Moral Stories in Hindi : शेष चिह्न

Moral Stories in Hindi :  मायके और ससुराल वालों की सेवा में समर्पित निधि के सपने तो जैसे बिखर कर रह गए थे. जीवन के रेगिस्तान में भटकती निधि क्या ‘अपनों के प्यार’ की मरीचिका को पा सकी?

निधि की शादी तय हो गई थी पर उस को ऐसा लग रहा था मानो मरघट पर जाना है…लाश के साथ नहीं, खुद लाश बन कर. उस का और मेरा परिचय एक प्राइवेट स्कूल में हुआ था जिस में मैं अंगरेजी की अध्यापिका थी और वह साइंस की अध्यापिका हो कर आई थी.

उस का अप्रतिम रूप, कमल पंखड़ी सा गुलाबी रंग, पतला छरहरा बदन, सौम्य नाकनक्श थे पर घर की गरीबी के कारण विवाह न हो पा रहा था.

निधि का छोटा सा कच्चा पुश्तैनी मकान था. परिवार में 4 बहनों पर एकमात्र छोटा भाई अविनाश था. बस, सस्ते कपड़ों को ओढ़तेपहनते, गृहस्थी की गाड़ी किसी तरह खिंच रही थी.

बड़ी बहन आरती के ग्रेजुएट होते ही एक क्लर्क से बात पक्की कर दी गई तो पिता ने कुछ जी.पी.एफ. से रुपए निकाल कर विवाह की रस्में पूरी कीं. किसी प्रकार आरती घर से विदा हो गई. सब ने चैन की सांस ली. कुछ महीने आराम से निकल गए.

आरती को दान- दहेज के नाम पर साधारण सामान ही दे पाए थे. न टेलीविजन न अन्य सामान, न सोना न चांदी. ससुराल में उस पर जुल्मों के पहाड़ टूटने लगे पर वह सब सहती रही.

फिर एक दिन उस ने अपनी कोख से बेटे के बजाय बेटी जनी तो उस पर जुल्म और बढ़ते ही गए. और एक रात अत्याचारों से घबरा कर वह पड़ोसियों की मदद से रोतीकलपती अपने साथ एक नन्ही सी जान को ले कर पिता की देहरी पर लौट आई. उस का यह हाल देख कर पूरे परिवार की चीत्कार पड़ोस तक जा पहुंची. फिर क्याकुछ नहीं भुगता पूरे घर ने. आरती ने तो कसम खा ली थी कि वह जीवन भर वहां नहीं जाएगी जहां ऐसे नराधम रहते हैं.

इस तरह मय ब्याज के बेटी वापस आ गई. अत्याचारों की गाथा, चोटों के निशान देख कर फिर उसी घर में बहन को भेजने का सब से ज्यादा विरोध निधि ने ही किया. 3-4 वर्ष के भीतर  ही तलाक हो गया तो मातापिता की छाती पर फिर से 4 बेटियों का भार बढ़ गया.

मुसीबत जैसे चारों ओर से काले बादलों की तरह घिर आई थी. उस पर महंगाई की मार ने सब कुछ अस्तव्यस्त कर दिया. जो सब की कमाई के पैसे मिलते वह गरम तवे पर पानी की बूंद से छन्न हो जाते. तीजत्योहार सूखेसूखे बीतते. अच्छा खाना उन्हें तब ही नसीब होता जब पासपड़ोस में शादी- विवाह होते. अच्छे सूटसाड़ी पहनने को उन का मन ललक उठता, पर सब लड़कियां मन मार कर रह जातीं.

निधि तो बेहद क्षुब्ध हो उठती. जहां उस के विवाह की बात होती, उस का रूप देख कर लड़के मुग्ध हो जाते  पर दानदहेज के लोभी उस के गुणशील को अनदेखा कर मुंह मोड़ लेते.

निधि मुझ से कहती, ‘‘सच कहती हूं मीनू, लगता है कहीं से इतना पैसा पा जाऊं कि अपने घर की दशा सुधार दूं. इस के लिए यदि कोई रईस बूढ़ा भी मिलेगा तो मैं शादी के लिए तैयार हो जाऊंगी. बहुत दुख, अभाव झेले हैं मेरे पूरे परिवार ने.’’

‘‘तू पागल हो गई है क्या? अपना पद्मिनी सा रूप देखा है आईने में? मेरे सामने ऐसी बात मत करना वरना दोस्ती छोड़ दूंगी. परिवार के लिए बूढ़े से ब्याह करेगी? क्या तू ने ही पूरे घर का ठेका लिया है? और भी कोई सोचता है ऐसा क्या?’’

मेरी आंखें नम हो गईं तो देखा वह भी अपनी पलकें पोंछ रही थी.

‘‘सच मीनू, तू ने गरीबी की परछाईं नहीं देखी पर हम बचपन से ही इसे भोग रहे हैं. अरे, अपनों के लिए इनसान बड़े से बड़ा त्याग करता है. मैं मर जाऊं तो मेरी आत्मा धन्य हो जाएगी. बीमार अम्मां व बाबूजी कैसे जी पाएंगे अपनी प्यारी बेटियों को दुखी देख कर. पता है, मैं पूरे 28 वर्ष की हो गई हूं, नीतिप्रीति भी विवाह की आयु तक पहुंच गई हैं. मुझे कई लड़के देख चुके हैं. लड़की पसंद, शिक्षा पसंद, नहीं पसंद है तो कम दहेज. यही तो हम सब के साथ होगा. धन के आगे हमारे रूपगुण सब फीके पड़ गए हैं.’’

उस की बातों पर मैं हंस पड़ी. फिर बोली, ‘‘अरे, तू तो किसी घर की राजरानी बनेगी. देख लेना तेरा दूल्हा सिरआंखों पर बैठाएगा तुझे. धनदौलत पर लोटेगी तू्.’’

‘‘रहने दे, ऐसे ऊंचे सपने मत दिखा, जो आगे चल कर मेरी छाती में टीस दें. हां, तुझे अवश्य ऐसा ही वरघर मिलेगा. अकेली बेटी, 2 बड़े भाई, सब ऊंचे पदों पर.’’

‘‘कहां राजा भोज कहां गंगू तेली? बड़े परिवार की समस्या पर ही तो सोचती हूं ऐसा, अपनी कुरबानी देने की.’’

फिर आएदिन मैं यही सुनती थी कि निधि को देखने वाले आए और गए. धन के अभाव में सब मुंह चुरा गए. इतनी तगड़ी मांगें कि घर भर के सिर फिर जाते. यहां तो शादी का खर्च उठाना मुश्किल था. उस पर लाखों की मांग.

एक दिन गरमी की दोपहर में आ कर निधि ने विस्फोट किया, ‘‘मीनू, तुझे याद है एक बार मैं ने तुझ से कहा था कि अगर कोई मालदार धनी बूढ़ा वर ही मिल जाएगा तो मैं उस से शादी करने को तैयार हो जाऊंगी. लगता है वही हो रहा है.’’

मैं ने घबरा कर अपनी छाती थाम ली फिर गुस्से से भर कर बोली, ‘‘तो क्या किसी बूढ़े खूसट का संदेशा आया है और तू तैयार हो गई है?’’ इतना कह कर तब मैं ने उस के दोनों कंधे झकझोर दिए थे.

वह बच्चों सी हंसी हंस दी. फिर पसीना पोंछती हुई बोली, ‘‘तू तो ऐसी घबरा रही है जैसे मेरे बजाय तेरी शादी होने जा रही है. देख, मैं बूढ़े खूसट की फोटो लाई हूं. उस की उम्र 40 के आसपास है और वह दुहेजा है. 4 साल पहले पत्नी मर गई थी.’’

उस ने फोटो मेरे हाथ पर रख दिया. ‘‘अरे वाह, यह तो बूढ़ा नहीं जवान, सुंदर है. तू मजाक कर रही है मुझ से?’’

‘‘नहीं रे, मजाक नहीं कर रही… दुहेजा है.’’

‘‘कहीं दहेज के चक्कर में पहली को मार तो नहीं डाला. क्या चक्कर है?’’ मैं बोली.

‘‘यह मेरी मौसी की ननद का देवर है,’’ निधि ने बताया.

‘‘सेल्स टेक्स कमिश्नर है. तीसरी बार बेटे को जन्म देते समय पत्नी की मौत हो गई थी.’’

‘‘तो क्या 2 संतान और हैं?’’

‘‘हां, 1 बेटी 10 साल की, दूसरी 8 साल की.’’

‘‘तो तुझे सौतेली मां का दर्जा देने आया है?’’

‘‘यह तो है पर पत्नी की मृत्यु के 4 साल बाद बड़ी मुश्किल से दूसरी शादी को तैयार हुआ है. घर पर बूढ़ी मां हैं. एक बड़ी बहन है जो कहीं दूर ब्याही गई है, बढ़ती बच्चियों को कौन संभाले. वह ठहरे नौकरीपेशा वाले. समय खराब है. इस से उन्हें तैयार होना पड़ा.’’

‘‘तो तू जाते ही मां बनने को तैयार हो गई, मदर इंडिया.’’

‘‘हां रे. अम्मांबाबूजी तो तैयार नहीं थे. मौसी प्रस्ताव ले कर आई थीं. मुझ से पूछा तो मैं क्या करती. जन्म भर अम्मांबाबूजी की छाती पर मूंग तो न दलती. दीदी व उन की बेटी बोझ बन कर ही तो रह रही हैं. फिर 2 बहनें और भी शूल सी गड़ती होंगी उन की आंखों में. कब तक बैठाए रहेंगे बेटियों को छाती पर?

‘‘मैं अगर इस रिश्ते को हां कर दूंगी तो सब संभल जाएगा. धन की उन के यहां कमी नहीं है, लखनऊ में अपनी कोठी है. ढेरों आम व कटहल के बगीचे हैं. नौकरचाकर सब हैं.

‘‘मैं सब को ऊपर उठा दूंगी, मीनू,’’ निधि ने जैसे अपने दर्द को पीते हुए कहा, ‘‘मेरे मातापिता की कुछ उम्र बच जाएगी नहीं तो उन के बाद हम सब कहां जाएंगे. बाबूजी 2 वर्ष बाद ही तो रिटायर हो रहे हैं, फिर पेंशन से क्या होगा इतने बड़े परिवार का? बता तो तू?’’

मैं ने निधि को खींच कर छाती से लगा लिया. लगा, एक इतनी खूबसूरत हस्ती जानबूझ कर अपने को परिवार के लिए कुरबान कर रही है. मेरे साथ वह भी फूटफूट कर रो पड़ी.

निधि शाम को आने का मुझ से वचन ले कर वापस लौट गई. फिर शाम को भारी मन लिए मैं उस के घर पहुंची. उस की मौसी आ चुकी थीं और वर के रूप में भूपेंद्र बैठक में आराम कर रहे थे. निधि को अभी देखा नहीं था. मैं मौसी के पास बैठ कर वर के घर की धनदौलत का गुणगान सुनती रही.

‘‘बेटी, तुम निधि की सहेली हो न,’’ मौसी ने पूछा, ‘‘वह खुश तो है इस शादी से, तुम से कुछ बात हुई?’’

‘‘मौसी? यह आप स्वयं निधि से पूछ लो. पास ही तो बैठी है वह.’’

‘‘वह तो कुछ बोलती ही नहीं है, चुप बैठी है.’’

‘‘इसी में उस की भलाई है,’’ मैं जैसे बगावत पर उतर आई थी.

‘‘मीनू, तुम नहीं जानती घर की परिस्थिति, पर मुझ से कुछ छिपा नहीं है. निधि की मां मुझ से छोटी है. उसी के आग्रह पर मैं अब तक कई लड़के वालों के पतेठिकाने भेजती रही पर बेटा, पैसों के लालची आज के लोग रूपगुण के पारखी नहीं हैं…फिर आरती में क्या कमी है, लेकिन क्या हुआ उस के साथ…मय ब्याज के वापस आ गई…ये निधि है 28 पार कर चुकी है. आगे 2 और हैं.’’

मैं उन के पास से उठ आई, ‘‘चल निधि, कमरे में बैठते हैं.’’

वह उठ कर अंदर आ गई.

मैं ने जबरन निधि को उठाया. उस का हाथमुंह धुलाया और हलका सा मेकअप कर के उसे मौसी की लाई साडि़यों में से एक साड़ी पहना दी, क्योंकि निधि को शाम का चायनाश्ता ले कर अपने को दिखाने जाना था. सहसा वर बैठक से निकल कर बाथरूम की ओर गया तो मैं अचकचा गई. कौन कह सकता है देख कर कि वह 40 का है. क्षण भर में जैसे अवसाद के क्षण उड़ गए. लगा, भले ही वर दुहेजा है पर निधि को मनचाहा वरदान मिल गया.

शाम के समय लड़की दिखाई के वक्त नाश्ते की प्लेटें लिए निधि के साथ मैं भी थी. तैयार हो कर तरोताजा बैठा प्रौढ़ जवान वर सम्मान में उठ कर खड़ा हो गया और उस के मुंह से ‘बैठिए’ शब्द सुन कर मन आश्वस्त हो उठा.

हम दोनों बैठ गए. निधि ने चाय- नाश्ता सर्व किया तो उस ने प्लेट हम लोगों की ओर बढ़ा दी. फिर हम दोनों से औपचारिक वार्त्ता हुई तो मैं ने वहां से उठना ही उचित समझा. खाली प्लेट ले कर मैं बाहर आ गई. दोनों आपस में एकदूसरे को ठीक से देखपरख लें यह अवसर तो देना ही था. फिर पूरे आधे घंटे बाद ही निधि बाहर आई.

‘‘क्या रहा, निधि?’’ मैं निकट चली आई.

‘‘बस, थोड़ी देर इंतजार कर,’’ यह कह कर निधि मुझे ले कर एक कमरे में आ गई. फिर 1 घंटे बाद जो दृश्य था वह ‘चट मंगनी पट ब्याह’ वाली बात थी.

रात 8 बजतेबजते आंगन में ढोलक बज उठी और सगाई की रस्म में जो सोने की चेन व हीरे की अंगूठी उंगलियों में पहनाई गई उन की कीमत 60 हजार से कम न थी.

15 दिन बाद ही छोटी सी बरात ले कर भूपेंद्र आए और निधि के साथ भांवरें पड़ गईं. इतना सोना चढ़ा कि देखने वालों की आंखें चौंधिया गईं. सब यह भूल गए कि वर अधिक आयु का है और विधुर भी है. बस, एक बात से सब जरूर चकरा गए थे कि दूल्हे की दोनों बेटियां भी बरात में आई थीं. पर वे कहीं से भी 12 और 8 की नहीं दिखती थीं. बड़ी मधु 16 वर्ष और छोटी विधु 12 की दिखती थीं. जवानी की डगर पर दोनों चल पड़ी थीं. सब को अंदाज लगाते देर नहीं लगी कि वर 50 की लाइन में आ चुका है.

निधि से कोई कुछ न कह सका. सब तकदीर के भरोसे उसे छोड़ कर चुप्पी लगा गए. 1 माह तक ससुराल में रह कर निधि जब 10 दिन के लिए मायके आई थी तो मैं ही उस से मिलने पहुंची थी. सोने से जैसे वह मढ़ गई थी. एक से बढ़ कर एक महंगे कपड़े, साथ ही सारे नए जेवर.

एक बात निधि को बहुत परेशान किए थी कि वे दोनों लड़कियां किसी प्रकार से विमाता को अपना नहीं पा रही थीं. बड़ी तो जैसे उस से सख्त नफरत करती, न साथ बैठती न कभी अपने से बोलती. पति से इस बात पर चर्चा की तो उन्होंने निधि को समझा दिया कि लोगों ने या इस की सहेलियों ने इस के मन में  उलटेसीधे विचार भर दिए हैं. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. अपनी बूढ़ी दादीमां का कहना भी वे दोनों टाल जातीं.

निधि हर समय इसी कोशिश में रहती कि वे दोनों उसे मां के बजाय अपना मित्र समझें. इस को निधि ने बताने की भी कोशिश की पर वे दोनों अवहेलना कर अपने कमरों में चली गईं. खाने के समय पिता के कई बार बुलाने पर वे डाइनिंग रूम में आतीं और थोड़ाबहुत खा कर चल देतीं. पिता भी जैसे पराए हो गए थे. पिता का कहना इस कान से सुनतीं उस कान निकाल देतीं.

निधि यदि कहती कि किसी सब्जेक्ट में कमजोर हो तो वह पढ़ा सकती है तो मधु फटाक से कह देती कि यहां टीचरों की कमी नहीं है. आप टीचर जरूर रही हैं पर छोटे से शहर के प्राइवेट स्कूल में. हम क्या बेवकूफ हैं जो आप से पढ़ेंगे और यह सुन कर निधि रो पड़ती.

एक से एक बढि़या डिश बनाने की ललक निधि में थी पर मायके में सुविधा नहीं थी इसलिए वह अपने शौक को पूरा न कर सकी. यहां पुस्तकों को पढ़ कर या टेलीविजन में देख कर तरहतरह की डिश बनाती, पूरे घर को खिलाती, पति और सास तो खुश होते पर उन दोनों बहनों की प्लेटें जैसी भरी जातीं वैसी ही कमरों से आ कर सिंक में पड़ी दिखतीं.

कई बार पिता ने प्यार से समझाया कि वह अब तुम्हारी मां हैं, उन का आदर करो, उन्हें अपना समझो तो बड़ी मधु फटाक से उत्तर दे देती, ‘पापा, आप की वह सबकुछ हो सकती हैं पर हमारी तो सौतेली मां हैं.’

इस पर पिता का कई बार हाथ उठ गया. निधि पक्ष ले कर आगे आई तो अपमानित ही हुई. इस से चुपचाप रो कर रह जाती. लड़कियां कहां जाती हैं, रात में देर से क्यों आती हैं. कुछ नहीं पूछ सकती थी वह.

लड़कियों के पिता सदैव गंभीर रहे. हमेशा कम बोलना, जैसे उन के चेहरे पर उच्च पद का मुखौटा चढ़ा रहता. बेटियों को भी कभी पिता से हंसतेबोलते नहीं देखा. कई बार निधि के मन में आया कि वह मधु से कुछ पूछे, बात करे पर वह तो हमेशा नाक चढ़ाए रहती.

बूढ़ी सास प्यार से बोलतीं, समझातीं, खानेपीने का खयाल रखने को कहतीं. जब बेटियों के बारे में वह पूछती तो कह देतीं, ‘‘सखीसहेलियों ने उलटासीधा भरा होगा. धीरेधीरे सब ठीक हो जाएगा. तू भूपेंद्र से बता दिया कर जो समस्या हो.’’

‘‘मांजी, एक तो रात में वह देर से आते हैं फिर वह इस स्थिति में नहीं होते कि उन से कुछ कहा जाए. दिन में बेटियों की बात बेटियों के सामने तो नहीं कह सकती, वह भी तब जब दोनों जैसे लड़ने को तैयार बैठी रहती हैं. मैं तो बोलते हुए भी डरती हूं कि पता नहीं कब क्या कह कर अपमान कर दें.’’

‘‘इसी से तो शादी करनी पड़ी कि पत्नी आ जाएगी तो कम से कम रात में घर आएगा तो उसे संभाल तो लेगी. अब तो तुझे ही सबकुछ संभालना है.’’

अधरों की हंसी, मन की उमंग, रसातल में समाती चली जा रही थी. सब सुखसाधन थे. जेवर, कपड़े, रुपएपैसे, नौकरचाकर परंतु लगता था वह जंगल में भयभीत हिरनी सी भटक रही है. मायके की याद आती, जहां प्रेम था, उल्लास था, अभावों में भी दिन भर किल्लोल के स्वर गूंजते थे. तभी एक दिन देखा कि दोनों बहनें मां का वार्डरोव खोल कर कपड़े धूप में डाल रही हैं और लाकर से उन के जेवर निकाल कर बैग में ठूंस रही हैं. निधि का माथा ठनका. उस दिन छुट्टी थी. सब घर पर ही थे. वह चुपके से घर के आफिस में गई. उस समय वह अकेले ही थे. बोली, ‘‘क्या मैं आ सकती हूं?’’

‘‘अरे, निधि, आओ, आओ, बैठो,’’ यह कहते हुए उन्होंने फाइल से सिर उठाया.

‘‘ये मधुविधु कहीं जा रही हैं क्या?’’

‘‘क्यों, तुम्हें क्यों लगा ऐसा? पूछा नहीं उन से?’’

‘‘पूछ कैसे सकती हूं…कभी वे बोलती भी हैं क्या? असल में उन्होंने अपनी मां के कपड़े धूप में डाले हैं और जेवर बैग में रख रही हैं.’’

‘‘दरअसल, वह अपनी मां के जेवर बैंक लाकर में रखने को कह रही थीं तो मैं ने ही कहा कि निकाल लो, कल रख देंगे, घर पर रखना ठीक नहीं है. दोनों की शादी में दे देंगे.’’

‘‘क्षमा करें, अकसर दोनों कभी अकेले जा कर रात में देर से घर आती हैं. इस से आप से कहना पड़ा,’’ निधि जाने के लिए उठ खड़ी हुई.

‘‘ठहरो, निधि, तुम कभी शौपिंग को नहीं जाती हो? भई, रुपएपैसे मेरी अलमारी में पड़े रहते हैं. जेवर, कपड़े जो चाहिए खरीद लाया करो. कोई रोक नहीं है. आजकल तो महिलाएं नएनए डिजाइन के गहनेकपड़े पहन कर घूमती हैं. मैं चाहता हूं कि तुम भी वैसी ही घूमो, क्लब ज्वाइन कर लो, इस से परिचय बढ़ेगा. पढ़ीलिखी हो, सुंदर हो, थोड़ा स्मार्ट बनो.’’

दूसरे दिन दोनों बहनें बैंक जा कर सारे जेवर बैंक लाकर में रख आईं और चाबी अपने पास रख ली.

निधि कई बार मायके हो आई थी. कभी सोचा था कि दोनों छोटी बहनों को वह अपने पास रख कर पढ़ाएगी पर वह सब जैसे स्वप्न हो गया. हां, रुपए ले जा कर वह सब को कपड़े आदि अवश्य खरीद देती. हर बार जरूरत की कुछ न कुछ महंगी चीज खरीद कर रख जाती. रंगीन टेलीविजन, पंखे, छोटा सा फ्रिज आदि. इस से ज्यादा रुपए लेने की उस की हिम्मत नहीं थी. जब तक निधि मायके रहती कुछ दिन को अच्छा भोजन पूरे घर को मिल जाता, बाद में फिर वही पुराना क्रम चल पड़ता.

अभी मायके से आए निधि को केवल 15 दिन ही हुए थे कि अचानक जैसे परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा. वह बीमार थी. कई दिनों से खांसी से पीडि़त थी. दोनों बहनें खापी कर अपने कमरे में बैठी टेलीविजन देख रही थीं.

तभी जोर से दरवाजे की घंटी बजी. उस ने आ कर दरवाजा खोला तो कुछ अनजाने चेहरों को देख कर चौंक गई.

‘‘आप लोग कौन हैं. साहब घर पर नहीं हैं,’’ उन्हें भीतर घुसते देख कर निधि घबरा गई, ‘‘अरे, अंदर कैसे घुस रहे हैं आप लोग?’’ वह चिल्ला कर बोली ताकि दोनों बहनें सुन लें लेकिन  टेलीविजन के तेज स्वर के कारण उस की आवाज वहां तक नहीं पहुंची. खिड़की से झांक कर दोबारा निधि चिल्ला कर बोली, ‘‘मधु, देखो ये लोग कौन हैं और घर में घुसे जा रहे हैं.’’

‘‘मैडम, हम विजिलेंस आफीसर हैं और आप के यहां छापा मारने आए हैं. यह देखिए मेरा आई कार्ड.’’

दोनों बहनें बाहर दौड़ कर आईं और चिल्ला कर बोलीं, ‘‘पापा घर पर नहीं हैं. जब वह आएं तब आप लोग आइए.’’

‘‘पापा आप के अभी नहीं आ पाएंगे, क्योंकि वह पुलिस हिरासत में हैं.’’

‘‘क्यों, क्या किया है उन्होंने?’’

‘‘शायद आप को पता नहीं कि आप के पापा रिश्वत लेते रंगेहाथों पकड़े गए हैं. अब तो बेल होने पर ही घर आ पाएंगे,’’ यह सुन कर निधि को चक्कर आ गया और वह अपना सिर पकड़ कर बैठ गई.

‘‘पापा से फोन कर के हम बात कर लें तब आप को अंदर घुसने देंगे,’’ यह कहते हुए मधु ने फोन लगाया तो पापा का भर्राया स्वर गूंजा, ‘‘कानून में बाधा मत डालो, मधु. लेने दो तलाशी.’’

शाम को जब वह हारेथके घर आए तो लग रहा था महीनों से बीमार हों. पैर लड़खड़ा रहे थे. उन्होंने पहले निधि को फिर मधु व विधु की ओर देखा. बरामदे में पूरी शक्ति लगा कर वह अपने भारी- भरकम शरीर को चढ़ा पाए पर संभल नहीं पाए और धड़ाम से गिर पड़े. होंठों से झाग बह चला. तीनों के मुंह से चीखें निकल गईं. डाक्टर आया तो उन्होंने तुरंत अस्पताल में भरती करने की सलाह दी. तीनों उन्हें एंबुलेंस में लाद कर अस्पताल ले गईं. डाक्टरों ने हृदयाघात बताया.

निधि सारी रात पति के सिरहाने बैठी रही. दोनों बहनें कुछ देर को घर लौटीं, क्योंकि चपरासी ने बताया था कि मांजी की हालत बहुत खराब हो गई है.

उन्हें होश आया तो वह बोले, ‘‘निधि, मुझे बहुत दुख है कि अभी अपने विवाह को केवल 10 माह ही हुए हैं और मैं इस प्रकार झूठे मामले में फंसा दिया गया. तुम यह मकान बेच कर मां को ले कर मायके चली जाना. मधु के मामा संपन्न हैं. वे उन्हें जरूर इलाहाबाद ले जाएंगे. यदि मां को ले जाना चाहें तो ले जाने देना. मैं ने कुछ रुपए कबाड़खाने के टूटे बाक्स में पुराने कागजों के नीचे दबा रखे हैं. वहां कोई न ढूंढ़ पाएगा. तुम अपने कब्जे में कर लेना. बचे रहे तो मुकदमा लड़ने के काम आएंगे.’’

निधि फूटफूट कर रो पड़ी फिर बोली, ‘‘पर वहां तो सील लग गई है. पुलिस का पहरा है,’’ निधि के मुंह से यह सुन कर उन की आंखों से ढेरों आंसू लुढ़क पड़े. फिर पता नहीं कब दवा के नशे में सोतेसोते ही उन्हें दूसरा दौरा पड़ा, 3 हिचकियां आईं और उन के प्राण निकल गए.

निधि की तो अब दुनिया ही उजड़ गई. जिस धन की इच्छा में उस ने अधेड़ विधुर को अपनाया था वह उसे मंझधार में ही छोड़ कर चला गया.

मातापिता सब आए. मधु के नाना, मामा आदि पूरा परिवार जुड़ आया. सब उस के अशुभ चरणों को कोस रहे थे. चारों ओर के व्यंग्य व लांछनों से वह घबरा गई. पुलिस ने उस के मायके तक को खंगाल डाला था.

मांजी तो जीवित लाश सी हो गई थीं. निधि की हालत देख कर उन्होंने उसे अपने पास बुलाया और पूजागृह से अपनी संदूक खींच कर उसे यह कहते हुए सौंप दी, ‘‘बेटी, इस में जो कुछ है तेरा है. मैं तो अपनी बेटी के पास शेष जीवन काट लूंगी. यह लोग तुझे जीने नहीं देंगे. मकान बिकेगा तो तुझे भी हिस्सा मिलेगा. मेरे दामाद व बेटी तुझे अवश्य हिस्सा दिलवाएंगे. तू अपने नंगे गले में मेरा यह लाकेट डाल ले और ये चूडि़यां, शेष तो सब सरकारी हो गया. बेटी, 1 साल बाद जहां चाहे दूसरा विवाह कर लेना… अभी तेरी उम्र ही क्या है.’’

वह चुपचाप रोती रही. फिर उसे ध्यान आया और जहां पति ने बताया था वहां ढूंढ़ा तो 10 लाख की गड्डियां प्राप्त हुईं. तलाशी तो पहले ही हो चुकी थी इस से वह सब ले कर मांबाप के साथ मायके आ गई. बस, वह पेंशन की हकदार रह गई थी. वह भी तब तक जब तक कि वह पति की विधवा बन कर रहे.

निधि ने रुपए किसी बैंक में नहीं डाले बल्कि उन से कंप्यूटर खरीद कर बहनों के साथ अपनी कंप्यूटर क्लास खोल ली. उस ने बैंक से लोन भी लिया था, जिस से कभी पकड़ी न जाए. अच्छी पेंशन मिली वह भी केस निबटने के कई वर्ष बाद.

मैं निधि के घर तुरंत गई थी. उस का वैधव्य रूप, शिथिल काया, कांतिहीन चेहरा देख कर खूब रोई.

‘‘मीनू, देख, कैसा राजसुख भोग कर लौटी हूं. रही बात अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिलने की तो वह 2 राज्यों के चलते कभी न मिल पाएगी. मैं उत्तर प्रदेश में रह नहीं सकती और मध्य प्रदेश में नौकरी मिल नहीं सकती. हर माह पेंशन के लिए मुझे लखनऊ जाना पड़ेगा. गनीमत है कि मैं बाप पर भार नहीं हूं. पति सुख नहीं केवल धन सुख भोग पाऊंगी. इसी रूप की तू सराहना करती थी पर वहां तो सब मनहूस की पदवी दे गए.

‘‘वे क्या जानें कि मैं ने आधी रात को नशे में चूर डगमगाए पति की भारीभरकम देह को कैसे संभाला है. मद में चूर, कामातुर असफल पुरुष की मर्दानगी को गरम रेत पर पड़ी मछली सी तड़प कर लोटलोट कर काटी हैं ये पूरे 10 माह की रातें. मेरा कुआंरा अनजाना तनमन जैसे लाज भरी उत्तेजना से उद्भासित हो उठता.’’

‘‘निधि, संभाल अपनेआप को. तू जानती है न कि मैं अभी इस अनुभव से सर्वथा अनजान हूं.’’

‘‘ओह, सच में मीना. मैं अपनी रौ में सब भूल गई कि तू यह सब क्या जाने. मुझे क्षमा करेगी न?’’

‘‘कोई बात नहीं निधि, तेरी सखी हूं न, जो समझ पाई वह ठीक, नहीं समझी वह भी ठीक. तेरा मन हलका हुआ. शायद विवाह के बाद मैं तेरी ये बातें समझ पाऊंगी, तब तेरी यह व्यथा बांटूंगी.’’

‘‘तब तक ये ज्वाला भी शीतल पड़ जाएगी. मैं अपने पर अवश्य विजय पा लूंगी. अभी तो नया घाव है न जैसे आवां से तप कर बरतन निकलता है तो वह बहुत देर तक गरम रहता है.’’

‘‘अच्छा, अब चलूंगी. बहुत देर हो गई.

Hindi Drama 2025 : बुढ़ापे में बच्चों के साथ रिश्ते की कहानी

Hindi Drama 2025 : सुनयना का निधन 3 महीने पहले ही तो हुआ था. पत्नी का यूं अचानक चले जाना मेरे लिए बहुत घातक था. इस सदमे ने मेरे वजूद को तोड़ कर रख दिया था. मैं, मैं नहीं रहा था. मेरी स्थिति उस खंडहर मकान जैसी हो गई थी जो नींव से तो जुड़ा था पर मकान कहलाने लायक नहीं था. इन 3 महीनों में ही परिवार पर से मेरा दबदबा लगभग खत्म हो चला था. बहू स्नेहा, जो कभी मेरे पैरों की आहट से डरती और बचती फिरती थी, अब मुझ से जिरह करने लगी थी. बेटा प्रतीक मुझ से चेहरा उठा कर बात करने लगा था. दोनों पूरी तरह से गिरगिट की तरह रंग बदल चुके थे. आखिर क्यों? मैं कुछ समझ ही नहीं पा रहा था.

वैसे तो घर में सभी तरह के काम करने के लिए नौकर हैं पर अब मैं होलटाइमर हूं. चौबीस घंटे वाला खिदमतगार. झाड़ूपोंछा करने वाली सुबह 9 बजे आती है और अपना काम कर के 10 बजे तक चली जाती है. उस के कुछ देर बाद ही चौकाबरतन करने वाली आती है और पौन घंटे में काम खत्म कर के चली जाती है. कपड़े धोने के लिए अलग नौकरानी है और कार चलाने के लिए एक ड्राइवर भी है, लेकिन दिन में तो  24 घंटे होते हैं और 24 तरह के काम भी. सुनयना की मृत्यु के बाद से वे सभी काम मैं, 65 साल का बूढ़ा, संभालता हूं.

मैं ने बदलते हालात से समझौता कर लिया है. मेरा मानना है कि समझौता शब्द बहुत गुणकारी है. आप की सारी उलझनों को पल भर में सुलझा देता है. आप की जिंदगी में बड़े से बड़ा तूफान आ जाए, मुलायम घास की तरह झुक कर उसे गुजर जाने देना ठीक है. अकड़ू पेड़ तो टूट कर गिर जाते हैं.

पत्नी के निधन के कुछ दिन बाद प्रतीक गुस्से से भरा मेरे पास चला आया था. आते ही एक प्रश्न जड़ा था, ‘रात आप ने खाना क्यों नहीं खाया?’

मैं ने सहज भाव से कहा था, ‘कल हमारी शादी की वर्षगांठ थी, बेटे. तेरी मां की याद आ गई. फिर खाने का मन ही नहीं हुआ. रात तो मैं सो भी नहीं पाया.’

जब उसे एहसास हुआ कि मेरे भूखे सो जाने का कारण किसी प्रकार की नाराजगी नहीं थी तो नाटकीय अफसोस जताते हुए वह बोला, ‘ओह, मुझे याद ही नहीं रहा, बाबा. दरअसल, जिंदगी इतनी मशीनी हो गई है कि न दिन के गुजरने का एहसास होता है और न ही रात के. काम, काम और सिर्फ काम. आराम के पल, इन काम के पलों के बीच कहां खो जाते हैं, पता ही नहीं चलता? ऐसे में कोई क्याक्या याद रखे?’

प्रतीक चला गया था. और मैं सोचने लगा कि आज रिश्ते कितने संकुचित हो चले हैं. इस पीढ़ी के लोग यह तो याद रखते हैं कि पति का बर्थडे कब है? पत्नी का कब? बच्चों का कब? अपनी मैरिज ऐनीवरसरी कब है? पर हमारी पीढ़ी के बारे में कुछ याद नहीं रहता. यह कैसी विडंबना है? एक हमारा समय था. हम मातापिता को बेहिसाब सम्मान देते थे.  जबकि यह पीढ़ी तो मांबाप को नौकरों की तरह समझने में भी नहीं हिचकिचाती, सेवा करना तो दूर की बात है.

इस पीढ़ी की एक और खास आदत है, मातापिता का किया भूलने की. आज प्रतीक यह भी भूल चुका है कि उस की पढ़ाई के लिए हम ने यह घर कभी गिरवी रखा था. अपना भविष्य भुला कर उस का वर्तमान संवारा था. पता नहीं, इस पीढ़ी को अपने काम के सामने रिश्ते भी क्यों छोटे लगने लगते हैं? घर वालों से भी बातें करते समय शब्दों में व्यावसायिकता की बू आती है. पक्के पेशेवर हो चुके हैं. हमारी शादी की वर्षगांठ भूल जाने का बड़ा ही अच्छा बहाना बनाया था उस ने.

सुनयना की मृत्यु से पहले तक घर में, मेरा दबदबा हमेशा बना रहा. न प्रतीक ने कभी मुझ से आंखें मिला कर बात की और न ही स्नेहा ने कभी ऐसा व्यवहार किया, जिस से कि हमें ठेस पहुंचे. जीवन में हम ने मातापिता से यही सीखा था कि घर तो सभी बना लेते हैं. आदर्श घर भी बनाए जा सकते हैं, पर घर को प्यार भरा घर बनाना असंभव नहीं तो दूभर जरूर होता है.

ऐसा घर रिश्तों में प्यार व स्नेह की भावना से बनता है. प्यार केवल जोड़ता है, तोड़ता नहीं. उन की इस नसीहत को मैं ने घर की नींव में डाला था. यही कारण है कि मैं यह प्रयास करता रहता ताकि रिश्तों में कड़वाहट कभी न आए.

एक दिन शरीर की टूटन के कारण मैं देर तक सोता रह गया तो स्नेहा ने मुझे कमरे में आ कर जगाया. तेज आवाज में बोली, ‘बाबा, आप ने तो हद कर दी है. सुबह 10 बजे उठने की आदत बना डाली है. दिनभर हमारे पीछे आप सोते रहते हैं. मुफ्त का खाना खाते हैं. इस आलीशान घर में रहते हैं. आप को न पानी का बिल भरना पड़ता है और न ही लाइट का. सर्दी में हीटर और गरमी में एसी जैसी सुविधाएं तो हम ने जुटा ही रखी हैं तो क्या हम आप से यह उम्मीद भी न करें कि आप सुबह समय से उठ जाएं और घर संभालें? हम औफिस जा रहे हैं. घर में नौकर काम कर रहे हैं. उन्हें अकेला तो नहीं छोड़ा जा सकता. उठिए और घर का दरवाजा बंद कर लीजिए.’

स्नेहा मुझे नींद से झकझोर कर चली गई. मैं स्तब्ध था. सोच रहा था कि स्नेहा ने कितनी आसानी से मेरे एक दिन लेट उठने को, मेरी रोज की आदत में तबदील कर दिया था. शरीर की टूटन की परवा न करते हुए भी उठ कर दरवाजा बंद कर लिया था. कल प्रतीक ने भी ऐसा ही व्यवहार किया था. उस ने औफिस जाते समय मुझ से कहा था, ‘बाबा, आखिर इस तरह कब तक चलेगा? आप घर का जरा सा भी ध्यान नहीं रखते. घर से नौकर सामान चुराचुरा कर ले जाते हैं. रसोई से मसाले चोरी होते हैं. तेल, घी हर 15-20 दिन में खत्म हो जाते हैं. साबुन पता नहीं कहां जाते हैं. मेरा एक तौलिया और एक नीली शर्ट कितने दिनों से ढूंढ़े नहीं मिल रहे. स्नेहा की कई मैक्सियां और साडि़यां दिखाई नहीं देती हैं. घर में चोरियां न हों, आप को इस का खयाल तो रखना चाहिए. जरा इस तरफ भी अपना ध्यान लगाइए.’

मन ही मन मैं उबल कर रह गया. जी में आया कि मुंह पर कस कर एक थप्पड़ जड़ दूं. मुझे सिखाने चला है कि मैं क्या करूं, क्या न करूं? आज के बच्चे जब घर में भी प्रोफैशनल किस्म की बातें करते हैं तो मुझे गुस्सा कुछ ज्यादा ही आता है. चिढ़ होने लगती है. वैसे मैं समझ गया था कि उस ने मेरे साथ ऐसा व्यवहार क्यों किया है? दिल्ली में विश्वासपात्र नौकर मिलना एक बड़ी समस्या है. बाहरी प्रदेशों से नौकरी की चाह लिए आए लोगों को बिना उन का आचरण और चरित्र जाने

24 घंटे घर में नहीं रखा जा सकता. पता नहीं वे कब कौन सा कांड कर बैठें या घर की बहुमूल्य संपत्ति ले कर चलते बनें. उन की इस जरूरत के लिए भला मुझ से अधिक लायक होलटाइमर नौकर और कौन हो सकता है?

बस, इसी क्षण मेरा मन घर से उचट गया. मुझे लगने लगा कि मेरी सल्तनत अब पूरी तरह से धराशायी हो गई है. परिवार में मेरी स्थिति शून्य हो गई है. घर में रोज बढ़ता तनाव मुझे पसंद नहीं था, इसलिए परेशानी मुझे अधिक थी. बेटाबहू मिल कर मुझ पर प्रहार किए जा रहे थे. परिवार में एकदूसरे को प्रतिदिन सहना यदि दूभर होने लगे तो घर टूटने की संभावनाएं बढ़ ही जाती हैं. घर टूटे, मुझे यह मंजूर नहीं था, क्योंकि मैं समझता था कि घर तोड़ना बहुत आसान है, उसे जोड़े रखना बहुत कठिन.

सोचा, कैसे हाथों से फिसलती रेत को रोकूं? अपनी परेशानियों को घर की चारदीवारी से बाहर जाने से बचाऊं? वह भी ऐसे समय में जब परिवार के किनारे टूटते हुए लग रहे हैं? रिश्तों में दरार साफसाफ दिखाई दे रही है. घर के झगड़े और रिश्तों में मनमुटाव के किस्से यदि बाहर जाने लगें, तब कोई क्या कर पाएगा? जगहंसाई होगी. उसे न प्रतीक रोक पाएगा, न स्नेहा और न मैं. कपड़ा जरा सा फटा हो तो उस में से थोड़ा ही दिखाई देता है, यदि पूरा का पूरा फट जाए तो कोई क्या छिपा पाएगा?

मन हुआ था कि शांति से जीने के लिए इस जलालतभरी जिंदगी से हमेशाहमेशा के लिए दूर हो जाऊं. घर बेच कर, इन्हें बेघर कर दूं और वृद्धाश्रम चला जाऊं. तब न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी. इन रिश्तों के लिए मैं मर जाऊंगा. फिर स्नेहा किसे अपना क्रोध दिखाएगी? प्रतीक किस से यह कहेगा कि जरा इस तरफ भी अपना ध्यान लगाइए?

वृद्धाश्रम के हाल ही कौन से अच्छे होते हैं. वहां अजीब तरह की छीछालेदर होती है. संचालक से ले कर इनमेट तक आप को नोंचने लगते हैं. प्रश्न पर प्रश्न. क्या हुआ? बच्चों ने निकाल दिया? बच्चे मारतेपीटते थे? कोई बीमारी है? दवादारू नहीं करते थे? खाना नहीं देते थे? भैया, अगर कुछ पैसों का जुगाड़ हो सके तो यहां से खिसक लो. किराए का मकान लो और अपनी मरजी की जिंदगी जिओ.  आश्रम नाम के सेवाधाम होते हैं, किसी जेल से कम नहीं हैं वे. मैं तो इन बेतुके प्रश्नों का उत्तर देतेदेते ही मर जाऊंगा.

दूसरे पल ही मेरी इस सोच को मन नकार गया. मेरे निश्चय की दृढ़ता तोड़ने लगा. मन ने मुझे समझाया कि यदि मैं ने ऐसा कदम उठाया तो स्नेहरूपी घर को बनाए रखने के सपने का क्या होगा? मैं अपने पैर पर आप ही कुल्हाड़ी नहीं मार लूंगा? मन ने यह भी समझाया कि एक क्षण तो मैं झगड़ों और मनमुटाव की बातों को घर से बाहर न जाने देने की बात सोचता हूं, फिर दूसरे ही पल वृद्धाश्रम जाने की बात करता हूं. यह विरोधाभास क्यों? क्या मेरे रिश्ते इस तरह हमेशा के लिए नहीं टूट जाएंगे?

हमारी पीढ़ी के लोग कहेंगे कि कैसे मतलबी होते हैं आज के बच्चे? जिन्होंने जरा से खर्च के बोझ की खातिर बूढ़े बाप को घर से निकाल दिया. इस पीढ़ी के बच्चे सोचेंगे कि घर आखिर घर होता है. उस में हमेशा कूड़ा जमा किए रखने की कोई जगह नहीं होती. प्रतीक और स्नेहा ने ठीक ही किया. कम से कम अब बूढ़े से कोई अटक तो नहीं रहेगी, और न रहेगी हर वक्त की चखचख. दोनों अब अपने तरीके से जी तो सकेंगे.

दोपहर को मेरे सोने का समय होता है. तब तक घर के सभी काम खत्म हो जाते हैं. खाना बनाने वाली मेरे लिए खाना बना कर जा चुकी होती है. उस के जाने के बाद मैं तसल्ली से खाना खाता हूं और खा कर सो जाता हूं. शाम को काम का सिलसिला 5 बजे से शुरू होता है. उस से कुछ पहले उठ कर मैं चाय पीता हूं और नौकरों के आने का इंतजार करने लगता हूं.

पर आज मुझे नींद ही नहीं आई. लाख चाहा कि प्रतीक और स्नेहा के किए बरताव को भूल जाऊं. घर जिस तरह चल रहा है, चलने दूं. पर अपनों के दिए घाव कुछ इतने गहरे होते हैं कि कभी सूखते ही नहीं. सोचने लगा कि सुनयना की मृत्यु के बाद से ही, ऐसा क्या हो गया कि बच्चे इतना अकड़ने लगे हैं? अभद्र व्यवहार करने का दुस्साहस करने लगे हैं.

मैं सोचने लगा कि बढ़ती हुई उम्र के साथ मेरी मजबूरियां बढ़ गई हैं. मैं अशक्त हो गया हूं. हाथपैर अब साथ नहीं देते. बीमारियों ने शरीर पर अपना कब्जा कर लिया है. एक जाती है तो दूसरी आती है. कुछ तो पक्का घर बना बैठी हैं. यदि डाक्टरों की बात मानूं तो जिंदगी एकचौथाई ही बची है. दिमाग दगा दे चुका है. क्या सही है और क्या गलत, समझ में ही नहीं आता. मन और मस्तिष्क के बीच उठापटक चलती रहती है. पूंजी के नाम पर अब केवल यह मकान ही है. बाकी जो थी वह सुनयना की बीमारी में खत्म हो गई. जराजरा सी जरूरतों के लिए मुझे इन बच्चों पर ही निर्भर रहना पड़ता है. शायद ये मजबूरियां ही इन की अकड़ और अभद्र व्यवहार का कारण हों? केवल मेरी ही नहीं, इन की भी तो मजबूरियां हैं. दिल्ली में मकान खरीदना आसान बात नहीं है. मकानों की कीमतें दिनदूनी रात चौगुनी बढ़ती जा रही हैं. इस उम्र में महंगे मकान खरीदने का पैसा इन के पास नहीं है. ये इसीलिए इस घर में टिके हुए हैं, वरना कभी का मुझे अकेला छोड़ कर चले गए होते.

दूसरी मजबूरी यह है कि इन्हें एक होलटाइमर नौकर नहीं मिल रहा है. निश्चित रूप से इन का यह व्यवहार इसी कारण है. मन ने कहा, ‘मैं मजबूर जरूर हूं, पर इतना लाचार भी नहीं कि अपने स्वाभिमान की चिता जला दूं. अब मैं किसी हालत में इन से समझौता नहीं करूंगा. मैं ने निश्चय कर लिया कि मकान बेच दूंगा और किराए के मकान में रह कर जिंदगी गुजार दूंगा.’

शाम को प्रतीक और स्नेहा के घर लौटने से पहले प्रौपर्टी ब्रोकर आ गया. मकान देख कर दूसरे दिन खरीदार लाने का वादा कर के चला गया. जब प्रतीक और स्नेहा घर लौटे तो रोजमर्रा की तरह मैं ने ही दरवाजा खोला. मैं उन से सख्त नाराज था. मैं ने उन की तरफ देखा भी नहीं. दरवाजा खोल कर अपने कमरे में चला गया. वे दोनों भी अपने कमरे में चले गए. सोते वक्त जी बहुत हलकाहलका लगा. तनाव भी कम हो गया था.

बडे़ सवेरे ब्रोकर खरीदार ले कर आ गया. उस समय प्रतीक और स्नेहा दोनों ही घर में थे. इस से पहले कि मैं ब्रोकर से कुछ बात कर पाऊं, प्रतीक ब्रोकर से बोला, ‘‘कहिए?’’

‘‘ये सज्जन इस मकान को खरीदना चाहते हैं,’’ ब्रोकर ने अपने साथ आए खरीदार की ओर इशारा करते हुए कहा.

अब इस से पहले कि प्रतीक कुछ और पूछ पाए, मैं बोल उठा, ‘‘मैं यह मकान बेच रहा हूं.’’

‘‘आप मकान बेच रहे हैं, क्यों?’’ प्रतीक मेरे इस फैसले पर अचंभित दिखा.

‘‘मेरी मरजी.’’

‘‘यह मकान नहीं बिकेगा. यह मैं कह रहा हूं,’’ प्रतीक ने अब ब्रोकर की तरफ मुड़ कर कहा, ‘‘आप जाइए, प्लीज. बाबा ने यह फैसला जरा जल्दी में ले लिया है. अगर हम पक्का निर्णय ले सके तो मैं खुद आप को फोन कर के बुला लूंगा.’’

ब्रोकर और परचेजर दोनों लौट गए. मेरे क्रोध की सीमा टूटने वाली ही थी कि प्रतीक मुझ से बोला, ‘‘यह आप क्या करने जा रहे थे, बाबा? अपना प्यारा सा घर बेच रहे थे? आखिर क्यों?’’

‘‘ताकि मैं तुम लोगों के अत्याचार से छुटकारा पा सकूं. जीवन के जो आखिरी दिन बचे हैं, उन्हें चैन से जी सकूं. मुझे नौकर बना कर छोड़ दिया है तुम दोनों ने. बच्चे मुझे अपमानित करें, यह मैं कभी बरदाश्त नहीं कर सकता,’’ मैं आवेश में कांपने लगा था.

प्रतीक मुझे बांहों से थामते हुए बोला, ‘‘बाबा, मैं आप के आक्रोश का कारण समझ गया हूं. आप पहले बैठिए.’’

मुझे कुरसी पर बिठाने के बाद वह और स्नेहा फर्श पर मेरे समीप ही बैठ गए. प्रतीक ने मेरा हाथ अपने हाथों में लेते हुए बोलना शुरू किया, ‘‘आप स्नेहा और मेरे व्यवहार से नाराज हैं, मैं समझ चुका हूं. हम भी पश्चात्ताप में जल रहे हैं, यह हमारा सच है. हम आप से इस व्यवहार के लिए क्षमा मांगना चाहते थे, पर आप के खौफ के कारण हम आप का सामना करने की हिम्मत नहीं जुटा पाए. हमारे ही व्यवहार के कारण यह घर बिखर जाएगा. बाबा, हम उन बच्चों में से नहीं हैं जो घर में अपने बुजुर्गों की अहमियत नहीं समझते. दरअसल, दिनभर की भागमभाग और काम की टैंशन हमें इतना चिड़चिड़ा कर देती है कि हम कभीकभी यह भूल जाते हैं कि हम किस से बातें कर रहे हैं और क्या बातें कर रहे हैं.’’

प्रतीक की इन बातों से मेरा क्रोध कुछ शांत हुआ. मैं ने प्रतीक और स्नेहा के चेहरों को पढ़ा. वास्तव में पश्चात्ताप उन के चेहरों पर डोल रहा था. संवेदनाओं के बादल उमड़घुमड़ रहे थे. किसी भी समय आंसुओं की बारिश संभव थी.

प्रतीक ने अपनी बात आगे बढ़ाई, ‘‘बाबा, पहले तो आप यह समझ लीजिए कि आप हम पर बोझ नहीं हैं. आप मजबूर भी नहीं हैं और यह भी कि हम भविष्य में आप को अकेला छोड़ कर कहीं जाने वाले नहीं हैं. घर में आप का स्थान नौकरों का भी नहीं है. आप जरा मेरे साथ हमारे कमरे में चलिए. वहां मंदिर को देखिए और खुद तय कर लीजिए कि हमारे दिल में आप का स्थान कहां है? सोचिए, यदि घर में 3 प्राणी हों और उन में से 2 सुबह से रात तक घर से बाहर रहते हों तो पीछे से घर कौन संभालेगा? वही जो घर में रहता हो.’’

प्रतीक ने लंबी सांस ली. भर आई आंखों को अपने रूमाल से पोंछा. स्नेहा ने भी अपनी आंखें पोंछी. प्रतीक फिर बोल उठा, ‘‘होता यह है कि जीवन की मुख्यधारा से अलगथलग पड़ते बुजुर्ग अपनेआप को असुरक्षित महसूस करने लगते हैं. इंसीक्योरिटी की यह भावना उन में डर और शंकाओं को जन्म देती है. वे हर वक्त यही सोचते रहते हैं कि उन के इस बुरे वक्त में उन का सहारा कौन बनेगा? बच्चे उन की आंखों से दूर हो जाएं तो लगता है कि बच्चों को भी उन की परवा नहीं है. यह इंसिक्योरिटी की भावना फिर उन्हें सही सोचने ही नहीं देती.

‘‘हमारी पीढ़ी भी बाबा, बुजुर्गों के प्रति कुछ कम लापरवाह नहीं है. हम खुली जिंदगी जीना चाहते हैं. कोई रोकटोक और अनुशासन हमें पसंद नहीं. जब हम घर से बाहर होते हैं, खुले आकाश में आजाद पंछियों की तरह उड़ते हैं. जो जी चाहे करते हैं और जब घर में घुसते हैं तो हमारी आजादी के पंख कट जाते हैं. हम घर में फड़फड़ाते रहते हैं. बुजुर्गों का दबदबा, खौफ और घर का अनुशासन घुटन पैदा करने लगता है. तब हमारा भी मन करता है कि इस घुटनभरी जिंदगी से दूर भाग जाएं. ऐसे में दोनों पीढि़यों के बीच सामंजस्य नहीं बन पाता. दोनों पीढि़यां ही मानने लगती हैं कि घर में यदि सासबहू हैं, तो झगड़ा तो होगा ही. बुजुर्ग और युवा साथसाथ रहते हैं, तो टकराव तो होगा ही.’’

मैं प्रतीक को एकटक देखता ही चला गया. सोचने लगा, मेरा छोटा सा बच्चा इतना विद्वान कब हो गया, मुझे पता ही नहीं चल पाया. कितनी नजदीकी से इस ने जिंदगी को पढ़ा है. मुझे मेरे सोच गड़बड़ाते हुए लगने लगे. प्रतीत हुआ कि शायद मैं ही गलत था.

प्रतीक फिर बोल उठा, ‘‘बाबा, आप ने हमें सिखाया था कि घर तो सभी बना लेते हैं. आदर्श घर भी बनाए जा सकते हैं पर घर को प्यार भरा घर बनाना असंभव नहीं तो दूभर तो होता ही है. ऐसा घर रिश्तों में प्यार व स्नेह की भावना से बनता है. जो रिश्ता टूट जाए, समझ लो वहां प्यार था ही नहीं. बड़ा होतेहोते इस सीख का सही अर्थ मैं समझ गया हूं. यदि मैं गलत नहीं हूं तो घर सिर्फ ईंटगारे का बना होता है.

‘‘आदर्श घर वह होता है जहां रिश्ते एकदूसरे का आदर करते हैं. वहां ससुर ससुर होते हैं, सास सास और बहू बहू. उन में आदर तो होता है, प्यार नहीं. और घर वही मधुवन बन पाता है जहां रिश्तों में प्यार होता है. वहां न ससुर होते हैं, न सास और न बहू. तीनों के बीच आदर से अधिक एकदूसरे के लिए प्यार होता है.’’

उस ने मुझे देखा, शायद मेरे चेहरे पर उभरे भावों को पढ़ने के लिए. फिर बोला, ‘‘बाबा, हम इस घर को केवल आदर्श घर ही बना सके, महकतागमकता उपवन नहीं. यह घर आज तक आप के खौफ में जिया है. हम डरतेडरते जीते रहे हैं. रिश्तों में प्यार था कहां? सिर्फ खौफ था. घर में घुसने की इच्छा नहीं होती थी. लगता था कि हम जेल में घुस रहे हैं. आज भी हमारे संबंधों में वह खुलापन है कहां? हम जो खुली जिंदगी जीना चाहते हैं, वह है कहां?’’

‘‘बस बेटे, बस…’’ मैं ने उठ कर दोनों बच्चों को गले लगा लिया और कहा, ‘‘घर में गलत मैं ही था. जो सीख मैं तुम लोगों को देता रहा, मैं ने खुद उस पर अमल नहीं किया. अभी इसी वक्त मैं ने अपने खौफ का गला घोंट दिया है. अब हम तीनों आपस में मित्र हैं. ससुर, बेटा या बहू नहीं.’’

दोनों बच्चे मुझ से लिपटलिपट कर रोने लगे. मेरी आंखें भी बिना बहे न रह पाईं. अब मैं ने अपना कमरा, जो घर के मुख्यद्वार के पास था, उन्हें दे कर खुद को घर के पिछवाड़े में शिफ्ट कर लिया है ताकि बच्चे अपनी खुली जिंदगी जी सकें. मुख्यद्वार पर लगी अपनी नेमप्लेट हटा कर प्रतीक के नाम की लगवा दी है. अब हम तीनों जब साथ बैठते हैं तो हंसीठट्ठे ही सुनाई देते हैं.

अब घर से बाहर जो भी बुजुर्ग या युवा मुझ से मिलते हैं, मैं सभी से

कहता हूं कि यदि घर को घर बनाए रखना है तो बुजुर्ग अपना रौबदाब

छोड़ें, बच्चों को खुली जिंदगी दें और बच्चे अपने बुजुर्गों को कूड़ा न समझें, उन का खयाल रखें. विचारों का यह तालमेल घर में प्यार ही प्यार भर देगा. वह प्यार जो सब को आपस में जोड़ता है, एकदूसरे से तोड़ता नहीं.

– सतीश सक्सेना

Happy New Year 2025 : समझौते की एक सुखद सफलता

Happy New Year 2025 : जब मां का फोन आया, तब मैं बाथरूम से बाहर निकल रहा था. मेरे रिसीवर उठाने से पहले ही शिखा ने फोन पर वार्त्तालाप आरंभ कर दिया था. मां उस से कह रही थीं, ‘‘शिखा, मैं ने तुम्हें एक सलाह देने के लिए फोन किया है. मैं जो कुछ कहने जा रही हूं, वह सिर्फ मेरी सलाह है, सास होने के नाते आदेश नहीं. उम्मीद है तुम उस पर विचार करोगी और हो सका तो मानोगी भी…’’

‘‘बोलिए, मांजी?’’ ‘‘बेटी, तुम्हारे देवर पंकज की शादी है. वह कोई गैर नहीं, तुम्हारे पति का सगा भाई है. तुम दोनों के व्यापार अलग हैं, घर अलग हैं, कुछ भी तो साझा नहीं है. फिर भी तुम लोगों के बीच मधुर संबंध नहीं हैं बल्कि यह कहना अधिक सही होगा कि संबंध टूट चुके हैं. मैं तो समझती हूं कि अलगअलग रह कर संबंधों को निभाना ज्यादा आसान हो जाता है.

‘‘वैसे उस की गलती क्या है…बस यही कि उस ने तुम दोनों को इस नए शहर में बुलाया, अपने साथ रखा और नए सिरे से व्यापार शुरू करने को प्रोत्साहित किया. हो सकता है, उस के साथ रहने में तुम्हें कुछ परेशानी हुई हो, एकदूसरे से कुछ शिकायतें भी हों, किंतु इन बातों से क्या रिश्ते समाप्त हो जाते हैं? उस की सगाई में तो तुम नहीं आई थीं, किंतु शादी में जरूर आना. बहू का फर्ज परिवार को जोड़ना होना चाहिए.’’ ‘‘तो क्या मैं ने रिश्तों को तोड़ा है? पंकज ही सब जगह हमारी बुराई करते फिरते हैं. लोगों से यहां तक कहा है, ‘मेरा बस चले तो भाभी को गोली मार दूं. उस ने आते ही हम दोनों भाइयों के बीच दरार डाल दी.’ मांजी, दरार डालने वाली मैं कौन होती हूं? असल में पंकज के भाई ही उन से खुश नहीं हैं. मुझे तो अपने पति की पसंद के हिसाब से चलना पड़ेगा. वे कहेंगे तो आ जाऊंगी.’’

‘‘देखो, मैं यह तो नहीं कहती कि तुम ने रिश्ते को तोड़ा है, लेकिन जोड़ने का प्रयास भी नहीं किया. रही बात लोगों के कहने की, तो कुछ लोगों का काम ही यही होता है. वे इधरउधर की झूठी बातें कर के परिवार में, संबंधों में फूट डालते रहते हैं और झगड़ा करा कर मजा लूटते हैं. तुम्हारी गलती बस इतनी है कि तुम ने दूसरों की बातों पर विश्वास कर लिया. ‘‘देखो शिखा, मैं ने आज तक कभी तुम्हारे सामने चर्चा नहीं की है, किंतु आज कह रही हूं. तुम्हारी शादी के बाद कई लोगों ने हम से कहा, ‘आप कैसी लड़की को बहू बना कर ले आए. इस ने अपनी भाभी को चैन से नहीं जीने दिया, बहुत सताया. अपनी भाभी की हत्या के सिलसिले में इस का नाम भी पुलिस में दर्ज था. कुंआरी लड़की है, शादी में दिक्कतें आएंगी, यही सोच कर रिश्वत खिला कर उस का नाम, घर वालों ने उस केस से निकलवाया है.’

‘‘अगर शादी से पहले हमें यह समाचार मिलता तो शायद हम सचाई जानने के लिए प्रयास भी करते, लेकिन तब तक तुम बहू बन कर हमारे घर आ चुकी थीं. कहने वालों को हम ने फटकार कर भगा दिया था. यह सब बता कर मैं तुम्हें दुखी नहीं करना चाहती, बल्कि कहना यह चाहती हूं कि आंखें बंद कर के लोगों की बातों पर विश्वास नहीं करना चाहिए. खैर, मैं ने तुम्हें शादी में आने की सलाह देने के लिए फोन किया है, मानना न मानना तुम्हारी मरजी पर निर्भर करता है,’’ इतना कह कर मां ने फोन काट दिया था. मां ने कई बार मुझे भी समझाने की कोशिश की थी, किंतु मैं ने उन की पूरी बात कभी नहीं सुनी. बल्कि,? उन पर यही दोषारोपण करता रहा कि वह मुझ से ज्यादा पंकज को प्यार करती हैं, इसलिए उन्हें मेरा ही दोष नजर आता है, पंकज का नहीं. इस पर वे हमेशा यहां से रोती हुई ही लौटी थीं.

लेकिन सचाई तो यह थी कि मैं खुद भी पंकज के खिलाफ था. हमेशा दूसरों की बातों पर विश्वास करता रहा. इस तरह हम दोनों भाइयों के बीच खाई चौड़ी होती चली गई. लेकिन फोन पर की गई मां की बातें सुन कर कुछ हद तक उन से सहमत ही हुआ. मां यहां नहीं रहती थीं. शादी की वजह से ही पंकज के पास उस के घर आई हुई थीं. वे हम दोनों भाइयों के बीच अच्छे संबंध न होने की वजह से बहुत दुखी रहतीं इसीलिए यहां बहुत कम ही आतीं.

लोग सही कहते हैं, अधिकतर पति पारिवारिक रिश्तों को निभाने के मामले में पत्नी पर निर्भर हो जाते हैं. उस की नजरों से ही अपने रिश्तों का मूल्यांकन करने लगते हैं. शायद यही वजह है, पुरुष अपने मातापिता, भाईबहनों आदि से दूर होते जाते हैं और ससुराल वालों के नजदीक होते जाते हैं.

दूसरों शब्दों में यों भी कहा जा सकता है कि महिलाएं, पुरुषों की तुलना में अपने रक्त संबंधों के प्रति अधिक वफादार होती हैं. इसीलिए अपने मायके वालों से उन के संबंध मधुर बने रहते हैं. बल्कि कड़ी बन कर वे पतियों को भी अपने परिवार से जोड़ने का प्रयास करती रहती हैं. वैसे पुरुष का अपनी ससुराल से जुड़ना गलत नहीं है. गलत है तो यह कि पुरुष रिश्तों में संतुलन नहीं रख पाते, वे नए परिवार से तो जुड़ते हैं, किंतु धीरेधीरे अपने परिवार से दूर होते चले जाते हैं. भाईभाई में, भाईबहनों में कहासुनी कहां नहीं होती. लेकिन इस का मतलब यह तो नहीं होता कि संबंध समाप्त

कर लिए जाएं. मेरे साथ यही हुआ, जानेअनजाने मैं पंकज से ही नहीं, अपने परिवार के अन्य सदस्यों से भी दूर होता चला गया. सही माने में देखा जाए तो संपन्नता व कामयाबी के जिस शिखर पर बैठ कर मैं व मेरी पत्नी गर्व महसूस कर रहे थे, उस की जमीन मेरे लिए पंकज ने ही तैयार की थी. उस के पूर्ण सहयोग व प्रोत्साहन के बिना अपनी पत्नी के साथ मैं इस अजनबी शहर में आने व अल्प पूंजी से नए सिरे से व्यवसाय शुरू करने की बात सोच भी नहीं सकता था. उस का आभार मानने के बदले मैं ने उस रिश्ते को दफन कर दिया. मेरी उन्नति में मेरी ससुराल वालों का 1 प्रतिशत भी योगदान नहीं था, किंतु धीरेधीरे वही मेरे नजदीक होते गए. दोष शिखा का नहीं, मेरा था. मैं ही अपने निकटतम रिश्तों के प्रति ईमानदार नहीं रहा. जब मैं ने ही उन के प्रति उपेक्षा का भाव अपनाया तो मेरी पत्नी शिखा भला उन रिश्तों की कद्र क्यों करती?

समाज में साथ रहने वाले मित्र, पड़ोसी, परिचित सब हमारे हिसाब से नहीं चलते. हम में मतभेद भी होते हैं. एकदूसरे से नाखुश भी होते हैं, आगेपीछे एकदूसरे की आलोचना भी करते हैं, लेकिन फिर भी संबंधों का निर्वाह करते हैं. उन के दुखसुख में शामिल होते हैं. फिर अपनों के प्रति हम इतने कठोर क्यों हो जाते हैं? उन की जराजरा सी त्रुटियों को बढ़ाचढ़ा कर क्यों देखते हैं? कुछ बातों को नजरअंदाज क्यों नहीं कर पाते? तिल का ताड़ क्यों बना देते हैं? मैं सोचने लगा, पंकज मेरा सगा भाई है. यदि जानेअनजाने उस ने कुछ गलत किया या कहा भी है तो आपस में मिलबैठ कर मतभेद मिटाने का प्रयास भी तो कर सकते थे. गलतफहमियों को दूर करने के बदले हम रिश्तों को समाप्त करने के लिए कमर कस लें, यह तो समझदारी नहीं है. असलियत तो यह है कि कुछ शातिर लोगों ने दोस्ती का ढोंग रचाते हुए हमें एकदूसरे के विरुद्ध भड़काया, हमारे बीच की खाई को गहरा किया. हमारी नासमझी की वजह से वे अपनी कोशिश में कामयाब भी रहे, क्योंकि हम ने अपनों की तुलना में गैरों पर विश्वास किया.

मैं ने निर्णय कर लिया कि अपने फैसले मैं खुद लूंगा. पंकज की शादी में शिखा जाए या न जाए, किंतु मैं समय पर पहुंच कर भाई का फर्ज निभाऊंगा. उस की सगाई में भी शिखा की वजह से ही मैं तब पहुंचा, जब प्रोग्राम समाप्त हो चुका था. सगाई वाले दिन मैं जल्दी ही दुकान बंद कर के घर आ गया था, लेकिन शिखा ने कलह शुरू कर दिया था. वह पंकज के प्रति शिकायतों का पुराना पुलिंदा खोल कर बैठ गई थी. उस ने मेरा मूड इतना खराब कर दिया था कि जाने का उत्साह ही ठंडा पड़ गया. मैं बिस्तर पर पड़ापड़ा सो गया था. जब नींद खुली तो रात के 10 बज रहे थे. मन अंदर से कहीं कचोट रहा था कि तेरे सगे भाई की सगाई है और तू यहां घर में पड़ा है. फिर मैं बिना कुछ विचार किए, देर से ही सही, पंकज के घर चला गया था.

मानव का स्वभाव है कि अपनी गलती न मान कर दोष दूसरे के सिर पर मढ़ देता है, जैसे कि वह दोष मैं ने शिखा के सिर पर मढ़ दिया. ठीक है, शिखा ने मुझे रोकने का प्रयास अवश्य किया था किंतु मेरे पैरों में बेड़ी तो नहीं डाली थी. दोषी मैं ही था. वह तो दूसरे घर से आई थी. नए रिश्तों में एकदम से लगाव नहीं होता. मुझे ही कड़ी बन कर उस को अपने परिवार से जोड़ना चाहिए था, जैसे उस ने मुझे अपने परिवार से जोड़ लिया था.

शिखा की सिसकियों की आवाज से मेरा ध्यान भंग हुआ. वह बाहर वाले कमरे में थी. उसे मालूम नहीं था कि मैं नहा कर बाहर आ चुका हूं और फोन की पैरलेल लाइन पर मां व उस की पूरी बातें सुन चुका हूं. मैं सहजता से बाहर गया और उस से पूछा, ‘‘शिखा, रो क्यों रही हो?’’ ‘‘मुझे रुलाने का ठेका तो तुम्हारे घर वालों ने ले रखा है. अभी आप की मां का फोन आया था. आप को तो पता है न, मेरी भाभी ने आत्महत्या की थी. आप की मां ने आरोप लगाया है कि भाभी की हत्या की साजिश में मैं भी शामिल थी,’’ कह कर वह जोर से रोने लगी.

‘‘बस, यही आरोप लगाने के लिए उन्होंने फोन किया था?’’ ‘‘उन के हिसाब से मैं ने रिश्तों को तोड़ा है. फिर भी वे चाहती हैं कि मैं पंकज की शादी में जाऊं. मैं इस शादी में हरगिज नहीं जाऊंगी, यह मेरा अंतिम फैसला है. तुम्हें भी वहां नहीं जाना चाहिए.’’

‘‘सुनो, हम दोनों अपनाअपना फैसला करने के लिए स्वतंत्र हैं. मैं चाहते हुए भी तुम्हें पंकज के यहां चलने के लिए बाध्य नहीं करना चाहता. किंतु अपना निर्णय लेने के लिए मैं स्वतंत्र हूं. मुझे तुम्हारी सलाह नहीं चाहिए.’’ ‘‘तो तुम जाओगे? पंकज तुम्हारे व मेरे लिए जगहजगह इतना जहर उगलता फिरता है, फिर भी जाओगे?’’

‘‘उस ने कभी मुझ से या मेरे सामने ऐसा नहीं कहा. लोगों के कहने पर हमें पूरी तरह विश्वास नहीं करना चाहिए. लोगों के कहने की परवा मैं ने की होती तो तुम को कभी भी वह प्यार न दे पाता, जो मैं ने तुम्हें दिया है. अभी तुम मांजी द्वारा आरोप लगाए जाने की बात कर रही थीं. पर वह उन्होंने नहीं लगाया. लोगों ने उन्हें ऐसा बताया होगा. आज तक मैं ने भी इस बारे में तुम से कुछ पूछा या कहा नहीं. आज कह रहा हूं… तुम्हारे ही कुछ परिचितों व रिश्तेदारों ने मुझ से भी कहा कि शिखा बहुत तेजमिजाज लड़की है. अपनी भाभी को इस ने कभी चैन से नहीं जीने दिया. इस के जुल्मों से परेशान हो कर भाभी की मौत हुई थी. पता नहीं वह हत्या थी या आत्महत्या…लेकिन मैं ने उन लोगों की परवा नहीं की…’’ ‘‘पर तुम ने उन की बातों पर विश्वास कर लिया? क्या तुम भी मुझे अपराधी समझते हो?’’

‘‘मैं तुम्हें अपराधी नहीं समझता. न ही मैं ने उन लोगों की बातों पर विश्वास किया था. अगर विश्वास किया होता तो तुम से शादी न करता. तुम से बस एक सवाल करना चाहता हूं, लोग जब किसी के बारे में कुछ कहते हैं तो क्या हमें उस बात पर विश्वास कर लेना चाहिए.’’

‘‘मैं तो बस इतना जानती हूं कि वह सब झूठ है. हम से जलने वालों ने यह अफवाह फैलाई थी. इसी वजह से मेरी शादी में कई बार रुकावटें आईं.’’ ‘‘मैं ने भी उसे सच नहीं माना, बस तुम्हें यह एहसास कराना चाहता हूं कि जैसे ये सब बातें झूठी हैं, वैसे ही पंकज के खिलाफ हमें भड़काने वालों की बातें भी झूठी हो सकती हैं. उन्हें हम सत्य क्यों मान रहे हैं?’’

‘‘लेकिन मुझे नहीं लगता कि वे बातें झूठी हैं. खैर, लोगों ने सच कहा हो या झूठ, मैं तो नहीं जाऊंगी. एक बार भी उन्होंने मुझ से शादी में आने को नहीं कहा.’’ ‘‘कैसे कहता, सगाई पर आने के लिए तुम से कितना आग्रह कर के गया था. यहां तक कि उस ने तुम से माफी भी मांगी थी. फिर भी तुम नहीं गईं. इतना घमंड अच्छा नहीं. उस की जगह मैं होता तो दोबारा बुलाने न आता.’’

‘‘सब नाटक था, लेकिन आज अचानक तुम्हें हो क्या गया है? आज तो पंकज की बड़ी तरफदारी की जा रही है?’’

तभी द्वार की घंटी बजी. पंकज आया था. उस ने शिखा से कहा, ‘‘भाभी, भैया से तो आप को साथ लाने को कह ही चुका हूं, आप से भी कह रहा हूं. आप आएंगी तो मुझे खुशी होगी. अब मैं चलता हूं, बहुत काम करने हैं.’’ पंकज प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा किए बिना लौट गया.

मैं ने पूछा, ‘‘अब तो तुम्हारी यह शिकायत भी दूर हो गई कि तुम से उस ने आने को नहीं कहा? अब क्या इरादा है?’’

‘‘इरादा क्या होना है, हमारे पड़ोसियों से तो एक सप्ताह पहले ही आने को कह गया था. मुझे एक दिन पहले न्योता देने आया है. असली बात तो यह है कि मेरा मन उन से इतना खट्टा हो गया है कि मैं जाना नहीं चाहती. मैं नहीं जाऊंगी.’’ ‘‘तुम्हारी मरजी,’’ कह कर मैं दुकान चला गया.

थोड़ी देर बाद ही शिखा का फोन आया, ‘‘सुनो, एक खुशखबरी है. मेरे भाई हिमांशु की शादी तय हो गई है. 10 दिन बाद ही शादी है. उस के बाद कई महीने तक शादियां नहीं होंगी. इसीलिए जल्दी शादी करने का निर्णय लिया है.’’

‘‘बधाई हो, कब जा रही हो?’’ ‘‘पूछ तो ऐसे रहे हो जैसे मैं अकेली ही जाऊंगी. तुम नहीं जाओगे?’’

‘‘तुम ने सही सोचा, तुम्हारे भाई की शादी है, तुम जाओ, मैं नहीं जाऊंगा.’’ ‘‘यह क्या हो गया है तुम्हें, कैसी बातें कर रहे हो? मेरे मांबाप की जगहंसाई कराने का इरादा है क्या? सब पूछेंगे, दामाद क्यों नहीं आया तो

क्या जवाब देंगे? लोग कई तरह की बातें बनाएंगे…’’ ‘‘बातें तो लोगों ने तब भी बनाई होंगी, जब एक ही शहर में रहते हुए, सगी भाभी हो कर भी तुम देवर की सगाई में नहीं गईं…और अब शादी में भी नहीं जाओगी. जगहंसाई क्या

यहां नहीं होगी या फिर इज्जत का ठेका तुम्हारे खानदान ने ही ले रखा है, हमारे खानदान की तो कोई इज्जत ही नहीं है?’’

‘‘मत करो तुलना दोनों खानदानों की. मेरे घर वाले तुम्हें बहुत प्यार करते हैं. क्या तुम्हारे घर वाले मुझे वह इज्जत व प्यार दे पाए?’’ ‘‘हरेक को इज्जत व प्यार अपने व्यवहार से मिलता है.’’

‘‘तो क्या तुम्हारा अंतिम फैसला है कि तुम मेरे भाई की शादी में नहीं जाओगे?’’ ‘‘अंतिम ही समझो. यदि तुम मेरे भाई की शादी में नहीं जाओगी तो

मैं भला तुम्हारे भाई की शादी में क्यों जाऊंगा?’’

‘‘अच्छा, तो तुम मुझे ब्लैकमेल कर रहे हो?’’ कह कर शिखा ने फोन रख दिया.

दूसरे दिन पंकज की शादी में शिखा को आया देख कर मांजी का चेहरा खुशी से खिल उठा था. पंकज भी बहुत खुश था.

मांजी ने स्नेह से शिखा की पीठ पर हाथ रखते हुए कहा, ‘‘बेटी, तुम आ गई, मैं बहुत खुश हूं. मुझे तुम से यही उम्मीद थी.’’ ‘‘आती कैसे नहीं, मैं आप की बहुत इज्जत करती हूं. आप के आग्रह को कैसे टाल सकती थी?’’

मैं मन ही मन मुसकराया. शिखा किन परिस्थितियों के कारण यहां आई, यह तो बस मैं ही जानता था. उस के ये संवाद भले ही झूठे थे, पर अपने सफल अभिनय द्वारा उस ने मां को प्रसन्न कर दिया था. यह हमारे बीच हुए समझौते की एक सुखद सफलता थी.

पंजाबी क्वीन हिमांशी खुराना का सूट फैशन करें ट्राय

पंजाबी गानों से फैंस का दिल जीत चुकीं एक्ट्रेस हिमांशी खुराना इन दिनों कलर्स के रियलिटी शो में नजर आ रही हैं. शो में हिमांशी को लेकर कईं खुलासे और लड़ाइयां होती रहती हैं, जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं. पंजाबी गानों में अपने लुक और एक्टिंग से फैंस का दिल जीत चुकीं हिमांशी का फैशन भी फैंस को काफी पसंद आता है. आज हम हिमांशी के फैशन की बात करेंगे. हिमांशी अक्सर पंजाबी लुक यानी सूट के नए-नए फैशन में नजर आती हैं. इसीलिए आज हम आपको हिमांशी के कुछ सूट लुक बताएंगे, जिसे आप वेडिंग सीजन में ट्राय कर सकती हैं.

1. मल्टी कलर सूट है परफेक्ट

अगर आप किसी फंक्शन में कुछ नया ट्राय करने का सोच रहे हैं तो हिमांशी खुराना का मल्टी कलर दुपट्टा आपके लिए परफेक्ट औप्शन रहेगा. मल्टी कलर सलवार के साथ मल्टी कलर दुपट्टा और ग्रीन कलर के कौम्बिनेशन वाला सूट आपके लिए परफेक्ट औप्शन है.

2. शरारा लुक है परफेक्ट

 

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आजकल शरारा लुक काफी पौपुलर है. शरारा के साथ सूट ग्रीन सूट और दुपट्टा आपके लिए परफेक्ट लुक है ये आपके लुक पर चार चांद लगा देगा. आप इसके साथ गोल्डन इयरिंग्स ट्राय कर सकती हैं ये आपके लिए परफेक्ट रहेगा.

3. वेडिंग फंक्शन के लिए परफेक्ट है ये सूट

 

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अगर आप वेडिंग फंक्शन में कोई सूट ट्राय करने का सोच रहे हैं तो आप हिमांशी खुराना का यैलो कलर के सूट के साथ पर्पल कलर का ये दुपट्टा आपके लिए परफेक्ट है. इसके साथ आप यैलो कलर के कौम्बिनेशन वाले इयरिंग्स ट्राय कर सकते हैं.

4. पिंक कलर है हमेशा परफेक्ट 

 

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पिंक कलर चाहे कोई भी पहने और किसी भी फंक्शन में पहने तो वह खूबसूरत लगेगा. पिंक कलर के एम्ब्रायडरी वाले सूट के साथ लूज पैंट ट्राय कर सकते हैं. इसके दुपट्टा अगर सूट हल्का है तो हैवी रखें.

5. अनारकली सूट करें ट्राय

वेडिंग में अक्सर अनारकली सूट देखने को मिलते हैं अगर आप भी वेडिंग फंक्शन में अनारकली सूट ट्राय करना चाहते हैं तो हिमांशी का डार्क स्काई ब्लू कलर का सूट ट्राय करना न भूलें. ये आपके लिए परफेक्ट लुक रहेगा.

लॉकडाउन में वजन बढ़ना और खराब स्वास्थ्य का कारण क्या खराब नींद हो सकती है?

48 वर्षीय आईटी प्रोफेशनल, भास्कर बोस का वजन हमेशा से ही अधिक था, लेकिन धूम्रपान के कारण उच्च रक्तचाप, फैटी लीवर, कोविड की समस्या के बावजूद पिछले साल लॉकडाउन से पहले तक पहले उनकी सारी समस्याएं नियंत्रित रह रही थी. लेकिन लॉकडाउन के बाद उन्हें घर से ही ऑफिस का काम करना पड़ा. उन्हें दिसंबर 2020 में सांस लेने में तकलीफ होने लगी जो कि नए साल तक दैनिक गतिविधियों के दौरान काफी बढ़ गई थी. उन्होंने सुस्ती भी रहने लगी और उन्हें महसूस होेने लगा कि रात में ठीक से सोने के बावजूद उन्हें दिन भर नींद आती रहती थी.

सौभाग्य से, उनके पारिवारिक चिकित्सक ने उन्हें पल्मोनोलॉजिस्ट से मिलने की सलाह दी. उनके व्यक्तिगत इतिहास की जाँच करने के बाद, उन्होंने बताया कि 2020 में लॉकडाउन के बाद से उनका वजन लगभग 25 किलोग्राम (110 किलोग्राम से लगभग 130 किलोग्राम तक) बढ़ गया और उनकी जीवन शैली निष्क्रिय हो गयी. यही नहीं‚ वे अत्यधिक पीने लगे, धूम्रपान करने लगे और उनकी नींद का पैटर्न भी अनियमित हो गया. उन्होंने अपने लैपटॉप का अत्यधिक उपयोग करने और अत्यधिक टीवी देखने की बात भी कही.

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क्लिनिक में, उन्हें सांस लेने में कठिनाई हो रही थी, यहाँ तक कि जब वे आराम कर रहे थे तब भी सांस लेने में दिक्कत हो रही थी. डॉक्टर के साथ बातचीत करते समय कभी-कभार उनकी सांस उखड़ रही थी. उन्होंने रक्तचाप का स्तर बढ़ा हुआ था और ऑक्सीजन का स्तर गिर रहा था. उसके बाद उनकी स्लीप स्टडी करायी गयी, जिसमें देखा गया कि उनकी पूरी रात की नींद के दौरान उनकी साँस प्रति घंटे 34 बार की दर से रुक रही थी और उसकी नींद की गुणवत्ता बहुत खराब थी. उनमें खराब नींद के साथ– साथ ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया (ओएसए) का निदान किया गया ओबेसिटी हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम (ओएचएस) होने की भी संभावना व्यक्त की गयी. इसके कारण रक्तचाप बढ़ना‚ तरल की कमी और कार्बन डाइऑक्साइड रिटेंशन के साथ रेस्पायरेटरी फेल्योर हो गया. उनके परीक्षणों से यह भी पता चला कि उन्हें फैटी लीवर और मधुमेह भी हो गया है.

मोटापा मधुमेह और दिल की समस्याओं का एक जाना-माना कारण है, लेकिन ये दुष्प्रभाव लंबे समय में देखे जाते हैं. लेकिन यह तथ्य कम लोगों को ही पता है कि मोटापा ऑब्सट्रक्टिव स्लीप एपनिया और ओबेसिटी हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम जैसी गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकता है जैसा कि श्री बी बी के साथ हुआ.

ओएसए एक ऐसी बीमारी है जो ऊपरी वायुमार्ग में रुकावट के कारण होती है, जो कुछ ऐसे मोटे रोगियों में नींद के दौरान सांस लेने में रुकावट पैदा करती है, जिनकी जन्म के समय से ही गर्दन मोटी और ऊपरी वायुमार्ग संकीर्ण होता है. सांस लेने में रुकावट से रात में रुक-रुक कर नींद टूटने लगती है, जिससे नींद की गुणवत्ता खराब हो जाती है. नतीजतन, ओएसए पीड़ित व्यक्ति दिन भर नींद महसूस करता है. जिसके कारण ओएसए पीड़ित व्यक्ति के ड्राइविंग करने पर विशेष रूप से सड़क यातायात दुर्घटनाओं का खतरा बना रहता है. इसके कारण स्ट्रेस हार्मोन के स्तर में वृद्धि हो सकती है जिसका शरीर पर दुष्प्रभाव हो सकता है और उच्च रक्तचाप हो सकता है. ओएसए के बहुत गंभीर होने पर नींद में अचानक मृत्यु हो सकती है. खराब नींद वाले लोगों (ओएसए के कारण) या अनियमित नींद की आदतों की वजह से खराब नींद वाले लोगों में  अक्सर मूड स्विंग और चिड़चिड़ापन होता है और कुछ हार्मोनल असंतुलन होता है जिसके कारण उन्हें अधिक भूख लगने लगती है और वे भोजन करने के बाद तृप्ति महसूस नहीं करते हैं और यह प्रवृत्ति आगे बढ़ती जाती है और इसके कारण वजन और भी अधिक बढ़ने लगता है और ओएसए के बढ़ने का एक दुष्चक्र शुरू हो जाता है.

मोटापा हाइपोवेंटिलेशन सिंड्रोम का अक्सर मोटापे से ग्रस्त ओएसए रोगियों के साथ संबंध होता है जिसके कारण दिन के समय रेस्पायरेटरी फेल्योर (सांस की तकलीफ), ऑक्सीजन के स्तर में कमी और कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि हो सकती है, शरीर में तरल पदार्थ की कमी हो सकती है और यह घातक हो सकता है.

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हालांकि ऐसे मामलों में वजन कम करने और मोटापे के दीर्घकालिक दुष्प्रभावों को दूर करने में समय लगता है, लेकिन अच्छी खबर यह है कि ओएसए और ओएचएस के कारण होने वाले मोटापे के तीव्र दुष्प्रभाव को पॉजिटिव एयरवे प्रेशर (पीएपी) नामक मेकैनिकल थेरेपी से तुरंत दूर किया जा सकता है. ये दो प्रकार के हो सकते हैं – बाईलेवल (बाई-पैप) और कंटीनुअस (सी-पैप). स्लीप मेडिसीन प्रशिक्षित पल्मोनोलॉजिस्ट रोगी का मार्गदर्शन कर सकता है कि कौन सी चिकित्सा उसके लिए सर्वोत्तम है.

मिस्टर बीबी को कुछ वाटर पिल्स के साथ बाई-पैप थेरेपी दी गई, जिससे उनके मूत्र में वृद्धि हुई और शरीर में तरल की मात्रा भी ठीक हो गयी. पहले सप्ताह में ही उनका वजन5 किलोग्राम कम हो गया, उनका रक्तचाप नियंत्रित हो गया, वह बिल्कुल अलग और तरोताजा महसूस कर रहे थे.

डॉ विकास मित्तल, प्रमुख कंसल्टेंट, पल्मोनोलॉजी एवं स्लीप मेडिसीन विभाग, Max Hospital, Shalimar Bagh से बातचीत पर आधारित.. 

19 दिन 19 टिप्स: हर ओकेजन के लिए परफेक्ट हैं ‘नायरा’ के ये खूबसूरत लहंगे

फेस्टिवल में नए-नए लहंगे ट्राय करना सभी को पसंद आता है. अगर आप भी इस जन्माष्टमी कुछ नया ट्राय करना चाहती हैं तो टीवी की स्टाइलिश बहुओं में से एक नायरा यानी शिवांगी जोशी के ये लहंगे एकदम परफेक्ट हैं. नायरा और कार्तिक की जोड़ी को फैन्स फौलो करना पसंद करता है. शिवांगी जितना अपनी एक्टिंग और कैरेक्टर के लिए फेमस है उतना ही वह अपने इंडियन लुक और स्टाइलिश के लिए भी फेमस है. इसीलिए आज हम आपको नायरा यानी शिवांगी के कुछ इंडियन लुक्स के बारे में बताएंगे, जिसे आप फेस्टिव सीजन में ट्राय कर सकतीं हैं.

1. नायरा का मिरर लहंगा करें ट्राई

 

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अगर आप भी मिरर लुक ट्राय करना चाहती हैं तो आप नायरा का डार्क ब्लू सिंपल औफ स्लीव ब्लाउज के साथ डार्क ब्लू कलर के मिरर कौम्बिनेशन में ट्राई कर सकती हैं.

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2. मौनसून वेडिंग के लिए ट्राय करें नायरा की ये ड्रेस

मौनसून में ज्यादातर लोग लाइट कलर के कपड़ें लेकिन ट्रैंडी कपड़े पहनना पसंद करते हैं. अगर आप भी किसी फेस्टिवल में जा रहे हैं तो नायरा की ये लाइट स्काई ब्लू लहंगा आपके लिए परफेक्ट औप्शन है. ये आपको कम्फर्ट के साथ-साथ स्टाइलिश लुक भी देगा.

3. नायरा का स्काई ब्लू और पिंक कौम्बिनेशन है बेस्ट

 

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अगर आप लाइट पिंक के साथ  कोई और कलर का कौम्बिनेशन बनाना चाहते हैं तो नायरा का ये स्काई ब्लू और पिंक कौम्बिनेशन का ये लहंगा आपके लिए परफेक्ट रहेगा.

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4. नायरा का फ्लौवर प्रिंट कौम्बिनेशन करें ट्राई

 

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फ्लौवर प्रिंट कपड़ें आजकल मार्केट में काफी पौपुलर है. आप चाहें तो नायरा की तरह ब्राउन कलर के लहंगे के कौम्बिनेशन को किसी भी शादी में ट्राय कर सकती हैं.

5.  हर शादी के लिए परफेक्ट है ब्लैक

 

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आजकल ब्लैक कलर काफी ट्रांड में है. ब्लैक कलर आपको भीड़ में भी अलग दिखाता है. नायरा का ये ब्लैक आउटफिट आपके लुक को स्टाइलिश और ट्रैंडी बनाएगा.

naira

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बता दें, इन दिनों अपने सीरियल ये रिश्ता कहलाता है में नायरा काफी स्टाइलिश लुक में नजर आ रहीं हैं. जिसके चलते उनके फैन्स उनकी काफी तारिफें कर रहें हैं.

19 दिन 19 टिप्स: ड्राय बालों के लिए घर में ऐसे बनाएं कंडीशनर

बाजार में आज कई तरह के कंडीशनर मौजूद हैं, जिन्हें आप अपने बालों को धोने से पहले इस्तेमाल करने के लिए छोड़ सकते हैं. इन में लीव-इन-कंडीशनर और रात भर डीप कंडीशनिंग ट्रीटमेंट भी उपलब्ध हैं. ये कंडीशनर बहुत अच्छा काम करते है पर अकसर  जेब पर भारी पड़ जाते है, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आप घर पर ही अपने बालों के लिए कंडीशनर बना सकते हैं. न केवल इन्हे बनाना सुपर आसान हैं बल्कि ये आप के घर में उपलब्ध चीज़ों से ही सस्ते में बन जाएंगे. साथ ही साथ इन में किसी रसायन का इस्तेमाल न होने से बालों के लिए भी सुरक्षित रहेंगे. हेयर एक्सपर्ट व हेयर ट्रांसप्लांट सर्जन डौ. अरविन्द पोसवाल बताते हैं कि कैसे घर पर बने कंडीशनर आप के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं :

  1. दही, हनी और नारियल के तेल का पेस्ट करें तैयार

ये सभी तत्व ड्राई बालों के लिए बहुत लाभकारी होते हैं क्योंकि वे नमी को बहाल करते हुए आप के बालों को हाइड्रेट करने में मदद करते हैं. यह फ्रिजी हेयर से बहुत अच्छी तरह से निपटते है और आपके बालों को मुलायम और चमकदार बनाए रखते है. दही और हनी का मिश्रण आप के बालों को एक दम अच्छे से कंडीशन और मौइस्चराइज करेगा और दूसरी ओर नारियल का तेल आप के बालों को डीप कंडीशनिंग के साथ पर्याप्त पोषण  पहुंचाएगा.

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ऐसे करें इस्तेमाल

एक कटोरे में दही, हनी और नारियल के तेल को मिला कर कंडीशनर तैयार कर लें. फिर अपने बालों को शैम्पू और गर्म पानी से धोएं. अपने बालों में से पानी को निचोड़ें और इस कंडीशनर को बालों में लगाएं.  15 मिनट बाद  इसे ठंडे या गुनगुने पानी से धो लें.

  1. अंडा है बेस्ट कंडिशनर

अंडे में बहुत सारे प्रोटीन, मिनरल्स और बी-कौम्प्लेक्स विटामिन के साथ पावर-पैक होते हैं जो बालों के लिए आवश्यक  हैं. ये पोषक तत्व विशेष रूप से बायोटिन और अन्य बी-कौम्प्लेक्स विटामिन आप के बालों की जड़ों को मजबूत कर के बालों के झड़ने से रोकने में मदद करते हैं.  बालों को घना करने और ड्राइनेस खत्म करने में भी मदद करेगा.

ऐसे करें इस्तेमाल

अंडों को अच्छे से फेंट लें और बालों को धोने के बाद फेंटें हुए अण्डों को अपने बालों पे लगाएं . कम से कम 20 मिनट तक इसे अपने बालों पर  लगा रहने दे और फिर इसे पानी से धो लें .

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  1. एलोवेरा और नींबू का करें इस्तेमाल

एलोवेरा में बालों को मजबूत, लम्बे, घने और ख़ूबसूरत बनाने के बहुत सारे गुण होते हैं. एलोवेरा बालों को मजबूत करता है और उनमें शाइन भी प्रदान करता है. साथ ही साथ यह डैंड्रफ को भी दूर करता है और बालों के ऊपर एक सुरक्षात्मक परत बनाता है जो बालों को धूल, मिटटी और प्रदूषण से भी बचाता है. एलोवेरा का नींबू के साथ मिश्रण हर तरह के इन्फेक्शन्स  दूर कर बालों को हेल्दी बनाता है.

ऐसे करें इस्तेमाल

एक कटोरे में एलोवेरा और नींबू मिला कर रख दें. अपने बालों को शैम्पू से अच्छी तरह धोएं और फिर इस कंडीशनर का इस्तेमाल करें. फिर 5 मिनट के बाद इसे ठंडा या गुनगुने पानी से धो लें.

  1. नारियल के तेल और प्याज के रस का बनाएं पेस्ट

नारियल का तेल स्कैल्प में अच्छी तरह से समा जाता है जिससे स्कैल्प तो हेल्दी होता ही है साथ ही बालों को भरपूर पोषण भी मिलता है. इससे बाल मजबूत बनाते है. साथ ही नारियल का तेल बालों को मुलायम बनाने के साथ चमक भी प्रदान करता है और डैंड्रफ व ड्राइनेस जैसी प्रौब्लमस के खिलाफ लड़ता है. यह बालों के टूटने और दो मुहें होने से रोकता है.

ऐसे करें इस्तेमाल

एक मिक्सर में नारियल के तेल और प्याज के रस को मिलाएं और मिश्रण सा बना लें. आप इस में निम्बू के रस को भी शामिल कर सकते हैं. इस मिश्रण को अपने स्कैल्प में लगाकर इसे 20 से 25 मिनट तक लगा छोड़ दें. बाद में अच्छी तरह से धो लें.

  1. दूध, बादाम का तेल और गुलाब जल

गुलाब जल बालों के रोमों को मौइस्चराइज करता है. यह बालों की जड़ों को पोषण और मजबूती देता है जो साथ ही बालों के स्वस्थ विकास को बढ़ावा देता है. बादाम का तेल बालों के झड़ने को रोकता है और इस के साथ गुलाब जल प्राकृतिक तरीके से स्वस्थ बालों की संख्या बढ़ा कर बालों की गुणवत्ता में सुधार करता है. इन तीनों नेचुरल प्रौडक्ट्स का पेस्ट आपके बालों के लिए बहुत बेहतर साबित हो सकता है.

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ऐसे करें इस्तेमाल

दूध, बादाम का तेल और गुलाब जल को एक कटोरे में मिलाएं और बालों को धोने के बाद उस पर लगाएं . इसे कम से कम 20 मिनट के लिए बालों पर लगा छोड़ दें . बाद में इसे हलके गर्म पानी से धो लें .

प्रोफेशनल टिप्स का भी करें इस्तेमाल

इन नेचुरल कंडीशनर्स के इस्तेमाल के बाद आप अपने बालों पर कम-से-कम हीट जनरेटिंग उत्पादों का इस्तेमाल करें. इन कंडीशनर्स का नियमित इस्तेमाल आप के बालों को स्वस्थ, घना, लंबा और चमकदार खूबसूरत बनाएगा.

19 दिन 19 टिप्स: 59 की उम्र में भी इतनी बोल्ड हैं आयुष्मान की ‘मम्मी’

फिल्म बधाई हो में आयुष्मान खुराना की मां का रोल निभाने वाली 59 साल की बौलीवुड एक्ट्रैस नीना गुप्ता पर्सनल लाइफ में मां होते हुए भी स्टाइल में पीछे नहीं है. नीना जितनी अपनी एक्टिंग के लिए जानी जाती हैं उतना ही अपने बोल्ड फैशन के लिए भी जानी जाती हैं. नीना अपने फैशन से यंग एक्ट्रेसेस को भी पीछे छोड़ रही हैं. जहां उम्र बढ़ते ही हम फैशन करना छोड़ देते हैं, वहीं नीना अपने फैशन को लेकर सुर्खियों में बनी रहती हैं. आइए आपको दिखाते हैं उनके कुछ खास लुक जिसे आप भी चाहें तो कौपी कर सकती हैं.

1. समर में beach के लिए परफेक्ट है नीना का ये लुक

 

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Missing Goa #flashbackmonday

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समर में अगर आप beach में घूमने जा रहे हैं तो ये लुक आपके लिए परफेक्ट है. डैनिम शौर्ट्स के साथ फ्लोरल टौप आपके लुक के लिए परफेक्ट रहेगा.

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2. पार्टी के लिए नीना का ये लुक करें ट्राई

 

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Glamorous banne ki koshish jari hai.. Wearing these lovely earrings and choker from the #MasabaxTribe collection!

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अगर आप समर में किसी पार्टी का हिस्सा बनने जा रही हैं तो नीना का ये लुक आपके लिए परफेक्ट है. वाइट कलर जितना आपको ठंडक देगा वहीं ये लुक सेक्सी भी दिखाएगा.

3. नीना शर्ट लुक जरूर करें ट्राई

 

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London mood

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अगर आप भी अपने आप को कूल और सिंपल लुक देना चाहती हैं तो ये लुक आपके लिए परफेक्ट रहेगा. ग्रे शर्ट के साथ वाइट शूज आपके लुक को समर में ठंडक देगा.

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4. ट्राउजर और टीशर्ट का ये लुक करें ट्राई

 

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Chef has promised khichdi Waiting

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अगर आप कही सिंपल लेकिन सेक्सी दिखना चाहती हैं तो नीना गुप्ता को ये ग्रीन आउटफिट आपके लिए परफेक्ट रहेगा. ये आपको कम्फरटेबल के साथ-साथ ट्रैंडी भी दिखाएगा.

5. डैनिम लुक करें टाई

 

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अगर आप को भी डैनिम का शौक है तो नीना गुप्ता का ये डैनिम लुक आपके लिए परफेक्ट रहेगा. सिंपल डैनिम जैकेट के साथ रिप्ड जींस आपके लुक को कम्प्लीट बनाएगा.

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बता दें, एक्ट्रेस नीना गुप्ता बौलीवुड ही नही टेलीविजन के कई सीरियल्स का हिस्सा रह चुकी हैं. जिसमें वह मां के लुक में अपनी एक्टिंग की छाप छोड़ चुकी हैं.

19 दिन 19 टिप्स: मेकअप हाइलाइटर का है जमाना

गरमी के मौसम में ज्यादा मेकअप करना यानी मेकअप को पसीने में बहाना है. ग्लोइंग स्किन के लिए महिलाएं न जाने कितने जतन करती हैं. कभी घरेलू नुस्खें तो कभी तरह-तरह के ब्यूटी प्रौडक्ट का इस्तेमाल, लेकिन गरमी में काम की व्यस्तता और भागदौड़ के कारण चेहरे का ग्लो फीका पड़ जाता है. ऐसे में इस्टेंट ग्लो के लिए आप हाइलाइटर का इस्तेमाल कर सकती हैं.

 कैसे करें हाइलाइटर का इस्तेमाल

हाईलाइटर मेकअप का एक बेहद जरूरी हिस्सा होता है. यह आपके चेहरे को खूबसूरत व चमकदार के साथ-साथ चेहरे के जरूरी हिस्सों को हाइलाइट भी करता है. हाइलाइटर इस्तेमाल करने से पहले मौइश्चराइजर का इस्तेमाल जरूर करें. चेहरे पर नमी रहने से हाइलाइटर का ग्लो निखर कर आता है. अगर आप बिलकुल सिंपल लुक चाहती हैं तो मौइश्चराइजर के बाद बीबी क्रीम का इस्तेमाल करें और अपने चीकबोन पर फेन ब्रश के मदद से हाइलाइटर लगाएं.

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हाइलाइटर को सिर्फ चीकबोन पर ही नहीं बल्कि चेहरे के हर उन हिस्सों पर लगाया जा सकता है, जहां सूरज की किरणें पड़ती हैं. जैसे- चीकबोन्स, आइब्रो ब्रोन्स, नाक की टिप,होंठों के ऊपर. यदि हाइलाइटर का प्रयोग सही तरीके से किया जाए तो यह आपके चेहरे को बहुत आट्रेक्टिव बना देता है. लेकिन इसका प्रयोग करते वक्त सावधानी बरतना बहुत जरूरी है क्योंकि अगर यह थोड़ा भी ज्यादा लग गया तो आपका चेहरा एक चमचमाता हुआ बल्ब दिखने लगेगा. हाईलाइटर कई प्रकार के होते हैं. आप आपने स्किन के अनुसार इसका इस्तेमाल कर सकती हैं.

 जब मेकअप हो हाई

गरमी के मौसम में शादी-विवाह जैसे फंकशन में तो अधिकतर महिलाओं के चेहरे पर उदासी छाई रहती है. ऐसे मौके पर खुद को सुंदर दिखाना हर महिला की इच्छा होती है. लेकिन अधिक गरमी के कारण मेकअप खराब न हो जाए यह सोच कर महिलाएं परेशान रहती हैं.

ऐसे में शादी-विवाह में वाटरप्रूफ मेकअप का इस्तेमाल करें. मैट फाउंडेशन और कौम्पैक्ट पाउडर का यूज करें. चेहरे पर ग्लो और चमक लाने के लिए हाईलाइटर और हल्का ब्लशर लगा लें.

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यदि आपका चेहरा ड्राई है तो आप लिक्विड फाउंडेशन में हल्का लिक्विड हाइलाइटर को मिलकर चेहरे पर लगा लें. आंखों के लिए मसकारा का इस्तेमाल करें. लिप्स पर हल्का हाइलाइटर लगाने के बाद लिपस्टिक लगाएं. मेकअप फिनिश करने बाद चेहरे पर मेकअप सेटिंग स्प्रे का इस्तेमाल करना न भूलें. इससे आपका मेकअप फैलेगा नहीं. इस लुक में आपका चेहरा बहुत नैचुरल और ग्लोइंग नजर आएगा.

हाइलाइटर के अनेक रूप

हाइलाइटर के कई प्रकार होते हैं- जैसे औयली स्किन वालों को हमेशा पाउडर हाईलाइटर का इस्तेमाल करना चाहिए. यदि आपकी स्किन ड्राइ है तो क्रीम बेस्ड हाइलाइटर का ही इस्तेमाल करें. यह आपकी रूखी त्वचा को मौइश्चराइज भी करता है.

याद रहे जब भी कोई भी ब्यूटि प्रौडक्ट खरीदें अपने स्किन टोन को ध्यान में रख कर हाईलाइटर भी स्किन टोन के अनुसार ही खरीदें. फेयर स्किन के लिए पर्ली, शैमपेन शीन हाईलाइटर का इस्तेमाल करना चाहिए. यदि आपकी स्किन टोन मीडियम या टैंड लुक वाली है तो आप गोल्ड ब्रोंज, पीच, महरून या सैंड शेड वाला हाइलाइटर लगाएं.

अगर आप दिन में हाइलाइटर का इस्तेमाल कर रही हैं तो बिना शिमर वाले हाईलाइटर का इस्तेमाल करें. शिमर आपके चेहरे को और ज्यादा हाइलाइट करता है जो दिन में बिलकुल अच्छा लुक नहीं देता. रात को आप शिमर हाइलाइटर का इस्तेमाल कर सकती हैं. कम रोशनी में यह आपके चेहरे को पर्फेक्ट लुक देता है.

 हाइलाइटर ब्रश

हाइलाइटर इस्तेमाल करते वक्त सही ब्रश का यूज करना बहुत जरूरी है. इस से हाईलाइटर सही मात्रा में लग पाता है. यदि आप गालों और ललाट पर हाइलाइटर का इस्तेमाल करना

चाहती हैं तो बफिंग ब्रश का इस्तेमाल करें. चिकबोन्स के लिए फेन ब्रश, ब्रो ब्रोन और ब्रोन बोन के ऊपरी हिस्से के लिए फ्लैट ब्रश का इस्तेमाल करें.

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बौडी का गलो

हाइलाइटर सिर्फ चेहरे पर ही नहीं बल्कि बौडी के कई हिस्सों को हाइलाइट करने के लिए लगाया जाता है. अगर आपको अपनी टांगों को और खूबसूरत दिखाना हैं तो आप थाईबोन पर हाइलाइटर का प्रयोग करें. अगर आपने कोई ऐसी ड्रेस पहनी हैं जिस में आपकी कोलरबोन्स नजर आ रही है तो आप इसे हाइलाइटर कर इस्तेमाल से और निखार सकती हैं.

19 दिन 19 टिप्स: स्किन के लिए बेस्ट हैं ये 8 नेचुरल स्किन प्रौड्क्ट

आजकल के बिजी लाइफस्टाइल और पौल्यूशन के चलते स्किन पर असर पड़ रहा है. स्किन ड्राई और डल हो रही है, लेकिन होममेड और नेचुरल कुछ ऐसी चीजें भी हैं, जिनसे स्किन का ख्याल रखना आसान है. आज हम आपको कुछ नेचुरल और आसानी से मिलने वाले प्रोडक्ट्स के बारे में बताएंगे, जिसे आप फेस्टिवल या वेडिंग से पहले ट्राय करके स्किन को ब्यूटीफुल बना सकती हैं. आइए आपको बताते हैं इन प्रोडक्ट्स के बारे में…

1. हल्दी है अच्छा बौडी स्क्रबर

हल्दी सब से सस्ता और अच्छा बौडी स्क्रबर है. एंटीसैप्टिक, एंटीबैक्टीरियल और एंटीइनफ्लेमैट्री गुणों से भरपूर हलदी में करक्यूमिन नामक तत्त्व पाया जाता है. इस में मौजूद यलो पिगमैंट स्किन को निखारने का काम करते हैं. हलदी में एंटी औक्सीडैंट भी होते हैं जो स्किन को फ्री रैडिकल्स के आक्रमण से सुरक्षित रखने का काम करते हैं.

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2. डैड स्किन के लिए ट्राय करें व्हाइट लिली

एंटीपिगमैंटेशन, व्हाइटनिंग और ब्लीचिंग जैसे गुणों से भरपूर व्हाइट लिली में ग्लायकोलिक ऐसिड पाया जाता है, जो डैड स्किन व ऐजिंग स्पौट्स को हलका करने में मददगार होता है. व्हाइट लिली जैल से युक्त क्रीम के इस्तेमाल से सूर्य की अल्ट्रावायलेट किरणें भी स्किन को नुकसान नहीं पहुंचा पातीं.

3. ऐलोवेरा है बेहतरीन मौइस्चराइजर

ऐलोवेरा एक प्राकृतिक मौइश्चराइजर है. यह हर तरह के स्किन टाइप के लिए लाभदायक है. यह सैल रिन्यूअल प्रौसेस को तो बढ़ाता ही है साथ ही इस में मौजूद हीलिंग प्रौपर्टीज स्किन सैल्स मुलायम रखती हैं और स्किन को चमकदार बनाती हैं.  ऐलोवेरा जैल में कूलिंग और ऐंटीइनफ्लेमैट्री प्रौपर्टीज की मौजूदगी भी स्किन के लिए बेहद फायदेमंद है. स्किन को हाइड्रेट रखने के लिए इस में विटामिन सी और विटामिन ई भी पाए जाते हैं.

4. स्किन के निखार लाने के लिए परफेक्ट है चंदन

चंदन में मौजूद लाइटनिंग और कूलिंग एजेंट स्किन के अंदर तक जा कर उस में निखार के साथ चमक भी लाते हैं. साथ ही यह ऐंटीसैप्टिक भी है. इसलिए चोट या फिर जलनेकटने पर भी इसे दवा की तरह लगाया जा सकता है. चंदन के तेल से मसाज करने से ब्लड सर्कुलेशन भी अच्छा हो जाता है जिस से स्किन पर झुर्रियां नहीं पड़तीं.

5. स्किन को ग्लोइंग बनाता है केसर

चंदन की तरह ही केसर में भी लाइटनिंग एजेंट मौजूद रहते हैं, जो स्किन का रंग निखारते हैं और उसे ग्लोइंग बनाते हैं. प्रदूषण, धूलमिट्टी से होने वाले स्किन इन्फैक्शन से स्किन को बचाने में भी केसर सुरक्षा कवच का काम करता है, क्योंकि इस में ऐंटी बैक्टीरियल प्रौपर्टीज भी पाई जाती हैं.

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6. स्किन को शाइनी बनाती है मलाई

मलाई जितनी सेहत के लिए फायदेमंद होती है उतनी ही स्किन के लिए जरूरी भी होती है. मलाई में भरपूर मात्रा में प्रोटीन होता है जो स्किन को चमकदार बनाता है, साथ ही फुंसियों से मुक्ति दिलाता है. इस की चिकनाई से स्किन की खुश्की दूर हो जाती है.

7. बादाम करे स्किन को नरिश

बादाम स्किन के लिए बेहद फायदेमंद है. इस को खाने से जहां दिमाग तेज होता है, वहीं बादाम का तेल स्किन पर लगाने से स्किन का रंग साफ और चमकदार हो जाता है. बादाम में एल्फा टोकोफेरल सब्सटैंस होता है जो विटामिन ई का एक मजबूत स्रोत होता है. विटामिन ई स्किन को नरिश करता है.

8. गुलाबजल है स्किन टोनर

अरोमा थेरैपी के लिए सब से उपयोगी माने जाने वाले गुलाबजल में ऐस्ट्रिंजैंट होता है जो स्किन टोनर का काम करता है. इस के रोजाना इस्तेमाल से चेहरे की झुर्रियां कम हो जाती हैं और स्किन यूथफुल लगने लगती हैं. इसे आप कभी भी और कहीं भी इस्तेमाल कर सकती हैं. अगर आपको पार्टी या फेस्टिवल में जाने की जल्दी है तो ये आपके लिए बेस्ट औप्शन है.

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