न उड़े मर्दानगी का मजाक तो घटे रेप की वारदात

आए दिन बलात्कार की घटनाएं हमें झंझोड़ कर रख देती हैं, पर हम इन्हें  रोकने के लिए कुछ कर नहीं पाते. सरकारे और पुलिस कुछ मेजर स्टैप्स लेने के बाद भी इन्हें घटने से रोक नहीं पा रही. जाहिर है सरकार को और भी सख्त कानून लाना होगा, साथ ही सुरक्षा व्यवस्था भी तगड़ी करनी होगी. सरकार के साथसाथ हम सब का दायित्व भी कम नहीं. टीवी चैनलों पर शायद ही कोई ऐसा दिन जाता हो, जिस में रेप की खबर न शामिल हुई हो. हमारे समाज की यह बहुत ही शर्मनाक स्थिति है. आखिर ऐसा क्यों हो रहा है?

स्थिति का सूक्ष्मता से अवलोकन करने पर बहुत कारण प्रकाश में आते हैं जैसे गूगल, यूट्यूब पर बेशुमार वल्गर वीडियोज, फिल्म, घटिया, विज्ञापन,्र गलत परवरिश, मर्दानगी साबित करने की बलवती इच्छा, बदला, दुश्मनी, जगहजगह नशे की दुकानें मौडर्न सोच दिख कर लडक़ों पर अंधा भरोसा करती लड़कियां, सार्वजनिक स्थलों पर उत्तेजक पहनावा, हावभाव दोहरे अर्थ वाले संवाद घटिनया सोच, घटती इंसानियत इत्यादि. एक और बहुत बड़ा और महत्त्वपूर्ण कारण है लडक़ों की मर्दानगी का मजाक उड़ाना या उन्हें उकसाना, जिस में कभी दोस्त, कभी रिश्तेदार तो कभी खुद लड़कियां शामिल होती हैं. ‘अरे यह तो मूंछों वाला बच्चा है’, ‘इस के तो अभी दूध के भी दांत नहीं टूटे’, ‘कहीं तीसरा जैंडर तो नहीं’, आदि. घृणित वाक्यों से लडक़ों की मर्दानगी को ठेस पहुंचते हैं जो उन के लिए असहनीय हो जाती हैं. इस से आहत हो कर वे अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए बलात्कार जैसा अनैतिक, घृणित कदम उठा लेते हैं.

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बचपन से ही लडक़ों के दिमाग में ये बातें अच्छी तरह बैठा दी जाती हैं कि ‘तुम लडक़ी थोड़े ही हो? मर्द हो, ताकत वर हो’, ‘लडक़े रोते थोड़े ही हैं, रोती तो लड़कियां है’, ‘मतलब यह कि तुम ज्यादा भावुक, जज्बाती भी नहीं हो सकतें’, ‘मर्द को दर्द नहीं होता’, ‘मर्द हो. मतलब तुम्हें फौलाद सा कठोर होना है’, ‘किसी आघात चोट का जल्दी तुम्हारे तनमन पर असर नहीं होगा, जल्दी असर तो लड़कियों पर होता है.’

लडक़े घर में भी बहन, मां, बूआ, चाची, लड़कियों को देखते हैं कि उन्हें देर रात बाहर नहीं जाने दिया जाता, क्योंकि बाहर उन्हें मर्दों से खतरा रहता है, कोई उन से जोरजबरदस्ती कर सकता है. पर लडक़ों को कोई डर नहीं, क्योंकि वे मर्द है. समाज में उन का बलात्कार अथवा यौन शोषण हो जाए तो उसे कलंक की भी संज्ञा नहीं दी जाती.

सामाजिक दृष्टि से लडक़े अपने भविष्य के लिए भी निङ्क्षश्चत होते हैं, क्योंकि उसी घरपरिवार में इज्जत से उन्हें हमेशा रहना है. उन्हें मालूम है उन्हें विदा हो कर कहीं और नहीं जाना. वे ही घरपरिवार के वारिस हैं. वे दिल से हिम्मती और शरीर से बलवान भी अतएव जन्म से ही शारीरिक, मानसिक और सामाजिक सभी स्थितियों से मजबूत, स्वतंत्र वे भारतीय समाज में शुरू से ही लड़कियों से ऊंची पोजीशन पर रखे जाते हैं. यह बात उन्हें घुट्टी में पिलाई जाती है, जो उन के मनमस्तिष्क में घर कर लेती है जो उन में कुछ ज्यादा ही आत्मविश्वास भर अपने को उच्चतम मान लेने की सोच देती है. ऐसे में वे जब किशोर, जवान होने लगते हैं तब किसी ने भी यदि उन की मर्दानगी पर शब्दों के प्रहार किए तो वे बेहद आहत हो उठते हैं. तब चोट खाए वे अपनी मर्दानगी साबित करने के लिए कुछ भी कर डालते हैं. यहां तक कि किसी भी उम्र की किसी भी लडक़ी, महिलाका बलात्कार जैसे कुकृत्य भी कर डालते है. कभीकभी तो बलात्कार पीडि़ता की हत्या तक भी कर देते हैं.

आज के समाज में कई तरह के वर्गों का आपस में मेलजोल शुरू हो गया है. पहले पिछड़े लोग ऊंचे घरों को डर की नजर से देखते थे. पिछड़ों की लड़कियों को तो बलात्कार किया जाना आम था पर अब उलटा भी होने लगा है और पैसा पातीं और पौवर वाली पिछड़ी जातियां बिना जाति पूछे मौके का काम उठा लेती हैं. लड़कियों को भी एकदूसरे वर्ग के तौरतरीकों का ज्यादा पता नहीं होता. वे सोचती है कि हर लडक़ा उन के घर सा होगा पर कुछ घरों में बहुत कुछ छिपा हुआ चलता है चाहे उसे हमेशा नकारा जाता है.

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आज के समय में स्वार्थ, सुख, मजा, पैसा ही जब सर्वोपरि रह गया है तो ऐसे में दूसरे के दर्द, पीड़ा के वैसे ही कोई माने नहीं रह गए हैं. पैसा, सुविधा, स्वार्थ और अपना मजा हवस आदमी को मशीनी बना रही है. भावनाएं निर्मोल होती जा रही है. दूसरे की भावनाओं से खिलवाड़ कभीकभी बहुत महंगा भी पड़ जाता है. अत: किशोर से युवा बन रहे अथवा बन चुके लडक़ों की कोमल मनोस्थिति को समझें, उन की भावनाओं से खिलवाड़ कर उन का मजाक उड़ाने से बचें. उन की मर्दानगी का मजाक महिलाओं के बल, बुद्धि योग्यता और साहस का महत्त्व भी समझाना होगा. साथ ही यह भी कि लड़कियां भी लडक़ों की ही तरह बुद्धिमान विचारवान इंसान हैं, जो आज हर क्षेत्र में, परिवार, समाज, राष्ट्र क्या विश्व स्तर तक प्रगति मं अपना भरपूर योगदान दे रही हैं. उन्हें सम्मान देना ही होगा.

बलात्कार जैसे कुकृत्य से भले लडक़े अपने ईगो को संतुष्ट कर लें पर जब ऐसी घटनाएं खुद उन के अपनों पर घटती हैं तो वे उन के लिए भी असहनीय होती हैं. अत: लडक़ों की मर्दानगी का मजाक उड़ाने पर अंकुश लगने से यकीनन रेप की घटनाओं में कमी आएगी.

धब्बा तो औरत पर ही लगता है

हर देश को अपनी सेना पर गर्व होता है और उस के लिए देश न केवल सम्मान में खड़ा होता है वरन उसे खासा पैसे की सुविधा भी दे दी जाती है. एक सुविधा दुनियाभर के सैनिक खुद ले लेते हैं, जबरन रेप करनी की. आमतौर पर हमेशा से राजाओं ने सेनाओं में भरती यही कह कर की होती है कि तुम मेरे साथ लड़ो, तुम्हें लूट में माल भी मिलेगा, औरतें भी. युगों से दुनियाभर में हो रहा है.

कोएंबटूर के एअरफोर्स एडमिनिस्ट्रेटिव कालेज में एक कोर्स में एक आईएएस फ्लाइट लैफ्टीनैंट और एक 26 वर्षीय युवती साथ में पढ़ रहे थे. एक शाम ड्रिंक्स लेते समय युवती को बेहोशी छाने लगी तो उसे उस के होस्टल के कमरे में ले जाया गया और युवती का कहना है कि वहां उस युवा अफसर ने उस के साथ रेप किया.

आमतौर पर इस तरह के रेप का फैसला सामान्य अदालतें करती हैं और इस मामले में सेना अड़ गई कि यह केस कोर्टमार्शल होगा यानी सैनिक अदालत में चलेगा. युवती को इस पर आपत्ति है कि उसे न्याय नहीं मिलेगा. कठिनाई यह है कि सेना पर निर्भर देश और कानून सैनिकों को नाराज करने का जोखिम नहीं लेता.

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कोर्टमार्शल में सेना के अफसर ही जज का काम करते हैं और वे सैनिकों की प्रवृत्ति को अच्छी तरह समझते ही नहीं, उस

पर मूक स्वीकृति की मुहर भी लगाते हैं. वे जानते हैं कि बेहद तनाव में रह रहे सैनिकों को कुछ राहत की जरूरत होती है और इस तरह के मामलों को अनदेखा करते हैं. सैनिकों को घरों से दूर रहना पड़ता है और वे सैक्स भूखे हो जाते हैं. इसलिए हर कैंटोनमैंट के आसपास सैक्स वर्करों के अड्डे बन जाते हैं.

ऐसे हालात में रेप विक्टिम को सैनिक अदालत से पूरा न्याय मिलेगा, यह कुछ पक्का नहीं है पर असल में तो सिविल कोर्टों में भी रेप के दोषी आमतौर पर छूट ही जाते हैं. हां, उन्हें जमानत नहीं मिलती और चाहे अदालतें बरी कर देती हों, वे लंबी कैद अंडर ट्रायल के रूप में काट आते हैं और रेप विक्टिम के लिए यही काफी होता है.

सिविल कोर्टों में अकसर पीडि़ता अपना बयान वापस ले लेती है, चाहे लंबे खिंचते मामले, वकीलों की जिरह के कारण या लेदे कर फैसले के कारण. यह पक्का है कि जो धब्बा औरत पर लगता है वह टैटू की तरह गहरा होता है और रेपिस्ट पर लगा निशान चुनाव आयोग की स्याही जैसा.

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हमारे देश की महिलाएं पुरुषों की कितनी हमकदम?

हमारे देश में महिलाओं को पुरुषों का हमकदम बनाने के लिए महिला आयोग बनाया गया है. हर राज्य में आयोग की एक फौज है, जहां महिलाओं की परेशानियाँ सुनी और सुलझाई जाती है. लेकिन बीते कुछ समय से महिला आयोग संस्था की चाबियों का गुच्छा कुछ ज्यादा ही भारी हो गया इसलिए ये संभाले नहीं संभल रहा है और जमीन पर गिरने लगा है. केरल महिला आयोग में भी ऐसा ही कुछ हुआ.

आयोग की अध्यक्ष एम सी जोसेफिन ने घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला को रूखा सा जवाब देते हुए टरका दिया.दरअसल, आयोग अध्यक्ष टीवी पर लाइव में महिलाओं की परेशानी सुन रही थीं, इसी बीच घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला, आयोग की अध्यक्ष को फोन पर अपनी आपबीती सुनाते हुए कहने लगी कि उसके पति और ससुराल वाले उसे काफी परेशान करते हैं. अध्यक्ष को जब पता चला कि लगातार हिंसा सहने के बाद भी महिला ने कभी उसकी शिकायत पुलिस में नहीं की, तो वे भड़क गईं और रूखे अंदाज में कहा ,‘अगर हिंसा सहने के बाद भी पुलिस में शिकायत नहीं करोगी तो ‘भुगतो’ उनका पीड़िता पर झल्लाने का वीडियो वायरल हुआ तो उन्होंने अपने पद का ही त्याग कर दिया.

लेकिन जाते-जाते वे कहना न भूलीं कि औरतें फोन करके शिकायत तो करती हैं, लेकिन जैसे ही पुलिसिया कार्यवाई की बात आती है, पीछे हट जाती हैं. इसके बाद से आयोग अध्यक्ष घेरे में आ गई कि कैसे इतने ऊंचे पद पर बैठी महिला, तकलीफ में जीती किसी औरत से इस तरह रुखाई से बात कर सकती है ! बात भले ही आकर अध्यक्ष की रुखाई पर सिमट गयी. लेकिन गौर करें तो मसाला कुछ और ही है. दरअसल मारपीट की शिकायत लेकर आई महिला चाहती थी कि आयोग की दबंग दिखने वाली महिला उसके पति को बुलाकर समझाए या सास पर रौब जमाकर उसे डरा दे कि बहू को तंग किया न, तो तुम्हारी खैर नहीं. वरना, क्या वजह है कि औरतें शिकायत लेकर आती तो हैं लेकिन पुलिस की दखल की बात सुनते ही वापस लौट जाती हैं.

ममता, बदला हुआ नाम’ के पति और सास उसपर जुल्म करते हैं. रोती-कलपती वह अपने मायके पहुँच जाती है. पर उसमें इतनी हिम्मत नहीं है कि उनकी शिकायत लेकर पुलिस में जाए. कारण, एक डर की अगर पति को पुलिस पकड़ कर ले गयी और बाद में जब वह छूट कर घर आएंगे, तो उस पर और जुल्म होगा. दूसरी बात ये भी की, पति के घर के सिवा दूसरा आसरा नहीं है, तो वह कहाँ जाएगी ?ममता दो बच्चों की माँ है और उसका मायका उतना मजबूत नहीं है, इसलिए वह पति और सास का जुल्म सहने को मजबूर है.

अक्सर पति ससुराल के हाथों हिंसा की शिकार महिला पुलिस के पास शिकायत लेकर नहीं जाती है यह सोचकर की घर की बात घर में ही रहनी चाहिए. और अगर पति का घर छूट गया तो वह कहाँ जाएगी ? लेकिन आसरा छूट जाने का और घर की बात घर में ही रहने वाली जनाना सोच औरतों पर काफी भारी पड़ रही है.UN वीमन का डेटा बताता है कि हर 3 में से 1 औरत अपने पति या प्रेमी के हाथों हिंसा की शिकार होती है. इसमें रेप छोड़कर बाकी सारी बातें शामिल है. जैसे पत्नी को मूर्ख समझना, बात-बात पर उसे नीचा दिखाना, उसे घर बैठने को कहना, बच्चे की कोई ज़िम्मेदारी न लेना या फिर मारपीट भी.

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भारत में महिलाओं पर सबसे ज्यादा यौन हिंसा होती है, वह भी पति या प्रेमी के हाथों. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ने साल 2016 में लगभग 7 लाख महिलाओं पर एक सर्वे किया था. इस दौरान लंबे सवाल-जवाब हुए थे, जिससे पता चला कि शादी-शुदा भारतीय महिलाओं के यौन हिंसा झेलने का खतरा दूसरे किस्म की हिंसाओं से लगभग 17 गुना ज्यादा होता है, लेकिन ये मामले कभी रिपोर्ट नहीं होते हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे कम साक्षरता दर वाले राज्यों के अलावा लिखाई-पढ़ाई के मामले में अव्वल राज्य जैसे केरल और कर्नाटक की औरतें भी पति या प्रेमी की शिकायत पुलिस में करते झिझकती है.देश की राजधानी दिल्ली के एक सामाजिक संगठन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि देश में लगभग 5 करोड़ महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं लेकिन इनमें से केवल 0.1 प्रतिशत महिलाओं ने ही इसके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज़ कराई है.

लेकिन हिंसा का यह डेटा तो सिर्फ एक बानगी है. असल कहानी तो काफी लंबी और खौफनाक है. लेकिन बात फिर आकर वहीं अटक जाती है कि जुल्म सहने के बाद भी महिलाएं चुप क्यों हैं ?

घरेलू हिंसा का मुख्य कारण क्या है ?

हमारे समाज में बचपन से ही लड़कियों को दबाया जाना, उसे बोलने न देना, लड़कियों के मन में लचारगी और बेचारगी का एहसास ऐसे भरा जाना, जैसे लड़कों में पोषण, घरेलू हिंसा का मुख्य कारण है. अक्सर माँ-बाप और रिश्तेदार यह कह कर लड़की का मनोबल तोड़ देते हैं कि बाहर अकेली जाओगी ? जमाना देख रही हो ? ज्यादा मत पढ़ो. शादी के बाद वैसे ही तुम्हें चूल्हा ही फूंकना है. ज्यादा पढ़ लिख गई, तो फिर लड़का ढूँढना मुश्किल हो जाएगा. राजनीतिक में जाओगी तो अपना ही घर बर्बाद करोगी, वगैरह वगैरह. फिर होता यही है कि चाहे लड़की कितनी भी पढ़ी लिखी, ऊंचे ओहदे पर चली  जाए, रिश्ता निभाना ही है, यह बात उसके जेहन में बैठ जाती है और सहना भी आ जाता है.  बचपन में पोलियो की घुट्टी से ज्यादा जनानेपन  की घुट्टी पिलाने के बाद भी अगर लड़की न समझे, तो दूसरे रास्ते भी होते हैं.

लड़की अपना दुख तकलीफ अगर माँ से कहे तो, नसीहतें मिलती है कि जहां चार बर्तन होते हैं, खड़कते ही हैं.यहाँ तक की गलत होने पर भी दामाद को नहीं, बल्कि बेटी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है कि ताकि रिश्ता न टूटे और बेटी अपने ससुराल में टिकी रहे.लड़की को समझ में आ जाता है कि मायका उसके लिए सच में पराया बन गया. और जब अपने ही उसकी बात नहीं सुन रहेहैं, फिर पुलिस में शिकायत कर के क्या हो जाएगा ? और रिश्ता ही बिगड़ेगा. यह सोचकर लड़की उसे ही अपनी किस्मत मान लेती है.

घरेलू हिंसा सहना और चुप्पी की एक वजह आर्थिक निर्भरता भी है. आमतौर पर महिलाओं को लगता है कि अगर पति का आसरा छूट गया तो वे कहाँ जाएंगी ? बच्चे कैसे पलेंगे ? बच्चे-पति के बीच महिला अपनी पढ़ाई-लिखाई को भी भूल जाती है.  उनके पास भी कोई डिग्री है, याद नहीं उन्हें. रोज खुद को मूर्ख सुनते हुए वे अपनी काबिलियत को ही भूल चुकी होती हैं. वे मान चुकी होती हैं कि पति की शिकायत पुलिस में करने के बाद उम्मीद का आखिरी धागा भी टूट जाएगा और वे बेसहारा हो जाएंगी. तो औरतें सहना ही अपना नसीब मान लेती हैं. लेकिन पुलिस में शिकायत के बाद भी क्या महिला को इंसाफ मिल पाता है ?

कहने को तो लगभग हर साल औरत-मर्द के बीच फासला जांचने के लिए कोई सर्वे होता है, रिसर्च होती है, कुछ कमेटियां बैठती है. लेकिन फर्क आसमान में ओजोन के सुराख से भी ज्यादा बड़ा हो चुका है.

पितृसत्तात्मक माने जाने वाले भारतीय समाज में, जहां शादियों को पवित्र रिश्ता का नाम दिया गया है, वहाँ एक पति का अपनी पत्नी के साथ रेप करना अपराध नहीं माना जाता.मुंबई की एक महिला ने सेशन कोर्ट में जब कहा कि पति ने उसके साथ जबर्दस्ती संबंध बनाए और जिसके चलते उसे कमर तक लकवा मार गया, इसके साथ ही उस महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस भी किया, तो कोर्ट ने कहा कि महिला के आरोप कानून के दायरे में नहीं आते हैं. साथ ही कहा कि पत्नी के साथ सहवास करना अवैध नहीं कहा जा सकता है. पति ने कोई अनैतिक काम नहीं किया है. लेकिन साथ में कोर्ट ने महिला का लकवाग्रस्त होना दुर्भाग्यपूर्ण भी बताया. लेकिन यह भी कहा कि इसके लिए पूरे परिवार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.

2017 में केंद्र सरकार ने कहा था कि मैरिटल रेप का अपराधीकारण भारतीय समाज में विवाह की व्यवस्था को अस्थिर कर सकता है. वहीं 2019 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की कोई जरूरत नहीं है.

मैरिटल रेप क्या है ?

जब एक पुरुष अपनी पत्नी की सहमति के बिना उसके साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स करता है तो इसे मैरिटल रेप कहा जाता है. मैरिटल रेप में पति किसी भी तरह के बल का प्रयोग करता है.

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मैरिटल रेप को लेकर भारत का क्या है कानून?

भारत के कानून के मुताबिक, रेप में अगर आरोपी महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता.IPC की धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है, ये कानून मैरिटल रेप को अपवाद मानता है. इसमें कहा गया है कि अगर पत्नी की उम्र 18 साल से अधिक है तो पुरुष का अपनी पत्नी के साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स रेप नहीं माना जाएगा. भले ही ये इंटरकोर्स पुरुष द्वारा जबर्दस्ती या पत्नी की मर्ज़ी के खिलाफ किया गया हो.

2021 के अगस्त में भारत की अलग-अलगअदालतों में 3 मैरिटल रेप के मामलों में फैसला सुनाया गया. केरल हाई कोर्ट ने 6 अगस्त को एक फैसले में कहा था कि मैरिटल रेप क्रूरता है और यह तलाक का आधार हो सकता है. फिर 12 अगस्त को मुंबई सिटी एडिशनल सेशन कोर्ट ने कहा कि पत्नी की इच्छा के बिना यौन संबंध बनाना गैरकानूनी नहीं है. और 26 अगस्त को छत्तीसगढ़ कोर्ट ने मैरिटल रेप के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि हमारे यहां मैरिटल रेप अपराध नहीं है. मैरिटल रेप के चार केस कोर्ट तक पहुंचे लेकिन उन्हें खारिज कर दिया गया.सोशल मीडिया पर इस फैसले को लेकर बहस छिड़ गयी. जेंडर मामलों की रिसर्चर कोटा नीलिमा ने ट्विटर पर लिखा कि अदालतें कब महिलाओं के पक्ष में विचार करेंगी ?’उनके ट्विटर के जवाब में कई लोगों ने कहा कि इस पुराने कानूनी प्रावधान को बदल दिया जाना चाहिए. लेकिन कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं दिखें. एक ने तो आश्चर्य जताते हुए पूछा कि ‘किस तरह की पत्नी मैरिटल रेप की शिकायत करेगी ? तो दूसरे ने कहा उसके चरित्र में ही कुछ खराबी होगी.

ब्रितानी औपनिवेशिक दौर का ये कानून भारत में साल 1860 से लागू है. इसके सेक्शन 375 में एक अपवाद का जिक्र है जिसके अनुसार अगर पति अपनी पत्नी के साथ सेक्स करे और पत्नी की उम्र 15 साल से कम की न हो तो इसे रेप नहीं माना जाता है. इस प्रावधान के पीछे मान्यता है कि शादी में सेक्स की सहमति छुपी हुई होती है और पत्नी इस सहमति को बाद में वापस नहीं ले सकती है.

लेकिन दुनिया भर में इस विचार को चुनौती दी गई और दुनिया के 185 देशों में से 151 देशों में मैरिटल रेप अपराध माना गया. खुद ब्रिटेन ने भी साल 1991 में मैरिटल रेप को ये कहते हुए अपराध की श्रेणी  में रख दिया कि ‘छुपी हुई सहमति को अब गंभीरता से लिया जा सकता है. लेकिन मैरिटल रेप को अपराध करार देने के लिए लंबे समय से चली आ रही मांग के बावजूद भारत उन 36 देशों में शामिल है जहां मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता है.भारत के कानून में आरोपी अगर महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता.और इसी वजह से कई महिलाएं शादी-शुदा ज़िंदगी में हिंसा का शिकार होने को मजबूर हैं.

फरवरी 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एक मैरिटल रेप का मामला पहुंचा. दिल्ली में काम करने वाली एक MNC एग्जीक्यूटिव ने पति पर आरोप लगाया,‘ मैं हर रात उनके लिए सिर्फ एक खिलौने की तरह थी. जिसे वो अलग-अलग तरह से इस्तेमाल करना चाहते थे.जब भी हमारी लड़ाई होती थी तो वे सेक्स के दौरान मुझे टोर्चर करते थे. तबीयत खराब होने पर अगर कभी मैंने मना किया तो उन्हें यह बात बर्दाश्त नहीं होती थी’ 25 साल की इस लड़की के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर खारिज कर दिया कि किसी एक महिला के लिए कानून नहीं बदला जा सकता है.

तो क्या भारत में महिला के पास पति के खिलाफ अत्याचार की शिकायत का अधिकार नहीं है ?

सीनियर एडवोकेड आभा सिंह कहती हैं कि इस तरह की प्रताड़ना की शिकार हुई महिला पति के खिलाफ सेक्शन 498A के तहत सेक्सुअल असोल्ट का केस दर्ज करा सकती हैं.इसके साथ ही 2005 के घरेलू हिंसा के खिलाफ बने कानून में भी महिलाएं अपने पति के खिलाफ सेक्सुअल असोल्ट का केस कर सकती हैं . इसके साथ ही अगर आपको चोट लगी है तो आप IPC की धाराओं में भी केस कर सकती हैं.लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मैरिटल रेप को साबित करना बहुत बड़ी चुनौती  होगी. चारदीवारी के अंदर हुए गुनाह का सबूत दिखाना मुश्किल होगा.वो कहती हैं कि जिन देशों में मैरिटल रेप का कानून हैं वहाँ ये कितना सफल रहा है इससे कितना गुनाह रुका है ये कोई नहीं जानता .

एक तिहाई पुरुष मानते हैं कि वो जबरन संबंध बनाते हैं—–

  • इन्टरनेशनल सेंटर फॉर वुमेन और यूनाइटेड नेशन्स पॉपूलेशन फंड की ओर से साल 2014 में कराये गए एक सर्वे के अनुसार एक-तिहाई पुरुषों ने खुद यह माना कि वे अपनी पत्नियों के साथ जबरन सेक्स करते हैं.
  • नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे—3 के मुताबिक, भारत के 28 राज्यों में 10% महिलाओं का कहना है कि उनके पति जबरन उनके साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं जबकि ऐसा करना दुनिया के 151 देशों में अपराध है.
  • एक सरकारी सर्वे के मुताबिक, 31 फीसदी विवाहित महिलाओं पर उनके पति शारीरिक, यौन और मानसिक उत्पीड़न करते हैं.यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरविक और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे उपेंद्र बख़्शी का कहना है कि ‘मेरे विचार से इस कानून को खत्म कर दिया जाना चाहिए. वो कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले घरेलू हिंसा और यौन हिंसा से जुड़े कानूनों में कुछ प्रगति जरूर हुई है लेकिन वैवाहिक बलात्कार रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है. साल 1980 में प्रोफेसर बख़्शी उन जाने-माने वकीलों में शामिल थे जिन्होंने सांसदों की समिति को भारत में बलात्कार से जुड़े क़ानूनों में संशोधन को लेकर कई सुझाव भेजे थे. उनका कहना था कि समिति ने उनके सभी सुझाव स्वीकार कर लिए थे, सिवाय मैरिटल रेप को अपराध घोषित कराने के सुझाव को. उनका मानना है कि शादी में बराबरी होनी चाहिए और एक पक्ष को दूसरे पर हावी होने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. आप अपने पार्टनर से ‘सेक्सुअल सर्विस’ की डिमांड नहीं कर सकते.

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लेकिन सरकार ने तर्क दिया कि वैवाहिक कानून का आपराधिकरण विवाह की संस्था को ‘अस्थिर’ कर सकता है और महिलाएं इसका इस्तेमाल पुरुषों को परेशान करने के लिए कर सकती हैं. लेकिन हाल के वर्षों में कई दुखी पत्नियाँ और वकीलों ने अदालतों में याचिका दायर के इस ‘अपमानजनक कानून’ को खत्म करने की मांग की है. संयुक्त राष्ट्र, ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी भारत के इस रवैये पर चिंता जताई है.

कई जजों ने भी स्वीकार किया है कि एक पुराने कानून का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं है. उनका ये भी कहना है कि संसद को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर देना चाहिए.

नीलिमा कहती हैं कि ये कानून महिलाओं के अधिकारों का ‘स्पष्ट उल्लंघन है और इसमें पुरुषों को मिलने वाली इम्यूनिटी ‘अस्वभाविक है. इसी वजह से इससे संबन्धित अदालती मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. वो कहती है कि भारत में आधुनिकता एक मुखौटा है. अगर आप सतह को खंरोचें तो असली चेहरा दिखाता. महिला अपने पति की संपत्ति बनी रहती है. 1947 में भारत का आधा हिस्सा आजाद हुआ था. बाकी आधा अभी भी गुलाम है.

नीलिमा कहती हैं कि इसमें हस्तक्षेप की जरूरत है और इसे हमारे जीवनकाल में बदलना चाहिए. बात जब वैवाहिक बलात्कार की आती है तो बाधाएं अधिक ऊंची होती हैं. ये मामला पहले ही सुलझ जाना चाहिए था. हम आने वाली पीढ़ियों के लिए नहीं लड़ रहे हैं. हम अभी भी इतिहास की गलतियों से लड़ रहे हैं और यह लड़ाई महत्वपूर्ण है.

इस वक़्त दुनिया के कितने देशों में मैरिटल रेप अपराध है ?

19वीं सदी में फेमिनिस्ट प्रोटेस्ट के बाद भी शादी-शुदा पुरुषों को पत्नी के साथ सेक्स का कानूनी अधिकार था.साल 1932 में पोलेंड दुनिया का पहला देश बना जिसने मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया.1970 तक स्वीडन, नार्वे, डेनमार्क, सोवियत संघ जैसे देशों ने भी मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में डाल दिया था. 1976 में ऑस्ट्रेलिया और 80 के दशक में साउथ अफ्रीका, आयरलैंड, कनाडा, अमेरिका, न्यूजीलैंड, मलेशिया, घाना और इज़राइल ने भी इसे अपराध की लिस्ट में डाल दिया.

संयुक्त राष्ट्र यानि UN की प्रोग्रेस ऑफ वर्ल्ड वुमन रिपोर्ट 2018 के मुताबिक, दुनिया के 185 देशों में 77 देश ऐसे हैं जहां मैरिटल रेप को अपराध बताने वाले स्पष्ट कानून हैं. जबकि 74 ऐसे हैं जहां पत्नी को पति के खिलाफ रेप के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज कराने का अधिकार है. भारत के पड़ोसी देश भूटान में भी मैरिटल रेप अपराध है.

लेकिन सिर्फ 34 देश ही ऐसे हैं जहां न तो मैरिटल रेप अपराध है और न ही पत्नी अपने पति के खिलाफ रेप के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकती है. इनमें चीन, बांगलादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सऊदी अरब और भारत देश है. इसके अलावा दुनिया के 12 देशों में इस तरह के प्रावधान हैं जिसमें बलात्कार का आरोपी अगर महिला से शादी कर लेता है तो उसे आरोपों से बरी कर दिया जाता है. यूएन इसे बेहद भेदभाव मानवाधिकारोंके खिलाफ मानता है.

वैवाहिक बलात्कार महिलाओं के लिए एक अपमान की तरह है, क्योंकि यहाँ दूसरे पुरुषों की तरह ही अपने पति द्वारा यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़,द्र्श्यरतिकता और जबरन नग्न करने जैसे कृत्य पत्नियों के लिए किसी अपमान से कम नहीं है.पतियों द्वारा वैवाहिक बलात्कार महिलाओं में तनाव, अवसाद, भावनात्मक संकट और आत्महत्या के विचारों जैसे मानसिक स्वास्थय प्रभाव उत्पन्न कर सकता है. वैवाहिक बलात्कार और हिंसक आचरण बच्चों के स्वास्थ्य और सेहत को भी प्रभावित कर सकता है. पारिवारिक हिंसक  माहौल उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित कर सकता है. स्वयं और बच्चों की देखरेख में महिलाओं की क्षमता कमजोर पड़ सकती है.बलात्कार की परिभाषा में वैवाहिक बलात्कार को अपवाद के रूप में रखना महिलाओं की गरिमा, समानता और स्वायत्तता के विरुद्ध है.

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बस 3 मिनट का सुख और फिर…

तेजतर्रार, स्मार्ट, अपना काम निकालने में सक्षम लड़कियों के  बलात्कार के आरोप का ब्लैकमेल की तरह इस्तेमाल करने की एक कोशिश को सुप्रीम कोर्ट ने टीवी ऐंकर वरुण हिरामथ को दी गई जमानत की राहत को कैंसिल न कर के फेल कर दिया.

इस मामले में शिकायतकर्ता ने अपनी स्टेटमैंट में यह तो मान लिया था कि वह और आरोपी एक ही कमरे में रजामंदी से थे और यह भी कि उस ने अपने कपड़े भी उतारे थे पर उस ने दावा किया कि उस ने सैक्स संबंध बनाने की सहमति नहीं दी और अगर सैक्स हुआ तो यह बलात्कार था.

सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि जब स्त्रीपुरुष एक कमरे में सहमति से हों तो और स्त्री पुरुष का कहना इच्छा से मान रही हो तो बलात्कार का मामला नहीं बनता.

फरवरी, 2020 में दिल्ली के एक होटल में हुए इस मामले पर आरोपी की दलील थी कि कानून कहता है कि कपड़े उतारने की सहमति दे भी दी गई थी तो उसे सैक्स संबंध की सहमति नहीं माना जा सकता. सुप्रीम कोर्ट उस से सहमत नहीं हुआ और वरुण हिरामथ को मिली जमानत बरकरार रखी गई.

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पढ़ीलिखीं, साथ काम कर रही लड़कियों के साथ संबंध बनाना अब एक जोखिम का काम बनता जा रहा है. आदमियों को अकसर लगता है कि पढ़ीलिखी उदार विचारों वाली लड़की सैक्स के मामले में भी उदार होगी पर यह हमेशा नहीं होता. बहुत बार लड़कियां अपने व्यक्तित्व का इस्तेमाल केवल उस हद तक करती हैं जिस हद तक पुरुष अपने बोलने की कला या संपर्कों का करते हैं.

अपने बदन को दिखाने में संकोच न करने वाली हर लड़की अपनी इच्छा के विरुद्ध बिस्तर पर जाने को तैयार हो जाएगी, यह सम झना बड़ी भूल है. पुरुष आमतौर पर सम झते हैं कि वे हर उस औरत को पटा सकते हैं जो काम के सिलसिले में उन के पास आए. औरतें दूसरी तरफ बिस्तर पर उसी के साथ जाना चाहती हैं जो उन्हें पसंद आए. किसी भी लड़की को एक समय में एक ही पसंद आता है और उस के प्रति निष्ठावान रहती है और यह संभव है कि इस पसंदीदा व्यक्ति में पति नहीं हो. अगर पति के साथ न निभाया जा रहा हो, प्रेम न रह गया हो तो सैक्स संबंध केवल कानून सम्मत बलात्कार बन कर रह जाता है.

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पुरुष इस बात को नहीं सम झ पाते और उन्हें लगता है कि जिस ने उन के साथ चाय पी, खाना खाया, घंटों बिताए उस के साथ सैक्स संबंध का हक बन गया. यह हक न पुरुष को है और न ही स्त्री को. अपने शरीर का आकर्षण दर्शा कर पुरुष को उत्तेजित कर संबंध बना लेना बलात्कार कम माना जाता है पर ऐसा हो तो बड़ी बात नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट आमतौर पर सैक्स संबंधों के मामलों में औरतों की सहीगलत सभी बातें मान लेता है पर इस मामले में अगर भिन्न आदेश दिया है तो यह अच्छी बात है.

सहमति से बना संबंध जब रेप में बदल जाए

योंतो आए दिन रेप के मामले लगातार सामने आते रहते हैं, लेकिन कई बार ऐसे मामले भी सामने आते हैं, जिन में प्रेमिका ने अपने प्रेमी पर रेप का इलजाम लगाया. ऐसे मामले सच में चौंका देने वाले होते हैं.

प्रयागराज से दिल्ली आए विशाल की कहानी भी कुछ ऐसी ही चौंका देने वाली है. विशाल दिल्ली में अपनी गर्लफ्रैंड कंचन के साथ एक ही फ्लैट में रहता था. दोनों साथ में रह कर सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहे थे. साथ कोचिंग जानाआना था. दोनों ज्यादातर वक्त एकदूसरे के साथ ही बिताते थे.

विशाल अपने कैरियर को ले कर बहुत सीरियस था, जबकि कंचन अपने कैरियर से ज्यादा विशाल को ले कर सीरियस थी या यों कह लीजिए कंचन विशाल के साथ अपना भविष्य देखने लगी थी.

यूपी के बलिया की रहने वाली कंचन का स्वभाव थोड़ा जिद्दी और गुस्से वाला था. दिल्ली आने के बाद उस में काफी बदलाव आया. विशाल और कंचन की मुलाकात दिल्ली में हुई. देखते ही देखते दोनों एकदूसरे के करीब आने लगे.

ये नजदीकियां विशाल के लिए खतरनाक साबित होंगी इस का उसे अंदाजा भी नहीं था. एक ही फ्लैट में रहने के बावजूद विशाल ने कभी कंचन के साथ सैक्स संबंध बनाने की कोशिश नहीं की. दोनों एकदूसरे के नजदीक तो आए, लेकिन एक दायरे में रह कर.

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विशाल अपने परिवार का अकेला बेटा था और उस के पेरैंट्स चाहते थे कि वह जल्दी शादी कर ले. इधर विशाल की परीक्षा शुरू होने वाली थी और दूसरी तरफ शादी का दबाव. विशाल ने अपने परिवार वालों से गुस्से में बोल दिया कि अगर उस की परीक्षा क्लीयर हो गई तो वह जल्द ही शादी कर लेगा.

2 महीने बाद विशाल का रिजल्ट आया, जिसे देख कंचन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. विशाल ने परीक्षा क्लीयर कर ली थी.

अब कंचन को डर था कि विशाल उस से दूर हो जाएगा. विशाल बहुत खुश नजर आ रहा था. आखिर उस की मेहनत रंग जो लाई थी. उस के घर वाले भी बहुत खुश थे.

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उधर कंचन के व्यवहार में बदलाव दिखने लगा था. हर बात पर गुस्सा, चिड़चिड़ापन. विशाल ये सब देख रहा था, लेकिन उस ने कंचन से कुछ कहा नहीं. रिश्ते की शुरुआत में ही विशाल ने कंचन को बोल दिया था कि वह उस से शादी नहीं कर सकता और इस बात पर कंचन भी विशाल से सहमत थी. लेकिन अब वह उस पर अपना हक जमाने लगी थी. विशाल कंचन की इन हरकतों को नजरअंदाज कर देता था.

कुछ समय बाद विशाल ने फैसला किया कि अब उसे अलग हो जाना चाहिए. अत: वह कुछ दिनों के लिए प्रयागराज चला गया. प्रयागराज जाते ही कुछ दिनों बाद उस की सगाई हो गई. यह बात जब विशाल ने कंचन को बताई तो वह उस पर चिल्लाने लगी. धमकियां देने लगी कि अगर विशाल ने उस से शादी नहीं की तो वह मर जाएगी, उसे बरबाद कर देगी

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विशाल ने कंचन को बहुत समझाने की कोशिश की पर वह तो अपनी जिद्द पर अड़ी थी. सगाई के बाद जब विशाल दिल्ली अपने फ्लैट सामान लेने आया तो उस दिन कंचन फ्लैट में ही थी. विशाल के आने पर कंचन फूटफूट कर रोने लगी और उस से शादी के लिए बोलने लगी. विशाल उसे समझा रहा था. तभी कंचन उस के घर वालों को भी उलटासीधा सुनाने लगी. विशाल से यह सहन न हुआ तो वह उसी वक्त वहां से गुस्से में निकल गया.

पूरी रात विशाल परेशान था. उस रात विशाल अपने एक दोस्त के घर रुका. उसे परेशान देख दोस्त ने उस से परेशानी की वजह पूछी. लेकिन विशाल चुप रहा. अगली सुबह जब विशाल उठा तो सबकुछ बदल चुका था. पुलिस उस के सामने थी. उस के दोस्त के घर वाले उसे गुस्से में देख रहे थे. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है. दरअसल, मामला यह था कि कंचन ने विशाल पर जबरदस्ती यानी रेप का आरोप लगाया था. यह बात सुनते ही विशाल हक्काबक्का रह गया. उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि कंचन ऐसा इलजाम भी उस पर लगा सकती है. कंचन के द्वारा विशाल पर झूठा रेप का इलजाम लगाने से विशाल की पूरी दुनिया तहसनहस हो गई.

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आखिर क्यों होता है ऐसा

दरअसल, एकदूसरे के टच में रहते हुए यानी लंबे समय तक साथ रहते हुए पार्टनर के साथ इमोशनल जुड़ाव हो जाता है. यह जुड़ाव इतना गहरा होता है कि किसी एक का जुदा होना दूसरे को बरदाश्त नहीं होता. ऐसे में जब किसी एक की तरफ से नकारात्मक प्रतिक्रिया होती है तो दूसरा कुछ भी करने पर उतारू हो जाता है.

इस बारे में मनोचिकित्सक अमित कुमार का कहना है, ‘‘जब हम किसी के साथ ज्यादा वक्त बिताते हैं फिर चाहे वह कोई पशु हो या इंसान हम धीरेधीरे उस से क्लोज हो जाते हैं और फिर इस बात का एहसास हमें तब होता है जब वह दूर चला जाता है.’’

अगर हम रिलेशनशिप की बात करें तो एक ही रूम में एक व्यक्ति के साथ रहना, सारा वक्त साथ बिताना, छोटी से छोटी बातें भी शेयर करना ये सब हमारी जिंदगी का हिस्सा बन जाता है. दरअसल, हमें इस की आदत हो जाती है और जब ऐसा न हो तो गुस्सा आना स्वाभाविक है.

मगर जरूरत से ज्यादा गुस्सा आना, हर बात पर लड़ना यह तभी होता है जब सामने वाले की जिंदगी में वैसा नहीं होता जैसा वह चाहता है. आप देखेंगे ऐसे व्यक्ति तुरंत गुस्सा करने लगते हैं तो कभी शांत रहते हैं. इन का यह व्यवहार इन्हें डिप्रैशन की ओर ले जाता है. डिप्रैशन से पीडि़त व्यक्ति हर वक्त खुद में खोया नजर आएगा. ऐसे लोग जिद में आ कर कुछ भी कर सकते हैं.

मगर ऐसे भी लोग हैं जो ऐसे घिनौने इलजाम अपने फायदे के लिए लालच में आ कर लगाते हैं.

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कैसे बचें रेप के झूठे इलजाम से रेप एक जघन्य अपराध है, इस में कोई दो राय नहीं, पर जब सहमति से संबंध बनें और बाद में लड़की रेप का झूठा इलजाम लगा दे तो यह कानून का बेजा इस्तेमाल ही कहलाएगा.

कई बार लड़की के मातापिता ही ऐसा इलजाम लगा देते हैं और वह भी सिर्फ कुछ रुपयों, कुछ दिनों की सुखसुविधा के लिए. यह कहां की समझदारी है? शायद वे भूल जाते हैं कि इस से उन की बेटी के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

यदि कोई किसी पर रेप का झूठा आरोप लगाता है और वह झूठा साबित होता है तो हमारे कानून के अनुसार इलजाम लगाने वाले को 10 साल की सजा के साथसाथ जुरमाना भी देना पड़ सकता है.

मुद्दे की बात यह है कि आखिर कैसे इन निर्दोष पीडि़तों को रेप के झूठे आरोप से बचाया जाए? न जाने आज कितने निर्दोष व्यक्ति कालकोठरी में इस कलंक के साथ घुटघुट कर जिंदगी जी रहे हैं.

कुछ सुझाव

इस पूरे मामले पर एडवोकेट सुमित शर्मा कहते हैं कि जैसा हम जानते हैं आजकल किसी भी महिला या पुरुष की दोस्ती के बाद शारीरिक संबंध बनाना कोई बड़ी बात नहीं है. ऐसे में बहुत सी लड़कियां पुरुष को शादी के लिए या ठगने के लिए उस पर रेप का आरोप लगा देती हैं. यदि कोई पुरुष शादी का झांसा दे कर शारीरिक संबंध बनाता है तो यह रेप की श्रेणी में आता है. लेकिन कई बार लड़का निर्दोष होता है और लड़की के जाल में फंस जाता है. ऐसे में लड़कों को इन सुझावों को अपनाना चाहिए:

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– यदि रेप करने का कोई ठोस सुबूत नहीं है तो आप लड़की से शारीरिक संबंध नकार सकते हैं तथा मैडिकल टैस्ट में टू फिंगर टैस्ट की रिपोर्ट पर जोर दे कर लड़की को गलत साबित कर सकते हैं.

– अगर लड़की ने कभी शारीरिक संबंध के लिए अप्रोच किया है और उस का कोई सुबूत आप के पास है तो आप उसे कोर्ट में पेश कर सकते हैं.

– यदि शारीरिक संबंधों की रिपोर्ट फोरेंसिंक रिपोर्ट या वीडियो अथवा फोटो में है तो आप संबंध बनाना स्वीकार करें तथा संबंध धोखे

से नहीं बनाए यह साबित करें. लेकिन ध्यान रखें यह तभी कारगर है जब लड़की की उम्र 18 वर्ष हो.

– मैडिकल रिपोर्ट की कमियां देखें व उन्हें हथियार के तौर पर इस्तेमाल करें.

– यदि केस ज्यादा गंभीर हो तो चार्जशीट जल्दी फाइल करवाने की कोशिश करें.

क्यों न सैक्स संबंधों को सामान्य माना जाए

दिल्ली में सैंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स की एक 30 वर्षीय महिला कौंस्टेबल ने अपने एक सहभागी के खिलाफ बलात्कार की रिपोर्ट लिखाई.

अपनी ड्यूटी के साथ रैसलिंग करने वाली इस युवती ने कहा है कि सीआरपीएफ में एक सैक्स रैकट चल रहा है और महिला कौंस्टेबलों के नहाते या कपड़े बदलते हुए वीडियो बना लिए जाते हैं और फिर उन्हें ब्लैकमेल किया जाता है. उस शिकायतकर्ता ने कुश्ती टूरनामैंटों में बहुत से मैडल भी जीते हैं फिर भी हैरेसमैंट की शिकार हुई है.

यह साफ करता है कि हमारी पुलिस फोर्स कोई गारंटी नहीं देती कि  देश की औरतें उस के होते हुए सुरक्षित हैं, क्योंकि वे उस में काम कर रही औरतें खुद असुरक्षित हैं.

एक अदालत में सैनिक अधिकारियों ने खुल्लमखुल्ला सेना में युद्ध के मोरचे पर लड़कियों की भरती का विरोध किया था, क्योंकि उन्हें डर था कि जवान इन लड़कियों को छोड़ेंगे नहीं. औरतों के प्रति कानून और व्यवस्था लागू करने वालों की लचर सोच और कुकृत्य पर बेहद शर्म आती है.

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असल में हर तरह से कोशिश की जा रही है कि औरतों को किसी तरह घरों में बंद रखा जाए. धर्म ने शुरू से औरतों को बंद करा देने का लालच दे कर मर्दों को धर्म के नाम पर धनसंपत्ति, जान देने व जान लेने के लिए तैयार किया. मर्दों को घरों में सैक्स सुख के लिए औरतें और कम पैसे वाली गुलाम मिल रही थीं तो वे क्यों न धर्म के गुणगान करते.

राजाओं और शासकों को प्राचीन समय में भी औरतों को बराबर के से मौके देने पर आपत्ति नहीं थी, क्योंकि वे तो चाहते थे कि किसी तरह उत्पादन बढ़े ताकि उन्हें ज्यादा टैक्स मिले. ये तो पंडे थे, जिन्होंने राजाओं को मजबूर किया कि वे बलात्कार का दोषी औरतों को बना दें ताकि उन की इच्छा पूरी होती रहे.

हर धर्म का इतिहास भरा हुआ है जहां औरतों पर आरोप लगाने वालों का गुणगान किया गया है. राम ने सीता को रावण की लंका से लाने पर जो कहा वह निंदनीय था पर राम को जम कर आज भी पूजा ही नहीं जा रहा, उसे केंद्र की शक्ति का केंद्रबिंदु बना रखा है.

जो औरतें कहती हैं कि अगर पुलिस व्यवस्था सही हो तो बलात्कार रोके जा सकते हैं, गलतफहमी में हैं. पुलिस फोर्स में अंदर ही अंदर जम कर महिला कौंस्टेबलों से बदसलूकी होती है और वे मोटे वेतन और कमाई के लालच में चुप रहती हैं. महिला कौंस्टेबलों को फोर्स में चाहे डर लगता हो पर बाहर आम समाज में उन का खौफ रहता है, जो एक तरह का बोनस है, जिस के कारण वे इस अनाचार को सह रही हैं.

बलात्कार से बचने का एक उपाय है कि सैक्स संबंधों को बेहद सामान्य माना जाए और उन्हें चरित्र से न जोड़ा जाए.

औरतें किसी की संपत्ति नहीं हैं और औरतों के सैक्स का उन की शादी व अधिकारों पर कोई असर नहीं पड़ेगा, यह मन में बैठ जाए ताकि बलात्कार अपने में ब्लैकमेल का टूल न बन जाए. आजकल बलात्कारी उस समय का वीडियो भी बनाने लगे हैं ताकि पीडि़ता को बाद में और बारबार सैक्स करने पर मजबूर किया जा सके.

सैक्स के प्रति उन्मुक्ता से समाज का पतन नहीं होगा. अगर ऐसा होना होता तो कहीं भी कभी भी वेश्या बाजार नहीं बनते. उन में जाने वाले मर्दों से जब नैतिक पतन नहीं हुआ तो स्वैच्छिक यौन संबंधों से कैसे होगा?

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यह खुली सोच बलात्कार को स्टिगमा से बचा लेगी और औरतों पर अत्याचार करने वालों को डर ज्यादा रहेगा कि उन की करतूत छिपी नहीं रहेगी.

गैंग रेप के शिकार पुरूष के दर्द को बयां करती फिल्म ‘‘376 डी’

ओटीटी प्लेटफार्म ‘शेमारू मी बाक्स आफिस’ निरंतर अलग हटकर मनोरंजक फिल्में अपने दर्शकों के लिए परोसता आ रहा है. अब वह नौ अक्टूबर को एक मार्मिक कहानी वाली फिल्म‘‘376 डी’’लेकर आ रहा है. जो भारतीय न्यायपालिका में कुछ चमकती खामियों को उजागर करती है.

धारा ‘‘376 डी’’धारा गैंग रेप की भयावहता से संबंधित है. फिल्म ‘‘376 डी’’ भी ऐसे यौन उत्पीड़न पर चर्चा करती है, जो इससे पहले न सुनी और न ही परदे पर देखा गया है. यह फिल्म दिल्ली के उन दो सगे भाईयों की व्यथा का वर्णन करती हैं, जिनका एक दिन गैंग रेप हो जाता है. और वह न्याय के लिए न्यायपालिका संग कठिन लड़ाई का सामना करते हैं. क्योकि अदालत में पहुंचने के बाद उन्हे पता चलता है कि वह जिस अपराध के श्किार हुए हैं, उसको लेकर कोई कानून नही है. उन्हें जो न्याय मिलना चाहिए, वह नर्वस ड्रैकिंग कोर्टरूम ड्रामा के रूप में मिलता है. इस फिल्म को ‘‘खजुराहो फिल्मोत्सव’ सहित कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फिल्म समारोहों में जबरदस्त सराहना मिल चुकी है.

यूं तो रेप को लेकर नब्बे के दशक में फिल्म‘‘दामिनी’’से लेकर अब तक ‘पिंक’सहित कई फिल्में आ चुकी हैं, जिन्हे दर्शकों ने काफी पसंद भी किया. इन फिल्मों में यौन अपराध के कानूनी पहलुओं का चित्रण है. लेकिन फिल्म ‘‘ 376 डी’’की विषय वस्तु दर्शकों के दृष्टिकोण को चुनौती देनेवाला है. इस फिल्म में दर्शक को लिंग के बारे में कुछ असुविधाजनक सत्य का सामना करना पड़ता है. जी हां!यह फिल्म थोड़ी लीक से हटकर है. इसमें रेप की शिकार कोई महिला नहीं, बल्कि एक पुरुष है.

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फिल्म ‘‘376 डी’’में संजू का किरदार निभा रहे अभिनेता विवेक कुमार कहते हैं-‘‘जो कलाकार थिएटर से आते हैं, उनके लिए एक फिल्म का हिस्सा बनना सबसे बड़ा उपहार है. यह उपहार मुझे इस फिल्म ने दिया. इसमें एक अभिनेता के रूप में मेरे लिए काफी गुंजाइश है. एक कलाकार हमेशा ऐसी अनोखी भूमिकाओं के लिए तरसता है जिसमें परिपक्वता और गहराई होती है. मैनें अभिनय का कोई पेशेवर प्रशिक्षण नही लिया है. ऐसे में इस फिल्म ने मेरी अभिनय प्रतिभा को निखारने में काफी मदद की. फिल्म‘376 डी’ एक ईमानदार, कठोर आघात करने के साथ महत्वपूर्ण संदेश देती है. ’’

गुजराती सिनेमा की चर्चित अदाकारा दीक्षा जोशी ने इस फिल्म में अहम किरदार निभाया है. वह कहती हैं-‘‘जब आप विभिन्न पात्रों को चित्रित करते हैं, तो एक कलाकार के रूप में यह हमेशा संतोषजनक अनुभव होता है. इसमें मेरी भूमिका एक साधारण लेकिन आधुनिक महिला की है, जो एक समान साथी है. जेंडर और साहित्य की छात्रा होने के कारण मैंने इस फिल्म की विषयवस्तु की बारीकियों को समझा. संवेदनशील और मानवीय कहानी के साथ सहानुभूति वाली कहानी है. यह एक बड़े मुद्दे पर खुलकर बात करती है. धारा 376 डी एक बहुत ही संवेदनशील फिल्म है. यह एक अदालत का ड्रामा है, जो एक ऐसे मामले को सामने लाता है, जो एक ऐसे कानून से संबंधित है, जो अस्तित्व में नहीं है. राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोहरत बटोरने के बाद अब फिल्म‘‘376 डी’’ भारत की पसंदीदा स्ट्रीमिंग सेवा ‘शेमारूमी बॉक्स’पर आ रही है. मुझे यकीन है कि दर्शक हमारी फिल्म को उतना ही पसंद करेंगे, जितना हमने मेहनत की है. ’’

फिल्म को यथार्थ परक बनाने के लिए गुजरात उच्च न्यायालय के डिफेंस वकील सुमित सिंह सिकरवार ने ही इस फिल्म में सरकारी वकील केशव आनंद का किरदार निभाया है. वह कहते हैं-‘‘वास्तविक जीवन में वकील से लेकर परदे पर वकील बनने तक की एक अद्भुत यात्रा रही है. एकमात्र विडंबना यह है कि मैं पेशे से एक डिफेंस वकील हूं, लेकिन फिल्म में मैं विपरीत पक्ष का वकील बना हूं. ’’

वकील की भूमिका निभाने वाली प्रियंका शर्मा कहती हैं-‘‘मैं इसकी स्क्रिप्ट से बहुत प्रभावित हुई. दूसरी बात जब हम कम्फर्ट जोन से बाहर निकलकर किरदार निभाते हैं, तो एक अलग अनुभव होता है. बड़ी चुनौती होती है और काफी कुछ सीखने को मिलता है. सच कहूं तो मैं अपराधी को बचाने वाली वकील हूं, जिससे में निजी जीवन में सहमत नही हूं. मेरी राय में हर अपराधी को सजा मिलनी चाहिए. ”

फिल्म ‘‘ 376 डी’’की महिला निर्देशक गुनवीन कौर कहती हैं- ‘‘शुरुआत में हम महिला के साथ बलात्कार के मुद्दे पर ही फिल्म बनाने की सोच रहे थे. लेकिन जब हमने इस विषय पर शोधकार्य किया, तो हम चकित रह गए. हमने पाया कि सिर्फ महिलाएं ही नहीं बल्कि पुरुषों के साथ भी बलात्कार के कई मामले हो चुके हैं, जिनको लेकर हम जागरूक नहीं हैं. तब हमने तय किया कि पीड़ित पुरुष को लेकर फिल्म बननी चाहिए. हम अपी इस फिल्म के माध्यम से कहना चाहते है कि बलात्कार सदैव बुरा है, फिर चाहे वह औरत के साथ हो या पुरूष के साथ. इस जघन्य अपराध व दुष्कर्म का प्रभाव हर इंसान पर एक ही तरह का होता है. यह फिल्म पीड़ित इंसान की भावुक यात्रा के साथ कोर्ट रूम ड्रामा है, जो दर्शकों को बांधकर रखेगा. ‘‘’

वहीं इस फिल्म की निर्देशकीय जोड़ी के पुरूष निर्देशक रोबिन सिकरवार कहते हैं-अमरीका व इंग्लैंड में पुरूषों के संग बलात्कार की घटनाएं काफी होती हैं. जब किसी पुरूष के साथ ऐसा होता है, तो वह आंतरिक से रूप से बहुत संघर्ष करता है. हमारी फिल्म ‘376 डी’संदेशपरक व्यावसायिक फिल्म है. विषयवस्तु के साथ न्याय करने के लिए हमने नामचीन कलाकारों की बजाय नवोदित कलाकारों को फिल्म से जोड़ा. ‘‘

गुनवीन कौर और रॉबिन सिकरवार निर्देशित फिल्म‘‘ 376 डी’’ 9 अक्टूबर को ओटीटी प्लेटफार्म ‘‘शेमारू मी बाक्स आफिस’ पर आएगी. इसे अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं-विवेक कुमार, दीक्षा जोशी, सुमित सिंह सिकरवार और प्रियंका शर्मा.

कुदरती है जवान लड़कों के प्रति आकर्षण

देश का पोर्न साहित्य पढ़ें तो उस में बहुत से किस्से उन मालकिनों के होते हैं, जिन्होंने अपने कर्मचारियों के साथ संबंध बनाए. आमतौर पर ये किस्से बनावटी लगते हैं पर पढ़ने वालों को मजा देते हैं. सवाल उठता है कि क्या सैक्स भूख वास्तव में इतनी होती है कि मालकिनें अपने कर्मचारियों को फुसलाने में लगी होती हैं? ऐसा ही एक मामला बैंगलुरु में उच्च न्यायालय के सामने आया.

42 साल की एक महिला ने अपने 27 साल के कर्मचारी पर बलात्कार का आरोप लगाया. मामला अश्लील किस्सों की तरह का है. पहले दोनों ने एक होटल में खाना खाया, शराब पी. फिर वे रात 11 बजे औफिस गए और सुबह औरत ने बलात्कार का मामला दर्ज कराया. बलात्कार बलपूर्वक नहीं किया गया, कहा गया, शादी का झूठा वादा कर के किया गया.

भारतीय दंड संहिता कानून में वयस्क महिला के साथ यदि सैक्स संबंध जबरन न हों पर शादी का झूठा वादा कर के बनाया जाए तो उसे बलात्कार कहते हैं.

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पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया तो अभियुक्त ने अदालत में जमानत की अर्जी दी. जैसा आमतौर पर हमारे देश की निचली अदालतों का रवैया है, जमानत नामंजूर कर दी गई. अभियुक्त उच्च न्यायालय में गया और गुहार लगाई कि संबंध सहमति से बने थे.

उच्च न्यायालय के न्यायाधीश कृष्णा दीक्षित ने उदारता दिखाते हुए जमानत दे दी और कहा कि जब बलात्कार 11 बजे रात को हुआ तो शिकायत उसी समय नहीं की गई और पीडि़ता का कहना है कि वह सो गई थी, समझ नहीं आता. हालांकि उन्होंने भारतीय स्त्री के चरित्र की गुहार लगाई कि बलात्कार के बाद हमारे यहां स्त्री इतनी नहीं थक सकती कि सो जाए.

असल मुद्दा यह है कि अधेड़ होतीं पर शरीर और मन से जवान औरतों को शारीरिक सुख अब और ज्यादा चाहिए होता है. पहले तो 40 की उम्र आने तक औरतों को कई बीमारियां घेर लेती थीं. बच्चे, घर संभालने और दूसरी समस्याओं में घिर जाने के कारण वे बदन से हार जाती थीं, लेकिन अब स्थिति बदल रही है.

पुरुषों की तरह अब औरतें 50-60 साल तक की आयु में सैक्सुअली सक्रिय रहने लगी हैं और यह नई तरह की समस्याओं को जन्म दे रहा है. जो अकेली रह गई हैं या जिन के पति अति व्यस्त हो जाएं और बच्चे अगर हों, तो घोंसला छोड़ चुके हों, तो औरतों का खालीपन सिर्फ फोन कौल और किट्टी पार्टियों से दूर नहीं होता. विवाहित और अविवाहित, तलाकशुदा या विधवा सब को एक साथी की जरूरत महसूस होने लगती है और यह कमी आसानी से दूर नहीं होती.

औरतें आमतौर पर इस आयु में कोई पक्का और लंबा संबंध नहीं बनाना चाहतीं. वे चलाऊ संबंध चाहती हैं, जो जब मरजी चाहे तोड़ा जा सके. दिक्कत यह है कि इस के अवसर कम ही रहते हैं. कामकाजी औरतें बहुत व्यस्त रहती हैं और घरेलू औरतों के लिए घर की दहलीज कुछ रोमांचक करने से रोकती है. वे बेहद खालीपन और उस से पैदा होने वाले अवसाद में घिर जाती हैं, जो धर्म के नाम पर अपना पैसा लुटाने को तैयार हों, उन्हें तो कुछ राहत मिल जाती है पर बाकी अधूरी रह जाती हैं.

बैंगलुरु की इस औरत ने जो किया वह कुछ गलत था, ऐसा नहीं कहा जा सकता. यह प्राकृतिक आवश्यकता है, जिस पर समाज ने औरतों को काबू में रखने व बीमार रखने के लिए बंधन लगा दिए हैं.

अब सुंदर व चुस्त दिखने की इच्छा की आयु 30-35 साल में ही नहीं, 60-65 साल की उम्र में भी रहती है और यह स्वाभाविक है, बनावटी नहीं. हमारे देश में तो इसे पश्चिमी सभ्यता का दुष्परिणाम कह कर गाली दे कर दबा दिया जाता है पर असल में यह घुटन को जन्म देती है, जो दूसरे तरीकों से औरतों के व्यवहार में फूटती है और उन्हें बहूबेटी से इस अभाव का बदला लेने को उकसाना शुरू कर देती है.

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अदालतें या कानून इस बारे में ज्यादा कुछ नहीं कर सकते. धार्मिक प्रवचन देने वाले इस समस्या को जानते हैं और इस से तन और उस के धन को हड़पते हैं, पर यह मौका भी हरेक को नहीं मिलता. जवान लड़कों के प्रति आकर्षण को अस्वाभाविक या घृणित नहीं समझा जाए, यह जरूरी है.

जब रक्षा करने वाला ही कर दे हैवानियत की सारी हदें पार

जी हां बलात्कार की घटनाएं तो रुकने का नाम नहीं ले रही हैं लेकिन यहां पर बात किसी आम आदमी की नहीं बल्कि एक पुलिस वाले की हो रही है.जो देश का जनता का रक्षक होता है… जब वही हैवान बन जाए तो क्या कहें कि इस देश का क्या होगा?

छत्तीसगढ़ से एक खबर आई है कि जशपुर के बगीचा क्षेत्र की रहने वाली एक महिला का बलात्कार हुआ और बलात्कार करने वाला एक पुलिस वाला है. पुलिस ने हालांकि केस दर्ज कर लिया है लेकिन जरा सोचिए कि कितना अजीब है ये कि एक पुलिस वाला हैवानियत की सारी हदें पार करता है और वहीं दूसरा पुलिस वाला केस दर्ज करता है.

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पुलिस के मुताबिक 17 जनवरी को जशपुर में रहने वाली एक महिला जब अपने घर पर अकेली थी उसका पति नहीं था तब उसके घर में घुसकर एक पुलिसकर्मी ने रेप किया…महिला ने ये आरोप लगाया और कहा कि सन्ना थाने में तैनात एक पुलिस वाले ने उसका रेप किया है.पुलिस ने धारा 376 और 450 के तहत मामला दर्ज किया है. आरोपी पुलिसकर्मी का नाम महेश्वर यादव है और पुलिस के मुताबिक ये अभी अपने घर से फरार है इसलिए उसे तमाम कोशिशों के बावजूद भी पकड़ा नहीं जा सका है.लेकिन पुलिस का कहना है कि जल्द ही वो आरोपी को पकड़ लेगी.

यहां पर आज सवाल ये खड़ा हो रहा है कि आखिर महिलाएं,लड़कियां कैसे सुरक्षित रहेंगी जब उन्हें सुरक्षा देने वालों से भी खतरा है.जब किसी लड़की के साथ बलात्कार होता है तो वो पुलिस के पास जाकर एफआईआर दर्ज कराती है तो जरा सोचिए कि जब पुलिस ही हैवान बन जाए तो क्या होगा इस देश का? ऐसी खबरें अक्सर सरकार से देश से और समाज से एक ही सवाल करती हैं कि आखिर कब तक ?कब तक चलेगा ये?

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महिलाओं का सशक्तिकरण वाया इंटरनेट

नाम-चेतना

उम्र-कोई 28 साल

स्थान सालपुरी [अलवर]

प्रदेश-राजस्थान

सालपुरी की महिलाओं के लिए चेतना महज एक नाम नहीं बल्कि उनकी जिंदगी में कायाकल्प कर देने वाले किसी जादूगर जैसा है.यह कहानी तीन साल पहले शुरू हुई चेतना की एक पड़ोसन के पेट में दर्द था.उसे सूझ नहीं रहा था कि वह क्या करे ? रात का समय था,दूर दूर तक कोई डॉ था नहीं और दुर्भाग्य से घर में कोई बड़ी बूढी औरत भी नहीं थी, जो ऐसे मौके पर अपने अनुभवों के खजाने से कोई उपाय खोजती.चेतना को यह बात मालूम पड़ीं तो वह अपना स्मार्ट फोन लेकर पड़ोसन के पास आयी और कहा चलो इंटरनेट से कोई उपाय ढूंढते हैं.पड़ोसन को कुछ समझ नहीं आया.उसे कुछ करना या समझना भी नहीं था,बस अपनी आँखों से वह सब देखना था जो चेतना कर रही थी.चेतना ने पड़ोसन को सिखाते हुए बताया कैसे हम छोटी मोटी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का हल इंटरनेट से खोज सकते हैं.

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चेतना ने ‘पेट दर्द से फ़ौरन राहत दिलाने वाले घरेलू नुस्खे’ लिखकर नेट में सर्च किया.तुरंत कई घरेलू नुस्खे सामने आ गए.उन दोनों ने मिलकर एक नुस्खे को आजमाना तय किया.दोनों ने मिलकर ‘अदरक का काढ़ा’ बनाने के नुस्खे को आजमाया.5 मिनट में काढ़ा तैयार हो गया.इससे चेतना को न सिर्फ तुरंत जादुई राहत मिली बल्कि इंटरनेट के प्रति जबर्दस्त आकर्षण पैदा हुआ.आज चेतना की वह पड़ोसन अपने परिवार की सबसे स्मार्ट महिलाओं में से एक है.उसे न सिर्फ दर्जनों किस्म की खाने की नई नई चीजें बनाने आती हैं,बल्कि वह अपने इस हुनर से कुछ कमा भी लेती है.इस सबका जरिया है इंटरनेट.चेतना की पड़ोसन ने इंटरनेट के जरिये दर्जनों किस्म के अचार बनाने सीखे हैं.ऐसी चीजों से भी पहले जिसके बारे कभी सोचा भी नहीं था.इसलिए चेतना की यह पड़ोसन आज इंटरनेट की मुरीद है.यह चेतना की किसी एक पड़ोसन की कहानी नहीं है.चेतना ने घूम-घूमकर पूरे अलवर में ऐसी 900 महिलाओं को इंटरनेट सैवी बनाया है जो उसे चेतना नहीं ‘इंटरनेट साथी’ कहकर बुलाते हैं.

इन तमाम महिलाओं की जिंदगी इंटरनेट की बदौलत वाकई बहुत समृद्ध हो गयी है.इंटरनेट के जरिये उनमें दर्जनों किस्म के पहले से मौजूद हुनरों को नए पंख तो मिले ही हैं,यह थोड़ी बहुत आय का जरिया भी बना है तथा देश-विदेश में क्या हो रहा है इस सबकी ताजा जानकारी का जरिया भी.सच तो यह है कि घर की चाहरदीवारी के भीतर रहते हुए ही,वह भी राजस्थान जैसे बंद समाज में,आज इन महिलाओं को तमाम नए नए लोगों से दोस्ती करने का मौका भी इंटरनेट से ही मिला है.सिर्फ महिलाओं से ही नहीं..पुरषों से दोस्ती का मौका.इंटरनेट के जरिये आम महिलाओं की जिंदगी को बदल डालने वाली चेतना देश में अकेली इंटरनेट प्रशिक्षक नहीं हैं.आज देश में ऐसी करीबन 100000 स्वयंसेवी इंटरनेट प्रशिक्षक हैं जिन्होंने इस नेट की डिजिटल क्रांति को आम ग्रामीण महिलाओं की जिंदगी बदलने का हथियार बना लिया है.

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यह उस प्रयास का नतीजा है जिसे 2013 में टाटा तथा और कुछ कंपनियों की मदद से गूगल ने ‘हेल्पिंग वीमेन गेट ऑनलाइन’ नाम से शुरू किया था.महज 5-6 सालों में इस अभियान ने महिलाओं की जिंदगी में क्रांति कर दी है.लाखों नहीं करोड़ो महिलाओं की जिंदगी को इंटरनेट ने अलग अलग तरीके से समृद्ध कर दिया है.यह ऐसे ही प्रयासों का नतीजा है कि आज 30 फीसदी महिलाएं ऑनलाइन शॉपर्स हैं.हालांकि इनमें अभी ग्रामीण महिलाओं की संख्या कम है.लेकिन दिनोदिन बढ़ रही है. विभिन्न अध्ययनों का अनुमान है कि वर्ष 2021 तक भारत में इंटरनेट प्रयोग करने वालों की संख्या 829 मिलियन यानी करीब 83 करोड़ हो जायेगी.तब 25 करोड़ महिलायें विशुद्ध रूप से इंटरनेट सैवी ही नहीं होंगी बल्कि ई-कामर्स में निर्णायक भूमिका निभा रही होंगी.क्योंकि महिलायें घर के अर्थशास्त्र में निर्णायक दखल रखती हैं. नीलसन के एक स्टडी के मुताबिक़ 92 फीसदी महिलाओं ने दावा किया कि वे घरेलू खपत में मुख्य भूमिका निभाती हैं.ध्यान रखिये इनमें नॉन-वर्किंग महिलाएं भी शामिल हैं.

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