Sad Hindi Story: जाने के बाद- उजड़े सिंदूर से व्यथित पत्नी

Sad Hindi Story: काश, यह सपना ही होता क्योंकि मेहंदी का रंग हलका भी नहीं हुआ था, मन की हसरतें पूरी भी न हुई थीं और प्रियांश का पार्थिव शरीर कल्याणी के सामने था. बाहर मीडिया का शोर है. उस से ज्यादा शोर कल्याणी के हृदय में मच रहा है.

कितना कुछ है उस के भीतर, उसे समझ ही नहीं आ रहा है कि वह कहां है. एक पल वह कमरे में चल रहे एसी से खुद को यकीन दिलाती है कि वह पहाड़ों की ठंडी हवाओं में नहीं, मैदानी इलाके में वापस लौट आई है और दूसरे ही पल उसे लगता है कि उस ने एक खौफनाक सपना देखा है और नींद खुल जाने से उस की जान बच गई है. कभी उस के जेहन में खयाल आता है कि अभी उस की शादी ही कहां हुई हैं, अभी तो उस के हनीमून की जगह ही फाइनल नहीं हो पाई है.
प्रियांश भी तो फोन पर यही कह रहा था- ‘सुनो, एक बात तो पूछनी ही रह गई?’
‘यही घंटाभर पहले ही तुम ने कितने प्रश्न किए थे- कौन सा रंग पसंद है? कौन सी मिठाई पसंद है? कौन सी किताब पसंद है? अब और क्या रह गया है? मुझे तो लगता है तुम्हारी कोई गर्लफ्रैंड कभी रही ही नहीं.’
‘तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?’
‘क्योंकि जो बातें तुम मुझ से पूछते हो न, वह टीनऐजर एकदूसरे से पूछते हैं. हमारी 2 महीने में शादी होने वाली है. कुछ मैच्योर बातें करो.’
‘तुम्हीं बता दो न फिर, वह मैच्योर बातें,’ प्रियांश ने कहा.
‘हम लोग हनीमून पर कहां चलें, यह पूछो तो लगे भी कि होने वाले पतिपत्नी की बातें हैं.’
‘ओह हां, दरअसल पूछना तो यही चाहता था मगर वह गले में अटक कर रह जा रहा था,’ प्रियांश ने कहा.
‘सो स्वीट, तुम कितने सौम्य हो, वह गाना सुना है- ‘बड़ा भोला सा है दिलबर…’ मुझे तो लगता है कि तुम शादी के बाद भी मुझ से पूछे बिना मेरा हाथ नहीं पकड़ोगे, कहोगे, ‘सुनो, क्या मैं तुम्हारा हाथ थाम सकता हूं’.’
‘उड़ा लो मजाक, शादी के बाद ही तुम्हें पता चलेगा कि मेरी पकड़ कितनी मजबूत है. अभी तो तुम पराई ही हो मेरे लिए. एक बार हमारी शादी हो जाए, फिर देखना, मेरे हाथों की पकड़. अरे देखो न, जो पूछना था वह तो रह ही गया.’
‘हनीमून की जगह न? मैं हनी हूं और तुम मून हो. जब हम दोनों एकसाथ हो जाएंगे तो वह जगह हनीमून की, अपनेआप ही हो जाएगी. उस के लिए क्यों परेशान हो?’ कल्याणी खिलखिलाई.
‘तो ठीक है मैं बेकार ही एक हफ्ते से टूर एंड ट्रैवल के साथ माथापच्ची करने में लगा हुआ था. सोच रहा था कि तुम्हें सरप्राइज दूंगा. लेकिन मेरे दोस्त तिमिर ने कहा, ‘यार, ऐसी गलती न करना. मैं ने अपनी सुहागसेज लाल गुलाब से भर दी थी और मेघना की छींकछींक कर हालत खराब हो गई. पता चला कि उसे गुलाब क्या हर फूल से एलर्जी है. वह दवा खा कर सो गई और अपनी सुहागरात की ऐसीतैसी हो गई.’
‘अब समझ आया कि फल, फूल, मिठाई के बहाने तुम मेरी एलर्जी का पता लगाना चाहते हो. तो सुनो, न तो मुझे किसी फल, फूल से एलर्जी है और न ही पहाड़ की चोटियों व समुद्र की गहराइयों में जाने से कोई डर या फोबिया है.’
‘तब ठीक है, मैं ने अंडमान और कश्मीर यानी या तो अपने देश के नक्शे में टौप पर या एकदम चरणों में बिछे हुए आइलैंड को फाइनल किया हुआ है. दोनों में से कौन सी जगह है, अब यह सीक्रेट रहेगा,’ प्रियांश ने उत्साह से भर कर कहा.
‘अभी 2 महीने बाकी हैं, देखती हूं तुम्हारे पेट में कितने दिनों तक बात पचती है.’

कल्याणी की आंखें नींद से बोझिल होने लगीं. दवा का असर होने लगा था. मानसिक तनाव घटने से वह नींद की गहराइयों में चली गई.
‘बहनजी, ये गुलाबी लहंगा सगाई के दिन के लिए तो ठीक है मगर शादी के दिन के लिए यह हलका है. यह वाला लहंगा देखिए. यह चटक लाल रंग, इस में जरदोजी और मोतियों का कितना सुंदर काम है. इधर नजर डालिए, इस के निचले भाग में पूरी बरात ही सजी है- डोली ले जाते कहार, आगे शहनाई वादक, डोली के पीछे नाचतेगाते बराती,’ दुकानदार सुभाष पूरी ताकत लगा कर दुकान के सब से कीमती लहंगे को आज ही बेच देना चाहता था. इस परिवार को वह बरसों से जानता है. बड़ी बहन विमिता, भाई आलोक सभी की शादी की शौपिंग उस के शोरूम में आए बिना पूर्ण हो न सकी.
‘ऐसा ही आप ने मेरी शादी पर भी कहा था कि ऐसा लहंगा, बस, एक ही पीस बना है. बाद में मेरी सहेली गौतमी ने भी अपनी शादी में वैसा ही लहंगा पहना हुआ था,’ विमिता तुनक कर बोली.
‘आप ने पूछा नहीं उस से कि उस ने वह लहंगा कहां से खरीदा था?’ सुभाष आज लहंगे को बेचे बिना कहां हार मानने वाला था.
‘आप की दुकान से ही तो लिया था,’ विमिता तुनक कर बोली.
‘आप की शादी की फोटो साथ में ले कर आई थी कि उसे भी ऐसा ही लहंगा बनवाना है, पीछे ही पड़ गई थी. जरा आप ही सोचिए, वह पूरे शहर में लहंगा पसंद करने तो गई ही होगी, फिर भी आप के लहंगे से बेहतर न मिला होगा. तभी तो जिद कर के वैसा ही बनवाया. लेकिन आप की शादी से पहले किसी के पास देखा आप ने ऐसा लहंगा?’
‘हां यह बात तो सही कही आप ने, मेरे लहंगे की कशीदाकारी की तो ससुराल में भी बड़ी चर्चा हुई थी,’ विमिता ने कहा.

‘सुन रही हैं कल्याणी बहन,
आज इस लहंगे को फाइनल
कर दीजिए. आप के लिए ही खास तैयार करवाया है. आप बहनों की पसंद तो बचपन से ही हमें पता है, सब से अलग, हट कर है. आप को हुनर की कद्र भी है और सम?ा,’ सुभाष को लहंगा किसी भी तरह आज बेचना ही है.
‘मु?ो इस का रंग कुछ ज्यादा ही चटख लग रहा है,’ कल्याणी हिचकिचाती
हुई बोलीं.
‘अरे बहन, अभी तो उम्र है चटख पहनने की. वह क्या कहते हैं कि मौका भी है और दस्तूर भी. आप के लिए 5 परसैंट डिस्काउंट.’
‘ओके, इसे तैयार करवा दीजिए.’
कल्याणी ने करवट बदली और नींद खुल गई. बैड में अभी भी सूखे फूलों की डोरियां लटकी हुई थीं जिन्हें देख कर कल्याणी की आंखों से आंसू गिरने लगे. वह वर्तमान में लौट आई थी.
तभी कमरे का दरवाजा खुला, विमिता हाथ में भोजन की थाली उठाए चली आ रही थी.
‘‘क्या प्रियांश आ गए?’’ आंखों से बहते आंसुओं को पोंछती हुई कल्याणी ने कहा.
थाली को बैड के साइड टेबल पर रख कर विमिता ने उस के आंसू पोंछे और उस के होंठों की तरफ पानी का गिलास बढ़ाते हुए कहा, ‘‘कल सुबह तक आ जाएंगे,’’
‘‘वे ठीक तो हो जाएंगे न?’’ कल्याणी ने उस के हाथ को बीच में ही रोक कर पूछा.
‘‘हां श-शायद,’’ कहते हुए उस की जबान लड़खड़ा गई.
‘‘ठीक ही होंगे, उन्हें कुछ नहीं हो सकता. मैं भी तो बच गई न उस गोलाबारी के बीच. बहुत से बच गए. सब दौड़ पड़े थे न. प्रियांश को तो गोली लगी थी, वे पीछे रह गए थे. बाद में सब को अस्पताल ले कर गए थे न वे लोग. उन्हें भी ले कर गए थे. वे लोग कह रहे थे, तुम चिंता मत करो, उसे कुछ नहीं होगा,’’ कल्याणी बड़बड़ाने लगी.

विमिता उस की बात में हांहां कहती हुई उस के मुंह में रोटी के दोचार कौर ठूंसने में सफल हो गई.
‘‘सुनो न, वे आतंकवादी उन्हीं घने पेड़ों के जंगल से अचानक निकल कर आए थे जहां सब लोग रील बना रहे थे. गोलियां चलने लगीं, सब भागने लगे.  कुछ लोगों को 4 लोगों ने घेर लिया, वहीं पर शूट कर दिया. हम भी हाथ पकड़ कर भागे लेकिन तब तक इन के कमर में गोली मार दी गई थी. मेरे हाथों में भी खून ही खून हो गया था.’’
‘‘मुंह खोलो, यह दवा खा लो,’’ उस की बारबार दोहराई जाने वाली बातों को विमिता ने बीच में ही काट दिया.
कल्याणी अपने मेहंदी रचे हाथों को घूरघूर कर देखने लगी, फिर उठ कर वाशबेसिन में हैंडवाश से हथेलियों को रगड़रगड़ कर धोने लगी मानो हाथों में लगे खून को साफ करना चाह रही हो.
विमिता जो कल से अपनी छोटी बहन की इसी कहानी और हरकत को दोहराते हुए देख रही थी, अपने आंसुओं को पोंछ कर कल्याणी को संभालने के लिए उठी और उस के हाथों को तौलिए से पोंछते हुए बोली, ‘‘यह देखो, तुम्हारे हाथ एकदम साफ हैं, इन में कुछ नहीं लगा है.’’
‘‘मेहंदी लगी हुई है, देखो न, कितनी गहरी रची है. वह तुम्हारी फ्रैंड गौतमी क्या कह रही थी, याद है?’’
‘‘नहीं, मुझे कुछ याद नहीं,’’ विमिता ने कहा.
‘‘यही कि जिस की मेहंदी जितनी गहरी रचती है, उस का पति उसे उतना ही ज्यादा प्यार करता है. सच है एकदम. ये भी मुझे बहुत प्यार करते हैं. यह देखो, मेरी मेहंदी का रंग इसी बात का सुबूत है,’’ कल्याणी की बहकीबहकी बातें सुन कर विमिता का कलेजा मुंह को आने लगा.

उस ने कल्याणी को बिस्तर पर लिटा दिया. उस का माथा दबाती हुई बोली, ‘‘सो जा, बहन. सुबह बहुत से काम करने होंगे.’’
‘‘कौन से काम, मैं कोई काम नहीं करूंगी. कल तो प्रियांश भी अस्पताल से घर आ जाएंगे. वे तो कहते हैं, ‘मैं तो तुम्हें रानी बना कर रखूंगा,’’ कल्याणी बुदबुदाने लगी. दवा के असर से उस की आंखें बंद होने लगीं.
विमिता ने उस के कमरे की रोशनी धीमी कर दी और खाने की थाली ले कर बाहर निकल गई.
तेज पटाखों की रोशनी व शोर, बैंडबाजों की धुनों के बीच घोड़ी पर सवार प्रियांश, उस के दरवाजे बाजेगाजे के साथ पहुंच गया. कल्याणी अपनी छत से उसे देख रही है. नीचे दूल्हे की द्वारचार की रस्म चल रही है.
‘चल कल्याणी, बहुत देख ली अपनी बरात,’ उसे गौतमी ने छेड़ा.
‘‘चल उठ, कल्याणी,’’ विमिता ने उसे जगा दिया.
‘‘प्रियांश, प्रियांश कहां हैं?’’
‘‘बाहर चलो, सभी वही हैं.’’
‘‘लेकिन मैं तो अभी तैयार नहीं हुई. इतनी जल्दी बरात कैसे आ गई, क्या मेरी विदाई ऐसे ही हो जाएगी?’’ कल्याणी
ने पूछा.
‘‘तेरी नहीं, प्रियांश की अंतिम विदाई है. जा बहन, उस के अंतिम दर्शन कर ले. वह आतंक का शिकार हो गया है. उसे आने में इसीलिए देर हुई क्योंकि बहुत सी कानूनी कार्यवाही पूरी करनी थी. तुझे तो ग्रुप के साथ पहले भेज दिया गया था. होश में आ, कल्याणी.’’
‘‘तुम झूठ कह रही हो, अभी मेरी शादी ही कहां हुई, अभी तो सिर्फ बरात ही आई है,’’ कल्याणी सच को स्वीकारने की स्थिति में नहीं थी.
कल्याणी के आगे उस के विवाह कार्ड को लहराते हुए विमिता ने कहा, ‘‘याद कर, एक हफ्ते पहले ही तेरी शादी हुई है. फिर तुम लोग कश्मीर घूमने गए थे और वहीं आतंकवादी हमले में जो लोग शहीद हो गए उन्हीं में एक तेरा, हमारा, हम सब का प्यारा प्रियांश भी था. इस सच को स्वीकार कर लो, बहन. पिछले एक हफ्ते में तेरी जिंदगी इतनी तेजी से भागी है कि तेरे दिलोदिमाग पर गहरा असर हो चला है,’’ विमिता उसे सहारा दे कर बाहर के कमरे में ले आई.
उस कमरे से बाहर गेट तक प्रियांश के पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि देने के लिए लोगों की कतारें लगी हुई थीं. मीडिया के फ्लैश उसे देखते ही चमकने लगे.
मीडियाकर्मी उस के मुंह पर माइक लगाने को उतावले हो उठे, ‘‘आप बताइए कि यह सब कैसे हुआ?’’
‘‘सब से पहले आतंकियों ने किसे गोली मारी थी?’’
‘‘आप के साथ और कौनकौन था?’’
‘‘कितने आतंकी थे? आप ने उन का चेहरा देखा था या उन के मुंह ढके
हुए थे?’’
‘‘उन का हुलिया, मतलब, पहनावा कैसा था?’’
‘‘नहीं, यह सच नही है. कहो कि सब ठीक है,’’ कल्याणी चीत्कार कर उठी और प्रियांश के पार्थिव शरीर से लिपट गई. उस के माथे को बारबार चूमती हुई कहने लगी, ‘‘उठो
प्रियांश, कहो न, कहो प्रियांश, यह सब ठीक है.’’
‘‘मेरे बस में होता तो इस घटना को झुठला देती,’’ कह कर विमिता उस के गले लग कर, फफक कर रो पड़ी.
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Wedding Vibes : मुझसे 5 साल छोटा एक लड़का शादी करने को तैयार है, बताएं क्या करूं?

Wedding Vibes  : अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है, तो ये लेख अंत तक पढ़ें

सवाल

मैं 38 साल की कामकाजी अविवाहिता हूं. घर की परिस्थिति कुछ ऐसी थी कि शादी नहीं कर पाई. इस का कुसूरवार भी मैं खुद को मानती हूं. माता पिता जब तक थे तब तक सहारा था अब भाई भाभी अपनीअपनी जिंदगी में व्यस्त रहते हैं तो कई बार अकेलापन महसूस होता है. क्या शादी से मेरा अकेलापन दूर हो सकता है और मुझे जिंदगी जीने का मकसद मिल सकता है? मुझसे 5 साल छोटा एक लड़का शादी करने को तैयार है पर सोचती हूं कि न जाने परिवार और समाज क्या सोचेगा? बताएं क्या करूं?

जवाब

पलपल बदलती दुनिया में कई बार अकेलापन महसूस होता है. आप के साथ इस की वजहें भी हैं. मातापिता के गुजर जाने के बाद जाहिर है आप अपना दुखदर्द शायद ही किसी के साथ बांट पा रही होंगी.

कई ऐसी बातें होती हैं, जिन्हें आप किसी से भी फिर चाहे वे दोस्त हों या रिश्तेदार खुल कर नहीं कह सकतीं. यों तो अकेलापन दूर करने के कई साधन हैं पर चूंकि आप विवाह करने को उत्सुक हैं तो समाज व रिश्तेदारों की परवाह किए बगैर शादी कर सकती हैं.

आप से 5 साल छोटा लड़का आप से विवाह करने को इच्छुक है तो बिना वक्त गंवाए शादी के लिए हामी भर दें. इस से न सिर्फ आप का अकेलापन दूर हो जाएगा, आप को जीने का मकसद भी मिल जाएगा. लड़का इतना भी छोटा नहीं है कि आप की जोड़ी बेमेल लगे. समाज में ऐसे कई उदाहरण हैं, जो उम्र में काफी अंतर होने के बावजूद अच्छा व खुशहाल शादीशुदा जीवन बिता रहे हैं. यदि बाद में कोई दिक्कत होगी तो देखा जाएगा. यह जोखिम वह लड़का ले रहा है, आप नहीं.

पाठक अपनी समस्याएं इस पते पर भेजें : गृहशोभा, ई-8, रानी झांसी मार्ग, नई दिल्ली-110055.

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Love Stories In Hindi : कैक्टस के फूल- क्या विजय और सुषमा बन पाए हमसफर

Love Stories In Hindi : फोन आने की खबर पर सुषमा हड़बड़ी में पलंग से उठी और उमाजी के क्वार्टर की ओर लंबे डग भरती हुई चल पड़ी. कैक्टस के फूलों की कतार पार कर के वह लौन में कुरसी पर बैठी उमाजी के पास पहुंच गई.

‘‘तुम्हारे कजिन का फोन आया है, वह शाम को 7 बजे आ रहा है. उस के साथ कोई और भी आ रहा है इसलिए कमरे को जरा ठीकठाक कर लेना,’’ उमाजी के चेहरे पर मुसकराहट आ गई.

उमाजी के चेहरे पर आज जो मुसकराहट थी, उस में कुछ बदलाव, सहजता और सरलता भी थी. उमाजी तेज स्वर में बोली, ‘‘आज कोई अच्छी साड़ी भी पहन लेना. सलवारकुरता नहीं चलेगा.’’

बोझिल मन के साथ वह कब अपने रूम में पहुंच गई उसे पता ही नहीं चला. एक बार तो मन में आया कि वह तैयार हो जाए, फिर सोचा कि अभी से तैयार होने से क्या फायदा? आखिर विजय ही तो आ रहा है.

कई महीने पहले की बात है, उस दिन सुबह वाली शटल टे्रन छूट जाने के बाद पीछे आ रही सत्याग्रह ऐक्सप्रैस को पकड़ना पड़ा था. चैकिंग होने की वजह से डेली पेसैंजर जनरल बोगी में लदे हुए थे. वह ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रही थी तभी टे्रन चल पड़ी. गेट पर खड़े विजय ने उस का हाथ पकड़ कर उसे गेट से अंदर किया था. उस ने कनखियों से विजय को देखा था. सांवले चेहरे पर बड़ीबड़ी भावुक आंखों ने उसे आकर्षित कर लिया था.

उस के बाद वह अकसर विजय के साथ ही औफिस तक की यात्रा पूरी करती. विजय राजनीति, साहित्य और फिल्मों पर अकसर बहस व गलत परंपराओं और कुरीतियों के प्रति नाराजगी प्रकट करता. विजय मेकअप से पुती औरतों पर अकसर कमैंट करता. इस बात पर वह सड़क पर ही उस से झगड़ा करती और फिर विजय के हावभाव देखती.

एक दिन सुबह ही वह उमाजी के क्वार्टर पर पहुंची और उन से फिरोजाबाद से मंगाई चूडि़यां मांगने लगी थी. ‘मैडम, आप ने कहा था कि रंगीन चूडि़यां तो आप पहनती नहीं हैं, आप के पास कई पैकेट आए थे, उन में से एक…’

‘अरे, तुझे चूडि़यों की कैसे याद आई? तू तो कहती थी कि साहब के सामने डिक्टेशन लेने में चूडि़यां बहुत ज्यादा खनकती हैं. एकदो पैकेट तो मैं ने आया मां की लड़की को दे दिए हैं, वह ससुराल जा रही थी पर तुझे भी एक पैकेट दे देती हूं.’

एक दिन उमाजी ने सुषमा से मुसकराते हुए पूछा, ‘तुम्हारे जिस कजिन का फोन आता है, उस से तुम्हारा क्या रिश्ता है?’

वह एकदम हड़बड़ा सी गई. उस ने अपने को संयत करते हुए कहा, ‘अशोक कालोनी में मेरे दूर के रिश्ते की आंटी हैं, उन का बेटा है.’

‘सीधा है, बेचारा,’ उमाजी मुसकराईं.

‘क्या मतलब आंटी? कैसे? मैं समझी नहीं,’ उस ने अनजान बनने की कोशिश की.

‘मैं ने फोन पर उस से तेज आवाज में पूछ लिया कि आप सुषमा से बात तो करना चाहते हैं पर बोल कौन रहे हैं, तो वह हड़बड़ा कर बोला, ‘मैं विजय सरीन बोल रहा हूं, मैं बहुत देर तक सोचती रही कि सरीन सुषमा गुप्ता का कजिन कैसे हो सकता है.’

‘ओह आंटी, आप को तो सीबीआई में होना चाहिए था. एक होस्टल वार्डन का पद तो आप के लिए बहुत छोटा है.’

उमाजी सुषमा में आए परिवर्तन को अच्छी तरह समझने लगी थीं. वे बेटी की तरह उसे प्यार करती थीं.

मुरादाबाद में सांप्रदायिक दंगे होने के कारण टे्रनों में भीड़ नहीं थी. एक दिन विजय उसे पेसैंजर टे्रन में मिल गया था. कौर्नर की सीट पर वह और विजय आमनेसामने थे. हलकी बूंदाबांदी होने से बाहर की तरफ फैली हरियाली मन को अधिक लुभा रही थी. सुषमा भी बेहद खूबसूरत नजर आ रही थी.

‘आज तुम्हें देख कर करीना कपूर की याद ताजा हो रही है,’ विजय ने उस को देख कर कहा. उसे लगा कि विजय ने शब्द नहीं चमेली के फूल बिखेर दिए हों. उस ने एक नजर विजय की ओर डाली तो वह दोनों हाथ खिड़की से बाहर निकाल कर बरसात की बूंदों को अपनी हथेलियों में समेट रहा था.

वह उस से कहना चाहती थी कि विजय, तुम्हें एकपल देखने के लिए मैं कितनी रहती हूं. तुम से मिलने की खातिर बेचैन अलीगढ़, कानपुर, इलाहाबाद शटल को छोड़ कर सर्कुलर से औफिस जाती हूं और देर से पहुंचने के कारण बौस की झिड़की भी खाती हूं.

अकसर विजय उस से मिलने होस्टल भी आ जाता था. उसे भी रविवार और छुट्टी के दिन उस का बेसब्री से इंतजार रहता था. अकसर रूटीन में वह रविवार को ही कमरा साफ करती थी, पर जब उसे मालूम होता कि विजय आ रहा है तो विशेष तैयारी करती. अपने लिए वह इतनी आलसी हो जाती थी कि मौर्निंग टी भी स्टेशन पहुंच कर टी स्टौल पर पीती. विजय के जाने के बाद जो सलाइस बच जाती उन्हें भी नहीं खाती. उसे या तो चूहे खा जाते या फिर माली के लड़के को दे देती, जिन्हें वह दूध में डाल कर बड़े चाव से खाता.

एक दिन विजय ने सुषमा के सारे सपने तोड़ दिए थे. डगमगाते कदमों से वह रूम तक आया और ब्रीफकेस को पटक कर पलंग पर लेट गया. शराब की दुर्गंध पूरे कमरे में फैल गई थी. उस ने उठ कर दरवाजे पर पड़ा परदा हटा दिया था.

उसे आज विजय से डर सा लगा था, जबकि वह उस के साथ नाइट शो में फिल्म देख कर भी आती रही है.

‘सुषमा, तुम जैसी खूबसूरत और होशियार लड़की को अपना बनाने में बहुत मेहनत करनी पड़ती है. उस दिन ट्रेन में पहले मैं चढ़ा था, मैं जानता था कि चलती टे्रन में चढ़ने के लिए तुम्हें सहारे की जरूरत होगी. उस दिन तुम्हें सहारा दे कर मैं ने आज तुम्हें अपने पास पाया,’ विजय ने लड़खड़ाती जबान से बोला.

उस ने सोचा था कि अपने सपनों को भरने के लिए उस ने गलत रंगों का इस्तेमाल कर लिया है. उस का चुनाव गलत साबित हुआ है. उस दिन सुषमा एक लाश बनी विजय को देखती रही थी. चौकीदार की सहायता से उस की मोटरसाइकिल को अंदर खड़ा करवा कर उसे ओटो से उस के घर के बाहर तक छोड़ आई थी. सुबह विजय चुपके से चौकीदार से मोटरसाइकिल मांग कर ले गया था.

अगले दिन उमाजी ने सुषमा को एक माह के अंदर होस्टल खाली करने का नोटिस दे दिया था. वह नोटिस ले कर मिसेज शर्मा के पास गई और उन के गले लग कर फफकफफक कर रो पड़ी थी. उमाजी ने नोटिस फाड़ दिया था.

विजय से मिलने में उस की कोई खास दिलचस्पी नहीं रह गई थी. उस ने अब लेडीज कंपार्टमैंट में आनाजाना शुरू कर दिया था. अगर वह स्टेशन पर मिल भी जाता तो हल्का सा मुसकरा कर हैलो कह देती. उस का सुबह उठने से ले कर रात सोने तक का कार्यक्रम एक ढर्रे पर चलने लगा था.

सुषमा की नीरसता से भरी दिनचर्या उमाजी से देखी नहीं गई. एक दिन उमाजी ने उसे चाय पर बुलाया, ‘सुषमा, नारी विमर्श और नारी अधिकारों की चर्चाएं बहुत हैं पर आज भी समाज में पुरुषों का डोमिनेशन है. इसलिए बहुत कुछ इग्नोर करना पड़ता है और तू कुछ ज्यादा ही भावुक है. अपनी जिंदगी को प्रैक्टिकल बना कर खुश रहना सीखो.

‘शराब को ले कर ही तो तुम्हारे अंकल से मैं लड़ी थी. 2 दिन बाद ही एक विमान दुर्घटना में उन की मौत हो गई. आज भी उस बात का मुझे दुख है.’

अचानक स्मृतियों की शृंखला टूट गई. सुषमा ने देखा कि गेट पर उमाजी खड़ी थीं. उन के हाथ में रात में खिले कैक्टस के फूल के साथ ही पिंक कलर की एक साड़ी थी.

‘‘आंटीजी, आप ने मुझे बुला लिया होता,’’ सुषमा को पता है कि पिंक कलर विजय को पसंद है.

‘‘जाओ, इस साड़ी को पहन लो.’’

साड़ी पहन कर जैसे ही सुषमा कमरे में आई तो उसे उमाजी के साथ एक और भद्र महिला दिखीं. उमाजी ने परिचय कराया, ‘‘यह तुम्हारे कजिन विजय की मम्मी हैं.’’

‘‘सुषमा, मेरा बेटा बहुत नादान है. तुम तो बहुत समझदार हो. उस के लिए तुम से मैं माफी मांगने आई हूं. तुम दोनों की स्मृतियों के हर पल को मैं ने महसूस किया, क्योंकि तुम्हारे से हुई हर मुलाकात का ब्योरा वह मुझे देता था. जिस रात तुम ने उसे घर तक छोड़ा है, उस रात वह मेरे गले लग कर बहुत रोया था. तुम उस के जीवन में एक नया परिवर्तन ले कर आई हो,’’ विजय की मम्मी ने सुषमा के चेहरे से नजरें हटा कर उमाजी की ओर डालीं, ‘‘उमाजी ने तुम तक पहुंचने में हमारी बहुत मदद की है. मैं तुम्हें अपनी बहू बनाना चाहती हूं, क्योंकि मेरे बेटे के उदास जीवन में अब तुम ही रंग भर सकती हो. यह साड़ी में उसी की पसंद की तुम्हारे लिए लाई हूं.’’

‘‘सुषमा, हर बेटी को विदा करने का एक समय आता है. विजय ने तुम्हें एक अंगूठी दी थी, तुम ने उसे कहीं खो तो नहीं दिया है.’’

‘‘नहीं आंटी, वह ट्रंक में कहीं नीचे पड़ी है,’’ सुषमा ने ट्रंक खोल कर अंगूठी निकाली तथा सड़क की ओर खुलने वाली खिड़की को खोल दिया.

सुषमा ने देखा, बाहर मोटरसाइकिल पर विजय बैठा था. उमाजी और विजय की मम्मी ने एकसाथ आवाज दी, ‘‘विजय, ऊपर आ जा. इस अंगूठी को तो तू ही पहनाएगा,’’ सुषमा को लगा जैसे उस के सपने इंद्रधनुषी हो गए हैं.

Grihshobha Empower Her : Event Kicks Off in Chandigarh with Great Enthusiasm

Grihshobha Empower Her : The Delhi Press Publication successfully launched the “Grihshobha Empower Her” event at Kalagram, Chandigarh, on 7th December 2024 at 11 AM. The participating women were visibly excited—and why wouldn’t they be? Partnering with Grihshobha gave them an opportunity to get inspired, learn, and empower themselves.

The “Grihshobha Empower Her” initiative aims to help women advance in the fields of health, beauty, and financial planning. From skincare and wellness tips to smart saving strategies, this program is designed to empower women to live their best lives. After successful editions in Delhi, Mumbai, Ahmedabad, Lucknow, Bangalore, and Ludhiana, the event finally made its way to Chandigarh.

The event’s associate sponsors included Dabur Chyawanprash, beauty partner Green Leaf Brillance, skincare partner La Shield, and homeopathy partner SBL Homeopathy. Throughout the event, these brands organized interactive sessions and fun games, with participants also receiving gift hampers.

By 12 PM, the hall was packed. Women were welcomed with snacks and tea, followed by the formal inauguration by Vandana, who beautifully outlined the day’s agenda.

 Women’s Health & Wellness Session

The Dabur Chyawanprash session on women’s health and wellness was led by Dr. Madhu Gupta, an Ayurvedic doctor with over 20 years of experience.

Currently practicing at Shakti Bhavan, Panchkula, she holds an MD in Kayachikitsa (Medicine) from RGGPG Ayurvedic College, Himachal Pradesh and a Bachelor’s in Ayurvedic Medicine from Shri Dhanwantri Ayurvedic College, Chandigarh. She specializes in lifestyle disorders and autoimmune diseases.

Dr. Gupta spoke in detail about iron deficiency in women, a common yet often overlooked health issue, and shared effective remedies.

Financial Planning & Investment Session for Women

Financial expert Devendra Goswami, with over 21 years of experience in money management and financial planning, conducted this session. A graduate from SCD Government College and holding a Master’s in Financial Planning from PCTE, he has worked with top banks and corporations and is the founder of Bluerock Wealth Private Limited.

He explained why financial literacy is crucial for women, emphasizing saving a portion of income and investing wisely for economic independence. He introduced Systematic Investment Plans (SIPs) in mutual funds as a smart way to invest small amounts monthly. He also highlighted the importance of life and health insurance, empowering women to secure their future.

SBL Homeopathy Session

Dr. Shweta Goel, a gold medalist in BHMS from Panjab University, Chandigarh, and an MD in Homeopathy (specializing in Greece), shared insights on managing menopause-related health issues with homeopathy. With over five years of experience, she runs two clinics in Punjab and focuses on treating chronic ailments from the root.

La Shield Beauty & Skincare Session

Health and savings have been discussed, but some important topics essential for women are still left — yes, we’re talking about beauty.

During the event, beauty and skincare expert Dr. Rashmi Mahajan, representing ‘La Shield’, shed light on various aspects related to facial beauty. She spoke about the factors that damage the skin and how it can be protected effectively.

Grand Finale

As the event concluded, women enjoyed lunch, collected their goodie bags from the registration desk, and headed home after a fulfilling and empowering day.

This Grihshobha Empower Her event once again proved to be a transformative experience, equipping women with knowledge and tools to lead healthier, financially secure, and more confident lives.

 

Family Story : तेरी सास तो बहुत मौडर्न है

Family Story : आज सुबहसुबह जैसे ही नियति का फोन श्रीकांतजी के मोबाइल पर आया, उन की पत्नी लीला ने उन्हें फोन स्पीकर पर डालने का इशारा किया और उन्होंने स्पीकर औन कर दिया.

नियति हंसती हुई बोली, “हैलो पापा, आप ने स्पीकर औन कर लिया हो और मम्मी आ गई हों तो मैं अपनी बात शुरू करूं.”

पिछले 2 महीनों से यही चल रहा है. नियति का फोन जब भी आता है, श्रीकांतजी स्पीकर औन कर देते हैं क्योंकि नियति और उस की मां लीला की बातचीत तब से बंद है, जब से नियति ने अपना निर्णय सुनाया है कि वह शादी अपने कलिग और स्कूल फ्रैंड विकल्प से ही करना चाहती है. यह बात जानते ही दोनों मांबेटी के बीच अबोलेपन ने अपना स्थान ले लिया. लेकिन जब भी नियति का फोन आता है, लीला अपने सारे काम छोड़ कर फोन के करीब आ जाती है, यह जानने के लिए कि नियति क्या कह रही है.

नियति की बातों को सुन कर लीला के चेहरे के हावभाव बनतेबिगड़ते रहते हैं, क्योंकि लीला किसी हाल में नहीं चाहती कि उन की बेटी किसी विजातीय लड़के से ब्याह करे.

वैसे, लीला क‌ई दफा विकल्प की मां मिसेज चंद्रा से नियति के स्कूल फंक्शन और पैरेंट्स टीचर मीटिंग में मिल चुकी है. मिसेज चंद्रा मौडर्न और स्वतंत्र विचारधारा की महिला है.

लीला को लगता है कि मिसेज चंद्रा जरूरत से ज्यादा ही मौडर्न है. मिस्टर चंद्रा इंडियन नेवी में वरिष्ठ अधिकारी के पद पर थे. उन का घर ग्वालियर के पौश एरिया में है और काफी आलीशान भी है. नौकरचाकर सब हैं. किसी चीज की कोई कमी नहीं है. उन के घर का वातावरण, रहनसहन थोड़ा भिन्न है, जो लीला को शुरू से ही अटपटा लगता आया है. क्योंकि लीला जहां रहती है, वहां की औरतें ना तो मिसेज चंद्रा की भांति बिना आस्तीन का ब्लाउज पहनती हैं और ना ही बिना सिर पर पल्लू लिए घर से बाहर निकली हैं. ऊपर से इन का पूरा परिवार शुद्ध शाकाहारी और उन के घर पर बिना अंडा, मांस, मछली के काम ही नहीं चलता.

श्रीकांतजी एक सुलझे हुए और सरल व्यक्तिव के धनी हैं. उन्हें इस रिश्ते से कोई एतराज नहीं, क्योंकि उन के लिए तो नियति की खुशी ही सब से बड़ी है. उन का मानना है कि जातिपांति, धर्म कुछ नहीं होता, मनुष्य की बस एक ही जाति है और एक ही धर्म होता है और वह है मानवता का धर्म. श्रीकांतजी को मिसेज चंद्रा के मौडर्न होने से भी कोई तकलीफ नहीं है.

श्रीकांतजी ने भी हंसते हुए कहा, “हां बोलो, तुम्हारी मम्मी आ गई हैं.”

“पापा, कल मैं और विकल्प ग्वालियर आ रहे हैं, फिर शाम को विकल्प के मौमडैड आप और मम्मी से हमारी शादी की बात करने आएंगे.”

श्रीकांतजी नियति को आश्वस्त करते हुए बोले, “तुम चिंता मत करो. सब ठीक होगा.”

यह सुनने के बाद नियति ने कहा, “थैंक्यू पापा, मुझे आप से एक बात और शेयर करनी है. मैं ने और विकल्प ने कंपनी चेंज कर ली है. हमारी न‌ई कंपनी का सबडिविजनल औफिस ग्वालियर में भी है तो शादी के बाद हम दोनों ग्वालियर आ जाएंगे.”

“यह तो और भी अच्छी बात है. हमारी बेटी शादी के बाद भी इसी शहर में रहेगी, हमें और क्या चाहिए. यह खबर सुनते ही तुम्हारी भाभी बहुत खुश हो जाएगी.”

भाभी का नाम सुनते ही नियति चहकती हुई बोली, “पापा, भाभी कहां है. बात तो कराइए.”

“इस वक्त तो वह किचन में व्यस्त है.”

नियति थोड़ा नाराज होती हुई बोली, “पापा, मैं ने मम्मी से कितनी बार कहा है कि एक फुल टाइम मैड रख लो, सुबह से ले कर रात तक भाभी बेचारी घर के कामों में ही उलझी रहती है. यहां तक कि उन के पास अपने खुद के लिए भी समय नहीं होता. और मम्मी हैं कि कुछ समझती ही नहीं. उन्हें लगता है कि घर का सारा काम बहू का ही है. ऊपर से भाभी को सारे काम साड़ी पहन कर करने पड़ते हैं. उन्हें काम करने में कितनी असुविधा होती है.

“पापा आप मम्मी को समझाइए, वक्त तेजी से बदल रहा है. अब मम्मी को भी थोड़ा बदलना होगा. अच्छा पापा, अब मैं फोन रखती हूं.”

ऐसा कह कर नियति ने फोन रख दिया.

नियति के फोन रखते ही लीला के चेहरे का रंग गुस्से से लाल हो गया और वह बड़बड़ाती हुई कहने लगी, “लो… अब ये छोरी सिखाएगी मुझे बहू से क्या काम करवाना है और क्या नही. खुद को तो ढेलेभर की अक्ल नहीं. एक ऐसी औरत की बहू बनने को उतावली हुए जा रही है, जिसे हमारी संस्कृति का जरा सा भी ज्ञान नहीं. ना तो वह अपने सिर पर पल्लू लेती है और ना ही उसे छोटेबड़े का लिहाज है. शादी हो जाने दो, फिर पता चलेगा मौडर्न सास कैसी होती है.”

लीला को अपनी स्वयं की बेटी के लिए इस प्रकार मुंह से आग उगलता देख श्रीकांतजी बोले, “अब बस भी करो लीला, मिसेज चंद्रा मौडर्न हैं, इस का मतलब यह नहीं कि वे बुरी हैं या फिर बुरी सास ही साबित होगी, कम से कम अपनी बेटी के लिए तो अच्छा सोचो और अच्छा बोलो. विकल्प अपने पैरेंट्स के साथ हम से मिलने आ रहा है. कल न‌ए रिश्तों की नींव पड़ने वाली है. मैं नहीं चाहता कि किसी भी रिश्ते की शुरुआत खटास से हो.”

श्रीकांतजी के ऐसा कहते ही लीला कोई प्रतिक्रिया व्यक्त किए बगैर वहां से चली गई.

दूसरे दिन नियति आ गई. शाम की पूरी तैयारियां जोरों पर थीं. वह वक्त भी आ गया, जब विकल्प अपने पैरेंट्स के साथ नियति के घर पहुंचा.

मिसेज चंद्रा की खूबसूरती आज भी बरकरार थी. उसे देखते ही लीला मन ही मन कुड़कुड़ाने लगी. जवान बेटे की मां और ये साजोसिंगार, अपनी उम्र तक का लिहाज नहीं. आग लगे ऐसे मौडर्ननेस को, लेकिन मिसेज चंद्रा इन सब से बेखबर, घर के सभी सदस्यों के साथ बड़ी आत्मीयता से मिल रही थी. बातों ही बातों में मिसेज चंद्रा ने कहा, “मैं बड़ी खुश किस्मत हूं, जो मुझे नियति जैसी खूबसूरत और समझदार बहू मिल रही है. मैं ढूंढ़ने भी निकलती तो नियति जैसी बहू मुझे नहीं मिलती.”

मिसेज चंद्रा के ऐसा कहने पर लीला व्यंग्यात्मक लहजे में बोली, “खूबसूरत, समझदार के साथसाथ कमाऊ बहू भी मिल रही है मिसेज चंद्रा, ये कहना भूल ग‌ईं आप.”

लीला का ऐसा कहना श्रीकांतजी, नियति और उस के भैयाभाभी को बड़ा अटपटा और बुरा लगा, लेकिन मिसेज चंद्रा बड़े सहज भाव से लीला की बातों को हंसी में उड़ा गई. उस के कुछ सप्ताह बाद नियति और विकल्प की शादी बड़े धूमधाम से हो गई.

शादी में आए सभी मेहमानों द्वारा शादी में किए गए शानदार इंतजाम को ले कर खूब तारीफ हुई, साथ ही साथ नियति व विकल्प की भी काफी प्रशंसा हुई. इन सब के अलावा सभी की जबान पर एक और बात की चर्चा जोरों पर थी और वह थी मिसेज चंद्रा की लेटेस्ट ज्वेलरी, स्टाइलिस साड़ी और हेयर स्टाइल.

लीला के सभी सगेसंबंधी और सहेलियां उस से यह कहने से नहीं चूकीं कि लीला बहन तुम ने तो दामाद के संग समधन भी बड़ी जोरदार पाई है. नियति की सास तो बड़ी मौडर्न है. इस उम्र में इतना स्टाइल, कमाल है… तुम्हारी समधन तो काफी स्टाइलिश है.

सभी के मुंह से बस एक ही बात सुन कर कि नियति की सास तो बड़ी मौडर्न है, लीला के कान पक गए और जब नियति शादी के बाद पहली बार घर आई तो लीला नियति की खैरखबर लेने के बजाय उस से कहने लगी, “कैसी है तेरी मौडर्न सास..? सजनेसंवरने के अलावा भी कुछ करती है या बस सारा दिन केवल आईने के सामने ही बैठी रहती है.”

अपनी मां का इस तरह बातबेबात नियति को उस की सास के मौडर्न होने का ताना देना उसे अच्छा नहीं लगता, इसलिए धीरेधीरे अब नियति अपने मायके आने से कतराने लगी. बस फोन पर ही अपने पापा और भाभी से बात कर लेती.

औफिस का भी यही हाल था. नियति के हर फैंड्स और कलीग्स को बस यही जानना होता है कि उस की सास का उस के साथ व्यवहार कैसा है..? उसे परेशान तो नहीं करती है…? नियति अपनी सास के होते हुए इतना फ्री कैसे रहती है…? क्योंकि सभी को लगता है कि नियति की सास बड़ी तेजतर्रार, स्टाइलिश और मौडर्न है.

नियति को यह बात समझ ही नहीं आ रही थी कि लोग सभी को एक ही तराजू पर क्यों तौलते हैं. ऐसा जरूरी तो नहीं कि जो महिला स्टाइलिश हो, मौडर्न हो, वह तेजतर्रार और बुरी सास ही होगी और जो देखने में सिंपल हो, सीधीसादी लगती हो, वह अच्छी सास ही होगी.

एक शनिवार नियति अपने मायके में फोन कर अपनी मम्मी से बोली, “मम्मी, इस वीकेंड पर हम पिकनिक पर जा रहे हैं. मौम कह रही थीं कि आप सब भी हमारे साथ चलते तो एक अच्छा फैमिली पिकनिक हो जाएगा. आप भैयाभाभी से भी चलने को कह देना.”

नियति का इतना कहना था कि लीला भड़क उठी और कहने लगी, “हमें कहीं नहीं जाना तेरी मौडर्न सास के साथ और ना ही हमारी बहू जाएगी तुम लोगों के साथ. तुम सासबहू दोनों घूमो जींसपेंट घटका कर पूरे शहर में. तुम्हें ना सही, पर हमें तो है लोकलाज का खयाल.

“वैसे भी तुम्हारी भाभी अपने मायके इंदौर गई है और तुम्हारा पत्नीभक्त भाई उस के साथ ही गया है. दोनों यहां होते भी तो हम में से कोई ना जाता तुम्हारे मौडर्न परिवार के साथ कहीं, क्योंकि उस दिन मेरे गुरुजी का जन्मदिन है, इसलिए हमारी समिति की ओर से इस अवसर पर भव्य सत्संग रखा है. उस दिन गुरुजी सभी को दर्शन और आशीर्वाद देंगे, जो जीवन की सद्गति के लिए बहुत जरूरी है. यह सब तेरी मौडर्न सास क्या समझेगी.”

लीला का इतना कहना था कि नियति ने गुस्से में फोन काट दिया.

निर्धारित दिन पर नियति अपने पूरे परिवार के साथ इधर पिकनिक के लिए निकल पड़ी, उधर लीला और श्रीकांतजी भी गुरुजी से आशीष लेने सत्संग के लिए निकल पड़े.

आज पूरा दिन परिवार के संग इतना अच्छा समय बिता कर नियति काफी खुश थी. उसे बस इस बात का अफसोस था कि आज की इस खुशी का हिस्सा उस के अपने मम्मीपापा केवल उस की मौम की संकुचित मानसिकता की वजह से नहीं बन पाए थे.

पिकनिक से लौटते वक्त नियति इन्हीं सब बातों में गुम थी कि अचानक उस का मोबाइल बजा. फोन किसी अनजान नंबर से था. फोन रिसीव करते ही नियति की आंखों से अविरल अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी.

यह देख नियति की सास ने उस से कारण जानना चाहा, तो नियति रोती हुई बोली, “मम्मी का फोन था. सत्संग से लौटते हुए मम्मीपापा का एक्सीडेंट हो गया है. पापा गंभीर रूप से घायल हो गए हैं. मम्मी को ज्यादा चोटें नहीं आई हैं. मोबाइल भी टूट गया है, इसलिए उन्होंने किसी दूसरे के मोबाइल से फोन किया था. भैयाभाभी भी शहर से बाहर हैं और वहां सिटी अस्पताल में पुलिस प्रक्रिया में देर होने की वजह से पापा का इलाज शुरू नहीं हो पा रहा है. मम्मी बहुत घबराई हुई हैं और परेशान हैं.”

इतना सुनते ही मिसेज चंद्रा बोलीं, “तुम्हें रोने या परेशान होने की जरूरत नहीं बेटा, शहर के डीएसपी से मेरा बहुत अच्छा परिचय है. मैं अभी उन्हें फोन कर देती हूं और अस्पताल में भी फोन कर देती हूं. वहां भी मेरी पहचान के काफी सीनियर डाक्टर हैं, वे सब संभाल लेगें. तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं और कुछ घंटों में तो हम भी शहर पहुंच ही जाएंगे.”

ऐसा कहती हुई मिसेज चंद्रा ने अपने क‌ई मित्रों और पहचान के नामीगिरामी हस्तियों को फोन कर नियति के मम्मीपापा को हर संभव मदद करने को कह दिया.

जब नियति अपने पूरे परिवार के साथ अस्पताल पहुंची, तो उस के मम्मीपापा का इलाज शुरू हो गया था. पुलिस और अस्पताल के डाक्टर व स्टाफ अपना पूरा सहयोग दे रहे थे.

यह देख एक बार फिर नियति की आंखें नम हो गईं और उस के चेहरे पर अपनी सास के प्रति आदर और कृतज्ञता के भाव उभर आए.

नियति की मम्मी 3 दिनों तक अस्पताल में एडमिट रहीं और उस के पापा 15 दिनों तक, मिसेज चंद्रा पूरी आत्मीयता से हर रोज अस्पताल में मिलने जाती. उन की वजह से नियति के मम्मीपापा को अस्पताल में कभी कोई परेशानी नहीं हुई. वहां उन का विशेष ध्यान रखा गया और अस्पताल के डाक्टरों व स्टाफ के द्वारा भरपूर सहयोग मिला. उस के बावजूद मिसेज चंद्रा के प्रति लीला के विचार और बरताव में कोई फर्क नहीं आया.

लीला अब भी अपने स्वस्थ होने और सही समय पर इलाज मिलने का श्रेय अपने गुरुजी की कृपा और आशीर्वाद को ही दे रही थी.

मिसेज चंद्रा को लीला अपने गुरुजी के द्वारा भेजा गया केवल एक माध्यम समझ रही थी, जबकि गुरुजी का इस बात से कोई वास्ता ही नहीं था.

लीला की इस प्रकार अंधभक्ति देख और बारबार अपनी ही मां से अपनी सास के लिए अपमान भरे शब्द सुनसुन कर नियति ने यह तय कर लिया कि वह अब ना तो अपने मायके जाएगी और ना ही अपनी मम्मी को फोन करेगी.

काफी दिनों तक जब नियति अपने मायके नहीं गई, तो एक दिन नियति की सास ने उस से कहा, “नियति बेटा, तुम बहुत दिनों से अपने मायके नहीं गई हो, इस संडे समय निकाल कर उन से मिल आओ. उन्हें तुम्हारी चिंता होती होगी.”

नियति अपनी सास की बात टालना नहीं चाहती थी और ना ही उन्हें सच बता कर उन का दिल दुखाना चाहती थी, इसलिए वह बोली, “जी. इस संडे चली जाऊंगी.”

संडे को जब नियति अपने मायके पहुंची, तो पापा उसे वरांडे में आरामकुरसी पर बैठे किताब पढ़ते मिल गए. काफी देर पापा के पास बैठने के बाद जब नियति अंदर गई तो उस ने देखा कि उस की मम्मी अपनी सहेलियों के साथ बैठी हंसीठिठोली कर रही है और उस की भाभी भागभाग कर सब के लिए चायनाश्ता और पानी की व्यवस्था कर रही है.

यह देख नियति अपनी भाभी का हाथ बंटाने किचन की ओर बढ़ी ही थी कि वहां बैठी उस की मम्मी की सहेलियों में से एक ने कहा, “अरे नियति, तुम कब आई? इधर आ… हमारे पास बैठ. मैं ने तो सुना है कि तेरी सास बड़ी मौडर्न है, तुम अपनी सास के साथ ससुराल में कैसे निभा रही हो?”

नियति चुप रही, फिर क्या था एक के बाद एक सभी ने नियति की सास का मजाक उड़ाना शुरू कर दिया. कोई उन की लिपिस्टिक पर फिकरे कसने लगा, तो कोई हेयर स्टाइल पर, किसी को उन का इस उम्र में जींस पहनना गलत लग रहा था, तो किसी को उन के लहराते हुए आंचल से आपत्ति थी.

सभी की अनर्गल बातें सुन कर नियति से रहा नहीं गया और वह सब पर बरस पड़ी और कहने लगी, “हां, मेरी सास बड़ी मौडर्न है. वह केवल मौडर्न ड्रेस ही नहीं पहनती, उन की सोच भी मौडर्न है. वे अपनी बहू को चारदीवारी में घूंघट के पीछे घुटनभरी जिंदगी नहीं, खुली हवा में आजादी की सांस लेने देती है.

“यहां आप में से कितनी सास अपनी बहू को उन की मरजी से जीने देती है…?अपनी बहू का बेटी की तरह मां बन कर ध्यान रखती है..? लेकिन मेरी मौडर्न सास मेरा खयाल अपनी बेटी की तरह रखती है और मुझे उन के मौडर्न होने पर गर्व है. क्योंकि वह मुझे केवल बेटी बुलाती ही नहीं, अपनी बेटी समझती भी हैं. और सब से बड़ी बात यह कि बुरे वक्त में साथ खड़ी रहती हैं. ऊपर वाले की इच्छा कह कर अपना पल्ला नहीं झाड़ लेती हैं.”

नियति की बातें सुन कर सब की आंखें शर्म से झुक गईं और नियति के पापा वरांडे में बैठे मंदमंद मुसकरा रहे थे.

Story In Hindi : वसीयत – प्यार और परिवार की कहानी

Story In Hindi :सामने दीवार पर टंगी घड़ी शाम के 7 बजा रही थी. पूरे घर में अंधेरा पसरा हुआ था. मेरे शरीर में इतनी ताकत भी नहीं थी कि उठ कर लाइट जला सकूं. सुजाता, उस की बेटी, मैं और मेरी बेटी, इन्हीं चारों के बीच अनवरत चलता हुआ मेरा अंतर्द्वंद्व.

आज दोपहर, मैं अपनी सहेली के घर जा कर उस को बहुत अच्छी तरह समझा आई थी कि कोई बात नहीं सुजाता, अगर आज बेटी किसी के साथ रिलेशनशिप में रह रही है तो उसे स्वीकार करना ही हमारे हित में है. अब तो जो परिस्थिति सामने है, हमें उस के बीच का रास्ता खोजना ही पड़ेगा और अब अपनी बेटी का आगे का रास्ता साफ करो.

तो, तो क्या मेरी बेटी अपरा भी. नहीं, नहीं. लगा, मैं और सुजाता एक ही नाव में सवार हैं…नहीं, नहीं. मुझे कुछ तो करना पड़ेगा. फिर किसी तरह अपने को संभाल कर अजीत के आने का समय देख चाय बनाने किचन में चल दी.

उलझते, सोचते, समझते दिल्ली में इंजीनियरिंग कर रही अपनी बेटी अपरा के आने का इंतजार करने लगी. उस ने आज घर आने की बात कही थी.

वह सही वक्त पर घर पहुंच गई. उस के आने पर वही उछलकूद, खाने से ले कर कपड़ों तक की फरमाइशें मानो घरआंगन में छोटी चिडि़या चहचहा रही हो. डिनरटाइम पर सही समय देख सुजाता की बेटी का जिक्र छेड़ा तो वह बोली, ‘अरे छोड़ो भी मां, हमें किसी से क्या लेनादेना.’’

‘‘अच्छा चल, छोड़ भी दूं, पर कैसे बेटा? कैसे इस जहर से अपने गंदे होते समाज को बचाऊं?’’

‘‘मां, सब की अपनीअपनी जिंदगी है, जो जिस का मन चाहे, सो करे,’’ वह बोली.

मैं ने लंबी सांस ली और कहा, ‘‘अच्छा बेटा, मैं सोच रही हूं कि इस कमरे का परदा हटा दूं.’’

‘‘अरे, क्यों मां, कुछ भी बोलती हो. यह क्या हो गया है तुम्हें, बिना परदे के घर में कैसे रहेंगे,’’ वह झुंझलाई.

‘‘क्यों मेरी भी तो अपनी जिंदगी है, जो चाहे मैं करूं,’’ मेरा लहजा थोड़ा तल्ख था. मैं आगे बोली, ‘‘आज आधुनिकता के नाम पर हम ने अपनी संस्कृति, सभ्यता, लोकलिहाज, मानमर्यादा के सारे परदे भी तो उतार फेंके हैं. अपने वेग और उफान में सीमा से आगे बढ़ती नदी भी सदा हाहाकार मचाती है और आज की पीढ़ी भी क्या अपने घरपरिवार, समाज, रिश्तों को दरकिनार कर अपनी सीमा से आगे नहीं बढ़ रही है.

‘‘मैं मानती हूं कि हमारे बच्चे उच्च शिक्षित, समझदार और परिपक्व हैं किंतु फिर भी जीवन की समझ अनुभव से आती है और अनुभव उम्र के साथ. हम सब उम्र की इस प्रौढ़ता पर पहुंच कर भी जीवन के कुछ निर्णयों के लिए तुम्हारे बाबा, दादी, नानू, नानी पर निर्भर हैं.’’ अपरा चुपचाप सुनती जा रही थी.

थोड़ी देर रुक कर मैं फिर बोली, ‘‘प्रेम तो दिल से जुड़ी एक भावना है और विवाह एक अटूट बंधन, जो हमारे सामाजिक ढांचे का आधार स्तंभ है. और यह लिवइन रिलेशनशिप क्या है? बेटा, चढ़ती हुई बेल भी तभी आगे बढ़ती है जब उसे बांध कर रखा जाए, सो बिना बंधे रिश्तों को क्या भविष्य? क्यों आंख बंद कर अपने भविष्य को गर्त में ढकेल रहे हो? हमारी संस्कृति में आश्रम व्यवस्था के नियम भी इसीलिए बने थे, किंतु अब तो ये सब दकियानूसी बातें हो कर रह गई हैं.

‘‘माना कि आज समय बहुत बदल गया है. लेकिन ऐसा भी नहीं है कि हम बड़े लोगों ने अपने को नहीं बदला.

बड़ों की स्वीकृति है तभी ज्यादातर शादियां लवमैरिज होती हैं. किंतु आज आधुनिकता के नाम पर अपनी संस्कृति को त्याग, पश्चिम की आयातित

संस्कृति की नकल करना बंद करो. सोचो और समझो कि तुहारे लव, ब्रेकअप, टाइमपास लव और टाइमपास रिलेशनशिप के क्या भयावह परिणाम होंगे. असमय बनाए संबंधों के अनचाहे परिणाम तुम्हारे कमजोर कंधे क्या…? बेटा, हर चीज का कुछ नियम होता है, बिना समय के तो पुष्प भी नहीं पल्लवित होते. इस तरह तो सारी सामाजिक व्यवस्था ही चरमरा जाएगी.

‘‘हमेशा याद रखना कि मांबाप कभी बच्चों का अहित नहीं सोचते. इसलिए अपने जीवन के अहम फैसले तुम खुद लो. किंतु उन से छिप कर नहीं, बल्कि उन्हें अपने फैसलों में शामिल कर के. बचपन तो जीवन के भोर के मानिंद रमणीय होता है किंतु जीवन का अपराह्न आतेआते तपती धूप में मांबाप ही तुम्हारे वटवृक्ष हैं, उन से जुड़े रहो, अलग मत हो.’’

तभी अजीत, थोड़ा माहौल को संभालते हुए, ताली बजाते हुए अपरा

से बोले, ‘‘अरे भई, इतनी नसीहत, तुम्हारी मां तो बहुत अच्छा भाषण देने लगी हैं, लगता है अगले चुनाव की तैयारी है.’’

मैं मन ही मन बोली, ‘नसीहत नहीं, वसीयत.’

पूरी तरह सहज अपरा 2 दिन रह कर फिर दिल्ली जाने के लिए तैयार होने लगी. बुझे मन और आंखों में आंसू लिए, जब उसे छोड़ मैं अपने कमरे में वापस आई तो मेरा मन सामने टेबल

पर रखे कार्ड को देख खुशी से नाच उठा जिस पर उस ने लिखा था, ‘यू आर ग्रेट, मौम.’

Hindi Stories : मुक्त – क्या शादी से खुश नही थी आरवी

Hindi Stories : सब मेहमानों को विदा करने के बाद वंश के शरीर का पोरपोर दुख रहा था. शादी में खूब रौनक थी पर अब सब मेहमानों के जाने के बाद पूरा घर भायभाय कर रहा था. सोचा क्यों न एक कप चाय पी कर थोड़ी थकान कम कर ली जाए और फिर वंश ने अपनी मम्मी शालिनी को आवाज दी, ‘‘मम्मी, 1 कप चाय बना दीजिए.’’फिर वंश मन ही मन सोचने लगा कि आरवी से भी पूछ लेता हूं.

बेचारी नए घर में पता नहीं कैसा महसूस कर रही होगी.वंश ने धीमे से दरवाजा खटखटाया तो आरवी की महीन सी आवाज सुनाई दी,‘‘कौन हैं?’’वंश बोला, ‘‘आरवी मैं हूं.’’अंदर जा कर देखा, आरवी एक हलके बादामी रंग का सूट पहने खड़ी थी. न होंठों पर लिपस्टिक, न आंखों में काजल, न ही कोई और साजशृंगार. ऐसा नहीं था कि वंश कोई पुरानी सोच रखता था, पर आरवी के चेहरे पर वह लुनाई नहीं थी जो नई दुलहन के चेहरे पर रहती है.वंश ने चिंतित स्वर में कहा ‘‘ठीक तो हो आरवी, चाय पीओगी?’’‘‘नहीं मैं चाय नहीं पीऊंगी,’’ और यह कहते हुए आरवी का स्वर इतना सपाट था कि वंश उलटे पैर लौट गया.

मन ही मन वंश सोच रहा था कि न जाने कैसी लड़की है. उस ने तो सुना था कि पत्नी के आने से पूरे जीवन में खुशी की रुनझन हो जाती है पर आरवी तो न जाने क्यों इतनी सिमटीसिमटी रहती है.रात को वंश कितने अरमान के साथ आरवी के पास गया था. कितनी सारी बातें करनी थी पर उस ने देखा आरवी गहरी नींद में सोई हुई है. वंश को थोड़ी निराशा हुई पर फिर लगा हो सकता है बेचारी थक गई होगी.

वैसे भी पूरी उम्र पड़ी है बात करने के लिए.अगले दिन वंश अपने दोस्त नीरज से यह बात बोल ही रहा था तो नीरज हंसते हुए बोला, ‘‘हरकोई तुम्हारी तरह बातों में शताब्दी ऐक्सप्रैस तो नहीं हो सकता है.’’‘‘कुछ समय दो एडजस्ट हो जाएगी.’’‘‘वैसे भी लड़कियां अपना घरपरिवार सबकुछ छोड़ कर आती हैं तो उन्हें एडजस्ट होने में कुछ समय लगता है.’’आज रात वंश और आरवी अपने हनीमून के लिए मौरिशस जा रहे थे.

वंश ने खुश होते हुए कहा, ‘‘आरवी पैकिंग करने में मदद करूं क्या?’’आरवी ठंडे स्वर में बोली, ‘‘थैंक्यू वंश, मैं ने कर ली है.’’वंश को यह देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि आरवी का बस एक छोटा सा बैग था जिस में 4 या 5 टीशर्ट और 3 जींस थीं. आरवी से बड़ा तो वंश का ही बैग था. वंश के जीवन में आरवी पहली लड़की नहीं थी, उस की पहले भी गर्लफ्रैंड रह चुकी हैं. लड़कियों को तो कपड़ों, गहनों और मेकअप का कितना शौक होता है.पूरे रास्ते विमान यात्रा में भी आरवी के मुंह पर चुप्पी का ताला लगा हुआ था. वंश तो आरवी की सादगी पर पहले दिन से ही मोहित था.

उस के होंठों पर छोटा सा काला तिल, थोड़ी सी उठी हुई छोटी सी नाक, हंसते हुए गालों पर पड़ते गड्ढे, उठे हुए चीकबोंस और लहराते काले घुंघराले बाल आरवी का रूखापन उसे समझ नहीं आ रहा था.मौरिशस में होटल के कमरे में पहुंच कर आरवी ऐसे सहम गई जैसे वंश उस का पति नहीं कोई अजनबी हो.वंश ने सोचा शायद आरवी हनीमून में थोड़ी खुल जाए. रात को आरवी बाथरूम से नहा कर निकली तो बच्चों जैसा नाईट सूट पहनी थी.वंश का सर्वांग जल गया.

वंश झंझला कर बोला, ‘‘आरवी, तुम्हें शादी का मतलब पता है या नहीं?’’आरवी कुछ न बोली पर उस की आंखों से टपटप आंसू गिरने लगे.वंश घबरा गया और बोला, ‘‘आरवी मेरा वह मतलब नहीं था. सौरी मैं तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहता था पर तुम मुझ से इतनी दूर क्यों रहती हो?’’आरवी धीमे से बोली, ‘‘वंश, मुझे कुछ टाइम दे दो.’’‘‘आरवी, मैं तैयार हूं, पर थोड़ा मुसकरातो दो.’’हनीमून में भी दोस्ती करने की सारी कोशिश वंश ही करता रहा था… आरवी वहां हो कर भी नहीं थी.

वंश को समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे, किस से बात करे? दोस्तों से बात करेगा तो वे उस का मजाक उड़ाएंगे कि वह अपनी बीवी को काबू में नहीं रख पाया है.आरवी का बर्फ जैसा ठंडा व्यवहार वंश को अंदर तक जला देता था. वंश जैसे ही रात में आरवी के करीब जाने की कोशिश करता, आरवी की घिग्घी बंध जाती. वंश को ऐसा महसूस होता जैसे वह कोई बलात्कारी हो.

वंश का मन सिहर उठता और वह आरवी को परे धकेल देता. कभी वंश को लगता कि आरवी के मम्मीपापा से बात करे या उस की सहेलियों से कि क्या आरवी को कोई समस्या है?मौरिशस से सीधे वंश और आरवी मुंबई चले गए, जहां वंश की नौकरी थी. अगले दिन वंश के औफिस जाने के बाद आरवी ने घर की कायापलट ही कर दी थी. वंश जब लौटा तो चकित रह गया.

आरवी की चुप्पी तो नहीं टूटी थी पर वह घर में वंश के साथ रचबस गई थी.एक दिन वंश आरवी से बोला, ‘‘घर की याद आ रही है क्या? तुम शादी के बाद एक बार भी अपने घर नहीं गई हो, तुम्हारी पगफेरे की रस्म भी होटल में ही कर दी थी.’’आरवी ने कहा, ‘‘नहीं वंश मैं ठीक हूं.’’वंश को याद आया कि आरवी को उस ने कभी अपने घर बात करते नहीं देखा और न ही वह और लड़कियों की तरह सारासारा दिन अपने मोबाइल में लगी रहती है.

रात के 8 बज गए थे. वंश अभी तकदफ्तर से नहीं आया था और आरवी बेचैनी से वंश की प्रतीक्षा कर रही थी. जैसे ही वंश ने घंटी बजाई आरवी दौड़ आई और बोली, ‘‘कहां चले गए थे?’’ वंश मुसकराते हुए बोला, आरवी कपड़े बदल लो… चलो आज डिनर करने बाहरचलते हैं.’’आरवी एक सादा सा कौटन का सूट पहनने के लिए निकली थी कि तभी वंश बोला, ‘‘रुको,’’ फिर शिफौन का मैहरून रंग का गाउन निकाल कर आरवी को दे दिया और साथ में मोतियों का सैट.जब आरवी तैयार हो कर आई तो वंश बोला, ‘‘आरवी आज इतनी सुंदर लग रही हो कि आंखें नहीं ठहर रही हैं मेरी.’’आरवी शरमाते हुए बोली, ‘‘वंश, तुम कुछ भी बोलते रहते हो.’’वंश कार ड्राइव करते हुए सोच रहा था शुक्र है कम से कम आरवी हंसी तो.

डिनर करते हुए वंश ने आरवी से उस के शौक और दोस्तों के बारे में बातचीत करी पर परिवार की बात करते ही आरवी चुपहो गई. वंश को इतना तो समझ आ गया था कि कोई बात तो है जो आरवी के परिवार से जुड़ीहुई है.1 माह बीत गया था. आरवी बोलती तोअब भी कम ही थी, परंतु इस जीवन में रचबस गई थी, वंश की पसंदनापसंद को आरवी जान चुकी थी.खाने में क्या बनाना है जैसे छोटी सीबात को भी वह वंश से 10 बार पूछती थी.कोई भी फैसला आरवी अपनेआप से लेने में सक्षम नहीं थी.

वंश धीरेधीरे आरवी को घर के साथसाथ बाहर के काम की भी जिम्मेदारी देने लगा था. जो आरवी घर से बाहर पैर निकालनेमें पहले 10 बार ?झिकती थी अब वही मुंबईके हर कोने से परिचित थी. परंतु आरवी और वंश का रिश्ता अब भी उतना ही औपचारिक था.देखते ही देखते करवाचौथ का त्योहार आ गया था. वंश ने आरवी के लिए मम्मी के कहे अनुसार साड़ी, गहने और चूडि़यां ले आया था. करवाचौथ से एक दिन पहले वह शाम को ही आ गया था. उस ने आरवी को कुछ नहीं करने दिया. उस के हाथों में मेहंदी लगवाई और रात का खाना बाहर से पैक करवाया.

रात में वंश ने आरवी को अपने हाथों से खाना खिलाया तो आरवी बोली, ‘‘वंश आई एम वैरी हैप्पी.’’वंश बोला, ‘‘आरवी मैं कब हैप्पी बनूंगा.’’आरवी वंश की बात सुन कर एकदम से सकपका गई.करवाचौथ की रात को आरवी इतनी सुंदर लग रही थी कि वंश अपनेआप को रोक नहीं पाया था, पर आरवी के बर्फ जैसे ठंडे शरीर को बांहों में लेते ही वह सिहर उठा. अब तो वंश को ये लगने लगा था शायद वह ही नामर्द है, जिस कारण आरवी को वह उत्तेजित नहीं कर पाता है. वंश इतना परेशान हो चुका था कि उस ने फैसला कर लिया कि वह 3-4 दिन के लिए गोवा चला जाएगा.

जब उस ने आरवी को बताया तो आरवी अपना सामान भी रखने लगी, तभी वंश बोला, ‘‘आरवी, मैं जा रहा हूं, तुम नहीं.’’‘‘तुम तो मेरी छाया से भी दूर भागती हो, तो तुम यहां पर ही अपनी कंपनी ऐंजौय करो.’’आरवी को वंश से यह उम्मीद नहीं थी पर वह क्या बोलती?गोवा से जब चौथे दिन वंश लौटा तो आरवी वंश से बोली, ‘‘देखो मैं बुरी ही सही पर तुम आगे से मुझे छोड़ कर मत जाना. पता है मैं तुम्हारे बिना कितना अधूरा महसूस कर रही थी?’’‘‘आरवी, तुम एक रोबोट हो, तुम्हारे अंदर कोई संवेदना नहीं है…

पर मैं एक इंसान हूं… मैं तुम्हें प्यार करता हूं पर मैं अपनी शारीरिक जरूरतों का क्या करूं? क्या तुम किसी और से प्यार करती हो या मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं?’’आरवी बोली, ‘‘वंश ऐसा नहीं है, मैं ही तुम्हारे लायक नहीं हूं… यह शादी मेरी गलती की सजा है, वह गलती जिसे मैं ने जानबूझ कर नहीं बल्कि अनजाने में किया था,’’ अचानक आरवी ने यह कह कर अपनी जीभ काट ली.वंश सकते में आ गया, ‘‘क्या यह शादी आरवी के लिए सजा है?’’ वंश को एकाएक बहुत तेज गुस्सा आ गया.

मन करा कि आरवी से पूछे कि जब शादी का मन ही नहीं था तो क्यों उस की जिंदगी खराब कर दी.आरवी के मुंह से बात तो निकल गई थी पर उसे समझ आ गया था कि वंश आहत हो गया है. शाम को जब आरवी वंश के लिए चाय ले कर आई तो चुपचाप उस के पास बैठ गई और बोली, ‘‘वंश मैं आप को दुख नहीं पहुंचाना चाहती थी.’’‘‘आरवी मुझे पूरा सच जानना है… मुझे इस जबरदस्ती के रिश्ते से मुक्त कर दो.’’

आरवी भर्राई आवाज में बोली,’’ वंश, पूरा सच जान कर आप मुझ से नफरत करने लगोगे…‘‘शायद घर से चले जाने को भी कह दे.’’‘‘वंश मैं आप को खोना नहीं चाहती हूं, यह घर मुझे अपना लगता है, आप मुझे अपने लगते हो.’’वंश प्यार से उस के सिर पर हाथ फेर कर बोला, ‘‘आरवी, मैं तुम से एक पति की हैसियत से नहीं, बल्कि एक दोस्त के तौर पर बात करना चाह रहा हूं.’’‘‘जब मैं कालेज में अंतिम वर्ष में थी, तब मेरी जिंदगी में रोशन आ गया था. मैं उस से बेहद प्यार करने लगी थी और वह भी मुझे बेहद चाहता था…

वंश रोशन के साथ मैं थोड़ा आगे तक निकल गई थी जिसे हमारे समाज में गलत मानते हैं. मैं उस के प्यार में बावरी हो गई थी.‘‘जब मेरा परिवार लड़का देखने लगा तो मैं ने अपने परिवार को रोशन के बारे में बताया, पर मम्मीपापा ने यह कहते हुए मना कर दिया कि वे लोग उस जाति से हैं जो काफी रूढि़वादी होते हैं और आर्थिक रूप से भी रोशन का परिवार अधिक संपन्न नहीं है. पर मेरे ऊपर तो इश्क का जनून सवार था, मैं ने रोशन को जब सारी बात बताई तो उस ने कहा कुछ सोचने का समय दो.‘‘एक दिन जब मुझे पता चला कि आप लोग मुझ से मिलने आ रहे हैं, तो मैं रात को घर से निकल गई और रोशन के फ्लैट में पहुंच गई.‘‘रोशन मुझे इस तरह देख कर हक्काबक्का रह गया. उस के 2 और दोस्त जो वहीं उस के साथ रहते थे मुझे अजीब नजरों से देख रहे थे.

फिर रोशन मुझे एक कमरे में ले गया और बोला कि चलो आज फिर से सुहागरात मना लेते हैं. मैं घबरा गई और बोली कि रोशन प्लीज अभी नहीं.. तुम कुछ भी करो पर मुझे अपना बना लो. मैं तुम्हारे अलावा किसी और के बारे में सोच भी नहीं सकती हूं. इस पर रोशन हंसते हुए बोला कि जान वही तो करने की कोशिश कर रहा हूं.‘‘मैं ने जैसे ही रोशन को धक्का दिया तो वह तिलमिला उठा और बोला कि निकलो यहां से, मैं ने कोई धर्मशाला नहीं खोल रखी है… जा कर पहले सैक्स ऐजुकेशन लो फिर शादीवादी के बारे में सोचना… निहायत ठंडी हो तुम, पहली बार भी तुम एक लाश की तरह पड़ी रही थी.जब मैं रोशन के हाथों अपमानित हो कर अपने घर पहुंची तो मम्मी ने मुझे आड़े हाथों लिया.

भैया ने 3-4 थप्पड़ लगा दिए. पापा मुझे नफरतभरी नजरों से देख रहे थे. सब ने मुझे चरित्रहीन और गिरी हुई लड़की मान लिया. किसी ने मुझ से बात नहीं करी. ‘‘मैं अंदर ही अंदर घुट रही थी. चाहती थी कोई तो मुझ से बात करे, मेरे साथ मेरे दर्द को बांटे. वंश मेरी गलती बस इतनी थी कि मैं ने रोशन पर भरोसा किया. पर कभी लगता है मैं बेवकूफ हूं. मुझे कोई फैसला लेना ही नहीं आता है.‘‘फिर लगता है शायद रोशन ठीक ही कहता है… मैं सैक्स के लायक नहीं हूं. आप लोग कब आए, कब मेरी शादी तय हुई. मुझे शायद कुछ भी याद नहीं और फिर आरवी फूटफूट कर रोने लगी.

उस की हिचकियां बंध गई पर फिर भी वह आगे बोलती रही, ‘‘मैं आप के काबिल नहीं हूं, मैं आज तक तुम्हारे साथ पतिपत्नी का रिश्ता नहीं बना पाई हूं. शायद मैं कभी किसी पुरुष को खुश नहीं कर पाऊंगी.’’वंश सारी बातें सुनने के बाद बोला, ‘‘आरवी तुम्हारी कोई गलती नहीं है. तुम क्यों खुद को सजा दे रही हो? तुम्हें रोशन जैसे लड़के ने कुछ भी कहा और तुम ने उसे सच मान कर स्वीकार कर लिया.‘‘नई जिंदगी को खुले दिल से स्वीकार करो. अगर मैं पसंद नहीं हूं तो मैं खुद तुम्हें इस रिश्ते से मुक्त करा दूंगा. अन्यथा खुद को इन पूर्वग्रहों से मुक्त करो.’’आरवी ?

झिकते हुए बोली, ‘‘वंश, क्या आप मुझे चरित्रहीन, गिरी हुई लड़की नहीं मानते हो?’’ ‘‘आरवी उस हिसाब से मैं अधिक चरित्रहीन हूं, क्योंकि मेरी जिंदगी में भी तुम से पहले 3 लड़कियां आई थीं.’’आरवी फिर सहमते हुए बोली, ‘‘अगर मैं आप को पूरी उम्र पत्नी का सुख  नहीं दे पाई तो?’’ ‘‘आरवी, मेरे लिए तुम्हारा प्यार और सम्मान, शारीरिक नजदीकी से अधिक जरूरी है. फिर डाक्टर्स किस मर्ज की दवा हैं? सब से पहले अतीत के पन्ने को फाड़ दो. खुद को अतीत से मुक्त कर के मुझे खुले दिल से अपना लो और इस का एक ही तरीका है रोशन और अपने परिवार के साथसाथ खुद को भी माफकर दो.‘‘तुम्हारे परिवार ने जो भी किया वह सही है या गलत है, मुझे नहीं पता है, पर उन्हें माफ कर दो और आगे बढ़ो.

जब तक तुम खुद को अतीत से मुक्त नहीं करोगी, इस रिश्ते को अपना नहीं पाओगी.’’उस रात घर का कोनाकोना खुशी से भरा था. आरवी लाल और हरी साड़ी में बहुत सुंदर लग रही थी.वंश आगे बढ़ कर आरवी को गले लगाने ही वाला था कि कुछ सोचते हुए एकाएक रुक गया. आरवी ही चुपके से वंश के गले लग गई. तब वंश को ऐसा महसूस हुआ मानो आज वास्तव में आरवी अपने अतीत से मुक्त हो कर उस की बांहों में पिघल रही थी.

Hindi Stories Love : हीरो निकला जीरो

Hindi Stories Love :  2 वर्षों से विशाल के साथ रिलेशनशिप के बाद शुभि ने मन ही मन उसे पति का दर्जा दे दिया था. लेकिन, विशाल का अचानक उस की जिंदगी से चले जाना उसे अब हर वक्त यही महसूस करा रहा था कि वह बुरी तरह ठगी गई है.

शुभि 3 घंटे एटीएम की लाइन में लगी हुई थी. आज शनिवार था, औफिस की छुट्टी थी, सैलरी आ गई थी. हर जगह तो कार्ड काम नहीं करता. कैश चाहिए ही था, इतने में उस के मोबाइल पर उस की सहेली विभा का फोन आ गया. उस की चहकती हुई आवाज सुनाई दी, ‘‘कहां है?’’

‘‘एटीएम की लाइन में.’’

‘‘रुचि और तनु मेरे घर आई हुई हैं. इस बार वैलेंटाइंस डे पर कुछ अलग करते हैं. चल, हम चारों गोवा चलते हैं.’’

‘‘नहीं यार, मेरा तो मन नहीं है, तुम लोग चली जाओ.’’

‘‘क्यों, तु झे क्या हुआ?’’

शुभि चुप रही तो विभा को उस की मनोदशा का अंदाजा तुरंत हो गया, बोली, ‘‘अरे यार, ब्रेकअप तनु का भी हुआ है, पर उसे देखो, वही जाने के लिए सब से ज्यादा जोर डाल रही है.’’

‘‘सौरी विभा, मैं नहीं जा पाऊंगी,’’ कहतेकहते जब शुभि का गला भर्रा गया तो विभा ने फौरन टौपिक चेंज कर दिया, इधरउधर की बातों के बाद फिर फोन रखा.

शुभि तो लाइन में खड़ीखड़ी पिछले वैलेंटाइंस डे की यादों में पहुंच गई. दिल से एक ठंडी सी उदास आह निकल गई, ‘ओह, विशाल, तुम कहां हो, तुम ने यह क्या किया.’ 2 वर्षों से शुभि और विशाल रिलेशनशिप में थे. शुभि तो मन ही मन स्वयं को उस की पत्नी मानने लगी थी. फलस्वरूप, अपना तनमन उसे सौंप चुकी थी. पर अचानक विशाल गायब हो गया था.

5 महीने से उस का कोई अतापता नहीं था. पुणे में ही जो फ्लैट विशाल ने किराए पर लिया हुआ था, वह कितनी बार देखने गई थी. शुभि भी पुणे में ही रहती थी. एक होटल में किसी मीटिंग में दोनों पहली बार मिले थे. पहले दोस्ती और फिर प्यार हो गया था.

शुभि ने अपने मम्मीपापा और बड़े भाई अजय को भी विशाल के बारे में बता दिया था. शुभि ने विशाल को हर तरह से ढूंढ़ा, पर कुछ पता नहीं चला था. फेसबुक पर वह शुभि को अनफ्रैंड कर चुका था. कई कौमन फ्रैंड्स से भी विशाल के बारे में कोई अपडेट नहीं मिल पा रहा था.

फोन नंबर भी शायद विशाल ने बदल लिया था. शुभि हर पल खुद को ठगी सी महसूस कर रही थी. घरवाले उस की मनोदशा सम झ रहे थे, पर कुछ कर नहीं पा रहे थे. शुभि दिनभर तो औफिस में बिता देती पर अकेले में उसे याद कर रोती रहती थी. उस की सहेलियों ने भी विशाल के बारे में पता करने की बहुत कोशिश की, पर सब असफल रहीं.

शुभि बहुत उदास थी. कहां ढूंढ़े विशाल को, क्यों वह बदल गया, उस की भावनाओं से इतने दिन क्यों खेलता रहा? अचानक लाइन में खड़ेखडे़ शुभि ने आगे खड़े लोगों पर नजर डाली. एक लड़के की पीठ और बाल दिखाई दे रहे थे. वह कुछ चौंकी और आगे हो कर  झांका, यह शर्ट… शुभि और

हैरान हुई.

पिछले वैलेंटाइन डे पर ऐसी ही तो शर्ट गिफ्ट की थी उस ने विशाल को. पिछले वैलेंटाइन डे पर अपने घरवालों से  झूठ बोल कर कि वह अपने औफिस फ्रैंड्स के साथ गोवा जा रही है, वह सिर्फ विशाल के साथ गोवा गई थी. गोवा के बीच पर समुद्र की लहरों में एकसाथ डूबतेउतरते एकदूसरे की बांहों में कस कर बंधे, दुनिया से बेखबर दोनों ने एकदूसरे के साथ हर पल को जीभर कर जिया था.

आंखों में नमी सी महसूस हुई तो शुभि ने फिर दोबारा देखा, विशाल ही था. वह किसी से फोन पर बातें कर रहा था, हंस रहा था, खुश था. विशाल को देखते ही अपने पिछले महीनों का दुख, बेचैनी याद कर शुभि के तनमन में क्रोध, नफरत की एक लहर सी दौड़ गई.

मन हुआ जा कर एक थप्पड़ मार दे, एक लड़की के तनमन से खेल कर, उस की भावनाओं को पलभर में भुला देने वाले इंसान को अच्छी तरह सबक सिखाए पर वह यहां लाइन में लगेलगे क्या कर सकती है. जो हो गया, सो हो गया, छोड़ो. पर नहीं, वह कुछ तो जरूर करेगी. ऐसे लड़कों को ऐसे नहीं छोड़ देना चाहिए. क्या करे. लाइन लंबी थी. अभी टाइम है उस के पास. वह 5 मिनट सोचती रही. चेहरा गुस्से से लाल होता जा रहा था. उस ने फौरन अपने भाई को फोन किया, ‘‘भैया, टाइम बहुत कम है, प्लीज, मेरी बात ध्यान से सुनना.’’

‘‘हां, बोलो.’’

‘‘भैया, मैं एटीएम की लाइन में हूं और लाइन में आगे विशाल खड़ा है. उस का ऐसा इलाज करो कि वह हमेशा याद रखे.’’

‘‘अच्छा, नहीं छोड़ं ूगा उसे. मेरी बहन के साथ खिलवाड़ किया है उस ने, अभी आया.’’

अजय अपने 2 दोस्तों विनय और अनिल को ले कर शुभि के पास पहुंच गया. अजय विशाल से 1-2 बार घर पर मिला था. देखने में सभ्य सा विशाल उसे भी अपनी बहन के लिए उपयुक्त वर लगा था. पर आजकल छोटी बहन का उतरा चेहरा देख वह आगबबूला होता घूमता था. अजय को अपने सामने देख विशाल सिटपिटा गया, ‘‘आप यहां?’’

‘‘चल इधर आ जा,’’ उस की शर्ट का कौलर पकड़ कर अजय उसे खींचता हुआ लाइन से हटा कर एक तरफ ले आया. शुभि चुपचाप लाइन में खड़ी सब देख रही थी.

विशाल गुर्राया, ‘‘क्या हो रहा है यह, क्या बदतमीजी है.’’ एक थप्पड़ मारा अनिल ने उस के मुंह पर, विशाल हिल गया,

‘‘क्या हो रहा है यह.’’ विनय और अनिल ने उसे बुरी तरह धुन दिया. भीड़ हैरान थी, कोई बीचबचाव करने भी नहीं आया. एक तो ऐसे मौके पर लोग कम ही हस्तक्षेप करते हैं, दूसरे, लाइन से हटते तो जगह जाती.

तीनों ने विशाल को बहुत मारा. वह कराहते हुए बोला, ‘‘मैं तुम लोगों की शिकायत करूंगा.’’ इतने में शुभि भी वहां आ गई. ‘‘हां भैया, इसे पुलिस स्टेशन ले चलो, इस का यह शौक भी पूरा हो जाएगा.’’

विशाल ने शुभि के सामने हाथ जोड़ दिए, ‘‘शुभि, मु झे माफ कर दो, मैं अभी शादी नहीं करना चाहता था.’’

शुभि ने उस की तरफ देखा भी नहीं, बोली, ‘‘चलो भैया.’’

विनय ने विशाल को कौलर से पकड़ कर जबरदस्ती अपनी बाइक पर बिठाया. शुभि अजय की बाइक पर बैठ गई. पुलिस स्टेशन पहुंच कर अजय ने विशाल के खिलाफ छेड़खानी की शिकायत दर्ज करवाई. वहां खड़े सिपाही ने एक डंडा यों ही लगा दिया विशाल को. आगे की कार्रवाई पूरी करने के बाद विशाल को वहीं छोड़ कर चारों पुलिस स्टेशन से बाहर आ गए.

अनिल, विनय अपनेअपने घर चले गए. अजय के साथ घर की तरफ जाते हुए बाइक पर पीछे बैठेबैठे शुभि ने अजय के गले में बांहें डाल दीं, ‘‘थैंक्यू भैया.’’

अजय ने भी कहा, ‘‘आगे से तुम भी ऐसी गलती मत करना, इतनी जल्दी किसी पर भरोसा नहीं करते.’’

‘‘हां भैया, ध्यान रखूंगी.’’ शुभि ने फिर तुरंत विभा को फोन किया, ‘‘मैं भी चलूंगी तुम लोगों के साथ गोवा, मेरा भी टिकट बुक करवाना.’’

‘‘वाह, बढि़या. पर क्या हुआ, तुम्हें तो अपना हीरो याद आ रहा था न?’’

शुभि ने हंसते हुए फोन पर ही पूरा किस्सा सुना दिया, फिर कहा, ‘‘वैलेंटाइन डे एंजौय करने के लिए किसी हीरो की जरूरत नहीं है, हम चारों ही मस्ती करेंगे.’’

अपनी बहन को इतने महीनों बाद खुश देख कर अजय भी खुश था. विशाल का पूरा शरीर दुख रहा था, सोच रहा था क्यों गया पैसे निकलवाने, न जाता तो बच जाता. नोट की चोट बहुत करारी थी, दर्द बहुत था.

Kahani : वापसी की राह

Kahani :  रोरो कर जरीना का बुरा हाल था. बेटी कल से वापस नहीं लौटी थी. शाम जैसेजैसे रात की तरफ बढ़ रही थी, उस का दिल बैठा जा रहा था. रोज की ही तरह वह घर से कालेज के लिए निकली थी. घर से कालेज वैसे तो ज्यादा दूर नहीं था लेकिन औटो और बस दोनों लेने पड़ते थे उसे वहां पहुंचने के लिए. उस ने बेटी को गेट तक छोड़ा था और जब वह औटो में बैठ गई थी तो जरीना वापस आ गई थी.

तकरीबन रोजाना ही अखबार में अपहरण और ह्यूमन ट्रैफिकिंग की खबरें छपती रहती थीं. पढ़ कर जरीना कई बार बहुत दुखी भी हो जाती थी और अकसर उसे गुस्सा भी आ जाता था. कोसने लगती थी सब को, कानून व्यवस्था, समय, लड़कों और सब से ज्यादा अपनेआप को. वजह थी, उस का लड़की की मां होना और ऐसी लड़की की जिस का पिता नहीं है.

यह इंसानी फितरत ही है जिस में कमजोर व्यक्ति अकसर अपनेआप को सब से पहले कारण मान लेता है किसी घटना के लिए, चाहे वह उस के लिए जिम्मेदार हो या न हो. यह स्वभावगत कमजोरी होती है, खासतौर से महिलाओं की, क्योंकि उन के पास ज्यादा विकल्प नहीं होते. और यही वजह थी कि जरीना भी अपनेआप को इस का जिम्मेदार मानने लगी थी.

रात आंखों में ही बीती और हर खटके पर उसे लगता जैसे बेटी आ गई हो. लेकिन सुबह की रोशनी ने जब उस के कमरे में प्रवेश किया. वह कुरसी पर ही औंधी पड़ी हुई थी. अब तक पड़ोसियों को भी खबर हो चुकी थी और हर कोईर् अपने हिसाब से कयास लगा रहा था. सब की अपनीअपनी राय और अलगअलग सलाह.

जरीना को कुछ समझ नहीं आ रहा था. आखिरकार, लोगों के कहने पर वह पुलिस स्टेशन गई. आज पहला अवसर था वहां जाने का और उस का अंतस बुरी तरह कांप रहा था. वैसे भी किसी भी सामान्य व्यक्ति को अगर पुलिस स्टेशन जाना पड़े तो उस की मनोदशा दयनीय हो जाती है. यही कुछ हुआ था जरीना के साथ भी. कहने को तो पड़ोसी इस्माइल साथ था, लेकिन जरीना से ज्यादा वह खुद भी घबराया हुआ था.

जैसे ही वह थाने के गेट पर पहुंची, बेहद अजीब निगाहों से उस को गेट पर खड़े संतरी ने घूरा. उसे देख कर वह उस की हालत समझ गया था.

‘‘क्या हुआ, क्यों चली आई यहां,’’ उस के सवाल के लहजे और उस की बंदूक पर उस के कसे हुए हाथ को देख कर जरीना थर्रा गई.

‘‘साहब, बेटी कल से कालेज से वापस नहीं लौटी है,’’ किसी तरह घबराते हुए उस ने कहा. ‘‘अपनी रिश्तेदारी में पूछा सब जगह?’’ उस ने बेहद रूखे तरीके से कहा.

‘‘हां साहब, सब जगह फोन कर लिया है, कहीं भी नहीं है.’’

‘‘अच्छा, क्या उम्र थी उस की,’’ अभी भी वह संतरी सवाल दागे जा रहा था. इस्माइल बिलकुल खामोशी से थोड़ी दूर पर खड़ा था. उसे अब समझ में आ गया था कि सब बात उस को ही करनी है.

‘‘साहब, 18 साल की है, मुझे रिपोर्ट लिखवानी है, किस से मिलूं,’’ बोलते हुए वह अंदर की तरफ चली.

‘‘18 साल की है, तो अपनी मरजी से कहीं भाग गई होगी. जाओ, अंदर साहब बैठे हैं.’’ संतरी की आंखों और चेहरे पर अजीब सा लिजलिजापन था और अंदर जाते समय उसे उस की निगाह अपना पीछा करती लग रही थी.

अंदर एक टेबल के सामने एक पुलिस वाला बैठा था. टोपी उस ने टेबल पर ही रखी थी और उस के शर्ट के सामने के बटन खुले हुए थे. अब हिम्मत जवाब दे गई जरीना की, यह आदमी उस की मदद क्या करेगा जो खुद ही किसी मवाली जैसा लग रहा हो. उस पुलिस वाले ने आंखों से उस के सारे बदन का एक्सरे किया औैर बेहद भद्दे अंदाज में दांत को एक सींक से खोदते हुए बोला, ‘‘क्या हुआ, किसलिए आई यहां पर?’’

जरीना ने फिर से वही सब दोहराया और इस ने भी वही सवाल पूछा. उस की ज्यादा दिलचस्पी जरीना को घूरने में थी. जब जरीना ने एक बार फिर हाथ जोड़ कर कहा कि उस की रपट लिख ले, तो उस ने टरका दिया.

‘‘उस की कोई फोटो लाई है, तो दे जा और उस के सब यारदोस्तों से पूछ. ऐसी उम्र में कोई प्यारवार का चक्कर ही होता है, भाग गई होगी किसी यार के साथ. कुछ दिन देख ले, अगर नहीं लौटी तो हम लोग पता लगाएंगे,’’ कहते हुए वह वापस अपने दांत खोदने लगा.

जरीना ने उसे बेटी की एक फोटो दी और एक कागज पर अपना नाम व फोन नंबर लिख कर दिया. फिर टूटे कदमों से बाहर निकली. आज तक उस की जो भी धारणा पुलिस के प्रति थी, वह पुख्ता हो गई थी. वहीं एक दीवार पर लिखा एक वाक्य, ‘‘पुलिस आप की मित्र है,’’ उसे अपना भद्दा मजाक उड़ाता लगा.

वापसी के समय इस्माइल बोल रहा था कि अपने एरिया के नेता के पास चलेंगे, वे जरूर मदद करेंगे. जरीना ने सुन के भी अनसुना कर दिया, पता नहीं कितने सवाल वहां भी पूछे जाएं और आंखों से उस के जिस्म का एक्सरे फिर से हो.

घर वापस आ कर उस ने एक बार फिर सब रिश्तेदारों के यहां फोन किया, जवाब हर जगह से नकारात्मक ही था. शाम तक वह लगभग हर परिचित और उस की सब सहेलियों के यहां हो आईर् थी, कहीं कुछ पता नहीं चल रहा था. अब करे तो क्या करे. पति था नहीं और इकलौती लड़की गायब थी.

अब तो एक ही उम्मीद लगी थी कि शायद कोई फोन आए फिरौती के लिए और वह सबकुछ बेच कर भी उसे छुड़ा ले.

3 दिन बीत गए, फिरौती के लिए कोई फोन नहीं आया, हां सब रिश्तेदार और परिचित जरूर फोन करते और कहते कि कोई जरूरत हो तो बताना. सब को पता था कि अभी उसे किस चीज की जरूरत है लेकिन उस के लिए कोईर् भी मदद नहीं कर पा रहा था. चौथे दिन फिर वह पुलिस स्टेशन गई. लेकिन टका सा जवाब मिला कि कुछ पता नहीं चला है, जब पता चलेगा, खबर कर देंगे.

खानापीना सब छूट गया था, पूरीपूरी रात जाग कर बीत रही थी उस की. जहां भी उम्मीद होती, भागती चली जाती कि शायद कुछ पता चले. जब भी बाहर निकलती, लोग सहानुभूतिपूर्वक ही पूछते कि कुछ पता चला, लेकिन उन के लहजे से लगता जैसे व्यंग्य ज्यादा कर रहे हों. और पीछे से कई बार वह सुन चुकी थी कि बेटी को ज्यादा पढ़ाने का नतीजा देख लिया, भाग गई किसी के साथ. कुछ लोगों ने कहा कि अखबार भी देखते रहो, कभीकभी कोई खोया इस में भी मिल जाता है.

कुछ तो इतने बेरहम थे कि उन्होंने कह दिया कि कभीकभी लावारिस लाश की भी फोटो छपती है अखबार में. यह सुन कर उस का कलेजा कांप गया था. लेकिन मजबूरी में वह अखबार भी देख लेती थी, शायद कोई खबर मिल ही जाए. इन्हीं उलझनों में उलझी हुई थी कि अचानक उस की नजर अखबार की एक खबर पर गई. खबर बल्लू के बारे में थी. किसी कत्ल के केस में उस का नाम उछल रहा था अखबार में. उसे ध्यान आया कि बल्लू तो कभी उस के ही क्लास में साथ पढ़ता था.

शुरू से ही बल्लू की संगत खराब थी और वह पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाया. उस के कदम जरायम की दुनिया की ओर मुड़ गए थे और आज अखबार में उस की गुंडागर्दी की खबर पढ़ कर उसे कुछ अजीब नहीं लगा. उस ने क्लास में कभी बल्लू से ज्यादा बातचीत नहीं की थी, वैसे भी वह लड़कों से खुद को दूर ही रखती थी. लेकिन बल्लू की हरकतों के चलते सब उसे जानते थे और कभीकभी बात भी करनी पड़ जाती थी.

जरीना सोच में पड़ गई, क्या वह बल्लू से मिले, शायद वह कुछ मदद कर पाए. लेकिन उस ने अपने विचार को ही झटक दिया, कहीं कोई गुंडा भी किसी की मदद कर सकता है, वह तो सिर्फ लोगों को परेशान ही कर सकता है.

कुछ कहानियों में उस ने पढ़ा भी था कि कुछ ऐसे बदमाश भी होते हैं जो जरूरतमंदों की मदद करते हैं. रातभर उस के दिमाग में ये सब विचार अंधड़ मचाते रहे. क्या वह बल्लू के पास जाए? किसी से पूछने की न तो इच्छा थी उस की और उसे उम्मीद भी नहीं थी कि कोई इस में सही राय दे पाएगा. रात बीती, सुबह होने तक उस ने एक फैसला कर लिया था. पुलिस का हाल वह देख ही चुकी थी और नेताओं से कोई उम्मीद वैसे भी नहीं थी. तो अब बल्लू को आजमाने के अलावा और कोई चारा उसे नजर नहीं आ रहा था. 4 दिनों में ही रिश्तेदार और परिचित अब बहाने बनाने लगे थे. बेटी को पाने की कम होती उम्मीद ने उसे अब बल्लू के पास जाने के लिए मजबूर कर दिया.

ऐसे लोगों का पता लगाना पुलिस के अलावा हर किसी के लिए बहुत आसान होता है. जरीना हैरान भी थी कि कितनी आसानी से उसे बल्लू का अड्डा पता चल गया जबकि पुलिस उसे नहीं ढूंढ़ पा रही है. वह पता पूछते हुए उस के अड्डे पर पहुंची, अंधेरे घर में शराब की बदबू और सिगरेट के धुएं की गंध चारों ओर फैली हुई थी.

वहां के लोगों की चुभती निगाहों ने उसे पस्त कर दिया और उसे पुलिस स्टेशन की याद आ गई. लेकिन उस अनुभव ने उस की मदद की और वह उन नजरों को बरदाश्त करती बल्लू के पास पहुंची. उस ने तो बल्लू को पहचान लिया, अखबार में उस की तसवीर देखी थी उस ने, लेकिन बल्लू उसे पहचान नहीं पाया. उस की निगाहों में उभरे प्रश्न को समझते हुए उस ने पहले अपने स्कूल की बात बताई तो वह चौंक गया. अभी भी कुछ लिहाज बचा था बल्लू में, वह तुरंत उसे ले कर अंदर के कमरे में गया और जब तक बल्लू कुछ पूछे, जरीना फूटफूट कर रो पड़ी.

ऐसी स्थिति से बल्लू का पाला बहुत कम ही पड़ता था, इसलिए पहले तो उसे समझ में ही नहीं आया कि वह क्या करे, फिर उस ने किसी तरह जरीना को शांत कराया और आने का कारण पूछा. जरीना ने सारा किस्सा एक सांस में कह डाला और उस के सामने हाथ जोड़ कर खड़ी हो गई. बल्लू के चेहरे पर कई भाव आजा रहे थे. कुछ तय नहीं कर पा रहा था वह. समझ में तो उसे आ गया था कि किसी गिरोह ने ही अगवा किया है जरीना की बेटी को, लेकिन वह कुछ कह नहीं पा रहा था.

अब तो जरीना को लगा कि शायद यहां भी उस का आना व्यर्थ ही हुआ, लेकिन वह बल्लू को लगातार आशाभरी निगाहों से देखे जा रही थी. एक बार तो बल्लू की भी इच्छा हुई कि जरीना को टरका दे. लेकिन फिर जरीना के जुड़े हुए हाथों ने उसे कशमकश में डाल दिया. आखिर वह उस के साथ पढ़ी थी और बहुत उम्मीद के साथ आईर् थी. उस ने जरीना के जुड़े हुए हाथों को अपने हाथों में ले कर दृढ़ शब्दों में कहा, ‘‘जाओ जरीना, अपने घर जाओ. बस, बेटी की एक फोटो देती जाओ. मैं हर तरह से कोशिश करूंगा कि किसी भी हालत में उसे तुम्हारे पास वापस ले आऊं.’’

जरीना ने कृतज्ञता से उस की ओर देखा और फोटो के साथ नंबर उसे थमा कर बाहर निकली. घर लौटते हुए जरीना के कदमों में एक दृढ़ता आ गई थी. आज पहली बार वह सोच रही थी कि लोग जिन्हें बुरा कहते हैं, क्या सचमुच वे बुरे होते हैं या उन्हें बुरा कहने वाले समाज के ये तथाकथित शरीफ और सभ्य लोग? उस के दुख में काम आना तो दूर की बात, गलत बातें बनाना और उस से मुंह चुराने लगे थे लोग. क्या एक इंसान का फर्ज अदा करने वाला बल्लू बेहतर इंसान नहीं है भले ही वह गुंडागर्दी करता है. अब वह कुछ और सोच नहीं पा रही थी. बस, उसे तो बल्लू के रूप में एक ही आसरा दिखाई पड़ रहा था जो उस की बेटी को ढूंढ़ सकता था.

जरीना के जाने के बाद बल्लू सिर पकड़ कर बैठ गया. अब क्या करे. एक बार तो उस ने सोचा कि एकदो दिनों बाद वह फोन कर के बता देगा कि उसे कोई खबर नहीं मिली, लेकिन जैसे ही उसे जरीना के जुड़े हुए हाथ और उस की आंखें याद आईं, वह सोच में पड़ गया. एक तरफ तो बेमतलब का सिरदर्द लग रहा था, दूसरी तरफ उसे किसी की आस दिख रही थी. कहीं न कहीं उस के मन में भी यह बात तो थी ही कि वह भी कुछ अच्छा करे. आखिर दिल से तो वह एक इंसान ही था जिस में कुछ अच्छी चीजें भी थीं. उस ने फोटो और कागज उठा कर अलमारी में रख दिए और कुरसी पर पसर गया.

अब बल्लू का दिमाग काफी साल पहले के स्कूल के दिनों की ओर चला गया था. वह जरीना को स्कूल में याद करने की कोशिश करने लगा. बहुत धुंधला सा कुछ उसे याद आया और उस के चेहरे पर मुसकराहट छा गई. यही एक पल था जब उस ने जरीना की बेटी का पता लगाने का निश्चय कर लिया.

उस ने फोन उठाया और अपने लोगों से पता लगाना शुरू किया कि जरीना की बेटी को किस ने उठाया होगा. रात तक उसे खबर मिल गईर् कि जरीना की बेटी को जिस्फरोशी के धंधे में डालने के लिए अगवा किया गया है. लेकिन जिस्मफरोशों ने उसे इस जगह से कई सौ किलोमीटर दूर पहुंचा दिया था. अब उसे वहां से छुड़ा कर लाना बहुत टेढ़ी खीर थी.

वहां पर किसी ऐसे को वह जानता भी नहीं था जिस से मदद के लिए कह सके. बल्लू इन्हीं विचारों में खोया हुआ था कि उसे एक उम्मीद दिखी. उस ने फोन उठाया और इलाके के इंस्पैक्टर को लगाया. सारी बात बताने के बाद उस ने उस से मदद मांगी, लेकिन इंस्पैक्टर यह मानने को तैयार ही नहीं था कि बल्लू बिना पैसे लिए यह काम करने जा रहा है. बल्लू ने उसे समझाया कि वह वहां की पुलिस से बात करे, उन सब को उन का हिस्सा मिल जाएगा.

‘‘ठीक है, एक पेटी मुझे चाहिए, बाकी वहां वाला जो मांगेगा, वह देना पड़ेगा.’’

‘‘ठीक है साहब, आप बात करो, पैसा मिल जाएगा,’’ बल्लू ने कहा तो एक बार खुद उसे अपनी बात पर भरोसा नहीं हुआ. बिना पैसे के आज तक कोई काम नहीं किया था उस ने और आज सिर्फ एकसाथ पढ़ने वाली लड़की के लिए इतना बड़ा काम अपने पैसे से करने जा रहा है. लेकिन कुछ तो था जरीना की आंखों में, जिस ने उसे यह सब करने पर मजबूर कर दिया था.

उस इलाके के इंस्पैक्टर से बात हुई, सौदा 3 लाख रुपए में पक्का हुआ. पैसों का इंतजाम कर बल्लू ने इंसपैक्टर को पैसे भिजवाए और अब बेसब्री से जरीना की बेटी की रिहाई के बारे में सोचने लगा.

जरीना हर समय फोन को देखती, उसे भी जैसे पूरा भरोसा था कि बल्लू जरूर उस की बेटी को छुड़ा लाएगा. जब भी फोन बजता, वह भाग कर उठाती. लेकिन, फोन बल्लू के अलावा किसी और का ही होता. एक दिन बीत गया था और उसे अफसोस हो रहा था कि उस ने क्यों बल्लू का नंबर नहीं लिया. अगले दिन फिर चलूंगी बल्लू के पास और एक बार और हाथ जोड़ूंगी उस के, यही सब सोच रही थी वह कि बल्लू का फोन आया.

उस ने जरीना को बता दिया कि उस की बेटी का पता चल गया है और उम्मीद है अगले 2 दिनों में वह उसे घर ले आएगा. बस, वह इस का जिक्र किसी से न करे और परेशान न हो. जरीना की आंखों से गंगाजमुना बह निकली, उस का मन खुशियों से सराबोर हो गया था. वह जब तक बल्लू को धन्यवाद देने के बारे में सोचती, फोन कट गया था. उस ने लपक कर बेटी का फोटो उठाया और उसे बेतहाशा चूमने लगी. उस के आंसू फोटो के साथसाथ उस के दामन को भी भिगोते रहे.

इंस्पैक्टर ने बल्लू को फोन कर के उस जगह का नाम बताया जहां उसे जरीना की बेटी मिलने वाली थी. अब बल्लू को बिलकुल भी चैन नहीं था और वह अपनी जीप में कुछ साथियों के साथ निकल गया. शाम होतेहोते वह उस इलाके के इंस्पैक्टर के पास पहुंच गया. उस ने अड्डे का पता बताया और बल्लू से कहा कि वह लड़की को ले कर निकल जाए, किसी को कानोंकान खबर न हो.

बल्लू अड्डे पर पहुंचा. जरीना की बेटी बुरी हालत में थी. पिछले कुछ दिन उस ने जिस हालत में बिताए थे, उस के चलते और कुछ की उम्मीद भी नहीं थी. पुलिस को देख कर जरीना की बेटी एकदम से चौंकी और उसे समझ में आ गया कि अब शायद उस की रिहाई हो जाए.

इंस्पैक्टर ने उस की मां से उस की बात कराई और बताया कि उस ने बल्लू को भेजा है उसे लाने के लिए. जरीना की बेटी निखत ने बल्लू को कस के पकड़ लिया और उस के कंधे पर सिर रख कर फूटफूट कर रोने लगी. कुछ देर तक तो बल्लू को कुछ समझ नहीं आया, लेकिन फिर उस की आंखों से भी आंसू बह निकले.

‘‘अब चिंता मत कर बेटी, मैं आ गया हूं,’’ बोलते हुए उस ने बेटी को दिलासा दी और फिर वह इंस्पैक्टर को धन्यवाद दे कर जीप से वापस चल पड़ा. पूरे रास्ते निखत भयभीत रही, रहरह कर वह रो पड़ती थी. बल्लू उस के पास ही बैठा था और उसे दिलासा देता रहा. शाम होतेहोते बल्लू निखत को ले कर अपने शहर पहुंच गया और सीधे जरीना के घर पहुंचा. जरीना को लगातार खबर मिल रही थी उस के पहुंचने की और वह बेसब्री से दरवाजे पर ही खड़ी थी कई घंटों से.

जैसे ही जीप रुकी, निखत उतर कर भागी जरीना की तरफ. जरीना ने भी बेटी को देखा और वे दोनों एकदूसरे से लिपट कर बुरी तरह रोने लगीं. बल्लू कुछ देर ऐसे ही खड़ा जरीना और उस की बेटी को देखता रहा और फिर वह वापस अपने अड्डे पर चलने के लिए मुड़ा.

जरीना ने उस की बांह पकड़ी और फिर निखत को ले कर तीनों घर के अंदर चले गए. सब की आंखों के किनारे भी भीगे हुए थे. जरीना की बेटी तो उस से चिपक कर ही बैठी थी. अभी भी वह उस सदमे से उबर नहीं पाई थी. बल्लू भी मांबेटी को देख कर मन ही मन भीग गया. शायद पिछले कई सालों में पहली बार उस ने कोई अच्छा काम किया था जिस से उस के दिल को संतुष्टि हुई थी.

वापस आ कर बल्लू सोच में डूबा हुआ था, अब इस नेक काम को करने के बाद उसे अपना काम खटकने लगा. उसे जरीना के रूप में अब एक बहन मिल गई थी क्योंकि उस की बेटी को उस ने अपना मान लिया था.

अब उस के सामने एक बेहतर जिंदगी बिताने के लिए एक मकसद भी दिख रहा था. लेकिन जिस पेशे में वह था, उस से निकलना इतना आसान कहां था. न जाने कितने दुश्मन बन चुके थे और पुलिस में भी उस के नाम से एक बड़ी और बदनाम फाइल थी. इतना तो उसे पता ही था कि वह तभी तक बचा हुआ है जब तक वह इस पेशे में है. जिस दिन उस ने हथियार डाले, या तो दुश्मन और या फिर पुलिस उस का काम तमाम कर देगी. एक झटके में उस ने इन सब सोचों को विराम दिया और फिर वर्तमान में आ गया. हां, इतना परिवर्तन जरूर हो गया था उस में कि अब से किसी महिला या लड़की को प्रताडि़त करने वाला कोई काम नहीं करेगा.

उधर, जरीना ने फैसला कर लिया था कि अब उसे इस घटिया समाज की कोई परवा नहीं करनी है. उस समाज का क्या फायदा जो वक्त आने पर पीछे हट जाए और किसी का भला न कर सके. उस ने सोच लिया कि बल्लू को अपने घर में बुलाएगी और सारे रिश्तेदारों के सामने उसे अपना भाई बना लेगी. इसी बहाने उस की बेटी को भी एक पिता जैसे शख्स का साया मिल जाएगा. उस ने बल्लू को फोन लगाया, लेकिन उधर से आने वाली आवाज ने उसे हैरान कर दिया, ‘यह नंबर मौजूद नहीं है.’

Black Glasses : काला चश्मा क्यों है खास

Black Glasses :  यह सही है कि स्त्री हो या पुरुष, यूथ हो या वयस्क सभी के चेहरे पर एक काला चश्मा या गौगल्स मौडर्न और स्टाइलिश लुक देता है. किसी पार्टी में किसी लड़की के अचानक काले चश्मे के साथ ऐंट्री सब की नजरों के आकर्षण का केंद्र होती है. यही वजह है कि बड़ेबड़े ब्रैंडस हर थोड़े दिन बाद नएनए गौगल्स मार्केट में उतारते हैं, जिन्हें आज के युवा पहनना पसंद करते हैं.

इतना ही नहीं, अगर किसी खास स्टाइल के काले चश्मे को किसी सैलिब्रिटी ने पहना हो तो उस का क्रेज आम लोगों में अधिक बढ़ जाता है. फिल्म के कलाकारों के काला चश्मा पहनने के कई कारण होते हैं, जिन में एक प्रमुख कारण है उन की आंखों की हरकतों को छिपाना, जोकि उन के किरदार या कहानी को समझने में मदद करता है.

इस के अलावा यह सुरक्षा यानी सूरज की रोशनी और अन्य हानिकारक तत्त्वों से आंखों को बचाता है, जबकि कुछ कलाकार अधिकतर खुद को गोपनीय रखना पसंद करते हैं. ऐसे में वे काला चश्मा पहन कर सार्वजनिक स्थानों पर पहचान से बचते हैं.

फैशन स्टेटमैंट

काला चश्मा एक फैशन स्टेटमैंट भी है और यह कलाकारों को ग्लैमर, एक खास और आकर्षक लुक देता है. संगीतकारों और मनोरंजनकर्ताओं के लिए काला चश्मा पहनना मंच पर उन की उपस्थिति और उन के व्यक्तित्व को एक अलग पहचान देता है, जिस से कलाकार अपने संगीत और छवि के साथ एक अलग पहचान दर्शकों के बीच में दर्ज कराने में समर्थ होते हैं.

ट्रैंड सैंटर

अधिकतर सैलिब्रिटी काला चश्मा पहनने को एक बोल्ड, क्लासिक लुक मानते हैं, इसलिए वे किसी भी समय काले चश्मे को पहनने से परहेज नहीं करते. यह आम बात है कि धूप ढलने के बाद भी मशहूर हस्तियां काला चश्मा पहन कर किसी कार्यक्रम में, रैड कौरपोरेट पर या नाइटलाइफ की गतिविधियों में भाग ले रहे होते हैं क्योंकि वे खुद को हमेशा ट्रैंड सैंटर की श्रेणी में रखना पसंद करते हैं, जिस में वे केवल साधारण काला चश्मा ही नहीं बल्कि ओवर साइजड फ्रेम वाले, रैट्रो इंस्पायर्ड लुक या अद्भुत दिखने वाले काले चश्मे पहनते हैं, जिसे देख कर उन के फैंस आकर्षित होते हैं और वैसे ही चश्मे वे भी लगाना पसंद करते हैं.

इन में करण जौहर, अभिनेता जैकी श्रौफ, शाहरुख खान, एमजी रामचंद्रन, ऋतिक रोशन, अनिल कपूर, कार्तिक आर्यन, सोनम कपूर, सिंगर मीका सिंह, रकुलप्रीत सिंह आदि कई हैं.

बहुमुखी ऐक्सैसरीज

काला चश्मा बहुमुखी ऐक्सैसरीज के अंतर्गत आता है जो तुरंत किसी पोशाक को निखार सकता है. इस के बिना यह संभव नहीं होता. यही वजह है कि क्लासिक हौलीवुड फिल्मों से ले कर यादगार संगीत वीडियो तक धूप का चश्मा ग्लैमर, विद्रोह और पुरानी यादों का पर्याय बन गया है, जिसे सैलिब्रिटीज से ले कर आम व्यक्ति सभी पहनते हैं.

सिक्युरिटी फोर्स के लिए काला चश्मा

यह तो रही फिल्मी कलाकारों की दुनिया, जहां स्टाइल स्टैटमैंट और ग्लैमर के लिए काले चश्मे को पहना जाता है, जबकि बौडीगार्ड, कमांडो हों या सिक्युरिटी फोर्स के लोग हमेशा काले चश्मे पहने नजर आते हैं. आंखों से दिमाग तक के इस खेल के लिए उन्हें बाकायदा ट्रेनिंग दी जाती है, जिस में इन्हें आंखों से दिमाग की हर बात को पढ़ने की तरकीब सिखाई जाती है. ये लोग इस तरह से प्रशिक्षित होते हैं कि आंख और शरीर की भाषा पढ़ कर वे अगले कदम को पहले ही पढ़ सकते हैं.

कुछ वजह निम्न हैं:

आंखों की हरकत को छिपाना

काला चश्मा पहनने का सब से बड़ा कारण है सिक्युरिटी फोर्स की आंखों की हरकतों को छिपाना. आंखें बहुत कुछ बोल सकती हैं. अगर कोई व्यक्ति उन के चेहरे को पढ़ने की कोशिश करता है तो वह उन की निगाहों से उन के अगले कदम का अंदाजा लगा सकता है. काले चश्मे की वजह से कोई भी उन की आंखों से संपर्क नहीं बना पाता, जिस से उन की रणनीति गोपनीय रहती है.

तेज धूप, धूल से आंखों को बचाना

काला चश्मा सिक्युरिटी फोर्स वालों की आंखों को तेज धूप, धूल और अन्य पर्यावरणीय कारकों से बचाता है. यह विशेषरूप से तब महत्त्वपूर्ण होता है जब उन्हें बाहरी जगहों पर लंबे समय तक खड़े रहना या गश्त लगानी होती है.

मनोवैज्ञानिक दबाव को बनाए रखना

काला चश्मा पहनने से सिक्युरिटी फोर्स के व्यक्तित्व अधिक प्रभावशाली और डरावना दिखता है. यह दुश्मनों पर एक मनोवैज्ञानिक दबाव डालता है क्योंकि वे उन की आंखों से उन की योजना का पता नहीं लगा पाते.

तेज रोशनी में भी सतर्कता

कई बार इन सुरक्षाकर्मियों को तेज रोशनी, कैमरा फ्लैश या रैलियों में स्पौटलाइट्स का सामना करना पड़ता है. काला चश्मा उन की आंखों को इस तीव्र रोशनी से बचाता है और उन की सतर्कता में कोई कमी नहीं आने देता.

सुरक्षा उपकरण का हिस्सा

सुरक्षाकर्मियों के लिए काला चश्मा, उन की वरदी और सुरक्षा उपकरणों का अभिन्न हिस्सा है. यह उन्हें किसी भी अप्रत्याशित परिस्थिति में तुरंत प्रतिक्रिया देने के लिए तैयार रखता है.

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