मनोरंजन के साथ, इंसानियत का पाठ पढ़ा गई राजकुमार राव की फिल्म Bhool Chuk Maaf

Bhool Chuk Maaf Review : मेडाक फिल्म ज्यादातर हौरर फिल्में बनाने के लिए जाना जाता रहा है, लेकिन इस बार निर्माता दिनेश विजन और लेखक निर्देशक करण शर्मा राजकुमार राव अभिनीत एक अलग तरह की रोमांटिक कौमेडी ड्रामा फिल्म भूल चूक माफ लेकर आए हैं जिसकी कहानी टाइम लूप में फंसे आशिक दूल्हे पर आधारित है. फिल्म का हीरो राजकुमार राव जिसकी शादी वामिका गब्बी अर्थात तितली के साथ होने वाली है.

जिसके साथ उसका काफी समय से प्रेम चल रहा था. दोनों दूल्हा दुल्हन अपनी शादी को लेकर खुश है वही टाइम लूप के चलते समय की सुई 29 तारीख पर ही अटक जाती है जिस दिन दूल्हे की हल्दी है. अगले दिन 30 तारीख को दूल्हे की शादी है लेकिन शादी की तारीख आती ही नहीं बारबार हल्दी की तारीख अर्थात 29 तारीख पर ही समय की सूई अटक जाती है. उसके बाद क्या कुछ होता है दूल्हा पागल जैसा हो जाता है, तितली भी अपने दूल्हे की पागलपन वाली हरकतों से परेशान हो जाती है.

घर के बाकी सदस्य को क्या क्या झेलना पड़ता है , इस पूरी फिल्म में मनोरंजन के साथ हास्य का तड़का लगाते हुए दिखाया गया है.  इसके अलावा शादी के लिए सरकारी नौकरी का जुगाड़ , रिश्तेदारों के ताने बाने, हमेशा छाया की तरह रहने वाले दोस्तों की क्या बातें, दूल्हा दुल्हन के बीच प्यार भरी नोक झोक ने फिल्म को दिलचस्प बनाया है. लेकिन इन सभी हंसी ठिठोलो के बीच भूल चूक माफ के कहानी कार ने एक संदेश देने की कोशिश भी की है. हीरो के जरिए इंसानियत का पाठ भी पढ़ाया है, जो इस मनोरंजक फिल्म की जान है.

फिल्म के अन्य पहलुओं की बात करें तो इस फिल्म का डायरेक्शन इंटरवल से पहले थोड़ा ढीला रहा है , लेकिन इंटरवल के बाद फिल्म ने अच्छा ग्रिप पकड़ा है. फिल्म का संगीत तनिष्क बागची का है जो कर्ण प्रिय है.

अन्य कलाकारों ने जैसे संजय मिश्रा, रघुवीर यादव , सीमा पाहवा ने अपने अपने किरदारों के साथ पूरा न्याय किया है . राजकुमार राव इस तरह के किरदारों के लिए पहले से मंझे हुए हैं . लेकिन फिल्म की हीरोइन वामिका ग़ब्बी ने यूं पी स्टाइल का तड़का बेहतरीन तरीके से लगाया है. फिल्म का टाइटल भूल चूक माफ कहानी के हिसाब से पूरी तरह फिट है. 23 मई 2025 को यह फिल्म थिएटर में रिलीज हो जाएगी.

Poetry Influencers: इंस्टाग्राम रील्स में धड़कतीं शायरियां

Poetry Influencers: इंस्टाग्राम या यूट्यूब खोलो, तो कहीं न कहीं कोई अपनी कविता पढ़ता मिल जाता है. प्यार, तनहाई, समाज, जिंदगी हर मुद्दे पर कुछ न कुछ कहा जा रहा है वह भी शायरी के अंदाज में. ये यंग पोएट्री इन्फ्लुएंसर्स आज की जनरेशन के जज्बातों को अपनी आवाज और अल्फाज के जरिए बयान कर तो रहे हैं मगर शायद ही किसी की शायरी है जो कैफ़ी आजमी, फैज अहमद फैज, गुलजार या जावेद अखतर की तरह जबान पर चढ़ पा रही हो. मिलिए ऐसे इन्फ़्लुएंसर्स से.

 

प्रिया मलिक

प्रिया मलिक की कविताएं मोटिवेट करती हैं. लाइन्स हार्ड हैं. वह लव, ब्रेकअप और औरतों की आजादी जैसे मुद्दों पर लिखती है. उस का बोलने का अंदाज अनोखा है. उन की लिखी हुई कविताएं जैसे- ‘जैसे तुम प्यार करते हो’, ‘चाय ठंडी हो रही है’, ‘तू बन शेरनी तू दिखा दम’, ‘मैं तुम्हे फिर मिलूंगी’ उन के फैंस के बीच काफी पौपुलर हैं.

 

हेली शाह

हेली शाह नई जनरेशन की आवाज है. उस की शायरी में सैल्फ लव, स्ट्रगल और लाइफ की रिऐलिटी का ब्लैंड है. उस का अंदाज सौफ्ट लेकिन असरदार है. लड़कियां उस की शायरी से अपने को कनैक्ट महसूस करती हैं.

 

नायाब मिधा

नायाब मिधा भारत की यंग पौपुलर पोएट्री आर्टिस्टों में से एक है. वह जो तुकबंदियां बनाती है, जो कहानियां और सिनैरियो अपने शब्दों के माध्यम से बयान करती है वह बढ़िया होता है.

 

केशव झा

समय रैना के शो ‘इंडियाज गौट लेटेंट’ से मशहूर हुआ केशव झा अब ओपनमाइक पोएट्री करने लगा है. समय का खुद का कैरियर डांवांडोल जरूर हुआ पर उस के शो से यंगस्टर्स को मौका मिला. केशव अपनी शायरी में शुद्ध हिंदी का इस्तेमाल करता है.

 

आशिष बागरेचा

अपनी रीलों के माध्यम से लाखों लोगों तक पहुंचने वाले बागरेचा के इंस्टाग्राम पर 2.3 मिलियन फौलोअर्स हैं. मोहब्बत, जिंदगी, गम को ले कर कविताएं लिखता है. आशिष भारत में टौप पोएट्री इन्फ्लुएंसर्स में से एक है.

Personality Test : डौमिनैंट पर्सनैलिटी तो नहीं आप ?

Personality Test : सुनो वह ब्लू सूट पहनना अपनी बहन की शादी में, कहीं अपना फैवरिट पिंक मत पहन लेना, बिलकुल बकवास लगता है वह. और हां शनिवार को जाने का और सोमवार को वापसी का रिजर्वेशन करा लिया है मैं ने तो उतना ही सामान पैक करना,’’ कहता हुआ समीर औफिस के लिए निकल गया.

अनु सोचने लगी कि मैं मायके में क्या पहनूंगी और कब जा कर वापस आऊंगी सबकुछ अकेले ही तय कर लिया समीर ने जैसे मेरी कोई मरजी ही नहीं.

उधर शैलेश अपने कमरे में खड़े पत्नी को आवाज लगा रहे कि उन के कपड़े निकाल कर नहीं रखे तो आज क्या पहन कर औफिस जाएंगे. अब पूरा वार्डरोब देख कर भी वे यह तय नहीं कर पा रहे कि क्या पहना जाए. हमेशा सविता की मरजी के अनुसार कपड़े पहनने के कारण अब वे खुद फैसला लेने के आदी ही न रहे थे.

देखा जाए तो दोनों ही केस में कितनी आसानी हो गई एक साथी के लिए. कोई जिम्मेदारी नहीं सबकुछ तय कराकराया मिल गया. समीर तो अनु के जीवन से जुड़ा हर निर्णय ऐसे ही करता आया है. फिर चाहे कैसे कपड़े पहनने की बात हो या कहीं जाने की यहां तक कि रैस्टोरैंट में खाना और्डर करने तक सब जगह वह सब से पहले फैसला ले लेता है और अनु मुसकरा कर उस की मरजी में ही अपनी खुशी जता देती है.

वहीं शैलेश को जीवन में बस शांति चाहिए जो पत्नी के इशारों पर चलने से ही संभव थी तो उस ने भी इस स्थिति को चुपचाप स्वीकार करने में ही भलाई समझ. ऐसे में व्यक्ति को अपने पार्टनर की खींची गई लकीर पर ही चलते रहना होता है. ऐसे पार्टनर को ही कहते हैं डौमिनैंट पर्सनैलिटी.

ऐसा व्यक्ति हमेशा अपने नजदीकी लोगों को अपने प्रभाव में रखता है या यों कहें कि लोगों को अपनी प्रभुसत्ता मानता है.

यों तो डौमिनैंट लोग बड़े जिम्मेदार होते हैं और उन की कोशिश अपने परिवार के लिए सबकुछ बेहतरीन करने की होती है लेकिन उन बेहतरीन फैसलों के लिए वे यह भूल जाते हैं कि उन का साथी भी अपनी राय और सोचसमझ रखता और उस साथी की समझ उन से बेहतर भी हो सकती है. डौमिनैंट व्यक्ति हमेशा अपनी बात को सही साबित करने में लगा रहता है. यहां तक कि इस कारण किसी से भी लड़ पड़ता है. उसे हर काम अपनी पसंद के अनुसार ही करना होता है जबकि किसी काम को करने के कई दूसरे तरीके भी सही हो सकते हैं.

कुछ अच्छा है

ऐसे व्यक्ति का साथी काफी बर्डनलैस हो जाता है. उसे काफी सारी घरेलू पारिवारिक जिम्मेदारियों से फुरसत मिल जाती है. वह अपने शौक के लिए समय निकाल पाता है.

मुश्किल है सफर

डौमिनेट व्यक्ति के साथी का व्यक्तित्व कुंठित हो जाता है. उसे अपने हर निर्णय में किसी की मदद चाहिए होती है. फिर एक दिन वह आता है जब कोई निर्णय लेने की आवश्यकता पड़ती भी है तो उस के अंदर निर्णय लेने की क्षमता ही नहीं बची होती. वह उस कठपुतली की तरह हो जाता है जिसे डोरी पकड़ कर कहीं भी घुमा दो.

ऐसे साथी का आत्मविश्वास कम होतेहोते खत्म ही हो जाता है. लेकिन घर बनाए रखने के लिए वह अपने आत्मविश्वास का अंत भी सहन कर लेता है और जीवन में कभी अकेले रह जाने की स्थिति में तो बड़ी मुश्किल हो जाती है.

डौमिनैंट व्यक्ति अकसर अपने साथी से खिंचाखिंचा रहता है. खुद ही अपने साथी का आत्मविश्वास खत्म कर के यह व्यक्ति दूसरे कौन्फिडैंट लोगों की ओर आकर्षित होने लगता है. वहीं कई जगह तो ऐसी स्थिति तलाक का कारण भी बन जाती है.

दूसरी ओर ऐसे लोगों से उन के अनेक रिश्तेदार, दोस्त और साथी दूरी बनाने लगते हैं कि कोई भी अपने ऊपर किसी की हुकूमत बदाश्त नहीं करता. ऐसे व्यक्ति सबकुछ कर के भी अकेले रह जाते हैं.

कहीं आप भी डौमिनैंट पर्सनैलिटी तो नहीं

अकसर डौमिनैंट लोगों को यह एहसास ही नहीं होता कि वे किस हद तक लोगों की जिंदगी में दखलंदाजी करने के आदी हैं यानी कितने डौमिनैंट हैं.

ऐसे में आप को खुद अपना टैस्ट ले कर देख लेना चाहिए. इस के लिए कुछ प्रश्नों के उत्तर आप अपनेआप से पूछ सकते हैं जैसे-

1. किसी भी घरेलू मुद्दे पर फैसला लेने से पहले क्या आप उसे परिवार के सामने टेबल पर रखते हैं? टेबल पर रखे जाने का अर्थ है कि क्या उस पर परिवार की राय पूछी जाती है?

2. क्या आप का किया हर फैसला ही आखिरी फैसला होता है?

3. क्या परिवार में कोई किस रंग के कपड़े पहनेगा यह भी आप अकेले तय करना चाहते हैं?

4. क्या आप को अपने परिवार की पसंद कभी पसंद नहीं आती?

5. क्या आप को हमेशा यह लगता है कि आप का परिवार कहीं समाज में आप की खिल्ली न उड़वा दे इसीलिए आप ज्यादा रोकटोक करते हैं?

6. क्या आप हमेशा अपने साथी की तरफ से असुरक्षित महसूस करते हैं?

7. क्या आप मानते हैं कि आप अपने साथी से ज्यादा समझदार हैं?

यदि इन में से अधिकतर प्रश्नों के उत्तर हां हैं तो समझ लीजिए कि आप एक डौमिनैंट पर्सनैलिटी के मालिक हैं.

अब सवाल यह है कि जब आप को अपने डौमिनैंट होने से कोई दिक्कत नहीं है तो इसे क्यों बदलें. हो सकता है आज आप को अपनी इस सोच से कोई दिक्कत न हो और आप खुद को अपने परिवार का बेताज बादशाह समझते हों लेकिन समझ लें कि यह बादशाहत आगे चल कर आप के गले का कांटा बन सकती है. कैसे? इस तरह:

पहली बात तो यद्द कि जीवन की गाड़ी दोनों पहियों पर चले तभी सही से चलती है नहीं तो एक ही पहिया दूसरे को कहां तक घसीट सकता है क्योंकि जीवन में जब कभी साथी से सहायता चाहिए होती है तो वद्द नहीं मिल पाती.

दूसरे जिस व्यक्ति ने कभी कोई निर्णय न लिया ही वह एक दिन कुंठित हो जाता है. सोचिए सारी जिंदगी एक कुंठित व्यक्ति के साथ गुजारनी होगी.

अकेले सारे निर्णय लेते रहने के कारण परिवार की हरेक जिम्मेदारी आप के सिर आ जाती है और फिर एक दिन आप इस बढ़े हुए बोझ से दबने लगते हैं पर तब भी किसी के साथ जिम्मेदारी को बांट नहीं पाते.

साथ चलें मिल कर

कुदरत ने हर व्यक्ति को अपनी एक पर्सनैलिटी के साथ दुनिया में भेजा है जिस में उस की पसंदनापसंद शामिल है. मातापिता या साथी होने के नाते उसे सहीगलत, अच्छेबुरे और ठीकठाक में फर्क सिखाना आप की जिम्मेदारी है. लेकिन सिर्फ जो आप सोचते हैं या पसंद करते हैं वही एकमात्र सत्य है ऐसा सोचना ठीक नहीं.

याद रखिए कभी भी किसी का आत्मविश्वास न खत्म होने दें. अपने साथी का आत्मविश्वास खत्म कर के आप खुद को ही कमजोर करते हैं और ऐसे व्यक्ति से फिर आप परफैक्शन की उम्मीद भी नहीं कर सकते. वहीं मिलनेजुलने वाले भी उस व्यक्ति को ‘कन्फ्यूज्ड’ कह कर चिढ़ाते हैं और हम भूल जाते है कि यह ‘कन्फ्यूज स्टेट औफ माइंड’ भी हमारी ही देन है. अत: बेहतर है कि अपने साथी और परिवार को फूलनेफलने का पूरा अवसर दें व उन का मार्गदर्शन करें और उन से अपने लिए सलाह मांगें भी.

राइटर- सबा नूरी

Relationship Tips : ब्रेकअप के बाद खत्म नहीं होती जिंदगी

Relationship Tips : कमिटेड रिलेशनशिप जिंदगी को खुशहाली से भर देती है. सबकुछ इतना अच्छा और खुशनुमा लगता है कि बस जिंदगी यों ही अपने साथी की बांहों में कट जाए. लेकिन जब यही खूबसूरत रिश्ता टूट जाता है, जिसे हम ब्रेकअप कहते हैं तो वह जिंदगी का सब से दर्दनाक पल होता है. अपने साथी के साथ बिताए वे खूबसूरत पल जब ताश के पत्तों की तरह भरभरा कर ढह जाते हैं तो जिंदगी एकदम वीरान लगने लगती है.

प्यार की शुरुआत में एकदूसरे से बेहद प्यार का दावा करने वाले कुछ महीनों या फिर साल 2 साल में एकदूसरे से इतने ज्यादा उकता जाते हैं कि अलग होने का फैसला ले लेते हैं और ब्रेकअप कर लेते हैं. ब्रेकअप होने के कई कारण हो सकते हैं जैसे रिलेशनशिप में रहते हुए पार्टनर को धोखा देना, इग्नोर करना, अपने रिश्ते को टेकन फौर ग्रांटेड लेना, पार्टनर को समय न देना या फिर आपसी अंडरस्टैंडिंग, बौंडिंग, लगाव, कैमिस्ट्री की कमी आदि के कारण ब्रेकअप की नौबत आ जाती है.

ऐसे में व्यक्ति स्ट्रैस और डिप्रैशन में चला जाता है. वह खानापीना यहां तक कि लोगों से मिलनाजुलना भी छोड़ देता है और अपनेआप को एककमरे में बंद कर लेता है, जिस का प्रभाव उस की सेहत पर पड़ने लगता है.

ऐक्सपर्ट का कहना है कि प्यार एक टौनिक की तरह होता है जो हमारे मस्तिष्क में फीलगुड कैमिकल को बढ़ाने का काम करता है. इस से इंसान बहुत अच्छा महसूस करता है. वहीं ब्रेकअप के बाद कई तरह की शारीरिक समस्याएं, चिंताएं और तनाव आदि पैदा हो जाता है. ऐसे में स्ट्रैस हारमोंस बढ़ता है जो हार्ट अटैक का कारण बन सकता है. इस कंडीशन को ब्रोकन हार्ट सिंड्रोम कहा जाता है.

ब्रेकअप के बाद महिलाएं ज्यादा स्ट्रैस में

इवोलूशनरी बिहेवियरल साइंस नाम के जर्नल में प्रकाशित एक स्टडी में बिंगमटन यूनिवर्सिटी कालेज लंदन के अनुसंधानकर्ताओं ने 96 देशों के 5 हजार 705 प्रतिभागियों का इंटरव्यू लिया और उन्हें ब्रेकअप से जुड़े शारीरिक और भावनात्मक दर्द को 1 से 10 स्केल पर रेट करने को कहा. स्टडी के नतीजे बताते हैं कि महिलाओं पर ब्रेकअप यानी दिल टूटने का फिजिकली और इमोशनली दोनों ही तरह से ज्यादा नकारात्मक असर पड़ता है. स्टडी में शामिल महिला प्रतिभागियों ने ब्रेकअप से जुड़े भावनात्मक दर्द को 6.84 रेटिंग दी जबकि पुरुषों ने 6.58 तो वहीं शारीरिक दर्द को महिलाओं ने 4.21 की रेटिंग दी जबकि पुरुषों ने नए 3.75 भी.

ऐसा तब ज्यादा होता है जब महिलाएं अपने पार्टनर के साथ फिजिकल रिलेशनशिप में होती हैं और उन का ब्रेकअप हो जाता है. तब वे ज्यादा स्ट्रैस और डिप्रैशन में आ जाती हैं. पुरुष ‘फाइट या फ्लाइट यानी लड़ो या भागो’ पर ज्यादा विश्वास करते हैं, वहीं महिलाएं ब्रेकअप को दिल से लगा बैठती हैं, जिस से वे ज्यादा स्ट्रैस में आ जाती हैं.

भूलना मुश्किल

एक स्टडी की मानें तो पुरुषों को या तो ब्रेकअप से ज्यादा फर्क नहीं पड़ता या फिर वे ब्रेकआप के दर्द को भुलाने के लिए शराब और ड्रग्स जैसी चीजों का सहारा लेने लगते हैं, वहीं महिलाएं आत्महत्या जैसे कदम उठाने का सोचने लगती हैं.

विशाखा और निवेद एकदूसरे को दिलोजान से प्यार करते थे. वे 5 सालों से एकदूसरे के साथ पतिपत्नी की तरह रह रहे थे. मगर उन के बीच न जाने ऐसा क्या हुआ कि उन के रास्ते अलग होते चले गए. 5 सालों से रिलेशन में रह रहे विशाखा और निवेद के ब्रेकअप की बात सुन कर उन के दोस्त भी शौक्ड रह गए. ब्रेकअप के बाद निवेद तो अपनी लाइफ में आगे बढ़ गया, मगर विशाखा उस डिप्रैशन से उबर नहीं पाई. उस का प्यार पर से विश्वास ही उठ गया. वह इंडिया छोड़ कर हमेशा के लिए अमेरिका अपनी बड़ी बहन के पास रहने चली गई.

कहते हैं प्यार करना और निभाना

2 अलगअलग बातें हैं और कभीकभी तमाम कोशिशों के बावजूद रिश्ते में परेशानियां आती चली जाती हैं. जब आप अपने साथी से सच्चा प्यार करते हैं और यदि आप को अपने प्यार में धोखा मिलता है तो ऐसे लोगों के लिए लाइफ में मूवऔन करना बेहद मुश्किल हो जाता है. वे जल्दी अपने रिश्तों को भुला नहीं पाते हैं. पुरानी यादें, इमोशंस को भुलाया जा सकता है लेकिन जब फिजिकल रिश्ते से जुड़े हों तो यह महिलाओं के लिए भूलना बहुत मुश्किल हो जाता है और वे स्ट्रैस में चली जाती हैं, जबकि पुरुषों को उतना ज्यादा फर्क नहीं पड़ता है और वे अपनी जिंदगी में जल्दी आगे बढ़ जाते हैं, जबकि महिलाएं ऐसा बहुत मुश्किल से कर पाती हैं.

खुद को व्यस्त रखें

खाली दिमाग यहांवहां भटकता है. पुरानी यादें दिलाता है, इसलिए जहां तक हो सके खुद को व्यस्त रखने की कोशिश करें. इस से न केवल आप समस्या के बारे में बारबार सोचने से बचेंगी बल्कि आप के अंदर आत्मविश्वास का संचार भी होगा. आप चाहें तो किसी हौबी क्लास में या औफिस के काम में व्यस्त हो जाएं ताकि उस की आप को याद ही न सताए.

चेहरे की सुंदरता पर ध्यान दें

ब्रेकअप के बाद अकसर महिलाएं उदास रहने लगती हैं, जिस का असर उन की त्वचा पर दिखने लगता है. पुरानी बातें बिसार कर खुद पर ध्यान दें. चेहरे की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए स्किन केयर रूटीन को अपनाएं, न्यू हेयरस्टाइल और नेल आर्ट के माध्यम से खुद को निखारें ताकि आप का तनमन दोनों खिलेखिले नजर आएं.

फिटनैस पर ध्यान दें

ब्रेकअप के बाद बहुत सी महिलाएं स्ट्रैस इटिंग करने लगती हैं, जिस से उन का वजन बढ़ जाता है और वे और डिप्रैशन में चली जाती हैं. ऐसे में आप अपनी सेहत का ध्यान रखें. ज्यादा खाने से बचें और फिटनैस पर ध्यान दें.

रहें पौजिटिव

ब्रेकअप के बाद लगने लगता है जैसे सबकुछ खत्म हो गया. जीवन में अब कुछ बचा ही नहीं है इसलिए अब जीने का कोई फायदा नहीं है. लेकिन ऐसा नहीं. जिंदगी इतनी छोटी भी नहीं है कि एक चोट से टूट कर खत्म हो जाए. अपने मन में सकारात्मक सोच लाएं और सोचें कि यह आप की जिंदगी है और किसी और के लिए आप अपने अनमोल जीवन को यों ही खत्म नहीं कर सकती हैं. अतीत के बारे में सोचसोच कर दुखी होने से अच्छा है जीवन में आगे बढ़ें. अच्छीअच्छी किताबें पढ़ें, मनपसंद म्यूजिक सुनें, घूमने जाएं. इस से आप का मन खुश होगा और आप जीवन के बारे में पौजिटिव सोच पाएंगी.

यह सब करने के बाद भी आप इस परेशानी से बाहर नहीं आ पा रही हैं तो मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ की सलाह लें.

Interesting Hindi Stories : निगाहों से आजादी कहां

Interesting Hindi Stories : ‘‘अरे रामकली, कहां से आ रही है?’’ सामने से आती हुई चंपा ने जब उस का रास्ता रोक कर पूछा तब रामकली ने देखा कि यह तो वही चंपा है जो किसी जमाने में उस की पक्की सहेली थी. दोनों ने ही साथसाथ तगारी उठाई थी. सुखदुख की साथी थीं. फुरसत के पलों में घंटों घरगृहस्थी की बातें किया करती थीं.

cookery

ठेकेदार की जिस साइट पर भी वे काम करने जाती थीं, साथसाथ जाती थीं. उन की दोस्ती देख कर वहां की दूसरी मजदूर औरतें जला करती थीं, मगर एक दिन उस ने काम छोड़ दिया. तब उन की दोस्ती टूट गई. एक समय ऐसा आया जब उन का मिलना छूट गया.

रामकली को चुप देख कर चंपा फिर बोली, ‘‘अरे, तेरा ध्यान किधर है रामकली? मैं पूछ रही हूं कि तू कहां से आ रही है? आजकल तू मिलती क्यों नहीं?’’

रामकली ने सवाल का जवाब न देते हुए चंपा से सवाल पूछते हुए कहा, ‘‘पहले तू बता, क्या कर रही है?’’

‘‘मैं तो घरों में बरतन मांजने का काम कर रही हूं. और तू क्या कर रही है?’’

‘‘वही मेहनतमजदूरी.’’

‘‘धत तेरे की, आखिर पुराना धंधा छूटा नहीं.’’

‘‘कैसे छोड़ सकती हूं, अब तो ये हाथ लोहे के हो गए हैं.’’

‘‘मगर, इस वक्त तू कहां से आ रही है?’’

‘‘कहां से आऊंगी, मजदूरी कर के आ रही हूं.’’

‘‘कोई दूसरा काम क्यों नहीं पकड़ लेती?’’

‘‘कौन सा काम पकड़ूं, कोई मिले तब न.’’

‘‘मैं तुझे काम दिलवा सकती हूं.’’

‘‘कौन सा काम?’’

‘‘मेहरी का काम कर सकेगी?’’

‘‘नेकी और पूछपूछ.’’

‘‘तो चल तहसीलदार के बंगले पर. वहां उन की मेमसाहब को किसी बाई की जरूरत थी. मुझ से उस ने कहा भी था.’’

‘‘तो चल,’’ कह कर रामकली चंपा के साथ हो ली. वैसे भी वह अब मजदूरी करना नहीं चाहती थी. एक तो यह हड्डीतोड़ काम था. फिर न जाने कितने मर्दों की काम वासना का शिकार बनो. कई मजदूर तो तगारी देते समय उस का हाथ छू लेते हैं, फिर गंदी नजरों से देखते हैं. कई ठेकेदार ऐसे भी हैं जो उसे हमबिस्तर बनाना चाहते हैं.

एक अकेली औरत की जिंदगी में कई तरह के झंझट हैं. उस का पति कन्हैया कमजोर है. जहां भी वह काम करता है, वहां से छोड़ देता है. भूखे मरने की नौबत आ गई तब मजबूरी में आ कर उसे मजदूरी करनी पड़ी.

जब पहली बार रामकली उस ठेकेदार के पास मजदूरी मांगने गई थी, तब वह वासना भरी आंखों से बोला था, ‘‘तुझे मजदूरी करने की क्या जरूरत पड़ गई?’’

‘‘ठेकेदार साहब, पेट का राक्षस रोज खाना मांगता है?’’ गुजारिश करते हुए वह बोली थी.

‘‘इस के लिए मजदूरी करने की क्या जरूरत है?’’

‘‘जरूरत है तभी तो आप के पास आई हूं.’’

‘‘यहां हड्डीतोड़ काम करना पड़ेगा. कर लोगी?’’

‘‘मंजूर है ठेकेदार साहब. काम पर रख लो?’’

‘‘अरे, तुझे तो यह हड्डीतोड़ काम करने की जरूरत भी नहीं है,’’ सलाह देते हुए ठेकेदार बोला था, ‘‘तेरे पास वह चीज है, मजदूरी से ज्यादा कमा सकती है.’’

‘‘आप क्या कहना चाहते हैं ठेकेदार साहब.’’

‘‘मैं यह कहना चाहता हूं कि अभी तुम्हारी जवानी है, किसी कोठे पर बैठ जाओ, बिना मेहनत के पैसा ही पैसा मिलेगा,’’ कह कर ठेकेदार ने भद्दी हंसी हंस कर उसे वासना भरी आंखों से देखा था.

तब वह नाराज हो कर बोली थी, ‘‘काम देना नहीं चाहते हो तो मत दो. मगर लाचार औरत का मजाक तो मत उड़ाओ,’’ इतना कह कर वह ठेकेदार पर थूक कर चली आई थी.

फिर कहांकहां न भटकी. जो भी ठेकेदार मिला, उस के साथ वह और चंपा काम करती थीं. दोनों का काम अच्छा था, इसलिए दोनों का रोब था. तब कोई मर्द उन की तरफ आंख उठा कर नहीं देखा करता था.

मगर जैसे ही चंपा ने काम पर आना बंद किया, फिर काम करते हुए उस के आसपास मर्द मंडराने लगे. वह भी उन से हंस कर बात करने लगी. कोई मजदूर तगारी पकड़ाते हुए उस का हाथ पकड़ लेता, तब वह भी कुछ नहीं कहती है. किसी से हंस कर बात कर लेती है तब वह समझता है कि रामकली उस के पास आ रही है.

कई बार रामकली ने सोचा कि यह हाड़तोड़ मजदूरी छोड़ कर कोई दूसरा काम करे. मगर सब तरफ से हाथपैर मारने के बाद भी उसे ऐसा कोई काम नहीं मिला. जहां भी उस ने काम किया, वहां मर्दों की वहशी निगाहों से वह बच नहीं पाई थी. खुद को किसी के आगे सौंपा तो नहीं, मगर वह उसी माहौल में ढल गई.

‘‘ऐ रामकली, कहां खो गई?’’ जब चंपा ने बोल कर उस का ध्यान भंग किया तब वह पुरानी यादों से वर्तमान में लौटी.

चंपा आगे बोली, ‘‘तू कहां खो गई थी?’’

‘‘देख रामवती, तहसीलदार का बंगला आ गया. मेमसाहब के सामने मुंह लटकाए मत खड़ी रहना. जो वे पूछें, फटाफट जवाब दे देना,’’ समझाते हुए चंपा बोली.

रामकली ने गरदन हिला कर हामी भर दी.

दोनों गेट पार कर लौन में पहुंचीं. मेमसाहब बगीचे में पानी देते हुए मिल गईं. चंपा को देख कर वे बोलीं, ‘‘कहो चंपा, किसलिए आई हो?’’

‘‘मेमसाहब, आप ने कहा था, घर का काम करने के लिए बाई की जरूरत थी. इस रामकली को लेकर आई हूं,’’ कह कर रामकली की तरफ इशारा करते हुए चंपा बोली.

मेमसाहब ने रामकली को देखा. रामकली भी उन्हें देख कर मुसकराई.

‘‘तुम ईमानदारी से काम करोगी?’’ मेमसाहब ने पूछा.

‘‘हां, मेमसाहब.’’

‘‘रोज आएगी?’’

‘‘हां, मेमसाहब.’’

‘‘कोई चीज चुरा कर तो नहीं भागोगी?’’

‘‘नहीं मेमसाहब. पापी पेट का सवाल है, चोरी का काम कैसे कर सकूंगी…’’

‘‘फिर भी नीयत बदलने में देर नहीं लगती है.’’

‘‘नहीं मेमसाहब, हम गरीब जरूर हैं मगर चोर नहीं हैं.’’

चंपा मोरचा संभालते हुए बोली, ‘‘आप अपने मन से यह डर निकाल दीजिए.’’

‘‘ठीक है चंपा. इसे तू लाई है इसलिए तेरी सिफारिश पर इसे रख

रही हूं,’’ मेमसाहब पिघलते हुए बोलीं, ‘‘मगर, किसी तरह की कोई शिकायत नहीं मिलनी चाहिए.’’

‘‘आप को जरा सी भी शिकायत नहीं मिलेगी,’’ हाथ जोड़ते हुए रामकली बोली, ‘‘आप मुझ पर भरोसा रखें.’’

फिर पैसों का खुलासा कर उसे काम बता दिया गया. मगर 8 दिन का काम देख कर मेमसाहब उस पर खुश हो गईं. वह रोजाना आने लगी. उस ने मेमसाहब का विश्वास जीत लिया.

मेमसाहब के बंगले में आने के बाद उसे लगा, उस ने कई मर्दों की निगाहों से छुटकारा पा लिया है. मगर यह केवल रामकली का भरम था. यहां भी उसे मर्द की निगाह से छुटकारा नहीं मिला. तहसीलदार की वासना भरी आंखें यहां भी उस का पीछा नहीं छोड़ रही थीं.

मर्द चाहे मजदूर हो या अफसर, औरत के प्रति वही वासना की निगाह हर समय उस पर लगी रहती थी. बस फर्क इतना था जहां मजदूर खुला निमंत्रण देते थे, वहां तहसीलदार अपने पद का ध्यान रखते हुए खामोश रह कर निमंत्रण देते थे.

ऐसे ही उस दिन तहसीलदार मेमसाहब के सामने उस की तारीफ करते हुए बोले, ‘‘रामकली बहुत अच्छी मेहरी मिली है, काम भी ईमानदारी से करती?है और समय भी ज्यादा देती है,’’ कह कर तहसीलदार साहब ने वासना भरी नजर से उस की तरफ देखा.

तब मेमसाहब बोलीं, ‘‘हां, रामकली बहुत मेहनती है.’’

‘‘हां, बहुत मेहनत करती है,’’ तहसीलदार भी हां में हां मिलाते हुए बोले, ‘‘अब हमें छोड़ कर तो नहीं जाओगी रामकली?’’

‘‘साहब, पापी पेट का सवाल है, मगर…’’

‘‘मगर, क्या रामकली?’’ रामकली को रुकते देख तहसीलदार साहब बोले.

‘‘आप चले जाओगे तब आप जैसे साहब और मेमसाहब कहां मिलेंगे.’’

‘‘अरे, हम कहां जाएंगे. हम यहीं रहेंगे,’’ तहसीलदार साहब बोले.

‘‘अरे, आप ट्रांसफर हो कर दूसरे शहर में चले जाएंगे,’’ रामकली ने जब तहसीलदार पर नजर गड़ाई, तो देखा कि उन की नजरें ब्लाउज से झांकते उभार पर थीं. कभीकभी ऐसे में जान कर के वह अपना आंचल गिरा देती ताकि उस के उभारों को वे जी भर कर देख लें.

तब तहसीलदार साहब बोले, ‘‘ठीक कहती हो रामकली, मेरा प्रमोशन होने वाला है.’’

उस दिन बात आईगई हो गई. तहसीलदार साहब उस से बात करने का मौका ढूंढ़ते रहते हैं. मगर कभी उस पर हाथ नहीं लगाते हैं. रामकली को तो बस इसी बात का संतोष है कि औरत को मर्दों की निगाहों से छुटकारा नहीं मिलता है. मगर वह तब तक ही महफूज है, जब तक तहसीलदार की नौकरी इस शहर में है.

Hindi Folk Tales : एक नदी पथभ्रष्टा – किस डगर पर चल रही थी मानसी?

Hindi Folk Tales : ‘‘आज तुम्हारी वही प्रिय सखी फिर मिली थी,’’ टाई की गांठ ढीली करते हुए रंजीत ने कहा.

रंजीत के बोलने के ढंग से शुभा समझ तो गई कि वह किस की बात कर रहा है, फिर भी अनजान बनते हुए उस ने पूछा, ‘‘कौन? कौन सी सखी?’’

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‘‘अब बनो मत. शुभी, तुम जानती हो मैं किस की बात कर रहा हूं,’’ सोफे पर बैठते हुए रंजीत बोला, ‘‘वैसे कुछ भी कहो पर तुम्हारी वह सखी है बड़ी ही बोल्ड. उस की जगह और कोई होता तो नजर बचा कर कन्नी काटने की कोशिश करता, लेकिन वह तो आंखें मिला कर बड़े ही बोल्ड ढंग से अपने साथी का परिचय देती है कि ये मिस्टर फलां हैं. आजकल हम साथ रह रहे हैं.’’

उस की हूबहू नकल उतारता रंजीत सहसा गंभीर हो गया, ‘‘समझ में नहीं आता, शुभी, वह ऐसा क्यों करती है. भला किस बात की कमी है उसे. रूपरंग सभी कुछ इतना अच्छा है. सहज ही उस के मित्र भी बन जाते हैं, फिर किसी को अपना कर सम्मानित जीवन क्यों नहीं बिताती. इस तरह दरदर भटकते हुए इतना निंदित जीवन क्यों जीती है वह.’’

यही तो शुभा के मन को भी पीडि़त करता है. वह समझ नहीं पाती कि मोहित जैसे पुरुष को पा कर भी मानसी अब तक भटक क्यों रही है? शुभा बारबार उस दिन को कोसने लगती है, जब मायके की इस बिछुड़ी सखी से उस की दोबारा मुलाकात हुई थी.

वह शनिवार का दिन था. रंजीत की छुट्टी थी. उस दिन शुभा को पालिका बाजार से कुछ कपड़े खरीदने थे, सो, रंजीत के साथ वह जल्दी ही शौपिंग करने निकल गई. पालिका बाजार घूम कर खरीदारी करते हुए दोनों ही थक गए थे. रंजीत और वह पालिका बाजार के पास बने पार्क में जा बैठे. पार्क में वे शाम की रंगीनियों का मजा ले रहे थे कि अचानक शुभा की नजर कुछ दूरी पर चहलकदमी करते एक युवा जोड़े पर पड़ी थी. युवक का चेहरा तो वह नहीं देख पाई, क्योंकि युवक का मुंह दूसरी ओर था, किंतु युवती का मुंह उसी की तरफ था. उसे देखते ही शुभा चौंक पड़ी थी, ‘मानसी यहां.’

बरसों की बिछुड़ी अपनी इस प्रिय सखी से मिलने की खुशी वह दबा नहीं पाई. रंजीत का हाथ जोर से भींचते हुए वह खुशी से बोली थी, ‘वह देखो, रंजीत, मानसी. साथ में शायद मोहित है. जरूर दोनों ने शादी कर ली होगी. अभी उसे बुलाती हूं,’ इतना कह कर वह जोर से पुकार उठी, ‘मानसी…मानसी.’

उस की तेज आवाज को सुन कर कई लोगों के साथ वह युवती भी पलटी थी. पलभर को उस ने शुभा को गौर से देखा, फिर युवक के हाथ से अपना हाथ छुड़ा कर वह तेजी से भागती हुई आ कर उस से लिपट गईर् थी, ‘हाय, शुभी, तू यहां. सचमुच, तुझ से मिलने को मन कितना तड़पता था.’

‘रहने दे, रहने दे,’ शुभा ने बनावटी गुस्से से उसे झिड़का था, ‘मिलना तो दूर, तुझे तो शायद मेरी याद भी नहीं आती थी. तभी तो गुपचुप ब्याह कर लिया और मुझे खबर तक नहीं होने दी.’

अपनी ही धुन में खोई शुभा मानसी के चेहरे पर उतर आई पीड़ा को नहीं देख पाई थी. मानसी ने जबरन हंसी का मुखौटा चेहरे पर चढ़ाते हुए कहा था, ‘पागल है तू तो. तुझ से किस ने कह दिया कि मैं ने शादी कर ली है.’

‘तब वह…’ अचानक अपनी तरफ आते उस युवक पर नजर पड़ते ही शुभा चौंक पड़़ी, यह मोहित नहीं था. दूर से मोहित जैसा ही लगता था. शुभा अचकचाई सी बोल पड़ी, ‘‘तब यह कौन है? और मोहित?’’

बीच में ही मानसी शुभा की बात को काटते हुए बोली, ‘छोड़ उसे, इन से मिल. ये हैं, मिस्टर बहल. हम लोग एक ही फ्लैट शेयर किए हुए हैं. अरे हां, तू अपने श्रीमानजी से तो मिलवा हमें.’

मानसी के खुलेपन को देख कर अचकचाई शुभा ने जैसेतैसे उस दिन उन से विदा ली, किंतु मन में कहीं एक कांटा सा खटकता रहा. मन की चुभन तब और बढ़ जाती जब आएदिन रंजीत उसे किसी नए मित्र के साथ कहीं घूमते देख लेता. वह बड़े चटखारे ले कर मानसी और उस के मित्रों की बातें करता, रंजीत के स्वर में छिपा व्यंग्य शुभा को गहरे तक खरोंच गया.

कुछ भी हो, आखिर मानसी उस की बचपन की सब से प्रिय सखी थी. बचपन के लगभग 15 साल उन्होंने साथसाथ बिताए थे. तब कहीं कोई दुरावछिपाव उन के बीच नहीं था. यहां तक कि अपने जीवन में मोहित के आने और उस से जुड़े तमाम प्रेमप्रसंगों को भी वह शुभा से कह दिया करती थी. उस ने मोहित से शुभा को मिलवाया भी था. ऊंचे, लंबे आकर्षक मोहित से मिल कर शुभा के मन में पलभर को सखी से ईर्ष्या का भाव जागा था, पर दूसरे ही पल यह संतुष्टि का भाव भी बना था कि मानसी जैसी युवती के लिए मोहित के अतिरिक्त और कोई सुयोग्य वर हो ही नहीं सकता था.

कुदरत ने मानसी को रूप भी अद्भुत दिया था. लंबी छरहरी देह, सोने जैसा दमकता रंग, बड़ीबड़ी घनी पलकों से ढकी गहरी काली आंखें, घने काले केश और गुलाबी अधरों पर छलकती मोहक हंसी जो सहज ही किसी को भी अपनी ओर खींच लेती थी.

शुभा अकसर उसे छेड़ती थी, ‘‘मैं लड़का होती तो अब तक कब की तुझे भगा ले गई होती. मोहित तो जैसे काठ का उल्लू है, जो अब तक तुझे छोड़े हुए है.’’

मानसी का चेहरा लाज से लाल पड़ जाता. वह चिढ़ कर उसे चपत जमाती हुई घर भाग जाती. अचानक ही शुभा का विवाह तय हो गया और रंजीत के साथ ब्याह कर शुभा दिल्ली चली आई. कुछ दिनों तक तो दोनों तरफ से पत्रों का आदानप्रदान बड़े जोरशोर से होता रहा, लेकिन कुछ तो घर जमाने और कुछ रंजीत के प्रेम में खोई रहने के कारण शुभा भी अब पहले जैसी तत्परता से पत्र नहीं लिख पाती थी, फिर भी यदाकदा अपने पत्रों में शुभा मानसी को मोहित से विवाह कर के घर बसाने की सलाह अवश्य दे देती थी.

अचानक ही मानसी के पत्रों में से मोहित का नाम गायब होने से शुभा चौंकी तो थी, किंतु मोहित और मानसी के संबंधों में किसी तरह की टूटन या दरार की बात वह तब सोच भी नहीं सकती थी.

‘‘क्या सोच रही हो मैडम, कहीं अपनी सखी के सुख से तुम्हें ईर्ष्या तो नहीं हो रही. अरे भाई, और किसी का न सही, कम से कम हमारा खयाल कर के ही तुम मानसी जैसी महान जीवन जीने वाली का विचार त्याग दो,’’ रंजीत की आवाज से शुभा का ध्यान भंग हो गया. उसे रंजीत का मजाक अच्छा नहीं लगा. रूखे स्वर में बोली, ‘‘मुझ से इस तरह का मजाक मत किया करो तुम. अब अगर मानसी ऐसी हो गई है तो उस में मेरा क्या दोष? पहले तो वह ऐसी नहीं थी.’’

शुभा के झुंझलाने से रंजीत समझ गया कि शुभा को सचमुच उस की बात बहुत बुरी लगी थी. उस ने शुभा का हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचते हुए कहा. ‘‘अच्छा बाबा, गलती हो गई. अब इस तरह की बात नहीं करूंगा. आओ, थोड़ी देर मेरे पास तो बैठो.’’

शुभा चुपचाप रंजीत के पास बैठी

रही, पर उस का दिमाग मानसी

के ही खयालों में उलझा रहा. वह सचमुच नहीं समझ पा रही थी कि मानसी इस राह पर इतना आगे कैसे और क्यों निकल गई. रोजरोज किसी नए पुरुष के साथ घूमनाफिरना, उस के साथ एक ही फ्लैट में रात काटना…छि:, विश्वास नहीं होता कि यह वही मानसी है, जो मोहित का नाम सुनते ही लाज से लाल पड़ जाती थी.

पहली बार मोहित के साथ उस के प्रेमसंबंधों की बात स्वयं मानसी के मुंह से सुन कर भी शुभा को विश्वास नहीं हुआ था. भला उस के सामने क्या कहसुन पाती होगी वह छुईमुई. चकित सी शुभा उसे ताकती ही रह गई थी. किंतु जो बीत गया, वह भी एक सच था और जो आज हो रहा है, वह भी एक सच ही तो है.

उसे अपने ही खयालों में खोया देख कर रंजीत कुछ खीझ सा उठा, ‘‘ओफ, अब क्या सोचे जा रही हो तुम?’’

शुभा ने खोईखोई आंखों से रंजीत की ओर देखा, फिर जैसे अपनेआप से ही बोली, ‘‘काश, एक बार मानसी मुझे अकेले मिल जाती तो…’’

‘‘तो? तो क्या करोगी तुम?’’ रंजीत उस की बात बीच में काट कर तीखे स्वर में बोला.

‘‘मैं उस से पूछूंगी कल की मानसी से आज की इस मानसी के जन्म की गाथा और मुझे पूरा विश्वास है मानसी मुझ से कुछ भी नहीं छिपाएगी.’’

‘‘शुभा, मेरी मानो तो तुम इस पचड़े में मत पड़ो. सब की अपनीअपनी जिंदगी होती है. जीने का अपना ढंग होता है. अब अगर उस को यही तरीका पसंद है तो इस में मैं या तुम कर ही क्या सकते हो?’’ रंजीत ने उसे समझाने का प्रयास किया.

‘‘नहीं रंजीत, मैं उस मानसी को जानती हूं, उस के मन में, बस, एक ही पुरुष बसता था. उस पुरुष को अपना सबकुछ अर्पित कर उस में खो जाने की कामना थी उस की. यह मानसी एक ही पुरुष से बंध कर गौरव और गरिमामय जीवन जीना चाहती थी. किसी की पत्नी, किसी की मां होने की उस के मन में लालसा थी. मैं तो क्या, खुद मानसी ने भी अपने इस रूप की कल्पना नहीं की होगी, फिर किस मजबूरी से वह पतन की इस चिकनी राह पर फिसलती जा रही है?’’

शुभा को अपने प्रश्नों के उत्तर तलाशने में बहुत इंतजार नहीं करना पड़ा. एक दिन दोपहर के समय मानसी उस के दरवाजे पर आ खड़ी हुई. शुभा ने उसे बिठाया और कोल्डडिं्रक देने के बाद जैसे ही अपना प्रश्न दोहराया, मानसी का खिलखिलाता चेहरा सहसा कठोर हो गया. फिर होंठों पर जबरन बनावटी मुसकान बिखेरती हुई मानसी बोली, ‘‘छोड़ शुभी, मेरी कहानी में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो किसी का मन बहला सके. हां, डरती जरूर हूं कि कहीं तेरे मन में भी वही टीस न जाग उठे, जिसे दबाए मैं यहीं आ पहुंची हूं.’’

‘‘लेकिन क्यों? क्यों है तेरे मन में टीस? जिस आदर्श पुरुष की तुझे कामना थी, वह तो तुझे मिल भी गया था. वह तुझ से प्रेम भी करता था, फिर तुम ने उसे क्यों खो दिया पगली?’’

‘‘तुझे याद है, शुभी, बचपन में जब दादी हम लोगों को कहानियां सुनाती थीं तो अकसर पोंगापंडित की कहानी जरूर सुनाती थीं, जिस ने वरदान के महत्त्व को न समझ कर उसे व्यर्थ ही खो दिया था. और तुझे यह भी याद होगा कि दादी ने कहानी के अंत में कहा था, ‘दान सदा सुपात्र को ही देना चाहिए, अन्यथा देने वाले और पाने वाले किसी का कल्याण नहीं होता.’

‘‘हां, याद है. पर यहां उस कहानी का क्या मतलब?’’ शुभा बोली.

‘‘मोहित वह सुपात्र नहीं था, शुभी, जो मेरे प्रेम को सहेज पाता.’’

‘‘लेकिन उस में कमी क्या थी, मानू? एक पूर्ण पुरुष में जो गुण होने चाहिए, वह सबकुछ तो उस में थे. फिर उसे तू ने पूरे मन से अपनाया था.’’

‘‘हां, देखने में वह एक संपूर्ण पुरुष ही था, तभी तो उस के प्रति तनमन से मैं समर्पित हो गई थी. पर वह तो मन से, विचारों से गंवार व जाहिल था,’’ क्षोभ एवं घृणा से मानसी का गला रुंध गया.

‘‘लेकिन इतना आगे बढ़ने से पहले कम से कम तू ने उसे परख तो लिया होता,’’ शुभा ने उसे झिड़की दी.

‘‘क्या परखती? और कैसे परखती?’’ आंसुओं को पीने का प्रयास करती मानसी हारे स्वर में बोली, ‘‘मैं तो यही जानती थी कि कैसा ही कुपात्र क्यों न हो, प्रेम का दान पा कर सुपात्र बन जाता है. मेरा यही मानना था कि प्रेम का पारस स्पर्श लोहे को भी सोना बना देता है,’’ आंखों से टपटप गिरते आंसुओं की अनवरत धार से मानसी का पूरा चेहरा भीग गया था.

पलभर को रुक कर मानसी जैसे कुछ याद करने लगी.

शुभा चुपचाप मानसी के भीतर जमे हिमखंड को पिघलते देखती रही. मानसी फिर खोएखोए स्वर में बोलने लगी, ‘‘मैं यही तो नहीं जानती कि पत्थर की मूर्ति में भगवान बसते हैं या नहीं. अम्मा का बेजान मूर्ति के प्रति दृढ़ विश्वास और आस्था मेरे भी मन में जड़ जमाए बैठी थी. मोहित को समर्पित होते समय भी मेरे मन में किसी छलफरेब की कोई आशंका नहीं थी. अम्मा तो पत्थर को पूजती थीं, किंतु मैं ने तो एक जीतेजागते इंसान को देवता मान कर पूजा था. फिर समझ में नहीं आता कि कहां क्या कमी रह गई, जो जीताजागता इंसान पत्थर निकल गया.’’ यह कह कर वह सूनीसूनी आंखों से शून्य में ताकती बैठी रही.

शुभा कुछ देर तक उस का पथराया चेहरा देखती चुप बैठी रही. फिर कोमलता से उस के हाथों को अपने हाथ में ले कर पूछा, ‘‘तो क्या मोहित धोखेबाज…’’

‘‘नहीं. उसे मैं धोखेबाज नहीं कहूंगी,’’ फिर होंठों पर व्यंग्य की मुसकान भर कर बोली, ‘‘वह तो शायद प्रेम की तलाश में अभी भी भटकता फिर रहा होगा. यह और बात है कि इस कलियुग में ऐसी कोई सती सावित्री उसे नहीं मिल पाएगी, जो पुजारिन बनी उसे पूजती हुई जोगन का बाना पहन कर उस के थोथे अहं को तृप्त करती रहे. बस, यही नहीं कर पाई मैं. अपना सबकुछ समर्पित करने के बदले में उस ने भी मुझ से एक प्रश्न ही तो पूछा था, मात्र एक प्रश्न, जिस का जवाब मैं तो क्या दुनिया की कोई नारी किसी पुरुष को नहीं दे पाई है. मैं भी नहीं दे पाई,’’ मानसी की आंखें फिर छलक आईं, जैसे बीता हुआ कल फिर उस के सामने आ खड़ा हुआ.

‘‘जाने दे मानू, जो तेरे योग्य ही नहीं था, उस के खोने का दुख क्यों?’’ शुभा ने उसे सांत्वना देने के लिए कहा. लेकिन मानसी अपने में ही खोई बोलती रही, ‘‘आज भी मेरे कानों में उस का वह प्रश्न गूंज रहा है, मैं यह कैसे मान लूं कि जो लड़की विवाह से पहले ही एक परपुरुष के साथ इस हद तक जा सकती है, वह किसी और के साथ…’’

‘‘छि:,’’ शुभा घृणा से सिहर उठी.

उस के चेहरे पर उतर आई घृणा को देख कर मानसी हंस पड़ी, ‘‘तू घृणा तो कर सकती है, शुभी, मैं तो यह भी नहीं कर सकी थी. आज सोचती हूं तो तरस ही आता है खुद पर. जिसे मैं देवता मान रही थी, वह तो एक मानव भी नहीं था. और हम मूर्ख औरतें… क्या है हमारा अस्तित्व? हमारे ही त्याग और समर्पण से विजेता बना यह पुरुष हमारी कोमल भावनाओं को कुचलने के लिए, बस, एक उंगली उठाता है और हम औरतों का अस्तित्व कुम्हड़े की बत्तिया जैसे नगण्य हो जाता है.’’ आवेश से मानसी का चेहरा तमतमा उठा.

अपने गुस्से को पीती हुई मानसी आगे बोली, ‘‘जानती है शुभा, उस दिन उस के प्रश्न के धधकते अग्निकुंड में मैं ने अपना अतीत होम कर दिया था और साथ ही भस्म कर डाला था अपने मन में पलता प्रेम और निष्ठा. पुरुष जाति के प्रति उपजी घृणा, संदेह और विद्वेष का बीज मेरे मन में जड़ जमा कर बैठ गया.’’

‘‘तो फिर यह नित नए पुरुषों के साथ…’’ शुभा हिचकिचाती हुई पूछ बैठी.

‘‘यह भी मैं ने मोहित से ही सीखा था. शुरूशुरू में मैं जब हिचकती या झिझकती तो वह यही कहता था, ‘इस में इतनी शरम या झिझक की क्या बात है. जैसे भूख लगने पर खाना खाते हैं, वैसे ही देह की भूख मिटाना भी एक सहज धर्म है,’ सो उस के दिखाए रास्ते पर चलती हुई उसी धर्म का पालन कर रही हूं मैं,’’ रोती हुई मानसी कांपते स्वर में बोली, ‘‘जब भूख लगती है, ठहर कर उसे शांत कर लेती हूं, फिर आगे बढ़ जाती हूं.’’

शुभा के चेहरे पर नफरत के भाव को भांप कर मानसी पलभर चुप रही, फिर ठंडी सांस छोड़ती हुई बोली, ‘‘निष्ठा और प्रेम के कगारों से हीन मैं वह पथभ्रष्टा नदी हूं, जो एक भगीरथ की तलाश में मारीमारी फिर रही है. मैं ने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है, फिर भी सोचती हूं कि इस अस्तित्वहीन हो चुकी नदी को उबारने के लिए कोई भगीरथ कहां से आएगा?’’

देर तक दोनों सखियां गुमसुम  अपनेअपने खयालों में खोई रहीं. फिर सहसा जैसे कुछ याद आ गया. मानसी एकदम से उठ खड़ी हुई, ‘‘अच्छा, चलती हूं.’’

‘‘कहां?’’ शुभा एकदम चौंक सी पड़ी.

अपने होंठों पर वही सम्मोहक हंसी छलकाती हुई मानसी इठलाते स्वर में बोली, ‘‘किसी भगीरथ की तलाश में.’’

उस के स्वर में छिपी पीड़ा शुभा को गहरे तक खरोंच गई. तेज डग भरती मानसी को देखती शुभा ने मन ही मन कामना की, ‘सुखद हो इस पथभ्रष्टा नदी की एकाकी यात्रा का अंत.’

लेखक- पूर्वा श्रीवास्तव 

Hindi Moral Tales : दूसरा भगवान – डाक्टर रंजन पर कौनसी आई मुसीबत

Hindi Moral Tales :  डाक्टर रंजन के छोटे से क्लिनिक के बाहर मरीजों की भीड़ थी. अचानक लाइन में लगा बुजुर्ग धरमू चक्कर खा कर गिर पड़ा. डाक्टर रंजन को पता चला. वे अपने दोनों सहायकों जगन और लीला के साथ भागे आए.

डाक्टर रंजन ने धरमू की नब्ज चैक की और बोले, ‘‘इन्हें तो बहुत तेज बुखार है. जगन, इन्हें बैंच पर लिटा कर माथे पर ठंडे पानी की पट्टियां रखो,’’ समझा कर वे दूसरे मरीजों को देखने लगे.

वहां से गुजरते पंडित योगीनाथ और वैद्य शंकर दयाल ने यह सब देखा, तो वे जलभुन गए.

‘‘योगी, यह छोकरा गांव में रहा, तो हमारा धंधा चौपट हो जाएगा. हमारे पास दवा के लिए इक्कादुक्का लोग ही आते हैं. इस के यहां भीड़ लगी रहती है,’’ भड़ास निकालते हुए वैद्य शंकर दयाल बोला.

‘‘वैद्यजी, आप सही बोल रहे हैं. अब तो झाड़फूंक के लिए मेरे पास एकाध ही आता है,’’ पंडित योगीनाथ ने भी जहर उगला. उन के पीछेपीछे चल रहे पंडित योगीनाथ के बेटे शंभूनाथ ने उन की बातें सुनीं और बोला, ‘‘पिताजी, आप चिंता मत करो. यह जल्दी ही यहां से बोरियाबिस्तर समेट कर भागेगा. बस, देखते जाओ.’’

शंभूनाथ के मुंह से जलीकटी बातें सुन कर उन दोनों का चेहरा खिल गया.

हरिया अपने बापू किशना को साइकिल पर बिठाए पैदल ही भागा जा रहा था. किशना का चेहरा लहूलुहान था. वैद्य शंकर दयाल ने पुकारा, ‘‘हरिया, ओ हरिया. तू ने खांसी के काढ़े के उधार लिए 50 रुपए अब तक नहीं दिए. भूल गया क्या?’’

‘‘वैद्यजी, मैं भूला नहीं हूं. कई दिनों से मुझे दिहाड़ी नहीं मिली. काम मिलते ही पैसे लौटा दूंगा. अभी मुझे जाने दो,’’ गिड़गिड़ाते हुए हरिया ने रास्ता रोके वैद्य शंकर दयाल से कहा. किशना दर्द से तड़प रहा था.

‘‘शंभू, तू इस की जेब से रुपए निकाल ले.’’

‘‘वैद्यजी, रहम करो. बापू को दिखाने के लिए सौ रुपए किसी से उधार लाया हूं,’’ हरिया के लाख गिड़गिड़ाने के बाद भी पिता के कहते ही शंभूनाथ ने रुपए निकाल लिए.

डाक्टर रंजन आखिरी मरीज के बारे में दोनों सहायकों को समझा रहे थे. ‘‘डाक्टर साहब, मेरे बापू को देखिए. इन की आंख फूट गई है.’’

‘‘हरिया, घबरा मत. तेरे बापू ठीक हो जाएंगे,’’ हरिया की हिम्मत बढ़ा कर डाक्टर रंजन इलाज करने लगे. बेचैन हरिया इधरउधर टहल रहा था कि तभी वहां जगन आया, ‘‘हरिया, तेरे बापू की आंख ठीक है. चल कर देख ले.’’

इतना सुनते ही हरिया अंदर भागा गया.

‘‘आओ हरिया, दवाएं ले आओ. शुक्र है आंख बच गई,’’ डाक्टर रंजन बोले.

सबकुछ समझने के बाद हरिया ने डाक्टर रंजन को कम फीस दी, फिर हाथ जोड़ कर वैद्यजी वाली घटना सुनाई. डाक्टर रंजन भौचक्के रह गए.

‘‘डाक्टर साहब, काम मिलते ही मैं आप की पाईपाई चुका दूंगा,’’ हरिया ने कहा.

जगन और लीला लंच करने के लिए अपनेअपने घर चले गए. डाक्टर रंजन अकेले बैठे क्लिनिक में कुछ पढ़ रहे थे, तभी वहां दवाएं लिए हुए सैल्समैन डाक्टर रघुवीर आया, ‘‘डाक्टर साहब, मैं आप की सभी दवाएं ले आया हूं. कुछ दिनों के लिए मैं बाहर जा रहा हूं. जरूरत पड़ने पर आप किसी और से दवा मंगवा लेना,’’ बिल सौंप कर वह चला गया.

‘‘मैं जरा डाक्टर साहब के यहां जा रही हूं,’’ नेहा की बात सुन कर मां चौंक गईं.

‘‘क्या हुआ बेटी, तुम ठीक तो हो?’’

‘‘मां, मैं बिलकुल ठीक हूं. मेरा नर्सिंग का कोर्स पूरा हो गया है. घर में बोर होने से अच्छा है कि डाक्टर साहब के क्लिनिक पर चली जाया करूं. वहां सीखने के साथसाथ कुछ सेवा का मौका भी मिलेगा. पिताजी ने इजाजत दे दी है. तुम भी आशीर्वाद दे दो.’’ मां ने भी हामी भर दी. नेहा चली गई.

डाक्टर रंजन के साथ अजय और शंभू गपशप मार रहे थे.

‘‘आज हम दोनों बिना पार्टी लिए नहीं जाएंगे,’’ अजय बोला.

‘‘नोट छाप रहे हो. दोस्तों का हक तो बनता है,’’ शंभू की बात सुन कर डाक्टर रंजन गंभीर हो गए. चश्मा मेज पर रखा, फिर बोले, ‘‘मेरी हालत से तुम वाकिफ हो. मैं जिन गरीब, लाचारों का इलाज करता हूं, उन से दवा की भी भरपाई नहीं होती. मैं ने बचपन में अपने मांबाप को गरीबी और बीमारियों के चलते तिलतिल मरते देखा है, इसलिए मैं इन के दुखदर्द से वाकिफ हूं.’’

‘‘क्या रोनाधोना शुरू कर दिया? मैं पार्टी दूंगा. चलो शहर. मैं डाक्टर रंजन की तरह छोटे दिल वाला नहीं,’’ शंभू बोला.

डाक्टर रंजन चुप रहे. तभी वहां नेहा दाखिल हुई.

‘‘आओ नेहा, सब ठीक तो है?’’ डाक्टर रंजन के पूछने पर नेहा ने आने की वजह बताई.

‘‘कल से आ जाना,’’ डाक्टर रंजन बोले.

‘‘ठीक है सर,’’ कह कर नेहा वहां से चल दी.

‘‘नेहा, ठहरो. डाक्टर साहब पार्टी दे रहे हैं,’’ शंभू ने टोका.

‘‘आप एंजौय करो. मैं चलती हूं,’’ कह कर नेहा चल दी.

‘‘शंभू, जलीकटी बातें मत करो,’’ अजय ने समझाया. ‘‘डाक्टर क्या पार्टी देगा? चलो, मैं देता हूं,’’ शंभू की बात रंजन को बुरी लगी. वे बोले, ‘‘तेरी अमीरी का जिक्र हरिया भी कर रहा था.’’

इतना सुनते ही शंभू के तनबदन में आग लग गई, ‘‘डाक्टर हद में रह, नहीं तो…’’ कह कर शंभू वहां से चला गया. अजय हैरान होते हुए बोला, ‘‘तुम दोनों क्या बक रहे हो? मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है.’’

वैद्य शंकर दयाल भागाभागा पंडित योगीनाथ के पास गया. पुराने मंदिर का पुजारी त्रिलोकीनाथ भी वहीं था.

‘‘मुझे अभीअभी पता चला है कि डाक्टर की दुकान ग्राम सभा की जमीन पर बनी है और खुद सरपंच ने जमीन दी है.’’

वैद्य शंकर दयाल की बात सुन कर वे दोनों उछल पड़े.  पंडित योगीनाथ बोला, ‘‘इस में हमारा क्या फायदा है?’’

‘‘डाक्टर को भगाने की तरकीब मैं बताता हूं… वहां देवी का मंदिर बनवा दो.’’

‘‘सुनहरा मौका है. नवरात्र आने वाले हैं,’’ वैद्य शंकर दयाल की हां में हां मिलाते हुए त्रिलोकीनाथ बोला.

‘‘वैद्यजी, तुम्हारा भी जवाब नहीं.’’

‘‘सब सोहबत का असर है,’’ पंडित योगीनाथ से तारीफ सुन कर वैद्य शंकर दयाल ने कहा.

‘‘नेहा डाक्टर के साथ कहां जा रही है. अच्छा, यह तो सरपंच की बेटी के साथ गुलछर्रे उड़ाने लगा है,’’ बड़बड़ाते हुए शंभू दयाल ने शौर्टकट लिया.

‘‘चाची, नेहा कहां है?’’ घर में घुसते ही शंभू ने पूछा.

‘‘क्या हुआ शंभू?’’ सुनते ही नेहा की मां ने पूछा.

शंभू ने आंखों देखी मिर्चमसाला लगा कर बात बता दी. मां को बहुत बुरा लगा. उन्होंने नेहा को पुकारा, ‘‘नेहा बेटी, यहां आओ.’’

नेहा को देख कर शंभू के चेहरे का रंग उड़ गया.

‘‘मेरी बेटी पर लांछने लगाते हुए तुझे शर्म नहीं आई,’’ मां ने शंभू को फटकार कर भगा दिया.

‘तो वह कौन थी?’ सोचता हुआ शंभू वहां से चल दिया.

पंडित योगीनाथ, त्रिलोकीनाथ और वैद्य शंकर दयाल सरपंच उदय प्रताप से मिलने गए.

‘‘श्रीमानजी, आप इजाजत दें, तो हम वहां देवी का मंदिर बनवाना चाहते हैं. बस, आप जमीन का इंतजाम कर दें,’’ त्रिलोकीनाथ बोले.

सरपंच बोले, ‘‘हमारी सारी जमीन गांव से दूर है और ग्राम सभा की जमीन का टुकड़ा गांव के आसपास है नहीं,’’ झट से पंडित योगीनाथ ने डाक्टर वाली जमीन की याद दिलाई. त्रिलोकीनाथ ने भी समर्थन किया.

‘‘उस जमीन के बारे में पटवारी से मिलने के बाद बताऊंगा,’’ सरपंच उदय प्रताप की बात सुन कर वे सभी मुसकराने लगे. डाक्टर रंजन, नेहा, जगन और लीला एक सीरियस केस में बिजी थे, तभी वहां अजय आया, ‘‘रंजन, गांव में बातें हो रही हैं कि इस जगह पर देवी का मंदिर बनेगा और तुम्हारा क्लिनिक यहां से हटेगा.’’

‘‘तुम जरा बैठो. मैं अभी आता हूं,’’ कह कर डाक्टर रंजन मरीजों को देखने में बिजी हो गए.

फारिग हो कर वे अजय के पास आए. नेहा, जगन और लीला भी वहीं आ गए. ‘‘रंजन, मुझे थोड़ी सी जानकारी है कि इस जगह पर देवी का मंदिर बनेगा. कुछ दान देने वालों ने सीमेंटईंट वगैरह का इंतजाम भी कर दिया है. 1-2 दिन बाद ही काम शुरू हो जाएगा.’’

अजय की बात सुन कर नेहा बोली, ‘‘मैं ने तो ऐसी कोई बात घर पर नहीं सुनी.’’ ‘‘तुम जानते हो, मैं दूसरे गांव से यहां आ कर अपनी दुकान में बिजी हो जाता हूं. तुम अपने मरीजों में बिजी रहते हो. न तुम्हारे पास समय है, न मेरे पास,’’ कह कर अजय डाक्टर रंजन को देखने लगे.

तभी वहां दनदनाता हुआ शंभूनाथ आया, ‘‘डाक्टर, तुम गांव के भोलेभाले लोगों को बहुत लूट चुके हो. अब अपना तामझाम समेट कर यह जगह खाली करो. यहां मंदिर बनेगा,’’ जिस रफ्तार से वह आया था, उसी रफ्तार से जहर उगल कर चला गया. सभी हक्केबक्के रह गए.

कुछ देर बाद डाक्टर रंजन बोले, ‘‘नेहा, तुम मरीजों को देखो. मैं सरपंचजी से मिलने जाता हूं. आओ अजय,’’ वे दोनों वहां से चले गए.

‘‘पिताजी, समय खराब मत करो. मंदिर बनवाना जल्दी शुरू करवा दो. मैं डाक्टर को हड़का कर आया हूं. सरपंच के भी सारे रास्ते बंद कर देता हूं,’’ शंभूनाथ ने पंडित योगीनाथ, वैद्य शंकर दयाल और पुजारी त्रिलोकीनाथ को समझाया.

‘‘सरपंच को तुम कैसे रोकोगे,’’ वैद्य शंकर दयाल ने पूछा.

‘‘वह सब आप मुझ पर छोड़ दो. जल्दी से मंदिर बनवाना शुरू करवा दो,’’ तीनों को समझाने के बाद शंभूनाथ वहां से चला गया.

‘‘सरपंचजी, आप किसी तरह हमारे क्लिनिक को बचा लो.’’

‘‘रंजन, मैं पूरी कोशिश करूंगा, क्योंकि उस जमीन के कागजात अभी तैयार नहीं हुए हैं. मैं कल कागजात पूरे करवा देता हूं,’’ डाक्टर रंजन को सरपंच उदय प्रताप ने भरोसा दिलाते हुए कहा.

रात में मंदिर बनाने का सामान आया. ट्रक और ट्रैक्टरों ने उलटासीधा लोहा, ईंट वगैरह सामान उतारा. जगह कम थी. टक्कर लगने से क्लिनिक की बाहरी दीवार ढह गई. सुबह डाक्टर रंजन ने यह सब देखा, तो वे दंग रह गए. नेहा, जगन, लीला शांत थे. तभी पीछे से अजय ने डाक्टर रंजन के कंधे पर हाथ रखा, ‘‘इस समय हम सिर्फ चुपचाप देखने के सिवा कुछ नहीं कर सकते हैं.

‘‘मैं ने इस सिलसिले में शंभूनाथ से बात की, तो वह बोला कि मैं कुछ नहीं कर सकता,’’ कह कर अजय चुप हो गया. जेसीबी, ट्रैक्टर वगैरह मैदान को समतल कर रहे थे. जेसीबी वाले ने जानबूझ कर क्लिनिक की थोड़ी सी दीवार और ढहा दी. ‘धड़ाम’ की आवाज सुन कर सभी बाहर आए.

‘‘डाक्टर साहब, गलती से टक्कर लग गई. आज नहीं तो कल यह टूटनी है,’’ बड़ी बेशर्मी से जेसीबी ड्राइवर ने कहा. सभी जहर का घूंट पी कर रह गए.

शंभूनाथ ने पुजारी त्रिलोकीनाथ से कहा, ‘‘पुजारीजी, सब तैयारी हो चुकी है. आप बेफिक्र हो कर मंदिर बनवाना शुरू कर दो. मेरे एक दोस्त ने, जो विधायक का सब से करीबी है, विधायक से थाने, तहसील, कानूनगो को फोन कर के निर्देश दिया है. उस जमीन पर सिर्फ मंदिर ही बने. अब हमारा कोई कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है.’’

सारी बातें सुनने के बाद पुजारी त्रिलोकीनाथ खुश हो गए.

डाक्टर रंजन और अजय बहुत सोचविचार के बाद थाने गए. थानेदार ने जमीन के कागजात मांगे. कागजात न होने के चलते रिपोर्ट दर्ज न हो सकी. दोनों बुझे मन से थाने से निकल आए.

सरपंच उदय प्रताप पटवारी और कानूनगो से मिले, ‘‘आप किसी तरह से डाक्टर के क्लिनिक के कागजात आज ही तैयार कर दो. बड़ी लगन और मेहनत से डाक्टर रंजन गांव वालों की सेवा कर रहे हैं. कृपया, आप मेरा यह काम कर दो,’’ सरपंच की सुनने के बाद उन दोनों ने असहमति जताई. सरपंच उदय प्रताप को बड़ा दुख हुआ.

दोनों की नजर तहसील से बाहर आते उदय प्रताप पर पड़ी. उन की चाल देख डाक्टर रंजन और अजय समझ गए कि काम नहीं हुआ. ‘‘काम नहीं हुआ क्या सरपंचजी,’’ डाक्टर रंजन ने पूछा.

‘‘नहीं. बस एक उम्मीद बची है. विधायक साहब से मिले लें,’’ सरपंच उदय प्रताप का सुझाव दोनों को सही लगा. तीनों उन से मिलने चल दिए. नेहा, जगन, लीला वगैरह बड़ी बेचैनी से तीनों के आने का इंतजार कर रहे थे.

‘‘डाक्टर साहब, हम आखिरी बार कह रहे हैं कि क्लिनिक खाली कर दो, नहीं तो सब इसी में दब जाएगा,’’ शंभूनाथ की चेतावनी सुन कर वे तीनों बाहर आए. शंभूनाथ वहां से जा चुका था. विधायक का दफ्तर बंद था. घर पहुंचे, तो गेट पर तैनात पुलिस ने उन्हें अंदर नहीं जाने दिया. थकहार कर उदय प्रताप, अजय और डाक्टर रंजन गांव आ गए.

मंदिर की नींव रख दी गई थी. प्रसाद बांटा जा रहा था. जयकारे गूंज रहे थे.

‘‘पंडितजी ने मंदिर के लिए सही जगह चुनी है. उन्होंने गांव के लिए सही सोचा,’’ एक बुजुर्ग ने योगीनाथ की तारीफ करते हुए कहा. तीनों के जानपहचान वाले डाक्टर रंजन को कोस रहे थे. कुछ गालियां दे रहे थे.

‘‘चोर है, गरीबों को लूट रहा है, नकली दवाएं देता है, पानी का इंजैक्शन लगा कर पैसे बना रहा है, पंडितजी इस को सही भगा रहे हैं,’’ एक आदमी बोला. एक आदमी सरपंच को भी बुराभला कह रहा था, ‘‘अब की इसे वोट नहीं देंगे, यह डाक्टर के साथ मिल कर गांव को लूट रहा है.’’

कुछ ही लोग सरपंच और डाक्टर रंजन के काम को अच्छा कह रहे थे. सरपंच उदय प्रताप डाक्टर रंजन के क्लिनिक के बाहर खड़े थे. नेहा, जगन, लीला और अजय भी वहीं मौजूद थे.

‘‘बेटे, जगह खाली करने के सिवा अब और कोई चारा नहीं है. गांव के भोलेभाले लोग पंडित योगीनाथ, वैद्य शंकर दयाल और पुजारी त्रिलोकीनाथ के मकड़जाल में फंस चुके हैं. हमारी सुनने वाला कोई नहीं. कोर्ट के चक्कर में फंसने से भी कोई हल नहीं निकलेगा,’’ सरपंच की बात सुन कर डाक्टर रंजन मायूस हो गए.

बहुत देर बाद डाक्टर रंजन ने पूछा, ‘‘फिर, मैंक्या करूं?’’

सरपंच उदय प्रताप बोले, ‘‘बेटे, गांव के नासमझ लोगों पर मंदिर बनवाने का भूत सवार है. इन्हें डाक्टररूपी दूसरे भगवान से ज्यादा जरूरत पत्थररूपी भगवान की चाह है. इन लोगों को हम जागरूक नहीं कर सकते. इन्हें सिर्फ इन का जमीर, इन की अक्ल ही जागरूक कर सकती है. हम हार चुके हैं रंजन, हम हार चुके हैं.’’ मायूस हो कर सरपंच उदय प्रताप वहां से चले गए. सभी मिल कर क्लिनिक खाली करने लगे. डाक्टर रंजन शांत खड़े थे.

लेखक- राजेंद्र कुमार ‘राज’

Latest Hindi Stories : डायन – क्या दूर हुआ गेंदा की ज़िन्दगी का अंधेरा

Latest Hindi Stories :  केशव हाल ही में तबादला हो कर बस्तर से जगदलपुर के पास सुकुमा गांव में रेंजर पद पर आए थे. जगदलपुर के भीतरी इलाके नक्सलवादियों के गढ़ हैं, इसलिए केशव अपनी पत्नी करुणा और दोनों बच्चों को यहां नहीं लाना चाह रहे थे.

एक दिन केशव की नजर एक मजदूरिन पर पड़ी, जो जंगल में सूखी लकडि़यां बीन कर एक जगह रखती जा रही थी.

वह मजदूरिन लंबा सा घूंघट निकाले खामोशी से अपना काम कर रही थी. उस ने बड़ेबड़े फूलों वाली गुलाबी रंग की ऊंची सी साड़ी पहन रखी थी. वह गोरे रंग की थी. उस ने हाथों में मोटा सा कड़ा पहन रखा था व पैरों में बहुत ही पुरानी हो चुकी चप्पल पहन रखी थी.

उस मजदूरिन को देख कर केशव उस की उम्र का अंदाजा नहीं लगा पा रहे थे, फिर भी अपनी आवाज को नम्र बनाते हुए बोले, ‘‘सुनो बाई, क्या तुम मेरे घर का काम करोगी? मैं अभी यहां नयानया ही हूं.’’

केशव के मुंह से अचानक घर के काम की बात सुन कर पहले तो मजदूरिन घबराई, लेकिन फिर उस ने हामी भर दी.

इस बीच केशव ने देखा, उस मजदूरिन ने अपना घूंघट और नीचे खींच लिया. केशव ने वहां पास ही खड़े जंगल महकमे के एक मुलाजिम को आदेश दिया, ‘‘तोताराम, तुम इस बाई को मेरे घर ले जाओ.’’ तोताराम केशव की बात सुन कर एक अजीब सी हंसी हंसा और सिर झुका कर बोला, ‘‘जी साहब.’’

केशव उस की इस हंसी का मतलब समझ नहीं सके. तोताराम ने तुरंत मजदूरिन की तरफ मुड़ कर कहा, ‘‘चल गेंदा, तुझे साहब का घर दिखा दूं.’’

केशव ने उस मजदूरिन के लंबे घूंघट पर ध्यान दिए बिना ही उस से पूछा, ‘‘तुम हमारे घर के सभी काम कर लोगी न, जैसे कपड़े धोना, बरतन मांजना, घर की साफसफाई वगैरह? मैं यहां अकेला ही रहता हूं.’’

इस पर गेंदा ने धीरे से जवाब दिया, ‘‘जी साहब, आप जो भी काम कहेंगे, मैं कर दूंगी.’’

जब से गेंदा आई थी, केशव को बड़ा आराम हो गया था. लेकिन 8-10 दिन बाद ही केशव ने महसूस किया कि गेंदा के आने के बाद से जंगल महकमे के मुलाजिम और पास के क्वार्टर में रहने वाले लोग उन्हें देख कर हंसी उड़ाने वाले अंदाज में मुसकराते थे.

एक दिन दफ्तर से आ कर चाय पीते हुए केशव गेंदा से बोले, ‘‘तुम मेरे सामने क्यों घूंघट निकाले रहती हो? मेरे सामने तो मुंह खोल कर रहो.’’

यह सुन कर गेंदा कुछ समय तक तो हैरान सी खड़ी रही और अपने पैर के अंगूठे से जमीन खुरचती रही, फिर गेंदा ने घूंघट उलट दिया.

गेंदा का चेहरा देखते ही केशव की चीख निकल गई, क्योंकि गेंदा का चेहरा एक तरफ से बुरी तरह जला हुआ था, जिस के चलते वह बड़ी डरावनी लग रही थी.

गेंदा फफक कर रो पड़ी और रोतेरोते बोली, ‘‘साहब, मैं इसलिए अपना चेहरा छिपा कर रखती हूं, ताकि मुझे देख कर कोई डरे नहीं.’’

केशव ने गेंदा के चेहरे की तरफ देखते हुए पूछा, ‘‘यह तुझे क्या हो गया है? तू कैसे इतनी बुरी तरह जल गई? तेरा रूपरंग देख कर तो लगता है, तू कभी बड़ी खूबसूरत रही होगी?’’

प्रेम के दो शब्द सुन कर गेंदा फिर से रो पड़ी और वापस घूंघट खींच कर उस ने अपना चेहरा छिपा लिया और भरे गले से बोली, ‘‘साहब, मैं ने सोचा था कि घूंघट निकाल कर आप का काम कर दिया करूंगी. मुझ गरीब को भी भरपेट भोजन मिल जाएगा, पर कल से नहीं आऊंगी. आप दूसरी महरी रख लेना.’’

इतना कह कर वह जाने लगी, तो केशव ने उसे रोक कर कहा, ‘‘गेंदा, मैं जानना चाहता हूं कि तुम्हारे साथ क्या हुआ और तुम्हारे परिवार में कौनकौन हैं? मुझे पूरी बात सचसच बताओ.’’

‘‘साहब, मैं आप से कुछ नहीं छिपाऊंगी. मैं ने बचपन से ही बहुत दुख सहे हैं. जब मैं 8 साल की थी, तभी मेरे पिता की मौत हो गई थी. थोड़े दिन बाद मेरी मां ने दूसरी शादी कर ली.

‘‘मेरे सौतेले पिता बहुत ही गंदे थे. वे छोटीछोटी बात पर मुझे मारते थे. मेरी मां मुझे बचाने आती, तो पिता उसे भी पीट देते.

‘‘सौतेले पिता मेरी मां को तो रखना चाहते थे, पर मुझे नहीं. इसलिए मेरी मां ने मेरी शादी करने की सोची.

‘‘मैं बहुत ही खूबसूरत और गोरी थी, इसलिए जैसे ही मैं 10 साल की हुई, मां ने मेरी शादी कर दी और मुझे  ससुराल भेज दिया.

‘‘मेरा पति मुझ से उम्र में 10 साल बड़ा था, ऊपर से दुनिया के सारे ऐब उस में थे. मैं जब 13 साल की थी, तभी मुझे एक बेटी हुई.

‘‘बेटी होने से मेरा पति बहुत चिढ़ गया और मुझे दूसरे मर्दों के साथ सोने के लिए मजबूर करने लगा, ताकि उस की नशे की जरूरत को मैं पूरा कर सकूं. पर इस गलत काम के लिए मैं तैयार नहीं थी. इसलिए मारपीट कर के मुझे डराताधमकाता, लेकिन मैं इस के लिए तैयार नहीं हुई.

‘‘इस बीच 14 साल की उम्र में मुझे दूसरी बेटी हो गई. अब तो उस के जुल्म मुझ पर बहुत बढ़ गए, इस से घबरा कर मैं अपनी दोनों बेटियों के साथ मायके चली आई. वहां भी मुझे चैन नहीं मिला, क्योंकि सौतेले पिता मुझे देखते ही गुस्से में अपना आपा खो बैठे, जिस पर मां ने उन्हें समझाया.’’

गेंदा बात करतेकरते बीच में अपने आंसू भी पोंछती जाती थी. तभी केशव को उस की आपबीती सुनतेसुनते कुछ सुध आई, तो उस ने उठ कर गेंदा को एक गिलास पानी पीने को दिया और उस के सिर पर हाथ फेरा.

उस के बाद गेंदा ने आगे बताया, ‘‘मैं जब मायके पहुंची, तो 5-7 दिन में ही मेरा पति मुझे लेने आ गया और मां को भरोसा दिलाया कि अब मुझे अच्छे से रखेगा. मां भी क्या करतीं. मुझे मेरे पति के साथ वापस भेज दिया.

‘‘कुछ दिन तक तो वह ठीक रहा, फिर वही जिद करने लगा, पराए मर्दों के साथ सोने के लिए. मैं मार खाती रही, पर गलत काम नहीं किया.

‘‘मैं जब 16 साल की थी, तब तीसरी बार मां बनी. इस बार बेटा हुआ था. मेरे 3-3 छोटे बच्चे, ऊपर से मेरा कमजोर शरीर, लेकिन उसे मुझ पर जरा भी तरस नहीं आया, इसलिए मैं बहुत बीमार हो गई.

‘‘मेरी बीमारी से चिढ़ कर मेरा पति मुझे मेरे मायके छोड़ आया. जब मैं मायके आई, तो इस बार सौतेले पिता का बरताव बड़ा अच्छा था, पर मैं क्या जानती थी कि इस अच्छे बरताव के पीछे उन का कितना काला मन है.

‘‘मेरे सौतेले पिता ने 40 हजार रुपए में मुझे बेच दिया था और वह आदमी पैसे ले कर आने वाला था. यह बात मुझे गांव की एक चाची ने बताई. मेरे पास ज्यादा समय नहीं था.

‘‘फिर भी मैं गांव की पुलिस चौकी पर गई और वहां जा कर थानेदार साहब को अपनी बीमारी के बारे में बताया और उन से विनती की कि मेरी बेटियों को कहीं अनाथ आश्रम में रखवा दें.

‘‘वहां के थानेदार भले आदमी थे. उन्हें मेरी हालत दिख रही थी, इसलिए उन्होंने मुझे भरोसा दिया कि तुम इस फार्म पर दस्तखत कर दो, मैं तुम्हारी दोनों बेटियां वहां रखवा दूंगा. जब तुम्हें उन से मिलना हो, वहां जा सकती हो.

‘‘अपनी दोनों बेटियां उन्हें सौंप कर मैं भाग कर अपने पति के पास आ गई. मुझे देख कर मेरा पति बोला, ‘‘आ गई मायके से. वहां तेरे आगे किसी ने दो रोटी नहीं डाली.

‘‘बेटियों के बारे में न उस ने पूछा और न मैं ने बताया. मैं बहुत बीमार थी, इसलिए बेटे को संभाल नहीं पा रही थी. वह बेचारा भी ढंग से देखभाल नहीं होने के चलते इस दुनिया से चला गया.

‘‘मैं अकेली रह गई थी. मैं ने मन में सोचा कि ऐसे पति के साथ रहने से अच्छा है कि कहीं दूसरे गांव में चली जाऊं और मजदूरी कर के अपना पेट पालूं. मेरे पति को पता नहीं कैसे मेरे घर छोड़ने की बात पता चल गई और उस ने चूल्हे पर रखी गरम चाय गुस्से में मेरे चेहरे पर फेंक दी और मुझे एक ठोकर मारता हुआ बोला, ‘अब निकल जा मेरे घर से. तेरा चेहरा ऐसा बिगाड़ दिया है मैं ने कि कोई तेरी तरफ देखेगा भी नहीं.’

‘‘गरम चाय से मैं बुरी तरह जल गई थी. उस ने मुझे घसीटते हुए धक्का मार कर बाहर कर दिया. मैं दर्द से बेहाल  सरकारी अस्पताल में गई. वहां मेरी बुरी हालत देख डाक्टर ने भरती कर लिया.

‘‘जब मैं ठीक हुई, तो पति का गांव छोड़ कर इस गांव में रहने लगी, पर यहां भी मुझे चैन नहीं है. गांव के लफंगे  कहते हैं कि हमें तेरे चेहरे से क्या मतलब, तू अपना घूंघट तो निकाल कर रखती है.

‘‘जब मैं ने सख्ती से दुत्कार दिया, तो वे मुझे डायन कह कर बदनाम कर रहे हैं. गांव में किसी के भी यहां मौत होने पर मुझे ही इस का जिम्मेदार माना जाता है.’’

केशव ने बड़े ही अपनेपन से कहा, ‘‘गेंदा, तुम कहीं नहीं जाओगी. तुम यहीं मेरे पास रहोगी.’’

केशव के ये शब्द सुन कर गेंदा रोती हुई केशव के पैरों से लिपट कर बोली, ‘‘साहब, आप बहुत अच्छे हैं. मुझे बचा लो. इस गांव के लोग मुझे डायन कहते हैं. हो सकता है कि गांव के किसी ऊंची पहुंच वाले के यहां जवान मौत हो जाए, तो ये मुझे मार ही डालेंगे.’’

केशव ने कहा, ‘‘गेंदा, तुम डरो मत. तुम्हें कुछ नहीं होगा.’’

धीरेधीरे गेंदा को केशव के घर में काम करतेकरते एक साल बीत गया, और सबकुछ ठीकठाक सा चल रहा था. शायद तूफान से पहले की शांति जो केशव समझ नहीं पाए.

एक दिन गेंदा काम पर नहीं आई, तो केशव ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. सोचा, बीमार होगी या बेटियों से मिलने चली गई होगी.

शाम के तकरीबन 4 बजे के करीब तोताराम दौड़ता हुआ आया. वह बहुत डरा हुआ था. उस ने केशव से कहा, ‘‘साहब, जल्दी चलो. गांव के लोग गेंदा को डायन कह कर धमका रहे हैं और उसे जिंदा जलाने जा रहे हैं. क्योंकि गांव के सरपंच का जवान बेटा मर गया है.

‘‘मरा तो वह शराब पी कर है साहब, पर लांछन गेंदा पर लगा रहे हैं कि यह डायन सरपंच के जवान बेटे को खा गई.’’

यह सुन कर केशव हैरान रह गए. उन्होंने सब से पहले पुलिस को फोन किया और तुरंत घटना वाली जगह पर पहुंचने की गुजारिश की और खुद भी वहां चल दिए. वहां का दिल दहला देने वाला सीन देख कर केशव गुस्से से कांपने लगे. तब तक पुलिस भी वहां आ गई थी.

गांव के आदमीऔरत चीखचीख कर गेंदा को डायन कह रहे थे और उसे जिंदा जलाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन पुलिस को देख कर सभी ठिठक गए. तब तक केशव ने दौड़ कर गेंदा को अपनी तरफ खींचा, जो अपनी जान बचाने के लिए डरीसहमी इधरउधर दौड़ रही थी.

केशव ने चिल्ला कर औरतों से कहा, ‘‘तुम औरतों को शर्म आनी चाहिए कि इस बेकुसूर औरत को जिंदा जलाया जा रहा है. अगर तुम्हारी बेटी को कोई डायन कहे और उसे जिंदा जलाए, तो तुम्हें कैसा लगेगा? सरपंच का बेटा छोटी उम्र ले कर आया था, तो यह क्या करे?

‘‘गेंदा ने गांव के आदमियों की गलत बात नहीं मानी, तो उसे डायन कह कर बदनाम कर दिया. यह औरत हिम्मत के साथ इस समाज से अकेले लड़ रही है और अपनी इज्जत बचाए हुए है.

‘‘खबरदार, जो किसी ने इसे हाथ भी लगाया. आज से यह मेरी बहन है और मेरे साथ ही रहेगी. मैं जहां जाऊंगा, यह मेरे साथ ही रहेगी,’’ कह कर केशव उसे अपने साथ ले आए.

वैसे, उस दिन सुकुमा में शाम होने को थी, पर गेंदा की जिंदगी में छाया अंधेरा केशव की हिम्मत से दूर हो गया था.

Hindi Kahaniyan : आई हेट हर

Hindi Kahaniyan : सुबह के 7 बजे थे, गूंज औफिस जाने के लिए तैयार हो रही थी कि मां के फोन ने उस का मूड खराब कर दिया,”गूंज बिटिया, मुझे माफ कर दो…मेरी हड्डी टूट गई है…”

“बीना को दीजिए फोन…,” गूंज परेशान सा बोली. ‘’बीना क्या हुआ मां को?”

“दीदी, मांजी बाथरूम में गिर कर बेहोश हो गई थीं. मैं ने गार्ड को बुलाया और किशोर अंकल भी आ गए थे. किसी तरह बैड पर लिटा दिया लेकिन वे बहुत जोरजोर से रो रहीं हैं. सब लोग होस्पिटल ले जाने को बोल रहे हैं. शायद फ्रैक्चर हुआ है. किशोर अंकल आप को फोन करने के लिए बोल रहे थे.”

“बीना, मैं डाक्टर को फोन कर देती हूं. वह देख कर जो बताएंगे फिर देखती हूं…’’

गूंज ने अपने फैमिली डाक्टर को फोन किया और औफिस आ गई. उसे मालूम हो गया था कि मां को हिप बोन में फ्रैक्चर हुआ है, इसी वजह से वे परेशान थीं. उसे अब काफी चिंता होने लगी थी.

किशोर अंकल ने ऐंबुलैंस बुला कर उन्हें नर्सिंगहोम में ऐडमिट करवा दिया था. इतनी देर से लगातार फोन से सब से बात करने से काम तो हो गया, लेकिन बीना है कि बारबार फोन कर के कह रही है कि मां बहुत रो रही हैं और एक बार आने को बोल रही हैं.

“गूंज, किस का फोन है जो तुम बारबार फोन कट कर रही हो?’’ पार्थ ने पूछा. पार्थ उस के साथ उसी के औफिस में काम करता है और अच्छा दोस्त है.

एक ही कंपनी में काम करतेकरते दोनों के बीच घनिष्ठता बढ़ गई थी. फिर दोनों कब आपस में अपने सुखदुख साझा करने लगे थे, यह पता ही नहीं लगा था.

गूंज ने अपना लैपटौप बंद किया और सामान समेटती हुई बोली, ‘’मैं रूम पर जा रही हूं.‘’पार्थ ने भी अपना लैपटौप बंद कर बौस के कैबिन में जा कर बताया और दोनों औफिस से निकल पड़े.

“गूंज, चलो न रेस्तरां में 1-1 कप कौफी पीते हैं.”गूंज रोबोट की तरह उदास कदमों के साथ रेस्तरां की ओर चल दी. वह वहां बैठी अवश्य थी पर उस की आंखों से ऐसा स्पष्ट हो रहा था कि उस का शरीर यहां है पर मन कहीं और, मानों वह अपने अंतर्मन से संघर्ष कर रही हो .

पार्थ ने उस का मोबाइल उठा लिया और काल हिस्ट्री से जान लिया था कि उस की मां की कामवाली का फोन, फिर डाक्टर…“क्या हुआ तुम्हारी मम्मी को?’’“वे गिर गईं हैं, हिप बोन में फ्रैक्चर हुआ है. मुझे रोरो कर बुला रही हैं.‘’“तुम्हें जाना चाहिए.‘’

“मुझे तो सबकुछ करना चाहिए, इसलिए कि उन्होंने मुझे पैदा कर के मुझ पर बहुत बड़ा एहसान किया है…इसलिए…उन्होंने मेरे साथ क्या किया है? हमेशा मारनापीटना… प्यारदुलार के लिए मैं सदा तरसती रही…अब आएं उन के भगवान…करें उन की देखभाल….उन के गुरु  महराज… जिन के कारण वे मेरी पिटाई किया करती थीं. आई हेट हर.”

‘’देखो गूंज, तुम्हारा गुस्सा जायज है, होता है… कुछ बातें स्मृति से प्रयास करते रहने से भी नहीं मिट पातीं. लो पानी लो, अपनेआप को शांत करो.”

“पार्थ, मैं मां की सूरत तक नहीं देखना चाहती,‘’ कह कर वह सिसक उठी थी.पार्थ चाहता था कि उस के मन की कटुता आंसू के माध्यम से बाहर निकल जाएं ताकि वह सही निर्णय ले पाए.

वह छोटी सी थी. तब संयुक्त परिवार में रहती थी. घर पर ताईजी का शासन था क्योंकि वह रईस परिवार की बेटी थी. मां सीधीसादी सी समान्य परिवार से थीं.

गूंज दुबलीपतली, सांवली, पढ़ने में कमजोर, सब तरह से उपेक्षित… पापा का किसी के साथ चक्कर था… सब तरह से बेसहारा मां दिन भर घर के कामों में लगी रहतीं. उन का सपना था कि उन की बेटी पढ़लिख कर औफिसर बने पर उसे तो आइसपाइस, कैरमबोर्ड व दूसरे खेलों से ही फुरसत नहीं रहती. वह हर समय ताई के गोलू और चिंटू के पीछेपीछे उन की पूंछ की तरह घूमा करती.

घर में कभी बुआ के बच्चे, तो कभी मौसी के बच्चे तो कभी पड़ोस के साथियों की टोली का जमघट लगा रहता. बस, सब का साथ पा कर वह भी खेलने में लग जाती.

एक ओर पति की उपेक्षा, पैसे की तंगी साथ में घरेलू जिम्मेदारियां. कुछ भी तो मां के मनमाफिक नहीं था. गूंज जिद करती कि मुझे गोलू भैया जैसा ही बैग चाहिए, नाराज हो कर मां उस का कान पकड़ कर लाल कर देतीं. वह सिसक कर रह जाती. एक तरफ बैग न मिल पाने की तड़प, तो दूसरी तरफ कान खींचे जाने का दर्द भरा एहसास और सब से अधिक अपनी बेइज्जती को महसूस कर गूंज  कभी रो पड़ती तो कभी चीखनेचिल्लाने लगती. इस से फिर से उस की पिटाई होती थी. रोनाधोना और भूखे पेट सो जाना उस की नियति थी.

उस उम्र में वह नासमझ अवश्य थी पर पिटाई होने पर अपमान और बेइज्जती को बहुत ज्यादा ही महसूस करती थी.

गूंज दूसरी क्लास में थी. उस की फ्रैंड हिना का बर्थडे था. वह स्कूल में पिंक कलर की फ्रिल वाली फ्रौक पहन कर आई थी. उस ने सभी बच्चों को पैंसिल बौक्स के अंदर पैंसिल, रबर, कटर और टौफी रख कर दिया था. इतना सुंदर पैंसिल बौक्स देख कर वह खुशी से उछलतीकूदती घर आई और मां को दिखाया तो उन्होंने उस के हाथ से झपट कर ले लिया,’’कोई जरूरत नहीं है इतनी बढ़िया चीजें स्कूल ले जाने की, कोई चुरा लेगा.‘’

वह पैर पटकपटक कर रोने लगी, लेकिन मां पर कोई असर नहीं पड़ा था.

कुछ दिनों के बाद वह एक दिन स्कूल से लौट कर आई तो मां उस पैंसिल बौक्स को पंडित के लड़के को दे रही थीं. यह देखते ही वह चिल्ला कर  उन के हाथ से बौक्स छीनने लगी,”यह मुझे मिला था, यह मेरा है.”

इतनी सी बात पर मां ने उस की गरदन पीछे से इतनी जोर से दबाई कि उस की सांसें रुकने लगीं और मुंह से गोंगों… की आवाजें निकलने लगीं… वह बहुत देर तक रोती रही थी.

लेकिन समय सबकुछ भुला देता है.

वह कक्षा 4 में थी. अपनी बर्थडे के दिन नई फ्रौक दिलवाने की जिद करती रही लेकिन फ्रौक की जगह उस के गाल थप्पड़ से लाल हो गए थे. वह रोतेरोते सो गई थी लेकिन शायद पापा को उस का बर्थडे याद था इसलिए वह उस के लिए टौफी ले कर आए थे. वह स्कूल यूनीफौर्म में ही अपने बैग में टौफी रख कर बेहद खुश थी. लेकिन शायद टौफी सस्ती वाली थी, इसलिए ज्यादातर बच्चों ने उसे देखते ही लेने से इनकार कर दिया था. वह मायूस हो कर रो पड़ी थी. उस ने गुस्से में सारी टौफी कूङेदान में फेंक दी थी.

लेकिन बर्थडे तो हर साल ही आ धमकता था.

पड़ोस में गार्गी उस की सहेली थी. उस ने आंटी को गार्गी को अपने हाथों से खीर खिलाते देखा था. उसी दिन से वह कल्पनालोक में केक काटती और मां के हाथ से खीर खाने का सपना पाल बैठी थी. पर बचपन का सपना केक काटना और मां के हाथों  से खीर खाना उस के लिए सिर्सफ एक सपना ही रह गया .

वह कक्षा 6 में आई तो सुबह मां उसे चीख कर जगातीं, कभी सुबहसुबह थप्पड़ भी लगा देतीं और स्वयं पत्थर की मूर्ति के सामने बैठ कर घंटी बजाबजा कर जोरजोर से भजन गाने बैठ जातीं.

वह अपने नन्हें हाथों से फ्रिज से दूध निकाल कर कभी पीती तो कभी ऐसे ही चली जाती. टिफिन में 2 ब्रैड या बिस्कुट देख कर उस की भूख भाग जाती. अपनी सहेलियों के टिफिन में उन की मांओं के बनाए परांठे, सैंडविच देख कर उस के मुंह में पानी आ जाता साथ ही भूख से आंखें भीग उठतीं. यही वजह थी कि वह मन ही मन मां से चिढ़ने लगी थी.

उस ने कई बार मां के साथ नजदीकी बढ़ाने के लिए उन के बालों को गूंथने और  हेयरस्टाइल बनाने की कोशिश भी की थी मगर मां उस के हाथ झटक देतीं.

मदर्सडे पर उस ने भी अपनी सहेलियों के साथ बैठ कर उन के लिए प्यारा सा कार्ड बनाया था लेकिन वे उस दिन प्रवचन सुन कर बहुत देर से आई थीं. गूंज को मां का इतना अंधविश्वासी होना बहुत अखरता था. वे घंटों पूजापाठ करतीं तो गूंज को कोफ्त होता.

जब मदर्सडे पर उस ने उन्हें मुस्कराते हुए कार्ड दिया तो वे बोलीं,”यह सब चोंचले किसलिए? पढोलिखो, घर का काम सीखो, आखिर पराए घर जाना है… उन्होंने कार्ड खोल कर देखा भी नहीं था और अपने फोन पर किसी से बात करने में बिजी हो गई थीं.

वह मन ही मन निराश और मायूस थी साथ ही गुस्से से उबल रही थी.

पापा अपने दुकान में ज्यादा बिजी रहते. देर रात घर में घुसते तो शराब के नशे में… घर में ऊधम न मचे, इसलिए मां चुपचाप दरवाजा खोल कर उन्हें सहारा दे कर बिस्तर पर लिटा देतीं. वह गहरी नींद में होने का अभिनय करते हुए अपनी बंद आंखों से भी सब देख लिया करती थी.

रात के अंधेरे में मां के सिसकने की भी आवाजें आतीं. शायद पापा मां से उन की पत्नी होने का जजियाकर वसूलते थे. उस ने भी बहुत बार मां के चेहरे, गले और हाथों पर काले निशान देखे थे.

पापा को सुधारने के लिए मां ने बाबा लोगों की शरणों में जाना शुरू कर दिया था… घर में शांतिपाठ, हवन, पूजापाठ, व्रतउपवास, सत्संग, कथा आदि के आयोजन आएदिन होने लगे था. मां को यह विश्वास था कि बाबा ही पापा को नशे से दूर कर सकते हैं, इसलिए वे दिनभर पूजापाठ, हवनपूजन और उन लोगों का स्वागतसत्कार करना आवश्यक समझ कर उसी में अपनेआप को समर्पित कर चुकी थीं. वैसे भी हमेशा से ही घंटों पूजापाठ, छूतछात, कथाभागवत में जाना, बाबा लोगों के पीछे भागना उन की दिनचर्या में शामिल था.

अब तो घर के अंदर बाबा सत्यानंद का उन की चौकड़ी के साथ जमघट लगा रहता… कभी कीर्तन, सत्संग और कभी बेकार के उपदेश… फिर स्वाभाविक था कि उन का भोजन भी होगा…

पापा का बिजनैस बढ़ गया और उस महिला का तबादला हो गया था, जिस के साथ पापा का चक्कर चल रहा था. वह मेरठ चली गई थी… मां का सोचना था कि यह सब कृपा गुरूजी की वजह से ही हुई है, इसलिए अब पापा भी कंठी माला पहन कर सुबहशाम पूजा पर बैठ जाते. बाबा लोगों के ऊपर खर्च करने के लिए पापा के पास खूब पैसा रहता…

इन सब ढोंगढकोसलों के कारण उसे पढ़ने और अपना होमवर्क करने का समय ही नहीं मिलता. अकसर उस का होमवर्क अधूरा रहता तो वह स्कूल जाने के लिए आनाकानी करती. इस पर मां का थप्पड़ मिलता और स्कूल में भी सजा मिलती.

वह क्लास टेस्ट में फेल हो गई तो पेरैंट्स मीटिंग में टीचर ने उस की शिकायत की कि इस का होमवर्क पूरा नहीं रहता और क्लास में ध्यान नहीं देती, तो इस बात पर भी मां ने उस की खूब पिटाई की थी.

धीरेधीरे वह अपनेआप में सिमटने लगी थी. उस का आत्मविश्वास हिल चुका था. वह हर समय अपनेआप में ही उलझी रहने लगी थी. क्लास में टीचर जब समझातीं तो सबकुछ उस के सिर के ऊपर से निकल जाता.

वह हकलाने लगी थी. मां के सामने जाते ही वह कंपकंपाने लगती. पिता की अपनी दुनिया थी. वे उसे प्यार तो करते थे, पिता को देख कर गूंज खुश तो होती थी लेकिन बात नहीं कर पाती थी. वह कभीकभी प्यार से उस के सिर पर अपना हाथ फेर देते तो  वह खुशी से निहाल हो उठती थी.

उधर मां की कुंठा बढती जा रही थी. वे नौकरों पर चिल्लातीं, उन्हें गालियां  देतीं और फिर गूंज की पिटाई कर के स्वयं रोने लगतीं,”गूंज, आखिर मुझे क्यों तंग करती रहती हो?‘’

तब वह ढिठाई से हंस देती थी. उसे मालूम था कि ज्यादा से ज्यादा मां फिर से उस की पिटाई कर देंगी और क्या? पिटपिट कर वह मजबूत हो  चुकी थी. अब पिटने को ले कर उस के मन में कोई खौफ नहीं था.

वह कक्षा 7वीं में थी. गणित के पेपर में फेल हो गई थी. जुलाई में उस की फिर से परीक्षा होनी थी. वह स्कूल से अपमानित हो कर आई थी, क्योंकि गणित के कठिन सवाल उस के दिमाग में घुसता ही नहीं था.

घर के अंदर घुसते ही सभी के व्यंग्यबाणों से उस का स्वागत हुआ था,”अब तो घर में नएनए काम होने लगे हैं… गूंज से इस घर में झाड़ूपोंछा लगवाओ. वह इसी के लायक है…”

एक दिन ताईजी ने भी गूंज को व्यंग्य से कुछ बोलीं तो वह उन से चिढ़ कर कुछ बोल पङी. फिर क्या था, उसे जोरदार थप्पड़ पङे थे.

इस घटना के बाद उस की आंखों के आंसू सूख चुके थे… अब वह मां को परेशान करने के नएनए तरीके सोच रही थी. कुछ देर में मां आईं और फूटफूट कर रोने लगीं थीं. कुछ देर तक उस के मन में यह प्रश्न घुमड़ता रहा कि जब पीट कर रोना ही है तो पीटती क्यों हैं?

मां के लिए उस के दिल में क्रोध और घृणा बढ़ती गई थी.

लेकिन उस दिन पहली बार मां के चेहरे पर बेचारगी का भाव देख कर वह व्याकुल हो उठी थी.

व्यथित स्वर में वे बोली थीं, “गूंज, पढ़लिख कर इस नरक से निकल जाओ, मेरी बेटी.‘’

उस दिन मजबूरी से कहे इन प्यारभरे शब्दों ने उस के जीवन में पढ़ाई के प्रति रुचि जाग्रत कर दी थी.

अब पढ़ाई में रुझान के कारण उस का रिजल्ट अच्छा आने लगा तो मां की शिकायत दूर हो गई थी.

वह 10वीं में थी. बोर्ड की परीक्षा का तनाव लगा रहता था… साथ ही अब उस की उम्र की ऐसी दहलीज थी, जब किशोर मन उड़ान भरने लगता है. फिल्म, टीवी के साथसाथ हीरोहीरोइन से जुड़ी खबरें मन को आकर्षित करने लगती हैं.

पड़ोस की सुनिता आंटी का बेटा कमल भैया का दोस्त था. अकसर वह घर आया करता था. वह बीएससी में था, इसलिए वह कई बार उस से कभी इंग्लिश तो कभी गणित के सवाल पूछ लिया करती थी.

वह उस के लिए कोई गाइड ले कर आया था. उस ने अकसर उसे अपनी ओर देख कर मुसकराते हुए देखा था. वह भी शरमा कर मुसकरा दिया करती थी.

एक दिन वह उस के कमरे में बैठ कर उसे गणित के सवाल समझा रहा था. वह उठ कर अलमारी से किताब निकाल रही थी कि तभी उस ने उसे अपनी बांहों में भर लिया था. वह सिटपिटा कर उस की पकड़ से छूटने का प्रयास कर रही थी कि तभी कमरे में कमल भैया आ गए और बस फिर तो घर में जो हंगामा हुआ कि पूछो मत…

वह बिलकुल भी दोषी नहीं थी लेकिन घर वालों की नजरों मे सारा दोष उसी का था…

“कब से चल रहा है यह ड्रामा? वही मैं कहूं कि यह सलिल आजकल क्यों बारबार यहां का चक्कर काट रहा है… सही कहा है… कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना…

मां ने भी उस की एक नहीं सुनी, न ही कुछ पूछा और लगीं पीटने,”कलमुंही, पढ़ाई के नाम पर तुम्हारा यह नाटक चल रहा है…”

वह पिटती रही और ढिठाई से कहती रही,”पीट ही तो लोगी… एक दिन इतना मारो कि मेरी जान ही चली जाए…”

मां का हाथ पकड़ कर अपने गले पर ले जा कर बोलती,”लो मेरा गला दबा दो… तुम्हें हमेशाहमेशा के लिए मुझ मुक्ति मिल जाएगी.”

उस दिन जाने कैसे पापा घर आ गए थे… उस को रोता देख मां से डांट कर बोले,”तुम इस को इतना क्यों मारती हो?”

तो वे छूटते ही बोलीं,”मेरी मां मुझे पीटती थीं इसलिए मैं भी इसे पीटती हूं.”

पापा ने अपना माथा ठोंक लिया था.

अब मां के प्रति उस की घृणा जड़ जमाती जा रही थी. वह उन के साथ ढिठाई से पेश आती. उन से बातबात पर उलझ पड़ती.

मगर गुमसुम रह कर अपनी पढाई में लगी रहती. वह मां का कोई कहना नहीं मानती न ही किसी की इज्जत करती. उस की हरकतों से पापा भी परेशान हो जाते. दिनबदिन वह अपने मन की मालिक होती जा रही थी.

उस के मन में पक्का विश्वास था कि यह पूजापाठ, बाबा केवल पैसा ऐंठने के लिए ही आते हैं… यही वजह थी कि वह पापा से भी जबान लड़ाती. वह किसी भी हवनपूजन, पूजापाठ में न तो शामिल होती और न ही सहयोग करती.

इस कारण अकसर घर में कहासुनी होती लेकिन वह अपनी जिद पर अड़ी रहती.

इसी बीच उस का हाईस्कूल का रिजल्ट आया. उस की मेहनत रंग लाई थी. उस ने स्कूल में टौप किया था. उस के 92% अंक आए थे. बस, फिर क्या था, उस ने कह दिया कि उसे कोटा जा कर आगे की पढ़ाई करनी है. इस बात पर एक बार फिर से मां ने हंगामा करना शुरू कर दिया था,”नहीं जाना है…किसी भी हालत में नहीं…”

लेकिन पापा ने उसे भेज दिया और वहां अपने मेहनत के बलबूते वह इंजीनियरिंग की प्रतियोगिता पास कर बाद में इंजीनियर बन गई.

उधर पापा की अपनी लापरवाही के कारण उन का स्टाफ उन्हें धोखा देता रहा… वे सत्संग में मगन रह कर पूजापाठ में लगे रहे.

जब तक पापा को होश आया उन का बिजनैस बाबा लोगों द्वारा आयोजित पूजापाठ, चढ़ावे के हवनकुंड में स्वाह हो चुका था. अब वे नितांत अकेले हो गए. फिर उन्हें पैरालिसिस का अटैक हुआ. कोई गुरूजी, बाबा या फिर पूजापाठ काम नहीं आया. तब गूंज ने खूब दौड़भाग की लेकिन निराश पापा जीवन की जंग हार गए…

मां अकेली रह गईं तो वह बीना को उन के पास रख कर उस ने अपना कर्तव्य निभा दिया.

गूंज का चेहरा रोष से लाल हो रहा था तो आंखों से अश्रुधारा को भी वह रोक सकने में समर्थ नहीं हो पाई थी.

‘’पार्थ, आई हेट हर…’’

“आई अंडरस्टैंड गूंज, तुम्हारे सिवा उन का इस दुनिया में कोई नहीं है, इसलिए तुम्हें उन के पास जाना चाहिए. शायद उन के मन में पश्चाताप  हो, इसलिए वे तुम से माफी मांगना चाहती हों…यदि तुम्हें मंजूर हो तो उन्हें बैंगलुरू शिफ्ट करने में मैं तुम्हारी मदद कर सकता हूं. यहां के ओल्ड एज होम का नंबर मुझे मालूम है. यदि तुम कहो तो मैं बात करूं?”

“पार्थ, मैं उन की शक्ल तक देखना नहीं चाहती…”

“मगर डियर, सोचो कि एक मजबूर बुजुर्ग, वह भी तुम्हारी अपनी मां, बैड पर लेटी हुईं तुम्हारी ओर नजरें लगाए तुम्हें आशा भरी निगाहों से निहार रही हैं…”

वह बुदबुदा कर बोली थी, ‘’कहीं पहुंचने में हम लोगों को देर न हो जाए.‘’

गूंज सिसकती हुई मोबाइल से फ्लाइट की टिकट बुक करने में लग गई…

Best Hindi Stories : गोबिंदा – दीपा की सास लड़की की पहचान क्यों छुपा रही थी

Best Hindi Stories : सांवली, सौम्य सूरत, छोटी कदकाठी, दुबली काया, काला सलवारसूट पहने, माथे पर कानों के ऊपर से घुमाती हुई चुन्नी बांधे इस पतली, सूखी सी डाल को दीपा ने जैसे ही अपने घर की ड्योढ़ी पर देखा तो वह किसी अनजाने आने वाले खतरे से जैसे सहम सी गई. घबरा कर बोली, ‘‘यह तो खुद ही बच्ची है, मेरी बच्ची को क्या संभालेगी?’’

यह सुनते ही उस की सास ने तने हुए स्वर में जवाब दिया, ‘‘सब तुम्हारी तरह कामचोर थोड़े ही जने हुए हैं. यह 9 साल की है, अकेले ही अपनी 3 छोटी बहनों को पाल रही है. खिलानापिलाना, नहलानाधोना सब करती है यह और यहां भी करेगी.’’

दीपा अभी कुछ कहने को ही थी, तभी पति की गरजती आवाज सुन कर चुप हो गई. वे कह रहे थे, ‘‘मेरी मां एक तो इतनी दूर से तुम्हारी सुविधा के लिए समझाबुझा कर इसे यहां ले कर आई हैं, ऊपर से तुम्हारे नखरे. अरे, इतने ही बड़े घर की बेटी हो तो जा कर अपने मांबाप से बोलो, एक नौकर भेज दें यहां. चुपचाप नौकरी करो, बेटी को यह संभाल लेगी.’’

दीपा मन मसोस कर बैठ गई. यह सोच कर ही उस का कलेजा मुंह को आ रहा था कि उस की डेढ़ साल की बेटी को इस बच्ची ने गिरा दिया या चोट लगा दी तो? पर वह इन मांबेटे के सामने कभी जबान खोल ही नहीं पाई थी. दीपा ने उस बच्ची से नाम पूछा तो उस की सास ने जवाब दिया, ‘‘इस का बाप इस को गोबिंदा बुलाता था, सो आज भी वही नाम है इस का.’’

दीपा ने उस गोबिंदा के मुंह से कुछ जैबुन्निसा सा शब्द निकलते सुना. समझ गई, सास उस का मुसलिम होना छिपा रही हैं. बड़ी अजीब दुविधा में थी दीपा. कोई उस की सुनने को तैयार ही नहीं था.

उस की सास बोले जा रही थी, ‘‘हजार रुपए कम नहीं होते, खूब काम कराओ इस से, खाएगीपिएगी, कपड़ेलत्ते खरीद देना. जो घर से लाई है 2 सलवारकमीज, उन्हें फेंक देना. एक पुराना बैग दे दो, उस में इस का ब्रुश, पेस्ट, साबुन, तेलकंघी, शीशा सब दे कर अलग कर दो. हां, एक थाली, कटोरी और गिलास भी अलग कर देना.’’

गोबिंदा को सारा सामान दे दिया दीपा ने, पर मन में डर भरा हुआ था कि पता नहीं क्या होगा? खैर, पति के डर से दीपा ने गोबिंदा के भरोसे अपनी बेटी को छोड़ा और औफिस गई. बेचैनी तो थी पर जब वापस आई तो देखा, बच्ची खेल रही है और गोबिंदा बड़ी खुशी से बखान कर रही थी, ‘‘भाभीजी, हम ने बिटिया को दूध पिला दिया, वो टट्टी करी रहिन, साफ करा हम, फिर वो चक्लेट मांगी तो हम ने सब खिला दिया.’’

दीपा दौड़ कर फ्रिज के पास गई और जैसे ही दरवाजा खोला, मन गुस्से और दुख से भर गया. अमेरिका से मंगवाई थी, डार्क चौकलेट 3 हजार रुपए की. सिर्फ खाना खाने के बाद एक टुकड़ा खाती थी. दीपा यह सोच कर उदास हो गई कि अब एक साल इंतजार करना पड़ेगा और पतिदेव की डांट पड़ेगी सो अलग. दीपा की सास 2 दिनों बाद ही वापस चली गई थी. इधर, गोबिंदा के रहनेसोने का इंतजाम कर दिया था दीपा ने. हर रोज जितना भी खाने का सामान रख कर जाती वह, सब औफिस से लौटने पर खत्म मिलता. गोबिंदा कहती कि बिटिया ने खा लिया है. 1 साल की बेटी कितना खा पाएगी, वह जानती थी कि गोबिंदा झूठ बोल रही है पर आखिर बच्ची थी. कुछ समझ नहीं आ रहा था क्या करे वह. पति से सारी बात छिपाती थी दीपा.

एक दिन पति घर पर रुके थे. उन्होंने बिटिया के लिए दूध बनाया. गोबिंदा से कहा, ‘बिटिया को ले आओ.’ गोबिंदा किचन में गई और आदतन, हौर्लिक्स का डब्बा निकाला और हौर्लिक्स मुंह में भरा, फिर बिटिया के बनाए दूध को पी कर आधा कर दिया. अभी वह दूध पी कर उस में पानी मिलाने ही जा रही थी तभी पति ने देख लिया. वे जोर से गरजे. गोबिंदा सहम कर दरवाजे की तरफ मुड़ी, पति काफी गुस्से में थे. उन्हें क्रोध आया कि रोज गोबिंदा सारा दूध पी कर और बेटी को पानी मिला कर देती है. हौर्लिक्स भी मुंह में चिपका हुआ था.

पति ने फ्रिज खोल कर देखा. सारी चौकलेट, फल सब खत्म थे. कोई नमकीन, बिस्कुट का पैकेट भी नहीं मिला. वे गोबिंदा के बैग में चैक करने लगे. कई चौकलेट के रैपर, नमकीन, बिस्कुट, फल आदि उस ने बैग में छिपा रखे थे. बैग की एक जेब में से बहुत सारे पैसे भी निकले. गोबिंदा सारा सामान चुरा कर बैग में रखती थी, और रात को छिप कर खाती थी. इधर, बिटिया के नाम पर भी सारा दूध और खाना खत्म कर देती थी. दीपा के पति ने गुस्से में गोबिंदा का हाथ पकड़ कर जोर से झटका दिया. गोबिंदा का सिर किचन के स्लैब के कोने से लगा और खून की धारा बह निकली. दीपा के पति घबरा गए. उन्हें कुछ सूझ नहीं रहा था.

तभी दीपा औफिस की गाड़ी से वापस आई. घर का ताला चाबी से खोला और अंदर घुसते ही चारों तरफ खून देख कर डर गई. उधर, गोबिंदा बाथरूम में सिर पकड़ कर पानी का नल खोल कर उस के नीचे बैठी थी. खून बहता जा रहा था. दीपा ने झट से उसे पकड़ कर बाथरूम से बाहर खींचा और उस के सिर में एक पुराना तौलिया जोर से दबा कर बांध दिया. कुछ पूछने और सोचने का समय नहीं था. पति परेशान दिख रहे थे.

दीपा ने झट अपने डाक्टर मित्र, जो कि पास में ही रहते थे, को फोन किया और पति से गाड़ी निकालने को कहा. पति ने गाड़ी निकाली. दीपा गोबिंदा का माथा पकड़ कर बैठ गई और अस्पताल पहुंचते ही डाक्टर ने गोबिंदा के सिर पर टांके लगा कर, सफाई कर के पट्टी बांध दी.

डाक्टर ने पूछा, ‘‘चोट कैसे लगी?’’

दीपा पति की तरफ देखने लगी. तभी गोबिंदा कहने लगी, ‘‘भाभीजी, हम से गलती हो गई, हम आप से झूठ बोलते रहे कि बिटिया सारी चौकलेट और खाना खात रही, हम खुदही खा जाते थे सबकुछ. आज भइयाजी ने दूध बना कर रखा, हमारा मन कर गया सो हम पी लीहिन, हौर्लिक्स भी खा लीहिन. हम ने आप के परस में से कई ठो रुपया भी लीहिन. भाईजी हम को हाथ पकड़ी कर बाहर खींचे किचन से, हम अंदर भागीं डरकै, हमारा माथा सिलैब पर लग गया और खून निकल रहा बड़ी देर से.’’

पर डाक्टर ने कहा कि इस की माथे की चोट बहुत पुरानी है और खुला घाव है इस के सिर पर. गोबिंदा से डाक्टर ने पूछा कि यह पहले की चोट कैसी है तो वह बोली, ‘‘डागटर साहेब, हमारा भइया 1 हजार रुपया कमा कर लाए रहा, हम ने देख लिया, वो अलमारी मा रुपया रखी रहिन. हम ने रुपया ले लिया और चौकलेट, दालमूठ खरीद लिए. दुकानदार सारा पैसा ले कर हमें बस 2 चौकलेट और 1 दालमूठ का पैकेट दी रहिन. हमरे बप्पा ने देख लिया, सो हम को खूब दौड़ा कर मारे. हम सीढ़ी से गिर गए और कपार फूट गया. पर कोई दवा नहीं दिए हम का. बहुत दिन बाद घाव सूखा. पर चोट लगने पर फिर से घाव खुल जात है.’’

दीपा और डाक्टर चुपचाप बैठे रहे. दीपा ने पैसे देने चाहे पर डाक्टर ने मना कर दिया, बोले, ‘‘रहने दो पैसे. इसे घर भिजवा दो, मुसीबत मोल न लो.’’

दीपा गोबिंदा को ले कर वापस गाड़ी की ओर मुड़ी, अंधेरे में उसे दिखा नहीं और उस का पैर खुले सीवर के गड्ढे में चला गया. बड़े जोर से चीखी वो. डाक्टर क्लीनिक बंद कर के कार में बैठ ही रहे थे, दौड़ कर वापस आए. दीपा का हाथ पकड़ कर जल्दी से ऊपर खींच लिया दीपा के पति और डाक्टर ने. पैर की हड्डी नहीं टूटी थी, पर दोनों घुटने बुरी तरह से छिल गए थे. बड़ी कोफ्त हुई दीपा को, गोबिंदा का इलाज करवाने आई थी, खुद ही घायल हो गई.

किसी तरह से दर्द बरदाश्त किया, घर आ कर दवा ली और औफिस से 3 दिन की छुट्टी. बड़ा थकानभरा दिन था. दवा खाते ही नींद आ गई दीपा को. सुबह जोरजोर से दरवाजा खटखटाने और दरवाजे की घंटी बजाने की आवाज आई. दीपा ने घड़ी की ओर देखा, 5 बज रहे थे. किसी तरह से उठ कर दरवाजा खोला. पड़ोसी की लड़की रमा थी, जोरजोर से बोले जा रही थी, ‘‘भाभी, आप की गोबिंदा एक काले रंग का बैग ले कर बालकनी से कूद कर सुबहसुबह भाग रही थी. हम ने खुद देखा उसे. वह उस तरफ कहीं गई है.’’

बड़ा गुस्सा आया दीपा को. पड़ोसी चुपचाप भागते देख रहे थे. उसे रोक नहीं सकते थे. खबर दे कर एहसान कर रहे हैं और साथ में मजे ले रहे हैं. तुरंत ही पति को जगाया दीपा ने, सब सुन कर पति बाइक ले कर तुरंत ही उसे ढूंढ़ने के लिए भागे. उफ, कितनी परेशानी? जब से गोबिंदा आई थी कुछ न कुछ गलत हो ही रहा था. बस, अब और नहीं. अब किसी तरह से मिल जाए तो इस को इस के मांबाप के पास भेज दें.

दीपा रोए जा रही थी. खैर, 2 घंटे में पति गोबिंदा को पकड़ कर ले आए. उस के बैग में 400 रुपए, दीपा की चांदी की पायल और ढेर सारा खाने का सामान रखा था. दीपा के पति का गुस्सा बढ़ रहा था. किसी तरह पति को शांत किया दीपा ने. फिर गोबिंदा से पूछा कि वह भागी क्यों? वह बोली, ‘‘हमें लगा भाभीजी, आप हमें अम्माअब्बा के पास भिजवा देंगे. वो हमें बहुत मारते हैं. हम उहां नहीं जाएंगे. सो, हम बैग ले कर भाग गए.’’

यह और नई मुसीबत. गोबिंदा घर जाना नहीं चाहती थी. पर उस की चोरी और झूठ बोलने की आदत जाने वाली नहीं थी. किसी तरह हाथ जोड़ कर दीपा ने पति से एक और मौका देने को कहा गोबिंदा को. पति ने किनारा कर लिया. दीपा ने बहुत समझाया गोबिंदा को. उस ने कहा कि जितना खाना है खाओ, पर जूठा न करो सामान और बरबाद भी न करो.

अब रोज दीपा गोबिंदा को औफिस जाने से पहले अपनी मां की निगरानी में अपने मायके छोड़ कर जाती. दीपा की बेटी को भी मां ही रखती. कुछ दिनों तक सब ठीक रहा. फिर दीपा के भाई ने गोबिंदा को फ्रिज से खाना और मिठाई चुराते देखा. यही नहीं, मां के पैसे भी गायब होने लगे. मां ने गोबिंदा को रखने से मना कर दिया. फिर दीपा ने अपनी बेटी को मां से रखने को कहा और वो गोबिंदा को घर में बंद कर के ताला लगा कर जाने लगी. इधर, गोबिंदा ने घर में गंदगी फैलानी शुरू कर दी. पूरे घर से अजीब सी बदबू आती. काफी सफाई करने पर भी बदबू नहीं जाती थी.

एक दिन शादी में जाना था. दीपा ने सोचा, गोबिंदा को भी ले जाए. खाना खा लेगी और घूम भी लेगी. शादी रात को 2 बजे खत्म हुई. गाड़ी से वापस आते समय किसी ट्रक ने दीपा की कार को पीछे से बहुत जोर से टक्कर मारी. सब की जान को कुछ नहीं हुआ पर पुलिस केस और पति को पूरे परिवार के साथ सारी रात कार में बितानी पड़ी. सुबह तक कुछ मदद मिली, जैसेतैसे घर पहुंचे.

अब दीपा ने पति से साफसाफ कह दिया कि वो घर छोड़ कर जा रही है. जब तक वे गोबिंदा को उस के मांबाप के पास नहीं भेज देंगे, वो वापस नहीं आएगी. दीपा ने सास को भी फोन कर के सारी बात कही. सास सुनने को तैयार ही नहीं थी. वह उलटा दीपा को ही दोष दे रही थी. खैर, दीपा ने किसी तरह पड़ोसियों से कह कर गोबिंदा के मांबाप तक बात पहुंचाई कि वे यहां आ जाएं, उन की नौकरी लगवा देगी दीपा. नौकरी के लालच में अपने सारे बालबच्चों के साथ गोबिंदा के मांबाप आ पहुंचे.

अपनी मां के घर में ही रुकवाया दीपा ने सब को. उधर, गोबिंदा के लिए कपड़े खरीदे, उसे पैसे दिए. तभी दीपा के पड़ोसियों ने गोबिंदा को अपने घर पर पुराने कपड़े देने के लिए बुलाया. दीपा ने भेज दिया. थोड़ी देर के बाद, गोबिंदा ढेर सारे कपड़े और मिठाई ले कर आई. दीपा ने कहा, ‘‘चलो गोबिंदा, तुम्हारे मांबाप आए हैं, मिलवा दूं.’’

दीपा फ्लैट से नीचे उतरी तो पड़ोसी के घर में हल्ला मचा था. उन के 2 साल के पोते के हाथ में पहनाया सोने का कंगन गायब था. वो सब ढूंढ़ने में लगे थे. दीपा ने भी उन की मदद करने की सोची. उस ने गोबिंदा से भी कहा कि वह मदद करे पर वह तो अपनी जगह से हिली भी नहीं. अपना बैग ले कर बाहर जा कर खड़ी हो गई. दीपा के मन में खटका हुआ. कुछ गड़बड़ जरूर है. उस ने पड़ोसिन को बुला कर उस से कहा कि गोबिंदा की तलाशी लें. गोबिंदा भागने लगी. पड़ोसिन ने और उन की बेटी ने दौड़ कर पकड़ा उसे. गोबिंदा की चुन्नी में बंधा कड़ा नीचे गिर गया. पड़ोसिन गोबिंदा को पीटने लगी. पुलिस में देने को कहने लगी. किसी तरह से दीपा ने छुड़ा कर बचाया उसे.

गोबिंदा, जो अब पहले से काफी मोटी हो चुकी थी अच्छा खाना खा कर, पिटाई से उस का मुंह और सूज गया था. किसी तरह से समझाबुझा कर, सब से हाथ जोड़ कर माफी मांगी दीपा ने. वहां से निबट कर अपनी मां के घर आई दीपा गोबिंदा को ले कर. गोबिंदा के मांबाप को सारी बात बताई. उस के मांबाप चुपचाप सुनते रहे. पैसे की मांग की गोबिंदा की मां ने. दीपा ने तुरंत ही पैसे निकाल कर दिए और उन के गांव वापस जाने का टिकट उन के हाथ में थमा दिया. पर उस का बाप तो नौकरी की रट लगा कर बैठा था. दीपा की मां ने बात संभाली और अगले साल बुला कर नौकरी देने का वादा किया.

दीपा ने अपने पति को बुलाया और सब को गाड़ी में बिठा कर रेलवे स्टेशन छोड़ने गई. ट्रेन छूटने तक दीपा वहीं रही. जैसे ही गोबिंदा सब के साथ निकली, दीपा ने सुकून की सांस ली.

दीपा ने अब नौकरी छोड़ दी. दीपा का मन पुराने घर से उचट चुका था. सो, उस ने वह घर किराए पर दे दिया. वह खुद अपनी मां के घर पर रहने लगी. इधर, पति का तबादला हो गया तो नए शहर में आ कर दीपा सारी बात भूल गई. कुछ दिनों बाद उस की सास का फोन आया कि गोबिंदा के मांबाप कह रहे हैं कि उस के साथ गलत व्यवहार किया है उस ने. वे और पैसा मांग रहे हैं वरना वे केस कर देंगे. दीपा ने सास से कहा कि ठीक है हम पैसा भेज देंगे मगर आप गोबिंदा और उस के परिवार से दूर ही रहेंगी.

दीपा ही जानती थी कि उस बालमजदूर के साथ क्याक्या झेलना पड़ा उसे. अब उस ने पक्का इरादा कर लिया था कि वह सारा काम खुद करेगी. किसी को भी नहीं रखेगी काम करने के लिए. भले, पैसा कम कमाए पर अब सुकून नहीं गंवाएगी वह.

लेखिका- पूजा रानी सिंह

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