जानें पीरियड्स के दौरान क्या खाएं और क्या नहीं

पीरियड्स से पहले होने वाली तकलीफ़, मूड स्विंग्स, पेट में दर्द, क्रैम्प्स (ऐंठन) जैसी समस्याएं यानी पीएमएस की तकलीफें हार्मोन्स के कम या ज़्यादा होने के कारण होती हैं. सच कहें तो हार्मोन्स में बदलाव ही महिलाओं के मासिक धर्म का प्रमुख कारण होता है. लेकिन यदि ये हार्मोन्स असंतुलित हो जाते हैं तो ये तकलीफें हद से ज़्यादा बढ़ जाती है.आइये जानते हैं डायटीशियन डॉ स्नेहल अडसुले से कि पीरियड्स के समय , बाद में और पहले क्याक्या चीज़ें खानी चाहिए;

पीरियड्स के पहले

पीरियड्स के पहले यानी मेन्स्ट्रुअल सायकल के 20वें से 30 वें दिन तक आप के अंदर की ऊर्जा कम हो जाती है. आप थोड़ी उदासी भी महसूस कर सकती हैं. दिन में कई बार काफी ज़्यादा भूख महसूस हो सकती है और इसलिए इन दिनों आप के शरीर और मन के लिए सेहतमंद स्नैक्स ज़रुरी होते हैं.

रिफाइन्ड शक्कर, प्रोसेस्ड फूड और अल्कोहल का सेवन जितना संभव हो कम करें. बादाम, अखरोट, पिस्ता जैसे सूखे मेवे यानी हेल्दी फैट का सेवन करें. सलाद में तिल और सूरजमुखी के बीज शामिल करें. सेब, अमरुद, खजूर,पीच जैसे अधिक फायबर वाले फलों को अपने आहार में शामिल करें.

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हायड्रेटेड रहें. सोड़ा और मीठे पेय से परहेज़ करें. पर्याप्त मात्रा में पानी पियें. नींबू पानी में पुदिना और अदरक डाल कर पिएं. रात को सोने से पहले शरीर और मन को आराम मिले इसके लिए पेपरमिंट या कैमोमाईल चाय लें.

खून में आयरन सही मात्रा में रहने से आप का मूड और ऊर्जा का स्तर भी अच्छा रहेगा. नट्स, बीन्स (फलियां), मटर, लाल माँस और मसूर जैसे लोहयुक्त खाद्यपदार्थों का आहार में समावेश करें. पेट फूलने या सूजन जैसी समस्या से बचने के लिए नमक का सेवन कम करें.

पीरियड्स के दिनों में (पहले से सातवें दिन तक)

पीरियड्स के दिनों में खास कर पहले दो दिनों में आप को ऐसा लग सकता है जैसे सारी शक्ति चली गई हो. ऊर्जा का स्तर बेहद कम हो जाता है और आप को थकान महसूस हो सकती है. इसलिए इन दिनों ऐसा भोजन करें जिस से आप के शरीर में ऊर्जा का स्तर ऊँचा ऱखने में मदद मिले. अपने आहार में किशमिश, बादाम, मूँगफली, दूध का समावेश करें.

जंक और प्रोसेस्ड फूड में सोडियम और रिफाइन्ड कार्ब्ज प्रचुर मात्रा में होते हैं. इन्हें खाने से बचें. शीतल पेयों में रिफाइन्ड शक्कर भारी मात्रा में होती है जिस के कारण क्रैम्प्स (ऐंठन) आने की मात्रा और पीड़ा बढ़ सकती है. शीतलपेय या सोड़ा के बजाय नींबूपानी, ताजा फलों का रस या हर्बल टी लें.

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पीरियड्स के बाद के दिन (सातवें दिन से अठारहवें दिन तक)

इन दिनों आप काफी अच्छा महसूस करती हैं. इन्ही दिनों में ओव्यूलेशन होता है. ऐसे में व्यायाम के लिए ये दिन सर्वश्रेष्ठ होते हैं. अपने सलाद या सब्ज़ी में एक चम्मच फ्लैक्स या कद्दू के बीज डालें. इस से आप के शरीर में नैसर्गिक रुप से एस्ट्रोजन का स्तर ऊँचा रहेगा. पालक, दही, हरी सब्ज़ियां, फलियां जैसे कैल्शियमयुक्त खाद्यपदार्थ का सेवन करने के लिए यह सप्ताह सब से अच्छा है. इस चरण में आप की भूख धीरेधीरे कम होती है इसलिए समय पर भोजन करने का खासतौर पर ध्यान रखें.

अधूरी कहानी: भाग-2

पिछला भाग पढ़ने के लिए- अधूरी कहानी: भाग-1

कहानी- नज्म सुभाष

आज 14 साल बाद फिर से वही नाम उस की आंखों के सामने तैर गया. इन सालों में उस ने कितने संघर्ष किए, क्याक्या परेशानियां नहीं उठाईं… सब याद है उसे. किस तरह उस ने लोगों के घर काम कर के अपना जीवन काटा. यह तो अच्छा हुआ कि उसे निर्मलजी जैसे श्रेष्ठ साहित्यकार का आशीर्वाद प्राप्त हुआ. उन्हीं की प्रेरणा से उस ने एक किताब ‘स्त्रीवजूद’ लिखी जो पूरे भारत साहित अन्य देशों में भी अनुवादित हो कर हाथोंहाथ ली गई. उस ने अपना नाम बदल कर माधवी कर लिया. पुस्तकों से प्राप्त होने वाली धनराशि से उस ने एक घर खरीदा. अनाथाश्रम से उस ने एक बेटी को गोद लिया. उस की जिंदगी में हर तरफ खुशियां ही खुशियां थीं. लेकिन आज अतीत ने जख्मों को फिर से ताजा कर दिया.

‘नहीं ऐसा नहीं हो सकता… हो सकता है यह कोई दूसरा इनसान हो. आजकल तो एक नाम के कई लोग मिल जाते हैं,’ उस ने सोचा.

करीब 10 दिन बाद उस के पास निर्मलजी का फोन आया. उन्होंने उसे बताया कि साहित्यकार मंडल ने अरुण कुमार को पुरस्कार प्रदान करने के लिए तुम्हें चुना है. यह सुन कर वह अवाक रह गई. वह जिस तरह जाने से बचती है, लोग उसे उसी तरफ क्यों धकेल देते हैं… उस ने साफ मना कर दिया कि वह नहीं आ पाएगी. मगर निर्मलजी ने बताया कि यह बात लेखक को डाक द्वारा बताई जा चुकी है कि उसे पुरस्कार प्रदान करने के लिए तुम आ रही हो.

‘‘लेकिन इतना सब करने से पहले आप ने मु झ से पूछा क्यों नहीं?

‘‘अरे, यह भी कोई बात हुई… आजकल तो लोग प्रसिद्धि पाने के लिए ऐसे कार्यक्रमों की फिराक में रहते हैं और एक आप हैं कि…’’

‘‘सौरी सर मैं नहीं आ सकती.’’

‘‘यानी मेरी इज्जत मिट्टी में मिलाने का पूरा इरादा है… अब तो कार्ड भी बांटे जा चुके हैं, खैर, ठीक है आप की मरजी,’’ एक लंबी सांस खींचते हुए वे बोले. उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था जैसे लंबी रेस जीतने से पहले ही वे थक गए हों.

‘‘ठीक है सर मैं आ जाऊंगी… मगर केवल पुरस्कार प्रदान करने के तुरंत बाद चली जाऊंगी.’’

निर्मलजी उस की जिंदगी में एक आदर्श की तरह थे… उसे बेटी की तरह प्यार करते थे. लिहाजा उन की बात काटने की उस में हिम्मत न थी.

शाम के 7 बज रहे थे जब निर्मलजी ने तमाम लेखकों और बुद्धिजीवियों से भरे हौल

में अरुण कुमार को पुरस्कार प्रदान करने के लिए माधवी के नाम की घोषणा की. माधवी ने ज्यों ही सम्मानित होने वाले शख्स को देखा, उस के पैर थम गए. उस शख्स ने भी एक नजर उसे देख कर अपनी नजरें  झुका लीं. उफ, वही शख्स… कितना दुखद दृश्य था वह… इसी दृश्य से तो वह बचना चाहती थी… मगर अब…

जो इनसान अब तक यह सम झता आया था कि उस से दूर होने के बाद मधुमालती ने अपना वजूद गिरवी रख दिया होगा या फिर मरखप गई होगी आज वही मधुमालती उसे पुरस्कार प्रदान करेगी और वह पुरस्कार ग्रहण करेगा… इस से बड़ा नियति का क्रूर मजाक और क्या होगा…

उस से नजरें मिलते ही अरुण कुमार का सारा अहंकार शीशे के माफिक टूट कर उस के मन में चुभने लगा. माधवी ने पुरस्कार निर्मलजी के हाथ से ले कर उसे पकड़ा दिया. औपचारिक रूप से उस ने धन्यवाद किया. किसी से कुछ कहने के बजाय वह धम्म से कुरसी पर बैठ गया. जैसे उस का सम्मान न किया गया हो, बल्कि सैकड़ों जूते मारे गए हों.

माधवी वहीं खड़ी रही. अचानक वहां बैठे साहित्यकार माधवी से अपनी पसंद की गजल सुनाने की फरमाइश करने लगे. तब तक निर्मलजी ने भी सभी साहित्यकारों का दिल रखने के लिए उसे एक छोटी सी रचना सुनाने को कह दिया.

अंदर से हूक उठ रही थी. बस मन यही कर रहा था कि वह तुरंत यहां से चली जाए. मगर निर्मलजी की बात कैसे ठुकराती. अत: उस ने माइक संभाल लिया

यों तो मेरे लब पर आई, अब तक कोई आह नहीं,

तेरी जफाओं पर चुप हूं तो इस का मतलब चाह नहीं.

तू कहता था तेरी मंजिल, नजरों में वाबस्ता है,

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सचसच कहना मेरी तरह ही, तू भी तो गुमराह नहीं.

पत झड़ का मौसम काबिज है, दिल में पूरे साल इधर,

कितनी बार कैलेंडर पलटा, उस में फागुन माह नहीं.

अश्कों का था एक समंदर, जिस के पार उतरना था,

डूब गई मैं जिस के गम में, उस को है परवाह नहीं.

तु झ से मिल कर मेरी धड़कन, बेकाबू हो जाती थी,

अब ये बर्फ सरीखे रिश्ते, मिलने का उत्साह नहीं.

जीना मुश्किल कर देती है, बेचैनी को बढ़ा कर जो,

अपनी यादें ले जा मु झ से, होगा अब निर्वाह नहीं.

आज माधवी की आवाज में दर्द का एहसास अधिक गहरा था. लोग मंत्रमुग्ध हो कर सुन रहे थे. गजल खत्म होते ही हौल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा. मगर माधवी बदहवासी में  झट से मंच से उतर कर बाहर खड़ी कार में जा बैठी. सब हैरान थे.

घर पहुंचने के बाद माधवी का मन चाह रहा था कि फूटफूट कर रोए. मगर गले में जैसे

कुछ धंस गया था. वह इन्हीं खयालों में गुम थी कि तभी दरवाजे पर दस्तक हुई.

‘‘कौन है?’’ आंसू पोंछ कर  झुं झलाते हुए उस ने दरवाजे की जगह खिड़की खोल दी. सामने वही चेहरा था जिस से उसे नफरत हो चुकी थी.

‘‘तुम… अब यहां क्या करने आए हो?’’

‘‘मैं… मैं तुम से माफी मांगने आया हूं मालती.’’

‘‘कौन मालती…? मालती को तो मरे 14 साल हो चुके हैं. मैं माधवी हूं, मैं तुम्हें नहीं जानती, चले जाओ यहां से,’’ अंतिम शब्द तक आतेआते वह चीख पड़ी थी.

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‘‘चला जाऊंगा, लेकिन बस… एक बार… बस एक बार कह दो कि तुम ने मु झे माफ कर दिया,’’ घुटनों के बल बैठ कर गिड़गिड़ा उठा था वह.

‘‘मैं ने कहा न मैं तुम्हें नहीं जानती… अब तुम शराफत से जाते हो या मैं शोर मचाऊं,’’ कह कर उस ने खिड़की बंद कर दी.

करीब 15 मिनट तक कोई आहट नहीं हुई. उसे लगा वह जा चुका है… अच्छा है… जब उस से कोई वास्ता नहीं तो फिर किसलिए माफी… मेरी जिंदगी नर्क बना कर आज मु झ से माफी मांगने आया है.

आगे पढ़ें  अचानक उस के मन ने उसे धिक्कारा…

6 टिप्स: कम बजट मे घर को ऐसे बनाएं अट्रेक्टिव

प्रत्येक महिला की चाहत होती है की वह अपने आसपास को और अपने घर को इस तरह सजाए की उसका आशियाना सुकूनभरा बनें. इसके लिए जरूरी नहीं कि ढेरों पैसे खर्च करके ही आप अपने घर को सजाएं. घर की सजावट के लिए रचनात्मकता की जरूरत होती है, पैसों की नहीं. कम बजट में भी अपने घर को खूबसूरत कैसे बनाया जाए आईए जानें.

1. मुख्य द्वार की सजावट

इसके लिए आप फूलों या मिट्टी से बने सजावट के सामान का इस्तेमाल कर सकती हैं. आजकल बाजार में मिट्टी से बना बेहद आकर्षक सजावट का सामान उपलब्ध है. आप अपने घर के मुख्य द्वार पर मिट्टी की रंग-बिरंगी विंड चाइम लगा सकती हैं. इसके अलावा आप दरवाजे के पास मिट्टी के आकर्षक बरतन में पानी भर कर उसमें 5 से 7 सुंदर फूल सजा सकती हैं.

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2. कैसे करें लिविंग रूम की सजावट

यदि आपको लग रहा है कि घर में रंग-रोगन कराना आपके बजट से बाहर है तो चिंता की कोई बात नहीं. आप पूरे घर में पेंट न करवा कर अपने ड्राइंग रूम की एक दीवार को गहरे रंग में रंग कर नया लुक दे सकती हैं. इसके अलावा सोफे के ऊपर के भाग में किसी खास आकार में पहले से मौजूद रंग का 3 गुना ज्यादा गहरा शेड लगा कर दीवार पर कला का काम कर सकती हैं.

3. दीवार की सजावट

आजकल पेपर वर्क, पेपर पेस्टिंग द्वारा भी दीवारों को सजाने का चलन है. इसकी लागत पेंट करवाने की तुलना में बेहद कम आती है और आपका घर भी बिल्कुल नया-सा दिखने लगता है. ये पेपर घर की साज-सज्जा के मुताबिक फ्लोरल, प्लेन हर प्रकार के डिजाइन में मार्केट में आसानी से मिल जाते हैं.

4. सोफा कवर बदलें

दूसरा विकल्प यह है कि सोफा बदलने की बजाय सोफे के कवर और कुशन को बदल दें. अगर आपके सोफे के कवर का रंग क्रीम है, तो कुशन आप तीन बड़े आकार के और तीन छोटे साइज के लें. छोटे वाले कुशन का रंग थोड़ा डार्क शेड का रखें. आप अपने कुशन कवर का रंग अपने दरवाजे और खिड़कियों के रंग से मैच करता हुआ भी रख सकती हैं.

5. कृत्रिम फर्श से पाएं नया फर्श

यदि आपका फर्श खराब हो गया है या पुराने चलन के मुताबिक बना है तो चिंता की कोई बात नहीं. आप फ्लोरिंग मैटीरियल द्वारा अपने फर्श को बिना तोड़-फोड़ किए ही नया जैसा बना सकती हैं. ये फ्लोरिंग मैटीरियल हर रंग व डिजाइन में बाजार में उपलब्ध हैं.

आप चाहें तो अगले साल इसे फिर बदल सकती हैं और घर को फिर से एक नया लुक दे सकती हैं. इस फ्लोरिंग की खासियत यह है कि इसे आप ठीक उसी प्रकार से साफ कर सकती हैं, जैसे मार्बल, टाइल्स या चिप्स के फर्श को साफ किया जाता है.

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6. फूलों से सजाएं घर

घर में फूलों से सजावट सबसे सस्ती, सरल व आकर्षक होती है. इसके लिए आप ताजे फूल या बाजार में आसानी से उपलब्ध आर्टिफिशयल फूलों का इस्तेमाल भी कर सकती हैं. सेंटर टेबल पर कांच की कटोरी में पानी भर कर उसमें रंग-बिरंगे फूल रखें या फिर बाउल में फ्लोटिंग कैंडल जला कर भी आप कमरे की रौनक बढ़ा सकती हैं.

औफिस फैशन: कही आप भी तो नहीं करती ये 5 गलतियां

आजकल के डेली लाइफस्टाइल में महिलाएं केवल घर पर नहीं बैठती हैं. महिलाएं घर संभालने के साथ-साथ औफिस का काम भी सभांलती हैं. लेकिन कहीं न कहीं फैशन के मामले में पीछे रह जाती हैं. शादी या पार्टी में महिलाएं अपने फैशन का ख्याल रखना नहीं भूलती पर जब बात औफिस की आती है तो वह जल्दबाजी में अपने फैशन का ख्याल नहीं रख पातीं. इसीलिए आज हम आपको औफिस फैशन में होने वाली गलतियों से बचने के बारे में बताएंगे.

1. औफिस के अकौर्डिंग हो रखें अपना लुक

अगर आप अपने कैरियर के प्रति संजीदा हैं, तो आप फैशनेबल दिखने के  बजाय पेशेवर दिखने की कोशिश करें. आज लोग काम के साथ आप के बोलने के लहजे, पहनावे पर भी ध्यान देते हैं. इसलिए कामकाजी महिलाओं का औफिस में खुद को सही तरीके से पेश करना बहुत जरूरी है.औफिस जाते वक्त अपने पहनावे पर जरूर ध्यान दें. ज्यादा चटक रंग, अधिक गहने, चमकीले वस्त्र आप की छवि को बिगाड़ सकते हैं. यदि आप की ड्रैस अनुकूल है, तो इससे आपके काम पर असर पड़ता है. आप के औफिस में आप के साथी आप की ड्रैस को ले कर बातें बनाने लगते हैं, जिस से आप का काम में मन नहीं लग पाता.

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कुछ समय पहले तक महिलाएं सूटसलवार, साड़ी पहन कर काम पर जाती थीं, लेकिन अब वे काफी स्मार्ट हो चुकी हैं. आज की कामकाजी महिलाएं ट्राउजर, शर्ट जैसे परिधानों को अपना चुकी हैं. अब ज्यादातर महिलाओं के वार्डरोब में सूट, साड़ी कम फौर्मल ज्यादा दिखाई देते हैं.

2. जब मीटिंग के लिए हों तैयार

यदि औफिस में कोई मीटिंग है तो ऐसे में आप साड़ी को नजरअंदाज कर के ट्राउजर, फौर्मल शर्ट, टौप पहन कर जाएं. साड़ी संभालने से ज्यादा आरामदेह फौर्मल ड्रैस है. इस से आप का ध्यान भटकेगा नहीं और एकाग्रता बनी रहेगी.

3. परिधान ऐसा जो दिलाए आराम

ऐसा कई बार होता है कि हम औफिस ऐसी ड्रैस पहन कर चले जाते हैं जिस में हम पूरा दिन कंफर्ट महसूस नहीं करते. अत: कपड़े ऐसे चुनें जो जरूरत से ज्यादा टाइट न हों. अकसर टाइट कपड़ों में हम काम से ज्यादा कपड़ों पर ध्यान देते हैं. अधिक फैशनेबल ड्रैस न पहनें, जो कहीं से कटी डिजाइन वाली या जरूरत से ज्यादा शौर्ट हो.

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हमारे यहां ऐसी कामकाजी औरतें भी हैं, जिन्हें काम करने की अनुमति तो दे दी गई है, लेकिन जींस, टौप पहनने के लिए अभी भी उन्हें रोका जाता है. ऐसे में आप चाहें तो ऐसा कुरती कलैक्शन रखें, जिसे आप मिक्स ऐंड मैच कर के पहन सकें. औफिस के लिए कुरती या सूट बहुत सिंपल लें. यह ज्यादा चमकदमक वाली न हो. आप ब्लैक या सफेद कुरती के साथ रंगबिरंगा दुपट्टा कैरी कर सकती हैं. यदि कुरती बुटीक में सिलवा कर पहनती हैं, तो ज्यादा डीपनैक न करवाएं न ही ज्यादा डीप बैक. कुरती की डिजाइन जितनी सिंपल रहेगी औफिस लुक के लिए उतना ही बेहतर होगा.

4. कंफर्ट ही है ट्रैंड

 

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कामकाजी महिलाओं के लिए कंफर्ट ही ट्रैड है. फैशन डिजाइनर अंजलि बेदी का कहना है, ‘‘वर्किंग महिलाओं को फैशन से ज्यादा कंफर्ट लैवल देखना चाहिए. यदि आप अपनी ड्रैस में कंफर्ट हैं, तो आप को खुद अच्छा महसूस होने लगता है और आप ज्यादा से ज्यादा समय अपने काम को दे पाती हैं. औफिस के लिए हमेशा फौर्मल लुक ही रखना चाहिए. आप चाहें तो डार्क ब्लू जींस के साथ व्हाइट शर्ट पहन सकती हैं. ब्राउन ट्राउजर के साथ भी व्हाइट शर्ट मैच हो सकती है. फिटेड पैंट के साथ टीशर्ट पहन सकती हैं. स्ट्रेट स्कर्ट के साथ सेमी फौर्मल टौप कैरी कर सकती हैं.’’

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5. कंफर्ट के साथ स्टाइल भी जरूरी

 

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कामकाजी महिलाओं को कंफर्ट के साथसाथ स्टाइल का भी ध्यान रखना चाहिए. हमेशा ऐसी ड्रैस पहनें, जिस में न तो बहुत ऐक्सपोज हो और न ही अत्यधिक ट्रैडिशनल लुक. ड्रैस प्रौपर आयरन होनी चाहिए. उस पर सिलवटें न हों. ऐसा नहीं लगना चाहिए कि आप ने उसे जबरदस्ती पहना हो. सही परिधान आप के व्यक्तित्व को दर्शाता है. अगर आप को ज्वैलरी पहनना पसंद है तो कान की सिंपल बालियां पहन सकती हैं या फिर गले में सिंपल सा लौकेट डाल सकती हैं.

Edited by Rosy

शुभारंभ: क्या रानी के प्रोत्साहन से राजा अपने हक की माँग कर पाएगा?

कलर्स के शो, ‘शुभारंभ’ में एक तरफ रानी के सामने धीरे-धीरे दुकान और घर की कई बातों का खुलासा हो रहा है, तो दूसरी तरफ राजा अपनी जिम्मेदारियों से अनजान है. वहीं राजा की माँ, आशा, राजा की ताई जी, कीर्तिदा के कहने पर रानी के खिलाफ चालें चल रही है. आइए आपको बताते हैं राजा और रानी की जिंदगी में आने वाला है कौनसा नया मोड़…

रानी होती है हैरान

अब तक आपने देखा कि रानी दुकान पर जाकर देखती है कि मुंबई से डील करने आए डीलर्स के लिए राजा बिजनेस चेक बुक ढूंढता है. रानी ये देखकर हैरान हो जाती है कि राजा को बिजनेस की थोड़ी सी भी जानकारी नहीं है और दूसरी तरफ इस कारण से डीलर्स डील को रद्द करने की बात कहकर चले जाते हैं.

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रेशमिया निवास में होता है हंगामा

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डील रद्द होने के बाद रेशमिया निवास में राजा के ताऊ, गुणवंत और उसका बेटा , हितांक डीलर्स के आने के समय दुकान से गायब होने के लिए गुणवंत के बेटे, मेहुल को फटकार लगाते हैं. राजा अपने आपको इस डील के रद्द होने का दोषी मानता है, लेकिन गुणवंत उससे कुछ नहीं कहता. इसी बीच, रानी को पता चलता है कि राजा को बिजनेस के मामले में कुछ भी नहीं पता है, जिसके चलते रानी, राजा से दुकान की जिम्मेदारी उठाने की बात कहती है.

राजा की उड़ गई नींद

रानी की बातें राजा के मन में घर कर जाती हैं. वह रात भर यही सोचता है कि वो इस बात का हल कैसे निकाले. आज के एपिसोड में आप देखेंगे कि राजा, रानी की दुकान से जुड़ी जिम्मेदारियों को संभालने की बात को सोचते हुए एक फैसला लेगा, जिससे पूरा परिवार दंग रह जाएगा. इसी के साथ आशा का भी रानी की तरफ मन बदलेगा.

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अब देखना ये है कि क्या राजा की माँग, गुणवंत और बाकी घरवालों को रास आएगी? क्या आशा का रानी के प्रति सच में मन बदल जाएगा? जानने के लिए देखते रहिए शुभारंभ, सोमवार से शुक्रवार रात 9 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

एक्सिडेंट के बाद इतनी बदल गई ‘आशिकी’ गर्ल की जिंदगी, अब दिखतीं हैं ऐसी

‘मैं दुनिया भूला दूंगा तेरी चाहत में’ (main duniya bhula dunga) इस गाने को सुनते ही फिल्म आशिकी (aashiqui) की भोलीभाली एक्ट्रेस अनु अग्रवाल की याद ताज़ा होती है. जिन्होंने फिल्म रिलीज होने के बाद रातोंरात प्रसिद्धी पायी और अपनी एक अलग पहचान बनाई. सफलता की सीढ़ी पर चढ़ चुकी अभिनेत्री अनु का साल 1999 बहुत ही ख़राब रहा वह एक सड़क दुर्घटना की शिकार हुई. 29 दिनों तक कोमा में रहने के बाद जब अनु अग्रवाल (anu aggarwal)  होश में आईं, तो उनकी यादाश्त जा चुकी थी. बौडी का निचला हिस्सा पैरालाईजड भी हो चुका था. उस समय किसी ने उसकी खबर तक नहीं ली, पर उन्होंने हार नहीं मानी और 3 साल तक इलाज करवाया. अपने इस दर्दनाक जर्नी की बायोपिक अंग्रेजी और मराठी में लिखी. अनु एक बार फिर एक्टिव हो चुकी हैं और कई इवेंट्स पर जाकर सामाजिक काम करती हैं. पेश है उनसे बातचीत के कुछ अंश.

सवाल-मौडलिंग में कैसे जाना हुआ?

मेरा जीवन एक मिस्ट्री है. इसमें बहुत सारे उतार-चढ़ाव आये है और ये एक्सट्रीम लेवल पर हुआ है. पढाई के दौरान मैं सामाजिक काम एक पाकिस्तानी एन जी ओ के साथ किया करती थी, जिसमें महिलाओं को सशक्तिकरण के बारें में बताई जाती थी. मुस्लिम महिलाएं तब घर से बाहर नहीं निकलती थी. उन्हें मैंने एन जी ओ के साथ जाकर पुरानी फिल्म ‘देवदास’ दिखाई, जिसमें देवदास पारो को एक पत्थर से मारकर उसके चेहरे पर खून निकाल देता है, इस दृश्य का उनसे अधिक मुझपर बहुत गहरा असर पड़ा. मैं तब हिंदी फिल्में नहीं देखती थी, क्योंकि फिल्मों में महिलाओं के पोशाक बहुत ही अभद्र तरीके से पहनाये जाते थे. उनके शरीर को सेक्स सिंबल बनाया जाता था. लड़की की कोई दिमाग नहीं दिखाते थे. फिल्मों में भी मुझे जाने की कोई इच्छा नहीं थी. महेश भट्ट ने मुझे कही कि ये फिल्म मुझे ही बनानी है, क्योंकि ये मेरी कहानी है. फिर भी मैं करने के लिए राजी नहीं थी.मैंने पहले नाटकों में काम स्कूल और कॉलेज में किया है, पर फिल्मों में काम करने की इच्छा नहीं थी.


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मॉडलिंग से कोई नाता कभी नहीं था.मुझे याद आता है जब मैं दिल्ली से मुंबई घूमने आई और किसी ने मुझे चर्चगेट में देखा और मुझे ऑफर मॉडलिंग की दी. मुझे तब ख़ुशी हुई कि मैं इसके द्वारा आत्मनिर्भर बन सकती हूँ जिसकी इच्छा मुझे सालों से थी. मैंने किया और पेरिस में भी मुझे प्रसिद्धी मिली. साल 1986-87 में मुंबई आकर काम करना भी आसान नहीं था. किराये के कमरे के लिए जाने पर लोग मुंह पर दरवाजा बंद कर देते थे. तब लाइफ बहुत कठिन थी. काम मिलना भी बहुत मुश्किल था. उसी दौरान फेस स्वेप्स इंडिया टॉनिक पेरिस के लिए भारत के सारे बड़े शहरों में 3 महीने ऑडिशन हुए और उनमें से मैं चुनी गयी. मैं पेरिस गयी और मुझे लोगों का प्यार मिलता गया. मेरे साथ काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता मेरे इस हुनर को देख आश्चर्य में पड़ गए, क्योंकि इस प्रोफेशन को लोग अच्छा नहीं समझते थे. मैंने इसके बाद कई बार रैम्प वाक किया. इससे पैसे मिले और मेरे घर का किराया मैंने चुकाया.

सवाल-आपकी जर्नी आगे कैसे बढ़ी?

मेरी लाइफ में कब क्या होगा मुझे कभी पता नहीं चला. मैं फिल्म नहीं करना चाह रही थी, लेकिन सामाजिक काम करना पसंद करती थी. सुपर मॉडल बनने के बाद मैंने जनसंख्या कंट्रोल के लिए ‘कामसूत्र कंडोम’ को एंडोर्स किया था. मेरा प्रभाव लोगों पर कैसे पड़ेगा, इसके लिए मैं हमेशा सोचती रहती थी. इस बीच महेश भट्ट बीच-बीच में मुझे फ़ोन करते थे, मैंने एक दिन मिलकर उन्हें मना करने की बात सोची. वहां पहुँचने पर उन्होंने कहानी सुनानी शुरू की. आधी कहानी सुनने के बाद मुझे उसमें कोई रूचि पूर्ण तथ्य नहीं दिखा. मैं ये सोचकर कहानी सुनने की इच्छा ज़ाहिर की थी कि अगर कुछ नया कांसेप्ट हो तो मैं कर सकती हूँ, पर ऐसा नहीं लगा. शाम के 5 बज गए और कमरे की लाइट के जलते ही मुझे उसे करने की इच्छा पैदा हो गयी. मैं मना नहीं कर पायी. लड़की का नाम फिल्म में अनु था. चरित्र मुझसे काफी मेल खाता हुआ था. ‘प्रेम ही जीवन है’ दर्शकों ने इस फिल्म को देखकर अनुभव किया. मैंने इस फिल्म में एक टेक में हर दृश्य को किया है, क्योंकि मुझे थिएटर का अनुभव था.

सवाल-परिवार का सहयोग कितना रहा?

मुझे कभी ये महसूस नहीं हुआ कि मैं लड़की हूं. पिता ने मेरे भाई से मुझे कभी कम नहीं समझा. मुझे हर बात की आज़ादी थी. समाज से पहले परिवार आता है, जहां माता-पिता लड़के और लड़की में अंतर महसूस करवाते है.

सवाल-ऐसा सुना जाता है कि महेश भट्ट का अपनी अभिनेत्रियों के साथ काफी गहरा रिश्ता रहता है, आपके साथ उनके सम्बन्ध कैसे थे?

मेरे साथ कोई समस्या नहीं थी. मुझे कुछ कहना किसी के वश में नहीं था, क्योंकि मैं एक सोशल वर्कर थी और किसी का कुछ भी करने के लिए दूसरे की रजामंदी होने की जरुरत होती है. कोई भी पुरुष किसी महिला को कभी छू नहीं सकता. अगर उन्हें कुछ स्कोप मिलता है, तभी वे आगे बढ़ते है. निर्देशक मणिरत्नम, राकेश रोशन, सावन कुमार टांक, मणि कौल आदि सभी के साथ मैंने काम किया, लेकिन किसी ने मुझे कुछ भी नहीं कहा. जरुरत पड़ने पर मैं फिल्म छोड़ भी सकती थी. असल में लड़कियों को क्लियर होना चाहिए कि उन्हें करना क्या है. नहीं तो अभिनेत्री और वेश्या में अंतर ही क्या रह जायेगा. मैं किसी को जज नहीं करती, पर मेरी राय यही है.

सवाल-राहुल रॉय के साथ कैसे सम्बन्ध हैं?

अभी आशिकी के 30 साल हुए है और हम लन्दन में मिले थे. राहुल बहुत शांत स्वभाव का रहा. वह मुझे बहुत सम्मान देता है.

सवाल-‘आशिकी’ के बाद जिंदगी कैसे बदल गयी?

‘आशिकी’ की रिलीज के बाद हजारों लोग मेरे घर के पास जमा हो गए. मुझे खिड़की दरवाजे बंद करने पड़े. मेरे माता-पिता बहुत खुश थे. मैं अब कही ऑटों में आना जाना नहीं कर पाती थी. हर जगह आशिकी के गाने लगे होते थे. एक बार मैं एक शॉप में गयी और वहां किसी ने मुझे देख लिया और मुझे पीछे की दरवाजे से बाहर निकलना पड़ा, क्योंकि सामने लोग मुझे देखने के लिए खड़े थे. मुझे पैसे खूब मिले, मैं कई ब्रांड की ब्रांड अम्बेसेडर बन गयी. मैंने दो साल में वर्ली में अपना घर खरीद लिया. मैं सुपर मॉडल से स्टार बन गयी. फिर मैने योगा में ज्वाइन किया और फिल्में छोड़ दी. फिर वापस मुंबई आई तो दुर्घटना हो गयी. मेरी यादाश्त चली गयी. मुझे अपना नाम तक याद नहीं था. बच्चों की तरह हो गयी थी, उस समय मेरी देखभाल मेरी माता-पिता और भाई ने की और मुझे अब दूसरी जिंदगी मिली है.

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सवाल-ऐसी जिंदगी से बाहर कैसे निकलीं?

कोमा के बाद जब होश आया तो मैं चलने में असमर्थ थी. मुझे उठाकर गाड़ी में सबने रखा. मुझे कुछ पता नहीं था, लेकिन मन शांत था. डॉक्टर से लेकर किसी को विश्वास नहीं था कि मैं ठीक हो जाउंगी. उन्होंने मेरी जिंदगी केवल 3 साल की बताई थी, पर मैं उससे निकलकर ठीक हो गयी. इसमें परिवार वालों ने बहुत सहयोग दिया. सबने इसे मिरेकल समझा, अब मैं बिल्कुल नार्मल हूँ. अब मैं ‘अनु अग्रवाल फाउंडेशन’ से जुडकर काम करती हूं. इसमें मानसिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, शिक्षा आदि सभी पर काम किया जाता है.

सवाल-आप आगे क्या कर रही हैं?

मैंने अपनी जीवनी लिखी है और ये बताने की कोशिश की है कि व्यक्ति सब खोकर भी सब पा सकता है अगर उसमें आत्मशक्ति हो. लोगों में तनाव बहुत बढ़ रहा है, उसे तनावमुक्त करने के तरीकों के बारें में एक किताब लिख रही हूं. इसके अलावा कई कांसेप्ट मिले है, जिस पर बात चल रही है.

Valentine’s Special: मिनटों में पाएं क्लीयर और स्मूद स्किन

लेखक -पारुल

वैलेंटाइन डे, जिसे ले कर हर कोई उत्साहित रहता है खासकर लड़कियां व महिलाएं. इस समय मौसम भी इतना सुहावना होता है कि मिलने का मजा ही कुछ और होता है. हर लड़की इस दिन खुद को फैशनेबल दिखाना चाहती है ताकि छा जाए, जिस के लिए वह एक से बढ़ कर एक स्टाइलिश कपड़े पहनती है, साथ ही स्किन को फ्लालैस लुक देने के लिए एक से बढ़ कर एक उपाय करती हैं.

इतना ही नहीं पैरों व हाथों के अनचाहे बालों को हटाने के लिए घंटों पार्लर में बैठ कर समय व पैसे भी खर्च करने में पीछे नहीं रहती. लेकिन अब इस के लिए आप को पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं है, बल्कि फेम फेयरनेस नेचुरल हेयर रिमूवल क्रीम, आप को घर बैठे मिनटों में अनचाहे बालों से छुटकारा दिला कर आप को सौफ्ट व क्लीयर स्किन देगी.

1. घर पर पार्लर जैसा निखार

महिलाएं खुद की स्किन के साथ किसी भी तरह का सम झौता करना पसंद नहीं करतीं. वे हरदम चमकतीदमकती स्किन पाना चाहती हैं, फिर चाहे कोई भी मौसम क्यों न हो. ऐसे में उन्हें हेयर रिमूवल क्रीम से घर पर पार्लर जैसा निखार मिल जाएगा और लंबे समय तक अनचाहे बालों की समस्या से छुटकारा भी मिल जाएगा.

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2. क्यों है खास

फेम फेयरनेस नेचुरल हेयर रिमूवल क्रीम बाकी क्रीमों से काफी अलग है. यह त्वचा से अनचाहे बालों को हटाती है वह भी सिर्फ 3-6 मिनटों (क्लीनिकल स्टडी के अनुसार) में. यह डर्मैटोलौजिकली और क्लीनिकली टेस्टेड है.

3. इस्तेमाल में आसान

जब भी हम पार्लर में जा कर वैक्सिंग करवाते हैं या फिर रेजर से हेयर रिमूव करते हैं तो कभी ज्यादा गरम वैक्स लगाने के कारण स्किन जल जाती है या फिर सैंसिटिव स्किन होने के कारण स्किन कट व उस पर रैशेज पड़ जाते हैं.

4. खुद के मुताबिक लगाने की छूट

आप हेयर रिमूवल क्रीम को अपनी स्किन पर मनमुताबिक लगा सकती हैं, क्योंकि अगर लगाने पर आप को स्किन पर जरा भी जलन महसूस होगी तो आप के पास तुरंत हटाने का औप्शन होता है. लेकिन पार्लर वाले कई बार अपने क्लाइंट्स की बातों को इग्नोर कर देते हैं और बाद में स्किन पर रैशेज पड़ने पर सैंसिटिव स्किन होने की बात कह कर छुटकारा पा लेते हैं.

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किन इन्ग्रीडिऐंट्स से मिल कर बना यह लीकोराइस से एनरिच्ड है जो अपने फेयरनेस गुणों के लिए जाना जाता है. इस में ऐवोकाडो ऑयल भी है जो विटामिन ए, डी और ई का अच्छा स्रोत है, जोकि स्किन को मौइस्चराइज करने के साथसाथ उसे पोषण भी देने के लिए जाना जाता है. खास बात यह है कि यह हर स्किन टाइप को ध्यान में रख कर बनाया गया है.

5. अप्लाई करने में ईजी

क्रीम को अप्लाई करने के लिए आप स्पैचुला की मदद लें, जो आप को क्रीम के साथ ही मिलेगा. फिर क्रीम को बालों की सिधाई की ओर से अप्लाई करें. फिर क्रीम को स्किन पर 3-6 मिनट के लिए लगा रहने दें और फिर हलके हाथों से स्पैचुला की मदद से बालों की ग्रोथ की उलटी दिशा में हटाएं. इस के बाद गीले कपड़े से स्किन को क्लीन कर पाएं ग्लोइंग व क्लीयर स्किन.

अधूरी कहानी: भाग-1

कहानी- नज्म सुभाष

राष्ट्रीयस्तर पर आयोजित कहानी प्रतियोगिता में इस बार निर्णायक मंडल ने अरुण कुमार की कहानी को चुना था. प्रथम पुरस्कार के लिए जो कहानी चुनी गई वह एक ऐसे बच्चे पर आधारित थी, जिस के मांबाप बचपन में ही काल के गाल में समा जाते हैं और वह बच्चा तमाम उतारचढ़ाव के बाद आगे चल कर देश का प्रधानमंत्री बनता है. जजों में शामिल माधवी जोकि 3 साल पहले इसी संस्थान से सम्मानित की गई थी, जब उस ने इस कहानी को पढ़ा तो बहुत प्रभावित हुई. मगर जब उस ने लेखक का नाम पढ़ा तो उस के चेहरे के भाव बदलने लगे. अरुण कुमार… कहीं यह वही तो नहीं… मन में अजीब सी उथलपुथल शुरू हो गई.

‘‘सर,’’ उस ने अपने साथ बैठे वरिष्ठ साहित्यकार निर्मल से कहा.

‘‘हां बोलो माधवी.’’

‘‘मैं इस लेखक का फोटो देखना चाहती हूं.’’

‘‘लेकिन तुम्हें तो पता होगा प्रतियोगिता में फोटो भेजने का प्रावधान नहीं है नहीं तो प्रतियोगिता की पारदर्शिता पर लोग प्रश्नचिह्न लगा सकते हैं.’’

‘‘सौरी सर. मैं भूल गई थी,’’ उस ने जल्दी में अपनी बात संभाली.

‘‘लेकिन बात क्या है?’’

‘‘कोई बात नहीं सर… बस ऐसे ही पूछा था.’’

माधवी घर आ चुकी थी, लेकिन उस के मन पर न जाने कैसा बो झ महसूस हो रहा था, जिसे वह उतार फेंकना चाहती थी, मगर उतारे कैसे? उस के घर पहुंचते ही अदिति उस से लिपट कर प्यार जताने लगी. मगर आज उस का मन उचाट था. इतने दिनों से दबी चिनगारी को इस नाम ने आ कर फिर से हवा दे दी… आखिर क्यों?

माधवी तो भूल चुकी थी हर बात… हां हर बात… लेकिन आज फिर इस नाम ने जख्मों को कुरेद डाला. उस का सिर भारी होने लगा… अनचाहा दर्द सीने में टीस मारने लगा. उसे ऐसा लग रहा था जैसे भूतकाल उस के सामने प्रकट हो गया. वह भूतकाल जिसे वह वर्तमान में कभी याद नहीं करना चाहती… लेकिन वह तो सामने आ चुका था दृश्य रूप में उस के मानसपटल पर…

दीवार घड़ी ने रात के 12 बजने का संकेत दे दिया था. मधुमालती अब भी उस शख्स का इंतजार कर रही थी जो सिर्फ उस का था, मगर वह न जाने कहां होगा. इधर कुछ दिनों से उस का रूटीन बन गया था यों ही घड़ी देखते हुए उस का इंतजार करने का और वह निर्माेही उसे कोई फिक्र ही नहीं थी उस की.

माधवी इन्हीं खयालों में गुम बारबार घड़ी देखती, फिर खिड़की खोल कर सड़क… शायद वह दिख जाए. मगर उस की अभिलाषाओं की तरह सड़क भी एकदम सूनी थी. दूरदूर तक कोई नहीं…

करीब 1 बजे दरवाजे पर दस्तक हुई. उस ने  झट से दौड़ कर दरवाजा खोला तो सामने का दृश्य देख कर उस की आंखें फटी की फटी रह गईं. जिस के इंतजार में उस ने इतनी रात जाग कर काट दी थी वह शख्स लड़खड़ाता हुआ अंदर आया.

‘‘आज आप फिर पी कर आए हैं?’’ उस ने रोते हुए पूछा.

‘‘हां पी कर आया हूं… तेरे बाप का क्या जाता है?’’ कहते हुए उस ने एक गाली उछाली.

‘‘क्यों अपनी जिंदगी बरबाद करने पर तुले हो?’’

‘‘जिंदगी बर…बाद…’’ कहते हुए पागलों की तरह हंसा वह.

‘‘मैं… मैं… आबाद ही कब रहा हूं? जब से… जब से तुम ने इस घर में कदम रखा है मेरी जिंदगी नर्क बन गई है.’’

‘‘ऐसा क्या किया है मैं ने?’’ वह हैरान थी.

‘‘तुम बहुत अच्छी तरह जानती हो कि मैं क्या चाहता हूं.’’

‘‘मगर उस के लिए मैं क्या कर सकती हूं. मैं ने क्लीनिक में अपना चैकअप कराया था. मैं मां बनने के लिए पूरी तरह सक्षम हूं. उन्होंने कहा था दोनों का चैकअप…’’

तड़ाक… वह अपनी बात पूरी कर पाती उस से पहले ही एक जोरदार थप्पड़ उस के गालों पर आ पड़ा, ‘‘तू यह कहना चाहती है कि मैं नामर्द हूं? मु झ में बच्चा पैदा करने की क्षमता नहीं?’’

‘‘मैं ने ऐसा कब कहा… मैं… तो…’’

‘‘सफाई देती है. सा… ली…’’ वह जोर से दहाड़ा.

‘‘तू अगर चाहती है कि मैं ठीक से रहूं तो मेरी मुराद पूरी कर दे… 5 साल हो चुके हैं शादी को… अभी तक बच्चे की किलकारी तक नहीं गूंजी घर में… यारदोस्त मजाक उड़ाते हैं. बहुत हो चुका… मैं अब बरदाश्त नहीं कर सकता.’’

‘‘तुम चैकअप भी न कराओगे और मु झ से बच्चा भी चाहिए… क्या यह अकेले मेरे बस का है?’’

‘‘मु झे कुछ नहीं सुनना… जो कहा है उसे गांठ बांध लो,’’ वह दहाड़ा.

‘‘सुनो, क्यों न हम एक बच्चा अनाथाश्रम से गोद ले लें?’’ वह सिसकते हुए बोली.

‘‘क्या कहा… जरा फिर से बोल… अनाथाश्रम का बच्चा?’’

‘‘तो इस में गलत क्या है?’’

फिर क्या था. वह उस पर लातघूंसे बरसाने लगा. वह चीखतीचिल्लाती रही. इस पर भी उस का गुस्सा शांत न हुआ तो हाथ पकड़ कर घसीटता हुआ घर के बाहर ले गया और फिर पीठ पर एक लात जड़ते हुए बोला, ‘‘आज के बाद इस घर के दरवाजे बंद हो चुके हैं तुम्हारे लिए… जा तु झे जहां जाना है. मेरा तु झ से कोई वास्ता नहीं. बां झ कहीं की…’’

उस के इन शब्दों ने जैसे माधवी के कानों में गरम सीसा उड़ेल दिया था. अभी तक वह जमीन पर पड़ी रो रही थी. फिर अचानक न जाने उस में कहां से शक्ति आ गई. शेरनी की तरह दहाड़ते हुए बोली, ‘‘वाहवाह बहुत खूब… अच्छा लगा सुन कर स्त्रीवादी लेखक… मगर घर की स्त्री की कोई वैल्यू नहीं… अरे, तुम तो वे इंसान हो जो अपने 1 1 आंसू की कीमत वसूलते हो कागज के पन्नों पर लिख कर… तुम्हें तो हर दिन एक नई कहानी की तलाश रहती है… इस कहानी को भी लिख लेना, बहुत प्रसिद्धि मिलेगी. वैसे भी औरत एक कहानी से ज्यादा कब रही इस पुरुषप्रधान देश में… एक कहानी और सही. लेकिन एक बात याद रखना अरुण कुमार, तुम्हें बच्चों का सुख कभी नहीं मिलेगा… चाहे तो एक बार जा कर चैकअप करवा लेना. तुम नामर्द हो… और हां, तुम क्या निकालोगे मु झे घर से, मैं खुद ही जा रही हूं इस दलदल से दूर. इतनी दूर कि जहां तुम्हारे कदमों के निशान तक न पहुंचें.’’

वह मूर्तिवत खड़ा रहा. उस ने उसे रोका नहीं और वह सुनसान सड़क की खामोशी को तोड़ने के लिए एक अनजान मंजिल की तरफ बढ़ती चली गई.

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कब और कितना दौड़ें

मौसम के अनुसार दौड़ने के समय में परिवर्तन किया जा सकता है. गरमियों में सुबह 5 से 7 बजे के बीच का समय अनुकूल हो सकता है, जबकि सर्दियों में सुबह 7 से 8 बजे के दौरान दौड़ सकते हैं. गरमी में डिहाइड्रेशन की आशंका अधिक रहती है. अत:  दौड़ने से पूर्व पानी अवश्य पीएं, क्योंकि दौड़ने में पसीना बहुत निकलता है. सर्दियों में मांसपेशियों को गरम रखना जरूरी है. इस के लिए वार्मअप किया जा सकता है.

यदि आप किसी कारण मौर्निंग में दौड़ना नहीं चाहते, तो यह कार्य ईवनिंग में भी कर सकते हैं. यह ध्यान रहे कि ईवनिंग स्नैक्स और दौड़ने के बीच 3 घंटे का अंतर अवश्य हो. खाते ही दौड़ना ठीक नहीं.

दौड़ने के लिए जगह भी उपयुक्त होनी चाहिए. बेहतर होगा कि लंबाचौड़ा मैदान हो या फिर ऐसी सड़क हो, जिस पर वाहनों की आवाजाही नहीं हो अन्यथा दुर्घटना होने की आशंका बनी रहती है. दौड़ने वाली जगह समतल हो तो अच्छा है. अधिक चढ़ाई या उबड़खाबड़, गड्ढों वाली जगह नहीं दौड़ना चाहिए.

रोजाना कितने समय या कितनी दूरी तक दौड़ा जाए, इस संबंध में कोई निश्चित पैमाना नहीं है. इस का संबंध व्यक्ति की उम्र, लिंग और शारीरिक क्षमता पर निर्भर करता है.

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दौड़ने से पहले

कुछ लोग नंगे पैर दौड़ते हैं जोकि ठीक नहीं है. दौड़ने के लिए विशेष किस्म के जूते मिलते हैं, उन्हें पहन कर ही दौड़ना चाहिए. जूते आप के पैरों की नाप के अनुसार ही हों. दूसरे के जूते पहन कर दौड़ना जोखिमभरा हो सकता है. अच्छे जूते दौड़ते समय पैरों को सपोर्ट देते हैं अन्यथा वे दौड़ने में बाधक भी बन सकते हैं.

दौड़ना भले ही एक अच्छा व्यायाम हो, लेकिन यह सभी के लिए उपयुक्त नहीं है. इसे शुरू करने से पहले डाक्टर से अपना पूर्ण स्वास्थ्य परीक्षण करा लेना चाहिए. यदि वे दौड़ने को कहें तभी दौड़ना चाहिए. यदि आप को कोई बीमारी या स्वास्थ्य संबंधी समस्या है, तो उस के बारे में डाक्टर को अवश्य बताएं जैसे हाई बीपी, डायबिटीज, थायराइड, अस्थमा, टीबी आदि हो तो डाक्टर की सलाह पर ही और पर्याप्त सावधानियों के साथ दौड़ना चाहिए.

यदि आप ने टीएमटी, ईसीजी और इकोकार्डियोग्राफी अभी तक नहीं कराई है, तो पहले ये टैस्ट करा लें. इस से डाक्टर यह तय कर सकेंगे कि आप को कोई हृदय संबंधी समस्या तो नहीं है. यदि कोई हृदय रोगी अधिक दौड़ने का प्रयास करता है, तो वह उस के लिए जानलेवा भी हो सकता है. उसे हार्टअटैक आ सकता है या हार्ट फेल्यर हो सकता है.

यदि आप धूम्रपान करते हैं, तो दौड़ना आप के लिए ठीक नहीं है. बेहतर होगा कि दौड़ने से पूर्व डाक्टर से परामर्श ले लें.

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यदि हाल ही में कोई औपरेशन हुआ हो तो भी आप को नहीं दौड़ना चाहिए. शरीर में खून की कमी होने पर कमजोरी बनी रहती है. इसलिए जब तक हीमोग्लोबिन सामान्य स्तर पर नहीं आ जाता न दौड़ें.

ई मेल और व्हाट्सअप के युग में क्यों तड़पाती है चिट्ठियों की याद 

बौलीवुड में पचास के दशक की सबसे खूबसूरत अभिनेत्रियों में से एक नर्गिस और राजकपूर की लव स्टोरी के किस्से हर किसी की जुबान में रहा करते थे.लेकिन जब नर्गिस को यह बात समझ में आ गयी कि राजकपूर से उन्हें झूंठी दिलासा के अलावा कुछ नहीं मिलेगा और दूसरी तरफ सुनील दत्त उनके लिए सब कुछ कुर्बान कर देने के लिए तैयार थे.तो अंततः नर्गिस भी सुनील दत्त को प्यार करने लगीं.अब क्या था राजकपूर परेशान हो गए.वह चाहते थे नर्गिस और सुनील में किसी भी तरह से दूरियां पैदा हों.इसलिए वह खुद और उनके साथी संगी सुनील दत्त को नर्गिस के खिलाफ एक से एक बातें कहकर भड़काने लगे.यहां तक कि उन्हें एक हद तक इसमें सफलता भी मिलती दिखने लगी.सुनील दत्त काफी परेशान से रहने लगे थे.नर्गिस को यह सब समझते देर न लगी कि आखिर माजरा क्या है ? लेकिन उन्हें यह सूझ नहीं रहा था कि आखिर कैसे वह सुनील को इस परेशानी से बाहर निकालें.अंत में उन्होंने इसके लिए चिट्ठी का सहारा लिया.

नर्गिस ने सुनील दत्त को लिखा, ‘डार्लिगजी आपको मेरे बारे में राजकपूर या किसी और ने जो भी कहा है,उससे गमगीन होने की जरूरत नहीं है.वो आपका ध्यान मुझसे हटाने के लिए कुछ भी कह सकते हैं.यह बात केवल मैं ही जानती हूं कि मैंने अपनी जिंदगी कितनी साफगोई से गुजारी है. मैं चाहती हूं कि आप मुझ पर विश्वास रखें, मैं ऐसा कोई काम नहीं करूंगी, जिससे आपको शर्मिंदा होना पड़े.’ कहते हैं नर्गिस के ख़त की इन पंक्तियों ने जादू कर दिया.इसके बाद सुनील पूरी जिंदगी में नर्गिस को लेकर कभी भी असुरक्षित महसूस किया.

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ख़त से जुड़ा एक ऐसा ही किस्सा दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमरीका के प्रथम नागरिक यानी पूर्व राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन का भी है. शादी की 31वीं वर्षगांठ पर रीगन की पत्नी नैंसी रीगन उनसे दूर थीं.इस पर  4 मार्च,1983 को रीगन ने प्यारी पत्नी को एक पत्र लिखा.उसमें उन्होंने इस दिन को लेकर अपनी भावनाएं कुछ इस प्रकार व्यक्त कीं, ‘सालों से मैं तुम्हें शादी की वर्षगांठ पर अपनी शादी का कार्ड ब्रेकफास्ट की ट्रे पर सजाकर पेश करता रहा हूँ.लेकिन इस बार मैं तुम्हें एक खास तोहफा भेज रहा हूं.वो है 31 साल पहले जुड़े इस रिश्ते की खुशी का शब्दों में उकेरा एहसास.यह एहसास दुनिया में कुछ ही पुरुषों को हासिल होता है.सच मैं तुम्हारे बिना बिलकुल अधूरा हूं .तुम मेरी जिंदगी हो क्योंकि तुम्हारे आने से ही मैं फिर से जी सकूंगा.’

दुनिया में न जाने कितनी विख्यात शख्सियतें हैं जिन्होंने अपने प्रेम का इजहार करने के लिए एक दूसरे को अजर अमर ख़त लिखे हैं. अमृता ने साहिर को,विक्रम साराभाई ने मृणालिनी साराभाई को, जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने ब्रिटिश अभिनेत्री एलेन टैरी को, ऑस्कर वाइल्ड ने  अल्फ्रेड डगलर को और ब्रिटिश महारानी एलिजाबेथ ने रॉबर्ट ब्राउनिंग को जो पत्र लिखे हैं,वे महज व्यक्तिगत पत्र नहीं बल्कि साहित्य और संवेदना का एक समूचा कालखंड हैं.दुनिया में हजारों मशहूर लोग खासकर फाइन आर्ट्स के क्षेत्र के मशहूर लोगों के लरजते हुए प्रेम पत्र आज भी खूब चाव से पढ़े जाते हैं.बॉलीवुड की तमाम फिल्मों में प्रेम पत्रों पर खूबसूरत गीत लिखे गए हैं.

भावनाओं को प्रगाढ़ करने वाले पत्रों की चाहत आज भी हम लोगों के मन में बसती है.मगर चूँकि यह कम्युनिकेशन की अपार सुविधाओं वाला युग है.इसलिए लोग आज चाहकर भी एक दूसरे की कुशलक्षेम पूछने के लिए या अपना इश्क जाहिर करने के लिए पत्र नहीं लिख पाते.चाहत तो खूब रखते हैं,खासकर हर प्रेमी जोड़ा एक दूसरे से प्रेम पत्र पाने की रोमांच से भरी नास्टैल्जिक उम्मीद रखता है.लेकिन इस तेज से तेजतर हो रहे जीवन में ज्यादातर की यह उम्मीद,उम्मीद ही बनी रहती है. शायद इसके पीछे एक कारण यह है कि हम सबको लगने लगा है कि हमारा समय बहुत कीमती है,फिर चाहे हम बेरोजगार ही क्यों न हों.इसलिए अपनी प्रकृति से ही ठहरे भावों का स्पंदन करने वाला खत निजी जीवन की भूमिका में पिछड़ गया है.जबकि आधिकारिक लेनदेन या कारोबार में आज भी खतों की ही निर्णायक भूमिका है.

दिल की गहराई में उतरने वाले चिट्ठियों के शब्द आज फोन की आवाज या वाइस कॉल में बदल गए हैं. लोग फोन में  ही आवश्यक बातें कर संवाद कायम रखने की औपचारिकता पूरी कर लेते हैं. हालांकि इससे लोगों को औपचारिक  संपर्क बनाए रखना सरल और सहज हो गया है. लोगों का पलक झपकते ही किसी परिचित से बात करना आसान हो गया है,लेकिन निजी पत्रों की कमी के चलते भावनाओं की संदूक खाली हो गई है. आज इंटरनेट के जरिये किसी से आसानी से मुखातिब हुआ जा सकता है. ऐसे में खत का चलन खत्म न भी हो तो भी कम तो होना ही था.आज पत्रों की जगह व्हाट्सअप और मैसेजिंग ने ले ली है . लेकिन ये तमाम माध्यम तेज कितने ही क्यों न हों मगर भावनाओं के स्तर पर वह असर नहीं दिखाते जो कभी पत्र दिखाया करते थे.

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वास्तव में सन्देश देने और पाने के तमाम मशीनी जरिये एक किस्म से सूचना पाने या देने का जरियाभर हैं . जबकि किसी भी चिट्ठी या पत्र में एक छोटी सी कथा, छोटी सी घटना या जीवन का एक टुकड़ा समाया रहता था.चिट्ठी लिखने वाला और उसे पढने वाला,एक दूसरे से चाहे कितना ही दूर क्यों न हों लेकिन चिट्ठियों के माध्यम से वे एक-दूसरे की नजरों के सामने होते थे. यही कारण है कि पत्र पढ़ते-पढ़ते कभी आंख भर जाती है, तो पत्र लिखते-लिखते कोई व्यक्ति भावना में बहकर अपने मन पर से पीड़ा या खुशी के बोझ को हटा लेता है. पत्र में संबंधों की प्रागाढ़ता जहां खुशनुमा सुबह होती है, तो गिले-शिकवे भी किसी लरजती हुई शाम से कम का एहसास नहीं देती. चिट्ठियों की यही तरलता है जिसके लिए सूचना-संचार का यह क्रांतियुग तरसता है.

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