आरामदायक बेड पर सोने का अलग ही मजा है ! 

हर आदमी अपने जीवन का लगभग एक तिहाई हिस्सा विस्तर पर गुजारता है. ऐसे में बेड बिस्तर पलंग की अनदेखी नहीं की जा सकती. बेडरूम महज आराम करने की जगह नहीं है यह वह जगह है जहां रहने-बैठने पर सुकुन मिलता है. तो आईये आज जानते है, कुछ खास आराम दायक बेड के बारे में ….

स्टाइलिश बेड पर शान के साथ आराम से सोये 

आजकल लोग आर्डर देकर मनपसंद बेड भी तैयार कराते हैं. जाहिर तौर पर, इनमें जमाने के चलन की बजाय निजी पसंद को तरजीह दी जाती है. इस तरह के बेड ब्रांडेड फर्नीचर के मुकाबले न सिर्फ सस्ते, बल्कि ज्यादा स्टाइलिश भी होते हैं. लाइफ स्टाइल बदलने के साथ ही बेडरूम में स्टाइलिश फर्नीचर का होना सामान्य बात हो गयी है. पुराने जमाने में शान का माने जाने वाले ऊंचे और बड़े बेड अब फैशन से बाहर हो गये है. उनकी जगह अब लकड़ी और लोहे के काम वाले ट्रेंडी बेड्स ने ले ली है. कम ऊंचाई वाले डबल बेड खासे चलन में है. कम ऊंचाई के अलावा, बेड की अलग-अलग शेप भी लोगों को खूब पसंद आ रही है. अब तो गोलाकार बेड भी चलन में है.

डिजाइनर बेड न सिर्फ जगह, बल्कि कम्फर्ट और स्टाइल का भी ध्यान रखते है. कस्टमर्स की बदलती जरूरतों और पसंद को देखते हुए नये-नये स्टाइल के बेड डिजाइन किए जाते हैं. आजकल लोग कम उंचाई वाले बेड ही पसंद करते हैं. ये बेड टीक वुड से बने होते हैं और इनकी सतह पर कई तरह की पॉलिश की जाती है. साइड कैबिनेट और बैकरेस्ट भी लोगों को आकर्षित करते हैं. पहले बैक रेस्ट बड़े होते थे, जिनमें चीजों को रखने के लिए स्पेस होता था, लेकिन अब बैक रेस्ट छोटे और कर्व वाले बनाए जाते हैं, जो ज्यादा आरामदायक होते हैं. बिल्कुल लेटेस्ट फैशन के मुताबिक युवा अब बिना बैकरेस्ट वाले बेड की ज्यादा डिमांड कर रहे हैं.

ऐसे ही डिजाइनों के ब्रांडेड बेड भी अब मार्केट में मौजूद हैं. इन्हें बनाने वाली कंपनियों में गोदरेज राज विलास, ड्यूरियन, उषा लेक्सस, फर्नीचर्स और टोटल फर्नीचर सोल्यूशन हैं, लेकिन ज्यादातर लोग अभी भी अपनी पसंद और स्टाइल बेड आर्डर देकर बनवाने में ही भरोसा करते हैं. हाल ही में अपना घर डेकोरेट कराने वाले शर्माजी बताते हैं, इंटीरियर डिजाइनर की मदद से मैंने लेटेस्ट डिजाइन और अपनी जरूरतों व आराम के मुताबिक अपने बेडरूम को सजाया. आर्डर देकर बनवाए गए बेड ब्रांडेड की तुलना में सस्ते साबित हुए. इसके अलावा आर्डर देकर बेड बनवाने से हमें अपनी पसंद और स्टाइल के मुताबिक ज्यादा च्वाइस मिल सकी.

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 प्लेटफार्म बेड ले आनन्दायक नींद

बेडरूम का सेंट्रल एट्रैक्शन है बेड. बेड की साइज, डिजाइन के कई विकल्प बाजार में है. कम ऊंचाई यानी प्लेटफार्म बेड की पिलवक्त काफी मांग है. अपनी स्टाइल से आकर्षित करने वाला प्लेटफार्म बेड जापानीज स्टाइल है. बेडरूम का स्पेशल लुक देने के लिए पारम्परिक ऊंचे बेड की बजाय प्लेटफार्म बेड रख सकते हैं. प्लेटफार्म बेड का ोम वुड, मेटल, हार्डबोर्ड, फुटबोर्ड, लेदर का बना सकता है. इन दिनों स्लेट टाइप बेड भी पसंद की ऊपरी पायदान पर है. प्लेटफार्म बेड की तरह स्लेट बेड की खास बात यह होती है कि इसे पूरे वुडेन प्लेटफार्म की बजाये लकड़ी की स्लेट्स को जोड़कर बनाया जाता है. इसमें गड्डों के नीचे एयर सर्कुलेशन की जगह होती है. गर्मियों में गङ्ढे ज्यादा गर्म नहीं रहते.

प्लेट टाइप बेड भी प्रचलन में है. इसमें एक बड़ा वुडेन प्लेटफार्म बेड के फ्रेम में फिट कर दिया जाता है. गद्दों को सपोर्ट देने के लिए किनारे उभरे होंगे या नहीं यह व्यक्ति विशेष की पसंद पर निर्भर करता है. इसी प्रकार तमामी स्टाइल के बेड भी आकर्षक लगते हैं और आरामदायक भी है. इसे नेचुरल फाइबर से बनाया जाता है. प्लेटफार्म सर्फेस के लिए तमामी भेट का प्रयोग किया जाता है. जापानी तताकी मैट इकाोंडली भी होता है. जापान में काफी मात्रा में फ्लोर या बेड सर्फेस के लिए इसका प्रयोग होता है. प्लेटफार्म बेड बनाने से पहले इन्हें नेचुरल फाइबर की चार लेयर डालकर तिनकों से बुना जाता है. ततानी मैट को जूटमैट अथवा बनाना फाइबर से भी तैयार किया जा सकता है.

प्लेटफार्म बेड भले ही कम ऊंचाई के होते हों, लेकिन इन्हें जरूरत और पसंद के अनुरूप बनाया जा सकता है. स्थोरोज ड्राइर्स बेड के निचले हिस्से या सिरहाने हो सकते हैं. जरूरत के छोटे सामान, तकिये, चादर, कवर आदि रखे जा सकते हैं. सबसे बड़ी विशेषता प्लेटफार्म बेड लगभग मैंटनेंसफ्री होते हैं. बच्चों के कमरों के लिए तो ऐसे बेड सर्वश्रेष्ठ होते हैं. पलंग से गिरना, पलंग से कुदना जैसे रिस्क फैक्टक नहीं रहते हैं. इंटीरियर एक्सपट्र्स भी मानते है कि प्टेलफार्म बेड हर स्टाइल को सपोर्ट करते हैं. मार्डन बेडरूम में जितने अच्छे लगते हैं ट्रेडिशनल स्टाइल के बेडरूम में भी बेहद खूबसूरत लगते हैं. हां एक बात सच है कि उम्रदराज लोगों के लिए प्लेटफार्म बेड थोड़ी परेशानी करते हैं. घुटने एवं पीठ दर्द से परेशान लोगों, के लिए ऐसे बेड अनुकुल नहीं होते हैं. प्लेटफार्म बेड की ऊंचाई एक से डेढ़ फीट तक ही होती है जिससे इन्हें परेशानी होती है.

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घर पर बनाएं टेस्टी और हेल्दी लच्छा रोल

घर पर अक्सर हम रोल बनाते हैं, जो टेस्टी तो होते हैं पर कई हद तक हेल्दी नही होते. आज हम आपको हेल्दी और टेस्टी लच्छा रोल की रेसिपी के बारे में बताएंगे, जिसे आप आसानी से घर पर अपने बच्चों और फैमिली को स्नैक्स के तौर पर खिला सकते हैं. ये कम समय बनने वाला स्नैक्स है, जिसे आप कभी भी बना कर खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

200 ग्राम खोया

60 ग्राम पिसी चीनी

1/2 कप अखरोट

1 कप बादाम लच्छा

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20-25 छुहारे

1/2 कप पिस्ता चूरा

15-20 बादाम गिरी.

बनाने का तरीका

छुहारों को 4-5 घंटे के लिए पानी में भिगो दें. नर्म होने पर गुठलियां निकाल मिक्सी में पीस कर पेस्ट बना लें. अखरोट को भी दरदरा पीस लें. खोए को कड़ाही में डाल कर मंदी आंच पर अच्छी तरह भून लें.

छुहारा पेस्ट व अखरोट पाउडर मिला कर लगातार चलाते हुए थोड़ा और भूनें. जब मिश्रण कड़ाही छोड़ने लगे तब आंच से उतार लें. थोड़ा ठंडा होने पर चीनी मिला लें.

तैयार खोए के मनचाहे आकार के रोल्स बनाएं. थाली में बादाम लच्छा व पिस्ता चूरा बिछाएं. रोल्स को थाली में रख कर अच्छी तरह घुमाएं ताकि बादाम लच्छा व पिस्ता चूरा उन पर चिपक जाएं. प्रत्येक रोल पर बादाम रख कर सर्व करें.

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डाक्टर ने मुझे नीरिप्लेसमैंट की सलाह दी है, लेकिन कोविड-19 के कारण में सर्जरी कराने से डर रही हूं?

सवाल

 मेरी उम्र 58 वर्ष है. मुझे दोनों घुटनों के जोड़ों का औस्टियोआर्थ्राइटिस है.  डाक्टर ने मुझे नीरिप्लेसमैंट की सलाह दी है, लेकिन कोविड-19 के कारण में सर्जरी कराने से डर रही हूं. कृपया बताएं कि मुझे क्या करना चाहिए?

जवाब

कोरोना वायरस के संक्रमण के दौरान सर्जरी को थोड़ा समय रुक कर कराने की सलाह दी जा रही है खासकर बुजुर्गों को जो पहले से ही किसी स्वास्थ्य समस्या जैसे डायबिटीज और फेफड़ों से संबंधित किसी बीमारी के शिकार हैं, उन के लिए खतरा अधिक है. इन लोगों को संक्रमण से बचने के लिए जितना अधिक से अधिक समय तक हो सर्जरी से बचना चाहिए, क्योंकि अस्पताल में रहने के दौरान या सर्जरी के पश्चात रिकवरी के समय जैसे फिजियोथेरैपी या फोलोअप ड्रैसिंग संक्रमण की चपेट में आने का खतरा बढ़ा सकती है.

वैसे आप की उम्र बहुत अधिक नहीं है, अगर आप को कोई अन्य स्वास्थ्य समस्या नहीं है और सर्जरी कराना बहुत जरूरी है तो आप अपने डाक्टर की सलाह से नीरिप्लेसमैंट सर्जरी का सही समय चुन सकती हैं.

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युवतियां माहवारी शुरू होने के बाद ही किशोरावस्था में पहुंचती हैं. फिर धीरेधीरे बायोलौजिकल, हार्मोनल और मनोवैज्ञानिक बदलावों से गुजरते हुए वे वयस्क होती हैं. जिंदगी के ये पड़ाव उन के शरीर में कई बदलाव ले कर आते हैं. इन सब से ज्यादा परेशानी उन्हें हड्डियों व जोड़ों की होती हैं, क्योंकि युवतियां अपने शरीर में हो रहे बदलावों के प्रति लापरवाह होती हैं, जिस से उन्हें कई तरह की बीमारियों जैसे औस्टियोपोरोसिस व औस्टियोआर्थ्राइटिस का सामना करना पड़ता है.

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सिंगिंग क्वीन नेहा कक्कड़ फैशन के मामले में भी नही है किसी से कम

पंजाबी गानों से लेकर बौलीवुड तक अपनी सिंगिंग से फैंस के दिल पर राज करने वाली नेहा कक्कड़ आए दिन अपनी पर्सनल या प्रौफेशनल लाइफ को लेकर सुर्खियों में रहती हैं. इन दिनों नेहा कक्कड़ अपनी वीडियो को लेकर सुर्खियों में बनी हुई हैं. लेकिन आज हम बात उनकी सिंगिंग या किसी शो की नही बल्कि उनके फैशन की बात करेंगे. नेहा की हाइट भले ही कम हो लेकिन उनका फैशन का जलवा कई बड़ा है. आज  हम नेहा के लहंगा फैशन के बारे में बात करेंगे, जिसे आप किसी वेडिंग हो या फैस्टिवल कभी भी ट्राय कर सकते हैं.

1. नेहा कक्कड़ का ये सिंपल लहंगा है पार्टी परफेक्ट

अगर आप किसी वेडिंग या फेस्टिवल के लिए कुछ नया ट्राय करने की सोच रही हैं तो नेहा कक्कड़ का ये सिंपल ब्लू कलर का लहंगे के साथ औफ स्लीव ब्लाउज जरूर ट्राय करें. वहीं अगर आपका लहंगा शाइनिंग है तो कोशिश करें की ब्लाउज एकदम सिंपल हो. ये आपके लुक के लिए परफेक्ट रहेगा.

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2. पार्टी के लिए परफेक्ट है नेहा का ये लहंगा.

पार्टी में अक्सर लोग ब्लैक का कौम्बिनेशन रखना ज्यादा पसंद करते हैं. अगर आप भी ब्लैक आउटफिट ट्राय करने का सोच रही हैं तो नेहा कक्कड़ का ये ब्लैक कलर का लहंगा जरूर ट्राय करें. वहीं ब्लैक लहंगे के साथ सिंपल ब्लैक औफ शोल्डर ब्लाउज जरूर ट्राय करें और ज्वैलरी के लिए आप गले को कवर करने वाला नेकपीस ट्राय कर सकती हैं. नेकपीस आपके औफशोल्डर ब्लाउज को नया लुक देगा और साथ ही हैवी इयरिंग्स आपके लुक को कम्पलीट करने में मदद करेगा.

3. फेस्टिवल के लिए परफेक्ट है नेहा का ये आउटफिट

अगर आप फेस्टिवल में कुछ लाइट कलर ट्राय करना चाहती हैं तो नेहा का आउटफिट आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. सिंपल लहंगे के साथ हैवी वर्क वाला लाइट ब्राउन कलर का रफ्फल लुक वाला लौंग ब्लाउज आपके लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा. साथ ही ज्वैलरी के लिए आप हैवी या चेन वाले इयरिंग्स रखें तो ये आपके लुक को कम्पलीच करेगा.

4. वेडिंग के लिए परफेक्ट है नेहा का ये लहंगा

अगर आप वेडिंग के लिए लहंगे के लिए औप्शन ढूंढ रहे हैं तो नेहा का ये ग्रे लहंगा आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. हैवी एम्ब्रौयडरी के साथ हैवी इयरिंग्स आपके लुक को रौयल बनाने में मदद करेगा.

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बेसन के इस्तेमाल से दूर करें ये 3 ब्यूटी प्रौब्लम

निखरी त्वचा पाने के लिए आप कई तरीके अपनाती हैं. लेकिन बेसन एक ऐसी चीज है, जो हर घर में इस्तेमाल होता है. कुछ लोग इसका इस्तेमाल फेस-वाश की तरह करते हैं तो कुछ फेस-मास्क के तौर पर.

त्वचा और बालों से जुड़ी कई समस्याओं के समाधान के लिए आप बेसन का इस्तेमाल कर सकती हैं. अगर आपके चेहरे पर अनचाहे बाल हैं, धूप की वजह से आपको टैनिंग हो गई है या फिर आपके बाल रूखे हो गए हैं तो, आप भी बेसन का इस्तेमाल कर सकती हैं. इसकी सबसे बड़ी खासियत ये है कि इसका कोई साइड-इफेक्ट नहीं है.

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  1. हेल्दी बाल

बेसन के पाउउर में बादाम, दही, और एक चम्मच औलिव औयल मिलाकर पेस्ट तैयार कर लें. आप चाहें तो इसमें अंडा भी मिला सकती हैं. इस पेस्ट को बालों में लगाकर, कुछ देर के लिए छोड़ दें. इससे बाल सौफ्ट और सेहतमंद हो जाएंगे.

2. अनचाहे बालों से छुटकारा पाने के लिए

अगर आप अनचाहे बालों से परेशान हैं तो बेसन पाउडर में मेथी पाउडर मिलाकर एक पेस्ट तैयार कर लें. इस पेस्ट को उन हिस्सों पर लगाएं जहां अनचाहे बाल हैं. जब ये पैक सूख जाए तो इसे बालों की ग्रोथ की उल्टी दिशा में हल्के हाथों से रगड़ कर छुड़ाएं. इसके बाद चेहरे को ठंडे पानी से धो लें.

3. टैनिंग दूर करने के लिए

बेसन पाउडर में दही, नींबू का रस, चुटकीभर हल्दी मिलाकर एक पेस्ट तैयार कर लें. इसे शरीर के प्रभावित हिस्सों में लगाएं. जब ये सूख जाए तो पानी से धो लें. उसके बाद मसाज करना न भूलें.

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सीजर: क्या दादाजी की कुत्तों से नफरत कम हो पाई?

कुत्ते का पिल्ला पालने की बात चली तो दादाजी ने अपनी अप्रसन्नता व्यक्त की, ‘‘पालना ही है तो मिट्ठू पाल लो, मैना पाल लो, खरगोश पाल लो…और कोई सा भी जानवर पाल लो, लेकिन कुत्ता मत पालो.’’

घर की नई पीढ़ी ने घोषणा की, ‘‘नहीं, हम तो कुत्ता ही पालेंगे. अच्छी नस्ल का लाएंगे.’’

दादाजी ने दलील दी, ‘‘भले ही अच्छी नस्ल का हो…मगर होगा तो कुत्ता ही?’’

नई पीढ़ी ने प्रतिप्रश्न किया, ‘‘तो क्या हुआ? कुत्ते में क्या खराबी होती है? वह वफादार होता है. इसीलिए आजकल सभी लोग कुत्ता पालने लगे हैं.’’

दादाजी का मन हुआ कि कहें, ‘हां बेटा, अब गोपाल के बजाय सब श्वानपाल हो गए हैं.’ किंतु इस बात को उन्होंने होंठों से बाहर नहीं निकाला.

कुत्ते की अच्छाईबुराई के विवाद में भी वे नहीं पड़े. व्यावहारिक कठिनाइयां ही बताईं, ‘‘कुत्ते बड़े बंगलों में ही निभते हैं क्योंकि वहां कई कमरे होते हैं, लंबाचौड़ा लौन होता है, खुली जगह होती है. इसलिए वह बड़े मजे से घूमताफिरता है. इस छोटे फ्लैट में बेचारा घुट कर रह जाएगा.’’

नई पीढ़ी ने दलील दी, ‘‘अपने आसपास ही छोटेछोटे फ्लैटों में कई कुत्ते हैं. आप कहें तो नाम गिना दें?’’

दादाजी ने इनकार में हाथ हिलाते हुए दूसरी व्यावहारिक कठिनाई बताई, ‘‘वह घर में गंदगी करेगा, खानेपीने की चीजों में मुंह मारेगा. कहीं पागल हो गया तो घर भर को पेट में बड़ेबड़े 14 इंजैक्शन लगवाने पड़ेंगे.’’

नई पीढ़ी ने इन कठिनाइयों को भी व्यर्थ की आशंकाएं बताते हुए कहा, ‘‘अच्छी नस्ल के कुत्ते समझदार होते हैं. वे देसी कुत्तों जैसे गंदे नहीं होते. प्रशिक्षित करने पर विदेशी नस्ल के कुत्ते सब सीख जाते हैं. सावधानी बरतने पर उन के पागल होने का कोई खतरा नहीं रहता है.’’

दादाजी ने अपनी आदत के अनुसार हथियार डाल दिए. नई पीढ़ी से असहमत होने पर भी वे ज्यादा जिद नहीं करते थे. अपनी राय व्यक्त कर छुट्टी पा लेते थे. इसी नीति से वे कलह से बचे रहते थे. इस मामले में भी उन्होंने यह कह कर छुट्टी पा ली, ‘‘तुम जानो…मेरा काम तो सचेत करना भर है.’’

अलसेशियन पिल्ला घर में आया तो दादाजी ने उस में कोई विशेष रुचि नहीं ली. वे आश्चर्य से उसे देखते रहे. वह अस्पष्ट सी ध्वनि करता हुआ उन के पैर चाटते हुए दुम हिलाने लगा, तब भी वे उस से दूरदूर ही रहे. उन्होंने उसे न उठाया, न सहलाया. हालांकि उस छोटे से मनभावन पिल्ले का पैरों को चाटना व दुम हिलाना उन्हें अच्छा लगा.

नई पीढ़ी ने खेलखेल में कई बार उस पिल्ले को दादाजी की गोद तथा हाथों में रख दिया, तब न चाहते हुए भी उन्हें उस पिल्ले के स्पर्श को सहना पड़ा. यह स्पर्श उन्हें अच्छा लगा. नरमनरम बाल, मांसल शरीर, बालसुलभ चंचलता आदि ने उन के मन को मोहा. घर में कोई छोटा बच्चा न होने से ऐसा स्पर्श सुख उन्हें अपवाद-स्वरूप ही मिलता था. इस पिल्ले के स्पर्श ने उसी सुख की अनुभूति उन्हें करा दी. फिर भी वे पिल्ले को अपने से परे हटाने का नाटक करते रहे. इसलिए नई पीढ़ी को नया खेल मिल गया. वे जब देखो तब दादाजी के पास उस पिल्ले को छोड़ने लगे. दादाजी का उस से कतराना एवं परे हटाने का प्रयास उन्हें प्रसन्नता से भर देता.

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नई पीढ़ी ने अपने चहेते पिल्ले का नाम रखा, सीजर.

दादाजी ने इस नाम का भारतीयकरण कर दिया, सीजरिया.

नई पीढ़ी ने शिकायत की, ‘‘दादाजी, सीजर का नाम मत बिगाडि़ए.’’

दादाजी ने सफाई दी, ‘‘मैं ने तो उसे भारतीय बना दिया.’’

‘‘यह भारतीय नहीं है…अलसेशियन है.’’

‘‘नस्ल भले ही विदेशी हो…मगर है तो यहीं की पैदाइश. इसलिए नाम इस देश के अनुकूल ही रखना चाहिए.’’

‘‘नहीं, इस का नाम सीजर ही रहेगा.’’

‘‘लेकिन हम तो इसे सीजरिया ही कहेंगे.’’

दादाजी को इस छेड़छाड़ में मजा आने लगा. नई पीढ़ी से बदला लेने का उन्हें अच्छा मौका मिल गया. वे लोग सीजर को उन के पास धकेल कर खुश होते रहते थे. दादाजी ने सीजर के नाम को ले कर जवाबी हमला कर दिया. इस हमले के दौरान वे सीजर को अपने दिए नाम से संबोधित करकर के अपने पास बुलाने लगे.

‘सीजरिया’ संबोधित करने पर भी पिल्ला जब ललक कर उन के पास आने लगा तो वे नई पीढ़ी को चिढ़ाने लगे, ‘‘देखा, सीजरिया को यह नाम पसंद है.’’

आएदिन की इस छेड़छाड़ ने दादाजी का सीजर से संपर्क बढ़ा दिया. अब वे उसे अपनी बांहों में भरने लगे, उठाने लगे, सहलाने लगे. नई पीढ़ी की अनुपस्थिति में भी वे उस से खेलने लगे. पलंग पर अपने पास लिटाने लगे. उस की चेष्टाओं पर प्रसन्न होने लगे. उस के स्पर्श से गुदगुदी सी अनुभव करने लगे.

एक दिन घर के लोगों ने दादाजी से प्रश्न किया, ‘‘आप तो इस के खिलाफ थे?’’

‘‘हां, था तो…मगर इस खड़े कान वाले ने मेरे मन में जगह बना ली है,’’ दादाजी ने मुसकराते हुए उत्तर दिया.

सीजर के लिए दादाजी का स्नेह दिनोदिन बढ़ता ही गया क्योंकि अपने खाली समय को भरने का उन्हें यह अच्छा साधन लगा. जब सीजर इस घर में नहीं आया था तब वे खाली समय बातों में, पढ़ने में, टीवी देखने में तथा ऐसे ही अन्य कामों में व्यतीत किया करते थे. बातों के लिए घर के लोग हमेशा सुलभ नहीं रहते थे क्योंकि दिन के समय सभी छोटेबड़े अपनेअपने काम से घर से बाहर चले जाते थे. कोई स्कूल जाता था तो कोई कालेज, कोई बाजार जाता था तो किसी को दफ्तर जाना होता था. खासी भागमभाग मची रहती थी. घर में रहने पर सभी की अपनीअपनी व्यस्तताएं थीं, इसीलिए दादाजी से बातें करने का अवकाश वे कम ही पाते थे.

लेदे कर घर में बस, दादीजी ही थीं, जो दादाजी के लिए थोड़ा समय निकालती थीं. किंतु उन के पास अपनी बीमारी और घर के रोनों के सिवा और कोई बात थी ही नहीं. आसपास भी कोई ऐसा बतरस प्रेमी नहीं था, इसलिए दादाजी बातें करने को तरसते ही रहते थे. कोई मेहमान आ जाता था तो उन की बाछें खिल उठती थीं.

पढ़ने और टीवी देखने में दादाजी की आंखों पर जोर पड़ता था. इसलिए वे अधिक समय तक न तो पढ़ पाते थे, न ही टीवी देख पाते थे. दैनिक समाचारपत्र को ही वे पूरे दिन में किस्तों में पढ़ पाते थे. घर की नई पीढ़ी उन के इस वाचन का मजा लेती रहती थी. सुबह के बाद किसी को यदि अखबार की आवश्यकता होती तो वह मुसकराते हुए दादाजी से पूछता, ‘‘पेपर ले जाऊं दादाजी, आप का वाचन हो गया?’’

सीजर ने उन के इस खाली समय को भरने में बड़ा योगदान दिया. वह जब देखो तब दौड़दौड़ कर उन के पास आने लगा, उन के आसपास मंडराने लगा. दादाजी उसे उठाने और सहलाने लगे तो उस का आवागमन उन के पास और भी बढ़ गया. घर के दूसरे लोगों को उसे पुकारना पड़ता था, तब कहीं वह उन के पास जाता था. दादाजी के पास वह बिना बुलाए ही चला आता था. घर के लोग शिकायत करने लगे, ‘‘दादाजी, आप ने सीजर पर जादू कर दिया है.’’

सीजर जब इस घर में नयानया आया था तब उस का स्पर्श हो जाने पर दादाजी हाथ धोते थे. खानेपीने से पहले तो वे साबुन से हाथ धोए बिना किसी वस्तु को छूते नहीं थे. वही दादाजी अब सारासारा दिन सीजर के स्पर्श में आने लगे. किंतु हाथ धोने की सुध उन्हें अब न रहती. खानेपीने की वस्तुएं उठाते समय भी साबुन से हाथ धोना वे कई बार भूल जाते थे. नई पीढ़ी कटाक्ष करने लगी, ‘‘दादाजी, गंदे हाथ.’’

दादाजी उत्तर देने लगे, ‘‘तुम ने ही भ्रष्ट किया है.’’

सीजर के प्रति यों उदार हो जाने के बावजूद यह भ्रष्ट किए जाने वाली बात दादाजी को फांस की तरह चुभती रहती थी. यह शिकायत उन्हें शुरू से ही बनी हुई थी. सीजर का सारे घर में निर्बाध घूमना, यहांवहां हर चीज में मुंह मारना उन्हें खलता रहता था. रसोईघर में उस का प्रवेश तथा भोजन करते समय उस का स्पर्श वे सहन नहीं कर पाते थे. इसलिए कई बार उन्हें नई पीढ़ी को झिड़कना पड़ा था, ‘‘कुछ तो ध्यान रखा करो…अपने संस्कारों का कुछ तो खयाल करो.’’

इस शिकायत के होते हुए भी सीजर का जन्मदिन जब मनाया गया तो दादाजी ने भी घर भर के स्वर में स्वर मिलाया, ‘‘हैप्पी बर्थ डे टू यू…’’

सीजर के अगले पंजे से छुरी सटा कर जन्मदिन का केक काटने की रस्म अदा कराई गई तो दादाजी ने भी दूसरों के साथ तालियां बजाईं.

केक का प्रसाद भी दादाजी ने लिया. सीजर के साथ फोटो भी उन्होंने सहर्ष खिंचवाई.

देखते ही देखते जरा से पिल्ले के बजाय सीजर जब ऊंचा, पूरे डीलडौल वाला बनता गया. दादाजी भी घर भर की तरह प्रसन्न हुए. उस में आए इस बदलाव पर वे भी चकित हुए. वह पांवों में लोटने के बजाय अब कंधों पर दोनों पैर उठा कर गले मिलने जैसा कृत्य करने लगा तो दादाजी भी गद्गद कंठ से उसे झिड़कने लगे, ‘‘बस भैया, बस.’’

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यों प्रेम दर्शाते हुए सीजर जब मुंह चाटने को बावला होने लगा तो दादाजी को पिंड छुड़ाना मुश्किल होने लगा. फिर भी उन्होंने उसे पीटा नहीं. हाथ उठा कर पीटने का स्वांग करते हुए वे उसे डराते रहे.

आसपास के बच्चे पत्थर फेंकफेंक कर या और कोई शरारत कर के सीजर को चिढ़ाने की कुचेष्टा करते तो दादाजी फौरन दौड़े जाते थे और उन शरारती बच्चों को झिड़कते थे, ‘‘क्यों रे, उस से शरारत करोगे तो वह मजा चखा देगा…भाग जाओ.’’

रात को जब कभी भी सीजर भूंकता था तो वे फौरन देखते थे कि क्या मामला है. उन से उठते बनता नहीं था, फिर भी वे उठ कर जाते थे. घर भर के लोग उन की इस तत्परता पर मुसकराते तो वे जवाब देते, ‘‘सीजर अकारण नहीं भूंकता है.’’

एक बार 10-12 दिन के लिए दादाजी को दूसरे शहर जाना पड़ा. वे जब लौटे तो बरामदे में ही सीजर उन से लिपट गया. दादाजी उस के सिर को सहलाते हुए बुदबुदाते रहे, ‘बस बेटा, बस…इतना प्रेम अच्छा नहीं है.’

दादाजी की नींद बड़ी नाजुक थी. संकरी जगह में उन्हें नींद नहीं आती थी. किसी अन्य का स्पर्श हो जाने से भी उन की नींद उचट जाती थी. किंतु सीजर ने उन की इन असुविधाओं की कतई परवा नहीं की. वह दादाजी से सट कर या उन के पैरों के पास सोता रहा. दादाजी उसे सहन करते रहे. टांगें समेटते हुए कहते रहे, ‘‘तू जबरदस्त निकला.’’

एक बार सीजर घर से गायब हो गया. पड़ोसियों से पता लगा कि वह घर के सामने की मेहंदी की बाड़ को फलांग कर भागा है. एक बार इस बाड़ में उलझा, फिर दोबारा कोशिश करने पर निकल पाया. बाहर निकल कर गली की कुतिया के पीछे लगा था.

इस जानकारी के प्राप्त होते ही इस घर की नई पीढ़ी सीजर को ढूंढ़ने निकल पड़ी. सभी का यही खयाल था कि वह आसपास ही कहीं मिल जाएगा.

दादाजी भी अपनी लाठी टेकते हुए सीजर को ढूंढ़ने निकले. दादीजी ने टोका, ‘‘तुम क्यों जा रहे हो? सभी लोग उसे ढूंढ़ तो रहे हैं?’’

मगर दादाजी न माने. वे गलीगली में भटकते हुए परिचितअपरिचित से पूछने लगे, ‘‘हमारे सीजर को देखा? अलसेशियन है, लंबा…पूरा…बादामी, काला और सफेद मिलाजुला रंग है. कान उस के खड़े रहते हैं.’’

उन की सांस फूलती रही और वे लोगों से पूछते रहे, ‘‘हमारे सीजर को तो आप पहचानते ही होंगे? उसे बाहर घुमाने हम लाते थे. वह लोगों को देखते ही लपकता था. चेन खींचखींच कर हम उसे काबू में रखते थे. उस ने किसी को काटा नहीं, वह बस लपकता था.’’

काफी भटकने के बाद भी न तो नई पीढ़ी को और न ही दादाजी को सीजर का पता लगा. सारा दिन निकल गया, रात हो  गई, किंतु सीजर लौट कर न आया.

सभी को आश्चर्य हुआ कि वह कहां चला गया. गली की कुतिया के पास भी नहीं मिला. इस महल्ले के सारे रास्ते उस के देखेभाले थे, वह रास्ता भी नहीं भूल सकता था. किसी के रोके वह रुकने वाला नहीं था.

दादाजी ने आशंका व्यक्त की, ‘‘किसी ने बांध लिया होगा…बेचारा कैसे आएगा?’’

नई पीढ़ी ने इस आशंका को व्यर्थ माना, ‘‘उसे बांधना सहज नहीं है. वह बांधने वालों का हुलिया बिगाड़ देगा.’’

‘‘दोचार ने मिल कर बांधा होगा तो वह बेचारा क्या करेगा, असहाय हो जाएगा,’’ दादाजी ने हताश स्वर में कहा.

नई पीढ़ी ने उन की इस चिंता पर भी ध्यान न दिया तो वे बोले, ‘‘नगर निगम वालों ने कहीं न पकड़ लिया हो?’’

दादाजी के पुत्र झल्लाए, ‘‘कैसे पकड़ लेंगे…उस के गले में लाइसैंस का पट्टा है.’’

‘‘फिर भी देख आने में क्या हर्ज है?’’ दादाजी ने झल्लाहट की परवा न करते हुए सलाह दी.

पुत्र ने सहज स्वर में उत्तर दिया, ‘‘देख लेंगे.’’

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दूसरे रोज भी दिन भर सीजर की तलाश होती रही. नई पीढ़ी ने दूरदूर तक उसे खोजा मगर उस का कहीं पता न लगा. वह जैसे जमीन में समा गया था. दादाजी सड़क की ओर आंखें लगाए बाहर बरामदे में ही डटे रहे. हर आहट पर उन्हें यही लगता रहा कि सीजर अब आया, तब आया.

दिन ढलने तक भी सीजर का जब कोई पता नहीं लगा तो दादाजी ने आदेश दिया, ‘‘जाओ, समाचारपत्रों में चित्र सहित इश्तहार निकलवाओ. लिखो कि सीजर को लाने वाले को 100…नहीं, 200 रुपए इनाम देंगे.’’

नई पीढ़ी भी इश्तहार निकलवाने का विचार कर रही थी. किंतु वे लोग यह सोच रहे थे कि एक दिन और रुक जाएं. किंतु दादाजी तकाजे पर तकाजे करने लगे, ‘‘जाओ, नहीं तो सुबह के अखबार में इश्तहार नहीं निकलेगा.’’

दादाजी का बड़ा पोता सीजर का चित्र ले कर चला तो उन्होंने मसौदा बना कर दिया. साफसाफ लिखा, ‘सीजर का पता देने वाले को या उसे लाने वाले को 200 रुपए इनाम में दिए जाएंगे.’

आधी रात के बाद बाहर के बड़े लोहे के फाटक पर ‘खरर…खरर’ की ध्वनि हुई तो बरामदे में सो रहे दादाजी ने चौंक कर पूछा, ‘‘कौन है?’’

कोई उत्तर नहीं मिला, तो उन्होंने फिर तकिए पर सिर टिका दिया. कुछ देर बाद फिर ‘खरर…खरर’ की आवाज आई. दादाजी ने फिर सिर ऊंचा कर पूछा, ‘‘कौन है?’’

इस बार खरर…खरर ध्वनि के साथ सीजर का चिरपरिचित स्वर हौले से गूंजा, ‘भू…भू…’

इस स्वर को दादाजी ने फौरन पहचान लिया. वे खुशी में पलंग से उठने का प्रयास करते हुए गद्गद कंठ से बोले, ‘‘सीजरिया, बेटा आ गया तू.’’

गठिया के कारण वे फुरती से उठ नहीं पाए. घुटनों पर हाथ रखते हुए जैसेतैसे उठे. बाहर की बत्ती जलाई, बड़े गेट पर दोनों पंजे टिका कर खड़े सीजर पर नजर पड़ते ही वे बोले, ‘‘आ रहा हूं, बेटा.’’

बरामदे के दरवाजे का ताला खोलते- खोलते उन्होंने भीतर की ओर मुंह कर समाचार सुनाया, ‘‘सीजरिया आ गया… सुना, सीजरिया आ गया है.’’

घर भर के लोग बिस्तर छोड़छोड़ कर लपके. दादाजी ने बड़ा फाटक खोला, तब  तक सभी बाहर आ गए. फाटक खुलते ही सीजर तीर की तरह भीतर आया. दुम हिलाते हुए वह सभी के कंधों पर अगले पंजे रखरख कर खड़ा होने लगा. कभी इस के पास तो कभी उस के पास जाने लगा. मुंह के पास अपना मुंह लाला कर दयनीय मुद्रा बनाने लगा. तरहतरह की अस्पष्ट सी ध्वनियां मुंह से निकालने लगा.

कीचड़ सने सीजर के बदन पर खून के धब्बे तथा जख्म देख कर सभी दुखी थे. दादाजी ने विगलित कंठ से कहा, ‘‘बड़ी दुर्दशा हुई सीजरिया की.’’

नई पीढ़ी ने सीजर को नहलायाधुलाया, उस के जख्मों की मरहमपट्टी की, खिलायापिलाया. दादाजी विलाप करते रहे, ‘‘नालायक को इन्फैक्शन न हो गया हो?’’

देर रात को सीजर आ कर दादाजी के पैरों में सोया तो वे उसे सहलाते हुए बोले, ‘‘बदमाश, बाड़ कूद कर चला गया था.’’

सुबह अखबार में सीजर की तसवीर आई. उस तसवीर को सीजर को दिखाते हुए दादाजी चहके, ‘‘देख, यह कौन है? पहचाना? बेटा, अखबार में फोटो आ गया है तेरा…बड़े ठाट हैं तेरे.’’

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Yippee Noodles: झटपट बनाएं नूडल्स डोसा

डोसा एक ऐसी डिश है जो पूरे भारत में पॉपुलर है. तभी तो लोग इसमें नए नए एक्सपेरीमेंट करते रहते हैं. ऐसी ही एक डिश है नूडल्स डोसा. तो चलिए जानते हैं इसे बनाने का तरीका.

सामग्री-

-यिप्पी नूडल्स- एक कप उबले

-डोसा बैटर- दो से तीन कप

-पत्तागोभी- एक कप बारीक कटे हुए

-हरा धनिया- 2-3 बड़े चम्मच

-तेल- दो से तीन बड़े चम्मच

-पनीर- आधा कप छोटे टुकड़े कटे हुए

-शिमला मिर्च- एक चौथाई बारीक कटी हुई

-अदरक- आधा इंच अदरक का टुकड़ा कद्दूकस किया हुआ

-नींबू का रस- एक छोटी चम्मच

-सोया सॉस- एक छोटी चम्मच

-काली मिर्च पाउडर- एक छोटी चम्मच

-नमक- स्वादानुसार

स्टफिंग बनाने का तरीका

-एक पैन में 1 टेबल स्पून तेल डाल कर अदरक, हरी मिर्च, मटर दाने, शिमला मिर्च, पत्तागोभी सभी डालकर हल्क नरम होने तक भूनें लेकिन ध्यान रहे सब्जियां क्रंची रहें.

-अब इसमें पनीर, यिप्पी नूडल, नमक, काली मिर्च, सोया सास और नीबू का रस और हरा धनियां डालकर सभी को मिक्स होने तक अच्छी तरह मिला लें. स्टफिंग बन कर तैयार है.

डोसा बनाने का तरीका

-गैस पर नॉनस्टिक तवे पर थोड़ा सा तेल डालकर पहले उसे नैपकीन से साफ कर लें. इसके बाद एक से दो बड़े चम्मच पतला किया हुआ डोसा बैटर डालकर उसे फैला दें.

– डोसे को चिपकने से बचाने के लिए चारों तरफ हल्का तेल डालें और हल्का ब्राउन होने तक सिंकने दें. डोसे के उपर एक-दो चमचे तैयार स्टफिंग डालकर पतला फैलायें.

-अब उसे हल्के से उठाकर उसे मोड़ कर रोल कर लें. इसी तरह बार-बार तवा साफ करने के बाद इसी प्रकार से डोसे सेंक लें. अब इसे सांभर या नारियल की चटनी के साथ परोसें.

Yippee Noodles: वैज नूडल्स डिलाइट

नूडल्स का दीवाना तो हर कोई है लेकिन अगर यही नूडल घर के किचन में बने तो लोग टेस्ट की शिकायत करते हैं लेकिन अब ऐसा नहीं होगा. क्योंकि हम आपको बताएंगे माक्रेट जैसे टेस्टी और स्पाइसी वैज नूडल्स डिलाइट बनाने का तरीका.

सामग्री

– 150 ग्राम उबले यिप्पी नूडल्स

– 250 ग्राम मिक्स सब्जियां (ब्रोकली, शिमलामिर्च, हरा प्याज, पत्तागोभी, गाजर).

सामग्री सौस की

– 2 चम्मच टोमैटो सौस

– 1 छोटा चम्मच ग्रीन चिली सौस

– 1/4 छोटा चम्मच विनेगर

– 1/2 छोटा चम्मच अजीनोमोटो

– लालमिर्च पाउडर स्वादानुसार

– 2 छोटे चम्मच कौर्नफ्लौर

– 2 बड़े चम्मच नारियल का तेल

– 1 छोटा चम्मच अदरक लहसुन पेस्ट

– नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका-

– सारी सब्जियों को मीडियम साइज में काट लें.

– स्टीमर में 5 मिनट ब्रोकली व गाजर को स्टीम कर लें.

-एक फ्राइंगपैन में नारियल का तेल गरम कर प्याज, पत्तागोभी, शिमलामिर्च (लाल, हरी, पीली) को हलका फ्राई कर के ब्रोकली व गाजर डाल कर थोड़ा सा और फ्राई कर अलग रखें.

-फ्राइंगपैन में रिफाइंड गरम कर के उस में लहसुन अदरक का पेस्ट हलका सा भूनें.

-वैज स्टौक डालें और 1-1 कर के विनेगर, टोमैटो सौस, मिर्च, नमक, अजीनोमोटो चिली सौस डालती जाएं, जब उबलने लगे तो कौर्नप्लौर को पानी में घोल कर अच्छी तरह मिक्स करते हुए चलाती रहें.

-अब यिप्पी नूडल्स मिला दें. सर्विंग प्लेट में नूडल्स डाल कर ऊपर से सब्जियां सजाएं और सर्व करें.

 भाई-बहन के रिश्ते को बयां करना है मुश्किल : ऋत्विक भौमिक 

 9 साल की उम्र से अभिनय क्षेत्र में कदम रखने वाले अभिनेता ऋत्विक भौमिक एक यंग और डायनामिक कलाकार है. उन्हें बचपन से ही अभिनय करने की इच्छा थी. नाटकों में अभिनय के अलावा उन्होंने कई शोर्ट फिल्में की है.

बंगलुरु के रहने वाले ऋत्विक ने शामक डावर इंस्टिट्यूट ऑफ़ परफोर्मिंग आर्ट्स से ग्रेजुएट किया है और कई सालों तक इंस्ट्रक्टर के रूप में काम भी किया है. वह एक अच्छे एक्टर ही नहीं एक अच्छे कोरियोग्राफर भी है. अमेजन प्राइम वीडियो पर रिलीज होने वाली वेब सीरीज बंदिश बैंडिट्स उनकी डेब्यू है, इसमें दर्शकों की प्रतिक्रिया के बारेंमें जानने के लिए वे काफी उत्सुक है. इस सीरीज में ऋत्विक को नसीरुद्दीन शाह जैसे बड़े कलाकार के साथ काम करने का अवसर मिला है, जो उनके लिए ख़ुशी की बात रही.

मिलता है सीखने को बहुत कुछ  

वे मानते है कि बड़े कलाकार के साथ काम करने से बहुत कुछ सीखने को मिलता है. जो आगे चलकर काम आती है. अभिनेता नसीरुद्दीन शाह एक कलाकार नहीं बल्कि एक इंस्टिट्यूटशन है. वे बहुत ही अच्छे और सधे हुए कलाकार है. पहले थोड़ी हिचकिचाहट उनसे बात करने में हुई, लेकिन काम करते-करते उनसे घुलमिल गया. कैरियर की शुरुआत में एक बड़े कलाकार के साथ काम करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है. ऐसे शो का मिलना ही मेरे लिए काफी था. जर्नी चुनौती पूर्ण थी. काम करते-करते लगा कि चुनौती मजेदार और सीखने वाला रहा, जिसे करने में अच्छा लग रह था. चुनौती कुछ भी नहीं थी. 

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थिएटर पहली पसंद 

अपने कैरियर के बारें में ऋत्विक का कहना है कि मैं एक डांस इंस्ट्रक्टर था और शामक डावर के स्कूल में काम किया है. अभिनय मुझे हमेशा से करने की इच्छा थी. 9 साल की उम्र से मैंने थिएटर करना शुरू किया था. मेरे अभिनय की बहुत तारीफ होती थी, इसके बाद म्यूजिक सीखा फिर डांसिंग में गया. सब पूरा होने के बाद एक्टर बना. 

परिवार का मिला सहयोग 

 

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Millennial (up)date?🙄🤷🏻‍♂️ @primevideoin #BandishBandits How many of these did you know?

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जब पहली बार ऋत्विक ने अपने पेरेंट्स से अभिनय करने की इच्छा के बारें में कहा तो उनकी प्रतिक्रिया कैसी थी पूछे जाने पर वे कहते है कि मेरे हिसाब से अब लोगों का नजरिया बदल चुका है. आज आर्ट फॉर्म को लोग पसंद करते है. हमारे परिवार में फिल्मों और गानों के शौक़ीन सभी है. मैंने अपने मन की इच्छा 5 साल की उम्र में ही कह दिया था कि मैं अभिनय करूँगा. पहले तो उन्होंने अधिक सीरियसली नहीं लिया था, लेकिन बड़े होने पर मैंने उन्हें अपनी राय बताई. इसके अलावा मेरा नाम बड़े निर्माता, निर्देशक ऋत्विक घटक के नाम पर है. इसलिए फिल्मों से जुड़ना तो था ही.

 एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री में अच्छा काम का मिलना है मुश्किल 

ऋत्विक का कहना है कि ये बहुत सही है कि एक अच्छा काम मिलना इंडस्ट्री में आसान नहीं होता. ये मेरा पहला प्रोजेक्ट है. अगर काम से लगाव और खुद पर भरोषा हो, तो काम अवश्य मिलता है. अगर आप खुद को आप संदेह में रखते है, तो काम आप से दूर चला जाता है. काम से खुश और संतुष्ट जितना आप रहेंगे उतना ही आपको अच्छा काम मिलता जायेगा. 

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मिलकर मनायेगे रक्षबंधन  

 

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Puraani tasveer (4)

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लॉक डाउन में एक बात अच्छी बात यह हो गयी है कि मेरी बहन जो बाहर काम करती थी, अब मेरे साथ में है. मेरी एक दर्जन बहने है और मैं एकलौता भाई हूँ. हर साल कुरियर सर्विस लगातार आता रहता है. मेरा वालेट हल्का हो जाता है. मेरी सारी बहने मुझसे बहुत प्यार देती है. भाई बहन के रिश्ते को शब्दों में बयां करना मुश्किल है. इसमें खट्टी-मीठी हर तरह की बातें होती है, लेकिन फिर भी एक मजबूत रिश्ता होता है. मैं हर बार रक्षाबंधन अच्छी तरह से मनाता हूँ और इस बार भी मनाऊंगा.

मेहर और सरब की खुशहाल जिंदगी में कौनसा नया तूफान देगा दस्तक?

कलर्स के सीरियल छोटी सरदारनी में मेहर और सरब की जिंदगी में कई उतार-चढाव आए. इसके बावजूद दोनों का रिश्ता हर कदम पर मजबूत हुआ, जिसमें परम ने भी साथ दिया. वहीं अब मेहर, सरब और परम की जिंदगी में एक और नन्हा सा मेहमान भी आ गया है. लेकिन इन खुशियों के बीच एक अनजानी दस्तक इस खुशहाल परिवार की जिंदगी बदलने वाली हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे.

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मेहर और सरब आ रहे हैं करीब

अब तक आपने देखा कि सरब की कोशिशों और परिवार की दुआओं के साथ आखिरकार मेहर अपने बेटे को जन्म देती है. वहीं सरब को छोटे बच्चे की देखभाल करते देख, मेहर के दिल में उसके लिए प्यार और सम्मान की भावना और भी बढ़ रही है, जिसके चलते दोनों एक दूसरे के करीब आ रहे हैं.

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नए अध्याय की होगी शुरूआत

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बच्चे के जन्म लेने के बाद मेहर को नई चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है. दरअसल, मेहर के बच्चे का फायदा उठाते हुए हरलीन, परम के दिल में भाई- भाई के बीच दुश्मनी की दीवार खड़ी करना चाहती है, ताकि उसे मेहर और उसके बच्चे से छुटकारा मिल सके. हालांकि मेहर और सरब पूरी कोशिश कर रहे हैं कि परम अपने आपको महत्वहीन ना समझें. नए बच्चे के आने से सरब और मेहर की फैमिली पूरी हो गई है. लेकिन आज, मेहर और सरब की जिंदगी में आने वाला है कोई खतरा.

क्या ये मेहर के अतीत की परछाई है या एक नई मुसीबत, जो इस खुशहाल परिवार में दरार पैदा कर देगा? ये कौनसा नया तूफान है जो बदल देगा मेहर की जिंदगी? जानने के लिए देखिए, ‘छोटी सरदारनी’, अब एक दिन और, सोमवार से शनिवार, रात 7.30 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

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