हमारे देश की महिलाएं पुरुषों की कितनी हमकदम?

हमारे देश में महिलाओं को पुरुषों का हमकदम बनाने के लिए महिला आयोग बनाया गया है. हर राज्य में आयोग की एक फौज है, जहां महिलाओं की परेशानियाँ सुनी और सुलझाई जाती है. लेकिन बीते कुछ समय से महिला आयोग संस्था की चाबियों का गुच्छा कुछ ज्यादा ही भारी हो गया इसलिए ये संभाले नहीं संभल रहा है और जमीन पर गिरने लगा है. केरल महिला आयोग में भी ऐसा ही कुछ हुआ.

आयोग की अध्यक्ष एम सी जोसेफिन ने घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला को रूखा सा जवाब देते हुए टरका दिया.दरअसल, आयोग अध्यक्ष टीवी पर लाइव में महिलाओं की परेशानी सुन रही थीं, इसी बीच घरेलू हिंसा की शिकार एक महिला, आयोग की अध्यक्ष को फोन पर अपनी आपबीती सुनाते हुए कहने लगी कि उसके पति और ससुराल वाले उसे काफी परेशान करते हैं. अध्यक्ष को जब पता चला कि लगातार हिंसा सहने के बाद भी महिला ने कभी उसकी शिकायत पुलिस में नहीं की, तो वे भड़क गईं और रूखे अंदाज में कहा ,‘अगर हिंसा सहने के बाद भी पुलिस में शिकायत नहीं करोगी तो ‘भुगतो’ उनका पीड़िता पर झल्लाने का वीडियो वायरल हुआ तो उन्होंने अपने पद का ही त्याग कर दिया.

लेकिन जाते-जाते वे कहना न भूलीं कि औरतें फोन करके शिकायत तो करती हैं, लेकिन जैसे ही पुलिसिया कार्यवाई की बात आती है, पीछे हट जाती हैं. इसके बाद से आयोग अध्यक्ष घेरे में आ गई कि कैसे इतने ऊंचे पद पर बैठी महिला, तकलीफ में जीती किसी औरत से इस तरह रुखाई से बात कर सकती है ! बात भले ही आकर अध्यक्ष की रुखाई पर सिमट गयी. लेकिन गौर करें तो मसाला कुछ और ही है. दरअसल मारपीट की शिकायत लेकर आई महिला चाहती थी कि आयोग की दबंग दिखने वाली महिला उसके पति को बुलाकर समझाए या सास पर रौब जमाकर उसे डरा दे कि बहू को तंग किया न, तो तुम्हारी खैर नहीं. वरना, क्या वजह है कि औरतें शिकायत लेकर आती तो हैं लेकिन पुलिस की दखल की बात सुनते ही वापस लौट जाती हैं.

ममता, बदला हुआ नाम’ के पति और सास उसपर जुल्म करते हैं. रोती-कलपती वह अपने मायके पहुँच जाती है. पर उसमें इतनी हिम्मत नहीं है कि उनकी शिकायत लेकर पुलिस में जाए. कारण, एक डर की अगर पति को पुलिस पकड़ कर ले गयी और बाद में जब वह छूट कर घर आएंगे, तो उस पर और जुल्म होगा. दूसरी बात ये भी की, पति के घर के सिवा दूसरा आसरा नहीं है, तो वह कहाँ जाएगी ?ममता दो बच्चों की माँ है और उसका मायका उतना मजबूत नहीं है, इसलिए वह पति और सास का जुल्म सहने को मजबूर है.

अक्सर पति ससुराल के हाथों हिंसा की शिकार महिला पुलिस के पास शिकायत लेकर नहीं जाती है यह सोचकर की घर की बात घर में ही रहनी चाहिए. और अगर पति का घर छूट गया तो वह कहाँ जाएगी ? लेकिन आसरा छूट जाने का और घर की बात घर में ही रहने वाली जनाना सोच औरतों पर काफी भारी पड़ रही है.UN वीमन का डेटा बताता है कि हर 3 में से 1 औरत अपने पति या प्रेमी के हाथों हिंसा की शिकार होती है. इसमें रेप छोड़कर बाकी सारी बातें शामिल है. जैसे पत्नी को मूर्ख समझना, बात-बात पर उसे नीचा दिखाना, उसे घर बैठने को कहना, बच्चे की कोई ज़िम्मेदारी न लेना या फिर मारपीट भी.

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भारत में महिलाओं पर सबसे ज्यादा यौन हिंसा होती है, वह भी पति या प्रेमी के हाथों. नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे ने साल 2016 में लगभग 7 लाख महिलाओं पर एक सर्वे किया था. इस दौरान लंबे सवाल-जवाब हुए थे, जिससे पता चला कि शादी-शुदा भारतीय महिलाओं के यौन हिंसा झेलने का खतरा दूसरे किस्म की हिंसाओं से लगभग 17 गुना ज्यादा होता है, लेकिन ये मामले कभी रिपोर्ट नहीं होते हैं. बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड जैसे कम साक्षरता दर वाले राज्यों के अलावा लिखाई-पढ़ाई के मामले में अव्वल राज्य जैसे केरल और कर्नाटक की औरतें भी पति या प्रेमी की शिकायत पुलिस में करते झिझकती है.देश की राजधानी दिल्ली के एक सामाजिक संगठन द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह बात सामने आई कि देश में लगभग 5 करोड़ महिलाएं घरेलू हिंसा की शिकार होती हैं लेकिन इनमें से केवल 0.1 प्रतिशत महिलाओं ने ही इसके खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज़ कराई है.

लेकिन हिंसा का यह डेटा तो सिर्फ एक बानगी है. असल कहानी तो काफी लंबी और खौफनाक है. लेकिन बात फिर आकर वहीं अटक जाती है कि जुल्म सहने के बाद भी महिलाएं चुप क्यों हैं ?

घरेलू हिंसा का मुख्य कारण क्या है ?

हमारे समाज में बचपन से ही लड़कियों को दबाया जाना, उसे बोलने न देना, लड़कियों के मन में लचारगी और बेचारगी का एहसास ऐसे भरा जाना, जैसे लड़कों में पोषण, घरेलू हिंसा का मुख्य कारण है. अक्सर माँ-बाप और रिश्तेदार यह कह कर लड़की का मनोबल तोड़ देते हैं कि बाहर अकेली जाओगी ? जमाना देख रही हो ? ज्यादा मत पढ़ो. शादी के बाद वैसे ही तुम्हें चूल्हा ही फूंकना है. ज्यादा पढ़ लिख गई, तो फिर लड़का ढूँढना मुश्किल हो जाएगा. राजनीतिक में जाओगी तो अपना ही घर बर्बाद करोगी, वगैरह वगैरह. फिर होता यही है कि चाहे लड़की कितनी भी पढ़ी लिखी, ऊंचे ओहदे पर चली  जाए, रिश्ता निभाना ही है, यह बात उसके जेहन में बैठ जाती है और सहना भी आ जाता है.  बचपन में पोलियो की घुट्टी से ज्यादा जनानेपन  की घुट्टी पिलाने के बाद भी अगर लड़की न समझे, तो दूसरे रास्ते भी होते हैं.

लड़की अपना दुख तकलीफ अगर माँ से कहे तो, नसीहतें मिलती है कि जहां चार बर्तन होते हैं, खड़कते ही हैं.यहाँ तक की गलत होने पर भी दामाद को नहीं, बल्कि बेटी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है कि ताकि रिश्ता न टूटे और बेटी अपने ससुराल में टिकी रहे.लड़की को समझ में आ जाता है कि मायका उसके लिए सच में पराया बन गया. और जब अपने ही उसकी बात नहीं सुन रहेहैं, फिर पुलिस में शिकायत कर के क्या हो जाएगा ? और रिश्ता ही बिगड़ेगा. यह सोचकर लड़की उसे ही अपनी किस्मत मान लेती है.

घरेलू हिंसा सहना और चुप्पी की एक वजह आर्थिक निर्भरता भी है. आमतौर पर महिलाओं को लगता है कि अगर पति का आसरा छूट गया तो वे कहाँ जाएंगी ? बच्चे कैसे पलेंगे ? बच्चे-पति के बीच महिला अपनी पढ़ाई-लिखाई को भी भूल जाती है.  उनके पास भी कोई डिग्री है, याद नहीं उन्हें. रोज खुद को मूर्ख सुनते हुए वे अपनी काबिलियत को ही भूल चुकी होती हैं. वे मान चुकी होती हैं कि पति की शिकायत पुलिस में करने के बाद उम्मीद का आखिरी धागा भी टूट जाएगा और वे बेसहारा हो जाएंगी. तो औरतें सहना ही अपना नसीब मान लेती हैं. लेकिन पुलिस में शिकायत के बाद भी क्या महिला को इंसाफ मिल पाता है ?

कहने को तो लगभग हर साल औरत-मर्द के बीच फासला जांचने के लिए कोई सर्वे होता है, रिसर्च होती है, कुछ कमेटियां बैठती है. लेकिन फर्क आसमान में ओजोन के सुराख से भी ज्यादा बड़ा हो चुका है.

पितृसत्तात्मक माने जाने वाले भारतीय समाज में, जहां शादियों को पवित्र रिश्ता का नाम दिया गया है, वहाँ एक पति का अपनी पत्नी के साथ रेप करना अपराध नहीं माना जाता.मुंबई की एक महिला ने सेशन कोर्ट में जब कहा कि पति ने उसके साथ जबर्दस्ती संबंध बनाए और जिसके चलते उसे कमर तक लकवा मार गया, इसके साथ ही उस महिला ने अपने पति और ससुराल वालों के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का केस भी किया, तो कोर्ट ने कहा कि महिला के आरोप कानून के दायरे में नहीं आते हैं. साथ ही कहा कि पत्नी के साथ सहवास करना अवैध नहीं कहा जा सकता है. पति ने कोई अनैतिक काम नहीं किया है. लेकिन साथ में कोर्ट ने महिला का लकवाग्रस्त होना दुर्भाग्यपूर्ण भी बताया. लेकिन यह भी कहा कि इसके लिए पूरे परिवार को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है.

2017 में केंद्र सरकार ने कहा था कि मैरिटल रेप का अपराधीकारण भारतीय समाज में विवाह की व्यवस्था को अस्थिर कर सकता है. वहीं 2019 में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा था कि मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की कोई जरूरत नहीं है.

मैरिटल रेप क्या है ?

जब एक पुरुष अपनी पत्नी की सहमति के बिना उसके साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स करता है तो इसे मैरिटल रेप कहा जाता है. मैरिटल रेप में पति किसी भी तरह के बल का प्रयोग करता है.

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मैरिटल रेप को लेकर भारत का क्या है कानून?

भारत के कानून के मुताबिक, रेप में अगर आरोपी महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता.IPC की धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है, ये कानून मैरिटल रेप को अपवाद मानता है. इसमें कहा गया है कि अगर पत्नी की उम्र 18 साल से अधिक है तो पुरुष का अपनी पत्नी के साथ सेक्सुअल इंटरकोर्स रेप नहीं माना जाएगा. भले ही ये इंटरकोर्स पुरुष द्वारा जबर्दस्ती या पत्नी की मर्ज़ी के खिलाफ किया गया हो.

2021 के अगस्त में भारत की अलग-अलगअदालतों में 3 मैरिटल रेप के मामलों में फैसला सुनाया गया. केरल हाई कोर्ट ने 6 अगस्त को एक फैसले में कहा था कि मैरिटल रेप क्रूरता है और यह तलाक का आधार हो सकता है. फिर 12 अगस्त को मुंबई सिटी एडिशनल सेशन कोर्ट ने कहा कि पत्नी की इच्छा के बिना यौन संबंध बनाना गैरकानूनी नहीं है. और 26 अगस्त को छत्तीसगढ़ कोर्ट ने मैरिटल रेप के एक आरोपी को यह कहते हुए बरी कर दिया कि हमारे यहां मैरिटल रेप अपराध नहीं है. मैरिटल रेप के चार केस कोर्ट तक पहुंचे लेकिन उन्हें खारिज कर दिया गया.सोशल मीडिया पर इस फैसले को लेकर बहस छिड़ गयी. जेंडर मामलों की रिसर्चर कोटा नीलिमा ने ट्विटर पर लिखा कि अदालतें कब महिलाओं के पक्ष में विचार करेंगी ?’उनके ट्विटर के जवाब में कई लोगों ने कहा कि इस पुराने कानूनी प्रावधान को बदल दिया जाना चाहिए. लेकिन कुछ लोग इस बात से सहमत नहीं दिखें. एक ने तो आश्चर्य जताते हुए पूछा कि ‘किस तरह की पत्नी मैरिटल रेप की शिकायत करेगी ? तो दूसरे ने कहा उसके चरित्र में ही कुछ खराबी होगी.

ब्रितानी औपनिवेशिक दौर का ये कानून भारत में साल 1860 से लागू है. इसके सेक्शन 375 में एक अपवाद का जिक्र है जिसके अनुसार अगर पति अपनी पत्नी के साथ सेक्स करे और पत्नी की उम्र 15 साल से कम की न हो तो इसे रेप नहीं माना जाता है. इस प्रावधान के पीछे मान्यता है कि शादी में सेक्स की सहमति छुपी हुई होती है और पत्नी इस सहमति को बाद में वापस नहीं ले सकती है.

लेकिन दुनिया भर में इस विचार को चुनौती दी गई और दुनिया के 185 देशों में से 151 देशों में मैरिटल रेप अपराध माना गया. खुद ब्रिटेन ने भी साल 1991 में मैरिटल रेप को ये कहते हुए अपराध की श्रेणी  में रख दिया कि ‘छुपी हुई सहमति को अब गंभीरता से लिया जा सकता है. लेकिन मैरिटल रेप को अपराध करार देने के लिए लंबे समय से चली आ रही मांग के बावजूद भारत उन 36 देशों में शामिल है जहां मैरिटल रेप को अपराध नहीं माना जाता है.भारत के कानून में आरोपी अगर महिला का पति है तो उस पर रेप का केस दर्ज नहीं हो सकता.और इसी वजह से कई महिलाएं शादी-शुदा ज़िंदगी में हिंसा का शिकार होने को मजबूर हैं.

फरवरी 2015 में सुप्रीम कोर्ट में एक मैरिटल रेप का मामला पहुंचा. दिल्ली में काम करने वाली एक MNC एग्जीक्यूटिव ने पति पर आरोप लगाया,‘ मैं हर रात उनके लिए सिर्फ एक खिलौने की तरह थी. जिसे वो अलग-अलग तरह से इस्तेमाल करना चाहते थे.जब भी हमारी लड़ाई होती थी तो वे सेक्स के दौरान मुझे टोर्चर करते थे. तबीयत खराब होने पर अगर कभी मैंने मना किया तो उन्हें यह बात बर्दाश्त नहीं होती थी’ 25 साल की इस लड़की के मामले को सुप्रीम कोर्ट ने यह कह कर खारिज कर दिया कि किसी एक महिला के लिए कानून नहीं बदला जा सकता है.

तो क्या भारत में महिला के पास पति के खिलाफ अत्याचार की शिकायत का अधिकार नहीं है ?

सीनियर एडवोकेड आभा सिंह कहती हैं कि इस तरह की प्रताड़ना की शिकार हुई महिला पति के खिलाफ सेक्शन 498A के तहत सेक्सुअल असोल्ट का केस दर्ज करा सकती हैं.इसके साथ ही 2005 के घरेलू हिंसा के खिलाफ बने कानून में भी महिलाएं अपने पति के खिलाफ सेक्सुअल असोल्ट का केस कर सकती हैं . इसके साथ ही अगर आपको चोट लगी है तो आप IPC की धाराओं में भी केस कर सकती हैं.लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि मैरिटल रेप को साबित करना बहुत बड़ी चुनौती  होगी. चारदीवारी के अंदर हुए गुनाह का सबूत दिखाना मुश्किल होगा.वो कहती हैं कि जिन देशों में मैरिटल रेप का कानून हैं वहाँ ये कितना सफल रहा है इससे कितना गुनाह रुका है ये कोई नहीं जानता .

एक तिहाई पुरुष मानते हैं कि वो जबरन संबंध बनाते हैं—–

  • इन्टरनेशनल सेंटर फॉर वुमेन और यूनाइटेड नेशन्स पॉपूलेशन फंड की ओर से साल 2014 में कराये गए एक सर्वे के अनुसार एक-तिहाई पुरुषों ने खुद यह माना कि वे अपनी पत्नियों के साथ जबरन सेक्स करते हैं.
  • नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे—3 के मुताबिक, भारत के 28 राज्यों में 10% महिलाओं का कहना है कि उनके पति जबरन उनके साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं जबकि ऐसा करना दुनिया के 151 देशों में अपराध है.
  • एक सरकारी सर्वे के मुताबिक, 31 फीसदी विवाहित महिलाओं पर उनके पति शारीरिक, यौन और मानसिक उत्पीड़न करते हैं.यूनिवर्सिटी ऑफ वॉरविक और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे उपेंद्र बख़्शी का कहना है कि ‘मेरे विचार से इस कानून को खत्म कर दिया जाना चाहिए. वो कहते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में भारत में महिलाओं के खिलाफ होने वाले घरेलू हिंसा और यौन हिंसा से जुड़े कानूनों में कुछ प्रगति जरूर हुई है लेकिन वैवाहिक बलात्कार रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया है. साल 1980 में प्रोफेसर बख़्शी उन जाने-माने वकीलों में शामिल थे जिन्होंने सांसदों की समिति को भारत में बलात्कार से जुड़े क़ानूनों में संशोधन को लेकर कई सुझाव भेजे थे. उनका कहना था कि समिति ने उनके सभी सुझाव स्वीकार कर लिए थे, सिवाय मैरिटल रेप को अपराध घोषित कराने के सुझाव को. उनका मानना है कि शादी में बराबरी होनी चाहिए और एक पक्ष को दूसरे पर हावी होने की इजाजत नहीं होनी चाहिए. आप अपने पार्टनर से ‘सेक्सुअल सर्विस’ की डिमांड नहीं कर सकते.

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लेकिन सरकार ने तर्क दिया कि वैवाहिक कानून का आपराधिकरण विवाह की संस्था को ‘अस्थिर’ कर सकता है और महिलाएं इसका इस्तेमाल पुरुषों को परेशान करने के लिए कर सकती हैं. लेकिन हाल के वर्षों में कई दुखी पत्नियाँ और वकीलों ने अदालतों में याचिका दायर के इस ‘अपमानजनक कानून’ को खत्म करने की मांग की है. संयुक्त राष्ट्र, ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने भी भारत के इस रवैये पर चिंता जताई है.

कई जजों ने भी स्वीकार किया है कि एक पुराने कानून का आधुनिक समाज में कोई स्थान नहीं है. उनका ये भी कहना है कि संसद को वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित कर देना चाहिए.

नीलिमा कहती हैं कि ये कानून महिलाओं के अधिकारों का ‘स्पष्ट उल्लंघन है और इसमें पुरुषों को मिलने वाली इम्यूनिटी ‘अस्वभाविक है. इसी वजह से इससे संबन्धित अदालती मामलों की संख्या बढ़ती जा रही है. वो कहती है कि भारत में आधुनिकता एक मुखौटा है. अगर आप सतह को खंरोचें तो असली चेहरा दिखाता. महिला अपने पति की संपत्ति बनी रहती है. 1947 में भारत का आधा हिस्सा आजाद हुआ था. बाकी आधा अभी भी गुलाम है.

नीलिमा कहती हैं कि इसमें हस्तक्षेप की जरूरत है और इसे हमारे जीवनकाल में बदलना चाहिए. बात जब वैवाहिक बलात्कार की आती है तो बाधाएं अधिक ऊंची होती हैं. ये मामला पहले ही सुलझ जाना चाहिए था. हम आने वाली पीढ़ियों के लिए नहीं लड़ रहे हैं. हम अभी भी इतिहास की गलतियों से लड़ रहे हैं और यह लड़ाई महत्वपूर्ण है.

इस वक़्त दुनिया के कितने देशों में मैरिटल रेप अपराध है ?

19वीं सदी में फेमिनिस्ट प्रोटेस्ट के बाद भी शादी-शुदा पुरुषों को पत्नी के साथ सेक्स का कानूनी अधिकार था.साल 1932 में पोलेंड दुनिया का पहला देश बना जिसने मैरिटल रेप को अपराध घोषित किया.1970 तक स्वीडन, नार्वे, डेनमार्क, सोवियत संघ जैसे देशों ने भी मैरिटल रेप को अपराध की श्रेणी में डाल दिया था. 1976 में ऑस्ट्रेलिया और 80 के दशक में साउथ अफ्रीका, आयरलैंड, कनाडा, अमेरिका, न्यूजीलैंड, मलेशिया, घाना और इज़राइल ने भी इसे अपराध की लिस्ट में डाल दिया.

संयुक्त राष्ट्र यानि UN की प्रोग्रेस ऑफ वर्ल्ड वुमन रिपोर्ट 2018 के मुताबिक, दुनिया के 185 देशों में 77 देश ऐसे हैं जहां मैरिटल रेप को अपराध बताने वाले स्पष्ट कानून हैं. जबकि 74 ऐसे हैं जहां पत्नी को पति के खिलाफ रेप के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज कराने का अधिकार है. भारत के पड़ोसी देश भूटान में भी मैरिटल रेप अपराध है.

लेकिन सिर्फ 34 देश ही ऐसे हैं जहां न तो मैरिटल रेप अपराध है और न ही पत्नी अपने पति के खिलाफ रेप के लिए आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकती है. इनमें चीन, बांगलादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, सऊदी अरब और भारत देश है. इसके अलावा दुनिया के 12 देशों में इस तरह के प्रावधान हैं जिसमें बलात्कार का आरोपी अगर महिला से शादी कर लेता है तो उसे आरोपों से बरी कर दिया जाता है. यूएन इसे बेहद भेदभाव मानवाधिकारोंके खिलाफ मानता है.

वैवाहिक बलात्कार महिलाओं के लिए एक अपमान की तरह है, क्योंकि यहाँ दूसरे पुरुषों की तरह ही अपने पति द्वारा यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़,द्र्श्यरतिकता और जबरन नग्न करने जैसे कृत्य पत्नियों के लिए किसी अपमान से कम नहीं है.पतियों द्वारा वैवाहिक बलात्कार महिलाओं में तनाव, अवसाद, भावनात्मक संकट और आत्महत्या के विचारों जैसे मानसिक स्वास्थय प्रभाव उत्पन्न कर सकता है. वैवाहिक बलात्कार और हिंसक आचरण बच्चों के स्वास्थ्य और सेहत को भी प्रभावित कर सकता है. पारिवारिक हिंसक  माहौल उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित कर सकता है. स्वयं और बच्चों की देखरेख में महिलाओं की क्षमता कमजोर पड़ सकती है.बलात्कार की परिभाषा में वैवाहिक बलात्कार को अपवाद के रूप में रखना महिलाओं की गरिमा, समानता और स्वायत्तता के विरुद्ध है.

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Festive Special: Newly Weds के लिए होम डेकोर टिप्स

जहां तक घर सजाने का सवाल है इसमें पुरुष और महिलाओं की पसंद अलग-अलग होती है. नव विवाहितों के लिए घर सजाना ज्यादा परेशानी भरा होता है. आपको समझ नहीं आएगा कि घर को कैसे सजाएं? नवविवाहित जोड़ों के लिए घर सजाने के कुछ आइडिया आपकी मदद कर सकते हैं.

अपने पहले घर को सजाने में आप दोनों के आइडिया भी आपस में टकरा सकते हैं. यह खास तौर पर तब होता है यदि आप दोनों अलग-अलग माहौल में पले बढ़े हैं. झुंझलाने की बजाय दोनों के आइडियाज को आपस में मिलाकर घर को एक विशेष लुक देते हुये इस समस्या का समाधान किया जा सकता है.

नव विवाहितों के लिए घर सजाने के टिप्स-

जगह

नए घर को सेट करते समय कमरों की स्पेस और साइज पर ध्यान दें. यदि आपके पास जगह कम है तो आप मल्टी-परपज फर्नीचर ले सकते हैं. उदाहरण के लिए कम वजन वाला सोफा जो कि बैड का रूप भी ले लेता है. यदि आपके पास जगह ज्यादा है तो आप उस जगह को डिवाइड कर छोटे हिस्से कर लें. उदाहरण के लिए आप लिविंग रूम के छोटे हिस्से में कॉफी टेबल के पास सोफा या चारों और कुर्सियां लगाकर ग्रुप टॉक की जगह बना सकते हैं. नव विवाहितों के लिए घर सजाने का यह एक अच्छा आइडिया है.

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बजट

आपको घर को सेट करने की शुरुआत बजट का हिसाब लगाकर करना चाहिए. निर्धारित करें कि घर में क्या जरूरी सामान चाहिए? और फिर अपने बजट के अनुसार सामान खरीदें. होम स्टोर्स में जाएं, जरूरी चीजों की कीमतें देखें और फिर खरीदें. नए घर को सेट करते समय यह बहुत ध्यान देने वाली बात है.

फर्नीचर

घर को फर्नीचर से ज्यादा ना भरें. घर की जरूरी चीजें जैसे सोफा, बैड, डायनिंग सैट और स्टोरेज कैबिनेट आदि पर ज्यादा ध्यान दें. ट्रेंड्स को फॉलो करने में अंधे ना बने. बीन बैग्स, आर्ट वर्क, शो-पीस आदि चीजों को जरूरी चीजों के बाद खरीदें. सब चीजें तरीके से खरीदें. यह भी नव विवाहितों के लिए घर सजाने का अच्छा आइडिया है.

रिसर्च

घर के कमरों को ध्यान से देख लें और खास तौर पर बिना किसी साज-सज्जा के. यदि आप अपनी बालकनी को सुस्ताने की जगह बनाना चाहते हैं तो यहां पर झूला या किताब की दराज लगा दें. यह घर सजाने का बहुत महत्वपूर्ण बिन्दु है.

सुविधा

घर होता है सुविधा के लिए. इसलिए घर को ज्यादा नहीं भरें. हर चीज को साफ-सुथरे तरीके से रखें. अगर फर्नीशिंग ज्यादा हो जाये तो भी अफसोस ना करें. आप इसे समय के साथ ठीक कर सकते हैं. हाल-फिलहाल आपका ध्यान घर को रहने की एक सुविधाजनक जगह बनाने पर होना चाहिए.

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शांति से काम करें

घर सेट करते समय शांति और समझौते से काम लेना बहुत जरूरी है. आपकी तरह ही आपके पार्टनर के लिए भी घर सजाना नई बात है. एक दूसरे की पसंद और आइडिया का सही तालमेल बिठाएं और दोनों के दिमाग से घर को एक शानदार और खास लुक दें. नवविवाहित जोड़ों के लिए घर सजाना नया है इसलिए आपको अपने पर्याप्त विचार रखने चाहिए.

डेंचर से अपनी खूबसूरत मुस्कान वापस पाएं!

पिछले कुछ दशकों में दांतो का गिरना दुनिया में लोगों की एक बड़ी समस्या बना हुआ है. ओरल हैल्थ की स्थिति जानने के लिए इसे एक महत्वपूर्ण संकेत माना जाता है क्योंकि इससे मुंह की बीमारियों के प्रभाव, दांतों की हाईज़ीन के प्रति व्यक्ति के व्यवहार, डेंटल सेवाओं की उपलब्धता तथा ओरल हैल्थ के बारे में लोगों के विश्वास/सांस्कृतिक मूल्यों का पता चलता है.

दांतों का गिरना लोगों को सदमा देता है और इसे जीवन का एक बड़ा नुकसान माना जाता है, जिसके लिए सामाजिक व मनोवैज्ञानिक रूप से काफी समायोजन करने की जरूरत पड़ती है. दांतों का रिप्लेसमेंट एक कला है, जिसमें टूटे हुए दांत की जगह कृत्रिम दांत लगा दिया जाता है या डेंटल प्रोस्थेसिस किया जाता है. टूटे हुए दांत की जगह दूसरा दांत लगाना जरूरी क्यों है, इसके अनेक कारण हैंः

आपके मुंह में पूरे दांत होने से आपमें आत्मविश्वास आता है. आपको चिंता नहीं रहती कि आपका टूटा दांत लोगों की नजर में आएगा.

दांत टूटने पर जबड़े का वो हिस्सा, जिस पर दांत लगा होता है, उसका आकार कम हो जाता है. डेंटल इंप्लांट सपोटेर्ड प्रोस्थेसिस से हड्डी बचाए रखने और अपने जबड़े का आकार बनाए रखने में मदद मिलती है.

दांत टूटने से आपके बोलने के तरीके में परिवतर्न आ जाता है.

दांत टूटने से आपकी चबाने तथा विभिन्न तरह की खाद्य वस्तु को खाने की क्षमता बदल जाती है. ऐसा आम तौर पर देखा जाता है कि चबाना मुश्किल हो जाने से लोग कुछ चीजें खाने से परहेज करने लगते हैं, इसलिए जिन लोगों के दांत टूटे हुए होते हैं, उनका पोषण खराब होता है और उनके स्वास्थ्य पर असर पड़ता है.

दांतों के टूटने से आपके द्वारा काटने तथा आपके दांत किस प्रकार आपस में मिलते हैं, उसका तरीका बदल जाता है, जिससे जबड़े के जोड़ में समस्या पैदा हो सकती है.

यद्यपि डेंचर बाजार में उपलब्ध सबसे किफायती रिमूवेबल डेंटल प्रोस्थेसिस में से एक हैं. अधिकांश लोग अपने दांतों की जगह डेंचर लगवाना ही पसंद करते हैं. आज भारत में 45 साल से अधिक उम्र के हर 7 में से 1 व्यस्क डेंचर लगाता है. ये डेंचर संपूणर् या आंशिक हो सकते हैं.

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संपूर्ण डेंचर –

संपूर्ण डेंचर प्लास्टिक आधार के बने होते हैं, जो मसूढ़ों के रंग का होता है और प्लास्टिक या पोसेर्लीन के दांतों का पूरा सेट इस पर लगा होता है.

आंशिक डेंचर –

आंशिक डेंचर या तो प्लास्टिक बेस या फिर मैटल फ्रेमवकर् का बना होता है, जो रिप्लेस किए जाने वाले दांतों की संख्या को सपोटर् करता है. इसे मुंह के अंदर क्लैस्प एवं रेस्ट द्वारा लगाकर रखा जाता है, जो आपके प्राकृतिक दांतों के चारों ओर स्थित हो जाते हैं.

इंप्लांट सपोटेर्ड डेंचर –

इंप्लांट रिटेंड ओवरडेंचर एक रिमूवेबल डेंटल प्रोस्थेसिस है, जिसे बचे हुए ओरल टिश्यू सपोटर् करते हैं और इसे लगाए रखने के लिए डेंटल इंप्लांट किया जाता है.

डेंचर व्यक्ति का रूप बनाए रखते हैं. ये दिखाई नहीं देते. डेंचर फिक्सेटिव या एधेसिव डेंचर पहनने वालों को अच्छा फिट एवं आराम देता है. डेंचर फिक्सेटिव से निम्नलिखित आराम मिलता हैः

डेंचर का कम मूवमेंट एवं चबाने की क्रिया में सुधार.

बाईटिंग (काटने) के लिए सवार्धिक बल, रिटेंशन व स्थिरता.

डेंटल प्लाक कम या फिर बिल्कुल नहीं होने से डेंचर पहनने वालों की ओरल हाईज़ीन में सुधार.

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डेंचर बेस के नीचे खाने के कम अटकने के चलते म्यूकोसल इरीटेशन कम होना.

डेंचर पहनने वाले की मनोवैज्ञानिक सेहत में सुधार.

हालांकि दांतों का रिप्लेसमेंट तभी सफल होता है, जब मरीज उत्साहित हो एवं विभिन्न तरह के प्रोस्थेसिस, उनके उपयोग एवं मेंटेनेंस के बारे में जानता हो. ओरल हाईज़ीन, क्लीनिंग एवं डेंचर का सही उपयोग, डेंचर फिक्सेटिव/एधेसिव का उपयोग आजीवन चलने वाली प्रक्रियाएं हैं. शुरुआत में यह मुश्किल लग सकता है, लेकिन यह आपके चेहरे की मुस्कुराहट वापस लेकर आ जाएगा.

डॉ अनंत राज, मुंबई से बातचीत पर आधारित

औकात से ज्यादा: भाग 1- सपनों की रंगीन दुनिया के पीछे का सच जान पाई निशा

लड़कियों को काम कर के पैसा कमाते देख निशा के अंदर भी कुछ करने का जोश उभरा. सिर्फ जोश ही नहीं, निशा के अंदर ऐसा आत्मविश्वास भी था कि वह दूसरों से बेहतर कर सकती थी. निशा कुछ करने को इसलिए भी बेचैन थी क्योंकि नौकरी करने वाली लड़कियों के हाथों में दिखलाई पड़ने वाले आकर्षक व महंगे टच स्क्रीन मोबाइल फोन अकसर उस के मन को ललचाते थे और उस की ख्वाहिश थी कि वैसा ही मोबाइल फोन जल्दी उस के हाथ में भी हो. निशा के सपने केवल टच स्क्रीन मोबाइल फोन तक ही सीमित नहीं थे.  टच स्क्रीन मोबाइल से आगे उस का सपना था फैशनेबल कीमती लिबास और चमचमाती स्कूटी. निशा की कल्पनाओं की उड़ान बहुत ऊंची थी, मगर उड़ने वाले पंख बहुत छोटे. अपने छोटे पंखों से बहुत ऊंची उड़ान भरने का सपना देखना ही निशा की सब से बड़ी भूल थी. वह जिस उम्र में थी, उस में अकसर लड़कियां ऐसी भूल करती हैं. वास्तव में उन को इस बात का एहसास ही नहीं होता कि सपनों की रंगीन दुनिया के पीछे की दुनिया कितनी बदसूरत व कठोर है.

अपने सपनों की दुनिया को हासिल करने को निशा इतनी बेचैन और बेसब्र थी कि मम्मी और पापा के समझाने के बावजूद 12वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद उस ने आगे की पढ़ाई के लिए कालेज में दाखिला नहीं लिया. वह बोली, ‘‘नौकरी करने के साथसाथ आगे की पढ़ाई भी हो सकती है. बहुत सारी लड़कियां आजकल ऐसा ही कर रही हैं. कमाई के साथ पढ़ाई करने से पढ़ाई बोझ नहीं लगती.’’ ‘‘जब हमें तुम्हारी पढ़ाई बोझ नहीं लगती तो तुम को नौकरी करने की क्या जल्दी है?’’ मम्मी ने निशा से कहा. ‘‘बात सिर्फ नौकरी की ही नहीं मम्मी, दूसरी लड़कियों को काम करते और कमाते हुए देख कई बार मुझ को कौंप्लैक्स  महसूस होता है. मुझे ऐसा लगता है जैसे जिंदगी की दौड़ में मैं उन से बहुत पीछे रह गई हूं,’’ निशा ने कहा. ‘‘देख निशा, मैं तेरी मां हूं. तुम को समझाना और अच्छेबुरे की पहचान कराना मेरा फर्ज है. दूसरों को देख कर कुछ करने की बेसब्री अच्छी नहीं. देखने में सबकुछ जितना अच्छा नजर आता है, जरूरी नहीं असलियत में भी सबकुछ वैसा ही हो. इसलिए मेरी सलाह है कि नौकरी करने की जिद को छोड़ कर तुम आगे की पढ़ाई करो.’’

‘‘जमाना बदल गया है मम्मी, पढ़ाई में सालों बरबाद करने से फायदा नहीं.  बीए करने में मुझे जो 3 साल बरबाद करने हैं, उस से अच्छा इन 3 सालों में कहीं जौब कर के मैं अपना कैरियर बनाऊं,’’ निशा ने कहा. मम्मी के लाख समझाने के बाद भी निशा नौकरी की तलाश में निकल पड़ी. उस के अंदर जबरदस्त जोश और आत्मविश्वास था. उस के पास ऊंची पढ़ाई के सर्टिफिकेट और डिगरियां नहीं थीं, लेकिन यह विश्वास अवश्य था कि अगर अवसर मिले तो वह बहुतकुछ कर के दिखा सकती है. वैसे देखा जाए तो लड़कियों के लिए काम की कमी ही कहां? मौल्स, मोबाइल और इंश्योरैंस कंपनियों, बड़ीबड़ी ज्वैलरी शौप्स और कौस्मैटिक स्टोर आदि पर ज्यादातर लड़कियां ही तो काम करती नजर आती थीं. ऐसी जगहों पर काम करने के लिए ऊंची क्वालिफिकेशन से अधिक अच्छी शक्लसूरत की जरूरत थी जोकि निशा के पास थी. सिर्फ अच्छी शक्लसूरत कहना कम होगा, निशा तो एक खूबसूरत लड़की थी. उस में वह जबरदस्त चुंबकीय खिंचाव था जो पुरुषों को विचलित करता है. कहने वाले इस चुंबकीय खिंचाव को सैक्स अपील भी कहते हैं.

निशा उत्साह और जोश से भरी नौकरी की तलाश में निकली अवश्य, मगर जगह- जगह भटकने के बाद मायूस हो वापस लौटी. नौकरी का मिलना इतना आसान नहीं जितना लगता था. निशा 3 दिन नौकरी की तलाश में घर से निकली, मगर उस के हाथ सिर्फ निराशा ही लगी. इस पर मम्मी ने उस को फिर से समझाने की कोशिश की, ‘‘मैं फिर कहती हूं, यह नौकरीवौकरी की जिद छोड़ और आगे की पढ़ाई कर.’’ निशा अपनी मम्मी की कहां सुनने वाली थी. उस पर नौकरी का भूत सवार था. वैसे भी, बढ़े हुए कदमों को वापस खींचना अब निशा को अपनी हार की तरह लगता था. वह किसी भी कीमत पर अपने सपनों को पूरा करना चाहती थी. फिर एक दिन नौकरी की तलाश में निकली निशा, घर आई तो उस के चेहरे पर अपनी कामयाबी की चमक थी. निशा को नौकरी मिल गई थी. नौकरी के मिलने की खुशखबरी निशा ने सब से पहले अपनी मम्मी को सुनाई थी. निशा को नौकरी मिलने की खबर से मम्मी उतनी खुश नजर नहीं आईं जितना कि निशा उन्हें देखना चाहती थी.

मम्मी शायद इसलिए एकदम से अपनी खुशी जाहिर नहीं कर सकीं क्योंकि एक मां होने के नाते जवान बेटी की नौकरी को ले कर दूसरी तरह की कई चिंताएं थीं. इन चिंताओं को अपनी रंगीन कल्पनाओं में डूबी निशा नहीं समझ सकती थी. बेटी की नौकरी की खबर से खुश होने से पहले मम्मी कई बातों को ले कर अपनी तसल्ली कर लेना चाहती थीं.

‘‘किस जगह पर नौकरी मिली है तुम को?’’ मम्मी ने पूछा.

‘‘शहर के एक बहुत बड़े शेयरब्रोकर के दफ्तर में. वहां पहले भी बहुत सारी लड़कियां काम कर रही हैं.’’

‘‘तनख्वाह कितनी होगी?’’

‘‘शुरू में 20 हजार रुपए, बाद में बढ़ जाएगी,’’ इतराते हुए निशा ने कहा. नौकरी को ले कर मम्मी के ज्यादा सवाल पूछना निशा को अच्छा नहीं लग रहा था. तनख्वाह के बारे में सुन मम्मी का माथा जैसे ठनक गया. उन को सबकुछ असामान्य लग रहा था.  बेटी की योग्यता को देखते हुए 20 हजार रुपए तनख्वाह उन की नजर में बहुत ज्यादा थी. एक मां होने के नाते उन को इस में सब कुछ गलत ही गलत दिख रहा था. वे जानती थीं कि मात्र 7-8 हजार रुपए की नौकरी पाने के लिए बहुत से पढ़ेलिखे लोग इधरउधर धक्के खाते फिर रहे थे. ऐसे में अगर उन की इतनी कम पढ़ीलिखी लड़की को इतनी आसानी से 20 हजार रुपए माहवार की नौकरी मिल रही थी तो इस में कुछ ठीक नजर नहीं आता था. निशा की मम्मी ने दुनिया देखी थी, इसलिए उन को मालूम था कि अगर कोई किसी को उस की काबिलीयत और औकात से ज्यादा दे तो इस के पीछे कुछ मतलब होता है, और औरत जात के मामले में तो खासकर. लेकिन निशा की उम्र शायद अभी इस बात को समझने की नहीं थी. उजालों के पीछे की अंधेरी दुनिया के सच से वह अनजान थी. सोचने और विचार करने वाली बात यह थी कि मात्र दरजा 10+2 तक पढ़ी हुई अनुभवहीन लड़की को शुरुआत में ही कोई इतनी मोटी तनख्वाह कैसे दे सकता था. मम्मी को हर बात में सबकुछ गलत और संदेहप्रद लग रहा था, इसलिए उन्होंने निशा को उस नौकरी के लिए साफसाफ मना किया, ‘‘नहीं, मुझ को तुम्हारी यह नौकरी पसंद नहीं, इसलिए तुम वहां नहीं जाओगी.’’

मम्मी की बात को सुन निशा जैसे हैरानी में पड़ गई और बोली, ‘‘इस में नापसंद वाली कौन सी बात है, मम्मी? इतनी अच्छी सैलरी है. किसी प्राइवेट नौकरी में इतनी बड़ी सैलरी मिलना बहुत मुश्किल है.’’ ‘‘सैलरी इतनी बड़ी है, इस कारण ही तो मुझ को यह नौकरी नापसंद है,’’ मम्मी ने दोटूक लहजे में कहा.

‘‘सैलरी इतनी बड़ी है इसलिए तुम को यह नौकरी पसंद नहीं?’’

‘‘हां, क्योंकि मैं नहीं मानती सही माने में तुम इतनी बड़ी सैलरी पाने के काबिल हो. जो कोई भी तुम को इतनी सैलरी देने जा रहा है उस की मंशा में जरूर कुछ खोट होगी,’’ मम्मी ने अपने मन की बात निशा से कह दी. मम्मी की बात को निशा ने सुना तो गुस्से से उत्तेजित हो उठी, ‘‘आप पुरानी पीढ़ी के लोगों को न जाने क्यों हर अच्छी चीज में कुछ गलत ही नजर आता है. वक्त बदल चुका है मम्मी, अब काबिलीयत का पैमाना सर्टिफिकेटों का पुलिं?दा नहीं बल्कि इंसान की पर्सनैलिटी और काम करने की उस की क्षमता है.’’

‘‘मैं इस बात को नहीं मानती.’’

‘‘मानना न मानना तुम्हारी मरजी है मम्मी, मगर ऐसी बातों का खयाल कर के मैं इतनी अच्छी नौकरी को हाथ से जाने नहीं दे सकती. मैं बड़ी हो गई हूं, इसलिए अपनी जिंदगी के फैसले खुद लेने का मुझे हक है,’’ निशा के तेवर बगावती थे. उस के बगावती तेवरों को देख मम्मी एकाएक जैसे ठिठक सी गईं, ‘‘एक मां होने के नाते तुम को समझाना मेरा फर्ज था, मगर लगता है तुम मेरी बात मानने के मूड में नहीं हो. अब इस मामले में तुम्हारे पापा ही तुम से कोई बात करेंगे.’’

‘‘मैं पापा को मना लूंगी,’’ निशा ने लापरवाही से कहा. मम्मी के विरोध को दरकिनार कर के निशा ने जैसा कहा, वैसे कर के भी दिखलाया और नौकरी पर जाने के लिए पापा को मना लिया. लेकिन मम्मी निशा से नाराज ही रहीं. मम्मी की नाराजगी की परवा नहीं कर के निशा नौकरी पर चली गई. एक नौकरी उस के कई सपनों को पूरा करने वाली थी, इसलिए वह रुकती तो कैसे रुकती. मगर उस को यह नहीं मालूम था कि कभीकभी अपने कुछ सपनों की अप्रत्याशित कीमत भी चुकानी पड़ती है. संजय शहर का एक नामी शेयरब्रोकर था. पौश इलाके में स्थित उस का एअरकंडीशंड औफिस काफी शानदार था और उस में कई लड़कियां काम करती थीं. शेयरब्रोकर संजय की उम्र तकरीबन 40 वर्ष थी. उस का सारा रहनसहन और जीवनशैली एकदम शाही थी. ऐसा क्यों नहीं होता, एक ब्रोकर के रूप में वह हर महीने लाखों की कमाई करता था. संजय के औफिस में एक नहीं, कई कंप्यूटर थे जिन के जरिए वह दुनियाभर के शेयर बाजारों के बारे में पलपल की खबर रखता था.

आगे पढ़ें- निशा के सपनों का संसार और बड़ा हो रहा था….

दो युवतियां: भाग 3- क्या हुआ था प्रतिभा के साथ

मेरी समझ में अच्छी तरह आ गया है कि मेरी सुंदरता प्रियांशी के सामने बिलकुल वैसी ही है, जैसी पूर्णिमा की रात को उस के अगलबगल रहने वाले तारों की होती है, जो चांद की चमक के सामने किसी को दिखाई नहीं देते. मैं ने मन बना लिया है कि यदि मुझे अपने अस्तित्व को बचाए रखना है, तो प्रियांशी से दूर जाना होगा.

वह अच्छी युवती है, अच्छी दोस्त है, सलाहकार है, लेकिन इस उम्र में मुझे एक अच्छी दोस्त की नहीं बल्कि एक अच्छे प्रेमी की आवश्यकता है. मेरे बदन में जो आग है उसे प्रेमी की ठंडी फुहारें ही बुझा सकती हैं. मैं प्रियांशी से धीरेधीरे किनारा कर रही हूं और उसे इस बात का आभास भी हो गया है, लेकिन मुझे उस की चिंता नहीं करनी है. उस की चिंता करूंगी तो मैं कभी किसी युवक का प्यार हासिल नहीं कर पाऊंगी.

सौंदर्य और प्रेम के बीच एक अनोखा विरोधाभास मैं ने अनुभव किया. अधिक सुंदर युवती अति साधारण रंगरूप और कदकाठी वाले युवक के साथ प्यार के रंग में रंग जाती है, तो दूसरी तरफ अति साधारण युवती अति सुंदर और अमीर युवक को फंसाने में कामयाब हो जाती है. इस में अपवाद भी हो सकते हैं, परंतु विरोधाभास बहुत है और यह एक परम सत्य है.

मेरे सौंदर्य पर कई युवक मरने लगे थे. अत: मैं ने किसी एक युवक को चुना. प्रियांशी के ठुकराए प्रेमी ही मेरा शिकार बन सकते थे, क्योंकि घायल की गति घायल ही जान सकता था. मैं ने प्रवीण की तरफ ध्यान दिया. वह अमीर युवक था और कार से कालेज आता था. उस से बात करने में कई दिन लग गए. जब वह एकांत में मिला तो मैं ने हलके से मुसकरा कर उस की तरफ देखा. उस के होंठों पर भी एक टूटी हुई मुसकराहट बिखर गई. मैं ने अपनी शर्म त्याग दी थी, संकोच को दबा दिया था. प्यार के लिए यह दोनों ही दुश्मन होते हैं. मैं ने कहा, ‘‘कैसे हैं?’’

‘‘ठीक हूं. आप कैसी हैं?’’

‘‘बस, ठीक ही हूं. आप तो हम जैसे साधारण लोगों की तरफ ध्यान ही नहीं देते कि कभी हालचाल ही पूछ लें.’’

वह संकोच से दब गया, ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है.’’

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फिर वह चुप हो कर ध्यान से मेरा चेहरा देखने लगा. मैं एकटक उसे ही देख रही थी. मैं ने बिना हिचक कहा, ‘‘केवल गुलाब के फूल ही खुशबू नहीं देते, दूसरे फूलों में भी खुशबू होती है. कभी दूसरी तरफ भी नजर उठा कर देख लिया कीजिए.’’

प्रवीण के चेहरे पर हैरानी के भाव दिखाई दिए. मैं लगातार मुसकराते हुए उसे देखे जा रही थी. वह मेरे मनोभाव समझ गया. थोड़ा पास खिसक आया और बोला, ‘‘प्रियांशी के साथ रहते हुए कभी ऐसा नहीं लगा कि आप के मन में ऐसा कुछ है. आप तो सीधीसादी, साधारण सी चुप रहने वाली युवती लगती थीं. कभी आप को हंसतेमुसकराते या बात करते नहीं देखा. ऐसी नीरस युवती से कैसे प्यार किया जा सकता है.’’

‘‘नहीं, यह बात नहीं है. आप प्रियांशी के सौंदर्य की चमक में खोए हुए थे, तभी तो आप को उस के पास जलता हुआ चिराग दिखाई नहीं दिया. लेकिन यह सत्य है कि चांद सब का नहीं होता और चांद की चमक घटतीबढ़ती रहती है. उस के जीवन में अमावस भी आती है, लेकिन चिराग तो सब के घरों में होता है और यह सदा एक जैसा ही चमकता है.’’

‘‘वाह, बातें तो आप बहुत सुंदर कर लेती हैं. आप का दिल वाकई बहुत खूबसूरत है. मैं समुद्र में पानी तलाश रहा था, जबकि खूबसूरत मीठे जल की झील मेरे सामने ही लहरा रही है.’’

‘‘आप उस झील में डुबकी लगा सकते हैं.’’

‘‘सच, मुझे विश्वास नहीं होता,’’ उस ने अपना हाथ मेरी तरफ बढ़ाया.

मैं ने लपक कर उस का हाथ थाम लिया, ‘‘आप विश्वास कर सकते हैं. मैं प्रियांशी नहीं प्रतिमा हूं.’’

‘‘उसे भूल गया मैं,’’ कह कर उस ने मुझे अपने आगोश में ले लिया.

‘‘आग दोनों तरफ लगी थी और उसे बुझाने की जल्दी भी थी. पहले तो हम उस की कार में घूमे, फिर पार्क के एकांत कोने में बैठ कर गुफ्तगू की, हाथ में हाथ डाल कर टहले. प्यार की प्राथमिक प्रक्रिया हम ने पूरी कर ली, पर इस से तो आग और भड़क गई थी. दोनों ही इसे बुझाना चाहते थे. मैं इशारोंइशारों में उस से कहती, कहीं और चलें?’’

‘‘कहां?’’ वह पूछता.

‘‘कहीं भी, जहां केवल हम दोनों हों, अंधेरा हो और…’’

फिर हम दोनों शहर के बाहर एक रिसोर्ट में गए. प्रवीण ने वहां एक कौटेज बुक कर रखा था. वहां हम दोनों स्वतंत्र थे. दिन में खूब मौजमस्ती की और रात में हम दोनों… वह हमारा पहला मिलन था, बहुत ही अद्भुत और अनोखा… पूरी रात हम आनंद के सागर में गोते लगाते रहे. पता ही नहीं चला कि कब रात बीत गई.

फिर यह सिलसिला चल पड़ा.

प्यार के इस खेल से मैं ऐसी सम्मोहित हुई और उस में इस तरह डूब गई कि पढ़ाई की तरफ से अब मेरा ध्यान एकदम हट गया. वार्षिक परीक्षा में मैं फेल होतेहोते बची. प्रियांशी हैरान थी. उसे पता चल चुका था कि मैं कौन सा खेल खेल रही हूं. उस ने मुझे समझाने का प्रयास किया, लेकिन मैं ने उस पर ध्यान नहीं दिया. प्यार में प्रेमीप्रेमिका को किसी की भी सलाह अच्छी नहीं लगती.

गरमी की छुट्टियों में मैं अपने घर भी नहीं गई. प्रवीण के प्यार ने मुझे इस कदर भरमा दिया कि मैं पूरी तरह उसी के रंग में रंग गई. मांबाप का प्यार पीछे छूट गया. उन से पढ़ाई का झूठा बहाना बनाया और गरमी की छुट्टियों में भी होस्टल में ही रुकी रही. पूरी गरमी प्रवीण के साथ मौजमस्ती में कट गई. पढ़ाई के नाम पर कौपीकिताबों पर धूल की परतें चढ़ती रहीं.

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प्रियांशी को पता था कि मैं शहर में ही हूं, उस ने कई बार मिलने का प्रयास किया, पर मैं बहाने बना कर टालती रही. उस से अब दोस्ती केवल हायहैलो तक ही सीमित रह गई थी. मुझे मेरी चाहत मिल गई थी, उस में डूब कर अब बाहर निकलना अच्छा नहीं लग रहा था. देहसुख से बड़ा सुख और कोई नहीं होता. मैं जिस उम्र में थी, उस में इस का चसका लगने के बाद, अब मुझे किसी और सुख की चाह नहीं रह गई थी.

एक दिन प्रियांशी ने कहा, ‘‘प्रतिमा, मुझे नहीं पता तुम क्या कर रही हो, लेकिन मुझे जितना आभास हो रहा है, उस से यही प्रतीत होता है कि तुम पतन के मार्ग पर चल पड़ी हो.’’

‘‘मुझे नहीं लगता कि आज हर युवकयुवती यही कर रहे हैं.’’

‘‘हो सकता है, पर इस राह की मंजिल सुखद नहीं होती.’’

‘‘जब कष्ट मिलेगा, तब यह राह छोड़ देंगे.’’

‘‘तब तक बहुत देर हो जाएगी,’’प्रियांशी के शब्दों में चेतावनी थी. मैं ने ध्यान नहीं दिया. जब आंखों में इंद्रधनुष के रंग भरे हों, तो आसमान सुहाना लगता है, धरती पर चारों तरफ हरियाली ही नजर आती है. प्रवीण के संसर्ग से मैं कामाग्नि में जलने लगी थी. हर पल उस से मिलने का मन करता, लेकिन रोजरोज मिलना उस के लिए भी संभव नहीं था. मिल भी जाएं, तो संसर्ग नहीं हो पाता. मैं कुढ़ कर रह जाती. उस के सीने को नोचती सी कहती, ‘‘यह तुम ने कहां ला कर खड़ा कर दिया मुझे. मैं बरदाश्त नहीं कर सकती. मुझे कहीं ले कर चलो.’’

वह संशय भरी निगाहों से देखता हुआ कहता, ‘‘प्रतिमा, रोजरोज यह संभव नहीं है. तुम अपने को संभालो, प्यार में केवल सैक्स ही नहीं होता.’’

‘‘लेकिन मैं अपने को संभाल नहीं सकती. मेरे अंदर की आग बढ़ती जा रही है. इसे बुझाने के लिए कुछ करो.’’

आगे पढ़ें- आखिर प्रवीण मेरी बढ़ती मांग से परेशान हो गया….

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क्या फिर दूर हो जाएंगे Anupama और Anuj? पाखी बनेगी वजह

स्टार प्लस का सीरियल ‘अनुपमा’ (Anupama) इन दिनों टीआरपी चार्ट्स में पहले नंबर पर बना हुआ है. फैंस को अनुज-अनुपमा की जोड़ी काफी पसंद आ रही है. वहीं वनराज और काव्या की जलन भी बढ़ती जा रही है. लेकिन सीरियल में कुछ ऐसा होने वाला है कि वनराज और अनुपमा एक बार फिर साथ खड़े होंगे. वहीं अनुज-काव्या साथ में नजर आएंगे. आइए आपको बताते हैं क्या होगा सीरियल में आगे…

काव्या की नौकरी से भड़का वनराज

 

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अब तक आपने देखा कि वनराज की परवाह किए बिना काव्या, अनुज के पास नौकरी मांगने जाती है. वहीं अनुज, अनुपमा से पूछता है कि क्या वह काव्या के साथ काम करने के लिए तैयार है, जिसके चलते अनुपमा, काव्या की जौब के लिए हां कर देती है. वहीं वनराज को जब काव्या ये बात बताती है तो वह भड़क जाता है और काव्या पर बरसता है. हालांकि अनुपमा उसे बीच में आकर समझाने की कोशिश करती है. लेकिन वनराज उसे धक्का दे देता है, जिसे पाखी देख लेती है और वनराज औऱ अनुपमा को लड़ते देख टूट जाती है.

 

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वनराज को मिला पाखी का साथ

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि अनुपमा और वनराज, पाखी को समझाने की कोशिश करेंगे, जिसके बाद पाखी परेशान होकर वहां से भागेगी और सीढ़ियों से गिर जाएगी. ये देखकर अनुपमा और वनराज परेशान हो जाएंगे और पाखी से मांफी मांगगे. वहीं अनुपमा, वनराज से कहेगी कि वह अपने गिले शिकवे मिटाकर बच्चों के लिए साथ खड़े रहेंगे. हालांकि वनराज इस बात का फायदा उठाता नजर आएगा. खबरों की मानें तो वनराज, पाखी को अनुज के खिलाफ धीरे-धीरे भड़काने की कोशिश करेगा, जिसके चलते अनुपमा और अनुज की दोस्ती में दरार आएगी.

 

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काव्या भी बनाएगी प्लान

 

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दूसरी तरफ वनराज और अनुपमा के बच्चों के कारण उनका करीब आना काव्या को पसंद नहीं आएगा. इसी लिए वह अनुज को अनुपमा के खिलाफ भड़काती नजर आएगी. वहीं पूरी कोशिश करेगी कि अनुपमा को सबक सिखा सके. इसी बीच अनुज भी पाखी के सोशलमीडिया पर वनराज और अनुपमा की साथ में फोटो देखकर परेशान हो जाएगा.

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YRKKH: ऐसा होगा कार्तिक-नायरा का आखिरी मिलन, सामने आया प्रोमो

टीवी का पौपुलर सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है (Yeh Rishta Kya Kehlata Hai) सालों से दर्शकों के दिल पर राज कर रहा है. वहीं अब सीरियल मे एक बार फिर नए किरदार नजर आने वाले हैं. वहीं कुछ किरदार सीरियल को अलविदा कहने वाले हैं, जिनमें नायरा- कार्तिक यानी शिवांगी जोशी और मोहसिन खान का नाम भी शामिल है. वहीं मेकर्स के नए प्रौमो ने इस बात पर मोहर लगा दी है. आइए आपको दिखाते हैं सीरियल के नए प्रोमो की झलक…

नायरा-कार्तिक का होगा मिलन

हाल ही में सीरियल के मेकर्स ने एक नया प्रौमो रिलीज किया है, जिसमें नायरा से कार्तिक का मिलन होता नजर आ रहा है. वहीं दोनों नए पीढ़ी के आने की बात भी करते नजर आ रहे हैं. प्रोमो देखकर फैंस बेहद खुश हैं. वहीं इंतजार कर रहे हैं कि कब सीरियल के नए किरदारों की एंट्री होगी. हालांकि नायरा-कार्तिक की जोड़ी खत्म होने से सभी बेहद दुखी भी हैं.

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ऐसे होगी कार्तिक की कहानी खत्म

 

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खबरों की मानें तो सीरत को लेकर मुकेश से लड़ाई होने के चलते कार्तिक के गहरी चोट लग जाती है और उसे अस्पताल में एडमिट कराना पड़ता है. वहीं चोट गहरी होने के कारण औपरेशन की नौबत आ जाती है. अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि कार्तिक का औपरेशन होने के बाद भी उसकी हालत में सुधार नहीं होगा. वहीं उसकी तबीयत बिगड़ जाएगी औऱ कार्तिक की जान चली जाएगी.

बता दें, सीरियल में जल्द ही नई एंट्री होने वाली है. वहीं खबरों की मानें तो नई एंट्री के लिए टीवी एक्टर हर्षद चोपड़ा और बैरिस्टर बाबू की सौदामिनी यानी प्रणति का नाम भी शामिल है. हालांकि अब देखना है कि ये नई कहानी दर्शकों को कितना पसंद आएगी और क्या वह नायरा-कार्तिक की जगह नई जोड़ी को दे पाएंगे.

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Anik Ghee के साथ बनाएं चटपटी लौकी व आलू टिक्की

फेस्टिवल में कभी-कभी चटपटे कुछ ऐसे स्नैक्स खाने को मन करता है जो स्वाद में अलग हों. तो पेश है ऐसा ही चटपटा स्नैक लौकी व आलू टिक्की, जिसे खा कर आप तारीफ किए बगैर नहीं रह सकेंगी.

सामग्री

250 ग्राम आलू उबले

1/2 छोटा लौकी बारीक कद्दूस की

1 बड़ा चम्मच अदरक व हरीमिर्च बारीक कटी

1 छोटा चम्मच धनियापत्ती बारीक कटी

जरुरतानुसार अनिक घी फ्राई करने के लिए

थोड़ा सा अनिक दही सर्विंग के लिए

1 छोटा चम्मच सेंधा नमक

सामग्री कोटींग की

2 बड़े चम्मच साबूदाना पाउडर

सामग्री भरावन की

10-12 किशमिश

50 ग्राम अनिक पनीर

2 बड़े चम्मच मूंगफली भुनी व कुटी

1 बड़ा चम्मच अदरक व हरीमिर्चे बारीक कटी

1/2 छोटा चम्मच जीरा पाउडर

1/2 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

1 छोटा चम्मच धनियापत्ती बारीक कटी

सेंधा नमक स्वादानुसार

विधि

आलुओं को मैश करें व उसमें कद्दूकस की लौकी व बाकी सभी मसाले मिला लें. साबूदाने के पाउडर को एक चौथाई कप पानी में आधे घंटे के लिए भिगो दें. आलू मिश्रण के लगभग 7 गोले बना लें. भरावन की सामग्री को मिलाएं और उसके भी 7 छोटे गोले बनाएं. आलू के प्रत्येक गोले को थपथपाएं और बीच में भरावन एक गोला रख कर बंद कर दें टिक्की का आकार दें. प्रत्येक टिक्की को इसी तरह बना कर साबूदाने के मिश्रण में कोट कर के अनिक घी में शैलो फ्राई या डीप फ्राई कर लें. व्रत वाली चटनी, सोंठ व दही डाल कर सर्व करें.

Festive Special: कम बजट में करें स्मार्ट शॉपिंग

कम बजट में ट्रेंडी आउटफिट्स और एक्सेसरीज खरीदकर आप भी बन सकती हैं स्मार्ट शॉपर. कम बजट में कैसे करें स्मार्ट शॉपिंग? आइए, हम आपको बताते हैं.

बजट फ्रेंडली फेस्टिव वेयर

स्मार्ट शॉपिंग के लिए मिक्स एंड मैच फॉर्मूला बेस्ट है, जैसे, आप यदि दीपावली के लिए महंगा आउटफिट नहीं खरीदना चाहतीं, लेकिन ट्रेंडी भी दिखना चाहती हैं, तो सिर्फ एक लॉन्ग जैकेट खरीदें और उसे अपने पुराने लहंगे के साथ पहनें.

इसी तरह आप अपनी पुरानी हैवी चोली को प्लेन स्कर्ट, साड़ी आदि के साथ पहन सकती हैं.

अगर आप फेस्टिव सीजन में साड़ी पहननना चाहती हैं, तो अपने किसी हेवी ब्लाउज के साथ पहनने के लिए कोई प्लेन साड़ी खरीद लें. इसके साथ हेवी या ट्रेंडी एक्सेसरीज पहनकर आप फेस्टिव लुक पा सकती हैं.

अपनी रेग्युलर जीन्स के साथ एथनिक कुर्ती, ट्यूनिक, कॉर्सेट आदि पहनकर आप फेस्टिव लुक पा सकती हैं.

बजट फ्रेंडली कैजुअल वेयर

कैजुअल वेयर के लिए हॉट पैंट, कार्गो, केप्री, स्कर्ट आदि बॉटम वेयर अपने कलेक्शन में जरूर रखें. इनके साथ आप कोई भी स्टाइलिश टॉप पहनकर न्यू लुक पा सकती हैं.

इसी तरह डेनिम की शर्ट, जैकेट, शॉर्ट कुर्ती आदि को भी आप कई आउटफिट्स के साथ मिक्स एंड मैच करके पहन सकती हैं.

प्लेन टीशर्ट, स्पेगेटी, शर्ट आदि को जैकेट, स्टोल या फिर ट्रेंडी नेकपीस के साथ पहनकर न्यू लुक पा सकती हैं.

अपने कैजुअल कलेक्शन में स्मार्ट बेल्ट, हेयर एक्सेसरीज, नेकपीस, ईयररिंग, ट्रेंडी शूज आदि जरूर रखें. ये भी आपके मिक्स एंड मैच फॉर्मूले में बहुत काम आएंगे.

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बजट फ्रेंडली ऑफिस वेयर

यदि आप सेल में शॉपिंग कर रही हैं और आपको फॉर्मल आउटफिट खरीदने हैं, तो व्हाइट, ब्लैक, बेज, पीच, पिंक आदि कलर की प्लेन शर्ट, ट्राउजर और स्कर्ट खरीद सकती हैं. इन्हें आप मिक्स एंड मैच करके कई बार रिपीट कर सकती हैं.

इसी तरह आप ब्लैक, बेज, व्हाइट जैसे बेसिक कलर के ट्रेंडी कलर के बैग और शूज खरीदकर अपने फॉर्मल कलेक्शन को फैशनेबल बना सकती हैं.

ऑफिस में यदि इंडियन वेयर पहनती हैं, तो अलग-अलग कलर की प्लेन लेगिंग्स और कुर्ती को स्टोल, नेकपीस आदि के साथ मिक्स एंड मैच करके रोजाना न्यू लुक पाया जा सकता है.

इसी तरह ब्लैक, व्हाइट, रेड, ब्लू जैसे रेग्युलर कलर के कुछ ब्लाउज सिलवाकर उन्हें कई साड़ियों के साथ पहन सकती हैं.

स्मार्ट आइडियाज

बजट फ्रेंडली शॉपिंग का सबसे जरूरी टिप यही है कि फिजूलखर्च से बचें और वही चीज खरीदें जिसकी आपको वाकई जरूरत हो.

शॉपिंग के लिए घर से निकलने से पहले एक लिस्ट बनाएं, जिसमें उन सभी स्टाइलिश ड्रेसेस और ट्रेंडी एक्सेसरीज को नोट करें, जो आपके वॉर्डरोब और ऑफिस के लिए जरूरी हैं.

अच्छे ब्रांड की सेल लगी है, तो वहां से अच्छी फिटिंग वाली जीन्स, जैकेट, बेसिक शर्ट, ट्राउजर, स्कर्ट आदि जरूर खरीदें.

वेडिंग या फेस्टिव सीजन के लिए जरूरत से ज्यादा महंगा आउटफिट खरीदना पैसे की बर्बादी है, थोड़ी-सी समझदारी से आप कम बजट में भी ट्रेंडी और गॉर्जियस नजर आ सकती हैं.

ऑनलाइट शॉपिंग करते समय उस चीज की कीमत अलग-अलग साइट्स पर चेक कर लें. हो सकता है, दूसरी साइट पर सेल, डिस्काउंट, कूपन आदि के चलते वही चीज आपको कम दाम में मिल जाए.

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विंडो शॉपिंग के बहाने आप अलग-अलग स्टोर्स में जाकर डिस्काउंट या स्पेशल ऑफर के बारे में जानकारी हासिल कर सकती हैं.

शॉपिंग करते समय क्रेडिट कार्ड का उपयोग करने की बजाय कैश पेमेंट करें, इससे आप बजट के बाहर शॉपिंग नहीं कर सकेंगी और फिजूलखर्च से बच जाएंगी.

ऐसे आउटफिट्स खरीदने से बचें, जिन्हें बार-बार ड्राईक्लीन करवाना पड़े. सेल में शॉपिंग करते समय मटेरियल, फैब्रिक और क्वालिटी से समझौता न करें. हर चीज अच्छी तरह देख-परखकर ही खरीदें.

ऐसे लोकल स्टोर्स जहां स्टाइलिश आउटफिट व एक्सेसरीज कम दाम में मिल जाते हैं, वहां से शॉपिंग करके आप अपने पैसे बचा सकती हैं.

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