Winter Special: फैमिली के लिए बनाएं दाल तड़का

अगर आप डिनर के लिए या लंच के लिए टेस्टी और हेल्दी रेसिपी ट्राय करना चाहते हैं तो दाल तड़का की ये रेसिपी आपके लिए परफेक्ट रेसिपी है.

सामग्री

–   1 कप मूंग व तुअर दाल

–   1 प्याज कटा

–   1 छोटा चम्मच अदरक कद्दूकस की

–   1/2 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

–   1 टमाटर बारीक कटा

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–   1 हरी मिर्च बारीक कटी

–   1 बड़ा चम्मच नींबू का रस

–   थोड़ी सी धनियापत्ती बारीक कटी

–   1/2 छोटा चम्मच दाल तड़का मसाला

–   1 बड़ा चम्मच देशी घी

–   नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

प्रैशर कुकर में दाल, हलदी पाउडर, प्याज, टमाटर, अदरक, नमक और 2 कप पानी डाल कर मध्यम आंच पर 3 सिटी आने तक पकाएं. प्रैशर निकल जाने पर दाल सर्विंग डिश में निकाल लें. कड़ाही में घी गरम कर दाल तड़का मसाला व हरी मिर्च से तड़का तैयार कर दाल में डाल दें. इस में नींबू का रस भी मिला दें. धनियापत्ती से गार्निश कर परोसें.

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बिगड़ते रिश्ते का कारण कहीं आप तो नहीं

जब भी किसी रिश्ते में दरार पड़ने लगती है, हम में से ज्यादातर लोग अपने पार्टनर पर ही दोषारोपण करने लगते हैं. मगर ताली कभी एक हाथ से नहीं बजती. बहुत कम रिश्ते ऐसे होते हैं जहां एक की ही पूरी तरह से गलती होती है. अगर आप के बीच भी कुछ गलत हो रहा है, तो अपने पार्टनर को दोष देने से पहले जरा सोच लें कि कहीं इस परेशानी की जिम्मेदार आप तो नहीं:

– क्या आप को लगता है कि आप का पार्टनर आप की उपेक्षा कर रहा है और ऐसा आप को पहली बार नहीं लग रहा है? आप को लग रहा है कि आप का एक्स भी ऐसा करता था या कोई और दोस्त भी ऐसा करता है? आप के करीबी लोगों के साथ आप को यही महसूस होता है तो यह समस्या आप की है.

इस पर गंभीरता से सोचें. यह भी हो सकता है कि पुरुष या स्त्री किसी को भी चुनने का आप का तरीका ही गलत हो.

– ‘‘मैं मूडी हूं,’’ यह कोई बहाना नहीं होता है. आप की यह बात दूसरा समझे, यह ठीक नहीं होगा. आप ही इस आदत पर स्वयं को सुधारें. यदि आप के गुस्से पर आप का कंट्रोल नहीं है, इस से आप के प्रियजनों को कष्ट हो रहा है तो इस समस्या को देखना आप की जिम्मेदारी है. थेरैपिस्ट के पास जाएं, आप की जगह आप के पार्टनर का यह स्वभाव होता तो आप भी यही आशा करतीं न?

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– आप को अपने पार्टनर पर बहुत गुस्सा आ रहा है, यह आप ने उन का फोन न उठा कर संकेत दिया है, पर कई बार वह सोच लेता है कि आप व्यस्त हैं या बात करने के मूड में नहीं हैं. वह आप के मन की बात नहीं जान सकता. आप के दिमाग में क्या चल रहा है, अंदाजा नहीं लगा सकता.

बिना कुछ कहे, बोले आप यह आशा न रखें कि वह जान लेगा कि आप कैसा महसूस कर रही हैं या क्या सोच रही हैं. कभी वह समझ सकता है कि आप का मूड खराब किस बात पर है, पर हमेशा नहीं. आप उस से बात करें, उसे बताएं कि आप के दिमाग में है क्या. संवाद बनाए रखें यह अच्छे रिश्ते की पहचान है. चुप रह कर अपने मन की बात न बता कर आप रिश्ते में कटुता ला सकती हैं.

– आप हमेशा यह आशा रखती हैं कि वही आप को फोन करेगा, कोई प्लान बनाएगा. यह शुरू में तो अच्छा लग सकता है, पर एक समय के बाद उसे यह लग सकता है कि आप को किसी बात की चिंता ही नहीं है. जो कुछ करना है उसे ही करना है. यह चीज कुछ समय बाद उसे बोझ लग सकती है.

– प्यार हो या काम, सकारात्मक बातों पर ही ध्यान देना सफलता का रहस्य है. शिकायत तो हमेशा ही किसी भी बात पर की जा सकती है. अपने पार्टनर की ऐसी कई बातें भी हो सकती हैं जो आप को पसंद न हों.

आप उन बातों पर ही फोकस करें जो आप को अच्छी लगती हैं और जिन बातों से रिश्ता मधुर बना रह सकता है. जो बातें पसंद नहीं हैं, उन को नजरअंदाज कर दें. उन का इशू न बनाएं.

– वह एक चीज जो पार्टनर के साथ रिश्ते को मजबूत बनाती है, वह है नए अनुभव साथ में शेयर करना. एकदूसरे की स्पेस का भी सम्मान करते हुए अपने पार्टनर के साथ नई चीजें शेयर करते हुए असुरक्षा या ईगो बीच में न आने दें वरना रिश्ते के आगे बढ़ने में बाधा हो सकती है.

– कोई भी समस्या हो तो समय के साथ ठीक होने का इंतजार न करें. जब तक समस्या का समाधान नहीं होता, वह ज्यों की त्यों बनी रहती है. वह अपनेआप खत्म नहीं होगी, बढ़ती जाएगी. कोई भी समस्या होने पर अपने पार्टनर के साथ खुली सोच रखते हुए बात करें. समाधान ढूंढ़ें, बैठ कर बात करने की आदत बनाएं.

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– कभी ऐसा हुआ है कि आप जानती हैं कि गलती आप की है, पर आप को माफी मांगने में शर्म आ रही है या संकोच हो रहा है? गलती हुई है तो पार्टनर से माफी मांगें, इस में कोई शर्म की बात नहीं. आप का अपनी गलती स्वीकार करना आप दोनों को और करीब ही लाएगा.

– आप प्लान बनाती हैं और अपने पार्टनर को इस में शामिल नहीं करतीं, उसे बताने की भी जरूरत नहीं समझतीं. अगर आप अपने पार्टनर से दोस्ती का रिश्ता नहीं रख रही हैं तब आप अभी भी सिंगल लाइफ जी रही हैं. आप अपना वजूद बनाए रखें पर एक रिश्ते का मतलब होता है अपनी लाइफ किसी के साथ शेयर करना.

आप अपनी पसंद की चीजें करना बंद न करें, पर यह अवश्य याद रखें कि आप के किस व्यवहार का पार्टनर पर क्या प्रभाव पड़ता है. अब आप सिंगल नहीं हैं.

– अगर अपने पार्टनर की कोई बात आप को दुखी करती है, तो उसे आवश्य बताएं. इस पर मिल कर सोचें. आप की खुशी महत्त्वपूर्ण है. आप को खुश रहने का हक है. यदि आप के बताने के बाद भी आप की परेशानी कम नहीं हो रही है, तो दोबारा इस रिश्ते पर गंभीरतापूर्वक सोचें.

FASHION TIPS: 44 साल की उम्र में भी लोगों को इंस्पायर करती हैं सोनाली बेंद्रे

बौलीवुड एक्ट्रेस सोनाली बेंद्रे अपनी फिल्मों से ही नही बल्कि अपनी रियल लाइफ में भी लोगों को काफी इंस्पायर करती रहती हैं. साल 2018 में कैंसर होने के बाद से वह अमेरिका में रहकर अपना इलाज करवा रही थी, लेकिन हौस्पिटल में रहने के बाद भी वह अपने फैंस के लिए अपने सोशल मीडिया पर मैसेज शेयर करती रहती थीं. वहीं अब कैंसर से लड़कर जीतने के बाद भी 44 साल की उम्र में सोशल मीडिया पर अपने फैशन को लेकर भी सुर्खियों में रहती हैं. छोटे बालों के साथ वह नए-नए लुक में नजर आती हैं, जो लोगों को इंस्पायर करता है. आज हम सोनाली बेंद्रे के कुछ ऐसे ही सिंपल और पार्टी वियर दोनों तरह के आउटफिट्स के बारे में बताएंगे.

1. सोनाली बेंद्रे की वाइट ड्रेस है परफेक्ट

अगर आपके भी छोटे बाल है और आप कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं तो सोनाली बेंद्रे की ये वाइट ड्रेस आपके लिए अच्छा औप्शन है. सिंपल वाइट ड्रेस के साथ आप वाइट शूज मैच करके अपने लुक को कूल बना सकती हैं. ये आपके लुक को नया बनाने में मदद करेगा.

 

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I call this #BeachTherapy ?? @discoversoneva #DiscoverSoneva #ExperienceSoneva #SonevaKiri

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2. वाइट पैंट के साथ शर्ट करें ट्राय

 

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Stepping into my day with a smile and comfy pants ??

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अगर आप पैंट पहनने में कम्फरटेबल हैं तो सोनाली की तरह वाइट पैंट के साथ प्रिंटेड शर्ट ट्राय करें. ये आपके लुक को सिंपल लेकिन ट्रेंडी दिखाने में मदद करेगा. साथ ही ये लुक कम्फरटेबल आपके लिए परफेक्ट औप्शन है.

3. फ्लोरल जंपसूट करें ट्राय

जंपसूट आजकल ट्रेंड में है. अगर आपके बाल छोटे हैं तो जंपसूट आपके लिए अच्छा औप्शन है और अगर उसमें फ्लोरल का कौम्बिनेशन है तो ये कूल के साथ-साथ ट्रेंडी औप्शन रहेगा. सिंपल लेकिन एलीगेंट लुक के लिए ये आउटफिट आपके लिए अच्छा औप्शन रहेगा.

4. साड़ी के साथ शूज का कौम्बिनेशन करें ट्राय

अगर आप किसी कारण हील्स नही पहन सकते तो सोनाली का साड़ी के साथ शूज का औप्शन आपके लिए परफेक्ट है. सिपंल प्लेन कौटन की साड़ी के साथ चेक पैटर्न वाला ब्लाउज और वाइट शूज आपके लुक को कूल के साथ-साथ ट्रेडिशनल और कम्फरटेबल दिखाने में मदद करेगा.

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बड़े काम के हैं ये 6 किचन एप्लायंसेज

लेखक -पूजा भारद्वाज

आजकल बाजार में ऐसे विभिन्न किचन एप्लायंसेज मौजूद हैं, जो काम को आसान बनाते हैं और आप का समय बचाते हैं जिस से आप अपने परिवार के साथ समय बिता सकती हैं. तो इस बार दीवाली पर ऐप्लायंसिस शौपिंग से पहले एक नजर इन ऐप्लायंसिस पर डालें:

1. स्लो कुकर में बने खाना टेस्टी

महिलाओं के लिए स्लो कुकर एक वरदान है, जो बहुत ही सुविधाजनक तरीके से खाना तैयार करता है. आजकल बाजार में सिंगल, डबल व ट्रिपल स्लो कुकर मौजूद हैं. ट्रिपल स्लो कुकर में आप एक ही समय में एकसाथ 3 डिशेज बना सकती हैं और अपना काफी समय बचा सकती हैं. अगर समय की बात करें तो इस में खाना बनने में करीब 4 से 10 घंटे लगते हैं, मगर इस धीमी प्रक्रिया से खाने का स्वाद बढ़ जाता है. एलपीजी की तुलना में इलैक्ट्रिक स्लो कुकर कहीं अधिक सुरक्षित होते हैं. इन्हें ऐसे डिजाइन किया गया है कि आप हर तरीके का खाना बना सकती हैं.

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स्लो कुकर आप की कुकिंग की सारी जरूरतों को पूरा करता है. यह वर्सेटाइल है और इस में बहुत से फीचर्स हैं और यह पोर्टेबल है. इसे संभालना बहुत ही आसान है. इसे मल्टीफंक्शनल यूज के लिए डिजाइन किया गया है, जो यह दर्शाता है कि इस में लंबे समय तक चलने की क्षमता है और इस में करीब 4.54 लिटर की क्षमता है. इसे स्टील,

एबीएस ऐंड सिरैमिक से बनाया गया है. इस में ऐडजस्टेबल नोब होती है, जिस से तापमान को निंयत्रित किया जाता है.

2. जूसर बनाए काम आसान

जूसर एक परफैक्ट किचन ऐप्लायंस है, लेकिन आप के पास किस तरह का जूसर होना चाहिए यह कई बातों पर निर्भर करता है जैसेकि आप उस का कितना इस्तेमाल करेंगी. वैसे बाजार में 2 प्रकार के जूसर मौजूद हैं- पहला सैंट्रिफ्यूगल और दूसरा मैस्टिकेटिंग जूसर, जिन्हें कोल्ड प्रैश और स्लो जूसर के नाम से भी जाना जाता है. इन दोनों में बस फर्क इतना है कि इन के जूस निकालने का तरीका अलग है. सैंट्रिफ्यूगल जूसर जहां बहुत ही कौमन जूसर है और अधिक किफायती भी है, वहीं मैस्टिकेटिंग जूसर सैंट्रिफ्यूगल जूसर की तुलना में अधिक कुशल भी है और महंगा भी. अगर आप अपने लिए जूसर खरीदना चाह रही हैं, तो आप को बता दें कि जूसर की डिजाइन जितनी सिंपल होगी वह उतना ही बेहतर होगा, क्योंकि उस के फीचर्स जितने पेचीदा होंगे आप को उतनी ही दिक्कत होगी.

जूसर खरीदते समय उस की स्पीड पर खासतौर पर ध्यान दें, साथ ही क्लीनिंग टाइम, फीडिंग ट्यूब, प्लप कंटेनर, सेफ्टी स्विच, ड्रिप स्टौप पौड आदि पर भी ध्यान देना न भूलें ताकि आप जब भी इस का इस्तेमाल करें, तो यह आप का काम बढ़ाए नहीं, बल्कि आसान बनाए.

3. ब्लैंडिग हुई ईजी

हैंड ब्लैंडर मिनटों में ब्लैंड, व्हिस्क और चर्न करने की प्रक्रिया को आसान बनाता है. आप को जब भी स्मूदी, शेक और सूप बनाना होता है, तो हैंड ब्लैंडर सब से पहले याद आता है, जो झट से आप का काम निबटा देता है. इस की सब से खास बात यह है कि यह वैरिएबल स्पीड कंट्रोल के साथ आता है.

आप अलगअलग फूड को ब्लैंड करते हुए स्विच के जरीए आसानी से इस की स्पीड को कंट्रोल कर सकती हैं. जहां हैंड ब्लैंडर की स्टेनलैस स्टील की बौडी इस का टिकाऊपन बढ़ाती है, वहीं दूसरी ओर इसे गरम और ठंडे फूड को ब्लैंड करने के लिए भी बेहतरीन ऐप्लायंस बनाती है. इस में 400 पावर तक की मोटर का इस्तेमाल किया जाता है, जो चौपिंग, ब्लैंडिंग और सलाद ड्रैसिंग को ईजी बनाती है. फिर छोटे होने की वजह से इन्हें रखने में आसानी भी होती है.

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4. कैटल मिनटों में उबाले पानी

यह इलैक्ट्रिक कैटल बहुत ही हैंडी किचन ऐप्लायंस है और नएनए फीचर्स के साथ इस के विभिन्न विकल्प बाजार में मौजूद हैं. आजकल कोर्डलैस कैटल खूब यूज की जा रही है, जिस के साथ एक अलग बेस यूनिट आता है. अगर बात इन की कपैसिटी की करें, तो एक औसत कैटल में 1.4 से 1.8 लिटर तक पानी आ सकता है.

ये कैटल्स लगभग 2.1 किलोवाट से 2.9 किलोवाट की पावर रेंज में आते हैं, हालांकि उच्च वाट क्षमता वाली कैटल्स अधिक शक्तिशाली होती हैं और जल्दी पानी उबालते हैं. इस के 360 डिग्री बेस के जरीए आप इसे किसी भी तरीके से रख सकती हैं. इस में मौजूद कंसील्ड ऐलिमैंट के कारण इसे साफ करना भी आसान होता है. इस का बौयल प्रोटैक्शन कैटल में कम पानी होने पर सचेत कर देता है. कुछ ऐसी कैटल्स भी हैं, जो ऐडजस्टेबल टैंपरेचर के साथ आ रही हैं.

5. अब राइस पकें जल्दी

राइस कुकर एक ऐसा किचन ऐप्लायंस है, जो न केवल सुविधाजनक है, बल्कि सुरक्षित, हलका और पोर्टेबल भी है. आप को बाजार में स्टीमर और बिना स्टीमर के राइस कुकर मिलेंगे, जो आप के लिए फटाफट राइस बना देंगे. अगर इन कुकरों के साइज की बात करें, तो ये स्माल, मीडियम, लार्ज और जंबो साइज में बाजार में मौजूद हैं. कुछ राइस कुकर में नौनस्टिक इनर पौट भी मौजूद होता है, जिस में फ्राई भी किया जा सकता है.

यह साफ करने में भी आसान होता है. इस पर पारदर्शी ढक्कन होता है. कुछ के साथ आप को एक स्टीमिंग बास्केट भी मिलती है जो इडली, आलू, मक्का, सब्जियां स्टीम करने का काम करती है. वैसे इन स्टीमिंग बास्केट्स का उपयोग स्ट्रेनर/कोलैंडर के रूप में भी किया जा सकता है. कुछ के साथ मैटल ट्रे भी उपलब्ध होती है.

इंसुलेटेड हैंडल इस का बेहतरीन सेफ्टी फीचर है, जिसे पकड़ कर कुकर को किसी भी दिशा में घुमा सकती हैं. इस के मैन्यू में मल्टी कुकिंग औप्शन मौजूद हैं. कुल मिला कर राइस कुकर आप के लिए एक फायदे का सौदा है, क्योंकि यह आप का समय और ऊर्जा दोनों ही बचाता है और कुकिंग को आसान बनाता है.

6. फूड प्रोसैसर करे एकसाथ करे कई काम

फूड प्रोसैसर को रसोई के हलके कामों को करने के लिए डिजाइन किया गया जैसेकि स्लाइसिंग, चौपिंग, ब्लैंडिंग, प्यूरीइंग आदि. फूड प्रोसैसर की मोटर इतनी पावरफुल होती है कि यह मिनटों में इस तरह के कामों को निबटा देता है. अगर आप फूड प्रोसैसर ले रही हैं, तो कम से कम 600 वाट वाली मोटर लगा फूड प्रोसैसर ही खरीदें. इस के अलावा इस की कपैसिटी और वजन पर भी ध्यान दें, साथ ही इस के साथ आने वाले बाउल व ब्लेड साइज पर भी जरूर ध्यान दें.

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स्मार्ट वाइफ: सफल बनाए लाइफ

पतिपत्नी का रिश्ता बहुत संवेदनशील और भावनात्मक होता है. पहले जब संयुक्त परिवारों का चलन होता था तो उस समय इस रिश्ते में थोड़ा उतारचढ़ाव चल जाता था. मगर अब संयुक्त परिवारों के टूटने के बाद से पूरे परिवार का बोझ केवल पति और पत्नी के ऊपर ही आ गया है. ऐसे में अब पत्नी का छुईमुई बने रहना घरपरिवार के लिए ठीक नहीं होता है. आज के समय में पत्नी की जिम्मेदारियां पति से कहीं ज्यादा बढ़ गई हैं.

पति के पास सही मानों में केवल पैसा कमा कर लाने का ही काम होता है. पैसे का सही ढंग से उपयोग कर के घरपरिवार, बच्चे, नातेरिश्तेदार और पड़ोसियों तक से सहज रिश्ता रखने का काम पत्नी का होता है. स्मार्ट पत्नी महंगाई के इस दौर में पति के कमाए पैसों को सहेज कर रखने का और बचत की नईनई योजनाओं की जानकारी देने का भी काम करती है. आज की स्मार्ट वाइफ केवल हाउसवाइफ बन कर रहने में ही संतोष महसूस नहीं करती, वह अच्छी हाउस मैनेजर भी बन गई है.

गृहस्थी की गाड़ी की सफल ड्राइवर

भावना और भूपेश शादी के बाद रहने के लिए अपने छोटे से शहर गाजीपुर से लखनऊ आए थे. यहां भूपेश को एक प्राइवेट कंपनी में नौकरी मिली थी. करीब ₹15 हजार उसे वेतन मिलता था. भूपेश ने ₹2 हजार प्रतिमाह किराए पर फ्लैट लिया. 1-2 महीने बीतने के बाद भावना को लगने लगा कि किराए के मकान में रहना समझदारी का काम नहीं है. मगर वह भूपेश से कुछ कहते हुए संकोच कर रही थी. वह पढ़ीलिखी थी. अत: उस ने सरकारी योजनाओं में मिलने वाले मकानों पर नजर रखनी शुरू कर दी. अपने आसपास के लोगों को भी इस बारे में जानकारी देने के लिए कहा.

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1 माह में ही भावना को पता चल गया कि सरकार की आवास योजना में कई मकान ऐसे हैं, जिन्हें कुछ लोगों ने बुक तो करा दिया था, लेकिन उन्हें वे खरीद नहीं पाए. सरकार ऐसे मकानों को दोबारा बेचने के लिए तैयारी कर रही थी. उस के लिए मकान की कुल कीमत का 25 फीसदी पहले देना था. बाकी की रकम किश्तों में अदा की जा सकती थी.

भावना ने भूपेश को पूरी बात बताई तो वह बोला, ‘‘सब से छोटे मकान की कीमत ₹3 लाख से ऊपर है. इस हिसाब से हमें ₹75 हजार तत्काल देने होंगे. इस के बाद हर माह किश्त अलग से देनी होगी. इतना पैसा कहां से आएगा?’’

इस पर भावना बोली, ‘‘परेशानी केवल शुरू के 75 हजार की है. इस के बाद की मासिक किश्त तो केवल ₹2 हजार के आसपास आएगी. इतना तो किराया हम अभी भी देते ही हैं. 75 हजार की व्यवस्था में 50 हजार का इंतजाम मैं कर सकती हूं. ₹25 हजार का इंतजाम तुम कर लो तो हमारा भी इस शहर में अपना एक मकान हो जाएगा.’’

भूपेश ने भावना की बात मान ली. कुछ ही दिनों में उन का अपना मकान हो गया. नए मकान को थोड़ा सा ठीक करा कर दोनों रहने लगे.

एक दिन भूपेश और भावना को एक शादी की पार्टी में जाना था. भावना को बिना गहनों के तैयार होता देख कर जब भूपेश ने पूछा कि तुम्हारे गहने कहां गए? तो भावना बोली कि उन्हें बेच कर ही तो मकान के लिए ₹50 हजार का इंतजाम किया था. यह सुनते ही भूपेश ने भावना को बांहों में भर लिया. उसे लगा कि सही मानों में भावना ही स्मार्ट वाइफ है.

बचत से संवरती है जिंदगी

महंगाई के इस युग में गृहस्थी की गाड़ी चलाने का मूलमंत्र बचत ही है. जिन परिवारों में अनापशनाप पैसा आता है, वहां भी पैसों की बचत का पूरा खयाल रखना चाहिए. एक स्मार्ट वाइफ को वित्तमंत्री की तरह अपने घर का बजट तैयार करना चाहिए. पूरा माह होने वाले खर्चों को एक जगह लिखना चाहिए ताकि माह के अंत में यह पता चल सके कि माह में कितना खर्च हुआ. इस से यह भी पता चल जाता है कि कहां पर खर्च कम कर के पैसा बचाया जा सकता है. हर माह एक निश्चित रकम इमरजैंसी में होने वाले खर्चों के लिए बचा कर जरूर रखनी चाहिए ताकि इमरजैंसी में होने वाले खर्च के समय परेशानी न उठानी पड़े.

हर माह तय रकम बैंक या डाकघर में जरूर जमा करें. सालभर के बाद इसे बैंक में फिक्स डिपौजिट कराया जा सकता है. आजकल म्यूचुअल फंड में भी जमा कर के अच्छा रिटर्न हासिल किया जा सकता है. स्मार्ट वाइफ हर माह के तय खर्च में भी कुछ न कुछ बचत कर के दिखा देती है. इस तरह वह पति को सहयोग भी दे देती है.

पति, परिवार और बच्चों की सेहत अच्छी रहती है तो दवा का खर्च भी कम हो जाता है. यह भी एक तरह की बचत होती है. बहुत सारी बीमारियों को साफसफाई के द्वारा दूर रखा जा सकता है. घर की खरीदारी समझदारी से करें तो भी बचत हो सकती है. पूरी खरीदारी एक बार में ही करें. सामान ऐसी जगह से खरीदें जहां कम कीमत पर अच्छा मिलता हो. आजकल मौल कल्चर आने से कई तरह का सामान सस्ता मिल जाता है.

स्मार्ट वाइफ बनाए समाज में पहचान

अब बहुत सारे लोग शहरों में अपने नातेरिश्तेदारों से अलग रहते हैं. ऐसे में उन के पास दोस्तों से मिलने का समय ज्यादा होता है. इन्हीं लोगों के बीच दुखदर्द और हंसीखुशी का बंटवारा भी होता है. आपस में मिलनेजुलने के लिए लोग पार्टियों का आयोजन किसी न किसी बहाने करते रहते हैं. यहां पर पत्नियों के बीच एक अघोषित प्रतिस्पर्धा सी होती है, जिस के चलते एकदूसरे के बारे में कई तरह के सवाल भी उठते रहते हैं. किस की पत्नी कैसी दिख रही है? उस ने किस तरह के कपड़े पहन रखे हैं? उस का व्यवहार कैसा है? उस के बच्चे कितने अनुशासित हैं? स्मार्ट पत्नी वही कहलाती है जो इन सवालों पर खरी उतरे.

पार्टी में जान डालने के लिए पार्टी के तौरतरीकों को समझना और उन के हिसाब से काम करना पड़ता है. इस तरह की पार्टियों में कई बार बहुत अच्छे रिश्ते भी बन जाते हैं, जो आगे बढ़ने में भी मदद करते हैं. स्मार्ट पत्नी को काफी सोशल होना चाहिए. कई बार पति चाहते हुए भी सोशल रिश्तों को बेहतर ढंग से नहीं निभा पाता है.

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स्मार्ट पत्नी इस कमी को पूरा कर के पति को तरक्की की राह में आगे बढ़ने में मदद करती है. स्मार्ट वाइफ को पति के दोस्तों, औफिस के सहयोगियों की घरेलू पार्टियों में जरूर जाना चाहिए. इस से आपस में बेहतर रिश्ते बनते हैं. आजकल आपस में बातचीत करते रहना मोबाइल, इंटरनैट और फोन के जरीए और भी आसान हो गया है. इस का लाभ उठाना चाहिए. हर जगह रिश्तों की मर्यादा का पूरा खयाल रखना चाहिए. कभीकभी रिश्ते बनते कम और बिगड़ते ज्यादा हैं.

हार गयी दीदी: किस की खुशी के लिए हार गई थी दीदी

Serial Story: हार गयी दीदी (भाग-2)

हमारे पड़ोसी डा. दीपक का सब से बड़ा बेटा अमित इस प्रोग्राम में विशेष रुचि लेने लगा था. धीरेधीरे अमित दीदी को स्वयं सुझाव देता. ‘यह रंग तुम पर अधिक सूट नहीं करेगा. कोई सोबर कलर पहनो. इस साड़ी के साथ यह ब्लाउज मैच करेगा. ऊंह, लिपस्टिक ठीक नहीं लगी, जरा और डार्क कलर यूज करो. काजल की रेखा जरा और लंबी होनी चाहिए. बाल ऐसे नहीं, ऐसे बनने चाहिए.’ प्रोग्राम के समय भी अमित की आंखें दीदी के चेहरे पर ही टिकी रहतीं, और यदि दीदी की नजरें कभी अकस्मात उस की नजर से टकरा जातीं तो उन के चेहरे पर हजारों गुलाबों की लाली छा जाती.

यह सब किसी से छिप सकता था भला? बस, मझली दीदी कुछ तो यह ईर्ष्या दीदी के प्रति पाले हुए थीं कि अमित उन की ओर ध्यान न दे कर रागिनी दीदी को ही आकर्षण का प्रमुख केंद्र बनाए रहता है. दूसरे, मां की आंखों में अपनेआप को ऊंचा उठाने का अवसर भी वे कभी अपने हाथ से जाने नहीं देना चाहती थीं. उन्होंने दीदी के विरुद्ध अम्मा के कान भरने आरंभ कर दिए.

मां को एक दिन पापा के कान में कहते सुना था, ‘इस लड़की को आप इतनी छूट दे रहे हैं, फिर वह लड़का भी तो अपनी जातबिरादरी का नहीं है.’

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‘अरे, बच्चे हैं, उन के हंसनेखेलने के दिन हैं. हर बात को गलत तरीके से नहीं लेते,’ पापा इतनी लापरवाही से कह रहे थे जैसे उन्होंने कुछ देखा ही न हो.

सचमुच पापा की मृत्यु के बाद ही दीदी ने भी अमित के प्रति ऐसा रुख अपनाया था जैसे कि कभी कुछ हुआ ही न हो. एकदम उस से तटस्थ, अमित कभी घर में आता तो दीदी को उस के सामने तक आते नहीं देखा.

दिल में आता उन्हें पकड़ कर झकझोर दूं. ‘क्या हो गया है दीदी, तुम्हें? तुम्हारे अंदर की हंसने, नाचने व गाने वाली रागिनी कहां मर गई है, पापा के साथ ही?’ विश्वास ही नहीं होता था कि यह वही दीदी हैं.

अमित के आने में जरा सी देर हो जाती तो वे बेचैन हो उठतीं. तब वे मुझे प्यार से दुलारतीं, फुसलातीं, ‘सुधी, जा जरा अमित को तो देख क्या कर रहे हैं?’ मैं मुंह मटका कर, नाक चढ़ा कर उन्हें चिढ़ाती, ‘ऊंह, मैं नहीं जाती. कोई जरूरी थोड़े ही है कि अमित डांस देखें.’

‘देख सुधी, बड़ी अच्छी है न तू, जा चली जा मेरे कहने से. मेरी प्यारी सी, नन्ही सी बहन है न तू.’

वे खुशामद पर उतर आतीं तो मैं अमित के घर दौड़ जाती. वहीं दीदी अमित से तटस्थ रह कर चाचाजी द्वारा भेजे गए लड़कों की तसवीरों को बड़े चाव से परखतीं और अपनी सलाह देतीं. मेरे मस्तिष्क में 2 विपरीत विचारों का संघर्ष चलता रहता. क्या दीदी विवश हो कर ऐसा कर रही हैं या फिर पापा के मरते ही उन्हें इतनी समझ आ गई कि अपना जीवनसाथी चुनने के उचित अवसर पर यदि वे जरा सी भी नादानी दिखा बैठीं तो उन का पूरा जीवन बरबाद हो सकता है?

एक दिन उन के हृदय की थाह लेने के लिए मैं कह ही बैठी, ‘दीदी, क्या इन तसवीरों में अमित का चित्र भी ला कर रख दूं?’

उन्होंने अत्यंत संयत मन से मेरे गाल थपथपा दिए थे, ‘सुधी, हंसीखेल अलग वस्तु होती है और जीवनसाथी चुनने का उत्तरदायित्व अलग होता है. अमित अभी मेरा भार वहन करने योग्य नहीं है.’

तब मैं समझ पाई थी कि दीदी ने अपने बोझ से हम सब को मुक्त करने के लिए, उन के बोझ को वहन न कर सकने योग्य अमित की तसवीर को अपने मानसपटल से पोंछ दिया था.

उन्होंने अपनी कुशाग्र बुद्धि से ऐसेयोग्य, स्वस्थ, सुंदर व कमाऊ पति का चुनाव किया था कि सभी ने उन की रुचि की प्रशंसा की थी. दुलहन बनी दीदी जिस समय जीजाजी के साथ अपना जीवनरूपी सफर तय करने को कार में बैठीं, उन के चेहरे पर कहीं भी कोई ऐसा भाव नहीं था, जिस से किंचित मात्र भी प्रकट होता कि वे विवश हो कर उन की दुलहन बनी हैं.

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उन के विदा होते ही अम्मा के घुटे निश्वासों को स्वतंत्रता मिल गई थी, ‘‘यही तो अंतर है लड़का लड़की में. बाप की सारी कमाई खर्च करवा कर चली गई. इस की जगह लड़का होता तो कुछ ही वर्षों में सहारे योग्य हो जाता.’’

उधर, दीपा दीदी का पार्ट घर में प्रमुख हो गया. पापा ने वास्तव में ही कहीं गड़बड़ की तो दोनों दीदियों के नाम रखने में. दीपा तो बड़ी दीदी का नाम होना चाहिए था जो आज भी घर के लिए प्रकाशस्तंभ हैं. दीपा दीदी तो अपने नाम का विरोधाभास हैं. उन के मन में तो अंधकार ही रहता है.

रागिनी दीदी घर से क्या गईं, मेरे लिए तो सबकुछ अंधकारमय हो गया था. अम्मा ने तो बचपन से ही मुझे प्यार नहीं दिया. अमर भैया के बाद वे मेरी जगह एक और लड़के की आशा लगाए बैठी थीं. उधर, मझली दीदी उन्हें इसलिए प्यारी थीं कि वे अमर भैया को आसमान से धरती पर हमारे घर में खींच लाई थीं. मझली दीदी समय की बलवान समझी जाती थीं, इसलिए उन्हें दीपा नाम भी दिया गया. अम्मा द्वारा रखा गया मेरा नाम ‘अपशकुनी’ है.

दीपा दीदी की आजादी दीदी के जाने के बाद प्रतिदिन बढ़ती गई और सारे घर के कार्य का बोझ मुझ पर ही लाद दिया गया. रागिनी दीदी के डांस प्रोग्राम घर पर ही होते थे. उन में हम सब की प्रसन्नता सम्मिलित थी. पर दीपा दीदी तो अधिकतर बाहर ही रहतीं. एक कार्यक्रम समाप्त होता तो दूसरे में जुट जातीं. उन्हें खूब पुरस्कार मिलते तो मां उन की प्रशंसा के पुल बांध देतीं. मुझे प्रोत्साहित करने वाला घर में कोई न था. नाचगाने से मेरा संबंध छूट कर केवल रसोईघर से रह गया. बस, कभी विवश हो जाती तो दीदी को याद कर के रोती. मन हलका हो जाता.

बाद के 5 वर्षों में मेरे लिए कुछ सहारा था तो दीदी से फोन पर बात करना. कितनी तसल्ली होती थी जब दीदी प्यार से फोन पर मुझ से बात करतीं. एक बार उन्होंने मुझ से फोन कर के कहा, ‘सुधी, मैं जानती हूं कि तू मेरे बिना कैसी जिंदगी जी रही होगी, परंतु तू धैर्य मत खोना, जिंदगी में हर स्थिति का सामना करना ही पड़ता है. उस से भागना कायरता है. मैं यह कभी सुनना नहीं चाहूंगी कि सुधी कायर है.’

सच पूछो तो दीदी का जीवन ही मेरे लिए प्रेरणास्रोत था. सब से अधिक प्रेरणा तो मुझे तब मिली जब मुझे यह पता चला कि विवाह के बाद भी दीदी अपनी पढ़ाई कर रही थीं. जीजाजी के रूप में उन्हें ऐसा जीवनसाथी मिला जो केवल पति नहीं था, बल्कि पापा की भांति उन्होेंने दीदी को संरक्षण दे कर पापा के सपने को साकार करना चाहा था.

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Serial Story: हार गयी दीदी (भाग-1)

न जाने जीवन में कभी कुछ इतना अप्रत्याशित व असामयिक क्यों घट जाता है कि जिंदगी की जो गाड़ी अच्छीखासी अपनी पटरी पर चल रही होती है वह एक झटके से धमाके के साथ उलटपलट जाती है. जिस गाड़ी में बैठ कर हम आनंदपूर्वक सफर कर रहे होते हैं, वही हमें व हमारे अरमानों को कुचल कर कितना असहाय व लंगड़ा बना देती है.

ऐसा ही कुछ उस दिन घटा था जब पापा की बस दिल्लीकानपुर मार्ग पर एक पेड़ से टकरा गई थी और इधर हमारे पूरे 5 प्राणियों की जीवनरूपी गाड़ी अंधड़ों व तूफानों से टकराने के लिए शेष रह गई थी. पापा थे, तो यही सफर कितना आनंददायक लगता था. उन की मृत्यु के बाद लगने लगा था कि जिस गाड़ी में हम बैठे हैं उस का चालक नहीं है और टेढे़मेढे़ रास्तों से गुजरती हुई यह गाड़ी हमें खींचे ले जा रही है.

समाचार पाते ही सब नातेरिश्तेदार इकट्ठे हो गए थे. सभी ओर दार्शनिकताभरे दिलासों की भरमार थी, ‘जिंदगी का कोई भरोसा नहीं. बेचारे अच्छेखासे गए थे, क्या मालूम था लौटेंगे ही नहीं आदि.’

जो कोई भी घर में आता, हम बच्चों को छाती से चिपका कर रो उठता. घर की दीवारों को भी चीरने वाला क्रन्दन कई दिनों तक घर में छाया रहा.

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लेकिन दीदी को न तो किसी ने छाती से लगाया, न ही वे दहाडें़ मार कर रोईं. उन का विकसित यौवन, गदराई देह और मांसल मांसपेशियां उन्हें छाती से चिपकाने के लिए प्रत्येक परिचितजनों को कुछ देर सोचने को विवश कर देतीं और छाती से दीदी को चिपकाने के लिए उठे उन के हाथ सहसा ही पीछे हट जाते. न तो दीदी को किसीने दुलरायाचिपकाया, न ही वे दहाड़ें मारमार कर रो सकीं, सूनीसूनी आंखें, उदास व भावहीन चेहरा लिए वे जहां बैठी होतीं, वहीं बैठी रहतीं.

जिस किसी की भी नजर उन पर पड़ती, उन्हें देख कर कुछ चिंतित सा हो उठता. किसी दूसरे के कान में जा कर कुछ फुसफुसाता. दीदी के कानों में यद्यपि कुछ न पड़ता पर उस फुसफुसाहट की अस्पष्ट भाषा वे अच्छी तरह समझ लेतीं. उन्हें लगने लगा था जैसे कि अपने घर की चारदीवारी में वही सब से अधिक पराई हो गई हैं.

तेरहवीं तक यह फुसफुसाहट कुछ गुमसुम सी भाषा में रही, पर 14वें दिन में ही वह स्पष्ट शब्दों में सुनाई देने लगी, ‘जवान लड़की है, इस के हाथ पीले हो जाते तो सरला का एक भारी बोझ उतर जाता.’ तब निश्चय ही दीदी के अकेलेपन को घर के सदस्यों के बीच पैदा होते हुए मैं ने देखा था. पापा के बिना दीदी एकदम अकेली पड़ गई थीं. मां को तसल्ली देने वाले बहुत थे पर उन का सहयोग कभी भी दीदी को नहीं मिल पाया था.

पापा के जाते ही मां की आंखों में घर के आंगन के बीच दीदी एक बड़ा भारी पत्थर बन गई थीं. लगता था, दीदी के भार का गम मां के लिए पापा की मृत्यु के भार से भी अधिक असहनीय हो गया था. यही कारण था कि दीदी के लिए सबकुछ अचानक ही पराया हो गया था, शायद दूसरों पर अपने बोझ का एहसास भी वे स्वयं करने लगी थीं.

मझली दीदी भी तो थीं. पापा तो उन के भी चले गए थे, मेरे भी और अमर के भी. हम सब के पापा नहीं थे तो घरआंगन तो वही था. पर दीदी के लिए तो घरआंगन भी पराए हो गए थे, इसीलिए कुछ ही दिनों में दीदी अपनी सारी चंचलता खो कर जड़ हो गई थीं.

परंतु जड़ होने का मतलब दीदी के लिए जीवन के प्रति निष्क्रिय होना नहीं था. यह बात दूसरी थी कि वे अपने बोझ को मां के सिर से उतारने की चिंता में अपनी उम्र से कहीं अधिक समझदार व परिपक्व हो गई थीं, इसीलिए घर में चर्चा किए जाने वाले किसी  भी सुझाव का विरोध उस समय उन्होंने नहीं किया. ताऊजी बैठते, चाचाजी भी साथ देते, चाची व ताई भी राय देतीं, मां गुमसुम उन की हां में हां मिलातीं.

‘‘इंश्योरैंस कितना है?’’

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‘‘पीएफ?’’

‘‘बैंक बैलेंस कुछ है?’’ आदि प्रश्न पूछे जाते.

‘‘सब जोड़ कर 20 लाख रुपए होते थे. यह तो अच्छा है कि सिर छिपाने को बापदादा का बनाया यह पुराना मकान है. अब इन 20 लाख रुपयों में से खींचतान कर के भले घर का कोई लड़का देख कर रागिनी के हाथ पीले कर ही दो. एक की नैया तो पार लगे. जवान लड़की है, तुम कहां तक देखभाल करोगी? दीपा तो अभी 4-5 साल तक ठहर सकती है, सुधी के वक्त तक अमर संभाल ही लेगा,’’ ताऊजी इन शब्दों के साथ ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझते.

मां केवल गरदन हिला कर स्वीकृति दे देतीं. मेरे अंदर बोलने को कुछ कुलबुलाता, परंतु इतने बुजुर्गों के सम्मुख हिम्मत न होती. ‘आज क्या दीदी ही सब से बड़ा बोझ बन गई हैं, केवल 17 साल की उम्र में ही? क्या होगा उन के उन सपनों का जो पापा ने उन्हें दिखाए थे?’

पापा थे, तो दीदी का अस्तित्व ही घर में सर्वोपरि था. क्याक्या नहीं सोच डालते थे पापा दीदी को ले कर, ‘अपनी बेटी को डाक्टर बनाऊंगा, फिर लंदन भेजूंगा, वहां से स्पैशलिस्ट बन कर आएगी. खूब औपरेशन किया करेगी. महिलाओं की भीड़ से घिरी रहेगी मेरी बिटिया. एक शानदार प्राइवेट अस्पताल बनाएगी अपने लिए. बस, फिर यह सभी को संभाल लेगी. एक से बढ़ कर एक होंगे मेरे बच्चे.’

‘रहने भी दो, किस दूसरी दुनिया में घूमते रहते हैं आप भी, क्यों भूल जाते हैं कि बेटी तो पराया धन होती है.’

‘ऊंह, मैं अपनी रागिनी को कहीं नहीं भेजूंगा. जिसे गरज होगी वही शादी करेगा इस से. मैं थोड़े ही किसी की खुशामद करने वाला हूं. फिर वह रहेगा भी यहीं, इसी के साथ.’ वे दीदी को झटक कर अपनी गोद में बैठा लेते और उन के बाल सहलाने लगते. तब दीदी रही होंगी यही 12-13 वर्ष की. तब पापा के चेहरे से लगता उन की हर खुशी वही थीं. इतने संतुष्ट और प्रसन्न दिखाई देते जैसे कि उस खुशी से परे उन्हें कुछ और चाहिए ही नहीं था.

सतत ही तो थी पापा की वह खुशी. संतान जब गुणवान हो तो किसे प्रसन्नता नहीं होती? रागिनी दीदी को तो न जाने किन हाथों से रचा गया था कि किसी भी गुण से अछूती नहीं हैं. वे देखने में सुंदर, पढ़ाई में निपुण व कलाओं में प्रवीण, क्या घर क्या बाहर, सब जगह ही दीदी की धाक रहती.

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पापा अकसर डांस प्रोग्राम करवाते, जिस में रागिनी दीदी स्टार डांसर होती थीं. उन के साथ दीपा दीदी व महल्ले की अन्य लड़कियां भी डांस प्रस्तुत करती थीं.

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Serial Story: हार गयी दीदी (भाग-3)

इंटर तक दीदी के पास साइंस तो थी ही, उन्होंने मैडिकल प्रवेश परीक्षा पास कर ली और उन्हें आगरा के मैडिकल कालेज में प्रवेश मिल गया और वे अपनी प्रतिभा के कारण हर वर्ष एकएक सीढ़ी चढ़ती चली गईं. जीजाजी इंडियन एयरलाइंस में पायलट के पद पर कार्यरत थे. अकसर कईकई दिनों तक वे बाहर चले जाते. दीदी का समय अपनी पढ़ाई व कालेज में बीतता. कितने सुचारु ढंग से चल रहा था दीदी का जीवन.

डाक्टर बन कर दीदी कालेज से निकलीं तो जीजाजी ने उस खुशी में एक बड़ी पार्टी का आयोजन किया था. उस दिन जीजाजी खुशी के कारण अपने होशोहवास भी खो बैठे थे. सब के बीच दीदी को बांहों में भर कर उठा लिया था, ‘आज मुझे लग रहा है, मैं खुशी से पागल हो जाऊंगा. इसलिए नहीं कि हमारी श्रीमतीजी डाक्टर बनी हैं, बल्कि इसलिए कि हमारे दिवंगत ससुरजी की इच्छा पूर्ण हो गई है. उन की बेटी डाक्टर बन गई है. वे रागिनी को डाक्टर बनाना चाहते थे.’

सभी लोगों ने उन के हृदय की सद्भावना को देख कर तालियां बजाई थीं. दीदी लाज के मारे दोहरी हुई जा रही थीं. उस समय जीजाजी ने अमर व हम दोनों बहनों को भी बुलाया था. कितने ही ढेर सारे उपहार लिए हम प्रसन्नतापूर्वक लौट आए थे.

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फिर एक घटना और घटी, कितनी अनचाही, कितनी अवांछित. जीजाजी का विमान दुर्घटनाग्रस्त हो कर आग की लपटों में समां गया था, साथ ही, सभी यात्री और जीजाजी की कंचन काया भी. जिस ने भी सुना वही जड़ हो गया. अम्मा ने माथा पीट लिया. हम सब बहनभाई एकदूसरे को ताकते भर रह गए, एकदम जड़ और शून्य हो कर.

दीदी अपना वैधव्य बोझ लिए फिर घर लौट आईं. वैधव्य दुख हृदय में होने पर भी अब की बार दीदी के चेहरे पर एक गहन आत्मविश्वास का भाव था, क्योंकि अब वे घर का बोझ बन कर नहीं, घर के बोझ को हलका करने की शक्ति हाथों में लिए आई थीं.

जीजाजी के पैसों से दीदी ने अपना क्लिनिक बनवाना आरंभ कर दिया. साथ ही, एक दुकान किराए पर ले कर महिलाओं व बच्चों का इलाज भी करने लगीं. गृहस्थी की जो गाड़ी हिचकोले खाती चल रही थी, वह फिर से सुचारु रूप से चलने लगी. पापा की जगह दीदी ने संभाल ली. हर कार्य दीदी की सलाह से होने लगा.

दीदी के प्रति मां के बरताव में धीरेधीरे अंतर आने लगा. वे उन्हें अपने बड़े लड़के की उपाधि देने लगीं. सभी खुश थे, परंतु मझली दीदी अपना स्थान छिन जाने के कारण रुष्ट सी रहतीं, यद्यपि रागिनी दीदी ने अपने अधिकार का दुरुपयोग कभी नहीं किया. हम सब की खुशी को ही उन्होंने अपनी खुशी समझा था. दीपा दीदी के ढेर सारे पुरस्कारों को देख कर उन्होंने खुशी से कहा था, ‘‘अरे, दीपा, तूने तो कमाल कर दिया. इतने पुरस्कार जीत लिए. तू तो वास्तव में ही छिपी रुस्तम निकली.’’

‘‘सच पूछो तो दीदी, इस का श्रेय अमित को है. जानती हो वह आजकल अच्छेअच्छे ड्रामों का निर्देशक है. पुणे से कोर्स कर के आया है. उसी के सही निर्देशन में मैं ने ये ढेर सारे पुरस्कार …’’

बीच में ही दीदी ने दीपा दीदी को अपने अंक में भर लिया था, ‘‘मैं तो पहले ही जानती थी कि अमित के लिए उस की कला केवल शौक ही नहीं, नशा है. कितनी प्रसन्नता की बात है कि वही अमित तुझे साथ ले कर चला है.’’

अमित तब अकसर घर आने लगा था. जब भी किसी ड्रामे या प्रोग्राम की तैयारी करनी होती वह दीपा दीदी को लेने आ पहुंचता और फिर छोड़ जाता. सांस्कृतिक कार्यक्रमों की तैयारी में रात को कभी एक बजा होता तो कभी इस से भी अधिक देर हो जाती.

महल्लेभर में दीपा दीदी और अमित के बारे में बातें होने लगी थीं. एक दिन मां ने ही रागिनी दीदी से कहा, ‘‘बहुत दिनों से सुनती आ रही हूं, रागिनी ये सब बातें. लोग ठीक ही तो कहते हैं, जवान लड़की है, इतनी रात गए तक वह इसे छोड़ने आता है. सोचती हूं, अब दीपा के हाथ भी पीले कर देने चाहिए.’’

दीदी ने लापरवाही से एक हंसी के साथ कहा था, ‘‘मां, लोग जिस ढंग से सोचते हैं न, एक कलाकार उस ढंग से नहीं सोच सकता, क्योंकि उसे तो केवल अपनी कला की ही धुन होती है. अमित को मैं अच्छी तरह जानती हूं, रात को दीपा यदि उस के संरक्षण में घर लौटती है तो ठीक ही करती है.’’

‘‘तू तो अपने बाप से भी दो अंगुल बढ़ कर है. उन्होंने क्या कभी सुनी थी मेरी, जो तू सुनेगी?’’ मां ने खीझ कर कहा था.

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‘‘पापा ने भी तो कभी गलत नहीं सोचा था. जो कुछ भी वे सोचते थे, कितना सही होता था.’’ दीदी के उत्तर से मां निरुत्तर हो गई थीं.

एक दिन पापा की ही तरह उन्होंने मुझ से और दीपा से डांस प्रोग्राम करने का अनुरोध किया. वे मेरी छूटी हुई कला को मुझ से फिर जोड़ना चाहती थीं. दूसरे अमित व दीपा के डांस के समय पारस्परिक हावभाव कैसे रहते हैं, इस का अंदाजा भी करना चाहती थीं.

दीपा दीदी ने अमित से दीदी की इच्छा बताई तो वह पूर्ण उत्साह से तैयारी में जुट गया. एक छोटे से ड्रामे की तैयारी भी साथ ही होने लगी. महल्लेभर में खुशी की लहर दौड़ गई.

हीरोइन थी दीपा दीदी. उन के मेकअप के लिए अमित के वही सुझाव. दीपा दीदी के मुख पर विजयभरी मुसकान दौड़ जाती. उधर मेरी आंखों के आगे रागिनी दीदी का लाज से सकुचाया वही चेहरा घूम जाता, जब वे स्वयं दीपा दीदी के स्थान पर होती थीं. मैं कई बार सोच कर रह जाती, ‘रागिनी दीदी चाहें तो अब भी अमित को पा सकती हैं.’

परंतु दीदी को अपने से ज्यादा चिंता हम सब की थी, इसलिए उन्होंने उस ओर कभी सोचा ही नहीं. कभी सोचा भी होगा तो दीपा की खुशी उन्हें अपनी खुशी से भी अधिक प्यारी लगी होगी. अपने को भुला कर वे सादी सी सफेद साड़ी में, हाथ में स्टेथोस्कोप लिए घर से क्लिनिक और क्लिनिक से घर भागती रहतीं. केवल कुछ क्षणों का विश्राम. रात को भी पूरी नींद नहीं सोतीं, कभी कोई डिलिवरी केस अटैंड कर रही हैं तो कभी कोई सीरियस केस.

हमारा सब का जीवन पटरी पर लौट आया था. वही सब पुराने ठाटबाट. घर में नौकरचाकरों की व्यवस्था, मां के लिए अच्छी से अच्छी खुराक व दवाई का प्रबंध, मेरी व अमर की पढ़ाई फिर से सुचारु रूप से चालू हो गई थी. घर में ट्यूशन का प्रबंध हो गया. दीपा दीदी की प्रतिदिन की नईनई पोशाकों व शृंगार प्रसाधनों की मांग की पूर्ति हो जाती, परंतु रागिनी दीदी?

उन्हें एक दिन अमित के साथ कहीं बाहर जाते देखा था. मरीजों से जबरदस्ती छुट्टी पा कर वे अमित के साथ उस की गाड़ी में गई थीं और कुछ ही घंटों बाद लौट भी आई थीं. तब दीपा दीदी को बहुत बुरा लगा था, ‘‘मैं तो कार्यवश उस के साथ जाती हूं. इन्हें भला दुनिया क्या कहेगी कि विधवा हो कर एक कुंआरे लड़के के साथ…’’ उस दिन मां का गुस्से से कांपता हाथ दीपा दीदी के गाल पर चटाख से पड़ा था, ‘‘ऐसी बातें कहती है बेशर्म उस के लिए? तू अभी भी समझ नहीं पाई है उसे. मैं जानती हूं वह क्यों गई है.’’

सप्ताहभर बाद ही जब रागिनी दीदी ने घर में यह घोषणा की कि वे दीपा का विवाह अमित से करेंगी तो मझली दीदी का चेहरा आत्मग्लानि से स्याह पड़ गया था.

दीदी ने बड़े चाव और उत्साह से दीपा दीदी के साथ जा कर एकएक चीज उस की पसंद की खरीदी. अम्मा व हम सब देखते रहते. दीदी कभी बाजार जा रही हैं तो कभी क्लिनिक, कभी इधर भाग रही हैं तो कभी उधर. उन के थके चेहरे को देख कर अम्मा बोली थीं, ‘‘ऐसे तो तू चारपाई पकड़ लेगी. इतना क्यों थकती है? दीपा तो अपना सामान स्वयं खरीद कर ला सकती है.’’

‘‘उस के लिए यह दिन फिर कभी नहीं आने वाला है, मां. वह लाएगी तो ऐसे ही लोभ कर के सस्ता सामान उठा लाएगी, मैं जानती हूं इस कंजूस को.’’ दीपा दीदी के सब से अधिक फुजूलखर्च होते हुए भी दीदी ने ठीक पिताजी वाले अंदाज से कंजूस बना दिया था.

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मेहमानों से घर भर गया. चारों ओर चहलपहल थी. दीदी ने सब इंतजाम कर दिए थे. सभी रिश्तेदार दीदी की प्रशंसा करते नहीं थक रहे थे, ‘ऐसी बेटी के सामने तो अच्छेअच्छे लड़के भी नहीं ठहर पाएंगे.’

‘कौन लड़का करता है आजकल मां व बहनभाइयों की इतनी परवाह?’ चारों ओर यही चर्चा.

विवाह संपूर्ण रीतिरिवाजों के साथ संपन्न हो गया. विदाई का समय हो गया है. दीपा दीदी कार में अमित के पास बैठीं तो उन्होंने एक विजयभरी मुसकान लिए दीदी की आंखों में झांका. उस मुसकान से दीदी का चेहरा एक अद्भुत प्रसन्नता से खिल उठा, जिसे दीपा दीदी आजीवन समझ न पाएंगी. वह प्रसन्नता एक ऐसे खिलाड़ी की प्रसन्नता थी जो अपने साथी की जीत को खुशी प्रदान करने के लिए स्वयं अपनी हार स्वीकार कर लेता है, परंतु अपने साथी को यह विदित भी नहीं होने देता कि वह जानबूझ कर हारा है.

पोपटलाल की शादी का जश्न मनाएंगे गोकुलधाम सोसायटी के मेंबर, पढ़ें खबर

सब टीवी का सुपरहिट शो तारक मेहता का उल्टा चश्मा (Taarak Mehta ka Ooltah Chashmah) आए दिन फैंस को एंटरटेन करता है. वहीं मेकर्स भी दर्शकों के लिए आए दिन नए-नए ट्रैक लाते रहते हैं, जिसके कारण शो की टीआरपी भी अच्छी बनी रहती है. इसी बीच शो के ट्रैक की बात करें तो इन दिनों पोपटलाल की शादी को लेकर ड्रामा देखने को मिल रहा है. वहीं अब इस पोपटलाल की शादी को लेकर नया खुलासा होने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे.

पोपट लाल ने की शादी

सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ की अब तक की कहानी में आपने देखा कि जेठालाल (Dilip Joshi) और तारक मेहता (Shailesh Lodha) समेत गोकुलधाम सोसायटी के लोग पोपटलाल की पत्नी के मिलने से सभी बैचेन हैं. सभी को लग रहा है कि पोपटलाल ने शादी कर ली है.

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पोपटलाल को सरप्राइज देने का बनाया प्लान

पोपटलाल की शादी के जश्न को लेकर जल्द ही सोसायटी की महिलाओं ने पोपट लाल और उनकी पत्नी को सरप्राइज देने का प्लान बना लिया है. गोकुलधाम सोसायटी के सभी लोगों ने फैसला किया है कि वो पोपटलाल की शादी का जश्न मनाएंगे, जिसके बाद सोसायटी के लोग चोराछिपे सोसायटी में जश्न की तैयारियों में जुट जाते हैं. इसी बीच, सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ के आने वाले एपिसोड में सोसायटी के लोगों को जोरदार झटका लगने वाला है.

बता दें, शो में टप्पू के रोल में नजर आ चुके भव्य गांधी ने हाल ही में मीडिया को अपने शो छोड़ने का कारण बताया है. दरअसल, खबरें थें कि भव्य गांधी को शो से निकाला गया है. हालांकि भव्य गांधी ने इन खबरों को अफवाह बताते हुए कहा है कि उनके शो छोड़ने की वजह कुछ और थी. उन्हें शो से निकाला नही गया था.

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