मिसकैरेज के बाद डिप्रेशन से ऐसे निबटें

प्रैग्नेंसी किसी महिला के जीवन का एक महत्त्वपूर्ण समय होता है. इस दौरान कई स्वास्थ्य समस्याएं और रिस्क भी होते हैं. प्रैग्नेंसी के दौरान जो सब से बड़े डर की बात होती है, वह है मिसकैरेज. मिसकैरेज होने के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें प्रमुख हैं:

आनुवंशिक कारण

मिसकैरेज के लगभग 50% मामले आनुवंशिक कारणों से होते हैं. गर्भ आनुवंशिक रूप से या क्रोमोसोमली विकृत होते हैं, जिस के कारण वे जीवित नहीं रह पाते हैं.

इम्युनोलौजिकल कारण

कुछ महिलाओं के रक्त में एंटीबौडीज होते हैं, जो उन की ही कोशिकाओं पर आक्रमण करते हैं. इन में से कुछ ऐंटीबौडीज प्लैसेंटा पर आक्रमण करते हैं या ब्लड क्लौट बनने को बढ़ावा देते हैं, जिस से गर्भ का विकास प्रभावित होता है और अंतत: उस की मृत्यु हो जाती है.

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ऐनाटौमिक कारण

कुछ महिलाओं के गर्भाशय में सैप्टम या दीवार होती है तो कई महिलाओं के गर्भाशय में बड़ी मात्रा में फाइब्रौयड्स विकसित हो जाते हैं. इन के कारण भी गर्भ को विकसित होने के लिए पर्याप्त स्थान नहीं मिलता और प्रैग्नेसी के सफल परिणाम प्राप्त नहीं हो पाते.

संक्रमण

कई बार संक्रमण फैलने से भी मिसकैरेज हो जाता है. यह संक्रमण बैक्टीरिया, वाइरस या किसी पैरासाइट के द्वारा फैल सकता है. हालांकि संक्रमण के कारण होने वाले मिसकैरेज के मामले बहुत दुर्लभ होते हैं.

हारमोन असंतुलन

कई हारमोन भी मिसकैरेज में प्रमुख भूमिका निभाते हैं. अगर ये संतुलित मात्रा में हैं, तो ये गर्भाशय में गर्भ के विकसित होने के लिए आदर्श वातावरण उपलब्ध कराते हैं. इसलिए कुछ महिलाएं, जिन में मासिकधर्म से संबंधित समस्याएं होती हैं उन में इस का खतरा अधिक होता है.

पर्यावरणीय कारण

हानिकारक पदार्थ जैसे ड्रग्स, अलकोहल, धूम्रपान या अत्यधिक कैफीन का सेवन अथवा अत्यधिक तनाव लेना गर्भ को नुकसान पहुंचा सकते हैं और मिसकैरेज का कारण बन सकते हैं. भारी वजन उठाने से प्लैसेंटा हिल सकता है और मिसकैरेज का कारण बन सकता है.

बचाव

मिसकैरेज से पूरी तरह बचाव नहीं किया जा सकता, लेकिन ये सावधानियां बरत कर इस की आशंका को कम जरूर किया जा सकता है:

– ऐसे भोजन का सेवन करें जिस में साबूत अनाज अधिक मात्रा में शामिल हो.

– कार्बोहाइड्रेट का सेवन कम करें और प्रोटीन व फाइबर का सेवन बढ़ा दें.

– अपने भोजन में ताजा फल, सब्जियां और सफेद मांस अधिक मात्रा में शामिल करें. लाल मांस और तले भोजन के सेवन से बचें.

– कौफी का सेवन कम मात्रा में करें. अत्यधिक मात्रा में कैफीन के सेवन से मिसकैरेज होसकता है.

– तनावमुक्त रहने का प्रयास करें.

मिसकैरेज और डिप्रेशन

मिसकैरेज के बाद 80% महिलाएं डिप्रैशन फील करती हैं. कई महिलाओं में मिसकैरेज केबाद डिप्रैशन इतना गहरा होता है कि उन के मां बनने के बाद भी दूर नहीं हो पाता. ‘ब्रिटिश जनरल औफ साइकिएट्री’ के अनुसार कई महिलाओं में मां बनने और स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के बाद भी 3 साल तक डिप्रैशन के लक्षण देखे जाते हैं.

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अधिकतर डौक्टर और महिलाएं सोचती हैं कि एक बार जब वो स्वस्थ बच्चे को जन्म दे देंगी उन का डिप्रैशन, भय और तनाव दूर हो जाएगा, लेकिन यह मामला इतना आसान नहीं होता है. लगभग 13% महिलाओं में मिसकैरेज के लक्षण 3 वर्ष तक दिखाई देते हैं. 2 बार मिसकैरेज होने पर 19% महिलाओं में डिप्रैशन के लक्षण 3 वर्ष बाद भी दिखाई देते हैं.

कुछ महिलाओं में डिप्रैशन की समस्या नहीं होती है. इस के बायोलौजिकल कारण या परिवार और जीवनसाथी का सहयोग, प्रेम और साथ हो सकता है. उन महिलाओं में मिसकैरेज के बाद डिप्रैशन की समस्या अधिक होती है, जिन में डिप्रैशन का व्यक्तिगत या पारिवारिक इतिहास रहा हो.

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मौनसून में जरूर साथ रखें ये 4 चीजें

मौनसून आते ही हमें गरमी से तो राहत मिल जाती है, लेकिन कईं प्रौब्लम्स का भी सामना करना पड़ता है. जिसमें सबसे ज्यादा स्किन को नुकसान होता है. इसलिए मौसम बदलते ही स्किन के देखभाल करने का हमारा तरीका भी बदल जाता है. मौनसून में औफिस जाने के समय में जरूरी है कि हम अपनी स्किन केयर से जुड़े सामान को हमेशा अपने पास रखें. आइए आपको बताते हैं उन प्रोडक्ट्स के बारे में जिन्हें मौनसून के दिनों में हर लड़की को अपने बैग में रखना चाहिए.

1. बौडी लोशन है सबसे ज्यादा जरुरी

बारिश के मौसम में अक्सर हमारी स्किन ड्राई हो जाती हैं. ड्राईनेस हमारी स्किन की खूबसूरती को छीन लेती है. ऐसे में आपको अपनी स्किन की ड्राईनेस को दूर करने के लिए अपने बैग में बौडी लोशन को रखना चाहिए. इस मौसम में जब भी स्किन में ड्राईनेस महसूस हो तो बौडी लोशन का इस्तेमाल करें.

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2. मौनसून में क्लीनिंग के लिए क्लींजर रखना है जरूरी

मौनसून के दौरान फेस पर गंदगी, धूल अधिक जमा हो जाती है. जिसके कारण बैक्टीरियल इंफेक्शन होने की संभावना हो जाती है, इसलिए बारिश के दिनों में अपने हैंड बैग में क्लींजर जरूर रखें. क्लींजर स्किन से गंदगी और धूल को गहराई से साफ करता हैं, जिससे आपकी स्किन स्वस्थ बनी रहती हैं.

3. गीले बालों को सुलझाने के लिए कंघी या ब्रश रखें जरुर

मौनसून के दिनों में बाल गीले होने के कारण उलझ जाते हैं. ऐसे में इस मौसम में आपको अपने हैंड बैग में कंघी जरूर रखनी चाहिए. जिससे आप अपने उलझे बालों को कहीं भी अपनी सहुलियत के अनुसार ठीक कर सकती हैं.

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4. गीले कपड़ों के लिए रखें परफ्यूम

मौनसून में भीगना आम बात है भीगना, लेकिन गीले कपड़ों के कारण बदबू हो जाती है, इसलिए अपने पर्स में परफ्यूम जरूर रखें ताकि आपके कपड़ों से गीलेपन या नमी की बदबू न आए.

5 साल की डेटिंग के बाद स्वरा भास्कर ने तोड़ा बौयफ्रेंड से रिश्ता

मशहूर बौलीवुड एक्ट्रेस स्वरा भास्कर ने मशहूर फिल्म लेखक हिमांशु शर्मा के साथ अपने पांच साल पुराने रिश्ते को खत्म कर दिया है. दोनों एक फिल्म के सेट पर मिले थे और वहीं से दोनों ने डेटिंग शुरू की थी.

साल 2014 में शुरू की डेटिंग…
स्वरा भास्कर ने 2014 में रिलीज आनंद एल राय निर्देशित फिल्म ‘‘तनु वेड्स मनु रिटर्न’’ के दौरान इस फिल्म के लेखक हिमांशु शर्मा के साथ डेटिंग शुरू की थी. उसके बाद से हिमांशु शर्मा लिखित हर फिल्म में स्वरा भास्कर को होना लाजमी सा हो गया था. अश्विनी अय्यर तिवारी निर्देशित फिल्म ‘‘निल बटे सन्नाटा’’ में स्वरा भास्कर ने मुख्य किरदार निभाया था, जिसके क्रिएटिव निर्माता हिमांशु शर्मा थे.

पिछले साल पेरिस गए थे दोनों…

स्वरा भास्कर ने कभी भी हिमांशु शर्मा के संग अपने रिश्ते को नहीं माना लेकिन नकारा भी नहीं. पिछले साल फिल्म ‘‘वीरे दी वेडिंग’’ के प्रदर्शन के बाद स्वरा भास्कर और हिमांशु शर्मा एक साथ छुट्टियां मनाने यूरोप गए थे. उस वक्त पेरिस में एफिल टौवर के सामने खड़े होकर स्वरा और हिमांशु ने सेल्फी निकाली थी, जिसे सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए स्वरा भास्कर ने काफी कुछ लिखा था.

स्वरा के घर भी गए थे हिमांशु…

इतना ही नहीं अभी दो माह पहले लखनऊ में स्वरा भास्कर के भाई की शादी में भी हिमांशु शर्मा घर के सदस्य की ही तरह मौजूद थे. मगर एक अंग्रेजी दैनिक की माने तो उसके बाद इन दोनों के बीच पता नहीं ऐसा क्या हुआ कि स्वरा भास्कर ने हिमाशुं शर्मा के संग अपने रिश्ते को खत्म कर दिए. सूत्र बताते हैं कि स्वरा व हिमांश के बीच अब अंतरंग संबंध भले ही नहीं रहे, मगर इनके बीच कड़ुवाहट नहीं है. दोनों अभी भी दोस्त हैं.

तो क्या अमिताभ की नातिन से शादी करना चाहते हैं ये एक्टर?

बौलीवुड में अपने फिल्मी करियर की शुरूआत करने जा रहे जावेद जाफरी के बेटे मीजान जाफरी इन दिनों अपनी फिल्म ‘मलाल’ को लेकर कमर कस रहे हैं. ‘मलाल’ फिल्म जल्द ही रिलीज होने वाली है, जिसमें मीजान संजय लीला भंसाली के भांजी शारमिन सहगल के साथ नजर आएंगे. वहीं फिल्म के अलावा मीजान अमिताभ बच्चन की नातिन नव्या नवेली नंदा के साथ लिंक अप की खबरों को लेकर भी सुर्खियों में चल रहें हैं. हाल ही में

एक शो पर नव्या को लेकर किया खुलासा

 

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@meezaanj in @antar_agni_ujjawaldubey promoting #malaal in Jaipur .. #meezan #styledbyanishajain

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हाल ही में मिजान जाफरी टीवी के एक रियलिटी शो में गए थे, जहां उनसे एक गेम के दौरान पूछा गया कि वो नव्या, सारा और अनन्या में से किसे किल करना चाहेंगे, किसके साथ शादी करना चाहेंगे और किसके साथ केवल हुक-अप करना चाहेंगे ? जवाब में मिजान जाफरी ने तुरंत कहा, वो नव्या के साथ शादी करना चाहेंगे, सारा के साथ हुक-अप करना चाहेंगे और अनन्या को किल करना चाहेंगे.

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फिल्म के प्रमोशन में भी पूछ चुके हैं ये सवाल

कुछ समय पहले मिजान जाफरी अपनी नई फिल्म ‘मलाल’ के ट्रेलर लांच के लिए मीडिया से मिले थे जहां उनसे नव्या नवेली नंदा के बारे में पूछा गया था. जवाब में मिजान ने बताया था कि, ‘हमारे बीच कोई ऐसा रिश्ता नहीं है, जैसा बताया जा रहा है. हम दोनों केवल अच्छे दोस्त हैं. नव्या मेरी बहन के साथ पढ़ती हैं और दोस्ती भी एक रिश्ता होता है. आजकल लोग अगर किसी को साथ देख लेते हैं तो उनके बारे में बातें करने लगते हैं, हालांकि मेरे और नव्या के बीच ऐसा कोई रिश्ता नहीं है.’

बता दें, मिजान जाफरी कुछ समय पहले अमिताभ बच्चन की नातिन नव्या नवेली नंदा के साथ हैंगआउट करते हुए नजर आए थे, जिसके बाद से दोनों का नाम साथ में जोड़ा जा रहा है. वहीं मिजान की फिल्म भी रिलीज होने वाली है जिसको लेकर लोगों में उनकी पर्सनल लाइफ को जोड़ा जा रहा है.

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कंगना की बहन ने किया वरुण को ट्रोल, तो मिला ये करारा जवाब

बौलीवुड एक्ट्रेस कंगना रनौत और एक्टर राजकुमार राव स्टारर फिल्म का ट्रेलर बीती रात यानी बुधवार को रिलीज होने के बाद जहां औडियंस का अच्छा रिस्पांस मिल रहा है तो वहीं दूसरी तरफ सेलेब्स भी फिल्म के ट्रेलर की तारीफें कर रहें हैं. पर वहीं इस ट्रेलर पर एक्टर वरूण धवन के मजेदार ट्वीट से कंगना की बहन रंगोली ने उन्हें ट्रोल कर दिया, जिसपर वरुण ने करारा जवाब दिया है. आइए आपको बताते हैं पूरा मामला…

ट्रेलर पर वरूण धवन का ये था रिस्पौंस

एक्टर वरुण धवन ने फिल्म का ट्रेलर के साथ ट्वीट करते हुए लिखा था, ‘क्या मस्त ट्रेलर है. फिल्म की लीड कास्ट और सपोर्टिंग कास्ट को शानदार राइटिंग का सपोर्ट मिल रहा है. ऐसा लग रहा है कि खूब मजा आने वाला है.’

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कंगना की बहन ने ट्रोल करते हुए दिया ये जवाब

वरुण के इस ट्वीट पर कंगना रनौत की बहन रंगोली ने जवाब देते हुए लिखा कि कंगना का भी नाम लिख देते सर… वो भी किसी की बच्ची है, उसने भी मेहनत की है.’

वरूण ने दिया कंगना की बहन को करारा जवाब

असल में रंगोली वरुण को बता रही थीं कि उन्हें कंगना रनौत का नाम भी अपने ट्वीट में लिखना चाहिए था, जिसे लिखना शायद वो भूल गए हैं. हालांकि वरुण धवन ने रंगोली का जवाब देते हुए लिखा है, ‘सतीश सर से लेकर हुसैन और राज सभी का काम पसंद आया है… खास करके कंगना रनौत का और लीड कास्ट का मतलब वही होता है…मैम.’

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बता दें, फिल्म ‘जजमेंटल है क्या’ में काम करने वाले राजकुमार राव और कंगना रनौत ने करीब 5 साल बाद हाथ मिलाया है, वहीं इससे पहले दोनों एक्टर्स ‘क्वीन’ में साथ दिखाई दिए थे, जिस फिल्म ने बौक्स औफिस में अच्छा धमाल मचाया था. जिसके बाद अब देखना ये होगा की कंगना और राजकुमार अपनी इस फिल्म में एक बार धमाल मचा पाएंगे.

स्मिता पाटिल की बायोपिक में काम करना चाहती हूं– श्रेया बुगडे  

मराठी टीवी धारावाहिक ‘चला हवा येउन द्या’ से फेमस होने वाली मराठी एक्ट्रेस श्रेया बुगडे मुंबई की है. बचपन से ही उसे क्रिएटिव चीजे करने में मजा आता था. केवल 8 साल की उम्र में उसने थिएटर में अभिनय करना शुरू कर दिया था. उसने मराठी के अलावा हिंदी, गुजराती और अंग्रेजी नाटकों में भी काम किया है. एक्टिंग के करियर में आगे बढ़ने में मदद की उसकी मां नूतन बुगडे ने, जिन्होंने हमेशा उसे सहयोग दिया. वह कौमिक रोल के लिए अधिक जानी जाती है. काम के दौरान श्रेया प्रोड्यूसर निखिल सेठ से मिली प्यार हुआ और शादी की. दोनों एक दूसरे के पूरक है. श्रेया अपनी इस जर्नी से बहुत खुश है. हैंडलूम कपड़े के उज्वल तारा ब्रांड की ब्रांड एम्बेसेडर श्रेया से हुई बातचीत रोचक थी.पेश है कुछ अंश.

सवाल- अभिनय के क्षेत्र में आने की प्रेरणा कहां से मिली ?

बचपन से ही मुझे अभिनय की इच्छा थी, क्योंकि मेरी मां महाराष्ट्र के छोटे से शहर अलीबाग में रहते हुए भी एक्टिंग की शौक रखती थी, उनके परिवार ने साथ दिया, पर वह पूरा नहीं हो पाया और उनकी शादी होने के बाद मुंबई आ गयी. फिर हम दो बहनों का जन्म हुआ. बड़ी बहन के लिए पहले मां ने कोशिश की, पर वह पढ़ने में अधिक रूचि रखती थी. उनका सपना फिर मेरे लिए आया. मैं स्कूल से ही बहुत एक्टिव थी. मैंने वहां किसी भी एक्टिविटी में भाग लेना नहीं छोड़ा था. मेरी क्रिएटिविटी को देखते हुए मां हीरा नाईक से मिली, जो बच्चों की थिएटर करती है. मेरी उम्र उस समय केवल 8 साल की थी. उन्होंने मेरा औडिशन लिया और मैं चुन ली गयी. यही से मेरी अभिनय की जर्नी शुरू हुई.

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सवाल- पहला बड़ा ब्रेक कब और कैसे मिला?

कौलेज के दौरान भी मैं नाटकों में अभिनय करती थी, कई गुजराती और मराठी निर्देशकों ने मुझे एप्रोच किया. चाइल्ड आर्टिस्ट के रूप में मेरी मराठी नाटक ‘वाटेवर्ती काचा ग’ काफी प्रसिद्द हुई थी जिससे लोग मुझे जानते थे और काम मिलने में अधिक कठिनाई नहीं हुई, क्योंकि चाइल्ड एब्यूज पर आधारित इस नाटक के बहुत सारी शोज पूरे देश में हुए थे. टर्निंग पॉइंट मेरे जीवन की मराठी धारावाहिक है,जिसे मैं पिछले 5 साल से कर रही हूँ.

सवाल- क्या यहां तक पहुंचने में कुछ संघर्ष करने पड़े?

संघर्ष तो हमेशा रहता है. इस फील्ड में टिके रहना ही सबसे बड़ा संघर्ष था. मुझे किसी प्रकार की कोम्प्रोमाईज नहीं करना था, इसलिए अच्छी किरदार का मिलना बहुत मुश्किल था.

सवाल- कोम्प्रोमाईज शब्द से क्या कहना चाहती है?

कोम्प्रोमाईज से मेरा मतलब काम से है. मुझे अपने अनुसार भूमिका चाहिए और उसके मिलने पर ही मैं काम करती हूं. इसके अलावा यहां हजारों की संख्या में लोग अभिनय के लिए आते है. औप्शन बहुत सारे है. आज किसी को स्टार की जरुरत नहीं होती. ठीकठाक दिखने वाले और अभिनय कर पाने वाले को काम अवश्य मिल जाता है. गलत एप्रोच मुझे आजतक किसी ने नहीं किया. टैलेंट के आधार पर सही काम मिलने में मुझे समय लगा. मैंने निर्देशक, लेखक और साथी कलाकार की वजह से बहुत कुछ सीखा है.

सवाल- आपने नाटकों,धारावाहिकों आदि में काम किया है,किससे आपको अधिक संतुष्टि मिलती है?

माध्यम सभी पसंद है. अभिनय करने का तरीका सबमें एक है. सभी को मैं एन्जौय करती हूं, लेकिन आज भी नाटक या अभिनय करते हुए रोंगटें खड़े होते है. नर्वसनेस और एक्साइटमेंट को एक कलाकार ही समझ सकता है. ये सारे माध्यम मुझे संतुष्टि देती है. मेरी पोपुलर धारावाहिक से आज मेरी जिंदगी बदल चुकी है. मैं इसमें 6 एक्टर्स में अकेली लड़की हूं. आज रास्ते में भी लोग मेरी भूमिका को सराहते है, जो मुझे अच्छा लगता है.

सवाल- आगे की योजनायें क्या है?

मुझे कौमिक रोल अधिक मिल रहे है, जिसे मैं करना नहीं चाहती. मैं अलग और अच्छी भूमिका की तलाश में हूं. फिर चाहे वह फिल्म हो या वेब सीरीज मैं अवश्य करुंगी. मैंने इन 25 सालों में कोई प्लान नहीं किया था. ये हमारे हाथ में नहीं होता, फ्लो में जो मिलता गया मैंने किया और वह सही रहा. आगे भी ठीक होगा.

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सवाल- आपकी ड्रीम प्रोजेक्ट क्या है?

मुझे स्मिता पाटिल की बायोपिक में काम करने की इच्छा है. मेरे पति प्रोड्यूसर है अगर 40 की उम्र तक किसी ने मुझे इस भूमिका के लिए प्रपोज नहीं किया, तो मैं उनसे इस बायोपिक को बनाने की इच्छा जाहिर करुंगी.

सवाल- आपके काम में परिवार वाले कितना सहयोग देते है?

मेरी मां ने शुरू से मुझे सहयोग दिया है. इसमें मेरे पिता का भी बहुत सहयोग रहा है. मेरी कामयाबी के पीछे मेरे पिता अरुण बुगडे का बहुत बड़ा हाथ है, क्योंकि उन्होंने कभी किसी बात में टोका नहीं है. वे दिल से आर्टिस्ट है. मेरे पति इंडस्ट्री से है, इसलिए वे मेरे काम को जानते है. इसके अलावा मेरे सास-ससुर भी मेरे काम से गर्वित है.

सवाल- आप कितनी फैशनेबल है? क्या कोई खास डिजाइनर है?

मैं डिजाइनर के कपड़े बिल्कुल भी नहीं पहनती. मेरी मां का सालों से क्रिएट किया हुआ मेरा एक क्लासिक वौरड्राप है, जिसमें पूरे भारत से लायी गयी साड़ियां, दुपट्टे, ड्रेसेस, हैंडलूम के कपड़े, ज्वेलरी आदि सब है. जब मैं तैयार होकर निकलती हूँ तो सभी मेरे ड्रेस को देखकर चौक जाते है. मेरी मां मेरी स्टाइलिस्ट है.

सवाल- कितनी फूडी है?

मुझे पकाना कुछ भी नहीं आता, लेकिन मुझे हर तरह के व्यंजन पसंद है. मां के हाथ का बनाया सारे नॉन वेज मुझे पसंद है.

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सवाल- मानसून को आप कैसे एन्जौय करती है? बेस्ट हायजिन के लिए क्या संदेश देना चाहती है?

मानसून बहुत ही रोमांटिक मौसम है. उस समय मुंबई में बहुत सारी एक्टिविटीज भी होती है, जिससे ये मौसम और भी खुशनुमा बन जाता है. बारिश बहुत अधिक होती है, इसलिए मैं अपनी गैलरी में बैठकर गरम-गरम पकौड़े खाना पसंद करती हूं. इसके अलावा मैं सबसे कहना चाहती हूं कि इस मौसम में पतले और हलके फैब्रिक के कपड़े पहनने के साथ-साथ शोर्ट लेंथ के कपड़े पहने, ताकि कपड़े गीले न हो और हाईजिन भी बनी रहे. बाहर के फूड न खाएं. पानी की बनी हुई चीजे अवौयड करें, जिसमें गन्ने का रस,नीबू पानी, पानी पूरी आदि सभी लेने से बचें. घर आने पर हाथ पैर को मेडिकेटिड साबुन से अच्छी तरह धोना न भूलें.

शिकारी आएगा जाल बिछाएगा  

धर्म अपने आप में एक धंधा है और ऐसा धंधा है जिस में  बचपन से ही ग्राहकों को जीवनभर के लिए लौयल्टी प्रोग्राम के लिए सदस्य बना लिया जाता है और बहुत सी सेवाएं उसी धर्म की लेनी पड़ती हैं. धंधे की तरह हर सेवा की कीमत देनी पड़ती है. कुछ भी मुफ्त नहीं है.

क्रैडिट कार्डों के लौयल्टी प्रोग्रामों की तरह धर्म की लौयल्टी में भी हजारों नियमउपनियम होते हैं. शुरू में हर धंधे की तरह हर धर्म बड़े सपने दिखाता है पर जब ग्राहक पक्का हो जाए तो आंखें तरेरने लगता है. जिन्होंने क्रैडिट कार्ड या बैंकों में खाते ले रखे हैं वे जानते हैं कि धर्म के रीतिरिवाजों की तरह बैंकों और क्रैडिट कार्ड कंपनियों के भी रीतिरिवाज हैं.

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जैसे आजकल बड़ेबड़े मंदिरों में लंबी लाइनों में धक्केमुक्की के बाद पैसे दे कर सेवा मिलती है वैसे ही खातेदारों और क्रैडिट कार्ड होल्डरों को कठिनाई होने पर अपने ईश्वर को पाने के लिए घंटों, दिनों लगाने होते हैं. क्रैडिट कार्ड बेचने से पहले, खाता खुलवाने या एअरलाइंस के प्रोग्राम के सदस्य बनने या फिर होटल चेन की विशेष सुविधा पाने के लिए पहले बड़े सपने दिखाए जाते हैं पर एक बार फंसे नहीं और पैसा दिया नहीं कि आप गुलाम बन गए. धर्म की तरह आप को पुरोहितों के रूप में लौयल्टी मैनेजर या रिलेशनशिप मैनेजर मिलेंगे जो पैसे वसूलने के लिए होते हैं, भक्त को सेवा देने के लिए नहीं. हर धर्म अपने भक्तों से कहता है कि उन का उद्धार वही करेगा. वही पापों को समाप्त करेगा, पैसा ले कर. वह बीमारियां दूर कर देगा, अर्थ संकट समाप्त हो जाएगा.

धर्म की शरण में आओ तो सही. यही 40 पर्यटन स्थलों पर होटल बनाए रखने वाली चेन कहेगी कि आओ एक बार पैसा दे दो, फिर जीवनभर कभी कहीं कभी कहीं के मजे लूटो. ब्रोशरों में सुंदर जगह कमरे दिखेंगे. जब सदस्य बन जाओ, बंध जाओ तो कोई सुनने वाला नहीं.

धर्म के मंदिर की तरह कीचड़ से गुजर कर मूर्ति तक पहुंचों और भिखारियों की तरह प्रसाद पा कर धन्य होओ. क्रैडिट कार्ड कंपनियां कहेंगी कि लो अब खजाना हाथ में आ गया. जो चाहे मरजी खरीदो. ईएमआई भी है. चिंता न करना, हम हैं न. यह तो पहले माह ही पता चलता है कि न केवल 4 दिन की देर से चपत लग जाती है, क्रैडिट कार्ड भी बंद. धर्म संसद का आदेश कि भक्त प्रायश्चित्त करे, 40 पंडों को भोज कराए, सिर मुंडाए तब ईश्वर की सेवा चालू होगी.

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होटल लौयल्टी प्रोग्राम के पौइंट्स ऐक्सपायर्ड हो गए, अब कुछ नहीं हो सकता. जो फ्री देने की बात थी वह तो वादा फ्री का था, बाद में भुगतान ही करना था. अब धर्म के नाम पर दाल, चीनी, घी, तेल का व्यापार शुरू हो गया है. धर्म से जुड़े बाबाओं ने भक्तों के लौयल्टी प्रोग्राम को चौतरफा तरीकों से लाभ उठाना शुरू कर दिया. यहां शिकायत की गुंजाइश ही नहीं, क्योंकि यह तो जनसेवा है और जनसेवा में कमी है, तो पाने वाले की गलती है. न धर्म कभी गलती पर होता है, न धर्म के आका. केवल भक्त गलत होते हैं. अगर आप धर्म और व्यापारों के प्रोग्रामों के सदस्य हैं तो चुपचाप सहते रहें. जो सुविधा मिल गई उस के गुण गाते रहिए, असुविधा पर रोने से लाभ नहीं.

मदरहुड से महिलाओं के करियर पर ब्रेक

प्रोफेशनल वर्ल्ड में महिलाओं के लिए गर्भावस्था एक चुनौतीपूर्ण समय होता है. सिर्फ शारीरिक तौर पर ही नहीं बल्कि इस समय उन के सामने मानसिक तौर पर भी बहुत सारी चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं. गर्भावस्था में पेश आने वाली चुनौतियों में से एक नौकरी के स्तर पर महसूस होने वाली चुनौती भी है. इस संदर्भ में हुए एक शोध में यह बात सामने आयी है कि गर्भावस्था के दौरान ज्यादातर महिलाओं को नौकरी से निकाले जाने का डर लगा रहता है.

प्रोफेशनली तनाव महसूस करती हैं महिलाएं

अधिकतर कामकाजी महिलाओं को ऐसा लगता है कि गर्भवती होने से उन की नौकरी को खतरा हो सकता है. उन्हें काम से निकाल दिया जा सकता है जब कि पिता बनने वाले पुरूषों को अकसर नौकरी या कार्यस्थल पर बढ़ावा मिलता है.

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अमेरिका के फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोध से जुड़े इस निष्कर्ष को एप्लाइड मनोविज्ञान के जर्नल में प्रकाशित किया गया. इस में इस बात की पुष्टि की गई है कि मां बनने वाली औरतों को ऐसा महसूस होता है कि गर्भ के दौरान और बाद में कार्यस्थल पर उन का अच्छे से स्वागत नहीं किया जाएगा.

क्या कहता है शोध

अध्ययन में पाया गया कि जब कामकाजी महिलाओं ने अपनी प्रेगनेंसी का जिक्र अपने मैनेजर या सहकार्यकर्ताओं से किया तो उन्हें करियर के क्षेत्र में प्रमोशन दिए जाने की दर में कमीं आई जब कि बाप बनने वाले पुरूषों को प्रमोशन किए जाने की दर में बढ़ोतरी हुई.

स्त्री सशक्तिकरण के इस दौर में जब कि महिलाएं हर क्षेत्र में कामयाबी के झंडे गाढ़ रही हैं इस तरह के खुलासे थोड़ा हतोत्साहित करने वाले प्रतीत होते हैं. पर यह एक हकीकत है. कहीं न कही घर परिवार के साथ कार्यस्थल की दोहरी जिम्मेदारियों के बीच स्त्री का करियर पीछे छूट ही जाता है. वह चाह कर भी दोनों क्षेत्रों में एकसाथ बेहतर परिणाम नहीं दे पाती.

इस सच से इंकार नहीं किया जा सकता कि शादी के बाद एक स्त्री का प्राकृतिक दायित्व अपने परिवार की तरफ होता है. बड़ेबुजुर्गों की सेवा ,पति व अन्य परिजनों की देखभाल ,बच्चों की परवरिश जैसे काम उसे निभाने ही होते हैं. इस के अलावा शादी के बाद परिवार बढ़ाना भी एक सामजिक जिम्मेदारी है. बच्चे के जन्म और लालनपालन में पिता के देखे माँ की भूमिका बहुत ज्यादा होती है और वह इस से बच नहीं सकती. वैसे भी आम भारतीय घरों में एक मां से यह अपेक्षा की जाती है कि वे हर तरह के हितों को जिन में उन के खुद के हित भी शामिल हैं, को बच्चे से नीचे रखें.

गर्भावस्था और उस के बाद के 1 -2 साल स्त्री को अपने साथसाथ नए मेहमान की सुरक्षा और जरूरतों का भी पूरा ख्याल रखना होता है. ऐसे में अगर उसे घर

से पूरा सपोर्ट ,अच्छा वर्किंग एन्वॉयरमेंट, आनेजाने की यानी ट्रांसपोर्ट की बेहतर सुविधा न मिले तो नई मां के लिए सब कुछ मैनेज करना बहुत कठिन हो जाता है.

एक तरफ उन से घर के सारे काम करने और परिवार की तरफ पूरी जिम्मेदारियां निभाने की अपेक्षा की जाती है तो वहीँ ऑफिस में एम्प्लायर भी अपने काम में कोई कोताही नहीं सह सकता. वह करियर के किसी भी मुकाम पर क्यों न हो बात जब बच्चे के जन्म और पालन पोषण की आती है तो पिता यानी पुरुष के देखे एक महिला पर बहुत साड़ी जिम्मेदारियां आ जाती हैं और इस दौरान उस को काफी त्याग करने पड़ते हैं. महिला को करियर के बजाय परिवार को प्राथमिकता देनी पड़ती है.

विश्वबैंक की एक रिपोर्ट पर नजर डालें तो भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या लगातार कम हो रही है. कार्यक्षेत्र में हिस्सेदारी के मामले में भारत की महिलाएं 131 देशों में 121वें स्थान पर हैं.

2004-05 में देश में लगभग 43 फीसदी महिलाएं कामकाजी थीं. कुछ ऐसा ही आंकड़ा 1993-94 में भी था. लेकिन आज 2016-17 में जब देश नए कीर्तिमान रच रहा है कामकाजी महिलाओं का आंकड़ा 27 प्रतिशत से भी कम होता जा रहा है. हमारे देश से अच्छी स्थिति नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका जैसे देशों की हैं.

विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 2011-12 के बीच विभिन्न कारणों से 1.97 करोड़ महिलाओं ने नौकरी छोड़ दी. यह बात अलग है कि जो महिलाएं काम कर रही हैं वे अपनी काबिलियत के झंडे गाढ़ रही हैं मगर यह संख्या संतोषजनक नहीं है.

ग्लोबल जेंडर 2015-16 की रिपोर्ट के मुताबिक 144 देशों में किए गए सर्वे में भारत 136 वें नंबर पर है. भारत में महिला कार्यबल की भागीदारी महज 27 प्रतिशत है, जो वैश्विक औसत के मुकाबले 23 प्रतिशत कम है.

वर्ल्ड इकोनौमिक फोरम द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर पांच में से चार कंपनियों में 10 प्रतिशत से भी कम महिला कर्मचारियों की भागीदारी है. भारत की ज्यादातर कंपनियां महिलाओं की तुलना में पुरुष कर्मचारियों को भर्ती करना पसंद करती है. मेटरनिटी बेनेफिट एक्ट 2016 के जरिए प्रेग्नेंसी के दौरान छुट्टियों को 12 हफ्ते से बढ़ा कर 26 हफ्ते किया गया है ताकि महिलाओं को इस तनाव से उबारने की कोशिश की जा सके. हालांकि अभी असंगठित क्षेत्रों में यह तनाव बरकरार है पर सरकारी नौकरियों में बहुत हद तक महिलाएं इस तनाव से बाहर आ रहीं हैं.

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पर मेटरनिटी लीव के बढ़ते दबाव के कारण कंपनियां महिलाओं को भरती करने में गुरेज करती हैं. बड़ी कंपनियां इस मामले में सकारात्मक रुख अपनाती हैं. वे एक्ट से हुए बदलाव का समर्थन करते हुए महिलाओं की भर्ती में कोई कमी नहीं करतीं. लेकिन असली दिक्कत छोटी और मीडियम कंपनियों से है. इन कंपनियों में महिलाओं की सैलरी कम करने जैसे तरीके अपनाए जा सकते हैं. या महिलाओं की हायरिंग ही कम कर दी जाती है.

एम्प्लायर का पक्ष भी देखें

अगर कोई महिला प्रेगनेंसी के बाद 6 माह लीव पर चली जाए और एम्प्लायर को उस के बदले किसी और को रखने की जरुरत न पड़े तो इस का मतलब यह भी माना जा सकता है किमान लीजिये कि किसी कंपनी या एक सरकारी यूनिवर्सिटी में कोई महिला काम कर रही है और उसे बच्चे के बाद 6 माह की लीव पर जाना पड़ा. उस के बाद भी उस ने एक डेढ़ साल की पेड लीव ले ली.

जाहिर है इतने समय तक उस के बगैर काम चल सकता है यानी उस के पास कोई महत्वपूर्ण काम नहीं. कार्यालय में उस की उपयोगिता न के बराबर है. उसके होने या न होने से कंपनी या यूनिवर्सिटी को कोई फर्क नहीं पड़ता.  मगर अगर उसके बदले किसी और को एडहौक पर रखना पड़ता है तो फिर यह इसी बात को इंगित करता है कि कंपनी को उस महिला की वजह से नए एम्प्लाई को रखने का खर्च

करना पड़ा. ऐसे में एम्प्लाई अपनी सहूलियत देखते हुए भविष्य में महिला एम्प्लाइज को कम से कम लेना शुरू कर देगा या फिर उन की सैलरी शुरू से कम रखेगा ताकि भविष्य में उसे अधिक नुकसान न हो.

महिलाओं की इन तमाम दिक्कतों से निपटने में घर और ऑफिस में अच्छा सपोर्ट सिस्टम मदद कर सकता है. अगर बौस वीमेन हो तो इन दिक्कतों को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. इसी तरह परिवार का सहयोग भी काफी माने रखता है. जैसे-जैसे ज्वाइंट फैमली खत्म हुई हैं, बच्चों की परवरिश मुश्किल होती जा रही है. एक अध्ययन के मुताबिक़ एक छोटा बच्चा होने से महिलाओं के रोजगार पर नकारात्मक असर पड़ता है. वहीं किसी बड़ी महिला के परिवार में होने से कामकाजी महिलाओं के काम करने के आसार बढ़ जाते हैं.

इसी तरह मां बनने वाली महिलाओं के प्रति करियर से जुड़ी प्रोत्साहन को कम नहीं किया जाना चाहिए. इस के विपरीत माता और पिता दोनों को ही सामाजिक और करियर से जुड़ी हर संभव सहायता प्रदान करनी चाहिए ताकि काम और परिवार से जुड़ी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने में उन्हें मदद मिलें.

इस दौर में पिता की भूमिका भी तेजी से बदल रही है. उन को मालूम है कि दो कमाने वाले होंगे तो एक बेहतर लाइफ स्टाइल हो सकती है. इसलिए अब वे अपनी पत्नी का सपोर्ट कर रहे हैं. लेकिन फिर भी जब तक रूढ़िवादी मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक रियल में हालात नहीं बदल सकते.

क्या है समाधान

अगर करियर के साथ प्रेग्नेंट होना है तो प्रयास करें कि 35 के बाद यह नौबत आये क्यों कि उस समय तक लड़की अपने पेशे से जुड़े हुनर अच्छी तरह सीख चुकी होती है. वह करियर के मामले में सेटल और हर तरह से मैच्योर रहती है. उस में इतनी काबिलियत आ जाती है कि घर से भी काम कर के दे सके. वैसे भी तकनीकी विकास का ज़माना है. एम्प्लायर भी उसे सपोर्ट देने को तैयार रहता है क्यों कि वह कंपनी के लिए काफी कुछ कर चुकी होती है.

मगर 27 -28 की उम्र में अगर लड़की प्रेग्नेंट हो जाए जब कि एम्प्लायर उसे सिखा रहा होता है तो यह एम्प्लायर के लिए काफी घाटे का सौदा होता है. लड़की अगर मार्केटिंग फील्ड में है तो जाहिर है कि कम उम्र में उस का अधिक दौड़भाग का काम होगा जब कि उम्र बढ़ने पर वह सुपरवाइज़र बन चुकी होती है.

इसी तरह किसी भी फील्ड में उम्र बढ़ने पर थोड़ी स्थिरता का काम मिल जाता है. ऐसे में अगर वह 2 -4 घंटे के लिए भी आ कर महत्वपूर्ण काम निबटा जाए तो एम्प्लायर का काम चल जाता है.

साथ काम करने वाली लड़कियों को भी समस्या हो सकती है क्यों कि जो लड़की शादीशुदा है और प्रेग्नेंट हो जाती है उसे तो एकमुश्त 6 माह की छुट्टियां मिल जाती हैं. मगर 200 में अगर 140 लड़कियां ऐसी हैं जो अविवाहिता हैं या प्रेग्नेंट नहीं होती है तो उन के लिए तो यह एक तरह का लॉस ही है. भला उन का क्या कसूर था?

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इसी तरह स्वाभाविक है कि इन परिस्थितियों में कोई भी एंपलॉयर मेल कैंडीडेट्स को ही तरजीह देंगे और अपना घाटा कम करने का प्रयास करेंगे. उन्हें या तो प्रोडक्ट की कीमत में वृद्धि करनी पड़ेगी और तब सोसाइटी द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से वह खर्च वहन किया जाएगा या फिर एक सोल्युशन यह है कि समाज खुद आगे आये और यह खर्च वहन करे या फिर जिस ने कानून बनाया वही यानी सरकार इस का सौल्यूशन दे.

 जब सताए दाद, खाज-खुजली तो अपनाएं ये टिप्स

स्किन मानव शरीर का एक ऐसा हिस्सा है जिस में आएदिन कोई न कोई परेशानी हो ही जाती है. स्किन की बीमारियों की बात की जाए तो सबसे पहले खयाल दादखाजखुजली का आता है, जो गरमी के मौसम में ज्यादा परेशान करती है. हम अकसर इसे मामूली परेशानी समझ कर नजरअंदाज कर देते हैं, लेकिन यह मामूली सी परेशानी कब भयानक रूप ले लेती है, इस का पता ही नहीं चलता. यह एक ऐसी बीमारी है, जो देश में 1 से 3% व्यक्तियों को इस प्रकार प्र्रभावित करती है कि वे कुछ ही समय में बहुत ज्यादा परेशान हो जाते हैं.

क्या है लक्षण

– यदि आप को हर दिन खुजली की प्रौब्लम रहती है तो यह खाज का लक्षण है.

– स्किन पर लाल चकत्ते उभर रहे हों जिन्हें आप का बारबार खुजलाने का मन करे तो वह दाद का लक्षण है.

– स्किन पर खिंचाव के साथ खुजली महसूस हो तो यह खाज का ही लक्षण है.

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– स्किन पर दाने होना.

क्या है कारण

– दवाओं का ज्यादा सेवन करने से शरीर में साइड इफैक्ट हो सकता है, जिस से खुजली की परेशानी हो सकती है.

– मच्छरों और कीटों के काटने से खुजली की प्रौब्लम होती है.

– साफसफाई न रखने से स्किन में इन्फैक्शन हो सकता है, जो दादखाजखुजली का रूप ले सकता है.

– दाद, सोरायसिस, ऐक्जिमा जैसे चर्मरोग होने से भी खुजली होती है.

– गीले कपड़े पहनने से खुजली होती है.

– यदि किसी व्यक्ति को किसी चीज से ऐलर्जी है तो उस से खुजली हो सकती है.

– रूखी स्किन.

– चिलचिलाती धूप.

– इफैक्टेड व्यक्ति के संपर्क में आना.

 इन्फैक्शन से बचना जरूरी

जब दादखाज शरीर के अलग-अलग हिस्सों में एकसाथ हो जाए तो उसे ठीक कर पाना बहुत ही मुश्किल हो जाता है. यह प्रौब्लम देखने में तो बहुत ही साधारण लगती है, लेकिन असल में किसी भी व्यक्ति को अत्यधिक परेशान करने के लिए काफी है. ऐसे वक्त व्यक्ति को खुजलाने के अलावा कुछ नजर नहीं आता है. खुजलाने से उस क्षण तो राहत मिल जाती है लेकिन यही राहत बाद में परेशानी को गंभीर करने का कारण बन जाती है, जिस से दाद या खाज की जगह इन्फैक्शन होने की संभावना बढ़ जाती है. खुजली करने की जगह यदि इस का समय पर इलाज करा लिया जाए तो इसे बढ़ने से रोका जा सकता है.

दाद और खाज के बीच अंतर

आमतौर पर लोग दाद और खाज को एक ही बीमारी समझ बैठते हैं, लेकिन दोनों में काफी अंतर है. दाद एक चर्मरोग है, जिस में स्किन पर लाल चकत्ते उभर आते हैं, जिन का सही समय पर इलाज न करने पर वे शरीर के दूसरे हिस्सों में भी फैलने लगते हैं. दाद में अत्यधिक खुजली महसूस होती है, जिस के कारण व्यक्ति मजबूर हो कर जब दाद को खुजलाता है, तो उसे आनंद महसूस होता है, लेकिन यही आनंद कुछ ही वक्त में दाद को और फैलने में मदद करता है. वहीं अगर बात खाज की करें, तो खाजएक तरह का इन्फैक्शन है, जो अकसर उंगलियों के बीच, घुटनों के पीछे, कलाइयों और कूल्हों और प्राइवेट पार्ट के किनारों पर देखने को मिलता है. आमतौर पर यह अंगों के गीले रहने पर जन्म लेता है जैसेकि गीले मोजे पहनना, लगातार पसीना आना, बारबार पानी में जाना, गीले कपड़े पहनना, जरूरत से ज्यादा कसे कपड़े पहनना आदि.

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क्या है इलाज

आजकल बाजार में हर बीमारी की दवा उपलब्ध है. यदि आप दादखाज से परेशान हैं, तो डाक्टर की सलाह से दवा का सेवन कर सकते हैं या जैल के उपयोग से इस प्रौब्लम से छुटकारा पा सकते हैं. दाद खाज की प्रौब्लम का शुरुआत में ही इलाज कराने से यह आसानी से ठीक हो जाती है, लेकिन इलाज में देरी करने से इसे ठीक कर पाना बेहद मुश्किल हो जाता है. इस तरह की परेशानी होने पर चर्मरोग विशेषज्ञ से परमर्श लें.

-डा. गौरव भारद्वाज

कंसल्टैंट, डर्मेटोलौजी, सरोज सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल,नई दिल्ली –

हमारे यहां सारे कानून बदलने की सख्त है जरूरत -ईशा गुप्ता

न्याय प्रणाली में भ्रष्टाचार को दिखाने वाली फिल्म ‘‘वन डे जस्टिस डिलिवर’’में क्राइम ब्रांच की पुलिस अफसर लक्ष्मी राठी का किरदार निभाने के कारण शोहरत बटोर रही एक्ट्रेस ईशा गुप्ता अपनी बेबाकी के लिए जानी जाती हैं. पांच जुलाई को प्रदर्शित हो रही इस फिल्म में एक उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश जिस दिन अवकाश ग्रहण करते हैं, उसी दिन उन्हें अहसास होता है कि वह कानून की किताबों में बंधे होते हुए वकीलों द्वारा दिए गए साक्ष्य के आधार पर कुछ गुनाहगारों को बरी कर दिया था और अब वह उन गुनाहगारों को सजा देने के लिए अपने तरीके से काम करेंगें. इस फिल्म में अवकाश प्राप्त न्यायाधीश जो कदम उठाते हैं, उसके खिलाफ लक्ष्मी राठी जांच करती हैं. मजेदार बात यह है कि इस फिल्म में सख्त पुलिस अफसर का किरदार निभाने वाली ईशा गुप्ता अभिनय के क्षेत्र में कदम रखने से पहले लंदन में वकालत कर चुकी हैं. प्रस्तुत है ईशा गुप्ता से हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश..

सवाल- 2012 से अब तक के अपने करियर को आप किस रूप में देख रही हैं?

-सर, इसे मैं किस्मत कहूंगी. मेरा मानना है कि आपकी जिंदगी और करियर में जो कुछ हो रहा है,उसे स्वीकार करना चाहिए.एक कहावत है कि ,‘‘जब आप जिंदगी को लेकर योजना बना रहे होते हैं,तो भगवान आप पर हंस रहा होता है.’’मुझे लगता है कि मेरे साथ ऐसा ही हुआ है. मेरे पापा एअर फोर्स में थे,इसलिए मैं बचपन से एअर फोर्स में जाना चाहती थी.इसके पीछे एक मात्र चाहत प्लेन उड़ाने की थी.लेकिन जब मुझे पता चला कि एअर फोर्स से जुड़ने के बहुत पढ़ाई करनी पड़ेगी,तो मैंने इरादा बदल दिया.

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सवाल- आप पढ़ाई से इतना दूर क्यों भाग रही थीं?जबकि आपने पढ़ाई तो बहुत की है?

-आपने एकदम सही कहा.मैंने मास कम्युनीकेशन के अलावा वकालत की पढ़ाई की है.मैं वकील भी हूं.मैने कुछ समय तक वकालत की है. फिर भी एअरफोर्स में पढ़ाई के नाम पर मैं पीछे हटी,क्योंकि मैं प्लेन के बारे में नहीं पढ़ना चाहती थी,मैं सिर्फ प्लेन उड़ाना चाहती थी.उसके बारे में सीखना नहीं चाहती थी.मेरे तमाम दोस्त ऐसे हैं,जिन्होंने आॅटोमोबाइल इंजीनियर के रूप में पढ़ाई शुरू की थी,पर बाद में छोड़ कर कुछ और कर रहे हैं. जब मैंने एअर फोर्स का इरादा छोड़ दिया,तो मन में आया कि मुझे वकील बनना है.कानून की धाराओं और वकालत में मेरी हमेशा बहुत रूचि रही है.मैंने वकालत की पढ़ाई लंदन  जाकर की.उस वक्त मैं वहीं रहना भी चाहती थी.लेकिन अचानक भारत पे्रम मुझे वापस यहां खींच लाया. लंदन में वकालत की पढ़ाई करने से पहले मैंने मास कम्युनीकेशन भी किया था.मैं पूरे पांच साल की वकालत@लॉ की पढ़ाई नहीं करना चाहती थी.इसलिए पहले मैंने मास कम्युनीकेशन का कोर्स किया.उसके बाद दो साल की लॉ की पढ़ाई की.मैंने वहां पर वकील के तौर पर पै्रक्टिस शुरू कर दी थी.पर किस्मत में तो अभिनेत्री बनना लिखा था,तो अब यहां आपके सामने हूं.मेरा मानना है कि जब ईश्वर आपको कुछ देता है या आपके माध्यम से अच्छा@बुरा कुछ करवाना चाहता है,तो उस वक्त आपको सोचना चाहिए कि ईश्वर क्या निर्देश दे रहा है या उसका इशारा क्या है? मैंने ईश्वर के इशारे को समझा और उसके अनुसार अभी तक यहां पर काम कर रही हूं.

सवाल- आप एअरफोर्स में या वकालत के के पेशे के जरिए समाज या देश को कुछ देने की सोच रही थी? तो क्या अभिनेत्री बनकर आप समाज या देश को कुछ दे पा रही हैं?

-मैं इस तरह से नहीं सोचती. मैं एक सवाल करती हूं कि दूसरों ने समाज को क्या दे दिया?, जो मुझसे उम्मीद करते हैं. फिर भी मुझे लगता है कि मैं औरों से कहीं ज्यादा समाज को दे रही हूं.मैं अपनी आवाज को सही चीजों के लिए इस्तेमाल कर रही हूं. आज के समय में यह बात बहुत मायने रखती है कि आप आवाज उठाएं, अपने विचारों को लोगों तक पहुंचाएं.  किसने कहा कि मैं वकालत के पेशे में रहते हुए समाज को कुछ दे रही थी? सच यही है कि वकालत के पेशे में रहते हुए मैं अपने लिए काम करती.सरकार नहीं,बल्कि प्रायवेट लॉयर के रूप में काम करती और ढेर सारा पैसा कमाती.सच कहूं तो अभिनेत्री के तौर पर मैं जितना पैसा कमा रही हूं,उससे कहीं ज्यादा पैसा मैं लौयर यानी वकील के रूप में कमा रही थी.

यूं भी चार दीवारी के अंदर एक इंसान सही है या गलत,इसे साबित करना बहुत आसान होता है. मगर पूरी आवाम के सामने,सोशल मीडिया पर किसी भी मुद्दे को उठाना बहुत कठिन होता है. और तब जब आप देश की एक पर्सनालिटी हो. इसलिए मैं कहती हूं कि बतौर अभिनेत्री मैं समाज व देश के लिए बहुत अधिक काम कर पा रही हूं. क्योंकि लोग मुझे सुनना चाहते हैं.यदि लोग यह जानना चाहते हैं कि अभिनेत्री के तौर पर मैं किस तरह के कपडे़ पहनती हूं,क्या खाती हूं,कहां जा रही हूं,कहां आ रही हूं, तो कलाकार के तौर पर यह भी बताना चाहिएं कि समाज या देश या किसी भी इंसान के हित में क्या है.अभिनेत्री के तौर पर मैं यह काम जरूर कर पा रही हूं.

सवाल- इस वक्त आप किस मुद्दे को तवज्जो दे रही हैं?

-यदि आप मुझे सोशल मीडिया पर फौलो कर रहे होंगे, तो आपने पाया होगा कि मैंने ‘क्लायमेट चेंज’को लेकर बहुत कुछ कहा है.मैं अपनी बात लोगों तक पहुंचाने की बात कही है.आज आप व मैं,जिस वक्त बैठकर बातें कर रहे हैं, उसी वक्त ‘जी 20’ समिट में ‘क्लायमेट चेंज’ को अनदेखा कर दिया गया.अफसोस की बात यह है कि अमरीका ने ‘जी 20 समिट’में क्लायमेट चेंज को बड़ा मुद्दा मानने से इंकार कर दिया. मगर एक तरीके से उन्होंने सही किया.क्योंकि जिनकी वजह से पूरे विश्व में क्लायमेट पर्यावरण बिगड़ रहा है,यानी बड़ी बड़ी कंपनियों व तेल उत्पादक कंपनियों से ही हर राजनीतिज्ञ को पैसा मिल रहा है.पूरे विश्व में हर राजनीतिज्ञ की एकमात्र सोच यही रहती है कि कार्यकाल समाप्त होने से पहले पैसा जमा कर लें.इस चक्कर में देश के लोगों के भविष्य की उन्हें चिंता नही होती.आज कल लोग खासकर राजनीतिज्ञ बहुत स्वार्थी हो गए हैं. यह सभी सिर्फ अपने बारे में सोचते हैं.यह राजनेता इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं कि पूरी दुनिया के लिए आतंकवाद से भी बड़ा मुद्दा ‘क्लायमेट चेंज’है.

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सर,पिछले हफ्ते रशिया का एक वीडियो सामने आया.एक पोलब गॉंव में आ गया है,जिसके पास खाने को कुछ नही है, उसकी बर्फ पिघल गयी है.जबकि ऐसा कभी होता नहीं.क्योंकि पोलब को लोग देख नही पाते हैं. वह हमेशा बर्फ में रहता है. पोलब बना ही बर्फ के लिए है.लेकिन हम लोगों की वजह से क्लायमेट चेंज हो रहा हैं और हालात ऐसे हो रहे हैं.

सोशल मीडिया में सबसे बड़ी समस्या यह है कि जब आप कोई अच्छी बात कहेंगे,तो उसका विरोध करने के लिए ढेर सारे लोग सामने आ जाते हैं. लेकिन मैंने महसूस किया हर इंसान की जिंदगी में ऐसा होता है.घर के अंदर भी लोग आपका विरोध करते हैं. समाज में भी लोग विरोध करते हैं यानी कि जब भी आप कुछ अच्छा काम करेंगे, तो विरोध सहन करना पडे़गा.ऐसे में आपके सामने दो रास्ते होते हैं-पहला,आप उस विरोध की परवाह करें. दूसरा उस विरोध को अनदेखा कर दें.मैं सोशल मीडिया पर हर तरह के विरोध को अनदेखा कर देती हूं. विरोध करने वालों को महत्व नही देती.गीता कहती है-‘‘अपना कर्म करते रहो.’मैं ऐसा ही करती हूं. मेरे कहने का अर्थ यह है कि यदिआप किसी चीज में यकीन करते हैं, तो उसको निरंतर करते रहें. तकलीफें आएंगी, विरोध भी होंगे. अंततः जीत आपकी होगी.

सवाल- आप अपने अब तक के फिल्मी करियर को लेकर क्या कहना चाहेंगी?

-मेरी तकदीर मुझे फिल्मों में ले आयी.मैने 2012 में फिल्म‘‘जन्नत 2’’से बौलीवुड में कदम रखा था.दसके बाद मैने ‘राज 3’,‘गोरी तेरे प्यार में’जैसी फिल्में की. मगर फिल्म ‘हमशक्ल’की अफलता से मेरे करियर को काफी नुकसान हुआ. उसके बाद मैने कुछ म्यूजिक वीडियो के अलावा फिल्मों में आइटम नंबर किए.फिर मैने दक्षिण भारतीय भाषाओं की कुछ फिल्में की. मैंने परसियन भाषा की फिल्म‘‘द डेविल्स डौटर’’की. पर ‘टोटल धमाल’से मुझे फिर से नया जीवनदान मिला. इन दिनों मैं फिल्म ‘‘वन डे जस्टिस डिलिवर’’को लेकर उत्साहित हूं.

सवाल- फिल्म‘‘हमशक्ल’’की असफलता का क्या असर हुआा?

-‘हमशक्ल’की असफलता के बाद फिल्म इंडस्ट्री ने मुझे हाशिए पर ढकेल दिया. फिल्म इंडस्ट्री से मुझे सपोर्ट नही मिला. ‘हमशक्ल’ की असफलता के बाद मैं भी कुछ समय के लिए डिपे्रशन में चली गयी थी.पर मैं भी डिपे्रशन से उबरी.

सवाल- आपने डिप्रेरशन से उबरने के लिए क्या किया?

-लोग डिप्रेरशन से उबरने के लिए कई तरह की बातें कहते हैं. कुछ लोग मनोवैज्ञानिक डौक्टरों के पास पहुंच जाते हैं. पर मुझे लगता है कि यह सब जरूरी नही है. डिप्रेशन से उबरने के लिए अपने आत्मबल को मजबूत करने की जरूरत होती है.उसके बाद सिर्फ अपने काम को करते रहना चाहिए.जब मैं डिपे्रशन में पहुंची,तो मंैने बहुत कुछ सीखना शुरू किया. मैं अभिनेता नीरज कवि के ‘‘एक्टिंग वर्कशौप’’ से जुड़ी और एक्टिंग की टे्निंग ली. मैनें डांस के कुछ नए फार्म सीखे. आपको पता है कि बौलीवुड में सफलता को सलाम किया जाता है. इसीलिए मैंने दक्षिण भारत में जाकर कुछ फिल्में की. देखिए, काम करते रहने से आपकी सोच में बदलाव आना शुरू हो जाता है. घर पर खाली बैठे रहने से आप सिर्फ असफलता को लेकर सोचते रहते हैं और तब डिप्रेशन से उबरने के लिए सायकोलौजिकल ट्रीटमेंट की जरुरत पड़ती है.

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कम से कम एक कलाकार के तौर पर मेरा मानना है कि किसी भी फिल्म की सफलता या असफलता के कई कारण होते हैं. मैं मानती हूं कि डिप्रेशन के वक्त मुझे इंडस्ट्री के किसी भी इंसान का सपोर्ट नहीं मिला. मगर मुझे मेरे माता पिता का सपोर्ट मिला. मेरे माता पिता बहुत ही बेहतरीन इंसान हैं. मेरा पूरा परिवार हमेशा मेरे साथ खड़ा नजर आता है. आप यह मानकर चलें कि लोगों का नजरिया आपके प्रति अलग होता है. लोग जो देखना चाहते हैं, कोई जरूरी नहीं कि आप वही कर रहे हों. मेरी एक ही सोच होती है कि मुझे खुशी मिले या किसी वजह से मैं उदास हो जाउं, तो उस वक्त अपने माता पिता से सबसे पहले बात करूं. मुझे अपनी खुशी या उदासी पर लोगों की प्रतिक्रिया मायने नही रखती.

सवाल- फिल्म‘‘वन डे जस्टिस’’करने की वजह क्या रही?

-इस फिल्म की कहानी ने मुझे इस फिल्म से जुड़ने के लिए प्रेरित किया.दूसरी बात मुझे अपने अभिनय के गुरू अनुपम खेर जी के ेसाथ अभिनय करने का अवसर मिला.हम सुनते रहते हंै कि जीवन पूरा एक चक्र लेता है.तो अपने गुरू अनुपम खेर के साथ फिल्म‘‘वन डे जस्टिस डिलिवर’मेंं अभिनय करके मेरा जीवन चक्र पूरा हुआ.

सवाल- फिल्म‘‘वन डे जस्टिस डिलिवर’’क्या है?

-इस फिल्म में न्याय प्रणाली में व्याप्त भ्रष्टाचार को रेखांकित किया गया है. इसमें इस बात पर रोशनी डाली है कि एक न एक दिन हर इंसान को अहसास होता है कि उसने भी गलती की है. मैने इसमें एक कड़क अपराध जांच अधिकारी लक्ष्मी राठी का किरदार निभाया है.

इस फिल्म में भी हमने दिखाया है कि किस तरह से अच्छाई या बुराई है.पर मेरा और अनुपम खेर जी का जो कि जज बने हैं, दोनों के किरदार गे्र हैं.

सवाल- आप निजी जिंदगी में वकील रही हैं.इस फिल्म की कहानी में वकील जिस तरह से सबूतों को जज के सामने पेश करता है, उसके चलते जज गुनहगारों को छोड़ देता है. इस पर आप क्या कहना चाहेंगी?

-देखिए, मैं लौयर हूं. तो वकीलों की बुराई नहीं करूंगी. मैंने सबसे पहले आपको बताया कि वकालत के पेशे से जुड़कर मैं समाज सेवा नहीं, अपने लिए पैसे कमा रही थी. वकील का काम होता है-‘‘गंगा गए गंगादास, जमुना गए, जमुनादास.’’ वकिल के तौर पर उसका काम होता है कि जो उसे पैसा दे रहा है, उसके फायदे के लिए काम करें. जिस इंसान ने अपने आपको बचाने के लिए आपको पैसा दिया है, वकील के तौर पर आपका काम है कि आप उसे बचाए.

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सवाल- आप देश की न्याय प्रकिया के संदर्भ में किस तरह के विचार रखती है?

-सर, हमारे यहां तमाम कानून बदलने की सख्त जरूरत है.जब सेक्शन 377 को लेकर बदलाव किया गया, तो मुझे बड़ी खुशी मिली. मैने कहा- ‘‘देर आए दुरूस्त आए.’’क्योंकि प्यार युनिवर्सल हैं. प्यार को लेकर आप किसी पर अंकुश नहीं लगा सकते. यह बहुत ही सही जजमेंट रहा.अब नाबालिग रेप को लेकर मृत्युदंड को जो कानून बना रहे हैं,वह भी सही है.इसी तरह से अभी भी बहुत कुछ बदलने की जरूरत है.नारी सुरक्षा को लेकर भी कुछ कडे़ कानून बनने चाहिए. पर वर्तमान सरकार धीरे धीरे काफी कानून बदल रही है, जो कि अच्छा है.

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