Gardening in Winter: सर्दियों में पौधों की देखभाल कैसे करें

Gardening in Winter: सर्दियों के मौसम में जिस तरह हमे ठंड से बचाव की जरुरत होती है वैसे ही पौधों को भी बचाव की जरुरत होती है. दरअसल, कई पौधे सर्दियों में अपनी वृद्धि को धीमा कर देते हैं या निष्क्रिय अवस्था dormant state में चले जाते हैं, जिसके कारण उन्हें कम पानी चाहिए होता है. तापमान कम होने और धूप कम निकलने के कारण मिट्टी से पानी का वाष्पीकरण evaporation धीमा हो जाता है और अगर ऐसे में हम उन्हें ज्यादा पानी दें तो पौधें मरने लगते हैं इसलिए  सर्दी के सीजन में भी पौधों को स्पेशल केयर की जरूरत होती है. यदि आप चाहते हैं कि आपके घर के बगीचे में लगे सारे पौधे ज्यादा ठंड होने पर भी

खिलखिलाते रहे तो इसके लिए कुछ बातों का ध्यान रखना होगा. इसलिए आइये जानें कि आप ठंड  में अपने पौधों को कितना और अब पानी दें जिससे ये हमेशा हेल्‍दी और हरे भरे रहें.

किस समय देना चाहिए पानी

सर्दियों में ठंडी के मौसम में यदि शाम के समय पौधों को पानी देते हैं तो रात के समय मिट्टी में पानी के जमने की सम्भावना होती है, जिससे मिट्टी में उपस्थित होल्स बंद हो जाते हैं और पौधे की जड़ों तक अच्छी तरह हवा का आदान-प्रदान नहीं हो पाता है. ठंड के मौसम में दोपहर के समय या फिर जब दिन का तापमान 10°C से अधिक हो, तब पौधों को पानी देना सबसे सही रहता है. इस समय, पौधे की मिट्टी द्वारा पानी अच्छे से सोख लिया जाता है. ठण्ड के समय सूर्यास्त से कम से कम एक घंटे पहले तक पानी दिया जा सकता है, ताकि पानी मिट्टी में गहराई तक अवशोषित हो सके.

मिट्टी की जांच करे

पानी देने से पहले मिट्टी की नमी की जांच करना सबसे अच्छा तरीका है. अपनी उंगली को गमले की मिट्टी में 2-3 इंच तक डालकर देखें. अगर ज्यादा नमी है तो थोड़ा रुक कर पानी  दें अगर नमी कम है तो तुरंत पानी दें.

किन पौधों को कब दें पानी

मिर्च, नींबू, धनिया, पुदीना आदि कुछ पौधे ऐसे होते हैं, जिन्हें आपको 5 से 6 दिन में थोड़ा सा पानी दे देना चाहिए.

वहीं अगर गुलाब का पेड़ लगा है, तो 2 से 3 दिन में आप उसे थोड़ा पानी दें. गुलाब की रूट्स मोटी होती हैं, इसलिए उन्हें कम समय में पानी देते हैं तो ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचता है.

वहीं मनी प्लांट या अन्‍य बेल वाले पौधों को आपको 10 से 15 दिनों में पानी देना चाहिए, इससे वह हरे-भरे बने रहते हैं.’

कम पानी चाहने वाले पौधे (जैसे: कैक्टस, सकुलेंट्स, स्नेक प्लांट, जीजी प्लांट) जब मिट्टी की ऊपरी 3-4 इंच परत पूरी तरह सूखी लगे तब पानी दें. सर्दी में   15-20 दिन में एक बार इन्हें पानी दें.

सामान्य पौधे (जैसे: इंडोर प्लांट, मनी प्लांट, तुलसी, गुड़हल) जब मिट्टी की ऊपरी 2 इंच परत सूखी लगे इन्हें तब पानी दें.. सर्दी में 15-20 दिन में एक बार इन्हें पानी की जरुरत होती है.

पानी देने का सही तरीका

अगर आपको ठंड के दिनों में अपने प्लांट्स को हरा-भरा देखना है तो उनमें हर रोज पानी नहीं डालना चाहिए. दरअसल, हर पौधे में पानी देने का अलग तरीका होता है. ऐसे में आप सर्दियों में एक या दो दिन छोड़कर ही पानी डालें. इसके अलावा पौधे की मिट्टी सूखी नजर आने पर भी पानी देना चाहिए. पौधों में पानी इस तरीके से दें कि वह पानी पत्तियों में ना ठहर जाएं बल्कि सीधे गमले में जाएँ वरना सर्दी में पानी के कारण पत्तियां गलने लगेंगी.

पौधे को धीरे-धीरे और गहराई से पानी दें, ताकि मिट्टी की पूरी गहराई तक पानी पहुंच सके.

पौधे के चारों ओर की मिट्टी को भी पानी दें.

सर्दियों में कीटों की जांच करें

सर्दियों में पौधे ओवरवाटरिंग के कारण तनाव में आ जाते हैं, जिससे वे कीटों के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाते हैं. नियमित रूप से पौधों की पत्तियों और तनों की जांच करते रहें क्योंकि कीटों का प्रकोप बढ़ सकता है. अधिकांश छोटे कीट जैसे एफिड्स (Aphids), व्हाइटफ्लाई (Whitefly), और स्पाइडर माइट्स (Spider Mites) पत्तियों के निचले हिस्से में छिपते हैं. इन हिस्सों की नियमित जाँच करें.

कवर करें प्लांट्स

हमेशा सर्दी के दिनों में आपके पौधे अगर खुले में रखें हैं या फिर गार्डन है तो आपको उसके ऊपर किसी चीज से कवर जरूर करना चाहिए. इससे ठंडी हवा और ओस फूल और पत्तियों को मुरझाने और सूखने नहीं देंगे और आपके प्लांट एकदम ग्रीन नजर आएंगे. रात के समय में पौधों को हल्के कपड़े, पुआल या प्लास्टिक की चादर से ढकें. इस बात का ध्यान रखें कि कवर जमीन से पूरा सटा होना चाहिए, ताकि अंदर की गर्मी बाहर न निकले, क्योंकि रात के समय में पाला पड़ने की संभावना रहती है.

Gardening in Winter

Cooking Together: पतिपत्नी हफ्ते में 3-3 दिन खाना बनाने का काम बांट लें

Cooking Together: अब आप सोच रहे होंगे कि ये क्या बात है. अब क्या ऐसा भी होगा. अरे होगा नहीं, जनाब हो रहा है. आजकल हस्बैंड और वाइफ दोनों ही वर्किंग कपल हैं.  फिर ऐसे में पति  शाम को आकर टेबल पर पैर पसारकर बैठे और पत्नी ऑफिस से आते ही खाने के इंतज़ाम में लग जाये. ये किस पत्नी को अच्छा लगेगा.

आप ईमानदारी से बताएं कि क्या आप नहीं चाहती कि हफ्ते में कुछ दिन किचन की जिम्मेवारी पति की हो और ऐसा हो भी क्यों ना. आखिर आप दोनों ही शाम को काम से थक कर लौटते हैं. फिर आकर खाना बनाने की जिम्मेवारी पत्नी कि ही क्यों हो? आप भी तो पति के बराबर ही कमा रही है फिर आपको भी आराम क्यों न मिले?

इस पर क्या कहती है हार्वर्ड रिसर्च

हार्वर्ड रिसर्च में दावा: हर दिन पति के लिए किचन में समय बिताने वाली महिलाएं हैं कम खुशहाल. अध्ययन के मुताबिक, जो महिलाएं रोजाना खाना बनाने की जिम्मेदारी निभाती हैं, वे शादीशुदा जीवन में बोरियत महसूस करती हैं. वहीं, साथ मिलकर या बाहर का खाना पसंद करने वाले कपल्स ज्यादा खुश रहते हैं. इस शोध के लिए हार्वड के शोधकर्ताओं ने 12,000 विवाहित जोड़ों पर 15 साल तक नज़र रखी, उसके बाद यह निष्कर्ष निकाला है.

पति के लिए रोजाना खाना बनाने से क्यों नाखुश होती हैं महिलाएं

जब एक महिला रोज अपने पति के लिए खाना बनाती है, तो वह स्वतः ही “सेवा कर्मचारी” की भूमिका में आ जाती है. भले ही उसके पति ने कभी इसके लिए उसे न कहा हो. वह मनोवैज्ञानिक रूप से खुद को खाना बनाने के लिए जिम्मेदार मानने लगती है और घर में एक समान भागीदार की बजाय वह भोजन के माध्यम से “घर में अपनी जगह बनाने” वाली व्यक्ति की तरह महसूस करने लग जाती है. इसके अलावा रोजाना खाना बनाने के कारण पत्नी को ऊबन भी महसूस होने लगती है और एक समय के बाद उसे इस काम को करने में बिलकुल भी खुशी महसूस नहीं होती है और वह चिड़चिड़ा महसूस करने लगती है.

कपल्स को खुश रखती है साथ खाना बनाने की आदत

इस अध्ययन से यह बात पता चला है कि वे कपल्स सबसे ज्यादा खुशहाल जोड़े होते हैं जो या तो साथ मिलकर खाना बनाते हैं, बारी-बारी से खाना बनाते हैं, या पति रसोई संभालता है, या बस खाना बाहर से ऑर्डर करता है. इस शोध में सबसे दिलचस्प बात यह सामने आई है कि पुरुष तब भी ज़्यादा खुश रहते हैं जब उनकी पत्नियां उनके लिए लगातार खाना नहीं बनातीं.

आइये जाने पति पत्नी हफ्ते में 3 -3 दिन खाना बनाने का काम बांट लें तो इसके क्या फ़ायदे हैं.

पत्नी चूं चूं करना बंद कर देगी

मैं क्या पागल हूं जो ऑफिस से आते ही काम में लग जाओ. ये रोने लगभग हर महिला का है. वे खाना बनाती तो हैं लेकिन वे बड़ बड़ वाली रोटियां होती हैं जिन्हे पति भी खाना पसंद नहीं करता इसलिए पति को चाहिए वो पत्नी का रोना सुनने के बजाये खुद भी अपने हाथ हिलाएं इससे एक तो पत्नी की सुनने से बचेगा दूसरा पत्नी भी रिलैक्स रहेगी तो घर में सुकून बना रहेगा.

अपनी पसंद का खाना मिलेगा

पति है खाने पीने का शौकीन उसे लगता है छुट्टी वाले दिन तो कुछ डिफरेंट खाने को मिले. ये सोच कर वो youtube का पिटारा खोल कर बैठ जाता है और पत्नी से फरमाइश कर बैठता है कि यार आज तो कुछ अच्छा बनाकर खिला डॉन पूरा हफ्ता तुमने भागते दौड़ते बेकार कामचलाऊ खाना बनाकर खिलाया है.

बस फिर क्या था खाना तो मिला नहीं उल्टा पत्नी ने पुरे हफ्ते की भड़ास निकल दी. मुझे भी एक ही छुट्टी का दिन मिलता है आराम करने को इसमें साहब की फर्माइशे ही ख़तम नहीं होती. मैं आज कुछ नहीं बनाऊंगी बहार से मंगा लोन ये लगभग हर घर का हाल होता है. इसलिए ऐसा न हो कुछ अच्छे के चक्कर में घर के खाने से भी हाथ धोना पड़ें.

इससे तो अच्छा है छुट्टी के दिन खाने की जिम्मेवारी आप ले लें और बनायें अपनी पसंद का खाना. इससे पत्नी भी खुश होगी और आपको भी पसंद का खाना खाने को मिलेगा. दूसरे, आपकी पाककला में इजाफ़ा होगा सो अलग.

हर चीज organize अपने आप रहने लगेगी

जब पति रेगुलर किचन में खाना बनाएंगे तो उन्हें पता रहेगा कि कौन सी कहाँ होती है पर उसे वहीं पर कैसे वापस रखना है. क्योंकि अगली बार उन्हें वह चीज इस्तेमाल करनी है तो वे उसे सही तरीके से ही रखेंगे. इससे रोज रोज की किचकिच भी ख़तम होगी और यह दर भी कि आज पति किचन में गए हैं तो पुरे किचन का सामान बिखरकर ही आएंगे. अब विो ऐसा नहीं करेंगी क्योंकि उनको भी किचन में काम करने की आदत हो जाएगी.

दोनों बच्चों को समय दे पाएंगे

अगर पत्नी को भी खाना बनाने से कुछ दिन आराम मिलेगा तो वह भी फ्री होकर प्यूरी फॅमिली के साथ टाइम स्पेंड कर पाएंगी. वह भी किचन से निकलकर कुछ और कर पाएगी. दोनों साथ मिलकर बच्चों के साथ गेम अदि खेल पाएंगे और टीवी भी देख पाएंगे.

किचन का काम बांट लेने पर कपल ज्यादा खुश रहते हैं

दरअसल जब कोई महिला अपनी इच्छा से खाना नहीं बनाती है, बल्कि उसे जबरदस्ती ज़िम्मेदारी के रूप में खाना बनाना पड़ता है तो वह हताश और थकान महसूस करने लगती है, जिसका सीधा असर उसके रिश्ते पर पड़ता है. दरअसल जब एक महिला खुद को किचन से दूर रखकर अपने रिश्ते के अन्य पहलुओं और अपने करियर पर ज्यादा ध्यान देती है तो वह ज्यादा खुश रहती है और अपने पति के साथ खुशनुमा समय बिता पाती है, जिससे उसे रिश्ते में खुशी महसूस होती है. परिणामस्वरूप: वह अपने जीवन में ज़्यादा दिलचस्प, ज़्यादा खुश और ज्यादा संतुष्ट रहती है.

आत्मसंतुष्टि भी मिलेगी

खुद से कोई काम करके या म्हणत करके बनाये गए खाने में कोई कमी भी नज़र नहीं आती और साथ ही बच्चों और पत्नी को आये दिन नए व्यंजनों का स्वाद चखा कर आत्मसंतुष्टि की अनुभूति भी कर सकते हैं, तरीफ मिलेगी सो अलग.

पति क्यूँ ना बने आत्मनिर्भर

जब पत्नी मायके जाती है तो अक्सर पति परेशां हो जाते हैं कि  इतने दिन वे किचन का काम कैसे मैनेज करेंगे. रोज रोज बहार से खाना लाएं तो वह भी सेहत के लिए ठीक नहीं है. ऐसे में अगर पति को खाना बनाना आता हो तो पतियों में आत्मनिर्भरता भी आएगी. वे कभी मजबूर महसूस नहीं करेंगे. किसी भी परिस्थिति में मनचाहा भोजन बना कर मजे उड़ा सकते हैं.दोस्तों को बुला कर नाना प्रकार के व्यंजन बना कर परोसने पर वे खुश होंगे और उनके बीच अपनी एक अलग पहचान बनाई जा सकती है. पाक कला में माहिर होना कोई आसान नहीं है अतः दोस्त इस कला में माहिर होने के कारण आपको अलग सम्मान की नजर से देखते हैं.

Cooking Together

Hema Malini ने धर्मेंद्र के जाने के बाद प्रौपर्टी की जगह सनी देओल से मांगी यह चीज

Hema Malini: लीजेंड एक्टर धर्मेंद्र के निधन के बाद मानो एक युग समाप्त हो गया, पूरी जिंदगी सबको प्यार बांटने वाले धर्मेंद्र की मौत के बाद सिर्फ उनके घर वाले ही फूटफूट कर नहीं रोए बल्कि सलमान खान से लेकर कपिल शर्मा तक जो धर्मेंद्र को अपना फादर फिगर मानते थे उनके भी आंसू अभी तक नहीं थम रहे. सबको हमेशा प्यार बांटने वाले धर्मेंद्र सबसे ज्यादा अपनी दूसरी पत्नी हेमा मालिनी से बेइंतेहा प्यार करते थे, हेमा मालिनी को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए फिल्म शोले की शूटिंग के दौरान वह सब कुछ कर रहे थे जिससे हेमा मालिनी प्रभावित हो.

आखिर कार धर्मेंद्र अपने प्यार के इजहार में सफल रहे और 1980 में धर्मेंद्र हेमा मालिनी की शादी हो गई. तब से लेकर अब तक धर्मेंद्र और हेमा मालिनी के प्यार में कोई कमी नहीं आई .

हाल ही में जब लीजेंड धर्मेंद्र की मौत हुई तो सभी के मन में यह सवाल उठा की धर्म जी हेमा मालिनी को और उनकी बेटियों को प्रॉपर्टी में हिस्सा देंगे की नहीं.

लेकिन जातेजाते भी धर्म जी सभी बच्चों के साथ पूरा न्याय करते हुए सबको प्रॉपर्टी का बराबर हिस्सा देकर गए. लेकिन हेमा मालिनी ने प्रॉपर्टी और पैसा लेने से इनकार कर दिया और सनी देओल को अपने घर बुलाकर दिल की बात की जो दिल को छूने वाली थी. सनी देओल जो हेमा मालिनी की बहुत इज्जत करते हैं वह धर्म पाजी की मौत के बाद हेमा मालिनी से भी लगातार टच में रहे हेमा मालिनी ने सनी देओल से कहा मैंने उनसे कभी कोई उम्मीद नहीं की थी सिवाय प्यार के. वह मेरे लिए हमेशा से साथ रहे थे जब भी मुझे जरूरत थी वह मेरे साथ थे, इसलिए मेरी इच्छा है कि धर्म जी के जाने के बाद भी देओल परिवार का साथ उनके साथ वैसे ही बना रहे जैसे धर्म जी के रहते था.

हेमा ने सनी देओल से वादा लिया कि धर्म पाजी की तरह सनी भी हेमा और उनकी बेटियों का साथ कभी नहीं छोड़ेंगे, हेमा के अनुसार उनको धर्मेंद्र की प्रॉपर्टी या पैसा कुछ नहीं चाहिए सिर्फ देओल परिवार का साथ और प्यार उनके परिवार को हमेशा मिलता रहे बस यही वादा चाहिए, क्योंकि सनी देओल अपने पिता से बेहद प्यार करते हैं इसलिए उन्होंने हेमा मालिनी की इच्छा का आदर करते हुए उनका पूरा सम्मान देते हुए हमेशा साथ निभाने का वादा किया.

Hema Malini

Career Planning: बच्चे पेरैंट्स के खिलाफ जा कर क्यों चुनते हैं खुद की राह

Career Planning: मांबाप चाहे इंसान के हों या पशुपक्षी के, वे अपने बच्चों को हमेशा सुरक्षित देखना चाहते हैं. मगर कुछ समय बाद यही बच्चे अपने घोंसले से बाहर निकल कर पंख फैलाते हुए खुले आसमान में उड़ जाते हैं क्योंकि यही दुनिया का दस्तूर है.

जब एक मां 9 महीने अपने बच्चे को कोख में रखती है, अपने खून से सींच कर उसे बड़ा करती है तो उस बच्चे के लिए हर मां ज्यादा प्रोटैक्टिव हो जाती है. उस की सांसें, उस की धड़कनें बच्चों में समा जाती हैं. उस के बाद बच्चा भले ही कितना भी बड़ा हो जाए वह मांबाप के लिए हमेशा छोटा ही रहता है.

प्यार और सुरक्षा

मगर बच्चों के लिए ज्यादा प्यार और सुरक्षा की भावना उस वक्त चिंता का विषय बन जाती है, जब वही बच्चे अपने मांबाप की सोच से अलग कुछ नया करने की राह पर निकलते हैं जबकि मांबाप अपने बच्चों को बड़े होने के बाद भी ऐसे प्रोफेशन में डालना चाहते हैं जहां उन का भविष्य सुरक्षित हो. जैसे लगभग हर मां अपनी बेटी को टीचर के जौब में या सरकारी नौकरियों में देखना चाहती है क्योंकि उन के हिसाब से यही नौकरियां उन की बेटियों का भविष्य सुरक्षित कर सकती हैं.

कोई भी मांबाप नहीं चाहते कि उन का बच्चा कोई रिस्क ले या नौकरी और पैसा कमाने के चक्कर में मांबाप की नजरों से दूर हो कर दूसरे शहरों में जा कर नौकरी करे. ऐसे में मांबाप बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने के चक्कर में बच्चों को नई राह चुनने से रोकते हैं, जहां पर सफलता के चांसेस बहुत कम होते हैं, फिर चाहे वह ग्लैमर फील्ड में ऐक्टिंग हो, मौडलिंग हो या कोई और काम या फिर स्पोर्ट्स फील्ड में खिलाड़ी ही क्यों न बनना हो, हर बच्चे का सपना आसमान को छूने का होता है. नाम, शोहरत, पैसा कमाने का होता है. मगर आमतौर पर मांबाप अपने बच्चों को डाक्टर और इंजीनियर बनाने की कोशिश में लगे रहते हैं.

बच्चों के सपने और ख्वाहिश

ऐसे में जो बच्चे अपने सपनों का गला घोंट कर मांबाप के कहे अनुसार नौकरी कर लेते हैं वे कुएं का मेंढक बन कर रह जाते हैं और एक ही दायरे में कैद हो जाते हैं और जो बच्चे मांबाप की मरजी के खिलाफ जा कर अपनी अलग राह चुनते हैं वे लोगों के लिए अपने पीछे बहुत कुछ छोड़ जाते हैं, एक अलग पहचान बना लेते हैं.

इस के लिए कई बार उन्हें भले ही लंबा या मुश्किल सफर तय करना पड़ता है लेकिन साथ में उन को यह सुकून जरूर होता है कि भले ही कामयाबी मिली या नाकामयाबी कम से कम कोशिश तो की. मन में यह मलाल नहीं रहता कि काश, मैं ने अपना सपना पूरा किया होता.

यों जिंदगी में कुछ बड़ा करने के लिए रिस्क तो लेना ही पड़ता है. वास्कोडिगामा ने अगर कोशिश नहीं की होती तो वह भारत की खोज कैसे करता. इसी तरह अगर कोलंबस ने सोचा न होता कि समुद्र के दूसरे किनारे क्या है तो वह कभी अमेरिका की खोज नहीं कर पाता.

सोच सही है मगर

मतलब यह कि जो इंसान जोखिम उठा कर अपनी राह पकड़ते हैं वही दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाते हैं और नई खोज कर पाते हैं. मांबाप की सोच अपनी जगह सही है, लेकिन कई बार अपना सपना पूरा करने के लिए मांबाप के खिलाफ जा कर भी कदम उठाने पड़ते हैं. उन की यह कोशिश अगर 20 से 25 उम्र के बीच में होती है तभी वह राजनीति, स्पोर्ट्स और ग्लैमर वर्ल्ड में अपनी खास जगह बना पाते हैं क्योंकि अगर वे कम उम्र में अपने कैरियर की शुरुआत करते हैं तब कहीं 7 या 8 साल में जा कर अपनी मंजिल पाते हैं.

महिला वर्ल्ड कप जीतने वाली महिला क्रिकेट टीम ने कई सालों तक प्रैक्टिस की. अगर उस दौरान उन के मांबाप अपने बच्चों को सपोर्ट नहीं करते तो क्रिकेट में कभी भी मिताली राज, कपिल देव, सचिन तेंदुलकर, गावस्कर नहीं बन पाते. न ही बौक्सिंग में मेरी कौम या टैनिस में सानिया मिर्जा सफलता अर्जित कर अपनी जगह बना पातीं क्योंकि सफल क्रिकेटर मिताली राज बनने के लिए या सचिन तेंदुलकर बनने के लिए कई सारे बैट और बौल बिकते हैं, लेकिन जीतते वही हैं जिन में जीतने का जनून और जज्बा होता है.

डिलिवरी बौय बनना या अकाउंटेंट बनना आसान होता है, लेकिन शेफ या सीए बनना उतना ही मुश्किल होता है.

जरूरी है इमोशनल सपोर्ट

इसी तरह मुंबई में हर दिन हजारों, लाखों लोग ऐक्टर बनने की ख्वाहिश ले कर मुंबई में कदम रखते हैं, लेकिन सुपरस्टार वही बनता है जिस में कुछ कर दिखाने का जनून होता है. लेकिन अपने इस मुश्किल भरे सफर में अगर उन को मांबाप का साथ मिल जाता है तो यह मुश्किल सफर आसान हो जाता है लेकिन वहीं अगर अपनी जिंदगी जीने और अपनी नई राह चुनने में मांबाप की दुत्कार, मार या विरोध मिलता है तो कई बार मंजिल तो मिलती है, लेकिन सफर कांटों भरा हो जाता है.

अपनी राह खुद बनाई

बौलीवुड में कई ऐसे कलाकार हैं जो आज सफलता की चरम सीमा पर हैं. लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें अपने घर वालों का सपोर्ट नहीं मिला.

मल्लिका शेरावत, कंगना रनौत ने अपने घर वालों के खिलाफ जा कर न सिर्फ सफलता हासिल की, बल्कि एक मुकाम भी हासिल किया. वहीं राजीव वर्मा जो एक जानेमाने ऐक्टर हैं, अपने पिता के विरोध की वजह से ऐक्टर बनने के बावजूद डिप्रैशन में चले गए.

रवि किशन जो बौलीवुड और भोजपुरी के जानेमन ऐक्टर हैं, उन को अपने पिता की मार से बचते हुए चुपचाप मुंबई भागना पड़ा क्योंकि रवि किशन के पिता अपने बेटे के अभिनय क्षेत्र में जाने के सख्त खिलाफ थे.

बौलीवुड में कई ऐसे ऐक्टर हैं जो आज बहुत सफल हैं लेकिन उन्हें अपने मांबाप की जिद के चलते कैरियर बनाने में मानसिक या आर्थिक सपोर्ट नहीं मिला और उन को अपने सपने पूरे करने के लिए घर से भागना पड़ा.

इस से यही निष्कर्ष निकलता है कि अगर कोई बच्चा अपने मांबाप के खिलाफ जा कर कुछ नया करने की ख्वाहिश रखते हैं तो मांबाप को उन का सपोर्ट करना चाहिए क्योंकि कई बार हमारे खुद के बच्चों में ऐसी प्रतिभा छिपी होती है जिस का हमें खुद ही ज्ञान नहीं होता. इस प्रतिभा का पता हमें उस वक्त चलता है जब हमारे खुद के बच्चे हम से विद्रोह कर समाज में अपना नाम कमाते हैं और उन के नाम से ही कई बार मांबाप को भी पहचान मिलती है,

फिर चाहे क्रिकेटर विराट कोहली, सचिन तेंदुलकर हों या सलमान, शाहरूख और माधुरी दीक्षित ही क्यों न, इन सभी मशहूर हस्तियों के मांबाप अपने बच्चों के नाम से पहचाने जाते हैं और मांबाप को भी उन पर गर्व है.

इसलिए अगर आप अपने बच्चों से प्यार करते हैं, तो एक बार उन पर भरोसा कर के जरूर देखें. आप का थोड़ा सा साथ और बच्चों पर विश्वास उन्हीं बच्चों को सफलता की चरम सीमा तक ले जाएगा.

Career Planning

Financial Tips: यंग हैं तो मांबाप का पैसा ही सबकुछ नहीं है

Financial Tips: नईनई जौब और पहली तारीख में अकाउंट में आता पैसा भला किसे अच्छा नहीं लगेगा. लेकिन मजा तब किरकिरा हो जाता है जब महीना खत्म होने से पहले ही सारी सैलरी खर्च हो जाती है और सोचने पर भी याद नहीं आता कि खर्चा कहां हुआ है जबकि घर का सारा खर्च तो मम्मीपापा कर रहे हैं फिर ऐसा मैं ने क्या खर्चा कर दिया?

अगर आप भी ऐसा ही महसूस कर रहे हैं, तो हम आप को बता दें ऐसा तब होता है जब हम पर कोई जिम्मेदारी नहीं होती, तो लगता है कि महंगा फोन ले लेते हैं, स्टारबग में कौफी पी लेते हैं, ब्रैंडेड जूते ले लेते हैं, दोस्तों पर खर्चा कर देते हैं. इस तरह जरूरत से ज्यादा खर्च और बिना प्लानिंग के इनवेस्टमैंट न कर पाने के कारण अंत में हाथ खाली रह जाता है.

इसलिए अगर नई जौब है और घर की कोई जिम्मेदारी नहीं है तो यह न समझें कि मांबाप का पैसा ही सब कुछ है क्योंकि आप को अभी घर का खर्चा नहीं है. खानेपीने का खर्चा नहीं करना पड़ रहा. लेकिन शादी के बाद जब अलग घर बसाएंगे तब तो सारे खर्च खुद ही करने पड़ेंगे. जब तक शादी करो तब तक हाथ में अच्छीखासी रकम होनी चाहिए. जो भी आप की सैलरी हो उस में से एक बड़ा हिस्सा बचा कर रखें.

नौकरी लगने के साथ ही सेविंग्स शुरू करें

यह न सोचें कि अभी तो नौकरी लगी ही है अभी से क्या पैसे बचाना. यह सोचेंगे तो कभी सेव नहीं कर पाएंगे. 20 से 25 की उम्र में सेविंग शुरू करने के कई फायदे हैं. अगर आप अभी से सेव करेंगे तो आप की लगाई छोटी रकम भी आप के रिटायरमेंट तक लाखों में हो जाएगी. जैसेकि 5 करोड़ का रिटायरमैंट कार्पस 20 की उम्र में ₹5,000/माह से संभव है, लेकिन 35 की उम्र में इस के लिए ₹20,000/माह से अधिक की आवश्यकता हो सकती है (रिटर्न दर के आधार पर).

कम उम्र से निवेश करने के चलते आप शेयर मार्केट के उतरचढ़ाव को अच्छी तरह से सीख लेते हैं और रिस्क लेने की स्थिति में भी ज्यादा होते हैं क्योंकि अभी आप पर फैमिली का कोई बर्डन नहीं होता. इस से आप को खर्चों और बचाने के बीच का संतुलन बैठाना भी आ जाता है.

इमरजैंसी फंड भी बनाना सही रहता है

आज एआई का जमाना है. कब किस की जौब चली जाए कहा नहीं जा सकता. अगर अचानक से जौब चली जाए, कोई मैडिकल प्रौब्लम आ जाए, शेयर्स में पैसा डूब जाए वगैरह तो ऐसी कोई भी दिक्कत होने पर इमरजैंसी के लिए जोड़ा  हुआ पैसा ही काम आता है. अपने 3 से 6 महीने के कुल मासिक खर्चों के बराबर राशि इमरजैंसी फंड में रखें.

उदाहरण के तौर पर यदि आप का मासिक खर्च ₹30,000 है, तो आप का लक्ष्य ₹90,000 से ₹1,80,000 के बीच होना चाहिए.

इनकम के और तरीके भी खोजें

अगर जौब में सैलरी कम है या आप के पास वीकेंड पर समय है तो एक ही काम करने के बजाए अपना दायरा बढ़ाएं. जैसे लेखन, ग्राफिक्स डिजाइन, कोडिंग, फ्रीलांसिंग या फिर कोई बिजनैस कर के पैसा कमाएं.

सैलरी से बड़ी न हो ईएमआई

अपने बेतुके खर्च जैसेकि महंगा वीडियोगेम, महंगा फोन, बाइक, गाड़ी, बड़ा घर जैसी चीज पर जब तक जरूरी न हो लोन न लें क्योंकि क्रेडिट कार्ड का बकाया, पर्सनल लोन और पेड लोन पर लगने वाला ब्याज आप की कमाई का बड़ा हिस्सा खा जाता है. आप के अधिकांश व्यक्तिगत कर्ज (जैसे क्रेडिट कार्ड, पर्सनल लोन) पर लगने वाला ब्याज (12% से 36% तक) आप के निवेश से मिलने वाले औसत रिटर्न (8% से 12% तक) से बहुत अधिक होता है. इसलिए अगर आप का निवेश 10% कमा रहा है और आप का कर्ज 18% ले रहा है, तो आप हर साल 8% का शुद्ध नुकसान उठा रहे हैं. ऐसा करने से बचें और सोचसमझ कर उधार लें. अगर कर्ज लेना जरूरी हो, तो हमेशा सब से कम ब्याज दर वाला विकल्प चुनें.

हर खर्च से पहले बनाएं बजट

अकसर लोग बिना बजट बनाए खर्च करते हैं और बाद में पछताते हैं. इसलिए महीने की शुरुआत में ही जरूरतों की एक सूची बनाएं फिर उसी के अनुसार खर्च करें. इस से आप को पहले से यह पता रहेगा कि कहां और कितना खर्च करना है और कितना बचाना है. बजट सुनिश्चित करता है कि आप अपना पैसा उन चीजों पर खर्च करें जो आप के लिए सब से ज्यादा मायने रखती हैं नकि केवल आवेग में आ कर फुजूलखर्च करें. बजट कोई बंधन नहीं है, यह एक योजना है जो आप को वित्तीय स्वतंत्रता की ओर ले जाती है. इसे हर महीने की शुरुआत में कुछ देर लगा कर जरूर बनाएं.

साइलेंट किलर

आजकल डिजिटल सब्सक्रिप्शन एक साइलेंट किलर की तरह काम करते हैं. वे छोटे दिखते हैं, लेकिन अगर आप ध्यान न दें, तो वे आप की बचत पर बड़ा असर डालते हैं. नैटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, डिज्नी+हौटस्टार हम ले तो लेते हैं लेकिन सवाल यह है कि क्या आप के पास उन सब को देखने का टाइम है भी या यों ही इन पर पैसा वेस्ट हो रहा है?

इसलिए यदि आप ने किसी सब्सक्रिप्शन का उपयोग पिछले 3 महीने में 3 बार से कम किया है, तो उसे तुरंत कैंसिल कर दें. यदि आप के पास कई ओटीपी है, तो उसे एक बंडल पैक में लेने पर विचार करें, जो अकसर सस्ता पड़ता है.

एक ही टोकरी में सारे अंडे न रखें

मतलब यह कि अपनी सारी सेविंग एक ही जगह पर मत लगाएं बल्कि उन्हें अलगअलग जगह पर इनवेस्ट करें जैसेकि सारे पैसे सोने में, एफडी में या शेयर बाजार में मत डालें. इक्विटी, डेबिट, गोल्ड या सरकारी योजनाओं में बैलेंस कर के निवेश करें क्योंकि यदि किसी एक सैक्टर (जैसे आईटी) या एक संपत्ति वर्ग (जैसे रियल एस्टेट) में मंदी आती है, तो आप के पोर्टफोलियो का केवल एक हिस्सा प्रभावित होगा. बाकी निवेश (जैसे सोना या डेट फंड) उस नुकसान को संतुलित कर सकते हैं.

अनावश्यक खर्चों को कम करें

अकसर हम छोटेछोटे खर्चों को नजरअंदाज कर देते हैं, जैसे  बारबार बाहर खाना, हर सुबह महंगे कैफे की कौफी लेना या औनलाइन शौपिंग. इन खर्चों को कम करें. घर से खाना बना कर ले जाएं और बाहर खाने की आदत को सीमित करें. औनलाइन शौपिंग में डिस्काउंट के चक्कर में अनावश्यक चीजें न खरीदें. औनलाइन फूड डिलीवरी शुल्क, बिना इस्तेमाल किए गए जिम सदस्यता शुल्क, इस तरह के हर खर्चे को ट्रैक करें और महीने के अंत में देखें कि कहां कटौती की जा सकती है.

युवाओं में बचत से ही सेल्फ कॉन्फिडेंस आता है

युवाओं में बचत से आत्मविश्वास (self-confidence) बढ़ता है क्योंकि यह उन्हें आर्थिक सुरक्षा, आत्मनिर्भरता और भविष्य के लिए तैयारी का एहसास कराता है, जिससे वे चुनौतियों का सामना करने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में अधिक सक्षम महसूस करते हैं, जो उनके आत्म-सम्मान और निर्णय लेने की क्षमता को मजबूत करता है.

इसलिए अगर नई जॉब है और घर की कोई जिम्मेवारी नहीं है तो ये ना समझों कि माँ बाप का पैसा ही सब कुछ है.क्यूंकि आपको अभी घर का खर्चा नहीं करना पढ़ रहा. खाने पीने का खर्चा नहीं करना पड़ रहा. लेकिन शादी के बाद जब अलग घर बसाओगे तब तो सारे खर्च खुद ही करने पड़ेंगे.  जब तक शादी करो तब तक हाथ में अच्छी खासी रकम होनी चाहिए. जो भी आपकी सैलेरी हो उसमे से एक बड़ा हिस्सा बचाकर रखों. बचत करने से आपका सेल्फ कॉन्फिडेंस बढ़ता है आइये जाने कैसे-

लाइफ के लिए सिक्योरिटी की फीलिंग आती है

जब आप बचत करते हैं तो आपको पता होता है कि किसी भी अचानक आ जाने वाले खर्च के लिए आपके पास पैसा है जैसे कि अगर कोई मेडिकल इमरजेंसी आ गई हैं, नौकरी छूट गई हैं या फिर जेल हो गई है किसी गलत केस में फंस गए हैं तो भी आपके पास पैसा है और आप कुछ समय तक बैठकर अपना गुजरा कर सकते हैं इससे एक अलग ही मानसिक शांति मिलती हैं.

आत्मनिर्भर बनते हैं आप

बचत करने से आपको अपने छोटे बड़े खर्चों के लिए माँ बाप की कमाई का मुँह देखना नहीं पड़ता. आप किसी पर निर्भर नहीं है. अगर कहीं बाहर घूमने जाने का मन है तो किसी को जवाब नहीं देना है आपने इसके लिए बचत करके अपना पैसा खुद जोड़ा है तो कोई आपको मना नहीं करेगा. अगर iphone के लिए क्रेजी हैं तो बचत करके कुछ महीनों में ले सकते है.

फ्रीडम और कंट्रोल मिलता है 

बचत आपको अपने जीवन पर अधिक नियंत्रण देती है. आपको हर छोटे खर्च के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता, जिससे स्वतंत्रता की भावना आती है.

स्मार्ट डिसीजन मेकिंग आती है

बचत की प्रक्रिया में व्यक्ति वित्तीय योजना बनाना और समझदारी से खर्च करना सीखता है. ये कौशल जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी बेहतर निर्णय लेने में मदद करते हैं.

‘मैं कर सकता हूं’ की मानसिकता आती है

बचत उन्हें यह विश्वास दिलाती है कि वे अपनी चुनौतियों का सामना कर सकते हैं, जिससे उनकी मानसिकता ‘मैं कर सकता हूँ’ (I can do it) वाली हो जाती है, न कि ‘मैं नहीं कर सकता’.

Financial Tips

Career Advice: मनचाही जौब पिकअप करें लेकिन सैलरी की चिंता न करें

Career Advice: कनफ्यूशियस ने कहा था, “वह नौकरी चुनें जो आप को पसंद हो और आप को अपने जीवन में एक दिन भी काम नहीं करना पड़ेगा.”

इस का मतलब है कि जब आप किसी ऐसे काम में शामिल होते हैं जिसे आप पसंद करते हैं, तो वह काम थकाऊ या भारी नहीं लगता, बोझिल महसूस नहीं होता क्योंकि मनचाहे काम में हर कदम का मजा आता है. यह बारिश में बिना भीगे चलने जैसा है.

लेकिन कई बार जब हम जौब करने जाते हैं, तो अपनी मनचाही जौब का औफर होते हुए भी हम उसे जौइन नहीं कर पाते हैं क्योंकि वहां सैलरी कम होती है. लेकिन इस का नतीजा यह होता है कि वहां काम में मन नहीं लगता और उस जौब से हम सटिस्फाई नहीं हो पाते.

इस के विपरीत जो काम आप करना चाहते हो उस में सैलरी कम हो सकती है लेकिन वह काम आप के मन का है तो वहां ग्रोथ के चांस आप को ज्यादा मिलेंगे. जैसेकि अगर आप की कदकाठी अच्छी है और आप को होटल में अच्छे पैकेज के साथ जौब औफर हुई हो पर वह काम आप के मन का नहीं है क्योंकि आप तो किसी फोटोग्राफर के यहां असिस्टेंट बनना चाहते हैं, तो फिर इस में इतना क्या सोचना. सैलरी तो ऐक्सपीरियंस से बढ़ जाएगी लेकिन मनचाहा काम करने का मौका दोबारा शायद न मिलें.

आप को 1-2 साल मनचाहा काम करना चाहिए उस के बाद तय करना चाहिए कि अब मुझे यह बढ़ी हुई सैलरी चाहिए और मनचाहे काम में यह सैलरी नहीं मिलेगी. इस के बाद आराम से सोच कर तय करें कि आप को क्या करना है.

अगर आप को लगता है कि इसी लाइन में आप अपने मनचाहे पैसे कमा सकते हैं, तो ठीक है वरना दूसरे जगह जौब मिल रही है तो वहां जौइन करें. लेकिन पहली और दूसरी जौब यह सोच कर पिक न करें कि आप की पर्सनैलिटी और एजुकेशन रिकौर्ड के हिसाब से यही सही है.

बहुत सारी कंपनी सिर्फ एजुकेशन रिकौर्ड के हिसाब से और प्रेजेंटेशन के हिसाब से जौब देती हैं. लेकिन काम आप के मन का नहीं होता. इस समय आप लर्न पर फोकस करें अर्न पर नही. लर्निंग मोर इंपोर्टेंट है अर्निंग मोर इंपोर्टेंट नहीं है. आप को एक बार काम का ऐक्सपीरियंस हो जाएगा तो सैलरी भी बढ़ जाएगी या फिर आप को समझ आ जाएगा कि यह जौब आप के लिए नहीं है. लेकिन जब तक कर रहे हैं पूरी मेहनत के साथ करें. आप को क्लियर हो जाएगा कि आप आगे क्या करने चाहते हैं. इसी में आगे बढ़ना चाहते हैं या फिर कुछ करना है

मनचाही नौकरी पाने के फायदे

लर्न नौट अर्न कौंसेप्ट : आज आप जो ज्ञान और कौशल प्राप्त कर रहे हैं, वह कल आप की मार्केट वैल्यू को बढ़ाएगा. एक बार जब आप किसी क्षेत्र के विशेषज्ञ बन जाते हैं, तो भविष्य में उच्च वेतन और बेहतर अवसर अपनेआप मिलने लगते हैं. यह एक निवेश की तरह है. आप अभी छोटे रिटर्न स्वीकार करते हैं ताकि भविष्य में बड़े रिटर्न मिल सकें.

एक छोटी कंपनी जहां सैलरी कम हो वहां सीखने का माहौल काफी अच्छा होता है. वहां गलतियां करना और नई चीजें आजमाना अकसर स्वीकार्य होता है. यहां आप नएनए प्रयोग कर सकते हैं और आगे बढ़ने के नए नए रास्ते अपना सकते हैं.

सैटिसफैक्शन और हैप्पीनैस

आप को भले ही पैसे थोड़े कम मिल रहे हों लेकिन जो भी आप कर रहे हैं उसे कर के खुश हैं, तो यह बहुत बड़ी बात है क्योंकि जब आप वह काम करते हैं जो आप को पसंद है तो आप अपने काम से अधिक संतुष्ट और खुश रहेंगे. यह भावना आप को जीवन में और अधिक खुशी दे सकती है.

काम करने की इंस्पैरेशन मिलती है

जब आप के मन का काम होता है तो उसे करने के लिए इंस्पैरेशन मिलती है. आप अपने काम में आगे बढ़ने के लिए खुद ही कोशिश करते हैं और सफल प्रयास करते रहते हैं. यहां आप को किसी को आगे बढ़ने और मेहनत करने के लिए बोलना नहीं पड़ता.

परफौर्मेंस भी बैटर

एक खुश और प्रेरित कर्मचारी स्वाभाविक रूप से बेहतर प्रदर्शन करता है. आप के काम की गुणवत्ता में सुधार होगा और आप एक बेहतर परिणाम प्राप्त करने में सक्षम होंगे.

मैंटल हैल्थ

जब आप ऐसा काम करते हैं जो आप को खास पसंद नहीं है तो उसे करने में आप को उलझन होती है और आप उसे बोझ समझ कर करते हैं. लेकिन जब आप अपनी पसंद का काम करते हैं तो आप को खुशी महसूस होती है, काम का सारा तनाव और थकान भी दूर हो जाती है.

जौब की स्टैबिलिटी

जब आप काम का आनंद लेते हैं, तो आप कम तनावग्रस्त होते हैं. नापसंद काम के विपरीत मनचाहा काम आप को मानसिक रूप से थकाता नहीं, जिस से आप लंबे समय तक उसी कैरियर में बने रहते हैं. इस के परिणामस्वरूप जौब टर्नओवर (बारबार नौकरी बदलना) कम होता है, जो कैरियर को एक मजबूत आधार देता है.

ग्रोथ के चांस

आप अपनी मनचाही फील्ड में सिर्फ काम ही नहीं करते, बल्कि मैस्टेरी हासिल करना चाहते हैं. यह आंतरिक इच्छा आप को लगातार सीखने, प्रशिक्षित होने और नए कौशल (स्किल्स) विकसित करने के लिए प्रेरित करती है. इस से आप को ग्रोथ करने के चांस ज्यादा मिलते हैं.

वर्क लाइफ बैलेंस कर सकते हैं

जब आप के मन का काम होता है तो आप को काम करने में मजा आता है और उस काम में आने वाली चुनौतियों को भी आप झेल लेते हैं. उस का तनाव भी आप घर नहीं लाते हैं क्योंकि वहां आने वाली प्रौब्लम को आप अपनी मरजी और खुशी से फेस कर रहे होते हैं.

सैलरी कम है तो कैसे मैनेज करें

अपने खर्चों को नियंत्रित करें : यदि आप की मनचाही नौकरी की सैलरी कम है, तो आप को अपने खर्चों को नियंत्रित करने और एक बजट बनाने की आवश्यकता होगी.

स्किल्स को बढ़ाना

अपनी मनचाही फील्ड में अपनी स्किल को लगातार बेहतर बनाते रहें. इस से आप को भविष्य में बेहतर सैलरी वाली भूमिकाएं पाने में मदद मिल सकती है. ऐसे नए कौशल सीखें जो आप को अपनी वर्तमान नौकरी में बेहतर सैलरी या प्रमोशन दिला सकें.

साइड बिजनैस या जौब शुरू कर सकते हैं

अगर आप को सैलरी कम लग रही है तो आप साइड बाई साइड कोई और काम भी कर सकते हैं. जैसेकि आप कोचिंग में पढ़ा सकते हैं, डांस क्लास ले सकते हैं, अकाउंट का काम कर सकते हैं.

आर्थिक वृद्धि

शुरुआत में सैलरी कम हो सकती है, लेकिन उत्कृष्टता और विशेषज्ञता के कारण आप भविष्य में अधिक मूल्यवान बन जाते हैं और अंततः आप को बेहतर सैलरी और अवसर मिलते हैं जो केवल पैसे के लिए काम करने वाले को नहीं मिलते.

 क्रेडिट कार्ड और लोन से दूर रहें

यदि सैलरी कम है, तो अनावश्यक कर्ज (खासकर क्रेडिट कार्ड का महंगा ब्याज) आप के बजट को बरबाद कर सकता है.

छोटे निवेश शुरू करें

अगर आप थोड़ा भी बचा पा रहे हैं, तो उसे एफडी, आरडी या कम जोखिम वाले म्यूचुअल फंड (जैसे एसआईपी) में निवेश करें. चक्रवृद्धि ब्याज की शक्ति लंबी अवधि में आप की मदद करेगी.

Career Advice

Winter Glowup Formula : सोनी सब स्टार्स का सीक्रेट्स कैमरा रेडी लुक

Winter Glowup Formula: ठंड का मौसम आप की त्वचा से जरूरी नमी आसानी से छीन सकता है और सर्दियों में त्वचा संबंधी समस्याएं शुरू हो सकती हैं.

जैसेजैसे सर्दी बढ़ती है, ठंडी हवाएं और आरामदायक शामों के साथ एक आम समस्या भी सामने आने लगती है- सूखी, पपड़ीदार और थकी हुई त्वचा.

शूटिंग के लंबे घंटे, भारी मेकअप और बाहरअंदर के बदलते तापमान के कारण टीवी कलाकारों के लिए स्किन केयर और भी जरूरी हो जाता है क्योंकि उन की रोजमर्रा की दिनचर्या कैमरा रेडी, हैल्दी स्किन पर निर्भर करती है. इस सीजन में सोनी सब के कलाकार दीक्षा जोशी, अक्षया हिंदालकर, श्रेनु पारिख बता रही हैं कि वे कौनकौन सी सावधानीपूर्ण रूटीन, आसान आदतें और सुकून देने वाली विंटर स्किन केयर टिप्स अपनाती हैं, जो उन्हें ठंड में भी ग्लो बनाए रखने में मदद करती है.

सोनी सब के कलाकारों का विंटर स्किन केयर टिप्स

यहां हम आप को सोनी सब के 3 ऐक्ट्रैस के ब्यूटी हैक्स के बारे में बताएंगे, जिस से उन की त्वचा सर्दियों में भी चमकदार दिखती है.

तो आइए, सब से पहले बात करते हैं ऐक्ट्रैस दीक्षा जोशी की जो पुष्पा इंपोसिबल में दीप्ति की भूमिका निभा रही हैं और इस बिजी शैड्यूल में भी वे अपनी स्किन केयर कैसे करती हैं.

स्किन केयर रिचुअल की तरह

टीवी ऐक्ट्रैस दीक्षा जोशी का कहना है, “जब आप रोज शूट करते हैं, तो मौसम और तनाव का असर सब से पहले स्किन पर दिखता है. सर्दियों में मैं स्किन केयर को एक छोटी सी रिचुअल की तरह लेती हूं नकि किसी जल्दी में किए गए काम की तरह. मैं एक जैंटल क्लींजर से शुरुआत करती हूं, फिर हाइड्रेटिंग सीरम लगाती हूं और उस के बाद एक रिच मोइस्चराइजर से सब कुछ सील कर देती हूं ताकि मेकअप के नीचे त्वचा टाइट न लगे. मैं हमेशा अपनी वैनिटी में फेशियल मिस्ट और लिपबाम रखती हूं क्योंकि स्टूडियो लाइट्स और एसी इस मौसम में त्वचा को बहुत ड्राई कर देते हैं.”

मेरे लिए विंटर स्किन केयर अनुशासन से शुरू

वहीं ऐक्ट्रैस पुष्पा इंपोसिबल में राशि की भूमिका निभा रही अक्षया हिंदालकर कहती हैं,“लोग सोचते हैं कि स्किन केयर का मतलब महंगे प्रोडक्ट्स हैं, लेकिन मेरे लिए विंटर स्किन केयर अनुशासन से शुरू होता है. मैं दिनभर गुनगुना पानी पीती हूं, मौसमी फल खाती हूं और शूट खत्म होते ही मेकअप उतार देती हूं, चाहे रात में कितनी भी देर हो जाए. ठंड में मैं क्रीमी क्लींजर और थोड़ा मोटा मोइस्चराइजर इस्तेमाल करती हूं अन्यथा मेरी त्वचा खिचीखिची लगती है. मैं हमेशा सनस्क्रीन लगाती हूं, भले ही ज्यादातर शूट इनडोर हो. लाइट्स और धूप दोनों का असर हमारी सोच से ज्यादा होती है. मेरी पसंदीदा विंटर रिचुअल है. रात को कुछ बूंदें फेशियल औयल की लगा कर चेहरे की मसाज करना. इस से दिनभर की थकान उतर जाती है और सुबह त्वचा नरम और शांत महसूस होती है.”

सर्दियों में स्किन केयर मेरे लिए नौन नेगोशिएबल है

‘गाथा शिव परिवार की गणेश कार्तिकेय’ में पार्वती की भूमिका निभा रही टीवी ऐक्ट्रैस श्रेणु पारिख कहती हैं,“किरदार निभाने में घंटों भारी कौस्ट्यूम और मेकअप में रहना पड़ता है, इसलिए खासकर सर्दियों में स्किन केयर मेरे लिए नौन नेगोशिएबल है. शूट से पहले मैं हाइड्रेटिंग टोनर और बैरियर स्ट्रेंथनिंग मोइस्चराइजर से स्किन प्रेप करती हूं ताकि लेयर्स के नीचे त्वचा पैची या इरिटेटेड न हो. पैकअप के बाद मैं डबल क्लींजिंग रूटीन फौलो करती हूं ताकि हर तरह का मेकअप और प्रदूषण पूरी तरह हट जाएं. मेरे लिए सर्दियां मतलब धीरे चलो, अपनी त्वचा की जरूरतें सुनो और छोटेछोटे लेकिन नियमित प्रयास करो.”

इन टीवी ऐक्ट्रैस की तरह आप भी विंटर सीजन में स्किन केयर अगर अनुशासन से करेंगी तो आप की स्किन भी हाइड्रेटेड और ग्लो करेगी. तो क्यों न अभी से स्किन केयर  के ये खास सीक्रेट्स अपनाएं.

Winter Glowup Formula

Kriti Sanon: इकोफ्रैंडली डायस, रेड प्रीड्रेप्ड साड़ी में कृति का हॉट लुक

Kriti Sanon: बॉलीवुड की खूबसूरत और टेलेंटेड एक्ट्रेस कृति सेनन फैशन के मामले में किसी से कम नहीं है. फिर चाहे एथनिक लुक हो या वेस्टर्न लुक्स, उन पर हर लुक बेस्ट लगता है. हाल ही में कृति फिल्म प्रमोशन के दौरान हॉट लुक में नजर आई वहां पर उन्होंने डिजाइनर रेड प्री-ड्रेप्ड साड़ी पहनी थी.

डिजाइनर रेड साड़ी और मॉर्डन फ्रिंज ब्लाउज

फिल्म ‘तेरे इश्क में’ के प्रमोशन के दौरान कृति ने डिजाइनर अनीता डोंगरे द्वारा डिजाइन की गई रेड अनुका अजरख हैंड ब्लौक प्रिंटेड प्रीड्रेप्ड साड़ी पहनी थी. साड़ी के साथ फ्रिंज ब्लाउज पहना जो हैंड-ब्लॉक प्रिंटेड अजरख की कला का एक आधुनिक उदाहरण है. रेड साड़ी के साथ बैक से बांधा हुआ स्लीवलेस ब्लाउज जिसके नैक के चारों ओर एबरोइडेरी इसे यूनिक बना रही है.

ट्रेडिशनल साड़ी और मॉडर्न स्टाइल के ब्लाउज की बेहतरीन मैचिंग इस साड़ी को और भी खूबसूरत दिखा रही है. रेड कलर हमेशा से शक्ति, सौंदर्य और उत्साह का प्रतीक रहा है और इस साड़ी को पहनें हुए कृति की पर्सनालिटी में सेल्फकॉन्फिडेंस साफ नजर आ रहा.

इकोफ्रेंडली डायस साड़ी-

एक्ट्रेस कृति सेनन की यह साड़ी गुजरात के स्थानीय समुदायों द्वारा तैयार की गई है. इस कला में धुलाई, रंगाई, छपाई और सुखाने की सोलह चरणों की गहन प्रक्रिया शामिल है. अनीता डोंगरे के सिद्धांतों के अनुरूप, यह साड़ी पर्यावरण-अनुकूल रंगों का उपयोग करके बनाई गई है. इस खूबसूरत जॉर्जेट साड़ी को सेक्विन से और भी निखारा गया है. इस रेड साड़ी में खिले फ्लावर्स के प्रिंट देखने को मिले. यह प्रिंट न तो हैवी थे ना ही लाइट यह पारम्परिक रूप में नजर आ रहे थे.

दिखा नेचुरल लुक

कृति ने डिजाइनर रेड प्री-ड्रेप्ड साड़ी के साथ अपने लुक को नेचुरल रखा. लाइट मेकअप के साथ हेयर भी सिंपल बनाया, बीच की मांग निकाल कर हेयर को पीछे की तरफ बांध रखा. फोरहेड पर ब्लैक स्माल राउंड बिंदी लगाई और ज्वेलरी के नाम पर उन्होंने फिंगर्स में स्टोन वाली रिंग्स, हाथों की कलाई पर हैवी बैंगल्स, कानों में लटकन वाले लॉन्ग इयररिंग पहने, जो उनके नैक तक लटक रहे थे. इसके साथ हाथों में कॉपर गोल्डन बटुवा उनके पूरे लुक में चार-चांद लगा रहा है.

Kriti Sanon

Best Hindi Story: जिंदगी मेरे घर आना- क्यों भाग रहा था शंशाक

Best Hindi Story: दफ्तर में नए जनरल मैनेजर आने वाले थे. हर जबान पर यही चर्चा थी. पुराने जाने वाले थे. दफ्तर के सभी साहब और बाबू यह पता करने की कोशिश में थे कि कहां से तबादला हो कर आ रहे हैं. स्वभाव कैसा है, कितने बच्चे हैं इत्यादि. परंतु कोई खास जानकारी किसी के हाथ नहीं लग रही थी. अलबत्ता उन के तबादलों का इतिहास बड़ा समृद्ध था, यह सब को समझ आने लगा था.

नियत दिन नए मैनेजर ने दफ्तर जौइन किया तो खूब स्वागत किया गया. पुराने मैनेजर को भी बड़े ही सौहार्दपूर्ण ढंग से बिदा किया.

शशांक साहब यानी जनरल मैनेजर वातानुकूलित चैंबर में भी पसीनापसीना होते रहते. न जाने क्यों हर आनेजाने वाले से शंकित निगाहों से बात करते. लोगों में उन का यह व्यवहार करना कुतूहल का विषय था. पर धीरेधीरे दफ्तर के लोग उन के सहयोगपूर्ण और अहंकार रहित व्यवहार के कायल होते गए.

1 महीने की छुट्टी पर गया नीरज जब दफ्तर में आया तो शशांक साहब को नए जनरल मैनेजर के रूप में देख पुलकित हो उठा, क्योंकि वह उन के साथ काम कर चुका था. वैसे ही शंकित रहने वाले साहब नीरज को देख और ज्यादा शंकित दिखने लगे थे. बड़े ही ठंडे उत्साह से उन्होंने नीरज से हाथ मिलाया और फिर तुरंत अपने काम में व्यस्त हो गए.

मगर ज्यों ही नीरज उन से मिलने के बाद चैंबर से बाहर गया, उन के कान दरवाजे पर ही अटक गए. शशांक को महसूस हुआ कि बाहर अचानक जोर के ठहाकों की गूंज हुई. वे वातानुकूलित चैंबर में भी पसीनापसीना हो गए कि न जाने नीरज क्या बता रहा होगा.

अब उन का ध्यान सामने पड़ी फाइलों में नहीं लग रहा था. घड़ी की तरफ देखा. अभी 12 ही बजे थे. मन हुआ घर चले जाएं, फिर सोचा घर जा कर भी अभी से क्या करना है. कोई अरुणा थोड़े है घर में…

‘शायद नीरज अब तक बता चुका होगा. न जाने क्याक्या बताया होगा उस ने. क्या उसे असली बात मालूम होगी,’ शशांक साहब सोच रहे थे, ‘क्या नीरज भी यही समझता होगा कि मैं ने अरुणा को मारा होगा?’

यह सोचते हुए शशांक की यादों का गंदा पिटारा खुलने को बेचैन होने लगा. अधेड़ हो चले शशांक ने वर्तमान का पेपरवेट रखने की कोशिश की कि अतीत के पन्ने कहीं पलट न जाएं पर जो बीत गई सो बात गई का ताला स्मृतियों के पिटारे पर टिक न पाया. काले, जहरीले अशांत सालों के काले धुएं ने आखिर उसे अपनी गिरफ्त में ले ही लिया…

शादी के तुरंत बाद की ही बात थी.

‘‘अरुणा तुम कितनी सुंदर हो, तुम्हें जब देखता हूं तो अपनी मां को मन ही मन धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने तुम्हें मेरे लिए चुना.’’

अरुणा के लाल होते जा रहे गालों और झुकती पलकों ने शशांक की दीवानगी को और हवा दे दी.

क्या दिन थे वे भी. सोने के दिन और चांदी की रातें. शशांक की डायरी के पन्ने उन दिनों कुछ यों भरे जा रहे थे.

‘‘जीत लिखूं या हार लिखूं या दिल का सारा प्यार लिखूं,

मैं अपने सब जज्बात लिखूं या सपनों की सौगात लिखूं,

मैं खिलता सूरज आज लिखूं या चेहरा चांद गुलाब लिखूं,

वो डूबते सूरज को देखूं या उगते फूल की सांस लिखूं.’’

दिल से बेहद नर्म और संवेदनशील शशांक के विपरीत अरुणा में व्यावहारिकता अधिक थी. तभी तो उस ने उस छोटी सी मनीऔर्डर रसीद को ही ज्यादा तवज्जो दी.

‘‘शशांक ये 2 हजार रुपए आप ने किस को भेजे हैं?’’ उस दिन अरुणा ने पहली बार पूछा था.

‘‘यह रसीद तो मेरी डायरी में थी. इस का मतलब तुम ने अपने ऊपर लिखी मेरी सारी कविताओं को पढ़ लिया होगा?’’ शशांक ने उसे निकट खींचते हुए कहा.

‘‘अपनी मां को भेजे हैं, हर महीने भेजता हूं उन के हाथ खर्च हेतु.’’

शशांक ने सहजता से कहा और फिर अपने दफ्तर के किस्से अरुणा को सुनाने लगा.

पर शायद उस ने अचानक बदलने वाली फिजा पर गौर नहीं किया. चंद्रमुखी से सूरजमुखी का दौर शुरू हो चुका था, जिस की आहट कवि हृदय शशांक को सुनाई नहीं दे रही थी. अब आए दिन अरुणा की नईनई फरमाइशें शुरू हो गई थीं.

‘‘अरुणा इस महीने नए परदे नहीं खरीद सकेंगे. अगले महीने ही ले लेना. वैसे भी ये गुलाबी परदे तुम्हारे गालों से मैच करते कितने सुंदर हैं.’’

शशांक चाहता था कि अरुणा एक बजट बना कर चले. मां को पैसे भेजने के बाद बचे सारे पैसे वह उस की हथेली पर रख कर निश्चिंत रहना चाहता था.

‘‘तुम्हारे पिताजी तो कमाते ही हैं. फिर तुम्हारी मां को तुम से भी पैसे लेने की क्या जरूरत है?’’ अरुणा के शब्दबाण छूटने लगे थे.

‘‘अरुणा, पिताजी की आय इतनी नहीं है. फिर बहुत कर्ज भी है. मुझे पढ़ाने, साहब बनाने में मां ने अपनी इच्छाओं का सदा दमन किया है. अब जब मैं साहब बन गया हूं, तो मेरा यह फर्ज है कि मैं उन की अधूरी इच्छाओं को पूरा करूं.’’

शशांक ने सफाई दी थी. परंतु अरुणा मुट्ठी में आए 10 हजार को छोड़ उन 2 हजार के लिए ही अपनी सारी शांति भंग करने लगी. उन दिनों 10-12 हजार तनख्वाह कम नहीं होती थी. पर शायद खुशी और शांति के लिए धन से अधिक समझदारी की जरूरत होती है, विवेक की जरूरत होती है. यहीं से शशांक और अरुणा की सोच में रोज का टकराव होने लगा. गुलाबी डायरी के वे पन्ने जिन में कभी सौंदर्यरस की कविताएं पनाह लेती थीं, मुहब्बत के भीगे गुलाब महकते थे, अब नूनतेललकड़ी के हिसाबकिताब की बदबू से सूखने लगे थे.

शेरोशायरी छोड़ शशांक फुरसत के पलों में बीवी को खुश रखने के नुसखे और अधिक से अधिक कमाई करने के तरीके सोचता. नन्हा कौशल अरुणा और शशांक के मध्य एक मजबूत कड़ी था. परंतु उस की किलकारियां तब असफल हो जातीं जब अरुणा को नाराजगी के दौरे आते. सौम्य, पारदर्शी हृदय का स्वामी शशांक अब गृह व मानसिक शांति हेतु बातों को छिपाने में खासकर अपने मातापिता से संबंधित बातों को छिपाने में माहिर होने लगा.

उस दिन अरुणा सुबह से ही कुछ खास सफाई में लगी हुई थी. पर सफाई कम जासूसी अधिक थी.

‘‘यह तुम्हारे बाबूजी की 2 महीने पहले की चिट्ठी मिली मुझे. इस में इन्होंने तुम से 10 हजार रुपए मांगे हैं. तुम ने भेज तो नहीं दिए?’’

अरुणा के इस प्रश्न पर शशांक का चेहरा उड़ सा गया. पैसे तो उस ने वाकई भेजे थे, पर अरुणा गुस्सा न हो जाए, इसलिए उसे नहीं बताया था. पिछले दिनों उसे तरक्की और एरियर मिला था. इसलिए घर की मरम्मत हेतु बाबूजी को भेज दिए थे.

अरुणा आवेश में आ गई, क्योंकि शशांक का निर्दोष चेहरा झूठ छिपा नहीं पाता था.

‘‘रुको, मैं तुम्हें बताती हूं… ऐसा सबक सिखाऊंगी कि जिंदगी भर याद रखोगे…’’

उस वक्त तक शशांक की सैलरी में अच्छीखासी बढ़ोतरी हो चुकी थी पर अरुणा उन 10 हजार के लिए अपने प्राण देने पर उतारू हो गई थी. आए दिन उस की आत्महत्या की धमकियों से शशांक अब ऊबने लगा था.

सूरजमुखी का अब बस ज्वालामुखी बनना ही शेष था. अरुणा का बड़बड़ाना शुरू हो गया था. शशांक ने नन्हे कौशल का हाथ पकड़ा और उसे स्कूल छोड़ते हुए दफ्तर के लिए निकल गया. अभी दफ्तर पहुंचा ही था कि उस के सहकर्मी ने बताया, ‘‘जल्दी घर जाओ, तुम्हारे पड़ोसी का फोन आया था. भाभीजी बुरी तरह जल गई हैं.’’

बुरी तरह से जली अरुणा अगले 10 दिनों तक बर्न वार्ड में तड़पती रही.

‘‘मैं ने सिर्फ तुम्हें डराने के लिए हलकी सी कोशिश की थी… मुझे बचा लो शशांक,’’ अरुणा बोली.

जाती हुई अरुणा यही बोली थी. अपनी क्रोधाग्नि की ज्वाला में उस ने सिर्फ स्वयं को ही स्वाहा नहीं किया, बल्कि शशांक और कौशल की जिंदगी की समस्त खुशियों और भविष्य को भी खाक कर दिया था. लोकल अखबारों में, समाज में अरुणा की मौत को सब ने अपनी सोच अनुसार रंग दिया. रोने का मानो वक्त ही नहीं मिला. कानूनी पचड़ों के चक्रव्यूह से जब शशांक बाहर निकला तो नन्हे कौशल और अपनी नौकरी की सुधबुध आई. उस के मातापिता अरुणा की मौत के कारणों और वजह के लांछनों से उबर ही नहीं पाए. कुछ महीनों के भीतर ही दोनों की मौत हो गई.

बच गए दोनों बापबेटे, दुख, विछोह, आत्मग्लानि के दरिया में सराबोर. अरुणा नाम की उन की बीवी, मां ने उन के सुखी और शांत जीवन में एक भूचाल सा ला दिया था. खुदगर्ज ने अपना तो फर्ज निभाया नहीं उलटे अपनों के पूरे जीवन को भी कठघरे में बंद कर दिया था. उस कठघरे में कैद बरसोंबरस शशांक हर सामने वाले को कैफियत देता आया था. घृणा हो गई थी उसे अरुणा से, अरुणा की यादों से. भागता फिरने लगा था किसी ऐसे कोने की तलाश में जहां कोई उसे न जानता हो.

अरुणा का यों जाना शशांक के साथसाथ कौशल के भी आत्मविश्वास को गिरा गया था. 14 वर्षीय कौशल आज भी हकलाता था. बरसों उस ने रात के अंधेरे में अपने पिता को एक डायरी सीने से लगाए रोते देखा था. जाने बच्चे ने क्याक्या झेला था.

एक दिन शशांक ने ध्यान दिया कि कौशल बहुत देर से उसे घूर रहा है. अत: उस ने

पूछा, ‘‘क्या हुआ कौशल? कुछ काम है मुझ से?’’

‘‘प…प…पापा क…क… क्या आप ने म…म… मम्मी को मारा था?’’ हकलाते हुए कौशल ने पूछा.

‘‘किस ने कहा तुम से? बकवास है यह. मैं तुम्हारी मां से बहुत प्यार करता था. उस ने खुद ही…’’ बोझिल हो शशांक ने थकेहारे शब्दों में कहा.

‘‘व…व…वह रोहित है न, वह क…क… कह रहा था तुम्हारे प…प..पापामम्मी में बनती नहीं थी सो एक दिन तुम्हारे प…प…पापा ने उन्हें ज…ज… जला दिया,’’ कौशल ने प्रश्नवाचक निगाहों से कहा. उस की आंखें अभी भी शंकित ही थीं.

यही शंकाआशंका शशांक के जीवन में भी उतर गई थी. अपनी तरफ उठती हर निगाह उसे प्रश्न पूछती सी लगती कि क्या तुम ने अपनी बीवी को जला दिया? क्या अरुणा का कोई पूर्व प्रेमी था? क्या अरुणा के पिताजी ने दहेज नहीं दिया था?

जितने लोग उतनी बातें. आशंकाओं और लांछनों का सिलसिला… भागता रहा था शशांक एक जगह से दूसरी जगह बेटे को ले कर. अब थक गया था. वह कहते हैं न कि एक सीमा के बाद दर्द बेअसर होने लगता है.

बड़ी ही तीव्र गति से शशांक का मन बेकाबू रथ सा भूतकाल के पथ पर दौड़ा जा रहा था. चल रहे थे स्मृतियों के अंधड़…

तभी कमरे की दीवार घड़ी ने जोर से घंटा बजाया तो शशांक की तंद्रा भंग हुई. बेलगाम बीते पलों के रथ पर सवार मन पर कस कर लगाम कसी. जो बीत गया सो बात गई…

‘1 बज गया, कौशल भी स्कूल से आता होगा’, चैंबर से बाहर निकला तो देखा पूरा दफ्तर अपने काम में व्यस्त है.

‘‘क्यों आज लंच नहीं करना है आप लोगों को? भई मुझे तो जोर की भूख लगी है?’’ मुसकराने की असफल कोशिश करते हुए शशांक ने कहा.

सभी ने इस का जवाब एकसाथ मुसकराहट में दिया.

घर पहुंच शशांक ने देखा कि खानसामा खाना बना इंतजार कर रहा था.

‘‘खाना लगाऊं साहब, कौशल बाबा कपड़े बदल रहे हैं?’’ उस ने पूछा.

‘‘अरे वाह, आज तो सारी डिशेज मेरी पसंद की हैं,’’ खाने के टेबल पर शशांक ने चहकते हुए कहा.

‘‘पापा आप भूल गए हैं, आज आप का जन्मदिन है. हैप्पी बर्थडे पापा,’’ गले में हाथ डालते हुए कौशल ने कहा.

‘‘तो कैसा रहा आज का दिन. नए स्कूल में मन तो लग रहा है?’’ शशांक ने पूछा. अंदर से उस का दिल धड़क रहा था कि कहीं पिछली जिंदगी का कोई जानकार उसे यहां न मिल गया हो. पर उस ने एक नई चमक कौशल की आंखों में देखी.

‘‘पापा, मैथ्स के टीचर बहुत अच्छे हैं. साइंस और अंगरेजी वाली मैडम भी बहुत अच्छा बताती हैं. बहुत सारे दोस्त बन गए हैं. सब बेहद होशियार हैं. मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी ताकि मैं उन सब के बीच टिक पाऊं…’’

शशांक ने गौर किया कि कौशल का हकलाना अब काफी कम हो गया है. शाम को कौशल ने खानसामे और ड्राइवर की मदद से एक छोटी सरप्राइज बर्थडे पार्टी का आयोजन किया था. उस के नए दोस्त तो आए ही थे, साथ ही उस ने शशांक के दफ्तर के कुछ सहकर्मियों को भी बुला लिया था.

नीरज भी आया था. ऐसा लग रहा था कौशल को उस ने भी सहयोग किया था इस आयोजन में. नीरज को उस ने फिर चोर निगाहों से देखा कि क्या इस ने सचमुच किसी को कुछ नहीं बताया होगा? अब जो हो सो हो, कौशल को खुश देखना ही उस के लिए सुकूनदायक था.

कब तक अतीत से भागता रहेगा. अब कुछ वर्ष टिक कर इस जगह रहेगा और तबादले कौशल की पढ़ाई के लिए अब ठीक न होंगे. वर्षों बाद घर में रौनक और चहलपहल हुई थी.

‘‘पापा आप खुश हैं न? हमेशा दूसरों के घर बर्थडे पार्टी में जाता था, सोचा आज अपने घर कुछ किया जाए,’’ कह कौशल ने एक नई डायरी और पैन शशांक के हाथ में देते हुए कहा, ‘‘आप के जन्मदिन का गिफ्ट, आप फिर से लिखना शुरू कीजिए पापा, मेरे लिए.’’

उस रात शशांक देर तक आकाश की तरफ देखता रहा. आसमान में काले बादलों का बसेरा था. मानो सुखरूपी चांद को दुखरूपी बादल बाहर आने ही नहीं देना चाहते हों. थोड़ी देर के बाद चांद बादलों संग आंखमिचौली खेलने लगा, ठीक उस के मन की तरह. बादल तत्परता से चांद को उड़ते हुए ढक लेते थे. मानो अंधेरे के साम्राज्य को बनाए रखना ही उन का मकसद हो.

अचानक चांद बादलों को चीर बाहर आ गया और चांदनी की चमक से घोर अंधेरी रात में उजियारा छा गया. शशांक देर तक चांदनी में नहाता रहा. पड़ोस से आती रातरानी की मदमस्त खुशबू से उस का मन तरंगित होने लगा, उस का कवि हृदय जाग्रत होने लगा. उस ने डायरी खोली और पहले पन्ने पर लिखा:

‘‘जिंदगी, जिंदगी मेरे घर आना… फिर से.’’

Best Hindi Story

Hindi Short Story: परिवर्तन- शिव आखिर क्यों था शर्मिंदा?

Hindi Short Story: टीचर सुनील कुमार सभी विद्यार्थियों के चहेते थे. अपनी पढ़ाने की रोचक शैली के साथसाथ वे समयसमय पर पाठ्यक्रम के अलावा अन्य उपयोगी बातों से भी छात्रों को अवगत कराते रहते थे जिस कारण सभी विद्यार्थी उन का खूब सम्मान करते थे. 10वीं कक्षा में उन का पीरियड चल रहा था. वे छात्रों से उन की भविष्य की योजनाओं के बारे में पूछ रहे थे.

‘‘मोहन, तुम पढ़लिख कर क्या बनना चाहते हो?’’ उन्होंने पूछा.

मोहन खड़ा हो कर बोला, ‘‘सर, मैं डाक्टर बनना चाहता हूं.’’

इस पर सुनील कुमार मुसकरा कर बोले, ‘‘बहुत अच्छे.’’

फिर उन्होंने राजेश की ओर रुख किया, ‘‘तुम?’’

‘‘सर, मेरे पिताजी उद्योगपति हैं, पढ़लिख कर मैं उन के काम में हाथ बंटाऊंगा.’’

‘‘उत्तम विचार है तुम्हारा.’’

अब उन की निगाह अश्वनी पर जा टिकी.

वह खड़ा हो कर कुछ बताने जा ही रहा था कि पीछे से महेश की आवाज आई, ‘‘सर, इस के पिता मोची हैं. अपने पिता के साथ हाथ बंटाने में इसे भला पढ़ाई करने की क्या जरूरत है?’’ इस पर सारे लड़के ठहाका लगा कर हंस पड़े परंतु सुनील कुमार के जोर से डांटने पर सब लड़के एकदम चुप हो गए.

‘‘महेश, खड़े हो जाओ,’’ सुनील सर ने गुस्से से कहा.

आदेश पा कर महेश खड़ा हो गया. उस के चेहरे पर अब भी मुसकराहट तैर रही थी.

‘‘बड़ी खुशी मिलती है तुम्हें इस तरह किसी का मजाक उड़ाने में,’‘ सुनील सर गंभीर थे, ‘‘तुम नहीं जानते कि तुम्हारे बाबा ने किन परिस्थितियों में संघर्ष कर के तुम्हारे पिता को पढ़ाया. तब जा कर वे इतने प्रसिद्ध डाक्टर बने.’’ महेश को टीचर की यह बात चुभ गई. वह अपने पिताजी से अपने बाबा के बारे में जानने के लिए बेचैन हो उठा. उस ने निश्चय किया कि वह घर जा कर अपने पिता से अपने बाबा के बारे में अवश्य पूछेगा.

रात के समय खाने की मेज पर महेश अपने पिताजी से पूछ बैठा, ‘‘पिताजी, मेरे बाबा क्या काम करते थे?’’

अचानक महेश के मुंह से बाबा का नाम सुन कर रवि बाबू चौंक गए. फिर कुछ देर के लिए वे अतीत की गहराइयों में डूबते चले गए.

पिता को मौन देख कर महेश ने अपना प्रश्न दोहराया, ‘‘बताइए न बाबा के बारे में?’’

रवि बाबू का मन अपने पिता के प्रति श्रद्धा से भर आया. वे बोले, ‘‘बेटा, वे महान थे. कठोर मेहनत कर के उन्होंने मुझे डाक्टरी की पढ़ाई करवाई. तुम जानना चाहते हो कि वे क्या थे?’’

महेश की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी.

उस के पिता बोले, ‘‘तुम्हारे बाबा रिकशा चलाया करते थे. अपने शरीर को तपा कर उन्होंने मेरे जीवन को शीतलता प्रदान की. उन्होंने यह सिद्ध कर दिया कि हर काम महान होता है. मुझे याद है, मेरे साथ अखिल नाम का एक लड़का भी पढ़ा करता था. उस के पिता धन्ना सेठ थे. वह लड़का हमेशा मेरा मजाक उड़ाया करता था. पढ़ने में तो उस की जरा भी रुचि नहीं थी.

‘‘मैं घर जा कर पिताजी से जब यह बात कहता तो वे जवाब देते कि क्या हुआ, अगर उस ने तुम्हेें रिकशा वाले का बेटा कह दिया? अपनी वास्तविकता से इंसान को कभी नहीं भागना चाहिए. झूठी शान में रहने वाले जिंदगी में कुछ नहीं कर पाते. कोई भी काम कभी छोटा नहीं होता.

‘‘पिताजी की यह बात मैं ने गांठ बांध ली. इस का परिणाम यह हुआ कि मुझे सफलता मिलती गई, लेकिन अखिल अपनी मौजमस्ती की आदतों में डूबा रहने के कारण बरबाद हो गया. जानते हो, आज वह कहां है?’’

महेश उत्सुकता से बोला, ‘‘कहां है पिताजी?’’

‘‘पिता की दौलत से आराम की जिंदगी गुजारने वाला अखिल आज बड़ी तंगहाली में जी रहा है. पिता के मरने के बाद उस ने उन की दौलत को मौजमस्ती व ऐयाशी में खर्च किया. आजकल वह पैसेपैसे को मुहताज है. अपनी बहन के यहां पड़ा हुआ उस की रहम की रोटी खा रहा है और उस का बहनोई उस के साथ नौकरों जैसा व्यवहार करता है.‘‘ महेश ने पिता की बातों को गौर से सुना. अब उसे एहसास हो रहा था कि अश्वनी के पिता उसे वैसा बना सकते हैं, जैसे वे स्वयं हैं लेकिन वे उसे पढ़ालिखा रहे हैं ताकि वह कुछ अच्छा बन सके. फिर यह सोच कर वह कांप उठा कि कहीं उसे अखिल कीतरह मुसीबतों भरी जिंदगी न गुजारनी पड़े.

दूसरे दिन जब वह स्कूल गया तो सब से पहले अश्वनी से ही मिला और बोला, ‘‘कल मैं ने तुम्हारा मजाक उड़ाया था, मैं बहुत शर्मिंदा हूं… मुझे माफ कर दो,’’ महेश का स्वर पश्चात्ताप में डूबा हुआ था.

अश्वनी हंस पड़ा, ‘‘अरे यार, ऐसा मत कहो. वह बात तो मैं ने उसी समय दिमाग से निकाल दी थी.’’

‘‘यह तो तुम्हारी महानता है अश्वनी… क्या तुम मुझे अपना मित्र बनाओगे?’’

यह सुन कर अश्वनी जोर से हंसा और उस ने अपना हाथ महेश की तरफ बढ़ा दिया. अश्वनी के हाथ में अपना हाथ दे कर महेश बहुत राहत महसूस कर रहा था.

Hindi Short Story

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें