वजन कम करने के लिए ट्राय करें ब्लड ग्रुप डाइट

बिजी लाइफस्टाइल में हर किसी के वजन पर फर्क पड़ता है. कम्प्यूटर पर काम करने वाले लोग वजन बढ़ने का ज्यादा जल्दी शिकार होते हैं, जिसके लिए कुछ लोग जिम जाकर वजन घटाते हैं तो कुछ लोग घर पर ही डाइटिंग करके वजन घटाने की कोशिश करते हैं. लेकिन क्या आप ने कभी सोचा है कि ब्लड ग्रुप पर बेस्ड डाइट भी आप का वजन घटाने में मदद कर सकती है? प्रौफेशनल डाइटीशियन का कहना है कि  हर व्यक्ति की पाचन और रोगप्रतिरोधक क्षमता उसके ब्लड ग्रुप पर निर्भर करती है. वहीं जांच में भी  पाया गया है कि ‘ओ’ ब्लड ग्रुप के व्यक्ति आमतौर पर एग्जिमा, एलर्जी, बुखार आदि से ज्यादा पीड़ित होते हैं.

1. थ्योरी के हिसाब से है पुराना ब्लड ग्रुप

रंजिनी दत्त कहती हैं कि ब्लड ग्रुप की थियोरी के हिसाब से यह ब्लड ग्रुप सब से पुराना माना जाता है. पुराना ब्लड ग्रुप कहने का तात्पर्य यह है कि यह ब्लड ग्रुप प्रागैतिहासिक मानव का ब्लड ग्रुप है. इस ब्लड ग्रुप वालों की पाचन क्षमता बहुत अच्छी होती है. इस ब्लड ग्रुप में हाई स्टमक ऐसिड (आमाशय में मौजूद अम्ल) होने के कारण हाई प्रोटीन को हजम कर पाना आसान होता है.

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आमतौर पर जिन का ब्लड ग्रुप ‘ओ’ है उन्हें प्रोटीन से भरपूर आहार लेना चाहिए. वे मांसमछली और किसी भी तरह का सी फूड खा सकते हैं. लेकिन मांसमछली का कैमिकलफ्री होना जरूरी है. हाई प्रोटीन फूड में भी कुछ चीजें वर्जित हैं. अगर इस ब्लड ग्रुप वाले छरहरी काया की चाह रखते हैं, तो उन्हें आटे और मैदा से बनी चीजें कम से कम खानी चाहिए. सब्जी और फल ज्यादा से ज्यादा खाने चाहिए. लेकिन पत्तागोभी, फूलगोभी, सरसों जितना कम खाएं उतना ही अच्छा है. इस के अलावा ड्राईफू्रट, दूध, मक्खन, चीज जैसे डेयरी प्रोडक्ट्स से भी दूर रहना इन के लिए बेहतर होगा. ब्रोकली, पालक, रैड मीट, सी फूड वजन कम करने में सहायक होते हैं. इस ब्लड ग्रुप के लिए एक्सरसाइज बहुत ही जरूरी है.

2. हजारों साल पुराना है ब्लड ग्रुप

ब्लड ग्रुप ‘ओ’ की ही तरह ब्लड ग्रुप ‘ए’ का वजूद भी हजारों साल पुराना है, लेकिन प्रागैतिहासकाल जितना नहीं. गुफाओं से निकल कर जब इंसानों ने खेती और पशुपालन का काम शुरू किया, तब से यह ब्लड ग्रुप वजूद में है.

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इस ब्लड ग्रुप वालों के लिए ऐनिमल प्रोटीन आमतौर पर अनुकूल नहीं होता है. इसलिए मांसमछली, चिकन और मिल्क प्रोडक्ट्स इन के लिए सही डाइट नहीं है. वह इसलिए कि इन का हाजमा आमतौर पर बहुत अच्छा नहीं होता है. इन्हें खानपान बहुत सोचसमझ कर करना चाहिए. इन्हें अपने डाइट चार्ट में बादाम, टोफू, बींस की सब्जी, फल जरूर रखने चाहिए. अपने ब्लड ग्रुप के अनुरूप भोजन के साथसाथ कुछ हलकाफुलका व्यायाम भी जरूर करना चाहिए.

3. ब्लड ग्रुप बी को होती है बैलेंस डाइट और एक्सरसाइज की जरूरत

ब्लड ग्रुप ‘ओ’ की तरह ही ब्लड गु्रप ‘बी’ के लोगों को भी बैलेंस डाइट और एक्सरसाइज की जरूरत होती है. गाय व बकरी का दूध लेना इस गु्रप के लोगों के लिए बेहतर माना गया है. मांसाहारी लोगों के लिए मटन, मछली आदि सर्वोत्तम रहता है. पर चिकन का अध्यधिक सेवन नुसानदायक हो सकता है. हरी सब्जियों को आहार में शामिल करते हुए नियमित व्यायाम अच्छा रहता है.

4. ब्लड ग्रुप एबी के हिसाब से ऐसे घटाएं वजन

उपरोक्त ब्लड ग्रुपों की तुलना में यह ‘एबी’ ब्लड ग्रुप काफी आधुनिक किस्म का ब्लड ग्रुप है. इस ग्रुप की अच्छी बात यह है कि इस गु्रप वाले लोग हर तरह का खाना खा सकते हैं. दरअसल, ब्लड ग्रुप ‘ए’ और ‘बी’ दोनों ही ग्रुप का खाना ‘एबी’ ब्लड गु्रप के लिए अनुकूल होता है. मांस, सी फूड, डेयरी प्रोडक्ट्स, फल, सागसब्जी, टोफू वे खा सकते हैं. जिन खाद्यपदार्थों को खाने से बचना चाहिए, वे हैं- रैड मीट, बींस की और कौर्न. इन चीजों में अनन्नास, सागसब्जी, सी फूड, टोफू वजन कम करने में सहायक होते हैं. डाइट के साथ इन्हें थोड़ा पैदल चलने, टहलने के साथ नियमित रूप से तैरना भी चाहिए.

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7 टिप्स: आंखों की सूजन ऐसे कम करें

कई बार सुबह उठने पर आंखों के आस पास की त्‍वचा सूज सी जाती है और देखने में  भी खराब लगती है. जब आंखें थकी हुई होती है या फिर हम ज्यादा तनाव में रहते हैं तो ऐसा होता है. ऐसे में आप कुछ घरेलू टिप्स अपना कर इस समस्या में राहत पा सकती हैं.

ठंडा टी बैग

अगर आप जल्‍दी में हैं और आपके पास स्‍लाइस काटने का टाइम नहीं है तो, टी बैग को पानी में भिगो कर तुरंत फ्रिज में रख दें. 2 मिनट के बाद निकाल कर उसे 20 से 25 मिनट तक आंखों पर रखें और लेट जाएं. उसके बाद जब उठें तब अपने चेहरे को ठंडे पानी से धो लें.

बर्फ वाला चम्‍मच

एक गिलास में कुछ बर्फ के टुकड़े डालें और उसमें 4 चम्‍मच डाल कर रखें. 2 चम्‍मच निकाल कर अपनी दोनों आंखों पर रखें उसके बाद जब दोनों चम्‍मच गरम हो जाएं तब गिलास में रखें अन्‍य दो चम्‍मच का प्रयोग करें. जब तक आंखों की सूजन खतम न हो जाए तब तक चम्‍मच बदल बदल कर प्रयोग करती रहें.

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आलू

आलू के गोल स्‍लाइस काट लीजिये और इन्‍हें अपनी आंखों पर रख लीजिये, ध्‍यान से आंखों की सूजन को आलू की स्‍लाइस से कवर कर लें. इसे 15 से 20 मिनट तक रखने के बाद खुद ही देख सकती हैं कि कैसे आंखों की सूजन गायब हो गई.

दूध

ठंडे दूध में कौटन के टुकड़ों को डुबो कर अपनी पलकों पर करीबन 20 से 30 मिनट तक के लिये रखे रहें. इससे आंखों की सूजन अपने आप ही काफी  कम हो जाएगी.

खीरा

ठंडे खीरे के पतले स्‍लाइस करें और उसे अपनी दोनों आंखों पर 25 मिनट तक के लिये रखें.

अंडे का सफेद भाग

एक ब्रश की सहायता से अंडे का सफेद भाग ले कर आंखों के आस पास लगाएं. ऐसा करने से आंखों के आस पास की त्‍वचा टाइट हो जाएगी और सूजन कम नजर आएगी. इसको 20 मिनट तक लगा रहने दें और बाद में ठंडे पानी से चेहरा धो लें.

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ठंडा पानी लें और उसमें कुछ बूंदे विटामिन ‘ई’ के तेल की डालें और फिर उसमें कौटन के टुकड़े डाल कर भिगोएं और इसे अपनी बंद आंखों पर 20 मिनट के लिये रखें.

गेम ओवर फिल्म रिव्यूः भ्रम के शिकार लेखक व निर्देशक’’

रेटिंगः दो स्टार

कलाकारः तापसी पन्नू,विनोदिनी वैद्यनाथन,अनीस कुरूविला व अन्य.

निर्माताः एस शशीकांत चक्रवर्ती और राम चंद्रन

निर्देशकः अश्विन सरवनन

लेखकः अश्विन सरवनन,काव राम कुमार,वेंकट कचारिया व श्रुति मदान

कैमरामैनः ए.वसंत

संगीतकारः रौन एथन योहन

अवधिः एक घंटा 42 मिनट

एक लड़की के किसी हादसे का शिकार हो जाने के बाद उसका परिवार व समाज उसके साथ सहानुभूति या हमदर्दी व्यक्त करने की बजाय उसी पर दोषारोपण करते हुए उसकी गलतियां गिनाने से बाज नही आते हैं. आए दिन लोग लड़की को ताना देते रहते हैं. दक्षिण के फिल्मकार अश्विन सरवनन इस मूल मुद्दे के साथ ही अंधेरे के डर से निजात पाने की बात करने वाली एक मनोवैज्ञानिक रोमांचक फिल्म ‘गेम ओवर’ लेकर आए हैं. तमिल व तेलगू  भाषा में बनायी गयी इस फिल्म को तमिल व तेलगू के साथ ही हिंदी में डब करके प्रदर्शित किया गया है.मगर वह फिल्म की विषयवस्तु के साथ न्याय करने में असफल रहे हैं.

कहानीः

फिल्म शुरू होती है गुड़गांव के सेक्टर 101 में रहने वाली एक कामकाजी लड़की के कत्ल के साथ.कातिल लड़की की हत्या करने के बाद उसके सिर को फुटबाल की तरह उछालने के बाद उसके धड़ को आग के हवाले कर देता है. इस डरावने दृश्य के बाद कहानी एक साल बाद गुड़गॉंव में ही रह रही पेश से वीडियो गेम डेवलपर सपना (तापसी पन्नू)से,जो कि अपनी घर की नौकरानी कलाअम्मा (विनोदिनी वैद्यनाथन)के साथ एक बड़े और आलीशान बंगले में रहती है. अनवर नामक एक चैकीदार भी है.उसके माता पिता दक्षिण भारत में कहीं रहते हैं. सपना खुद भी वीडियो गेम की दीवानी है.मगर वह नए वर्ष के जश्न की रात और अंधेरे के डर जैसी ऐसी मानसिक बीमारी से गुजर रही है,जहां अतीत में उसके साथ हुए हादसे की तारीख नजदीक के साथ ही उसका दम घुटने लगता है. उसे जबरदस्त डर को लेकर अटैक आते हैं. जिसके लिए वह एक मनोवैज्ञानिक डाक्टर (अनीस कुरूविला)  से इलाज भी करवा रही है. पता चलता है कि एक साल पहले नए साल के जश्न मनाने वाली रात सपना के साथ जो हादसा घटा था, उस रात वह अपने हाथ की कलाई पर टैटू करवा कर लौट रही थी.

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टैटू बनवाए एक साल पूरा होने वाला है. तो वहीं यह साल खत्म होकर नए साल की शुरूआत भी होने वाली है. उसके कुछ दिन पहले से उसके टैटू में तेज दर्द होने लगता है. तो वह टैटू आर्टिस्ट वर्षा(राम्श सुब्रमणियम) के पास जाती है, जिसने उसके हाथ पर टैटू बनाया था. तब सपना को पता चलता है कि उसका टैटू आम टैटू नहीं, बल्कि ‘मेमोरियल टैटू’है, जिसकी स्याही में किसी मृत इंसान की चिता की राख मिलाई जाती है. यह टैटू जीवित व्यक्ति अपने मरे हुए करीबी को अपने शरीर में अपने पास हमेशा को रखने के लिए बनवाता है. कुछ दिन बाद सपना डाक्टर के पास इस टैटू को निकलवाने जाती है, पर दर्द सहन नहीं होता, तो वापस आ जाती है.

इस बीच परिवार और समाज के तानों से तंग आकर सपना खुदखुशी करने की दो बार कोशिश भी करती है. दूसरी बार वह अपने दोनों पैर तुड़वा बैठती है और व्हील चेअर पर आ जाती है.

दो दिन बाद उसे फिर जाना है. मगर रात में एक महिला उससे मिलने आती है और वह बताती है कि टैटू आर्टिस्ट की गलती से उसके हाथ का टैटू उनकी 27 साल की मृत लड़की की राख से बनी स्याही से गोद दिया गया था.वह महिला बताती है कि उनकी बेटी तीन बार कैंसर पर विजय पा चुकी थी.वह बहुत लड़ाकू थी और वह सपना से कहती है कि उसे भी लड़ना होगा.उसके बाद सपना अपने हाथ से टैटू को निकलवाने का इरादा बदल देती है.सपना रात में निर्णय लेती है कि सुबह वह और कला अम्मा,सपना के माता पिता के पास जाएंगे.

मगर रात ग्यारह बजे से बारह बजे के बीच सपना का भयावह अतीत एक बार फिर उसे निगल जाने को तैयार है. इंटरवल के बाद सपना देखती महसूस करती है कि एक मनोवैज्ञानिक हत्यारा अपना चेहरा ढंक कर एक हाथ में लंबी तलवार,दूसरे हाथ में कैमरिकार्डर लेकर उसे मारने आया है. उसके बाद क्या होता है,यह जानने के लिए फिल्म देखकर समझें,तो ही बेहतर है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म का पहला दृश्य यह वादा करता है कि यह एक सायकोलौजिकल थ्रिलर मनोवैज्ञानिक रोमांचक फिल्म होगी.मगर कहानी जैसे ही आगे बढ़ती है,सब कुछ झूठ का पुलिंदा ही सामने आता है. इंटरवल के बाद तो लेखक व फिल्मकार स्वयं इस कदर कन्फ्यूज्ड हो गए हैं कि उनकी समझ में नहीं आया कि वह दर्शकों को क्या दिखाना चाहते हैं. मनोरोगी उद्देश्यहीन, तर्कहीन, अभद्र, आवेगी और क्रूर कृत्य देखकर दर्शक आश्चर्य चकित होता रहता है. यानी कि लेखक के तौर पर असफल रहे हैं. लेखन में दोहराव बहुत है.

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फिल्मकार ने क्लायमेक्स में यातना और डरावने दृश्यों के साथ ‘वीडियो गेम’के तीन पड़ाव (वीडियो गेम में गेम खत्म होने से पहले तीन मौके मिलते हैं.) को मिश्रित करने का प्रयास करते हुए पूरी कथा को अति जटिल व अविश्सनीय बना डाली.फिल्म में कुछ भी वास्तविक रहस्य या आश्चर्य जनक बात सामने नहीं आती. फिल्म में रोमांचक पलों का घोर अभाव है. निर्देशक कई जगह भटक गए हैं. आखिर मनोवैज्ञानिक हत्यारा यानी कि बुरा इंसान कौन हैं और क्यों हैं? वह ऐसा कुकर्म क्यों करता है? सपना की घरेलू व्यवस्थाएं जिस तरह की दिखायी गयी हैं, उसकी वजह क्या है? यह डरावनी फिल्म है? क्या हत्यारा प्रेत बाधा से ग्रसित है? क्या अलौकिक शक्तियों का मसला है? इस पर फिल्म कुछ नहीं कहती. लेखक व निर्देशक खुद भी भ्रम में है और दर्शक भ्रमित होता है.

पाश्र्व संगीतः

फिल्म के पाश्र्व संगीतकार रौन एथन योहन जरुर बधाई के पात्र हैं.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो सपना के जटिल किरदार में तापसी पन्नू ने अपने अभिनय से जान डाल दी है. तापसी अपने अभिनय से जिस पीड़ा को व्यक्त करती हैं, उसी के चलते दर्शक फिल्म देखते समय बंधा रहता है. बेबसी, खौफ और डिपरेशन के भावो को अभिनय से उकेरने में वह सफल रही हैं. विनोदिनी विद्यानाथन भी अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रही हैं.

Edited by Rosy

समर में ट्राय करें ये 4 फेस मास्क, कीमत सिर्फ 100 रूपए

समर में स्किन का ख्याल रखना जरूरी है और आजकल मार्केट में कईं ऐसे प्रौडक्ट है, जो समर में भी आपकी स्किन का ख्याल रखते हैं. कईं लोगों को मास्क के बारे में पता नही है. मास्क हमारी स्किन को हाइड्रेड करने के साथ-साथ पौल्यूशन से भी बचाने का काम करता है. मार्केट में मास्क की कईं ऐसी वैरायटी आ गई हैं, जिसमें भारत के बेस्ट नेचुरल प्रौडक्टस मिले हुए होते हैं. आज हम उन्हीं सस्ते और अच्छे नेचुरल फेस मास्क के बारे में बताएंगे, जिसे आप आसानी से 100 रूपए में खरीद सकते हैं. ये फेस मास्क आपकी स्किन को नेचुरली ब्यूटीफुल बनाने का काम करती है.

1. टी ट्री और एलोवेरा फेस मास्क का कौम्बिनेशन करें ट्राई

अगर आप भी एलोवेरा का इस्तेमाल अपनी स्किन पर करना पसंद करती हैं तो ये फेस मास्क आपके काम का है. ये फेस मास्क आपको नाइका रे स्टोर्स या फिर औनलाइन 100 रूपए में मिल जाएगा.

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2. आंवला और पपीते का कौम्बिनेशन है बेस्ट

आमतौर पर इंडिया में लोग पपीते स्किन की मसाज करना पसंद करते हैं. पपीता आपकी स्किन की टैनिंग के लिए भी काम आता है. अगर आप चाहें तो नाइका का गूसबैरी यानी आंवला और पपाया यानी पपीते का फेसमास्क अपनी स्किन के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं. ये आपको 100 रूपए में औनलाइन या औफलाइन मिल जाएगा.

3. चारकोल और बैम्बू का कौम्बिनेशन करें ट्राई

चारकोल स्किन को पौल्यूशन से दूर रखने में मदद करता है. ये आपकी स्किन को साथ रखने के साथ-साथ सुंदर बनाता है. वहीं इसका फेसमास्क आपको मास्क को घर पर बनाने की मेहनत को भी बचाता है. आप चारकोल और बैम्बू का फेसमास्क नाइका से औनलाइन या औफलाइन 100 रूपए में खरीद सकते हैं.

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4. नींबू और हनी का कौम्बिनेशन है परफेक्ट

अगर आप भी घर पर स्किन के लिए नींबू और हनी का इस्तेमाल करते हैं. तो ये फेस मास्क आपके लिए परफेक्ट होगा. ये स्किन के कलर को टैनिंग से बचाने और ग्लोइंग स्किन के लिए काम आता है. आप इसे मार्केट से 100 रूपए में खरीद सकते हैं.

उत्तराखंड की मशहूर झंगोरा की खीर करें घर पर ट्राई

देव की भूमि कहा जाने वाला उत्तराखंड जितना अपने पहाड़ों और मंदिरों के लिए फेमस है उतना ही वह अपने खाने के लिए पौपुलर है. जिनमें झंगोरा की खीर भी फेमस है. ये डिश हेल्दी के साथ-साथ टेस्टी होती है. ये कुमाउं और गढ़वाल के हिस्सों में सबसे आसानी बना सकते हैं.

हमें चाहिए

300 ग्राम झंगोरा (सांवा)

150 ग्राम शक्कर

2 लीटर दूध

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1/4 कप बादाम

बारीक टुकडे कर ले

1 छोटा चम्मच गुलाब का पानी

बनाने का तरीका

सबसे पहले झंगोरा को धोकर आधे घंटेभर पानी मे भिगो लें.

तब तक दूध उबालने रखें जबतक दूध उबल कर आधा न हो जाए.

आधा होने के बाद झंगोरा, चीनी, गुलाब जल, और बादाम डालें. 5 से 8 मिनट खीर को गाढ़ा होने तक पकाए.

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खीर को इच्छानुसार गाढा या पतला रखें और बादाम के टुकड़े से सजाकर परोसें. आप चिरौंजी ,केसर, काजू, किशमिश भी डाल सकते है. गुलाब जल भी डाल सकते है.

झंगोरा की खीर को अपने खाने के बाद मीठे में अपनी फैमिली और फ्रैंड्स को परोसे. आप चाहें तो इसे अपने व्रत रखने के दिनों में भी बना कर खा सकते है.

सहनशक्ति से आगे

राजस्थान के जिला धौलपुर के गांव राजाखेड़ा का रहने वाला ऋषि दिल्ली की एक कंपनी में नौकरी करता था. रहने के लिए उस ने जामुनापार क्षेत्र के मंडावली में किराए का एक

कमरा ले रखा था. ऋषि की पत्नी लक्ष्मी और 3 बच्चे खुशी, अंशु और गुंजन गांव में उस के मातापिता के साथ रहते थे.

2-4 महीने में जब छुट्टी मिलती थी तो वह 10-5 दिन के लिए गांव चला जाता था. पति के बिना लक्ष्मी की जिंदगी बेरंग सी थी, इसलिए जब भी ऋषि छुट्टी में गांव आता तो वह उस पर दबाव डालती कि या तो वह उसे और बच्चों को दिल्ली ले चले या फिर गांव में रह कर खेती करे.

इस बात को ले कर दोनों के बीच कई बार झगड़ा भी हो जाता था. ऋषि लक्ष्मी को समझाता, ‘‘गांव की जमीन पर किसी तरह पक्का मकान बन जाए, फिर दूध की डेयरी खोल कर यहीं साथसाथ रहेंगे. बच्चों का दाखिला भी किसी अच्छे स्कूल में करा देंगे.’’

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ऐसे में लक्ष्मी ठंडी सांस ले कर कहती, ‘‘पता नहीं कभी वह दिन आएगा भी या नहीं.’’

ऋषि जैसेतैसे लक्ष्मी को समझाता और वक्त से ताल मिला कर चलने की कोशिश करता. लक्ष्मी भी इस सब को वक्त के ऊपर छोड़ कर शांत हो जाती.

धौलपुर की सीमा आगरा के थाना क्षेत्र मनसुखपुरा से लगी हुई थी. इसी थाना क्षेत्र के बड़ागांव में ऋषि की पुश्तैनी जमीन थी. ऋषि उसी जमीन पर मकान बनवाना चाहता था. उस के मातापिता भी इस के लिए तैयार थे. लेकिन लक्ष्मी इस से संतुष्ट नहीं थी.

दरअसल उसे लगता था कि अगर ऋषि ने मकान बनवा भी लिया तो भी वह गांव में नहीं रहेगा. क्योंकि उसे दिल्ली का चस्का लग गया है. कभीकभी उसे यह भी लगता कि ऋषि ने दिल्ली में किसी औरत से मन लगा लिया है, इसलिए उस से बहाने बनाता रहता है.

घर के कामधाम और बच्चों में लक्ष्मी का दिन तो गुजर जाता लेकिन रातें काटनी मुश्किल हो जातीं. मोबाइल पर बात कर के मन को बहलाने की कोशिश करती, पर हसरतें उड़ान भरना बंद नहीं करतीं. उसे लगता कि उस की भावनाओं और जरूरतों को कोई समझना नहीं चाहता. न पति, न सासससुर.

दूसरी ओर ऋषि की जिंदगी भी बेहाल थी. वह सुबह को ड्यूटी पर जाता और रात को थकाहारा लौट कर सो जाता. अगली सुबह फिर वही कवायद शुरू हो जाती.

उसे सब से ज्यादा चिंता मकान बनाने की रहती थी, जिस के लिए वह पैसे जोड़ रहा था. पिछली बार जब वह गांव गया था तो उस ने दीपक से ईंटों के भाव वगैरह के बारे में बात भी की थी. पिता की मौत के बाद भट्ठे का काम दीपक ही संभाल रहा था.

ऋषि के घर से दीपक का घर करीब एक किलोमीटर दूर था. जब तब दीपक और ऋषि की मुलाकात होती रहती थी. दोनों एकदूसरे को अच्छी तरह जानते थे. दीपक भी शादीशुदा था. उस की शादी करीब 4 साल पहले हुई थी. उस का एक बेटा भी था. पिता की मौत के बाद दीपक ने भट्ठे का कारोबार बखूबी संभाल लिया था.

ऋषि सोच रहा था कि यदि दीपक मकान के लिए ईंटें उधार दे दे तो धीरेधीरे वह उस का उधारी चुका देगा. यही सोच कर ऋषि छुट्टी ले कर गांव आया. दीपक के भट्ठे पर जा कर उस ने अपनी परेशानी उसे बताई. साथ ही यह भी कि उसे कितनी ईंटों की जरूरत होगी. हिसाबकिताब लगा कर दीपक और ऋषि के बीच सौदा पक्का हो गया.

सौदा तो हो गया लेकिन ऋषि ने सोचा कि अगर दीपक का मूड बदल गया तो हो सकता है वह ईंटें उधार न दे. यही बात दिमाग में रख कर उस ने दीपक के साथ दोस्ती बढ़ानी शुरू कर दी. एक दिन उस ने दीपक को खाने पर घर बुलाया.

दीपक पहली बार ऋषि के घर गया था, जहां उस ने ऋषि की खूबसूरत पत्नी को देखा. लक्ष्मी बेबाक किस्म की औरत थी. खाना खाते वक्त दीपक का पूरा ध्यान लक्ष्मी पर ही केंद्रित रहा. खाना खत्म होने पर उस ने लक्ष्मी से कहा, ‘‘भाभी, आप खाना बहुत अच्छा बनाती हैं.’’

लक्ष्मी उसे तीखी नजरों से देखा और बोली, ‘‘मैं और भी कई काम अच्छे से करती हूं.’’

ऋषि को घर से दीपक वापस तो आ गया पर रात भर बिस्तर पर करवटें बदलता रहा. उसे लगा था कि लक्ष्मी अपने पति से खुश नहीं है. वह लक्ष्मी से दोबारा मिलना चाहता था, लेकिन उस की वजह होनी जरूरी थी, लेकिन फिलहाल वजह कोई नहीं थी. अगले दिन ऋषि का फोन आया तो उस ने बताया कि वह अपनी ड्यूटी पर दिल्ली आ गया है. इसलिए वह ईंटें उस के प्लौट पर पहुंचा देता, जिस से गांव लौटते ही वह काम शुरू करा सके.

ऋषि से बात कर के दीपक का दिल छलांगें भरने लगा, उस ने जवाब में कहा, ‘‘तुम भाभी का मोबाइल नंबर दे दो मैं ईंटें तैयार होते ही उन्हें बता दूंगा.’’

ऋषि ने लक्ष्मी का मोबाइल नंबर दीपक को दे दिया. उस ने सोच लिया कि आगे की बातें लक्ष्मी संभाल लेगी.

कुछ ही दिनों में ऋषि का मकान बन गया. लक्ष्मी खुश थी कि अब वह सासससुर से अलग रह कर मनचाही जिंदगी जी सकेगी. उस ने दीपक की नजरों की भाषा समझ ली थी. वह यह भी जानती थी कि दीपक के पास बहुत पैसा है और उस के पास ख्वाहिशें. ऋषि की कम कमाई की वजह से उस की ख्वाहिशें अधूरी रह गई थीं.

मकान तैयार हो चुका था. पत्नी और बड़ी बेटी खुशी के साथ बड़ागांव स्थित नए मकान में रहने के लिए आ गया. हालांकि उस के मांबाप इस पक्ष में नहीं थे कि लक्ष्मी नए मकान में रहे. दोनों छोटे बच्चों अंशु और गुंजन को दादादादी ने बड़ागांव के मकान में भेजने से इनकार कर दिया. कुछ दिन तक तो खुशी गांव में मां के साथ रही. फिर एक दिन वह दादादादी के पास जाने की जिद करने लगी. इस बीच फोन के जरिए दीपक और लक्ष्मी काफी करीब आ गए थे.

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एक दिन मौका पा कर लक्ष्मी ने दीपक को घर आने का आमंत्रण दे ही दिया. दीपक के घर और ऋषि के नए घर के बीच करीब 3 किलोमीटर की दूरी थी. दीपक और लक्ष्मी के बीच जब मिलने की बात तय हो जाती तो दीपक अपनी मोटरसाइकिल से आ जाता और रात रंगीन कर के सुबह अपने घर लौट जाता था.

8 साल की खुशी एक दिन जिद कर के दादा के साथ राजाखेड़ा आ गई तो लक्ष्मी के सासससुर को बहू और दीपक की दोस्ती के बारे में पता चला. यह बात काफी चिंताजनक थी. एक दिन जानकी और राजाराम गए और लक्ष्मी से पूछा कि दीपक वहां क्यों आता है? लक्ष्मी समझ गई कि खुशी ने बताया होगा.

लक्ष्मी ने तुनक कर कहा, ‘‘लगता है, आप लोगों से मेरी खुशी सहन नहीं होती, जिस का उधार है वह तो लेने आएगा ही. इतना बुरा लग रहा है तो दीपक के पैसे आप ही चुका दीजिए. उसे पैसे मिल जाएंगे तो वह यहां नहीं आएगा.’’

राजाराम जानता था कि ऋषि जल्दी पैसा नहीं चुका पाएगा. लेकिन उसे बताना पड़ेगा कि गांव के लोगों को यह बात पता चल गई है कि राजाखेड़ा के भट्टा मालिक दीपक का लक्ष्मी के साथ मेलजोल काफी बढ़ गया है. लक्ष्मी कई बार दीपक के साथ आगरा में भी देखी गई थी. धीरेधीरे पानी सिर के ऊपर से गुजरने लगा था. कोई और राह न देख राजाराम ने तय कर लिया कि ऋषि को पूरी बात बता दी जाए.

आखिरकार उस ने फोन कर के ऋषि को बुलवा लिया. राजाराम ने ऋषि को समझा कर कहा कि बेहतर होगा कि बहू को अपने साथ दिल्ली में ही रखो. क्योंकि दीपक के साथ उस के नजदीकी संबंधों से बहुत बदनामी हो रही है.

ऋषि को इस बात का अंदाजा तक नहीं था कि लक्ष्मी उस के पीछे अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए दोस्त के साथ गुलछर्रे उड़ा रही है.

वह गुस्से में बड़ागांव पहुंचा और लक्ष्मी से पूछताछ की. वह बोली, ‘‘तुम मुझे क्यों दोष दे रहे हो दीपक का कर्जा क्यों नहीं चुका देते?’’

गुस्से में भरे ऋषि ने उसे 2-4 तमाचे जड़ दिए. फिर बोला, ‘‘देख मुझे गुस्सा न दिला. अपना बैग तैयार कर अब तू मेरे पास दिल्ली में रहेगी.’’

‘‘ओह तो अब तुम मुझे जबरन दिल्ली ले जाओगे. मैं तुम्हारी बीवी जरूर हूं, तुम्हारी गुलाम नहीं. शादी के बाद तुम ने मुझे 3 बच्चे तो दे दिए पर अभावों के अलावा कुछ नहीं दिया. अब मैं मनचाहा जीवन जीना चाहती हूं. जो आदमी उधारी तक नहीं चुका सकता वो मेरे लिए क्या करेगा?’’

ऋषि समझ गया कि गुस्सा करने से काम नहीं चलेगा. उसे खुद पर काबू रखना होगा. क्योंकि यदि लक्ष्मी ने कोई गलत कदम उठा लिया तो उस की वजह से पूरे समाज में बदनामी होगी, और 3 बच्चों को संभालना भी मुश्किल हो जाएगा.

उस ने लक्ष्मी को ऊंचनीच समझाने की कोशिश की और कहा कि वह जल्दी ही दीपक का कर्जा चुका देगा, चाहे उसे अपनी जमीन ही क्यों न बेचनी पड़े.

लक्ष्मी को इस सब से कोई मतलब नहीं था. दीपक उसे जब तब उपहार भी देता रहता था. इसलिए वह उसे किसी कीमत पर छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी.

अगले दिन वह ऋषि के भट्ठे पर गया. उस ने दीपक को धमकाया कि अगर वह अपनी करनी से बाज नहीं आया तो जान से जाएगा.

दीपक जानता था कि ऋषि बहुत गुस्से वाला है. दूसरे अगर उस की पत्नी को पता चल गया तो वह हंगामा खड़ा कर देगी. ससुराल वाले भी अपनी बेटी उस के यहां से ले जाएंगे.

आशिकी के इस खेल में दोनों पक्षों के लोग परेशान थे, पर ये दिल की लगी का खतरनाक खेल था. लक्ष्मी का फोन आने पर दीपक खुद को रोकने की कोशिश करता. पर लक्ष्मी उसे मजबूर कर देती और वह अपनी बाइक से उस के दरवाजे पर पहुंच जाता.

उधर ऋषि का दिल भी काम में नहीं लग रहा था. कंपनी के बौैस ने कई बार उसे टोका कि वह खुद को संभाले वरना नौकरी से हाथ धो बैठेगा. गांव में कोई कामधंधा नहीं था. अगर नौकरी छूट गई तो फिर वह क्या करेगा. यही सब सोच कर वह काफी तनाव में रहने लगा.

इसी बीच 23 फरवरी को वह गांव आया. वह पहले राजाखेड़ा पहुंचा और अपने पिता से कहा, ‘‘मैं ने कंपनी से कुछ पैसा उधार लिया है. वह मैं दीपक को दे देता हूं. अब मैं ओवरटाइम करूंगा और कंपनी का उधार चुका दूंगा.’’

उस के पिता परेशान हो गए. एक ओर बेटे पर आर्थिक बोझ पड़ रहा था, दूसरी ओर बेलगाम हो गई बहू बिरादरी में उन्हें बदनाम कर रही थी.

दीपक को पैसा देने के लिए ऋषि उस के  भट्ठे पर पहुंच गया. उस ने दीपक को पैसा देते हुए कहा, ‘‘जल्दी ही बाकी का पैसा भी दे दूंगा. लेकिन ये सोच लेना कि अगर तुम ने बड़ागांव में पैर भी रखा तो मारे जाओगे.’’

‘‘तुम मुझे धमका रहे हो, बड़ागांव क्या तुम्हारी जागीर है. मुझे ये सब क्यों सुना रहे हो. अपनी बीवी को क्यों नहीं समझाते. दरअसल, तुम में मर्दानगी है ही नहीं, तभी तो लक्ष्मी तुम से संतुष्ट नहीं है.’’

दीपक की बात सुन कर ऋषि आगबबूला हो गया. उस ने दीपक का गिरेबान पकड़ कर झिंझोड़ते हुए कहा, ‘‘आज के लिए इतना ही काफी है. पर मैं ने जो चेतावनी दी है, उस का खयाल रखना.’’

वहां से लौट कर ऋषि भारी मन घर में घुसने ही वाला था कि तभी गांव के एक लड़के ने टोका, ‘‘ऋषि भैया, आजकल बहुत जल्दीजल्दी घर के चक्कर लगा रहे हो. सब ठीक तो है न?’’

‘‘हां, सब ठीक है. कुछ जरूरी काम था.’’ कह कर ऋषि घर में घुस गया.

उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह अब करे तो क्या करे. काफी सोचविचार कर ने के बाद आखिर उस ने एक भयानक निर्णय ले लिया.

नफरत का गुबार उस के अस्तित्व में कड़वाहट भर गया. उस ने लक्ष्मी से ढंग से बात नहीं की. पूरी रात बिस्तर पर करवटें बदलता रहा. एक बात उस की समझ में नहीं आ रही थी कि इस पूरी स्थिति से कैसे निपटा जाए. कुछ भयानक होने वाला है, इस की आहट तक उसे सुनाई नहीं दी.

24 फरवरी को थाना मनसुखपुरा में तब होहल्ला मच गया जब एक नौजवान खून सने कपड़ों में थाने पहुंचा. थाना इंचार्ज ओ.पी. सिंह थाने में ही थे. मुंशी ने उन्हें बताया कि एक आदमी 2 खून कर के आया है.

ओ.पी. सिंह तुरंत उस व्यक्ति से मिले. उस की हालत देख कर ही वह समझ गए कि वह कोई बड़ा कांड कर के आया है. उन्होंने उस से पूछा, ‘‘बताओ, क्या कर के आए हो?’’

‘‘साहब, मेरी बीवी ने मेरा भरोसा तोड़ दिया. मैं ने गांव में मकान बनाया था. पर मुझे क्या पता था कि मेरी बदचलन बीवी दीपक से आशिकी कर बैठेगी. सर, जब मैं दिल्ली से चला था तो सोचा था कि लक्ष्मी को मना कर इस बार उसे और बच्चों को अपने साथ दिल्ली में रखूंगा. पर जब मैं ने देखा कि वह कमरा बंद कर के अपने यार के साथ मौजमस्ती कर रही है तो मेरा खून खौल उठा.

‘‘सामने फावड़ा रखा था बस फिर क्या था. मैं ने दीपक पर फावड़े से वार किया. और उसे बचाने के लिए लक्ष्मी सामने आई तो सोचा इसे भी मार डालने में ही भलाई है क्योंकि जो सजा एक खून करने पर होती है, वही दूसरा खून कर देने ही मिलेगी. साहब, मैं ने दोनों को मार डाला. आगे कानून जो भी सजा देगा मुझे मंजूर होगा.’’

दीपक की हत्या की खबर जब राजाखेड़ा पहुंची तो वहां हाहाकार मच गया. दीपक के चाचा राजेंद्र ने थाने में हत्या की रिपोर्ट दर्ज करा दी. दीपक और लक्ष्मी की नादानी से 2 परिवार उजड़ गए.

दरअसल, ऋषि दिल्ली वापस जाने का बहाना बना कर जैसे ही घर से निकला लक्ष्मी ने दीपक को फोन कर  दिया. दीपक को अपने घर में घुसते देख ऋषि हकीकत समझ गया. सब कुछ अपनी आंखों से देखा, तो उस का खून खौल उठा. उस ने दरवाजा खटखटाया.

दरवाजा खुलने पर अंदर बैठे दीपक को बाहर भागने का मौका नहीं दिया और फावड़े से काट दिया. बहुत दिनों से सिर पर बोझ था 2-2 कत्ल करने के बाद सिर का बोझ उतर गया. ऋषि को लग रहा था कि उस ने अपने परिवार के सम्मान की रक्षा की है, पर अब आगे क्या होगा कोेई नहीं जानता.

पोस्टमार्टम के बाद दीपक के शव को उस के घर वाले ले गए पर लक्ष्मी के शव को लेने कोई नहीं आया. सब के होते हुए भी पुलिस ने उस की लाश को लावारिस के रूप में अंतिम संस्कार करा दिया.

(कहानी सौजन्य- मनोहर कहानियां) 

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Father’s Day 2019: सबसे प्यारे ‘मेरे पापा’

तथागत कुमार, (नई दिल्ली)

मेरे पापा बहुत ही मेहनती, दयालु, प्यारे और सही का साथ देने वाले इंसान हैं, उनका नाम श्री मान राकेश कुमार योगी है. वे दिन में 14 घंटे काम करते हैं फिर भी थकान उनके चेहरे पर नहीं दिखती. वे अपनी जरूरतों को छोड़ पहले हमारा ध्यान रखते हैं.

मम्मा ने कैंसर के दौरान नहीं खोई हिम्मत…

जब मेरी मम्मा को मल्टीपलमायलोमा (ब्लड कैंसर) जैसी खतरनाक बीमारी हो गई थी और डाक्टरों ने भी जवाब दे दिया था तब पापा ही थे जिन्होंने हिम्मत नहीं हारी, मेरी मम्मा को भरपूर सपोर्ट किया… अपने प्यार से, अपने साथ से. मेरी मम्मा की विल पावर को बढ़ाने में पापा ने हमेशा मदद की. आज मेरी मम्मा बिल्कुल ठीक हो गई हैं. मां की बीमारी के वक्त पापा ने मुझे कभी भी मम्मा का मेरे पास न होने का अहसास तक नहीं होने दिया.

fathers-day

हर जन्म में आपका बेटा होना चाहूंगा…

मैं उस वक्त मात्र पांच साल का था. 2016 में मम्मा जब ठीक हो गयी तब हम सबको बहुत खुशी हुई, घर में जश्न भी हुआ. पापा ने हमेशा हमारा ख्याल रखा, पर  वे हमें थोड़ा कम ही समय दे पाते हैं क्योंकि पापा अपनी मेहनत और काम करके हमारी जिन्दगी को कुशल और बेहतर रखना चाहतें हैं. आप दुनिया के सबसे अच्छे पापा हैं और मेैं हर जन्म में आपका ही बेटा होना चाहूंगा. लव यू पापा…

मैं अपनी इस कहानी के माध्यम से संदेश देना चाहता हूं कि अपने मां-पापा का हमेशा ध्यान रखें, आप कभी भी साथ मत छोड़ना क्योंकि उन्होंने भी कभी आपका साथ नहीं छोड़ा और ना छोड़ेंगे…

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‘गृहशोभा’ दे रहा है आपको मौका अपनी बात उन तक पहुंचाने का. अपनी कहानी आप हमे इस ईमेल पर भेजें- grihshobhamagazine@delhipress.in

‘‘हमारा पंजाबी संगीत ग्रो हो रहा है, पर …’’- दिलजीत दोसांझ

पंजाबी सिनेमा में दिलजीत की पहचान कौमेडी एक्टर की है, जबकि उन्होंने पंजाबी में ‘पंजाब 1984’ और ‘सज्जन सिंह रंगरूट’जैसी सीरियस फिल्में की हैं, लेकिन बौलीवुड में उन्होनें अब तक गंभीर रोल ही निभाए हैं. पर 2019 में बौलीवुड में वह ‘अर्जुन पटियाला’ और ‘गुड न्यूज’ में वह कौमेडी करते नजर आएंगे. इन दिनों वह 21 जून को प्रदर्शित हो रही पंजाबी कौमेडी फिल्म ‘‘छड़ा’’ को लेकर चर्चा में हैं. बौलीवुड में उनकी सफलता के चलते पंजाबी फिल्म ‘‘छड़ा’’को हिंदी के सब टाइटल्स के साथ प्रदर्शित किया जाएगा. हाल ही में दिलजीत दोसांझ से हमारी एक्सक्लूसिंब बातचीत हुई, जो कि इस प्रकार रही..

सवाल- आप सिंगर और अभिनेता हैं.पंजाबी के अलावा हिंदी में भी काम कर रहे हैं. तो वहीं आप हर साल विदेशों में अपने संगीत के कार्यक्रम भी करते रहते हैं. इतना सब कुछ कैसे कर लेते हैं?

बड़ी मेहनत करनी पड़ती है.वैसे मैं हर साल दो पंजाबी फिल्में और दो हिंदी फिल्में करता हूं, बाकी समय मैं संगीत को देता हूं. मगर मैं अपनी निजी जिंदगी और परदे की जिंदगी को एक दूसरे से अलग रखता हूं. मुझे लगता है कि मैं जो भी काम कर रहा हूं, उसे करते हुए इंज्वौय कर रहा हूं, इसलिए कर पा रहा हूं. जहां तक किरदारों को आत्मसात करने का सवाल है तो मैं हमेशा लोगों को आब्जर्व करता रहता हूं,यह बात मेरे अभिनय में मददगार साबित होती है.

सवाल- बौलीवुड में आपने गंभीर किरदार निभाते हुए कदम रखा और एक पहचान बन गयी.पर अब आप बौलीवुड में भी कौमेडी फिल्में‘‘अर्जुन पटियाला’’और ‘‘गुड न्यूज’’ कर रहे हैं?

मैं फिल्म की पटकथा और किरदार को महत्व देता हूं.पंजाबी सिनेमा में तो अस्सी प्रतिशत कौमेडी फिल्में ही की हैं. मुझे कौमेडी के अलावा सीरियस व हर तरह के किरदार निभाने में मजा आता है. ‘अर्जुन पटियाला’ और ‘गुड न्यूज’कौमेडी फिल्में हैं,पर मेरे किरदार काफी अर्थपूर्ण हैं. दूसरी बात ‘अर्जुन पटियाला’’में मैने जिस तरह का किरदार निभाया है और जिस तरह की कौमेडी की है,उस तरह की कौमेडी अब तक मैने किसी फिल्म में नही की.मुझे हमेशा अच्छे किरदार की दरकार रहती है.

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आप जानकर हैरान होंगे कि मेरी पंजाबी कौमेडी फिल्म ‘‘जट एंड जूलिएट’’ने पंजाबी सीरियस फिल्म‘‘पंजाब 1984’’के मुकाबले कई गुणा ज्यादा पैसा कमाया.इसके बावजूद जब भी लोग मुझसे मिलते हैं,तो ‘‘पंजाब 1984’’की बात करते हैं.‘‘पंजाब 1984’’की वजह से मुझे बॉलीवुड में आने का मौका मिला.

सवाल- आपने पंजाबी में 15 फिल्में की हैं और हिंदी में 6 फिल्में की हैं.इनमें कोई ऐसा किरदार था,जिसने आपकी निजी जिंदगी पर असर किया हो?

आज मैं आपसे निवेदन करना चाहूंगा कि यदि आपने हमारी पंजाबी फिल्म ‘‘पंजाब 1984’’नही देखी है,तो जरूर देखिए.यह फिल्म इस वक्त नेटफिलिक्स पर मौजूद है.इसे  नेशनल अवार्ड मिला था. यह फिल्म 4 जून 194 की ‘आपरेशन ब्लू स्टार’की घटना पर है. मेरे अब तक के करियर की बेहतरीन फिल्म है और इसमें मैंने बेहतरीन किरदार निभाया.इस फिल्म के साथ मेरे लगाव की वजह बहुत बड़ी है. मेरा जन्म 1984 का है,जब 1984 में दरबार साहब में घटना घटी थी, जिसे लोग दंगा कहते हैं,जबकि दंगा शब्द गलत है.वह सरकार द्वारा दरबार साहब पर किया गया अटैक था. दंगे तब होते हैं, जब लोग आपस में भिड़ जाएं, एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाएं. पर उस वक्त की सरकार के द्वारा किया गया अटैक था. उस वक्त की सरकार ने ऐसा किया था. 1984 में दरबार साहब में तमाम बेकसूर लोग मारे गए थे.उस घटनाक्रम और उस दिन की दर्दनाक कहानीयों को सुन सुनकर मैं बड़ा हुआ हूं. जब मैं दरबार साहब जाता था, तो देखता था कि इस इमारत को ढहा दिया गया था,जो परिक्रमा क्षेत्र है, वहां लोगों ही लाशें थीं. तो यह सारी कहानीयां मेरे जेहन में बैठी हुई थी. जब मैं कौमेडी फिल्म ‘जट एंड ज्यूलिएट’ की शूटिंग कर रहा था, तब चर्चा हुई थी कि इस विषय पर फिल्म बननी चाहिए.यह बहुत ही संजीदा विषय है, लेकिन हम लोगों ने इस पर फिल्म बनायी.नेशनल अवार्ड मिला. इस फिल्म में किरण खेर व पवन मल्होत्रा सहित कई बौलीवुड कलाकार हैं. जब मैं इस फिल्म की शूटिंग कर रहा था, तो मेरे अंदर से आग निकली, जो मैंने सुन रखी थी .

सवाल- फिल्म ‘‘पंजाब 1984’’की शूटिंग के दौरान की कुछ यादें बयां करना चाहेंगे?

-मैं जिस पीड़ा से गुजर रहा था, उसे शब्दों में बयां नहीं कर सकता. पर हम इस फिल्म के लिए पाकिस्तानी सीमा से जुडे़ पंजाब के एक गांव में शूटिंग कर रहे थे.उस गांव के बुजुर्गों ने हमें बताया कि किस तरह से अटैक हुआ था. उस वक्त उन्होंने कुछ नयी जानकारी दी. क्योंकि उनके सामने सब कुछ हुआ था, जिसे हमने अपनी फिल्म का हिस्सा बनाया. उन बुजुर्गों के घरों में तमाम तस्वीरें थी. गांव के लोगों ने हमें अपने बेटों की तस्वीरें दिखायीं, जिनकी निर्मम हत्या की गयी थी. यह बहुत बड़े स्तर की बात है. पर जो हुआ है, गलत हुआ है. हम शूटिंग करते हुए सोचते थे कि आखिर ऐसा हो कैसे सकता है? उस वक्त हमारे दिमाग में बात आयी थी कि यदि दूसरी बार ऐसा हो गया, तो? सोच की बात है. हम तो भगवान से चाहेंगे कि ऐसा दुबारा ना हो.

सवाल- आपकी पंजाबी फिल्में अब तक पंजाब में ही प्रदर्शित होती रही हैं. पर पहली बार आपकी पंजाबी फिल्म ‘‘छड़ा’’ मुंबई में भी प्रर्दशित हो रही है?

-जी हां! दर्शक हमारी फिल्म देखना चाहते हैं. इसलिए इसे मुंबई, दिल्ली सहित कई दूसरे शहरों में भी प्रदर्शित करने की योजना है. हमने इसमें हिंदी में सब टाइटल्स दिए हैं.

सवाल- पंजाबी फिल्म‘‘छड़ा’’क्या है?

देखिए,छड़ा का मतलब होता है,ऐसा पुरूष जिसकी शादी की उम्र बीत गयी हो,(यह ध्यान रखे कि कुंवारा लड़का वह होता है, जिसकी उम्र शादी करने योग्य हुई हो, मगर तीस साल से अधिक उम्र के लड़के की शादी न हुई हो, तो उसे छड़ा कहते हैं.) मगर उसकी शादी न हो रही हो.तो यह फिल्म ऐसे ही इंसान की कहानी है. इसकी उम्र बीत चुकी है, मगर शादी नहीं हो रही है. यह फिल्म रोमांटिक कौमेडी है. इसमें मैंने एक छड़ा का ही किरदार निभाया है जो कि शादी का फोटोग्राफर है.

सवाल- संगीत के क्षेत्र में आपकी सक्रियता बरकार है?

-जी हां! मेरे सिंगल गाने आ रहे हैं. मैं अभी अगले सप्ताह कनाडा और अमेरिका में अपने शो करने जा रहा हूं.

सवाल- एक वक्त वह था जब संगीत के अलबम और कैसेट बिका करते थे. अब सिंगल गीतों का जमाना आ गया. इससे एक सिंगर व कलाकार के तौर पर आप क्या फर्क महसूस करते हैं?

-देखिए, समय और तकनिक में बदलाव के साथ साथ हर चीज की डिमांड बदलती रहती है. अब डिजिटल मीडियम है, तो लोग सिंगल गाने पसंद कर रहे हैं. मुझे सिंगल गानों के चलन में कोई बुराई नजर नहीं आती.हर सिंगल गाने का वीडियो बनता है. जबकि पहले एक संगीत अलबम में पांच से आठ गाने हुआ करते थे. उनमें से दो तीन गानों का ही वीडियो बनता था. बाकी गाने ऐसे ही रह जाते थे. अब अच्छी बात यह है कि हर गाने का वीडियो बन जाता है.

सवाल- मगर पहले कैसट या अलबम की बिक्री को लेकर नए नए रिकौर्ड बना करते थे, उस वक्त जो खुशी होती थी,वह तो आज…?

रिकौर्ड अब भी बन रहे हैं.अब आप सुनते होंगे कि इस गाने को इतने मिलियन लोगों ने देख लिया.जब हमारा कोई गाना ‘आई टूयन’पर नंबर वन होता है,तो रिकॉर्ड बनता ही है.पहले कैसेट या अलबम की विक्री के आंकड़े हमारी अपनी फिल्म इंडस्ट्री तक सीमित रहते थे. लेकिन ‘आई ट्यून’के आंकड़े पूरे विश्व में जाते हैं. इससे हम पूरे विश्व में पहुंच रहे हैं. दूसरी बात अलबम या कैसट की बिक्री का आंकड़ा तो संगीत कंपनियां दिया करती थी. जबकि सिंगल गानों की लोकप्रियता इंटरनेट पर है, जो कि खुली किताब है. पहले विदेशों में हमारे एलबम नही बिकते थे. हमारे अपने देश वरासी यहां से अलबम या कैसट खरीद कर विदेश ले जाते थे. लेकिन अब डिजिटल और इंटरनेट के जमाने में हमारा सिंगल गाना पूरे विश्व में मौजूद है. अमरीका में बैठा इंसान एक क्लिक पर देख सकता है. कनाडा में बैठा इंसान पता लगा सकता है कि भारत में कौन सा गाना ‘नंबर वन’ है? इतना ही नहीं अब तो डिजिटल से बहुत अच्छे पैसे मिल रहें हैं. तो डिजिटल के आने से नुकसान नहीं फायदा ही है.

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सवाल- आप मानते हैं कि डिजिटल से संगीत को फायदा हुआ?

-सौ प्रतिशत हुआ है. तमाम गायकों व संगीतकारों ने यूट्यूब पर अपने अपने खुद के चैनल शुरू कर दिए. कई कंपनियों ने अपने चैनल शुरू कर दिए.मेरा अपना खुद का यूट्यूब पर संगीत का चैनल है. डिजिटल मीडियम के आने के बाद भी पंजाबी संगीत नहीं मरा, पंजाबी संगीत आज भी ग्रो कर रहा है. मगर बौलीवुड संगीत की हालत खराब हुई है.

सवाल- पंजाबी संगीत लोकप्रियता बढ़ती जा रही है.पर बौलीवुड संगीत खत्म हो गया. इसकी क्या वजह आपकी समझ में आ रही है?

इसके बारे में मुझे कुछ नहीं पता. मैं इतना जानता हूं कि जिस पंजाबी संगीत में मैं काम कर रहा हूं,वह लगातार ग्रो कर रहा है.मजेदार बात यह है कि पंजाबी में जो गाना हिट हो जाता है, पांच छह साल बाद वह यहां हिंदी में आ जाता है. जब हिंदी में यह गाना हिट होता है,तो हमें लगता हे कि हमने तो इसे पांच छह साल पहले सुन लिया था. यह गाना पहले ही हिट था,अभी तो हिट नही हुआ. जबकि बालीवुड वाले कहते हैं कि हमारा गाना हिट हो गया. मैं कई बार कहता हूं कि यही गाना छह साल पहले हमारे पंजाब में हिट हो चुका है.

सवाल- क्या यह माना जाए कि हिंदी वाले पंजाबी गानों की नकल कर रहे हैं?

-नहीं..नहीं..‘नकल’बहुत बुरा शब्द है. अब हिंदी वालों को पंजाबी गाना अच्छा लग रहा है और वह उसे हिंदी में ले रहे हैं, तो यह अच्छी बात है.

सवाल- आप विदेशो में जब म्यूजिकल कंसर्ट करने जाते हैं, तो क्या रिस्पांस मिलता है?

विदेशों में लोग हमें बहुत सुनना चाहते हैं. हम अगले हफ्ते ही कनाडा और अमरीका म्यूजिक कंसर्ट करने जा रहे हैं. वहां बहुत बड़े स्तर पर हमारे म्यूजिक कंसर्ट होते हैं. लोग बहुत इंज्वौय करते हैं. आपको जानकर हैरानी होगी कि कनाडा और अमरीका जैसे देशों में बॉलीवुड के जो शो होते हैं, उनके मुकाबले हमारा शो कई गुणा बेहतर होता है. वह हमसे पंजाबी गाने ही ज्यादा सुनना चाहते हैं. हमारे म्यूजिकल कसंर्ट में भारत व पाकिस्तान से ही ज्यादा लोग आते हैं. मजेदार बात यह हे कि पंजाबी ही नहीं गुजराती लोग भी हमारे गाने को सुनना चाहते हैं.

सवाल- आपके गाने को लेकर कोई ऐसी प्रतिक्रिया मिली हो, जो याद रहे?

जब हमारा गाना रिलीज होता है, तो ढेर सारी प्रतिक्रियाएं आती हैं. विदेशों में जो हमे सुनने आते हैं,वह भी अपनी बात कहते हैं. सच यह है कि मैं इन्हें बहुत ज्यादा गंभीरता से नहीं लेता, फिर चाहे वह प्रतिक्रिया अच्छी हो या बुरी. मेरी राय में यदि कलाकार के दिमाग में प्रशंसकों की राय बैठ जाए, तो उसकी जिंदगी गड़बड़ हो जाती है. मैं प्रशंसकों की राय सुनकर मुस्कुराता हूं और आगे बढ़ जाता हूं.

सवाल- आप अपने म्यूजिक चैनल पर किस तरह के गाने देते हैं?

हम यूट्यूब चैनल पर अपनी पसंद के ही गाने देते हैं. कई बार अपने चैनल पर रिलीज करने के बाद किसी संगीत कंपनी से उस गाने की मांग आती है, तो हम उसे बेच भी देते हैं.

सवाल- क्या संगीत की रियाज आज भी जारी है?

सर जी, आपने तो मेरी दुखती रग पर हाथ रख दिया. मैं हर दिन संगीत की रियाज करना चाहता हूं. मगर अभिनय में व्यस्तता के चलते हो नही पा रहा है. पहले मैं हर दिन नियमित रियाज किया करता था. रियाज ना कर पाने का असर यह हुआ कि अब मैं पहले जैसा अच्छा सिंगर नहीं रहा. देखिए, संगीत जैसे क्षेत्र में यदि आपने रियाज नही किया, तो उसका असर आपके संगीत में आता ही है.यदि पहलवान रोज रियाज नहीं करेगा, रोज पहलवानी नही करेगा, तो उसका असर उसकी पहलवानी में आएगा. मैं खुद महसूस करता हूं कि रियाज ना कर पाने की वजह से मेरी गायकी कमजोर हो गयी है. मैं इस सच को जानकर भी कुछ नही कर पा रहा हूं. मैं अपनी तरफ से बहुत कोशिश करता हूं कि रियाज कर लूं,पर कई बार हमें सुबह 6 बजे निकलना होता है, फिर देर रात तक शूटिंग होती है. कई बार तो मुझे चार घंटे से ज्यादा सोने को नही मिलता.हम जिम तक नही जा पाते हैं.ऐसे में संगीत का रियाज नही हो पाता. अभिनय में हम सिर्फ सेट पर जाकर हम अभिनय नहीं करते हैं, उससे पहले भी हमें किरदार पर ध्यान केंद्रित करना होता है. कई बार तो कुछ किरदारों के लिए खास तरह की तैयारी करती पड़ती है. मसलन, मैंने अपनी जिंदगी में कभी हौकी नहीं खेला था, लेकिन फिल्म ‘‘सूरमा’’ में अभिनय करने के लिए मुझे तीन माह तक हौकी खेलना सीखाना पड़ा.

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सवाल- डिजिटल मीडियम के चलते वेब सीरीज बहुत बन रही हैं?

-जी हां मुझे भी पिछले साल एक वेब सीरीज करने का आफर मिला था, अब नाम तो नहीं लूंगा. इसमें बहुत अच्छा किरदार था.सब्जेक्ट अच्छा था.लेकिन डेट क्लैश हुई और नही कर पाया.

सवाल- डिजिटल मीडियल और वेब सीरीज के चलते कही सिनेमा पर संकट तो नही आ जाएगा?

ऐसा कभी नही होगा. जब वीसीआर आया था और लोगों ने अपने घरों में वीडियो कैसेट लेकर फिल्में देखना शुरू किया था, तब भी लोगों ने ऐसा ही कहा था पर सिनेमा कभी खत्म नही हो सकता. लोग थिएटर जाना कभी बंद नही कर सकते. अब तो आए दिन नए सिनेमा घर खुल रहे हैं. देखिए,भारत में सिनेमा देखने जाना बाहर घूमने जैसा होता है. अमेरिका या कनाडा में हमसे पहले वेब सीरीज बनने लगी थी, पर वहां भी लोग अभी भी सिनेमाघर जा रहे हैं.

मैं तो कनाडा व अमरीका बहुत ज्यादा जाता रहता हूं. वहां पर हमारे परिवार के लोग भी हैं. वहां मैंने महसूस किया कि दक्षिण भारत से गए हमारे लोग वहां पर बडे़ पदों पर हैं. अच्छा पैसा कमा रहे हैं. वह वहां पर अपनी भाषा यानी तमिल, तेलगू व मलयालम की फिल्में पूरे परिवार के साथ देखने जाते हैं. मैंने पाया कि वहां के सिनेमाघर भरे होते हैं. आप यकीन करें या ना करें मगर बौलीवुड की बनिस्बत दक्षिण भारत की फिल्में विदेशों में बहुत चलती हैं. यह सुनी सुनायी बात नही है. मुझे याद है एक दक्षिण भारत की फिल्म वहां पूरे डेढ माह तक सिनेमा से उतरी ही नही.

Edited by Rosy

सोसायटी में समलैंगिक व्यक्ति को एक्सेप्ट करने की है जरुरत– कोंकना सेन

बांग्ला फिल्म ‘इंदिरा’ में बाल कलाकार के रूप में काम करने वाली अभिनेत्री कोंकना सेन शर्मा, निर्माता,निर्देशक और लेखक अपर्णा सेन की बेटी है. कलात्मक माहौल में पैदा हुई कोंकना ने लीग से हटकर फिल्मों को एक अलग दिशा देकर अपनी पहचान बनाई है. इस बार स्वभाव से स्ट्रेट फौर्वड कोंकना की शोर्ट फिल्म ‘ए मानसून डेट’ रिलीज हो चुकी है. जिसमें उन्होंने एक यंग वुमन की भूमिका निभाई है, जो अपने प्यार को पाने के लिए निकल पड़ती है. उनसे मिलकर बात हुई पेश है अंश.

सवाल- इस फिल्म को करने की खास वजह क्या है?

यह एक ऐसा चरित्र है जो प्यार को खोजती है. असल में कोई भी व्यक्ति चाहे वह समलैंगिक क्यों न हो, प्यार चाहता है और वह अपनी कमी को समझता है, पर एक सच्चे प्यार की उसे भी तलाश रहती है. मैंने देखा है कि अधिकतर सही रंग रूप के दिखने वाले को ही पर्दे पर दिखाया जाता है. अलग दिखने वाले किसी को भी कोई पर्दे पर नहीं देखना चाहता और इसी बात ने मुझे इस फिल्म को करने के लिए प्रेरित किया.

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सवाल- इस फिल्म की कौन सी बात आपको अच्छी लगी?

मैं उस चरित्र को करना पसंद करती हूं, जिसमें मुझे कुछ ग्रोथ दिखाई पड़े, जो हमारे दिल को बदल दे. इस फिल्म में मुझे यही सब मिला है. इसके अलावा लेखक गजल और निर्देशक तनुजा चंद्रा जो बहुत ही टैलेंटेड है. गजल धालीवाल खुद एक ट्रांसजेंडर है. उन्होंने कहानी को बहुत ही अच्छी तरीके से कही है.

सवाल- समलैंगिक व्यक्ति को लोग अच्छी नजर से नहीं देखते, समाज और परिवार उन्हें स्वीकार नहीं कर पाते, आपकी सोच इस बारें में क्या है?

वर्ल्ड हेल्थ और्गनाइजेशन ने अभी उन्हें मानसिक रोगी कहने से नकारा है और ये सही भी है. हमारे समाज और परिवार के सोच को भी बदलने की जरुरत है. हमारे कई पुराने संस्कार को भी आज बदलने की जरुरत है. आज भी कई लोग ऐसे है जो शारीरिक रूप से अपंग बच्चे को मरने के लिए छोड़ देते है,जो गलत है. इसमें उन्हें शिक्षा की सबसे अधिक जरुरत है. जिससे लोग अपने आप को कंट्रोल कर सकें और गलत काम करने से परहेज करें. अलग व्यवहार करने वाले व्यक्ति यानि एलजीबीटी समुदाय को भी समाज के सामने लाने से घबराएं नहीं और इसके लिए फिल्म्स,विज्ञापनों, नाटकों, मीडिया, व्यावसायिक क्षेत्रों आदि सभी में उनकी भागीदारी को बढ़ाने की जरुरत है, इससे उन्हें लोग मुख्यधारा में स्वीकार करेंगें. इसका उदहारण पर्यावरण को लेकर समझा जा सकता है. आज के बच्चे पर्यावरण को लेकर काफी जागरूक है. इसकी वजह उन्हें स्कूल के कर्रिकुलम में इसे शामिल करना है. ऐसे किसी भी चीज की जागरूकता को बढाने के लिए बचपन से बच्चों को इसकी शिक्षा देना बेहद जरुरी है.

सवाल- आप किसी भी फिल्म को चुनते समय किस बात का ध्यान रखती है?

यह अलग-अलग होता है अगर कोई बड़ा निर्देशक है तो मैं अधिक नहीं सोचती. इसके अलावा जिस निर्देशक के साथ आपकी ट्यूनिंग अच्छी है, उसके विजन को समझना आसान होता है और काम भी अच्छा होता है. साथ ही पर्दे पर वह कैसे कहानी को कहने जा रहा है, उसे देखती हूं.

सवाल- आप अपनी जर्नी से कितना संतुष्ट है?

मैंने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा, जो जैसे आता गया, मैं करती गयी. मुझे कभी लगा नहीं कि मैंने इतना समय इंडस्ट्री में बिताया है. मैं खुश हूं कि मैंने इतना काम किया और आज यहां हूं.

सवाल- आपने अभिनय के अलावा लेखन और निर्देशन का भी काम किया है, किसमें अधिक अच्छा महसूस करती है?

मुझे निर्देशन में इसलिए अधिक अच्छा लगा, क्योंकि मैंने जो लिखा उसका निर्देशन किया, इसमें मैं अपनी भावनाओं को पर्दे पर उतरने में सक्षम रही. आगे और भी क्रिएटिवली स्ट्रोंग कहानी कहने की इच्छा रखती हूं.

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सवाल- आपने कई बड़े-बड़े निर्देशकों के साथ काम करने के अलावा अपनी मां अपर्णा सेन के साथ भी काम किया है, इससे आप कितनी ग्रो हुई?

मैं लकी हूं कि मुझे अच्छे और बड़े निर्देशकों के साथ काम करने का अवसर मिला. जिसमें वे लोग अधिक थे जो मेरे साथ पहली फिल्म बना रहे थे. जिसमें सोनाली बासु, आयान मुखर्जी, जोया अख्तर आदि कई है. इसके अलावा मैंने अपनी मां के साथ भी काम किया है. बचपन से ही मैंने औब्जरवेशन के द्वारा काफी चीजें उनसे सीखी है. इसमें मैंने देखा है कि मां बहुत ही यंग ऐज में घर को संभालना, बच्चों की देखभाल करना, घर का इंटीरियर करना, औफिस में काम करना, फिल्में बनाना आदि कई काम साथ-साथ किया है. इससे मुझे उनसे कई चीजें सीखने का मौका मिला. कुछ चीजे मेरे ना पसंद होते हुए भी मैंने देखा है, मसलन निर्देशक का सेट पर चिल्लाना, गुस्सा होना आदि जिसे मैं कभी भी करना नहीं चाहती.

सवाल- मां की कौन सी सीख को जिंदगी में उतरना चाहती है?

मेरी मां हर काम को कर सकती है. उनके लिए असंभव कोई चीज नहीं थी. इसलिए आज अगर मैं ऐसे किसी परिस्थिति से गुजरती हूं, तो उन्हें याद करती हूं और काम हो जाता है. उन्होंने मुझे पूरा वर्ल्ड दिखा दिया है. निर्देशक के रूप में भी वह बहुत अच्छी और एनर्जेटिक है. मेरे दोस्त भी उनसे मिलना पसंद करते है.

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 Edited by Rosy                           

ये घर बहुत हसीन है: भाग-3

सहसा आर्यन का फ़ोन बज उठा. आर्यन सब भूल जूस का गिलास टेबल पर रख बच्चे से बातें करने लगा.
रात को अकेले बिस्तर पर लेटी हुई वान्या विचित्र मनोस्थिति से गुज़र रही थी. ‘कभी लगता है आर्यन जैसा प्यार करने वाला न जाने कैसे मिल गया? लेकिन अगले ही पल स्वयं को छला हुआ महसूस करती हूं. सिर से पांव तक प्रेम में डूबा आर्यन एक फ़ोन के आते ही सब कुछ बिसरा देता है? क्या है यह सब?’ आर्यन की पदचाप सुन वान्या आंखें मूंदकर सोने का अभिनय करते हुए चुपचाप लेटी रही. आर्यन ने लाइट औफ़ की और वान्या से लिपटकर सो गया.

अगले दिन भी वान्या अन्यमनस्क थी. स्वास्थ्य भी ठीक नही लग रहा था उसे अपना. सारा दिन बिस्तर पर लेटी रही. आर्यन बिज़नस का काम निपटाते हुए बीच-बीच में हाल पूछता रहा. वान्या के घर से फ़ोन आया. अपने मम्मी-पापा को उसने अपने विषय में कुछ नहीं बताया, लेकिन उनकी स्नेह भरी आवाज़ सुन वह और भी बेचैन हो उठी.

रात को आर्यन खाने की दो प्लेटें लगाकर उसके पास बैठ गया. टीवी औन किया तो पता लगा कि अगले दिन ‘जनता कर्फ़्यू’ की घोषणा हो गयी है.

“अब क्या होगा? लगता है पापा का कहा सच होने वाला है. वे आज ही फ़ोन पर कह रहे थे कि लौकडाउन कभी भी हो सकता है.” वान्या उसांस लेते हुए बोली.

आर्यन ने उसके दोनों हाथ अपने हाथों में ले लिए, “घबराओ मत तुम्हें कोई काम नहीं करना पड़ेगा. प्रेमा कहीं दूर थोड़े ही रहती है कि लौकडाउन में आएगी नहीं. तुम क्यों उदास हो रही हो? लौकडाउन हो भी गया तो हम दोनों साथ-साथ रहेंगे सारा दिन….मस्ती होगी हमारी तो!”

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वान्या को अब कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था. पानी पीकर सोने चली गयी. मन की उलझन बढ़ती ही जा रही थी. ‘पहले क्या मैं कम परेशान थी कि यह जनता कर्फ़्यू ! लौकडाउन हुआ तो अपने घर भी नहीं जा सकूंगी मैं. आर्यन से फ़ोन के बारे में कुछ पूछूंगी और उसने कह दिया कि हां, मेरी पहले भी शादी हो चुकी है. तुम्हें रहना है तो रहो, नहीं तो जाओ. जो जी में आये करो तो क्या करूंगी? यहां इतने बड़े घर में कैसी पराई सी हो गयी हूं. आर्यन का प्रेम सच है या ढोंग?’ अजीब से सवाल बिजली से कौंध रहे थे वान्या के मन-मस्तिष्क में.
अपने आप में डूबी वान्या सोच रही थी कि इस विषय में कहीं से कुछ पता लगे तो उसे चैन मिल जाये. ‘कल प्रेमा से सफ़ाई करवाने के बहाने पूरे घर की छान-बीन करूंगी, शायद कोई सुराग हाथ लग जाये.’ सोच उसे थोड़ा चैन मिला तो नींद आ गयी.

अगले दिन सुबह से ही प्रेमा को हिदायतें देते हुए वह सारे बंगले में घूम रही थी. आर्यन मोबाइल में लगा हुआ था. दोस्तों के बधाई संदेशों का जवाब देते हुए कुछ की मांग पर विवाह के फ़ोटो भी भेज रहा था. वान्या को प्रेमा के साथ घुलता-मिलता देख उसे एक सुखद अहसास हो रहा था.
इतना विशाल बंगला वान्या ने पहले कभी नहीं देखा था. जब दो दिन पहले उसने बंगले में इधर-उधर खड़े होकर खींची अपनी कुछ तस्वीरें सहेलियों को भेजी थीं तो वे आश्चर्यचकित रह गयीं थीं. उसे ‘किले की महारानी’ संबोधित करते हुए मैसेजेस कर वे रश्क कर रहीं थी. इतने बड़े बंगले का मालिक आर्यन आखिर उस जैसी मध्यमवर्गीया से सम्बन्ध जोड़ने को क्यों राज़ी हो गया? और तो और कोरोना के बहाने शादी की जल्दबाजी भी की उसने.

वान्या का मन बेहद अशांत था. प्रेमा के साथ-साथ घर में घूमते हुए लगभग दो घंटे हो चुके थे. रहस्यमयी निगाहों से वह घर को टटोल रही थी. बैडरूम के पास वाले एक कमरे में चम्बा की सुप्रसिद्ध कशीदाकारी ‘नीडल पेंटिंग’ से कढ़ी हुई हीर-रांझा की खूबसूरत वौल हैंगिंग में उसे आर्यन और अपनी सौतन दिख रही थी. पहली बार लौबी में घुसते ही दीवार पर टंगी मौडर्न आर्ट की जिस पेंटिंग के लाल, नारंगी रंग उसे उसे रोमांटिक लग रहे थे, वही अब शंका के फनों में बदल उसे डंक मार रहे थे. बैडरूम में सजी कामलिप्त युगल की प्रतिमा, जिसे देख परसों वह आर्यन से लिपट गयी थी आज आंखों में खटक रही थी. ‘क्या कोई अविवाहित ऐसा सामान सजाने की बात सोच सकता है? शादी तो यूं हुई कि चट मंगनी पट ब्याह, ऐसे में भी आर्यन को ऐसी स्टेचू खरीदकर सजाने के लिए समय मिल गया….हैरत है!’ घर की एक-एक वस्तु आज उसे काटने को दौड़ रही थी. ‘कैसा बेकार सा है यह मनहूस घर’ वह बुदबुदा उठी.

लगभग सारे घर की सफ़ाई हो चुकी थी. केवल एक ही कमरा बचा था, जो अन्य कमरों से थोड़ा अलग, ऊंचाई पर बना था. पहाड़ के उस भाग को मकान बनाते समय शायद जान-बूझकर समतल नहीं किया गया होगा. बाहर से ही छत से थोड़ा नीचे और बाकी मकान से ऊपर उस कमरे को देख वान्या बहुत प्रभावित हुई थी. प्रेमा का कहना था कि उस बंद कमरे में कोई आता-जाता नहीं इसलिए साफ़-सफ़ाई की कोई आवश्यकता नहीं है, लेकिन वान्या तो आज पूरा घर छान मारना चाहती थी. उसके ज़ोर देने पर प्रेमा झाड़ू, डस्टर और चाबी लेकर कमरे की ओर चल दी. लकड़ी की कलात्मक चौड़ी लेकिन कम ऊंचाई वाली सीढ़ी पर चढ़ते हुए वे कमरे तक पहुंच गए. प्रेमा ने दरवाज़े पर लटके पीतल के ताले को खोला और दोनों अन्दर आ गए.

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कमरे में अखरोट की लकड़ी से बनी एक टेबल और लैदर की कुर्सी रखी थी. काले रंग की वह कुर्सी किसी भी दिशा में घूम सकती थी. पास ही ऊंचे पुराने ढंग के लकड़ी के पलंग पर बादामी रंग की याक के फ़र से बनी बहुत मुलायम चादर बिछी थी. कुछ फ़ासले पर रखी एक आराम कुर्सी और कपड़े से ढके प्यानो को देख वान्या को वह कमरा रहस्य से भरा हुआ लगने लगा. दीवार पर घने जंगल की ख़ूबसूरत पेंटिंग लगी थी. वान्या पेंटिंग को देख ही रही थी कि दीवार के रंग का एक दरवाज़ा दिखाई दिया. ‘कमरे के अन्दर एक और कमरा’ उसका दिमाग चकरा गया. तेज़ी से आगे बढ़कर उसने दरवाज़े को धक्का दे दिया. चरर्र की आवाज़ करता हुआ दरवाज़ा खुल गया.

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