कपिल शर्मा ने वाइफ गिन्नी के लिए रखी सरप्राइज बेबी शौवर पार्टी, देखें Photos

कौमेडी किंग कहे जाने वाले कपिल शर्मा जल्द ही पापा बनने वाले हैं, जिसे वह काफी इन्जौय कर रहे हैं. हाल ही में हमने कपिल और उनकी वाइफ गिन्नी चतरथ के बेबी हनीमून की कुछ वायरल फोटोज दिखाई थी, वहीं अब गिन्नी के बेबी शावर की फोटोज भी सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ है. आइए आपको दिखाते हैं गिन्नी की वायरल फोटोज…

कपिल ने वाइफ के लिया ये

कपिल शर्मा ने हाल ही में अपनी वाइफ गिन्नी के लिए बेबी शावर पार्टी रखी, जिसकी खुशी उनके फेस पर साफ झलक रही थी. वहीं पति कपिल के इस सरप्राइज की खुशी गिन्नी की फोटोज से साफ दिख रही है.

 

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टीवी इंडस्ट्री के सितारे रहे मौजूद

 

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कपिल अपनी वाइफ के लिए हर मोमेंट को स्पेशल बनाने के लिए खूब मेहनत कर रहे हैं. वाइफ गिन्नी की बेबी शावर पार्टी में कपिल ने कई सेलेब्स को इनविटेशन दिया. साथ ही उनके द कपिल शर्मा शो के उनके को-स्टार्स भी इस पार्टी में मौजूद रहे. सभी ने इस दौरान खूब मस्ती की.

बेबी के लिए खास तैयारी कर रहे हैं कपिल

 

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कपिल शर्मा अभी से अपने शो के शूटिंग शेड्यूल की प्लानिंग कर रहे हैं ताकि वो गिन्नी की डिलीवरी के वक्त उनके साथ टाइम स्पेंड कर सकें. खबर के मुताबिक, गिन्नी की ड्यू डेट दिसंबर के मिड में है तो कपिल अभी से प्लानिंग कर रहे हैं ताकि शो की शूटिंग पर असर ना पड़े. वो उस हिसाब से सेलेब्स के इंटरव्यू लेंगे कि काम भी हो जाए और वो अपने परिवार और होने वाले बेबी के साथ टाइम स्पेंड कर सकें.

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शो की कुछ यूं तैयारी कर रहे हैं कपिल

इतना ही नहीं, कपिल ने हाउसफुल 4 की कास्ट अक्षय कुमार और बाकी स्टार्स के साथ, सांड की आंख की कास्ट और मेड इन चाइना की स्टार कास्ट के साथ अपना शे़ड्यूल प्लान कर रहे हैं.

बता दें, गिन्नी और कपिल की शादी के बाद से कपिल की शोहरत एकबार फिर बरकरार है. वहीं टीआरपी चार्ट में भी कपिल का शो नंबर 1 पर बरकरार है.

अबोर्शन कराने वाली थी ‘नायरा’, सामने आया ‘वेदिका’ का काला अतीत

स्टार प्लस के सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में इन दिनों नए-नए ट्विस्ट फैंस को एंटरटेन कर रहा है. ‘नायरा और कार्तिक’ के बीच ‘कायरव’ की कस्टडी के चलते नए-नए राज खुलते नजर आ रहे हैं. ‘कार्तिक’ की वकील जहां ‘नायरा’ को किडनैप कर चुकी है. वहीं अब ‘कार्तिक’ की वकील ने ‘नायरा’ का एक नया राज खोला है, जिसके कारण ‘कार्तिक’ ‘कायरव’ की कस्टडी लेने पर अड़ गया है. आइए बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

‘कार्तिक की वकील’ का ‘नायरा’ पर वार

‘कार्तिक की वकील’ केस जीतने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार है. आने वाले एपिसोड में आप देखेंगे कि ‘वकील’ ‘नायरा’ के ‘कायरव’ को अबौर्ट कराने का सच कोर्ट में बता देती है.

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‘कार्तिक’ हो जाएगा हैरान

अपकमिंग एपिसोड़ में आप देखेंगे कि किस तरह ‘नायरा’ के अबौर्शन की बात कर ‘कार्तिक’ हैरान हो जाएगा और ‘कायरव’ की कस्टडी लेने के लिए किसी भी हद तक चला जाएगा.

‘नायरा और कार्तिक’ के बीच होगी लड़ाई

अबौर्शन की बात पता लगने के बाद ‘नायरा और कार्तिक’ के बीच लड़ाई होगी. वहीं ‘कार्तिक और नायरा’ को लड़ाई करता देख ‘कायरव’ भाग जाएगा और भागते हुए वह सीढ़ियों से गिर जाएगा पर उसे ज्यादा चोट नही आएगी.

‘वेदिका’ का सच जान जाएगी ‘नायरा’

हाल ही में हमने आपको ‘वेदिका’ के एक्स हस्बैंड के बारे में बताया था, लेकिन अब खबर है कि ‘नायरा’ को ‘वेदिका’ का ये सच पता चल जाएगी, जिसके बाद वह घर के सभी लोगों को ‘वेदिका’ का सच बता देगी.

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‘कार्तिक’ निकालेगा ‘वेदिका’ को घर से बाहर

‘वेदिका’ के एक्स हस्बैंड की सच्चाई ‘नायरा’ ‘कार्तिक’ को बताएगी तो ‘कार्तिक’ गुस्से में आकर ‘वेदिका’ को घर से बाहर निकाल देगा. वहीं अब देखना ये होगा कि अबौर्शन के बारे में जानने के बाद क्या ‘कार्तिक’ ‘नायरा’ को माफ कर पाएगा और दोनों के बीच क्या दोबारा रोमांस शुरू होगा.

कालेज राजनीति में लड़कियां

 लेख- पारुल श्री

पिछले दिनों दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडैंट्स यूनियन यानी डूसू इलैक्शंस हुए तो बहुमत में लड़कों की भागीदारी तो हमेशा की तरह ही थी लेकिन प्रैसिडैंट पोस्ट के लिए कांग्रेस से जुड़े नैशनल स्टूडैंट्स यूनियन औफ इंडिया (एनएसयूआई), औल इंडिया डैमोक्रेटिक स्टूडैंट्स और्गेनाइजेशन और औल इंडिया स्टूडैंट्स एसोसिएशन (आइसा) ने चेतना त्यागी, रोशनी और दामनी कैन को मैदान में उतारा. हालांकि ये तीनों यह इलैक्शन जीत नहीं पाईं लेकिन उन का जज्बा और राजनीति में लड़कों के कदम से कदम मिला कर चलना काबिलेतारीफ रहा. प्रैसिडैंट न सही लेकिन जौइंट सेक्रेटरी पद पर एनएसयूआई की शिवांगी खरवाल ने बाजी मार ही ली. शिवांगी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडैंट्स यूनियन की जौइंट सेक्रेटरी बन कर लड़कियों के लिए राजनीति की राह प्रशस्त कर दी है. परंतु राजनीति की राह उतनी आसान नहीं जितनी कि वह दिखती है, खासकर लड़कियों के लिए.

‘‘मैं ने जब 20 साल की उम्र में कालेज की राजनीति में कदम रखा तब मुझे सत्ता और ताकत का पहली बार एहसास हुआ. मेरा रुझान यों तो खेल और संगीत में था लेकिन जब मुझे अपने कालेज के प्रिंसिपल और शिक्षकों की तरफ से छात्रसंघ के प्रौक्टर का पद दिया गया तो मैं ने इस मौके को छोड़ा नहीं. सैकंड ईयर प्रौक्टर के पद से छात्रसंघ के अध्यक्ष बनने तक के सफर में मुझे मानसिक तनाव, निराशा और हताशा का भी कई बार सामना करना पड़ा.’’

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यह कहना है दिल्ली विश्वविद्यालय के कमला नेहरू कालेज की पूर्व छात्रा अध्यक्ष कोमल प्रिया सिंह का. कोमल को राजनीति की कोई खास समझ नहीं थी. लेकिन जब उन्हें इस से जुड़ने का मौका मिला तो उन्होंने न सिर्फ इस में दिलचस्पी दिखाई बल्कि प्रौक्टर के पद से छात्र अध्यक्ष तक का सफर भी निडरता से तय किया. इस सफर में उन्हें वाहवाही और सफलता तो मिली लेकिन कई मुश्किल परिस्थितियों का सामना भी करना पड़ा.

कोमल अकेली ऐसी लड़की नहीं है जिस ने बहुत ही कम उम्र में कालेज की राजनीति में कदम रखा. ऐसी सैकड़ों लड़कियां हैं, जो 20 साल से भी कम उम्र में राजनीति के रास्तों पर निकलीं और इतनी आगे निकलीं कि देश ही नहीं, विदेशों तक में अपने नाम का परचम लहराया. सुषमा स्वराज, अलका लांबा, जोथिमनी सैन्नीमलाई अगाथा संगमा, वृंदा करात, प्रियंका गांधी जैसी राजनीतिक हस्तियों ने बहुत ही कम उम्र से राजनीति की गहराइयों को समझा. परंतु लड़कियों के लिए चुनाव में सफलता के बाद भी मुश्किलें कम नहीं होतीं. संघर्ष कार्यकाल तक चलता रहता है.

चुनौतियां कम नहीं

ऊंचेऊंचे नारों के शोरगुल में जब लड़कियों की आवाज भीड़ से नहीं, बल्कि उम्मीदवारों के खेमे से आ रही हो तो सभी की नजरें उन पर टिक जाती हैं. कारण कई होते हैं, कोई उन्हें सम्मान की नजर से देखता है तो कोई हीनता की. ‘लड़कियों की जगह ब्यूटीपार्लर में बैठ कर मैनीक्योर कराने की है, चुनाव में पसीना बहाने की नहीं’ जैसे वाक्य खुद प्रैसिडैंट पद के उम्मीदवार लड़कों के मुंह से सुनने को मिल जाते हैं. और केवल डूसू ही क्यों, सामान्य कालेज स्टूडैंट्स यूनियन इलैक्शंस में भी लड़कियों की भागीदारी है तो सही मगर लड़कों से कम. इस भागीदारी का अनुपात कभी लड़कियों के पक्ष में नहीं रहा. इस की कई वजहें हैं, मातापिता की तरफ से सपोर्ट न होना, पढ़ाई का बीच में आना, समय न होना, राजनीति को खिन्नता से देखना, प्रोफैसरों का लड़कियों को राजनीति से दूर रहने की सलाह देना, खुद दोस्तों का साथ न मिल पाना आदि. यानी कालेज राजनीति में लड़कियां हैं तो जरूर मगर उतनी नहीं जितनी होनी चाहिए. इन सभी के लिए चुनाव जीतने के बाद भी चुनौतियां कम नहीं होतीं.

जिम्मेदारियों का बढ़ना

छात्रसंघ से जुड़ कर केवल नारेबाजी और प्रचार ही नहीं करने पड़ते, छात्रों की समस्याओं को ले कर प्रबंधन से ले कर डीन, प्रिंसिपल और कालेज प्रशासन तक को संभालना पड़ता है. कई बार जब छात्रों की मांग और उन की परेशानियों का हल नहीं निकलता तो उस के लिए धरनाप्रदर्शन और दूसरे तरीके आजमाने पड़ते हैं. ऐसे में एक लड़की होने के नाते परेशानियां बढ़ती ही हैं. घंटों पार्टी, मीटिंग और कालेज प्रबंधन के साथ चर्चा करनी पड़ती है, समस्या का समाधान निकालना पड़ता है.

असुरक्षा की भावना

राजनीति जैसी जगह पुरुषों से भरी पड़ी है. वहां किसी लड़की का होना और उस पर भी अगर उस का दबदबा हो तो वह बहुत से पुरुष साथियों की नजर में खटकती भी रहती है.

भारतीय जनता पार्टी में कला संस्कृति की मीडिया प्रभारी और पार्टी की प्रदेश अध्यक्ष रह चुकीं वीणा बेनीपुरी प्रसिद्ध कवि रामवृक्ष बेनीपुरीजी की बहू हैं. वीणा बेनीपुरी ने अपने राजनीतिक जीवन में ऐसी कई परिस्थितियों का सामना किया है. तब पार्टी के अन्य पुरुष सदस्यों को उन का आगे आना खटकता रहा. यहां तक कि उन की छवि को धूमिल करने का भी प्रयास किया गया. उन का नाम पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ गलत तरीके से भी जोड़ा गया.

इसी तरह की चीजें कालेज राजनीति में भी देखने को मिलती हैं. लड़के बाकायदा लड़कियों को धमकियां देते हैं, गालीगलौज की कोशिश करते हैं और उन्हें इलैक्शन में भाग लेने के साथसाथ जीतने पर पद त्यागने तक की नसीहतें देते फिरते हैं.

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पढ़ाई पर असर पड़ता है

कालेज जाते तो पढ़ाई करने ही हैं लेकिन जब समाजसेवा की भावना से प्रेरित हो कर और छात्राओं के हक, सुविधा और सुरक्षा के लिए कालेज राजनीति से जुड़ना होता है, तो पढ़ाई पर पूरा ध्यान दे पाना मुश्किल हो जाता है. आप को हमेशा ही छात्रों के बीच रहना होता है, उन की परेशानियां सुननी पड़ती हैं, पार्टी, मीटिंग या कालेज प्रशासन की तरफ से बुलाई गई बैठक में शामिल होना पड़ता है. कालेज में होने वाले इवैंट्स या खेल आयोजन को ले कर प्रबंधन करना होता है. इन सब के बीच पढ़ाई और नियमित रूप से क्लास लेना मुश्किल होता है. टौपर छात्राएं भी राजनीति में आ कर पढ़ाई से दूर होने लगती हैं और उन के ग्रेड्स लगातार गिरते जाते हैं.

परिवार की तरफ से रोकटोक

राजनीति भले ही कालेज की हो लेकिन परिवार के लिए वह देश की राजनीति से कम नहीं होती. उन के लिए अपनी बेटी की सुरक्षा हमेशा ही सर्वोपरि रहती है. जिन का पारिवारिक माहौल राजनीति का रहा हो उन्हें तो परिवार का पूरा साथ मिलता है, लेकिन जिन का राजनीति से दूरदूर तक संबंध नहीं होता वे अपनी बेटियों को इस में भेजने से डरते हैं. उन्हें कालेज के काम से बेटी का हर समय टैंशन में रहना, रातरातभर काम में उलझे रहना, अच्छेबुरे हर तरह के व्यक्ति से संबंध रखना अखरता है. यही कारण है कि वे उस पर रोकटोक लगाने लगते हैं. कोमल को भी अपने इस फैसले के लिए अपने परिवार से कुछ अच्छी प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. लेकिन धीरेधीरे कोमल ने उन्हें समझा लिया.

दोस्ती में बदलाव

कालेज की कैंटीन में दोस्तों के बीच फैशन, रिलेशनशिप, सैक्स और हलकीफुलकी गौसिप की जगह जब छात्रदल की मांगों, अधिकारों और राजनीति जैसे गंभीर मुददों पर बातें होने लगें तो दोस्तों की कैटेगरी बदल जाती है. आप के साथ राजनीतिक सोच और समझ वाले लोग जुड़ जाते हैं. सोशल मीडिया का इस्तेमाल अपने दल और उन से जुड़े राजनीतिक विचारों के पोस्ट डालने के लिए करने लग जाते हैं. फेसबुक, इंस्टाग्राम और ट्विटर का प्रयोग छात्रों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए किया जाने लगता है. ऐसे में जहां दोस्तों के बीच मनमुटाव पैदा होने लगते हैं वहीं यदि कुछ दोस्त अलगअलग पार्टियों से इलैक्शन लड़ते हैं तो उन की दोस्ती टूटना लगभग स्वाभाविक होता है.

‘‘तू ये इलैक्शन मत लड़, लड़ेगा तो तू मेरा दोस्त नहीं.’’

‘‘मैं क्यों पद छोड़ूं, तू भी तो छोड़ सकता है.’’

इन्हीं बातों के बीच दोस्त आगे निकल जाते हैं और दोस्ती पीछे छूट जाती है. यह टूटी हुई दोस्ती इलैक्शन खत्म होने के बाद भी कभी पहले जैसी नहीं होती, खासकर हारे हुए दोस्त की तरफ से.

निजी जीवन में परेशानियां

राजनीति जीवन का एक ऐसा पहलू है, जिस से जुड़ने के बाद जिंदगी आम जिंदगी नहीं रह जाती. कोमल को भी अपनी निजी जिंदगी में अपने छात्र राजनीतिक जीवन का असर साफ दिखाई देता है. आप का एक आम लड़की की तरह दोस्तों के साथ घूमना और मस्ती करना बंद जैसा हो जाता है. अपने पहनावे को ले कर सजग होना पड़ता है. ऐसा न हो कि आप ने कुछ ऐसा पहन लिया जिस के लिए विरोधी दल के सदस्य आप के चरित्र को ही निशाना बना डालें. कालेज में तो होता भी यह है कि यदि आप पहले की तरह क्लास बंक करते हैं तो केवल आप के ही नहीं, बल्कि कालेज के बाकी सभी प्रोफैसर्स की नजरों में आप आ जाते हैं. आप के द्वारा कही गई एकएक बात पत्थर की लकीर बनने लगती है. निजी जीवन में चाहे आप ने अपने मातापिता को खुद से ऊंची आवाज में बात न करने दी हो लेकिन अब कालेज में स्टूडैंट्स का प्रतिनिधि होने के नाते आप को सभी के ताने भी सुनने पड़ते हैं और उपहास भी झेलना पड़ता है.

मुझे अच्छे से याद है जब मेरे कालेज में एनुअल फैस्ट के समय सैलिब्रिटी नहीं आया था तो स्टूडैंट्स ने प्रैसिडैंट की सरेआम धज्जियां उड़ा दी थीं. वह कालेज आ कर शक्ल दिखाना तो दूर, क्लासेज तक अटैंड नहीं कर पाता था. प्रैसिडैंट भी क्या, कालेज की आर्ट रिप्रिजैंटेटिव एक शांत स्वभाव की लड़की थी, वह पूरे डिपार्टमैंट की जिम्मेदारी खुशी से निभाती थी, लेकिन इलैक्शन जीतने के बाद जब वह अपने स्वभाव के अनुसार एक कोने में किताब ले कर बैठी रहती थी तो उस के खुद के दोस्त तक यह कहते फिरते थे कि वह बदल चुकी है, उस में घमंड आ गया है. इन शौर्ट, उसे अपनी निजी लाइफ अपनी शर्तों पर जीने के लिए भी जवाबदेह होना पड़ता था.

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कालेज राजनीति में मजा भी

हालांकि कालेज राजनीति में अनेक चुनौतियां हैं लेकिन उस का मजा भी कुछ कम नहीं. यह लड़कियों की पहचान को बदल कर रख देती है. ऐसी कितनी ही लड़कियां हैं जो एक समय में बेहद शांत रहा करती थीं लेकिन कालेज राजनीति में उतरने और जीतने के बाद से उन के आत्मविश्वास में तेजी से बढ़ोतरी हुई. जीतना भी दूर की बात है, केवल कैंपेनिंग के बाद भी लड़कियों में भीड़ से लड़ने, सैकड़ों की भीड़ में आवाज उठाने   का साहस आ जाता है. यह कोई छोटी बात नहीं है.

एक महिला उम्मीदवार होने के नाते आप के दल के पुरुषसाथी भी आप के साथ खड़े होते हैं. आप के साथ हमेशा कुछ ऐसे पार्टी सदस्य होते हैं जो इस बात का बेहतर ध्यान रखते हैं कि कोई दूसरा आप के साथ दुर्व्यवहार न करे या आप का नाम खराब न करे.  विपक्षी दल आप की छवि बिगाड़ने का प्रयास करते रहते हैं. ऐसे में एक लड़की जब छात्र अध्यक्ष या फिर पार्टी में किसी मुख्य भूमिका में होती है तो उस की सुरक्षा का ध्यान ऐसे ही कुछ राजनीतिक मित्र रखते हैं जो भरोसेमंद होते हैं.

ताकत किसे अच्छी नहीं लगती. एक आम लड़की या छात्रा होने पर आप की मांगों को अहमियत नहीं दी जाती लेकिन जब आप के पास राजनीतिक ताकत होती है, तो सभी आप की बात को सुनते भी हैं और उस पर ठोस कदम भी उठाए जाते हैं. युवतियों और महिलाओं को हक और सम्मान के लिए आवाज उठाने की ताकत मिल जाती है. यूनिवर्सिटी में छात्राध्यक्ष के पास एक अच्छाखासा वोटबैंक होता है. उस वोटबैंक के कारण राज्य के विधायक और मंत्रियों का समर्थन भी मिलने लग जाता है. इस से आप को राज्य की राजनीति से जुड़ने का मौका भी मिलता है.

जानें क्यों माही गिल की मां नहीं चाहती थीं उनकी बौलीवुड में एंट्री

पंजाबी फिल्मों से अपने करियर की शुरुआत करने वाली अभिनेत्री माही गिल ने फिल्म ‘देव डी’ से हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा था. अनुराग कश्यप द्वारा निर्देशित मौडर्न देवदास की इस कहानी में माही ने ‘पारो’ की भूमिका निभाई थी, जिसे दर्शकों और आलोचकों ने काफी सराहा. इसके बाद उन्होंने ‘साहेब बीबी और गैंगस्टर’, ‘पानसिंह तोमर’ जैसी खई फिल्में की. वह एक आत्मनिर्भर महिला है और अभी 3 साल की एक बेटी की मां है. स्वभाव से विनम्र और खूबसूरत माही अब वेब सीरीज ‘फ़िक्सर’ में अहम भूमिका निभा रही है. पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

प्र. इस वेब सीरीज को करने की खास वजह क्या है?

ये एक अलग तरह की मनोरंजक कहानी है. असल में हम जीवन में हर चीज को फिक्स करते रहते रहते है. मसलन चौकलेट लाकर दोगे, तो ये काम कर दूंगा या ड्रामा करना, कुछ लिए बिना मैं कोई काम नहीं कर सकता आदि होता है. मुझे याद आता है कि कौलेज के ज़माने में हम ट्रिपल राइडिंग कर फ्रेंड्स के साथ जाते थे और चालान होने पर ट्रैफिक पुलिस को अपना जन्मदिन कहकर छूट जाते थे. कहानी भी हर व्यक्ति के जीवन में फिक्स को दिखाते हुए मनोरंजक तरीके से लिखी गयी है. इसकी स्क्रिप्ट मुझे बहुत पसंद आई. इसके पहले मैंने काफी सीरियस फिल्में की है और अब कुछ हल्की फुल्की फिल्म करना चाह रही थी.

प्र. वेब सीरीज में डरावनी कहानियां, सेक्स और गाली-गलौज अधिक है, जिसे सब लोग देख नहीं सकते, क्या निर्माता ,निर्देशक को इस बात का ध्यान रखना जरुरी नहीं कि वे ऐसी वेब सीरीज बनाये, जिसका असर समाज पर अच्छी हो? वे सर्टिफिकेशन न होने की आज़ादी का गलत फायदा न उठाये?

ये सही है, लेकिन आजकल औनलाइन सबकुछ मिलता है आप जो चाहे, उसे देख सकते है. हर तरह की फिल्में और वेब सीरीज आज बन रह है. कई बार मुझे भी लगता है कि आजादी मिलने की वजह से सेक्स और आईटम सौंग, बिना जरुरत के भी दिखा देते है, उस पर रोक लगाने की जरुरत है. इसका दायित्व निर्माता निर्देशक को अवश्य लेनी चाहिए, ताकि मौस में कोई फिल्म या वेब सीरीज देखी जा सके.

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प्र. आपने अच्छी एक्टिंग पंजाबी और हिंदी फिल्मों में की है, लेकिन आप फिल्मों में कम दिखी है, इसकी वजह क्या मानती है? कितना मलाल है?

इसकी वजह मैं खुद हूं, क्योंकि मैं कही जाकर काम मांग नहीं सकती. मैंने फिल्में बोल्ड की है,पर रियल लाइफ में बहुत शाय किस्म की हूं. बहुत इन्ट्रोवर्ट और होमली महिला हूं, जो गलत है. मुझे खुलकर कहने की जरुरत थी, पर मैंने नहीं कहा और ये मेरी ही गलती रही है. मैं बहुत संतुष्ट रहने वाली व्यक्तित्व की महिला हूं, जिसे जीवन में बहुत कुछ नहीं चाहिए, पर काम के लिए लालची हूं. मैंने एक्शन और कौमेडी फिल्में नहीं की है उसे करने की इच्छा है.

प्र. कोई ऐसी फिल्म जिसने आपकी जिंदगी बदल दी?

मेरी जिंदगी को बदलने वाली फिल्म ‘देव डी’ है, जिसके बाद से मुझे हिंदी फिल्मों में एंट्री मिली. दर्शकों ने मुझे और मेरे काम को पहचाना. फिल्म ‘लम्हे’ ने मेरी जिंदगी को बहुत प्रभावित किया है और मुझे वैसी फिल्म करने की इच्छा है.

प्र. आपका चेहरा अभिनेत्री तब्बू से बहुत मेल खाता है, इससे कोई फायदा आपको मिला है क्या?

बहुत लोगों ने मुझे ऐसा कहा है, पर मैं तब्बू की बहुत बड़ी फैन हूं. उनके साथ मुझे काम करने की भी इच्छा है.

प्र. क्या सफलता के लिए मौका मिलना जरुरी है?

मैं मौके से अधिक डेस्टिनी को मानती हूं. मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं मुंबई आकर एक्टिंग करुंगी. मैं तो आर्मी में चली गयी थी और वहां ट्रेनिंग ले रही थी. जहां एक हादसा हो गया, जिसमें पैरासेलिंग ट्रेनिंग के दौरान मेरा फ्री फौल हो गया था. मैं बाल-बाल बच गयी थी. इससे मेरे घर वाले बहुत डर गए थे और मुझे घर वापस बुला लिया था.

प्र. सफलता और असफलता आपके लिए क्या महत्व रखते है?

मुझे सफलता फिल्मों में चाहिए, जिससे मुझे आगे काम करने की प्रेरणा मिलती है. किसी फिल्म के सफल होने पर बहुत लोगों को आगे काम मिलता है. सफल न होने पर फिल्म का आगे बनना बंद हो जाता है. एक्टिंग मेरा पैशन है, पर उसके साथ पैसे की भी जरुरत है और मैं चाहती हूं कि मेरी हर फिल्म सफल हो. लाइफ में सफलता का अर्थ मेरे लिए अलग है, क्योंकि मैं अपनी जर्नी से संतुष्ट हूं.

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प्र. आपके यहां तक पहुंचने में परिवार का सहयोग कितना रहा है?

मेरा परिवार अभी अमेरिका में है. पिता का स्वर्गवास हो चुका है. अभी मेरी मां है. जब मैं मुंबई आई थी तो वे काफी डरे हुए थे, पर अब ठीक है. मैंने शुरू से अपने परिवार से कभी वित्तीय सहायता नहीं ली. उनका इमोशनल सपोर्ट हमेशा मेरे साथ रहा है. वह मेरे लिए सबसे अधिक है. मैं बहुत आत्मनिर्भर हूं. मेरी मां नहीं चाहती थी कि मैं एक्ट्रेस बनूं, क्योंकि उन्होंने मेरी शुरुआत की मेहनत फिल्मों में देखी थी.

प्र. कोई सामाजिक काम जिसे आप करती हो?

मैं बच्चो को पढ़ाती हूं, क्योंकि शिक्षा हर किसी के लिए जरुरी है. मैं किसी भिखारी को कभी भीख नहीं देती. खाना खिलाती हूं. भ्रूण हत्या पर मेरी पूरी निगाह रहती है और उसे कम करने की दिशा में मैं काम करती हूं. इसके अलावा बेजुबान जानवरों के लिए भी काम करना पसंद करती हूं.

एडिट बाय- निशा राय

BIGG BOSS 13: शो से बाहर होते ही दलजीत ने किए घरवालों के बारे में ये खुलासे

कलर्स के पौपुलर रियलिटी शो में ‘बिग बौस 13’ में दूसरे ही हफ्ते एक्ट्रेस दलजीत कौर शो से बाहर हो गईं, जिसके कारण उनके फैंस काफी दुखी हैं. वहीं अब दलजीत ने घर से बाहर आते ही शो के बारे में कईं नए खुलासे कर दिए हैं. आइए आपको बताते हैं क्या है शो के कंटेस्टेंटेस के बारे में दलजीत का कहना…

सिद्धार्थ शुक्ला को कहा फेक

शो से बाहर होने के बाद दलजीत कौर ने शो के बेस्ट कंटेस्टेंट सिद्धार्थ शुक्ला को फेक कहा है. साथ ही बाकी घरवालों को भी फेक बताया है. अदाकारा ने घर के अंदर बने रिश्तों को फेक बताते हुए कहा है कि घर में रिश्ते लोग अपनी सहूलियत और फायदे के लिए बना रहे थे.

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घर से बाहर होने पर हैं हैरान हैं दलजीत

दलजीत कौर खुद के सबसे पहले एलिमिनेट होने पर हैरान है. उनका मानना है कि वो ये बिल्कुल भी डिजर्व नहीं करती थी. उनका दावा है कि वो घर में बेहद शालीनता से खेल रही थी और डिजर्विंग कैंडिडेट थीं.

झूठा प्यार का रिश्ता बनाने नही गईं थी दलजीत

दलजीत ने कहा कि शुरुआती स्तर पर घर का फौर्मेट काफी अलग था. वो यहां स्प्लिटविला खेलने नहीं गई थी और न ही झूठा प्यार का रिश्ता बनाने गई थी, जिससे उन्हें दिक्कत हुई थी.

पारस-शहनाज और शेफाली-सिद्धार्थ का रिश्ते को कहा फेक

एक्ट्रेस ने घर के अंदर बन रहे इन चारों लोगों के रिश्तों को फेक करार दिया है. अदाकारा ने कहा है कि ये लोग घरवालों और दर्शकों को बेवकूफ बना रहे हैं और झूठे रिश्ते के आधार पर आगे बढ़ने की कोशिश कर रहे हैं.

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क्टेस्टेंट्स के बारे में कही ये बात

एक्ट्रेस दलजीत ने कहा है कि घर में सिद्धार्थ शुक्ला सबसे बेस्ट और स्ट्रौन्ग कंटेस्टेंट है, लेकिन वह मानती है कि उनका गुस्सा उनके खिलाफ जा सकता है. वहीं दलजीत ने कहा कि शहनाज जैसा खुद को दिखाती हैं बच्ची-बच्ची, वैसी वो नहीं है. वो काफी शातिर है. उनका कहना है कि वो काफी मैन्यूप्लेट करती है. सिद्धार्थ डे के लिए कहा कि सिद्धार्थ डे का अपनी जुबान पर काबू नहीं है. वो कुछ भी बोलते है.

बता दें, शो से बाहर होने वाली दलजीत कौर पहली कंटेस्टेट हैं, जो शो से बाहर हुई हैं. पर अब देखना ये है कि क्या फैंस की फरमाइश के चलते क्या दलजीत एक बार फिर शो में नजर आएंगी.

धूमधाम से हुई ‘ये रिश्ता…’ की ‘कीर्ति’ की मेहंदी सेरेमनी, लेकिन नहीं दिखे ‘कार्तिक-नायरा’

स्टार प्लस के सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में ‘नायरा’ की भाभी ‘कीर्ति’ के रोल में नजर आने वाली मोहिना कुमारी सिंह एक्टिंग करियर को अलविदा कर चुकीं हैं, जिसका कारण उनकी शादी है. हाल ही में मोहिना नीदरलैंड में अपनी बैचलरेट पार्टी इन्जौय करती हुईं नजर आईं थी, जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुई थी. लेकिन अब उनकी शादी की रस्मों की फोटोज भी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं कैसी लग रही हैं ‘नायरा’ की ‘भाभी’ अपनी रियल लाइफ वेडिंग में…

मेहंदी सेरेमनी में कुछ यूं नजर आईं मोहिना

मेहंदी की रस्मों के दौरान मोहिना एकदम राजस्थानी लुक में नजर आईं. मोहिना ने ग्रीन कलर का ट्रेडिशनल लहंगा पहना हुआ था, जिसके साथ उन्होंने नथ और मांग टीका कैरी किया हुआ था. अपने इस देसी अंदाज में मोहिना बेहद खूबसूरत लग रही थीं.

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दोस्तों के साथ नजर आईं मोहिना

मेहंदी लगवाते समय मोहिना अपने दोस्तों और परिवार के लोगों के साथ जमकर फोटो खिंचवाती नजर आईं, जो सोशल मीडिया पर काफी पौपुलर हो रही हैं.

एक्टिंग को कर चुकी हैं अलविदा

मोहिना कुमारी अपनी शादी को लेकर काफी गंभीर हैं. यही वजह है कि, शादी तय होते ही मोहिना ने अपने एक्टिंग के करियर को टाट-बाय बाय बोल दिया था. मोहिना के इस फैसले से साफ है कि, शादी के बाद वह अपना समय परिवार को ही देना चाहती हैं.

यहां होगी मोहिना की शादी

मोहिना कुमारी अपनी शादी की रस्मों में जुटी हुई हैं. मोहिना दुल्हन बनने जा रही हैं खबरों की मानें तो मोहिना हरिद्वार में सुयश के साथ सात फेरे लेने जा रही हैं. यही वजह है कि, हरिद्वार के बैरागी कैंप में शादी के समारोह के लिए एक विशाल भव्य मंडप तैयार किया गया है.

नायरा-कार्तिक रहे नदारद

 

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Yeh Rishta “PA” Kehlata hai !!! ??? @rakshandak27 ? @khan_mohsinkhan #sachintyagi #yrkkh

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शो में मोहेना यानी कीर्ति की ननद के रोल में नजर आने वाली शिवांगी जोशी और मोहसिन खान मेहंदी सेरेमनी से गायब नजर आए, जबकि शो के जरिए शिवांगी और मोहेना की खास बौंडिंग है.

बता दें, शो में इन दिनों इमोशनल सीन के चलते शो के ज्यादातर सितारे मोहिना की मेहंदी सेरेमनी से नदारद नजर आए. वहीं अब देखना है कि क्या शादी में भी शो के सितारे गायब रहते हैं या नही.

फाल के बाद: भाग-1

स्कूल बस से उतरते ही नेहल की नजर आसपास खड़े पेड़ों पर गई. पतझड़ का मौसम आ चुका है. पत्तों के बिना पेड़ कितने उदास और अकेले लगते हैं. ठीक वैसे ही जैसे मम्मी के मरने के बाद नई जूलियन मौम, पापा और छोटी बहन स्नेहा के होने के बावजूद, घर बेहद सूना और उदास लगता है.

जूलियन मौम के आते ही 8 वर्ष की नेहल, अचानक बड़ी बना दी गई. हर बात में उसे जताया जाता कि वह बड़ी हो गई है. शी इज नो मोर ए बेबी. 4 साल की स्नेहा की तो वह मां ही बन गई है. पहली बार स्नेहा को शावर देती नेहल के आंसू शावर के पानी के साथ बह रहे थे. मम्मी जब दोनों बहनों को टब में बबल बाथ देती थीं तो कितना मजा आता था. पूरी तरह से भीगी नेहल को देख, जूलियन मौम ने डांट लगाई, ‘‘सिली गर्ल, इतनी बड़ी हो गई, छोटी बहन को ढंग से शावर भी नहीं दे सकती. तुम्हारी मम्मी ने तुम्हें कुछ नहीं सिखाया है. इन फैक्ट, स्नेहा को भी खुद बाथ लेना चाहिए.’’

मम्मी के नाम पर नेहल की आंखें फिर बरसने लगीं.

‘‘डोंट बिहेव लाइक ए चाइल्ड. गो टु योर रूम एंड क्राई देयर,’’ जूलियन मौम ने झिड़का था.

नियमानुसार 12 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को घर में अकेले नहीं छोड़ा जा सकता. जूलियन मौम से उन की बार की नौकरी छोड़ने के लिए पापा ने रिक्वेस्ट की थी. पापा को अच्छा वेतन मिलता था. नौकरी छोड़ कर जूलियन ने पापा पर एहसान किया था. फें्रड््स के साथ दिन बिता कर घर जरूर आ जातीं, पर नेहल के स्कूल से लौटने का वक्त, उन के आराम का होता. उन के आराम में खलल न पड़े, इसलिए नेहल को घर की चाबी थमा दी गई. उसे सख्त हिदायत थी कि वह बिना शोर किए घर में आए और जूलियन मौम को परेशान न करे.

अकसर नेहल को रोता देख कर स्नेहा भी रो पड़ती थी. अचानक नेहल चैतन्य हो जाती… सोचती, प्यार करने वाली मम्मी अब नहीं हैं तो क्या वह तो स्नेहा को मां जैसा प्यार दे सकती है. आंसू पोंछ नेहल जबरन हंस देती.

घर का बंद दरवाजा खोलती नेहल को याद आता, मम्मी उसे लेने बस स्टैंड आती थीं. कई कोशिशों के बावजूद मम्मी कार ड्राइव नहीं कर पाईं. मजबूरी में नेहल को स्कूल बस से आना पड़ता. मम्मी अपनी इस कमी के लिए दुखी होतीं. काश, वह अपनी बेटियों को खुद कार से ला पातीं. ड्राइविंग के प्रति उन के मन का भय कभी नहीं छूट पाया.

स्कूल से लौटी नेहल को मम्मी हमेशा उस का मनपसंद स्नैक कितने प्यार से खिलाती थीं. स्नेहा तो उन की गोद में बैठ कर ही खाना खाती. पनीली आंखों से ब्रेड और जैम गले से उतारती नेहल को याद आया कि आज स्नेहा की छुट्टी जल्दी होती है. अधखाई ब्रेड किचन ट्रैश में डाल, नेहल बस स्टैंड तक दौड़ती गई. अगर वह वक्त पर नहीं पहुंची तो बस से उतरी स्नेहा कितनी डर जाएगी. मम्मी कहा करती थीं, ‘यह अजनबी देश है. यहां कभी भी कोई हादसा हो सकता है. बस स्टैंड से घर के सूने रास्ते में भी कोई दुर्घटना हो सकती है.’

पहली बार अकेले घर तक आनेजाने में नेहल को सचमुच डर लगा था, पर छोटी बहन को बस स्टैंड तक पहुंचाने और लाने के दायित्व ने उस का डर दूर कर दिया.

पापा के साथ भारत से आते समय मम्मी कितनी उत्साहित थीं. नए घर को सजाती, गुनगुनाती मम्मी के साथ घर में खुशी का संगीत बिखर जाता. नन्हेनन्हे हाथों से मम्मी की मदद करती 4 वर्ष की नेहल का मुंह चूमते मम्मी थकती नहीं थीं. एक दिन पापा ने मम्मी को समझाया, ‘कभी भी कोई जरूरत हो, खतरा हो, फोन पर 911 डायल कर देना. तुरंत पुलिस मदद को आ जाएगी.’

पापामम्मी के साथ नेहल और स्नेहा डिजनीलैंड गई थीं. डिजनीलैंड की सैर करतीं राजकुमारियों के परिधान में सजीं नेहल और स्नेहा की सिंडरेला, एरियल और बेल के साथ पापा ने ढेर सारी फोटो ली थीं. उन चित्रों में नेहल और स्नेहा राजकुमारी जैसी दिखतीं. मम्मी गर्व से कहतीं, ‘मेरी दोनों बेटियां सच में राजकुमारी ही लगती हैं. इन के लिए राजकुमार खोजने होंगे.’

‘अरे, देखना, हमारी राजकुमारियों को लेने खुद राजकुमार दौड़े आएंगे.’

सबकुछ कितना अच्छा था, पर अब तो वह सब सपना ही लगता है.

पापा के प्रमोशन के साथ आफिस की पार्टियां बढ़ गई थीं. कभीकभी पापा बार भी जाने लगे थे. मम्मी देर रात तक उन के इंतजार में जागती रहतीं. इस के बाद ही मम्मी बेहद उदास रहने लगी थीं. मां को रोते देख, नेहल मां से चिपट जाती.

‘मम्मी, तुम रो क्यों रही हो?’

‘कुछ नहीं, आंखों में कुछ चला गया था, बेटी.’

‘तुम्हारी आंखों में हमेशा कुछ क्यों चला जाता है, मम्मी?’

‘अब नहीं जाएगा. आदत पड़ जाएगी.’

मां के इस जवाब से संतुष्ट नेहल, उन के आंसू पोंछ देती.

अब पापा के पास घर के लिए जैसे समय ही नहीं था. नेहल और स्नेहा घर के बाहर जाने को तरस जातीं. अकसर रात में मम्मीपापा की बातें नेहल को जगा देतीं. ऐसी ही एक रात नेहल ने मम्मी को कहते सुना था :

‘मेरा नहीं तो इन बच्चियों का तो खयाल कीजिए. नेहल बड़ी हो रही है. अगर उसे सचाई का पता लगा तो सोचिए, उस पर क्या बीतेगी?’

‘वह आसानी से सचाई स्वीकार कर लेगी. यह अमेरिका है. यहां तलाक बहुत कामन बात है. उस के कई साथियों की सौतेली मां या पिता होंगे.’

‘पर हम तो अमेरिकी नहीं हैं. जरा सोचो, तुम इतने ऊंचे ओहदे पर हो, एक बार में काम करने वाली औरत के साथ संबंध जोड़ना क्या ठीक है?’

‘जूलियन बहुत अच्छी है. हालात की वजह से उसे बार में काम करना पड़ रहा है. उस का पति उसे पैसा कमाने के लिए मजबूर करता है. उस ने वादा किया है कि शादी के बाद वह काम छोड़ देगी.’

‘उस का वादा आप को याद है पर अपना वादा आप भूल गए? हमेशा मेरा साथ निभाने का वादा किया था. इन्हीं बच्चियों पर आप जान देते थे,’ मम्मी का गला रुंध गया.

‘तुम जो चाहो, करने को आजाद हो. मैं अब और साथ नहीं निभा सकता,’ रुखाई से पापा ने कहा.

‘तुम्हारे विश्वास पर ही मैं अपने पापा से रिश्ता तोड़ कर तुम्हारे साथ आई थी. मां तो पहले ही नहीं थीं. अब पापा भी साथ नहीं देंगे,’ बात पूरी करतीकरती मम्मी रो पड़ी थीं.

‘अपना रोनाधोना छोड़ो. तुम्हें हर महीने तुम्हारे खर्च के पैसे मिलते रहेंगे. जूलियन के बिना मैं नहीं जी सकता. उसे अपने पति से तलाक लेने में कुछ समय लगेगा. इस बीच तुम्हारे लिए अपार्टमेंट का इंतजाम कर दूंगा.’

‘नहींनहीं, आप ऐसा मत कहो. इन छोटी बच्चियों के साथ अकेली इस अनजाने देश में जिंदगी कैसे काटूंगी.’

‘वक्त पड़ने पर इनसान और उस की आदतें बदल जाती हैं. तुम भी हालात से एडजस्ट कर लोगी. मुझे और परेशान मत करो. अगर ज्यादा तंग किया तो कल से होटल में शिफ्ट कर जाऊंगा. मुझे नींद आ रही है.’

उस के बाद मम्मी की सिसकियां धीमी पड़ गई थीं.

सुबह मम्मी का उदास चेहरा देख, नेहल जैसे सब जान गई कि मम्मी की आंखों में अकसर कुछ क्यों पड़ जाता है. शंका मिटाने के लिए पूछ बैठी :

‘मम्मी, जूलियन कौन है?’

‘तुझे जूलियन का नाम किस ने बताया, नेहल?’

‘रात को सुना था…’

‘देख नेहल, अगर कभी तेरी मम्मी न रहे तो स्नेहा के साथ अपने नाना के पास भारत चली जाना.’

‘तुम क्यों नहीं रहोगी, मम्मी? हम ने तो नाना को कभी देखा भी नहीं है. हम तुम्हारे साथ रहेंगे,’ नेहल डर गई थी.

‘डर मत, बेटी. मैं कहीं नहीं जाऊंगी,’ डरी हुई नेहल को मां ने सीने से चिपटा लिया.

मम्मी अब अकसर बीमार रहने लगीं. असल में उन के अंदर जीने की इच्छा ही खत्म हो गई थी. डाक्टर को कहते सुना था कि बीमारी से लड़ने के लिए विल पावर का मजबूत होना जरूरी है. आप की पत्नी कोआपरेट नहीं करतीं. उन्होंने तो पहले ही हार मान ली है.

बीमारी की वजह से मम्मी और बच्चियों की मदद के लिए जरीना को बुलाया गया था. विधवा जरीना पाकिस्तान से अपने इकलौते बेटे और बहू के पास हमेशा के लिए रहने आई थीं. बहू जूलियन को सास का हमेशा के लिए आना कतई बरदाश्त नहीं था. बहू की हर बेजा बात जरीना सह जातीं. बहू के साथ बेटा भी पराया हो चुका था, यह बात जल्दी ही उन की समझ में आ गई थी. एक दिन बहू ने साफसाफ कहा, ‘इस देश में कोई मुफ्त की रोटियां नहीं तोड़ता. आप दिन भर बेकार बैठी रहती हैं. किसी के घर खाना पकाने का काम शुरू कर दें तो दिल लग जाएगा. हाथ में चार पैसे भी आ जाएंगे.’

‘क्या मैं मिसरानी का काम करूं? तुम्हारी इज्जत को बट्टा नहीं लग जाएगा?’

‘किसी भी काम को नीची नजर से नहीं देखा जाता. आप के बेटे के बौस की बीवी बीमार हैं. घर में 2 छोटी लड़कियां हैं. आप उन की मदद कर देंगी तो उन पर हमारा एहसान होगा. शायद आप के बेटे को जल्दी प्रमोशन भी मिल जाए.’

जरीना बहू को फटीफटी आंखों से देखती रह गईं. इंजीनियर बेटे की मां दूसरे के घर खाना पकाने का काम करेगी. मां के आंसुओं को नकार, एक सुबह बेटा उन्हें नेहल के घर पहुंचा आया.

संकुचित जरीना को मम्मी ने अपने प्यार और आदर से ऐसा अपनाया कि जरीना को मम्मी के रूप में एक बेहद प्यार करने वाली बेटी मिल गई. मम्मी उन्हें अम्मां पुकारतीं और बेटियों से उन का परिचय नानी कह कर कराया था. जरीना नानी का प्यार पा कर नेहल और स्नेहा खुश रहने लगीं. अच्छीअच्छी कहानियां सुना कर नानी उन का मन बहलातीं. उन की हर फरमाइश पूरी करतीं. मम्मी कहतीं, ‘आप इन्हें बिगाड़ रही हैं, अम्मां. आने वाले समय में जाने इन्हें क्या दिन देखने पड़ें.’

‘ऐसा क्यों कहती हो, बेटी. यह तो मेरी खुशकिस्मती है, जो इन की फरमाइशें पूरी कर पाती हूं. अपने पोते के लिए तो मैं….’ गहरी सांस लेती नानी आंचल से आंसू पोंछ लेतीं.

शायद मम्मी की बीमारी की वजह से पापा ने जूलियन का नाम लेना बंद कर दिया था. नेहल सोचती अगर मम्मी बीमार ही रहें तो शायद पापा जूलियन को भूल जाएं. मम्मी का उदास चेहरा देख, उसे अपने सोच पर गुस्सा आता. काश, मम्मी अच्छी हो जातीं.

अचानक एक रात पापा ने उसे यह कहते हुए उठाया था, ‘तुम्हारी मम्मी को अस्पताल ले जाना है. स्नेहा को भी उठा दो.’

बीमारियों से घिरते बच्चे

महानगरों में वक्त की कमी के कारण मांबाप अपने बच्चों को हरी सब्जियों, फल, दूध, अनाज का भोजन देने के बजाय फास्टफूड की ओर धकेल रहे हैं, जिस के चलते उन के शरीर में न सिर्फ अतिरिक्त चरबी जमा हो रही है, बल्कि वे कई तरह की बीमारियों की चपेट में भी हैं. अपौष्टिक खाना उन के अंदर जहां आलस्य को बढ़ा रहा है, वहीं वे उम्र से पहले ही परिपक्व भी हो रहे हैं. मोटापे या स्थूलता से ग्रस्त बच्चों में पहली समस्या यही है कि वे भावुक और मनोवैज्ञानिक रूप से समस्याग्रस्त हो जाते हैं. उन की सोचनेसमझने की शक्ति क्षीण होती है. वे बहुत ज्यादा कन्फ्यूज्ड रहते हैं.

बच्चों में मोटापा है खतरनाक

बच्चों में मोटापा जीवनभर के लिए खतरनाक विकार भी उत्पन्न कर सकता है, जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, अनिद्रा रोग, कैंसर और अन्य समस्याएं. कुछ अन्य विकारों में यकृत रोग, यौवन आरंभ का जल्दी होना, या लड़कियों में मासिकधर्म का जल्दी शुरू होना, आहार विकार जैसे एनोरेक्सिया और बुलिमिया, त्वचा में संक्रमण और अस्थमा व श्वसन से संबंधित अन्य समस्याएं शामिल हो सकती हैं.

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मौत का रहता है खतरा

अध्ययनों से पता चला है कि अधिक वजन वाले बच्चों में वयस्क होने पर भी अधिक वजन बने रहने की संभावना अधिक होती है. ऐसा भी पाया गया है कि किशोरावस्था के दौरान स्थूलता वयस्क अवस्था में मृत्युदर को बढ़ाती है. मोटे बच्चों को अकसर उन के साथी चिढ़ाते हैं. ऐसे कुछ बच्चों के साथ तो खुद उन के परिवार के लोगों द्वारा भेदभाव किया जाता है. इस से उन के आत्मविश्वास में कमी आती है. सो, वे अपने आत्मसम्मान को कम महसूस करते हैं और अवसाद से ग्रस्त भी हो जाते हैं.

वर्ष 2008 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि स्थूलता से पीडि़त बच्चों में कैरोटिड धमनियां समय से पहले इतनी विकसित हो जाती हैं जितनी कि 30 वर्ष की उम्र में विकसित होनी चाहिए. साथ ही, उन में कोलैस्ट्रौल का स्तर भी असामान्य होता है. ये हृदय संबंधी रोगों के कारक हैं. कैलोरीयुक्त पेय और खाद्य पदार्थ बच्चों को आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं. चीनी से भरी हुई सौफ्टड्रिंक्स का उपभोग बच्चों में मोटापे में बहुत अधिक योगदान देता है. 19 महीने तक 548 बच्चों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि प्रतिदिन 600 मिलीग्राम सौफ्टड्रिंक पीने से स्थूलता की संभावना 1.6 गुना तक बढ़ जाती है.

फास्टफूड मार्केट का पहला लक्ष्य ही बच्चे हैं

बाजार के लिए बच्चे सब से बड़े उपभोक्ता हैं. फास्टफूड मार्केट का पहला लक्ष्य ही बच्चे हैं. इस बाजार को बच्चों की सेहत से कोई लेनादेना नहीं है. उसे सिर्फ अपने उत्पाद की बिक्री से मतलब है. अत्यधिक कैलोरीयुक्त स्नैक्स आज बच्चों को हर जगह आसानी से उपलब्ध हैं. युवा फास्टफूड रैस्तरां में भोजन करना बहुत पसंद करते हैं. अध्ययन में पाया गया है कि 7वीं से 12वीं कक्षा के 75 प्रतिशत स्टूडैंट्स फास्टफूड खाते हैं.

फास्टफूड बढ़ाता है मोटापा

फास्टफूड उद्योग बच्चों में मोटापे को बढ़ाने में सब से ज्यादा योगदान दे रहा है. अकेले मैकडोनल्ड्स की 13 वैबसाइटें हैं जिन्हें हर महीने 3,65,000 बच्चे और 2,94,000 किशोर देखते हैं. यह उद्योग लगभग 42 बिलियन डौलर विज्ञापन पर खर्च करता है, जिस में छोटे बच्चों को मुख्यरूप से लक्ष्य बनाया जाता है. इस के अतिरिक्त, फास्टफूड रैस्तरां बच्चों को भोजन के साथ खिलौने देते हैं, जो बच्चों को लुभाने में मदद करता है. 40 प्रतिशत बच्चे लगभग रोज अपने मातापिता से फास्टफूड रैस्तरां ले जाने के लिए कहते हैं. फास्टफूड रैस्तरां में मिलने वाले 3,000 लोकप्रिय व्यंजनों में से केवल 13 व्यंजन ऐसे हैं जो छोटे बच्चों के लिए पोषण संबंधी दिशानिर्देशों का अनुपालन करते हैं, यह स्थिति को बदतर बनाने के लिए काफी है. फास्टफूड के उपभोग और मोटापे के बीच सीधा संबंध है.

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घातक स्थिति की ओर

एक अध्ययन में पाया गया कि स्कूल के पास फास्टफूड रैस्तरां का होना बच्चों में स्थूलता के जोखिम को बढ़ाता है. बाल्यकाल स्थूलता एक ऐसी स्थिति है जिस में शरीर में उपस्थित अतिरिक्त वसा बच्चे के स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है. बच्चों में मोटापा एक महामारी की तरह आज दुनिया के कई देशों में फैलता जा रहा है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, दुनियाभर में करीब 2 करोड़ 20 लाख बच्चों का वजन बहुत ज्यादा है, जिन की उम्र 5 साल से भी कम है. अमेरिका में पिछले 3 दशकों में 6 से 11 साल के मोटे बच्चों की गिनती तीनगुना बढ़ी है. विकासशील देशों में भी यह समस्या जोर पकड़ रही है.

कुपोषण से ज्यादा मोटापे के शिकार बच्चे

अंतर्राट्रीय मोटापा कार्य समिति (इंटरनैशनल ओबेसिटी टास्क फोर्स) के मुताबिक, अफ्रीका के कुछ इलाकों में बच्चे कुपोषण से ज्यादा मोटापे का शिकार हैं. वर्ष 2007 के बाद से मैक्सिको में मोटे बच्चों की गिनती इतनी बढ़ गई है कि इस मामले में यह देश अमेरिका के बाद विश्व में दूसरे नंबर पर पहुंच गया है. मैक्सिको शहर में 70 प्रतिशत बच्चों और जवानों का या तो वजन ज्यादा है या वे मोटापे से जूझ रहे हैं. बाल शल्यचिकित्सक फ्रांसिस्को गान्सालेस खबरदार करते हैं, ‘‘यह ऐसी पहली पीढ़ी होगी, जो मोटापे से होने वाली बीमारियों की वजह से अपने मांबाप से पहले मौत के मुंह में जा सकती है.’’

मोटापे के कारण होती हैं ये बीमारियां

मोटापे के कारण बच्चों में हाई ब्लडप्रैशर जोर पकड़ रहा है. अगर इसे काबू नहीं किया जा सका तो दिल की खतरनाक बीमारियां उन को जकड़ लेंगी. बचपन में मोटापे के शिकार लोगों के लिए युवावस्था में डायबिटीज होने का खतरा कई गुना ज्यादा रहता है. इस के अलावा इन बच्चों का मानसिक विकास प्रभावित होता है यानी उन में मानसिक बीमारियों का जोखिम कहीं अधिक होता है.

लापरवाही है जिम्मेदार

इंडियन जर्नल औफ एंडोक्राइनोलौजी ऐंड मेटाबोलिज्म के मुताबिक, भारतीय बच्चों में मोटापे की समस्या तेजी से बढ़ रही है. भारत में 20 प्रतिशत स्कूली बच्चे मोटापाग्रस्त हैं. मोटापा बढ़ने के पीछे जानेअनजाने में हमारी ही लापरवाहियां और सुस्ती जिम्मेदार हैं. हम चाहें तो ऐक्सरसाइज और पौष्टिक खाने को तवज्जुह दे कर अपनी और अपने बच्चों की फूड हैबिट्स को सुधार सकते हैं.

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फेस्टिवल स्पेशल: ऐसे चमकाएं घर के पुराने फर्नीचर

फेस्टिवल में घर की सफाई जरूरी होती है, जिसमें किचन, कपड़े और कईं चीजों की सफाई करनी पड़ती हैं. वहीं अगर फर्नीचर की बात करें तो ये घर की सफाई के लिए सबसे जरूरी काम होता है. फर्नीचर अगर साफ हो तो घर को एक नया लुक मिलता है. इसीलिए आज हम आपको कैसे फेस्टिवल में घर के फर्नीचर की क्लीनिंग करें और साथ ही कैसे घर को नया लुक दें…

1. लैदर फर्नीचर को इस तरह चमकाएं

लैदर फर्नीचर दिखने में जितना अच्छा लगता है, उस की देखभाल करना उतना ही कठिन होता है. खास बात यह है कि लैदर फर्नीचर की उचित देखभाल न करने से वह जगहजगह से क्रैक हो जाता है.

फर्नीचर पर किसी तरह का तरल पदार्थ गिर जाए तो उसे तुरंत साफ कर दें क्योंकि लैदर पर किसी भी चीज का दाग चढ़ते देर नहीं लगती. यहां तक कि पानी की 2 बूंद से भी लैदर पर सफेद निशान बन जाते हैं. फर्नीचर को किसी भी तरह के तेल के संपर्क में न आने दें, क्योंकि इस से फर्नीचर की चमक तो खत्म होती ही है, साथ ही उस में दरारें भी पड़ने लगती हैं.

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फर्नीचर की रोज डस्टिंग करें जिस से वह लंबे समय तक सहीसलामत रहे. फर्नीचर को सूर्य की रोशनी और एअरकंडीशनर से दूर रखें. इस से फर्नीचर फेडिंग और क्रैकिंग से बचा रहेगा. फर्नीचर को कभी भी बेबी वाइप्स से साफ न करें, इस से उस की चमक चली जाती है.

2. वुडन फर्नीचर की सफाई में न करें लापरवाही

वुडन फर्नीचर की साफ-सफाई में अकसर लोग लापरवाही बरतते हैं जिस से वह खराब हो जाता है. ध्यान से फर्नीचर की सफाई की जाए तो उस में नई सी चमक आ जाती है. महीने में एक बार अगर नीबू के रस से फर्नीचर की सफाई की जाए तो उस में नई चमक आ जाती है. पुराने फर्नीचर को आप मिनरल औयल से पेंट कर के भी नया बना सकते हैं और अगर चाहें तो पानी में हलका सा बरतन धोने वाला साबुन मिला कर उस से फर्नीचर को साफ कर सकते हैं.

लकड़ी के फर्नीचर में अकसर वैक्स जम जाता है जिसे साफ करने के लिए सब से अच्छा विकल्प है कि उसे स्टील के स्क्रबर से रगड़ें और मुलायम कपड़े से पोंछ दें. कई बार बच्चे लकड़ी पर के्रयोन कलर्स लगा देते हैं. इन रंगों का वैक्स तो स्टील के स्क्रबर से रगड़ने से मिट जाता है लेकिन रंग नहीं जाता. ऐसे में बाजार में उपलब्ध ड्राई लौंडरी स्टार्च को पानी में मिला कर पेंटब्रश से दाग लगे हुए स्थान पर लगाएं और सूखने के बाद गीले कपड़े से पोंछ दें.

3. माइक्रोफाइबर फर्नीचर की सफाई से पहले पढ़ें नियम

माइक्रोफाइबर फर्नीचर को साफ करने से पहले उस पर लगे देखभाल के नियमों के टैग को देखना बेहद जरूरी है. क्योंकि कुछ टैग्स पर डब्लू लिखा होता है. अगर टैग पर डब्लू लिखा है तो इस का मतलब है कि उसे पानी से साफ किया जा सकता है और जिस पर नहीं लिखा है उस का मतलब है कि अगर फर्नीचर को पानी से धोया गया तो उस पर पानी का दाग पड़ सकता है. सब से सौफ्ट ब्रश से माइक्रोफाइबर फर्नीचर की पहले डस्टिंग करें.

इस के बाद ठंडे पानी में साबुन घोलें और तौलिए से फर्नीचर की सफाई करें. ध्यान रखें कि तौलिए को अच्छे से निचोड़ कर ही फर्नीचर की सफाई करें ताकि ज्यादा पानी से फर्नीचर गीला न हो. तौलिए से पोंछने के बाद तुरंत साफ किए गए स्थान को हेयरड्रायर से सुखा दें.सुखाने के बाद उस स्थान पर हलका ब्रश चलाएं ताकि वह पहली जैसी स्थिति में आ सके.बेकिंग सोडा में पानी मिला कर गाढ़ा सा घोल बना लें. अब इस घोल को दाग लगे हुए स्थान पर लगा कर कुछ देर के लिए छोड़ दें. फिर उसे हलके से पोंछ दें.फर्नीचर पर लगे दाग को पानी से साफ करने के स्थान पर बेबी वाइप्स से साफ करें. ध्यान रखें कि दाग लगे स्थान को ज्यादा रगड़ें नहीं.

अगर फर्नीचर पर ग्रीस जैसा जिद्दी दाग लग जाए तो उसे हटाने के लिए बरतन धोने वाला साबुन और पानी का घोल बनाएं और दाग वाले स्थान पर स्प्रे करें. कुछ देर बाद गीले कपडे़ से उस स्थान को पोंछ दें.

4. प्लास्टिक फर्नीचर भी सजा सकता है आपका घर

अक्सर देखा गया है कि जब बात प्लास्टिक के फर्नीचर को साफ करने की आती है तो उसे या तो स्टोररूम का रास्ता दिखा दिया जाता है या फिर कबाड़ में बेच दिया जाता है. लेकिन वास्तव में अगर प्लास्टिक के फर्नीचर की सही तरह से सफाई की जाए तो उसे भी चमकाया जा सकता है. ब्लीच और पानी बराबरबराबर मिला कर एक बोतल में भर लें और फर्नीचर पर लगे दागों पर स्प्रे करें. स्प्रे करने के बाद फर्नीचर को 5 से 10 मिनट के लिए धूप में रख दें.

ट्यूब और टाइल क्लीनर से भी प्लास्टिक का फर्नीचर चमकाया जा सकता है. इस के लिए ज्यादा कुछ नहीं, बस दाग लगी जगह पर स्प्रे कर के 5 मिनट बाद पानी से धो दें. दाग साफ हो जाएंगे.

बरतन धोने वाला डिटरजैंट भी प्लास्टिक के फर्नीचर में लगे दाग को छुड़ाने में सहायक होता है. इस के लिए 1:4 के अनुपात में डिटरजैंट और पानी का घोल बना लें. इस घोल को फर्नीचर पर स्प्रे कर के 5 से 10 मिनट के लिए छोड़ दें. इस के बाद कपड़े से फर्नीचर को पोंछें. नई चमक आ जाएगी.

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प्लास्टिक पर लगे हलके दागों को बेकिंग सोडा से भी धोया जा सकता है. इस के लिए स्पंज को बेकिंग सोडा में डिप कर के दाग वाली जगह पर गोलाई में रगड़ें. दाग हलका हो जाएगा.

नौन जैल टूथपेस्ट से प्लास्टिक फर्नीचर पर पड़े स्क्रैच मार्क्स हटाए जा सकते हैं.

यह सच है कि घर की रंगाई-पुताई तब तक अधूरी ही लगती है जब तक घर के फर्नीचर साफसुथरे न दिखें. उपरोक्त तरीकों से घर के सभी प्रकार के फर्नीचर को चमका लिया जाए तो दीवाली की खुशियों का मजा कहीं ज्यादा हो जाएगा.

खुल कर जीना है तो लिपस्टिक लगाएं

किसी देश की अर्थव्यवस्था अच्छी चल रही है या नहीं  यह लिपस्टिक के ब्रैंडों की बिक्री से पता चल सकता है. अगर बिक्री बढ़ रही हो तो अर्थ है कि लोगों के पास पैसा है और वे लिपस्टिक जैसी लग्जरी चीज पर खर्च कर सकते हैं. देश में सबकुछ ठीकठाक है यह दर्शाने के लिए कुछ भक्त अर्थशास्त्री कह रहे हैं कि भारत में अच्छे ब्रैंडों की कलर लिपस्टिक की बिक्री बढ़ रही है और इस का मतलब है कि बेकारी, मंदी, कर्जों की बात केवल विपक्षी दुष्प्रचार है.

असलीयत यह है कि देश में लिपस्टिक ही नहीं अंडरवियर भी बिकेंगे और खूब बिकेंगे, चाहे अर्थव्यवस्था कैसी क्यों न हो. इस का कारण है कि देश में एक बहुत बड़ी संख्या में लड़कियां अब प्राइमरी स्कूलों से सीनियर स्कूलों में जा रही हैं जहां वे अपने आत्मविश्वास और अपनी ब्यूटी को दिखाने के लिए लिपस्टिक को पहली और सस्ती जरूरत मानती हैं.

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लिपस्टिक लगाई लड़की का व्यक्तित्व अलग होता है. होंठों पर कुछ पैसों की लगी लिपस्टिक बताती है कि लड़की वर्जनाओं और जंजीरों से मुक्त है. बहुत सी लड़कियां लिपस्टिक छिपा कर रखती हैं और घर में घुसने से पहले पोंछ लेती हैं पर बाहर निकलते ही फिर लगा लेती हैं.

लिपस्टिक क्यों और कैसे औरतों का रंगरूप बदल देती है यह तो समाजशास्त्रियों को ढूंढ़ना होगा पर इतना स्पष्ट है कि इस की आजादी मूलभूत है. सदियों से धर्म, रीतिरिवाजों, घरों की दीवारों, परंपराओं में कैद लड़कियों को लिपस्टिक के अधिकार को हरगिज नहीं खोना चाहिए और तरहतरह के रंगों की लिपस्टिक इस्तेमाल कर अपने वजूद को बनाए रखना चाहिए. यह सस्तेपन की निशानी नहीं है, स्वतंत्रता की निशानी है.

स्वतंत्रता जो आज लड़कियों को मिली है बड़ी मुश्किल से आई है और सिर्फ आर्थिक संकट के चलते इसे निछावर नहीं करना चाहिए. एक फैशनेबल ड्रैस, सैंडल, हेयरडू, ब्यूटीपार्लर की विजिट से साधारण छिपाई जा सके लिपस्टिक बहुत महत्त्व की है और देश की अर्थव्यवस्था का इस से कुछ लेनादेना नहीं. यह तो सामाजिक व्यवस्था की निशानी है. जम कर लगाएं, दूसरों को जला कर राख करिए.

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