मां, जिसे मैं अम्मा कहती हूं. आज जब उन पर लिखने बैठी तो समझ ही नहीं पा रही क्या लिखूं, कहां से शुरुआत करूं. मेरी मां ने स्कूली शिक्षा प्राप्त नहीं की, पर उनका ज्ञान व अनुभव कमाल का है. स्वभाव से अनुशासन-प्रिय व समाज सेवा के लिए तत्पर रहने वाली मेरी अम्मा बेटे-बेटियों में कभी भेद-भाव नही करती हैं. घरेलू कार्य हो या बाहर का वो हम भाई-बहन दोनों से करवाती हैं. घरेलू नुस्खें से लेकर गीता के उपदेश भी उन्हें कंठस्थ याद है. आज मुझे मेरे बचपन का एक वाक्या याद आ गया. जो मैं आपसे शेयर करने जा रही हूं.
उस समय मैं कक्षा पहली में थीं और मैनें एक पेंसिल चुराई थी. जब उनको मालूम पड़ा तो मेरी खूब धुलाई हुई थी और बाद में उस पेंसिल के साथ एक और पेंसिल मैं खुद लौटाने गई थी. अम्मा कहती है कि पहली गलती पर ही रोक लगा दो. अम्मा यह भी कहती हैं कि छोटी गलतियों को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए, अगर छोटी गलती पर ही रोक दें. तो बड़ी गलती होगी ही नही…
पापा के देहांत के बाद अम्मा बिल्कुल अकेली हो गई है पर अब भी वो हमारे सामने कमजोर नहीं पड़ती. आज भी हमें समझाती है कि “चिंता मत कर मैं हूं ना” और इस एक वाक्य से कितनी हिम्मत मिलती है. मैं शब्दों में नही बता सकती. पर आज जब अम्मा को देखती हूं या फोन पर उनकी आवाज सुनती हूं तो लगता है कि बस उनसे लिपटी रहूं.
आज तक कुछ दे ना सकी अपनी मां को ना समय ना साथ. शायद ईश्वर मुझे माफ ना करे पर सच यही है कि मैं भी तड़पती हूं अम्मा, तुम से मिलने को………
स्टार प्लस की फेमस जोड़ियों में से एक सुरभि चंदना और नकुल मेहता (शिवाय और अनिका फेम) सीरियल इश्कबाज से करोड़ों लोगों का दिल जीत चुके हैं. वहीं एक्ट्रेस सुरभि चंदना और नकुल मेहता जितनी अपनी एक्टिंग के लिए मशहूर हैं उतनी ही ह्यूमर के लिए भी टीवी सेलिब्रिटिज और लोगों के बीच सुर्खियां बटोरते रहते हैं. दरअसल, सुरभि चंदना ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर हाल ही में हुए मेट गाला 2019 को लेकर एक फोटो शेयर की है, जिसे देखकर फैंस ही नहीं टीवी सेलेब्स भी अपनी हंसी नहीं रोक पाईं. वहीं सुरभि को देखते हुए उनके को-स्टार नकुल मेहता भी पीछे नहीं रहें. आइए आपको बताते है पूरा मामला…
सुरभि ने केटी पेरी के मेटगाला वाले लुक को किया एडिट
इश्कबाज फेम सुरभि चंदना ने अपने सोशल मीडिया पर केटी पेरी के मेटगाला वाले लुक को एडिट करके उसमें अपनी फोटोज को शेयर किया है. जिसमें केटी पेरी एक झूमर के तौर पर डिजाइन की हुई ड्रेस पहनी थी. वहीं सुरभि की शेयर इन फोटोज पर फैंस ही नहीं सेलेब्स करणवीर बोहरा और मानसी श्रीवास्तव समेत टीवी के कई सितारे ने कमेंट करना शुरू कर दिया, जो वायरल हो गया है.
अपनी औनस्क्रीन पत्नी सुरभि को देखते हुए नकुल मेहता का भी पीछे नही रहे. एक्टर नकुल ने भी हौलीवुड के फेमस आर्टिस्ट और सिंगर जारेड लेटो की फोटोज को अपने फेस के साथ एडिट करके अपने इंस्टाग्राम इकाउंट पर जब वी मेटगाला लिखते हुए शेयर कर दिया. जिस पर लोगों के मजेदार रिएक्शन सामने आ रहें है.
दीपिका और प्रियंका भी बटोर चुके हैं मेटगाला में सुर्खियां
बौलिवुड भी इस इंवेट में हर साल पार्टिसिपेट करता है, इस साल भी मेटगाला में हिस्सा लेने वाली एक्ट्रैस दीपिका और प्रियंका भी इवेंट में अपने लुक को लेकर काफी सुर्खिंया बटोर चुकी हैं.
बता दें, हर साल न्यूयौर्क के मेट्रोपौलिटन म्यूजिम औफ आर्ट में आयोजित होने वाला फैशन की दुनिया का सबसे बड़ा इवेंट मेट गाला है. जिसमें देशभर में मौजूद फैशन, फिल्म और म्यूजिक इंडस्ट्री के आर्टिस्ट पार्टिसिपेट करते है. हर साल इस इवेंट की एक खास थीम होती है. जिसकी सभी एंट्री फीस देते है, जिसे सामाजिक कार्यों में इस्तेमाल किया जाता है.
मेरी मां की दुनिया हम पांच भाई-बहनों और घर की देखभाल तक ही सीमित थी. अभी वो 72 साल की हैं, पर एनर्जी ऐसी की हम लोगों को भी मात दे दें और बहुत धार्मिक प्रवृत्ति वाली, लेकिन अंधविश्वास मे कोई आस्था नहीं. नई चीज सीखने की ललक इतनी कि इस उम्र में भी अपना बैंक का काम या एटीएम से पैसे निकालना हो तो वो खुद ही सब करती हैं. साथ ही और महिलाओं को भी सिखाती हैं. वैसे तो वो सिर्फ 10वीं पास हैं, लेकिन अभी भी कहीं भी अकेले सफर कर सकती हैं.
मैं कुकिंग और लेखन मे रूचि रखती हूं. वो हमेशा मुझे प्रोत्साहित करती हैं और अगर मेरे पास हैं तो साथ भी जाएंगी. मैं शायद हर किसी से अपनी हर बात नहीं कह सकती, पर मां से ऐसे बात होती हैं जैसे सहेली से हो रही हो. मैं सालों से अपनी व्यस्त दिनचर्या में से इतना समय निकाल लेती हूं कि मां से रोज बात कर उनका हालचाल ले लूं.
भगवान से मनाती हूं मां स्वस्थ रहे और लंबी उम्र पाए. बागवानी, टहलना पुराने गाने और समाचारपत्र पढ़ना मां को बहुत पसंद है. मां के साथ मै छोटी बच्ची बन कर जिद्द करके आटे का हलवा और चने दाल की सब्जी बनवाती हूं. जब भी मां के साथ होती हूं तो मेरे मन में ये ख्याल आता है “ऐ मां तेरी सूरत से अलग भगवान कि सूरत क्या होगी…..”
ऐसा बहुत कम ही देखने को मिलता है कि किसी नौन फिल्मी बैकग्राउंड की लड़की को बौलीवुड में धमाकेदार एंट्री करने के साथ ही दो बड़ी फिल्मों के औफर मिल जाएं, और अगर वह पारसी परिवार की है तो हैरानी होना लाजिमी है. एक्ट्रेस तारा सुतारिया के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ, जब बौलीवुड के दिग्गज फिल्मकार करण जौहर ने स्वयं बुलाकर अपनी फिल्म ‘‘स्टूडेंट आफ द ईअर 2’’ में टाइगर श्राफ और अनन्या पांडे के साथ हीरोईन बना दिया. पेश हैं उनसे हुई एक्सक्लूसिव बातचीत की कुछ खास बातें..
अपनी अब तक की जर्नी पर रोशनी डालेंगी?
अब तक मैं डांस और सिंगिग व म्यूजिक के शो करती आयी हूं. पहले मेरी तमन्ना म्यूजिक व सिंगिंग के क्षेत्र में ही करियर बनाना था, पर तकदीर ने मुझे अभिनेत्री बना दिया. सच कह रही हूं. मैंने अपनी जुड़वा बहन पिया सुतारिया के साथ पांच साल की उम्र से डांस व सिंगिग की शिक्षा लेनी शुरू की थी. मैंने बैले डांस, मौडर्न डांस और लैटिन अमरिकन डांस की ट्रेनिंग भारत के अलावा लंदन में भी ली है. मैं टीन एज उम्र से ही भारत के अलावा विदेशों की यात्राएं और म्यूजिक कंसर्ट व डांस परफार्मेंस के शो करती आयी हूं. मेरे शो कई देशो में हो चुके हैं. सिंगिंग व म्यूजिक मेरा पहला प्यार है.
-काश! मैं ऐसा कर पाती. मैंने बहुत कोशिश की,पर गीत लिख नहीं पायी. मैं सिर्फ डांस करती हूं और गाती हूं.
आपने डांस सीखा होगा?
-डांस बैलेट स्कूल भारत व इंग्लैड दोनों जगह हैं. हम दोनों बहनें गर्मियों की छुट्टी में इंग्लैड जाकर बैले डांस सीखते थे. बाकी समय मुंबई में सीखते थे. हमारी परीक्षाएं मुंबई में हो जाया करती थी. यह सिलसिला 13 वर्ष की उम्र से चला आ रहा है. मुंबई में हमने ‘स्कूल औफ क्लासिकल बैलेट एंड वेस्टर्न डांस’ से डांस सीखा. जबकि इंग्लैड में हमने ‘द रौयल अकादमी औफ डांस, यूके’ से डांस की ट्रेनिंग ली.
म्यूजिक की ट्रेनिंग कहां से ली?
-मेरी म्यूजिक की प्रारंभिक शिक्षा मुझे मेरी मां ने दी. वह बहुत अच्छी गायिका हैं. मेरी मां घर पर दूसरे बच्चों को भी म्यूजिक व गायन सिखाती हैं. पर मेरी जो म्यूजिक की गुरू हैं, वह अमेरिका में रहती हैं. हमने उनसे औनलाइन म्यूजिक की शिक्षा ली है.
आपने अपने म्यूजिक के शो@म्यूजिक कंसर्ट कहां कहां किए हैं?
-आप जानते होंगे कि दक्षिण मुंबई में रौयल औपेरा हाउस और एनसीपीए है. इन दोनों जगह मेरे कई म्यूजिकल कंसर्ट हो चुके हैं. मैंने कई सोलो परफारमेंस दी है. हकीकत में मैं छह साल की उम्र से संगीत व डांस की सोलो परफार्मेंस एनसीपीए में देती आ रही हूं. इसके अलावा मैंने जापान के टोक्यो शहर में भी कई म्यूजिक कंसर्ट किए हैं. दुबई व इंग्लैंड में किए हैं. अब 2020 में अमेरिका में म्यूजिक कंसर्ट करने जा रही हूं.
जब आपका म्यूजिक का करियर अच्छा जा रहा था और आपको म्यूजिक व डांस के क्षेत्र में ही करियर बनाना था, तो फिर म्यूजिक को अलविदा कह अभिनय की तरफ मुड़ने के लिए क्यों विवश हुईं?
करण जौहर से मेरी मुलाकात ने मेरा करियर बदल दिया. अन्यथा मेरा मकसद सिंगर बनना ही था. इसीलिए तो मैं म्यूजिक की काफी ट्रेनिंग लेती थी. काफी म्यूजिकल कंसर्ट किया करती थी, लेकिन मेरी डांस और म्यूजिक की परफार्मेस देखकर पिछले तीन वर्षो से मेरी मां के पास तमाम फोन आ रहे थे कि क्या तारा उनकी फिल्म में अभिनय करना चाहेंगी? मां उन्हें मना करती रही. पर एक दिन मेरी मां ने मुझसे कहा, ‘म्यूजिक के अलावा अभिनय भी आपका एक करियर औप्शन हो सकता है.’ उस दिन से यह बात मेरे दिमाग के किसी कोने में कुल बुलाने लगा था. फिर एक दिन करण जौहर से मुलाकात हो गयी. उन्होने मुझे फिल्म ‘स्टूडेंट औफ द ईअर 2’ का औफर दिया, उस वक्त मैं ग्रेज्युएशन की पढ़ाई कर रही थी. मेरी पढ़ाई पूरी होने तक वह रूकने को तैयार थे. पढ़ाई पूरी करते ही मैने ‘स्टूडेंट औफ द ईअर 2’ की शूटिंग पूरी की. इस फिल्म की शूटिंग पूरी होते ही मुझे ‘मरजावां’ मिल गयी. ‘मरजावां’ की शूटिंग पूरी होते ही ‘साजिद नाड़ियादवाला की दक्षिण भारत की फिल्म ‘आर एक्स 100’ की अनाम हिंदी रीमेक फिल्म भी मिल गयी, जिसकी शूटिंग 15 मई के बाद करने वाली हूं.
फिल्म ‘‘स्टूडेंट औफ द ईअर 2’’को लेकर क्या कहेंगी?
यह 2012 की सफल फिल्म ‘स्टूडेंट आफ द ईअर’ की सिक्वअल फिल्म है. जिसमें पहली फिल्म की झलक जरूर नजर आएगी. यह फिल्म प्यार और दोस्ती के बारे में है. कौलेज की जिंदगी के बारे में है. युवाओं को लेकर यह फिल्म बहुत कुछ बात करती है. पर हमारी नयी फिल्म में अलग यह है कि हम इसमें कबड्डी का खेल भी लेकर आ रहे हैं. इस फिल्म में बहुत ही अलग तरह का डांस है. अलग तरह का एक्शन है. एक्शन में भी मार्शल आर्ट का टच है. यह सब पहली वाली फिल्म में नहीं था. इसलिए यह फिल्म पूरी तरह से पहली वाली फिल्म से अलग है. मैं तो यही चाहती हूं कि हमारी फिल्म की तुलना पहली फिल्म से ना की जाए. पहली फिल्म ने आलिया भट्ट, वरूण धवन और सिद्धार्थ मल्होत्रा को स्टार कलाकार बना दिया. यह तीनों कलाकार मेरे लिए बहुत खास हैं. हम चाहते हैं कि हमारी फिल्म भी हमें इसी तरह की पहचान दिलाए.
करण जौहर ने फिल्म का औफर दिया और आपने आंख मूंदकर यह फिल्म कर ली?
इस फिल्म को करने की मुख्य वजह यह रही कि मुझे इसकी स्क्रिप्ट बहुत पसंद आयी. मुझे सिर्फ अपना किरदार ही नहीं,बल्कि फिल्म में टाइगर श्रौफ का रोहण का जो किरदार है,उसने मुझे प्रेरणा दी. मुझे पूरा यकीन है कि फिल्म की रिलीज के बाद रोहन का किरदार हर युवा को प्रेरणा देगा. सच कह रही हूं, इस फिल्म में टाइगर श्रौफ का रोहन का जो किरदार है, वह काफी दिलेर है. काफी इज्जत वाला है. एक युवा होते हुए भी इस तरह का किरदार निभाना बहुत आसान नही कहा जा सकता. रोहन दिलदार भी है. टाइगर की तरह मीठा बोलता भी है.
फिल्म के अपने किरदार पर रोशनी डालेंगी?
हम सभी सेंट टेरीसा कौलेज के स्टूडेंट है. मैनें इसमें मृदूला का किरदार निभाया है, जो कि सेंट टेरीसा कौलेज में एडमिशन अपना नाम बदलकर ‘मिया’ कूल कर लेती है. मिया आज कल की लड़कियों की तरह है. इंडीपेंडेंट और अपनी सोच रखने वाली बहादुर लड़की है. किसी की सुनती नहीं. अपने करियर को लेकर फोकस है, कंपटेटिव है. वह स्टूडेंट औफ द ईअर की ट्रौफी अपने नाम करना चाहती है. मिया फिल्म के अंदर कुछ गलतियां भी करती है, पर वह अपनी गलतियों को पहचान कर उन्हें सुधारती भी है.
तो यह फिल्म कहती है कि हर इंसान को अपनी गलती स्वीकार करनी चाहिए?
-जी हां! निजी जिंदगी में मेरा मानना है कि हर इंसान को गलती करने के बाद उस गलती को स्वीकार करने का साहस दिखाना चाहिए. फिर खुद आगे बढ़कर उस गलती को सुधारने की कोशिश करनी चाहिए. निजी जिंदगी में तो मैं यही करती हूं. फिल्म के अंदर मिया भी ऐसा ही करती है. मिया अपनी गलती को सुधारते हुए अपने अंदर बदलाव लाती हैं.
अब जबकि आपकी फिल्म रिलीज होने जा रही है, क्या कहना चाहेंगी?
-मेरे लिए 2018 का साल बहुत बेहतरीन और यादगार रहा. यह वर्ष मेरी जिंदगी में नई नई उपलब्धियां लेकर आया. फिल्म ‘स्टूडेंट आफ द ईअर 2’ करने के बाद अनन्या पांडे, टाइगर श्रौफ, करण जौहर और निर्देशक पुनीत मल्होत्रा के साथ हमारा जो संबंध बना है, वह कभी न बदले,यही मेरी इच्छा है. मैं ईश्वर की शुक्र गुजार हूं कि ‘स्टूडेंट औफ द ईअर 2’ मेरे करियर की पहली फिल्म है.
इस वर्ष अनन्या पांडे सहित कई फिल्मी संताने भी आ रही हैं. इनके बीच खुद को कहां पाती हैं?
-हम सभी की अपनी अलग जगह है. हम सभी की अपनी अपनी तकदीर है. हम सभी के अभिनय की अपनी अलग स्टाइल है. ऐसे में हमें एक दूसरे से कोई प्रौब्लम नहीं है. दूसरी बात हम गैर फिल्मी परिवार से हों या फिल्मी परिवार से, अंततः हमारी अपनी प्रतिभा ही हमें आगे बढ़ाती है. यह भी हो सकता है कि मैं और सारा अली खान या जान्हवी कपूर या अनन्या पांडे एक ही फिल्म में एक साथ अभिनय करते हुए नजर आएं.
सोशल मीडिया से आप कितना जुड़ी रहती हैं?
-सच कहूं, तो मुझे सोशल मीडिया कभी समझ नहीं आता था. ट्विटर क्या बला है, यह मुझे कभी समझ नहीं आया. पर अब फिल्म के प्रमोशन के लिए मैं सोशल मीडिया पर बहुत व्यस्त हो गयी हूं. ट्विटर पर कम, लेकिन इंस्टग्राम पर मैं अपनी फोटो बहुत डालती रहती हूं. इंस्टाग्राम पर मुझे लोगों के संदेश भी मिल रहे हैं. हां! जब कुछ लोग इंस्टाग्राम पर मेरे बारे में अच्छा नहीं लिखते हैं,तो दुःख होता है. इमोशनल हो जाती हूं. बुरा भी लगता है, लेकिन कुछ पाने के लिए कुछ तो सहन करना पड़ता है. वैसे ‘स्टूडेंट औफ द ईअर’ एक मशहूर फ्रेंचाइजी है. इसलिए हमें शुरू से पता था कि सोशल मीडिया पर कुछ तो ट्रोलिंग होगी. अब जो भी कमेंट आ रहे हैं, हम उन्हें अच्छे ढंग से स्वीकार कर रहे हैं. कभी कभी कुछ लोगों के बहुत घटिया और बुरे कमेंट पढ़कर हमें हंसी भी आ जाती है.
क्या कलाकार के तौर पर आगे बढ़ने में सोशल मीडिया मदद करता है?
-मुझे लग रहा है कि अब हमारा भविष्य सोशल मीडिया ही है. पर मैं पुराने ख्यालों की हूं, इसलिए मुझे सोशल मीडिया समझ नहीं आता, लेकिन अब समझ में आ रहा है कि सोशल मीडिया से भी जुडे़ रहना चाहिए.
पर क्या इससे बौक्स आफिस पर दर्शक मिलेंगे?
-यह कहना मुश्किल है, लेकिन हम जो नए कलाकार हैं, मैं हूं या अनन्या है, जिनसे लोग परिचित नहीं है, उनसे लोग सोशल मीडिया के कारण जल्द परिचित हो रहे हैं. सोशल मीडिया हमें लोगों तक पहुंचाने में मदद करता है. पर स्टारडम हमें हमारे काम से मिलेगा, सोशल मीडिया से नहीं. यह बात हर कलाकार को समझ लेनी चाहिए. यदि दर्शकों ने मेरी फिल्म को पसंद किया, मेरे अभिनय की तारीफ की, तो ही हमें स्टारडम मिलेगा.
पसंदीदा कलाकार ?
-अनुष्का शर्मा, कंगना रानौट, रितिक रोशन और रणबीर कपूर.
अभिनय में सफल होते ही संगीत को बाय बाय कर देंगी?
-सवाल ही नहीं उठता. मैंने पहले ही कहा कि संगीत मेरा पहला प्यार है. अब मैं फिल्मो में भी गाना करने वाली हूं. मैं तो ‘स्टूडेंट आफ द ईअर 2’ में गाना चाहती थी, पर नही गा सकी लेकिन मैं अपने करियर की तीसरी फिल्म में गाना गाने वाली हूं. इसके अलावा समय निकालकर मैं अपने म्यूजिक के कंसर्ट भी करते रहना चाहती हूं. 2020 में मैं अमरिका में अपने म्यूजिक कंसर्ट को करने के लिए जाने वाली हूं.
मैंने बचपन में देखा है कि दादी मेरी मम्मी को पीरियड्स के दौरान घर के कामों से बेदखल रखती थी. मम्मी को रसोईघर में घुसने की अनुमति नहीं होती थी, साथ ही वह किसी भी चीज को छू भी नहीं सकती थीं. यही नहीं उन्हें उन दिनों कांच के बरतनों में भोजन दिया जाता था और उसे भी वे अलग कमरे में बैठ कर खाती थीं. बरतन भी अलग धोती थीं. बात सिर्फ धोने पर ही नहीं खत्म होती थी. वे बरतन उन्हें आग जला कर तपाने होते थे. हम छोटे-छोटे बच्चे जब भी ये सब देखते और सवाल करते थे तो जवाब मिलता था कि छिपकली छू गई थी.
वैदिक धर्म के अनुसार मासिकधर्म के दिनों में महिलाओं के लिए सभी धार्मिक कार्य वर्जित माने गए हैं और यह दकियानूसी नियम सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं, लगभग सभी धर्मों में है. लेकिन इस सोच के पीछे छिपे तथ्य को समझ पाना बहुत मुश्किल लगता है. सब लोगों से अलग रहो, अचार को हाथ मत लगाओ, बाल न संवारों, काजल मत लगाओ आदि. न जाने कितने दकियानूसी नियम आज भी गांवों और कसबों में औरतों को झेलने पड़ रहे हैं. क्या कोई लौजिक है? किस ने बनाए हैं ये रूल्स और आखिर क्यों? जवाब कोई नहीं, क्योंकि होता आ रहा है, इसलिए सही है. आज भी बहुत सी महिलाओं के दिमाग पर ताले पड़े हैं.
क्या है इसके पीछे का लौजिक
आज 21वीं सदी में जब इंसान चांद पर जीवन की या मंगल पर पानी की खोज कर रहा है तब यह सोच कितनी अवैज्ञानिक है. कैसी मूर्खतापूर्ण सोच है जिस के कारण रजस्वला नारी को अपवित्र मान लिया जाता है और पलभर में ही स्वयं के घर में वह अछूत बन जाती है. उस से अछूत की तरह बरताव किया जाता है. जबकि इस का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. बस परंपरा के नाम पर आज भी आंखों पर काला चश्मा चढ़ा हुआ है.
एक सहज और सामान्य शारीरिक क्रिया जो किशोरावस्था से शुरू हो कर सामान्य तौर पर अधेड़ावस्था तक चलती रहती है न जाने आज भी कितनी पाबंदियां झेलती है. यह एक सामाजिक पाबंदी बन गई है. उन के साथ अछूतों जैसा व्यवहार और हर महीने 4-5 दिनों का यह समय किसी सजा से कम नहीं होता है. पीरियड्स के दौरान महिलाएं न तो खाना बना सकती हैं और न ही दूसरे का खाना या पानी छू सकती हैं. उन्हें मंदिर और पूजापाठ से भी दूर रखा जाता है. कई मामलों में तो उन्हें जमीन पर सोने के लिए मजबूर किया जाता है.
उदाहरण- एक स्वामी किस तरह अज्ञानता फैला रहा है
‘‘इस का कारण यह कि रजस्वला के स्पर्श के कारण विविध वस्तुओं पर प्रभाव पड़ता है. इस के अलावा रजोदर्शन काल में अग्नि साहचर्य के कारण (रसोई बनाते समय) उसे शारीरिक हानि होती है.’’
इन अज्ञानताभरी बातों का असर आज भी बहुत से घरों में इन रूढि़वादी परंपराओं को तोड़ने नहीं देता. इन घरों में आम धारणा यह है कि इस दौरान महिलाएं अशुद्ध होती हैं और उन के छूते ही कोई चीज अशुद्ध या खराब हो सकती है.
एक स्कूल अध्यापिका मीरा का कहना है कि उस ने सारा जीवन इन पाबंदियों को माना, क्योंकि घर के बड़ों ने उसे ऐसा करने को कहा था. उसे हर बार इस का विरोध करने पर कहा गया कि ऐसा नहीं करने पर नतीजा बुरा होगा. जैसे दरिद्रता आएगी, बीमारियां फैलेंगी, घर के बड़े या बच्चे बीमार पड़ जाएंगे या पति की मौत हो जाएगी. ऐसी और न जाने कितनी बातें.
मीरा दुखी होते हुए कहती हैं, ‘‘ये 4-5 दिन घर की महिलाओं के लिए किसी सजा से कम नहीं होते थे. पर घर की बड़ी महिलाएं आंख बंद कर के ये सब मानती थीं. उन्हें इस बात में कुछ भी बुरा नजर नहीं आता था. किसी भी पुजारी या महंत के द्वारा बताई गईर् सभी बातें घर के सब सदस्यों को जायज लगती थीं. रजस्वला को कुछ भी छूने की मनाही होती थी. मैं सोचती थी कि पुरुषों के साथ ऐसा भेदभाव क्यों नहीं होता. ये सब हम लड़कियों को ही क्यों भुगतना पड़ता है. आज मैं ने अपनेआप को इन बातों से आजाद ही नहीं करा, बल्कि मेरी कोशिश है कि हर घर में परंपराओं की ये बेडि़यां टूटें.’’
आशाजी कहती हैं कि उन के गांव में आज भी रजस्वला महिला के साथ ऐसा होता है. जैसे यह गुनाह वह जानबूझ कर रही है. इस से भी बड़ी हैरानी तो तब होती है, जब हमारे पोथीपुराणों का हवाला देते हुए पंडेपुजारी भी मासिकधर्म को अशुद्ध घोषित करते हैं. रजस्वला महिला को उन की अपनी ही चीजें छूने की मनाही होती है. यही नहीं उन के लिए अलग बिस्तर या चटाई बिछती है.
मासिकधर्म के विषय में यह मान्यता है कि इस दौरान स्त्री अचार को छू ले तो अचार सड़ जाता है. पौधों में पानी दे तो पौधे सूख जाते हैं. यही नहीं अगर घर के लोग इस स्थिति में किसी महिला को घर की किसी चीज को छूते हुए देख लें, तो बहुत अनर्थ होता है.
आज के हालात
मैं अपनी ननद के घर गई, जोकि उत्तराखंड में रहती है. वहां पहुंचने पर मैं ने देखा कि ननद एक प्लास्टिक की कुरसी पर बैठी है, जबकि बाकी सब सोफे पर बैठे थे. खानेपीने के समय भी उन्हें साथ नहीं बैठाया गया. जिस कुरसी पर बैठी थीं उसे भी बाद में सर्फ से धोया गया. लेकिन परिवार के हर सदस्य चाहे बच्चा हो या बुजुर्ग या नौकर या घर के पुरुष सब के लिए यह स्थिति बहुत सामान्य सी बात थी.
मैं ने जब ननद या ननदोई को समझाने की कोशिश की तो जवाब मिला, ‘‘इस में बुराई भी क्या है? हम सब वही कर रहे हैं जो हमारे स्वामीजी कहते हैं, पुरखे मानते आए हैं. तुम दिल्ली वाले ज्यादा पढ़लिख कर परंपराएं निभाना भूल जाते हैं.’’
मुझे यह देख दुख हुआ कि आज भी भारत के अधिकांश क्षेत्रों में यह छुआछूत का भयंकर रिवाज हमारे समाज में चालू है. इस लज्जा और अपमानजनक स्थिति के लिए क्या महिलाएं खुद दोषी नहीं हैं?
अब वक्त बदला है. अब शहर के पढ़ेलिखे लोग, रजस्वला नारी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करते हैं. इस तरह की किसी परंपरा को नहीं मानते. लेकिन पूजा करना या मंदिर जाना आज भी वर्जित है. इस विषय पर आज भी महिलाएं खुल कर बात नहीं कर पातीं. बड़े शहरों की कुछ शिक्षित महिलाओं को छोड़ छोटे शहरों व कसबों में यह आज भी वर्जित विषय है.
अब जरा सोचिए, यदि एकल परिवारों के चलते, परिस्थिति से समझौता करते हुए, रजस्वला महिला को रसोईघर में जाने की इजाजत मिली है, तब क्या उस महिला का या उस के परिवार वालों का कुछ अनिष्ट हुआ?
दरअसल, मासिकचक्र या रजस्वला होना एक नैसर्गिक क्रिया है, जो पूरी तरह से शरीर के गर्भावस्था के लिए तैयार होने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है. यह कहना कि इस से दूषित रक्त बाहर निकलता है सर्वथा गलत है. चिकित्सीय दृष्टिकोण से नारी का ठीक समय पर रजस्वला होना बेहद जरूरी है. इस नैसर्गिक क्रिया से हर महिला को गुजरना पड़ता है. सभी लोगों को खासकर महिलाओं को भी समझना होगा कि इस का पवित्रता से कोई लेनादेना नहीं है. यहां तो खुद औरत ही औरत के ऊपर इस तरह की बेबुनियाद परंपराएं थोपते हुए नजर आती है.
एक चर्चित केस
नेहा को अचानक स्कूल में पीरियड शुरू हो गया और उसे पता नहीं चला. राह चलते समय मर्द उसे घूर रहे थे और महिलाएं उसे अपनी टीशर्ट नीचे कर खून के धब्बे छिपाने की सलाह दे रही थीं. लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी. तभी एक महिला ने उसे सैनिटरी नैपकिन दिया. तब जा कर उसे लोगों के घूरने का माजरा समझ आया.
फिर क्या था? घर आ कर नेहा ने अपनी वही स्कर्ट बिना किसी शर्म और झिझक के सोशल साइट पर शेयर करते हुए लिखा कि क्या औरत होना गुनाह है? यह पोस्ट उन सभी महिलाओं के लिए है जिन्होंने औरत होते हुए भी मेरे वूमनहुड को छिपाने के लिए मुझे मदद का औफर दिया. मैं शर्मिदा नहीं हूं. मुझे हर 28 से 35 दिनों में पीरियड होता है जोकि एक नैसर्गिक क्रिया है. मुझे दर्द भी होता है. तब मैं मूडी हो जाती हूं. लेकिन मैं किचन में जाती हूं और कुछ चौकलेट, बिस्कुट खाती हूं.
अब आप ही बताएं यदि पीरिएड्स स्त्री का गुनाह है, तो इन के हुए बिना वह मां कैसे बनेगी? संसार में रजस्वला होना प्रकृति का नारी को दिया हुआ एक वरदान है. इस वरदान से ही पूरी सृष्टि की रचना हुई है. क्या इस बात को झुठलाया जा सकता है?
परंपरा के पीछे का सच
इस प्रक्रिया के दौरान 3 से 5 दिनों में करीब 35 मिलीलीटर खून बहता है, तो महिला का शरीर थोड़ा कमजोर हो जाता है. बहुत सी महिलाओं को तो असहनीय दर्द भी होता है. ऐसे में महिला को आराम की जरूरत होती है. शायद इसी वजह से हमारे पूर्वजों ने यह परंपरा शुरू की कि इसी बहाने से रजस्वला को थोड़ा आराम मिल जाएगा. लेकिन अच्छी पहल का भी परिणाम उलटा ही हुआ. रजस्वला नारी को अपवित्र माना जाने लगा और उसे रसोई से छुट्टी देने की जगह उस का पारिवारिक बहिष्कार किया जाने लगा.
हैरानी की बात तो यह है कि इन नसीहतों में कहीं भी सेहत से जुड़ी बातें शामिल नहीं होतीं. आज भी कई गांवों में मासिकधर्म के दौरान महिलाओं का किचन में जाना और बिस्तर पर सोना वर्जित है. आज भी महिलाओं की बड़ी संख्या सैनिटरी नैपकिन के बजाय गंदे, पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं, जिस कारण महिलाओं में बीमारी का खतरा बढ़ जाता है. आज भी हमारे देश में जहां हम पौर्न और सैक्स कौमेडी के बारे में तो खुलेआम बाते करते हैं, मगर जब बात महिला की सेहत की आती है, तो उसे टैबू बना कर रखना चाहते हैं.
वैसे इस टैबू को तोड़ने की जिम्मेदारी खुद महिलाओं के कंधे पर है. जब तक महिलाएं शर्म और झिझक छोड़ कर अपनी बेटियों को इस बारे में नहीं बताएंगी, कोई कैंपेन, कोई संस्था कुछ नहीं कर सकती. बड़े पैमाने पर बदलाव के लिए पहल महिलाओं को ही करनी होगी.
गरमी में पसीना न आएं ऐसा हो नही सकता, लेकिन अगर पसीने में बदबू आए तो वह आपकी पर्सनेलिटी को खराब कर देता है. साथ ही आपको शर्मिंदगी का भी सामना करना पड़ता है. जिसके लिए आप महंगे-महंगे परफ्यूम का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अगर आप गलत तरीके से या परफ्यूम को लगाने में गलती करते हैं तो यह आपकी स्किन को भी नुकसान पहुंचा सकता है. इसीलिए आज हम आपको कुछ टिप्स बताएंगे, जिससे आपकी बौडी में दिन भर परफ्यूम की महक रहेगी और आप तरोताजा भी महसूस भी करेंगे.
1. नौर्मल टैम्प्रेचर में रखें परफ्यूम
ज्यादा गरमी, नमी या तेज रोशनी वाली जगह पर परफ्यूम रखने से उस की फ्रैगरैंस की क्वालिटी कम हो सकती है. इसलिए इसे हमेशा साधारण तापमान वाली जगह पर रखें.
2. ड्राई स्किन के लिए ऐसे करें परफ्यूम का इस्तेमाल
यदि आपकी स्किन ज्यादा रूखी है तो परफ्यूम का इस्तेमाल करने से पहले बिना फ्रैगरैंस वाला लोशन जरूर लगाएं. इस से फ्रैगरैंस ज्यादा देर तक टिकेगी.
3. कपड़ों और बौडी पर कब और कैसे करें इस्तेमाल
नहाने के तुरंत बाद परफ्यूम का इस्तेमाल करना सही रहता है. सिल्क के बने कपड़ों या ज्वैलरी पर परफ्यूम का स्प्रे न करें. ऐसा करने से उन की चमक जा सकती है.
4. फ्रैगरैंस को कैसे करें चैक
फ्रैगरैंस चैक करने के लिए जब अपनी कलाई पर स्प्रे करें तो उसे दूसरी कलाई से न रगड़ें. ऐसा करने से सही फ्रैगरैंस का पता नहीं चलता.
5. हल्की फ्रैगरैंस के लिए करें ये काम
अगर हलकी फ्रैगरैंस पसंद है तो परफ्यूम को बौडी पर स्प्रे करने के बजाय बौडी से थोड़ी दूर स्प्रे करें. बोतल में जब थोड़ा सा ही परफ्यूम बचे तो उस का इस्तेमाल बिना फ्रैगरैंस वाली क्रीम या लोशन को महकाने में कर सकती हैं.
6. परफ्यूम को बौडी पर चैक करने से पहले करें ये काम
परफ्यूम को बौडी पर स्प्रे कर के उस की फ्रैगरैंस चैक नहीं करना चाहतीं तो इस के लिए विजिटिंग कार्ड या ब्लौटर स्ट्रिप का इस्तेमाल कर सकती हैं. फ्रैगरैंस को सही तरह से परखने के लिए स्प्रे करने के बाद उस के सूखने का इंतजार करें. अपने हैंडबैग को अच्छी खुशबू से महका रखने के लिए एक कौटन बौल पर थोड़ा परफ्यूम स्प्रे कर उसे बैग में रख लें.
आजकल हर जगह धूल मिट्टी हो गई है, जिसका असर हमारी हेल्थ पर पड़ता है. लेकिन धूल और धूएं के डर से औफिस जाने वाले बड़े और स्कूल जाने वाले बच्चे घर से निकलना तो बंद नही कर सकते. धूल और धूएं से कईं बिमारियां होती हैं जैसे छींक आना, नाक बहना, आंखों से पानी आना और आंखों का लाल होना, कोल्ड-कफ और सांस लेने में परेशानी महसूस होना. ये ऐसी एलर्जी है जिससे बचना बहुत ही मुश्किल हो जाता है. मास्क लगाने के बाद भी कई बार माइक्रो पार्टिकल्स नाक या मुंह के जरिये बौडी के अंदर चले जाते हैं. वहीं इस बिमारी के लिए हम डौक्टर के पास जाना ज्यादातर जरूरी नही समझते, लेकिन आज हम आपको कुछ ऐसे होममेड टिप्स बताएंगे जिससे आपको डौक्टर के पास भी नहीं जाना पड़ेगा और डस्ट एलर्जी से भी छुटकारा मिल जाएगा. तो आइए जानते हैं डस्ट एलर्जी के लिए होममेड टिप्स…
एलर्जी के लिए इफेक्टिव है हनी
हनी में वो गुण होता है जो न केवल एलर्जी को खत्म करता है बल्कि आपको जुकाम और छींक से भी राहत पहुंचाता है. साथ ही यह आपके गले में होने वाले खराश और सांस लेने वाली नली में आई सूजन को भी सही करता है. ये ल्युब्रिकेंट की तरह खराश और खांसी को सही करने का काम करता है. जब भी आपको ऐसा लगे कि आपको डस्ट एलर्जी हो रही तो आप एक चम्मच हनी पी लें. इसके बाद कुल्ला करें लेंकिन पानी न पीएं.
एलर्जी प्रतिरक्षा प्रणाली में असंतुलन के कारण होती है. इसके लिए जरूरी है कि अच्छे बैक्टिरया को पैदा किया जाए जो कि आंत में होते हैं. इसके लिए प्रोबायोटिक्स बेस्ट होते हैं, ये एलर्जी को ठीक करने का काम करते हैं. आंत के बैक्टीरिया को बढ़ावा देने के लिए दही या दही से बनी चीजें लें क्योंकि इनमें प्रोबायोटिक्स होते हैं.
खांसी की प्रौब्लम के लिए बेस्ट है सेब का सिरका
एक गिलास पानी में 1 चम्मच एप्पल साइडर सिरका मिलाएं और दिन में तीन बार इसका सेवन करें. यह पेय कफ यानी बलगम के बनने की प्रक्रिया को तेजी से धीमा करता है और लसीका प्रणाली को साफ करता है.
भाप लेना धूल एलर्जी के इलाज सबसे कारगर और अचूक तरीका है. कम से कम 10 मिनट के लिए भाप लें ये आपके नाक से लेकर फेफड़े तक काम करता है. इससे कंजेशन खत्म होता है और खुल कर सांस लिया जा सकता है.
विटामिन सी नाक की ब्लौकेज को कम करने में है मददगार
जिद्दी डस्ट एलर्जी से राहत पाने के लिए यह सबसे सरल और आसान तरीका है आप विटामिन सी का इंटेक बढ़ा दें. खट्टे फल जैसे संतरे और मीठे नीबू के फल विटामिन सी से भरपूर होते हैं और ये सफेद रक्त कोशिकाओं द्वारा होने वाले हिस्टामाइन के स्राव को रोकते जिससे शरीर में ब्लौकेज बढ़ती है. विटामिन सी नाक के स्राव और ब्लौकेज को भी कम करता है.
बात 2013 की है. मैंने पत्रकारिता की शुरुआत की थी. एक प्रमुख समाचार संस्थान में बतौर ट्रेनी काम कर रही थी. रविवार को छुट्टी होती थी और शनिवार की रात को मैं यूपी रोडवेज की बस से अपने होमटाउन खुर्जा जाती थी. शाम को सात बजे औफिस से निकलने के बाद बस में बैठते-बैठते करीब आठ बज जाते थे. बस का दो-तीन घंटे का सफर रात में तय होता था. एक बार बस में मुझे एक महिला मिली, जो पति से झगडा होने के बाद गुस्से में घर से निकलकर आ गई थी. साथ में उसके छोटा बच्चा था. वो महिला रात में निकलकर तो आ गई, लेकिन उसे न तो ये पता था कि जाना कहां है, न ही कोई रास्ता मालूम था.
रात का वक्त था, कंडक्टर ने टिकट काटने को कहा तो वो कुछ बता न पाए कि कहां जाना है. कंडक्टर ने अपनी मर्जी से अलीगढ़ का टिकट काटकर उससे पैसे वसूल लिए. उसी दौरान मेरा बस में चढ़ना हुआ था. वह महिला निरीह की तरह मेरी ओर एक टक देखने लगी. मैंने जैसे ही नजरें मिलाईं तो उसने कंडक्टर की शिकायत करते हुए कहा कि ‘हमाए पैसे नई दे रहा ये.‘ पूछने पर पता चला कि कंडक्टर ने उससे टिकट से ज्यादा पैसे वसूल लिए हैं और बाद में देने के लिए कह रहा है. महिला से पूछा कि आपको जाना कहां है, तो वो बता नहीं पा रही थी, जबकि कंडक्टर ने अलगीढ़ का टिकट काट दिया था. मैंने महिला से पूछा कि अलीगढ़ में कोई रहता है क्या ? तो वो यह तक नहीं समझ पा रही थी कि अलीगढ़ है क्या?
कंडक्टर कह रहा था कि बस स्टैंड पर उतार देंगे रात में वहीं रुक लेगी सुबह जहां जाना होगा वहां चली जाएगी. महिला की सुरक्षा को देखते हुए मुझे ये ठीक नहीं लगा. मैंने महिला से पूछा आपको अपने पति का फोन नंबर याद है? उसने कहा हां और उससे नंबर लेकर पति को फोन लगाया. पति ने दिल्ली की ओर आने वाली दूसरी बस में बिठा देने की बात कही, लेकिन महिला जाने को तैयार नहीं. रात के अंधेरे में यह ठीक भी नहीं लग रहा था. उससे पूछा रात में अलीगढ़ में अकेले रुक लोगी? अब वो न हां कहे ना कहें.
मैंने पूछा मेरे घर चलोगी मेरे साथ? वो तुरंत राजी हो गई और बोली हां चलूंगी. बस में सवार कुछ सवारियों ने मेरी बात के साथ सहमति जताई कि हां सही कर रही हो आप, नहीं तो बेचारी कहां भटकेगी. वहीं कुछ ने जमाना खराब होने का हवाला दिया. खैर, मैंने महिला को साथ लाने का मन बना लिया, लेकिन मुझे डर था कि मम्मी इस बात की इजाजत देंगी या नहीं. मैंने मम्मी को फोन लगाया और पूरी बात बताई.
मां ने ऐसे की मदद…
पहली बार में तो मम्मी ने कहा कि कहां चक्कर में पड़ती रहती है, लेकिन फिर इंसानियत दिखाते हुए उन्होंने मुझे उस महिला को घर ले आने की इजाजत दे दी. फिर भी डर लग रहा था कि मम्मी और पापा कहीं मुझे डांटे ना, लेकिन मम्मी ने सारी स्थिति संभाल रखी थी. उन्होंने पापा को सब बात पहले ही बता दी. इसके बाद मम्मी ने मुझे और उस महिला को खाना खिलाया और उसके बच्चे के लिए तुरंत दूध का प्रबंध किया. रात में महिला के लिए आंगन में चारपाई बिछाई.
सुबह होने पर न सिर्फ मेरे परिवार, बल्कि आस-पड़ोस के लोगों ने उस महिला के प्रति सहयोगात्मक रवैया दिखाते हुए कुछ पैसे इकट्ठे किए. महिला के पति को फोन कर दिया गया था कि वह खुद खुर्जा आकर अपनी पत्नी को ले जाए. मैंने थाने में जाकर महिला को पुलिस के सुपुर्द किया, जहां से उसका पति आकर उसे ले गया साथ ही पुलिस वालों ने आगे से झगड़ा नहीं करने की हिदायत भी दी.
मेरी मां हमेशा इस तरह साथ रहती हैं, तभी मैं ऐसे फैसले ले पाती हूं. मां मेरा सबसे बड़ा सपोर्ट सिस्टम है.
‘मेट गाला 2019’ में बार्बी गर्ल ड्रैसअप के बाद एक्ट्रैस दीपिका पादुकोण एक बार फिर फिल्म और ड्रैसअप की बजाय अपनी पर्सनल लाइफ के चलते सुर्खियों में आ गईं हैं. दरअसल, मेट गाला की आफ्टर पार्टी के बाद सोशल मीडिया पर दीपिका की कुछ फोटोज वायरल हुई हैं, जिसके बाद फैंस ने कयास लगाना शुरू कर दिया है कि दीपिका प्रैंगनेंट हैं.
‘मेट गाला 2019’ की आफ्टर पार्टी में दीपिका , प्रियंका चोपड़ा और उनके पति निक जोनस के साथ पोज देती दिखीं. जहां दीपिका पीले रंग के गाउन के साथ ब्लैक एंड व्हाइट कोट कैरी करती हुईं नजर आईं, फोटो को देखकर ऐसा लग रहा था कि दीपिका प्रेगनेंट है. इन फोटोज को प्रियंका ने अपने इंस्टाग्राम पर शेयर किया, जिसके बाद यह फोटो वायरल हो गई और लोग कमेंट कर रहे हैं कि दीपिका प्रेगनेंट हैं.
दीपिका की प्रेग्नेंसी की सच्चाई…
वहीं दीपिका के करीबी ने खुलासा करते हुए कहा है कि दीपिका प्रेगनेंट नहीं हैं. उनकी माने तो यह खबर एक दम झूठी है. इस तस्वीर में बस खराब कैमरा एंगल की वजह से दीपिका का पेट बाहर नजर आ रहा है. इसके अलावा बाकी सारी खबरें अफवाह से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं.
बता दें दीपिका फिलहाल, मेघना गुलजार की फिल्म ‘छपाक’ की शूटिंग में बिजी चल रही हैं. फिल्म छपाक में दीपिका लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी को बड़े पर्दे पर उतारेंगी जो कि एक एसिड अटैक सर्वाइवर हैं.
आप अपने घर में कितनी भी महंगी चीजें क्यों न रखें, जब तक घर की फ्लोरिंग सही न होगी तब तक घर का इंटीरियर अच्छा नहीं लगेगा. फर्श के तौर पर टाइल्स बेहद टिकाऊ होती हैं तथा मजबूती के मामले में भी इन का मुकाबला नहीं होता. ये पानी से जल्दी खराब नहीं होतीं और साफसफाई में भी किसी तरह की दिक्कत नहीं होती.
टाइल्स में मैट फिनिश का चलन जोरों पर है. चमचमाती या ग्लौसी टाइल्स अब ट्रेंड में नहीं हैं. कई कंपनियां आप की पसंद के अनुसार भी टाइल्स बनाने लगी हैं, जिन्हें कंप्यूटर की मदद से बनाया जाता है. इन में आप अपनी पसंदीदा मोटिफ्स या परिवार के फोटो भी प्रिंट करा सकती हैं. टाइल्स फ्लोरिंग कराते समय इस बात का ध्यान रखें कि फ्लोरिंग आप की दीवारों से मैच करे. अगर आप के घर की दीवारें लाइट कलर की हैं, तो टाइल्स डार्क कलर की लगवाएं. अगर दीवारें डार्क कलर की हैं, तो लाइट टाइल्स लगवाएं.
घर की अलगअलग जगहों पर टाइल्स के चयन का तरीका भी अलगअलग होता है:
लिविंग एरिया वह स्थान है जहां आप अपने मेहमानों का स्वागत करती हैं, दोस्तों से मिलती हैं, उन से बातें करती हैं. इस स्थान को खास बनाना जरूरी है. यहां आप कारपेट टाइल्स लगवा सकती हैं.
2. अगर आप का घर छोटा है, तो आप एक ही तरह की टाइल्स लगवा सकती हैं, जो घर को अच्छा लुक देती हैं. अगर घर बड़ा है तो अलग अलग डिजाइनों की टाइल्स लगवाएं. लिविंग एरिया में पैटर्न और बौर्डर वाली टाइल्स का भी ट्रैंड इन है.
3. बैडरूम में बहुत से लोग डार्क कलर की फ्लोरिंग करा लेते हैं. ऐसा करने से बचें. बैडरूम की टाइल्स फ्लोरिंग के लिए हलके और पेस्टल शेड्स का इस्तेमाल करें.
4. किचन छोटी हो तो दीवारों पर हलके रंग की टाइल्स लगवाना ही सही रहता है. बड़ी किचन में सौफ्ट कलर का इस्तेमाल करना चाहिए. इन दिनों किचन में स्टील लुक वाली टाइल्स ट्रैंड में हैं.
5. बाथरूम घर में सब से ज्यादा इस्तेमाल होने वाली जगहों में से एक है. इसे सुंदर व आरामदेह बनाना बहुत जरूरी है. बाथरूम में हमेशा सौफ्ट फील वाली टाइल्स लगवाएं. ये टाइल्स नंगे पैरों को रिलैक्स फील कराती हैं. बाथरूम के लिए कई तरह की टाइल्स आती हैं. आप बौर्डर वाली, क्रिसक्रौस पैटर्न वाली टाइल्स लगवा सकती हैं.
6. टाइल्स कई सालों तक चलती हैं. इन्हें साफ करना भी आसान होता है. कई महिलाएं टाइल्स को साफ करने के लिए हार्ड कैमिकल का प्रयोग करती हैं. ऐसा न करें. टाइल्स को साफ करने के लिए टौयलेट क्लीनर का इस्तेमाल कर सकती हैं. सर्फ के पानी से भी टाइल्स को साफ किया जा सकता.