Serial Story: विषपायी (भाग-2)

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आशीष पेशे से एक डाक्टर थे. उन की शादी नंदिता नाम की एक लड़की से हुई, जो खुद एक अच्छी कंपनी में सीनियर मैनेजर के पद पर कार्य कर रही थी. शादी के बाद आशीष पत्नी नंदिता की उदासी से परेशान थे. बिस्तर पर भी नंदिता एक संपूर्ण स्त्री की तरह आशीष से बरताव नहीं करती थी. एक दिन आशीष ने नंदिता से जोर दे कर कारण पूछा, तब नंदिता ने बताया कि वह एक व्यक्ति से प्रेम करती है और उस के प्यार में पागल है. आश्चर्य की बात तो यह थी कि जिस व्यक्ति से नंदिता प्रेम करती थी वह शादीशुदा था. यह सुन कर आशीष के पैरों तले जमीन खिसक गई. एक दिन क्लीनिक पर उस से एक महिला मिलने आई.

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आशीष ने काफी सोचविचार किया. ऐसी परिस्थिति में उन के पास बस 2 ही विकल्प थे-नंदिता को पूरी तरह से आजाद कर दें ताकि वह अपने ढंग से अपनी जिंदगी निर्वाह कर सके या फिर उसे अपने साथ रख कर उस का किसी मनोवैज्ञानिक से इलाज करवाएं. यह स्थिति उन के लिए काफी कठिन और यंत्रणादायी होती.  वे तिलतिल कर घुटते और नंदिता का छल उन के मन में एक कांटे की तरह आजीवन खटकता रहता. फिर भी नंदिता को सुधरने का मौका दे कर वे महान बन सकते थे. वे इतने दयालु तो थे ही, परंतु सब कुछ करने के बाद भी अगर वह नहीं ठीक हुई तो… तब वे अपनेआप को किस प्रकार संभाल पाएंगे. यह क्या कम दुखदाई है कि उन की पत्नी किसी परपुरुष के साथ पूरी ऊष्मा के साथ पूरा दिन बिताने के बाद उन के साथ रात में बर्फ की सिला की तरह लेट जाती है जैसे उस का कोई वजूद ही नहीं है, पति के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है.

इस स्थिति को क्या वे अधिक दिन तक बरदाश्त कर पाएंगे? और जब कभी उन के बच्चे होंगे, तो क्या वे अपनेआप को समझा पाएंगे कि वे बच्चे उन के ही वीर्य से उत्पन्न हुए हैं? यह जांचने के लिए वे डीएनए तो नहीं करवाते फिरेंगे? जीवन भर वे संशय और अनजानी चिंता के भंवर में डूबतेउतराते रहेंगे.

पत्नी के परपुरुष से संबंध कितने कष्टदाई होते हैं, यह केवल डाक्टर आशीष समझ रहे थे. यह एक ऐसी सजा होती है, जो मनुष्य को न तो मरने देती है और न ही जीने.  आशीष ने कहा, ‘‘तुम क्या चाहती हो? सब कुछ मैं तुम्हारे ऊपर छोड़ता हूं. अगर तुम अपने को सुधार सको, तो मैं तुम्हें अपने साथ रखने को तैयार हूं. अगर नहीं तो तुम मेरी तरफ से स्वतंत्र हो. जो चाहे कर सकती हो.’’  नंदिता ने निर्णय लेते हुए कहा, ‘‘मैं प्रयास करती हूं. हालांकि आप से रिश्ता तय होने के बाद भी मैं ने प्रयास किया था और आप से शादी होने के बाद भी मैं उस के साथ अपना संबंध तोड़ने की जद्दोजहद करती रही हूं. यही कारण था कि मैं घर में आप से सामान्य व्यवहार न कर सकी. देखती हूं, शायद मैं उस से छुटकारा  पा सकूं.

दोनों का रिश्ता कुछ दिन तक टूटने से बच गया. नंदिता ने अपने औफिस से लंबी छुट्टी ले ली ताकि वह उस व्यक्ति से दूर रह सके. परंतु आधुनिक युग के संचार माध्यमों के कारण आदमी की निजता काफी हद तक समाप्त हो गई है. नंदिता ने कोशिश की कि वह घर के कामों में अपने को व्यस्त रखे. टीवी देख कर अपने मन को इधरउधर भटकने से रोके और पुस्तकें पढ़ कर समय गुजारे, परंतु मोबाइल की दुनिया में उस के लिए यह संभव नहीं था.  उस व्यक्ति का पहली बार फोन आया तो उस ने नहीं उठाया, उस ने एसएमएस किया, तो भी ध्यान नहीं दिया, परंतु कब तक? लगातार कोई फोन करे, एसएमएस करे, तो दूसरा व्यक्ति उस से बात करने के लिए बाध्य हो ही जाता है.

उस ने बात की तो उधर से आवाज आई, ‘‘क्या बात है? क्या हो गया है तुम्हें? न फोन उठाती हो न स्वयं फोन करती हो? कोई जवाब नहीं? आखिर हो क्या गया है तुम्हें? स्वर में अधिकार भाव था.  ‘‘प्रजीत, तुम समझने की कोशिश क्यों नहीं करते? अब मैं शादीशुदा हूं. मेरे लिए अब इस संबंध को आगे कायम रख सकना संभव नहीं है.’’

उधर कुछ देर चुप्पी रही. फिर स्वर उभरा, ‘‘अच्छा, एक बार मिल लो, फिर मैं सोचूंगा.’’

‘‘पक्का, तुम मेरा पीछा छोड़ दोगे?’’ नंदिता चहक कर बोली.

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‘‘हां,’’ उधर से भी प्रसन्नता भरी आवाज आई, ‘‘मैं तुम्हें इसी तरह चहकते हुए देखना चाहता हूं.’’

दिन का समय था. आशीष अपने अस्पताल में थे. नंदिता के पास काफी समय था. वह तैयार हो कर गई, परंतु जब उस व्यक्ति से मिल कर लौटी, तो वह खुश नहीं थी. वह अंदर से टूट गई थी. रो रही थी, परंतु उस का रोना किसी को दिखाई नहीं दे रहा था. रात में आशीष को बिना बताए पता चल गया कि नंदिता के साथ दिन में बहुत कुछ घट  चुका है. उस रात आशीष ने उस के साथ संबंध बनाते हुए अपने को रोक लिया. वह शौक जैसी स्थिति में थी. पूछा, ‘‘तुम उस के पास गई थीं?’’  नंदिता खुद को रोक नहीं सकी. फफक कर रो पड़ी, ‘‘आप जो चाहें मुझे सजा दें. मैं आप की गुनहगार हूं, परंतु सच यह है कि मैं उसे नहीं छोड़ सकती और न ही वह मुझे छोड़ सकता है.’’

‘‘तो फिर तुम मुझे छोड़ दो,’’ आशीष ने अंतिम निर्णय लेते हुए कहा.

नंदिता ने कोई उत्तर नहीं दिया. बस भीगी आंखों से आशीष के चेहरे को देखती रही. आशीष समझ नहीं पा रहा था, नंदिता किस तरह की औरत है और उस के मन में क्या है? क्यों वह जानबूझ कर आग में कूद रही है? कोई इस तरह अपने जीवन को बरबाद करता है क्या?

‘‘ठीक है,’’ अंत में नंदिता ने कहा. उस के स्वर में कोई अपराधबोध नहीं था. संभवतया उस ने स्वयं आशीष से पीछा छुड़ाने का निर्णय ले लिया, परंतु उसे आशा नहीं थी कि आशीष इतनी आसानी से उसे छोड़ने पर मान जाएंगे.

उन दोनों ने आपस में सलाह ली और परिजनों एवं खास रिश्तेदारों की मौजूदगी में बिना वास्तविक कारण बताए तलाक की सहमति पर मुहर लगा दी.  नंदिता से अलग हो आशीष टूटे नहीं, परंतु जहर का एक लंबा कड़वा घूंट पी कर रह गए. नंदिता के जहर को वे पी तो गए, परंतु उस का असर उन के दिलोदिमाग में अभी तक छाया था. बहुत कोशिश की उबरने की, परंतु उबर नहीं पाए. वे गुड़गांव की नौकरी छोड़ कर लखनऊ चले आए. कुछ दिन तक घर पर बिना किसी काम के रहे. मातापिता ने भी उन्हें कुछ करने की सलाह नहीं दी, परंतु कोई भी व्यक्ति निष्क्रिय रह कर जीवन नहीं गुजार सकता, चाहे कितना ही साधनसंपन्न क्यों न हो. निष्क्रियता मनुष्य को बीमार बना देती है.

आशीष कुछ सामान्य हुए तो मातापिता की सलाह पर अपना एक क्लीनिक खोल लिया. वह चल निकला तो फिर दूसरी शादी के लिए मातापिता जोर देने लगे. वे दूसरी बार जहर पीने के लिए तैयार नहीं थे, परंतु मातापिता ने उन्हें दुनिया की ऊंचनीच समझाई. समाज में रहते हुए व्यक्ति अकेला नहीं रह सकता. पेड़ केवल तने के सहारे नहीं जी सकता. उसे सहारे के लिए चारों तरफ फैली शाखाएं,  पत्ते और फूल चाहिए. उसी तरह मनुष्य का जीवन है. उसे अपने जीवन में खुशियों के लिए आमदनी के साथसाथ परिवार भी चाहिए, जिस में पत्नी के साथसाथ हंसतेखिलखिलाते बच्चे भी चाहिए. संसार में सभी जीवजंतुओं का यही जीवनचक्र है.

आशीष स्वभाव के पेचीदे नहीं थे. जीवन को सरल और सहज भाव से जीना जानते थे. मातापिता की सलाह से उन्होंने दोबारा शादी कर ली. इस बार इतना ध्यान रखा कि लड़की कामकाजी न हो, बस पढ़ीलिखी हो.  दिव्या उस समय एलएलबी कर रही थी जब आशीष के लिए उस के रिश्ते की मांग किसी रिश्तेदार के माध्यम से पहुंची. दिव्या को आशीष के साथ रिश्ते में कोई एतराज नहीं था. बस वह चाहती थी कि कभी जरूरत पड़ी तो उसे वकालत की प्रैक्टिस करने से मना न किया जाए. यह कोई बहुत बड़ा मुद्दा नहीं था. जरूरत पर पतिपत्नी एकदूसरे का साथ देते हैं और पारिवारिक जिम्मेदारियों के साथसाथ आर्थिक जिम्मेदारी भी वहन करते हैं.

आज आशीष अपनी पत्नी और एक बेटे के साथ खुश हैं. बेटा लगभग 5 साल का है और स्कूल जाने लगा है. दिव्या परिवार और बच्चे की जिम्मेदारी पूरी ईमानदारी से निभा रही है. आशीष के मातापिता लखनऊ में ही अपने पुश्तैनी मकान में अलग रहते हैं. जबकि आशीष अपनी पत्नी और बच्चे के साथ गोमती नगर में अपने बनाए मकान में रहते हैं.  वे सभी एकसाथ रह सकते थे और इस में किसी को कोई एतराज भी नहीं था, परंतु आशीष के मम्मीपापा चाहते थे कि बड़े हो कर बच्चे अपने ढंग से स्वतंत्र रूप से रहें तो उन में आत्मविश्वास और जीवन के प्रति सजगता आती है. पर किसी मुसीबत की घड़ी में वे सब  एकसाथ होते.

दिव्या के साथ 8 साल के उन के दांपत्य जीवन में कभी कटुता के क्षण नहीं आए थे. दिव्या से शादी के 2 वर्ष पूर्व उन्होंने जो जहर पीया था, उस का असर धीरेधीरे कम हो गया था, परंतु आज 10 साल बाद जब वे अपने सुखमय जीवन में पत्नी और बेटे के साथ खुश और प्रसन्न थे कि अचानक वह जहर की शीशी फिर से उन के हाथ में आ गई थी.  नंदिता आज उन से मिलने आई थी, किसलिए…? क्या चाहती है वह उन से? उन  का अब एकदूसरे से क्या संबंध है? किस  कारण उस ने उन के पास आने की हिम्मत  बटोरी है? कोई न कोई खास बात अवश्य होगी. जब तक नंदिता के मन को वे फिर से नहीं पढ़ेंगे, उन के मन में उठने वाले सवालों के जवाब नहीं मिल पाएंगे.

वे चाहते तो नंदिता से मिलने के लिए साफसाफ मना कर देते, परंतु वे इतने कोमल मन हैं कि अपने कातिल का भी दिल नहीं दुखा सकते. वे साफ मन से नंदिता से मिलने के लिए तैयार थे, उस की बात सुनना चाहते थे और जानना चाहते थे कि वह उन से क्या चाहती है? शाम को 6 बजे जब आशीष अपने क्लीनिक पहुंचे तो नंदिता वहां पहले से मौजूद  थी. उन्हें देखते ही उस के चेहरे पर अनोखी चमक आ गई. वे भी हलके से मुसकराए और अपने कैबिन में चले गए. पीछेपीछे नंदिता को आने का इशारा किया.

वे अपनी कुरसी पर बैठ गए तो नंदिता भी बेतकल्लुफी से उन के सामने वाली कुरसी पर बैठ गई. इस समय उस के चेहरे पर उदासी की कोई छाया नहीं थी. वह बनसंवर कर भी आई  थी और सुंदर लग रही थी. उस की चमकती आंखों में एक प्यास सी जाग उठी थी. यह कैसी प्यास थी, डाक्टर आशीष समझ न पाए. वे समझना भी नहीं चाहते थे. अत: उन्होंने उस के चेहरे से नजरें हटा कर पूछा, ‘‘हां, कहो कैसी हो?’’

नंदिता ने एक ठंडी सांस ली और फिर कशिश भरी आवाज में बोली, ‘‘अभी भी आप को मेरी चिंता है?’’  नंदिता का यह प्रश्न व्यर्थ था. उन्होंने पूछा, ‘‘तुम्हें मेरा पता कहां से मिला?’’ अब वे अनौपचारिक हो गए थे और नंदिता को तुम कह कर बुलाने लगे थे.

‘‘आज के जमाने में यह कोई मुश्किल काम नहीं है. लगभग हर पढ़ालिखा व्यक्ति सोशल मीडिया में घुसा हुआ है. फेसबुक से आप का पता मिला और फिर…’’

‘‘अच्छा बताओ, क्यों मिलना चाहती थी?’’ उन्होंने बिना किसी लागलपेट के पूछा.

नंदिता ने अपनी आंखें झुका कर कहा, ‘‘आप अन्यथा मत लेना, परंतु मेरे पास और कोई चारा नहीं था. मैं ने आज यह समझ लिया है, जो व्यक्ति अपनी जवानी में अनैतिक कार्य करता है, समाज के नियमों के विपरीत कदम उठाता है, परिवार और दांपत्य जीवन की निष्ठा को नहीं समझ पाता, वह एक न एक दिन अवश्य घोर कष्ट उठाता है.

‘‘अपनी जवानी के नशे में चूर मैं जिसे सोना समझती थी, वह मिट्टी का ढेला निकला. जिस के लिए मैं ने आप को, अपने मम्मीपापा और सभी रिश्तों को ठुकरा दिया, वही एक दिन मुझे ठुकरा कर चला गया. क्यों गया, यह कहना बेमानी है.

इस जगत में जिन रिश्तों का कोई आधार नहीं होता, वे बहुत जल्दी टूट जाते हैं. उसे लगा कि उस ने मेरे सौंदर्य और यौवन का सारा रस चूस लिया है, तो वह मुझ से अलग होने के तमाम बहाने गढ़ने लगा और एक दिन ऐसा आया कि उस ने साफसाफ कह दिया कि वह मुझ से कोई संबंध नहीं रखना चाहता. आज मेरे पास नौकरी नहीं है, पैसा नहीं है. उस के चक्कर में सब कुछ गंवा बैठी. बताओ, अब मैं कहां जाती?’’

आशीष ने उस के विगत जीवन के बारे में नहीं पूछा था. न वे पूछना चाहते थे. नंदिता के जीवन से उन्हें क्या लेनादेना था. वह उन की कौन थी. कोई भी तो नहीं, बस देखा जाए तो उन के बीच मानवीय संबंधों के अलावा और कोई संबंध नहीं था.  नंदिता अपने विगत के बारे में स्वयं बता रही थी, यह उस की इच्छा थी. उन्होंने चुपचाप सुन लिया, कोई टिप्पणी नहीं की. नंदिता को ठोकर लगने के बाद अगर अक्ल आई है, तो इस का अब कोई मतलब नहीं है.  एक बार रिश्ते बिगड़ जाते हैं, तो वे बनते नहीं हैं. अगर बनते भी हैं, तो कोई न कोई गांठ उन के बीच में पड़ जाती है, जो निरंतर खटकती रहती है. क्या नंदिता उन के पास पुराने रिश्तों को जोड़ने आई थी या ठोकर खा कर सहानुभूति प्राप्त करने? उन की सहानुभूति से वह क्या हासिल करना चाहती?

उन्होंने कोई प्रश्न नहीं किया, नंदिता स्वयं बताती रही, ‘‘अपनी परेशानियों के बारे में बहुत ज्यादा बता कर मैं आप को परेशान नहीं करूंगी. बस इतना कहने के लिए आई हूं कि अब मैं इस भरे संसार में अकेली हूं. मम्मीपापा ने तभी मुझ से संबंध तोड़ लिया था, नातेरिश्तेदार मुझे फूटी आंख नहीं देखना चाहते. यारदोस्त भी अलग हो गए. उस ने मेरी नौकरी भी छुड़वा दी थी.

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दिल्ली में चारों तरफ मुझे अंधेरे के सिवा कुछ दिखाई नहीं दे रहा था. वहां जब मुझे कोई किनारा नहीं मिला तो मुझे आप की याद आई. मैं मानती हूं कि मैं ने आप को बहुत दुख दिया, इतना बड़ा दुख पा कर कोई किसी को माफ नहीं कर सकता, परंतु मुझे आप के मन की विशालता का पता है. आप ने भले ही मेरे कृत्यों के लिए मुझे माफ न किया हो, परंतु आप के दिल में मेरे प्रति कोई कटुता नहीं हो सकती. इसीलिए मैं हिम्मत कर के आप से मिलने आई हूं.’’  आशीष का दिल कराह उठा. क्या सचमुच नंदिता के मन में कोई अफसोस का भाव है? वह अपनी गलती का प्रायश्चित्त करने के लिए आई है? उन्होंने नंदिता को देखा जैसे कह रहे हों कि कहीं भी जाती, परंतु मेरे पास क्यों? प्रायश्चित्त  तो कहीं भी किया जा सकता है?  पर प्रत्यक्ष में कहा, ‘‘मुझे नहीं पता तुम्हारे मन में क्या है, परंतु दिल्ली बहुत बड़ी है. वहां प्रतिदिन लाखों लोग बिना किसी सहारे के अपनी आंखों में उम्मीदों के चिराग जला कर आते हैं. उन का कोई ठिकाना नहीं होता, शहर में कोई परिचित नहीं होता, फिर भी वे अपने लिए कोई न कोई ठिकाना ढूंढ़ लेते हैं.

तुम तो दिल्ली में पैदा हुई. न जाने कितने परिचित, दोस्त और रिश्तेदार हैं. सारे परिचित और रिश्तेदार इतने क्रूर और कठोर नहीं हो सकते कि तुम्हें सहारा न दे सकें. न भी देते तो तुम स्वयं इतनी पढ़ीलिखी हो, सक्षम हो कि अपने पैरों पर खड़ी हो सकती थी.’’

नंदिता ने आशीष को कुछ इस तरह देखा जैसे वे उस पर अविश्वास कर रहे हों. वह बोली, ‘‘आप शायद मेरा विश्वास न करें, परंतु मैं जानबूझ कर आप के पास आई हूं.’’

‘‘इस का कोई न कोई कारण अवश्य होगा?’’

‘‘हां, फिलहाल तो मुझे एक सहारे की जरूरत है. इस शहर में कहीं मेरा ठिकाना नहीं है. मैं आप को बहुत ज्यादा तकलीफ नहीं दूंगी. मैं स्वयं अपने पैरों पर खड़ी होना चाहती हूं. आप को मेरी थोड़ी मदद करनी होगी. दूसरा कोई मेरी मदद नहीं कर सकता. मुझे विश्वास है, आप मेरी जरूर मदद करेंगे.’’

‘‘कैसी मदद?’’ उन्होंने पूछा.

‘‘बस, रहने के लिए एक छोटा सा फ्लैट या मकान और जीविका के लिए एक

नौकरी? मैं अकेले अपना जीवन गुजार लूंगी.’’

‘‘अकेले गुजार लोगी?’’ वे शंकित थे.

‘‘कोशिश करूंगी, शादी नाम की संस्था मेरे लिए नहीं है और पुरुषों पर से मेरा विश्वास उठा चुका है.’’

आशीष ने उस की इस बात का कोईर् जवाब नहीं दिया, परंतु वे अच्छी तरह जानते थे कि पुरुषों पर से उस का विश्वास नहीं उठना चाहिए. उस ने तो स्वयं किसी पुरुष का विश्वास तोड़ा है, वह भी अपने पति का. अब वह पुरुषों पर अविश्वास का दोष नहीं लगा सकती. इतना आत्मबल कहां से लाएगी?

‘‘अभी कहां रुकी हो?’’

‘‘कहीं नहीं, मैं आज ही लखनऊ आई हूं.’’

‘‘कहां रुकोगी?’’

‘‘नहीं जानती. आप मेरे लिए कोई व्यवस्था कर दीजिए,’’ नंदिता के स्वर में अधिकारभाव था जैसे वह अभी भी उन की पत्नी हो या पूर्व पत्नी के नाते वह अपने अधिकार का प्रयोग करने आई हो अथवा आशीष के सरल स्वभाव का फायदा उठाने आई हो. कहा नहीं जा सकता था कि उस के मन में कौन सा अधिकारभाव था.

आशीष ने एक पल उसे देखा, उस की आंखों में याचना से अधिक प्रतिवेदन का भाव था. नंदिता के किसी भाव से वे प्रभावित नहीं हुए. उन के मन में बस यही बात थी कि नंदिता मुसीबत में है और उन्हें उस की मदद करनी है.  इस बात की सचाई जानने की उन्होंने कोई कोशिश नहीं की कि वह सचमुच मुसीबत में है या जानबूझ कर उन के सामने अपनी मजबूरी की कोई कहानी गढ़ रही है. इस से उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता. उन का दयालु स्वभाव सभी तरह के तर्कों और वितर्कों से उन्हें दूर रखता.  उस दिन उन्होंने नंदिता के रहने की व्यवस्था अपने एक मित्र के गैस्ट हाउस में करवा  दी. फिर अगले कई दिनों तक वह नंदिता के लिए मकान और नौकरी की व्यवस्था में लगे रहे. इस वजह से उन का क्लीनिक लगभग उपेक्षित रहा और घर की तरफ भी ज्यादा ध्यान नहीं दे पाए.

बेटा शिकायत करता, ‘‘पापा, आप इतना ज्यादा काम क्यों करते हैं? हमारे लिए भी आप के पास समय नहीं है.’’

दिव्या समझदार थी. वह जानती थी, मैडिकल एक ऐसा पेशा है जिस में समयअसमय नहीं देखा जाता. फिर भी उन दिनों आशीष के चिंतित चेहरे को देख कर उस ने शिकायत की, ‘‘इतना काम भी क्यों करते हैं कि आप को आराम करने का मौका न मिले?’’ ‘‘दिव्या, कोई खास बात नहीं है. बस कुछ दिनों की बात है, फिर सब सामान्य हो जाएगा.’’

‘‘क्या कोई खास बात है, जो आप को परेशान कर रही है?

‘‘नहीं,’’ उन्होंने टालने के लिए कह दिया, ‘‘तुम परेशान न हो. कोई बात होती तो मैं तुम्हें जरूर बताता.’’

‘‘दिव्या आश्वस्त हो जाती. पति पर शंका करने का कोई कारण उस के पास नहीं था.’’

गोमती नगर में ही एक एलआईजी मकान मिल गया. नंदिता के लिए पर्याप्त था. जब अग्रिम किराया और डिपौजिट देने की बात आई तो आशीष ने उस की तरफ देखा. नंदिता ने मुंह झुका लिया. कुछ बोली नहीं तो आशीष को पूछना ही पड़ा, ‘‘तुम्हारे पास पैसे हैं?’’

‘‘नहीं,’’ उस ने धीमे स्वर में कहा.

आशीष को बहुत आश्चर्य हुआ. नंदिता एक बड़ी कंपनी में काम करती थी. उस की तनख्वाह भी अच्छीखासी थी. फिर उस की तनख्वाह का पैसा कहां गया?  नंदिता जैसे आशीष का मंतव्य समझ गई, ‘‘आप को मैं कैसे बताऊं? उस ने न केवल मेरा शरीर चूसा है, बल्कि मेरी कमाई पर भी खूब ऐश की. उस ने मुझे कहीं का नहीं छोड़ा.’’  आशीष ने बिना कोई प्रश्न किए पैसे भर दिए. यही नहीं, घर का सारा सामान भी भरवाया, फर्नीचर से ले कर बरतन और राशन तक. इस में कई लाख रुपए खर्च हो गए उन के. परंतु कोईर् मलाल नहीं था उन्हें. बस एक कचोट थी कि ये सब वे अपनी पत्नी से छिपा कर कर रहे.

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इस के बाद अपने रसूख और पेशे का  कुछ लाभ लेते हुए उन्होंने नंदिता को एक  होटल में असिस्टैंट मैनेजर की जौब दिलवा दी. हालांकि होटल मैनेजमैंट का कोई अनुभव उस के पास नहीं था, परंतु मैनेजमैंट की डिग्री उस के पास थी और एक कंपनी में काम करने का पिछला अनुभव था. इसी आधार पर उसे नौकरी मिल गई.  जिस दिन उसे नौकरी मिली, नंदिता ने आशीष से कहा, ‘‘क्या मिठाई खाने के  लिए शाम को घर आ सकते हो.’’

‘‘घर पर क्यों? मिठाई तो कहीं भी खाई जा सकती है,’’ उन्होंने हलकेफुलके मूड में कहा.

‘‘तो फिर किसी रैस्टोरैंट में चलते हैं,’’ नंदिता ने तपाक से कहा.

वे सोच में पड़ गए. फिर बोले, ‘‘यह संभव नहीं होगा. मरीजों को देखतेदेखते काफी समय निकल जाता है. रात में देर हो जाएगी… समय नहीं मिल पाएगा.’’

‘‘तो फिर आप क्लीनिक से सीधे घर आ जाइए,’’ उस ने जोर दे कर कहा.

‘‘देखता हूं, शाम को ज्यादा मरीज नहीं हुए तो आ जाऊंगा.’’

‘‘मैं इंतजार करूंगी,’’ उस के स्वर से लग रहा था कि उसे विश्वास था, आशीष अवश्य आएंगे और सचमुच वे आए. नंदिता उस दिन बहुत खुश लग रही थी. वह आशीष के स्वागत के लिए बिलकुल तैयार थी. उस ने एक विवाहिता की तरह शृंगार किया था. बस बिंदी नहीं लगाई थी.

साड़ी में उस का नैसर्गिक सौंदर्य निखर रहा था. मनुष्य के जीवन में जब खुशियां आती हैं, तो उस के अन्य गुण भी दिखाई देने लगते हैं.

– क्रमश:

Serial Story: विषपायी (भाग-3)

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आशीष पेशे से एक डाक्टर थे. उन की शादी नंदिता नाम की एक लड़की से हुई, जो खुद एक अच्छी कंपनी में सीनियर मैनेजर के पद पर कार्य कर रही थी. शादी के बाद आशीष पत्नी नंदिता की उदासी से परेशान थे. बिस्तर पर भी नंदिता एक संपूर्ण स्त्री की तरह आशीष से बरताव नहीं करती थी. एक दिन आशीष ने नंदिता से जोर दे कर कारण पूछा, तब नंदिता ने बताया कि वह एक व्यक्ति से प्रेम करती है और उस के प्यार में पागल है. आश्चर्य की बात तो यह थी कि जिस व्यक्ति से नंदिता प्रेम करती थी वह शादीशुदा था. यह सुन कर आशीष के पैरों तले जमीन खिसक गई. एक दिन क्लीनिक पर उस से एक महिला मिलने आई.

नंदिता से तलाक के बाद आशीष ने दिव्या से दूसरी शादी कर ली थी. दिव्या के साथ 8 साल के उन के दांपत्य जीवन में कभी कटुता के क्षण नहीं आए थे. पर 8 साल बाद जब अचानक नंदिता उन से मिलने क्लीनिक पहुंची तो सीधेसादे आशीष नंदिता की बातों में आ गए. वह अब खुद को दीनहीन और असहाय बता रही थी और बारबार आशीष से अपनी गलती के लिए माफी मांग कर खुद के लिए सहानुभूति चाह रही थी. नंदिता के बारबार अनुरोध करने पर आशीष उस की मदद को तैयार हो गए. आशीष ने नंदिता को न सिर्फ पैसे दिए, किराए पर एक फ्लैट भी दिला दिया.

एक दिन नंदिता ने आशीष को अपने फ्लैट पर अकेले आने को कहा. बारबार आग्रह करने पर आशीष शाम को नंदिता के पास पहुंचा तो नंदिता सजधज कर उसी का इंतजार कर रही थी.

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उसके सौंदर्य से आशीष अभिभूत हो गए. यह सौंदर्य कभी उन का था और अगर नंदिता ने थोड़ी समझदारी और संयम से काम लिया होता तो आज भी वह उन की होती, परंतु नंदिता अब उन की नहीं है. सच तो यह है कि अब वह किसी की नहीं है और देखा जाए तो वह स्वतंत्र है और जिसे चाहे पसंद कर सकती है, प्यार कर सकती है. उस के जीवन में किसी भी पुरुष के लिए उतनी ही जगह है, जितनी प्यार करने के लिए किसी को हो सकती है.

‘‘आइए, मुझे विश्वास था, आप अवश्य आएंगे,’’ वह इठलाती हुई बोली. उस के चेहरे की चंचलता से अधिक उस के शरीर की

चंचलता बोल रही थी. उस का बदन मछली की तरह तड़प रहा था. वह जानबूझ कर ऐसा कर रही थी या आशीष के आने की खुशी में भावविह्वल हुई जा रही थी, समझ नहीं आ रहा था. उस के व्यवहार से ऐसा नहीं लग रहा था जैसे उन के संबंधों के बीच में कभी दरार आई हो और वे हमेशा के लिए एकदूसरे से जुदा हो गए हों. जो भी देखता, यही कहता नंदिता उन की पत्नी है. नंदिता के खुलेपन से आशीष के मन में कुछ डोल गया. वे पुरुष थे और किसी भी पुरुष का मन नारी की सुंदरता और चंचलता देख कर डोल जाता है. इस में अस्वाभाविक कुछ भी नहीं था. नंदिता उन की पूर्व पत्नी थी और उन्होंने उस के प्रत्येक अंग को देखा था. अब इतने अंतराल के बाद उन्होंने उसे फिर सौंदर्य के रंग बिखेरते देखा था तो क्यों न मन में लहरें उठतीं?

उन्होंने ऊपर से कुछ जाहिर नहीं किया और नजरें चुराते हुए अंदर आ कर बैठ गए. नंदिता ने अपने घर को बहुत सुंदर तरीके से सजा दिया था. घर छोटा था, पर अगर गृहिणी में समझ हो तो छोटी सी जगह को भी सुंदर बनाया जा सकता है. नंदिता का यह गुण आशीष को पता नहीं था, क्योंकि दोनों की शादी के बाद नंदिता मन से उन के घर में थी ही नहीं, बस उस का तन मौजूद रहता था. वह दूसरी ही दुनिया में विचरण कर रही थी, तो आशीष के घर की तरफ कैसे ध्यान देती? चाय पी कर आशीष घर चलने लगे तो नंदिता ने उन का हाथ पकड़ लिया और उत्साह से बोली, ‘‘किन शब्दों में आप का धन्यवाद करूं?’’

आशीष के शरीर में एक झनझनी सी दौड़ गई. नंदिता का स्पर्श उन के लिए अनचाहा नहीं था, परंतु उन्हें लगा जैसे नंदिता उन्हें पहली बार स्पर्श कर रही हो और यह स्पर्श अनोखा ही नहीं उत्तेजित कर देने वाला था. 10 साल बाद नंदिता के सौंदर्य में अगर कोई कमी आई थी तो वह उम्र की थी, जिस में 10 साल बढ़ गए थे वरना वह आज भी वैसी ही सुंदर और दिलकश थी. आज भी वह किसी मर्द के दिल को घायल करने का सौंदर्य अपने अंदर समेटे थी.

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आशीष ने बिना उस की तरफ देखे अपने हाथ को छुड़ा लिया और कहा, ‘‘इस में धन्यवाद की कोई बात नहीं है. मनुष्य ही मनुष्य के काम आता है.’’ मनुष्य सौंदर्य प्रेमी होता है. हर तरह का सौंदर्य उसे प्रभावित करता है, आकर्षिक करता है. भोगा हुआ भी और नया भी. नंदिता का सौंदर्य आशीष के लिए नया नहीं था, परंतु आज वह बिलकुल नई और अलग दिख रही थी. नारी का सौंदर्य इसीलिए मनुष्य को आकर्षित करता है, क्योंकि वह प्रतिपल अपने नए रूप और नए अंदाज में दिखती है.

आशीष थोड़ा विचलित हो गए थे. घर आ कर उन्होंने दिव्या को भरपूर निगाहों से देखा. वह भी उन्हें बिलकुल नईनई सी लगी. सुबह की नर्म धूम में नहाई सी, खिलते फूलों की रंगत लिए. एक बच्चे की मां थी, फिर भी उस के सौंदर्य में कोई कमी नहीं आई थी. वह एक डाक्टर की पत्नी थी. उस ने अपने को संभाल कर रखा था. वह तुलना करने लगे नंदिता और दिव्या में. दोनों का सौंदर्य एकदूसरे से अलग था. एक अपने परिवार के प्रति पूरी तरह समर्पित थी तो दूसरी स्वच्छंद उड़ने वाली तितली… परंतु दोनों ही मनमोहक थीं. नंदिता को उन्होंने एक स्थायित्व प्रदान किया था, इस बात से उन्हें संतुष्टि प्राप्त होती थी, परंतु इस एहसान का बदला लेने का उन के मन में कोई विचार कभी नहीं आया था. वे उसे अपनी तरफ से फोन भी नहीं करते थे, परंतु नंदिता जब तक दिन में 3-4 बार उन्हें फोन न कर लेती, उसे चैन न पड़ता. वह मीठीमीठी बातें करती, कई बार पुरानी बातें खोद कर उन से माफी मांगती, यह जताने की कोशिश करती कि वह उन के प्रति ऋणी है और उन के एहसानों का बदला चुकाना चाहती है. वे हंस कर टाल जाते और अपनी तरफ से कोई प्रतिक्रिया जाहिर न करते जिस से कि नंदिता को यह लगे कि वे उस से प्रतिदान की अपेक्षा रखते हैं.

नंदिता लगभग रोज उन्हें अपने घर आमंत्रित करती. उस की बातों में कुछ ऐसा इसरार होता कि आशीष मना न कर पाते या वे उस का दिल दुखाना नहीं चाहते थे. नंदिता अकेली है, इस शहर में उस का कोई सगासंबंधी नहीं है, इस नाते वे उसे खुश करने के लिए रोज तो नहीं, परंतु दूसरेतीसरे दिन उस के घर चले जाते. नंदिता गर्मजोशी से उन का स्वागत करती, चायकौफी के साथ कुछ खाने के लिए बना लेती. वे कुछ देर बैठ कर उस की बकबक सुनते और चले आते.

एक दिन नंदिता उन की बगल में सोफे पर बैठ गई. वह चौंक से गए और हलका सा खिसक कर अपने बदन को सिकोड़ लिया. वह हंस कर बोली, ‘‘आप मुझ से इतना दूर क्यों जा कर बैठ गए? आखिर मैं आप की पत्नी रह चुकी हूं… अभी भी हमारे रिश्ते में आत्मीयता है… इतनी दूरी क्यों?’’

आशीष उस की बात का क्या जवाब देते. बस इतना कहा, ‘‘मैं ठीक हूं.’’

‘‘परंतु मैं ठीक नहीं हूं,’’ वह फिर से उन की तरफ खिसक गई, ‘‘मेरे मन में अपराधबोध है. मैं ने आप को कितने दुख दिए, आप ने कभी मुझे न तो डांटा, न मारापीटा. सहज भाव से आप सब कुछ सहते गए. मैं तब भी इस बात को नहीं समझ पाई कि आप जैसे शरीफ इनसान को कष्ट दे कर मैं अपने जीवन को नर्क बना रही हूं. तब अगर आप ने मेरे साथ सख्ती की होती, डांटा होता तो संभवतया मैं आप को छोड़ने की गलती कभी नहीं करती. मैं अपने अपराधबोध से कैसे छुटकारा पाऊं?’’

उन्हें क्या पता वह अपने अपराधबोध से कैसे छुटकारा पा सकती थी. यह उस का निजी मामला था. इस में वे नंदिता की क्या मदद कर सकते थे?

‘‘मैं लखनऊ इसलिए नहीं आई थी कि आप के माध्यम से कोई नौकरी प्राप्त कर लूं और हंसीखुशी जीवन व्यतीत करूं … यह काम तो मैं दिल्ली में रह कर भी कर सकती थी… जो नौकरी छोड़ दी थी वही प्राप्त कर लेती या दूसरी कर लेती… इस में कोई परेशानी नहीं थी.’’

आज उस ने अपने दिल की बात कही थी. आशीष चौंक गए, तो क्या वह केवल उन के लिए यहां आई थी. उसे कोई दुख और परेशानी नहीं थी?

‘‘अच्छा… तो फिर…’’ उन्होंने असहज भाव से पूछा. वे आगे बहुत कुछ पूछना चाहते थे, पर नहीं पूछा. वे जानते थे कि उन के बिना पूछे ही वह सब कुछ उन्हें बता देगी. नंदिता का स्वभाव बहुत चंचल था. वह बहुत दिनों तक कोई बात अपने मन में छिपा कर नहीं रख सकती थी. नंदिता ने अपना दायां हाथ उन की बाईं जांघ पर रख दिया और उसे हौलेहौले सहलाने लगी. आशीष को संभवतया इस बात का भान नहीं हुआ था. वे अन्य विचारों में खोए थे.

‘‘जब तक आदमी को दुख नहीं मिलता वह दूसरों के दुख को नहीं महसूस कर पाता… जब उस ने मुझे ठुकरा दिया तो मुझे एहसास हुआ कि मेरी बेवफाई से आप को कितना मानसिक कष्ट हुआ होगा. जब मेरा दिल तारतार हुआ और मैं दुनिया को मुंह दिखाने लायक नहीं रही तो लगा जैसे मेरे लिए डूब मरने के अलावा और कोई रास्ता नहीं है.

‘‘फिर मैं ने सोचा मेरे कारण आप ने इतना दुख सहा, मेरा दिया सारा जहर पी गए, विषपायी बन गए, तो फिर मैं जी कर दूसरों के दिए जहर को क्यों नहीं पी सकती. मैं ने तय किया कि अगर आप मिल गए और आप ने मुझे क्षमा कर दिया तो मेरा दुख कम हो जाएगा. अब आप मुझे मिल गए हैं और मैं देख रही हूं कि मेरे प्रति आप के मन में कोई कटुता नहीं. इस से न केवल मेरा दुख कम हुआ है, बल्कि मैं सुख के सागर में डूबनेउतराने लगी हूं. जीवन के प्रति मेरा मोह बढ़ गया है. मैं बहुत कुछ पा लेना चाहती हूं… वह भी जो बहुत पहले मेरी नादानी के कारण मेरे हाथों से फिसल गया था.’’

आशीष चुपचाप उस की बातें सुनते जा रहे थे.

‘‘आप ने मेरे अपराध क्षमा कर दिए, मेरे दुख हर लिए, परंतु मेरा प्रायश्चित्त अभी बाकी है.’’

‘वह क्या?’ आशीष ने अपनी निगाहों को उठा कर नंदिता की आंखों में देखा. उस की आंखें भीगी थीं, इस के बावजूद उन में अनोखी चमक थी जैसे उसे विश्वास था कि उस की कोई बात आशीष नहीं टालेंगे.

नंदिता ने भावुक हो कर उन के दोनों हाथ पकड़ लिए, ‘‘मैं जानती हूं, आप बहुत बड़े दिल के आदमी हैं. इसीलिए आप से याचना कर रही हूं. मेरा प्रायश्चित्त यही है कि मैं जीवन भर आप के साथ रहूं?’’

आशीष को एक झटका सा लगा. उन्होंने अपने हाथ छुड़ा लिए और उठ कर खड़े हो गए, ‘‘क्या?’’

वह भी उठ कर खड़ी हो गई, ‘‘आप इस तरह क्यों चौंक गए? मैं ने कोई अनहोनी बात नहीं कही है. इस दुनिया में बहुत सारे लोग बिना शादी के एकदूसरे के साथ रहते हैं, मैं तो आप की परित्यक्ता पत्नी हूं. मेरा आप पर कोई हक नहीं है, परंतु मैं अपना पूरा जीवन आप के लिए समर्पित करना चाहती हूं.’’

आशीष की आवाज लड़खड़ा गई, ‘‘यह कैसे संभव हो सकता है?’’

‘‘सब कुछ संभव है, बस मन को समझाने की बात है.’’

‘‘परंतु मैं शादीशुदा हूं, घर में पत्नी और 1 बेटा है. मैं तुम्हारे साथ कैसे रह सकता हूं?’’

‘‘जिस प्रकार आप मेरे दिए कष्ट का जहर पी कर रह सकते हैं, उसी प्रकार खुशीखुशी मेरे साथ रह सकते हैं. मैं आप के प्रति समर्पण चाहती हूं. किसी और चीज की मुझे आप से अपेक्षा नहीं है. मैं आप से कोईर् और हक नहीं मांगूंगी, न बच्चों की कामना न संपत्ति का अधिकार. मुझे बस आप का साथ चाहिए, कभीकभी संसर्ग चाहिए और कुछ नहीं…’’ आशीष का दिमाग चकरा गया. वे 1 डाक्टर थे, सुलझे हुए व्यक्ति थे. कठिन और विपरीत परिस्थितियों में भी नहीं घबराते थे. जब परपुरुष के साथ नंदिता के संबंधों का उन्हें एहसास हुआ था तब भी वे इतना विचलित नहीं हुए थे. सोचा था कि इस स्थिति से किसी तरह निबट लेंगे. परंतु आज उन्हें लग रहा था कि इस स्थिति से कुदरत भी नहीं निबट सकती.

नंदिता जो चाहती थी, वह कभी पूरा नहीं हो सकता था. कम से कम उन के लिए यह असंभव था. एक बार उन्होंने विष पीया था, परंतु दूसरी बार नहीं पी सकते थे, जानबूझ कर तो कतई नहीं. नंदिता उन के बदन से सट गई. लगभग उन्हें अपनी बांहों में समेटती हुई बोली, ‘‘देखिए मना मत कीजिएगा. मैं बड़ी उम्मीदों से आप के पास आईर् हूं. मेरा यहां आने का यही एक मकसद था कि पूरा जीवन आप के चरणों में समर्पित कर के मैं अपनी गलतियों से छुटकारा पा सकूंगी. मेरे अपराधों का प्रायश्चित्त हो जाएगा. ‘‘आप के सिवा अब मैं किसी और को नहीं चाह सकती. अगर आप मुझे नहीं स्वीकार करेंगे, तो भी मैं जीवन भर अविवाहित रह कर आप का इंतजार करूंगी,’’ उस की आवाज में बेबसी की गिड़गिड़ाहट भरती जा रही थी और ऐसा लग रहा था जैसे नंदिता जमाने भर की सताई हुई औरत हो. आशीष ने उसे नहीं संभाला तो वह टूट जाएगी, बरबाद हो जाएगी.

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परंतु आशीष को नंदिता की गिड़गिड़ाहट, उस का रोना प्रभावित नहीं कर पा रहा था. उन के दिमाग की नसें फट रही थीं. उन्हें लग रहा था, चारों ओर धमाके हो रहे थे. यह दीवाली या किसी शादीब्याह के मौके पर होने वाले आतिशबाजी के धमाके नहीं थे. यह उन के जीवन को तहसनहस करने वाले धमाके थे. हड़बड़ाहट में वे बाहर जाने के लिए मुड़े. नंदिता ने उन्हें पकड़ लिया. वे ठिठक गए.

‘‘आप जा रहे हैं, मैं आप को नहीं रोकूंगी, पर यह वादा करती हूं कि इसी शहर में रह कर आप की प्रतीक्षा करूंगी. आप का जो निर्णय हो बता दीजिएगा.’’ वे बिना कुछ कहे बाहर निकल आए. बाहर घना अंधेरा पसरा था जैसे पूरे शहर की बिजली चली गई हो. परंतु ऐसा नहीं था, सभी घरों में बिजली थी. बस सड़क की बत्तियां नहीं जल रही थीं. सड़कें अंधेरी थीं, परंतु उन्हें लग रहा था जैसे पूरे शहर में अंधेरे की लंबीलंबी गुफाएं फैली हैं. जिस के अंदर से वे गुजर रहे हैं. इन कालीअंधेरी गुफाओं का कोई अंत नहीं था और उन की यात्रा का भी कोई अंत नहीं था.

उन के साथ ऐसा क्यों हो रहा था. दुख को चुपचाप सहन करना क्या दुखों को निमंत्रण देना होता है? वे किसी को कष्ट नहीं देते हैं, परंतु बदले में उन्हें क्यों कष्ट झेलने पड़ते हैं? नंदिता के घर के बाहर खड़ी अपनी गाड़ी को जब उन्होंने स्टार्ट किया तब भी उन्हें होश नहीं था और जब गाड़ी मुख्य सड़क पर ला कर अपने घर की तरफ मोड़ी तब भी उन्हें कुछ होश नहीं था. उन का शरीर कांप रहा था, परंतु हाथपैर काम कर रहे थे. ऐसा लग रहा था जैसे कोई अन्य व्यक्ति रिमोट कंट्रोल से उन के अंगों को संचालित कर रहा है. उन की अपनी सोच कहीं गुम हो गई थी. वे समझ नहीं पा रहे थे कि उन के दिमाग को संचालित करने वाला यंत्र उन के नियंत्रण में क्यों नहीं है?

वे गाड़ी चला रहे थे, परंतु उन्हें स्वयं पता नहीं था कि वह किस शक्ति से नियंत्रित हो रही है. सामने से आ रही गाडि़यों का प्रकाश उन की आंखों में आतिशबाजी की रोशनी की तरह चुभ रहा था और वे बारबार अपनी आंखें झपक रहे थे. घर पहुंचतेपहुंचते उन्होंने स्वयं को काफी हद तक संयत कर लिया था. दिमाग की झनझनाहट कम हो गई थी. शरीर का कंपन बंद हो गया था. मन संयत हो चुका था, परंतु चेहरे की उड़ी रंगत उन के अंदर अभीअभी गुजरे तूफान की कहानी बयां कर रही थी.

वे चुपचाप घर के अंदर प्रवेश कर गए. वे चाहते थे कि एकदम से दिव्या का सामना न हो, परंतु वह उन्हीं का इंतजार कर रही थी. रात काफी हो चुकी थी. बेटा सो चुका था. दिव्या के पास उन के इंतजार के सिवा और कोई काम नहीं था. उन की पस्त हालत देख कर दिव्या तत्काल उठी और उन को सहारा दे कर सोफे तक लाई, ‘‘आप बहुत थक गए हैं.’’

उस की आवाज में चिंता झलक रही थी. उस ने पति को सोफे पर बैठा दिया. आशीष ने एक नजर दिव्या के चेहरे पर डाली और फिर आंखें बंद कर के सोफे पर सिर टिका दिया. दिव्या दौड़ कर उन के लिए पानी ले आई. पानी का गिलास उन के हाथ में थमाते हुए बोली, ‘‘लीजिए, पानी पी लीजिए. आप किसी की नहीं सुनते हैं. कितनी बार कहा कि कम मेहनत किया करो. मरीजों का आना कभी खत्म नहीं हो सकता, आप चाहे सारी रात क्लीनिक खोल कर बैठे रहें… क्या उन के चक्कर में खुद मरीज बन जाएंगे? आप की सेहत ठीक नहीं रहेगी, तो मरीजों को कैसे ठीक करेंगे और फिर हम लोग कैसे खुश रह सकते हैं?’’ वह उन के माथे को सहला रही थी. आशीष को अच्छा लग रहा था.

‘‘देखिए तो चेहरे पर कैसी मुर्दनी छाई हुई है जैसे 10 दिनों से खाना न खाया हो.’’ आशीष चुपचाप आंखें मूंदे रहे. दिव्या की 1-1 बात उन के कानों में पड़ रही थी. वे उस की बातों को सुन सकते थे, परंतु उत्तर नहीं दे सकते थे. उस बेचारी को क्या पता कि आशीष ने अभीअभी कौन सा तूफान अपने सीने के अंदर झेला? वह कभी नहीं समझ पाएगी, क्योंकि जो कुछ उन के साथ हुआ था, उस के बारे में दिव्या को बता कर वह उस की खुशी नहीं छीन सकते थे.

दिव्या का इस प्रसंग में कहीं कोई हाथ नहीं था. दूसरों की करनी की सजा वह क्यों भुगते? जो जहर वे पी रहे थे, उस की 1 बूंद भी वह दिव्या के होंठों पर नहीं रख सकते थे. उन्हीं को सारी उम्र जहर पीना था. वे विषपायी हो गए थे. उन के अंदर अब इतना जहर समा चुका था कि किसी और जहर का उन के अंदर असर नहीं होने वाला था. वह रात किसी तरह गुजर गई. अगली सुबह पहले जैसी सामान्य थी जैसे पिछली रात कहीं कुछ नहीं हुआ. आशीष निश्चिंत भाव से उठ कर तैयार हुए. ऊपर से वे बहुत शांत और गंभीर थे, पर अंदर ही अंदर उन के मन में एक मंथन चल रहा था. उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें क्या करना है. आज ही सब कुछ तय हो जाना है. वे इंतजार नहीं कर सकते और न ही किसी और को दुविधा में रख सकते.

दिव्या किचन में व्यस्त थी. वे नहाधो कर तैयार हो गए. क्लीनिक जाने में अभी देर थी. वे अपने कमरे से मोबाइल ले कर बैठक में आए. रात उन्होंने ध्यान नहीं दिया था. उन के फोन पर बहुत सारे मैसेज आए थे. उन्होंने खोल कर देखा. उन में से एक मैसेज नंदिता का था. उस ने लिखा था, ‘‘आप घर पहुंच गए? ठीक तो हैं? मुझे आप की चिंता है?’’

उन्होंने उसी मैसेज पर उत्तर दिया, ‘‘मैं ठीक हूं और उम्मीद करता हूं कि तुम भी ठीक होगी. नंदिता मैं ने अपने जीवन में बहुत जहर पीया है. मैं सचमुच विषपायी हूं. यह जहर किस के कारण मैं ने पीया, इन सब बातों पर जाने का अब कोई औचित्य नहीं है. मैं तुम से केवल इतना कहना चाहता हूं कि अब और ज्यादा जहर पीने की क्षमता मुझ में नहीं है. मेरी सहनशीलता समाप्त हो चुकी है. अब अगर मैं ने 1 भी बूंद जहर पीया तो मैं मर जाऊंगा. आशा है, तुम मेरा आशय समझ गई होगी. मुझे अपनी बीवी और बेटे से प्यार है और शांतिपूर्वक उन के साथ जीना चाहता हूं, मुझे जीने दो. मेरी तुम्हारे लिए नेक सलाह है कि अब तुम भी भागना छोड़ दो और किसी अच्छे लड़के के साथ घर बसा कर खुशी से जीवन व्यतीत करो. अब मुझ से मिलने का प्रयास न करना. आशीष!’’

नंदिता को मैसेज भेजने के बाद एक भारी बोझ उन के मन से उतर गया. उन के मन में अब कोई संशय और चिंता नहीं थी. उन को ऐसा लग रहा था जैसे उन के अंदर जो विष का घड़ा 10 साल से रिसरिस कर बह रहा था, वह अचानक फूट कर बह गया और उस का जहर उन के शरीर से बाहर फैल गया. अब वह उन के शरीर पर असर नहीं कर रहा था. तभी मुसकराती हुई दिव्या नाश्ता ले कर आ गई. बोली, ‘‘आइए, नाश्ता कर लीजिए.’’

वह नहाधो चुकी थी. साधारण कपड़ों में भी किसी परी सी लग रही थी. उन्होंने एक प्यारी मुसकराहट के साथ दिव्या को देखा. फिर मन ही मन खुश होते हुए डाइनिंग टेबल पर जा बैठे.

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Hyundai Verna: डिजाइन ऐसी की नजरें न हटें

जब हम कार खरीदते हैं तो अपनी जरूरत के साथ बाहरी डिजाइन और लुक पर भी काफी ध्यान देते हैं. हम चाहते हैं कि हमारी गाड़ी ऐसी हो जो कंफर्ट लेवल के साथ स्टाइलिश और अट्रैक्टिव भी हो. बात करें अगर SUVs की तो सेडान हमेशा से ही लोगों लुभाती रही है. आइए आपको बताते हैं कि आखिर हुंडई वरना की ऐसी क्या खासियत है जो कार ग्राहकों को इतनी पसंद आती है.

हुंडई वरना में पहली चीज जो आप नोटिस करते हैं वो क्रोम ग्रिल और सामने की ओर लगाए गए हेडलाइट्स हैं जो किसी कार में एकदम नया फीचर है. इस डार्क क्रोम के बड़े स्वैट्स की वजह से वरना को एक फ्रेश एलिगेंट लुक मिलता है.

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वहीं अगर आप हुंडई वर्ना के टर्बो वेरिएंट को चुनते हैं तो आपको एक ब्लैक-आउट ग्रिल मिलता है जो इसके फ्रंट को थोड़ा और स्ट्रांग लुक का एहसास देता है. अब तो आप समझ ही गए होंगे कि, जब डिजाइन की बात आती है तो Hyundai Verna #BetterThanTheRest है.

भारतीय वायुसेना ने ‘गुंजन सक्सेना द कारगिल गर्ल’ के कुछ सीन्स पर जताई आपत्ति, जानें क्या है मामला

ओटीटी प्लेटफॉर्म दर्शकों को मनोरंजन परोसने की होड़ में अपनी कुछ सामाजिक व नैतिक जिम्मेदारियों को अनदेखा करते जा रहे हैं. इसी वजह से आए दिन ओटीटी प्लेटफार्म पर प्रसारित होने वाली फिल्मों और वेब सीरीज पर विवाद होते रहे हैं. और धीरे-धीरे ओटीटी प्लेटफॉर्म को भी “केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड” यानी कि “सेंसर बोर्ड” के तहत लाने की मांग भी बढ़ती जा रही है. अभी 2 माह पहले अनुष्का शर्मा की वेब सीरीज “पाताल लोक ” को लेकर मुहिम चली थी कि “बैन पाताल लोक”. उसके बाद एकता कपूर की वेब सीरीज “एक्स एक्स एक्स सीजन 2” में आर्मी का अपमान करने के आरोप लगे थे और जब मामला अदालत पहुंचा, तो एकता कपूर ने उन दृश्यों को वेब सीरीज से हटाने के साथ ही सार्वजनिक रूप से माफी मांग ली थी.

अब 12 अगस्त को नेटफ्लिक्स पर प्रसारित हुई “धर्मा प्रोडक्शन” की फिल्म “गुंजन सक्सैना :द कारगिल गर्ल”के कुछ दृश्यों पर आपत्ति जताते हुए भारतीय वायु सेना ने “केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ” यानी कि “सेंसर बोर्ड ” और नेटफ्लिक्स के साथ-साथ धर्मा प्रोडक्शन को भी पत्र लिखा है.

‘ओटीटी प्लेटफॉर्म’ नेटफ्लिक्स पर करण जोहर के ‘धर्मा प्रोडक्शन’ द्वारा निर्मित फिल्म “गुंजन सक्सेना: द कारगिल गर्ल” रिलीज हुई है, इस फिल्म से भारतीय वायु सेना के अंदर गुस्सा है और फिल्म के रिलीज के कुछ घंटों के अंदर ही ‘भारतीय वायुसेना’ ने फिल्म ‘गुंजन सक्सेना द कारगिल गर्ल’ में भारतीय वायु सेना की छवि को गलत ढंग से पेश करने का आरोप लगाते हुए ‘नेटफ्लिक्स’ व ‘धर्मा प्रोडक्शन’ के साथ ‘केंद्रीय फिल्म प्रसारण बोर्ड’ को एक पत्र लिखा. भारतीय वायुसेना ने अपने पत्र में लिखा है -“हमने फिल्म ‘गुंजन सक्सेना द कारगिल गर्ल’ के ट्रेलर में कई आपत्तिजनक दृश्य पाए हैं.करण जौहर ने हमसे वादा किया था कि वह फिल्म में भारतीय वायु सेना को ऑथेंटिसिटी के साथ पेश करते हुए प्रयास करेंगे कि यह फिल्म भावी वायु सैनिकों के लिए प्रेरणा दे सके. मगर फिल्म का ट्रेलर तो कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहा है.फिल्म के ट्रेलर और फिल्म के कुछ संवाद ‘भारतीय वायु सेना’ की नकारात्मक छवि को पेश करते हैं. गुंजन सक्सेना के किरदार को ग्लोरिफाई करने के लिए ‘धर्मा प्रोडक्शन’ कुछ ऐसे दृश्य गढ़े हैं, जोे भ्रमित करने वाले तथा तथ्य से परे हैं. इन दृश्यों द्वारा बताया गया है कि भारतीय वायु सेना में औरतों से भेदभाव किया जाता है. जबकि ऐसा नहीं है .भारतीय वायु सेना में लिंग भेद से परे पुरुष व महिला को समान अधिकार प्राप्त है.”

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भारतीय वायुसेना ने अपने पत्र में आगे लिखा है कि “हमने अपनी आपत्ति पहले ही दर्ज करा दी थी और कहा था कि उन दृश्यों को हटा दिया जाए.।वादा करने के बावजूद प्रोडक्शन हाउस ने ऐसा नहीं किया.”

भारत की पहली महिला वायुसेना पायलट ‘गुंजन सक्सेना’ की बायोपिक फिल्म ‘भारतीय वायुसेना’ के ‘बेवजह नकारात्मक’ रूप से दिखाए जाने से भारतीय वायु सेना के अंदर रोष है. यदि ओटीटी प्लेटफॉर्म पर प्रसारित होने वाले कंटेंट के लिए ‘केंद्रीय फिल्म प्रमाण बोर्ड’ यानी सेंसर बोर्ड से प्रमाण पत्र की जरूरत नहीं, तो ऐसे में ‘ओटीटी प्लेटफार्म’ के साथ-साथ निर्माता की दोहरी जिम्मेदारी बन जाती है कि वह ऐसा कंटेंट परोसने से बाज आए. जनवरी 2019 में सभी ओटीटी प्लेटफॉर्म ने घोषित किया था कि वह सेल्फ सेंसरशिप का पालन करते हुए आपत्तिजनक कंटेंट को अपने प्लेटफार्म पर जगह नहीं देंगे. मगर वहां इस पर अमल नहीं कर रहे हैं.

उधर रक्षा मंत्रालय भी पहले कई बार वेब सीरीज में सेनाओं को दिखाने को लेकर आपत्ति जाहिर कर चुका है. रक्षा मंत्रालय ने ‘सेंसर बोर्ड’ और ‘सूचना प्रसारण मंत्रालय’ को सलाह दी थी कि जिन फिल्मों व वेब सीरीज में आर्मी का जिक्र हो, उन सभी को आर्मी के पास ‘नो ऑब्जेक्शन’ प्रमाण पत्र के लिए भेजा जाना चाहिए. मगर ओ टी टी प्लेटफार्म तो सेंसरशिप के दायरे में आते ही नहीं है, ऐसे में “केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड” यानी कि सेंसर बोर्ड के अपने हाथ बने हुए हैं.

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नागिन-5: शो शुरू होते ही हुईं हिना खान की विदाई! जानें क्या है मामला

बीते दिनों कलर्स के शो नागिन 5(Naagin 5) के प्रोमो ने सोशलमीडिया पर धूम मचा दी थी. वहीं अब नागिन 5 की टीवी पर शो की शुरूआत हो चुकी है. हालांकि नागिन-4 (Naagin 4 Finale) के फिनाले के साथ ही नागिन-5 की शुरुआत हुई थी, जिसमें हिना खान (Hina Khan) का रोल फैंस को काफी पसंद आ रहा था. लेकिन अब खबर है कि हिना खान ने शो को अलविदा कह दिया है. आइए आपको बताते हैं क्या है पूरा मामला…

गेस्ट रोल में थीं हिना खान

दरअसल, नागिन 4 के आखिरी एपिसोड में हिना खान 10 हजार साल पुरानी प्रेम कहानी निया शर्मा को सुना रही हैं, जिसमें हिना के अलावा इस शो में कुंडली भाग्य एक्टर धीरज धूपर और अभिनेता मोहित मल्होत्रा भी हैं. वहीं इन तीनों का लव ट्रायंगल कलयुग में आएगा. हालांकि हिना खान शो में गेस्ट अपिरियंस के लिए हिस्सा बनी थीं. वहीं कहा जा रहा है कि हिना खान अपने हिस्से की शूटिंग पूरा कर चुकी हैं और वह जल्द ही इस शो को अलविदा कहेंगी.

 

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#NaagEshwari & #Hridhay ❤️🥰 . . . @realhinakhan @mohitmalhotra9 #Naagin5 🐍

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सुरभि चंदना आएंगी लीड रोल में नजर

हिना खान के बाहर जाने के बाद सुरभि चंदना (Surbhi Chandana) की नागिन-5 में एंट्री होगी. कहा जा रहा है कि हिना खान का पुनर्जन्म अवतार सुरभि निभाएंगी. जबकि सुरभि को शरद मल्होत्रा और मोहित सहगल आगे जाकर ज्वॉइन करेंगे.हालांकि खबरों की मानें तो सुरभि ने शूटिंग शुरू कर दी है तो वहीं हिना खान ने अपने हिस्से की शूटिंग खत्म कर दी है. हिना के अलावा मोहित और धीरज लगभग अपने हिस्से की शूटिंग पूरी कर चुके हैं, जिसकी फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो रही हैं.

प्रोमो में नजर आ चुकी हैं हिना खान

 

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These scene 😍 love in the air❤ @realhinakhan @mohitmalhotra9 #naagin5

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बीते दिनों सोशलमीडिया पर नागिन 5 के प्रोमो में हिना खान के नजर आने के बाद फैंस बेहद खुश नजर आ रहे थे, जिसके बाद फैंस उनके लुक की कई फोटोज के कोलाज बनाकर सोशलमीडिया पर वायरल कर रहे थे. लेकिन लगता है अब इस खबर के बाद फैंस को काफी दुख होने वाला है.

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करीना कपूर के दूसरी प्रैग्नेंसी पर जानें कैसा है तैमूर का रिएक्शन, मीम्स Viral    

बौलीवुड एक्ट्रेस करीना कपूर खान और एक्टर सैफ अली खान दोबारा पेरेंट्स बनने जा रहे हैं. दोनों नें तैमूर के बाद अपने दूसरे बच्चे की न्यूज को कंफर्म करते हुए कहा है कि ‘परिवार में एक सदस्य जुड़ने वाला है, हम दूसरा बेबी एक्सपेक्ट कर रहे हैं. आप सभी चाहने वालों का शुक्रिया, प्यार और सपोर्ट.’. वहीं इस खबर के बाद सोशलमीडिया पर जहां स्टार्स और फैंस उन्हें बधाई दे रहे हैं तो वहीं कुछ लोग इस किस्से से जुड़े तैमूर अली खान के कुछ मीम्स वायरल कर रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं वायरल मीम्स…

करीना के पिता ने दिया ये रिएक्शन

दोबारा पेरेंट्स बनने की खबर के बारे में जब करीना के पिता रणधीर कपूर से पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘करीना और सैफ ने अभी तक उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं दी है. मुझे तो ये बात पहली बार पता चल रही है. उम्मीद करता हूं ये सच हो, मैं तो बहुत खुश हो जाऊंगा. दो बच्चे तो होने चाहिए, जिससे एक-दूसरे को कंपनी मिल सके’.

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तैमूर के लिए कह चुकी हैं ये बात

एक रियलिटी शो के दौरान करीना ने कहा था, ‘मैं काफी प्राउड होकर कह सकती हूं कि तैमूर सबसे खूबसूरत बच्चा है. मैं यह इसलिए नहीं कह रही क्योंकि वह मेरे बेटा है बल्कि इसलिए कह रही हूं क्योंकि वह काफी गुड लुकिंग है. मैं मानती हूं कि उसके पठान जींस हैं, लेकिन मैंने भी प्रेग्नेंसी के दौरान काफी घी खाया था’.

तैमूर के मजाकिया मीम्स  हो रहे हैं वायरल

करीना और सैफ के पेरेंट्स की खबर के बाद सोशलमीडिया पर मीम्स का सिलसिला शुरू हो गया है, जिसमें फैंस लगातार कमेंट कर रहे हैं और अपना रिएक्शन दे रहे हैं.

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बता दें, सोशलमीडिया पर तैमूर अली खान की फोटोज अक्सर सुर्खियों में रहती हैं. वहीं तैमूर भी लाइमलाइट में रहना काफी पसंद करते हैं. हालांकि सैफ, तैमूर के लाइमलाइट में रहने से काफी परेशान रहते है. लेकिन करीना ये सब काफी पसंद करती हैं.

जैसे लोग वैसा शासक

चीन और कोरोना दोनों अगले कुछ सालों में देश की अर्थव्यवस्था को चकनाचूर कर देंगे. हर घर को इस की पूरी तैयारी करनी होगी. कोरोना की वजह से बारबार लौकडाउन तो लगेगा ही, लोग खुद ही डर के मारे काम पर नहीं जाएंगे और जाएंगे तो उन्हें कोविड-19 का भय रहेगा.

चीन की वजह से देश का सारा पैसा अब हिमालय के पत्थरों पर लगेगा जहां सड़कें बनेंगी, हवाईअड्डे बनेंगे, बैरक बनेंगे, खाने का सामान मुहैया कराया जाएगा.

दोनों ही उद्योगों और व्यापारों को बुरी तरह चोट मारेंगे और उस की सजा घरों को मिलेगी. अब पहले से अच्छा घर, पहले से अच्छी नौकरी, पहले से अच्छा ड्राइंगरूम, पहले से अच्छा वाहन, पहले से अच्छी सैर के सपने भूल जाएं. जैसे पैट्रोल और डीजल के दाम बढ़े हैं, हर चीज के बढ़ेंगे.

मांग भी कम होगी तो सप्लाई भी कम होगी. सब से बड़ी बात है कि हर घर को काफी पैसा बीमारी या बेकारी के लिए रखना होगा और इस का मतलब है कि सभी खर्चों में बेहद कमी. वैसे भी गनीमत है कि अब दिखावे की जरूरत नहीं है, क्योंकि अब न तो शादियों में जाना है, न पार्टी में, न रेस्तरां या सिनेमाहौल में. अब तो घर से निकलना ही कम हो जाएगा.

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पर इस का मतलब है कि हजारों धंधे बंद हो जाएंगे. फिल्म उद्योग पुरानी तरह का नहीं होगा. रेस्तरां, सिनेमा, मौल अब सालों तक पुराने रंग में नहीं आएंगे और जब तक सब ठीक होगा तब तक उन के रंग पुरानी हवेलियों की तरह उड़ चुके होंगे. घरों के मनोरंजन या कहिए काम की ऊब निकालने के तरीके पहले कोरोना ने बंद किए, अब चीनी ड्रैगन बंद कर रहा है.

दोनों जिस तरह से फैले हैं, उस से पहले जैसे अर्थव्यवस्था को चौपट किया गया है, उस से साफ है कि अंधेर नगरी चौपट राजा वाला युग चल रहा है. दिक्कत यह है कि दूसरे बहुत से देशों में यही हो रहा है.

अमेरिका सब से बड़ा उदाहरण है. यहां के खप्ती राजा डोनाल्ड ट्रंप भी अपने अलग कानून लिख रहे हैं. टर्की के सुलतान रिसेप तैइप इदोगान भी इसी तर्ज पर हैं, जिन्होंने इस्तांबूल की छठी शताब्दी की इमारत सोफिया को संग्रहालय से मसजिद बना कर मसजिद को तोड़ कर मंदिर बनाने जैसा काम किया है.

इस सब का दोषी जनता भी है, आप भी हैं. यथा राजा तथा राज्य. ए पीपल डिजर्व द किंग व्हाट दे आर. लोग जैसे होते हैं वैसा ही शासक मिलता है. जो लोग व्हाट्सऐपों, फेसबुकों, फौरवर्ड किए ज्ञान पर जिंदा रहते हैं उन से और क्या उम्मीद की जा सकती है. चीन, कोरोना, जीएसटी, नोटबंदी हमारी अपनी देन है. इसे ऐंजौय करें. तालियांथालियां बजाएं. सब दुख ऐसे ही दूर हो जाएंगे जैसे मंदिरमसजिद में जाने से दूर हो जाते हैं.

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 औनलाइन शिक्षा चुनौती नहीं अवसर भी

लेखक- राजेश वर्मा

कोरोना जैसी महामारी ने देश में ही नहीं, अपितु दुनियाभर में मानवीय जीवन की अर्थव्यवस्थाओं को भी पटरी से उतार दिया है. कोविड-19 नामक इस महामारी ने अर्थव्यवस्थाओं को कई साल पीछे धकेल दिया है.

आज ज्यादातर देशों में लौकडाउन व कर्फ्यू जैसे हालात हैं, सिवा जरूरी चीजों व सेवाओं के, अन्य सभी प्रकार के संस्थान बंद हैं. यहां तक कि अस्पतालों में सामान्य ओपीडी तक बंद हैं. इस बंद में एक चीज जिस को ले कर सभी चिंतित हैं, वह है शिक्षा.

वैसे देखा जाए तो शिक्षा भी एक जरूरी चीज है तभी ज्यादातर राज्यों में शैक्षणिक संस्थानों के बंद होने के बावजूद इसे तकनीक के माध्यम से हर घर व हर बच्चे तक पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे हैं.

आज सभी यही सोच रहे हैं कि ऐसे मुश्किल हालात में शिक्षा का बहुत नुकसान हो रहा है या होगा, लेकिन यह पूरी तरह से सच नहीं है.

इस कोरोनाकाल में बहुत से सकारात्मक पहलुओं को भी खोल दिया है. हम अर्थव्यवस्था के डूबने की बात कर रहे हैं, लेकिन इसी अर्थव्यवस्था में औनलाइन शिक्षा एक ऐसी चीज है, जो न केवल अर्थव्यवस्था के लिए भी संजीवनी साबित होगी, बल्कि देश में पढ़ने वाले करोड़ों स्टूडैंट्स के लिए वरदान सिद्ध हो सकती है.

भारत में औनलाइन शिक्षा ने हाल के दिनों में तेजी से प्रगति देखी है. जिस से शिक्षा क्षेत्र सब से अधिक चर्चा का विषय बन गया है. इस ने कक्षा आधारित शिक्षा में स्थान, पहुंच, परिवहन और लागत आदि जैसी कुछ प्रमुख सीमाओं को हटा दिया है.

भारत में हर साल औनलाइन शिक्षामित्र बेहतर शिक्षा और रोजगार के अवसरों के लिए दूसरे देशों में जाते हैं. यदि ऐसे ही मौके और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा छात्रों को अपने घरों में बैठे हुए ही प्राप्त हो जाए तो वे विदेशों में यात्रा करने व अध्ययन के लिए हजारों डौलर खर्च क्यों करेंगे?

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औनलाइन शिक्षा ने शिक्षा को पहुंचाने के तरीके में क्रांति ला दी है. संयुक्त राष्ट्र व्यापार व विकास सम्मेलन यानी यूएनसीटीएडी ने कहा है कि दुनिया में सब से बड़ी अर्थव्यवस्थाएं संभवतया भारत और चीन को छोड़ कर मंदी के लिए नेतृत्व कर सकती हैं.

मतलब साफ है, कोविड-19 से जू झ रही दुनियाभर की अर्थव्यवस्थाओं को भविष्य में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है. कोई देश इस से अछूता नहीं है, लेकिन इस में भारत के लिए बहुतकुछ सकारात्मक है जो इसे महामारी के दौर में भी विश्व का नेतृत्व करने की बागडोर सौंप सकता है और यह नेतृत्व शिक्षा के क्षेत्र में भी हो सकता है.

कोरोना संकट ऐसे समय आया है  जब देश के शैक्षिक कैलेंडर का महत्त्वपूर्ण समय था. ज्यादातर राज्यों में बोर्डों की कुछेक परीक्षाओं को छोड़ दिया जाए तो स्कूली परीक्षाएं लगभग हो चुकी हैं. बोर्ड परीक्षाओं को छोड़ अन्य सभी कक्षाओं के बच्चों को अगली कक्षाओं में प्रमोट कर दिया गया है. आगामी शैक्षणिक सत्र को ईशिक्षा या औनलाइन शिक्षा के माध्यम से शुरू कर दिया गया है.

आज ज्यादातर राज्यों में लौकडाउन के चलते बच्चों को घरों में ही शिक्षा को पहुंचाने का काम किया जा रहा है और इस माहौल में भारत में शिक्षा के भविष्य के बारे में भी चर्चा शुरू हो गई है.

भारत में औनलाइन शिक्षा कोरोना वायरस के संकट से पहले ही उफान की ओर थी,  कोविड-19 के दौर में इसे स्थापित होने का अवसर मिला है.

गूगल और केपीएमजी की साल 2016 की एक रिपोर्ट बताती है कि देश में औनलाइन शिक्षा बाजार 52 फीसदी सालाना की दर से तेजी से विस्तार

कर रहा है. साल 2016 में देश में औनलाइन शिक्षा बाजार की वैल्यू तकरीबन17.5 अरब रुपए थी.

इस रिपोर्ट में उम्मीद जताई गई थी कि भारत में साल 2021 तक औनलाइन शिक्षा का बाजार 1खरब 37 करोड़ 20 लाख रुपए का होगा. रिपोर्ट के अनुसार, बीते 2 साल में शिक्षा के लिए औनलाइन सर्च में दोगुना वृद्धि हुई है, जबकि मोबाइल फोनों से सर्च में तीनगुना बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

उल्लेखनीय है कि इस तरह की लगभग आधी सर्च देश के 6 प्रमुख महानगरों से बाहर से की गई है. मतलब साफ है, औनलाइन शिक्षा शहरों में ही नहीं, बल्कि गांवों में भी अपने पांव पसार रही है. यूट्यूब पर शिक्षा सामग्री की खपत कोविड-19 के बाद से  लगातार बढ़ रही है.

आज वर्क फ्रौम होम की बात की जा रही है, लेकिन शिक्षा क्षेत्र में तो एजुकेशन फ्रौम होम तो व्यावहारिक रूप से लागू होता नजर आ रहा है.

यह सच है कि देश में औनलाइन शिक्षा के मामले में बहुत सी चुनौतियां हैं, लेकिन इन चुनौतियों में अवसर भी तो हैं. और ये अवसर वर्तमान के लिए ही नहीं, बल्कि कोरोना से संक्रमित अर्थव्यवस्था के लिए भविष्य में संजीवनी साबित होंगे.

भारत में एक नहीं, कई स्तरीय शिक्षा व्यवस्थाएं हैं उच्च शिक्षा सर्वेक्षण के अनुसार, देश में 15 लाख स्कूल और 39 हजार कालेज हैं. इन में लगभग 26 करोड़ बच्चे स्कूलों में और 2.75 करोड़ छात्र अंडर ग्रैजुएशन शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं.

देश में पढ़ने वाले पोस्टग्रैजुएट छात्रों की बात करें तो यह आंकड़ा 40 लाख है. इतनी बड़ी शिक्षा व्यवस्था के बीच देश में तेजी से औनलाइन शिक्षा की ओर कदम बढ़ रहे हैं.

आज ग्रामीण क्षेत्रों में औनलाइन शिक्षा को ले कर जरूर कुछेक कमियां हैं, जैसे सभी बच्चों व अभिभावकों के पास एंड्रौयड फोन, लैपटौप या इस तरह के गैजेट्स का न होना वगैरह. दूसरा, ग्रामीण क्षेत्रों में नैटवर्क की समस्या आदि अस्थायी बाधाएं हैं, लेकिन इन्हें दूर करना कोई ज्यादा मुश्किल नहीं है. औनलाइन पढ़ाई पर होने वाला खर्च बेहद कम है.

सरकारी कालेज में जहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए एक छात्र को औसतन 5 से 6 लाख रुपए खर्च करने पड़ते हैं, वहीं प्राइवेट कालेजों में यही खर्च 8 से 10 लाख रुपए के बीच बैठता है.

केपीएमजी की रिसर्च और एनालिसिस की रिपोर्ट कहती है कि अंडरग्रैजुएट औनलाइन पढ़ाई के लिए होने वाला यूजर्स का औसत खर्च 15 से 20 हजार रुपए है.

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भारत अमेरिका के बाद  ईलर्निंग के लिए दूसरा सब से बड़ा बाजार बन गया है. वर्तमान में यह क्षेत्र 2 अरब अमेरिकी डौलर आंका गया है और इस साल के अंत तक 3खरब 99 अरब रुपए तक पहुंचने की उम्मीद है.

भारत में औनलाइन शिक्षा के उपयोगकर्ताओं के साल 2016 में 16 लाख से बढ़ कर साल 2021 तक 96 लाख तक पहुंचने की उम्मीद है. भारत में लंबे समय से  आपूर्ति की तुलना में गुणात्मक शिक्षा की मांग अधिक बनी हुई है.

देश की परंपरागत शिक्षा प्रणाली चाहे स्कूल स्तर पर हो या कालेज और विश्वविद्यालीय स्तरीय हो, इन में मांग को पूरा करने के लिए पर्याप्त सीटें नहीं हैं. नर्सरी स्कूलों से ले कर टौप कालेजों में दाखिला लेना एक बुरे सपने जैसा है. मांबाप अपने बच्चे को 3 या 4 साल की उम्र में एक अच्छे स्कूल में लाने के लिए कई महीनों तक जदेजेहद करते रहते हैं. औनलाइन शिक्षा प्रणाली इन सभी समस्याओं का समाधान करती नजर आती है.

भले ही आज दुनिया कोविड-19 की महामारी से जू झ रही है, लेकिन इस ने हमारा उन अवसरों की ओर भी ध्यान खींचा है जो शिक्षा क्षेत्र के साथसाथ अर्थव्यवस्था के लिए भी अहम भूमिका निभा सकते हैं.

मेहंदी से लेकर ऑफ्टर शादी तक, हर फंक्शन के बेस्ट हैं ‘दीया और बाती हम’ एक्ट्रेस के ये लुक

कोरोनावायरस के बढ़ते कहर के बीच इन दिनों सेलेब्स की शादी का सिलसिला जारी है. हाल ही में बाहुबली फेम साउथ के एक्टर राणा दग्गूबाती ने शादी की थी. वहीं अब पौपुलर टीवी सीरियल ‘दीया और बाती हम’ में आरजू राठी के रोल में नजर आ चुकीं एक्ट्रेस प्राची तेहलान भी शादी के बंधन में बंध चुकी हैं.

बीते शुक्रवार यानी 7 अगस्त को प्राची तेहलान ने दिल्ली के बिजनेसमैन रोहित सरोहा से शादी की थी. वहीं अब दोनों की शादी की फोटोज सोशलमीडिया पर वायरल हो रही है. लेकिन आज हम प्राची तेहलान की लव लाइफ की बजाय मेहंदी से लेकर शादी तक के आउटफिट की बात करेंगे, जिसे आप भी आसानी से ट्राय कर सकती हैं. आइए आपको दिखाते हैं प्राची तेहलान के वेडिंग आउटफिट्स की फोटोज….

1. शादी फंक्शन के शुरूआत के लिए परफेक्ट है ये लुक 

शादी के फंक्शन के शुरूआत के लिए अगर आप लाइट लेकिन कुछ ट्रैंडी पहनना चाहती हैं तो प्राची की तरह अनारकली सूट के साथ प्लाजो और कढ़ाईदार दुपट्टा आपके लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा. ये ट्रेंडी के साथ-साथ स्टाइलिश भी है. इसके साथ ज्वैलरी की बात करें तो आप हैवी ज्वैलरी ट्राय कर सकती हैं ये आपके लुक को कम्पलीट करेगा.

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2. मेहंदी के लिए ट्राय करें ये लुक

अगर आप मेहंदी के फंक्शन में सिंपल ग्रीन लुक ट्राय करना चाहती हैं तो प्राची की तरह प्लेन डार्क ग्रीन शरारा लुक को श्रग पैटर्न वाले कुर्ते के साथ ट्राय करें. ये लुक आपके मेहंदी लुक को सिंपल लेकिन ट्रैंडी बनाएगा.

3. हल्दी के लिए परफेक्ट है ये लुक

अगर आप हल्दी में ट्रैंडी लुक ट्राय करना चाहती हैं तो प्राची तेहलान का रफ्फल लुक परफेक्ट है. प्लेन यैलो कलर के रफ्फल पैटर्न वाले लहंगे के साथ हैवी एम्ब्रौयडरी वाले ब्लाइज से अपने लुक को कम्पलीट करें. इस लुक के साथ आप मल्टी कलर ज्वैलरी ट्राय कर सकते हैं.

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4. शादी का लुक है जरूरी

इन दिनों शादी के लहंगे का पैटर्न और ट्रैंड दोनों बदल गया है. जहां दुल्हनें पहले हैवी लहंगा चुनती थी तो वहीं अब सिंपल लहंगे के साथ हैवी ज्वैलरी चुनती हैं. प्राची तेहलान ने भी कुछ ऐसा है किया. लाइट एम्ब्रायडरी वाले लहंगे के साथ हैवी ब्लाउज और सिंपल लाल दुपट्टा पहना. ज्वैलरी के बात करें तो हैवी मांग टीके से लेकर मल्टी लेयर हार पहनें प्राची बेहद खूबसूरत लग रही थीं. आप भी प्राची तेहलान के इन  लुक को अपनी शादी में ट्राय कर सकते हैं.

5. शादी के बाद का लुक भी हो खास

अगर आप सोच रही हैं कि शादी के बाद का लुक कैसा हो तो प्राची तेहलान की तरह हैवी प्रिंट वाले लौंग अनारकली सूट को आप ट्राय कर सकती हैं. इसकी ज्वैलरी हल्की हो तो वह आपके लुक को एलिंगेंट बना सकते हैं.

मास्क पहनें, मगर प्यार से 

मास्क अभी हर किसी के जीवन का एक अभिन्न अंग बन चुका है. क्योंकि कोरोना वायरस को फैलने से रोकने का एकमात्र साधन मास्क ही है. हेल्थ केयर प्रोफेशनल्स अब किसी भी मरीज़ की जांच के लिए मास्क पहनने लगे है. ये पूरा विश्व कर रहा है. आम जनता को भी कही भी जाने पर आज मास्क पहनने के अलावा कोई चारा नहीं है. क्योंकि भारत जैसे घनी आबादी वाले देश में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना बहुत कठिन है.

यह अब लाइफस्टाइल में शामिल होकर स्टाइल स्टेटमेंट बन चुका है. यही वजह है कि डिज़ाइनर्स आजकल पोशाक के साथ-साथ तरह-तरह के मास्क भी बना रहे है. इतना ही नहीं ज्वेलर्स भी रत्न और सेमी प्रिसीयस स्टोन्स के साथ अलग-अलग डिजाईन के मास्क बनाकर लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर रहे है.

इस बारें में स्ट्रेटेजिक मेडिकल एफेयर एड्रोइट बायोमेड लिमिटेड के डायरेक्टर डॉ.अनिश देसाई का कहना है कि इस समय मास्क पहनना जरुरी है. लेकिन सही मास्क का भी पहनना बहुत आवश्यक है. क्योंकि जब आप बाहर जा रहे है. तो घंटो मास्क पहनकर रहना पड़ता है. जिससे निम्न समस्या आ सकती है.

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  • टाइट मास्क से चेहरे की स्किन का डैमेज होना.
  • मास्क एरिया पर एक्ने का बढ़ना.
  • खासकर हेल्थ केयर से जुड़े लोगों को टाइट मास्क पहनना पड़ता है. ऐसे में मास्क वाले जगह पर लाल धारियों का उभरना. इरीटेशन होना. पिम्पल्स का बढ़ना. स्किन का डार्क हो जाना आदि होता है. क्योंकि इन स्थानों की चमड़ी नरम होती है और बार-बार मास्क के किनारों के रगड़ से उस स्थान पर इन्फ्लेमेशन होने लगता है. जिससे वहां की चमड़ी सेंसेटिव हो जाती है. सेंसरी नर्व्स एक्टिव हो जाते है. इसका अधिक प्रभाव सेंसेटिव स्किन पर पड़ता है. लोशन और क्रीम भी इसे कम करने में असमर्थ होता है.

डॉक्टर अनिश आगे कहते है कि असल में मास्क पहनने से त्वचा पर डायरेक्ट फ्रिक्शन होता है. जिससे इरीटेशन और इन्फ्लेमेशन का होना साधारण है. इसके अलावा मास्क अपने अंदर नमी. सेलाईवा. म्यूकस. आयल. गन्दगी और पसीने को बाहर आने से रोकती है. इससे माइल्ड से मॉडरेट एक्ने. स्क्ज़ेमा. आदि कई त्वचा सम्बंधित बिमारियां हो सकती है. सेंसेटिव त्वचा वाले व्यक्ति को फेसियल रेडनेस. रोजेसिया और स्केलिंग का सामना करना पड़ सकता है. ये अधिकतर उन व्यक्तियों को होता है. जिनकी स्किन अधिक सेंसेटिव हो या उनके आसपास नमी युक्त या अधिक शुष्क वातावरण हो. कुछ सुझाव निम्न है.

  • मास्क त्वचा को चोट पहुंचाए बिना. नाक और मुंह को अच्छी तरह से ढकी हुई होनी चाहिए. लेकिन टाइट न हो.
  • चेहरे को मुलायम साबुन से दिन में दो बार धोने की कोशिश करें.
  • अगर आप हेल्थ केयर से जुड़े नहीं है. तो मास्क लम्बी अवधि के लिए पहनने से परहेज करें.
  • मास्क के गीले हो जाने पर इसे उतार कर दूसरा पहने.
  • अगर आपको अधिक समय तक मास्क पहननी है तो एक्स्ट्रा मास्क साथ में लें और यूस्ड मास्क को एक अलग प्लास्टिक बैग में जमाकर घर आने पर अच्छी तरह से धोकर सुखा लें.
  • कॉटन के फेस मास्क त्वचा के लिए अच्छा होता है. इसे निकालने के बाद गरम पानी और साबुन से धो लें.
  • मास्क उतारने के बाद हाइपोएलर्जेनिक मोयसस्चराइजर चेहरे पर लगाए. ऑइंटमेंट बेस्ड मोयास्चराइजर न लगायें. क्योंकि ये पसीने और आयल को अपने में समेटती है.
  • मास्क से स्किन इरीटेशन को कम करने के लिए नाक और सेंट्रल चीक के पास जहाँ नोजपीस होता है. वहां ठंडक पहुँचाने वाले क्रीम का प्रयोग करें.
  • त्वचा को हाइड्रेट रखने के लिए क्लींजिंग के बाद मोयास्चराइज करें. आयल फ्री मोयसस्चराइजर दिन में कई बार त्वचा की इन्फ्लेमेशन को कम करने के लिए प्रयोग करें.

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  • स्क्रब और एक्सफोलिएटर्स का प्रयोग इस समय चेहरे पर न करें.
  • पेट्रोलियम जेली या मुलायम क्रीम से त्वचा की ड्राईनेस को कम किया जा सकता है.
  • अगर ये सब करने के बाद भी कुछ समस्या आती है तो चर्मरोग विशेषज्ञ से तुरंत संपर्क कर दवा लें.
  • मास्क पहनने से पहले भूलकर भी हैवी मेकअप या फाउंडेशन न लगायें. क्योंकि इससे दाग धब्बे के अलावा एक्ने होने की संभावना बढ़ जाती है.
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