जलियांवाला बाग पर बनेगी फिल्म, 100वीं वर्षगांठ पर ऐलान

इंडियन फिल्ममेकरों ने समय-समय पर आजादी, पौराणिक कथाओं के साथ-साथ इतिहास के कई पन्नों को सिनेमा के जरिए से पेश कर भारतीय इतिहास को गौरवान्वित करने के साथ ही देशवासियों को भी शिक्षित भी किया है. ऐसे में फिल्ममेकर सौ साल पहले घटी विनाशकारी और दर्दनाक घटना को कैसे भुला सकते हैं.

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‘‘लंदन ड्रीम्स’’ जैसी फिल्म के निर्माताओं ने 13 अप्रैल 2019 को मुंबई में तमाम फिल्म कर्मियों व पत्रकारों की मौजूदगी में फिल्म ‘‘जलियांवाला बाग’’के निर्माण की घोषणा की. उससे पहले सरबजीत ‘बोनी’ दुग्गल, विनीता मेनन, केशव पनेरी, हरीश कोहली ने पत्रकारों से बात की. कार्यक्रम की शुरूआत अरदास से की गयी. जिसमें जलियां वाला बाग नरसंहार में शहीद हुए सभी लोगो को श्रद्धांजलि दी गयी.

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भारतीय इतिहास में ‘जलियांवाला बाग’ नरसंहार हिंसा के अति क्रूर राजनीतिक कृत्य के रूप में चित्रित है. ‘जलियांवाला बाग’ नरसंहार ऐसी घटना है, जो देशभक्ति की भावना को प्रज्वलित करती है. यह भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय है.

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अरदास के कार्यक्रम के बाद ‘टर्बन फिल्म’ के तहत सरबजीत ‘बोनी’ दुग्गल और उनकी बेटी विनीता मेनन इसी काले अध्याय पर ‘‘जलियांवाला बाग’नामक फिल्म का निर्माण की घोषणा की. इस फिल्म में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े हजारों निर्दोष स्त्री व पुरूषों की हत्या की त्रासदी के साथ उनके बलिदान को भी दिखाया जाएगा.

Edited by- Rosy

न्यूडिटी और इंटिमेट सीन्स को गलत नहीं मानतीं- श्वेता

चाइल्ड एक्ट्रेस के रूप में फिल्म ‘मकड़ी’ और सीरियल कहानी घर-घर की से शोहरत बटोर चुकी एक्ट्रेस श्वेता बासु की फिल्म ‘ताशकंद फाइल्स’ रिलीज हो चुकी है, जिसमें उन्होंने एक जर्नलिस्ट का रोल निभाया है. आइए उनसे जानते है इस फिल्म से जुड़े कुछ रोचक किस्से…

फिल्म ताशकंदकी ख़ास बात क्या थी, जिसे करने के लिए लिए आप तैयार हुई?

इसमें मैंने एक जर्नलिस्ट का रोल निभाया है और मुझे ख़ुशी है कि मैंने मास मीडिया में पढ़ाई की है. इसलिए इस रोल को निभाना आसान था. इसमें मैंने एक ईमानदार जर्नलिस्ट की भूमिका निभाई है.

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रियल लाइफ में आप कैसी है?

मैनें जर्नलिस्ट का रोल बहुत स्ट्रौंग निभाया है, जबकि रियल लाइफ में मैं बहुत शांत और खुश रहना पसंद करती हूं. इसके अलावा मैंने एक डाक्युमेंट्री बनायी है. एक दो कौलम भी लिखती हूं.

क्या एक्टिंग आपके लिए इत्तेफाक था या बचपन से ही सोचा था?

मैं पैदा जमशेदपुर में हुई थी, लेकिन जब 5 साल की थी तब मुंबई आ गयी थी. मैंने 2 हिंदी फिल्में ‘मकडी’ और ‘इकबाल’ की थी. फिल्म मकड़ी के लिए मुझे राष्ट्रीय पुरस्कार मिला. इसके बाद मेरे माता-पिता चाहते थे कि मैं ग्रेजुएशन पूरा कर फिल्मों में काम करूं और मैंने वैसा ही किया.

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फिल्मों में आने की प्रेरणा कहां से मिली?

मेरे पिता का खुद का थिएटर ग्रुप था. वहां मैंने थिएटर कभी नहीं किया, लेकिन माहौल को मैंने देखा है. इत्तेफाक से फिल्म मकड़ी, इक़बाल और अब ताशकंद फाइल्स.

आपने टीवी, वेब और फिल्मों में काम किया है, इनमें में कितना फर्क महसूस करती है?

एक कलाकार का काम एक्शन और कट के बीच में होता है. चाहे वह टीवी, वेब सीरीज हो या फीचर फिल्म किसी के लिए क्यों न हो. काम वही करना पड़ता है. इसलिए माध्यम कुछ भी हो, एक्टिंग में कोई फर्क नहीं पड़ता. एक मिनट के अंदर आप कितना भी सौ प्रतिशत अभिनय दे सकते है, वही सबकुछ होता है.

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क्या पहले की मीडिया और आज की मीडिया में अंतर को आप मानती है? अगर हुआ भी है तो इससे कैसे निपटना चाहिए?

झूठ कहना और लिखना बहुत आसान होता है, लेकिन सच को लिखना बहुत मुश्किल होता है. मीडिया अब पहले जैसी नहीं रही, क्योंकि सच कोई सुनना नहीं चाहता. उन्हें जो आसानी से मिल जाए, उसे ही सुनते है, ऐसे में अगर कोई बाहर निकलकर उसकी सच्चाई को परखे, तो अच्छा होगा. आज लोग एफर्ट नहीं लगाते.

यहां तक पहुंचने में आपके परिवार का सहयोग आपको कितना मिला?

फिल्म ‘मकड़ी’ की सफलता के बाद मैंने कई बड़ी पिक्चरों को ना कह दिया था, ताकि मैं माता-पिता के कहे अनुसार अपनी पढ़ाई पूरी कर सकूं. उन्होंने मेरी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ दोनों में बहुत सहयोग दिया है. मेरे पति और सास-ससुर भी मुझे बहुत प्रोत्साहन देते रहते है.

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परिवार के साथ काम को बैलेंस कैसे करती है?

कोई मुश्किल नहीं होती, फिल्मों का काम लगातार नहीं होता, बीच-बीच में ब्रेक होता है ऐसे में परिवार के साथ सामंजस्य में कोई समस्या नहीं आती. आज शादी किसी भी एक्ट्रेस के लिए कोई प्रौब्लम नहीं.

न्यूडिटी और इंटिमेट सीन्स को करने में आप कितनी सहज होती है?

विदेश की फिल्मों में भी न्यूडिटी और इंटिमेट सीन्स होते है. देखना ये पड़ता है कि उसे आप पर्दे पर कैसे दर्शाते है. वल्गैरिटी उसमें कितनी है. पहले की पेंटिंग्स में कितनी खूबसूरत तरीके से इंटिमेट सीन्स को दिखाया जाता रहा है, जिसमें प्यार का एहसास होता है. इसलिए जितना एस्थेटिक तरीके से आप ऐसे सीन्स को दिखायेंगे, उतना ही अच्छा प्रभाव समाज पर सकारात्मक होगा. मैं न्यूडिटी और इंटिमेट सीन्स को गलत नहीं कहती.

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आपके ड्रीम प्रोजेक्ट क्या है?

कोई ड्रीम नहीं है. मुझे पुरानी फिल्में बहुत अच्छी लगती है, लेकिन आज के दर्शकों का टेस्ट बदल चुका है. वे अपने आस-पास की फिल्मों को देखना चाहते है. हर तरह के कलाकार को आज काम मिल रहा है. इस तरह जैसी मांग होगी, वैसी फिल्में बनेंगी. मैं हर तरह की फिल्में करने की इच्छा रखती हूं. मैं देविका रानी के उपर बायोपिक करना चाहती हूं, क्योंकि वह इंडस्ट्री की पहली सुपर स्टार थी. उन्होंने साल 1930 में फेमिनिज्म पर तब बात की थी, जिसकी आज हम करते है. इसके अलावा मैं फिर से मृनाल सेन और रितुपर्न घोष को इंडस्ट्री में देखना चाहती हूं.

समय मिले तो क्या करती है?

मुझे खाना बनाना बहुत पसंद है. मैं हर तरह का खाना बना लेती हूं. बांग्ला भोजन मुझे बहुत अच्छा लगता है. मेरे पति मारवाड़ी है उनके लिए मैं गट्टे की कड़ी भी बना लेती हूं. इसके अलावा मैं किताबें बहुत पढ़ती हूं. साल में 30 से 40 किताबें पढ़ लेती हूं. फिल्म्स देखती हूं और सितार बजाती हूं.

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कितनी फैशनेबल है?

मुझे फैशन बहुत पसंद है. मैं बालों से लेकर नाख़ून तक सुंदर रखती हूं. मेकअप मैं खुद करती हूं. फैशन जो आरामदायक हो, उसे करती हूं. कपड़ों से ही व्यक्ति के व्यक्तित्व का पता चलता है. हर यूथ को ये बात समझने की जरुरत है.

तनाव होने पर क्या करती है?

नकारात्मक बातें आती रहती है. उसे पढ़ने में मुझे अच्छा लगता है, क्योंकि वे अपनी राय मेरे लिए देते है और ये सही है. इसलिए मुझे तनाव अधिक नहीं होता.

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सब्‍जी के छिलके से लाएं अपने चेहरे पर निखार

आप अपने चेहरे को निखारने के लिए घरेलू चीजों और कई तरह के चीजों का इस्तेमाल करती हैं. पर आज हम आपको सबसे आसान और सस्ता तरीका बता रहे हैं, जिससे आप आसानी से  कर सकती हैं. जी हां, आप अपने चेहरे पर निखार लाने के लिए सब्‍जियों के छिलके का इस्तेमाल कर सकती हैं. तो चलिए जानते हैं आप कैसे इन छिलकों का इस्तेमाल करें.

  1. आलू: आलू को छिलकों को चेहरे पर लगाने से धब्‍बे, झाईयां आदि की समस्‍या दूर हो जाती है. अगर चेहरे पर बहुत दाने होते हैं तो उसमें भी आराम मिलता है.
  2. खीरे के स्‍लाइस काटकर आंखों पर रखने से आंखों को ताजगी मिलती है और सारी थकान उतर जाती है. चेहरे पर खीरे के छिलकों को 15 मिनट तक लगाकर रखने और इसके बाद ठंडे पानी से चेहरा धो लें. इससे आपके चेहरे पर निखार आएगा.

कैसे चुनें बैस्ट ब्यूटी प्रोडक्ट्स

3. टमाटर: टमाटर मौजूद एंटीऑक्‍सीडेंट त्‍वचा को स्‍वस्‍थ बनाते हैं. इसके छिलके से चेहरे की मसाज करने से चेहरा दमकने लगता है.

4. नींबू: नींबू का रस और उसका छिलका दोनों ही फायदेमंद होता है.गाजर: गाजर को मिक्‍सी में पीस लें और उस लेप को चेहरे पर लगा लें. इससे चेहरे की गंदगी निकल जाती है. गाजर में विटामिन सी होता है जो चेहरे को साफ-सुथरा और दमकदार बना देता है.

5. चुकंदर: चुकंदर का रस या चुकंदर को पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे के डार्क स्‍पौट सही हो जाते हैं और स्‍कीन टोन भी सही हो जाती है.

6. करेला: करेला सिर्फ स्‍वाद में कड़वा होता है लेकिन उसके गुण बहुत होते हैं. इसे पीसकर लगाने से चेहरे पर संक्रमण या दाने आदि की समस्‍या दूर हो जाती है. साथ ही चेहरे की त्‍वचा में कसाव हो जाता है.

हेयर केयर और हेयर स्टाइलिंग टिप्स

वरुण धवन से जानिए उनके 6 फिटनेस सीक्रेट्स

वरुण धवन यंगस्टर्स के फिटनेस आइकन हैं. अपनी फिटनेस और बौडी की बदौलत वो केवल लड़कियों के ही नहीं बल्कि लड़कों के भी फेवरेट हैं. लड़के उनकी तरह बौडी बनाने के लिए दिनरात कोशिशें करते हैं, पर अधिकतर लोगों को निराशा हाथ लगती है.

अगर आप फिटनेस फ्रीक हैं और आपको भी वरुण की तरह बौडी बनानी है तो हम आपका काम आसान करने वाले हैं. हम आपके लिए ला रहे हैं वरुण के सीक्रेट फिटनेस टिप्स जिन्हें खुद वरुण ने हमसे साझा किया.

तो आइए शुरू करें.

फिट रहने के लिए जरूरी है डांस

fitness secret of varun dhawan

वरुण की माने तो उनकी फिटनेस का राज डांसिंग है. उनके हिसाब से डांसिंग से सारे बौडी पार्ट एक्टिव रहते हैं. वरूण फिट रहने के लिए स्पोर्ट्स को भी बहुत जरूरी मानते हैं. स्पोर्ट्स से शरीर के मेटाबौलिज्म हाई रहती हैं.

दिन में नियमित एक घंटा वर्कआउट जरूर करें

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फिट रहने के लिए केवल वर्कआउट करते रहना काफी नहीं है. बल्कि मेहनत के साथ डिसिप्लिन जरूरी होता है. जरूरी नहीं कि आप दिन में 5-6 घंटे मेहनत करें, पर नियमित रूप से रोज एक घंटे का वर्क आउट जरूरी करें.

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स्ट्रेचिंग और पानी पीना बहुत जरुरी है

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वरुण की माने तो अच्छी फिटनेस के लिए स्ट्रेचिंग और वाटर इनटेक जरूरी है. जानकार भी अच्छी सेहत के लिए स्ट्रेचिंग को जरूरी मानते हैं. जानकारों की माने तो मसल्स को फ्लेक्सिबल और एक्टिव रखने के लिए स्ट्रेचिंग जरूरी है. इसके अलावा बौडी को हाइड्रेट रखने के लिए पानी खूब पिएं. पानी पीने से मसल्स हाइड्रेटेड रहते हैं और एक्स्ट्रा फैट बौडी से बाहर होता है.

कभी न लें स्टेरौयड

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आमतौर पर फिटनेस ट्रेनर्स जल्दी बौडी बनाने के लिए लोगों को स्टेरौयड लेने की सलाह देते हैं, पर वरुण का मानना बिल्कुल अलग है. जानकार भी इसके सेवन को हेल्दी नहीं मानते. स्टेरौयड सेवन से कुछ वक्त के लिए तो आपको फायदा दिखेगा पर लंबे वक्त के लिए ये काफी हानिकारक होता है. स्टेरौयड का इस्तेमाल करने से त्वचा और मसल्स का बहुत नुकसान होता है.

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किसी भी चोट को सिरियसली लें

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जब आप वर्कआउट करते है और उस दौरान अगर मसल्स में चोटें आती रहती हैं, तो उसे रिकवरी के लिए रेस्ट करना जरूरी होता है. चोट लगने के बाद भी अगर आप वर्कआउट करते है, तो मसल्स और अधिक डैमेज होता है. जब मसल्स टूटता है तो ठीक होने के बाद ही वह बड़ा बनता है. इसलिए अपनी बौडी को रिपेयर करने के लिए समय देना पड़ता है.

फूड में प्रोटीन नैचुरली लेने की जरुरत होती है

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बाजार में भारी मात्रा में आर्टिफिशियल प्रोटीन्स मिलते हैं. पर वरुण प्रोटीन के नेचुरल सोर्सेज को बेहतर मानते हैं. एक्सपर्ट्स की माने तो बौडी बिल्डिंग के लिए प्रोटीन का इनटेक जरूरी है. मसल्स बिल्डिंग, सेल्स बिल्डिंग में इसका अहम रोल होता है. अच्छी सेहत के लिए वरुण नेचुरल प्रोटीन को बेहद जरूरी मानते है. नट्स, दाल, अंडे, केला, मीट जैसे खाद्य पदार्थ प्रोटीन के प्रमुख स्रोत होते हैं. इनके सेवन से शरीर को पर्याप्त प्रोटीन मिलती है.

जानिए कैसे स्मार्टफोन्स बर्बाद कर रहे हैं नींद

तकनीक ने हमारे जीवन को बदल कर रख दिया है. इसने सबको काफी प्रभावित किया है. इसी क्रम में स्मार्टफोन्स और कंप्यूटर जैसी चीजों ने इंसानी जीवन में काफी बदलाव लाया है. जिस हिसाब से लोगों ने इन तकनीक को  हाथो हाथ लिया,  आलम है कि अब ये हमारे जीवन को नकारात्मक ढंग से प्रभावित कर रहे हैं.

हाल ही में हुए एक शोध में ये बात सामने आई कि कंप्यूटर और स्मार्टफोन से निकलने वाली किरणें हमारी सेहत पर बुरा असर डालती हैं. इनसे निकलने वाली आर्टिफीशियल लाइट हमारी नींद पर बुरा असर करती हैं.  जिसके कारण लोगों में अनिद्रा, माइग्रेन जैसी परेशानियां होने लगी हैं. वैज्ञानिकों के इस शोध से इन समस्याओं का इलाज भी संभव है.

शरीर को कैसे प्रभावित करती है आर्टिफीशियल लाइट

शोधकर्ताओं ने इस शोध में पाया कि आंखों की कुछ कोशिकाएं हमारे आसपास की रोशनी को प्रोसेस कर हमारे बौडी क्लौक को फिर से फिर से तय करती हैं. आंखों की ये कोशिकाएं जब देर रात को इन किरणों के संपर्क में आती हैं, हमारा आंतरिक समय चक्र प्रभावित हो जाता है. जिसके कारण स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां पैदा होने लगती हैं.

इस अनुसंधान की मदद से माइग्रेन, अनिद्रा और बौडी क्लौक संबंधी शिकायतों का इलाज किया जा सकता है.

गरमी में कोल्डड्रिंक की बजाय पीयें हेल्दी सत्तू का शर्बत

गरमी में प्यास बुझाने के लिए लोग कोल्ड ड्रिंक्स जैसी चीजें पीतें हैं जो बौडी को बहुत नुकसान पहुंचाता है, जबकि चने के सत्तू का शर्बत उतना ही बौडी के लिए फायदेमंद होता है. गरमी में भुने हुए चने, जोऊं और गेहूं पीस कर सत्तू का शर्बत बनाया जाता है. सत्तू पेट की गर्मी कम करता है.  कुछ लोग इसमें चीनी मिला कर तो कुछ लोग नमक और मसाले मिला कर खाते हैं. यह गरमी में काफी फायदेमंद होता है. आज हम आपको घर पर कुछ ही मिनटों में बनने वाला चने की शर्बत बनाना सिखाएंगे, जो आपको गरमी से राहत देगा.

सामग्री

सत्तू – 1 कटोरी

पुदीना की पत्तियां बारीक़ कटी – 4 चम्मच

नींबू का रस – 3 छोटे चम्मच

हरी मिर्च बारीक़ कटी – 1

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भुना जीरा पाउडर – 1 छोटा चम्मच

काला नमक – 1/2 छोटा चम्मच

बर्फ का चूरा – आवश्यकतानुसार

बनाने का तरीका

-पहले चने के सत्तू में थोड़ा सा पानी डालकर घोल लें.

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-घोल बनाते समय यह ध्यान रखें कि इसमें कोई गुलथी न रह जाए. ताकि पीने में स्वाद बराबर बना रहें।

-अब इसमें कटी हुई पुदीना की पत्तियां, बारीक़ कटी हरी मिर्च, नींबू का रस, भुना जीरा पाउडर, काला नमक डाल कर अच्छे से मिक्स कर लें.

– सत्तू हेल्थ ड्रिंक को 4 गिलास में डालें और इन गिलासों में बर्फ़ के स्लाइस डालकर सर्व करें.

गरीबी बनी एजेंडा

राहुल गांधी का नया चुनावी शिगूफा कि यदि वे जीते तो देश के सब से गरीब 20 फीसदी लोगों को 72,000 रुपए साल यानी 6,000 रुपए प्रति माह हर घर को दिए जाएंगे, कहने को तो नारा ही है पर कम से कम यह राम मंदिर से तो ज्यादा अच्छा है. भारतीय जनता पार्टी का राम मंदिर का नारा देश की जनता को, कट्टर हिंदू जनता को भी क्या देता? सिर्फ यही साबित करता न कि मुसलमानों की देश में कोई जगह नहीं है. इस से हिंदू को क्या मिलेगा?

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लोगों को अपने घर चलाने के लिए धर्म का झुनझुना नहीं चाहिए चाहे यह सही हो कि पिछले 5,000 सालों में अरबों लोगों को सिर्फ और सिर्फ धर्म की खातिर मौत की नींद सुलाया गया हो. लोगों को तो अपने पेट भरने के लिए पैसे चाहिए.

यह कहना कि सरकार इस तरह का पैसा जमा नहीं कर सकती, अभी तक साबित नहीं हुआ है. 6,000 रुपए महीने की सहायता देना सरकार के लिए मुश्किल नहीं है. अगर सरकार अपने सरकारी मुलाजिमों पर लाखों करोड़ रुपए खर्च कर सकती है, उस के मुकाबले यह रकम तो कुछ भी नहीं है. यह कहना कि इस तरह का वादा हवाहवाई है तो गलत है, पर सवाल दूसरा है.

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सवाल है कि देश की 20 फीसदी जनता को इतनी कम आमदनी पर जीना ही क्यों पड़ रहा है? इस में जितने नेता जिम्मेदार उस से ज्यादा वह जाति प्रथा जिम्मेदार है जिस की वजह से देश की एक बड़ी आबादी को पैदा होते ही समझा दिया जाता है कि उस का तो जन्म ही नाली में कीड़े की तरह से रहने के लिए हुआ है. उन लोगों के पास न घर है, न खेती की जमीन, न हुनर, न पढ़ाई, न सामाजिक रुतबा. वे तो सिर्फ ऊंची जातियों के लिए इतने में काम करने को मजबूर हैं कि जिंदा रह सकें.

देश का ढांचा ही ऐसा है कि इन गरीबों की न आवाज है, न इन के नेता हैं जो इन की बात सुना सकें. उन को समझाने वाला कोई नहीं. गनीमत बस यही है कि 1947 के बाद बने संविधान में इन्हें जानवर नहीं माना गया.

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1947 से पहले तो ये जानवर से भी बदतर थे. अमेरिका के गोरे मालिक अपने नीग्रो काले गुलामों की ज्यादा देखभाल करते थे, क्योंकि वे उन के लिए काम करते थे और बीमार हो जाएं या मर जाएं तो मालिक को नुकसान होता था. हमारे ये गरीब तो किसी के नहीं हैं, खेतों के बीच बनी पगडंडी हैं जिस की कोई सफाई नहीं करता. हर कोई इस्तेमाल कर के भूल जाता है.

इन को 72,000 रुपए सालाना दिया जा सकता है. कैसे दिया जाएगा, पैसा कहां से आएगा यह पूछा जाएगा, पर कम से कम इन की बात तो होगी. ऊंची जातियों के लिए यह झकझोरने वाली बात है कि 25 करोड़ लोग ऐसे हैं जो आज इस से भी कम में जी रहे हैं. क्यों, यह सवाल तो उठा है. असली राष्ट्रवाद यही है, मंदिर की रक्षा नहीं.

औरत और नौकरियां

शहरी हों या गांवों की औरतों की नौकरियां कम होती जा रही हैं. सरकारी आंकड़ें, जिन्हें मोदी सरकार चुनावी दिनों में रोक रही थी, बताते हैं कि पिछले 15 सालों में औरतों की काम में भागीदारी आधी रह गई है. गांवों में पिछले 6 सालों में 2 से 8 करोड़ औरतों को नौकरी से हाथ धोना पड़ा है.

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यह तब है जब घरों में बच्चे कम हैं और औरतों को अब बच्चे पालने में मुसीबत कम होती है. घरों में अब सास या मां भी काफी तंदुरुस्त रहती हैं कि वह पोतेनाती को पालने में हाथ बंटा सके, पर फिर भी औरतें काम पर नहीं जा पा रहीं.

इस की एक वजह तो यह है कि पिछले सालों में नौकरियों में एकदम कमी आई है. सरकार की नीतियां ही ऐसी हैं कि न कारखाना लगाना आसान है, न दुकान. खेती में फसल अच्छी हो तो दाम नहीं मिलता और जब दाम बढ़ते हैं तो उपज कम होती है, इसलिए नई नौकरियां ही नहीं निकल रहीं. घर का मर्द खाली हो तो औरतों की हिम्मत नहीं होती कि वे नौकरी पर निकलें.

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अगर देश का काम चल रहा है तो इसलिए कि सरकारी नौकरियों में लोग भरपूर कमा रहे हैं. वहां वेतन भी है, रिश्वत भी. वहां पैसा जम कर बंटता है और खैरात में कुछ बेकार बैठे लोगों के हाथों में आ जाता है. भगवा गमछेधारी आजकल पैदल नहीं चलते, शानदार मोटरबाइक पर चलते हैं, पर हैं बेरोजगार. उन की कमाई का एक बड़ा हिस्सा जबरन चंदे से आता है पर इसे नौकरी तो नहीं कह सकते. देशभर में जो झगड़े बढ़ रहे हैं उस के पीछे बेरोजगारी है क्योंकि निकम्मे लोग हर तरह के काम करने लगते हैं और चूंकि आजकल पुलिस कुछ कहती नहीं तो मुसलिमों, दलितों, गरीबों, किसानों को पीटपाट कर कमाई की जाती है. घरों की औरतें भी इस कमाई पर काम चला लेती हैं.

जबकि लड़कियों की पढ़ाई अब लड़कों के बराबर सी होने लगी है, 2011-12 से 2017-18 तक गिनती बढ़ी है पर उतनी नहीं जितनी ज्यादा लड़कियां पढ़ कर आ गई हैं. आज हर घर में 2-3 बच्चे ही हैं और लड़कियां भी बराबर का काम कर सकती हैं पर न तो उन्हें घर से बाहर काम मिलता है और न ही अपने बदन के बचाव का भरोसा है.

लड़कियों का काम देश की माली हालत में बढ़ोतरी के लिए बहुत जरूरी है. जो देश लड़कियों को बराबर का काम का मौका नहीं देगा, वह पिछड़ जाएगा. वहां औरतें फिर धर्म के नाम पर समय और पैसा बरबाद करेंगी या फिर ह्वाट्सएप जैसे फालतू कामों पर बेकार करेंगी. सब का साथ सब का विकास में औरतों का विकास कहां है, ढूंढ़ना होगा.

इस गरमी बौडी को ठंडक देने के लिए बनाएं गुलकंद

गर्मियों में गुलकंद खाने से बौडी को ठंडक मिलती है. बौडी को गुलकंद डीहाइड्रेशन से बचाता है और स्किन को भी तरोताजा रखने के साथ यह पेट को भी ठंडक पहुंचाता है. गुलकंद में विटामिन सी, ई और बी अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं. इसमें एंटीऔक्सीडेंट्स भरपूर होते है, जो बौडी की इम्यूनिटी पावर को बढ़ाता है और थकान दूर भी करता हैं. खाने के बाद गुलंकद माउथ फ्रेशनर का काम करने के साथ पाचन से जुड़ी प्रौब्लम्स को भी दूर करता है.

सामग्री

चौड़े मुंह वाला कांच का जार

गुलाब की पत्तियां

दानेदार चीनी

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इलायची के दाने

पर्ल पाउडर आवश्यक्तानुसार

बनाने का तरीका

-गुलकंद बनाने के लिए गुलाब की पत्तियों को साफ करें, ध्यान रहे कि इस पर कीड़े बिल्कुल नहीं होने चाहिए. पत्तियों को अच्छी तरह से धोकर सुखा लें.

-जार में गुलाब की पत्तियों को डालकर इसकी परत बनाएं.

-गुलाब की परत के ऊपर दानेदार चीनी की एक परत बनाएं.

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-अब जार में आधे से ऊपर तक गुलाब की पत्तियों और चीनी की परत बना लें और जार को ढ़क्कन से कसकर ढ़क दें.

-4 हफ्ते तक लगभग हर रोज 7 घंटे तक जार को धूप में रखें.

-हर दूसरे दिन एक लकड़ी की चम्मच से जार में गुलाब और चीनी के पेस्ट को अच्छी तरह मिला लिया करें.

-4 हफ्ते के बाद गुलकंद तैयार हो जाएगा, अब गुलाब का जैम यानी गुलकंद आपके खाने के लिए तैयार है.

जानें 51 साल की उम्र में भी कैसे खूबसूरत लगती हैं माधुरी

माधुरी दीक्षित की फिल्म कलंक 17 अप्रैल को रिलीज होने वाली है. माधुरी इस फिल्म में बहार बेगम के रोल में नजर आएंगी. फिल्म के जरिए माधुरी और संजय दत्त करीब 22 साल बाद साथ नजर आने वाले हैं. हाल ही में हमने माधुरी से इस फिल्म को लेकर खास बातचीत की. जहां माधुरी ने कई दिलचस्प खुलासे किए….

आलिया के डांस से हुईं इंप्रैस…

फिल्म ‘कलंक’ में आलिया भट्ट ने कथक डांस किया है. इस बारें में माधुरी का कहना है कि इस फिल्म में मेरा डांस करना संभव नहीं था, क्योंकि कहानी के हिसाब से ही डांस और संगीत होते है. गाना इतना खुबसूरत था कि डांस करने की इच्छा हो रही थी, लेकिन आलिया को देखकर खुशी भी हो रही थी. कभी कथक की ट्रेनिंग न लेने के बावजूद उसकी प्रस्तुति बहुत अच्छी थी. इस फिल्म में मैंने एक गाना भी गाया है और नयी कोशिश की है. मेरा एक धीमा डांस है, जो फिल्म में एक इमोशनल ट्रैक पर आता है. जिसकी कोरियोग्राफी सरोज खान ने की है.

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इस क्रिकेटर के लिए धड़कता था ‘धक-धक गर्ल’ का दिल

सरोज खान के साथ स्पेशल बौन्डिंग…

सरोज खान के साथ एक अच्छी बौन्डिंग की वजह के बारें में पूछे जाने पर माधुरी कहती है कि उनके और मेरे मन में एक ही बात किसी गाने को लेकर चलती है, जिससे काम अच्छा होता है. उनकी स्टाइल मुझे बहुत पसंद है.

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कथक डांस है खूबसूरती का राज…

51 साल की उम्र में भी माधुरी बेहद खूबसूरत और फिट हैं. आखिर क्या है इसका राज. इस बारे में माधुरी ने खुलासा करते हुए बताया- मेरी फिटनेस और खूबसूरती का सारा क्रेडिट कथक डांस को जाता है, मैं आज भी वैसे ही प्रैक्टिस करती रहूं, जैसे पहले करती थीं.

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नए जेनरेशन के साथ काम करना अच्छा लगा…

इसके अलावा आज के नए जेनेरेशन के साथ काम करने में बहुत अच्छा लगा, क्योंकि वे उम्र के हिसाब से काफी मेच्योर है. जिसमें आलिया भट्ट,वरुण धवन, आदित्य रौय कपूर सभी है, क्योंकि आप उनके रिएक्शन को नहीं जान सकते, उनके काम करने के तरीका पता नहीं होता, ऐसे में आपको उसे खोजना पड़ता है. स्पेस की कमी नहीं होती, क्योंकि सबको काम करने का मौका मिलता है और वे उसी में कुछ कर सकते है.

 ‘कलंक’ का ‘जफर’ बनने के लिए करनी पड़ी कड़ी मेहनत: वरुण धवन

बौलीवुड एक्टर वरूण धवन ने अपनी आने वाली फिल्म कलंक को पर्सनल लाइफ को लेकर इंंटरव्यू के दौरान कई खुलासे किए, आइए जानते है उनसे हुई मुलाकात के कुछ अंश…

आजकल आप बहुत ही इंटेंस भूमिका निभा रहे है, जबकि आपकी फिल्म अक्टूबरनहीं चली, फिल्म कलंक में खास क्या है, जिससे आप उत्साहित हुए?

इस फिल्म में मैंने बहुत अलग काम किया है. इस जोनर में मैंने कभी काम नहीं किया है. थिएटर करते वक़्त मैंने हमेशा ड्रामेटिक अभिनय किये है, जिसे करने का मौका अभी तक मुझे नहीं मिला था. जब मैंने अक्टूबर जैसी फिल्म की थी, तो शुरू में ही पता लग गया था कि ये फिल्म कितनी चलेगी. जितनी भी चली ठीक थी. मैं जब इस तरह की फिल्में करता हूं तो सोचता हूं कि फिल्म में लगाये पैसे का लौस न हो, लेकिन अगर ‘कलंक’ जैसी फिल्म न चले, तो दुःख होता है. आर्ट फिल्म से आप सौ करोड़ के बिजनेस की उम्मीद नहीं कर सकते. मुझे एक्टिंग में प्रयोग करते रहना पसंद है.

क्या आपको एक्सपेरिमेंट से डर नहीं लगता ?

हर कोई एक्सपेरिमेंट करता है. अमिताभ बच्चन आज भी एक्सपेरिमेंट करते है. इसके अलावा जो कहानी मुझे आकर्षित करें, उसे ही करना चाहता हूं. फिल्म ‘कलंक’ में अगर मैं कामयाब हुआ, तो एक अलग जोनर मेरे लिए तैयार हो जायेगा. इसमें डर होता है, पर मुझे अब ये करते रहना चाहिए.

इसमें आपका एक अलग लुक है, जिसके लिए आपने काफी मेहनत भी की है, कैसे किया ये सब?

इस फिल्म के लिए मुझे बहुत काम करना पड़ा. इसके लिए पहले तो मैंने अपने बाल लम्बे किये है. आंखों में सूरमा लगाया है, क्योंकि मैं साल 1940 का एक लोहार हूं और उस समय सूरमा ज्यादा लगाया जाता था. इसमें मुझे बहुत ही एग्रेसिव दिखाया गया है. जिसकी जिंदगी, ‘रूप’ (आलिया भट्ट) के आने से पहले बहुत ही अलग थी.

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इसके अलावा शारीरिक और भावनात्मक चुनौतियां इसमें बहुत अधिक थी. मुझे बड़े दिखने के साथ-साथ एक मजबूत आदमी के रूप में दिखना था. जो घमंडी भी है. इसमें एक बुल फाइट पर भी सीन है, जिसमें मैंने बौडी डबल नहीं किया, जिससे मुझे काफी चोटें आई थी. इतना ही नहीं सेट पर जाने के बाद लगता था कि मैं एक अलग दुनिया में आ गया हूं. इसके अलावा डायलौग पर काफी काम करना पड़ा. ये फिल्म मुझे कम्पलीट करती है, जो मुझे किसी फिल्म ने नहीं किया.

इसमें आपने संजय दत्त के साथ काम किया है, कोई पुरानी बचपन की यादें, जिसे आप शेयर करना चाहे?

बचपन के बहुत सारे यादगार पल है. मेरे पिता संजय दत्त की वजह से ही निर्देशक बने थे. उनकी पहली पिक्चर ‘ताकतवर’ थी, जिसमें संजय दत्त और गोविंदा साथ थे. हमारे साथ उनका एक अच्छा सम्बन्ध है, लेकिन अभिनय करते वक्त वे एक कलाकार के रूप में सामने आये और अच्छा लगा.

वरुण, आपका क्रेज यूथ और बच्चों में बहुत है, सोशल मीडिया पर भी आपकी काफी फैन फोलोविंग है, लेकिन आपकी फिल्में उतनी नहीं आ रही हैइसकी वजह क्या है?

ये सही है कि लोग मुझे बच्चों की फिल्म में देखना चाहते है, लेकिन वैसी बहुत अच्छी कोई स्क्रिप्ट नहीं मिली है. अगर मिलेगी तो जरूर करूंगा. आगे मेरी कई फिल्में आ रही है.

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इस फिल्म में इटरनल लव दिखाया गया है, लव या रिलेशनशिप आपकी नजर में क्या है?

प्यार एक अच्छा एहसास है, जिसमें आप किसी के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहते है. कई बार इंसान बुरा नहीं होता, पर हादसे बुरे हो जाते है, जिससे उसका गलत इस्तेमाल हो जाता है. मैंने रियल लाइफ में ऐसा अनुभव अभी तक नहीं किया है. आजकल लव ऐसा नहीं रहा, पर होना चाहिए.

आगे कौन-कौन सी फिल्में है?

फिल्म ‘कुली नंबर वन’ का रीमेक अपने पिता के साथ कर रहा हूं. इसके अलावा फिल्म ‘स्ट्रीट डांसर थ्री डी’ और ‘रणभूमि’ है.

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