घर बनाने का बढ़िया मौका, होम लोन दरों में आई है बड़ी गिरावट

इतना तो तय है कि अभी कोरोना से उबरने में कुछ महीने और लगेंगे. हो सकता है यह साल पूरा इससे बचते बचाते ही निकल जाए. क्योंकि देश में कम से कम 8 राज्यों में कोरोना की दूसरी लहर इन दिनों आयी हुई है और वह पहले से कहीं ज्यादा तेज है.

लेकिन अगर नियमित इंकम का आपके पास जरिया हो और घर भी बनाना चाहते हों तो इससे अच्छा मौका शायद आगे नहीं आयेगा. क्योंकि इस समय होम लोन की दरों में भारी गिरावट आयी हुई है. हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक ने 75 लाख रुपये तक के होम लोन की 20 सालों की अवधि के लिए ब्याज दरें घटाकर 6.7 प्रतिशत वार्षिक कर दी हैं. एसबीआई के बाद इसी दर पर एचडीएफसी ने भी होम लोन देने का ऐलान किया है. दूसरे तमाम बैंक भी थोड़ा आगे पीछे लोन दे रहे हैं यानी जो ब्याज दर कभी 11-12 फीसदी सालाना होती थी, वह इस समय घटकर 6 से 7.25  बीच अधिकतम रह गई है. पुराने होम लोन पर भी अगर उनकी भुगतान व्यवस्था फ्लैक्सिबल है तो आप अपने बैंक में कन्वर्जन फीस देकर अपने पुराने होम लोन की भी दरें कम करा सकते हैं.

लेकिन आगे बढ़ें इससे पहले एक बात याद रखिये बैंक विज्ञापनों में चाहे कितनी ही आकर्षक बातें क्यों न करते हों, लेकिन जब आप वास्तव में उनके पास जाएंगे तो आप यह मानकर चलिये आपने विज्ञापन में जो होम लोन की दरें देखी हैं, उससे आपको थोड़ा ज्यादा ही चुकाना पड़ेगा. क्योंकि ये बैंक विज्ञापनों में अपने तमाम किंतु परंतु का खुलासा नहीं करते, बस एक सितारा लगाकर शर्ते लागू हैं, जैसा जुमलाभर लिख देते हैं. लेकिन जब आप विज्ञापन देखकर बैंक पहुंचते हैं तो आपको थोड़ी नाउम्मीदी होती है. इसलिए पहले से ही जान लें कि अगर आपका सिविल उच्च स्कोर वाला है और कम से कम आप 70 लाख से ज्यादा का लोन ले रहे हैं, तब आपको वो तमाम दरें मिलेंगी, जिन्हें विज्ञापित किया जाता है. वरना यह मानकर चलिये कि 7 से 7.15 की दर का ही आपको लोन मिलेगा. लेकिन आज के चार पांच साल पहले को देखें तो यह भी बहुत बड़ी राहत है. लिहाजा आप घर बनाने की सोच रहे हों तो इससे बढ़िया कोई दूसरा मौका नहीं है. क्योंकि सिर्फ ब्याज की बात ही नहीं है, इस समय लेबर भी पहले के मुकाबले काफी सस्ती है. क्योंकि जबरदस्त बेरोजगारी का दौर है. कामों ने कुछ गति पकड़ी भी थी तो कोरोना की आयी दूसरी लहर ने सब कुछ ठंडा कर दिया है.

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कम ब्याज दरों की पेशकश आईसीसीआई और कोटक महेंद्रा जैसे प्राइवेट बैंकों ने भी की है. हालांकि ये बैंक कोई कस्टमर फ्रेंडली बैंक नहीं हैं, किसी न किसी तरह से इन बैंकों की तमाम सुविधाएं आपको खरीदनी पड़ती हैं. लेकिन एक बात जो इन बैंकों को सरकारी बैंकों से बेहतर बनाती है, वह यह है कि यहां जब आप अपने किसी काम से जाते हैं, तो बैंक कर्मचारी आपको अनावश्यक रूप से परेशान नहीं करते, जैसे कि सरकारी बैंक के कर्मचारियों की कोशिश होती है कि कम से कम आपको एक बार तो बिना काम के वापस कर ही दें. कोटक महेंद्रा बैंक ने सबसे कम ब्याज दर पर 75 लाख रुपये का होम लोन देने का ऐलान किया है. अगर आप बीस साल के लिए होम लोन लेते हैं तो कोटक आपसे 6.65 प्रतिशत दर से वार्षिक ब्याज लेगा. जिसमें 75 लाख रुपये की मासिक किश्त 56,582 रुपये बनेगी. ठीक इसी तरह अगर आप आईसीआई बैंक से भी इतनी ही धनराशि यानी 75 लाख रुपये बीस सालों के लिए लेते हैं तो ईएमआई 57,027 रुपये बनेगी. होम लोन का एक फायदा यह भी है कि इस समय कुछ शर्तों के साथ होम लोन टैक्स में भी 5 लाख रुपये तक की सालाना छूट मिल रही है.

आप जब लोन के बारे में सोचें तो एक बात यह भी याद रखें कि कोई जरूरी नहीं है कि बैंक आपको अपनी घोषित दरों पर या विज्ञापित दरों पर लोन दे ही दे. बैंक के पास ऐसा न करने के लिए एक बहाना यह होता है कि उसकी ये दरें, सम्मानित और कीमती ग्राहकों के लिए हैं. अब ऐसे में यह देखना होगा कि आप बैंक की नजर में उनके कीमती व सम्मानित ग्राहक हैं या नहीं. अगर बैंक आपको ऐसा नहीं मानता तो बहुत संभव है कि जो दरें आप विज्ञापनों में पढ़ें, वे तमाम दरें आपके लिए दिवास्वप्न भर हों. बैंकों को इस संबंध में निर्णय लेने की पूरी छूट है और उनके इस निर्णय को आप अदालत में चुनौती नहीं दे सकते. क्योंकि बैंक को यह तय करने का अधिकार है कि वह जिसे लोन दे रहा है, उससे उसे लोन वापस मिलने की उम्मीद है या नहीं, इस संबंध में वह अपनी राय बना सकता है. ..तो यह मानकर चलिये कि सब कुछ के बाद जब आपको घोषित आकर्षक दरों पर लोन नहीं मिल जाता, तब तक ये सब घोषणाएं ही हैं. कुछ और सरकारी बैंकों की बात करें तो 75 लाख रुपये के होम लोन पर बैंक आफ बड़ौदा 20 साल के लिए 6.85 फीसदी सालाना पर, बैंक आफ इंडिया भी इतनी धनराशि और इतनी ही अवधि के लिए इसी दर पर होम लोन दे रहा है. एलआईसी हाउसिंग फाइनेंस इसी धनराशि के लिए इतने ही सालों की अवधि का होम लोन 6.90 फीसदी पर, आईडीबीआई बैंक भी इसी धनराशि पर इतने ही समय अवधि के लिए 6.90 फीसदी. एक्सेस बैंक भी 6.90 फीसदी और कैनरा बैंक भी इतनी राशि और इतनी समयवधि के लिए इतनी ही ब्याज दर यानी 6.90 फीसदी सालाना पर होम लोन देने की घोषणा की है.

75 लाख रुपये से कम होम लोन के लिए सभी बैंकों की अलग अलग ब्याज दरें हैं और निश्चित रूप से वे 75 लाख रुपये के होम लोन पर घोषित दरों से ज्यादा हैं. इस तरह अब आप होम लोन की ब्याज दरों का ट्रेंड समझ गये होंगे. अतः सोच समझकर और अपनी जरूरत के हिसाब से निर्णय लीजिए.

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कहीं आप तो बेवजह नहीं सोचतीं

मृदु को अधिक सोचने की बीमारी थी. अगर वह घर में कभी अपने पति को सास या ससुर से बात करते देख लेती है तो उसे लगता है उस की बुराई कर रहे होंगे. अगर सास प्यार से कह देती हैं कि हमारी मृदु की शादी के बाद सेहत अच्छी हो गई है तो उसे लगता है कि वह उसे काम न करने का ताना मार रही हैं.

अगर मृदु की ननद उस के खाने की तारीफ करे तो उसे लगता है वह जानबूझ कर कर रही है ताकि वह हर समय रसोई में लगी रहे. मृदु हर छोटीबड़ी बात पर इतना अधिक सोचती है कि उस ने अपने इर्दगिर्द एक मकड़जाल बुन लिया है. उस जाल में फंस कर न केवल वह अपने रिश्ते खराब कर रही है, बल्कि अपनी मानसिक शांति भी भंग करने पर तुली है.

सरला के भांनजे की बेटी का जन्मदिन था. जब केक कटने लगा तो सरला को स्टेज पर नहीं बुलाया गया. उन 2 घंटों में ही सरला ने इस बात के बारे में इतना सोचा कि वह उस जन्मदिन पार्टी के बीच में ही उठ कर चली गई. सरला के अनुसार, ‘‘भानजे ने जानबूझ कर उसे नीचा दिखाने के लिए ऐसा किया, क्योंकि वह बच्ची के लिए महंगा तोहफा नहीं ला पाई थी.’’

मगर अगर सरला के भानजे मनुज से पूछें तो उस के दिमाग में यह बात दूरदूर तक भी नहीं थी.

भीड़भाड़ में उसे मौसी दिखाई नहीं दी थी और उस ने कभी यह नहीं सोचा था कि वह इस बात को इस दिशा में ले जाएगी.

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ऋतु के पति और बेटी जब तक दफ्तर से नहीं लौटते तब तक वह इतना अधिक सोचती है कि उस की हालत खराब हो जाती है. हर फोन कौल पर उसे लगता है कि उस के पति या बेटी का ऐक्सीडैंट न हो गया हो.

पति अगर मोबाइल पर कुछ देख कर मुसकराते हैं तो उसे लगता है उन का अफेयर चल रहा है. उस की बेटी अकसर कमरे को बंद कर के काम करती है पर ऋतु इस बारे में इतना अधिक सोचती है कि उसे लगता है बेटी जरूर न्यूड शेयर कर रही होगी. कहीं वह किसी गलत लड़के के साथ तो नहीं है.

इन सभी उदाहरणों से यह बात तो तय है कि अगर हम अधिक सोचते हैं तो अकसर वह गलत दिशा में ही होता है. ज्यादा सोचने वाले इंसान अपने ही सब से बड़े दुश्मन होते हैं और ब्लड प्रैशर, शुगर और न जाने कितने रोगों के शिकार हो जाते हैं.

अपनी जिंदगी को सही दिशा में ले जाने के लिए सोचना जरूरी है. मगर अधिक सोचने से कोई लाभ नहीं है.

आज में जीएं: यह हम सब की समस्या है. कोई भी बात आते ही हम बहुत दूर तक की सोचने लगते हैं, जो हमें बेवजह तनाव देता है. रागिनी अपनी बेटी के पैदा होने के बाद. उस के भविष्य को ले कर बेवजह तनाव में आ गई थी.

अपनी बेटी की बालसुलभ हरकतों को जीने के बजाय वह आने वाले खर्चे और जिम्मेदारियों को ले कर तनाव में रहने लगी थी. कोई भी नई जिम्मेदारी या नया रोल मिलते ही बहुत दूर की न सोचें. आज में जीएंगे तो कल अपनेआप सुनहरा हो जाएगा.

छोटेछोटे गोल बनाएं: अगर आप आसमान छूना चाहते हैं तो थोड़ा सब्र रखें. छोटेछोटे गोल बनाएं और धीरेधीरे अपने टारगेट के करीब पहुंचें. छोटेछोटे गोल आप को मन की शांति प्रदान करेंगे. ये छोटेछोटे गोल अधिक सोचने की आदत से छुटकारा दिलाने में सहायक होते हैं.

डायरी को मैंटेन करें: एक सर्वे से यह बात सामने आई है कि जो लोग ढंग से प्लैनिंग नहीं करते हैं, उन का दिमाग हमेशा चिंतनमनन करता रहता है. अगर आप काम में बिजी रहेंगे तो अत्यधिक सोचने की आदत से छुटकारा मिल सकता है. अपनी प्लैनिंग के लिए डायरी मैंटेन करने की आदत डालिए.

1 साल या 1 माह के बजाय, रोज के काम डायरी में लिखें और जो कार्य हो जाए उस पर टिक कर लीजिए. ऐसा करना आप के लिए बहुत फायदेमंद साबित होगा.

मन के घोड़े पर लगाम लगाएं: जैसे ही आप के मन के घोड़े इधरउधर भागने लगें तो आप 2 मिनट के लिए आंखें बंद कर ठंडी सांस लें. सांसों पर ध्यान लगाएंगी तो आप का मन आप के काबू में रहेगा.

हंसें और खिलखिलाएं: हर छोटीबड़ी बात पर हंसने और खिलखिलाने की आदत डालें. जिंदगी में हंसने और खिलखिलाने की कोई वजह नहीं होती है. ये मौके हमें खुद ढूंढ़ने पड़ते हैं और अधिकतर बनाने पड़ते हैं. जितना अधिक खुश रहेंगी, फालतू की चिंतामनन से ध्यान हट जाएगा.

शौक को जिंदा रखें: जब भी आप के दिमाग में नकारात्मक विचार आने लगें, आप किसी भी ऐसे कार्य में लग जाएं जो आप को पसंद हो. इस से एक तो आप का दिमाग हलका रहेगा और दूसरे आप अंदर से ऊर्जावान भी महसूस करेंगी.

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खुद पर रखें विश्वास: अगर आप के अंदर आत्मविश्वास की कमी है तो हर नया काम या जिम्मेदारी आप को गहरी सोच में डाल देती है. आप को लगता है पता नहीं आप कर पाएंगे या नहीं. अगर नहीं कर पाए तो लोग क्या कहेंगे? अपने ऊपर विश्वास बना कर रखें, आप से बेहतर कोई नहीं है. किसी भी नई जिम्मेदारी को निभाने के लिए रातभर सोचने की नहीं, बल्कि एक अच्छी प्लैनिंग की आवश्यकता है.

खुल कर बातचीत करें: अगर आप को किसी की बात या व्यवहार बुरा लगता है तो उस के बारे में सोचसोच कर गलत धारणा न बनाएं. खुल कर बातचीत करें, आप को बेवजह सोचने की जरूरत नहीं पड़ेगी.

मेरे पति स्वयं पुरुष नसबंदी कराना चाहते हैं, क्या ये सही है?

सवाल-

मैं 29 वर्षीय और 2 बच्चों की मां हूं. हम आगे बच्चा नहीं चाहते और इस के लिए मेरे पति स्वयं पुरुष नसबंदी कराना चाहते हैं. कृपया बताएं कि इस से वैवाहिक जीवन पर कोई असर तो नहीं होगा?

जवाब

आज जबकि सरकारें पुरुष नसबंदी को प्रोत्साहन दे रही हैं, आप के पति का इस के लिए स्वयं पहल करना काफी सुखद है. आमतौर पर पुरुष नसबंदी को ले कर समाज में अफवाहें ज्यादा हैं. आप को यह जान कर आश्चर्य होगा कि भारत में पुरुष नसबंदी कराने वालों का प्रतिशत काफी निराशाजनक है.

दरअसल, पुरुष नसबंदी अथवा वासेक्टोमी पुरुषों के लिए सर्जरी द्वारा परिवार नियोजन की एक प्रक्रिया है. इस क्रिया से पुरुषों की शुक्रवाहक नलिका अवरुद्ध यानी बंद कर दी जाती है ताकि शुक्राणु वीर्य (स्पर्म) के साथ पुरुष अंग तक नहीं पहुंच सकें.

यह बेहद ही आसान व कम खर्च में संपन्न होने वाली सर्जरी है, जिस में सर्जरी के 2-3 दिनों बाद ही पुरुष सामान्य कामकाज कर सकता है. सरकारी अस्पतालों में तो यह सर्जरी मुफ्त की जाती है. अपने मन से किसी भी तरह का भय निकाल दें और पति के इस निर्णय का स्वागत करें.

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मर्दानगी शब्द भारतीय पुरुषों के लिए शान की बात होती है. वे सब कुछ खो सकते हैं परंतु अपनी मर्दानगी को नहीं. अपनी पत्नी का सहयोग करने से उन की इस तथाकथित मर्दानगी को बट्टा लग जाता है तथा पत्नी पर रोब गांठने से उन की मर्दानगी में चारचांद लगते हैं.

वे प्यार में अपनी जान देने तक की बात तो कर सकते हैं, परंतु पत्नी के स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए स्वयं नसबंदी करवाने के बारे में सोच भी नहीं सकते जबकि चिकित्सा विज्ञान आज इतनी तरक्की कर चुका है कि दर्दरहित यह प्रक्रिया कुछ ही मिनटों में समाप्त हो जाती है.

इस के बावजूद हजार में से कोई 1 पुरुष ही है जो नसबंदी के लिए सहमत होता है और वह भी चोरीछिपे, रिश्तेदारों एवं समाज को बताए बिना. जबकि महिला नसबंदी खुले में शिविर लगा कर की जाती है. सरकार भी महिला नसबंदी का ही ज्यादा प्रचार करवाती है. नसबंदी करवाने के लिए महिलाओं को रुपए भी मिलते हैं.

ग्रामीण संस्था ‘आशा’ भी महिलाओं को ही नसबंदी के फायदे एवं नुकसान की जानकारी देती है. कुछ गांवों में तो टारगेट पूरा करने के लिए ट्रकों में भरभर कर महिलाओं को शिविरों में लाया जाता है. ये पैसों के लालच में यहां आ तो जाती हैं परंतु उचित देखभाल न होने के कारण कई बार हादसे का भी शिकार हो जाती हैं.

पूरी खबर पढ़ने के लिए – महिलाओं के साथ साथ पुरुष नसबंदी भी जरूरी

अगर आपकी भी ऐसी ही कोई समस्या है तो हमें इस ईमेल आईडी पर भेजें- submit.rachna@delhipress.biz
 
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बिंदास अंदाज वाली हैं माउंट ऐवरेस्ट पर तिरंगा लहराने वाली मेघा परमार

मेघा परमार, माउंट ऐवरेस्ट विजेता

तारीख थी 22 मई, 2019, वक्त था सुबह के 5 बजे का जब मेघा ने अपनी 24 साला जिंदगी की सब से बड़ी जिद पूरी करते हुए माउंट ऐवरेस्ट पर तिरंगा लहराया और खुशी से झम उठी. उस दिन सारी दुनिया उस के नीचे थी और ऊपर थे तो दूरदूर तक फैले मेघ जो बांहें फैलाए मेघा का स्वागत कर रहे थे.

मगर ये सब आसान नहीं था. मेघा के इस सफर और उपलब्धि में कई अडंगे भी थे जिन का सामना उस ने पूरी सब्र और समझदारी से किया, नहीं तो तय है उस की शादी हो चुकी होती और आज वह चर्चित होने के बजाय ससुराल में भी चूल्हाचौका फूंकती होती. यह बात उस ने बड़े बिंदास अंदाज में बताई. उस ने यह भी बताया कि बचपन में हुई मंगनी अब टूट चुकी है जिस का उसे कोई अफसोस नहीं.

मेघा से बात करते हुए महसूस हुआ कि वह जो बता रही है वह फिल्मों जैसा है, अकल्पनीय है, जो हकीकत में कैसे बदला यह उसी से जानते हैं:

अपने बारे में कुछ बताएं?

मैं सीहोर जिले के छोटे से 1 हजार की आबादी वाले भोजपुर गांव की रहने वाली हूं. पापा किसान हैं, हालांकि जमीन बहुत ज्यादा नहीं सिर्फ 12 एकड़ है. मेरी परवरिश ग्रामीण माहौल में संयुक्त परिवार में हुई है. स्कूली पढ़ाई के बाद आगे पढ़ने मुझे माना साहेब के यहां भेज दिया गया. इस के बाद कालेज की पढ़ाई मैं ने सीहोर गर्ल्स कालेज से की जहां से मेरी जिंदगी और सोच में कई बदलाव आए.

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इस मानसिकता से कैसे बाहर आईं? क्या इस के लिए अलग से कोशिशें करनी पड़ीं?

शायद करना पड़ीं क्योंकि मैं अपनी अलग पहचान बनाना चाहती थी. कालेज की लगभग सभी ऐक्टिविटीज में मैं हिस्सा लेती थी. एनसीसी की भी बेहतर कैडेट थी. इसी सिलसिले में एक बार मालदीव जाने का मौका मिला तब हवाईजहाज में पहली बार बैठी थी. आप यह  सुन कर हंसेंगे कि प्लेन में चढ़ने के बाद मैं ने सब से पहले उस का टौयलेट देखा कि वह कैसा होता है.

असल में जब मैं छोटी थी तब गांव से कोई हवाईजहाज निकलता था तो हम बच्चे मुंह बंद कर लेते थे, क्योंकि हमारे मन में यह बात बैठा दी गई थी कि मुंह खुला रखोगे तो यात्रियों का मलमूत्र उस में चला जाएगा. यह बात मैं इसलिए बता रही हूं कि गांव और शहर के बच्चों की मानसिकता का फर्क आसानी से समझ आए.

मालदीव में स्टेज से मुझे 3 मिनट बोलने का मौका मिला था. जब मैं पूरे आत्मविश्वास और सफलता से बोल पाई तो मेरा आत्मविश्वास और बढ़ा कि मैं भी कुछ ऐसा कर सकती हूं, जिस से मुझे मेरा अपना नाम और पहचान मिले. इसी दौरान मैं ने एक कोटेशन कहीं पढ़ा जिस का सार यह था कि ऐसा कोई काम करो जिस से आप की अलग पहचान बने.

इसी दौरान मैं ने अखबार में एक खबर पढ़ी कि मध्य प्रदेश के 2 लड़कों ने माउंट ऐवरेस्ट फतह की. बस तभी मैं ने ठान लिया कि मैं मध्य प्रदेश की माउंट ऐवरेस्ट पर पहुंचने वाली पहली लड़की क्यों नहीं बन सकती.

क्या परिवार वाले आसानी से मान गए थे?

नहीं, मेरे फैसले का विरोध हुआ, क्योंकि गांवों में लड़के और लड़कियों में बड़ा भेदभाव होता है. यहां तकि कि लड़कियों को रूखी रोटी मिलती है और लड़कों को घी लगी. रिश्तेदारों ने मम्मीपापा को बरगलाया कि लड़की जात है इतनी आजादी मत दो. कल को कोई ऊंचनीच हो गई तो बदनामी होगी. लेकिन मम्मीपापा ने मेरा पूरा साथ दिया.

चढ़ाई के दौरान के कुछ अनुभव बताएंगी?

बहुत से दिलचस्प और खट्टेमीठे अनुभव हैं. पहली बार में मैं कामयाब नहीं हुई थी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी और दूसरी बार में सफलता हाथ आई. 18 मई को जब मैं बेस कैंप से 4 नंबर कैंप पहुंची तो औक्सीजन लेवल कम हो गया, तब मैं लगभग 7,600 मीटर की ऊंचाई पर थी.

साथ दे रहे शेरपा ने मास्क को आक्सीजन सिलैंडर से जोड़ा, लेकिन महज 10 मीटर की ऊंचाई के बाद मेरा दम घुटने लगा था, क्योंकि मुझे मास्क से औक्सीजन लेने की आदत नहीं थी तब टैंप्रेचर भी माइनस 15 से 20 के बीच था.

मेरी बिगड़ी हालत को देखते शेरपा मुझे वापस बेस कैंप में ले गए. यह दूसरा दिन बेहद हताशा भरा था, क्योंकि डाक्टर्स ने मुझे ऐवरेस्ट समिट की इजाजत देने से मना कर दिया. मुझे लगा कि मेरा सपना टूट रहा है.

दूसरे दिन इजाजत मुझे इस शर्त पर मिली कि मैं शिखर तक मास्क लगा कर रखूंगी. असल में मुझे मास्क लगाने में असुविधा हो रही थी. खैर, मास्क लगाया और आखिरकार मंजिल पा ही ली. ऊपर तक का पूरा रास्ता बर्फीला था और तेज हवाएं बारबार व्यवधान डाल रही थीं. आगे बर्फीली चट्टानें थीं, जिन में 3 मिलोमीटर चलने में ही 15 घंटे रुकने के बाद वापस नीचे आई तो नौर्मल होने में भी काफी वक्त लगा.

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अब आगे क्या प्लान है, क्या शादी करेंगी?

बिलकुल करूंगी और गृहस्थी भी संभालूंगी, मेरी नजर में स्त्री की संपूर्णता और सार्थकता ही यही है. 4 देशों की सब से ऊंची चोटियां छूने के बाद मैं अब एडवैंचर पसंद लोगों को ट्रेनिंग दे रही हूं, जिन में एक ट्रांसजैंडर भी शामिल है. मध्य प्रदेश ने मुझे बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ अभियान का ब्रैंड ऐंबैसडर भी बनाया है.

मैं ने जो चाहा वह कई मुसीबतें झेलते हासिल किया और अभी भी गांव जब आती हूं तो एक किसान की बेटी की तरह खेतखलिहान में उसी मिट्टी में काम करती हूं, जिसे मैं माउंट ऐवरेस्ट पर बिखेर कर आई हूं.

Holi Special: बालों को दें नैचुरल केयर

जमाना चाहे बदल जाए लेकिन लंबे, घने व काले बालों का फैशन कभी आउट नहीं होता है. लेकिन क्या करें हमारी भागदौड़ भरी जिंदगी, धूलमिट्टी, प्रदूषण व कैमिकल वाले प्रोडक्ट्स के ज्यादा इस्तेमाल करने के कारण हमारे बालों की नैचुरल ब्यूटी, शाइन, सौफ्टनैस धीरेधीरे गायब होने लगती है, जो हमारी खूबसूरती को कम करने का काम करती है. ऐसे में अगर आप अपने बालों को सुंदर बनाना चाहती हैं तो हेयर केयर के लिए ऐसे शैंपू का इस्तेमाल करें जो नैचुरल इन्ग्रीडिऐंट्स से बने हों, जैसे:

ग्रीन ऐप्पल:

ग्रीन ऐप्पल में विटामिन ए, सी, फाइबर, प्रोटीन, पोटैशियम, आयरन होने के कारण यह सेहत के लिए काफी लाभकारी होता है. इस से शरीर की न्यूट्रिशन संबंधित जरूरतें पूरी होती हैं. ग्रीन ऐप्पल ऐक्सट्रैक्ट आप की स्कैल्प को क्लीन करने के साथसाथ आप के बालों में मौजूद ऐक्स्ट्रा औयल को रिमूव कर के बालों को फ्रैश लुक देने का भी काम करता है. इस में बालों को मौइस्चराइज करने वाली प्रौपर्टीज होती है, जिस से डैमेज बाल रिपेयर होते हैं. साथ ही यह आप के बालों को वौल्यूम प्रदान कर के उन्हें सिल्की व शाइनी बनाने का काम भी करता है.

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ऐलोवेरा:

ऐलोवेरा में प्रोटोलिटिक ऐंजाइम्स होते हैं, जो स्कैल्प पर मौजूद डैड स्किन सैल्स को रिमूव कर के स्कैल्प पर होने वाले डैंड्रफ व जलन को कम करने का काम करते हैं. इसे अगर बैस्ट हेयर कंडीशनर कहा जाए तो गलत नहीं होगा, क्योंकि यह हेयर ग्रोथ को प्रमोट कर के प्रदूषण व कैमिकल्स के ज्यादा इस्तेमाल करने के कारण बालों में जो ड्राइनैस आ जाती है उसे कंट्रोल कर के बालों को सौफ्टनैस प्रदान करने का काम करता है. इस में विटामिनट बी12 और फौलिक ऐसिड होने के कारण यह बालों को झड़ने से भी रोकता है.

टीट्री औयल:

अगर शैंपू में टीट्री औयल मिला हो, तो वह बालों से कैमिकल के इफैक्ट को कम करने के साथसाथ स्कैल्प से डैड स्किन को भी रिमूव करता है. खास बात यह है कि यह बालों को हैल्दी व मौइस्चराइज रखता है, जिस से हैल्दी सैल्स प्रमोट होने से बालों की अच्छी ग्रोथ होती है. टीट्री औयल ब्लड फ्लो को इंप्रूव कर के व न्यूट्रिएंट्स को हेयर फौलिकल्स तक पहुंचाने का भी काम करता है. स्कैल्प के पीएच लैवल को बैलेंस में रखने में भी सक्षम है.

नीबू:

नीबू में मौजूद सिट्रिक ऐसिड नैचुरल ब्लीच का काम करता है, जिस से धीरेधीरे ग्रे हेयर की प्रौब्लम कम होती जाती है. इस में ऐंटीमाइक्रोबियल प्रौपर्टीज होने के कारण यह स्कैल्प को क्लीन करने का काम करता है, साथ ही हेयर फौलिकल्स को टाइट कर के बालों को डैंड्रफ से बचाता है. यह कोलेजन प्रोडक्शन को भी प्रमोट कर के डैमेज स्किन सैल्स को रिपेयर करता है. 2015 के एक अध्ययन के अनुसार नीबू में मौजूद सिट्रिक ऐसिड स्कैल्प के लिए नैचुरल पीएच ऐडजस्टर का काम करता है. इसलिए नीबू युक्त शैंपू काफी असरदार साबित होता है.

आंवला:

यदि आप आंवला युक्त शैंपू का इस्तेमाल करती हैं तो यह आप के ब्लड को प्यूरीफाई करने के साथसाथ आप के बालों के नैचुरल कलर को मैंटेन रखने का काम भी करता है, जिस से आप के बाल सफेद नहीं होते हैं. आंवले में पाया जाने वाला विटामिन सी कोलेजन प्रोटीन का उत्पादन करता है, जो बालों की लंबाई, उस के वौल्यूम व न्यू हेयर सैल्स को प्रमोट करने में मददगार होता है.

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वीट प्रोटीन:

यह प्रोटीन आप के बालों के मौइस्चर को मैंटेन रखने का काम भी करता है. इस से बाल ज्यादा घने, सिल्की भी नजर आते हैं. अगर आप के बालों में ज्यादा ड्राइनैस है या वे कर्ली हैं तो वीट प्रोटीन आप के बालों को वौल्यूम देने के साथसाथ बालों की हैल्थ का भी ध्यान रखेगा. यह बालों में फ्रिजीनैस, उन्हें उलझने और टूटने से रोकता है. कह सकते हैं कि यह बालों में नई जान डालने का काम करता है.

कोकोनट औयल शैंपू:

कोकोनट औयल शैंपू डैंड्रफ को कंट्रोल करने के साथसाथ बालों को मौइस्चर प्रदान करने का भी काम करता है. यह स्प्लिट ऐंड्स की समस्या से भी नजात दिलाता है, साथ ही यह हर तरह के बालों में प्रोटीन की कमी को दूर करने का भी काम करता है, जो हैल्दी बालों के लिए बहुत जरूरी होता है. इस से धीरेधीरे बालों की फ्रिजीनैस भी कम हो जाती है और बाल ज्यादा चमकदार व हैल्दी दिखने लगते हैं. इन सभी गुणों से युक्त शैंपू खरीदना चाहती है तो रोजा हर्बलकेयर आंवला शिकाकाई, रोजमैरी, सोया प्रोटीन, हीना तुलसी, हेयर ऐंड स्कैल्प, कोकोनट, व्हीट प्रोटीन, ग्रीन ऐप्पल शैंपू आप के लिए सही विकल्प हो सकते हैं.

बच्चे के लिए ही नहीं मां के लिए भी फायदेमंद है ब्रैस्ट फीडिंग, जानें 15 फायदे

पहली बार मां बनने की खुशी जितनी एक महिला को होती है उससे अधिक चुनौती होती है ब्रैस्ट फीडिंग,जो जरुरी तो है, लेकिन आजकल की अधिकतर मांओं को लगता है कि इससे उनके शरीर का आकार बदल जायेगा. इसकी वजह उनका कामकाजी होना है. साथ ही उन्हें बार–बार बच्चे की ‘फीड’ कराना मुश्किल लगता है. जबकि बच्चे के जन्म के बाद मां का दूध बच्चे के लिए सबसे अधिक फायदेमंद होता है. बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है. यह दूध अमृत समान होती है.

मुंबई की स्त्री एवम् प्रसूति रोग विशेषज्ञ डा. बंदिता सिन्हा कहती हैं कि ब्रेस्ट फीडिंग को लेकर आज भी शहरी महिलाओं में जागरूकता कम है. जबकि ब्रेस्ट फीडिंग करवाने से ब्रेस्ट कैंसर की संभावना भी कम हो जाती है. जिन महिलाओं ने कभी भी ब्रैस्ट फीडिंग नहीं करवाई है, उनमें ब्रैस्ट कैंसर की रिस्क बढ़ जाती है.

एक अध्ययन में ये पाया गया कि जिन महिलाओं को ब्रैस्ट कैंसर मेनोपोज के बाद हुआ है, उन्होंने कभी भी ब्रैस्ट फीडिंग नहीं करवाई है. जबकि महिलाएं जिन्होंने अर्ली 30 की उम्र में स्तनपान करवाया है, वे 30 की उम्र पार कर स्तनपान करवा चुकी महिलाओं से अधिक ब्रैस्ट कैंसर से सुरक्षित है. इसलिए मां बन चुकी हर महिला को स्तनपान करवाना जरुरी है और उन्हें ये समझ लेना चाहिए कि इससे बच्चा तंदुरुस्त होता है और साथ में मां का स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है.

मां के दूध को बढ़ाता है सातावरी जड़ी बूटी वाला लैक्टेशन सप्लीमेंट

आइए जानते हैं ब्रैस्ट फीडिंग के ऐसे ही 15 फायदे…

– यह सबसे गुणकारी दूध होता है, इसमें पाए जाने वाला प्रोटीन और एमिनो एसिड बच्चे की ग्रोथ के लिए अच्छा होता है, यह बच्चे को कुपोषण का शिकार होने से बचाता है.

– ब्रैस्ट मिल्क बेक्टेरिया मुक्त और फ्रेश होने की वजह से बच्चे के लिए सुरक्षित होता है, जब-जब मां बच्चे को दूध पिलाती है, बच्चे को एंटी बायोटिक, दूध के जरिये मिलता है, जिससे बच्चा किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचता है.

– इसके साथ-साथ मां और बच्चे के बीच में एक प्यार भरा रिश्ता बनता जाता है, जिससे बच्चा मां की निकटता का एहसास करता है.

– बच्चे के जन्म के बाद मां के स्तन से निकलने वाला पहला दूध ‘कोलोस्ट्रम’ कहलाता है, जिसमें एंटीबायोटिक की मात्रा सबसे अधिक होती है, जो बच्चे की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाती है, इसके अलावा यह दूध बच्चे की अंतड़ियों और श्वसन प्रक्रिया को भी मजबूत बनाती है.

– ब्रैस्ट मिल्क हड्डियों को अच्छी तरह ग्रो करने और मजबूत बनाने में सहायक होती है.

– यह दूध ‘सडेन इन्फेंट डेथ सिंड्रोम’ को कम करने में भी मदद करता है.

– जन्म के बाद बच्चे की प्रारंभिक अवस्था काफी नाजुक होती है, ऐसे में मां का दूध आसानी से पच जाता है, जिससे उसे कब्ज की शिकायत नहीं होती.

मां के लिए फायदे…

– मां के लिए भी इसके फायदे कम नहीं, ब्रैस्ट फीडिंग करवाने से प्रेगनेंसी के दौरान बढ़े हुए मां का वजन धीरे-धीरे कम होता रहता है.

– इतना ही नहीं ब्रैस्ट फीडिंग से महिला में युट्रेस का संकुचन शुरू हो जाता है, डिलीवरी के बाद ब्लीडिंग अच्छी तरह से हो जाती है, जिससे महिला को ब्रैस्ट और ओवेरियन कैंसर का खतरा कम हो जाता है.

– पोस्टपार्टम डिप्रेशन का खतरा मां के लिए कम हो जाता है.

– अधिक उम्र में बच्चा होने पर भी अगर महिला सही तरह से स्तनपान करवाती है तो कैंसर के अलावा मधुमेह,मोटापा,और अस्थमा जैसी बीमारियों से भी अपने आप को बचा सकती है.

– स्तनपान एक साल से अधिक समय तक करवाने से मां और बच्चा दोनों ही स्वस्थ रह सकते हैं.

– जो बच्चे 6 महीने तक लगातार ब्रैस्ट फीड पर निर्भर होते हैं उनकी इम्युनिटी अधिक होती है.

– बच्चे अतिसक्रिय होने से बचते हैं.

Serial Story: मैत्री– भाग 3

5 वर्षों से जिस व्यक्ति से फेसबुक पर संपर्क है, वह किसी सरकारी विभाग के जिम्मेदार अधिकारी के रूप में कार्य कर रहा है. और पगपग पर उस का सहयोग कर रहा है, उस का शिष्टाचारवश भी अतिथि को ठहराने का दायित्व तो बनता ही है.

इसी बात पर आज सवेरे नकुल भड़क गया था. कहा था कि फेसबुकिया मित्र के यहां कहां ठहरोगी. मैत्री इतना तो समझती है कि सामान्य शिष्टाचार और आग्रह में अंतर होता है. सो, उस ने यही कहा था कि यह एक मित्र का आत्मीय आग्रह भी हो सकता है.

मैत्री खुद समझदार है, इतना तो जानती है कि महानगर कल्चर में किसी के घर रुक कर उस को परेशानी में डालना ठीक नहीं होता.

मैत्री का मन नकुल की छोटी सोच तथा स्त्रियों के प्रति जो धारणा उस ने प्रकट की, उस को ले कर खट्टा हुआ था. अपने ठहरने के विषय में तो विनम्रतापूर्वक उमंग को मना कर ही चुकी थी. बिना पूरी बात सुने नकुल का भड़कना तथा उमंग के लिए गलत धारणा बना लेना उसे सही नहीं लगता था.

रेलगाड़ी आखिरकार गंतव्य स्टेशन पर पहुंच कर रुक गई और मैत्री की विचारशृंखला टूटी. वह टैक्सी कर स्टेशन से सीधे पति नकुल के बताए गैस्टहाउस में जा ठहरी.

पोलो विक्ट्री के नजदीकी गैस्टहाउस में नहाधो कर, तैयार हो कर मैत्री अब उमंग के कार्यालय में पहुंच गई. आगे के निमंत्रण इत्यादि उमंग खुद साथ रह कर मंत्रीजी तथा निदेशक महोदय आदि को दिलवाएंगे.

प्रधान कार्यालय के एक कक्ष के बाहर तख्ती लगी थी, उपनिदेशक, उमंग कुमार. कक्ष के भीतर प्रवेश करते ही हतप्रभ होने की बारी मैत्री की थी. यू के खुद दोनों पांवों से विकलांग हैं तथा दोनों बैसाखियां उन की घूमती हुई कुरसी के पास पड़ी हैं.

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उमंग ने उत्साहपूर्वक अभिवादन करते हुए मैत्री को कुरसी पर बैठने को कहा.

मैत्री को क्षणभर के लिए लगा कि उस का मस्तिष्क भी रिवौल्ंिवग कुरसी की तरह घूम रहा है. 5 वर्ष की फेसबुकिया मित्रता में उमंग ने कभी यह नहीं बताया कि वे विकलांग हैं. उन की फोटो प्रोफाइल में एक भी चित्र ऐसा नहीं है जिस से उन के विकलांग होने का पता चले. क्षणभर के लिए मैत्री को लगा कि फेसबुकिया मित्रों पर नकुल की टिप्पणी सही हो रही है. मैत्री की तन्मयता भंग हुई. उमंग प्रसन्नतापूर्वक बातें करते हुए उसे सभी वीआईपी के पास ले गए. कमोबेश सारी औपचारिकताएं पूरी हो गईं. सभी ने मैत्री के निस्वार्थ कार्य की प्रशंसा की तथा उस के वार्षिक कार्यक्रम में शतप्रतिशत उपस्थित रहने का आश्वासन भी दिया.

मैत्री भीतर से थोड़ी असहज जरूर हुई पर बाहर से सहज दिखने का प्रयास कर रही थी. उमंग को धन्यवाद देते हुए मैत्री ने कहा कि वह अब गैस्टहाउस जा कर विश्राम करेगी और रात की ट्रेन से वापस लौट जाएगी.

उमंग ने कहा, ‘‘मैडम, आप की जैसी इच्छा हो वैसा ही करें. मेरी तो केवल इतनी अपील है कि मेरी पत्नी का आज जन्मदिन है. बच्चों ने घरेलू केक काटने का कार्यक्रम रखा है. घर के सदस्यों के अलावा कोई नहीं है. आप भी हमारी खुशी में शामिल हों. आप को समय के भीतर, जहां आप कहेंगी, छोड़ दिया जाएगा.’’ मैत्री के यह स्वीकार करने के बाद दूसरी बार चौंकने का अवसर था, क्योंकि यह विकलांग व्यक्ति अपनी कार फर्राटेदार प्रोफैशनल ड्राइवर की तरह चला रहा है, बरसों पुरानी मित्रता की तरह दुनियाजहान की बातें कर रहा है, कहीं पर भी ऐसा नहीं लग रहा है कि उमंग विकलांग है. वह तो उत्साह व उमंग से लबरेज है.

पेड़पौधों की हरियाली से आच्छादित उमंग के घर के ड्राइंगरूम में बैठी मैत्री दीवार पर सजी विविध पेंटिंग्स को निहारती है और उन के रहनसहन से बहुत प्रभावित होती है. एक विकलांग व्यक्ति भरेपूरे परिवार के साथ पूरे आनंद से जीवन जी रहा है. बर्थडे केक टेबल पर आ गया. उमंग का बेटा व बेटी इस कार्यक्रम को कर रहे हैं. बेटाबेटी से परिचय हुआ. बेटा एमबीबीएस और बेटी एमटैक कर रही है. दोनों छुट्टियों में घर आए हुए हैं.

उमंग की पत्नी केक काटते समय ही आई. मैत्री के अभिवादन का उस ने कोई जवाब नहीं दिया. उस के मुंह पर चेचक के निशान थे. शायद वह एक आंख से भेंगी भी थी.

उस के केक काटते ही बच्चों ने उमंग के साथ तालियां बजाईं. ‘‘हैप्पी बर्थडे मम्मा.’’

उमंग ने केक खाने के लिए मुंह खोला ही था कि उन की पत्नी ने गुलाल की तरह केक उन के गालों पर मल दिया. फिर होहो कर हंसी. उमंग भी इस हंसी में शामिल हो गए.

उन की बेटी बोली, ‘आज मम्मा, आप की तबीयत ठीक नहीं है, चलिए अपने कमरे में.’

बेटी उन को लिटा कर आ गई. उमंग घटना निरपेक्ष हो कर मैत्री से बतियाते हुए पार्टी का आनंद ले रहे थे. पार्टी समाप्त होने पर वे अपनी कार से मैत्री को गैस्टहाउस छोड़ने आ रहे हैं. वे कह रहे हैं, ‘‘मैडम, माइंड न करें, मेरी पत्नी मंदबुद्धि है. मेरा विवाह भी मेरे जीवन में किसी चमत्कार से कम नहीं है. मेरा जन्म अत्यंत गरीब परिवार में हुआ. बचपन में मुझे पोलियो हो गया. मातापिता अपनी सामर्थ्य के अनुसार भटके, पर मैं ठीक नहीं हो पाया.

‘‘पढ़ने में तेज था, पर निराश हो गया. मां ने एक छोटे से स्कूल के मास्टरजी, जो बच्चों को निशुल्क पढ़ाते थे, उन के घर में पढ़ने भेजा. मास्टरजी के आगे मैं अपने पांवों की तरफ देख कर बहुत रोया. ‘गुरुजी, मैं जीवन में क्या करूंगा, मेरे तो पांव ही नहीं हैं.’

‘‘मास्टरजी ने कहा, ‘बेटा, तुम जीवन में बहुतकुछ कर सकते हो. पर पहली शर्त है कि अपने बीमार और अपाहिज पांवों के विषय में नहीं सोचोगे, तो जीवन में बहुत तेज दौड़ोगे.’ इस बात से मेरा आत्मविश्वास बढ़ गया. मैं ने तय किया, मुझे किसी दया, भीख या सहानुभूति की बैसाखियों पर जीवित नहीं रहना और तब से मैं ने अपने लाचार पांवों की चिंता करना छोड़ दिया. इस गुरुमंत्र को गांठ बांध लिया. सो, आज यहां खड़ा हूं.

‘‘मैं पढ़नेलिखने में होशियार था, छात्रवृत्तियां मिलती गईं, पढ़ता गया और सरकारी अधिकारी बन गया. दफ्तर

में कहीं से कोई खबर लाया कि विशाखापट्टनम में विकलांगों के इलाज का बहुत बढि़या अस्पताल है जिसे कोई ट्रस्ट चलाता है. वहां बहुत कम खर्चे में इलाज हो जाता है. दफ्तर वालों ने हौसला बढ़ाया, आर्थिक सहायता दी और मैं पोलियो का इलाज कराने के लिए लंबी छुट्टी ले कर विशाखापट्टनम पहुंच गया.

‘‘देशविदेश के अनेक बीमारों का वहां भारी जमावड़ा था. कुछ परिवर्तन तो मुझ में भी आया. लंबा इलाज चलता है, संभावना का पता नहीं लगता है. वहां बड़ेबड़े अक्षरों में लिखा है, ‘20 प्रतिशत हम ठीक करते हैं, 80 प्रतिशत आप को ठीक होना है.’ जिस का मतलब स्पष्ट है, कठिन व्यायाम लंबे समय तक करते रहो. कुल मिला कर कम उम्र के बच्चों की ठीक होने की ज्यादा संभावना रहती है. मेरे जैसे 30 वर्षीय युवक के ज्यादा ठीक होने की गुंजाइश तो नहीं थी, पर कुछ सुधार हो रहा था.

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‘‘अस्पताल में मेरे कमरे का झाड़ूपोंछा लगाने वाली वृद्ध नौकरानी का मुझ से अपनापन होने लगा. एक दिन उस ने बातों ही बातों में बताया कि इस दुनिया में एक लड़की के सिवा उस का कोई नहीं है. 25 वर्षीय लड़की मंदबुद्धि है. मेरे बाद उस का न जाने क्या होगा? एक दिन वह अपनी लड़की को साथ ले कर आई, बेबाक शब्दों में बताया कि बचपन में चेचक निकली, एक आंख भेंगी हो गई. मंदबुद्धि है, कुछ समझ पड़ता है, कुछ नहीं पड़ता है. क्या आप मेरी लड़की से विवाह करेंगे?

‘‘मैं एकदम सकते में आ गया. पर मैं भी तो विकलांग हूं. वह बोली, ‘कुछ कमी इस में है, कुछ आप में है. दोनों मिल कर एकदूसरे को पूरा नहीं कर सकते हो? आप विकलांग अवश्य हो पर पढ़ेलिखे, समझदार और सरकारी नौकरी में हो. फिर मेरी बेसहारा लड़की को अच्छा सहारा मिल जाएगा.’ मैं ने कहा, ‘तुम समझ रही हो, मैं ठीक हो रहा हूं, पर नहीं ठीक हुआ तो क्या होगा?’

‘‘कोई बात नहीं, मेरी बेटी को सहारा मिल जाए, तो मैं शांति से मर सकूंगी,’ इस प्रकार हमारी सीधीसादी शादी हो गई.

‘‘आज केक काटते हुए जो घटना घटी, वह तो सामान्य है. यह तो मेरी दिनचर्या का अंग है. वैसे भी मेरी पत्नी का सही जन्मदिनांक तो पता ही नहीं है. वह तो हम ने अपनी शादी की तारीख को ही उस का जन्मदिनांक मान लिया है.’’

‘‘मैत्रीजी, अपूर्ण पुरुष और अपूर्ण स्त्री के वैवाहिक जीवन में अनेक विसंगतियां आती हैं, जिन्हें झेलना पड़ता है. शरीर विकलांग हो सकता है, मन मंद हो सकता है पर देह की तो अपनी भूख होती है. कई बार वह ही बैसाखियों से मुझ पर प्रहार करती है.

‘‘संतोष और आनंद है कि 2 होनहार बच्चे हैं.’’

गैस्टहाउस सामने था.

मैत्री बोली, ‘‘सरजी, मैं ने आप को कुछ गलत समझ लिया. क्षमा करना.’’

उमंग एक ठहाका लगा कर हंसे, ‘‘मैत्रीजी, आप मेरी घनिष्ठ मित्र हैं, तो ध्यान रखना, हंसोहंसो, दिल की बीमारियों में कभी न फंसो.’’

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Serial Story: मैत्री– भाग 1

गाड़ी प्लेटफौर्म छोड़ चुकी थी. मैत्री अपने मोबाइल पर इंटरनैट की दुनिया में बिजी हो गई. फेसबुक और उस पर फैले मित्रता के संसार. विचारमग्न हो गई मैत्री. मित्र जिन्हें कभी देखा नहीं, जिन से कभी मिले नहीं, वे सोशल मीडिया के जरिए जीवन में कितने गहरे तक प्रवेश कर गए हैं. फेसबुक पर बने मित्रों में एक हैं उमंग कुमार. सकारात्मक, रचनात्मक, उमंग, उत्साह और जोश से सराबोर. जैसा नाम वैसा गुण. अंगरेजी में कह लीजिए मिस्टर यू के.

मैत्री के फेसबुकिया मित्रों में सब से घनिष्ठ मित्र हैं यू के. मैत्री अपना मोबाइल ले कर विचारों में खो जाती है. कितनी प्यारी, कितनी अलग दुनिया है वह, जहां आप ने जिस को कभी नहीं देखा हो, उस से कभी न मिले हों, वह भी आप का घनिष्ठ मित्र हो सकता है.

मैत्री मोबाइल पर उंगलियां थिरकाती हुई याद करती है अतीत को, जब गाड़ी की सीट पर बैठा व्यक्ति यात्रा के दौरान कोई अखबार या पत्रिका पढ़ता नजर आता था. लेकिन आज मोबाइल और इंटरनैट ने कई चीजों को एकसाथ अप्रासंगिक कर दिया, मसलन घड़ी, अखबार, पत्रपत्रिकाएं, यहां तक कि अपने आसपास बैठे या रहने वाले लोगों से भी दूर किसी नई दुनिया में प्रवेश करा दिया. मोबाइल की दुनिया में खोए रहने वाले लोगों के करीबी इस यंत्र से जलने लगे हैं.

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अपनी आज की यात्रा की तैयारी करते हुए जब सवेरे मैत्री को उस का पति नकुल समझा रहा था कि जयपुर जा कर वह किस से संपर्क करे, कहां रुकेगी आदि, तब मैत्री ने पति को बताया कि वे कतई चिंता न करें. फेसबुकिया मित्र उमंग का मैसेज आ गया है कि बेफिक्र हो कर जयपुर चली आएं, आगे वे सब संभाल लेंगे.

मैत्री के पति काफी गुस्सा हो गए थे. क्याक्या नहीं कह गए. फेसबुक की मित्रता फेसबुक तक ही सीमित रखनी चाहिए. विशेषकर महिलाओं को कुछ ज्यादा ही सावधानी रखनी चाहिए. झूठे नामों से कई फर्जी अकाउंट फेसबुक पर खुले होते हैं. फेसबुक की हायहैलो फेसबुक तक ही सीमित रखनी चाहिए. महिलाएं कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं. भू्रण से ले कर वृद्धावस्था तक. न जाने पुरुष कब, किस रूप में स्त्री को धोखा देदे. जिस व्यक्ति को कभी देखा ही नहीं, उस पर यकीन नहीं करना चाहिए.

मैत्री को लगा कि पति, जिन को वह खुले विचारों का पुरुष समझ रही थी, की आधुनिकता का मुलम्मा उतरने लगा है.

मैत्री ने इतना ही कहा था कि जो व्यक्ति 5 वर्षों से उस की सहायता कर रहा है, जिस के सारे पोस्ट सकारात्मक होते हैं, ऐसे व्यक्ति पर अविश्वास करना जायज नहीं है.

जब पतिपत्नी के बीच बहस बढ़ रही थी तो मैत्री कह उठी थी, ‘मैं कोई दूध पीती बच्ची नहीं हूं. अधेड़ महिला हूं. पढ़ीलिखी हूं, मुझे कौन खा जाएगा? मैं अपनी रक्षा करने में सक्षम हूं.’

नकुल खामोश तो हो गया था पर यह बताना नहीं चूका कि मैत्री के ठहरने की व्यवस्था उन्होंने पोलो विक्ट्री के पास अपने विभाग के गैस्टहाउस में कर दी है.

जब मैत्री ने नहले पर दहला मार दिया कि ज्यादा ही डर लग रहा हो तो वे भी साथ चल सकते हैं, तब नकुल कुछ देर के लिए खामोश हो गया. वह बात को बद?लने की नीयत से बोला, ‘तुम तो बिना वजह नाराज हो गई. मेरा मतलब है सावधानी रखना.’

कहने को तो बात खत्म हो गई पर विचारमंथन चल रहा है. ट्रेन जिस गति से आगे भाग रही है, मैत्री की विचारशृंखला अतीत की ओर भाग रही है.

बारबार अड़चन बनता नकुल का चेहरा बीच में आ रहा है. तमतमाया, तल्ख चेहरा और उस के चेहरे का यह रूप आज मैत्री को भीतर तक झकझोर गया था.

मैत्री नकुल की बात से पूरी तरह सहमत नहीं थी. उस का बात कहने का लहजा मैत्री को भीतर तक झकझोर गया. होने को तो क्या नहीं हो सकता. जो बातें वे पुरुषों के बारे में फेसबुक के संदर्भ में कर रहे थे महिलाओं के बारे में भी हो सकती हैं.

बात छोटी सी थी, उस ने तो केवल यही कहा था कि फेसबुक मित्र ने उस के जयपुर में ठहरने की व्यवस्था के लिए कहा था. मैत्री ने इस के लिए हामी तो नहीं भरी थी. नकुल का चेहरा कैसा हो गया था, पुरुष की अहंवादी मानसिकता और अधिकारवादी चेष्टा का प्रतीक बन कर.

मैत्री इन विचारों को झटक कर आज की घटना से अलग होने की कोशिश करती है. लगता है गाड़ी सरक कर किसी स्टेशन पर विश्राम कर रही है. प्लेटफौर्म पर रोशनी और चहलपहल है.

लगभग 25-30 वर्ष पहले मैत्री के जीवन की गाड़ी दांपत्य जीवन में प्रवेश कर नकुलरूपी प्लेटफौर्म पर रुकी थी.

मैत्री ने विवाह के बाद महसूस किया कि पुरुष के बगैर स्त्री आधीअधूरी है. दांपत्य जीवन के सुख ने उस को भावविभोर कर दिया. प्यारा सा पति नकुल और शादी के बाद तीसरे स्टेशन के रूप में प्यारा सा मासूम बच्चा आ गया. रेलगाड़ी चलने लगी थी.

नकुल की अच्छीखासी सरकारी नौकरी और मैत्री की गोद में सुंदर, प्यारा मासूम बच्चा. दिन पंख लगा कर उड़ रहे थे. सारसंभाल से बच्चा बड़ा हो रहा है. हर व्यक्ति अपनी यात्रा पर चल पड़ता है. एक दिन पता लगता है एकाएक बचपन छिटक कर कहीं अलग हो गया. सांस  लेतेलेते पता लगता है कि कीमती यौवन भी जाने कहां पीछा छुड़ा कर चला गया.

देखते ही देखते मैत्री का बेटा सुवास 15 वर्ष का किशोर हो गया. किशोर बच्चों की तरह आकाश में उड़ान भरने के सपने ले कर. एक दिन मातापिता के आगे उस ने मंशा जाहिर कर दी, ‘मेरे सारे फ्रैंड आईआईटी की कोचिंग लेने कोटा जा रहे हैं. मैं भी उन के साथ कोटा जाना चाहता हूं. मैं खूब मन लगा कर पढ़ाई करूंगा. आईआईटी ऐंट्रैंस क्वालिफाई करूंगा. फिर किसी के सामने मुझे नौकरी के लिए भीख नहीं मांगनी पड़ेगी. कैंपस से प्लेसमैंट हो जाएगा और भारीभरकम सैलरी पैकेज मिलेगा.’

बेटे सुवास का सोचना कतई गलत नहीं था. इस देश का युवा किशोरमन बेरोजगारी से कितना डरा हुआ है. बच्चे भी इस सत्य को जान गए हैं कि अच्छी नौकरियों में ऊपर का 5 प्रतिशत, शेष 50-60 प्रतिशत मजदूरी कार्य में. जो दोनों के लायक नहीं हैं, वे बेरोजगारों की बढ़ती जमात का हिस्सा हैं.

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पिता की नौकरी बहुत बड़ी तो नहीं, पर छोटी भी नहीं थी. परिवार में कुल जमा 3 प्राणी थे. सो, बेटे की ऐसी सोच देख कर नकुल और मैत्री प्रसन्न हो गए. आननफानन सपनों को पंख लग गए.

मातापिता दोनों सुवास के साथ गए. कोटा में सप्ताहभर रुक कर अच्छे कोचिंग सैंटर की फीस भर कर बेटे को दाखिला दिलवाया. अच्छे होस्टल में उस के रहनेखाने की व्यवस्था की गई. पतिपत्नी ने बेटे को कोई तकलीफ न हो, सो, एक बैंक खाते का एटीएम कार्ड भी उसे दे दिया.

बेटे सुवास को छोड़ कर जब वे वापस लौट रहे थे तो दोनों का मन भारी था. मैत्री की आंखें भी भर आईं. जब सुवास साथ था, तो उस के कितने बड़ेबड़े सपने थे. जितने बड़े सपने उतनी बड़ी बातें. पूरी यात्रा उस की बातों में कितनी सहज हो गई थी.

नकुल और मैत्री का दर्द तो एक ही था, बेटे से बिछुड़ने का दर्द, जिस के लिए वे मानसिक रूप से तैयार नहीं थे. फिर भी नकुल ने सामान्य होने का अभिनय करते हुए मैत्री को समझाया था, ‘देखो मैत्री, कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है. बच्चों को योग्य बनाना हो तो मांबाप को यह दर्द सहना ही पड़ता है. इस दर्द को सहने के लिए हमें पक्षियों का जीवन समझना पड़ेगा.

‘जिस दिन पक्षियों के बच्चे उड़ना सीख जाते हैं, बिना किसी देर के उड़ जाते हैं. फिर लौट कर नहीं आते. मनुष्यों में कम से कम यह तो संतोष की बात है कि उड़ना सीख कर भी बच्चे मांबाप के पास आते हैं, आ सकते हैं.’

मैत्री ने भी अपने मन को समझाया. कुछ खो कर कुछ पाना है. आखिर सुवास को जीवन में कुछ बन कर दिखाना है तो उसे कुछ दर्द तो बरदाश्त करना ही पड़ेगा.

कमोबेश मातापिता हर शाम फोन पर सुवास की खबर ले लिया करते थे. सुवास के खाने को ले कर दोनों चिंतित रहते. मैस और होटल का खाना कितना भी अच्छा क्यों न हो, घर के खाने की बराबरी तो नहीं कर सकता और वह संतुष्टि भी नहीं मिलती.

पतिपत्नी दोनों ही माह में एक बार कोटा शहर चले जाते थे. कोटा की हर गली में कुकुरमुत्तों की तरह होस्टल, मैस, ढाबे और कोचिंग सैंटरों की भरमार है. हर रास्ते पर किशोर उम्र के लड़के और लड़कियां सपनों को अरमान की तरह पीठ पर किताबों के नोट्स का बोझ उठाए घूमतेफिरते, चहचहाते, बतियाते दिख जाते.

जगहजगह कामयाब छात्रों के बड़ेबड़े होर्डिंग कोचिंग सैंटर का प्रचार करते दिखाई पड़ते. उन बच्चों का हिसाब किसी के पास नहीं था जो संख्या में 95 प्रतिशत थे और कामयाब नहीं हो पाए थे.

टैलीफोन पर बात करते हुए मैत्री अपने बेटे सुवास से हर छोटीछोटी बात पूछती रहती. दिनमहीने गुजरते गए. सावन का महीना आ गया. चारों तरफ बरसात की झमाझम और हरियाली का सुहावना दृश्य धरती पर छा गया.

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Serial Story: मैत्री– भाग 2

ऐसे मौसम में सुवास मां से पकौड़े बनवाया करता. मैत्री का बहुत मन हो रहा था अपने बेटे को पकौड़े खिलाने का. शाम को उस के पति नकुल ने भी जब पकौड़े बनाने की मांग की तो मैत्री ने कह दिया, ‘बच्चा तो यहां है नहीं. उस के बगैर उस की पसंद की चीज खाना मुझे अच्छा नहीं लग रहा है.’ तब नकुल ने भी उस की बात मान ली थी.

मैत्री की स्मृतिशृंखला का तारतम्य टूटा, क्योंकि रेलगाड़ी को शायद सिगनल नहीं मिला था और वह स्टेशन से बहुत दूर कहीं अंधेरे में खड़ी हो गई थी.

ऐसा ही कोई दिन उगा था जब बरसात रातभर अपना कहर बरपा कर खामोश हुई थी. नदीनाले उफान पर थे. अचानक घबराया हुआ रोंआसा नकुल घर आया. साथ में दफ्तर के कई फ्रैंड्स और अड़ोसीपड़ोसी भी इकट्ठा होने लगे.

मैत्री कुछ समझ नहीं पा रही थी. चारों तरफ उदास चेहरों पर खामोशी पसरी थी. घर से दूर बाहर कहीं कोई बतिया रहा था. उस के शब्द मैत्री के कानों में पड़े तो वह दहाड़ मार कर चीखी और बेहोश हो गई.

कोई बता रहा था, कोटा में सुवास अपने मित्रों के साथ किसी जलप्रपात पर पिकनिक मनाने गया था. वहां तेज बहाव में पांव फिसल गया और पानी में डूबने से उस की मृत्यु हो गई है.

हंसतेखेलते किशोर उम्र के एकलौते बेटे की लाश जब घर आई, मातापिता दोनों का बुरा हाल था. मैत्री को लगा, उस की आंखों के आगे घनघोर अंधेरा छा रहा है, जैसे किसी ने ऊंचे पर्वत की चोटी पर से उसे धक्का दे दिया हो और वह गहरी खाई में जा गिरी हो.

मैत्री की फुलवारी उजड़ गई. बगिया थी पर सुवास चली गई. यह सदमा इतना गहरा था कि वह कौमा में चली गई. लगभग 15 दिनों तक बेहोशी की हालत में अस्पताल में भरती रही.

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रिश्तेदारों की अपनी समयसीमा थी. कहते हैं कंधा देने वाला श्मशान तक कंधा देता है, शव के साथ वह जलने से रहा.

सुवास की मौत को लगभग 3 माह हो गए पर अभी तक मैत्री सामान्य नहीं हो पाई. घर के भीतर मातमी सन्नाटा छाया था. नकुल का समय तो दफ्तर में कट जाता. यों तो वह भी कम दुखी नहीं था पर उसे लगता था जो चीज जानी थी वह जा चुकी है. कितना भी करो, सुवास वापस कभी लौट कर नहीं आएगा. अब तो किसी भी तरह मैत्री के जीवन को पटरी पर लाना उस की प्राथमिकता है.

इसी क्रम में उस को सूझा कि अकेले आदमी के लिए मोबाइल बिजी रहने व समय गुजारने का बहुत बड़ा साधन हो सकता है. एक दिन नकुल ने एक अच्छा मोबाइल ला कर मैत्री को दे दिया.

पहले मैत्री ने कोई रुचि नहीं दिखाई, लेकिन नकुल को यकीन था कि यह एक ऐसा यंत्र है जिस की एक बार सनक चढ़ने पर आदमी इस को छोड़ता नहीं है. उस ने बड़ी मानमनुहार कर उस को समझाया. इस में दोस्तों का एक बहुत बड़ा संसार है जहां आदमी कभी अकेला महसूस नहीं करता बल्कि अपनी रुचि के लोगों से जुड़ने पर खुशी मिलती है.

नकुल के बारबार अपील करने? और यह कहने पर कि फौरीतौर पर देख लो, अच्छा न लगे, तो एकतरफ पटक देना, मैत्री ने गरदन हिला दी. तब नकुल ने सारे फंक्शंस फेसबुक, व्हाट्सऐप, हाइक व गूगल सर्च का शुरुआती परिचय उसे दे दिया.

कुछ दिनों तक तो मोबाइल वैसे ही पड़ा रहा. धीरेधीरे मैत्री को लगने लगा कि नकुल बड़ा मन कर के लाया है, उस का मान रखने के लिए ही इस का इस्तेमाल किया जाए.

एक बार मैत्री ने मोबाइल को इस्तेमाल में क्या लिया कि वह इतनी ऐक्सपर्ट होती चली गई कि उस की उंगलियां अब मोबाइल पर हर समय थिरकती रहतीं.

फेसबुक के मित्रता संसार में एक दिन उस का परिचय उमंग कुमार यानी मिस्टर यू के से होता है.

अकसर मैत्री अपने दिवंगत बेटे सुवास को ले कर कुछ न कुछ पोस्ट करती रहती थी. फीलिंग सैड, फीलिंग अनहैप्पी, बिगैस्ट मिजरी औफ माय लाइफ आदिआदि.

निराशा के इस अंधकार में आशा की किरण की तरह उमंग के पोस्ट, लेख, टिप्पणियां, सकारात्मक, सारगर्भित, आशावादी दृष्टिकोण से ओतप्रोत हुआ करते थे. नकुल को लगा मैत्री का यह मोबाइलफ्रैंडली उसे सामान्य होने में सहयोग दे रहा है. उस का सोचना सही भी था.

फेसबुक पर उमंग के साथ उस की मित्रता गहरी होती चली गई. मैत्री को एहसास हुआ कि यह एक अजीब संसार है जहां आप से हजारों मील दूर अनजान व्यक्ति भी किस तरह आप के दुख में भागीदार बनता है. इतना ही नहीं, वह कैसे आप का सहायक बन कर समस्याओं का समाधान सुझाता है.

मैत्री ने अपने बेटे की मृत्यु की दुखभरी त्रासदी फेसबुक पर पोस्ट कर दी, अपनी तकलीफ और जीवन गुजारने की यथास्थिति भी लिख दी.

उमंग ने पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी, ‘जो कुछ आप के जीवन में घटित हुआ, उस के प्रति संवेदना प्रकट करने में शब्दकोश छोटा पड़ जाएगा. जीवन कहीं नहीं रुका है, कभी नहीं रुकता है. हर मनुष्य का जीवन केवल एक बार और अंतिम बार रुकता है, केवल खुद की मौत पर.’

इसी तरह की अनेक पोस्ट लगातार आती रहतीं, मैत्री के ठहरे हुए जीवन में कुछ हलचल होने लगी.

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एक बार उमंग ने हृदयरोग के एक अस्पताल की दीवारों के चित्र पोस्ट किए जहां दिल के चित्र के पास लिखा था, ‘हंसोहंसो, दिल की बीमारियों में कभी न फंसो.’

एक दिन उमंग ने लिखा, ‘मैडम, जीवनभर सुवास की याद में आंसू बहाने से कुछ नहीं मिलेगा. अच्छा यह है कि गरीब, जरूरतमंद और अनाथ बच्चों के लिए कोई काम हाथ में लिया जाए. खुद का समय भी निकल जाएगा और संतोष भी मिलेगा.’

यह सुझाव मैत्री को बहुत अच्छा लगा. नकुल से जब उस ने इस बारे में चर्चा की तो उस ने भी उत्साह व रुचि दिखाई.

जब मैत्री का सकारात्मक संकेत मिला तो उमंग ने उसे बताया कि वे खुद सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग, प्रधान कार्यालय, जयपुर में बड़े अधिकारी के पद पर कार्यरत हैं. वे उस की हर तरह से मदद करेंगे.

उमंग ने पालनहार योजना, मूकबधिर विद्यालय, विकलांगता विद्यालय, मंदबुद्धि छात्रगृह आदि योजनाओं का साहित्य ईमेल कर दिया. साथ ही, यह भी मार्गदर्शन कर दिया कि किस तरह एनजीओ बना कर सरकारी संस्थाओं से आर्थिक सहयोग ले कर ऐसे संस्थान का संचालन किया जा सकता है.

उमंग ने बताया कि सुवास की स्मृति को कैसे यादगार बनाया जा सकता है. एक पंफ्लेट सुवास की स्मृति में छपवा कर अपना मंतव्य स्पष्ट किया जाए कि एनजीओ का मकसद निस्वार्थ भाव से कमजोर, गरीब, लाचार बच्चों को शिक्षित करने का है.

उमंग से मैत्री को सारा मार्गदर्शन फोन और सोशल मीडिया पर मिल रहा था. वे लगातार मैत्री को उत्साहित कर रहे थे.

मैत्री ने अपनी एक टीम बनाई, एनजीओ बनाया. मैत्री की निस्वार्थ भावना को देखते हुए उसे आर्थिक सहायता भी मिलती गई. उमंग के सहयोग से सरकारी अनुदान भी जल्दी ही मिलने लगा.

शहर में खुल गया विकलांग बच्चों के लिए एक अच्छा विद्यालय. मैत्री को इस काम में बहुत संतोष महसूस होने लगा. उस की व्यस्तता भी बढ़ गई. हर निस्वार्थ सेवा में उसे खुशी मिलने लगी. किसी का सहारा बनने में कितना सुख मिलता है, मैत्री को उस का एहसास हो रहा था. मैत्री पिछले 5 वर्षों से विकलांग विद्यालय को कामयाबी के साथ चला रही थी.

उमंग के लगातार सहयोग और मार्गदर्शन से विकलांग छात्र विद्यालय दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था.

अभी तक कोई ऐसा मौका नहीं आया जब मैत्री की उमंग से आमनेसामने मुलाकात हुई हो. मैत्री मन ही मन उमंग के प्रति एहसानमंद होने का अनुभव करती थी.

कुछ दिनों से उमंग से उस की बात हो रही थी. संदर्भ था विद्यालय का 5वां स्थापना दिवस समारोहपूर्वक मनाने का. मैत्री चाहती थी उक्त आयोजन में सामाजिक न्याय विभाग के निदेशक, विभाग के मंत्री तथा जयपुर के प्रख्यात समाजसेवी मुख्य अतिथियों के रूप में मौजूद रहें. इस काम के लिए भी उमंग के सहयोग की मौखिक स्वीकृति मिल गई थी. औपचारिक रूप से संस्था प्रधान के रूप में मैत्री को निमंत्रण देने हेतु खुद को जयपुर जाना पड़ रहा है. कल सवेरे ही उमंग ने मैत्री से कहा था, ‘जयपुर आ जाइए, सारी व्यवस्था हो जाएगी.’

आगे पढ़ें- मैत्री का मन नकुल की छोटी…

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TV की दुनिया में वापसी करेंगी ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ फेम मोहेना कुमारी सिंह, कही ये बात

टीवी सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ की कहानी इन दिनों नया मोड़ ले रही है. लेकिन शो के पुराने किरदार आज भी फैंस के दिल में अपनी जगह बनाए हुए हैं. हालांकि कुछ सितारों ने टीवी की दुनिया को अलविदा भी कहा था. इसी बीच ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में कार्तिक की बहन का किरदार निभा चुकीं एक्ट्रेस मोहेना कुमारी सिंह खुद को एक्टिंग की दुनिया में वापसी को लेकर कुछ बातें हैं कही हैं. आइए आपको बताते हैं पूरी खबर..

इंडस्ट्री में एंट्री को लेकर कही ये बात

शादी के बाद टीवी इंडस्ट्री से नाता तोड़ चुकीं एक्ट्रेस मोहेना सिंह हाल ही में एक इंटरव्यू में टीवी पर वापसी को लेकर कहा है कि “मैं इस बात में विश्वास रखती हूं कि कभी किसी चीज के लिए मना नहीं करना चाहिए. मैं नहीं जानती कि मैं कभी टीवी की दुनिया में वापसी कर पाऊंगी या नहीं. इसका मतलब यह नहीं कि मैं स्क्रीन पर वापसी करूंगी ही नहीं. अभी के लिए मैं केवल इतना कह सकती हूं कि मैं अपने जगह पर खुश हूं और जिंदगी को एंजॉय कर रही हूं.”

 

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दोस्तों को याद करती हैं मोहेना

 

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मोहेना ने टीवी के अपने एक्सपीरियंस को लेकर कहा कि बतौर एक्ट्रेस मैंने बहुत कुछ सीखा. मेरे लिए टीवी एक अच्छा एक्सपीरियंस रहा. मैंने एक्टिंग सीखने के अलावा जिंदगी को समझा, रिलेशनशिप और लोगों को भी. मुझे याद आती है अपने उस पुराने रुटीन की. अजीबो-गरीब समय में हम उठकर शूटिंग करते थे, को-स्टार्स से मिलने का अहसास, लेकिन ठीक है कोई बात नहीं. तकनीक ने कई चीजें आसान कर दी हैं. मैं अगर सबसे दूर हूं तो मैं उन्हें फोन करके बात कर सकती हूं, उनके साथ वीडियो चैट कर सकती हूं. दोस्तों के साथ बने रहना बहुत आसान हो गया है. मुझे लेकिन उनसे मिलना पसंद है. मैं जल्द ही अपने टीवी इंडस्ट्री के दोस्तों से मिलने मुंबई जाऊंगी.

 

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बता दें, शादी के बाद मोहेना इन दिनों उत्तराखंड की वादियों का लुत्फ उठा रही हैं. हालांकि वह और उनका परिवार कोरोना का शिकार हो चुका है. लेकिन अब वह पूरी तरह हैल्दी हैं.  वहीं वह अपने यूट्यूब चैनल के जरिए फैंस को अपनी लाइफ की झलक दिखा रही हैं.

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