हिना खान की जगह ‘कोमोलिका’ बनेंगी आमना शरीफ? खबर सुन फैंस ने मचाया बवाल

स्टार प्लस के सीरियल ‘कसौटी जिंदगी के 2’ के सीरियल में एकता कपूर ‘नई कोमोलिका’ की एंट्री करवाने वाली हैं, लेकिन खबरों की मानें तो इस बार ‘कोमौलिका’ के रोल में हिना खान नही बल्कि आमना शरीफ नजर आने वाली हैं. वहीं खबर है कि फैंस को हिना खान के रिप्लेस होने की बात पसंद न आने पर आमना को ट्रोल करना शुरू कर दिया है. आइए आपको बताते हैं कैसे हुई आमना शरीफ ट्रोल…

हिना खान के फैंस हुए नाखुश

‘कोमोलिका’ के रोल में नजर आने वाली हिना खान के फैंस इस खबर से नाखुश है. दरअसल जबसे हिना ने ‘कसौटी जिंदगी के 2’ को अलविदा कहने के बाद से वह इस शो में हिना की वापसी का इंतजार कर रहे है.

ये भी पढ़ें- ‘नायरा-कार्तिक’ के बीच आना ‘वेदिका’ को पड़ा भारी, फैंस ने ऐसे किया फिर ट्रोल

हिना के फैंस का गुस्सा आया सामने

हिना खान के फैंस सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा निकालते हुए कह रहे हैं कि इस रोल के लिए हिना से बेहतर कोई नहीं हो सकता है. साथ ही ‘कोमोलिका’ के रोल में हिना खान को रिप्लेस करके बड़ी गलती कर दी है.

6 साल बाद रखेंगी एक्टिंग की दुनिया में कदम

 

View this post on Instagram

 

Thankyou soo much for all ur lovely wishes nd for making my day so special… love you guys ??#blessed #grateful ?

A post shared by aamna sharif (@aamnasharifofficial) on

आमना एक्टिंग की दुनिया में पूरे 6 साल बाद अपने कदम रखने वाली है. वह पार्थ समथान और एरिका फर्नांडीस के शो ‘कसौटी जिंदगी के 2’ के जरिए कमबैक करेंगी और ‘कोमोलिका’ के रोल के निभाने के लिए वह काफी एक्साइटेड है.

‘कोमोलिका’ के लिए कईं एक्ट्रेस थीं तैयार

 

View this post on Instagram

 

“Starry eyes sparkin’ up my darkest night.” — ‘Call It What You Want Shot by @narenballarphotography

A post shared by Jasmin Bhasin (@jasminbhasin2806) on

आमना से पहले मेकर्स ने इस रोल का औफर जैसमीन भसीन, गौहर खान और क्रिस्टल डिसूजा को दिया था, लेकिन एकता कपूर की तलाश आमना शरीफ पर आकर खत्म हो चुकी है.

ये भी पढ़ें- ‘नायरा’ ने ‘कायरव’ संग छोड़ा ‘गोयनका हाउस’, ‘कार्तिक’ हुआ बेहाल

आमना शरीफ का एकता कपूर से है खास नाता

aamna

आमना शरीफ को सालों पहले एकता कपूर ने अपने सीरियल ‘कहीं तो होगा’ के जरिए टीवी की दुनिया में लौंच किया था, जिसे फैंस ने काफी पसंद किया था.

बता दें, हिना खान ने महीनों पहले फिल्मी दुनिया में हाथ आजमाने के लिए सीरियल ‘कसौटी जिंदगी के 2’ को अलविदा कह दिया था. वहीं खबर है कि हिना के पास इस समय बड़े-बड़े प्रोजेक्ट है और बहुत जल्द ही वह विक्रम भट्ट की मच-अवेटेड फिल्म हैक्ड में भी एक्टिंग करती हुई दिखाई देंगी.

वजन मेरे लिए एक नंबर की तरह है – अनुषा मिश्रा

बचपन से एक्टिंग की इच्छा रखने वाली अनुषा मिश्रा टीवी एक्ट्रेस प्रातिची मिश्रा की बेटी है. उससे हमेशा से परफौर्म करना पसंद रहा है, जिसमें उसकी मां ने बहुत सहयोग दिया. कौलेज की पढाई पूरी करने के बाद उसने कुछ समय तक डिजिटल मार्केटिंग में कंटेंट हेड के रूप में काम किया, फिर वह सोनी सब चैनल से जुडी और कुछ ही दिनों बाद उसे टीवी शो ‘तेरा क्या होगा आलिया’ मिली. वह इसमें मुख्य भूमिका निभा रही है. इस कामयाबी से वह बहुत खुश है. आइये जाने उनके बारें में उन्ही से.

सवाल- इस शो का मिलना कैसे हुआ? आपकी भूमिका क्या है?

जब में सोनी सब टीवी में डिजिटल मार्केटिंग में काम कर रही थी तो इस शो के लिए मुझे ऑडिशन देने का मौका मिला और मैंने ऑडिशन दिया और चुन ली गयी.

ये भी पढ़ें- ‘नायरा-कार्तिक’ के बीच आना ‘वेदिका’ को पड़ा भारी, फैंस ने ऐसे किया फिर ट्रोल

सवाल- अभिनय की ओर आना कैसे हुआ?

मेरी माँ अभिनय के क्षेत्र से जुडी होने की वजह से बचपन से मुझे कला का माहौल मिला है.मैं माँ के साथ बचपन में कई बार सेट पर जाया करती थी, जिससे मुझे अभिनय के बारें में तकनीकि जानकारी बहुत अधिक थी. काम करना भी आसान हो गया है.

सवाल- आप इसमें एक ओवर वेट लड़की की भूमिका निभा रही है, ऐसी शो पहले भी आ चुकी है, इसमें नया क्या होगा?

मैंने उस शो को देखा नहीं है. ये अलग कहानी है. इसमें मुझे मोटापे को लेकर मानसिक दुर्बलता को दिखाया गया है, जिससे मैं रियल लाइफ में खुद भी रिलेट करती हूं. मुझे हमेशा लगा है कि अधिक वजन की वजह से मेरा कोई काम सफल नहीं होता. हर महिला और पुरुष को भी इस तरह की परिस्थिति से गुजरना पड़ता है, ऐसे में ये कहानी उन्हें नयी दिशा देगी.

सवाल- आपके वजन को लेकर रिश्तेदारों और दोस्तों ने ऐसा कुछ कहा हो, जो आपको खराब लगा?

बहुत बार कहा है, शो शुरू होने से पहले तो लोगों ने बहुत कहा, पर अब शो की वजह से कहना कम हुआ है, क्योंकि चरित्र मेरे मोटापे पर ही है. पहले दोस्त, रिश्तेदार सभी को मेरे मोटापे पर टिप्पणी देने में मजा आता था.

सवाल- अभी तो आप मोटापे को लेकर काम कर रही है,पर क्या भविष्य में इसे घटाने की जरुरत नहीं पड़ेगी? इस दिशा में आपकी सोच क्या है?

हर इंसान अपने वजन को लेकर सतर्क होता है. मैं अपने जीवन में आगे केवल दो दिन के बारें में सोचकर चलती हूं. आज काफी लोग ओवर वेट है. टीवी और फिल्मों में इसकी एक्सेप्टेंस होनी चाहिए. सालों से ये है, पर आज प्लस साइज़ के कपड़े बड़ी-बड़ी कंपनियां बना रही है और मुझे इसकी खुशी है. उम्मीद है मुझे वेट को लेकर भविष्य में कोई समस्या नहीं आएगी. मैं खुद को बदलना नहीं चाहती.

सवाल- यहां तक पहुंचने में परिवार का कितना सहयोग रहा?

मेरी कामयाबी में मेरी मां का बहुत बड़ा योगदान है. अगर वह मुंबई नहीं आती, तो मुझे काम यहां नहीं मिलता. मुझे हर तरह की आजादी मिली है. मेरी पूरी फैमिली मेरी मां है. उन्होंने हर तरह से सहयोग दिया है. वह 25 सालों से अभिनय कर रही है. वह अभिनय की बारीकियों को अच्छी तरह से बताती है. जिससे मुझे बहुत फायदा हुआ है. मैं इकलौती बेटी हूं.

ये भी पढ़ें- बिग बौस 13: सलमान खान ने रानू मंडल को लेकर किया ये बड़ा खुलासा

सवाल- वजन का बढ़ना आम है, लेकिन अगर कोई बिमारी इसके साथ आती है, तो समस्या होती है,वजन को काबू में रखना क्यों जरुरी है? यूथ को क्या मेसेज देना चाहती है?

वजन मेरे लिए एक नंबर की तरह है. अगर आप इसे लेकर खुश है, तो कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिए, लेकिन आपका मन अगर इसे कम करना चाहता है, तो अवश्य करें. लोगों की न सुनकर खुद के बारें में सोचें.

सवाल- आपका पहला दिन कैमरे के सामने कैसा रहा? क्या अनुभव थे?

मैंने पहला शौट 6 घंटे में दिया था, क्योंकि मुझे नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं. मैं बहुत नर्वस थी. संवाद भूल रही थी, लेकिन निर्देशक और कैमरे मैन ने उस दृश्य को फील करने की बात कही और मैंने किया. इसके बाद कोई समस्या नहीं आई.

सवाल- कितनी फैशनेबल और फूडी है?

फैशन सेन्स मुझे बिल्कुल भी नहीं है. सिंपल कपड़ों में मैं कही भी जाती हूं. फूडी मैं अधिक नहीं. वेजिटेरियन हूं, लेकिन पास्ता, पिजा, पनीर और मां के हाथ का बना सबकुछ पसंद है.

सवाल- समय मिले तो क्या करती है?

संगीत सुनना, फिल्में देखना, किताबे पढ़ना, लिखना आदि करती हूं.

ये भी पढ़ें- ‘नायरा’ ने ‘कायरव’ संग छोड़ा ‘गोयनका हाउस’, ‘कार्तिक’ हुआ बेहाल

‘नायरा-कार्तिक’ के बीच आना ‘वेदिका’ को पड़ा भारी, फैंस ने ऐसे किया फिर ट्रोल

स्टार प्लस के सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में ‘नायरा और कार्तिक’ के बीच ‘वेदिका’ का ट्विस्ट जहां शो की टीआरपी को नंबर वन पर बनाए हुए है तो वहीं ‘वेदिका’ के रोल में नजर आने वाली पंखुरी अवस्थी के लिए मुसीबत बन गया है. जहां टीआरपी नबंर बढ़ती जा रही है तो वहीं फैंस का गुस्सा भी ‘वेदिका’ के लिए सातवें आसमान पर पहुंच गया है. ‘नायरा-कार्तिक’ के फैंस ने ‘वेदिका’ को ट्रोल करना शुरू कर दिया है. आइए आपको बताते हैं कैसे किया फैंस ने ‘वेदिका’ को ट्रोल…

फोटो के चलते ट्रोल हुईं पंखुरी

‘वेदिका’ का किरदार अदा करने वाली पंखुरी अवस्थी ने सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के सेट से एक ऐसी फोटो को शेयर कर दिया है कि फैंस का गुस्सा सातवें आसमान तक जा पहुंचा है.

naira

ये भी पढ़ें- ‘नायरा’ ने ‘कायरव’ संग छोड़ा ‘गोयनका हाउस’, ‘कार्तिक’ हुआ बेहाल

‘कार्तिक-नायरा’ के कमरे से की फोटो शेयर

आपने देखा होगा कि शादी के बाद ‘कार्तिक और वेदिका’ पति पत्नी की तरह साथ नहीं रहते है और ना ही आज तक ‘वेदिका’ ने ‘नायरा-कार्तिक’ वाले कमरे में अपने कदम रखे है. पंखुरी अवस्थी ने जिस फोटोज को अपने इंस्टाग्राम पर शेयर किया है, उसे ‘कायरा’ के कमरे से ही क्लिक किया गया है. इस फोटोज को देखने के बाद फैंस पंखुरी को जमकर ट्रोल कर रहे है और सभी कह रहे है कि वह ‘नायरा और कार्तिक’ की जिंदगी से दूर चली जाए.

फैंस ने ऐसे किया ट्रोल

‘कार्तिक-नायरा’ के फैंस ने ‘वेदिका’ के मीम्स और कमेंट्स करके ‘वेदिका’ उर्फ पंखुरी अवस्थी को ट्रेल करना शुरू कर दिया है. फैंस ने गुस्से में कईं तरह के कमेंट्स किए हैं.

जल्द ही होगी ‘वेदिका’ की विदाई

हाल ही में शो के मेकर्स ने खुलासा करते हुए कहा है कि पंखुरी अवस्थी इस सीरियल में कम दिनों के लिए आई हैं. वह फैंस को इस बात की स्योरिटी देते है कि ‘नायरा और कार्तिक’ के बीच कभी भी कोई नहीं आएगा. साथ ही उन्होंने फैंस से ये दरख्वास्त भी की थी कि वह किसी भी कलाकार को गाली ना दें क्योंकि वो कलाकार सिर्फ और सिर्फ अपना काम कर रहे हैं.

ये भी पढ़ें- ‘कार्तिक’ की बेरूखी से दुखी होकर सुसाइड करेगी ‘वेदिका’ तो ‘नायरा’ करेगी ये काम

बता दें, सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के अपकमिंग एपिसोड में ‘नायरा’ अपने बेटे ‘कायर’व के साथ सिंघानिया सदन जाती हुईं नजर आएंगी तो वहीं दादी यानी की ‘सुहाषिनी’ जी ‘वेदिका’ से अपनी शादीशुदा जिंदगी को खुशहाल तरीके से शुरु करने की गुजारिश करेगी. इसी के साथ ‘कार्तिक और नायरा’ के बीच ‘कायरव’ को लेकर कोर्ट में लड़ाई का सीन भी देखने को मिलेगा.

जानें क्या है ‘स्नो प्लाओ पेरैंटिंग’ और क्या है इसके नुकसान

स्नो प्लाओ पेरैंट्स ऐसा ही सोचते हैं. स्नो प्लाओ का अर्थ है रास्ते में बिछी बर्फ को साफ करना ताकि उस पर आसानी से चला जा सके. स्नो प्लाओ पेरैंट्स ऐसे मातापिता होते हैं जो अपनी संतान के रास्ते में जो भी परेशानियां आती हैं, उन्हें स्वयं दूर करने में विश्वास रखते हैं ताकि उन के बच्चे बड़े होते समय किसी भी प्रकार की हार या निराशा से बचें.

ऐसे मातापिता इस हद तक जा सकते हैं कि बच्चे की अपने दोस्तों से लड़ाई हो जाने की स्थिति में टीचर से उस का गु्रप बदलने की बात कहें या फिर उस का होमवर्क खुद कर दें या उसे स्पोर्ट्स टीम में दाखिला दिलाने हेतु टीचर को घूस खिलाने का प्रयास करें. मगर ऐसे में वे यह भूल जाते हैं कि न्यूनतम संघर्ष का सामना करने वाले बच्चे अकसर कम खुश रहते हैं.

निर्देशक नागेश कुकुनूर ने एक इंटरव्यू में कहा था कि हम ओवर पेरैंटेड और ओवर प्रोटैक्टेड बच्चे बना रहे हैं. सच, आज के पेरैंट्स बच्चों को न मिट्टी में खेलने देना चाहते हैं और न ही जिंदगी में निर्णय लेने देना. लंच में खाना खत्म नहीं किया तो इस विषय में टीचर से लंबी बात, होमवर्क पूरा नहीं हुआ तो एक ऐप्लिकेशन लिख देंगे, कालेज में ऐडमिशन नहीं मिल पा रहा तो मनपसंद कालेज में भारी डोनेशन दे देंगे…

पेरैंट्स यह भूल जाते हैं कि यदि बच्चों की जिंदगी में कोई उतारचढ़ाव नहीं आएगा तो वे आगे चल कर जिंदगी की परेशानियां कैसे हल कर सकेंगे? कई बार यह बात इतनी बढ़ जाती है कि कई पेरैंट्स अपने बच्चों की जौब में आ रही दिक्कतों को भी खुद ही सौल्व करना चाहते हैं.

ये भी पढ़ें- ताकि मुसीबत न बने होस्टल लाइफ

कैसे पड़ा स्नो प्लाओ पेरैंटिंग का नाम

जहां हैलिकौप्टर पेरैंटिंग पिछली सदी का टर्म है, वहीं स्नो प्लाओ पेरैंटिंग का इजाद 2014 में डैविड मैक्लो द्वारा किया गया. डैविड हाई स्कूल टीचर हैं और एक भाषण में उन्होंने इस टर्म का प्रयोग पहली बार किया. इस पर उन्होंने एक पुस्तक भी लिखी है, जिस का शीर्षक है- ‘यू आर नौट स्पैशल.’ इस किताब में उन्होंने बच्चों को जीवन में हार का सामना करने देने की महत्ता के बारे में लिखा है. उन के अनुसार स्नो प्लाओ पेरैंटिंग वाले बच्चे दुखी, आश्रित और परेशान रहते हैं.

‘पेरैंटिंग टु ए डिग्री’ की लेखिका और कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्री लौरा हैमिल्टन कहती हैं कि स्नो प्लाओ पेरैंट्स अपने बच्चों पर हर समय नजर रखते हैं. वे क्या कर रहे हैं, कैसे कर रहे हैं, कहीं उन पर कोई आंच तो नहीं आ रही. यह बात तो साफ है कि स्नो प्लाओ पेरैंट्स की नीयत केवल इतनी होती है कि उन के बच्चे हर विषम स्थिति से बच सकें. किंतु वे अपने बच्चों को कब तक बचा सकते हैं. जब बड़े हो कर बच्चे उन की छाया से बाहर निकलेंगे और समाज का सामना करेंगे तब बिना मातापिता की सहायता के निराशाओं को कैसे झेल पाएंगे, मुसीबतों का सामना कैसे करेंगे और परेशानियों का हल कैसे खोजेंगे?

मनोवैज्ञानिक मैडिलन लेवाइन ने एक पुस्तक लिखी ‘टीच योर चिल्ड्रन वैल’, जिस में उन के विचार से परेशानियों का हल खोजना, खतरे उठाना और आत्म नियमन बेहद उपयोगी जीवन कौशल है. मातापिता को बच्चों के मामले में अतिसंरक्षित और खुली छूट के बीच का मार्ग ढूंढ़ना होगा ताकि बच्चे गलती करें, उस से शिक्षा लें और अपनी प्रौब्लम खुद सौल्व कर सकें.

स्नो प्लाओ पेरैंटिंग के नुकसान

हार का सामना करना बच्चों के लिए जीवन की अति आवश्यक सीख है. यह बच्चों को निराशा से निबटने के तरीके सिखाती है. जीवन में उन का सामना अलगअलग स्थितियों और लोगों से होगा. कालेज में कोई उन पर तंज कसेगा, अपने को दोस्त कहने वाला प्रतियोगिता में पछाड़ने की कोशिश करेगा, कड़ी मेहनत करने के बाद भी परीक्षा में मनमुताबिक अंक नहीं आएंगे, तो कोई औफिस में बौस से उन की चुगली करेगा. तब वे इन विषम हालात को कैसे हैंडल कर पाएंगे?

स्नो प्लाओ पेरैंटिंग के अंतर्गत पले बच्चे अपनी समस्याएं सुलझाने की कला में माहिर नहीं हो पाते हैं, क्योंकि अतिसंरक्षण देते समय मातापिता इस ओर ध्यान देना भूल जाते हैं कि जिंदगी में कठिन समय में स्वयं को संभालना बच्चों को तभी आएगा जब वे बचपन से छोटीछोटी परेशानियों को झेलना सीखेंगे.

दिशा का 15 साल का बेटा अकसर अपनी टीचर की शिकायत करता कि वे उस से और अच्छे काम की उम्मीद करती हैं और उस से और मेहनत करवाती हैं. लेकिन डायरी में कोई नोट न होने की वजह से दिशा ने टीचर से बात करना उचित नहीं समझा. आखिर मेहनत कर के उस का बेटा और बेहतर ही होगा. दिशा की नजर में यही सही पेरैंटिंग है. बातबात में अपने किशोर बेटे को सहारा देने से वह खुद कैसे आगे बढ़ सकेगा? जो कुछ कहनासमझना है, उसे खुद ही सीखना होगा.

ये भी पढ़ें- वर्किंग वुमन से कम नहीं हाउस वाइफ

मनोवैज्ञानिक पीटर ग्रे इसी बात पर जोर देते हुए कहते हैं कि आज की पीढ़ी पहले की तुलना में कम लचीली है. गिर कर उठना, अपनी स्थितियों में सुधार लाना उसे कम आता है. यही कारण है कि किशोरों में, युवाओं में तनाव अवसाद और आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं. मगर क्या इस में उन की गलती है? क्लास में दोस्त ने लड़ाई कर ली, पार्क में किसी ने गाली दी या मुक्का मार दिया या फिर होमवर्क  की कौपी ले जाना भूल गए. यदि आज ऐसी स्थितियों से आप उन्हें बचाते रहेंगे तो कल बड़ी परेशानियों को सामने देख वे क्या कर सकेंगे?

लंदन के प्रसिद्ध अखबार ‘द इंडिपैंडैंट’ में प्रकाशित खबर के मुताबिक ऐसा नहीं कि अभिभावक स्नो प्लाओ पेरैंटिंग के नुकसान नहीं समझते, फिर भी वे अपने बच्चों को जीतते हुए देखने की चाह में मजबूर हो अपनी ममता के आगे हार जाते हैं.

स्वरा मनोविज्ञान पढ़ना चाहती है पर उस के पेरैंट्स को विश्वास है कि आने वाला जमाना डिजिटल होगा, इसलिए वे उस पर आईटी पढ़ने का जोर डाल रहे हैं. फैशन डिजाइनिंग, लेखन, कार्टून बनाना या फिर फोटोग्राफी जैसे प्रोफैशन युवाओं को आकर्षित करते हैं, किंतु उन के पेरैंट्स को यही बात खलती है कि ऐसे कैरियर की चौइस के लिए लोग क्या कहेंगे. वे उन्हीं घिसेपिटे रास्तों पर अपने बच्चों को चलाना चाहते हैं. इस के विपरीत पश्चिमी देशों में बच्चे किशोरावस्था में प्रवेश करते ही अखबार बांटना, रेस्तरां या कैफे में काम करना, किसी स्टोर में नौकरी करने लगते हैं. किंतु हमारे यहां इसे तुच्छ समझा जाता है. पेरैंट्स का यही कहना होता है कि हमारे होते हुए तुम्हें ऐसे काम करने की कोई जरूरत नहीं है.

स्नो प्लाओ पेरैंटिंग से निबटने के तरीके

स्नो प्लाओ पेरैंटिंग से बचने के लिए आप को सोचसमझ कर आगे बढ़ना होगा. कुछ बातों पर गौर करना होगा:

बच्चे की स्थिति समझें, उस में कूदें नहीं

बच्चा अपनी परेशानी अपने मातापिता से ही शेयर करता है. उसे सुनें, उस की बात से सहमति दिखाएं, उस का विश्वास जीतें, किंतु हल उसे खुद खोजने का अवसर दें. इस से बच्चे में स्वयं हल निकालने की क्षमता का विकास होगा.

राह दिखाएं, उंगली न थामें

यदि आप का बच्चा हल ढूंढ़ने में खुद को असमर्थ पा रहा है तो ऐसी स्थिति में उसे अलगअलग आइडियाज दें, भिन्न स्थितियों से अवगत कराएं, नईनई राह सुझाएं. इस से बच्चा विभिन्न स्थितियों को सोचते हुए किसी निष्कर्ष पर पहुंच सकेगा, जिस में आत्मविश्वास जागेगा.

ये भी पढ़ें- थोड़ा हम बदलें, थोड़ा आप

स्वयं आश्वस्त रहें तभी बच्चा निश्चयी रहेगा

किसी भी उम्र का बच्चा हो, हर स्थिति में वह अपने मातापिता की ओर देख कर आगे बढ़ता है. जैसी प्रतिक्रिया आप देंगे वैसी ही आप का बच्चा दोहराएगा. इसलिए उस के कदम बढ़ाने पर आप विश्वास दिखाएं, डर नहीं. आप के चेहरे पर विश्वास देख आप का बच्चा भी हिम्मत से आगे बढ़ना सीखेगा.

क्या हम मूकदर्शक सिंड्रोम के शिकार हो गए हैं?

कुछ दिनों पहले ठाणे के खेरा सर्कल पर करीब 70 वर्षीय वृद्ध व्यक्ति चलतेचलते चक्कर खा कर गिर गए थे. वे बेहोश सड़क पर पड़े थे. लोग उन्हें देख कर रुकते, कुछ वहीं  खड़े रहे, कुछ देख कर आगे बढ़ गए. काफी समय बीत गया था. बाइक पर जा रहे 23 वर्षीय नंदन ने यह दृश्य देख कर बाइक रोकी. उसे किनारे खड़ी कर पास से गुजरते औटो को रोका. वृद्ध व्यक्ति को सहारा दे कर उठाया और सीधे अस्पताल ले गया.

अस्पताल व पुलिस की सहायता से वृद्ध व्यक्ति के परिवार को तलाश किया गया. पुलिस स्टेशन में रिपोर्ट दर्ज की जा चुकी थी उन की गुमशुदगी के बारे में, क्योंकि वृद्ध व्यक्ति अल्जाइमर से पीडि़त थे और कुछ बताने में असमर्थ थे. नंदन की कोशिश से वृद्ध व्यक्ति अपने परिवार से मिल पाए, वरना पता नहीं क्या अनर्थ होता.

कुछ ही दिनों पहले मराठी अभिनेता आरोह वेलेनकर घर जाते हुए अपने दोस्त से मिलने को रुके. उन्होंने पूरी घटना बताते हुए कहा, ‘‘जब मैं सड़क के किनारे इंतजार कर रहा था, किसी ने पीछे से लगातार हौर्न बजाया. मैं ने अपनी कार पीछे वाली कार को रास्ता देने के लिए और किनारे कर ली. पीछे वाला ड्राइवर और उस के बाकी दोस्त आए और मुझे गालियां देने लगे. मैं ने उन्हें जाने के लिए कहा तो वे हाथापाई करने लगे. मैं ने फौरन अपनी कार का शीशा बंद कर लिया. वे मेरी कार पर पत्थर मारने लगे. यह घटना एक व्यस्त रोड पर शाम 5 बजे की है. इस घटना से ट्रैफिक जाम भी हो गया.’’

ये भी पढ़ें- आप हम ब्रैंड: ‘लुक गुड, फील ग्रेट’ यानी ‘अच्छे दिखो, अच्छा महसूस करो’

ऐसी घटनाएं अकसर घटती हैं पर कोई भी पीडि़त की मदद करने नहीं आता. लोग इग्नोर करना पसंद करते हैं. वे या तो वहां से चले जाते हैं या मनोरंजन समझ कर खड़े हो कर देखते हैं. मैं ने उन की गाड़ी का नंबर नोट किया और उन के खिलाफ एफआईआर करवाने गया. 500 मीटर दूर चल कर ही मैं ने उन्हें किसी और के साथ यह सब करते देखा. फिर मैं ने उन्हें सजा दिलवाने का फैसला और पक्का कर लिया. पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया. उन्होंने सादे कपड़ों वाले पुलिस वालों को भी गालियां दी थीं.’’

पिछले साल मुंबई में कई टैलीविजन हस्तियों के साथ भी ऐसी घटनाएं घटी थीं. चाहे नववर्ष पर बेंगलुरु में घटी घटनाएं हों या पुणे की व्यस्त रोड पर मराठी अभिनेता आरोह वेलेनकर के साथ शराबी गुंडों द्वारा हुआ दुर्व्यवहार हो, एक बात सामान्य है, सड़क पर उपस्थित मूकदर्शक. कई शहरों में घटने वाली रोजमर्रा के जीवन में ऐसी घटनाएं हमारे सामने एक महत्त्वपूर्ण प्रश्न खड़ा कर देती हैं. क्या हम मूकदर्शक सिंड्रोम से पीडि़त हो रहे हैं?

सामाजिक प्रयोग

ऐसी स्थिति में लोगों की प्रतिक्रिया सामने लाने के लिए कालेज के कुछ स्टूडैंट्स ने हाल ही में एक सामाजिक प्रयोग किया. परिणाम हैरतअंगेज थे. एक प्रतिभागी ने बताया, ‘‘मैं ने रोडरेज का शिकार होने का अभिनय किया. मेरे दोस्तों ने गुंडों की एक्टिंग की. एक्ट के दौरान मैं वहां खड़े लोगों से मदद मांगने गया, जो यह नहीं जानते थे कि यह सामाजिक प्रयोग है. लोगों ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और शांत खड़े रहे.’’

मशहूर हस्तियां हों या आम नागरिक, सब आरोह की तरह कदम नहीं उठाते. कोर्ट केस से बचने के लिए ज्यादातर लोग रोडरेज के इश्यू पर शिकायत दर्ज नहीं करवाते. पुलिस द्वारा पूछताछ से बचने के लिए भी लोग ऐसे मौकों पर चुप रहते हैं.

एक लौ स्टूडैंट कपिल पाटिल कहते हैं, ‘‘लोग ऐसी स्थितियों में फंसना नहीं चाहते, इसलिए कई बार लोग ऐक्सिडैंट के शिकार लोगों की भी मदद नहीं करते. पर मुझे लगता है कि कानून हाथ में लिए बिना मदद करनी चाहिए. यदि पुलिस पीडि़त व्यक्ति की मदद कर रहे व्यक्ति को किसी केस में न खींचे, बल्कि ऐसे लोगों को सपोर्ट करे तो लोग पीडि़त की मदद जरूर करेंगे. दर्शकों से ऐसे असहज मामलों में लड़ाईमारपीट में उलझने की आशा नहीं कर सकते पर कम से कम वे झगड़े शांत करने की कोशिश तो कर ही सकते हैं या कम से कम फौरन पुलिस को ही बुला सकते हैं.’’

यह स्पष्ट है कि हमारे चारों तरफ मूकदर्शक उपस्थित रहते हैं. वे अब हमारे जीवन का हिस्सा हैं. पर हम उन पर अपनी सुरक्षा को ले कर भरोसा नहीं कर सकते. आजकल सब से जरूरी है डिफैंस तकनीक अपनाना, अपनी सुरक्षा के लिए भी और दूसरों की मदद के लिए भी. एक साइंस स्टूडैंट राजश्री कहती हैं, ‘‘मुझे सैल्फ डिफैंस तकनीक पता है, इसलिए यदि कोई भी किसी को परेशान कर रहा होगा तो मैं इसे जरूर प्रयोग करूंगी.’’

ये भी पढ़ें- हानिकारक है ऊंची जाति का मिथ्या अभियान

आर्ट्स स्टूडैंट केतकी बोहरा का भी ऐसा ही कहना है, ‘‘सैल्फ डिफैंस जानना बहुत जरूरी है. एक बार हम अपने दोस्तों के साथ कहीं जा रहे थे. सड़क पर कुछ गुंडे किसी को पीट रहे थे. हम सैल्फ डिफैंस तकनीक जानते थे, हम ने हस्तक्षेप करने का फैसला किया और उन तकनीकों का प्रयोग कर के पीडि़त की मदद की.’’

कोलकाता की 23 वर्षीया अंतरा दास को पुणे में हाल ही में कई बार चाकू से मारा गया. वह बचाओबचाओ चिल्लाती हुई लोगों की तरफ दौड़ी, तभी मोटरसाइकिल पर जा रहे सत्येंद्र सिन्हा उसे ले कर अस्पताल भागे, जहां उसे मृत घोषित कर दिया गया. जब उसे चाकुओं से बारबार मारा जा रहा था, काश, कुछ लोगों ने उस की आगे बढ़ कर मदद की होती तो उसे बचाया जा सकता था और हमलावर को पकड़ा भी जा सकता था.

गवाह बनने में परेशानी नहीं

दिल्ली में भी दिन में ही 21 साल की अध्यापिका को 34 वर्षीय स्टौकर ने 30 बार चाकू मारा था. रिपोर्ट्स के अनुसार, प्रत्यक्षदर्शी पीडि़त की मदद के लिए आगे आने के बजाय पुलिस कंट्रोलरूम को फोन करना ज्यादा उचित समझते हैं. बाकी लोग ऐसी स्थितियों में चोट लगने से डरते हैं. कई लोगों को यह डर रहता है कि अगर केस बना तो उन्हें गवाही के लिए कहा जा सकता है. पर पुलिस कहती है कि गवाह बनने से परेशानी नहीं होती है. वह लोगों से मूकदर्शक बनने के  बजाय सहायता करने के लिए कहती है.

कारण कुछ भी हो, पर मूकदर्शक बनना छोड़ना होगा. आज कोई और मुसीबत में है तो कल आप भी किसी परेशानी में हो सकते हैं. जिस पल आप चुपचाप खड़े तमाशा देख रहे हों, उस पल कोई अपनी जान गंवा रहा होता है, कोई अपनी इज्जत लुटा रहा होता है. सो, एफआईआर, केस, पूछताछ के डर से किसी की मदद करने से पीछे न हटें, इंसान ही इंसान की मदद नहीं करेगा तो समाज, देश कहां जाएगा, कैसे चलेगा?

ये भी पढ़ें- औनलाइन धोखाधड़ी से बचें ऐसे

खुद को पीडि़त व्यक्ति की जगह रख कर देखें. मानवता को याद रखें. किसी की जान, इज्जत बचाने में अगर खुद को थोड़ीबहुत मुश्किल झेलनी भी पड़ जाए तो वह कुछ समय की ही परेशानी होगी.

किसी को भी मुश्किल में देखें, तो मूकदर्शक न बने रहें, बल्कि उस की यथासंभव मदद जरूर करें. याद रखें, मानवता से बड़ा धर्म कोई नहीं.

गरबा स्पेशल: 200 के बजट में खरीदें ये मेकअप रिमूवर वाइप्स

फेस्टिवल के मौके पर हर कोई सजना चाहता है और सुंदर दिखना चाहता है, लेकिन सुंदर दिखने के साथ-साथ स्किन का ख्याल रखना भी जरूरी है. फेस्टिवल में हम मेकअप के अलग-अलग प्रौडक्ट्स का इस्तेमाल करते हैं, जो हमारी स्किन के लिए नुकसान दायक होता है. इसलिए मेकअप को रिमूव करना जरूरी है. इसीलिए आज हम आपको 200 रूपए के बजट के अंदर आने वाले मेकअप वाइप्स के बारे में बताएंगे, जो आपकी स्किन को मेकअप प्रौडक्टस से स्किन को बचाने में काम आएगा. तो आइए जानते हैं 200 रूपए के बजट में आने वाले मेकअप रिमूवर वाइप्स के बारे में…

1. Blue Heaven Makeup Remover Cleansing Wipes

आजकल मार्केट में कईं सारी कम्पनियां आ गई हैं, जो अलग-अलग मेकअप प्रौडक्ट्स बेचती हैं. अगर आप किसी ब्रैंडेड कम्पनी से मेकअप रिमूवर वाइप्स खरीदना चाहते हैं तो Blue Heaven Makeup Remover Cleansing Wipes आपके लिए अच्छा औप्शन रहेगा. ये मार्केट में आप को आसानी से 135 रूपए की कीमत में मिल जाएगा और अगर आप औनलाइन प्रौडक्ट खरीदना चाहते हैं तो नीचे दी हुई लिंक से आप खरीद सकते हैं.

लिंक- Blue Heaven Makeup Remover Cleansing Wipes 

ये भी पढ़ें- 200 के बजट में खरीदें ये 4 मैट लिपस्टिक

2. Kara Make-Up Removal Wipes With Seaweed And Lavender

ये वाइप्स आपकी स्किन को क्लीन करने के सौफ्टनेस भी रखेगा. Kara Make-Up Removal Wipes With Seaweed And Lavender ब्रैंड है, जो स्किन प्रौडक्ट्स के लिए मशहूर है. अगर आप इसे मार्केट से खरीदना चाहते हैं तो 135 रूपए में आसानी से मार्केट से खरीद सकते हैं और अगर आप इसे औनलाइन खरीदना चाहते हैं तो ये आप नीचे दी हुई लिंक से खरीद सकते हैं.

लिंक- Kara Make-Up Removal Wipes With Seaweed And Lavender

3. Colorbar On The Go Makeup Remover Wipes

ये आपकी स्किन के लिए फायदेमंद रहेगा. अगर आप रात में सोते समय इन वाइप्स से स्किन को साफ करेंगी तो सुबह आपकी स्किन शाइन करेगी. आप इसे मार्केट से 160 रूपए में खरीद सकते हैं ये औनलाइन खरीदने के लिए नीचे दी हुई लिंक को क्लिक करें.

लिंक – Colorbar On The Go Makeup Remover Wipes

ये भी पढ़ें- सेंसिटिव स्किन पर pain less वैक्सिंग के लिए करें ये 4 काम

गरबे के लिए ड्रेस खरीदते समय न भूले ये 8 बातें

आजकल हर तरफ एडिशनल ड्रेस का चलन है. जब बात को गरबे की तो क्यों ना इस मौके पर भी कुछ सुंदर और ट्रेडिशनल सा पहना जाए.  इस मौके पर खासकर युवा वर्ग अति उत्साहित दिखता है और अपने परिधानों को बड़े चाव से चुनता हैं.

गरबे बस आने ही वाले हैं, लोग तैयारियों में लग गए हैं. नौ दिन तक चलने वाले इस फेस्टिवल के लिए लोग किसी भी तरह की कोई कमी नहीं छोड़ना चाहते. इसके अलावा गरबे के समय कुछ विशेष तरह के कपड़ों को पहनने का भी अपना क्रेज रहता है. इसी कारण खासकर युवा अपने आउटफिट्स को बड़े चाव से चुनते हैं. गरबे में ट्रेडिशनल ड्रेस का खूब चलन है. आइए जानते हैं.

 ड्रेसेज को लेकर टिप्स

1- गरबे के मौके पर लड़कियां पीले, लाल रंग की ड्रेसेज या लहंगे पहन सकती हैं. इसके अलावा केप या फ्रंट स्लिट कुर्ती भी पहनी जा सकती है. जो आपकी खूबसूरती में चार चांद लगा देगी.

2- यही नहीं एम्ब्राइडरी और जरी बौर्डर वाले हल्के रंग के सूट और दुपट्टे , चमकीले और फूलों के प्रिंट के सूट व स्कर्ट या प्लाजो भी एक उम्दा विकल्प है.

ये भी पढ़ें- गरबे के लिए परफेक्ट हैं दीपिका पादुकोण के ये लुक

3- ट्रेडिशनल चनिया चोली की तो अच्छी खासी पैंठ है ही इन गरबे में. क्योंकि यह ड्रेस पहन कर योग्य आया महिलाएं सहूलियत से  गरबा और डांडिया खेल सकती हैं साथ ही इस ड्रेस को पहनने से वे खूबसूरत तो दिखेंगी ही. इसके अलावा जैकेट की भी गरबे के दौरान धूम रहती है.

4- अब बात करते हैं लड़कों की. इन त्यौहारों के दौरान लड़के कुर्ता पजामा पहनना चाहते हैं .एक तो मौका ही ऐसा होता है सब तरफ पूजा-पाठ और दूसरी तरफ डांडिया और गरबा की धूम. दूसरा यह एक भारतीय परिधान भी है ,जिसकी अपनी अलग पहचान है. इन दिनों लड़कों के ऊपर कुर्ता-पैजामा खूब फबता है और यह काफी आरामदायक भी होता है.

5- अब बात करते हैं आउटफिट्स के कलर की. गरबे में सब तरफ लाल, हरे, पीले और नीले रंग का जोर रहता है. यह रंग सबको पौजिटिव एनर्जी भी देता है. इसीलिए भी यह रंग हमेशा चलन में रहते हैं.

6- गरबे के दौरान कोशिश करनी चाहिए कि कौटन के कपड़ों को ही पहना जाए. इससे आप खूबसूरत दिखेंगे. सिथेंटिक कपड़ों की अपेक्षा कौटन के कपड़े पहनना ज्यादा आरामदायक होता है. इसके अलावा फैब्रिक से तैयार कपड़ों को पहनना अच्छा रहता है.

ये भी पढ़ें- गरबे के लिए ट्राय करें ये ट्रेंडी जंक ज्वैलरी

7- नारंगी और पीले रंग के कपड़ों को पूजा और व्रत के समय काफी शुभ माना गया है और आजकल यह रंग ट्रेंड में भी  है. औरेंज कलर के कपड़े त्यौहारों के लिए सबसे सही पंसद है.

8- कोई भी त्यौहार हो लोग अपने आपको फ्री फील करें तभी त्योहार का आनंद ले सकते हैं. इसके लिए अधिक टाइट कपड़ो को पहनने से आपको दिक्कत होगी. तो थोड़े खुले कपड़ों को चुनाव करें. आप अच्छे भी दिखोगे और कोई परेशानी भी नहीं होगी.

स्लीपिंग पार्टनर

पूर्व कथा

मनु को एक दिन पत्र मिलता है जिसे देख कर वह चौंक जाती है कि उस की भाभी यानी अनुपम भैया की पत्नी नहीं रहीं. वह भैया, जो उसे बचपन में ‘डोर कीपर’ कह कर चिढ़ाया करते थे.

पत्र पढ़ते ही मनु अतीत के गलियारे में भटकती हुई पुराने घर में जा पहुंचती है, जहां उस का बचपन बीता था, लेकिन पति दिवाकर की आवाज सुन कर वह वर्तमान में लौट आती है. वह अनुपम भैया के पत्र के बारे में दिवाकर को बताती है और फिर अतीत में खो जाती है कि उस की मौसी अपनी बेटी की शादी के लिए कुछ दिन सपरिवार रहने आ रही हैं. और सारा इंतजाम उन्हें करने को कहती हैं.

आखिर वह दिन भी आ जाता है जब मौसी आ जाती हैं. घर में आते ही वह पूरे घर का निरीक्षण करना शुरू कर देती हैं और पूरे घर की जिम्मेदारी अपने हाथों में ले लेती हैं. पूरे घर में उन का हुक्म चलता है.

बातबात पर वह अपनी बहू रजनी (अनुपम भैया की पत्नी) को अपमानित करती हैं, जबकि वह दिनरात घर वालों की सेवा में हाजिर रहती है और मौसी का पक्ष लेती है. एक दिन अचानक बड़ी मौसी, रजनी को मनु की मां के साथ खाना खाने पर डांटना शुरू कर देती है तो रजनी खाना छोड़ कर चली जाती है. फिर मनु की मां भी नहीं खाती. मौसी, मां से खाना न खाने का कारण पूछती है, और अब आगे…

गतांक से आगे…

अंतिम भाग

मां की आवाज भर्रा गई थी, ‘दीदी, मेरी रसोई से कोई रो कर थाली छोड़ कर उठ जाए, तो मेरे गले से कौर कैसे उतरेगा?’

‘पागल है तू भी, उस की क्या फिक्र करनी, वह तो यों ही फूहड़ मेरे पल्ले पड़ी है, मैं ही जानती हूं कि कैसे इसे निभा रही हूं.’

शादी के दिन पास आते जा रहे थे. मां ने मुझे सब के कपड़े एक अटैची में रखने को कहा तो मैं बक्सों की कोठरी में कपड़े छांटने के लिए बैठ गई. कोठरी से लगा हुआ बड़ा कमरा था. अनजाने ही मेरे कानों में फुसफुसाहट के स्वर आने लगे.

प्रमिला दीदी का दांत पीसते हुए स्वर सुनाई पड़ा, ‘बड़ी भली बनने की कोशिश कर रही हो न? सब जानती हूं मैं, मौसी तो गुस्से से आग हो रही थीं, क्यों सब के सामने बेचारी बनने का नाटक करती हो, क्या चाहती हो, सब के सामने हमारी बदनामी हो? खुश हो जाओगी न तब? जबान खोली तो खींच लूंगी.’

मुझे लगा कि वहां काफी लोग खडे़ हैं, जो इस बात से अनजान हैं कि मैं वहां हूं, थोड़ा झांक कर देखने की कोशिश की तो अनुपम भैया भी वहीं खडे़ थे. एक के बाद एक आश्चर्य के द्वार मेरे सामने खुल रहे थे कि किसी घर के लोग अपनी बहू का इतना अपमान कर सकते हैं और वहीं खड़ा हुआ उस का पति इस अपमान का साक्षी बना हुआ है. छि:, घृणा से मेरा तनबदन जलने लगा पर मैं वहां से उठ कर बाहर आने का साहस नहीं जुटा सकी और घृणा, क्रोध, आक्रोश की बरसात उस एक अकेली जान पर न जाने कब तक चलती रहती अगर तभी निर्मला दीदी न आ गई होतीं.

‘क्या हो गया है तुम सब को? वहां मेरे सासससुर ने अगर इस झगडे़ की जरा सी भी भनक पा ली तो मेरा ससुराल में जीना मुश्किल हो जाएगा. इन्हें पहले से ही समझाबुझा कर लाना चाहिए था मां, अब तमाशा करने से क्या फायदा?’

सब चुपचाप कमरे से चले गए थे. यह सोच कर मैं अंदर के कमरे से बाहर निकल आई, पर रजनी भाभी वहां अभी भी आंसू बहाती बैठी हैं, यह मुझे पता नहीं था. अचानक मुझे देख कर वह चौंक उठीं. कोई एक जब उन के इतने अपमान का साक्षी बन गया, यह उन की सोच से बाहर की बात थी. ‘आप? आप कहां थीं दीदी.’

पर मेरा सवाल दूसरा था, ‘क्यों सहती हैं आप इतना?’

‘क्या?  सहना कैसा? मैं तो हूं ही इतनी बेककूफ, क्या करूं? मुझ से अपने बच्चे तक नहीं संभलते. अम्मांजी जैसी होशियार तो बहुत कम औरतें होती हैं, पर छोडि़ए, यह सब तो चलता ही रहता है, कह कर वह बाहर निकल गईं.

आज की घटना ने मुझे पूरी तरह झकझोर दिया था. बारबार मन में यह सवाल उठ रहा था, छि:, इतने बडे़ शहर के लोग, और इतनी संकीर्ण सोच?

सब से ज्यादा खीज मुझे अनुपम भैया पर आ रही थी, उन का स्वभाव घर के सब सदस्यों से अलग था. कभी वह रसोई में व्यस्त मां को बाहर बैठा कर गप्पें मारने लगते. मेरी तो हरपल की उन्हें खबर रहती. अचानक ही कहीं से आ कर मेरे सिर पर स्नेह से हाथ रख देते, ‘चाय पिएगी? या खाना नहीं खाया अभी तक, चल साथसाथ खाएंगे.’

मेरा ही मन अनुपम भैया से ज्यादा बात करने को नहीं होता. यही लगता कि जो आदमी दूसरों से अपनी पत्नी को अपमानित होते हुए देखता रह सकता है वह कैसे एक अच्छा इनसान हो सकता है. पर वह सचमुच एक अच्छे इनसान थे, जो व्यस्त रहने के बावजूद समय निकाल कर अपने उपेक्षित पिता से भी कुछ बातें कर लेते, होने वाले प्रबंध के बारे में भी उन्हें जानकारी दे देते थे.

घर का आर्थिक ढांचा पूरी तरह चरमरा रहा था. मां किसी हद तक खुद को ही दोषी मान रही थीं पर वह अपनी कृष्णा बहन से कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं थीं. जिंदगी में संघर्षों को झेलते हुए मौसी इतनी कठोर हो गई थीं कि मां की भावुकता और संवेदनशीलता को वह बेकार की सोच समझती थीं.

शादी के स्थान और बाकी सबकुछ का प्रबंध बाबूजी से उन के बेटों ने समझ लिया था और पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली थी. अब यहां पर बाबूजी एक महत्त्वहीन मेहमान बन कर रह गए थे. मां को तो यहां आ कर भी रसोई से मुक्ति नहीं मिली थी और हम भाईबहन अपने में ही व्यस्त रहने लगे थे.

बहुत हिम्मत कर के एक दिन मैं ने अनुपम भैया को तब पकड़ लिया जब वह अपनी छिपी हुई बिटिया को ढूंढ़ते हुए हमारे कमरे में आ गए थे. मुझे देख कर खुश हो गए और बोले, ‘अब प्रमिला की शादी से छुट्टी पा कर तेरे लिए देखता हूं कोई अच्छा लड़का…’

‘मुझे नहीं करनी शादीवादी,’ गुस्से से भड़क उठी मैं.

चेहरे पर बेहद हैरानी का भाव आ गया, फिर नकली गंभीरता दिखाते हुए बोले, ‘हां, ठीक है…मत करना, वैसे भी तेरी जैसी लड़की के लिए लड़का ढूंढ़ना होगा भी खासा मुश्किल काम.’

‘मुझ से फालतू बात मत कीजिए, मैं आप से कुछ गंभीर बात करना चाहती हूं, मुझे यह बताइए कि आप रजनी भाभी के साथ ऐसा व्यवहार क्यों करते हैं?’ मैं जल्दीजल्दी उन से अपनी बात कह देना चाहती थी.

‘कैसा व्यवहार?’

‘मुझ से मत छिपाइए, क्यों, आप के सामने ही सब आप की पत्नी की इस तरह बेइज्जती करते हैं, क्या उन के लिए आप की कोई जिम्मेदारी नहीं है? मौसी तो खैर बड़ी हैं, उन का सम्मान करना आप का कर्तव्य है, पर आप से छोटे अजय भैया, सुधीर भैया और प्रमिला दीदी भी जब चाहें उन्हें डांटफटकार देती हैं. क्या वह कोई नौकरानी हैं?’ मेरा चेहरा गुस्से से लाल हो रहा था.

वह कुछ देर तक मुझे गौर से देखते रहे, ‘लगता है, बड़ी हो गई है मेरी नन्ही- मुन्नी बहन.’

‘बात को टालिए मत…’ मैं ने बीच में ही बात काट कर कहा.

आगे पढ़िए-तेरी बात का क्या जवाब दूं, यही सोच रहा हूं…

अमिताभ बच्चन को मिला दादा साहेब फाल्के अवौर्डस, जानें पूरी कहानी

सदी के महानायक और बौलीवुड इंडस्ट्री कें ‘शहंशाह’ कहे जाने वाले अमिताभ बच्चन को देश के सबसे प्रतिष्ठित दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया. अमिताभ बच्चन ने अपनी दमदार आवाज और एक्टिंग के दम पर पिछले 4-5 दशकों से सिने प्रेमियों को दीवाना बनाए हुए हैं. अमिताभ को उनके करियर के शुरुआती दिनों में वह दिन भी देखना पड़ा था, जब उनकी आवाज को लोगों ने नकार दिया था. फिल्म जगत में आने से पहले अमिताभ बच्चन ने कई रेडियो चैनल में आवेदन किया था लेकिन वहां उनको भारी आवाज के कारण काम नहीं मिला.

कुछ यूं शुरू हुआ था ‘शहंशाह’ का सफर

11 अक्टूबर 1942 को इलाहाबाद में जन्मे अमिताभ बच्चन ने अपने करियर की शुरुआत कोलकाता की एक कंपनी में बतौर सुपरवाइजर से की थी. 1968 में ये जॉब छोड़ने के बाद अमिताभ मुंबई आ गये थे. अमिताभ बचपन से दिलीप कुमार को काफी पसंद करते थे और उनकी तरह अभिनेता बनना चाहते थे. उनका ये सपना पूरा हुआ और वर्ष 1969 में उन्हें ख्वाजा अहमद अब्बास की फिल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ में पहली बार काम करने का मौका दिया. हालांकि यह फिल्म फ्लौप हो गई और अमिताभ दर्शकों के बीच कुछ खास पहचान नहीं बना पाये.

ये भी पढ़ें- किसिंग सीन को लेकर सलमान खान का बयान, जानें क्या कहा

राजेश खन्ना के साथ किया था काम

वर्ष 1971 में अमिताभ बच्चन को राजेश खन्ना के साथ फिल्म ‘आनंद’ में काम करने का मौका मिला. इस फिल्म से अमिताभ ने दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया. इस फिल्म के लिए उन्हे सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड दिया गया. इसके बाद फिल्म ‘जंजीर’ अमिताभ बच्चन के सिने कैरियर की महत्वपूर्ण फिल्म साबित हुई. फिल्म की सफलता के बाद बतौर अभिनेता अमिताभ बच्चन ने फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए. जंजीर फिल्म के निमार्ता प्रकाश मेहरा थे और अमिताभ बच्चन को इस फिल्म में काम करने का मौका सौभाग्य से ही मिला था. प्रकाश मेहरा ‘जंजीर’ के लिए अभिनेता की तलाश कर रहे थे. पहले तो उन्होंने देवानंद से गुजारिश की और बाद में अभिनेता राजकुमार से काम करने की पेशकश की. लेकिन किसी कारणवश दोनों अभिनेताओं ने काम करने से मना कर दिया. बाद में अभिनेता प्राण ने प्रकाश मेहरा को अमिताभ बच्चन का नाम सुझाया और उनको अमिताभ की फिल्म ‘बांबे टू गोवा’ देखने की सलाह दी. फिल्म को देखकर प्रकाश मेहरा काफी प्रभावित हुए और उन्होंने अमिताभ बच्चन को बतौर अभिनेता चुन लिया.

‘एंग्री यंग मैन’ के नाम से हुए फेमस

‘जंजीर’ की सफलता के बाद अमिताभ बच्चन की गिनती अच्छे अभिनेता के रूप में होने लगी और वह फिल्म उद्योग में ‘एंग्री यंग मैन’ कहे जाने लगे. वर्ष 1975 मे यश चोपड़ा के निदेर्शन मे बनी फिल्म ‘दीवार’ ने अमिताभ बच्चन की पिछली सभी फिल्मों के रिकौर्ड तोड़ दिए और ‘शोले’ की सफलता के बाद तो उनके सामने सारे कलाकार फीके पड़ने लगे. सुपर स्टार के रूप में अमिताभ बच्चन किस उंचाई पर पहुंच चुके थे इसका सही अंदाज लोगों को तब लगा जब 1982 में फिल्म ‘कुली’ की शूटिंग के दौरान वह गंभीर रूप से घायल हो गए. उनकी हालत इतनी खराब हो गई थी कि बात उनकी मौत की कगार पर पहुंच गई थी. इसके बाद देश के हर मंदिर, मस्जिद और गुरुद्वारे में लोगों ने उनके ठीक होने की दुआएं मांगी. लोगों की दुआएं रंग लाईं और अमिताभ जल्द ही ठीक हो गए.

पौलिटिक्स में किया था प्रवेश

वर्ष 1984 में अमिताभ बच्चन ने राजनीति में प्रवेश किया. उन्होंने इलाहाबाद से सांसद का चुनाव लड़ा और जीत गए. हालांकि अमिताभ बच्चन को ज्यादा दिनों तक राजनीति रास नहीं आई और सांसद के रूप मे तीन वर्ष तक काम करने के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इसके बाद फिर से अमिताभ बच्चन फिल्मी दुनिया में सक्रिय हो गये. 90 के आखिरी दशक में उनकी कुछ फिल्में असफल होने लगीं जिसके बाद उन्होंने 1997 तक अपने आप को अभिनय से अलग रखा. 1997 में अमिताभ बच्चन ने फिल्म निमार्ण के क्षेत्र में कदम रखा. उन्होंने एबीसीएल बैनर का निमार्ण किया और साथ ही अपने बैनर की निर्मित पहली फिल्म ‘मृत्युदाता’ के जरिए अमिताभ ने एक बार फिर से अभिनय करना शुरू किया. इसके बाद वर्ष 2000 में अमिताभ बच्चन को टीवी प्रोग्राम ‘कौन बनेगा करोड़पति’ में काम करने का मौका मिला. कौन बनेगा करोड़पति की कामयाबी के बाद अमिताभ बच्चन एक बार फिर से दर्शकों के चहेते कलाकार बन गए.

ये भी पढ़ें- नेहा कक्कड़ से ब्रेकअप के बाद अब हिमांश कोहली ने तोड़ी चुप्पी, दिया ये बयान

7 बार फिल्म फेयर अवार्ड से जा चुका है नवाजा

अमिताभ बच्चन को 7 बार फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया है. अमिताभ बच्चन ने कई फिल्मों में गाने भी गाये हैं, उन्होंने सबसे पहले वर्ष 1979 में आई फिल्म मिस्टर नटवर लाल में ‘मेरे पास आओ-मेरे दोस्तो’ गाने को गाया था. बॉलीवुड जगत में अमिताभ बच्चन के आने के साथ उनके साथ काम करने वाले अभिनेताओं की चमक या तो धुंधली पड़ गई या वे गुमनामी के अंधरे में खो गये थे. लेकिन अमिताभ बच्चन अपने बेमिसाल अभिनय के दम पर आज भी फिल्म इंडस्ट्री में उसी तरह सक्रिय हैं जब उन्होंने अपने सिने करियर का सफर शुरू किया था.

2016 में आईं ये फिल्में

वर्ष 2016 में अमिताभ बच्चन की वजीर, तीन और पिंक जैसी फिल्में आईं. फिल्म पिंक के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया. 2017 में अमिताभ की ‘सरकार तीन’ और 2018 में 102 नॉट आउट और ठग्स ऑफ हिंदुस्तान सिनेमाघरों में आई. अमिताभ की 2019 में फिल्म ‘बदला’ रिलीज हुई जो सुपरहिट साबित हुई है. इन दिनों अमिताभ बच्चन न सिर्फ बडे परदे बल्कि छोटे पर्दे पर भी जौहर दिखा रहे हैं. वह ‘कौन बनेगा करोड़पति’ को होस्ट कर रहे हैं.

‘मैं यशराज बैनर की रिश्तेदार नहीं लगती’- वाणी कपूर

फिल्म ‘शुद्ध देसी रोमांस’ से एक्टिंग करियक में कदम रखने वाली वाणी कपूर दिल्ली की है. उसे बचपन से ही एक्टिंग की इच्छा थी. उन्होंने मौडलिंग भी की है. हालांकि पहली फिल्म की सफलता के बाद वाणी को कोई खास कामयाबी नहीं मिली,पर वह इसे अपना लक मानती है. वह हर फिल्म को करते वक्त उसकी कहानी को अधिक महत्व देती है, भूमिका अधिक न होने पर भी अगर वह प्रभावशाली हो, तो उसे करने में कोई ऐतराज नहीं होती. उनकी फिल्म ‘वार’ रिलीज पर है, जिसमें वह ऋतिक रोशन और टाइगर श्रौफ के साथ एक्टिंग कर रही है. दो एक्शन पैक्ड हीरो के साथ काम कर वह बेहद खुश है, पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल- काफी समय बाद आप फिर से आ रही है, देरी की वजह क्या थी और उन दिनों क्या करती रही?

मैंने काफी समय दुबई, एम्स्टर्डम और यूरोप ट्रेवल किया है. कई फिल्में देखी और परिवार के साथ समय बिताया है,क्योंकि कोई अच्छी कहानी मुझे नहीं मिल रही थी. मुझे अच्छा काम मिले, तभी काम करुंगी, ऐसा मेरा फैसला था और मैं उसपर अडिग रही. मेरा हमेशा से सोचना है कि काम भले ही मैं कम करूं, पर जो मिले, उसकी छाप मैं दर्शकों पर डाल पाऊं.

ये भी पढ़ें- किसिंग सीन को लेकर सलमान खान का बयान, जानें क्या कहा

सवाल- दो एक्शन पैक्ड हीरो के साथ काम करने के लिए आपको कितनी तैयारी करनी पड़ी?

मैंने इसे करने के लिए बहुत मेहनत किया है. दो मेगा परफ़ौर्मर के साथ काम करने का मौका मिला है और मैं बहुत खुश हूं. दोनों बहुत अच्छे है, दोनों ने एक्टिंग में बहुत हेल्प किया है. इनकी फिल्में मैंने बहुत देखी भी है.

सवाल-इस फिल्म को चुनने की खास वजह क्या है?

इसमें मेरी भूमिका बहुत प्रभावशाली है. इसमें मैं फिल्म की कहानी के साथ पूरी तरह से जुडी हुई हूं. इस तरह की भूमिका मैंने पहले नहीं की है.

सवाल- आपने कई साल इंडस्ट्री में बिताएं है, अपने आप में कितनी ग्रो हुई है और किस प्रकार की गलतियाँ की है, जिससे आपको सीख मिली हो?

मैंने बहुत सारी चीजें सीखी है. सबसे बड़ी बात ये है कि मैंने सुशांत सिंह राजपूत, रणवीरसिंह, ऋतिक रोशन आदि बड़े कलाकारों के साथ काम किया है. मैंने पाया कि सबके काम करने के तरीके उम्दा है, सब मेहनत करते है और अपनी भूमिका को न्याय देते है. किसी भी समय इन कलाकारों ने किसी बात को ग्रांटेड नहीं लिया है. मुझे हर फिल्म के साथ एक नया किरदार निभाने का मौका मिला है. इसके लिए मुझे शुरू से उस चरित्र में अपने आप को ढालने के लिए मेहनत करनी पड़ी. ये क्षेत्र गजब की है, जहां हर बार कुछ नयी खोजने की कोशिश होती रहती है.

सवाल- यशराज बैनर के साथ जुड़े होने के बावजूद आप अधिक काम नहीं कर रही है, इसकी वजह क्या मानती है?

यशराज बैनर के साथ जुड़ने से मुझे कोई फायदा हो, ये जरुरी नहीं, क्योंकि मैं उनकी कोई रिश्तेदार नहीं लगती. मैं अगर अच्छा काम करुंगी और मेरा ऑडिशन अगर उन्हें पसंद आता है, तो मुझे काम मिलेगा. जब उन्हें लगेगा कि मैं अपनी भूमिका के साथ न्याय नहीं कर रही हूं तो वे मुझे भी निकाल देंगे, ऐसा हर प्रोडक्शन हाउस करता है. आदित्य चोपड़ा किसी के लिए कोई फेवर नहीं करते. स्टार किड होने पर भी उन्हें औडिशन से ही गुजरना पड़ता है. ये भी सही है कि ये प्रोडक्शन कंपनी देश के सभी नए कलाकारों को भी आगे आने में मदद करती है, जिससे नए कलाकारों को एक्टिंग का मौका मिलता है.

सवाल-रिजेक्शन से आपने क्या सीखा?

बचपन से ही मैं बहुत स्ट्रोंग व्यक्तित्व की हूं. मेरे हिसाब से मैंने कोशिश की और वह सही नहीं होने की वजह से फैल्योर का सामना करना पड़ा. इसे मैं सीरियसली नहीं लेती. रिजेक्शन की वजह से ही आगे बढ़ने और सीखने की शक्ति मुझमें बढ़ी है.

ये भी पढ़ें- नेहा कक्कड़ से ब्रेकअप के बाद अब हिमांश कोहली ने तोड़ी चुप्पी, दिया ये बयान

सवाल-इस फिल्म की कठिन पार्ट क्या थी?

हर फिल्म में कठिन पार्ट होता है, क्योंकि हर चरित्र एक अलग अंदाज में निर्देशक सोचता है और मुझे उसमें सही उतरने के लिए मेहनत करनी पड़ती है. इसके लिए मैं रिसर्च करती हूं, ताकि मेरी कोई भी चरित्र एक दूसरे से न मिले. मॉडर्न गर्ल होने पर भी दोनों के चरित्र अलग होने चाहिए, जिससे दर्शक को उसे देखने में मज़ा आयें. चरित्र को रियल, आर्गेनिक, रिलेटेबल आदि बनाने के लिए लगातार मेहनत करनी पड़ती है.

सवाल-आप सोशल मीडिया पर कितनी एक्टिव है?

मैं हमेशा सुनती हूं कि कलाकार को हमेशा लाइमलाइट में रहना चाहिए. जिन्हें ये पसंद है वे कर सकते है. मुझे सोशल मीडिया अधिक पसंद नहीं, इसलिए कम एक्टिव हूं. मैं काम के ज़रिये लोगों के बीच अपनी पहचान बनाना चाहती हूं.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें