#coronavirus: कोरोना ने बढ़ाया, ट्रेजडी का दिलकश बाजार

सिर्फ हम ही नहीं इस कोरोना त्रासदी के चलते पूरी दुनिया में 1 अरब 73 करोड़ से ज्यादा लोग घरों में कैद हैं. लोग घरों में कैद है तो जाहिर है उनकी सोशल मीडिया में सक्रियता भी बढ़ गई है, टीवी देखने का औसत समय भी बढ़ गया है और इसी तरह फोन से होने वाली बातचीत के समय में भी बढ़ोत्तरी हुई है. ये तमाम गतिविधियां यूं तो समय गुजारने की हैं, मगर इनसे दुनियाभर के लोगों के दिलो दिमाग में क्या हलचल मची हुई है, इसका भी पता चलता है. लोगों के अंदर घर करती दहशत और क्या होने वाला है या कि क्या हो सकता है, इसे जानने, इसका अनुमान लगाने की बेचैनी का अंदाजा भी इन दिनों इंटरनेट और टीवी चैनलों में देखी जानेवाली फिल्मों तथा इनके लिए किये जाने वाले अनुरोधों से भी पता चलता है. सोशल मीडिया में जिन उपन्यासों का इन दिनों खूब जिक्र हो रहा है, उनसे भी मालूम पड़ता है कि लोगों के अंदर किस तरह की उथल-पुथल मची हुई है.

पश्चिमी मीडिया के विभिन्न आब्र्जेवेशनों के जरिये यह बात स्पष्ट हो रही है कि कोरोना वायरस के खौफ के चलते घरों में कैद लोग आमतौर पर वे फिल्में देखना पसंद कर रह हैं, जो भयावह ट्रेजडी को पोट्रे करती हैं. ट्रेजडियां भी ऐसी जो हाल के एक दो दशकों में भयानक आतंकवाद और इंसानी हरकतों के चलते पैदा हुई हैं. मसलन- पिछले सप्ताह पूरी दुनिया में जिस फिल्म को लोगों ने इंटरनेट में सबसे ज्यादा ढूंढ़ा, वह एक औसत दर्जे की अंग्रेजी फिल्म ‘इंडिया वर्सेज जापान’ है. यह फिल्म यूं तो जब आयी थी, तब बहुत ज्यादा कामयाब नहीं रही, लेकिन इन दिनों यह फिल्म पूरी दुनिया में हौट डिमांड में है. इस फिल्म की लोगों के बीच इस कदर लोकप्रियता का कारण यह है कि बहुत अप्रत्याशित ढंग से इस फिल्म में कोरोना वायरस की ट्रेजडी दिखायी गई है.

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यह ट्रेजडी यूं तो काल्पनिक है लेकिन इसका हूबहू आज की परिस्थितियों से मेल खाना एक हैरान करने वाला संयोग है. महज कुछ साल पहले बनी इस फिल्म का केंद्रीय कथानक कोरोना वायरस पर ही केंद्रित है. गो कि इसका नाम फिल्म में कुछ और है, लेकिन इसकी रूपरेखा और इसका आतंक हूबहू ऐसा ही है, जैसा इन दिनों पूरी दुनिया देख और झेल रही है. फिल्म के कथानक के मुताबिक ‘एक व्यक्ति जापान से भारत आता है. इस व्यक्ति की आंखों में एक ऐसा वायरस फिट किया गया है, जिसके कारण वह जिस व्यक्ति को घूरकर देख लेता है, वह बेहोश हो जाता है. सिर्फ इतना ही नहीं है, इसके बाद बेहोश हुआ व्यक्ति एक वायरस से पीड़ित हो जाता है और जो भी उसके दायरे में आता है, वह भी इस वायरस का शिकार हो जाता है. यह वायरस वाला भयावह खलनायक जो कि जापान से आया हुआ है, भारत के अनगिनत लोगों को अपने जाल में फंसा लेता है और इसके जरिये पूरे हिंदुस्तान को महामारी के घेरे में ले आता है. जिसके चलते पूरे देश में हाहाकार मच जाता है.’

इस फिल्म का कथानक आज की कोरोना ट्रेजडी से न केवल बहुत मिलता जुलता है बल्कि फिल्म के अंत में कमेंट्री के तौरपर एक चेतावनी दी गई है कि भले यह फिल्म हो, लेकिन आने वाले वर्षों में इस किस्म की ट्रेजडी हकीकत में देखने को मिलेगी. आज जिस तरह से कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैल रहा है और इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 21000 से ज्यादा लोगों की बलि ले चुका है तथा 5 लाख के आसपास लोगों को संक्रमित कर चुका है, उससे तो यही लगता है कि संयोग या धोखे से ही सही फिल्मकारों ने कई साल पहले ही इस आने वाली ट्रेजडी का सटीक फिल्मांकन कर लिया था. इस फिल्म की दुनियाभर के देशों में इन दिनों खूब डिमांड है. लोग इसे देख रहे हैं और नये सिरे से इसकी भविष्यवाणी पर भरोसा और विश्लेषण कर रहे हैं.

लेकिन इन दिनों भयावह ट्रेजडी दर्शाती कई और फिल्में भी हौट केक की तरह लोगों द्वारा पसंद की जा रही हैं. इनमें सबसे ज्यादा वे फिल्में हैं, जो 19 साल पहले 11 सितंबर को न्यूयार्क के वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर फिदाइन बम की तरह यात्री जहाजों को भिड़ाकर किये गये धमाके पर बनी हैं. इस ट्रेजडी को दुनिया 9/11 के नाम से जानती है. मालूम हो कि 9/11 की आतंकी घटना जब घटी थी, तब तक ही नहीं बल्कि उसके बाद से आजतक भी उसके भयावह आतंकी घटना दुनिया में नहीं घटी. ओसामा बिन लादेन के नेतृत्व वाले आतंकी संगठन अल-कायदा ने इस भयावह फिदाइन हमले से यह साबित कर दिया था कि खौफ के दुःस्वप्न की कोई सीमा नहीं है. इस भयावह आतंकी घटना से दुनिया में कारोबार के सबसे ताकतवर प्रतीक ‘ट्विन टावर्स’ मोम की तरह पिघल गये थे. इस घटना में दर्जनों आतंकी और हवाई जहाजों में सवार दुर्भाग्यशाली यात्रियों के साथ 3000 से ज्यादा ट्रेड टावर में मौजूद लोग मारे गये थे.

दुनिया को हिला देने वाली इस घटना पर बाद में कई फिल्में बनीं, जिनमें कुछ प्रमुख हैं- ‘जीरो डार्क थर्टी’, ‘थर्टीन आवर्स: द सीक्रेट सोल्जर्स औफ बेन्गाजी’, ‘वल्र्ड ट्रेड सेंटर’, ‘इनसाइड द ट्वीन टावर्स’. इन दिनों लोग इंटरनेट के जरिये ट्रेजडी से ओतप्रोत इन फिल्मों को भी खूब देख रहे हैं. सिर्फ ट्रेजडी से ओतप्रोत फिल्में ही नहीं खूब देखी जा रही हैं बल्कि महामारियों का विस्तार से आख्यानिक वर्णन करने वाले उपन्यासों की भी इन दिनों खूब डिमांड है. लाॅकडाउन के चलते घर में कैद करोड़ों लोग इन दिनों अमरीकी लेखक डीन कुंटेज के थ्रिलर ‘आईज औफ डार्कनेस’ को भी खूब पढ़ रहे हैं. संयोग से इस उपन्यास में भी कोरोना वायरस जैसे ही वायरस का जिक्र है और उसका नाम भी वुहान-400 है, जो मौजूदा ट्रेजडी से बहुत मिलता जुलता है. इस उपन्यास की भी कहानी करीब करीब वैसे ही है, जैसे कि इंडिया वर्सेज जापान की है. इस कहानी में भी एक वायरस सिर्फ इंसानों को अपना शिकार बनाता है, जिसके संक्रमण से लोग अंधे हो जाते हैं.

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इस उपन्यास के अलावा अल्बेयर कामू के विश्व प्रसिद्ध उपन्यास ‘प्लेग’ की भी इन दिनों पूरी दुनिया में न सिर्फ बहुत ज्यादा चर्चा है बल्कि इसे लोग औनलाइन ढूंढ़-ढूंढ़कर पढ़ रहे हैं. गौरतलब है कि कामू ने यह उपन्यास सन 1947 में तब लिखा था, जब अल्जीरिया के ओरोन शहर को प्लेग जैसी महामारी के चलते महीनों दुनिया से अलग-थलग रहना पड़ा था. इन दो मशहूर उपन्यासों के अलावा इन दिनों कई और उपन्यास भी लोगों की मांग और जिज्ञासा के केंद्र में है. इनमें प्रमुख हैं- रेड डेथ (एडगर एलन पो), डेथ इन वेनिस (थॉमस मान), ए जर्नल औफ द प्लेग ईयर (डैनियल डेफो), द डिकामरन (जियोवानी बोकाशिया), द लास्ट मैन (मैरी शेली), प्लेग इन एथेंस (थ्यूसीडाइड्स और सोफोकल्स), नेमेसिस (फिलिप रोथ), द एंड्रोमेडा स्ट्रेन (माइकल क्रिचटन), द डायरी औफ सैमुअल पेपीज (सैमुअल पेपीज), जैक लंडन (स्कारलेट प्लेग), द बेट्रोथेड (एलेसेंड्रो मंजोनी) आदि. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि खौफ के इन दिनों में पूरी दुनिया में ट्रेजडी के प्रति कितना जबरदस्त आकर्षण पैदा हो गया है.

#lockdown: औनलाइन लेनदेन को बढ़ावा देने में अपनी भूमिका बढ़ाए बैंक

डब्ल्यूएचओ द्वारा कोरोना को एक महामारी घोषित करने के साथ, देश भर के संस्थानों ने कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने और सामुदायिक एकत्रीकरण को सीमित करने के लिए उपाय करना शुरू कर दिया है. यह समय है जब बैंक सार्वजनिक स्वास्थ्य और सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए ऐसा करना शुरू कर सकते हैं. शुरुआत के लिए, उन्हें ऑनलाइन स्थानांतरण के लिए बैंक शुल्क और ग्राहकों के लिए आरटीजीएस लेनदेन शुल्क पर गंभीरता पूर्वक विचार करना चाहिए.

संभावित प्रकोप के की शुरूआत के साथ, उन्हें पहले से ही उपाय करना चाहिए ताकि वे भविष्य की चुनौतियों का सामना कर सकें, और लोग महामारी के विपरीत आर्थिक प्रभावों से सुरक्षित रह सकें. वित्तीय क्षेत्र आम जनता और व्यवसायों दोनों को सेवाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, और बैंकों को अपने हितधारकों के साथ विचार-विमर्श करना चाहिए और वायरस के सम्पर्क में आए बिना सेवा लगतार बनाए रखना सुनिश्चित करने के उपाय करने चाहिए.

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ऐसे उपाय किए जाने चाहिए कि लोगों को एटीएम या बैंक शाखाओं तक जाने की नौबत ही न आए, डिजीटल सेवाओं जैसे इंटरने और फोन बैंकिंग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. इसके अलावा ऑनलाइन ट्रांसफर के लिए शुल्क माफ करने के अतिरिक्त, ऑनलाइन बिल भुगतान पर अर्जित शुल्क, जिसमें मोबाइल टॉप-अप, यूटिलिटी भुगतान, और शुल्क और करों को बैंकों और पीएसओ द्वारा समान रूप से साझा किया जाना चाहिए. वित्तीय उद्योग को इंटरनेट और फोन बैंकिंग के माध्यम से ऋण चुकाने और शिक्षा शुल्क की सुविधा के लिए भी निर्देश दिया जाना चाहिए.

सभी बैंकों, पीएसओ और पेमेन्ट सिस्टम प्रोवाइडर्स को शिक्षा शुल्क जैसे डिजीटल संग्रह को मजबूत करने और डिजिटल चैनलों के माध्यम से ऋण भुगतान सुविधाओं की पेशकश करने के लिए तत्काल व्यवस्था करनी चाहिए. यह ग्राहकों को अतिरिक्त लागत के बिना इन्टरनेट या फोन बैंकिंग के माध्यम से मनी ट्रांसफर करने के लिए प्रोत्साहित करेगा. इसके साथ ही बैंकों को चाहिए कि वह अपने ग्राहकों को आॅनलाइन बैंकिंग के उपयोग के बारे में टैक्नोलाॅजिकली शिक्षित करे साथ ही ग्राहकों के फण्ड ट्रांसफर के समय सुरक्षा एवं बचाव को भी सुनिश्चित करे.

बैंको को यह कदम उठा कर सुनिश्चिता प्रदान करनी चाहिए कि उनके हैल्पलाइन/काॅल सेन्टर्स चैबीसों घण्टे ग्राहकों के समर्थन में उपलब्ध रहें. जहां तक संभव हो सके वित्तीय संस्थानों को विभिन्न चैनल्स के माध्यम से जागरूकता अभियान चला कर ग्राहकों को इंटरनेट और फोन बैंकिंग, भौतिक मुद्रा के उपयोग की सीमाएं तथा बैंकों तक जाने सीमितता के बारे में भी बताना चाहिए. डिजिटल लेनदेन में होने वाली किसी भी धोखाधड़ी से बचने के लिए, उद्योग को डिजिटल चैनलों पर अधिक सतर्कता बरतनी चाहिए और साइबर खतरों से बचने के लिए निगरानी बढ़ानी चाहिए.

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कोरोना वायरस का प्रकोप विश्व स्तर पर दैनिक जीवन को चुनौती दे रहा है और देश समाधान खोजने के लिए हाथ-पांव मार रहे हैं. अब हमारा, मुख्य दृष्टिकोण रक्षात्मक उपाय करना रहा है. उपरोक्त सुझावों को, यदि लागू किया जाता है, तो ग्राहकों को उनकी नियमित वित्तीय जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी. यह बैंकों की जिम्मेदारी है कि वे हितधारकों के साथ काम करें और सार्वजनिक सुरक्षा में सुधार के लिए सभी संभव उपाय करें.

केवल कपूर, डायरेक्टर एण्ड क्रिएटिव स्टरटेजिक, चाई क्रिएटिव एण्ड रिटर्न औफ मिलियन स्माइल्स 

लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-9)

पिछला भाग- लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-8)

जानकीदास की चिंता और बढ़ी. मेहता परिवार अब पूरी तरह से निराश हो चुका है. ‘‘सोनी कंपनी’’ का एक तिनका भी उन के हाथ नहीं लगने वाला यह शिखा ने खुल कर समझा दिया है. बंटी अब पता नहीं किस तरह से वार करेगा पर उन को पूरा विश्वास है करेगा जरूर और उस का सीधा निशाना होगी शिखा. वो छटपटा रहे थे. उसे किसी मजबूत और सुरक्षित हाथों में सौंपने पर वो भी जिद पकड़ बैठी है शादी ना करने की. ना समझ लड़की यह नहीं समझ पा रही कि मां से बदला लेने वो अपना ही सर्वनाश कर रही है. बारबार पोती को सावधान कर रहे हैं. फिर भी उन के अंदर का भय उन को त्रस्त कर रहा. शिखा दादू के इस आतंक को जानती है पर एक भय की आशंका से घर में तो नहीं बैठ सकती वो भी जो इतनी बड़ी कंपनी की कर्णधार है. उसे पता है बंटी नीचता की सीमा कब का पार कर चुका है. सतर्क वो भी है. इसी समय एक दिन सहपाठी चंदन का फोन आया. वो एक बड़े फाइनैंस कंपनी के मालिक का बेटा है. अब परिवार का व्यापार संभाल रहा है. कभीकभार ही मिलते हैं पुराने साथी. चंदन से लगभग 1 वर्ष बाद संपर्क हुआ. शिखा भी नीरस जीवन से उकता रही थी. चहक उठी,

‘‘चंदन? तू. कहां है इस समय?’’

‘‘तेरे आफिस के एकदम पास. तू किसी मीटिंग में तो नहीं.’’

‘‘अरे नहीं. आज काम करने का मन ही नहीं कर रहा. चला आ प्लीज.’’

‘‘दस मिनट में आया.’’

वास्तव में दस मिनट में ही आ गया वो. उस के परिवार में बच्चों की शादी जल्दी कर दी जाती है. वो शिखा का हमउम्र है पर एक बच्चे का पिता हो गया है. शिखा बहुत खुश.

‘‘1 वर्ष हो गया रतना की शादी में मिले थे. उस के बाद आज जबकि दिल्ली में ही रहते हैं.’’

‘‘सभी लोग व्यस्त हैं. बता क्या चल रहा है?’’

‘‘सब ठीक है.’’

‘‘शिखा, शादी की पार्टी कब होगी?’’

‘‘शायद इस जन्म में नहीं.’’

‘‘क्या कह रही है? बंटी ने तो कुछ और बताया.’’

‘‘अगले महीने शादी है यही न?’’

‘‘हां, पर तुझे कैसे पता?’’

वो हंसी.

‘‘उस ने यही बात दर्जनों लोगों से कही है.’’

‘‘मतलब…शादी नहीं हो रही.’’

‘‘नहीं सारे संबंध तोड़ लिए हैं मैं ने.’’

‘‘थैंक गौड. मुझे बड़ी चिंता थी तेरी. ईश्वर ने बचा लिया तुझे.’’

‘‘ऐसा क्या?’’

क्या नहीं है. अपना तो सब कुछ गंवा चुके. आशा थी डूबते नाव को तेरे जहाज के साथ बांध किनारे पर ले आएंगे वो आशा भी गई. अब बंटी ने शायद अपराध की दुनिया की ओर कदम बढ़ाया है.

शिखा सामान्य रही.

‘‘वही उस का सही रास्ता है तुझे याद है वो बचपन से ही अपराधिक प्रवृत्ति का है, दूसरों को परेशान करना बैग में से सामान चुराना, झूठ बोलना, एगजाम में नकल करना. तब छोटा था अपराध छोटे होते थे अब बड़ा है तो अपराध बड़े होते हैं.’’

‘‘यह मजाक नहीं है. इस समय उस की अकेली तू है. वो जैसे भी हो तुझे पाना चाहता है.’’

‘‘मुझे नहीं मेरा सब कुछ जिस से अपने पैरों के नीचे की जमीन मजबूत हो.’’

‘‘बात एक ही है. सावधान रहना. तू खतरे में है.’’

‘‘मुझे पता है पर तुम लोग ही मेरा मनोबल हो. जाने दे क्या बंटी इस बीच मिला था तुम से?’’

‘‘नहीं बंटी तो नहीं सुकुमार मिला था. मानो हजार वाल्ट का झटका लगा शिखा को.’’

‘‘सुकुमार कब?’’

‘‘हो गए लगभग एक वर्ष. वो भी संयोग ही था. एक चित्र प्रदर्शनी थी. ऐसी जगह जाने का मन तो बहुत करता है पर जा नहीं पाता. उस दिन थोड़ा समय निकाल चला ही गया था वहां मिला था देर तक साथ बैठे, कौफी पी. मैं ने बहुत कोशिश की पर उस ने अपना पता नहीं बताया.’’ शिखा का दिल जोर से धड़क रहा था.

‘‘क्या कर रहा है? कोई नौकरी? फोन नंबर तो दिया होगा?’’

‘‘नहीं दिया, मैं ने मांगा भी तो टाल गया. पर शिखा उसे देख लगा ठीक ही है. कितना हैंडसम लग रहा था. सुंदर पहले भी था पर सहमासहमा अब तो फिल्मी हीरो जैसा स्मार्ट हो गया है.’’

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‘‘अपने विषय में कुछ भी नहीं बताया?’’

‘‘ना. पर मुझे लगा कि दिल्ली में ही है.’’

‘‘तू ने पूछा नहीं?’’

‘‘पूछा तो था. उस ने बताया कि उस घटना के बाद वो मानसिक रूप से एकदम टूट गया था यहां तक कि आत्महत्या करने का पक्का निश्चय कर लिया था कर भी लेता पर भाग्य में कुछ और लिखा था.’’

सिहर उठी शिखा.

‘‘आत्महत्या?’’

‘‘शिखा वो बंटी नहीं, उस की हर बात में गहराई और सच्चाई होती थी और लगा आज भी है.’’

‘‘फिर?’’

‘‘उस ने बताया कि वो तो बचपन से अनाथ था. उस के जीने का एक ही लक्ष्य थी तू. जब तू ने ही दुत्कार दिया तो वो क्यों जीता? किस के लिए जीता?’’

‘‘फिर?’’

‘‘उसी समय उस के जीवन में एक फरिश्ता मानो स्वर्ग से उतर आए उन्होंने संभाला, जीवन का सही मार्ग दर्शन कराया, हर तरह की सहायता की, जीविका दी और समझाया कि अपने लिए नहीं भलाई और सच्चाई के लिए जीना चाहिए. मैं उन के बताए रास्ते पर ही चल रहा हूं. वो फरिश्ता मेरे भगवान से भी ऊपर हैं.’’

‘‘तो वो ठीक है?’’

‘‘उस के अंतरमन में क्या है यह तो मैं नहीं जानती ऊपर से तो ठीकठाक लगा.’’

‘‘संपर्क का कोई उपाय नहीं?’’

दो पल उसे देखा चंदन ने फिर शांत भाव से बोला, ‘‘शिखा. वास्तव में उस का पता ठिकाना, फोन नंबर कुछ भी मेरे पास नहीं है पर अगर होता भी तो मैं तुझे नहीं देता.’’

‘‘क्यों चंदन?’’

‘‘क्योंकि तू ने उस के साथ जितना बुरा किया है उस के लिए मैं ने तुझे आज भी माफ नहीं किया. बात पुरानी हो गई क्या अब बताएगी तू ने ऐसा क्यों किया था उस दिन.’’

पहली बार आंसू बाहर निकल आए शिखा के.

‘‘मुझे गलत मत समझ चंदन. मैं मजबूर थी.’’

‘‘ऐसी क्या मजबूरी थी?’’

‘‘मैं…मैं नहीं बता सकती.’’

‘‘कारण जो भी हो सुकुमार के साथसाथ तू ने अपना जीवन भी सूना कर लिया.’’

शिखा आज पहली बार खुल कर रोई.

दूसरे दिन आफिस में बैठ काम कर रही थी कि उस का मोबाइल बजा. उठाया तो एक अनजान नंबर था. बिजनैस की बात है किसी भी अनजान फोन को छोड़ना नहीं चाहिए क्या पता कोई नई पार्टी हो? उस ने फोन उठाया और उधर से बंटी की आवाज सुन सन्न रह गई. बंटी ने शिखा के फोन उठाते ही कहा.

‘‘फोन मत काटना प्लीज. मेरी बात सुनो.’’

उस ने संयम से काम लिया. शांत भाव से बोली.

‘‘कहो…’’

‘‘देखो भले ही तुम ने रिश्ता तोड़ा हो पर बचपन की दोस्ती का रिश्ता तो है ही.’’

‘‘सुबहसुबह मुझे रिश्ता याद दिलाने फोन किया वो भी किसी से मोबाइल उधार ले कर.’’

‘‘उधार लेना पड़ा तुम तो मेरा फोन उठाओगी नहीं.’’

‘‘जल्दी कहो क्या बात है?’’

‘‘बेबी. तुरंत पचास लाख न मिले तो हम सड़क पर होंगे.’’

‘‘वो तो अब भी हो एक तरह से.’’

‘‘सच कह रहा हूं बेबी. घर मार्टगेज या अभी के अभी पचास लाख नहीं मिले तो वो हमें निकाल ताला डाल देंगे. प्लीज इस बार बचा लो. कहां जाएंगे हम?’’

‘‘मेरे पास इतने पैसे अभी नहीं हैं.’’

‘‘सोनी कंपनी का नाम ही बहुत है जिसे कहोगी वही बिना पूछे पैसे दे देगा.’’

‘‘इस नाम को सच्चाई, मेहनत और इमानदारी से कमाया है. झूठ, बेईमानी और धंधेबाजी से नहीं. वो सड़कछाप लोगों की अय्याशी के लिए नहीं.’’

‘‘बेबी प्लीज. दोस्ती का वास्ता कोई धोखेबाजी का धंधा नहीं. हमारा घर नीलाम हो रहा है.’’

‘‘मैं कुछ नहीं कर सकती. फाइनैंस कंपनियों की कमी नहीं है.’’

‘‘सारे दरवाजे खटखटा चुका तब तुम को…’’

‘‘सौरी मैं कुछ नहीं कर सकती.’’

‘‘तो तुम सहायता नहीं करोगी?’’

‘‘पहले ही कह दिया.’’

‘‘अच्छा नहीं किया तुम ने. मुझे जानती नहीं हो मैं तुम को मुंह दिखाने लायक नहीं छोड़ंगा.’’ फोन बंद कर दिया शिखा ने.

‘‘दादू की तो नींद ही उड़ गई.’’

‘‘बेबी यह तो भयानक बात हो गई. बंटी किन लोगों की संगत में है उस की खबर है मुझे. हे ईश्वर अब क्या करूं? दे ही देती पैसे.’’

‘‘क्या कह रहे हो दादू? पचास लाख कोई मामूली रकम है. फिर एक बार शेर के मुंह खून लगाने का मतलब समझते हो, हम को भी अपने साथ सड़क पर ला खड़ा करेगा.’’

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‘‘पुलिस को आगे के लिए अगाह कर दें?’’

‘‘नहीं दादू. ऐसा क्या कर लेगा? घर में आफिस में वो घुस नहीं पाएगा. हम बात तक नहीं करते. रास्ते में अपनी गाड़ी में रहते हैं तो क्या करेगा वो.’’

पता नहीं मुझे बहुत घबराहट हो रही है.

‘‘ना दादू. इतना डर कर जिएंगे कैसे?’’

‘‘बंटी भयानक है. शैतान का रूप है.’’

‘‘शैतान हमेशा मारा जाता है.’’

‘‘बेटी हम दुर्बल हैं. शैतान को मारने की शक्ति नहीं है मुझ में.’’

अब शिखा भी गुस्सा हो गई.

‘‘तो मैं क्या करूं. उसे खुश करने में पूरी संपत्ति उसे सौंप दूं या उस से ब्याह कर लूं.’’

शिखा का गुस्सा देख जानकीदास सहम गए.

‘‘गुस्सा मत कर बेटा. मेरी सारी चिंता तो तेरे लिए ही है. तुझे कुछ हुआ तो मैं क्या करूंगा.’’

‘‘कहा ना वो कुछ नहीं कर पाएगा.’’

‘‘भगवान ऐसा ही करे.’’

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#lockdown: परेशान निर्माता, ऊबते सितारे, बड़े पर्दे पर कोरोना का कहर

अपने एक एक पल की मौजूदगी की सुर्खियां चाहने वाले बौलीवुड के तमाम सितारे इन दिनों घर में कैद हैं. ऐसे में ये चाहकर भी अपनी नयी स्टाइल वाली टोपी, कातिल हेयरकट और प्रैक्टिस से हासिल की गई स्माइल को अपने फैंस के बीच लाइव साझा नहीं कर पा रहे. हालांकि इस फ्रंट कैमरा युग में वर्चुअल मौजूदगी के लिए कहीं भी लाइव मंच की जरूरत नहीं पड़ती. लेकिन दिन रात नियोन लाइटों के बीच रहने वाले सेलिब्रिटीज कैमरे से उस तरह रोमांचित नहीं होते, जिस तरह उन्हें 24 घंटों में महज कुछ मिनटों के लिए आम लोगों या आम जगहों में अपने चाहने वालों से रूबरू होने के दौरान रोमांच महसूस होता है. इसलिए भले कैटरीना कैफ घर में झाड़ू को क्रिकेट के बैट की तरह घुमाते हुए कुछ कमेडी पैदा करने की कोशिश कर रही हो या कि टाइगर श्राफ गाना गाकर अर्जुन कपूर को अपने एक और टैलेंट का पता दे रहे हों. लेकिन अगर समग्रता में देखें तो बौलीवुड के सितारे एक हफ्ते से भी कम के इस लाॅकडाउन में ऊब से गये हैं.

लेकिन बाॅलीवुड के सितारों से ज्यादा हालत इन दिनों बाॅलीवुड के निर्माताओं की खराब हो गई है. ऐसा नहीं है कि वे कोरोना से संक्रमित हो गये हैं. दरअसल कोरोना का कहर उनके पूरे कारोबार में इस तरह से छाया डालता दिख रहा है कि उन्हें लगने लगा है वह जल्द ही इसके कहर से नहीं ऊबर पाएंगे. यह स्वाभाविक भी है. एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा की बाॅलीवुड इंडस्ट्री इन दिनों पूरी तरह से कोरोना वायरस के चंगुल में फंस गई लगती है. अगर अगले एक महीने तक इसका संकट यूं ही बना रहा तो फिल्म कारोबारियों को तो जो नुकसान होगा, उसकी देर सवेर किसी न किसी रूप में भरपायी हो ही जायेगी. लेकिन फिल्म इंडस्ट्री से खास तौरपर बाॅलीवुड से जो करीब 10 लाख लोग प्रत्यक्ष तौरपर और करीब 2 करोड़ लोग अप्रत्यक्ष तौरपर जुड़े हैं, उनकी जिंदगी का सारा बजट गड़बड़ा जायेगा.

यूं भी साल 2020 अभी तक बाॅलीवुड के लिए वैसा नहीं रहा, जैसे होने की पिछले साल की पृष्ठभूमि में उम्मीद की गई थी. गौरतलब है कि साल 2020 में अभी तक कोई 42 फिल्में रिलीज हो चुकी हैं और सही बात यह है कि एक तानाजी को छोड़ दें तो किसी भी फिल्म ने 100 करोड़ रुपये का कारोबार इस साल अभी तक नहीं किया. हालांकि कई फिल्में बड़े जोर शोर से आयी थीं जैसे- दीपिका पादुकोण की ‘छपाक’, कंगना रानौत की ‘पंगा’, कियारा आडवानी की ‘थप्पड’़, रेमी डिसूजा की वरूण धवन और श्रद्धा कपूर स्टारर ‘स्ट्रीट डांसर 3-डी’, टाइगर श्राफ की ‘बागी-3’, कार्तिक आर्यन और सारा अली की जोड़ी वाली ‘लव आजकल’ और आयुष्मान खुराना की ‘शुभ मंगल ज्यादा सावधान’. इन तमाम फिल्मों में ‘तानाजी’ के 280 करोड़ रुपये कमाने के अलावा एक बागी-3 ही ऐसी फिल्म है जिसके लिए कहा जा रहा है कि उसने 130 करोड़ रुपये कमाये बाकी ये तमाम फिल्में जिनका यहां जिक्र किया गया है, सफल रहने के बावजूद भी मुश्किल से अपनी लागत ही निकाल पायी हैं.

जबकि पिछले साल जिस तरह से 13 फिल्मों ने 100 करोड़ रुपये कमाई के क्लब में अपनी जगह बनायी थी, उसको देखते हुए लग रहा था कि इस साल भी काफी ज्यादा फिल्में 100 करोड़ रुपये की कमाई के क्लब की हिस्सेदार बनेंगी. मगर पहले साल की सुस्त शुरुआत और जब अभी बाॅलीवुड ने रफ्तार पकड़नी शुरु की तो कोरोना के कहर का टूटना, बाॅलीवुड के होश फाख्ता कर चुका है. शायद हाल के दशकों में किसी को भी यह याद नहीं होगा कि कब पूरे देश के सभी सिनेमाहाॅल एक साथ बंद हुए हों. जैसा कि इस समय 21 दिनों के टोटल लाॅकडाउन के चलते पूरे देश के सिनेमाहाॅलों में ताले बंद हैं. लेकिन इस देशव्यापी तालेबंदी के पहले भी अलग अलग राज्यों में कई हफ्तों से कोरोना के चलते मल्टीप्लेक्स और सिंगल स्क्रीन वाले सिनेमाहाॅल बंद हो रहे थे. कोरोना की पहली जो दो बड़ी फिल्में शिकार हुईं, उनमें एक थी ‘अंग्रेजी मीडियम’ और दूसरी ‘बागी-3’. इसके पहले की फिल्में अपनी कमजोर कहानियों, कामचलाऊ पटकथाओं और औसत सिनेमेटोग्राफी के चलते असफल हुई थीं. जबकि ये दोनो फिल्में सिर्फ और सिर्फ कोरोना के कहर का शिकार हुईं. वरना इनकी शुरुआती उठान को देखकर लग रहा था कि ये 100 करोड़ रुपये की कमाई के क्लब में प्रवेश करेंगी.

हालांकि बागी-3 के बारे में फिर भी ऐसी खबरें हैं जो शायद इस वजह से कि भारत में जो 9600 स्क्रींस हैं उनमें से ये करीब 5000 स्क्रीन में रिलीज हुई थी और 2000 से ज्यादा स्क्रीन में ‘अंग्रेजी मीडियम’. लेकिन इन दोनो फिल्मों ने जैसे ही अपनी रफ्तार पकड़ी कि उसके पहले कोरोना ने अपनी रफ्तार पकड़ ली. इस कारण ये दोनो फिल्में इसका शिकार हो गईं. अंग्रेजी मीडियम अच्छा कारोबार करने वाली थी; क्योंकि इसमें अपनी बीमारी से उबरे इरफान खान तो थे ही जो अपनी बेहतरीन अदाकारी के लिए जाने जाते हैं, इसमें करीना कपूर और राधिका मदान की भी खूब मंझी हुई अदाकारी वाली भूमिकाएं थीं. पूरी फिल्म की खूब तारीफ हो रही थी, लेकिन कोरोना के सामने सारी तारीफ बेकार हो गई. कोरोना के चलते मार्च के दूसरे सप्ताह में ऐसी स्थितियां बनी कि अंग्रेजी मीडियम 16 मार्च को महज 45 लाख रुपये का ही बिजनेस कर सकी. जबकि पहले दिन इसका बिजनेस काफी ज्यादा था.

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हालांकि बागी-3 को लेकर अलग अलग खबरे हैं, कुछ का मानना है कि यह 130 रुपये करोड़ का बिजनेस कर चुकी है. जबकि कुछ दूसरी खबरें ऐसी भी हैं जिनके मुताबिक इसने महज 97 करोड़ रुपये का बिजनेस किया है. इस समय इंडस्ट्री के सबसे ज्यादा डिमांड में रहने वाले टाइगर श्राफ की इस फिल्म ने अगर महज 97 करोड़ का बिजनेस किया है तो सफल होने के बावजूद भी यह कारोबारी नजरिये से अपने निर्माताओं के लिए फायदेमंद नहीं है. क्योंकि फिल्म की लागत ही करीब 100 करोड़ रुपये कही जा रही है. ऐसे में अगर इसने वाकई 97 करोड़ रुपये कमाये हंै तो कारोबार के नजरिये से यह घाटे का सौदा है. इन दोनो के अलावा जो फिल्में मार्च के तीसरे और चैथे हफ्ते में रिलीज होने वाली थीं, उनमें से ज्यादातर की रिलीज डेट टाल दी गई है और कुछ की घोषणा ही नहीं हुई है. मसलन- रणवीर सिंह के अभिनय वाली ‘1983’, अमिताभ और आयुष्मान खुराना की ‘गुलाबो सिताबो’, ‘लूडो’ और जान्हवी कपूर की ‘गुंजन सक्सेना द कारगिल गर्ल’ के प्रदर्शन पर अनिश्चितता का काला पर्दा पड़ गया है. इस तरह देखें तो कोरोना ने इस देश में सबसे पहले फिल्म इंडस्ट्री की कमर तोड़ दी है.

#coronavirusrelief: लोगों की मदद के लिए आगे आए कपिल शर्मा, इन 4 सुपरस्टार्स ने भी डोनेट किए लाखों-करोड़ों

कोरोनावायरस से जहां दुनिया के कई देश जूझ रहे हैं तो वहीं उनकी मदद के लिए कई हस्तियां सामने आ रही हैं. दूसरी तरफ भारत में भी कईं बड़ी हस्तियों ने मदद करने के लिए फंड डोनेट करने का फैसला किया है, जिनमें कपिल शर्मा से लेकर साउथ के कईं स्टार्स शामिल हैं. आइए आपको बताते हैं कौन-कौन सी है वह बड़ी हस्तियां….

कपिल शर्मा ने दी इतनी रकम

भारत सरकार भले ही लोगों की मदद करके लिए अनेक कदम उठा रही हो लेकिन एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से भी कई लोगों सामने आ कर मदद करते दिखाई दे रहे है. वहीं टीवी के पौपुलर कॉमेडियन कपिल शर्मा (Kapil Sharma ) ने ट्वीट कर अपने फैंस को जानकारी दी है कि ‘उन्होंने ने पीएम रिलीफ फंड के लिए 50 लाख रुपये दिए है.‘ उन्होंने ने लिखा- ‘ये एक दूसरे के साथ खड़े होने का है, कोरोना से लड़ने के लिए मैं पीएम रिलीफ फंड के लिए 50 लाख रुपये दे रहा हूं. मैं सभी से अपील करता हूं कि घर पर ही रहें. #stayhome #staysafe #jaihind #PMrelieffund’

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साउथ स्टार भी आए आगे

साउथ के सुपर स्टार पवन कल्याण (Pawan Kalyan) ने भी पीएम रिलीफ फंड के लिए डोनेट किया है. पवन ने ट्वीट कर लिखा- ‘मैं 1 करोड़ रुपये पीएम रिलीफ फंड के लिए डोनेट कर रहा हूं. पीएम नरेंद्र मोदी की इंस्पायरिंग लीडरशिप के चलते हम बहुत जल्द कोरोना महामारी से बाहर निकल आएंगे.‘

राम चरण भी आए मदद करने सामने

साउथ एक्टर राम चरण ने भी पीएम रिलीफ फंड को 70 लाख रुपये डोनेट किए हैं. इससे पहले साउथ के सुपरस्टार रजनीकांत फिल्‍म इम्प्‍लॉइज फेडरेशन ऑफ साउथ इंडिया यूनियन वर्कर्स को 50 लाख का डोनेशन दिया है. कोरोना के कारण फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े ये लोग काम पर नहीं जा पा रहे हैं. इसलिए उन्होंने ने उनको ये आर्थिक मदद की है.

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बता दें, कोरोनावायरस के कहर से सरकार की मदद करने के लिए देश की जानी-मानी ऑटोमोबाइल कंपनी Bajaj ग्रुप ने 100 करोड़ रुपये की राशि देने का वादा किया है. साथ ही वह सरकार और कई एनजीओ के साथ मिलकर स्वास्थ्य सुविधाओं, भोजन और शेल्टर देने और ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक सहायता देने का काम करने में मदद करेगी.

#lockdown: quarantine से बोर हुए छोटे नवाब, बनाया ये प्लान

कोरोना वायरस महामारी के चलते आम जन-जीवन से लेकर फिल्मी दुनिया भी रुक गई  है, बॉलीवुड (Bollywood) के सभी स्टार अपने घरों में रहने को मजबूर हैं और उन पर बोरियत हावी होने लगी है घर में रहने से बोरियत वाला स्ट्रेस दूर करने के लिए वो कुछ न कुछ कर रहे है ऐसे में बॉलीवुड के फेमस एक्टर सैफ अली खान (Saif Ali Khan)और अमृता सिंह (Amrita Singh) के बड़े बेटे इब्राहिम खान (Ibrahim Ali Khan) क्वारनटीन से बोर हो चुके हैं.

फोटो शेयर करते हुए बनाया भागने का प्लान

सैफ अली खान के बड़े बेटे इब्राहिम (Ibrahim Ali Khan) ने एक फोटो इंस्टाग्राम पर शेयर करते हुए कहा कि वे क्वारनटीन में बोर हो गए हैं और भागने के प्लान में हैं. फोटो का बैकग्राउंड बहुत अच्छा है. बैकग्राउंड में ग्लोब बना हुआ है. इस फोटो में इब्राहिम (Ibrahim Ali Khan) ने वेस्ट और लोअर पहन रखी है. इस पोस्ट में कुछ लोग उनके लुक्स की काफी तारीफ कर रहे हैं.

 

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Quarantine was so boring had to escape ?

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लॉटी स्टीवन्स इब्राहिम की खास दोस्त है और दोनों की तस्वीरें अक्सर सोशल मीडिया पर वायरल होती हैं. कुछ समय पहले  इब्राहिम और लॉटी स्टीवन्स ने इंस्टाग्राम पर एक फोटो शेयर की थी दोनों एक फिश टैंक के सामने पोज देते हुए नजर आए थे. इब्राहिम ने इस स्टोरी के कैप्शन में लिखा, आई मिस यू.

बहन सारा के साथ फोटोशूट में आए थे नजर

 

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हाल में ही जब उन्होंने एक मैग्जीन के लिए अपनी बहन सारा अली खान के साथ फोटो शूट करवाया था जो लोगों ने खूब पसंद किया था. सारा के साथ सोशल मीडिया पर इब्राहिम की फोटो खूब वायरल होते रहती है. इसके अलावा कुछ महीने पहले उनकी फैमिली के साथ मालदीव वैकेशन की फोटोज भी वायरल हुई थी. जिसमें उनकी मां अमृता, बहन सारा थी. इब्राहिम ने बहन  सारा अली खान  के साथ एक तस्वीरें शेयर की थीं, जिसमें वो उनके साथ समुद्र में मस्ती करती नजर आईं थीं फोटो में दोनों भाई-बहन की बॉन्डिंग काफी खास दिख रही थी. वायरल हो रही  फोटो में वह समुद्र किनारे खड़ी नजारों का आनंद लेती दिखाई दे रही हैं.

पिता सैफ कह चुकें है ये बात

 

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just me and the old man?

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इब्राहिम के बारे में सैफ अली खान ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि इब्राहिम फिल्मों में आएंगे या नहीं ये उनका फैसला होगा लेकिन अगर उन्हें फिल्मों में आना है तो उन्हीं खूब मेहनत करनी होगी. अब पहले जैसा माहौल नहीं है. सैफ ने कहा था कि स्क्रिप्ट सिलेक्शन और एक्टिंग पर मेहनत करेंगे तो ही इब्राहिम फिल्मों की दुनिया में टिक पाएंगे.

पौपुलर स्टार किड हैं इब्राहिम

 

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Keepin it Sharp?

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इब्राहिम अली खान (Ibrahim Ali Khan) बॉलीवुड के सबसे चर्चित स्टार किड में शुमार हैं और अभी तक किसी भी फिल्म में नहीं आए हैं लेकिन सोशल मीडिया पर खूब छाए रहते हैं. और अक्सर अपनी लाइफ से जुड़ी तस्वीरें शेयर करते रहते हैं

#coronavirus: कोरोना बचा रहा पैसे

कोरोना कोरोना कोरोना सारी दुनियां में यही एक आवाज सुनाई दे रही है. कोरोना के कारण भारत में भी 21 दिनों का लॉकडाउन घोषित किया जा चुका है. पूरे देश के सभी नागरिकों को इस लॉकडाउन की अवधि में किसी भी हालत में घर से बाहर निकलने की परमीशन नहीं है अर्थात् बच्चे बड़े सभी घरों में कैद. यही नहीं घरों से सभी कामवालों को भी हटाया जा चुका है. भले ही कोरोना सभी पर कहर बनकर बरपा हो, भले ही घरों में रहना हमें जेल में रहना प्रतीत हो रहा हो परंतु अप्रत्यक्ष रूप से इस दौरान बहुत सारे अनावश्यक खर्चे जो हमारे बजट को गड़बड़ा देते थे उन्हें हम बचा रहे हैं, और बची हुई धनराशि निस्संदेह भविष्य में हमारे ही काम आएगी. आइए एक नजर डालते हैं उन मदों पर जिन्हें न करके हम उन पर खर्च होने वाली धनराशि को बचा रहे हैं-

1. होटलिंग

पिछले कुछ वर्षों से होटलिंग अर्थात् होटल और रेस्तरां में खाना खाना एक फैशन ही नहीं बल्कि स्टेटस सिंबल भी बन गया है. बर्थडे, एनीवर्सरी, या अन्य किसी भी छोटे या बड़े खुशी के अवसर को मनाने का एक ही तरीका था सज धजकर होटल जाना और वहां चंद दोस्तों या परिवार वालों के साथ खुशी को सेलीब्रेट करना. 10-12 लोंगों की छोटी सी पार्टी का औसत खर्च 3000-3500 हजार से कम नहीं होता. इस समय वह खर्च पूरी तरह बंद है जो करना है घर में ही अपने ही परिवार के साथ सीमित संसाधनों में ही करना है. महिलाओं की किटी पार्टियों ने भी आजकल घर की जगह होटल का ही रुख कर लिया है. इसके अतिरिक्त जब भी परिवार के सदस्यों का घर का खाना खाने का मूड नहीं होता, बाहर का खाना आर्डर कर दिया जाता है. जोमेटो, स्विगी, उबर, डोमिनोज और पिज्जा हट जैसी कंपनियों की होम डिलीवरी ने इसे और भी आसान बना दिया था. परंतु लॉकडाउन के कारण अब यह सब पूरी तरह बंद है जिससे अनावश्यक खर्चोें मेें बहुत कमी आयी है.

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2. आफलाइन शापिंग

बच्चे बड़े सभी एक अनुमान के मुताबिक हफ्ते में कम से कम एक बार मॉल जाते हैं. बड़े शापिंग स्टोर में पहंुचकर बहुत सारी अनावश्यक शापिंग कर ली जाती है. बड़े भले ही मॉल कल्चर से दूर रहना पसंद करते हों परंतु युवाओं को तो घूमने और खाने पीने के लिए मॉल ही पसंद आते हैं. पर अब वहां की अनावश्यक शापिंग और खाने पीने पर होने वाला समस्त खर्च इन दिनों पूरी तरह से बंद है. फल-सब्जियों की उपलब्धता सीमित है इसलिए उनकी खरीददारी भी सिमट गयी है. बच्चों की हर समय होने वाली अनावश्यक चाकलेट, केक, पेस्ट्री, पिज्जा आदि की डिमांड भी अब पूरी तरह से बंद है. हर प्रकार की शापिंग पर होने वाले खर्च की यदि गणना की जाए तो यह चार अंकों से कम किसी भी कीमत पर नहीं हो सकती.

3. आनलाइन शापिंग

आफलाइन शापिंग के अतिरिक्त आनलाइन शापिंग ने बीते कुछ सालों से बहुत प्रचलन में हैं. घर बैठे चीजों को पसंद करो और आर्डर कर दो, घर बैठे शापिंग हो जाती है परंतु इस समय अमेजान, फ्िलपकार्ट, मंत्रा, जैसी सभी कंपनियां  बंद हैं अतः उन पर होने वाला समस्त खर्च भी बच रहा है.

4. वाहन खर्च

आजकल थोड़ी सी दूरी के लिए भी आने जाने के लिए दोेपहिया अथवा चार पहिया वाहनों का ही प्रयोग किया जाता है. 21 दिनों तक अब न कोई आफिस और कालिज जाएगा अर्थात पेटा्रेल डीजल पर होने वाला खर्च भी पूरी तरह से बंद है. क्योंकि आमतौर पर आफिस और कालिज की दूरी कई बार 10 से 15 या 20 किलोमीटर तक होती है यानी एक दिन में कम से कम दो लीटर पेट्रोल की खपत के अनुसार प्रतिदिन 150 रुपए के हिसाब से 3150 रुपए की साफ साफ बचत होना स्वाभाविक है. जो निःस्संदेह काफी बड़ी बचत है.

5. चाय नाश्ता

आफिस जाने वाले कामकाजी महिला पुरुषों के लंच और चाय की अवधि में होने वाला चाय नाश्ते का खर्च और बर्थ डे एनीवर्सरी और अन्य किसी भी खुशी के अवसर पर आफिस में होने वाली पार्टियों पर पूरी तरह से रोक लग गयी है इस प्रकार वे समस्त अनावश्यक खर्चे भी पूरी तरह से बंद हैं. हाउसिंग बोर्ड में एक अधिकारी के पद पर काम करने वाली मिसेज गुप्ता कहतीं हैं जब भी कोई अधिकरी आता है तो उसे चाय आफर करना तो कर्टसी में ही आता है और कई बार इस चाय का खर्च एक दिन में 100 रुपए तक हो जाता है जो अब बंद है यानी 2100 रुपए की साफ बचत.

6. पर्यटन और नाते रिश्तेदारी

अब मार्च में बच्चों की परीक्षाएं समाप्त हो गयीं थी. स्कूल रीओपन होने से पूर्व लगभग 10 से 15 दिनों की अवधि में माता पिता नाते रिश्तेदारी और पर्यटक स्थलों पर जाने का प्लान बनाते हैं अथवा छुट्टी के दिनों अपने शहर के आसपास ही मौज मस्ती करने जाते हैं परंतु चूंकि अब कहीं जा ही नहीं सकते तो ये पूरा अनावश्यक खर्च आपके बैंक के एकाउंट में सुरक्षित रहेगा. इसके अतिरिक्त नाते रिश्तेदारी में देने लेने पर होने वाला खर्च भी बच रहा है.

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7. मूवी

सोनी दंपत्ति को फस्र्ट दिन फस्र्ट शो देखने का शौक है. वे कहते हैं अब न कोई नई मूवी रिलीज हो रही है, थिएटर भी बंद हैं तो जाएगें भी कहां पर हां इससे बचत तो रही है. इसके अतिरिक्त मूवी देखते समय ब्रेक टाइम में होने वाला कुरकुरे, पापकार्न और चाय काफी पर होने वाला खर्च बच रहा सो अलग.

कुल मिलाकर भले ही इस लॉकडाउन में अनेकों मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है, मन को मार मारकर घर में ही रहना पड़ रहा हैं परंतु अपनी बचत की गणना कीजिए और इन 21 दिनों में बचने वाली राशि को सोचकर खुश हो जाइए.

#coronavirus: बहुत कुछ सिखा रहा है कोरोना कर्फ्यू

पिछले कुछ दिनों से हम सब घर में कैद से हो कर रह गए हैं. स्कूल ,कॉलेज ,ऑफिस, बाजार, मॉल ,मेट्रो ,ऑटो रिक्शा, टैक्सी सब कुछ बंद है. पर याद रखें, कर्फ्यू हमारे ऊपर है हमारे दिमाग, हमारी सोच और काम करने के जज्बे पर नहीं है. वैसे भी कोरोना कर्फ्यू हमें बहुत कुछ सिखा रहा है .बस जरूरत है इन सीखों को समझने की,

1. सफाई की अहमियत

कोरोना वायरस के खौफ ने लोगों को सफाई की अहमियत सिखा दी है. आज हर शख्स बाहर से आते ही कपड़े बदलता है, हाथ मुंह धोता है, घर की साफसफाई रखता है ,कोई भी सामान बिना धोए यूज नहीं कर रहा. सफाई से जुड़ी ये छोटीछोटी बातें एक्चुअली हमें हमेशा ही ध्यान में रखनी चाहिए. क्यों कि हर तरह की बीमारियों से बचे रहने की पहली शर्त साफसफाई ही होती है.

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2. जिंदगी बचाने के लिए मंदिर नहीं विज्ञान पर विश्वास करो

इस बीमारी ने लोगों को अच्छी तरह अहसास दिला दिया है कि जिंदगी बचाने के लिए पंडितों और मौलवियों के चरणों में लोटने, चढ़ावे चढ़ाने या मंदिर और मस्जिदों के चक्कर लगाने का कोई फायदा नहीं है . धर्मगुरुओं को तो खुद अपनी जिंदगी बचाने के लाले पड़ रहे हैं. कोरोना की इस लड़ाई में क्या किसी पंडित या मौलवी ने सामने आ कर यह कहा कि बच्चों मेरे दर पर भीड़ लगाओ.  मेरे भस्म से सब ठीक हो जाएगा.

3. रिश्तों की अहमियत

काम और पढ़ाई की भागदौड़ में हम अपनों के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते. उन की भावनाओं को महसूस नहीं कर पाते. मगर अभी वक्त है अपने रिश्तो में प्रगाढ़ता लाएं . उन्हें नए नजरिए से देखें. दिलों को जोड़े. कोरोना खौफ के बीच शायद आप समझ गए होंगे कि जिंदगी में अपने कितने महत्वपूर्ण होते हैं.

4. खुद को तलाशें

फिलहाल भले ही हमारे आगे केवल हमारा घर, परिवार और तन्हाई है . पर याद रखें हमारे पास वक्त भी है. हमें खुद को समझने का अच्छा मौका मिल रहा है. अपनी उन दबी इच्छाओं को पूरा करने का मौका मिल रहा है जिन्हें हम जिंदगी की भागदौड़ के बीच चाहकर भी पूरा नहीं कर पाते हैं . तो फिर आइए कोरोना कर्फ्यू के इस समय को बर्बाद करने और बोर होने के बजाय कुछ नया सीखे, कुछ नया करें.  हो सकता है आप को अपनों से ही बहुत कुछ सीखने को मिल जाए या फिर आप अपने दबे हुए टैलेंट और हौबीज को नए आयाम दे सके.

5. जिंदगी ना मिलेगी दोबारा

कोरोना वायरस के चंगुल में फंसे बीमार, छटपटाते लोगों को देख कर कहीं न कहीं आप को अपने स्वस्थ शरीर की अहमियत का अहसास जरूर हुआ होगा. जो लोग जराजरा सी बात पर खुद को और दूसरों को मारने पर उतारू हो जाते हैं जरा उन्हें बिना मास्क और सैनिटाइजर के किसी कोरोना मरीज के करीब रहने या हाथ मिलाने को कहें. वे डर कर पीछे हट जाएंगे. क्यों कि कोई भी ऐसा नहीं जिसे अपनी जिंदगी से प्यार नहीं . मौत को इतने करीब देख कर सब के छक्के छूट जाते हैं. बेहतर होगा कि फिर से एक बार अपनी जिंदगी की खूबसूरती को महसूस करें.

6. काम से प्यार

हम में से ऐसे बहुत से लोग हैं जिन्हें रोज ऑफिस जाना और काम करना बहुत बोझ लगता है. मगर आज उन्हीं लोगों से पूछ कर देखें तो उन का जवाब होगा कि बिना काम जिंदगी में कुछ रखा ही नहीं.  इतनी बोरियत और इतना खालीपन है. दरअसल जब इंसान अपना काम करता है तभी वह जिंदगी को वास्तविक रूप से महसूस कर पाता है. इसलिए आज के बाद हमेशा अपने काम से प्यार कीजिए.

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7. कुदरत से जंग उचित नहीं

कुदरत ने दुनिया बनाते हुए तमाम चीजें बनाई, पेड़पौधे, पशुपक्षी, इंसान, हवापानी, मिट्टी जल, फलफूल ,रातदिन .  क्या कुछ नहीं दिया कुदरत ने हमें. मगर इंसानों ने अपनी शक्ति और बुद्धि के घमंड में प्रकृति को ही चुनौती दे डाली. नतीजा हमारे सामने है . कोरोना वायरस ने हमें सिखाया है कि प्रकृति के संतुलन को बिगाड़े नहीं तभी हमारी जिंदगी सुरक्षित रहेगी.

#coronavirus: कोरोना की नज़रबंदी कही बन ना जाये पारिवारिक तनाव

पुणे के गुप्ता परिवार को कोरोना के घर नजरबंद हुए एक हफ्ते से भी अधिक हो गया था.शुरू शुरू में तो ललिता और विरल को बहुत अच्छा लग रहा था क्योंकि विवाह के दो वर्ष  बाद ये पहला मौका था जब उन्हें एकसाथ इतना समय मिल रहा था. परन्तु चार दिनों  के बाद ही दोनो में नोंकझोंक होने लगी.विरल को जहाँ ललिता की हर बात पर रोकटोक करना अखरने लगा था वहीं ललिता को विरल का सारा दिन बस बिस्तर पर पसरे रहना पसंद नही आता था.

बात दोनो से शुरू होती थी और फिर परिवार तक चली जाती थी.

छोटी छोटी बातों के मुद्दे बनने लगे थे.पहले अगर कुछ ऐसी बहस होती थी तो दोनो इधर उधर चले जाते थे .अब दोनो के पास कोई विकल्प नही था.रही सही कसर तब पूरी हो गई जब विरल ने ललिता को फोन पर अपनी मम्मी से घर की एक एक बात को शेयर करते हुये सुना.

ललिता के अनुसार घर मे बैठे बैठे वो इतनी घुट चुकी है तो अगर अपना तनाव अपनी मम्मी के साथ बाँट रही है तो क्या बुरा हैं?

ललिता के शब्दों में”विरल का तो वर्क फ्रॉम होम चल रहा हैं पर मेरा तो काम दुगना हो गया हैं”

“विरल तो ऑफिस के काम के बहाने से घर पर बिल्कुल भी मदद नही करता हैं.जब देखो या तो लैपटॉप या मोबाइल से चिपका रहता हैं और मुझे देखते ही फौरन चौकन्ना सा हो जाता हैं”

ललिता को अब ऐसा लगने लगा हैं कि विरल का कहीं और चक्कर भी चल रहा हैं.

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दोनो उस छोटे से फ़्लैट के अलग अलग कोनो में बैठे हुये हैं और अपनी रिहाई की प्रतीक्षा कर रहे हैं.डर बस इस बात का हैं कि कही कोरोना की नज़रबंदी उनकी शादी में हमेशा के लिए खटास ना ला दे.

वही दूसरी ओर अजय भी शायद जीवन मे पहली बार अपने परिवार के साथ इतना वक़्त बिता रहा था.अजय की मोटर के स्पेयर पार्ट्स की एक छोटी सी फैक्ट्री नोएडा के बाहरी इलाके में स्थित थी.बच्चो का बचपन अजय कभी नही देख पाया था, इसलिये उसे लगा कि वो बच्चो के साथ क्वालिटी स्पेंड करेगा.परन्तु अजय ने महसूस किया कि ना केवल बच्चे बल्कि बीवी का एक अलग टापू हैं जिसमे वो चाह कर भी  जा  नही पा रहा हैं.

अजय के ही शब्दों में”तीनों आपस मे खुसरफुसुर करते रहते हैं या किसी भी बात पर हँसते रहते हैं पर जैसे ही मैं जाता  हूँ तो एक सन्नाटा खींच जाता हैं”

अकेलेपन से ज़्यादा खलता हैं अपनों के बीच रहते हुये अकेलनपन और इसको भरने के लिये अजय ने फेसबुक पर अपनी भूलीबिसरी गर्लफ्रैंड को खोजना आरम्भ कर दिया था.

अगर लॉक डाउन की अवधि ऐसे ही बढ़ती रही तो कोरोना वायरस ना केवल देश की इकॉनमी के लिये बल्कि रिश्तों के लिये भी बेहद घातक सिद्ध हो सकता हैं.

परन्तु इस ख़तरनाक वायरस से बचने का घर पर रहने के अलावा और कोई उपाय भी नही हैं .परन्तु ऐसी स्थिति में आप तनावग्रस्त ना हो, इसको सकारात्मक रूप से ले.

कुछ छोटे छोटे टिप्स अपनाकर आप घर में नजरबंद रहकर भी आजाद  रह सकते हैं.

1.मेडिटेशन करे

ये जरूर करे, चाहे बस रोज़ पांच मिनट ही करे.धीरे धीरे आप अवधि को बढ़ा सकते हैं.अगर आप दिन की शुरुआत मेडिटेशन से करेंगे तो पूरे दिन चिड़चिड़ाहट नही होगी और दिन भी अच्छा गुजरेगा.

2.हॉबी टाइम

ये ही सही समय हैं,जब आप अपनी किसी भी पुरानी हॉबी को दूबारा से जीवित कर सकते हैं.आपको कुछ नया भी सीखने को मिलेगा साथ ही साथ मज़ा भी आएगा.

3.जिये और जीने दे

थोड़ा सा ख़ुद भी सांस ले और परिवार को भी लेने दे.ऐसा हो सकता हैं और हो भी रहा होगा कि आपको अपने परिवार के हर सदस्य का नया चेहरा देखने को मिल रहा होगा.सदस्यों की हर बात  पर रिएक्शन ना दे.इस समय अपने ऊपर काम करे.

4.करे नए कौशल का विकास

ये सही समय हैं कि इस लॉक डाउन के समय  आप यू ट्यूब की मदद से  किसी भी नए कौशल का विकास कर सकते हैं जो आपके लिये समय काटने का अच्छा जरिया बन सकता हैं.

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5.करे खुद को पैम्पर

दिन भर काम मे ही ना जुटी रहे, आपने आप को पैम्पर अवश्य करे.सोमवार को अगर बालो में हेयर पैक लगाए तो मंगलवार को फेस पैक का उपयोग कीजिये, बुधवार को मैनीक्योर कीजिये तो गुरुवार को पेडीक्योर.ये सारे कार्य अपनी रसोई में उपलब्ध सामग्री से कर सकती हैं.

इस समय या तो  आप  खुद से खुद की पहचान करा सकते हैं या फिर एक दूसरे में मीन मेख निकाल कर घुटन महसूस करते रहे.

#lockdown: टेस्टी और हेल्दी इंडियन स्वीट है शकरपारा

पारंपरिक मिठाइयों में शकरपारा पहले लंबे तिकौने आकार का बनता था, पर अब छोटे-छोटे चौकोर आकार में भी बनने लगा है. शकरपारे को मीठा करने के लिए पहले चीनी की चाशनी तैयार की जाती है. चीनी को ही देहाती बोली में शक्कर कहा जाता है. इसकी सबसे बड़ी खूबी यह है कि यह मिठाई जल्दी खराब नहीं होती है. इस वजह से गांव के बाजारों में यह मिठाई खूब बिकती है. साथ ही, यह दूसरी मिठाइयों से सस्ती होती है. शक्कर और मैदा से बनने के चलते इस में मिलावट का खतरा नहीं होता है. इस को बनाना आसान होता है. ऐसे में इस को बना कर बेचना और भी आसान है.

हमें चाहिए…

200 ग्राम मैदा

एक कटोरी चीनी

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50 ग्राम घी

4-5 इलायची का पाउडर

तलने के लिए डेढ़ कप तेल

बनाने का तरीका

-सबसे पहले एक बड़े बाउल या परात में मैदा डालें और इसमें घी का मोयन डालकर अच्छी तरह मिक्स कर लें. हथेलियों के बीच में आटे को अच्छी तरह रगड़ कर मिलाएं.

– फिर इसमें थोड़ा-थोड़ा करके पानी डालते जाएं आटा सानते जाएं. आटा न तो ज्यादा सख्त होना चाहिए नहीं ज्यादा मुलायम. शक्करपारे के लिए पूरी बनाने जैसा आटा गूंदना/सानना चाहिए.

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– आटा गूंदने के बाद इसे ढककर 10-15 मिनट के रख दें. तय समय बाद आटे को फिर से अच्छे से गूंद लें और दो लोइयों में बांट लें. कड़ाही में तेल डालकर मीडियम आंच में गरम होने के लिए रख दें.

– फिर एक लोई को बेलन से मोटी रोटी के आकार में बेल लीजिए. इस रोटी को चाकू के सहारे मनचाहे शेप के टुकड़े काट लीजिए. इसी तरह दूसरी लोई से छोटे-छोटे टुकड़े काट लें.

– अब एक टुकड़ा कड़ाही में डालकर चेक कर लें कि यह गरम हुआ है या नहीं. अगर टुकड़ा तेल में तुरंत ऊपर की ओर आ जाता है तो इसका मतलब तेल गरम हो चुका है.

– इसके बाद कड़ाही के तेल में थोड़ा-थोड़ा करे मैदे के टुकड़े डालकर चलाते हुए तलें. ध्यान रखें इस दौरान आंच धीमी कर दें. अगर तेज आंच में शक्करपारे तलेंगे तो यह ऊपर से जल जाएंगे लेकिन अंदर से कच्चे रहेंगे.

– अब पैन में चीनी और आधा कप पानी डालकर मीडियम आंच पर चाशनी बनाने के लिए रखें.

– जब तक चाशनी बन रही है बाकि के शक्करपारे भी तल लें. चाशनी को बीच-बीच में चलाते रहें. इसमें इलायची पाउडर डालें.

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– 8-10मिनट बाद चाशनी की एक बूंद एक चम्मच में लेकर उंगली अंगूठे के बीच रखकर देखें. अगर यह इसमें मोटी तार बन रही है तो समझिए चाशनी तैयार है.

– अब चाशनी में शक्करपारे डालकर अच्छे से मिलाते जाइए. 1-2 मिनट बाद आंच बंद कर दें और शक्करपारे और चाशनी को चलाते रहें.

– पैन को स्टोव से हटा लें और इसे अच्छी तरह से चलाते हुए ठंडा कर लें. आप पाएंगे कि एक समय के बाद चाशनी ठंडी हो जाएगी शक्करपारों पर इसकी कोटिंग चढ़ जाएगी.

– शक्करपारे रेडी हैं. ठंडा होने के बाद खाएं और खिलाएं.

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