गरमियों में बनाएं चटपटा और टेस्टी आम पन्ना

गरमियों में सबसे ज्यादा आम बिकता है, पर अक्सर आम को या तो काटकर खाते हैं या मैंगों शेक बनाकर पीते हैं. पर आज हम आपको गरमी में आम की चटपटी और हेल्दी ड्रिंक आम पन्ना की रेसिपी के बारे में बताएंगे…

सामग्री

कच्चे आम– 3

शक्कर – 150 ग्राम,

पुदीना पत्ती – 1/2 कप पत्तियां

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भुना जीरा पाउडर – 02 छोटे चम्मच

काला नमक – 02 छोटे चम्मच

काली मिर्च पाउडर – 1/4 छोटा चम्मच

बनाने का तरीका

-पहले आम को छील कर धो लें. इसके बाद आमों को बीच से काट कर गुठली अलग कर दें. अब आम के गूदे को एक कप पानी के साथ किसी बर्तन में रख कर उबाल लें.

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-उबले हुए गूदे को शक्कर, काला नमक और पुदीना के साथ मिक्सर में डालें और महीन पीस लें. पिसे हुए मिश्रण को छान लें और एक लीटर पानी में मिला दें. साथ ही उसमें काली मिर्च और भुना हुआ जीरा पाउडर भी डाल दें.

– अब इसे सर्विंग गिलास में निकालें और बर्फ के टुकड़ों के साथ सर्व करें.

अब औडियंस को चाहिए एंटरटेनमेंट के साथ अच्छी स्टोरी- माधुरी

शादी के बाद फिल्मों से दूरी बनाने वाली ‘धक धक गर्ल’ के नाम से मशहूर बौलीवुड दिवा माधुरी दीक्षित ने 2013 में फिल्म ‘बांबे टौकीज’ से दोबारा एक्टिंग करियर में कदम रखा. लेकिन इस बार माधुरी ने सिर्फ एक्टिंग में ही नही डांस के क्षेत्र में भी अपना हाथ आजमाया है. इसी के चलते अपनी वेब साइट के जरिए लोगों को डांस की ट्रेनिंग भी देनी शुरू की. वहीं उन्होने मराठी फिल्म ‘15 अगस्त’ का निर्माण भी किया. साथ ही समाज सेवा से भी जुड़ी हुई हैं. इन दिनों वह 17 अप्रैल को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘कलंक’ को लेकर चर्चा में हैं. जिसमें वह संजय दत्त के साथ 21 वर्ष बाद नजर आएंगी. पेश है उनके साथ हुई मुलाकात के कुछ अंश…

आपके अनुसार सिनेमा कहां से कहां पहुंचा?

-जब मैने अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था, उन दिनों ज्यादातर बिजनेस सिनेमा ही बन रहा था. पर उस वक्त भी शबाना आजमी, स्मिता पाटिल जैसी अभिनेत्रियां अलग तरह का सिनेमा कर रही थीं, जिसे आर्ट सिनेमा की संज्ञा दी जा रही थी. पर बड़े स्टार केवल कमर्शियल सिनेमा किया करते थे. पर अब सिनेमा में भेदभाव खत्म हो चुका है. आजकल कटेंट प्रधान फिल्में बनने लगी हैं, जहां स्टार वैल्यू के मायने नहीं है. पर यह फिल्में भी मनोरंजन प्रधान होने चाहिए, ऐसी दर्शकों की मांग है. दर्शक काफी मैच्योर हो गए हैं. अब सिनेमा सिर्फ सिनेमा है, भाषा अलग हो सकती है. बाकी कोई विभाजन नहीं रहा. आजकल डिजिटल की वजह से लोग पूरे विश्व का सिनेमा देख पा रहे हैं. इस वजह से दर्शक चाहता है कि भारतीय सिनेमा में भी अलग-अलग कंटेंट पर फिल्में बनें.

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हौलीवुड की फिल्में भारतीय भाषाओं में डब होकर रिलीज हो रही हैं, इससे भी दर्शकों की रूचि में परिवर्तन आया?

मुझे लगता है कि बदलती जनरेशन और बदलते समाज के चलते लोगों की सोच बदली है. हमारे देश में पचास प्रतिशत यूथ है. यह यूथ तेजी से बदलाव चाहता है. इसलिए मुझे लगता है कि इस वक्त सिनेमा का जो दौर चल रहा है, वह बहुत अच्छा दौर है.

अब लोगों को वह फिल्में पसंद आ रही हैं,जिनमे मनोरंजन के साथ अलग तरह की कहानियां हों. आप खुद अब किस तरह की फिल्में करना चाहती हैं?

मुझे तो सब तरह की फिल्में करनी हैं. जब मैं फिल्मों में काफी सक्रिय थी, तब मैने ‘तेजाब’ भी की थी, तो वही ‘धारावी’ और ‘मृत्युदंड’ जैसी फिल्में भी की थीं. जब मैने ‘मृत्युदंड’ की थी, तब लोगों ने मुझसे कहा था कि मैं अपने करियर को खत्म करने वाला कदम उठा रही हूं. तब मैने उन सभी को जवाब दिया था कि ऐसा नहीं होगा. मुझे फिल्म की स्क्रिप्ट पसंद है. फिल्मकार कुछ अच्छी बात कह रहे हैं. इस फिल्म से मुझे फायदा ही हुआ था. फिल्म को सफलता मिली थी. एक्ट्रेस के तौर पर मेरी एक अलग पहचान भी उभरी थी. कुछ समय पहले मैने ‘टोटल धमाल’  की थी और अब मैने ‘कलंक’की है. दोनों ही फिल्में काफी अलग हैं. ‘टोटल धमाल’ नाम के अनुरूप मनोरंजन का धमाल थी, जबकि ‘कलंक’ 1940 की पृष्ठभूमि में एक संजीदा व जटिल फिल्म है. ‘कलंक’ में हर तरह के रंग हैं. इसमें मनोरंजन के साथ ही कुछ मुद्दे भी उठाए गए हैं.

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फिल्म कलंक किस तरह के मुद्दों को उठाती है?

-फिल्म ‘कलंक’ में बहुत अलग तरह की प्रेम कहानी है. इसी के साथ यह फिल्म इस बात पर रोशनी डालती है कि आप जो निर्णय लेते हैं, उसका असर सिर्फ आपके उपर नहीं, बल्कि आस-पास के लोगों पर भी पड़ता है. इस वजह से हर इंसान की जिंदगी कैसे बदलती है, कैसे हर किसी की जिंदगी की दिशा बदलती है और किस तरह सभी किरदार एक मोड़ पर आते हैं, सभी की लाइफ कोलाइड होती हैं, वह बहुत रोचक है.

फिल्म कलंक के अपने किरदार के बारे में बताना चाहेंगी?

-मेरा किरदार बहार बेगम का है. एक जमाने में महान अदाकारा रही हैं. मगर फिर कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने अपने आपको अपने घर में ही कैद सा कर लिया. वह ज्यादा बाहर जाती नहीं. वह सारी चीजें अपने दिल में ही रखती हैं. एक ग्रे किरदार है.

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फिल्म कलंक में संजय दत्त के साथ काम करने को लेकर क्या कहेंगी?

-सुखद अहसास रहा. हम दोनों लोगों ने पटकथा के अनुसार काम किया है. हमारे मन में कोई जादू जगाने का मसला नहीं रहा.

आपने मराठी फिल्म बकेट लिस्ट में एक्टिंग की. उसके बाद मराठी की फिल्में मिली?

-कुछ औफर हैं. मगर मैं ‘टोटल धमाल’ और ‘कलंक’ में व्यस्त होने की वजह से ध्यान नही दे पायी. अब 17 अप्रैल के बाद मराठी फिल्मों की स्क्रिप्ट पढ़कर निर्णय लूंगी.

आप समाज सेवा में भी काफी सक्रिय रहती है. आपने यूनीसेफ के साथ मिलकर चाइल्ड वेलफेअर और बाल मजदूरों पर काफी काम किया है. बाल मजदूरी की वजहें आपकी समझ में क्या आयीं?

-गरीबी… जब तक परिवार का हर सदस्य काम नही करेगा, तब तक पैसा कैसे आएगा. मगर परिवार का सदस्य शिक्षित हो, तो उस शिक्षा के चलते उसे अच्छी नौकरी और सैलरी मिलेगी, तब वह अपने बच्चों से बाल मजदूरी करवाने की बजाय उन्हें पढ़ने के लिए भेजेगा. इसलिए इस दिशा में काम करते हुए मैने लोगों को शिक्षा मुहैय्या कराने पर ही ज्यादा जोर दिया.

मैंने औरतों व नवजात शिशुओं, नई-नई मां बनने वाली औरतों के लिए काफी काम किया. ऐसी औरतों के साथ मेरी काफी मुलाकातें और बातचीत भी हुई. मैंने कई गांवों में पाया कि तमाम घरों के अंदर बाथरूम न होने की वजह से लड़कियां व औरतें घर से बाहर लगे पानी के पंप के नीचे बैठकर ही स्नान करती हैं. तब मैने ग्राम पंचायत व अन्य सरकारी महकमे से बात करके उनके घरों में बाथरूम और शौचालय बनवाए. इस दिशा में यूनीसेफ ने भी उनकी मदद की.

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आप अपनी वेब साइट डांस विद माधुरी’’पर लोगों को वीडियो के माध्यम से डांस की शिक्षा देने का काम कर रही हैं. इसमें क्या नया कर रही हैं और किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं?

-हम हर दिन नए-नए वीडियो डाल रहे हैं. इसमें हम हर तरह के डांस की क्लासेस चलाते हैं. हमने क्लासिकल डांस, भारतनाट्यम, वेसटर्न डांस आदि सिखा रही हूं. हम डांस के माध्यम से एकसरसाइज के लिए भी कार्यक्रम बना रहे हैं. जिससे घर में बैठकर औरतें कसरत भी कर सकें. हम तो चाहते है कि वह अपने-अपने वीडियो भी अपलोड करें, यदि वह ऐसा करते हैं, तो इससे उन्हें भी काम करने का मौका मिल सकता है. हमारे वीडियो कार्यक्रम में जो डांस सिखाने वाले डांसर आते हैं, उन्हें भी काम मिल रहा है.

Edited by- Rosy

आखिर क्यों मल्टीस्टारर फिल्में पसंद करते हैं आदित्य रौय कपूर

बौलीवुड एक्टर आदित्य रौय कपूर का करियर काफी हिचकोले लेते हुए आगे बढ़ रहा है. 2017 में रिलीज फिल्म ‘‘ओ के जानू’ ’की असफलता ने उनके करियर पर विराम सा लगा दिया था. लेकिन अब वो 17 अप्रैल को रिलीज हो रही फिल्म ‘‘कलंक’’ के अलावा ‘सड़क 2’ और ‘मलंग’ जैसी मल्टीस्टारर फिल्मों में नजर आएंगे.

‘‘ओके जानू की असफलता का आपके कैरियर पर असर पड़ा?

-देखिए, हर फिल्म का कलाकार के करियर पर असर होता है. ‘ओ के जानू’ को लेकर मैं काफी उत्साहित था. हमें एक फिल्म को बनाने में छह महीने लगते हैं और उसका परिणाम सिर्फ एक दिन में आ जाता है. फिल्म के निर्माण के दौरान हमारा जो अनुभव होता है, वह सदैव हमारे साथ रहता है. फिल्म ‘ओ के जानू’ को आपेक्षित सफलता नहीं मिली, मगर वजह स्पष्ट नहीं हुई. मेरा मानना है कि जब आप समान विचार वालों के साथ काम करते हैं, तो उसका असर अलग होता है. मेरी समझ में आया कि समान विचार वाले सहकलाकार के साथ काम करने का अनुभव अच्छा होता है. ‘ओ के जानू’ में हम सभी ने एक टीम की तरह काम किया था. काम अच्छा हो रहा था, इसलिए हमें काम करने में मजा आ रहा था. पर फिल्म का चलना एक कठिन अनुभव रहा, क्योंकि फिल्म की असफलता की वजह समझ में नहीं आयी. यह विज्ञान तो है नही. फिल्म के असफल होने पर मैने बहुत ज्यादा नहीं सोचा. मेरा मानना है कि हर फिल्म हमें कुछ न कुछ सिखाती है. हर फिल्म कलाकार के सामने एक नई चुनौती लेकर आती है और जब कलाकार उसमें अभिनय करता है, तो उसे खुद के बारे में कुछ नया पता चलता है.

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अब आपको मल्टीस्टारर फिल्मों का ही सहारा मिल रहा है?

-ऐसा आप कह सकते हैं. क्योंकि मुझे मल्टीस्टारर फिल्में ज्यादा उत्साहित करती हैं. मैं मानता हूं कि सोलो हीरो वाली फिल्मों में सारा दारोमदार हमारे कंधों पर होता है. पर इन दिनों दर्शक एक्सपेरीमेंटल फिल्में ज्यादा देखना चाहता है. पर जब मल्टीस्टार कलाकार वाली फिल्म होती है, तो दर्शक ज्यादा मिलते हैं. क्योंकि फिल्म से जुड़े हर कलाकार के फैंस फिल्म देखने आते हैं. 17 अप्रैल को मेरी फिल्म ‘कलंक’ रिलीज हो रही है, जिसमें मेरे साथ वरूण धवन, संजय दत्त, आलिया भट्ट, माधुरी दीक्षित व सोनाक्षी सिन्हा हैं. मैं अनुराग बसु के साथ जो फिल्म कर रहा हूं, उसमें भी मेरे साथ कई दूसरे कलाकार हैं. महेश भट्ट के साथ ‘सड़क 2’ में भी मेरे अलावा आलिया भट्ट, पूजा भट्ट व संजय दत्त हैं. जबकि मोहित सूरी की फिल्म ‘मलंग’ भी मल्टीस्टारर है. ‘मलंग’ में मेरे साथ दिशा पटनी, अनिल कपूर व कुणाल खेमू हैं.

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लेकिन मल्टीस्टारर फिल्मों में आपके किरदार की अहमियत?

-मैं फिल्म चुनते समय अपने किरदार को प्राथमिकता देता हूं. ‘कलंक’ भी मल्टीस्टारर है. इसमें सभी कलाकार मुझसे ज्यादा अनुभवी हैं. मगर फिल्म में आप देखेंगे कि हर कलाकार के किरदार की अहमियत है.

फिल्म कलंक क्या है?

-यह कहानी प्यार और रिश्तों की है. पारिवारिक रिश्तों, शादी व गम सहित कई इमोशन को लेकर एक जटिल फिल्म है. इसके हर किरदार की अपनी एक अलग कहानी है. हर किरदार के साथ आप दर्शक की हैसियत से जुड़ सकते हैं.

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फिल्म कलंक के अपने किरदार पर रोशनी डालेंगे?

-मैने देव चैधरी का किरदार निभाया है, जो कि एक अखबार का प्रधान संपादक है, प्रकाशक है. यह उसका पारिवारिक व्यवसाय है. पढ़ा-लिखा इंसान है. रिश्तों को लेकर ईमानदार और पैशेनेट  है. पर उसकी जिंदगी में जो कुछ घटता है, उन्हें वह रोक नहीं पाता और उसके साथ जो कुछ घट रहा है, उनसे निपटने का प्रयास करता रहता है.

फिल्म ‘‘कलंक’’ में आपके लिए क्या चुनौती रही?

-इस फिल्म में मेरा किरदार काफी चुनौतीपूर्ण रहा. यह एक गंभीर किस्म की फिल्म है. यह देश की आजादी से पहले 1940 के पृष्ठभूमि की कहानी है. उन दिनों हमारे देश में कई तरह के आर्थिक व राजनीतिक उथलपुथल हो रहे थे. मेरे लिए उन सब हालात के बारे में जानना बहुत जरुरी था. क्योंकि जब आप एक किरदार निभा रहे हैं, तो उस वक्त को, राजनीतिक परिस्थितियों को समझना जरूरी था. उस माहौल में जो इंसान रहता था, उसका माइंड सेट क्या होगा, इसे समझना जरुरी था. इस बात को समझे बगैर किरदार को न्याय संगत तरीके से निभाना संभव ही नहीं था. इसके लिए मैने कई किताबें पढ़ीं. इंटरनेट पर भी 1940 के समय की कुछ जानकारी पढ़ी. मेरे लिए यह काफी रोचक अनुभव रहा. बहुत कुछ जानने व समझने का अवसर मिला.

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आपने कौन-कौन सी किताबें पढ़ी?

-जवाहर लाल नेहरु की किताब ‘डिस्कवरी आफ इंडिया’ पढ़ी. यह काफी रोचक किताब है. इसे उन्होंने उस वक्त लिखा था, जब वह तीन चार साल के लिए जेल में बंद थे. यह किताब उस वक्त लिखी गयी थी, जब हमारे देश का भविष्य अनिश्चित था. इस किताब से मुझे उस काल का एक प्रस्पेक्टिव मिला. इसके अलावा शशि थरूर की किताब पोलीटिकल प्लेनेट आफ ए टाइम’. एक किताब ‘इंडियन समर’ है.

1940 के प्यार और रिश्ते, क्या वर्तमान समय में उसी तरह से हैं?

-इसका जवाब देना मुश्किल है. मुझे लगता है कि समय के साथ समाज व देश बदलता है, मगर इंसानी भावनाएं तो वही रहती हैं. एक इंसान का दूसरे इंसान के प्रति अहसास वही हैं. हमारे माता-पिता शादी को जिस नजरिए से देखते थे, शायद हम या हमारी पीढ़ी के लोग उस नजरिए से नहीं देखते हैं. समाज बदलने के साथ माइंड सेट बदलता है. मोबाइल जैसी तकनीक के चलते भी हमारे व सामाजिक व्यवहार में अंतर आया है.

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सोशल मीडिया को कैसे लेते हैं?

-अभी डेढ़-दो महीने पहले ही इंस्टाग्राम पर आया हूं. हर दिन इंस्टाग्राम पर नहीं रहता. सोशल मीडिया की लत नही हेानी चाहिए.

Edited by- Nisha Rai

बेहद मुश्किल था ‘कलंक’ का ‘जफर’ बनना- वरुण धवन

कौमेडी वाली बिजनेस की फिल्मों के साथ-साथ गंभीर फिल्में करने वाले वरुण धवन इन दिनों इटरनल प्यार वाली सीरियस फिल्म ‘कलंक’ को लेकर चर्चा में हैं.17 अप्रैल को रिलीज होने वाली फिल्म ‘कलंक’ के निर्माता करण जौहर और निर्देशक अभिषेक वर्मन हैं. आइए जानते हैं उनसे इस फिल्म के बारे में उनका नजरिया…

फिल्म ‘‘कलंक’’ में किस कलंक की बात की गयी है?

-कलंक कई चीजों के बारे में होता है. कई बार आपके उपर कोई ऐसा धब्बा लगा होता है, जो समाज आप पर लगाता है. कलंक कभी प्यार व मोहब्बत के साथ जोड़ा जाता है कि प्यार करना कलंक है. पर प्यार या मोहब्बत जब होती है, तो फिर आपके ऊपर किसी का असर नहीं होता. फिर लोग चाहे, जो आरोप आप पर लगाएं. फिर चाहे आपको जितनी तौहीन मिले. पर उस वक्त प्यार ही आपकी सबसे बड़ी ताकत होती है.

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 आप फिल्म कलंक को लेकर काफी उत्साहित हैं. यह वह किरदार है, जो कि शाहरुख खान के लिए लिखा गया था?

-आप काफी पुरानी बात कर रहे हैं. यह 15 साल से भी अधिक पुरानी बात है. तब इस फिल्म का निर्माण करण जौहर के पिता स्व. यश जौहर और निर्देशन करण जौहर करने वाले थे. तब फिल्म में सभी दूसरे कलाकार थे. पर कुछ वजहों से यह फिल्म नहीं बनी थी. अब करण जौहर इसे नए सिरे से लेकर आए हैं. इस बार इसका निर्देशन अभिषेक वर्मन ने किया है और फिल्म के सभी कलाकार अलग हैं.

फिल्म कलंक के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?

यह फिल्म 1940 के काल की है. मैने इसमें जफर का किरदार निभाया है, जो कि पेशे से लोहार है. लोहार आग के साथ काम करता है और जफर के अंदर ही बहुत बड़ी आग है. जफर के अंदर जो आग है, वह उसकी परवरिश की वजह से है.

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वह हीरामंडी की सड़कों पर पैदा हुआ है और वह भी 1940 के काल में. यह आजादी से पहले का काल है, उस वक्त पूरा माहौल ही अलग था. कहानी व किरदारों के बर्ताव पर उस वक्त के माहौल का असर जरुर है. यह बहुत ही ज्यादा मर्दाना किरदार है. इससे पहले मैने कभी भी इतना मर्दाना किरदार निभाया नही. यह बहुत ही ज्यादा अग्रेसिव है.

 अब तक आपने जो किरदार निभाए, उनसे जफर कितना अलग है?

 -जफर भी एक लड़का ही है. मगर उसके हालात बहुत अलग हैं. वह जिस माहौल में पैदा और बड़ा हुआ, उसका उस पर असर है. देखिए,परवरिश व माहौल से इंसान की जिंदगी बदल जाती है. दुनिया को देखने का उसका नजरिया बदल जाता है. उसका एटीट्यूड अलग हो जाता है. फिर रूप जैसी लड़की जब जफर की जिंदगी में आती है, तो वह जफर की जिंदगी बदल देती है. रूप उसे बताती है कि जिंदगी में मोहब्बत भी हो सकती है.

जफर के किरदार को निभाना कितना आसान रहा?

-यह काफी जटिल व कठिन किरदार रहा. इसे निभाना शारीरिक और मानसिक रूप से काफी मुश्किल रहा.

आपके घर के अंदर सभी फिल्म से जुड़े लोग हैं. आपके पिता व भाई अच्छे निर्देशक हैं. क्या स्क्रिप्ट के चयन में उसे कोई मदद मिलती है?

-घर के अंदर मैं फिल्मों को लेकर बहुत ज्यादा बात नहीं करता. लेकिन डैड के साथ बहुत बातचीत होती है.

किसी भी किरदार को निभाने में लुक कितनी मदद करता है?

-आपने बहुत अच्छा सवाल पूछा. आंखों में सूरमा लगाने, शरीर में जगह-जगह दाग के निशान, लोहार जब काम करता है, तो आग के छीटें पड़ते रहते हैं, यह सब लगाकर जब मैं सेट पर पहुंचता था, तो मुझे अंदर से लगता था कि मैं लोहार हूं.

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रणवीर सिंह, आयुष्मान खुराना, विक्की कौशल, राज कुमार राव जैसे अपने समकक्ष कलाकारों के बीच खुद को कहां पाते हैं?

-पहली बात तो मैं अपनी तुलना किसी से नहीं करता. मैं किसी भी प्रतिस्पर्धा का हिस्सा नही हूं. विक्की कौशल, आयुष्मान खुराना, राज कुमार राव जैसे कलाकारोंने तो उन निर्देशकों के साथ काम कर सफल फिल्में दीं, जिनके साथ कोई कलाकार काम नहीं करना चाहता था. यह सब इनके अपने हुनर की वजह से ही संभव हुआ. इन फिल्मों में मैं होता, तो शायद यह फिल्में इतनी सफल न होती.

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चर्चा हैं कि आप स्त्री के सीक्वअल में राजकुमार राव की जगह लेने जा रहे हैं?

-गलत खबर है. मेरे पास इस फिल्म का औफर नही आया है.

इसके बाद कौन सी फिल्में आने वाली हैं?

-रेमो डिसूजा की फिल्म ‘स्ट्रीट डांसर’ की है, जिसमें मेरे साथ श्रृद्धा कपूर हैं. अपने पिता के निर्देशन में ‘कुली नंबर वन’ कर रहा हूं, जो कि उनकी 1995 की इसी नाम की फिल्म का एडाप्टशन है. श्रीराम राघवन के साथ भी एक फिल्म करने वाला हूं.

आपने रेमो डिसूजा के साथ ए बी सी डी 2 की थी और स्ट्रीट डांसर तो उसी का सीक्वअल है, तो इस फिल्म की शूटिंग करना आपके लिए काफी सहज रहा होगा?

-जी नहीं!! शारीरिक रूप से यह काफी चुनौतीपूर्ण फिल्म रही. दो दिन के बाद तो मैं थक कर बैठ गया था और रेमो जी से पूछा कि आखिर हो क्या रहा है? आप यह कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि हम एक दिन में सात घंटे डांस कर सकते हैं? पर फिर मुझे अहसास हुआ कि इस फिल्म में उम्र में मुझसे छोटे कई बच्चे और प्रभु देवा सर भी हैं. तब मैने काफी मेहनत की. पहली बार मुझे इस फिल्म के माध्यम से कई नए डांस फौर्म के बारे में जानकारी मिली.

Edited by- Rosy

कहीं बांझपन का कारण न बन जाए मोबाइल

31 साल की कामकाजी महिला नीलम शादी के 3 वर्षों बाद भी बच्चा न होने से घबराई. वह डाक्टर के पास गई. शुरुआती जांच के बाद डाक्टर ने पाया कि सबकुछ ठीक है. सिर्फ औव्यूलेशन सही समय पर नहीं हो रहा है. उस की काउंसलिंग की गई, तो पता चला कि उस के मासिकधर्म का समय ठीक नहीं. इस की वजह जानने पर पता चला कि उस का कैरियर ही उस की इस समस्या की जड़ है. उस की चिंता और मूड स्विंग इतना ज्यादा था कि उसे नौर्मल होने में समय लगा और करीब एक साल के इलाज के बाद वह आईवीएफ द्वारा ही मां बन पाई.

आज की भागदौड़भरी जिंदगी में पूरे दिन का बड़ा भाग इंसान अपने मोबाइल फोन से चिपके हुए बिताता है. खासकर, आज के युवा पूरे दिन डिजिटल वर्ल्ड में व्यस्त रहते हैं. ऐसे में उन की शारीरिक अवस्था धीरेधीरे बिगड़ती जाती है, जिस में फर्टिलिटी की समस्या सब से अधिक दिखाई पड़ रही है.

वर्ल्ड औफ वूमन की फर्टिलिटी ऐक्सपर्ट डा. बंदिता सिन्हा का कहना है, ‘‘डिजिटल वर्ल्ड के आने से इस की लत सब से अधिक युवाओं को लगी है. वे दिनभर मोबाइल पर व्यस्त रहती हैं. 19 से 25 तक की युवतियां कुछ सुनना भी नहीं चाहतीं, मना करने पर वे विद्रोही हो जाती हैं. इस वजह से आज 5 में से एक लड़की को कोई न कोई स्त्रीरोग जनित समस्या है.’’

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mobile phone causing infertility

वे आगे बताती हैं, ‘‘25 साल की लड़की मेरे पास आई जो बहुत परेशान थी, क्योंकि उस का मासिकधर्म रुक चुका था. उसे नींद नहीं आती थी. वह पौलिसिस्टिक ओवेरियन डिजीज की शिकार थी. जिस में उस का वजन बढ़ने के साथसाथ, डिप्रैशन, मूड स्विंग और हार्मोनल समस्या थी. इसे ठीक करने में 2 साल का समय लगा. आज वह एक अच्छी जिंदगी जी रही है. लेकिन यही बीमारी अगर अधिक दिनों तक चलती, तो उसे फर्टिलिटी की समस्या हो सकती थी.’’

यह समस्या केवल महिलाओं में ही नहीं, पुरुषों में भी काफी है. इस बारे में मनिपाल फर्टिलिटी के चेयरमैन और यूरो एंड्रोलौजिस्ट डा. वासन एस एस बताते हैं, ‘‘वैज्ञानिकों ने सालों से इलैक्ट्रोमैग्नेटिक रैडिएशन (ईएमआर) का मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में शोध किया है. यह हमारे आसपास के वातावरण और घरेलू उपकरणों ओवन, टीवी, लैपटौप, मैडिकल ऐक्सरे आदि सभी से कुछ न कुछ मात्रा में आता रहता है. लेकिन इन में सब से खतरनाक है हमारा मोबाइल फोन, जिसे इंसान ने आजकल अपने जीवन का खास अंग बना लिया है.

अध्ययन कहता है कि इलैक्ट्रोमैग्नेटिक के अधिक समय तक शरीर में प्रवेश करने से कैंसर, सिरदर्द और फर्टिलिटी की समस्या सब से अधिक होती है.’’

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गंभीर बीमारी की आहट

डा. वासन आगे बताते हैं, ‘‘ऐसा देखा गया है कि जिन पुरुषों ने अपने से आधे मीटर की दूरी पर सैलफोन रखा, उन के भी स्पर्मकाउंट पहले से कम हुए. इतना ही नहीं, 47 प्रतिशत लोग जिन्होंने मोबाइल फोन को अपनी पैंट की जेब में पूरे दिन रखा, उन का स्पर्मकाउंट अस्वाभाविक रूप से 11 प्रतिशत आम पुरुषों से कम था और यही कमी उन्हें धीरेधीरे इन्फर्टिलिटी की ओर ले जाती है.’’

mobile phone causing infertility

रिसर्च यह भी बताती है कि पूरे विश्व में 14 प्रतिशत मध्यम व उच्च आयवर्ग के कपल, जिन्होंने मोबाइल फोन का लगातार प्रयोग किया है, को गर्भधारण करने में मुश्किल आई. सैलफोन पुरुष और महिला दोनों के लिए समानरूप से घातक है.

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इस के आगे डा. वासन कहते हैं, ‘‘मोबाइल के इस्तेमाल से फर्टिलिटी के कम होने की वजह को ले कर भी कई मत हैं. कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि मोबाइल से निकले इलैक्ट्रोमैग्नेटिक रैडिएशन स्पर्म के चक्र को पूरा करने में बाधित करता है या यह डीएनए को कम कर देता है, जबकि दूसरे मानते हैं कि मोबाइल से निकले रैडिएशन द्वारा उपजी हीट से स्पर्मकाउंट कम होता जाता है. 30 से 40 प्रतिशत फर्टिलिटी के मामलों में अधिकतर पुरुषों में ही पुअर क्वालिटी का स्पर्म देखा गया, जो चिंता का विषय है.’’

आपको भी आती है काम के बीच नींद तो पढ़ें ये खबर

कोई भी व्यक्ति चौबीस घंटे चुस्त नहीं रह सकता है. रात में कम से कम आठ घंटे की नींद शरीर और दिमाग को ऊर्जावान बनाये रखने के लिए नितांत जरूरी है, मगर दिन में काम के दौरान महसूस होने वाली छोटी-छोटी नींद को भी हरगिज नजरअंदाज न करें. ये चंद मिनटों की झपकी शरीर और दिमाग को दुरुस्त रखने के लिए बेहद जरूरी है, जिसे पावर नैप कहते हैं. फ्रेश फील करने के लिए पावर नैप अति आवश्यक है. पावर नैप यानि दिन के वक्त दस मिनट से लेकर आधे घंटे तक की नींद, जो शरीर और दिमाग को कार्य करने के लिए पुन: ताजगी से भर देती है.

अक्सर औफिस में लंच के बाद आलस्य या नींद हावी हो जाती है. ऐसे में कुछ काम करते ही नहीं सूझता. बार-बार आंखें बंद हो जाती हैं. मन करता है कि कोई एकांत कोना मिल जाए जहां कुछ देर की झपकी ले जी जाये. इसी झपकी को वैज्ञानिक पावर नैप कहते हैं, जिसे ले लेना बहुत जरूरी है. इससे आपका काम बिल्कुल भी प्रभावित नहीं होता है, बल्कि पावर नैप लेने के बाद आप दुगनी ऊर्जा के साथ तेजी से अपना काम निपटा सकते हैं.

take a power nap between work

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पावर नैप कितनी देर

आपको फिर से तरोताजा करने वाली पावर नैप जरूरत के अनुसार 10 मिनट, 20 मिनट या फिर एक घंटा तक की हो सकती है. आदर्श पावर नैप बीस मिनट की मानी जाती है. लगातार 7 से 8 घंटे काम करने के बाद कुछ देर के लिए ली गई एक पॉवर नैप आपको दोबारा घंटों के लिए रिचार्ज कर देती है और आप बेहतर तरीके से काम कर पाते हैं. इंसान पूरे दिन में दो बार ऐसा महसूस करता है कि उसे नींद आ रही है. यह मानव शरीर का एक स्वाभाव है. आप चाहे भी तो इसे रोक नहीं सकते हैं. दिन में ली गई एक झपकी वास्तव में पूरी रात की नींद के बराबर आपको एनर्जी देती है. अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार 26 मिनट तक कौकपिट में सोने वाला पायलट बाकी पायलटों की तुलना में  54 प्रतिशत सतर्क और नौकरी के प्रदर्शन में 34 प्रतिशत ज्यादा बेहतर देखा गया है. नासा में नींद के विशेषज्ञों ने नैप के प्रभावों पर शोध करते हुए पाया कि नैप लेने से व्यक्ति के मूड, सतर्कता और प्रदर्शन में काफी सुधार होता है. दस मिनट की झपकी आपको पूरी रात की नींद जैसा फ्रेश महसूस करवा सकती है. आप 10 से 20 मिनट के बीच लिए गए पावर नैप से  बिना सोए रात भर की नींद जैसा फायदा उठा सकते हैं. खास बात यह है कि 10 मिनट की झपकी लेने से मांसपेशियों के बनने से लेकर याद्दाश्त तक मजबूत होने में सहायता मिलती है. दोपहर के वक्त लंच के बाद 20 से 30 मिनट की पावर नैप सबसे अच्छी है, मगर ज्यादा नींद आती हो तो भी एक घंटे से ज्यादा नहीं सोना चाहिए, वरना आपके शरीर की जैविक घड़ी प्रभावित हो जाएगी और रात की नींद में खलल पड़ेगा.

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नैप के लिए शान्त कोना ढूंढें

पावर-नैप से अधिकतम लाभ पाने के लिए, आपको एक शांतिपूर्ण, ठंडी और आरामदायक जगह ढूंढनी चाहिए, जहां दूसरे लोग आपको परेशान न करें. औफिस में कौन्फ्रेंस रूम का कोना हो या कार पार्किंग स्थल, दस से पंद्रह मिनट यहां खामोशी से आंख बंद करके बिताये जा सकते हैं. लगभग 30 प्रतिशत कौरपोरेट औफिस में लंच के बाद एम्प्लौइज को आधा घंटे का वक्त पावर नैप के लिए दिया जाता है. इससे उनके काम की गति और क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है. अगर आप किसी स्कूल-कौलेज में पढ़ाते हैं, तो वहां की लाइब्रेरी इस काम के लिए सबसे बेहतर जगह है, जहां शांति और खाली जगह होती है.

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आप सड़क पर जा रहे हों और आपको झपकी लगी हो तो किसी पार्किंग स्थल पर कार खड़ी करके दस-पन्द्रह मिनट की झपकी ले लेनी चाहिए. अक्सर देखा गया है कि कार ड्राइव करने वाले लोग नींद आने पर तम्बाकू-गुटका आदि का सेवन नींद भगाने के लिए करते हैं, जो सेहत के लिए बहुत खतरनाक है. इससे बेहतर है कि नींद आने पर किसी सेफ जगह पर गाड़ी खड़ी करके झपकी मार ली जाए, इससे नींद तो भागती ही है, शरीर और दिमाग पहले से अधिक ऊर्जा महसूस करने लगते हैं.

कम रोशनी का स्थान चुनें

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पावर नैप लेते वक्त लाइट औफ कर दें. बेहतर हो कि आप कोई अंधेरा कमरा चुनें ताकि आंख बंद करते ही आपको नींद आ जाए. अंधेरा होने से आपकी आंखों की मांसपेशियों को आराम मिलेगा और दिमागी तनाव भी दूर होगा. यदि अंधेरा स्थान उपलब्ध न हो तो आप स्लीप-मास्क या धूप का चश्मा आंखों पर चढ़ा लें और आराम से सो जाएं. इसके अलावा जिस जगह आप पावर नैप लें वह स्थान बहुत गर्म या बहुत ठंडा नहीं होना चाहिए. आपकी नैपिंग आरामदायक हो, इसलिए एक शीतल लेकिन आरामदायक जगह तलाश करिये. ज्यादातर लोग 65 डिग्री फारेनहाइट या 18 डिग्री सेल्सियस के आसपास सबसे अच्छी नींद लेते हैं. यदि आपकी नैपिंग की जगह बहुत ठंडी है, तो एक कंबल रखें या आरामदायक जैकेट साथ रखें, जिसे पहन कर आप आराम महसूस करें. यदि आपकी नैपिंग की जगह बहुत गर्म है तो कमरे में एक पंखा रखने पर विचार करें.

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शांतिदायक संगीत सुनें

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रिलैक्सिंग म्यूजिक आपके दिमाग को सही स्थिति में ला सकता है. यदि आप अपनी कार में पावर नैप ले रहे  हैं, तो कोई हल्का संगीत लगा लें, इससे नींद अच्छी आती है. हल्की आवाज में वौकमैन पर भी हल्का म्यूजिक सुन सकते हैं. सिर्फ इन्ट्रूमेंटल म्यूजिक भी शरीर और दिमाग को तरोताजा करने में कारगर साबित होता है. अगर आप काम की वजह से ज्यादा तनाव में हैं और आंख बंद करने पर भी आपको नींद नहीं आती है तो कुछ मेडिटेशन करें. आंख बंद करके एक से सौ तक गिनती गिनें या कोई मनपसंद गीत गुनगुनाएं. इसके बाद आपको जल्द ही नींद आ जाएगी और जागने पर दिमाग तनावमुक्त महसूस होगा.

नैप की अवधि

आप खुद तय करें कि आप कितनी देर तक नैप लेना चाहते हैं. एक पावर नैप 10 से 30 मिनट के बीच का होना चाहिए. वैसे तो, छोटे और लंबे नैप्स भी विभिन्न लाभ प्रदान कर सकते हैं. आपका शरीर खुद आपको बता देगा कि आपको कितनी देर तक नैप लेनी है. बस उस समय-सीमा का पालन आप हर दिन समान रूप से करें. यदि आपके पास अधिक समय नहीं है, लेकिन आप इतनी नींद में हैं कि आप जो कुछ भी कर रहे हैं, उसे जारी नहीं रख पा रहे हैं, तो दो से पांच मिनट की नैप, जिसे “नैनो-नैप” कहा जाता है, आपको नींद से निपटने में मदद कर सकती है.

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पांच से बीस मिनट के लिए नैप आपकी सतर्कता, स्टैमिना, और मोटर-परफौर्मेंस बढ़ाने के लिए बहुत अच्छी होती है. इन नैप्स को “मिनी-नैप्स” के रूप में जाना जाता है. बीस मिनट की नींद बहुत आदर्श नैप मानी जाती है. एक पावर-नैप, मस्तिष्क को अपने शौर्ट-टर्म मेमोरी में एकत्रित अनावश्यक जानकारी से छुटकारा पाने में भी मदद करती है, और मसल-मेमोरी में भी सुधार लाती है. बीस मिनट की पावर नैप आपके नर्वस सिस्टेम में मौजूद इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स, आपको अधिक आराम किया हुआ और सतर्क महसूस कराने के अलावा, आपके मसल-मेमोरी में शामिल न्यूरौन्स के बीच के संबंध को भी मजबूत करता है, जिससे आपका मस्तिष्क तेजी से और अधिक सटीक तरीके से काम करने लगता है. यदि आप बहुत से महत्वपूर्ण तथ्यों को याद करने की कोशिश कर रहे हैं, उदाहरणस्वरूप किसी परीक्षा के लिए, तो पावर-नैप लेना विशेष रूप से उपयोगी हो सकता है.

पावर नैप से पहले कौफी पियें

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यह बात अजीब लग सकती है क्योंकि कौफी का इस्तेमाल नींद को दूर भगाने के लिए किया जाता है. परन्तु बीस मिनट की पावर नैप लेने से पहले अगर आप कौफी का एक प्याला पी लेते हैं तो यह कौफी आपके शरीर में तुरंत अवशोषित नहीं होती है. कौफी पहले आहार नाल से गुजरती है और फिर शरीर में अवशोषित होने में उसे 45 मिनट का वक्त लगता है. इस दौरान आप बीस-पच्चीस मिनट की पावर नैप ले लें तो जागने के बाद शरीर में मौजूद कौफी आपको और ज्यादा ताजगी से भर देगी और आप दुगनी ऊर्जा के साथ अपने काम का संचालन कर सकते हैं. इस प्रयोग से आप 7 से 8 घंटे तक बिना रुके काम कर सकते हैं.

किचन चमकानेे के 6 खास टिप्स

आप अपना अधिकतर समय अपने किचन को बेहतर बनाने और उसकी साज-सज्जा में बीता देती है. पर सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि किचन को सजाने में आप होम डेकोर की चीजें इस्तेमाल न करें. आइए आज आपको बताते हैं, आप अपने किचन को कैसे सजाएं.

  1. डिज़ाइनर डिनर सेट्स किचन को सजाने में काफी मददगार हैं. ब्रांडेड कंपनियों के सेट इस्तेमाल करें. यदि आपकी किचन का कोई विशेष कलर थीम नहीं है तो दीवारों के कलर से विपरीत कलर के सेट्स लें. इन्हें बेहतरीन तरीके से सजाएं.
  2. आपके किचन में विजिटर्स का ध्यान सबसे ज्यादा किचन वेयर्स पर जाता है जैसे कि कप, प्याले, सौसर और प्लेट्स आदि. सामान्य डिज़ाइन के बजाय इनकी कुछ अनूठी डिज़ाइन लेकर आए और लोगों का ध्यान आकर्षित कर सकती हैं.
  3. स्टोरेज कंटेनर्स ऐसे जार इस्तेमाल ना करें जो कि अन्य चीजों के साथ आते हैं. अलग-अलग आकार और डिज़ाइन के जार काम में लें. इससे किचन ज्यादा व्यवस्थित लगेगा. स्पाइस जार इसका शानदार उदाहरण हैं.

सेंटर टेबल से दें अपने घर को न्यू लुक

  1. हर अच्छी लगने वाली चीज खरीदने के बजाय कोई थीम निर्धारित करें. उस थीम और कलर के अनुसार चीजें खरीदें. इससे कम समय में ही आपका किचन अच्छा लगने लगेगा. अपने किचन को चमकाने का ये एक रचनात्मक तरीका है.
  2. दीवारों का कलर आपका किचन लाइट कलर से ज्यादा आकर्षक लगेगा. इससे जगह ज्यादा लगेगी. यदि आपको लगता है कि दीवारें जल्दी गंदी हो रही हैं तो वाशेबल पेंट का इस्तेमाल करें. यदि आपकी कोई कलर थीम है तो इसके अनुसार प्लान करें.
  3. किचन का फर्नीचर और अलमारियां खरीदने से पहले थोड़ी रिसर्च करें. आपके किचन के अनुसार जो सूट करे वो खरीदें. अलमारी या सन्दूक जो आप खरीदें उसमें सामान रखने की पूरी जगह हो, ताकि किचन बिखरा सा ना लगे. ये किचन को चमकाने का एक क्रिएटिव आइडिया है.

कैसा हो बच्चे का कमरा

गरमी में इन टिप्स से घर पर बनाएं मैंगो आइस्क्रीम

तेज गरमी के साथ फलों का राजा आम की भी खरीददारी बढ़ जाती है. सभी को आम बहुत पसंद आता चाहे वह काटकर खाओ या शेक बनाकर पीयो, लेकिन अगर आम वाली आइस्क्रीम खानी हो तो हम मार्केट से खरीदकर ले आते हैं. इसीलिए आज हम आपको घर पर मैंगो आइस्क्रीम कैसे बनाएं, इसकी रेसिपी बताएंगे. को गरमी में

सामग्री

चार पके हुए आम

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500 ग्राम आइसक्रीम मिक्स

दो गिलास दूध

बनाने का तरीका

– मैंगो आइसक्रीम बनाने के लिए सबसे पहले आमों को धोकर काट लें और उनका गूदा एक बर्तन में निकाल लें.

– आम के गूदे को अच्छी तरह पीस लें.

– इसके बाद मीडियम आंच में एक पैन में दूध डालकर उबालने के लिए रखें.

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– एक उबाल आते ही इसमें आइसक्रीम मिक्स मिलाकर 10 से 15 मिनट तक पकाएं. और आंच बंद कर दें मिश्रण को ठंडा कर लें.

– जब मिश्रण ठंडा हो जाए तो इसमें आम का पेस्ट डालकर मिला लें.

– तैयार पेस्ट को आइसक्रीम जमाने के बर्तन में डालकर फ्रीजर में 2-3 घंटे जमने के लिए रख दें.

– और फिर स्कूप से मैंगो आइसक्रीम का लुत्फ उठाएं और आप चाहें तो मैंगो आइसक्रीम को वनीला आइसक्रीम के साथ भी सर्व कर सकते हैं या खा सकते हैं.

बहार: भाग 3- क्या पति की शराब की लत छुड़ाने में कामयाब हो पाई संगीता

लेखिका- रिचा बर्नवाल

पार्क में आरती ने संगीता को कुछ ऐक्सरसाइजें सिखाईं. लौटने के समय संगीता बहुत खुश थी.

‘‘मम्मी, शादी के बाद से मेरा वजन लगातार बढ़ता जा रहा है. क्या व्यायाम से मैं पतली हो जाऊंगी,’’ आंखों में आशा की चमक ला कर संगीता ने अपनी सास से पूछा.

‘‘इन के अलावा वजन कम करने का और क्या तरीका होगा? पर एक समस्या है,’’ आरती की आंखों में उलझन  के भाव पैदा हुए.

‘‘कैसी समस्या?’’

‘‘सुबह पार्क में आने की.’’

‘‘मैं जल्दी उठ जाया करूंगी.’’

अचानक आरती ताली बजाती हुई बोलीं, ‘‘मैं तुम्हारे ससुर को जोश दिलाती हूं कि वे

रवि को नाश्ते की चीजें बनाना सिखाएं. उन दोनों को रसोई में उलझ कर हम पार्क चली आया करेंगी.’’

‘‘बिलकुल ऐसा ही करेंगे, मम्मी. आम के आम और गुठलियों के दाम. मेरा वजन भी कम होने लगेगा और नाश्ता भी बनाबनाया मिल जाएगा,’’ संगीता प्रसन्न नजर आने लगी.

उधर रसोई में रमाकांत अपने बेटे को समझ रहे थे, ‘‘रवि, मैं ने कुछ चीजें तेरी मां

से बनानी सीखीं क्योंकि अब उस की तबीयत ज्यादा ठीक नहीं रहती. मैं ने देखा है कि तू भी अधिकतर डबलरोटी मक्खन खा कर औफिस जाता है. मैं तुझे ये 5-7 चीजें बनानी सिखा देता हूं. ढंग का नाश्ता घर में बनने लगेगा, तो तेरा और बहू दोनों का फायदा होगा.’’

‘‘पोहा बनाने में आप की सहायता करना मुझे अच्छा लगा, पापा. आप मुझे बाकी की चीजें भी जरूर सिखाना,’’ रवि खुश नजर आ रहा था.

‘‘अब ब्रश कर के आ. फिर हम दोनों साथ बैठ कर नाश्ता करेंगे.’’

‘‘मम्मी और संगीता के आने का इंतजार नहीं करेंगे क्या?’’

‘‘अरे, तेरी बहू जितनी ज्यादा देर घूमे अच्छा है. अपनी मां के साथ उसे रोज पार्क भेज दिया कर. उस का बढ़ता मोटापा उस की सेहत के लिए ठीक नहीं है.’’

रमाकांत की यह सलाह रवि के मन में बैठ गई. उस दिन ही नहीं बल्कि रोज उस ने सुबह उठ कर अपने पिता के मार्गदर्शन में कई नईर् चीजें नाश्ते में बनानी सीखीं.

आरती और संगीता रसोई में आतीं, तो बापबेटा उन्हें फौरन बाहर कर देते. तब आरती अपनी बहू को पार्क में ले जाती.

वहां से सैर और व्यायाम कर के दोनों लौटतीं, तो उन्हें नाश्ता तैयार मिलता. सब बैठ कर नाश्ते की खूबियों व कमियों पर बड़े उत्साह से चर्चा करते. सुबह की शुरुआत अच्छी होने से बाकी का दिन अच्छा गुजरने की संभावना बढ़ जाती.

संगीता अपने सासससुर के आने से अब सचमुच बड़ी प्रसन्न थी. सास के द्वारा काम में मदद करने से उसे बड़ी राहत मिलती. बहुत कुछ नया सीखने को मिला उसे आरती से.

रवि का मन बहुत होता अपने दोस्तों के साथ शराब पीने का, पर हिम्मत नहीं पड़ती. अपनी खराब लत के कारण वह अपने मातापिता को लड़तेझगड़ते नहीं देखना चाहता था.

धीरेधीरे शराब पीने की तलब उठनी बंद हो

गई उस के मन में. उस में आए इस बदलाव के कारण संगीता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

सप्ताहभर तक नियमित रूप से पार्क जाने का परिणाम यह निकला कि संगीता के पेट का माप पूरा 1 इंच कम हो गया. उस ने यह खबर बड़े खुश अंदाज में सब को सुनाई.

‘‘आज पार्टी होगी मेरी बहू की इस सफलता की खुशी में और सारी चीजें संगीता और मैं घर में बनाएंगे,’’ आरती की इस घोषणा का बाकी तीनों ने तालियां बजा कर स्वागत किया.

उस रविवार के दिन के भोजन में मटरपनीर, दहीभल्ले, बैगन का भरता, सलाद, परांठे और मेवों से भरी खीर सबकुछ संगीता और आरती ने मिल कर तैयार किया.

खाना इतना स्वादिष्ठ बना था कि सभी उंगलियां चाटते रह गए. आरती ने इस का बड़ा श्रेय संगीता को दिया, तो वह फूली न समाई.

‘‘मैं कहता हूं कि किसी होटल में क्व2 हजार रुपए खर्च कर के भी ऐसा शानदार खाना नसीब नहीं हो सकता,’’ रवि ने संतुष्टि भरी डकार लेने के बाद घोषणा करी.

‘‘चाहे वह स्वादिष्ठ खाना हो या दिल को गुदगुदाने वाली खुशियां, इन्हें घर से बाहर ढूंढ़ना मूर्खता है,’’ बोलते

हुए आरती की आंखों में अचानक आंसू छलक आए.

‘‘मम्मी, आप की आंखों में आंसू क्यों आए हैं?’’ रवि

ने अपनी मां का कंधा छू कर भावुक लहजे में पूछा.

‘‘हम से कोई गलती हो गई क्या?’’ संगीता एकदम घबरा उठी.

‘‘नहीं, बहू,’’ आरती ने उस का गाल प्यार से थपथपाया, ‘‘सब को एकसाथ इतना खुश देख कर आंखें भर आईं.’’

‘‘यह तो आप दोनों के आने का आशीर्वाद है मम्मी,’’ संगीता ने उन का हाथ पकड़ कर प्यार से अपने गाल पर रख लिया.

रमाकांत ने गहरी सांस छोड़ कर कहा, ‘‘आज शाम को हम वापस जा रहे हैं. शायद इसीलिए पलकें नम हो उठीं.’’

‘‘यों अचानक जाने का फैसला क्यों कर लिया आप ने?’’ रवि ने उलझन भरे स्वर में पूछा.

‘‘नहीं, आप दोनों को मैं बिलकुल नहीं जाने दूंगी,’’ संगीता ने भरे गले से अपने दिल की इच्छा जाहिर करी.

‘‘हम दोनों तो आज के दिन ही लौटने का कार्यक्रम बना कर आए थे, बहू. तेरे जेठजेठानी व दोनों भतीजे बड़ी बेसब्री से हमारी प्रतीक्षा कर रहे हैं,’’ आरती ने मुसकराने की कोशिश करी, पर जब सफल नहीं हुईं तो उन्होंने संगीता को गले लगा लिया.

संगीता एकाएक सुबकने लगी. रवि की आंखों में भी आंसू ?िलमिलाने लगे.

‘‘मम्मीपापा, आप दोनों अभी मत जाइए. मेरे घर में आई खुशियों की बहार कहीं आप

दोनों के जाने से खो न जाए,’’ रवि उदास नजर आने लगा.

रमाकांत ने उस का माथा चूम कर समझया, ‘‘बेटा, अपने घर की

खुशियों, सुखशांति और मन के संतोष के लिए किसी पर भी निर्भर मत रहना. तुम दोनों समझदारी से काम लोगे, तो यह घर हमारे जाने के बाद भी खुशियों से महकता रहेगा.’’

‘‘बस, सदा हमारी एक ही बात याद रखो तुम दोनों,’’ आरती उन दोनों से प्यारभरे स्वर में बोलीं.

‘‘आपसी मनमुटाव से दिलोदिमाग पर बहुत सा कूड़ाकचड़ा जमा हो जाता है. इंसान को प्यार करने व लड़नेझगड़ने दोनों के लिए ऊर्जा खर्चनी पड़ती है. तुम दोनों चाहे लड़ो चाहे प्यार करो, पर सदा ध्यान रखना कि ऊर्जा के बहाव में दिलोदिमाग पर जमा वह कूड़ाकचरा जरूर बह जाए. बीते पलों की यादों को फालतू ढोने से इंसान कभी भी नए और ताजे जीवन का आनंद नहीं ले पाता.’’

रवि और संगीता ने उन की बात बड़े ध्यान से सुनी. जब उन दोनों की नजरें आपस में मिलीं, तो दोनों के दिलों में एकदूसरे के लिए प्र्रेम की ऊंची लहर उठी.

‘‘आप अगली बार आएंगे, तो मुझे पूरी तरह बदला हुआ पाएंगे,’’ संगीता ने फौरन अपने सासससुर से मजबूत स्वर में वादा किया

‘‘हमारी आंखें खोलने के लिए आप दोनों को धन्यवाद,’’ कह रवि ने अपने मातापिता के हाथों को चूमा.

‘‘मिल कर अपने बच्चों का शुभ सोचना हमारी एकमात्र इच्छा है. हमारे लड़नेझगड़ने को तो तुम दोनों नाटक समझना,’’ आरती बोलीं.

आरती के इस बचन को सुना कर रमाकांत रहस्यमयी अंदाज में मुसकराने लगे.

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Video: जब कपिल के शो में वरुण धवन ने बांधे इस एक्टर के जूतों के फीते

हाल ही में टीवी के पौपुलर कामेडी शो द कपिल शर्मा के सेट पर फिल्म कलंक की टीम प्रमोशन के लिए पहुंचीं थी. इस एपिसोड में वरुण धवन, आलिया भट्ट, सोनाक्षी सिन्हा और आदित्य रौय कपूर नजर आए. सेट पर मस्ती भरा माहौल था. इसी बीच कुछ ऐसा हुआ कि सभी हैरान हो गए.

वरुण ने की कृष्णा की मसाज…

सपना बने कृष्णा अभिषेक जब अपना मसाज वाला कौमिक आइटम ले कर आए तो वरुण धवन ने उनकी मसाज की, वह भी ऐसी कि कृष्णा जिंदगीभर याद रखेंगे. इस सब में वरुण के कपड़े खराब हो गए थे इसलिए वे थोड़ी देर के लिए कपड़े बदलने चले गए थे. जब वे वापस आए तो आदित्य ने कहा कि वरुण ने कपड़े बदले हैं तो वे कुछ तो बदलेंगे ही और उन्होंने जूते बदलने का फैसला लिया.

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सेट पर मंगवाए जूते…

सेट पर दूसरे जूते मंगवाए गए. अचंभे की बात तो तब हुई जब सोफे पर बैठे आदित्य के जूते के फीते वरुण ने बांधे. वे जमीन पर बैठे और एक दोस्त की तरह आदित्य को जूता पहनने में मदद की. कपिल शर्मा ने वरुण के इस कदम की खूब सराहना की. ये वीडियो तेजी से वायरल हो रहा है.

Edited by- Nisha Rai

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