कहीं खतना तो कहीं खाप… कब समाप्त होंगे ये शाप

“हद हो चुकी है बर्बरतां की. ऐसा लगता है जैसे हम आदिम युग में जी रहे हैं. महिलाओं को अपने तरीके से जीने का अधिकार ही नहीं है. बेचारियों को सांस लेने के लिए भी अपने घर के मर्दों की इजाजत लेनी पड़ती होगी.” विनय रिमोट के बटन दबाते हुए बार-बार न्यूज़ चैनल बदल रहा था और साथ ही साथ अपना गुस्सा जाहिर करते हुए बड़बड़ा भी रहा था. उसे भी टीवी पर दिखाए जाने वाले समाचार विचलित किए हुए हैं. वह अफगानी महिलाओं की जगह अपने घर की बहू-बेटी की कल्पना मात्र से ही सिहर उठा.

“अफगानी महिलाओं को इसका विरोध करना चाहिए. अपने हक में आवाज उठानी चाहिए.” पत्नी रीमा ने उसे चाय का कप थमाते हुए अपना मत रखा. उसे भी उन अपरिचित औरतों के लिए बहुत बुरा लग रहा था.

“अरे, वैश्विक समाज भी तो मुंह में दही जमाए बैठा है. मानवाधिकार आयोग कहाँ गया? क्यों सब के मुंह सिल गए.” विनय थोड़ा और जोश में आया. तभी उनकी बहू शैफाली ऑफिस से घर लौटी. कार की चाबी डाइनिंग टेबल पर रखती हुई वह अपने कमरे की तरफ चल दी. विनय और रीमा का ध्यान उधर ही चला गया. लंबी कुर्ती के साथ खुली-खुली पेंट और गले में झूलता स्कार्फ… विनय को बहू का यह अंदाज जरा भी नहीं सुहाता.

“कम से कम ससुर के सामने सिर पर पल्ला ही डाल लें. इतना लिहाज तो घर की बहू को करना ही चाहिए.” विनय ने रीमा की तरफ देखते हुए नाखुशी जाहिर की. रीमा मौन रही. उसकी चुप्पी विनय की नाराजगी पर अपनी सहमति की मुहर लगा रही थी.

“अब क्या कहें? आजकल की लड़कियाँ हैं. अपनी मर्जी जीती हैं.” कहते हुए रीमा ने मुँह सिकोड़ा.

शैफाली के कानों में शायद उनकी बातचीत का कोई अंश पड़ गया था. वह अपने सास-ससुर के सामने सवालिया मुद्रा में जा खड़ी हुई.

“आपको क्या लगता है? तालिबानी सिर्फ किसी मजहब या कौम का नाम है?” कहते हुए शैफाली ने अपना प्रश्न अधूरा छोड़ दिया. बहू का इशारा समझकर विनय गुस्से में तमतमाता हुआ घर से बाहर निकल गया. रीमा भी बहू के सवालों से बचने का प्रयास करती हुई रसोई में घुस गई.

यह कोई मनगढ़ंत या कपोलकल्पित घटना नहीं है बल्कि हकीकत है. यदि गौर से देखें तो हम पाएंगे कि हमारे आसपास भी अनेक छद्म तालिबानी मौजूद हैं. चेहरे और लिबास बेशक बदल गया हो लेकिन सोच अभी भी वही है.

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इन दिनों हर तरफ एक ही मुद्दा छाया हुआ है और वो है अफगानिस्तान पर तालिबानियों का कब्जा. चाहे किसी समाचार पत्र का मुखपृष्ठ हो या किसी न्यूज़ चैनल पर बहस… हर समाचार, हर दृश्य सिर्फ एक ही तस्वीर दिखा-सुना रहा है और वो है अफगानिस्तान में तालिबानी शासन के बाद महिलाओं की दुर्दशा… बुद्धिजीवी और विचारक केवल एक ही बात पर मंथन कर रहे हैं कि वहाँ महिलाओं पर हो रही अमानवीयता को कैसे रोका जाए. सोशल मीडिया पर तालिबानियों को भर-भर के कोसा जा रहा है. महिलाओं को उनके ऊपर हो रहे अत्याचारों के विरोध में आवाज बुलंद करने के लिए जगाया जा रहा है. सिर्फ मीडिया ही नहीं बल्कि आम घरों के लिविंग रूम में भी यही खबरें माहौल को गर्म किए हुए हैं.

कहाँ है बराबरी

कहने को भले ही हमारे संविधान ने महिलाओं को प्रत्येक स्तर पर बराबरी का दर्जा दिया हो लेकिन समाज आज भी उसे स्वीकार नहीं कर पाया है. महिलाओं और लड़कियों को स्वतंत्रता देना अभी भी उसे रास नहीं आता.

किसी और का उदाहरण क्या दीजिये, खुद कानून बनाने वाले और संविधान के तथाकथित रखवाले भी महिलाओं को लेकर कितने ओछे विचार रखते हैं इसकी बानगी देखिये.

“महिलाएं ऐसे तैयार होती हैं जिससे लोग उत्तेजित हो जाते हैं.” भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय.

“लड़के, लड़के होते हैं, उनसे गलतियाँ हो जाती हैं. लड़कियां ही लड़कों से दोस्ती करती हैं, फिर लड़ाई होने पर रेप हो जाता है.” सपा नेता मुलायम सिंह यादव.

“अगर दो मर्द एक औरत का रेप करें तो इसे गैंगरेप नहीं कह सकते.” जेके जोर्ज.

“शादी के कुछ समय बाद औरतें अपना चार्म खो देती हैं. नई-नई जीत और नई शादी का अपना महत्त्व होता है. वक्त के साथ जीत की याद पुरानी हो जाती है. जैसे-जैसे वक्त बीतता है, बीवी पुरानी होती जाती है और वो मजा नहीं रहता.” कांग्रेस नेता श्रीप्रकाश जायसवाल.

सिर्फ बड़े नेता ही नहीं बल्कि स्वयं देश के प्रधानमंत्री पर भी महिलाओं को लेकर दिए गए अभद्र बयान के छींटे हैं. 2012 में उन्होंने एक चुनाव सभा में शशि थरूर की पत्नी सुनन्दा थरूर को “पचास लाख की गर्लफ्रेंड” कहकर विवाद को जन्म दिया था.

इसके अतिरिक्त महिलाओं को “टंचमाल” कहकर दिग्विजय सिंह, “परकटी” कहकर शरद यादव, और “टनाटन” कहकर बंशीलाल महतो भी विवादों में घिर चुके हैं.

आज भी केवल भाई, पति, पिता और बेटा ही नहीं बल्कि हर पुरुष रिश्तेदार के लिए स्त्री की आजादी एक चुनौती बनी हुई है.

“फलां की लड़की बहुत तेज है. फलां ने अपनी बहू को सिर पर चढ़ा रखा है. सिर पर नाचने न लगे तो कहना.” जैसे जुमले किसी भी आधुनिक पौशाक पहनी, कार चलाती या फिर बढ़िया नौकरी करती अपने मन से जीने की कोशिश करती महिला के लिए सुने जा सकते हैं.

धर्म या समुदाय चाहे कोई भी क्यों न हो, महिलाओं को सदा निचली सीढ़ी ही मिलती है. एक उम्र के बाद खुद महिलाऐं भी इसे स्वीकार कर लेती हैं और फिर वे भी महिलाओं के प्रतिद्वंद्वी पाले में जा बैठती हैं. यह स्थिति संघर्षरत महिला बिरादरी के लिए बेहद निराशाजनक होती है.

जानवर जिंदा है

हर व्यक्ति मूल रूप से एक जानवर ही होता है जिसे समाज में रहने के लिए विशेष प्रकार से प्रशिक्षित किया जाता है. अवसर मिलते ही व्यक्ति के भीतर का जानवर खूंखार हो उठता है जिसकी परिणति बलात्कार, हत्या, लूट जैसी घटनाएं होती हैं. यही पाशविक प्रवृत्ति उसे महिलाओं के प्रति कोमल नहीं होने देती.

धर्म और संस्कृति के नाम पर सदियों से महिलाओं के साथ बर्बरता पूर्ण व्यवहार किया जाता रहा है. विभिन्न धर्मों में इसे भिन्न-भिन्न नाम से परिभाषित किया जाता है किन्तु मूल में सिर्फ एक ही तथ्य है और वो ये कि महिलाओं की उत्पत्ति पुरुषों को खुश रखने और उनकी सेवा करने के लिए ही हुई है. महिलाओं की यौनिच्छा को भी बहुत हेय दृष्टि से देखा जाता है. यहाँ तक कि विभिन्न प्रयासों से इस नैसर्गिक चाह को दबाने पर भी बल दिया जाता है.

मुस्लिम समुदाय की खतना प्रथा यानी फीमेल जेनिटल म्यूटिलेशन को इन प्रयासों में शामिल किया जा सकता है. वर्ष 2020 में यूनिसेफ द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में करीब 20 करोड़ बच्चियों और महिलाओं के जननांगों को नुकसान पहुंचाया गया है. हाल ही में “इक्विटी नाउ” द्वारा जारी नई रिपोर्ट के अनुसार खतना प्रथा विश्व के 92 से अधिक देशों में जारी है. इस प्रथा के पीछे धारणा यह रहती है कि ऐसा करने से स्त्री की यौनेच्छा खत्म हो जाती है.

महिलाओं को अपनी संपत्ति समझे जाने के प्रकरण आदिकाल से सामने आते रहे हैं. बहुपत्नी प्रथा इसी का एक उदाहरण है. मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार मुसलमानों को चार शादियां करने की छूट है. हिन्दू और ईसाइयों में हालांकि बहुपत्नी प्रथा को कानूनन प्रतिबंधित कर दिया गया है लेकिन यदाकदा इसकी सूचनाएं आती रहती हैं.

गुजरात प्रान्त में “मैत्री करार” नामक प्रथा प्रचलित थी जो कहीं-कहीं लुकेछिपे आज भी जरी है. इसमें स्त्री-पुरुष बाकायदा करार करके साथ रहना स्वीकार करते थे. यह करार “लिव इन रिलेशनलशिप” जैसा ही होता है. फर्क सिर्फ इतना है कि इसमें लिखित में करार होने के कारण शायद महिलाएं मानसिक दबाव में रहती हैं और पुरुष के खिलाफ किसी तरह की कोई शिकायत कहीं दर्ज नहीं करवाती होंगी. मैत्री प्रथा में पुरुष हमेशा शादीशुदा होता है. हालाँकि गुजरात के उच्च न्यायलय ने मीनाक्षी जावेरभाई जेठवा मामले में इसे शून्य आदित घोषित कर दिया था.

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स्त्री-पुरुष संबंधी मूल क्रिश्चियन मान्यता के अनुसार गॉड ने मैन को अपनी इमेज से बनाया और वुमन को उसकी पसली से. पुरुष को यह चाहिए कि वह महिला को दबाकर रखे और उससे खूब आनंद प्राप्त करे.

दोषी कौन?

ताजा हालातों के अनुसार अफगानिस्तान की महिलाएं पूरे विश्व क्व लिय्व सहानुभूति और दया की पात्र बनी हुई हैं क्योंकि तालिबानियों द्वारा लगातार उनकी स्वतंत्रता को कैद करने वाले फरमान जारी किये जा रहे हैं. उन पर विभिन्न तरह की पाबंदियां लगाईं जा रही हैं.

तालिबान शासन में लड़कियों को पढने की इजाजत तो दी गई है लेकिन इस पाबंदी के साथ कि वे लड़कों से अलग पढ़ेंगी और उनसे किसी तरह का कोई सम्पर्क नहीं रखेंगी. यूँ देखा जाये तो इस तरह की व्यवस्था भारत सहित अन्य कई देशों में भी है लेकिन यहाँ इसे महिलाओं के लिए की गई विशेष व्यवस्था के नाम पर देखा और इसे महिला शिक्षा को बढ़ावा देने के रूप में प्रचारित किया जाता है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुमान के अनुसार तालिबान में 90 प्रतिशत महिलाएं हिंसा का शिकार है और 17 प्रतिशत ने यौन हिंसा झेली है. मगर मात्र अफगानिस्तान ही नहीं बल्कि विश्व के प्रत्येक कोने से लड़कियों और युवा महिलाओ के लिए इस तरह की आचार संहिता या फतवे जारी होने की खबरें अक्सर पढ़ने-सुनने में आती रहती हैं.

वैश्विक समुदाय के परिपेक्ष में देखें तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार भारत में महिलाओं के खिलाफ हर घण्टे लगभग 39 अपराध होते हैं जिनमें 11 प्रतिशत हिस्सेदारी बलात्कार की है

यूरोप में महिलाओं के खिलाफ हिंसा पर हुए ताजा सर्वे बताते हैं कि लगभग एक तिहाई यूरोपीय महिलाएं शारीरिक या यौन हिंसा की शिकार हुई हैं.

पेरिस स्थित एक थिंक टैंक फाउंडेशन “जीन सॉरेस” के मुताबिक देश की करीब 40 लाख महिलाओं को यौन हिंसा का शिकार होना पड़ा. यह कुल महिला आबादी का 12 प्रतिशत है यानी देश की हर 8 वीं महिला अपनी जिंदगी में रेप का शिकार हुई है.

जनवरी 2014 में व्हाइट हाउस की एक रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि दुनिया के सबसे विकसित कहे जाने वाले देश में भी महिलाओं की स्थिति कुछ खास अच्छी नहीं है. यहाँ भी हर पांचवीं महिला कभी न कभी रेप की शिकार हुई है. चौंकाने वाली बात ये है कि इनमें से आधी से अधिक महिलाएं 18 वर्ष से कम उम्र में इसका शिकार हुई हैं.

न्याय विभाग द्वारा 2000 के अध्ययन में पाया गया कि जापान में केवल 11 प्रतिशत यौन अपराधों की सूचना ही दी जाती है और बलात्कार संकट केंद्र का मानना है कि 10-20 गुना अधिक मामलों की रिपोर्ट के साथ स्थिति बहुत खराब होने की संभावना है.

कहीं खतना, कहीं खाप तो कहीं ओनर किलिंग… हर तरफ से मरना तो केवल स्त्री को ही है. यह भी गौरतलब है कि इस तरह के फरमान अधिकतर युवा महिलाओं के लिए ही जारी किए जाते हैं और इनका विरोध भी इसी पीढी द्वारा ही किया जाता है. तो क्या उम्रदराज महिलाएं इन फरमानों या शोषण किये जाने वाले रीतिरिवाजों से सहमत होती हैं? क्या उन्हें अपनी आजादी पर पहरा स्वीकार होता है? या फिर चालीस-पचास तक आते-आते उनकी संघर्ष करने की शक्ति समाप्त हो चुकी होती है?

उम्रदराज महिला नेत्रियों के उदाहरण देखें तो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी बलात्कार के मामलों में लड़कों पर अधिक दोषारोपण नहीं करती वहीं दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित भी लड़कियों को ही नसीहत देती नजर आई कि उन्हें एडवेंचर से दूर रहना चाहिए.

अमूमन घर की बड़ी-बूढ़ियां समाज के ठेकेदारों द्वारा निर्धारित इन नियमों को लागू करवाने में महत्ती भूमिका निभाती हैं. एक प्रकार से वे अपने-अपने घर में इन फैसलों का पालन करवाने के लिए अघोषित जिम्मेदारी भी लेती हैं. कहीं ये युवा पीढी के प्रति उनकी ईर्ष्या या जलन तो नहीं? कहीं ये विचार तो उनसे ये सब नहीं करवाता कि जो सुविधाएं या आजादी भोगने में वे नाकामयाब रही वह स्वतंत्रता आने वाली पीढ़ी को क्यों मिले. ठीक वैसे ही जैसे आम घरों में सास-बहू के बीच तनातनी देखी जाती है. सास ने अपने समय में अपनी सास की हुकूमत मन मारकर झेली थी, वह यूँ ही बिना किसी अहसान के अपनी बहू को सत्ता कैसे सौंप दे? या फिर उम्रदराज महिलाओं के इस आचरण के पीछे भी कोई गहरा राज तो नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं कि पुरूष प्रधान समाज का कोई डर उनके अवचेतन मन में जड़ें जमाए बैठा है और वही डर महिलाओं से अपने ही प्रजाति की खिलाफत खड़ा कर रहा हो.

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प्रश्न बहुत से हैं और उत्तर कोई नहीं. जितना अधिक गहराई में जाते हैं उतना ही अधिक कीचड़ है. चाहे किसी भी धर्म की तह खंगाल लो, स्त्री को सदा “नर्क का द्वार” या फिर “शैतान की बेटी” ही समझा जाता रहा है और उसके सहवास को महापाप. सदियां गुजर चुकी हैं लेकिन अभी भी कोई तय तिथि नहीं है जिस पर स्त्री की दशा पूरी तरह से सुधरने का दावा किया जा सके. हजारों सालों से जिस व्यवस्था में कोई परिवर्तन नहीं आ सका उसकी उम्मीद क्या आने वाले समय में की जा सकती है?

उम्मीद पर दुनिया कायम है या आशा ही जीवन है जैसे वाक्य मात्र छलावा ही दे सकते हैं कोई उम्मीद नहीं.

Festive Special: थकी आंखों की चमक बनाए रखने के लिए 6 टिप्स

आपकी खूबसूरती आंखों से है, तो बहुत जरूरी है कि आंखें बिना मेकअप के भी खूबसूरत नजर आएं. कैसा भी समय हो दु:ख हो , सुख हो या फिर शैतानियां ही क्यों न करनी हो हर चीज आपकी आंखों से समझ आ जाती है.

आज कल की बात करें तो हम अपनी दिनचर्या में इस तरह खो गए हैं कि अपनी और अपनी आंखों का ध्यान ही नही रखतें है साथ ही ठीक ढंग से सोते नहीं जिससे वह थकी-थकी लगती हैं और आंखों में नींद भरी रहती है. हम आपको ऐसे मेकअप टिप्स के बारे में बतायेंगे जिससे आपकी थकी आंखों में चमक आ जाएगी. जानिए आंखों को खूबसूरत और चमकदार बनाने के टिप्स.

1. ठंडे खीरे के स्लाइस

अपनी थकी आंखों को ठंडे खीरे के स्लाइस से ढ़कें. इससे आपको सिर्फ थकान से ही नहीं आंखों के नीचे पड़े काले घेरों से भी फायदा मिलेगा.

2. क्लीनजिंग और माइश्चराइजिंग का इस्तेमाल करें

आप अपने दिन की शुरुआत स्किन की क्लीनजिंग करके आंखो पर ठंडे पानी के छींटे मार कर करें. इसके बाद अच्छी मॉइश्चराइजिंग क्रीम से हल्के हाथों से आंख के आस-पास मसाज करें. ऐसा करने से ब्लड सर्कुलेशन बढ़ेगा.

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3. आई ड्रॉप

अगर आपकी आंखे लाल या ड्राय हो रही हों तो डॉक्टर से दिखाएं या फिर असकी सलाह से कोई अच्छे से आई ड्राप का इस्तेमाल करें.

4. आइब्रो के लिए यह करें

अगर आप चाहें तो अपनी आइब्रो को पेंसिल से भरें. इससे आपके आइब्रो में नया लुक और आंखों का थकान भी छिप जाएगी.

5. आंखों को आईशैडो से दें कुछ खास इफेक्ट्स

इसके लिए एक मैट न्यूट्रल ब्राउन आइशैडो लें और इसे क्रीज एरिया के ऊपर लगाएं. यह आंखों को 3-D इफेक्ट देगा और इसी आईशैडो को अपने नीचे की पलकों पर भी लगाए. शिमरी आइशैडो आपकी पलकों को हाइलाइट करेगी. इसके बाद वाटरलाइन पर क्रीमी व्हाइट या ब्लैक पेंसिल का इस्तेमाल करके इसे फाइनल टच दें. ऐसा करनें से आपकी आंखों में एक खूबसूरत लुक आएगा.

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6. कंसीलर का करें इस्तोमाल

एक हाइलाइटनिंग कंसीलर का इस्तेमाल करें इसके लिए अपनी स्किन से एक शेड कम लाइट का कंसीलर ले उसे लेकर आंखों के पास लगाएं और उंगुली या डैम्प स्पॉन्ज की मदद से थपथपाएं. इससे आपके डार्क सर्कल कम होगे साथ ही आंखों में चमक  आएगी.

पेट के कैंसर से कैसे बचें

पेट का कैंसर महिलाओं की तुलना में पुरूषों में अधिक होता है. आजकल पेट के कैंसर के मरीज़ों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. आमतौर पर शुरूआत में पेट का कैंसर लक्षणहीन होता है और इसका पता भी आखरी स्टेज में ही चलता है. पेट का कैंसर, पेट के अंदर असामान्य कोशिकाओं की होने वाली अनियं‍त्रि‍त वृ‍द्घि‍ को ही कहते हैं. समय से पहले किसी भी बिमारी में थोड़ी सी सावधानी बरतकर आप उसे बढ़ने से रोक सकते हैं. आइए जानते हैं पेट के कैंसर के कुछ खास कारणों, लक्षणों और उपायों के बारे में..

कारण एवं लक्षण:

पेट के कैंसर की संभावना आमतौर पर धूम्रपान और मादक पदार्थों का सेवन करने वालों में ज्यादा होती है. इसके अलावा वो लोग जो अत्यधिक मसालेदार भोजन करते हैं, उनमें भी पेट के कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है. पेट के कैंसर के कुछ कारणों में कोई पुराना विकार जैसे गैस्ट्राइटिस की समस्या लंबे समय तक होना, कभी पेट की किसी भी तरह  कोई सर्जरी होना भी हो सकता है.

कई बार आनुवांशिक कारणों से भी पेट का कैंसर होता है. पेट का कैंसर बहुत खतरनाक साबित होता है क्योंकि जब तक पेट का कैंसर बहुत अधिक बढ़ नहीं जाता, तब तक इसके लक्षणों का पता लगाना मुश्किल होता है. सामान्यत: पेट के कैंसर को मलाशय कैंसर के रूप में जाना जाता है. अन्य सभी कैंसर बिमारियों की तरह पेट के कैंसर में भी मृत्यु का जोखिम ज्यादा होता है. पेट का कैंसर बड़ी आंत का कैसर भी है जो पाचन तंत्र के सबसे निचले हिस्से में होता है. यह वो जगह है जहां भोजन से शरीर के लिए ऊर्जा पैदा की जाती है. साथ ही यह शरीर के ठोस अवशिष्ट पदार्थों को भी पचाता है.

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पेट का कैंसर भीतरी परत से शुरू होकर धीरे-धीरे बाहरी परतों पर फैलता है. इसीलिए यह बताना मुश्किल होता है कि कैंसर कितने भीतर तक फैला हुआ है. पेट के कैंसर के सटीक कारणों का पता लगाना मुश्किल है लेकिन कुछ ऐसे कारक हैं जो पेट के कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते हैं जैसे आनुवांशिक कारण, आयु, व्यायाम न करना, धूम्रपान करना, संतुलित खान-पान न होना.

पेट के कैंसर के सटीक लक्षण क्या हैं ये कहना तो मुश्किल है, लेकिन

1. पेट में अकसर दर्द रहना

2. खाना खाने के बाद पेट फूल जाना

3. भूख न लगना

4. एनीमिया की शिकायत होना

5. अधिकतर समय उल्‍टी आना

6. कमजोरी और थकावट महसूस करना

7. तेजी के साथ वजन कम होना, आदि इसके लक्षण कहें जा सकते हैं.

उपाय:

पेट के कैंसर से बचना है तो अधिक से अधिक मात्रा में फलों और सब्जियों का सेवन करें. अगर आपके घर में पहले से ही किसी को कैंसर है तो समय-समय पर चेक अप करवाते रहें.न सिर्फ कैंसर के लिए बल्कि हर बिमारी के लिए डाक्टर से समय-समय पर परामर्श लेते रहना चाहिए.

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पेट के कैंसर के उपचार के लिए सर्जरी करवाई जा सकती है. इसके अलावा कीमोथेरेपी, रेडिएशन ट्रीटमेंट के माध्यम से पेट के कैंसर की चिकित्सा संभव हो सकती है. अपनी दिनचर्या में प्रतिदिन व्यायाम या योग को शामिल करके भी पेट के कैंसर के खतरे को कम किया जा सकता है.

पेट के कैंसर को कम करने के लिए जंकफूड छोड़कर, संतुलित भोजन खासकर तरल पदार्थ जूस, सूप, पानी इत्यादि की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए.

जामदानी सिल्क को देते हैं मॉडर्न लुक, पढ़ें खबर

सालों से फैशन इंडस्ट्री में नाम कर चुके बेस्ट कॉस्टयूम डिजाईन नेशनल अवार्ड 2019 पुरस्कार विजेता टेक्सटाइल और फैशन डिज़ाइनर गौरांग शाह ने विलुप्त होती कारीगरी को नए रूप में लाकर इस विधा में काम करने वालों के हौसले को बढाया है, पहले जो कारीगर अपनी रोजी-रोटी के लिए तरस रहे थे, उन्हें काम और भरपेट भोजन मिला. गौरांग ने हर एक कारीगरी को अलग रंग और फैब्रिक देकर आज के परिवेश में पहनने योग्य बनाया है. वे मानते है कि हैण्डलूम टाइमलेस होता है और किसी भी डिजाईन में उसे बनाने पर खुबसूरत दिखता है. इसलिए हैंडलूम कपड़ों की सुन्दरता कभी ख़त्म नहीं होती.

मुश्किल है विलुप्त कारीगरी को बचाना

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फैशन के क्षेत्र में 20 साल से अधिक समय गुजार चुके गौरांग को हर एक विलुप्त होती कारीगरी को रैंप पर लाने की चुनौती आकर्षित करती है. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा है कि हैंडलूम, पॉवरलूम के आने से ख़त्म हो चुकी थी, क्योंकि पॉवरलूम से बने कपडे जल्दी बनने की वजह से सस्ते होते है, जबकि हैंडलूम से बने कपडे महंगे हुआ करते है, क्योंकि इसे बनाने में समय अधिक लगता है.इसलिए हैंडलूम को मॉस में पहुँचाना मुश्किल होता है. FDCIलेक्मे फैशन वीक विंटर कलेक्शन में डिज़ाइनर गौरांग ने ‘चाँद’ कांसेप्ट पर आधारित कपडे रैम्प पर उतारे.

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चाँद जैसी खूबसूरती

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कांसेप्ट ‘चाँद’की गरिमा को उन्होंने अलग तरीके से प्रस्तुत कीहै. उनके अनुसार चाँद के उगने परजब उसकी शीतल किरणें धरती पर पड़ती है, तो पूरी धरती पर मानो सफ़ेद चादर बिछ जाती है, इसी कल्पना के साथ उन्होंने पूरे भारत की कारीगरी को जामदानी सिल्क साड़ियों में उतारा. शो की शुरुआत को अधिक आकर्षक बनाने के लिए उन्होंने ग़ज़ल सम्राट अनूप जलोटा की ग़ज़ल‘चाँद अंगड़ाईयाँ ले रही है, चांदनी मुस्कुराने लगी है…… का लाइव सिंगिग प्रस्तुत किया. इससे रैंप पर उतरी मॉडल्स की भव्य प्रस्तुति भी देखने लायक रही. शो स्टोपरअभिनेत्री तापसी पन्नू कीजामदानी सिल्क साड़ी पर ‘वाइड फ्लोरल बॉर्डर’और अनूप जलोटा द्वारा लाइव गीत ‘चौदहवी का चाँद हो……गाने ने इस शो में चार चाँद लगाये.

जामदानी की तकनीक है कठिन

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डिज़ाइनर गौरांग कोविड 19 के लॉकडाउन के बाद पहली बार ‘चाँद’कलेक्शन को रैंप पर उतारे है. इस कांसेप्ट के बारें में उनका कहना है किये कलेक्शन मानव क्रिएटिविटी को कपड़ों के द्वारा प्रस्तुत करने काएक बेहतरीन उदाहरण है,जो लगातार जारी है. ये कला फैशन से हटकर महिला को एक अलग दुनिया के बारें में सोचने का मौका देती है, जो रोमांस और टाइमलेस सोफिस्टीकेशन होने का एहसास दिलाती है.

जामदानी कपड़ो की बुनाई की तकनीक सबसे कठिन होती है, ये कला ढाका, बनारस, कोटा, श्रीकाकुलम, उप्पदा, वेंकटगिरी, कश्मीर और पैठन में बुनी जाती है. इसे मॉडर्न लुक देने के लिए गौरांग ने पेस्टल, लाइट पिंक, लाइट ग्रीन जैसे आकर्षक रंगों के साथ कढ़ाई की सहायता ली है. इन 40 साड़ियों को बुनकरों ने पेंडेमिक और लॉकडाउन के दौरान पिछले 3 सालों से अपने-अपने घरों में बैठकर तैयार किया है.

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पेंड़ेमिक का असर फैशन इंडस्ट्री पर पड़ने के बारें में गौरांग का कहना है कि कोविड 19 की वजह से काम थोडा धीमा था, क्योंकि इसका असर कारीगरों पर अधिक हुआ है, उनकी रोजी-रोटी ख़त्म हो रही थी,लेकिन अब वे धीरे-धीरे सामान्य होते जा रहे है. फैशन का काम जो पहले महीनों में पूरा होता था, अब कोविड की वजह से पूरा साल लग गया है और नए-नए डिजाईनों पर अधिक काम नहीं हो पाया है.इसके अलावा कोविड की वजह से शोरूम बंद करने पड़े, जिससे कपड़ों की बिक्री पर काफी प्रभाव पड़ा है. अभी मेरे सारे शो रूम फिर से खुल चुके है.

सेंसर बोर्ड की लापरवाही से फिल्म #Theconversion के प्रदर्शन को लेकर गहराया रहस्य

‘‘लव जेहाद’’ और जबरन धर्म परिवर्तन का एक लड़की पर क्या असर होता है,इस विशय पर फिल्मकार विनोद तिवारी ने सोचने पर मजबूर करने वाली फिल्म ‘द कन्वर्जन‘ बनायी है,जिसे वह आठ अक्टूबर को देश के सिनेमाघरों में प्रदर्षित करना चाहते थें,लेकिन अफसोस की बात यह है कि सेंसर बोर्ड की लापरवाही के चलते ऐसा संभव ही नही हो पाया.हालात यह हैं कि ‘‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड’’ यानी कि सेंसर बोर्ड ने अभी तक फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’ को प्रमाणपत्र ही नही दिया है,जबकि फिल्म के निर्माताओं ने अपनी तरफ से सेंसर बोर्ड की मांग के अनुरूप सारे कागज,फिल्म व रकम समय पर ही अदा कर दी थी.

निर्माता ने अपनी फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’ को ‘‘केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड ’’ से प्रमाणित करवाने के लिए  16 अगस्त को ही निवेदन कर दिया था.लेकिन यह फिल्म तभी से सेंसर बोर्ड के पास अटकी हुई है.सेंसर बोर्ड की परीक्षण समिति अब तक तीन बार फिल्म को देख चुका है.लेकिन सेंसर बोर्ड शायद खुद किसी निर्णय पर नही पहुॅच पा रहा है, इसीलिए अभी तक सेंसर बोर्ड ने फिल्म में दृश्यों या संवादों पर किसी भी आपत्ति के बारे में निर्माताओं को सूचित नहीं किया है.मगर सेंसर बोर्ड की लापरवाही का आलम यह है कि फिल्म के निर्माता व निर्देशक द्वारा बार बार गुहार लगाने और फिल्म क ेप्रदर्षन की तारीख के बारे में सूचित किए जाने के बावजूद सेंसर बोर्ड फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’को पारित या अस्वीकार करने को लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा है.अब तक फिल्म के निर्माता को सेंसर बोर्ड से इस संबंध में लिखित में कोई जवाब नही मिला है.

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आठ अक्टूबर की तारीख टलने के बाद अब फिल्म के निर्माता ‘‘द कंवर्जन’’को देशभर और विदेशों में 15 अक्टूबर को प्रदर्षन करने के लिए पूरी तैयारी कर ली है.पूरे भारत में सिनेमाघरों में प्रमोशन के लिए पोस्टर भेजे जा चुके हैं. सिनेमाघरों को तो ठीक कर दिया गया है, लेकिन ऐसे समय में सेंसर बोर्ड के निर्णय की कमी से फिल्म को भारी नुकसान हो सकता है.

फिल्म ‘द कन्वर्जन‘ के निर्माता का कहना है कि अगर फिल्म 15 अक्टूबर को प्रदर्षित नहीं होगी, तो इससे उन्हें करोड़ो का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा.इससे पहले भी निर्माता अपनी फिल्म के प्रदर्षन की तारीख दो बार बदल चुके हैं.मगर सेंसर बोर्ड का रवैया समझ से परे हैं.

बनारस के खूबसूरत घाटों पर फिल्माई गई फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’ भारत में प्रेम विवाह के दौरान होने वाले धार्मिक रूपांतरणों की दुविधा की पड़ताल करती है.यानी कि यह फिल्म ‘लव जेहाद’ को लेकर है.इस फिल्म के संबंध में कुछ समय पहले निर्देशक विनोद तिवारी ने कहा था-‘‘यह कालेज की पृष्ठभूमि में एक त्रिकोणीय प्रेम कहानी है.किस एक लड़की ‘लव’ट्ैप में फंसती है,किस तरह प्रेम में पड़ती है और फिर किस किस पीड़ा से गुजरती है,उसकी इसी दर्दनाक यात्रा की दास्तान है फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’.मैं आपसे साफ साफ कहता हॅूं कि हमारी यह फिल्म किसी भी जाति, किसी भी धर्म,किसी भी मजहब,किसी भी संप्रदाय के खिलाफ नही है.यह फिल्म एक पीड़ा है.यह फिल्म एक गंदी सोच के खिलाफ लड़ाई है.इंसान बुरा नही होता,इंसान की सोच बुरी होती है. ’’

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फिल्म ‘‘द कंवर्जन’’को अभिनय से संवारने वाले कलाकार हैं-विंध्या तिवारी, रवि भाटिया, प्रतीक शुक्ला, विभा छिब्बर, अमित बहल, मनोज जोशी, सुनीता रजवार, संदीप यादव, सुशील सिंह.

दो युवतियां: भाग 4- क्या हुआ था प्रतिभा के साथ

प्रवीण जितना कर सकता था, कर रहा था. उस ने मेरे ऊपर काफी रुपया खर्च किया. अधिकांश रुपया तो होटल और रिसोर्ट्स में खर्च हुआ था. बाकी मेरे उपहारों पर… फिर भी मैं संतुष्ट नहीं थी. उपहारों से तो थी, पर शरीर की मांग बढ़ती ही जा रही थी और इसे पूरा करने में प्रवीण खुद को असमर्थ पा रहा था. मैं जितना मांगती, उतना ही वह पीछे हटता जाता.

आखिर प्रवीण मेरी बढ़ती मांग से परेशान हो गया. अब वह मुझ से कटने लगा, लेकिन मैं उसे कहां छोड़ने वाली थी. अभी कुछ छुट्टियां बाकी थीं. मैं ने उस से कहा, ‘‘छुट्टियां खत्म होने से पहले एक बार वाटर पार्क चलते हैं. रात को रिसोर्ट में  ही रुकेंगे.’’

प्रवीण कुछ सोच कर बोला, ‘‘यार, मैं ने काफी पैसा खर्च कर दिया है. अभी छुट्टियां हैं. पिताजी से मांगना मुश्किल है. मैं क्या बताऊंगा उन्हें? मम्मी का पर्स मैं ने खाली कर दिया है. कालेज बंद है इसलिए  कौपीकिताबों का बहाना भी नहीं चल सकता.’’

‘‘तो फिर… कुछ न कुछ करो.’’

‘‘मैं एक काम करता हूं. मैं अपने कुछ दोस्तों से बात करता हूं. हम सभी मिल कर प्रोग्राम बनाते हैं. इस से रिसोर्ट और वाटर पार्क का खर्च आपस में बंट जाएगा. किसी एक के ऊपर बोझ भी नहीं पड़ेगा.’’

‘‘लेकिन तुम और मैं…’’

‘‘हम दोनों अलग कमरे में रह कर मौज करेंगे.’’

मैं ने ज्यादा नहीं सोचा, मान गई. अगले ही दिन प्रवीण अपने 4 दोस्तों के साथ मुझे ले कर एक बहुत अच्छे रिसोर्ट कम वाटर पार्क में चला गया. दिन भर हम लोगों ने वाटर पार्क में मस्ती की. शाम को खाना खाया. प्रवीण ने अपने दोस्तों के साथ बियर पी. कुछ ने शायद ड्रिंक भी ली थी. मैं ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया. मुझे तो खाना खा कर कमरे में जाने की जल्दी थी, ताकि मैं प्रवीण के साथ अपने कामसुख को प्राप्त कर सकूं.

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उस दिन पहली बार ऐसा हुआ जब खाना खातेखाते मुझे झपकी आने लगी. खाना खत्म होने तक मैं मदहोश सी हो गई थी. मुझे याद है, प्रवीण मुझे सहारा दे कर कमरे में लाया था. कमरे के अंदर आते ही मैं ने अनिद्रा में उस को कस कर भींच लिया था. फिर मैं उस को अपने ऊपर लिए पलंग पर गिर पड़ी.

कैसी थी वह रात… भयानक और लिजलिजी सी. सारी रात मैं जागतीसोती सी अवस्था में रही. जब भी मेरी तंद्रा टूटती मुझे लगता, कोई पहाड़ मेरे ऊपर सरक रहा है. मैं फूल सी मसलती जाती और लगता, जैसे मेरे अंदर कोई गरम लावा बह रहा था. बेहोशी के आलम में मैं कुछ समझ न पाती कि मेरे साथ क्या हो रहा था, पर जो भी हो रहा था, वह बहुत घिनौना और भयानक था. पूरी रात न तो मेरी बेहोशी टूटी, न मेरे ऊपर से पहाड़ हटा, मैं टूटी ही नहीं, मसल दी गई थी, पूरी तरह से. अब मैं किसी मंदिर का फूल नहीं थी, मैं सड़क पर गिरा हुआ एक फूल थी, जिस के ऊपर से सैकड़ों लोगों के पैर गुजर चुके थे.

अगले दिन दोपहर को जब मेरी तंद्रा टूटी, तब मुझे एहसास हुआ कि मेरे साथ क्या हुआ था. पूरी रात मुझे 5 दरिंदों ने झिंझोड़ा ही नहीं, नोच कर खाया भी था. मेरे शरीर के खून की एकएक बूंद उन पांचों वहशियों ने पी थी, उन के मुख लाल थे और मैं रक्तविहीन, अर्द्धबेहोशी की हालत में लुटी, असहाय बिस्तर पर निर्वस्त्र पड़ी थी. मुझ में इतनी भी ताकत नहीं बची थी कि मैं उठ कर अपनी अस्मत को कपड़े के एक टुकड़े से ढक सकती.

वे पांचों कुटिलता से मुसकरा रहे थे. मेरा शरीर जल रहा था, लेकिन मैं उठ कर उन के रक्त से सने मुख नहीं नोच सकती थी. मैं ने अपने मुरदा हाथों को उठा कर किसी तरह अपनी जांघों के बीच रखा, तभी प्रवीण की कुटिलता भरी हंसी की ध्वनि मेरे कानों में पड़ी. वह कह रहा था, ‘‘आशा है, अब तुम्हारी कामेच्छा शांत हो गई होगी. इस के बाद अब तुम्हें किसी और के पास जाने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी.’’

सुनतेसुनते मैं फिर से बेहोश होने लगी थी और इसी अर्द्धबेहोशी की हालत में मैं ने देखा कि पांचों भेडि़यों के जबड़े फैलने लगे थे. उन की आंखों में क्रूरता और पिपासा के भाव जाग्रत हो रहे थे. वे फिर से मेरे ऊपर हमला करने के लिए स्वयं को तैयार कर रहे थे.

अंतिम हमला मैं ने कैसे झेला, मुझे नहीं पता.

शहर वाली युवती…

प्रतिमा की आंखों में इंद्रधनुषी सपने थे, लेकिन सपने देखने वाला व्यक्ति यह भूल जाता है कि नींद टूटने के बाद केवल सुबह का उजाला ही नहीं दिखाई पड़ता है, कभीकभी चारों तरफ नीरव रात का अंधेरा भी होता है. इंद्रधनुषी आसमान में घनघोर घटाएं भी घिरती हैं जो कभीकभी अतिवृष्टि से धरा को जलमग्न कर देती हैं. तब चारों ओर सैलाब का हाहाकार होता है, जिस में सबकुछ बह जाता है.

मुझे यह महसूस हो रहा था, प्रतिमा प्रेम के रंग में नहीं, बल्कि आधुनिकता की बंधनहीन स्वतंत्रता और उच्छृंखलता के बीच भटक गई थी. वह प्रेम की पवित्रता और मर्यादा को तोड़ कर पाश्चात्य सभ्यता के नवनिर्मित उन्मुक्त संसार में विचरने लगी थी. इस उन्मुक्त संसार में कोई नैतिक मूल्य नहीं थे. युवकों और युवतियों को जो अच्छा लग रहा था, वही कर रहे थे. मेरा मानना है कि प्रेम को उन्मुक्त नहीं होना चाहिए. बिना किसी प्रतिबंध और प्रतिबद्धता के जब हम कोई कार्य करते हैं, तो उस के दुष्परिणाम भी भयंकर होते हैं.

आज का युवा जिस संसार में सामाजिक मूल्यों को तोड़ कर रह रहा है, उस के दुष्परिणाम दोचार साल में ही सामने आने लगते हैं. एकदूसरे के ऊपर आरोपप्रत्यारोप, अत्याचार, शोषण और बलात्कार के मुकदमे दर्ज हो रहे हैं. जो जीवन में कभी नहीं होता था, वह युवा अपने छात्र जीवन में ही एक अपराधी की तरह झेलने को मजबूर हो जाता है. यही आधुनिक प्रेम की परिणति है.

प्रतिमा कितनी सीधी और शर्मीली थी, लेकिन आज उस ने शर्म और संकोच के सभी बंधन तोड़ दिए हैं. जो व्यक्ति कभी घर से नहीं निकलता है, वह बाहर की धूप में आ कर चौंधिया जाता है, रास्ते उसे भरमाते हैं, तो हवाएं उसे मदहोश कर देती हैं. ऐसे में उस का भटकना स्वाभाविक होता है. प्रतिमा के साथ भी यही हो रहा था. अचानक कसबे से शहर आई तो यहां की चकाचौंध ने उसे भ्रमित कर दिया. चारों तरफ चमकदमक थी और वह उस रंगीन दुनिया में भटक गई.

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मैं उस के बारे में चिंतित हूं. मुझे पता चल गया है कि वह प्रवीण के साथ कौन सा खेल खेल रही थी. मैं उसे समझाना चाहती हूं, पर वह मुझ से बात ही नहीं करती, जैसे मैं प्रवीण को उस से छीन लूंगी. मुझे क्या पड़ी है?

प्रवीण को तो मैं ने ही ठुकराया था. फिर मुझे युवकों की क्या कमी? सारे तो मेरे पीछे पड़े रहते हैं, लेकिन प्रतिमा ने ऐसा क्यों किया? चटाक से सारे बंधन तोड़ दिए और परदों को खींच कर फाड़ दिया. क्या कोई विश्वास करेगा कि कुछ दिन पहले तक वह एक शर्मीली युवती थी. इतनी शर्मीली कि युवतियों से भी बात करने में उस की जबान लड़खड़ाने लगती थी, लेकिन आज वह युवकों के साथ तितलियों की तरह उड़ती फिर रही है.

प्रेम की बयार न जाने उसे ले कर कहां पटकेगी?

यों ही एक दिन मेरे मन में आया कि अचानक जा कर प्रतिमा से मिलूं. मैं उस के होस्टल गई, वह वहां नहीं थी. किसी को पता भी नहीं था कि कहां गई है? छुट्टियां थीं, इसलिए वार्डन को भी परवा नहीं थी. मैं ने उस का मोबाइल मिलाया लेकिन वह बंद था. मुझे चिंता हुई. उस के होस्टल के चौकीदार से बस इतना पता चला कि 3-4 दिन से वह होस्टल नहीं आई थी.

कुछ सोच कर मैं ने प्रवीण को फोन मिलाया. उस का फोन भी स्विच औफ था. अचानक दिमाग में आया कि उन दोनों के साथ कोई हादसा तो नहीं हो गया. मैं ने अपनी कुछ क्लासमेट्स से बात की. उन्हें भी उन का कुछ पता नहीं था. प्रतिमा मुझ से विरक्त थी, पर मुझे उस की चिंता थी. पहले मैं ने अपने मम्मीपापा से बात की. उन्होंने भी चिंता व्यक्त की कि कुछ भी हो सकता है. फिर हमसब कालेज प्रशासन से मिले. उन्होंने तत्काल प्रतिमा के घर संपर्क करने के लिए कहा. कालेज रिकौर्ड से उस के घर का पता और फोन नंबर मिल गया. पता चला कि प्रतिमा घर भी नहीं गई थी.

सब ने सलाह की कि पुलिस में रिपोर्ट दर्ज करवा दी जाए. यह कालेज प्रशासन की तरफ से हुआ. पुलिस ने सब से पहला काम यह किया कि मेरे कहने पर प्रवीण और प्रतिमा के कौल डिटेल्स निकलवाए. उन से पता चला कि प्रतिमा की अंतिम बातचीत प्रवीण के फोन पर हुई थी और उस की अंतिम लोकेशन रोहतक रोड का एक रिसोर्ट था. प्रवीण के फोन की भी यही लोकेशन थी. हालांकि प्रवीण के फोन से बाद में अन्य लोगों से भी बात हुई थी और उस की अंतिम बातें शहर की लोकेशन से हुई थीं. इस से यह साबित हो गया कि अंतिम समय में प्रतिमा और प्रवीण एकसाथ थे.

पुलिस ने सक्रियता दिखाई और सब से पहले प्रवीण के घर पर छापा मारा. वह घर पर निश्चिंत और बेखौफ था. उसे थाने लाया गया. उस से पूछताछ हुई, पर हर पेशेवर अपराधी की तरह उस ने भी मनगढ़ंत कहानियां सुनाईं, पुलिस को गुमराह करने की कोशिश की, लेकिन फोन के कौल डिटेल्स अलग ही कहानी बयां कर रहे थे. उन के आधार पर प्रवीण टूट गया. फिर जो उस ने कहानी सुनाई, वह प्रतिमा के जोशीले प्रेम के दर्दनाक अंत की कहानी थी.

प्रतिमा ने जब प्रेम के मैदान में कदम रखा तो वह बहुत तेज दौड़ने लगी. प्रवीण उस की हर जरूरत पूरी करता, पर हर रोज प्रतिमा की शारीरिक जरूरत पूरी करना न तो प्रवीण के वश में था, न यह संभव था. इस के लिए वक्त और धन दोनों की आवश्यकता थी. वह प्रतिमा से मना करने लगा तो वह उग्र होने लगी और उसे धमकियां देती कि बलात्कार के मामले में फंसा देगी. तंग आ कर प्रवीण ने उस से छुटकारा पाने का एक खतरनाक तरीका अपनाया.

एक सोचीसमझी साजिश के तहत प्रवीण प्रतिमा को अपने मित्रों के साथ ले कर लोनावला के एक रिसोर्ट में गया. उस ने शाम के खाने में प्रतिमा को बेहोशी की दवा दे दी थी. फिर रात भर उन पांचों ने मिल कर उस के साथ बुरी तरह बलात्कार किया और यह सिलसिला अगले दिन शाम तक जारी रहा. तब तक प्रतिमा मृतप्राय सी हो गई थी. वे भी थक गए थे. रात को उन सब ने मिल कर तय किया कि प्रतिमा को उसी हालत में जंगल में फेंक कर भाग जाएंगे. खुले जंगल में कोई जानवर उसे खा जाएगा या फिर वह यों ही समाप्त हो जाएगी.

मृतप्राय प्रतिमा को ये लोग जंगल में फेंक कर रात को ही शहर भाग आए थे. अब प्रतिमा का पता नहीं था.

पुलिस ने तुरंत प्रवीण के अन्य चारों दोस्तों को गिरफ्तार कर लिया. उन्हें साथ ले कर वह घटनास्थल पर पहुंचे, जहां प्रतिमा को जीवित या मृत अवस्था में फेंका गया था. वहां न कोई लाश मिली, न उस के अवशेष. संबंधित थाने में पता किया गया, तो पता चला कि 2 दिन पहले एक युवती नग्नावस्था में बेहोश जंगल में कुछ गांव वालों को मिली थी. उन्होंने पुलिस को खबर की, पुलिस ने युवती को कसबे के अस्पताल में भरती करवा दिया था और अज्ञात लोगों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर तफतीश आरंभ कर दी थी.

स्थानीय पुलिस को घटनास्थल से ऐसा कोई सूत्र नहीं मिला, जिस से वह अपनी कार्यवाही आगे बढ़ा सके. प्रतिमा अभी तक बेहोश थी. उस का बयान दर्ज नहीं हुआ था.

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अस्पताल जा कर जब मैं ने प्रतिमा की हालत देखी, तो मैं स्वयं बेहोश होतेहोते बची. कोई भेडि़या भी उस को इस तरह नोच कर नहीं खाता, जिस तरह से प्रवीण और उस के दोस्तों ने उस के शरीर के साथ अत्याचार किया था.

काश, प्रतिमा यह बात समझ पाती कि प्रेम जीवन के लिए आवश्यक है, पर इतना भी आवश्यक नहीं कि उस के लिए अपनेआप को ही हवन कर दिया जाए. अगर वह समय पर समझ लेती, तो उस की यह दुर्दशा न होती.

प्रतिमा जाने कब होश में आएगी. जब उसे होश आएगा, तब क्या वह किसी पुरुष को फिर से प्यार करने की हिम्मत जुटा पाएगी? अधिकांश प्रेमसंबंधों का अंत विरह में होता है, पर ऐसा कभी नहीं होता, जैसा प्रतिमा के प्रेम का हुआ था.

Udaariyaan: #Fatejo को अलग करने के लिए जैस्मीन की नई चाल, वापस लौटेगा तेजो का पहला पति!

सीरियल उड़ारियां में इन दिनों तेजो की जिंदगी में खुशियां देखने को मिल रही है. लेकिन आने वाले दिनों में तेजो की जिंदगी में उसके अतीत की वापसी के साथ फतेह और उसका रिश्ता नया मोड़ लेने वाला है. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

तेजो की जिंदगी में होगी जस की वापस

 

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हाल ही में सीरियल उड़ारियां के मेकर्स ने एक प्रोमो जारी किया है, जिसमें फतेह और तेजो खुश नजर आ रहे हैं. वहीं सिमरन ये देखकर गुस्से में नजर आ रहे हैं. इसी बीच तेजो को देकर धोखा देकर भागने वाला जस नजर आ रहा है. वहीं जस को देखते ही तेजो टूटती नजर आ रही है.

 

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जस ने दिया था धोखा

जस का जिंदगी में आना तेजो के लिए मुसीबत बनने वाला है. दरअसल, जस वही इन्सान है, जो तेजो से शादी करके सारे गहने और कैश लेकर भाग गया था, जिसके कारण तेजो तो बदनामी का सामना करना पड़ा था. वहीं इसके कारण ही फतेह की तेजो से शादी हुई थी. अब देखना होगा कि जस की वापसी से तेजो और फतेह का रिश्ता टूटता है या मजबूत होता है.  इसी के साथ देखना होगा कि जस की वापसी एक इत्तेफाक है या सिमरन की सोची समझी साज़िश.

जैस्मिन ने बताया सिमरन औऱ कैंडी का सच

जैस्मिन को पता चल चुका है कि कैंडी, सिमरन का बेटा है, जिससे बाउजी नफरत करते हैं क्योंकि सिमरन घर से भाग गई थी. वहीं जैस्मिन इसी बात का फायदा उठाकर तेजो को घर से निकालने का प्लान और पूरी फैमिली को कैंडी का सच बता चुकी है, जिसके बाद बाउजी तेजो से काफी नाराज हैं और सिमरन और कैंडी को घर से निकलने के लिए कहेंगे. हालांकि बाद में बाउजी मान जाएंगे.

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फ्लाइट में Anuj और Anupama का रोमांटिक डांस, देखें वीडियो

टीआरपी चार्ट में पहले नंबर पर राज करने वाला स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) इन दिनों दर्शकों के बीच छाया हुआ है. सीरियल में जहां काव्या और वनराज के रिश्ते में दरार पड़ती नजर आ रही है तो वहीं अनुज और अनुपमा की दोस्ती गहरी हो रही है. इसी बीच एक वीडियो सोशलमीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें अनुपमा और अनुज रोमांस करते नजर आ रहे हैं. आइए आपको दिखाते हैं वायरल वीडियो की झलक…

डांस करते दिखे अनुपमा और अनुज

 

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जहां सीरियल में अनुपमा और अनुज (Anupama And Anuj) की दोस्ती दर्शकों का दिल जीत रही है तो वहीं औफस्क्रीन रुपाली गांगुली और गौरव खन्ना की कैमेस्ट्री भी फैंस को काफी पसंद आ रही है, जिसका अंदाजा इस वायरल वीडियो से लगाया जा सकता है. दरअसल, वीडियो में अनुपमा और अनुज फ्लाइट में एक रोमांटिक गाने पर नाचते नजर आ रहे हैं. इसी बीच फ्लाइट होस्टेस आ जाती है, जिसे देखकर अनुपमा और अनुज चौंक जाते हैं. फैंस को ये वीडियो काफी पसंद आ रहा है और वह मजेदार रिएक्शन देते नजर आ रहे हैं.

 

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समर की जान पड़ेगी खतरे में

 

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सीरियल की बात करें तो अपकमिंग एपिसोड में काफी ड्रामा देखने को मिलने वाला है. जहां एक तरफ बेटी पाखी के लिए वनराज और अनुपमा साथ नजर आएंगे तो वहीं समर की जान खतरे में पड़ जाएगी.  में अनुपमा (Anupama) की कहानी बदल जाएगी. दरअसल, नंदिनी घर छोड़कर जाने की कोशिश करेगी और अनुपमा उसे रोक लेगी और उससे कारण पूछेगी, जिसके जवाब में नंदिनी कहेगी कि अगर वह समर से दूर नहीं गई तो रोहन उसे जान से मार देगा. हालांकि अनुपमा इस बात को संभालते हुए नंदिनी को जाने से रोकेगी. वहीं अनुज की मदद भी मांगती नजर आएगी.

 

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Festive Special: अब घर बैठे मिनटों में करें वैक्स

आप को फ्रैंड की बर्थडे पार्टी में जाना हो और आप यह सोचसोच कर परेशान हो रही हों कि बिना हेयर रिमूव किए कैसे पार्टी में जाऊं, इस से तो मेरी पूरी ड्रैस की शोभा ही बिगड़ जाएगी. अभी मेरे पास इतना टाइम भी नहीं है कि पार्लर से अपौइंटमैंट लूं और अगर लिया भी तो टाइम खराब होने के साथसाथ जल्दबाजी में ज्यादा पैसे भी देने पड़ेंगे तो ऐसे में आप परेशान न हों बल्कि वीट कोल्ड वैक्स स्ट्रिप्स से कुछ ही मिनटों में बनें खूबसूरत.

पार्लर जैसी फिनिशिंग घर में ही

ये आप को बिलकुल पार्लर जैसी फिनिशिंग देने के साथसाथ आपकी स्किन को स्मूदनैस व मौइश्चर देने का काम करेगी.

हौट वैक्स की जलन से छुटकारा

बौडी पर हौट वैक्स से हेयर रिमूव कराने से हर कोई डरता है, क्योंकि इस प्रक्रिया में गरम वैक्स की वजह से जलने का डर भी रहता है. लेकिन कोल्ड वैक्स स्ट्रिप्स यूज करने में ईजी है. इस के लिए आप को बस स्ट्रिप्स को आराम से ओपन कर के हेयरी एरिया पर अप्लाई कर के हेयर की दिशा में पुल करना है. इस से दर्द भी न के बराबर होता है और बाल जड़ से भी निकल जाते हैं.

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खास बात यह है कि स्ट्रिप्स का साइज अच्छाखासा है, जिस से काफी बड़ा एरिया कवर हो जाता है और आप को महीने भर तक इस की जरूरत महसूस नहीं होती. यह 1.5 एमएम के छोटे बालों को भी निकालने में सक्षम है.

आप इस की हर स्ट्रिप तब तक यूज कर सकती हैं जब तक यह अपनी चिपचिपाहट न खो दे. आप हेयर रिमूवल के बाद परफैक्ट फिनिश वाइप से बची वैक्स को भी आसानी से हटा सकते हैं.

टेनिंग रिमूव करने में कारगर

सिर्फ हेयर ही नहीं बल्कि टेनिंग रिमूव करने के साथसाथ ये डैड सैल्स को भी हटाने का काम करता है. ये 20 स्ट्रिप्स पैक जिस की कीमत क्व174 और 8 स्ट्रिप्स पैक जिस की कीमत क्व90 है में उपलब्ध है.

इसे ड्राई, नौर्मल और सैंसिटिव स्किन को ध्यान में रख कर डिजाइन किया गया है. इस्तेमाल करते वक्त यह ध्यान रखें कि सनबर्न व कटी हुई स्किन पर इसे अप्लाई न करें.

तो फिर तैयार हैं न घर पर वैक्स करने के लिए.

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सुनिए भी और सुनाइए भी…..

लेखिका- प्रीता जैन

प्रणव तेरी लखनऊ वाली ज़मीन कितने की बिकी, किसने ली कहाँ का रहने वाला है, कब तक पैसे मिलेंगे क्या सौदा हुआ वगैरा-वगैरा. एक के बाद एक कई सवाल और उससे अधिक सभी कुछ जानने की इच्छा, प्रणव के बड़े भाई फ़ोन पर पूछताछ कर रहे थे वैसे तो प्रणव उनसे कुछ नहीं छिपाता था पर आज ज़्यादा बताने का उसका मन नहीं हो रहा था वजह एक-एक बात पूछ लेना और अपने बारे में कुछ ना बताना, बस! इतना कह देना सब ठीक है.

इसी तरह अंजू और उसकी बहन की बातचीत हो रही थी बातों-बातों में अंजू की दीदी ने पूछा, तेरी कुछ बचत भी है या नहीं कुछ ज्वैलरी भी लेकर रखी थी ना तूने– हाँ! दीदी अविनाश ने हर महीने की बचत के साथ कुछ पैसे की मेरे नाम एफडी करा दी है इसके अलावा कुछ दिन पहले हमने ज्वैलरी (सोने का एक सेट) भी खरीदी है सब सहेज कर रख दिया है तुम चिंता ना करो. तुम बताओ दीदी क्या सेविंग्स हो रही है क्या-क्या खरीदा? अरे! अंजू तुझे तो पता ही है मैं सब खर्च देती हूँ, बस! यूँ समझ ले अभी तो मेरे पास कुछ भी नहीं है. दीदी तुम पिछले महीने तो ज्वैलर्स के यहां गई थी और सुना था कुछ प्रॉपर्टी भी ली है अरे! वो तो सब थोड़ा-बहुत ऐसे ही है, चल छोड़ तू फ़िक्र ना कर और अपनी कुछ बता…..

ऐसा सिर्फ प्रणव या अंजू के साथ ही ना होकर हममें से कई लोग ऐसे ही अनुभव अहसास से गुज़रते हैं. कुछ ऐसे परिचितों से बातचीत होती है जो आमने-सामने या फिर फ़ोन पर ही निजी बातें मालुम करने में माहिर होते हैं, वे इतनी जानकारी लेते हैं कि दूसरा व्यक्ति वास्तव में परेशान हो जाता है और ये विशेषता होती है कि अपने बारे में ज़रा नहीं बताना चाहते, टालमटोल ही करते रहते हैं. कई दफ़ा तो रोज़मर्रा तक की बातें अक्सर ही मालुम करते रहते हैं मसलन– आज खाने में क्या बनाया, सारा दिन क्या-क्या किया कौन आया कौन गया, कहां-कहां फ़ोन पर बातचीत की वगैरा-वगैरा. और हाँ! पूछते-पूछते यदि उन्हें कोई बात सही नहीं लगती तो अपनी सलाह भी देने लगते हैं ऐसा करना चाहिए वैसा करना चाहिए, यह सही वो गलत……

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क्या ऐसा करना उचित है? हर किसी समझदार व्यावहारिक इंसान की यही राय होगी ऐसा करना सही नहीं है, दूसरे की हर बात जानने की यदि जिज्ञासा रहती है तो स्वयं की भी बताएं अन्यथा किसी तरह की रूचि ना लें. यदि दूसरा  व्यक्ति अपनी इच्छानुसार कुछ भी बताना चाहे तो अवश्य सुनें किन्तु हर बात जानने की और सलाह देने की पहल कदापि ना करें, यदि सुनना भी चाहें तो अपनी भी बताएं इसी में आपकी समझदारी तथा बड़प्पन माना जाता है. सबसे अहम् ऐसा करने से आपसी रिश्ते-नातों में स्नेह व लगाव बना रहता है और आपसी सम्बन्ध अधिक प्रगाढ़ घनिष्ठ होते हैं, वर्षों तक परस्पर स्नेह की गांठ बंधी रहती है ढीली नहीं होती.

हम सभी भलीभांति जानते हैं व्यस्तता से परिपूर्ण ये जीवन अपनों के और पारिवारिक संबंधों के बिना नहीं बिताया जा सकता, प्रतिपल ख़ुशी-ख़ुशी भरपूर जीने के लिए नाते-रिश्तों का हमारे साथ होना बेहद ज़रूरी है इससे मानसिक अवसाद भी कम होने से काफी हद तक तनावमुक्त रहा जाता है. अतः कुछ बातों का ध्यान रख सालोंसाल प्रियजनों का संग-साथ पाकर खुशहाल जीवन बिताएं–

1. हरेक की अपनी पर्सनल लाइफ व बातें होती हैं, जिन्हें कई बार दूसरों के साथ साझा नहीं किया जा सकता. चाहे कोई कितना भी अपना सगा हो फिर भी उसके जीवन की हर घटना या बात जानने का प्रयास अथवा कोशिश कदापि ना करें.

2. किसी की व्यक्तिगत बातों की जानकारी इधर-उधर से भी मालुम करने की आदत स्वयं में विकसित ना करें, ऐसा करना हमारी अव्यवहारिकता और नासमझी दर्शाता है.

3. अन्य व्यक्ति इच्छुक हो अथवा ज़रुरत मुताबिक आपसे कोई अपनी बात शेयर करना चाहता हो तभी अपनी रुचि ज़ाहिर करें अन्यथा सुनने या मालुम करने में कोई उतावलापन ना दिखाएं. साथ ही अपनी राय-मशविरा बात-बात में देने की आदत से भी बचें.

4. यदि सामने वाले से आप कुछ बातों की जानकारी लेते हैं तो आवश्यकतानुसार ही लें ज़रूरत से ज़्यादा इच्छुक होना अच्छी बात नहीं है. और हाँ! स्वयं के बारे में भी विस्तारपूर्वक सही ढंग से बताएं, किसी तरह का दुराव-छिपाव आपस में ना होने दें इससे दूरियां भी नज़दीकियां बन जाती हैं रिश्तों में सदा अपनत्व बना रहता है.

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5. रिश्तों को बहुत ही सहेजकर- संभालकर रखा जाता है इन्हीं के सहारे ज़िन्दगी की हर चुनौती का सामना कर लिया जाता है, इसलिए आवश्यकता से अधिक एक-दूसरे की बातों या पर्सनल मामलों में हस्तक्षेप ना किया जाए ना ही पारिवारिक मामलों में बिन मांगे

सलाह-मशविरा दिया जाए. यदि लम्बे समय तक रिश्तों में स्नेह-प्यार लगाव व अपनापन रखना है तो आसपास बेफिज़ूल ध्यान केंद्रित करने की बजाय मैं और मेरा जीवन तक ही सोचें इसी में सुख व खुशियां निहित हैं.

अतः! थोड़ी सी सूझबूझ व समझदारी से प्यारे आत्मीय रिश्तों का बगीचा अपनों की खुशबू से महकते हुए सदैव आनंदमय सुखमय बना रहता है.

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