ये मसाले रखेंगे आपके दिल का ख्याल

मसालों का सेवन केवल स्वाद के लिए नहीं किया जाता है बल्कि स्वास्थ की बेहतरी में भी इनका योगदान बेहद अहम होता है. मसालों में कई तरह के पोषक तत्व होते हैं जो आपके दिल के लिए काफी फायदेमंद होते हैं.

इस खबर में हम आपको उन पांच मसालों के बारे में बताएंगे जिनके सेवन से आप अपने दिल को हेस्दी रख सकेंगी.

लहसुन

दिल का काफी नुकसान होता है बढ़े हुए कौलेस्ट्रोल से. लहसुन दिल की बीमारियों में काफी कारगर होता है. बढ़े हुए कौलेस्ट्रोल को कम करने में ये बेहद फायदेमंद होता है. आपको बता दें कि लहसुन में एलिसिन नाम का एक एंटीऔक्सिडेंट पाया जाता है, इसका काम होता है कौलेस्ट्रोल को नियंत्रण में रखना. इसके अलावा ब्लड प्रेशर को कंट्रोल करने में भी लहसुन काफी असरदार होता है.

काली मिर्च

काली मिर्च कौर्डियोप्रोटेक्ट‍िव एक्शन को सक्रिय करने का काम करती है. ये औक्सीडेटिव डैमेज से हमे सुरक्षा देता है इसके साथ ही कार्डियक फंक्शन को भी सही रखता है.

धनिया के बीज

धनिया के बीजों में एंटीऔक्सिडेंट की मात्रा अधिक होती है. इसमें मौजूद तत्व हमारे दिल को फ्री रेडिकल्स से सुरक्षित रखते हैं. कौलेस्ट्रोल को कंट्रोल करने के लिए और ब्लड फ्लो बढ़ाने के में धनिए का बीज बेहद कामगर होता है.

दाल चीनी

खाने में दालचीनी का इस्तेमाल शरीर में खून के बहाव को बोहतर बना कर रखता है. इससे शरीर में ब्लड क्लौटिंग का खतरा काफी कम हो जाता है. दिल की परेशानियों को दूर रखने के लिए जरूरी है कि आप रोज एक चुटकी दालचीनी का सेवन करें.

हल्दी

आपको बता दें कि हल्दी में एंटीऔक्सिडेंट और एंटी इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं. ये तत्व हमारे शरीर में ब्लड कौलेस्ट्रोल को कम करने में बेहद असरदार होते हैं. डायबिटिज से बचाव करन के लिए ये काफी प्रभावशाली उपाय है.

ऐसी शादी से किस का भला होगा

शादियों पर आजकल जम कर खर्च होने लगा है. खर्च तो पहले भी हुआ करता था पर तब जेवरों, कपड़ों और संपत्ति पर होता था, अब सजावट पर और खाने की वैरायटी और परोसने के ढंग पर होने लगा है. लोगों का बजट अब लाखों रुपए से बढ़ कर क्व10-20 करोड़ हो गया है और बाकायदा मैरिज कंसलटैंटों की भीड़ उमड़ आई है, जो लाइटिंग, भोजों, फूल, पलपल के इंतजाम से ले कर दूल्हादुलहन के ही नहीं पूरे परिवार के कपड़ों के स्टाइल व रंगों का हिसाब भी रखने लगे हैं.

जिन के पास पैसा है उन्हें खर्च करने का हक है, पैसा काला है या सफेद, इस से फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि देश में ऐसे लोगों की गिनती अब काफी होनी लगी है जिन के पास क्व100-200 करोड़ पूरे सफेद हैं और जो शादियों में कम से कम 10-20 करोड़ आराम से खर्च कर सकते हैं.

शादियों की सजावट के बारे में एक ही आपत्ति है कि इस तड़कभड़क की शादी और दूल्हादुलहन के जीवन पर क्या असर पड़ता है? उन्हें अपने अच्छे कपड़े मिल जाएं, अच्छा घर मिल जाए, शादी के बाद घूमने की जगह मिल जाए यह मुख्य होना चाहिए न कि दूल्हे और दुलहन के घर वालों, रिश्तेदारों, मित्रों पर फालतू का खर्च, जो आएंगे और बनावटी हंसी के साथ लाइन में लग कर हाथ मिलाएंगे, फोटो ख्ंिचवाएंगे और चलते बनेंगे.

शादी तो युवकयुवती की होती है. उस में बेगानों का क्या काम? नाचनागाना तो सारे साल हो सकता है, सारी जिंदगी हो सकता है. विवाह पर लंबाचौड़ा खर्च शादी को पक्का नहीं कर सकता. यह मातापिताओं को रौब मारने का काम कर सकता है पर जितना बड़ा आयोजन होगा उतनी ज्यादा समस्याएं होंगी. उन का काम बेटेबेटी की शादी के लिए तैयार करने की जगह, लोगों को इनवाइट करने, डैकोरेशन व कैटरिंग का हिसाब करने, हौल बुक करने और हजार दूसरी बेकार की बातों में लग जाएगा.

शादी का मतलब है युवकयुवती के संबंध को सामाजिक मान्यता मिलना. वैसे तो धर्म ने टांग अड़ा कर फालतू में इस सामान्य सी प्रक्रिया को लंबाचौड़ा कर दिया है ताकि उस की पत्ती बन सके और वह जीवनभर पतिपत्नी से वसूलता रहे वरना शादी बच्चे पैदा करने, एकदूसरे के साथ रहने और एकदूसरे की सुरक्षा का नाम है जो नैसर्गिक होना चाहिए न कि मैरिज इवेंट कंसल्टैंट के हाथों पैसे व समय की बरबादी का बहाना.

बात ईर्ष्या की उतनी नहीं है. जिस के पास पैसा है वह खर्च करेगा. पर बात यह है कि क्या शादी पर खर्च हो? शादी का महत्त्व क्या पंडाल की डैकोरेशन से फीका हो जाने दिया जाए? ब्यूटीफुल दिखने के लिए क्या हफ्तों ब्यूटीपार्लरों के चक्कर काटे जाएं? सही पोशाकों के लिए क्या बाजारों और टेलरों के यहां बारबार जाया जाए?

शादी से पहले होने वाले पतिपत्नी एकदूसरे को भूल जाते हैं और उन का पूरा ध्यान शादी के प्रबंध में लग जाता है. एक भी चीज मन के हिसाब से न हो तो एक कड़वाहट मन के किसी कोने में

बैठ जाती है जिस का एकदूसरे के व्यवहार से कोई मतलब नहीं होता. शादी को प्रेम का महल बना रहने दीजिए, महल से पंडाल में शादी कर के दूल्हादुलहन को छोटा न करिए.

अब पसीने की बदबू को कुछ इस तरह कहें बाय बाय

झुलसाती गरमी में त्वचा और स्वास्थ्य संबंधी नई नई समस्याएं सिर उठाने लगती हैं. इन में बड़ी समस्या पसीना आने की होती है. सब से ज्यादा पसीना बांहों के नीचे यानी कांखों, तलवों और हथेलियों में आता है. हालांकि ज्यादातर लोगों को थोड़ा ही पसीना आता है, लेकिन कुछ को बहुत ज्यादा पसीना आता है.

कुछ लोगों को गरमी के साथसाथ पसीने की ग्रंथियों के ओवर ऐक्टिव होने के चलते भी अधिक पसीना आता है जिसे हम हाइपरहाइड्रोसिस सिंड्रोम कहते हैं. बहुत ज्यादा पसीना आने की वजह से न सिर्फ शरीर में असहजता महसूस होती है, बल्कि पसीने की दुर्गंध भी बढ़ जाती है. इस से व्यक्ति का आत्मविश्वास डगमगा जाता है.

अंतर्राष्ट्रीय हाइपरहाइड्रोसिस सोसाइटी के मुताबिक हमारे पूरे शरीर में 3 से 4 मिलियिन पसीने की ग्रंथियां होती हैं. इन में से अधिकतर एन्काइन ग्रंथियां होती हैं, जो सब से ज्यादा तलवों, हथेलियों, माथे, गालों और बांहों के निचले हिस्सों यानी कांखों में होती हैं.

एन्काइन ग्रंथियां साफ और दुर्गंधरहित तरल छोड़ती हैं जिस से शरीर को वाष्पीकरण प्रक्रिया से ठंडक प्रदान करने में मदद मिलती है. अन्य प्रकार की पसीने की ग्रंथियों को ऐपोन्काइन कहते हैं. ये ग्रंथियां कांखों और जननांगों के आसपास होती हैं. ये ग्रंथियां गाढ़ा तरल बनाती हैं. जब यह तरल त्वचा की सतह पर जमे बैक्टीरिया के साथ मिलता है तब दुर्गंध उत्पन्न होती है.

पसीने और उस की दुर्गंध पर ऐसे पाएं काबू

साफसफाई का विशेष ध्यान रखें

पसीना अपनेआप में दुर्गंध की वजह नहीं है. शरीर से दुर्गंध आने की समस्या तब होती है जब यह पसीना बैक्टीरिया के साथ मिलता है. यही वजह है कि नहाने के तुरंत बाद पसीना आने से हमारे शरीर में कभी दुर्गंध नहीं आती.

दुर्गंध आनी तब शुरू होती है जब बारबार पसीना आता है और सूखता रहता है. पसीने की वजह से त्वचा गीली रहती है और ऐसे में उस पर बैक्टीरिया को पनपने का अनुकूल माहौल मिलता है. अगर आप त्वचा को सूखा और साफ रखें तो पसीने के दुर्गंध की समस्या से काफी हद तक बच सकती हैं.

स्ट्रौंग डियोड्रैंट और ऐंटीपर्सपिरैंट का इस्तेमाल करें

हालांकि डियोड्रैंट पसीना आने से नहीं रोक सकता है, लेकिन यह शरीर से आने वाली दुर्गंध को रोकने में मददगार हो सकता है. स्ट्रौंग पर्सपिरैंट पसीने के छिद्रों को बंद कर सकते हैं, जिस से पसीनाकम आता है. जब आप के शरीर की इंद्रियों को यह महसूस हो जाता है कि पसीने के छिद्र बंद हैं तो वे अंदर से पसीना छोड़ना बंद कर देती हैं.

ये ऐंटीपर्सपिरैंट अधिकतम 24 घंटे तक कारगर रहते हैं. अगर इन का इस्तेमाल करते समय इन पर लिखे निर्देशों का पालन न किया जाए तो ये त्वचा के इरिटेशन की वजह भी बन सकते हैं. ऐसे में कोई भी ऐंटीपर्सपिरैंट इस्तेमाल करने से पहले डाक्टर की सलाह जरूर लें.

लोंटोफोरेसिस

यह तकनीक आमतौर पर उन लोगों पर इस्तेमाल की जाती है, जो हलके ऐंटीपर्सपिरैंट इस्तेमाल कर चुके होते हैं, लेकिन उन्हें इस से कोई फायदा नहीं होता है. इस तकनीक से आयनोटोफोरेसिस नामक मैडिकल डिवाइस का इस्तेमाल किया जाता है, जिस के माध्यम से पानी वाले किसी बरतन या ट्यूब में हलके इलैक्ट्रिक करंट डाले जाते हैं और फिर प्रभावित व्यक्ति को इस में हाथ डालने के लिए कहा जाता है.

यह करंट त्वचा की सतह के माध्यम से भी प्रवेश करता है. इस से पैरों और हाथों में पसीना आने की समस्या बेहद कम हो जाती है. लेकिन कांखों के नीचे अधिक पसीना आने की समस्या को ठीक करने के लिए यह तरीका उपयुक्त नहीं होता है.

मैसोबोटोक्स

बांहों के नीचे बेहद ज्यादा पसीना आना न सिर्फ दुर्गंध की वजह बनता है, बल्कि आप की ड्रैस भी खराब कर सकता है. इस के इलाज हेतु कांखों में प्यूरिफाइड बोटुलिनम टौक्सिन की मामूली डोज इंजैक्शन के माध्यम से दी जाती है, जिस से पसीने की नर्व्ज अस्थायी रूप से बंद हो जाती हैं. इस का असर 4 से 6 महीने तक रहता है. माथे और चेहरे पर जरूरत से ज्यादा पसीना आने की समस्या के उपचार हेतु मैसोबोटोक्स एक बेहतरीन समाधान साबित होता है, इस में पसीना आना कम करने के लिए डाइल्युटेड बोटोक्स को इंजेक्शन के जरीए त्वचा में लगाया जाता है.

खानपान पर भी रखें ध्यान

खानपान की कुछ चीजों से भी पसीना अधिक आ सकता है. उदाहरण के तौर पर गरममसाले जैसेकि कालीमिर्च ज्यादा पसीना ला सकती है. इसी तरह से अलकोहल और कैफीन का अधिक इस्तेमाल पसीने के छिद्रों को ज्यादा खोल सकता हैं. इस के साथ ही प्याज के अधिक इस्तेमाल से पसीने की दुर्गंध बढ़ सकती है. गरमी के दिनों में इन चीजों के अधिक इस्तेमाल से बचें.

डा. इंदू बालानी डर्मैटोलौजिस्ट, दिल्ली

ब्राह्मण यूनियन

पंडित अंबाप्रसाद सवेरे जल का लोटा ले कर सूर्य देवता को अर्पण करने जब छत पर पहुंचे तब उन के पड़ोसी केदारनाथ बेचैनी से छत पर चहलकदमी कर रहे थे. केदारनाथ यूनियन के नेता थे और यह चहलकदमी भी कोई नई बात नहीं थी. पंडित अंबाप्रसाद पड़ोसी का हाल बेहाल देख कर मन ही मन बड़े प्रसन्न हुए, पर प्रकट रूप में सूर्य को नमस्कार कर, श्रद्धा से जल अर्पण कर और उच्च स्वर में ‘हरिओम’ की गुहार लगा कर पड़ोसी से बोले, ‘‘तो अभी तक कुछ फैसला नहीं हुआ आप की यूनियन का?’’

केदारनाथ, अंबाप्रसाद के मन की बात ताड़ते हुए निश्ंिचतता की मुद्रा में बोले, ‘‘फैसला भी हो जाएगा, अंबाप्रसादजी, हमारे खिलाफ तो फैसला होने से रहा. आप को तो पता ही है, यह ट्रेड यूनियन का युग है. यूनियन के आगे अच्छेअच्छे घुटने टेक देते हैं. फिर यह तो जरा सा मामला है.’’

अंबाप्रसाद भी पड़ोसी से हार मानने के लिए तैयार नहीं थे. कुछ सोचविचार कर उन्होंने आंखें गोल कर गोपनीय बात कहने के अंदाज में केदारनाथ से धीरेधीरे कहना शुरू किया, ‘‘देखो, भाई साहब, यह तो ठीक है कि ट्रेड यूनियन का जमाना है और यूनियन में बड़ा दम होता है, पर आप की नामराशि के ग्रहयोग ठीक नहीं हैं, इसलिए कुछ उपाय कर लीजिए वरना सफलता मिलने में संदेह है.’’

केदारनाथ मुसकरा कर बोले, ‘‘पंडितजी, हमारी और निदेशक महोदय की नामराशि एक ही है, हम केदारनाथ और वह केहरीसिंह. जो होगा, देखा जाएगा. उपाय करने से ही क्या होगा?’’

अंबाप्रसाद छत से नीचे उतर आए. कौन इस दुष्ट के मुंह लगे और सवेरेसवेरे अपना मन खराब करे. शाम को वैसे भी पंडित दुर्गाप्रसाद का तार आया था, आने वाले ही होंगे. संदेश में आने का प्रयोजन तो लिखा नहीं, फिर क्या पता चले कि क्या बात है? पर जरूर कोई खास बात होगी, जो तार द्वारा अपने आने की सूचना भिजवाई है.

अंबाप्रसाद अपनी गद्दी पर बैठ कर कुछ यजमानों के वर्षफल निकालने लगे. कई दिनों से हाथ बड़ा तंग चल रहा था. कोई जन्मकुंडली दिखाने वाला पहुंचे तो बात बने.

अंबाप्रसाद अभी अपना काम भी खत्म नहीं कर पाए थे कि बाहर आटोरिकशा के रुकने की आवाज हुई. उन्होंने खिड़की का परदा उठा कर बाहर झांका, पंडित दुर्गाप्रसाद आ पहुंचे थे. अपनी कागज- पोथी सब समेट कर अंबाप्रसाद ने अलमारी में रख दी और आगंतुक का स्वागत करने मुख्यद्वार की तरफ बढ़ गए.

दुर्गाप्रसाद काफी कमजोर लग रहे थे, पर उन की आवाज अभी उसी तरह जोश भरी थी. कुशलक्षेम और औप- चारिकता के पश्चात दुर्गाप्रसाद अपने आने के प्रयोजन पर पहुंच गए. वह गंभीर स्वर में बोले, ‘‘अंबाप्रसाद, अब ब्राह्मण परिषद के गठन का समय आ गया है. अब हर कोई यह जानता है कि आज का युग ट्रेड यूनियन का युग है. समाज का हर वर्ग अपने अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित हो चुका है, सिर्फ ब्राह्मण समाज ही है जो चारों तरफ बिखरा पड़ा है और इसी लिए उसे यजमानों की दया पर निर्भर रहना पड़ता है.’’

अंबाप्रसाद, दुर्गाप्रसाद का वक्तव्य सुन कर हैरत में आ गए. मन में सोचने लगे, ‘तो क्या अब ब्राह्मणों की भी ट्रेड यूनियन बनेगी?’ पर वह सहमति में सिर हिलाते हुए बोले, ‘‘यह बात तो आप की अक्षरश: सत्य है.’’

‘‘हम ब्राह्मण सदियों से आपस में द्वेष रखते हैं. एक ब्राह्मण दूसरे को देख कर ऐसे गुर्राता है जैसे गली में दूसरे कुत्ते को देख कर कुत्ता. मुझे तो यह कहते भी शर्म आती है कि मेरा पड़ोसी मिसरा गुनगुनाता रहता है कि ‘ब्राह्मण, कुत्ता, नाऊ, जाति देख गुर्राऊ’,’’  दुर्गाप्रसाद बोले.

अंबाप्रसाद को भी अपना पड़ोसी याद आया, जो उन के पांडित्य का लोहा नहीं मानता, बस राजनीतिक जोड़तोड़ में लगा रहता है. उन्होंने दुर्गाप्रसाद की बात का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘हमारे शहर में ब्राह्मणों ने एक ब्राह्मण परिषद बना रखी है, जिस के अध्यक्ष पंडित भवानीसिंह हैं. आप कहें तो उन के पास चल कर अखिल भारतीय ब्राह्मण सम्मेलन का आयोजन करने की चर्चा करें?’’

दुर्गाप्रसाद को यह युक्ति जंच गई. वह तुरंत चलने को तैयार हो गए. दुर्गाप्रसाद ने भवानीसिंह से हुई पहली ही मुलाकात में यह भांप लिया कि आदमी बड़े जीवट का है और असरदार भी. दुर्गाप्रसाद की हर बात भवानीसिंह ने बड़े ध्यान से सुनी और यह सुझाव दिया कि एक विशाल भारतीय ब्राह्मण सम्मेलन बुलाया जाए और ब्राह्मणों द्वारा किए जाने वाले धार्मिक अनुष्ठानों की एक दर सूची बना दी जाए. इस से यजमानों में भी ब्राह्मणों के प्रति श्रद्धा भाव उत्पन्न होगा और ब्राह्मणों की गलाकाट स्पर्धा के कारण, जो यजमान कभीकभी सत्यनारायण की कथा करवा कर दक्षिणा में चवन्नी ही टिकाते हैं, उन की भी आंखें खुलेंगी.

अंबाप्रसाद और दुर्गाप्रसाद ने इस प्रस्ताव का जोरदार स्वागत किया. भवानीसिंह ने अगले ही दिन अपनी योजना को कार्यान्वित करना शुरू कर दिया और दसों दिशाओं में ब्राह्मणों को निमंत्रण भेजे जाने लगे. सभा का आयोजन सनातन धर्म कालिज के हाल में किया गया. पहली बार ब्राह्मण सम्मेलन हो रहा था.

दूरदूर से ब्राह्मण लोग इस सम्मेलन में भाग लेने के लिए पधार रहे थे. उन की छटा देखते ही बनती थी. आधुनिकता का रंग चढ़े हुए ब्राह्मण पैंटबुशर्ट में थे तो कुछ कुरतेपाजामे में. कुछ पुरातन परंपरा- वादी धोतीकुरते में थे और कुछ पगड़ी व बगलबंदी में दिखाई पड़ रहे थे.

सभा के आरंभ में संयोजक अंबाप्रसाद ने ब्राह्मण परिषद की आवश्यकता पर जोर दिया और ट्रेड यूनियन के महत्त्व को समझाया, तत्पश्चात भवानीसिंह ने अध्यक्ष पद की गरिमा को देखते हुए अपना भाषण शुरू किया, ‘‘भाइयो, दूरदूर से पधारे ब्राह्मणों का मैं हार्दिक स्वागत करता हूं. हम लोग आज यहां पर एक महत्त्वपूर्ण उद्देश्य से एकजुट हुए हैं. यजमानों की मनमानी से बचने के लिए विभिन्न अवसरों पर हमें यजमान से क्या शुल्क (दक्षिणा) लेना चाहिए इस के निर्धारण के लिए गठित प्रवर समिति के सभी निर्णयों पर काफी विचार हो चुका है. अब इस दर सूची की एकएक प्रतिलिपि सभी आगंतुक महानुभावों को अर्पित की जा रही है. इसे देख कर आप सब अपनीअपनी सहमति से हमें अवगत कराएं.’’

दर सूची की एकएक प्रतिलिपि सब को बंट चुकी थी. अगली पंक्ति में बैठे नवयुवक ब्राह्मण उस को पढ़ कर फूले नहीं समा रहे थे. वे प्रफुल्लित स्वर में बोल रहे थे, ‘‘वाह, इसे कहते हैं एकता में बल. देखा, नामकरण संस्कार की शुल्कदर पिता की संपत्ति का 20वां हिस्सा यानी 5 प्रतिशत, पाणिग्रहण संस्कार की दक्षिणा दहेज का 10 प्रतिशत, गृहप्रवेश का शुल्क मकान के मूल्य का 5 प्रतिशत, कथावाचन के 51 रुपए, जन्मकुंडली के 101 रुपए.’’

‘‘अरे, इसे कहते हैं यूनियन बना कर रहना. आज ट्रेड यूनियन का जमाना है. बस, भैया, गरीबी के दिन लद गए, पंडितों ने आज पहली बार अपनी आवाज उठाई है,’’ एक गद्गद स्वर उभरा.

‘‘अजी, पंडित जन्म से ले कर मृत्यु तक और उस के बाद भी पिंडदान, श्राद्ध आदि कर्म करवा कर मनुष्यों का उद्धार करवाते हैं, किंतु दानदक्षिणा की तुच्छ सी रकम पाने वाले हम लोग यजमान के आगे कैसे असहाय नजर आते हैं,’’ एक बोला.

‘‘अपनी ग्रहदशा जान कर यजमान भविष्य सुधार कर लाखों रुपया कमाते हैं और हमें चवन्नी पकड़ा देते हैं,’’ एक पंडित तलखी से बोला.

एक नवयुवक ब्राह्मण जो पुरोहिताई के धंधे में नएनए जम रहे थे, इस सूची का समर्थन करते हुए चीख रहे थे, ‘‘यह सूची ब्राह्मण कर्म के उपयुक्त है. इस में छपी हुई दरों के मुताबिक ही सब पुरोहित एक जैसी दक्षिणा यजमानों से वसूलें. जो इस कानून को तोड़ेगा उस का जातीय बहिष्कार किया जाएगा.’’

नवयुवकों के पीछे बूढ़े पुरोहित पंडित राधेश्याम ने शांति से कहा, ‘‘वत्स, दानदक्षिणा की कोई दर तय नहीं होती. यह तो यजमान की आर्थिक स्थिति और श्रद्धा पर निर्भर करती है. यह दर तालिका कोरी भावुकता है, अव्यावहारिक है.’’

पंडित द्वारिकाप्रसादजी ने भी बुजुर्ग पंडित की बात का समर्थन करते हुए कहा, ‘‘ऊंची फीस लेने वाले वैद्य, डाक्टर, वेश्या और वकील हमेशा मक्खियां ही मारा करते हैं. कोई ग्राहक उन के पास नहीं फटकता.’’

पंडित जगन्नाथप्रसाद ने कुरसी छोड़ कर खड़े होते हुए अपनी धोती की लांग ठीक की और सख्त आवाज में कहा, ‘‘ब्राह्मण सम्मेलन का उद्देश्य क्या ब्राह्मण कर्म के लिए प्रस्तावित दर सूची पारित करना ही था? ब्राह्मणों के लिए शिक्षा या अन्य सुविधाएं जुटाने का कोई प्रस्ताव इस सम्मेलन के पास नहीं है?’’

पंडित द्वारिकाप्रसाद भी आक्रोश में उठ कर खड़े हुए, ‘‘यह भवानी हमेशा अपनी नेतागीरी दिखाता है. इस तरह की दरें नियत कर यह हमें भूखों मार देगा. यजमान का मुंह देख कर ही दक्षिणा मांगी जाती है. आज के वैज्ञानिक युग में वैसे भी सारी पंडिताई धूल में मिलती जा रही है. इस तरह तो एक दिन ऐसा आ जाएगा जब पंडितों को कोई घास भी नहीं डालेगा.’’

जो नवयुवक पुरोहित दर सूची को पारित करवाने के लिए जोर दे रहे थे, ऐसे भाषण सुन कर तिलमिला उठे. उन्हें सुनहरे भवन ढहते जान पड़े. वे द्वारिकाप्रसाद की बात पर चिढ़ कर चिल्लाते हुए बोले, ‘‘आप यह घास डालने की बात किसे कह रहे हैं? हम लोग क्या कोई जानवर हैं?’’

‘‘चुप बे, सड़कछाप बरुए, हमारे आगे बोल रहा है,’’ पंडित जगन्नाथप्रसाद सब शिष्टाचार भूल कर तूतड़ाक पर उतर आए. पंडित जगन्नाथप्रसाद के बोलते ही पीछे से किसी ने फटा हुआ जूता मंच पर फेंक कर मारा. संयोजक अंबाप्रसाद मंच से चीखे, ‘‘अरे, यह कौन असामाजिक तत्त्व हाल में घुस आया? पकड़ो, पकड़ो बदमाश को.’’

घड़ी भर में ही सभाभवन का वातावरण बदल गया, ‘‘मारो इन बदमाशों को, चले हैं यूनियन बनाने. मारो…मारो.’’

तरहतरह की आवाजों के साथ मंच पर चप्पलजूतों की बौछार शुरू हो

गई. गेंदे और गुलाब के फूलों से सजा मंच क्षण भर में जूते- चप्पलों से भर गया. संयोजक अंबाप्रसाद और अध्यक्ष भवानीसिंह कब दुम दबा कर मंच से खिसक गए, यह किसी को पता नहीं चला और ब्राह्मण परिषद भंग हो गई. द्य

फेस कलर के हिसाब से ऐसे चुने सही लिपस्टिक और पाएं परफेक्ट लुक

किसी भी लड़की या महिला को अपनी त्वचा की रंगत को अच्छे से समझकर ही सही रंग की लिपस्टिक का चुनाव करना चाहिए. ऐसा इसलिए कयोंकि जहां एक ओर त्वचा की रंगत के हिसाब से सही रंग की लिपस्टिक लगाने से आपको आकर्षक लुक मिलता है, वहीं गलत लिपस्टिक लगाने से आपका लुक बिगड़ सकता है.

ऐसे करें त्वचा की रंगत के हिसाब से लिपस्टिक का चुनाव

– अगर आप गोरी हैं तो पीच या न्यूड पिंक या हल्के बैंगनी रंग की शेड वाली लिपस्टिक लगा सकती है. आप मैट लिपस्टिक भी लगा सकती है. आंखों पर हल्के मेकअप के साथ होंठों पर गहरे रंग की लिपस्टिक से आपको बोल्ड लुक मिलेगा.

– अगर आपकी त्वचा की रंगत गेंहुआ है तो आप गहरे शेड वाली लिपस्टिक यहां तक कि लाल और नारंगी रंग की लिपस्टिक भी लगा सकती हैं. इस रंगत वाली त्वचा पर हल्के से लेकर गहरे रंग हर शेड वाली लिपस्टिक जंचती है. लिपिस्टिक लगाते समय इस बात का ध्यान रखें कि आपके चेहरे पर ब्राइटनेस हो और डल नहीं दिखे. हल्के हाथों से चेहरे पर थोड़ा सा बीबी क्रीम या कुशन फाउंडेशन लगाएं और आंखों पर काजल लगाए. खूबसूरत लुक के लिए होंठों और आंखों के मेकअप पर भी ध्यान दें.

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– अगर आपकी त्वचा का रंग न्यूट्रल है, तो गहरे गुलाबी, बैंगनी या भूरे रंग की लिपस्टिक लगाएं. हमेशा मैट लिपस्टिक लगाने की कोशिश करें, जिससे अपको सही और क्लासी लुक मिलेगा.

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– अगर आपकी त्वचा का रंग सांवला है तो आप शीयर ग्लास्ड या मरून या भूरे रंग की लिपस्टिक लगा सकती हैं, यह आपके ऊपर जंचेगा. आंखों पर स्मोकी लुक वाला मेकअप और शीयर ग्लास के साथ न्यूड लिप्स हमेशा आपको सबसे अलग दिखाते हैं.

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– क्लासिक न्यूड शेड गोरी रंग की लड़कियों के होंठों पर ज्यादा जंचते हैं. वैसे गोरे रंग की त्वचा पर हर रंग खिलता है, लेकिन न्यूड रंग सबसे उपयुक्त होता है. न्यूड शेड औफिस जाने वाली लड़कियों, डे मेकअप या न्यूड मेकअप लुक के लिए सबसे बेहतर होते हैं.

– गुलाबी रंग की शेड वाली लिपस्टिक अधिकांश लड़कियां लगाना पसंद करती हैं. गोरे या मीडियम रंग की त्वचा वाली लड़कियों पर हल्के गुलाबी या निआन गुलाबी शेड वाली लिपस्टिक जंचते हैं. गेहुंए रंग की लड़कियों पर गहरे या चटक रंग के गुलाबी रंग के लिपस्टिक खिलते हैं.

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– लाल रंग की लिपस्टिक कभी भी चलन से बाहर नहीं होने वाली है. इस रंग की लिपस्टिक हर रंगत वाली त्वचा के ऊपर खिलती है.

मैं स्टंटमैन बनकर ही यहां पहुंचा हूं : अक्षय कुमार

90 के दशक में हिट और एक्शन फिल्म देने वाले अभिनेता खिलाड़ी कुमार यानि अक्षय कुमार आज उस मुकाम पर पहुंच चुके हैं जहां हर निर्माता निर्देशक उन्हें अपनी फिल्मों में लेना पसंद करते हैं. कभी ऐसा वक्त था, जब अक्षय कुमार को काम के लिए हर प्रोडक्शन हाउस में घूमना पड़ता था, लेकिन ‘खिलाड़ी श्रृंखला’ ने उनके जीवन को एक अलग दिशा दी और आज वह हिंदी सिनेमा जगत में एक्शन हीरो के नाम से प्रसिद्ध हैं. उन्होंने केवल एक्शन ही नहीं, हर तरह के फिल्मों जैसे रोमकौम, कौमेडी, थ्रिलर आदि में काम किया है. मार्शल आर्ट के एक्सपर्ट अक्षय कुमार 29 साल से फिल्म इंडस्ट्री में काम कर रहे हैं. वे अपने अनुशासित दिनचर्या के लिए प्रसिद्द हैं. उनकी फिल्म ‘केसरी’ रिलीज पर है. उन्होंने इस फिल्म को ‘भारत के वीर’ के लिए समर्पित किया है, क्योंकि उन सभी वीरों को वे सलाम करते हैं, जिन्होंने अपनी जान देकर पूरे देशवासियों को चैन की नींद दी है. पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

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इस फिल्म को करने की खास वजह क्या है?

ये एक हिस्टोरिकल फिल्म है, जिसे बहुत कम लोग ही जानते हैं. किस तरह 21 सिक्ख 10 हजार आक्रमणकारी से लड़ते हैं. सारागढ़ी की ये लड़ाई बहुत ही अलग थी और इसे स्कूलों में बच्चों को दिखाए जाने की जरुरत है, क्योंकि इसमें साहस और उनकी बहादुरी की कहानी है. ये मेरे लिए प्रेरणादायक फिल्म है. पहले मुझे भी इसके बारें में कम जानकारी थी, लेकिन अब फिल्म करने के बाद काफी जानकारी हासिल हुई है और मैं खुश हूं कि इतनी बड़ी ऐतिहासिक  फिल्म का मैं एक हिस्सा हूं.

इस फिल्म के लिए आपने क्या तैयारियां की हैं?

अधिक तैयारियां नहीं करनी पड़ी. सोर्ड फाइटिंग थोड़ी सीखी थी. इस फिल्म में सबसे अच्छा लगा पगड़ी पहनना. एक बार जब आप पगड़ी पहन लेते हैं, तो आपकी बैकबोन सीधी हो जाती है, एक भार सिर पर आ जाता है, एक जिम्मेदारी बढ़ जाती है. उसका मजा कुछ और होता है. इसमें मैंने डेढ़ किलो की पगड़ी पहनी है और उसके साथ सारे स्टंट किये हैं.

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क्या इस फिल्म का कोई प्रेशर है, क्योंकि ऐसी फिल्में अधिक चल नहीं पाती?

जब से मैंने इस फिल्म में काम करना शुरू किया, मैंने सोच लिया है कि फिल्म चले या न चले मुझे ये बनानी है, क्योंकि इस कहानी को हमें सबको बताना है. मैं इस फिल्म में अभिनय कर  बहुत गर्वित हूं.

क्या अभी आपके जीवन में कोई संघर्ष है?

संघर्ष से सबको गुजरना पड़ता है और मेरे लिए भी है. रोज सुबह उठकर अच्छा काम करने की चाहत और न मिलने पर हताश होना, ये सारी बातें संघर्ष की ही पहचान है.

आप हमेशा खुद स्टंट करते हैं, इसे देखकर आज की युवा पीढ़ी भी कोशिश करती है, उनके लिए क्या संदेश देना चाहते हैं?

कोई भी स्टंट ऐसे नहीं होता, इसके लिए एक बड़ी टीम होती है, जो हर बात की निगरानी करती है, ऐसे में किसी को भी ये खुद घर पर देखकर करने की जरुरत नहीं है, क्योंकि बिना सावधानी के करने पर ये जानलेवा भी हो सकती है.

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आपने हमेशा स्टंट खुद किये हैं, क्या इसमें आपको कभी खतरा महसूस नहीं हुआ? परिवार ने कैसे साथ दिया?

मैंने बचपन से स्टंट किया है और मुझे कोई खतरा नहीं लगता, लेकिन हमेशा मैं ये कहता आया हूं कि घर पर कभी भी खुद कोशिश न करें, क्योंकि ये सम्हलकर, सावधानी के साथ करने वाली होती है. मेरे माता-पिता ने हमेशा मेरी हर बात में सहयोग दिया है. मैं पहले एक स्टंटमैन हूं, बाद में अभिनेता बना. फिल्म ‘मैं खिलाडी तू अनाड़ी’ के स्टंट के बाद ही मुझे काम मिला था. वरना यहां कोई मेरा गौडफादर नहीं था, जिसकी वजह से मुझे काम मिला हो. मैं स्टंटमैन बनकर ही आज यहां पर आया हूं.

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आपकी और ट्विंकल की बौन्डिंग सालों से अच्छी चल रही है, जबकि आज रिश्तों के मायने बदल चुके हैं, आप दोनों की इस गहरी बौन्डिंग के पीछे का राज क्या है? अपने टीनेज बच्चों की देखभाल कैसे करते हैं?

हम एक दूसरे के प्रोफेशन में कभी दखलंदाजी नहीं करते, एक दूसरे का सम्मान करते हैं, स्पेस देते हैं आदि. इससे हमारा रिश्ता गहरा रहता है. बच्चों के बारें में… तो हम दोनों ने ही गलत आदतों को समझाकर छोड़ दिया है. आज के बच्चे काफी होशियार हैं और वे गलत सही को समझ सकते हैं. मेरे पिता ने भी मुझे वह आजादी दी थी और किसी भी गलत बात को छुपकर करने से मना किया था. इसलिए मुझे उसका कभी भी क्रेज नहीं रहा और गलत आदत ही नहीं लगी.

काम में अच्छी होने के बावजूद महिलाओं को कैरियर से समझौता करना पड़ता है : उपासना टाकू

सिलिकौन वैली में अपने आकर्षक कैरियर को बीच में छोड़ कर उपासना टाकू ने 2008 में भारत लौट अपने घर के ईकोसिस्टम में योगदान देने का फैसला लिया. 1 साल बाद उन्होंने ‘मोबिक्विक’ की सहस्थापना की.

कुछ कर्मचारियों से शुरुआत कर 300 लोगों की एक मजबूत टीम बनाने तक उपासना ने ‘मोबिक्विक’ में सभी चीजों को एकजुट करने में मुख्य जिम्मेदारी निभाई और अपनी टीम को भारत के सब से बड़े स्वतंत्र मोबाइल भुगतान नैटवर्क बनाने के लक्ष्य पर केंद्रित रखा.

उपासना को फोर्ब्स की ‘एशिया वूमन टु वाच इन 2016’ में शामिल किया गया है. उन्हें एसोचैम द्वारा ‘बिजनैस वूमन आफ द ईयर’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया है.

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उपासना टाकू से हुई मुलाकात के कुछ अंश इस तरह हैं:

काम की प्रेरणा किस से मिली?

मुझे किसी ने नहीं बताया कि आप ऐसा करिए. मेरा मानना है कि किसी भी नई शुरुआत के लिए आप को आत्मविश्वास की जरूरत होती है. इस के लिए आप को दूसरों से मिल कर या उन की कहानियां सुन कर प्रेरणा तो मिल सकती है, लेकिन जो भी करना है वह आप को ही करना है.

महिलाओं को जीवन में आगे बढ़ने के दौरान किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?

महिलाओं और पुरुषों के सामने एकसमान चुनौतियां आती हैं, लेकिन जैसेजैसे महिलाएं कामयाबी के रास्ते पर बढ़ती जाती हैं उन के लिए मुश्किलें भी बढ़ती चली जाती हैं. भारत जैसे देश में महिलाओं को अपने काम के साथ घर की देखरेख भी करनी होती है. ऐसे में घर और काम के बीच तालमेल बनाने से दबाव बढ़ता है. यही कारण है कि काम में अच्छी होने के बावजूद महिलाओं को कई बार समझौते करने पड़ते हैं.

एक महिला ऐंटरप्रन्योर में क्या गुण होने चाहिए?

एक महिला ऐंटरप्रन्योर बनने के लिए आप में यह आत्मविश्वास होना चाहिए कि आप कुछ भी कर सकती हैं. आप के अंदर बहुत सारा धैर्य भी होना चाहिए. कुछ भी करने में, कुछ भी बनने में बहुत समय लगता है. कामयाबी हासिल करने में सालों लग जाते हैं. इसलिए धैर्य रखना बहुत जरूरी है. इस के बाद आप में लगन होनी चाहिए, छोटीछोटी चीजों के लिए अगर आप हिम्मत हार जाएंगी तो अच्छी ऐंटरप्रन्योर नहीं बन सकतीं.

महिला उद्यमी के लिए बिजनैस नैटवर्किंग बहुत महत्त्वपूर्ण है. नैटवर्किंग का मतलब है कि जिस क्षेत्र में आप काम कर रही हैं उस क्षेत्र के लोगों से मेलजोल रखना. आप को समझना चाहिए कि कैसे फंड रेजिंग करना है या अगर आप की मार्केटिंग टैकनीक फेल हो रही है तो कैसे काम करें. ये सब चीजें किसी किताब में लिखी हुई नहीं मिलतीं. आप को खुद सीखनी पड़ती हैं.

कभी ग्लास सीलिंग का सामना करना पड़ा?

मेरे साथ कभी ऐसी स्थिति नहीं आई. लेकिन मैं यही कहूंगी कि भारत बदल रहा है. बहुत सारे लोग हैं जिन की सोच का दायरा बढ़ा है. इतना बड़ा देश है कुछ लोग तो होंगे ही जिन की सोच अभी भी बहुत पीछे है. जैसे कई बार सरकारी विभाग में मुझ से कहा गया कि अपने पुरुष साथी को ले कर आओ. तब मैं ने उन से कहा कि मुझे इस के बारे में पूरी जानकारी है. आप मेरे साथ ही काम करिए.

कोई सपना पूरा करना बाकी है?

आज से 9 साल पहले भी एक ही सपना था और आज भी यही सपना है कि मोबिक्विक कम से कम 50 फीसदी भारतीयों को अपनी सेवाएं प्रदान करे.

महिलाओं के लिए विदेश और भारत के माहौल में क्या अंतर है?

कुछ देशों की तुलना में हम पीछे हैं. भारत में 50 फीसदी महिलाएं काम करती हैं, उन में से कितनों का कैरियर 30 साल या अधिक का रहा है? भारतीय महिलाओं का औसत कैरियर 10 साल है. हमें इस में सुधार लाना होगा. हमें विदेशों से भी बहुत कुछ सीखना चाहिए.

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बैडरूम रोमांस बढ़ाने के टिप्स

पतिपत्नी के इश्क को ज्यादा से ज्यादा रोमांस से भरपूर रखने में बैडरूम का बड़ा योगदान होता है. घर में उन का ज्यादा समय बैडरूम में ही बीतता है. वे आराम, सुकून, रोमांस, इश्क के लिए बैडरूम को ही चुनते हैं. बैडरूम की ऊर्जा का प्रभाव उन के संबंधों एवं मानसिकता पर भी पड़ता है. मनोचिकित्सक, दिनेश के मुताबिक यदि पतिपत्नी अपना जीवन प्यारमुहब्बत से भरना चाहते हैं, तो शुरुआत अपने बैडरूम से ही करें. बैडरूम को परफैक्ट रखें. इस से आप की सैक्स लाइफ हमेशा रोमांस से भरी रहेगी.

बैडरूम सजावट के टिप्स

लाइट: इश्क का इजहार करने में लाइट की अहम भूमिका होती है. अत: बैडरूम में हलकी गुलाबी, आसमानी रंग की लाइट का प्रयोग करें. कमरे में लाइट डाइरैक्ट नहीं इनडाइरैक्ट पड़नी चाहिए. लैंपशेड या कौर्नर लाइट हो तो और भी अच्छा. इस से बैडरूम रोमांस का मजा कई गुना बढ़ जाएगा.  फल रखें: अंगूर, स्ट्राबैरी, केला, चैरी या चीकू की खुशबू बहुत रोमांचित करती है. इस से प्यार करने का मजा दोगुना हो जाता है.

बैडरूम को रोमांटिक बनाएं: पतिपत्नी के अंतरंग संबंधों में मुहब्बत बनी रहे, इस के लिए वे कभी हिलस्टेशन जाते हैं, कभी समुद्र किनारे तो कभीकभी किसी बड़े होटल में. हर जगह की अपनी खूबसूरती होती है. मगर इसी खूबसूरती को, भिन्नता को अपने बैडरूम में शामिल करें, तो पतिपत्नी अपनी रोमांटिक लाइफ को एक डैस्टिनेशन पौइंट दे सकते हैं. कमरे में आर्टिफिशियल फाउंटेन, फूल, चित्र आदि  लगाने के साथसाथ अलमारी, सोफे, टेबल  आदि की जगह भी बदलते रहें ताकि बैडरूम आकर्षक लगे.

बैडरूम को रखें सुसज्जित: बैडरूम अच्छी तरह डैकोरेटेड हो. उस का इंटीरियर आप को बारबार रूम में जाने को उकसाए. परदे ऐसे कि आसमान नजर आए. हलके परदे इस्तेमाल करें. बैडरूम साफसुथरा हो. उस में तरहतरह के इनडोर पौधे लगाएं, बेल लगाएं. उस में हलकी रोशनी भी आनी चाहिए ताकि आप का मूड और ज्यादा रोमांटिक बने.  तसवीरें: बैडरूम में रोमांटिक तसवीरें लगाएं. लविंगबर्ड, हंस की तसवीर, रैडरोज  आदि लगाएं ताकि इन्हें देख कर रोमांस करने  का मन करे.

बिस्तर: मूड बनाने में बिस्तर का अहम रोल होता है. अत: गद्दे चुभनशील न हों. बैड से आवाज न आती हो. तकिए आरामदायक हों, बैडशीट का रंग इश्क को उकसाने वाला हो.

खुशबू: खुशबू हमारे अंदर कई तरह के भाव पैदा करती है. रोमांस के लिए कई तरह के परफ्यूम का प्रयोग किया जा सकता है. लैवेंडर, मोंगरा, ब्रूट, वन मैन शो जैसे परफ्यूम संबंध बनाने का मूड बनाते हैं. बैडरूम में खूबसूरत गुलदस्ते रखें. अरोमा कैंडल जलाएं. यह न  केवल बैडरूम में हलकी रोशनी देती है, बल्कि इस के जलने से भीनीभीनी खुशबू भी आती है, जो रोमांस, चुहुलबाजी के लिए प्रेरित करती है.

डिस्टर्बैंस न हो: अलार्मघड़ी, मोबाइल, सिंगिंग खिलौने आदि बैडरूम से दूर ही  रखें ताकि इन की आवाज प्यार में खलल  न डाले.

दीवारों के रंग: दीवारों के रंग भी  अपनी मूक भाषा में बहुत कुछ बोल जाते  हैं. हलका गुलाबी, औरेंज, आसमानी, तोतईरंग, पेस्टल शेड्स आदि मन में प्यार का भाव   जगाते हैं.

आज की नैतिकता पुरानी नैतिकता से अच्छी

जब से हिंदू कानून में 1956 और 2005 में बदलाव आया है और  बेटियों को पिता की संपत्ति में हिस्सा मिलने लगा है, तब से भाईबहनों के विवाद बढ़ रहे हैं. 1956 में तो खास परिवर्तन नहीं हुआ था पर तब भी संयुक्त परिवार की संपत्ति में एक जने के अपने हिस्से में से बेटोंबेटियों को बराबर का हिस्सा देने का कानून बना था. 2005 में संयुक्त परिवार में बेटेबेटियों को बराबर का साझीदार कानून घोषित कर दिया गया था.

जो लोग समझते हैं कि इस से भाईबहनों के प्रेम की हिंदू समाज की परंपरा को नुकसान पहुंचा है वे यह नहीं जानते कि असल में पौराणिक कहानियों में ही भाईबहनों के विवादों का बढ़ाचढ़ा कर उल्लेख है और ये कहानियां सिरमाथे पर रखी जाती हैं.

महाभारत के मुख्य पात्रों में से एक भीम का विवाह हिडिंबा से तब हुआ जब भीम ने हिडिंबा के भाई को मार डाला था. असुर राजा ने अपनी बहन हिडिंबा को अपने इलाके में घुस आए पांडवों को मारने के लिए भेजा था पर हिडिंबा भीम पर आसक्त हो गई और उस के उकसाने पर भीम ने उस के भाई को ही मार डाला.

बाद में हिडिंबा ने भीम से विवाह कर लिया और उन से घटोत्कच नाम का पुत्र हुआ जिस ने कौरवपांडव युद्ध में काफी पराक्रम दिखाया. कहानी में महाभारत का लेखक कहीं भी बहन के भाई के विरुद्ध जाने की आलोचना नहीं करता. वह बहन जिसे भाई ने घुसपैठियों को मारने के लिए भेजा था भाई की प्रिय ही होगी वरना वह क्यों अनजान लोगों को मारने के लिए भेजता? मगर आसक्ति ऐसी चीज है जिस में भाई तक को मरवा डाला जाता है और जिन धर्मग्रंथों का हवाला हमारे पंडे और उन के भक्त नेता देते रहते हैं वे ऐसी अनैतिक गाथाओं से भरे पड़े हैं.

वास्तव में आज की नैतिकता हमारी पुरानी नैतिकता से बहुत अच्छी है. भाईबहनों में अगर विवाद हो रहे हैं तो अब भाईबहन एकदूसरे के सगे साथी भी बन रहे हैं. जहां घरों में केवल 1 भाई और 1 बहन होना सामान्य हो रहा है, वहां भाईबहन एकदूसरे के लिए जान छिड़क रहे हैं.

राहुल गांधी यदि विवाह किए बिना भी आराम से संतुलित जीवन जी पा रहे हैं तो इसलिए कि उन्हें प्रियंका और उन के बच्चों का साथ मिलता है. 2005 का कानून सोनिया गांधी के कहने पर लाया गया था, हालांकि कांग्रेस आमतौर पर इस का श्रेय हिंदू कट्टरवादियों से डर कर नहीं लेती पर सच यह है कि भारत में समाज सुधार विदेशियों ने किया, हिंदू धर्म का ढिंढोरा पीटने वालों ने नहीं.

 

अपने जैंडर को परिभाषित करने से इनकार करना होगा : स्वाति भार्गव

स्वाति भार्गव ‘कैशकरो.कौम,’ जो भारत की सब से बड़ी कैशबैक और कूपन वैबसाइट है, की सहसंस्थापक हैं. अंबाला जैसे छोटे शहर की लड़की स्वाति ने छात्रवृत्ति पा कर ‘लंदन स्कूल औफ इकौनोमिक्स (एलएसई)’ में दाखिला लिया और फिर वहां से निकलते ही ‘गोल्डमैन साक्स,’ लंदन में काम कर के कौरपोरेट वर्ल्ड में दाखिल हुईं.

‘गोल्डमैन साक्स’ में 5 वर्ष गुजारने के बाद स्वाति ने अपने पति रोहन भार्गव के साथ मिल कर 2011 में ‘पौरिंग पाउंड्स’ और फिर 2013 में ‘कैशकरो.कौम’ की नींव रखी और फिर थोड़े ही समय में इस पतिपत्नी की जोड़ी ने कैशकरो.कौम के साथ भारतीय बाजार पर कब्जा कर लिया. स्वाति को ई कौमर्स उद्योग में 10 शीर्ष महिला उद्यमियों में शुमार कर सम्मानित भी किया जा चुका है.

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आइए, स्वाति के इस खूबसूरत सफर पर एक नजर डालते हैं:

इस मुकाम तक पहुंचने में किस तरह के संघर्षों का सामना करना पड़ा?

मैं भले ही अंबाला जैसे छोटे शहर से हूं, लेकिन मैं ने कभी इसे अपना माइनस पौइंट नहीं माना, बल्कि इस ने मुझे अपने लक्ष्यों को पाने के लिए अधिक मेहनत करने को प्रेरित किया. मैं ने सिंगापुर सरकार से अपनी 10वीं व 12वीं कक्षा की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति प्राप्त की. जब मैं इंटरव्यू के लिए गई तो मुझे एहसास हुआ कि बाकी लोग जो दिल्ली और मुंबई जैसे बड़े शहरों से आए थे गणित, ओलिंपियाड या अन्य राष्ट्रीय स्तर के अवसरों के बारे में बहुत अधिक जानते थे, जबकि अंबाला से होने के कारण मेरी जानकारी बहुत कम थी. कई बार मैं ने खुद को पीछे एक कोने में बैठा पाया, क्योंकि मेरे पास बहुत कम ऐक्सपोजर था.

बाद में मुझे ‘लंदन स्कूल औफ इकौनोमिक्स’ में 80% की स्कौलरशिप मिल गई. लेकिन मेरे परिवार के लिए अभी भी लंदन में मेरे रहने का खर्च उठाना आसान नहीं था, मगर मेरे मातापिता ने मुझे कभी यह महसूस नहीं होने दिया कि मुझे पढ़ाना उन के लिए कठिन है.

एक महिला के तौर पर आगे बढ़ने के लिए क्या कभी असुरक्षा का एहसास हुआ?

मुझे अपने जैंडर के कारण कभी किसी समस्या का सामना नहीं करना पड़ा. मगर मुझे पता है कि बहुत सी महिलाएं ऐसी समस्याओं का सामना करती हैं और यह बहुत दुख की बात है. काम करने की जगह पर महिलाओं को सुरक्षित वातावरण मिलना बहुत जरूरी है. मैं उन महिलाओं को सलाम करती हूं जो रोज मुश्किलों से लड़ती हैं और आगे बढ़ती हैं.

भारत में महिलाओं की स्थिति के बारे में क्या कहेंगी?

आज व्यवसाय के क्षेत्र में महिलाओं के बढ़ते योगदान को देख कर बहुत हर्ष होता है. वे बड़ी कंपनियों में महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं निभा रही हैं या फिर खुद का व्यवसाय चला रही हैं. महिलाएं ग्लास सीलिंग तोड़ कर हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना रही हैं. खुद एक भारतीय महिला होने के नाते मुझे इस पर बहुत गर्व है.

क्या आज भी महिलाओं पर अत्याचार और उन के साथ भेदभाव होता है?

मैं ने व्यक्तिगत रूप से ऐसे किसी भी उदाहरण का अनुभव नहीं किया है, लेकिन मुझे पता है कि हमारे देश में बहुत सारी महिलाएं दर्द में हैं. चीजें धीरेधीरे, लेकिन निश्चित रूप से सुधर रही हैं और मेरा मानना है कि भारत को आगे बढ़ाने के लिए पुरुषों और महिलाओं का कंधे से कंधा मिला कर चलना जरूरी है.

ग्लास सीलिंग के बारे में क्या कहेंगी?

अधिकांश प्रमुख संगठन आज स्त्रीपुरुष को समान अवसर देते हैं और लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं करते. यदि आप किसी ऐसे संगठन में काम करते हैं जो लिंग पर आधारित किसी भी प्रकार का भेदभाव करता है तो आप को उस का बहिष्कार करना चाहिए. एक कुशल और मेहनती प्रोफैशनल के लिए अवसरों की कोई कमी नहीं होती है. हमें अपने लिंग को परिभाषित करने से इनकार करना चाहिए.

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