इन 6 होममेड तरीकों से चमकाएं अपना टॉयलेट

टॉयलेट प्रत्येक घर का एक अहम हिस्सा होता है जिसे परिवार के प्रत्येक सदस्य द्वारा दिन में कई बार उपयोग किया जाता है. आजकल के टॉयलेट बहुत सुविधाजनक और खूबसूरत होते हैं. अक्सर घर बनवाते समय लोग टॉयलेट में बहुत महंगा सामान लगवाते हैं परन्तु समुचित देखभाल के अभाव में शनै शनै वे अपनी चमक खोने लगते हैं और कुछ समय में ही वे बदरंग और पुराने से प्रतीत होने लगते हैं. सम्पूर्ण घर की ही भांति टॉयलेट की साफ सफाई भी नियमित और अच्छी तरह की जानी चाहिए.

टॉयलेट साफ करने के लिए एसिड का प्रयोग करने से बचना चाहिए क्योंकि इनसे निकलने वाली गैसें सेहत के लिए नुकसानदेह होती हैं. आज हम आपको कुछ घरेलू नुस्खे बताएंगे जिनका प्रयोग करने से आपका टॉयलेट बिल्कुल नया सा तो चमक ही उठेगा साथ ही बहुत अधिक खर्चा भी नहीं होगा क्योंकि इनमें हम घर में उपलब्ध सामग्री का ही प्रयोग करेंगे.

1. एक कप सफेद सिरका में आधा कप पानी मिलाकर घोल तैयार करें और फिर इसे टॉयलेट सीट और रिम के अंदर बाहर की ओर लगाकर छोड़ दें, आधे घण्टे बाद ब्रश की सहायता से साफ करें. यह हार्ड वाटर के दाग धब्बों को भी निकाल देता है.

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2. कई बार हार्ड वाटर के फ्लश टैंक के पाइप में जम जाने से पानी का फ्लो कम हो जाता है ऐसे में आप रात को सोते समय फ्लश टैंक में 1 कप सफेद सिरका डाल दें, सुबह तक पानी फ्लो से आने लगेगा. ध्यान रखें कि सिरका डालने के बाद फ्लश का प्रयोग न करें.

3. रिम के जेट और हैंडशावर के पानी की रुकावट दूर करने के लिए 1 चम्मच ब्लीचिंग पाउडर में 10 चम्मच पानी मिलाकर रिम के जेट और हैंडशावर के पाइप में डालकर 4-5 घण्टे के लिए छोड़ दें फिर पानी चला दें, रुकावट दूर हो जाएगी.

4. घर में मेहमान के आने पर टॉयलेट का उपयोग बहुत बढ़ जाता है और कई बार तो चोक होने जैसी स्थिति हो जाती है. इससे बचने के लिए रात को सोते समय टॉयलेट बॉल्स को डालकर सोएं.

5. नीबू के छिलकों पर आधा चम्मच बेकिंग पाउडर छिड़क कर नल और हैंडशावर पर 5 मिनट तक रगड़ने से वे एकदम नए से चमक उठते हैं.

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6. 200 ग्राम बेकिंग सोडा और 100 ग्राम साइट्रिक एसिड को भली भांति मिलाकर लगातार चलाते हुए 1 टेबलस्पून तरल सोप मिलाएं. कुछ ही देर में यह भुरभुरा सा हो जाएगा. अब हथेली से दबा दबाकर मनचाहे आकार में टॉयलेट बॉल्स बनाएं इस प्रकार टॉयलेट बॉल्स आप स्वयम घर पर ही तैयार कर सकतीं हैं. इन्हें रंगीन बनाने के लिए रंग का प्रयोग भी किया जा सकता है.

होममेड काजल से बनाएं आंखों को खूबसूरत

भारत में ज़्यादातर महिलाओं के लिए श्रृंगार करते समय आंखो में काजल लगाना कोई नई बात तो नहीं हैं. आंखों की सुंदरता को निखारने में काजल एक अहम भूमिका निभाता है. अक्सर मायें भी अपने बच्चों की आंखों में काजल लगा देती हैं. रूप संवारने के साथ साथ काजल आंखों से जुड़ी कई समस्याओं से राहत भी दिलाता है. जहां आंखों में काजल लगाने के अनेक फायदे हैं वहीं इसके नुकसान भी हैं. हम देखते हैं कि मार्केट में कई तरह के काजल पाए जाते हैं.

आज कल बाज़ार में बहुत सी छोटी – बड़ी कंपनियों के काजल बिक रहे हैं. लेकिन बाज़ार में मिलने वाले काजल को बनाने के लिए कई प्रकार के कैमिकल का इस्तेमाल किया जाता है, जिसके कारण वह हमारी आंखों के लिए हानिकारक साबित हो सकता है. इसमें मौजूद लेड हमारे शरीर में लेड की मात्रा को बढ़ाने के साथ साथ आंखों को गहरा नुकसान भी पहुंचा सकता है. अगर आप अपनी आंखों में रोज़ाना काजल लगाती हैं तो जान लीजिए आंखों में काजल लगाने से होने वाले नुकसान/साइड इफेक्ट्स के बारे में –

1) आंखों में सूखापन आना

2) आंखों में खुजली व जलन होना

3) आंखों के भीतर फोड़ों की शिकायत होना

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4) किडनी से संबंधित बीमारी होना

5) आंखों में किसी भी प्रकार की एलर्जी होना

6) नर्वस सिस्टम कमजोर होना

7) अन्य आंखों के रोग होना

क्यूंकि मार्केट में बिकने वाला काजल मिलावटी और कैमिकल से भरपूर होता है, इसलिए काजल लगाने से आंखों में होने वाले फायदों से ज़्यादा तो इसके नुकसान ही हैं. लेकिन अगर आपको काजल लगाना बहुत पसंद है और किसी ऑक्केशन पर आप अपनी आंखों में काजल लगाना चाहती हैं तो बाज़ार के काजल की जगह घर में ही कैमिकल युक्त काजल बना लीजिए. घर में बनाया गया काजल कैमिकल फ्री होने के साथ ही आपकी आंखों के लिए एकदम सुरक्षित होता है. वैसे तो घर में काजल बनाने के कई तरीके हैं, लेकिन बादाम का काजल बनाने का तरीका सबसे आसान होता है. बादाम का काजल आंखों की रोशनी को बढ़ाने में मदद करता है. साथ की पलकों की ग्रोथ भी बढ़ता है. घर पर बना हुए बादाम का काजल आंखों को ठंडक पहुंचने में लाभदायक होता है. बादाम से बने हुए काजल के आंखों के लिए कई फायदे हैं. अब चलिए जानते हैं कि घर पर बादाम से काजल केसे बनाएं.

बादाम का काजल बनाने के लिए आपको चाहिए- 

5-4 बादाम, नारियल का तेल और एक खाली कंटेनर.

विधि – सबसे पहले बादाम को किसी होल्डर या ट्विजर की मदद से पकड़ कर आग पर जला दें. आप चाहें तो लाइटर की मदद से भी इसको जला सकती हैं. जब आपकी बादाम जल कर एकदम डार्क हो जाएं तो जले हुए बादामों का पीस कर इसका पाउडर बना लें. इस पाउडर को एक साफ और खाली कंटेनर में रख दें. और पाउडर की मात्रा के अनुसार उसमें नारियल तेल डाल दें. फिर काजल में नारियल तेल को मिक्स करके एक ब्लैक पेस्ट बना लें. बादाम से बना हुआ ये प्राकृतिक काजल तैयार है. इसको 10 दिन तक रख दें ताकि वह सूख कर लगाने योग्य हो जाए. दस दिन के बाद आप इस होम मेड काजल को बिना किसी डर अपनी आंखों में लगा सकती हैं.

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जानें कैसे बदलें पति की दूरी को नजदीकी में

शायद ही ऐसी कोई पत्नी होगी जो अपनी शादी पर 2-4 आंसू न बहाती हो. शादी के कुछ साल गुजरने के बाद पति में तो अपनी भावनाएं व्यक्त करने की काबिलीयत जैसे कुम्हला सी जाती है और पत्नी अपने पति को दिन-ब-दिन नीरस बनता देखती रहती है, जिस से उस का मन व्यग्रता और हताशा से भरने लगता है. ये दूरियां एक ऐसी कशमकश पैदा करती हैं जिस की शिकायत पत्नियां बरसों से करती आई हैं, उन्हें रविवार की दोपहर को क्रिकेट मैच में, अखबार के पन्नों में या फिर चुप्पी में सिमटा या लिपटा पति मिलता है.

अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार पतिपत्नी के बीच बढ़ती दूरियों के लिए उन की स्वभावगत कमियां इतनी जिम्मेदार नहीं होतीं जितनी दंपती की आपसी बातचीत में आई कमी. स्टेट यूनिवर्सिटी औफ न्यूयार्क के मैरिटल थेरैपी क्लीनिक के निदेशक व क्लीनिकल साइकोलोजिस्ट के. डेनियल ओ लैरी के अनुसार, दांपत्य में जो सब से बड़ी व आम समस्या देखने को मिलती है वह पति के द्वारा अपनेआप को दूर रखने या अपने को समेट लेने से आई दूरियोें के कारण होती है. यह सब से ज्यादा नुकसानदेह होती है. इस समस्या का समाधान भी सब से मुश्किल होता है. ये दूरियां गुजरते समय के साथ ज्यादा गंभीर बनती जाती हैं, क्योंकि पति समय के साथसाथ अपने व्यवसाय और कैरियर में अधिक उल झता जाता है.

बढ़ती दूरियां

यह कैसी विडंबना है कि जहां पुरुष ने पहले की तुलना में अपनी भावुकता को खुली छूट देते हुए भावनाओं को व्यक्त करने से जुड़ी  िझ झक त्यागी है, वहीं अपनेआप में सिमटे रहने का उस का अपना अलग ही अंदाज दांपत्य में मुश्किलें खड़ी करने लगा है. मैगी ने अपनी मशहूर पुस्तक ‘इंटीमेट पार्टनर्स : पैटर्न इन लव एंड मैरिज’ में लिखा है कि जहां तक मैं सम झती हूं, क्लीनिकल साहित्य में किसी भी प्रकार के वैवाहिक संबंध में इतना उल झाव नहीं देखा जाता जितना उल झाव तब पैदा होता है, जब पति अलगथलग रहने लगे व अपनेआप में सिमटने लगे. यही बात अगर बेबाकी से कही जाए तो हताश पत्नी के लिए पति अलभ्य और अप्राप्य बन जाता है.

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हताश पत्नी, जो कि भावनात्मक रूप से जिस पतिरूपी पुरुष में विश्वास के साथ यह आशा रखती है कि वह उसे प्यार करता है और उसे हमेशा सहारा देगा, वही उसे एकदम गैर जैसा लगने लगता है, क्योंकि पति की तरफ से उसे ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता, जो पत्नी को यह महसूस कराए कि वह उस की भावनाओं के प्रति कैसा महसूस करता है. पति ऐसे हालात में पत्नी की बातों का जवाब सपाट तरीके से देता है. उसे बांहों में भरता भी है तो महज अपनेआप से जुड़ी सेक्स की इच्छा के लिए. वह पत्नी को यह महसूस नहीं कराता कि वह उस के करीब रहना चाहता है.

इस तरह की दूरियां किसी  झगड़े, तनाव या नाराजगी से नहीं होतीं. इन दूरियों का जिम्मेदार स्वयं पति होता है, क्योेंकि ये उस के मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक स्तर पर सिमटने के कारण होती हैं. जया गुप्ता के अनुसार, जब अचानक उन का गर्भपात हुआ तो उस के बाद उन के पति उन से दूरदूर रहने लगे. पति का शरीर उन के पास बैठा होता था और मन कहीं दूर रहता.

अभिव्यक्ति का अभाव

कई बार ग्लानि का शिकार हो कर अपने द्वारा बुनी गई शंकाओं में पति खुद ही उल झते जाते हैं और उन्हें अपने अंदर पनपती ठंडक और रूखेपन का खुद ही एहसास नहीं होता. डा. चंदन गुप्ता के अनुसार, ज्यादातर पुरुष ऐसे ही होते हैं. वे महिलाओं की तरह अपनी भावनाओं को खुल कर नहीं दर्शाते. पुरुषों को बचपन से यही सिखाया जाता है कि उन्हें अपनी भावनाओं को जाहिर नहीं करना है, जबकि महिलाओं को अपनी भावनाएं व्यक्त करने की पूरी छूट होती है. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक सैमुअल ओशेरसन का मानना है कि अपनेआप में सिमटने की पुरुष की प्रवृत्ति के पीछे उस की किशोरावस्था के हादसों से जुड़े कुछ गहरे दुखदायी घाव होते हैं, जो समय के लंबे अंतराल के बावजूद मनोवैज्ञानिक स्तर पर नहीं भरते. मनोवैज्ञानिक स्तर पर आहत ऐसे व्यक्ति मानसिक  अकेलेपन से बहुत कम उबर पाते हैं. फ्रायड के अनुसार, पुत्र जब पिता की स्वीकृति या प्रशंसा पाने के लिए मां के प्रति अपने आकर्षण को  झटक देता है तो मां से भावनात्मक दूरी उस पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव छोड़ती है, जिस से उबरने के लिए वह सारी उम्र जू झता रहता है. वह जो खो बैठता है उसी की आदर्शमय कल्पना को थामे रहता है और दृढ़ता के साथ अपनी भावनात्मक आवश्यकताओं के लक्षणों को छिपा जाता है. फ्रायड द्वारा इसे पुरुष में उत्पन्न ईडियस अंतर्द्वंद्व का नाम दिया गया है. ऐसी स्थिति में पति जब बालसुलभ इच्छाओं और आवश्यकताओं से घिरता है तो पत्नी को उसे एक छोटे बच्चे की तरह सम झने की आवश्यकता होती है.

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कई पति, पत्नी से मिले अनुराग और उस की दिलचस्पी का गलत अर्थ निकालते हैं. उन्हें लगता है कि भावनात्मक रूप से कमजोर पलों में पत्नी उन के मन की गहराइयों में छिपे राज या अनकही अनुभूतियों तक पहुंचना चाहती है. इस तरह का पत्नी में अविश्वास उन के संबंधों की दूरियां बढ़ाता है. पत्नी के प्यार को मात्र रि झाने और मन की थाह लेने की प्रक्रिया न सम झें, क्योंकि पत्नी प्यार में राजनीति नहीं करती.

भावनाओं को जानें

जैविक रूप से भी पुरुष अपनी भावनाएं छिपाता है. कोरनेल मेडिकल सेेंटर, न्यूयार्क के मनोवैज्ञानिक विश्लेषक जौन मुंडेर रौस के कथनानुसार, महिलाओंकी अपेक्षा पुरुष ज्यादा आक्रामक प्रवृत्ति के होते हैं और पुरुष से जुड़ी यही विशेषता हर जाति और हर संस्कृति के पुरुषों में समान पाई जाती है. पुरुष जितना ज्यादा आक्रामक प्रवृत्ति का होगा उस में संवेदनशीलता और भावनात्मक रूप से जुड़ने की प्रवृत्ति की उतनी ही कमी पाई जाएगी. पुरुष बचपन से ही मां के जरिए संवेदनशीलता और भावनात्मकता का अनुभव करता है. पिता का व्यक्तित्व कठोरता, दृढ़ता और गंभीरता सिखाता है. वह यही सब देखते हुए बड़ा होता है तो उसे अपनी भावनात्मक कमजोरियां और डर छिपाने की आदत पड़ जाती है. यही कारण है कि वह अपने डर व परेशानियां पत्नी से छिपाता हुआ उस से दूर होने लगता है.

पत्नियां पति को ले कर पनपती दूरियों से परेशान हो सकती हैं. लेकिन इस समस्या का हल पहचान नहीं पातीं. पत्नी को पति के मन की गहराइयों में छिपी चिंताओं और डरों को जानना होगा. तभी वह दांपत्य में पति की चुप्पी से पनपती दूरियों को पाट पाएगी. न्यूयार्क की वैवाहिक व सेक्स संबंधों की थेरैपिस्ट शिर्ले जुसमैन के अनुसार एक तरफ तो पत्नी चाहती है कि पुरुष अपने मन की सभी बातें उस के आगे खोल कर रख दे और दूसरी तरफ जैसे ही पुरुष ऐसा करता है तो वह सहम जाती है, क्योंकि उसे बचपन से यही सिखाया जाता है कि भावनात्मक कमजोरी पुरुष के लिए अच्छी नहीं. पति कई बार पत्नी को इसी डर से बचाए रखने के लिए अपनी भावनाएं, भय और शंकाएं पत्नी से नहीं बांटता. इसलिए अगर पत्नी चाहती है कि पति अपनी चिंताएं और परेशानियां बांटे, अकेले ही चुप्पी लिए दूर न होता चला जाए तो उसे यह बात पूरी तरह सम झनी होगी कि पुरुष को भी अपने भय और चिंताएं व्यक्त करने का हक है.

पति अपनी भावनाएं व्यक्त करें, इस के लिए पत्नी को जोर देते हुए पति के पीछे नहीं पड़ जाना चाहिए. इस से संबंधों में तनाव और बढ़ जाता है. पत्नियां कई बार बेबुनियादी तर्क देते हुए कहती हैं कि जब हम अपनी भावनाओं को ले कर बात कर सकती हैं तो पुरुष ऐसा क्यों नहीं कर सकता? लेकिन वे यह बात नहीं सम झ पातीं कि अगर वे अपनी भावनाएं व्यक्त करती रहती हैं तो यह जरूरी नहीं कि पुरुष भी ऐसा ही करें. लेकिन जहां पुरुष अब यह सोचने लगे हैं कि अपनी भावनाएं दर्शाने में कोई बुराई नहीं, वहीं वे यह नहीं सीख पाए हैं कि भावनाओं को दर्शाएं कैसे.

प्यार से जानें राज

शिर्ले जुसमैन के अनुसार, दांपत्य में भावनात्मक संबंधों से जुड़ी कई परतें होती हैं, जो परतदरपरत ही खुलती हैं. संवेदनशील सेक्स द्वारा पत्नियां पति के अंदर पनपती इन दूरियों को जीत सकती हैं, क्योंकि अगर पति सेक्स के माध्यम से पत्नी से भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ महसूस करता है तो यह मात्र मशीनी प्रक्रिया न रह कर पति को भावनात्मक रूप से नजदीक ला सकती है. यही वे पल हैं जब वह अपना मन खोल कर पत्नी के सामने रख सकता है. मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि पुरुषों में भावनात्मक तौर पर सिमटे रहना कूटकूट कर भरा होता है.

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यह स्त्री की भी जिम्मेदारी होती है कि वह उसे खुलने में मदद करे. लेकिन स्त्री या पत्नी की सफलता तब बहुत सीमित हो जाएगी, जब वह पति की धीरेधीरे खुलने की प्रवृत्ति की आलोचना शुरू कर देगी. यही वह स्थिति है जहां उसे सावधानी के साथ पति के मन के खुलने की प्रक्रिया में उस का साथ देना है. पति को बिना रोकटोक के मन की बात कहने दें. उस समय पति द्वारा व्यक्त सभी भावनाओं को सम्मान की दृष्टि से देखते हुए तसल्ली के साथ सुनें. पत्नी द्वारा किसी भी प्रकार की गलत प्रतिक्रिया पति को वापस अपनेआप में समेट कर रख देगी, जहां से उसे वापस लाना और भी कठिन हो जाएगा. पुरुष को भावनात्मक स्तर पर दूर जाने से रोकने के लिए उस को भावनात्मक दृढ़ता, सुरक्षा और स्नेह दें व इतनी छूट दें कि वह अपने तरीके से खुल सके. पति को डंडे के जोर पर बोलने के लिए मजबूर न करते हुए उसे ऐसा माहौल दें, जहां वह अपनी भावनाओं का बो झ खुदबखुद आप के सामने हलका कर सके.6

मुक्ति: उसके लिए क्या आसान था मुक्ति पाना

आज उस का सामना करने के लिए मैं पूरी तरह से तैयार हो कर औफिस गया था.

वह भी लगता था आज कुछ ज्यादा ही मुस्तैद हो कर आया था.

हर रोज तो वह 10 बजे के बाद ही औफिस आता था लेकिन आज जल्दी आ गया था. मुझे पक्का पता था कि आज वह मुझ से पहले ही पहुंच जाएगा. आज पार्किंग में उस की गाड़ी पहले से ही खड़ी थी.

मेरे मन में गुस्से की एक बड़ी सी लहर उठी, यह आदमी बहुत कमीना है. इस से बचना लगभग नामुमकिन है. मैं ने मन ही मन अपनी प्रतिज्ञा दोहराई, ‘आज मैं इस की बातों में नहीं आने वाला.’ मैं ने मन ही मन अपना यह प्रण भी दोहराया कि मैं पिछले कई दिनों से उस से दूर रहने की योजना बना रहा था, अब उस की शुरुआत मैं कर चुका हूं.

कल पूरे दिन उस से दूर रहने में मैं कामयाब रहा था. उस ने कितने फोन किए, बुलावे भेजे, बड़े साहब का नाम ले कर मुझे अपने केबिन में बुलाने की कोशिश की, मगर मैं औफिस से बाहर रहा. वह कहता रहा, ‘कहां है भाई, जल्दी आ जा. लंच में बाजार की सैर करेंगे. आज अच्छी रौनक है.’

मैं अपने इरादे पर अटल रहा. उसे गच्चा देता रहा. फिर 4 बजे के बाद उस ने मुझे फोन किया, ‘कहां है तू? आ जा, आज जिमखाना में बियर पिलाऊंगा.’

मैं ने बहाने बनाए कि अपने काम में बहुत फंसा हुआ हूं.

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हद होती है किसी का पीछा करने की. क्या किसी आदमी की अपनी कोई निजता नहीं हो सकती भला? कोई जब चाहे मुझे अपने पीछे लगा ले. क्या मेरा कोई अपना पर्सनल एजेंडा नहीं हो सकता आज का. क्या मेरा मन नहीं करता कि मैं आज का दिन अपनी मरजी से गुजारूं? सदर बाजार की तरफ टहलूं या माल रोड पर? लाइब्रेरी जाऊं या अपनी सीट पर ही सुस्ताऊं? चाय पियूं या कौफी? किसी और का इतना रोब क्यों सहूं. उस का इतना हक क्यों है मेरी दिनचर्या पर.

औफिस आते ही मुझे निर्देश देने लगता है, आज यह करेंगे, वह करेंगे. इतनी आज्ञाकारी तो आदमी की बीवी नहीं होती आजकल. मैं क्यों उस आदमी का इतना पिछलग्गू बन गया हूं.

आज उस से सीधी मुठभेड़ का दूसरा दिन था. आज मेरी असली परीक्षा थी. कल तो औफिस से मैं बाहर था. मेरा बहाना काम कर गया था. आज उस से पीछा छुड़ा सकूं, यही मेरी उपलब्धि रहेगी.

आज अभी मैं अपनी सीट पर आ कर बैठा ही था.

चपरासी ने मेरे सारे अनुभागों के हाजिरी रजिस्टर मेरे सामने ला कर रखे. उन पर अपने दस्तखत कर के मैं ने पहली फाइल खोली ही थी कि इंटरकौम पर उस की कौल आ गई.

मेरे अंदर का डरा हुआ रूप मेरे गुस्से में आ गया. मैं ने तय किया कि मैं आज उस का फोन ही नहीं उठाता. गुस्से के मारे मैं ने घंटी बजाई और अपने मातहत 2 लोगों को बुलाया. फाइल पर ‘चर्चा करें’ लिख कर उसे नीचे पटक दिया.

पिछली रात से ही मैं कुलबुला रहा था कि इस आदमी ने मेरे दिनरात का चैन छीना हुआ है. उस से पीछा कैसे छुड़ाऊं? क्यों इतना डरता हूं मैं उस से. उसे ले कर किस बात का लिहाज है? वह मेरा जीजा लगता है क्या? एक दोस्त ही तो है. मेरे व्यक्तित्व पर इतना नियंत्रण क्यों है उस का? क्या कमी है मुझ में?

मुझ से कितना अलग स्वभाव है उस का. वह हर किसी के मुंह पर कड़वी बात कह देता है. वह हर किसी से लड़ पड़ता है. मैं चुप क्यों रहता हूं? मैं इतना नरम स्वभाव का क्यों हूं? उसे देख कर मुझे अपने अंदर की कमजोरी का एहसास कुछ ज्यादा होता है. उस ने एक लिस्ट बना रखी है औफिस के कुछ मुझ जैसे दब्बू लोगों की. वह दिन में कई बार मेरी इन लोगों में से किसी न किसी से तुलना कर के मेरे अंदर के स्वाभिमान को चोट पहुंचाता रहता है. यही कारण है कि इस आदमी की सोहबत में मैं खुद को हमेशा असहज और दुखी महसूस करता हूं.

मेरे साथ बहुत समय से यह सब चल रहा है. मैं ही इस सब के लिए जिम्मेदार हूं. मेरा दोष है, हर समय अच्छा बने रहना. हर वक्त कूल और शांत. अपने अंदर से चाहे इस बात को ले कर मैं कितना भी दुखी या व्यथित होता रहूं मगर लोगों के सामने मैं उग्र नहीं हो पाता. ऐसा नहीं कि मुझ में प्रतिभा, हुनर या आत्मविश्वास की कमी है. मैं अपनेआप में ठीक हूं. कहीं कोई दिक्कत नहीं है. अहिंसा का पालन मैं ‘बाई डिफौल्ट’ करता हूं. मेरा खून कभीकभी खौलता है. मेरा आधे से ज्यादा समय इस आदमी की बेढंगी और बेकार में थोपी गई बातों से निबटने में ही निकल जाता है.

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घर में भी पत्नी या बच्चों के सामने नरम और मधुर स्वभाव बनाए रखना मेरी भरसक कोशिश होती है. अंदर से चाहे लाख गुस्सा आ रहा हो मगर उसे जाहिर न होने देना मेरा कुदरती गुण कह लो या अवगुण. बहुत कम ऐसे मौके आए हैं कि मेरा गुस्सा जगजाहिर हो सका है. एकाध बार गुस्सा किया भी, मगर दोचार पल के लिए ही.

बाकी किसी से कोई समस्या नहीं हुई. यह आदमी औफिस में हर पल मेरा साथ चाहता है. मुझे ले कर ज्यादा ही पोजेसिव हो गया है यह. मैं घर से छुट्टी का आवेदन भेज दूं तो फोन कर के मुझे कोसेगा कि उसे क्यों नहीं बताया उस ने कि आज वह छुट्टी ले रहा है. कहेगा, ‘पहले बताता तो मैं भी छुट्टी ले लेता.’ अरे, मेरे बिना तू मर तो नहीं जाएगा. बहुत बार होता है कि जब वह छुट्टी ले कर घर पर होता है सप्ताह के लिए, मैं तो उसे फोन कर के नहीं बुलाता कि आ जा, मैं मरा जा रहा हूं, तेरे बिना दिल नहीं लग रहा मेरा.

पत्नी भी तंज करती, ‘मुझे वह आदमी पसंद नहीं करता. मुझ से शादी करने से पहले तुम ने उस से पूछा नहीं था क्या?’

यह सच है कि इस आदमी को अपनेआप के सिवा कोई पसंद नहीं.

मैं भी इसलिए उस के साथ हूं, क्योंकि मैं खुल्लमखुला उस का मुंह नहीं नोचता कि बंद कर ये बकबक. तू कोई अनोखा नहीं है कि मेरी हर समय प्रशंसा किए जा.

बहुत से मित्र आए, गए. हर किसी पर उस ने तंज कसे, उन पर अपने थोथे उसूलों को थोपने की बेकार कोशिश की. वे सब तो कुछ ही समय में उस से जान छुड़ा कर अलग हो गए मगर मैं उस के चंगुल में फंसा रहा.

अकसर मुझे कभी फील नहीं हुआ कि यह आदमी मेरे विचारों को इस तरह काबू क्यों करना चाहता है. कभीकभी जब वह मुझे दब्बू या डरपोक कह कर बेइज्जत करता है तो न जाने क्यों मेरे मन में उस के प्रति बदले की भावना उमड़ने लगती है.

मुझ पर वह इतनी अधिकार भावना क्यों जमाता है. मैं सोचता हूं कि हमारी बहुत लंबी और गहरी दोस्ती है. मगर 10-15 दिनों में एक बार मेरे दिल को उस की कोई बात चुभ जाती है. वह अपने कोरे आदर्श मुझ पर लादता रहता है. क्यों मैं पलटवार नहीं करता? मेरी हर बात को वह टोकता है. मैं उसे मुंहतोड़ जवाब क्यों नहीं देता कि तुम दोगले हो, झूठे हो, मक्कार हो.

मैं ने आज अपने केबिन को कमेटीरूम की शक्ल दे दी थी. बहुत सारे केस खोल लिए. मैं दिखाना चाहता था कि मैं हर समय उस के लिए उपलब्ध नहीं हूं. मैं अपनी दिनचर्या अपने हिसाब से तय करूंगा.

उस का मेरे मोबाइल पर कौल आया. वह फुंफकार रहा था, ‘कब आएगा? अबे, चाय ठंडी हो रही है.’

मैं ने जी कड़ा कर के कहा, ‘मैं ने कब कहा था कि मेरे लिए चाय मंगवाओ? मैं मीटिंग में व्यस्त हूं.’

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5 मिनट में ही वह मेरे केबिन में था. चेहरा तमतमाया हुआ. कान से मोबाइल लगाए हुए. मुझे टोक कर बोला, ‘कब तक है यह सब?’

मैं ने कोई जवाब नहीं दिया. वह झुंझला कर लौट गया. लंच के आसपास वह फिर मेरे पास ही आ गया. हालांकि मुझे कोई काम नहीं था, फिर भी मैं ने साथ के एक औफिस में जाने का प्रोग्राम रख लिया. अपने एक साथी के साथ मैं तुरतफुरत वहां से निकल लिया.

उस शाम बीवी के साथ चाय पीते हुए मुझे संतोष हुआ कि मैं एक आजाद व्यक्तित्व हूं. रोजाना उस आदमी का मुझे अकारण कोसना मुझे कचोटता रहता था. आज मुझे एक अजीब सी मुक्ति का एहसास हुआ.

रागविराग: भाग 3- कैसे स्वामी उमाशंकर के जाल में फंस गई शालिनी

पिछला भाग- रागविराग: भाग-2

लोगों ने उसे समझाया कि शुरू से ही केयरिंग रहे तो जच्चाबच्चा ठीक रहते हैं, पर शालिनी भीतर से ही सहम गई थी. जब भी सुभाष उसे अंतरंग क्षणों में प्यार में बांधता उस का चेहरा पथरा सा जाता.

‘‘यह क्या हो जाता है, यार तुम्हें?’’ वह चौंक जाता. पर शालिनी जानती थी, कहीं कुछ है, जो भीतर से उसे सालता है.

फिर कभी वह सत्संग आश्रम नहीं गई. सुभाष बारबार कहता कि वहां अच्छे प्रवचन होते हैं, तुम भी चला करो. पर वह यह कह कर मना कर देती कि घर में बहुत काम है, नहीं जाना.

आज जब बेटी सुलभा ने कहा कि मैं तो शाम तक आऊंगी, पास में ही सत्संग आश्रम है, अच्छा पुस्तकालय भी है आप उधर हो आना, तो वह भी दोपहर में तैयार हो कर उधर आ गई.

घने वृक्षों के बीच वह आश्रम था. उस के भव्य भवन के दाहिनी ओर संत महात्माओं की मूर्तियां लगी हुई थीं ओर बायीं तरफ कार्यालय था. भीतर जाते ही बड़े से आंगन में यह भवन खुलता था. सामने बरामदे से अंदर कक्ष में कृष्ण की विशालकाय प्रतिमा थी, जहां भक्तगण नृत्य कर रहे थे. भोग लग चुका था, शयन की तैयारी थी, शाम को फिर दर्शन के लिए खुलना था.

तभी उस की निगाहें सामने लगे बोर्ड पर गईं. उस में विशाल सत्संग होने की सूचना थी. पूछने पर पता चला कि स्वामीजी महाराज संध्या को ही प्रवचन देते हैं. उस ने काउंटर पर बात की तो पता लगा कि सुनने के लिए पहले अनुमति लेनी पड़ती है.

‘‘क्या आप यहां की नहीं हैं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘क्या आप हमारे मिशन की कार्यकर्ता हैं?’’

‘‘नहीं.’’

‘‘तो फिर आप फौर्म भर दीजिए. जब आप का नंबर आएगा, आप को सूचित कर देंगे. यहां हौल में श्रोताओं के लिए सीटें सीमित हैं. हौल फुल हो चुका है.’’

‘‘ठीक है,’’ वह लौटने लगी.

‘‘रुकिए,’’ भीतर से एक महिला ने आते हुए कहा.

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‘‘आप बाहर से आई हैं?’’

‘‘हां.’’

‘‘कितने लोग हैं?’’

‘‘हम 2 हैं, मैं और मेरी बेटी.’’

‘‘ठीक है.’’

‘‘आप को हौल के अंत की लाइन में जगह मिल जाएगी. स्वामीजी पहले तो खुले में बोलते थे, जहां हजारों लोग आते थे, परअब तो हौल में ही बोलते हैं. आप का कोई प्रश्न हो तो लिख कर दे दें.’’

‘‘नहीं, कोई प्रश्न नहीं है.’’

वह चुपचाप अपने गैस्ट हाउस लौट आई. शाम को उस ने पहली बार सुलभा को भी

अपने साथ सत्संग भवन चलने को कहा.

‘‘मां, आप हो आईं?’’ वह चौंकी.

‘‘हां, तुम भी चलो, वहां प्रवचन है.’’

‘‘पर वहां तो जगह नहीं मिलती है.’’

‘‘मिल गई है, 2 सीटें मिल गई हैं, चलो.’’

मांबेटी वहां पहुंचे तो शालिनी ने देखा कि वहां पर उमाशंकरजी ही थे. वे मीरा के प्रेम पर प्रवचन दे रहे थे और उन्हें भक्तों का समूह मंत्रमुग्ध हो कर सुन रहा था. उन का शरीर अब और भी भर गया था पर आंखें उसी तरह चमक रही थीं. हां, सिर के बाल कुछ झड़ गए थे. मूछें भी सफेद हो आई थीं.

प्रवचन समाप्त हो गया तो प्रश्नोत्तर भी हुआ.

‘‘चल मिल लेते हैं,’’ शालिनी ने सुलभा से कहा.

‘‘मां, भीड़ बहुत है.’’

‘‘तो क्या हुआ, चल.’’

‘‘आप कहां चलीं?’’ उन के मंच के पास पहुंचने पर कार्यकर्ताओं ने टोका. जो लोग आगे बैठे थे, उन के पास सुनहरा बड़ा सा बैज था, पर इन के पास वह नहीं था.

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‘‘दर्शन करने.’’

‘‘पर आप…?’’

‘‘हटिए,’’ कह कर शालिनी, सुलभा का हाथ पकड़े हुए मंच पर पहुंच गई.

‘‘बेटी, प्रणाम करो,’’ उस ने भी प्रणाम करते हुए कहा.

उमाशंकरजी के चेहरे पर न जाने कितने व्यूह बनेबिगड़े. उन्होंने आंखें बंद कर लीं, मानो गहरे ध्यान में चले गए हों. भीतर हलचल मची थी, मानो तूफान आ गया हो. हलचल को शांत करते हुए चुप रहे.

‘‘स्वामीजी, मैं शालिनी हूं.’’

उमाशंकरजी ने उसे देखा. वर्षों बाद भी उन्होंने उस के साथ जो कुछ किया था उसे भूल जाना क्या मुमकिन था?

‘‘स्वामीजी, यह मेरी बेटी सुलभा है. इस ने यहीं से आईआईटी किया है और यहीं इस की नौकरी लगी है.’’

‘‘हूं,’’ कह कर उमाशंकरजी ने सुलभा की ओर देखा फिर उस के सिर पर हाथ रखा.

‘‘अभी नौकरी करोगी या आगे पढ़ोगी?’’

‘‘आगे पढ़ना तो चाहती हूं. न्यूयार्क में दाखिला भी हो गया है. वहां से एमबीए करने का इरादा है,’’ शालिनी ने कहा.

‘‘आप लोग कहां ठहरे हैं?’’

‘‘हम पास में ही सीएमजी का जो गैस्ट हाउस है, उस में फर्स्ट फ्लोर पर रूम नं. 101 में हैं.’’

‘‘अरे वह तो सुधांशुजी की बिल्डिंग है.’’

शालिनी चुप रही.

‘‘तुम ने यहीं से आईआईटी किया लेकिन तुम पहले इधर कभी नहीं आईं,’’ वे सुलभा से बोले.

‘‘नहीं, मां किसी सत्संग में नहीं जातीं, न जाने देती हैं. कहती हैं कि एक बार जाना हुआ था. वहां न धर्म था, न अध्यात्म. बस पाखंड ही पाखंड था. मैं ने ही सुबह इन से कहा था कि पास में ही सत्संग आश्रम है, अकेलापन लगे तो वहां हो आना.’’

‘‘हूं,’’ कह कर उमाशंकरजी ने देखा कि शालिनी की आंखों में कोई भाव नहीं था.

पता नहीं क्या चाहती है यह? पता नहीं क्यों आई है यहां? झील में अचानक पड़े पत्थर से उठी लहरों सा उमाशंकरजी का मन अशांत हो गया. कहीं यह डीएनए टैस्ट न करवा दे? आंखें कितनी जल रही हैं. यह चुप ही रहे तो ठीक है.

शालिनी की आंखें, उन के चेहरे पर कील की तरह चुभ रही थीं.

‘‘तो तुम न्यूयार्क नहीं जा रही हो?’’ उन्होंने सुलभा से पूछा.

‘‘नहीं, बैंक लोन तो मिल जाएगा, पर आगे मुश्किल है. सालदो साल रहने का खर्चा है. पापा तो कोशिश कर रहे हैं, पर…?’’

‘‘पर क्या, जाओ. जब इतनी लायक हो तो पढ़ो. तुम्हारी सब व्यवस्था आश्रम कर देगा. वहां ठहरने की, रहने की, सब. न्यूयार्क में भी हमारे भक्त हैं. पटेलजी का न्यू जर्सी में फ्लैट खाली रहता है. न्यू जर्सी पास ही है. वहां से ट्रेन जाती है. तुम्हें कोई परेशानी नहीं होगी. फ्लाइट तो बौंबे से ही होगी. तैयारी कर लो, वीजा ले आओ.’’

‘‘वाह, गुरुजी की कृपा हो तो ऐसी हो,’’ पास खड़े भक्तजन भावविभोर हो कर बोले.

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गुरुजी पुन: ध्यान में चले गए थे. उन से अब बाहर देखा नहीं जा रहा था.

शालिनी ने सुलभा के कंधे पर हाथ रखा. उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि ऐसा कुछ घट गया है. वह जानती थी, जिस का जो फर्ज है, वह उसे निभाना ही पड़ता है. पर उस की गलती, क्या वह कभी अपने को माफ कर पाएगी? यह तो उसे चुप रहने का पुरस्कार मिला है. इस पाखंडी ने कितनों को बरबाद किया होगा, किसे पता? आत्मापरमात्मा के नाम से सैकड़ों साल से यही हो रहा है. उसे पति की याद आई, जो इन पाखंडियों से कितना बेहतर है, पर समाज उन के पीछे पागल है. वह जितनी चुप हो गई थी, सुलभा उतनी ही चपल. अमेरिका की बात पर उस का मोबाइल तो बंद होने का नाम ही नहीं ले रहा था. उधर सामने फुटपाथ पर अखबार कह रहा था कि वित्तमंत्री ने कहा है कि विकास की दर 10% हम पा कर ही रहेंगे. शालिनी अपनेआप से बारबार पूछ रही थी कि मेरे लिए क्या यही विकास का रास्ता बचा है?

कोई घरेलू उपाय बताएं जिससे चेहरे के पिंपल मार्क्स खत्म हो जाएं?

सवाल-

मेरी उम्र 16 साल है. मेरे चेहरे पर फुंसियां निकली थीं तो मैं ने घर पर ही फोड़ दी थी. अब उन के मार्क्स रह गए हैं जो काले हो गए हैं और देखने में भद्दे लगते हैं. कोई घरेलू उपाय बताएं ताकि मार्क्स खत्म हो जाए तथा चेहरे का ग्लो लौट आएं.

जवाब

कई बार दानों को छील देने से त्वचा पर भद्दे निशान पड़ जाते हैं. आप घर पर रोज सुबहशाम चेहरे को धो कर एएचए सीरम से फेस की मसाज कर सकती हैं. ऐसा करने से मार्क्स काफी हद तक कम हो जाएंगे. लेकिन अगर ऐसा नहीं होता है, तो आप माइक्रोडर्मा ऐब्रेजर व लेजर थेरैपी की सिटिंग्स ले सकती हैं. इस थैरेपी में लेजर की किरणों से त्वचा को रिजनरेट कर के नया रूप दिया जाता है. उस के बाद यंग स्किन मास्क से त्वचा को निखारा जाता है.

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आप अपने चेहरे की खूबसूरती और उसके निखार को बनाए रखने के लिए क्या कुछ नहीं करतीं, लेकिन जब सवाल आता है बौडी की त्वचा का, तब आप उसका खयाल नहीं रखतीं, आप भूल जाती हैं कि चेहरे के नीचे की त्वचा का निखार बरकरार रखना भी जरूरी है…

भ्रम और तथ्य

भ्रम: बौडी लोशन केवल ड्राई स्किन वालों के लिए होते हैं.

तथ्य: उम्र और प्रदूषण का फर्क त्वचा पर भी पड़ता है जिससे त्वचा की नमी और पीएच बैलेंस बिगड़ जाता है. इसलिए ऐसे बौडी लोशन का चुनाव करें जो वर्ष भर आपकी त्वचा की सुरक्षा करे.

भ्रम: सारे मौइश्चराइजर एक जैसे होते हैं.

तथ्य: मौइश्चराइजर कई प्रकार के होते हैं जिन्हें आप अपनी त्वचा के अनुसार चुन सकती हैं. सही मिश्रण वाला मौइश्चराइजर वह होता है जिसमें ग्लिसरीन, डाईमैथिकन और जैली जैसे बहुमूल्य पदार्थों की सही मात्रा हो. ऐसे बौडी मौइश्चराइजर का चुनाव करें जो आपकी त्वचा को गहराई से मौइश्चराइज कर उसे डैमेज होने से बचाए.

भ्रम: बौडी लोशन की आवश्यकता केवल सर्दियों में ही पड़ती है.

तथ्य: सर्दी हो या गरमी, मौइश्चराइजर की जरूरत त्वचा को हर मौसम में पड़ती है. कई महिलाएं गरमी के मौसम में सिर्फ इस डर से मौइश्चराइजर का इस्तेमाल नहीं करतीं, क्योंकि उनकी यह मान्यता है कि मौइश्चराइजर लगाने से उन्हें अधिक पसीना आएगा और त्वचा चिपचिपी हो जाएगी. लेकिन यह गलत सोच है. वास्तव में कड़ी धूप आपकी त्वचा को नुकसान पहुंचाती है और उसे रूखी व बेजान बना देती है. आप ऐसे बौडी लोशन का चुनाव करें जो नौनस्टिकी होने के साथसाथ आपकी त्वचा को हाइड्रेटेड और मुलायम रखे.

पूरी खबर पढ़ने के लिए- बौडी स्किनकेयर भी है जरूरी!

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
सब्जेक्ट में लिखे…  गृहशोभा-व्यक्तिगत समस्याएं/ Personal Problem

बदलते मौसम में संक्रमण से बचने के लिए सुधारें डाइट

बदलते मौसम में जितना जरूरी है अपने आपको बाहरी रूप से सुरक्षित रखना, उससे कहीं ज्यादा जरूरी है हमारा अंदरूनी मजबूत होना, क्योंकि बदलते मौसम में वायरल संक्रमण का खतरा भी ज्यादा रहता है. इसलिए संक्रमण से बचाव के लिए है जरूरी है फल और सब्जियों का सेवन करना, जो आपको वायरल रोगों से बचाती है. इसके लिए अहम है कि हम अपने खानपान में बदलाव लाएं. हमारा भोजन ही डिसाइड करता है कि बॉडी को कैसे सुरक्षित रखा जाए. थोड़ा सा देखरेख और खाने में बदलाव हमारे स्वास्थ्य को सुरक्षित रख सकता है. अच्छी सेहत के लिए जरूरी है सेहतमंद भोजन. कुछ ही लोग ऐसे हैं जो स्वस्थ रहने के लिए फिटनेस पर ध्यान देते हैं और दुरूस्त रहने के लिए कुछ नियमों का पालन करते हैं. स्वस्थ और तंदरुस्त रहने से हमारे रोजमर्रा के काम आसानी से होते रहते हैं साथ ही हमारा तन और मन एनर्जेटिक रहता है. तो चलिए जानते हैं कि वो कौन सी चीजें है जो हमारे सेहत के लिए फायदेमंद हैं-

संतुलित आहार के लिए जरूरी –

अच्छी सेहत के लिए जरूरी है पोषक तत्वों को अपने भोजन में शामिल करना. जिससे रोग प्रतिरोधक क्षमता तो बढ़ती ही है साथ ही बॉडी को जरूरी फैक्ट भी मिलते हैं.

● बीटा-कैरोटीन – बीटा-कैरोटीन सेहत को दुरूस्त रखने के लिए यह सबसे जरूरी फैक्ट होता है. यह एक प्रकार का कैरोटेनॉइड है, जो पौधों में पाया जाता है. इसे प्रो विटामिन-ए कैरोटेनॉइट के नाम से भी जाना जाता है. शरीर में पहुंचकर ये विटामिन-ए को सक्रिय करता है. रोज डाइट में छह से आठ मिलीग्राम बीटा-कैरोटीन शामिल करने से शरीर में विटामिन-ए की पूर्ति होती है. साथ ही इसमें मौजूद एंटी-ऑक्सीडेंट हमारी स्किन और न्यूरोलॉजिकल फंक्शन को हेल्दी रखने में मदद करता है.

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इनमें पाया जाता जाता है बीटा-कैरोटीन – गाजर, मक्का, हरी मिर्च, केले, आम, शलजम और कोलार्ड साग, अंगूर, कद्दू, पालक, टमाटर और तरबूज जैसे कई फलों और सब्जियों में बीटा-कैरोटीन पाया जाता है.

● विटामिन-सी- विटामिन-सी न सिर्फ स्किन को ग्लो प्रदान करती है बल्कि इसमें प्रचूर मात्रा में इम्यूनिटी पाई जाती है, जो बॉडी के पाचन तंत्र को मजबूत रखता है.

इनमें पाया जाता जाता है – जामुन, ब्रोकोली, फूलगोभी, अंगूर, शहद, कीवी, आम, नारंगी, पपीता, लाल, हरी मिर्च मटर, शकरकंद, टमाटर समेत कई चीजों में विटामिल-सी पाया जाता है.

● फोर्टिफाइड अनाज- कॉर्न बॉडी को शक्ति या ऊर्जा प्रदान करता है. एनर्जेटिक रहने के लिए फोर्टिफाइड अनाज जरूर खाएं.

इनमें पाया जाता जाता है- नट्स और तेल, पीनट बटर, शलजम साग, टुमैटो सॉस और पेस्ट, गेहूं के रोगाणु, पालक, साग, ब्रोकोली जैसे विटामिन-ई खाद्य पदार्थों को अपने डॉइट में जरूर शामिल करें.

● एंटीऑक्सिडेंट – सेब, किशमिश, जामुन, आलूबुखारा, लाल अंगूर, स्प्राउट्स, प्याज, बैंगन और बीन्स में एंटीऑक्सीडेंट फैक्ट पाए जाते हैं, जो बॉडी को रोगों से लड़ने की शक्ति देता है.
सेहत को बरकरार रखें –

“अपने आहार में किसी भी तरह के फल और सब्जियों को शामिल करने से आपका सामान्य स्वास्थ्य बेहतर बन सकता है.”

1. अदरक-

अदरक के कई फायदें है जिसमें ये सर्दी, खांसी, पाचन, बुखार, एसिडिटी आदि को ठीक कर सकता है. अदरक की चाय या चटनी खाने से गले की खरास दूर होती है साथ ही शरीर में ताजगी भी रहती है.

2. अनार-

अगर आपने गौर किया हो तो अनार जेम्स की तरह दिखते हैं और ये जेम्स आपके हेल्थ के लिए बहुत अच्छे होते हैं. इसमें विटामिन-सी और विटामिन-के, पोटेशियम होता है .

3. खजूर-

खजूर सुपरफूड्स में शामिल है जो कि कई विटामिन्स और मिनरल्स से भरा है. यह ढेर सारी ऊर्जा भी देता है.

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4. बाजरा-

कुछ अनाज शरीर को सबसे ज्यादा एनर्जी देते हैं. बाजरा एक ऐसा ही अनाज है. दूसरे अनाजों की अपेक्षा बाजरा में सबसे ज्यादा प्रोटीन की मात्रा होती है. बाजरे में शरीर के लिए आवश्यक तत्व जैसे मैग्नीशियम, कैल्शियम, मैग्नीज, ट्रिप्टोफेन, फाइबर, विटामिन-बी, एंटीआक्सीडेंट आदि भरपूर मात्रा में पाया जाता है.

5. लहसुन-

लहसून स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा होता है. दिल को स्वस्थ रखने के लिए यह बेहद कारगर है. इससे सर्दी, खांसी, पाचन भी ठीक होता है. लहसून शरीर में गर्मी पैदा करती है. आप लहसून को सूप, चटनी, सब्जी दाल में भी डाल सकते हैं.

6. मेथी –

मैथी में फोलिक एसिड, विटामिन-के उच्च होता है. यह शरीर में रेड ब्लड सेल्स पैदा करता है. यह शरीर को गर्म रखने में मदद करता है, जिससे बल्ड सर्कुलेशन आसानी से होता है.

7. अमरूद –

अमरूद में विटामिन-सी की अधिकता होती है जो कि इम्यूनिटी बढ़ाती है. अमरूद में मैग्निशियम और पोटेशियम रहता है जो कि शरीर को गर्म रखता है.

8. हल्दी-

हल्दी को रामबाढ़ भी कहा जाता है. ब्यूटी प्रोडक्ट के साथ ही हल्दी कई आंतरिक बीमारियों का भी नाश करता है. इसलिए रोजाना दूध में एक चुटकी हल्दी डालकर पीना चाहिए.

9. बादाम-

बॉडी में एनर्जी लाने के लिए बादाम सबसे अधिक कारगर है. बादाम, अखरोट जैसे नट्स विटामिन और एंटी ऑक्सीडेंट्स में उच्च होते हैं. आप दूध में बादाम और अखरोट पाउडर भी ले सकते हैं.

Women’s Day Special: आधारशिला- किसने रखी थी श्वेता की सफलता की बुनियाद

Women’s Day Special: आधारशिला- भाग 2

मैं ने औटोरिकशा के बजाय बस से ही जाना ठीक समझा. एकांत से मुझे डर लग रहा था. बस  की भीड़ में शायद मेरा दुख अधिक तीव्रता धारण न कर पाए. मगर मेरा सोचना गलत था. भीड़भरी बस में भी मैं बिलकुल अकेली थी. मेरा दुख मेरे साथ कदम से कदम मिला कर चल रहा था.

‘बसस्टौप से धीरेधीरे कदम बढ़ाते हुए मैं घर पहुंची. मुझे देखते ही श्वेता दौड़ कर आई और मेरे गले लिपट गई, ‘ओह मां, कितनी देर लगा दी. मैं अकेली बैठी कब से बोर हो रही हूं.’

‘श्वेता, छोड़ो यह बचपना,’ मैं ने अपने गले से उस की बांहें हटाते हुए कहा.

मैं ने बेरुखी से उस के हाथ झटक तो दिए थे, पर तभी पुनीत की वह बात याद आई, ‘आप अपने व्यवहार से उसे किसी तरह का आभास न होने दें कि आप उस के बारे में सबकुछ जान चुकी हूं,’ सो, मैं ने सहज स्वर में कहा, ‘बेटे, जल्दी जा कर लेट जाओ, तुम्हें अभी भी बुखार है. थोड़ी देर में अंकित भी आता होगा, वह तुम्हें जरा भी आराम नहीं करने देगा.’

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श्वेता अपने कमरे में जा कर लेट गई. मैं एक पत्रिका ले कर पढ़ने बैठ गई, पर ध्यान पढ़ने में कहां था. मेरा मन तो किसी खुफिया अधिकारी की तरह श्वेता के पिछले व्यवहार की छानबीन करने लगा. वह अकसर पुनीत की प्रशंसा किया करती थी. सो, हम भी उन की योग्यता के कायल हो चुके थे, क्योंकि पिछले साल की अपेक्षा इस साल श्वेता को कैमेस्ट्री में काफी अच्छे अंक मिले थे.

जब पढ़ाने की तारीफ से आगे बढ़ कर उस ने उन के व्यक्तित्व की तारीफ शुरू की, तब भी मुझे कुछ अजीब नहीं लगा था. मैं सोचती, 14-15 वर्ष की उम्र यों भी सिर्फ योग्यता तोलने की नहीं होती. यदि वह उन्हें स्मार्ट कहा करती है  तो यह गलत नहीं. ऐसे ही शब्द तो इस उम्र में किसी के व्यक्तित्व को नापने का पैमाना होते हैं.

जब मैं उम्र के इस दौर से गुजर रही थी, मुझे भी अपनी शिक्षिका देविका कोई आसमानी परी मालूम होती थीं. मेरी मां और बाबूजी अकसर कहा करते थे, ‘इसे हमारी कोई बात समझ में ही नहीं आती, लेकिन वही बात अगर देविका कह दें तो तुरंत मान लेगी.’

यह तो बहुत बाद में समझ आया कि देविका भी औरों की तरह साधारण सी महिला थीं. मुझे महसूस होने वाला उन का पढ़ाने का जादुई ढंग उन के अपने बच्चों पर बेअसर रहा था. उन के दोनों बेटे क्लास में मुश्किल से ही पास होते थे.

बस, इसी तरह श्वेता का भी पुनीत का अतिरिक्त गुणगान करना मुझे जरा भी संदेहजनक नहीं लगा था.

दरवाजे की डोरबैल जोर से बज रही थी. शायद अंकित आ गया था. मैं ने भाग कर दरवाजा खोला.

अंकित को दूध का गिलास पकड़ा कर मैं रात के खाने की तैयारी में लग गई. श्वेता की समस्या ने मुझे भीतर तक हिला कर रख दिया था, मगर फिर भी सोच लिया था कि जैसे भी हो, यह बात मैं इन के कानों में नहीं पड़ने दूंगी. इन का प्यार भी असीम था और गुस्सा भी. इन्हें यदि इस पत्र के बारे में पता चल जाता, तो शायद श्वेता को सूली पर चढ़ा देते.

शाम को ये लगभग 8 बजे घर पहुंचे. श्वेता और अंकित में किसी बात पर झगड़ा हो रहा था. टीवी जोरजोर से चल रहा था. इन्होंने आते ही पहले टीवी औफ किया, फिर बच्चों को जोरदार आवाज में डांटा. जब कोलाहल बंद हुआ तब मुझे खयाल आया कि मैं अपने विचारों में किस कदर खोई हुईर् थी.

‘क्या बात है, कुछ परेशान सी लग रही हो, बच्चों को इन की शैतानियों के लिए डांट नहीं रही हो?’ इन्होंने पास आ कर पूछा.

‘लीजिए, अब डांटना ही हमारे स्वस्थ होने का परिचायक हो गया. क्या मैं चुपचाप बैठी आप को अच्छी नहीं लग रही?’ मैं ने शरारत से पूछा.

‘नहीं, बिलकुल अच्छी नहीं लग रही हो. बच्चों की आवाजें, टीवी का शोर और इन सब से ऊपर तुम्हारी आवाज हो, तभी मुझे लगता है कि मैं अपने घर आया हूं’, इन्होंने नहले पे दहला मारा.

खाना खाते समय श्वेता खामोश ही रही. उस के पास सुनाने के लिए कुछ नहीं था, क्योंकि वह स्कूल जो नहीं गई थी. फिर भी एकाध बार पुनीत की तारीफ करना नहीं भूली.

योजना के मुताबिक अगले दिन पुनीत हमारे घर आए. श्वेता उन्हें देख कर आश्चर्यचकित रह गई, ‘सर, आप? यहां कैसे? आप को कैसे पता चला कि मैं यहां रहती हूं? मैं बीमार थी, क्या इसीलिए मुझे देखने आए हैं?’ उस ने सवालों की झड़ी लगा दी.

पुनीत मुसकराते हुए बोले, ‘हां भई, मैं इस तरफ किसी काम से आया था, सोचा, तुम से भी मिलता चलूं. पता तो तुम ने ही मुझे दिया था.’

‘ओह, हां. मुझे तो याद ही नहीं रहा.’ श्वेता के चेहरे पर खुशी झलक रही थी. टीवी पर फिल्म चल रही थी. श्वेता फिल्म देखते हुए हमेशा अपनेआप को भी भूल जाती थी, मगर अब उसे फिल्म से भी कोई मतलब नहीं था. उस की दुनिया तो जैसे पुनीत में ही सिमट आई थी.

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‘सर, आप क्या खाएंगे?’ श्वेता इठला कर पूछ रही थी.

‘जो आप बना लाएं,’ उन्होंने शरारती स्वर में कहा.

‘जी, मैं तो सिर्फ चाय बना सकती हूं.’

‘जी हां, मैं तो भूल ही गया था, आप तो छोटी सी बच्ची हैं, आप को भला क्या बनाना आता होगा.’

श्वेता को हंसते देख उसे गुस्सा आ रहा था.

मैं रसोई में जा कर नमकीन, मठरी और गुलाबजामुन ले आई.

‘अरे, आप तो बहुत कुछ ले आईं,’ पुनीत शिष्टता से बोले.

‘कहां बहुत कुछ है सर, आप यह लीजिए. मैं आप के लिए पकौडि़यां तल कर लाती हूं.’

‘ नहीं भई, इतना काफी है,’ कहते हुए पुनीत अपने बारे में बताने लगे कि वे एक गरीब परिवार से हैं. पिता रिटायर्ड हैं, 2 छोटी बहनें और 1 भाई अभी पढ़ रहे हैं, जिन की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर है.

हमारी योजना के मुताबिक ही वे अपने परिवार के हालात के बारे में जानबूझ कर बता रहे थे. यह वास्तविकता भी थी और कुछ बढ़ाचढ़ा कर भी बताई जा रही थी, ताकि इस कठोर धरातल की ओर बढ़ते हुए श्वेता के नाजुक पांव अपनेआप कांप उठें.

इस घटना के 2-3 दिनों बाद मैं पुनीत से मिलने स्कूल गई. इस बार हम ने स्कूल के बाहर एक स्थान और समय निश्चित कर लिया था. वे आए और मेरे हाथ में एक कागज का टुकड़ा पकड़ा कर चले गए. डर था कि कहीं श्वेता हमें न देख ले. पत्र कुछ इस प्रकार था :

आदरणीय सर,

\आप मेरे पत्रों के उत्तर क्यों नहीं देते? क्या मैं आप को सुंदर नहीं लगती या अपनी गरीबी की वजह से ही आप आगे बढ़ने में डर रहे हैं? सर, जब से मुझे आप की आर्थिक स्थिति का पता चला है, आप की कर्तव्यभावना देख कर मेरे मन में आप के प्रति सम्मान और अधिक बढ़ गया है. कृपया मुझे अपना लें. मैं आप का पूरापूरा साथ दूंगी. नमक के साथ सूखी रोटी खा कर भी दिन गुजार लूंगी. आप का परिवार मेरा परिवार है. हम मिलजुल कर यह जिम्मेदारी उठाएंगे.

आप की,

श्वेता.

पत्र पढ़ कर मैं ने सिर पीट लिया कि सारी योजना बेकार चली गई. नमक के साथ रोटी वाली बात पढ़ कर तो बेहद हंसी आई. खाने में पचासों नुक्स निकालने वाली श्वेता को मैं कल्पना में भी सूखी रोटी खाते हुए नहीं देख सकती थी. गरीबी उस के लिए सिर्फ फिल्मी अनुभव के समान थी. गरीबी का फिल्मीरूप जितना लुभावना होता है, असलियत उतनी ही जानलेवा. काश, श्वेता यह सब जान पाती.

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2-3 दिन श्वेता अनमनी सी रही, फिर कुछ सहज हो गई. 10-15 दिनों से पुनीत का भी कोई फोन नहीं आया था. हम ने तय कर लिया था कि श्वेता यदि उन्हें कोई पत्र लिखती है तो वे पहले मुझे फोन से खबर देंगे. मुझे लगने लगा कि पुनीत की बेरुखी या गरीबी की वजह से श्वेता अपनेआप ही संभल गई है.

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Women’s Day Special: आधारशिला- भाग 3

उस रात मैं कई दिनों बाद निश्चिंत हो कर सोई. सुबह उठी तो सब से पहले श्वेता के कमरे की ओर गई. श्वेता गहरी नींद में थी, लेकिन उस के गोरे गालों पर आंसुओं के निशान थे. लगता था, जैसे वह देररात तक रोती रही थी. मेज पर कैमेस्ट्री की कौपी रखी थी. मैं ने खोल कर देखा तो उस में से एक पत्र गिरा. सलीमअनारकली, हीररांझा आदि के उदाहरण सहित उस में अनेक फिल्मी बातें लिखी हुई थीं.

लेकिन उस पत्र की अंतिम पंक्ति मुझे धराशायी कर देने के लिए काफी थी. ‘सर, यदि आप ने मेरा प्यार स्वीकार न किया तो मैं आत्महत्या कर लूंगी.’

मैं भाग कर श्वेता के निकट पहुंची. उस की लयबद्ध सांसों ने मुझे आश्वस्त किया. फिर मैं ने उस की अलमारी की एकएक चीज की छानबीन की कि कहीं कोई जहर की शीशी तो उस ने छिपा कर नहीं रखी है, लेकिन ऐसी कोई चीज वहां नहीं मिली. मेरा धड़धड़ धड़कता हुआ कलेजा कुछ शांत हुआ. लेकिन चिंता अब भी थी.

मेरी नजरों के सामने अखबारी खबरें घूम गईं. एकतरफा प्रेम के कारण या प्रेम सफल न होने के कारण आत्महत्या की कितनी ही खबरें मैं ने तटस्थ मन से पढ़ी, सुनी थीं. लेकिन अब जब अपने ऊपर बीत रही थी, तभी उन खबरों का मर्मभेदी दुख अनुभव कर पा रही थी.

मुझे बरसों पहले की वह घटना याद आई जब कमरे में घुस आई एक नन्ही चिडि़या को उड़ाने के प्रयत्न में मैं पंखा बंद करना भूल गई थी. चिडि़या पंखे से टकरा कर मर गईर् थी. उस की क्षतविक्षत देह और कमरे में चारों ओर बिखरे कोमल पंख मुझे अकसर अतीत के गलियारों में खींच ले जाते, और तब मन में एक टीस पैदा होती.

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श्वेता के संदर्भ में उस चिडि़या का याद आना मुझे बड़ा अजीब लगा. मैं ने स्कूल में पुनीत को फोन किया. मेरी कंपकंपाहटभरी आवाज सुन कर शायद वे मेरी दुश्चिंता भांप गए और बोले, ‘धीरज रखिए, मैं आधे दिन की छुट्टी ले कर आप के घर आऊंगा.’

निश्चित समय पर पुनीत आए. मैं जितनी बेचैन थी, वे उतने ही शांत लग रहे थे.

मैं ने कहा, ‘आप को सुन कर अवश्य आश्चर्य होगा, पर मैं आज कुछ अलग ही तरह की बात कहने जा रही हूं,’ मैं ने अपनेआप को स्थिर कर के कहा, ‘आप श्वेता से शादी कर लीजिए, कहीं वह प्रेम में पागल हो कर आत्महत्या न कर ले.’ यह कहतेकहते फफकफफक कर रो पड़ी.

‘अपनेआप को संभालिए. श्वेता अभी बच्ची है मेरी छोटी बहन के समान. उस की उम्र अभी शादी की नहीं, सुनहरे भविष्य के निर्माण की है, जिस की आधारशिला हमें अपने हाथों से रखनी होगी.’

‘वह तो ठीक है, लेकिन आज उस ने पत्र लिखा है, जिस में…’

‘वह पत्र उस ने मुझे दिया है, आप घबराएं नहीं. जब तक मैं उसे नकारात्मक उत्तर नहीं दूंगा, तब तक कुछ नहीं होगा. अभी तक मैं ने उस के प्रेम को स्वीकारा नहीं है, तो नकारा भी नहीं है.’

‘लेकिन यह स्थिति कब तक कायम रहेगी?’ मैं ने पूछा.

‘अधिक दिन नहीं,’ वे बोले, ‘यह तो हम जान ही चुके हैं कि श्वेता का ऐसी हरकतें करना कुछ तो उस की किशोर उम्र का परिणाम है और कुछ फिल्मों का मायावी संसार उसे यह सबकुछ करने को उकसाता रहा है, क्योंकि वह फिल्में देखने की बहुत शौकीन है.’

‘जी हां, मगर फिल्म और वास्तविकता के बीच का फर्क उसे समझाएं तो कैसे. और समझ में आने पर भी क्या प्यार का भूत उस के सिर से उतर जाएगा?’

पुनीत कहीं और देख रहे थे, जैसे उन्होंने मेरा प्रश्न सुना ही न हो, फिर एकाएक बोल पड़े, ‘अब आप निश्चिंत रहिए. उस का यह फिल्मी तिलिस्म फिल्मी ढंग से ही टूटेगा.’ और वे चले गए.

मेरे मन में आया कि पति से इतनी गंभीर बात छिपा कर मैं कहीं गलती तो नहीं कर रही हूं. मगर जब औफिस से लौटने पर इन का थकाहारा चेहरा देखती तो बस, यही लगता कि इन के सामने ऐसी गंभीर समस्या न ही रखूं. यदि मैं अपने स्तर पर यह समस्या सुलझा सकूं तो बहुत अच्छा होगा और फिर पुनीत का पूरा साथ है ही. दूसरी बात, इन के गुस्से का भी क्या ठिकाना. यदि गुस्से में आ कर इन्होंने कोई कठोर कदम उठाया तो श्वेता न जाने क्या कर बैठे.

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गनीमत यही थी कि पुनीत बहुत चरित्रवान थे. यदि वे छिछोरे युवकों जैसे होते तो हम कहीं के न रहते.

अगले दिन पुनीत हमारे घर फिर आए. श्वेता हमेशा की तरह बेहद खुश हुई. अब वे अकसर ही हमारे घर आने लगे. शायद श्वेता को इस बात से विश्वास हो चला था कि वे भी उसे चाहते हैं.

जब भी वे आते, अपने बारे में कुछ न कुछ ऊलजलूल बोलते चले जाते.

श्वेता कहती, ‘सर, यह चश्मा आप पर बहुत फबता है,’ तो कहते, ‘जानती हो, इस का नंबर है माइनस फाइव. 35 की उम्र तक पहुंचतेपहुंचते मैं अंधा हो जाऊंगा.’

श्वेता भी उन की बातों से कुछ ऊबती हुई नजर आती.

एक रोज वे घर पर आए. ठीक उसी वक्त फ्यूज उड़ जाने से   बिजली चली गई. श्वेता उन से बोली, ‘मैं फ्यूज वायर ला देती हूं, आप जोड़ दीजिए.’

‘मैं और फ्यूज?’ वे इस तरह घबराए, जैसे कोई अनोखी बात सुन ली हो, ‘श्वेता, फ्यूज तो दूर, मैं बिजली का मामूली से मामूली काम भी नहीं जानता. करंट लगने से मैं बेहद डरता हूं.’

श्वेता ने उन की ओर आश्चर्य से देखा, ‘सर, फ्यूज तो मैं भी जोड़ लेती हूं. बस, मीटर बोर्ड कुछ ऊंचा होने के कारण आप से कह रही हूं.’

श्वेता ने मेज पर स्टूल रखा और फ्यूज ठीक कर दिया. पुनीत यह सब खामोशी से देख रहे थे.

रात को खाना खाते समय श्वेता हंसतेहंसते यह घटना अपने पिताजी को सुना रही थी. इतना लंबाचौड़ा युवक और फ्यूज सुधारने जैसा साधारण काम नहीं कर सकता. उस की हीरो वाली छवि को इस घटना से बड़ा धक्का लगा था. पर उस रोज मैं न हंस पाई. मैं जानती थी कि पुनीत ने जानबूझ कर ऐसी हरकत की थी.

एक रोज उन्होंने एक और मनगढ़ंत घटना सुनाई कि जब वे कालेज में पढ़ते थे, एक चोर घर के अंदर घुस आया. वे चुपचाप सांस रोके लेटे रहे. चोर अलमारी में रखे 5-7 सौ रुपए ले कर भाग गया. श्वेता उन की ओर अविश्वास से ताकती रही, फिर बोली, ‘कुछ भी हो, आप को उसे पकड़ने की कोशिश तो करनी ही चाहिए थी. आप के साथसाथ समाज का भी कुछ भला हो जाता.’

‘समाज के लिए मरमिटूं, मैं ऐसा बेवकूफ नहीं हूं,’ वे बोले. फिर कुछ क्षण ठहर कर कहने लगे, ‘समाज हमारे लिए क्या करता है? यों तो लोग दहेज विरोधी बातें भी खूब करते हैं, पर मैं क्यों न लूं दहेज? क्या समाज मेरी बहनों की मुफ्त में शादी करवा देगा?’

श्वेता कुछ नहीं बोली, अपने सपनों के राजकुमार की खंडित प्रतिमा को वह किसी तरह जोड़ नहीं पा रही थी.

उस के कुछ दिन बड़ी मानसिक ऊहापोह में गुजरे. फिर एक रोज उस ने शायद अपने कमजोर मन पर विजय पा ही ली.

एक दिन वह बोली, ‘मां, कुछ लोग ऐसे क्यों होते हैं?’

‘कैसे?’ मैं उस के प्रश्न का रुख समझ रही थी, फिर भी पूछ लिया.

‘देखने में बड़े आदर्शवादी, समाज सुधारक और बड़ीबड़ी बातें करने वाले और अंदर से धोखेबाज, मक्कार और झूठे हैं. जैसे, जैसे पुनीत सर.’ आंसू छिपाती हुई वह अपने कमरे में चली गई. मुझे उस के दिए हुए ये विशेषण बिलकुल अच्छे नहीं लगे. मैं सोच रही थी कि मेरी बेटी को सही राह पर लाने वाला व्यक्ति सिर्फ महान, समझदार और व्यवहारकुशल हो सकता है और कुछ नहीं.

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मैं ने उसे समझाया, ‘बेटी, दुनिया में कई तरह के लोग होते हैं. सभी हमारी आकांक्षाओं के अनुरूप  नहीं होते. वे जैसे भी होते हैं, अपनी जगह पर सही होते हैं. इसलिए उन्हें बुराभला कहना ठीक नहीं.’

श्वेता ने मुझ से बहस नहीं की, पर धीरेधीरे उस का पुराना रूप लौटने लगा. मैं खुश थी.

एक दिन पुनीत का फोन आया कि श्वेता अब उन्हें पत्र नहीं लिखती, उन से दूसरी छात्राओं की तरह  ही पेश आती है. तब मैं ने उन्हें दिल से धन्यवाद दिया.

जिस तरह नाजुक हाथों से उलझे हुए रेशम को सुलझाया जाता है, उसी तरह नफासत से उन्होंने श्वेता के दिल की गुत्थी को सुलझाया था.

उस वर्ष वह जैसेतैसे द्वितीय श्रेणी ही पा सकी, जोकि स्वाभाविक ही था. लगभग पूरा वर्ष उस ने प्रेमवर्ष के रूप में ही तो मनाया था. पर उस के बाद वह पूरी तरह पढ़ाई में जुट गई. और अब उस का सपना भी पूरा हो गया.

श्वेता के डाक्टर बन जाने की खबर मैं पुनीत को देना चाहती थी, मगर देती कैसे? एक वर्ष पहले ही वे नौकरी छोड़ कर कहीं दूसरी जगह जा चुके थे. शायद महान व्यक्ति ऐसे ही होते हैं, किसी तरह के श्रेय या जयजयकार की कामना से दूर, खामोशी से हर कहीं सुगंध बिखेरने वाले.

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