि अचानक यह नई महामारी डेंगू या एड्स की तरह की है जो हाल ही में  पनपी है.

सच तो यह है कि बलात्कार हमेशा ही हमारे देश में औरतों पर अत्याचार का जरीया रहा है. यह उन्हें गुलाम बनाए रखने की साजिश है ताकि पुरुषों को हर समय सेवा करने वाली हाड़मांस की मशीनें मिलती रहें. बलात्कार की शिकार को समाज ने बलात्कार करने वालों से ज्यादा गुनहगार माना और ये शिकार हमेशा के लिए समाज में मुंह छिपाने वाली हैसीयत बन कर अपने पापों का बो झ जीवनभर ढोतीं और इन पर वही बलशाली पुरुष राज करते, जिन्होंने असल मर्यादा को नष्ट करा.

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हमारे यहां कानूनों को सख्त करने की बात चल रही है, जल्दी फैसला करने की मांग उठ रही है, बिना सुबूतों के किसी को भी बलात्कारी मान कर गोलियों से

उड़ा देने पर तालियां पिट रही हैं. ये सब ठीक है पर कोई यह नहीं कह रहा कि बलात्कारी के घर का हुक्कापानी बंद कर दिया जाए. बलात्कार की चेष्टा करने वाले पुरुष मर्द कहलाए जाते हैं. पत्नियां उन पुरुषों को छोड़ कर नहीं जातीं जिन पर बलात्कार का शक हो. बलात्कारी गैंग की तरह काम करते हैं यानी उन के दोस्तों और उन की सामाजिक स्थिति में कोई फर्क नहीं पड़ रहा.

चोर की इन से बुरी हालत होती है. चोर का पता चलने पर घर वाले शरण नहीं देते. कहीं नौकरी नहीं मिलती. उसे समाज के सब से गंदे इलाके में फेंक दिया जाता है जबकि बलात्कारी ठाट से सांसद, विधायक, अफसर बना घूमता रहता है. कहीं से यह आवाज तक नहीं उठ रही कि बलात्कारी की सामाजिक सजा पूरे परिवार को दी जाए, पूरी रिश्तेदारी उस से कट जाए. महल्ला उसे निकाल दे, वह गांव में न रह पाए.

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यह इसलिए होता है कि बलात्कार को सामाजिक मान्यता मिली हुई है. औरतों में इतनी हिम्मत नहीं कि अपने बेटे, भाई, पति, पिता को बलात्कार के अपराध में अपने से अलग कर दें. सड़कों पर जुलूस निकालना ठीक है पर इस से ज्यादा जरूरी है अपनी मानसिकता को बदलना. बलात्कार कहीं भी किसी भी सूरत में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए पर न धर्म, न सामाजिक नियम, न इतिहास, न कानून औरतों को यह बल देते कि वे बलात्कारी पुरुषों को भारी कीमत देने को मजबूर कर दें. उलटे बलात्कारी पुरुष को तो हार पहनाए जाते हैं. विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के मामले में यही हुआ हैझ्र न जब एक सांसद उस से मिलने जेल पहुंचे और फिर अपने चरणकमलों से संसद में नैतिकता का पाठ पढ़ाने लगे.

शुभारंभ: हो गई अड़चनों से भरी राजा-रानी की शादी, कैसा होगा इनके जीवन का नया शुभारंभ?

कलर्स के शो, ‘शुभारंभ’ में कीर्तिदा की अनेक चालों के बीच आखिरकार राजा और रानी शादी के बंधन में बंध गए हैं. जहाँ एक तरफ राजा की माँ, आशा, कीर्तिदा को हराकर खुश है तो वहीं दूसरी तरफ कीर्तिदा का गुस्सा राजा और रानी की शादी होने से सातवे आसमान पर पहुंच गया है. आइए आपको बताते हैं अब आगे क्या मोड़ लेगी शादी के बाद राजा और रानी की ये नई जिंदगी…

रानी का हुआ गृहप्रवेश

अब तक आपने देखा कि राजा और रानी का गृह प्रवेश होता है, जहाँ कीर्तिदा जानबूझ कर रानी के चेहरे पर सिंदूर डाल देती है, वहीं राजा पूरी बात को संभालते हुए रानी का चेहरा साफ करने में मदद करता है.

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घर की चाबी आई रानी के हाथ

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शादी में आए हुए मेहमानों में आई हुई घर की बड़ी, फुई का फैसला गुणवंत और कीर्तिदा को भी मानना पड़ रहा है. इसी बात का फायदा उठाते हुए, गृह प्रवेश के बाद आशा, फुई को कहती है कि घर की चाबियाँ रानी को दे देनी चाहिए. ये सुनकर गुणवंत चौंक जाता है. फुई घरवालों को बुलाकर कीर्तिदा को कहती है कि घर की चाबियाँ रानी को दे दे. वहीं आशा गुस्से और जलन से भरी हुई  कीर्तिदा को चेतावनी देती है कि वह इसी तरह उससे दुकान और व्यवसाय सबकुछ वापस ले लेगी.

रानी करेगी एक गलती

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आज के एपिसोड में रानी और झरना शादी के बाद की रस्मों को निभाते हुए दिखेंगे, लेकिन इसी बीच रानी से हो जाएगी एक गलती. रानी की इस गलती को बुआ एक बहुत बड़े अपशगुन का नाम देंगी. क्या रानी पर आई इस नयी मुसीबत को राजा दूर कर पाएगा?

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कैसी होगी शादी के बाद राजा-रानी की जिंदगी की ये नई शुरूआत? जानने के लिए देखते रहिए शुभारंभ, सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

इंटीरियर का हैल्थ कनैक्शन

दफ्तर की दिनभर की थकावट के बाद हर कोई घर लौट कर राहत की सांस लेना चाहता है. मगर मल्टीनैशनल कंपनी में काम करने वाली स्मिता जब अपने घर लौटती है तो बिखरा घर, अव्यस्थित फर्नीचर, कम रोशनी और दीवारों पर पुते गहरे रंग उसे अवसाद में खींच ले जाते हैं. कुछ ऐसा ही मोहिता के साथ होता है जब उस की नजरें अपने बैडरूम की दीवार से सटे भारीभरकम फर्नीचर पर पड़ती हैं.

स्मिता और मोहिता की तरह कई महिलाएं हैं, जिन्हें अपने घर पर सुकून न मिलने पर वे शारीरिक और मानसिक तौर पर अस्वस्थ हो जाती हैं. न्यूरो विशेषज्ञों की मानें तो घर की संरचना और सजावट का मनुष्य की शारीरिक और मानसिक सेहत पर गहरा असर पड़ता है. यदि घर का इंटीरियर सही न हो तो तनाव, बेचैनी और अवसाद की स्थिति बनी रहती है.

1. हर रंग की है अलग परिभाषा

इस कड़ी में दीवारों पर किए गए रंग बड़ी भूमिका निभाते हैं. आर्किटैक्ट नीता सिन्हा इस बाबत कहती हैं, ‘‘जिस तरह मनुष्य का चेहरा उस के व्यक्तित्व की पहचान होता है उसी तरह घर की दीवारों पर किया गया रंग घर की खूबसूरती की पहली झलक होता है.’’

रंगों की अपनी एक अलग खूबी होती है. वे व्यक्ति के मन के भावों को प्रतिबिंबित करते हैं. इस में अपनी सहमति जताते हुए इंटीरियर डिजाइनर नताशा कहती हैं, ‘‘रंगों का प्रतिबिंब व्यक्ति को तनावमुक्त भी कर सकता है और अवसाद भी दे सकता है. इसलिए इन का चुनाव सावधानी से होना चाहिए.’’

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कौन सा रंग किस भाव को परिभाषित करता है, यह बताते हुए नताशा कहती हैं, ‘‘गहरे रंग जैसे लाल, नीला, गहरा, हरा गरमाहट महसूस कराते हैं. मगर सेहत के लिहाज से किसी खास कमरे जैसे बैडरूम में इन का चुनाव ठीक नहीं होता.’’

एक अध्ययन के मुताबिक लाल रंग जहां ब्लड प्रैशर और हार्टबीट बढ़ा देता है, वहीं गहरा हरा रंग तनाव बढ़ाता है. गहरा पीला रंग भी व्यक्ति को चिड़चिड़ा बनाता है. यह रंग बच्चों को भी मानसिक तनाव देता है, उन्हें चिड़चिड़ा बना देता है.

मगर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि लोग इन रंगों का भी शौक से चुनाव करते हैं. हर व्यक्ति की पसंदनापसंद अलग होती है. इसलिए जरूरत है कि रंगों के बीच सही तालमेल बैठाया जाए. गहरे रंगों के साथ हलके रंगों को क्लब कर के एक अच्छी थीम भी तैयार की जा सकती है. ट्रैंड के मुताबिक आजकल काला, मैरून और गहरा भूरा रंग चलन में है. इन के साथ गोल्डन और सिल्वर का कौंबिनेशन भी बहुत ही रौयल लुक देता है.

2. लाइट की सही सैटिंग भी जरूरी

रंगों के साथ इंटीरियर का दूसरा प्रमुख हिस्सा होती है रोशनी, जिस में अकसर महिलाएं कंजूसी दिखाती हैं. खासतौर पर होम मिनिस्टर कही जाने वाली गृहिणियां घर पर बिजली का इस्तेमाल करने में इतनी कंजूसी करती हैं कि जैसे सारी सेविंग्स बिजली का बिल कम कर ही की जा सकती है.

नीता सिन्हा कहती हैं, ‘‘अब ऐसे अपार्टमैंट्स बनाना बड़ा मुश्किल है, जिन में बड़े रोशनदान और खुली बालकनियां हों, क्योंकि लोग ज्यादा हैं और रहने की जगह कम. ऐसे में घर पर प्राकृतिक रोशनी की कमी होती है, इसलिए पर्याप्त इलैक्ट्रिक लाइट्स का होना आवश्यक है. खासतौर पर लिविंगरूम और रसोई में लाइट्स की सही व्यवस्था होनी बेहद जरूरी है, क्योंकि ये वे स्थान होते हैं जहां गृहिणी और परिवार के अन्य सदस्यों का सब से अधिक समय बीतता है.’’

लाइट इंटीरियर को उभारने का काम करती है और मूड को रिफ्रैश करती है. मगर एलईडी लाइट बचत के लिहाज से आजकल काफी प्रचलित है. लोगों को यह समझाना बहुत मुश्किल है कि एलईडी लाइट की कम रोशनी इंटीरियर और सेहत के लिहाज से सही नहीं है.

मगर घर में अधिक इलैक्ट्रिक लाइट भी नुकसानदायक हो सकती है. स्किन विशेषज्ञों का मानना है कि घर में इस्तेमाल किए जाने वाले बल्ब और ट्यूब लाइट्स से भी यूवी किरणें निकलती हैं, जिन से त्वचा संबंधी रोग होने का खतरा रहता है.

इस बाबत नताशा कहती हैं, ‘‘हम जिस स्थान पर खड़े हों वहां से आसपास की सभी वस्तुएं हमें आसानी से दिखनी चाहिए. फिर चाहे किसी भी तरह की लाइट का इस्तेमाल किया जा रहा हो. बात यदि एलईडी लाइट्स की है, तो इन की सैटिंग्स पर ध्यान देने की जरूरत होती है. इस से इंटीरियर और सेहत दोनों से जुड़ी समस्याओं का हल किया जा सकता है.

‘‘नए ट्रैंड के मुताबिक आजकल ओवर हैड लाइट्स, फ्लोर लैंप्स और सैडो लाइटिंग्स का काफी क्रेज है और इन सभी में एलईडी लाइट्स का ही प्रयोग होता है. इस तरह की लाइट्स जगह विशेष पर फोकस करती हैं और पर्याप्त प्रकाश की जरूरत को भी पूरी करती हैं. जहां एक तरफ इन से इंटीरियर को एक नया स्वरूप दिया जा सकता है, वहीं दूसरी तरफ लाइट्स की सही सैटिंग्स आंखों को भी प्रभावित नहीं करती है.’’

3. फर्नीचर का सही चुनाव और प्रबंधन

सेहत पर अच्छा और बुरा प्रभाव घर में मौजूद फर्नीचर से पड़ता है. खूबसूरत फर्नीचर की मौजूदगी घर के इंटीरियर पर भी असर डालती है. फर्नीचर इंटीरियर को खूबसूरत भी बनाता है और उसे व्यवस्थित रखने में भी मददगार होता है. मगर जब इसे सही स्थान पर नहीं  रखा जाता है तो इस का सेहत पर असर भी पड़ता है. उदाहरण के तौर पर यदि बिस्तर के सिरहाने की तरफ वाली दीवार पर भारीभरकम वुडनवर्क है तो सिर में हमेशा भारीपन बना रहेगा. इसलिए सिरहाने की तरफ वाली दीवार को हमेशा खाली रखना चाहिए.

बैडरूम में भारी वुडनवर्क भी नहीं होना चाहिए, मगर स्टोरेज की सही व्यवस्था जरूर होनी चाहिए. पूरी दीवार को वुडन स्टोरेज में ढकना पुराना फैशन हो चुका है. अब ट्रैंड में ऐसा फर्नीचर है जिस में स्टोरेज की भरपूर जगह होती है.

यदि घर छोटा है तो फर्नीचर के चुनाव पर और अधिक ध्यान देना जरूरी है, क्योंकि छोटे घरों में अधिक फर्नीचर चलनेफिरने में परेशानी बन जाता है. जरूरी नहीं कि बैडरूम में ड्रैसिंग टेबल ही हो. एक डिजाइनर सिंगल मिरर से भी जरूरत पूरी हो सकती है और यह ज्यादा रोचक भी लगता है. इसी तरह यह भी जरूरी नहीं कि लिविंगरूम में सोफा सैट ही रखा जाए. थ्री सीटर सोफे के साथ 2 हाई बैक चेयर्स भी सिटिंग अरेंजमैंट के लिए काफी होती है.

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महिलाओं के लिहाज से देखा जाए तो उन्हें घर में चल कर बहुत सारे काम करने पड़ते हैं और सेहत के लिए चलना अच्छा भी होता है, इसलिए घर में फर्नीचर की भीड़ करने से अच्छा है कि जरूरत भर का और स्टाइलिश फर्नीचर ही लिया जाए.

इस तरह घर की सजावट पर थोड़ा ध्यान दिया जाए तो घर आने पर दिन भर की थकावट से राहत मिलती है.

साल 2019 में रहा बौलीवुड के इन फैशन ट्रैड्स का जलवा

साल 2019 खत्म होने वाला है. सालभर कई चीजें बदली और नए ट्रेंड्स ने जगह ली है. वहीं स्टाइल स्टेटमेंट की बात की जाए तो बौलीवुड किसी से पीछे नही है. बौलीवुड एक्ट्रेसेस का वेडिंग से लेकर एयरपोर्ट फैशन हर कोई ट्राय करना चाहता है. 2019 में बौलीवुड में काफी नए ट्रेंड्स आए हैं. आज हम 2019 के कुछ ऐसे ही ट्रेंड्स की बात करेंगे, जिसे जानकर आप भी अपनाना चाहेंगे.

1. नियौन का रहा जलवा

 

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इस साल की शुरुआत से बौलीवुड के फैशन पर अल्ट्रा ब्राइट कलर्स हावी रहे. कान्स के रेड कार्पेट पर दीपिका पादुकोण की नियोन ड्रेस के जलवे ने सभी को हैरान कर दिया था. नियौन शेड्स रियलिटी में एक बोल्ड फैशन औप्शन हैं, खासकर जब ड्रेसेस के रूप में सर से पांव तक पहना जाए है.

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2. सिक्विन साड़ी रहा बेस्ट औप्शन

पुराने ट्रेंड्स के वापस लौटने की बात करें तो सिक्विन साड़ी एक परफेक्ट औप्शन रहा है. सिक्विन साड़ियों में बौलीवुड हसीनाओं ने फेस्टिवल्स और वेडिंग्स में काफी धूम मचाया था. सिक्विन साड़ी शाइनी होने से ये आपके लुक को हौट दिखाने में मदद करती है.

3. रफ्फल लुक भी रहा पौपुलर

 

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रफ्फल लुक की बात करें तो साल 2019 में साड़ी से लेकर ड्रेसेस तक रफ्फल लुक काफी पौपुलर रहा है. शिल्पा शेट्टी से दीपिका तक इस फैशन को ट्राय करते हुए नजर आईं.

4. पैंट सूट का रहा ट्रेंड

इस साल, बौलीवुड ने साबित कर दिया कि पावर ड्रेसिंग को केवल वर्कवियर तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए. बौलीवुड हसीनाओं ने औफिस लुक के लिए पैट सूट के फैशन को लाकर वर्किंग वूमन्स के लिए एक फैशन ट्रैंड सेट किया है. सोनम से लेकर दीपिका तक इस सूट फैशन को ट्राय करने से पीछे नही रहीं.

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5. स्लीव्स स्टेटमेंट रहा पौपुलर

पुराने जमाने में चलने वाला पफी शोल्डर लुक इस साल काफी पौपुलर रहा. बौलीवुड हसीनाएं पफी शोल्डर ड्रेसेस और टौप के साथ जलवे बिखेरती नजर आईं, जिसे फैशन ट्रैंड्स 2019 में जगह मिली.

6. प्रिंटेड फैशन का रहा जलवा

प्रिंटेड फैशन ट्रेंडी के साथ-साथ साल 2019 में काफी पौपुलर रहा. इसे हर किसी ने ट्राय किया. चाहे इंडियन हो या वेस्टर्न हर लुक के लिए प्रिंटेड फैशन काफी पौपुलर रहा है.

शिक्षा पर सरकारी विद्वेष

पढ़ाई चाहे आईआईटी में हो, आईआईएम में, किसी कालेज में या जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में, सस्ती ही होनी चाहिए. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कट्टरपंथियों के प्रवेश को रोकने में असफल रहने पर केंद्र सकरार अब उस की फीस बढ़ा कर वहां से गरीब होनहार छात्रों को निकालना चाह रही है ताकि वहां केवल अमीर घरों के, जो आमतौर पर धर्मभीरु ही होते हैं, बचें और पुरातनपंथी गुणगान गाना शुरू कर दें.

शिक्षा का व्यापारीकरण कर के देशभर में धर्म को स्कूलों में पिछले दरवाजे से पहले ही दाखिला दिया जा चुका है. जातीय व्यवस्था, ऊंचनीच, धार्मिक भेदभाव, रीतिरिवाजों का अंधसमर्थन, पूजापाठ करने वाले सैकड़ों प्राइवेट स्कूलों के नाम ही देवीदेवताओं पर हैं.वहां से निकल रहे छात्र 12-13 साल पैसा तो जम कर खर्च करते हैं पर तार्किक व अलग सोच या ज्ञान से दूर रह कर रट्टूपीर बन कर रोबोटों की तरह डिगरियां लिए घूम रहे हैं.

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अमीरों के ये बच्चे बाद में अच्छे कालेजों में नहीं पहुंच पाते और जवाहरलाल नेहरू जैसे विश्वविद्यालयों में तो हरगिज नहीं. उन का काम सिर्फ मातापिता का मेहनत से कमाया पैसा बरबाद करना रह जाता है.

सरकारी स्कूलों से आने वाले बच्चे अभावों में पलते हैं पर उन्हें जीवन ठोकरों से बहुत कुछ सिखा रहा है. उन में कुछ करने की तमन्ना होती है, इसलिए वे प्रतियोगी परीक्षाओं पर कब्जा कर रहे हैं. जवाहरलाल नेहरू जैसे विश्वविद्यालयों में वे प्रवेश ले पाते हैं, क्योंकि सरकारी स्कूली शिक्षा की तरह ये सस्ते हैं. इन से एक पूरी व्यवस्था को चिढ़ होना स्वाभाविक ही है. भारत सरकार तो गुरुकुल चाहती है जहां छात्र नहीं शिष्य आएं जो भरपूर दक्षिणा दें, गुरुसेवा करें और धर्म की रक्षा करें.

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जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों का रोष बिलकुल सही है. भारत सरकार के पास चारधामों, आयोध्या में दीए जलाने, पटेल की मूर्ति बनवाने के लिए तो पैसा है पर स्वतंत्र विचारों को जन्म देने वाले शिक्षा संस्थानों के लिए नहीं. ऐसा कैसे हो सकता है? यह विद्वेष की भावना है.

सरकार अपनी धार्मिक नीति को आम जनता पर थोपने के लिए कुछ भी कर सकती है. फिर चाहे वह युवाओं को मानसिक गुलाम बनाना ही क्यों न हो.

क्या आपको भी है सोशल मीडिया की लत

क्या आप भी अपना अधिकतम समय facebook ,netflix ,youtube और instagram पर व्यतीत  करते है? यदि हाँ तो ये लेख आपके लिए है . मेरे इस लेख को पूरा पढ़े क्योंकि आधा सच झूठ से भी बुरा होता है.

आप तो ये जानते ही है की सोशल मीडिया कितना पावरफुल है. सोशल मीडिया की पॉवर इतनी है कि दुनिया के किसी भी इंसान से आपको मिलवा सकती है  और सोशल मीडिया की पॉवर इतनी है की आपको आपके परिवार के साथ रहते हुए भी उनसे दूर कर सकती है .

इससे कोई नहीं बच पाया है आदमी से औरत तक,बच्चे से बूढ़े तक,हर जाति ,हर देश, इस मानव निर्मित दुनिया में खोते से जा रहे हैं.हम दिन में 100 से 200 बार phone उठा रहे है .उठते- बैठते ,खाते- पीते,आते -जाते ,सोते -जागते बस mobile ,mobile, सोशल मीडिया ,mobile .खुद के लिए तो हम टाइम निकालना ही भूल गएँ है. ,आज की तारीख में खाने से ज्यादा जरूरी हो गयी है इन्टरनेट कनेक्टिविटी.

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कोई मर रहा है तो video ,कोई किसी को मार रहा है तो video ,कोई गाडी चला रहा है तो वीडियो.  हम इस इन्टरनेट के चक्कर में कितने नकली से हो गये हैं . एक दिन को अगर internet बन्द हो जाता है तो लगता है की न जाने हमारा क्या खो   गया .कितने likes ,कितने share ,कितने comment बस इन्ही की गिनती कर रहे है हम .अपनी असली कीमत को तो हम भूलते ही जा रहे हैं.

एजुकेशन की जगह एंटरटेनमेंट का नशा हो गया है. क्या आप जानते हैं की सीखने वालों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है ये इन्टरनेट और वहीँ टाइम पास करने वालों के लिए किसी शराब की लत से कम नहीं है इन्टरनेट.

गेम्स के राउंड पूरे करके लोग एक सफलता का अनुभव करते है पर मैं आपको बता दूं की वास्तविक जीवन के लक्ष्य पूरे करने पर जो सफलता मिलेगी उसका अनुभव अलग ही होगा .

इन्टरनेट एक अच्छा गुरु है इससे एक सवाल करो तो 1 सेकंड से कम में भी जवाब देता है. ये जो इन्टरनेट है ये चीज़ हमें सिखाने के लिए बनी है,हमें एक बेहतर इंसान बनाने के लिए ही बनी है ,किसी दूर बैठे को पास लाने के लिए बनी है,इस दुनिया में क्या हो रहा है ये बताने के लिए बनी है.

पर क्या करें हम है तो इंसान ही ना ,किसी अच्छी  चीज़ की हम इतनी अति कर देते हैं की वो चीज़ हमारे लिए बुरी हो जाती  है. वही हो रहा है इन्टरनेट के साथ ,वही हो रहा है mobile के साथ ,वही हो रहा है सोशल मीडिया के साथ .

हम हर वक़्त अपने mobile से चिपके रहते हैं .mobile के बिना हम घर से बाहर  कदम नहीं निकालते. एक भी मेसेज ,एक भी नोटीफिकेशन को जाया नहीं जाने देते हर वक़्त चेक एंड रिप्लाई चलता रहता है. हद तो तब हो जाती है जब हम खुद के साथ- साथ अपने बच्चो को भी इसकी चपेट में ले आते है. हम खुद में इतना ज्यादा मशरूफ हो जाते है है की हमारे पास अपने बच्चो  से बात करने तक का समय नहीं रहता और हम उन्हें mobile में इन्टरनेट कनेक्ट करके दे देते है ताकि वो हमें परेशान न करें .

बच्चों  को व्यस्त  रखने का ये तरीका कहीं आपके बच्चे को आपसे दूर न कर दे. हाल ही में किये गए एक शोध के मुताबिक डिजिटल उपकरणों के अधिक उपयोग से बड़ों से लेकर बच्चो तक में  आंखों की रोशनी कम होना , आंखें खराब होना , सिर दर्द, ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई जैसे लक्षण पाए गए  है.

क्या आप जानते है की इन्टरनेट पर गेम खेलने की वजह से बच्चों  के अन्दर मनोवैज्ञानिक बीमारियाँ भी आ रही है .इन्टरनेट पर गेम खेलने से रोकने पर बच्चे घबराहट महसूस करते है.

अगर आपके  बच्चे में  बेवज़ह गुस्सा करना या चिडचिडाना ,ज्यादातर अकेले रहने की आदत  या हर वक़्त ऑनलाइन रहने की आदत है तो यह इन्टरनेट एडिक्शन की निशानी है. ज्यादातर बच्चे super- heroes को अपना ideal  मानते है और उनसे एक जुडाव महसूस करते हैं. super- heroes के साथ जुडी बच्चों की दीवानगी जानलेवा भी साबित हो सकती है.

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भारत ने इन्टरनेट इस्तेमाल करने के मामले में अमेरिका को भी पीछे छोड़ दिया है.एक अनुमान के हिसाब से सन 2021  में भारत में इन्टरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या लगभग 73 करोड़ होगी .ऐसे में इस देश के भविष्य (बच्चों)  को इस लत से बचाना होगा वरना इसका नतीजा बहुत भायानक होगा.

समझदार बनिए , इस इन्टरनेट के नौकर नहीं बल्कि मालिक बनिए  .ये आपको  use  न करे, आप  इसे use  करें .अपने परिवार के साथ ,अपने दोस्तों के साथ कीमती समय व्यतीत करें . Emoji के साथ- साथ लाइफ के real इमोशन भी फील करिए.फिर महसूस करिए की ये दुनिया कितनी खूबसूरत है.

बेईमानी की जय

महाराष्ट्र का राजनीतिक तमाशा आमतौर पर रसोई, पति और बच्चों में बिजी औरतों के सिर से गुजर जाता है पर यह पक्का है कि दिल्ली के पौल्यूशन की तरह यह हरेक को बराबर परेशान करता है. औरतें सोचती रहें कि हमें इस गंदी राजनीति से क्या लेनादेना पर असली कीमत तो वही चुकाती हैं.

महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई देश की व्यावसायिक प्रौसपैरिटी में नंबर एक है. न सिर्फ वहीं सब से ज्यादा पैसा है, वहीं से टीवी चैनल्स चलते हैं, वहीं से हिंदी फिल्मों की बाढ़ आती है और जो नाटक विधायक कर रहे हैं वह इन परदे की कथाओं में भी आता है, उस के टिकट के पैसे भी उन के पतियों और बेटेबेटियों की जेबों से जाते हैं.

जब भारतीय जनता पार्टी और शिव सेना ने अलग पार्टियों की तरह विधान सभा का चुनाव लड़ा था तो शिव सेना को आजादी थी कि वह परिणामों के बाद अपनी मरजी की पार्टियों के साथ सरकार बनाए.

सास की तरह केंद्र सरकार की कठपुतली राज्यपाल को ननद की शक्ल में बेटेबहू में दरार डालने की कोशिश करने और झगड़ा कराने की जरूरत न थी. यहां तो ननद की शक्ल में राज्यपाल ने बच्चों में भी झगड़ा करा दिया.

यह साफ संदेश दे दिया गया है कि जब राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, गृहमंत्री, राज्यपाल, पार्टियों के नंबर 2 नेता सारे वादे, कसमों को तोड़ कर अपना उल्लू सीधा करने के लिए रोज पैतरे बदल सकते हैं तो घरों में सास, देवरानी, ननद, पड़ोसिनें और कामवालियां क्यों नहीं? किसी को अपने वादे पर टिकने की जरूरत नहीं. किसी पर भरोसा नहीं करा जा सकता.

अगर औरतों के पति घर में एक से दुलार करें और बाहर दूसरी से तो इस में हरज क्या है? जब संविधान को तोड़मरोड़ कर फेंका जा सकता है तो विवाह के वादों

या रेस्तरां में किए गए प्रोपोज को क्यों नहीं तोड़ा जा सकता? यह तो हमारे आका सिखा रहे हैं. ऐसे आका जो कहते हैं कि वे धर्मपुराणों से सीख कर ही काम करते हैं.

जय यह व जय वह के साथ जय बेईमानी, जय धोखा, जय फरेब भी आप की जम कर परोसा जा रहा है.

सर्दियों में बड़े काम का है गाजर

सर्दियों में गाजर सेहतमंद सब्जियों के श्रेणी में आता है , गाजर कंद प्रजाति की एक सब्जी है. गाजर विटामिन बी का अच्छा सोर्स है. इसके अलावा, इसमें ए, सी, डी, के, बी-1 और बी-6 काफी क्वॉन्टिटी में पाया जाता है. इसमें नैचरल शुगर पाया जाता है, जो सर्दी के मौसम में शरीर को ठंड से बचाता है. इस मौसम में होने वाले नाक, कान, गले के इन्फेक्शन और साइनस जैसी समस्याओं को दूर करने के लिए गाजर या इससे बनी चीजों का सेवन फायदेमंद साबित होता है. यह सब्जी सलाद, अचार आदि बनाकर उपयोग की जाती है. आप इसे सलाद के तौर पर खाएं या गाजर का हलवा बनाकर, दोनों ही फायदेमंद है.

आयुर्वेद के अनुसार गाजर स्वाद में मधुर, गुणों में तीक्ष्ण, कफ और रक्तपित्त को नष्ट करने वाली है. इसमें पीले रंग का कैरोटीन नामक तत्व विटामिन ए बनाता है. हां, अगर कैलरीज से बचना चाहती हैं, तो गाजर का हलवा अवॉइड करें. 100 ग्राम गाजर में 0.9 प्रोटीन, 10.6 कैलरीज, 80 मिलीग्राम कैल्शियम, 0.03 मिलीग्राम आयरन पा सकते हैं. गाजर नेत्र ज्योति बढ़ाने वाली एक सर्वोत्तम जड़ है. इसे खाने से जबड़ों का व्यायाम हो जाता है. यह पेट साफ करती है रक्त बढ़ाती व शुध्द करती है. इसका हल्का चरपरापन रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ाती है. शोध में इसमें हृदय उपचारक गुण पाए गए हैं. गाजर रक्त में खराब कोलेस्ट्राल का स्तर कम करती है. यह पेट के सभी रोगों में लाभ पहुंचाती है. यह कंद होकर भी लाभ फलों के समान पहुंचाती है. आईये एक नजर डालते है गाजर के औषधीय गुणों पर : –

-निम्न रक्तचाप के रोगियों को गाजर के रस में शहद मिलाकर लेना चाहिए. रक्तचाप सामान्य होने लगेगा.

-गाजर का रस, टमाटर का रस, संतरे का रस और चुकंदर का रस लगभग पच्चीस ग्राम की मात्रा में रोजाना दो माह तक लेने से चेहरे के मुँहासे, दाग, झाइयाँ आदि मिट जाते हैं.

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-पथरी की शिकायत में गाजर, चकुंदर और ककड़ी का रस समान मात्रा में लें.

-गाजर का सेवन उदर रोग, पित्त, कफ एवं कब्ज का नाश करता है. यह आँतों में जमा मल को तीव्रता से साफ करती है.

-गाजर को उबालकर रस निकाल लें. इसे ठंडा करके 1 कप रस में 1 चम्मच शहद मिलाकर पीने से सीने में उठने वाला दर्द मिट जाता है.

-बच्चों को कच्ची गाजर खिलाने से पेट के कीड़े निकल जाते हैं.

-गाजर का नित्य सेवन रक्त की कमी को दूर कर रक्त में लौह तत्वों की मात्रा को बढ़ाता है.

-गाजर पीसकर आग पर सेंककर इसकी पुल्टिस बनाकर बाँधने से फोड़े ठीक हो जाते हैं.

-गाजर का अचार तिल्ली रोग को नष्ट करता है.

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-आग से त्वचा जल गई हो तो कच्ची गाजर को पीसकर लगाने से तुरंत लाभ होता है और जले हुए स्थान पर ठंडक पड़ जाती है.

-दिमाग को मजबूत बनाने के लिए गाजर का मुरब्बा प्रतिदिन सुबह लें.

-अनिद्रा रोग में प्रतिदिन सुबह-शाम एक कप गाजर का रस लें.

होंठो को मुस्कुराने दें

आपके होंठ आपकी स्किन से 3 गुना नाजुक होते हैं, इसलिए सर्दियों में आपकी स्किन से ज्यादा आपके होंठ रूखे और बेजान हो जाते हैं. कई बार तो उनका रूखापन इतना बढ़ जाता है कि उनसे खून निकलने लगता है. होंठों के ज्यादा फटने के कारण उनमें दर्द भी होने लगता है. ऐसे में उनकी खूबसूरती के साथ-साथ मुसकान भी कहीं गायब सी हो जाती है.सर्दियों में होंठों की खूबसूरती बरकरार रखने के लिए यूं तो बाजार में कई ब्रैंड के लिप बाम मौजूद हैं पर हिमालया लिप बाम के इस्तेमाल से होंठों को रूखेपन से बचा सकती हैं.

क्यों है फायदेमंद

– हिमालया लिप बाम 100% हर्बल एक्टिव्स से बना है. इसमें मौजूद व्हीट जर्म और कैरट सीड ऑयल होंठों को ड्राई होने से बचाता है.

– व्हीट जर्म ऑयल में विटामिन ई की मात्रा अधिक होती है, जो होंठों की चमक को बरकरार रखने के साथ-साथ स्किन को पोषण भी प्रदान करती है और नमी को भी बरकरार रखती है. इससे होंठों की कंडीशनिंग भी हो जाती है और होंठ नर्म दिखने लगते हैं.

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– कैरट सीड ऑयल में बीटाकैरोटिन के रूप में विटामिन ए की मात्रा ज्यादा होती है, जो होंठों में टिशू ग्रोथ को बढ़ाने का काम करती है. विटामिन ए स्किन को सूर्य की हानिकारक किरणों से बचाता है. इसके इस्तेमाल से होंठ हमेशा हैल्दी नजर आएंगे. कैरट ऐंटीऑक्सीडैंट का अच्छा स्रोत है. इससे स्किन जवान नजर आती है. कैरेट सीड ऑयल स्किन के लिए बहुत फायदेमंद माना जाता है. यह होंठों की रंगत को भी निखारता है. इस ऑयल में ऐंटी फंगल और ऐंटीबैक्टीरियल तत्त्व होते हैं, जिनसे स्किन इन्फैक्शन होने का खतरा भी नहीं होता.

– हिमालया लिप बाम में ऐंटीऑक्सीडैंट के साथ नैचुरल ऐक्टिव्स प्रचुर मात्रा में होने के कारण यह होंठों पर वातावरण का प्रतिकूल असर नहीं पड़ने देता.

– यह सर्दियों में शुष्क हवा से होंठों को बचाता है और होंठों पर मॉइस्चर को बैलेंस रखने का काम करता है.

कैसे करें इस्तेमाल

– हिमालया लिप बाम की पतली लेयर को होंठों पर लगा कर अच्छी तरह मिला लें. यह काफी देर तक होंठों पर नमी बनाए रखता है.

– इसे आप पूरे दिन में कितनी भी बार इस्तेमाल कर सकती हैं.- हिमालया लिप बाम फटे और रूखे होंठों के लिए बहुत उपयोगी है.

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क्या आप भी इसी तरह अपने साथी का हाथ पकड़ती हैं

जब आप रिलेशनशिप में होते हैं तो हर कोई चाहता है कि वह अपने पार्टनर के साथ हाथों में हाथ डालकर कुछ समय बिताए और उन पलों को यादगार बनाए. हाथ थामना आपके रिलेशनशिप के प्यार को दर्शाता हैं.

जी हां, आपके हाथ पकड़ने के अंदाज से आपकी रिलेशनशिप की मजबूती और आपसी प्यार का पता चलता हैं. आज हम आपको यहीं बताने जा रहे हैं कि किस तरह से हाथ पकड़ने के स्टाइल से आपकी रिलेशनशिप के बारे में बताया जा सकता हैं.

इंटरलौक फिंगर

इस तरह से हाथ पकड़ने का स्टाइल दर्शाता है कि दोनों हमेशा एक-दूसरे के साथ खड़े हैं. अगर हाथ पकड़ने में हिचकिचाएं तो समझ लें कि दोनों एक-दूसरे को ज्यादा अहमियत नहीं दे रहे.

हाथ खींचना

अगर कोई पार्टनर दूसरे का हाथ पकड़ एक खींचता है तो इसका मतलब वे आप पर कंट्रोल करने के बारे में सोच रहा है. ऐसा रिश्ते में गलतफहमी होने का संकेत देता है.

सिर्फ एक अंगुली पकड़ना

कई बार हम देखते हैं कि कुछ पार्टनर एक-दूसरे का हाथ पकड़ने की बजाए सिर्फ अंगुली ही पकड़ते हैं. इस तरीके से अंगुली पकड़ने का मतलब है कि दोनों एक-दूसरे की प्राइवेसी का पूरा ख्याल रखने की कोशिश करते हैं. रिश्ते में किसी भी तरह की घुटन महसूस होने देना चाहते.

हाथ न पकड़ना

कुछ लोग अपने रिश्ते का दिखावा दिखाना पसंद नहीं करते. इस तरह के व्यवहार की वजह अनदेखी करना भी होता है.

लिंक्ड आर्म्स

लिंक्ड आर्म्स यानि हाथ में हाथ डालकर चलना. कुछ पार्टनर एक-दूसरे की इतना फिक्र करते हैं कि हाथ पकड़ कर ही चलते हैं. यह रिश्ते में असुरक्षित होने की भावना महसूस करवाता है. ऐसा भी कहा जा सकता है कि उनकी असुरक्षा की वजह है कि रिश्ते में कुछ गड़बड़ी चल रही है.

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