मोदी की नैय्या

यह गनीमत ही कही जाएगी कि इन पंक्तियों के लिखे जाने तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आम चुनाव जीतने के लिए पाकिस्तान से व्यर्थ का युद्ध नहीं लड़ा.

सेना को एक निरर्थक युद्ध में झोंक देना बड़ी बात न होती. पर जैसा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि युद्ध शुरू करना आसान है, युद्ध जाता कहां है, कहना कठिन है. वर्ष 1857 में मेरठ में स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई ब्रिटिशों की हिंदुओं की ऊंची जमात के सैनिकों ने छेड़ी लेकिन अंत हुआ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर एकछत्र ब्रिटिश राज में, जिस में विद्रोही राजा मारे गए और बाकी कठपुतली बन कर रह गए.

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आक्रमणकारी पर विजय प्राप्त  करना एक श्रेय की बात है, पर चुनाव जीतने के लिए आक्रमण करना एक महंगा सौदा है, खासतौर पर एक गरीब, मुहताज देश के लिए जो राइफलों तक के  लिए विदेशों का मुंह  ताकता है, टैंक, हवाईजहाजों, तोपों, जलपोतों, पनडुब्बियों की तो बात छोड़ ही दें.

नरेंद्र मोदी के लिए चुनाव का मुद्दा उन के पिछले 5 वर्षों के काम होना चाहिए. जब उन्होंने पिछले हर प्रधानमंत्री से कई गुना अच्छा काम किया है, जैसा कि उन का दावा है, तो उन्हें चौकीदार बन कर आक्रमण करने की जरूरत ही क्या है? लोग अच्छी सरकार को तो वैसे ही वोटे देते हैं. ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक बिना धार्मिक दंगे कराए चुनाव दर चुनाव जीतते आ रहे हैं. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का दबदबा बिना सेना, बिना डंडे, बिना खूनखराबे के बना हुआ है.

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नरेंद्र मोदी को खुद को मजबूत प्रधानमंत्री, मेहनती प्रधानमंत्री, हिम्मतवाला प्रधानमंत्री, चौकीदार प्रधानमंत्री, करप्शनफ्री प्रधानमंत्री कहने की जरूरत ही नहीं है, सैनिक कार्यवाही की तो बिलकुल नहीं.

रही बात पुलवामा का बदला लेने की, तो उस के बाद बालाकोट पर हमला करने के बावजूद कश्मीर में आएदिन आतंकवादी घटनाएं हो रही हैं. आतंकवादी जिस मिट्टी के बने हैं, उन्हें डराना संभव नहीं है. अमेरिका ने अफगानिस्तान, इराक, सीरिया में प्रयोग किया हुआ है. पहले वह वियतनाम से मार खा चुका है. अमेरिका के पैर निश्चितरूप से भारत से कहीं ज्यादा मजबूत हैं चाहे जौर्ज बुश और बराक ओबामा जैसे राष्ट्रपतियों की छातियां 56 इंच की न रही हों. बराक ओबामा जैसे सरल, सौम्य व्यक्ति ने तो पाकिस्तान में एबटाबाद पर हमला कर ओसामा बिन लादेन को मार ही नहीं डाला था, उस की लाश तक ले गए थे जबकि उन्हें अगला चुनाव जीतना ही नहीं था.

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नरेंद्र मोदी की पार्टी राम और कृष्ण के तर्ज पर युद्ध जीतने की मंशा रखती है पर युद्ध के  बाद राम को पहले सीता को, फिर लक्ष्मण को हटाना पड़ा था और बाद में अपने ही पुत्रों लवकुश से हारना पड़ा था. महाभारत के जीते पात्र हिमालय में जा कर मरे थे और कृष्ण अपने राज्य से निकाले जाने के बाद जंगल में एक बहेलिए के तीर से मरे थे. चुनाव को जीतने का युद्ध कोई उपाय नहीं है. जनता के लिए किया गया काम चुनाव जिताता है. भाजपा को डर क्यों है कि उसे युद्ध का बहाना भी चाहिए. नरेंद्र मोदी की सरकार तो आज तक की सरकारों में सर्वश्रेष्ठ रही ही है न!

प्यार की वजह से तो नहीं बढ़ रहा आपका वजन? जानिए यहां

अक्सर महिलाओं को यह कहते सुना जाता है कि शादी से पहले तो मैं दुबली-पतली छरहरी सी थी, मगर शादी के बाद मोटी हो गयी. ये सच है कि ज्यादातर महिलाएं शादी के बाद मोटी हो जाती हैं. यही नहीं, किसी से नैन मिल जाएं और प्रेम का रोग लग जाए तो भी वजन बढ़ने लगता है. यूं तो किसी के प्यार में डूबना एक खूबसूरत अहसास होता है, लेकिन प्यार करने से अगर वजन बढ़ने लगे तो यह उन लड़कियों के लिए चिन्ता का सबब बन जाता है, जो अपने फिगर को लेकर काफी कौन्शस रहती हैं.

औस्ट्रेलिया की ‘सेंट्रल क्वींलैंड यूनिवर्सिटी’ की एक स्टडी के मुताबिक, जब लोग किसी के साथ रिलेशनशिप में होते हैं या उनको किसी से प्यार हो जाता है, तो उनका वजन बढ़ने लगता है. शोधकर्ताओं ने अपनी स्टडी में लगभग 15,000 से ज्यादा लोगों को शामिल किया. इसमें उन्होंने अलग-अलग जीवनशैली के सिंगल्स और कपल्स दोनों तरह के लोगों को शामिल किया और फिर पुरुष और महिलाओं के बौडी मास इंडेक्स की तुलना करके नतीजे घोषित किये. शोध के दौरान पाया गया कि जब लोग किसी रिश्ते में आ जाते हैं तो उनका मोटापा इसलिए बढ़ने लगता है, क्योंकि उनके अन्दर पार्टनर को इम्प्रेस करने की भावना लगभग खत्म हो जाती है और वह अपने बौडी शेप को बनाये रखने की ओर ज्यादा ध्यान नहीं देते हैं. शोध में शामिल ज्यादातर लोगों ने यह माना कि शादी के बाद या रिलेशनशिप में आने के बाद वे कसरत, जौगिंग या अन्य शारीरिक क्रियाकलापों की ओर कम ध्यान देने लगे थे. उनका ज्यादा ध्यान पार्टनर के साथ घूमने, मौज-मस्ती करने और विभिन्न प्रकार के पकवानों का लुत्फ उठाने में गुजरने लगा था, जिसके चलते उनका वजन बढ़ता गया. जो जोड़े अपनी शादी से खुश, संतुष्ट और सुरक्षित महसूस करते हैं उनमें वजन बढ़ने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं क्योंकि उनके दिमाग पर किसी अन्य को आकर्षित करने का कोई दबाव नहीं होता.

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वजन बढ़ने का एक मुख्य कारण यह भी है कि जो लोग प्यार के रिश्ते में होते हैं वो लोग जिम जाकर एक्सरसाइज करने के बजाए अपना ज्यादातर समय पार्टनर के साथ घर में रहकर ही गुजारना पसंद करते हैं. यह बदली हुई जीवनशैली भी वजन बढ़ने का एक अहम कारण है. इसके अलावा जब लोग प्यार में होते हैं तो वो बेहद खुश रहते हैं और अगर रिश्ता नया हो तो यह खुशी डबल हो जाती है. बता दें, जब हम खुश होते हैं तो हमारे शरीर में हैप्पी हार्मोन आॅक्सीटोसिन और डोपामाइन निकलते हैं. इन हैप्पी हार्मोन से चौकलेट, वाइन और ज्यादा कैलोरी वाली चीजें खाने की इच्छा बढ़ती है, जो वजन बढ़ाने का काम करती हैं. तो शादी के बाद जो लोग बहुत ज्यादा खुश रहते हैं, उनके मोटे होने की उतनी ज्यादा सम्भावनाएं होती हैं. शादीशुदा स्त्री अगर 20 साल की है तो अगले पांच सालों में उसका वजन 11 किलोग्राम के लगभग बढ़ने की सम्भावना होती है. वहीं इसी उम्र के पुरुष का वजन 13 किलोग्राम तक बढ़ने की सम्भावना होती है.

नींद की कमी

शादी के बाद लड़कियों का स्लीपिंग पैटर्न बदल जाता है. कई बार वे पर्याप्त नींद नहीं ले पाती हैं, जो वजन बढ़ने का एक कारण है. अपना घर छोड़कर शादी के बाद किसी और जगह एडजस्ट करना सबसे कठिन काम है. नये घर में एडजस्ट करने में कुछ तनाव तो होता ही है जो कि अप्रत्यक्ष रुप से वजन पर प्रभाव डालता है.

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पकवानों का कमाल

शादी के बाद हमारी भारतीय नारियां पाक कला में खूब हाथ आजमाती हैं ताकि अपने जीवनसाथी और घर के बाकी सदस्यों को खुश कर सकें और तारीफ पा सकें. जब तरह-तरह के व्यंजन रोज बनाये और खाये जाते हैं तो वजन बढ़ना तो लाजिमी है. जरूरी नहीं कि हैप्पी मैरिज से ही वजन बढ़े, कभी-कभी मैरिज हैप्पी न भी हो तो भी हस्बैंड वाइफ दोनों का वजन बढ़ने लगता है, उसकी वजह किचेन में बनने वाले विभिन्न हाई कैलोरी पकवान हैं.

हार्मोन्स में बदलाव

जब लड़की शादीशुदा जीवन में प्रवेश करती है तो उसके शरीर में कई प्रकार के हार्मोन्स बदलाव होते है. सेक्सुयल लाइफ में एक्टिव होना वजन बढ़ने का एक मुख्य कारण होता है. जीवनसाथी से शारीरिक नजदीकियां शरीर में हैप्पी हार्मोन्स यानी औक्सीटोसिन और डोपामाइन का स्राव बढ़ा देती हैं, इसके कारण शारीरिक संरचना में थोड़ा-बहुत बदलाव आता है.  महिलाएं जिससे प्यार करती हैं उसके साथ सेक्शुयल रिलेशनशिप बनाने से उनकी कमर और हिप्स की चौड़ाई बढ़ती है. आमतौर पर देखा गया है कि सेक्स के बाद भूख भी बढ़ने लगती है और इसके अलावा आप प्रेग्नेंसी से बचने के लिए गर्भनिरोधक गोलियों का भी इस्तेमाल करने लगती हैं, जो आपके मोटापे का कारण बनती हैं. पति के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनने से हार्मोन्स में आये बदलाव का असर अंगों पर साफ दिखने लगता है, खासतौर पर ब्रेस्ट, कमर और हिप्स पर. शादी के बाद लड़कियों के हिप्स अपने सामान्य आकार से बढ़कर थोड़े बड़े हो जाते हैं. यह प्राकृतिक तौर पर होना जरूरी भी है क्योंकि शारीरिक सम्बन्ध के बाद गर्भधारण की प्रक्रिया होती है. प्राकृतिक तौर पर बड़े हिप्स की महिलाओं को डिलिवरी के वक्त अधिक दर्द नहीं होता है और वह आराम से बच्चे को जन्म देती हैं, जबकि छोटे हिप्स की दुबली-पतली महिलाओं को असहनीय दर्द का सामना करना पड़ता है. सेक्शुअली एक्टिव होने पर महिलाओं के हिप्स की चौड़ाई का बढ़ना प्रकृति का नियम है. प्रेग्नेंसी के दौरान अधिक खाने की सलाह भी दी जाती है, जिससे लड़कियों का वजन बढ़ जाता है और डिलिवरी के बाद इसको घटाने पर ठीक तरीके से ध्यान न दिये जाने की वजह से शरीर फूला रह जाता है.

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कम खाओ, गम खाओ

दुबला पतला रहने के लिए एक कहावत मशहूर है कि – कम खाओ, गम खाओ. दरअसल शरीर को छरहरा रखने के लिए हमेशा भूख से थोड़ा कम खाने की सलाह दी जाती है. दूसरे, चिन्ता को चिता के समान इसलिए बताया गया है क्योंकि इसका सीधा असर हमारे स्वास्थ्य पर पड़ता है. चिन्ताग्रस्त व्यक्ति को भूख कम लगती है, जिसकी वजह से उस पर मोटापा नहीं चढ़ता. जब हम अकेले होते हैं, अविवाहित होते हैं, दुखी रहते हैं, हमारा कोई प्रेमी या पार्टनर नहीं होता तो हम अकेलेपन के अहसास से जूझते रहते हैं. यही सोचते रहते हैं कि – कोई होता, जिसको अपना, हम अपना कह लेते यारों…

इस गम का सीधा असर हमारी सेहत पर पड़ता है. इसलिए तन्हा व्यक्ति अक्सर दुबला-पतला होता है. जबकि प्यार होने के बाद हम न सिर्फ खुश रहते हैं, घूमते-फिरते हैं, बल्कि अपने पार्टनर के साथ हर वक्त कुछ न कुछ पीजा, बर्गर, नौनवेज, आइसक्रीम, चौकलेट जैसी चीजें खाते-पीते रहते हैं. शादी के बाद लड़कियां पति के साथ रहकर बाहर का खाना ज्यादा पसन्द करती हैं. हनीमून के दौरान भी बाहर का खाना ही खाते हैं जो ज्यादा कैलोरी वाला होता है. ये सारे प्यार के साइड इफेक्ट हैं, जो आपके फिगर का सत्यानाश कर देते हैं. इसलिए प्यार करें, जम कर करें, मगर अपने खाने पर कंट्रोल रखें और एक्सर्साइज करना भी न छोड़ें.

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यूं दें अपने घर को न्यू लुक

आप घर में नया बदलाव लाना चाहती हैं, तो ये काम आप बिना पैसे खर्च किए भी कर सकती हैं. आज हम ऐसे ट्रिक्स आपको बताने जा रहे हैं, जिससे आप आजमा कर घऱ को एक नया लुक दे सकती हैं. आइए जानते हैं.

  1. घर को आकर्षक बनाने के लिए पुराने पीतल के बरतनों को पालिश करके आप सजाने के काम में ला सकती हैं. उसके ऊपर स्टोन लगाकर उसे और भी आकर्षक बना सकती हैं. इसके अलावा पुराने अच्छे कपडों का भी यूज कर सकती हैं. जैसे-आपकी कोई पुरानी अच्छी साड़ी हो,  जिसे आप नहीं पहनना चाहती हैं तो आप उसे कुशन कवर या कर्टेन के रूप में यूज कर सकती हैं. इसके अलावा पुरानी साड़ियों का स्टाइलिश बेडशीट विद पिलो कवर भी बनने लगे हैं, यह बेडरूम की खूबसूरती बढ़ा देते हैं.

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2.  एक्सेसरीज फर्नीचर इसके स्थान में भी बदलाव ला सकती हैं. जैसे- बडे रूम का सामान टेबल या साइड टेबल, चेयर, स्टूल और एक्सेसरीज में लैंप, पेंटिंग, वाल मिरर या डेकोरेशन के सामान आदि को लिविंग रूम में लगा सकती हैं और लिविंग रूम का कुछ सामान बेडरूम में सजा सकती हैं. ऐसा आप हर पांच से छह माह में एक बार कर सकती हैं. इससे लिविंग रूम और बेडरूम दोनों में बदलाव महसूस होगा.

3.  दीवारों पर फोटो लगाना, यह बहुत पुराना चलन हो चुका है. आप अपनी क्रियेटिविटी दिखाएं कुछ नया करके दिखाएं. जैसे-आप परिवार के लोगों की अलग-अलग फोटो लें और व्हाइट ग्लासी पेपर में चिपकाकर उसके नीचे उनका थोडा-सा इतिहास और उनकी खासियत लिखें और दीवार पर चिपका दें. इस तरह जितने लोगों की फोटो लगाना चाहती हैं, इसी तरह तैयार करके लगाएं तो काफी अच्छा लगेगा.

4. इसके अलावा कई बार बच्चों के द्वारा बनाए गए क्रौफ्ट का भी यूज कर सकती हैं, उसे सजाने के काम ला सकती हैं. वो कलरफुल चीजें दीवारों पर अच्छी भी लगेंगी और बच्चें का प्रोत्साहन भी बढ़ेगा. इसके अलावा आप घर पर वाल हैंगिंग और सैफ्ट टौय बनाकर भी घर पर सजा सकती हैं. तो आप दीवारों पर कलाकृतियों बनाकर भी पेंट कर सकती हैं.

घरेलू रद्दी से बनाएं सुंदर क्राफ्ट

5. मार्केट में लैंप बनाने के लैंम्पशीट मिलती है, आप उसे घर लाकर लैंप भी बना सकती हैं और उसे लाइट के ऊपर लगा सकती हैं. यह देखने में आकर्षक लगता है. पुराने पत्थर और शंख जैसी चीजों को हम घर के बाहर करवा देते हैं या घर के किसी कोने में पडे रहने देते हैं लेकिन आप इनका यूज भी अपने घर को सजाने के लिए कर सकते हैं.इमली के दानों को रंग कर उस पर ग्लिटर लगाकर बाउल में रखकर सजा सकते हैं.

पुराने फर्नीचर को कुछ इस तरह से दें न्यू लुक

 

गरमी में स्किन को भी दें तरबूज का मजा…

गरमी से राहत के लिए लोग तरबूज खाना बहुत पसंद करते हैं. यह हमारी बौडी में पानी की कमी पूरी करता है. पर क्या आप जानते हैं कि तरबूज विटामिन ए का एक बहुत अच्छा सोर्स है, जो स्किन के लिए असरदार होता है. साथ ही, यह एंटीऔक्सिडेंट से समृद्ध होता है, जो एंटी एजिंग के लिए अच्छा होता है.

यह एक स्किन टौनिक है जिसमें 90% पानी होता है, साथ ही नेचुरल शुगर और एंटीऔक्सिडेंट से भरपूर होता है. इसलिए आज हम आपको स्किन के लिए तरबूज के ऐसे फेस मास्क बताएंगे जो आपकी स्किन के लिए बहुत असरदार होगा.

1. सूरज की हीट के लिए तरबूज का फेस पैक

लाल तरबूज में वर्णक एक नेचुरल सनस्क्रीन गार्ड होता है, जो सनबर्न को ठीक करता है.

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ऐसे लगाएं…

-एक मिक्सर में तरबूज के कुछ टुकड़े लें और पीस लें, और फिर इसके रस को सीधा स्किन पर रब करें.

-आप चाहें तो रूई को रस में भिगोकर धूप से प्रभावित हिस्सों पर लगा सकते हैं. इसे लगभग 15 मिनट तक सूखने के बाद धो लें. इससे धूप में डैमेज होने वाली स्किन से आपको बड़ी राहत महसूस होगी.

2. सेंसिटिव स्किन के लिए तरबूज फेस पैक

यह सेंसिटिव स्किन के लिए बहुत असरदार होता है. तरबूज के गूदे में सौफ्ट फाइबर होता है, जो डेड स्किन को हटाने का काम करता है और साथ ही चेहरे के नेचुरल एसिड के साथ मिलकर स्किन को सौफ्ट बनाता है.

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ऐसे लगाएं…

1 बड़ा चम्मच तरबूज का गूदा लेकर उसमें शहद की कुछ बूंदें लें और मिक्स करें.

-इसे आप आसानी से अपने चेहरे पर रब करें और 15 मिनट के लिए छोड़ दें. फिर इसे ठंडे पानी से धो लें.

3. एंटी एजिंग के लिए तरबूज

तरबूज बहुत जल्दी नहीं फटते या सड़ते नहीं हैं, क्योंकि तरबूज कई एंटीऔक्सिडेंट और एंटी-एजिंग गुणों से भरपूर होता हैं, जो आपकी स्किन को सौफ्ट और यंग दिखने में मदद करता हैं.

4. तरबूज और औलिव औयल के साथ फेस पैक

यह स्किन को क्लीन, सौफ्ट और हाइड्रेटेड रखने में मदद करता है.

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ऐसे लगाएं…

1 बड़ा चम्मच तरबूज का गूदा, 1 चम्मच क्रीम, 1 चम्मच औलिव औयल और अंडे की जर्दी लेकर पेस्ट बनाएं.

– इस पेस्ट को गर्दन और चेहरे पर लगायें और लगभग 30 मिनट के लिए छोड़कर फेस को धो लें.

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4. नौर्मल स्किन के लिए तरबूज का फेस पैक

औलिव औयल एक एंटीऔक्सिडेंट और मौइस्चराइजर का काम करता है जो आपकी स्किन को सौफ्ट बनाता है और दूध स्किन को पोषण देता है.

ऐसे लगाएं…

-तरबूज का रस 2 टेबलस्पून, 1 चम्मच औलिव औयल और कुछ दूध की बूंदें मिलाएं.

-तीनों को मिक्स करके कौटन बौल्स में भिगोएं और पूरे चेहरे पर धीरे से लगाएं. और इसे 20 मिनट के लिए छोड़ दें और बाद में फेस को धो लें.

5. औयली स्किन के लिए तरबूज का फेस पैक

तरबूज औयली स्किन में एक्स्ट्रा औयल को सोखने में मदद करता है.

ऐसे लगाएं

1 बड़ा चम्मच ओटमील पाउडर, शहद की कुछ बूंदें और 2 टेबलस्पून तरबूज का रस लें.

-मिश्रण को पूरे चेहरे और गर्दन पर लगाएं और इसे 20 मिनट तक सूखने दें और धो लें.

गरमियों में बनाएं चटपटा और टेस्टी आम पन्ना

गरमियों में सबसे ज्यादा आम बिकता है, पर अक्सर आम को या तो काटकर खाते हैं या मैंगों शेक बनाकर पीते हैं. पर आज हम आपको गरमी में आम की चटपटी और हेल्दी ड्रिंक आम पन्ना की रेसिपी के बारे में बताएंगे…

सामग्री

कच्चे आम– 3

शक्कर – 150 ग्राम,

पुदीना पत्ती – 1/2 कप पत्तियां

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भुना जीरा पाउडर – 02 छोटे चम्मच

काला नमक – 02 छोटे चम्मच

काली मिर्च पाउडर – 1/4 छोटा चम्मच

बनाने का तरीका

-पहले आम को छील कर धो लें. इसके बाद आमों को बीच से काट कर गुठली अलग कर दें. अब आम के गूदे को एक कप पानी के साथ किसी बर्तन में रख कर उबाल लें.

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-उबले हुए गूदे को शक्कर, काला नमक और पुदीना के साथ मिक्सर में डालें और महीन पीस लें. पिसे हुए मिश्रण को छान लें और एक लीटर पानी में मिला दें. साथ ही उसमें काली मिर्च और भुना हुआ जीरा पाउडर भी डाल दें.

– अब इसे सर्विंग गिलास में निकालें और बर्फ के टुकड़ों के साथ सर्व करें.

अब औडियंस को चाहिए एंटरटेनमेंट के साथ अच्छी स्टोरी- माधुरी

शादी के बाद फिल्मों से दूरी बनाने वाली ‘धक धक गर्ल’ के नाम से मशहूर बौलीवुड दिवा माधुरी दीक्षित ने 2013 में फिल्म ‘बांबे टौकीज’ से दोबारा एक्टिंग करियर में कदम रखा. लेकिन इस बार माधुरी ने सिर्फ एक्टिंग में ही नही डांस के क्षेत्र में भी अपना हाथ आजमाया है. इसी के चलते अपनी वेब साइट के जरिए लोगों को डांस की ट्रेनिंग भी देनी शुरू की. वहीं उन्होने मराठी फिल्म ‘15 अगस्त’ का निर्माण भी किया. साथ ही समाज सेवा से भी जुड़ी हुई हैं. इन दिनों वह 17 अप्रैल को प्रदर्शित हो रही फिल्म ‘कलंक’ को लेकर चर्चा में हैं. जिसमें वह संजय दत्त के साथ 21 वर्ष बाद नजर आएंगी. पेश है उनके साथ हुई मुलाकात के कुछ अंश…

आपके अनुसार सिनेमा कहां से कहां पहुंचा?

-जब मैने अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था, उन दिनों ज्यादातर बिजनेस सिनेमा ही बन रहा था. पर उस वक्त भी शबाना आजमी, स्मिता पाटिल जैसी अभिनेत्रियां अलग तरह का सिनेमा कर रही थीं, जिसे आर्ट सिनेमा की संज्ञा दी जा रही थी. पर बड़े स्टार केवल कमर्शियल सिनेमा किया करते थे. पर अब सिनेमा में भेदभाव खत्म हो चुका है. आजकल कटेंट प्रधान फिल्में बनने लगी हैं, जहां स्टार वैल्यू के मायने नहीं है. पर यह फिल्में भी मनोरंजन प्रधान होने चाहिए, ऐसी दर्शकों की मांग है. दर्शक काफी मैच्योर हो गए हैं. अब सिनेमा सिर्फ सिनेमा है, भाषा अलग हो सकती है. बाकी कोई विभाजन नहीं रहा. आजकल डिजिटल की वजह से लोग पूरे विश्व का सिनेमा देख पा रहे हैं. इस वजह से दर्शक चाहता है कि भारतीय सिनेमा में भी अलग-अलग कंटेंट पर फिल्में बनें.

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हौलीवुड की फिल्में भारतीय भाषाओं में डब होकर रिलीज हो रही हैं, इससे भी दर्शकों की रूचि में परिवर्तन आया?

मुझे लगता है कि बदलती जनरेशन और बदलते समाज के चलते लोगों की सोच बदली है. हमारे देश में पचास प्रतिशत यूथ है. यह यूथ तेजी से बदलाव चाहता है. इसलिए मुझे लगता है कि इस वक्त सिनेमा का जो दौर चल रहा है, वह बहुत अच्छा दौर है.

अब लोगों को वह फिल्में पसंद आ रही हैं,जिनमे मनोरंजन के साथ अलग तरह की कहानियां हों. आप खुद अब किस तरह की फिल्में करना चाहती हैं?

मुझे तो सब तरह की फिल्में करनी हैं. जब मैं फिल्मों में काफी सक्रिय थी, तब मैने ‘तेजाब’ भी की थी, तो वही ‘धारावी’ और ‘मृत्युदंड’ जैसी फिल्में भी की थीं. जब मैने ‘मृत्युदंड’ की थी, तब लोगों ने मुझसे कहा था कि मैं अपने करियर को खत्म करने वाला कदम उठा रही हूं. तब मैने उन सभी को जवाब दिया था कि ऐसा नहीं होगा. मुझे फिल्म की स्क्रिप्ट पसंद है. फिल्मकार कुछ अच्छी बात कह रहे हैं. इस फिल्म से मुझे फायदा ही हुआ था. फिल्म को सफलता मिली थी. एक्ट्रेस के तौर पर मेरी एक अलग पहचान भी उभरी थी. कुछ समय पहले मैने ‘टोटल धमाल’  की थी और अब मैने ‘कलंक’की है. दोनों ही फिल्में काफी अलग हैं. ‘टोटल धमाल’ नाम के अनुरूप मनोरंजन का धमाल थी, जबकि ‘कलंक’ 1940 की पृष्ठभूमि में एक संजीदा व जटिल फिल्म है. ‘कलंक’ में हर तरह के रंग हैं. इसमें मनोरंजन के साथ ही कुछ मुद्दे भी उठाए गए हैं.

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फिल्म कलंक किस तरह के मुद्दों को उठाती है?

-फिल्म ‘कलंक’ में बहुत अलग तरह की प्रेम कहानी है. इसी के साथ यह फिल्म इस बात पर रोशनी डालती है कि आप जो निर्णय लेते हैं, उसका असर सिर्फ आपके उपर नहीं, बल्कि आस-पास के लोगों पर भी पड़ता है. इस वजह से हर इंसान की जिंदगी कैसे बदलती है, कैसे हर किसी की जिंदगी की दिशा बदलती है और किस तरह सभी किरदार एक मोड़ पर आते हैं, सभी की लाइफ कोलाइड होती हैं, वह बहुत रोचक है.

फिल्म कलंक के अपने किरदार के बारे में बताना चाहेंगी?

-मेरा किरदार बहार बेगम का है. एक जमाने में महान अदाकारा रही हैं. मगर फिर कुछ ऐसा हुआ कि उन्होंने अपने आपको अपने घर में ही कैद सा कर लिया. वह ज्यादा बाहर जाती नहीं. वह सारी चीजें अपने दिल में ही रखती हैं. एक ग्रे किरदार है.

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फिल्म कलंक में संजय दत्त के साथ काम करने को लेकर क्या कहेंगी?

-सुखद अहसास रहा. हम दोनों लोगों ने पटकथा के अनुसार काम किया है. हमारे मन में कोई जादू जगाने का मसला नहीं रहा.

आपने मराठी फिल्म बकेट लिस्ट में एक्टिंग की. उसके बाद मराठी की फिल्में मिली?

-कुछ औफर हैं. मगर मैं ‘टोटल धमाल’ और ‘कलंक’ में व्यस्त होने की वजह से ध्यान नही दे पायी. अब 17 अप्रैल के बाद मराठी फिल्मों की स्क्रिप्ट पढ़कर निर्णय लूंगी.

आप समाज सेवा में भी काफी सक्रिय रहती है. आपने यूनीसेफ के साथ मिलकर चाइल्ड वेलफेअर और बाल मजदूरों पर काफी काम किया है. बाल मजदूरी की वजहें आपकी समझ में क्या आयीं?

-गरीबी… जब तक परिवार का हर सदस्य काम नही करेगा, तब तक पैसा कैसे आएगा. मगर परिवार का सदस्य शिक्षित हो, तो उस शिक्षा के चलते उसे अच्छी नौकरी और सैलरी मिलेगी, तब वह अपने बच्चों से बाल मजदूरी करवाने की बजाय उन्हें पढ़ने के लिए भेजेगा. इसलिए इस दिशा में काम करते हुए मैने लोगों को शिक्षा मुहैय्या कराने पर ही ज्यादा जोर दिया.

मैंने औरतों व नवजात शिशुओं, नई-नई मां बनने वाली औरतों के लिए काफी काम किया. ऐसी औरतों के साथ मेरी काफी मुलाकातें और बातचीत भी हुई. मैंने कई गांवों में पाया कि तमाम घरों के अंदर बाथरूम न होने की वजह से लड़कियां व औरतें घर से बाहर लगे पानी के पंप के नीचे बैठकर ही स्नान करती हैं. तब मैने ग्राम पंचायत व अन्य सरकारी महकमे से बात करके उनके घरों में बाथरूम और शौचालय बनवाए. इस दिशा में यूनीसेफ ने भी उनकी मदद की.

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आप अपनी वेब साइट डांस विद माधुरी’’पर लोगों को वीडियो के माध्यम से डांस की शिक्षा देने का काम कर रही हैं. इसमें क्या नया कर रही हैं और किस तरह की प्रतिक्रियाएं मिल रही हैं?

-हम हर दिन नए-नए वीडियो डाल रहे हैं. इसमें हम हर तरह के डांस की क्लासेस चलाते हैं. हमने क्लासिकल डांस, भारतनाट्यम, वेसटर्न डांस आदि सिखा रही हूं. हम डांस के माध्यम से एकसरसाइज के लिए भी कार्यक्रम बना रहे हैं. जिससे घर में बैठकर औरतें कसरत भी कर सकें. हम तो चाहते है कि वह अपने-अपने वीडियो भी अपलोड करें, यदि वह ऐसा करते हैं, तो इससे उन्हें भी काम करने का मौका मिल सकता है. हमारे वीडियो कार्यक्रम में जो डांस सिखाने वाले डांसर आते हैं, उन्हें भी काम मिल रहा है.

Edited by- Rosy

आखिर क्यों मल्टीस्टारर फिल्में पसंद करते हैं आदित्य रौय कपूर

बौलीवुड एक्टर आदित्य रौय कपूर का करियर काफी हिचकोले लेते हुए आगे बढ़ रहा है. 2017 में रिलीज फिल्म ‘‘ओ के जानू’ ’की असफलता ने उनके करियर पर विराम सा लगा दिया था. लेकिन अब वो 17 अप्रैल को रिलीज हो रही फिल्म ‘‘कलंक’’ के अलावा ‘सड़क 2’ और ‘मलंग’ जैसी मल्टीस्टारर फिल्मों में नजर आएंगे.

‘‘ओके जानू की असफलता का आपके कैरियर पर असर पड़ा?

-देखिए, हर फिल्म का कलाकार के करियर पर असर होता है. ‘ओ के जानू’ को लेकर मैं काफी उत्साहित था. हमें एक फिल्म को बनाने में छह महीने लगते हैं और उसका परिणाम सिर्फ एक दिन में आ जाता है. फिल्म के निर्माण के दौरान हमारा जो अनुभव होता है, वह सदैव हमारे साथ रहता है. फिल्म ‘ओ के जानू’ को आपेक्षित सफलता नहीं मिली, मगर वजह स्पष्ट नहीं हुई. मेरा मानना है कि जब आप समान विचार वालों के साथ काम करते हैं, तो उसका असर अलग होता है. मेरी समझ में आया कि समान विचार वाले सहकलाकार के साथ काम करने का अनुभव अच्छा होता है. ‘ओ के जानू’ में हम सभी ने एक टीम की तरह काम किया था. काम अच्छा हो रहा था, इसलिए हमें काम करने में मजा आ रहा था. पर फिल्म का चलना एक कठिन अनुभव रहा, क्योंकि फिल्म की असफलता की वजह समझ में नहीं आयी. यह विज्ञान तो है नही. फिल्म के असफल होने पर मैने बहुत ज्यादा नहीं सोचा. मेरा मानना है कि हर फिल्म हमें कुछ न कुछ सिखाती है. हर फिल्म कलाकार के सामने एक नई चुनौती लेकर आती है और जब कलाकार उसमें अभिनय करता है, तो उसे खुद के बारे में कुछ नया पता चलता है.

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अब आपको मल्टीस्टारर फिल्मों का ही सहारा मिल रहा है?

-ऐसा आप कह सकते हैं. क्योंकि मुझे मल्टीस्टारर फिल्में ज्यादा उत्साहित करती हैं. मैं मानता हूं कि सोलो हीरो वाली फिल्मों में सारा दारोमदार हमारे कंधों पर होता है. पर इन दिनों दर्शक एक्सपेरीमेंटल फिल्में ज्यादा देखना चाहता है. पर जब मल्टीस्टार कलाकार वाली फिल्म होती है, तो दर्शक ज्यादा मिलते हैं. क्योंकि फिल्म से जुड़े हर कलाकार के फैंस फिल्म देखने आते हैं. 17 अप्रैल को मेरी फिल्म ‘कलंक’ रिलीज हो रही है, जिसमें मेरे साथ वरूण धवन, संजय दत्त, आलिया भट्ट, माधुरी दीक्षित व सोनाक्षी सिन्हा हैं. मैं अनुराग बसु के साथ जो फिल्म कर रहा हूं, उसमें भी मेरे साथ कई दूसरे कलाकार हैं. महेश भट्ट के साथ ‘सड़क 2’ में भी मेरे अलावा आलिया भट्ट, पूजा भट्ट व संजय दत्त हैं. जबकि मोहित सूरी की फिल्म ‘मलंग’ भी मल्टीस्टारर है. ‘मलंग’ में मेरे साथ दिशा पटनी, अनिल कपूर व कुणाल खेमू हैं.

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लेकिन मल्टीस्टारर फिल्मों में आपके किरदार की अहमियत?

-मैं फिल्म चुनते समय अपने किरदार को प्राथमिकता देता हूं. ‘कलंक’ भी मल्टीस्टारर है. इसमें सभी कलाकार मुझसे ज्यादा अनुभवी हैं. मगर फिल्म में आप देखेंगे कि हर कलाकार के किरदार की अहमियत है.

फिल्म कलंक क्या है?

-यह कहानी प्यार और रिश्तों की है. पारिवारिक रिश्तों, शादी व गम सहित कई इमोशन को लेकर एक जटिल फिल्म है. इसके हर किरदार की अपनी एक अलग कहानी है. हर किरदार के साथ आप दर्शक की हैसियत से जुड़ सकते हैं.

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फिल्म कलंक के अपने किरदार पर रोशनी डालेंगे?

-मैने देव चैधरी का किरदार निभाया है, जो कि एक अखबार का प्रधान संपादक है, प्रकाशक है. यह उसका पारिवारिक व्यवसाय है. पढ़ा-लिखा इंसान है. रिश्तों को लेकर ईमानदार और पैशेनेट  है. पर उसकी जिंदगी में जो कुछ घटता है, उन्हें वह रोक नहीं पाता और उसके साथ जो कुछ घट रहा है, उनसे निपटने का प्रयास करता रहता है.

फिल्म ‘‘कलंक’’ में आपके लिए क्या चुनौती रही?

-इस फिल्म में मेरा किरदार काफी चुनौतीपूर्ण रहा. यह एक गंभीर किस्म की फिल्म है. यह देश की आजादी से पहले 1940 के पृष्ठभूमि की कहानी है. उन दिनों हमारे देश में कई तरह के आर्थिक व राजनीतिक उथलपुथल हो रहे थे. मेरे लिए उन सब हालात के बारे में जानना बहुत जरुरी था. क्योंकि जब आप एक किरदार निभा रहे हैं, तो उस वक्त को, राजनीतिक परिस्थितियों को समझना जरूरी था. उस माहौल में जो इंसान रहता था, उसका माइंड सेट क्या होगा, इसे समझना जरुरी था. इस बात को समझे बगैर किरदार को न्याय संगत तरीके से निभाना संभव ही नहीं था. इसके लिए मैने कई किताबें पढ़ीं. इंटरनेट पर भी 1940 के समय की कुछ जानकारी पढ़ी. मेरे लिए यह काफी रोचक अनुभव रहा. बहुत कुछ जानने व समझने का अवसर मिला.

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आपने कौन-कौन सी किताबें पढ़ी?

-जवाहर लाल नेहरु की किताब ‘डिस्कवरी आफ इंडिया’ पढ़ी. यह काफी रोचक किताब है. इसे उन्होंने उस वक्त लिखा था, जब वह तीन चार साल के लिए जेल में बंद थे. यह किताब उस वक्त लिखी गयी थी, जब हमारे देश का भविष्य अनिश्चित था. इस किताब से मुझे उस काल का एक प्रस्पेक्टिव मिला. इसके अलावा शशि थरूर की किताब पोलीटिकल प्लेनेट आफ ए टाइम’. एक किताब ‘इंडियन समर’ है.

1940 के प्यार और रिश्ते, क्या वर्तमान समय में उसी तरह से हैं?

-इसका जवाब देना मुश्किल है. मुझे लगता है कि समय के साथ समाज व देश बदलता है, मगर इंसानी भावनाएं तो वही रहती हैं. एक इंसान का दूसरे इंसान के प्रति अहसास वही हैं. हमारे माता-पिता शादी को जिस नजरिए से देखते थे, शायद हम या हमारी पीढ़ी के लोग उस नजरिए से नहीं देखते हैं. समाज बदलने के साथ माइंड सेट बदलता है. मोबाइल जैसी तकनीक के चलते भी हमारे व सामाजिक व्यवहार में अंतर आया है.

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सोशल मीडिया को कैसे लेते हैं?

-अभी डेढ़-दो महीने पहले ही इंस्टाग्राम पर आया हूं. हर दिन इंस्टाग्राम पर नहीं रहता. सोशल मीडिया की लत नही हेानी चाहिए.

Edited by- Nisha Rai

बेहद मुश्किल था ‘कलंक’ का ‘जफर’ बनना- वरुण धवन

कौमेडी वाली बिजनेस की फिल्मों के साथ-साथ गंभीर फिल्में करने वाले वरुण धवन इन दिनों इटरनल प्यार वाली सीरियस फिल्म ‘कलंक’ को लेकर चर्चा में हैं.17 अप्रैल को रिलीज होने वाली फिल्म ‘कलंक’ के निर्माता करण जौहर और निर्देशक अभिषेक वर्मन हैं. आइए जानते हैं उनसे इस फिल्म के बारे में उनका नजरिया…

फिल्म ‘‘कलंक’’ में किस कलंक की बात की गयी है?

-कलंक कई चीजों के बारे में होता है. कई बार आपके उपर कोई ऐसा धब्बा लगा होता है, जो समाज आप पर लगाता है. कलंक कभी प्यार व मोहब्बत के साथ जोड़ा जाता है कि प्यार करना कलंक है. पर प्यार या मोहब्बत जब होती है, तो फिर आपके ऊपर किसी का असर नहीं होता. फिर लोग चाहे, जो आरोप आप पर लगाएं. फिर चाहे आपको जितनी तौहीन मिले. पर उस वक्त प्यार ही आपकी सबसे बड़ी ताकत होती है.

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 आप फिल्म कलंक को लेकर काफी उत्साहित हैं. यह वह किरदार है, जो कि शाहरुख खान के लिए लिखा गया था?

-आप काफी पुरानी बात कर रहे हैं. यह 15 साल से भी अधिक पुरानी बात है. तब इस फिल्म का निर्माण करण जौहर के पिता स्व. यश जौहर और निर्देशन करण जौहर करने वाले थे. तब फिल्म में सभी दूसरे कलाकार थे. पर कुछ वजहों से यह फिल्म नहीं बनी थी. अब करण जौहर इसे नए सिरे से लेकर आए हैं. इस बार इसका निर्देशन अभिषेक वर्मन ने किया है और फिल्म के सभी कलाकार अलग हैं.

फिल्म कलंक के अपने किरदार को लेकर क्या कहेंगे?

यह फिल्म 1940 के काल की है. मैने इसमें जफर का किरदार निभाया है, जो कि पेशे से लोहार है. लोहार आग के साथ काम करता है और जफर के अंदर ही बहुत बड़ी आग है. जफर के अंदर जो आग है, वह उसकी परवरिश की वजह से है.

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वह हीरामंडी की सड़कों पर पैदा हुआ है और वह भी 1940 के काल में. यह आजादी से पहले का काल है, उस वक्त पूरा माहौल ही अलग था. कहानी व किरदारों के बर्ताव पर उस वक्त के माहौल का असर जरुर है. यह बहुत ही ज्यादा मर्दाना किरदार है. इससे पहले मैने कभी भी इतना मर्दाना किरदार निभाया नही. यह बहुत ही ज्यादा अग्रेसिव है.

 अब तक आपने जो किरदार निभाए, उनसे जफर कितना अलग है?

 -जफर भी एक लड़का ही है. मगर उसके हालात बहुत अलग हैं. वह जिस माहौल में पैदा और बड़ा हुआ, उसका उस पर असर है. देखिए,परवरिश व माहौल से इंसान की जिंदगी बदल जाती है. दुनिया को देखने का उसका नजरिया बदल जाता है. उसका एटीट्यूड अलग हो जाता है. फिर रूप जैसी लड़की जब जफर की जिंदगी में आती है, तो वह जफर की जिंदगी बदल देती है. रूप उसे बताती है कि जिंदगी में मोहब्बत भी हो सकती है.

जफर के किरदार को निभाना कितना आसान रहा?

-यह काफी जटिल व कठिन किरदार रहा. इसे निभाना शारीरिक और मानसिक रूप से काफी मुश्किल रहा.

आपके घर के अंदर सभी फिल्म से जुड़े लोग हैं. आपके पिता व भाई अच्छे निर्देशक हैं. क्या स्क्रिप्ट के चयन में उसे कोई मदद मिलती है?

-घर के अंदर मैं फिल्मों को लेकर बहुत ज्यादा बात नहीं करता. लेकिन डैड के साथ बहुत बातचीत होती है.

किसी भी किरदार को निभाने में लुक कितनी मदद करता है?

-आपने बहुत अच्छा सवाल पूछा. आंखों में सूरमा लगाने, शरीर में जगह-जगह दाग के निशान, लोहार जब काम करता है, तो आग के छीटें पड़ते रहते हैं, यह सब लगाकर जब मैं सेट पर पहुंचता था, तो मुझे अंदर से लगता था कि मैं लोहार हूं.

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रणवीर सिंह, आयुष्मान खुराना, विक्की कौशल, राज कुमार राव जैसे अपने समकक्ष कलाकारों के बीच खुद को कहां पाते हैं?

-पहली बात तो मैं अपनी तुलना किसी से नहीं करता. मैं किसी भी प्रतिस्पर्धा का हिस्सा नही हूं. विक्की कौशल, आयुष्मान खुराना, राज कुमार राव जैसे कलाकारोंने तो उन निर्देशकों के साथ काम कर सफल फिल्में दीं, जिनके साथ कोई कलाकार काम नहीं करना चाहता था. यह सब इनके अपने हुनर की वजह से ही संभव हुआ. इन फिल्मों में मैं होता, तो शायद यह फिल्में इतनी सफल न होती.

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चर्चा हैं कि आप स्त्री के सीक्वअल में राजकुमार राव की जगह लेने जा रहे हैं?

-गलत खबर है. मेरे पास इस फिल्म का औफर नही आया है.

इसके बाद कौन सी फिल्में आने वाली हैं?

-रेमो डिसूजा की फिल्म ‘स्ट्रीट डांसर’ की है, जिसमें मेरे साथ श्रृद्धा कपूर हैं. अपने पिता के निर्देशन में ‘कुली नंबर वन’ कर रहा हूं, जो कि उनकी 1995 की इसी नाम की फिल्म का एडाप्टशन है. श्रीराम राघवन के साथ भी एक फिल्म करने वाला हूं.

आपने रेमो डिसूजा के साथ ए बी सी डी 2 की थी और स्ट्रीट डांसर तो उसी का सीक्वअल है, तो इस फिल्म की शूटिंग करना आपके लिए काफी सहज रहा होगा?

-जी नहीं!! शारीरिक रूप से यह काफी चुनौतीपूर्ण फिल्म रही. दो दिन के बाद तो मैं थक कर बैठ गया था और रेमो जी से पूछा कि आखिर हो क्या रहा है? आप यह कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि हम एक दिन में सात घंटे डांस कर सकते हैं? पर फिर मुझे अहसास हुआ कि इस फिल्म में उम्र में मुझसे छोटे कई बच्चे और प्रभु देवा सर भी हैं. तब मैने काफी मेहनत की. पहली बार मुझे इस फिल्म के माध्यम से कई नए डांस फौर्म के बारे में जानकारी मिली.

Edited by- Rosy

कहीं बांझपन का कारण न बन जाए मोबाइल

31 साल की कामकाजी महिला नीलम शादी के 3 वर्षों बाद भी बच्चा न होने से घबराई. वह डाक्टर के पास गई. शुरुआती जांच के बाद डाक्टर ने पाया कि सबकुछ ठीक है. सिर्फ औव्यूलेशन सही समय पर नहीं हो रहा है. उस की काउंसलिंग की गई, तो पता चला कि उस के मासिकधर्म का समय ठीक नहीं. इस की वजह जानने पर पता चला कि उस का कैरियर ही उस की इस समस्या की जड़ है. उस की चिंता और मूड स्विंग इतना ज्यादा था कि उसे नौर्मल होने में समय लगा और करीब एक साल के इलाज के बाद वह आईवीएफ द्वारा ही मां बन पाई.

आज की भागदौड़भरी जिंदगी में पूरे दिन का बड़ा भाग इंसान अपने मोबाइल फोन से चिपके हुए बिताता है. खासकर, आज के युवा पूरे दिन डिजिटल वर्ल्ड में व्यस्त रहते हैं. ऐसे में उन की शारीरिक अवस्था धीरेधीरे बिगड़ती जाती है, जिस में फर्टिलिटी की समस्या सब से अधिक दिखाई पड़ रही है.

वर्ल्ड औफ वूमन की फर्टिलिटी ऐक्सपर्ट डा. बंदिता सिन्हा का कहना है, ‘‘डिजिटल वर्ल्ड के आने से इस की लत सब से अधिक युवाओं को लगी है. वे दिनभर मोबाइल पर व्यस्त रहती हैं. 19 से 25 तक की युवतियां कुछ सुनना भी नहीं चाहतीं, मना करने पर वे विद्रोही हो जाती हैं. इस वजह से आज 5 में से एक लड़की को कोई न कोई स्त्रीरोग जनित समस्या है.’’

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वे आगे बताती हैं, ‘‘25 साल की लड़की मेरे पास आई जो बहुत परेशान थी, क्योंकि उस का मासिकधर्म रुक चुका था. उसे नींद नहीं आती थी. वह पौलिसिस्टिक ओवेरियन डिजीज की शिकार थी. जिस में उस का वजन बढ़ने के साथसाथ, डिप्रैशन, मूड स्विंग और हार्मोनल समस्या थी. इसे ठीक करने में 2 साल का समय लगा. आज वह एक अच्छी जिंदगी जी रही है. लेकिन यही बीमारी अगर अधिक दिनों तक चलती, तो उसे फर्टिलिटी की समस्या हो सकती थी.’’

यह समस्या केवल महिलाओं में ही नहीं, पुरुषों में भी काफी है. इस बारे में मनिपाल फर्टिलिटी के चेयरमैन और यूरो एंड्रोलौजिस्ट डा. वासन एस एस बताते हैं, ‘‘वैज्ञानिकों ने सालों से इलैक्ट्रोमैग्नेटिक रैडिएशन (ईएमआर) का मानव शरीर पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में शोध किया है. यह हमारे आसपास के वातावरण और घरेलू उपकरणों ओवन, टीवी, लैपटौप, मैडिकल ऐक्सरे आदि सभी से कुछ न कुछ मात्रा में आता रहता है. लेकिन इन में सब से खतरनाक है हमारा मोबाइल फोन, जिसे इंसान ने आजकल अपने जीवन का खास अंग बना लिया है.

अध्ययन कहता है कि इलैक्ट्रोमैग्नेटिक के अधिक समय तक शरीर में प्रवेश करने से कैंसर, सिरदर्द और फर्टिलिटी की समस्या सब से अधिक होती है.’’

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गंभीर बीमारी की आहट

डा. वासन आगे बताते हैं, ‘‘ऐसा देखा गया है कि जिन पुरुषों ने अपने से आधे मीटर की दूरी पर सैलफोन रखा, उन के भी स्पर्मकाउंट पहले से कम हुए. इतना ही नहीं, 47 प्रतिशत लोग जिन्होंने मोबाइल फोन को अपनी पैंट की जेब में पूरे दिन रखा, उन का स्पर्मकाउंट अस्वाभाविक रूप से 11 प्रतिशत आम पुरुषों से कम था और यही कमी उन्हें धीरेधीरे इन्फर्टिलिटी की ओर ले जाती है.’’

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रिसर्च यह भी बताती है कि पूरे विश्व में 14 प्रतिशत मध्यम व उच्च आयवर्ग के कपल, जिन्होंने मोबाइल फोन का लगातार प्रयोग किया है, को गर्भधारण करने में मुश्किल आई. सैलफोन पुरुष और महिला दोनों के लिए समानरूप से घातक है.

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इस के आगे डा. वासन कहते हैं, ‘‘मोबाइल के इस्तेमाल से फर्टिलिटी के कम होने की वजह को ले कर भी कई मत हैं. कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि मोबाइल से निकले इलैक्ट्रोमैग्नेटिक रैडिएशन स्पर्म के चक्र को पूरा करने में बाधित करता है या यह डीएनए को कम कर देता है, जबकि दूसरे मानते हैं कि मोबाइल से निकले रैडिएशन द्वारा उपजी हीट से स्पर्मकाउंट कम होता जाता है. 30 से 40 प्रतिशत फर्टिलिटी के मामलों में अधिकतर पुरुषों में ही पुअर क्वालिटी का स्पर्म देखा गया, जो चिंता का विषय है.’’

आपको भी आती है काम के बीच नींद तो पढ़ें ये खबर

कोई भी व्यक्ति चौबीस घंटे चुस्त नहीं रह सकता है. रात में कम से कम आठ घंटे की नींद शरीर और दिमाग को ऊर्जावान बनाये रखने के लिए नितांत जरूरी है, मगर दिन में काम के दौरान महसूस होने वाली छोटी-छोटी नींद को भी हरगिज नजरअंदाज न करें. ये चंद मिनटों की झपकी शरीर और दिमाग को दुरुस्त रखने के लिए बेहद जरूरी है, जिसे पावर नैप कहते हैं. फ्रेश फील करने के लिए पावर नैप अति आवश्यक है. पावर नैप यानि दिन के वक्त दस मिनट से लेकर आधे घंटे तक की नींद, जो शरीर और दिमाग को कार्य करने के लिए पुन: ताजगी से भर देती है.

अक्सर औफिस में लंच के बाद आलस्य या नींद हावी हो जाती है. ऐसे में कुछ काम करते ही नहीं सूझता. बार-बार आंखें बंद हो जाती हैं. मन करता है कि कोई एकांत कोना मिल जाए जहां कुछ देर की झपकी ले जी जाये. इसी झपकी को वैज्ञानिक पावर नैप कहते हैं, जिसे ले लेना बहुत जरूरी है. इससे आपका काम बिल्कुल भी प्रभावित नहीं होता है, बल्कि पावर नैप लेने के बाद आप दुगनी ऊर्जा के साथ तेजी से अपना काम निपटा सकते हैं.

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पावर नैप कितनी देर

आपको फिर से तरोताजा करने वाली पावर नैप जरूरत के अनुसार 10 मिनट, 20 मिनट या फिर एक घंटा तक की हो सकती है. आदर्श पावर नैप बीस मिनट की मानी जाती है. लगातार 7 से 8 घंटे काम करने के बाद कुछ देर के लिए ली गई एक पॉवर नैप आपको दोबारा घंटों के लिए रिचार्ज कर देती है और आप बेहतर तरीके से काम कर पाते हैं. इंसान पूरे दिन में दो बार ऐसा महसूस करता है कि उसे नींद आ रही है. यह मानव शरीर का एक स्वाभाव है. आप चाहे भी तो इसे रोक नहीं सकते हैं. दिन में ली गई एक झपकी वास्तव में पूरी रात की नींद के बराबर आपको एनर्जी देती है. अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अनुसार 26 मिनट तक कौकपिट में सोने वाला पायलट बाकी पायलटों की तुलना में  54 प्रतिशत सतर्क और नौकरी के प्रदर्शन में 34 प्रतिशत ज्यादा बेहतर देखा गया है. नासा में नींद के विशेषज्ञों ने नैप के प्रभावों पर शोध करते हुए पाया कि नैप लेने से व्यक्ति के मूड, सतर्कता और प्रदर्शन में काफी सुधार होता है. दस मिनट की झपकी आपको पूरी रात की नींद जैसा फ्रेश महसूस करवा सकती है. आप 10 से 20 मिनट के बीच लिए गए पावर नैप से  बिना सोए रात भर की नींद जैसा फायदा उठा सकते हैं. खास बात यह है कि 10 मिनट की झपकी लेने से मांसपेशियों के बनने से लेकर याद्दाश्त तक मजबूत होने में सहायता मिलती है. दोपहर के वक्त लंच के बाद 20 से 30 मिनट की पावर नैप सबसे अच्छी है, मगर ज्यादा नींद आती हो तो भी एक घंटे से ज्यादा नहीं सोना चाहिए, वरना आपके शरीर की जैविक घड़ी प्रभावित हो जाएगी और रात की नींद में खलल पड़ेगा.

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नैप के लिए शान्त कोना ढूंढें

पावर-नैप से अधिकतम लाभ पाने के लिए, आपको एक शांतिपूर्ण, ठंडी और आरामदायक जगह ढूंढनी चाहिए, जहां दूसरे लोग आपको परेशान न करें. औफिस में कौन्फ्रेंस रूम का कोना हो या कार पार्किंग स्थल, दस से पंद्रह मिनट यहां खामोशी से आंख बंद करके बिताये जा सकते हैं. लगभग 30 प्रतिशत कौरपोरेट औफिस में लंच के बाद एम्प्लौइज को आधा घंटे का वक्त पावर नैप के लिए दिया जाता है. इससे उनके काम की गति और क्षमता में बढ़ोत्तरी होती है. अगर आप किसी स्कूल-कौलेज में पढ़ाते हैं, तो वहां की लाइब्रेरी इस काम के लिए सबसे बेहतर जगह है, जहां शांति और खाली जगह होती है.

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आप सड़क पर जा रहे हों और आपको झपकी लगी हो तो किसी पार्किंग स्थल पर कार खड़ी करके दस-पन्द्रह मिनट की झपकी ले लेनी चाहिए. अक्सर देखा गया है कि कार ड्राइव करने वाले लोग नींद आने पर तम्बाकू-गुटका आदि का सेवन नींद भगाने के लिए करते हैं, जो सेहत के लिए बहुत खतरनाक है. इससे बेहतर है कि नींद आने पर किसी सेफ जगह पर गाड़ी खड़ी करके झपकी मार ली जाए, इससे नींद तो भागती ही है, शरीर और दिमाग पहले से अधिक ऊर्जा महसूस करने लगते हैं.

कम रोशनी का स्थान चुनें

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पावर नैप लेते वक्त लाइट औफ कर दें. बेहतर हो कि आप कोई अंधेरा कमरा चुनें ताकि आंख बंद करते ही आपको नींद आ जाए. अंधेरा होने से आपकी आंखों की मांसपेशियों को आराम मिलेगा और दिमागी तनाव भी दूर होगा. यदि अंधेरा स्थान उपलब्ध न हो तो आप स्लीप-मास्क या धूप का चश्मा आंखों पर चढ़ा लें और आराम से सो जाएं. इसके अलावा जिस जगह आप पावर नैप लें वह स्थान बहुत गर्म या बहुत ठंडा नहीं होना चाहिए. आपकी नैपिंग आरामदायक हो, इसलिए एक शीतल लेकिन आरामदायक जगह तलाश करिये. ज्यादातर लोग 65 डिग्री फारेनहाइट या 18 डिग्री सेल्सियस के आसपास सबसे अच्छी नींद लेते हैं. यदि आपकी नैपिंग की जगह बहुत ठंडी है, तो एक कंबल रखें या आरामदायक जैकेट साथ रखें, जिसे पहन कर आप आराम महसूस करें. यदि आपकी नैपिंग की जगह बहुत गर्म है तो कमरे में एक पंखा रखने पर विचार करें.

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शांतिदायक संगीत सुनें

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रिलैक्सिंग म्यूजिक आपके दिमाग को सही स्थिति में ला सकता है. यदि आप अपनी कार में पावर नैप ले रहे  हैं, तो कोई हल्का संगीत लगा लें, इससे नींद अच्छी आती है. हल्की आवाज में वौकमैन पर भी हल्का म्यूजिक सुन सकते हैं. सिर्फ इन्ट्रूमेंटल म्यूजिक भी शरीर और दिमाग को तरोताजा करने में कारगर साबित होता है. अगर आप काम की वजह से ज्यादा तनाव में हैं और आंख बंद करने पर भी आपको नींद नहीं आती है तो कुछ मेडिटेशन करें. आंख बंद करके एक से सौ तक गिनती गिनें या कोई मनपसंद गीत गुनगुनाएं. इसके बाद आपको जल्द ही नींद आ जाएगी और जागने पर दिमाग तनावमुक्त महसूस होगा.

नैप की अवधि

आप खुद तय करें कि आप कितनी देर तक नैप लेना चाहते हैं. एक पावर नैप 10 से 30 मिनट के बीच का होना चाहिए. वैसे तो, छोटे और लंबे नैप्स भी विभिन्न लाभ प्रदान कर सकते हैं. आपका शरीर खुद आपको बता देगा कि आपको कितनी देर तक नैप लेनी है. बस उस समय-सीमा का पालन आप हर दिन समान रूप से करें. यदि आपके पास अधिक समय नहीं है, लेकिन आप इतनी नींद में हैं कि आप जो कुछ भी कर रहे हैं, उसे जारी नहीं रख पा रहे हैं, तो दो से पांच मिनट की नैप, जिसे “नैनो-नैप” कहा जाता है, आपको नींद से निपटने में मदद कर सकती है.

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पांच से बीस मिनट के लिए नैप आपकी सतर्कता, स्टैमिना, और मोटर-परफौर्मेंस बढ़ाने के लिए बहुत अच्छी होती है. इन नैप्स को “मिनी-नैप्स” के रूप में जाना जाता है. बीस मिनट की नींद बहुत आदर्श नैप मानी जाती है. एक पावर-नैप, मस्तिष्क को अपने शौर्ट-टर्म मेमोरी में एकत्रित अनावश्यक जानकारी से छुटकारा पाने में भी मदद करती है, और मसल-मेमोरी में भी सुधार लाती है. बीस मिनट की पावर नैप आपके नर्वस सिस्टेम में मौजूद इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स, आपको अधिक आराम किया हुआ और सतर्क महसूस कराने के अलावा, आपके मसल-मेमोरी में शामिल न्यूरौन्स के बीच के संबंध को भी मजबूत करता है, जिससे आपका मस्तिष्क तेजी से और अधिक सटीक तरीके से काम करने लगता है. यदि आप बहुत से महत्वपूर्ण तथ्यों को याद करने की कोशिश कर रहे हैं, उदाहरणस्वरूप किसी परीक्षा के लिए, तो पावर-नैप लेना विशेष रूप से उपयोगी हो सकता है.

पावर नैप से पहले कौफी पियें

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यह बात अजीब लग सकती है क्योंकि कौफी का इस्तेमाल नींद को दूर भगाने के लिए किया जाता है. परन्तु बीस मिनट की पावर नैप लेने से पहले अगर आप कौफी का एक प्याला पी लेते हैं तो यह कौफी आपके शरीर में तुरंत अवशोषित नहीं होती है. कौफी पहले आहार नाल से गुजरती है और फिर शरीर में अवशोषित होने में उसे 45 मिनट का वक्त लगता है. इस दौरान आप बीस-पच्चीस मिनट की पावर नैप ले लें तो जागने के बाद शरीर में मौजूद कौफी आपको और ज्यादा ताजगी से भर देगी और आप दुगनी ऊर्जा के साथ अपने काम का संचालन कर सकते हैं. इस प्रयोग से आप 7 से 8 घंटे तक बिना रुके काम कर सकते हैं.

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