दांतों से जुड़ी प्रौब्लम से छुटकारा पाने के लिए फायदेमंद है ये फल

लोगों में दांत की समस्या काफी आम हो गई है. असंतुलित आहार और अनियमित सफाई से दांतों में कई तरह की परेशानियां पैदा हो जाती हैं. इस खबर में हम आपको  एक ऐसे फल के बारे में बताएंगे जिसके सेवन से आप दांतों में होने वाली परेशानियों से नीजात पा सकेंगी. एक ओरल केयर संस्था का मानना है कि  अगर मैन्यूफैक्चरर टूथपेस्ट और माउथवौश में ब्लूबेरी का इस्तेमाल करें तो दांतों की सेहत बनी रहेगी.

1. दांत खराब होने का खतरा कम करता है ब्लू बेरी

इस दावे से पहले ही कई वैज्ञानिकों ने माना था कि मुंह में बैक्टीरिया की गतिविधि कम करके दांत खराब होने का खतरा कम किया जा सकता है. आपको बता दें कि ब्लूबेरी जैसे फल पौलीफिनौल्स का अच्छा स्रोत होते हैं. पौलिफिनौल्स एंटीऔक्सिडेंट होते हैं जो शरीर को बैक्टीरिया के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हैं.

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2. मुंह में बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करता है ब्लू बेरी

कई जानकार डेंटल प्रोडक्ट के इन्ग्रेडिएंट्स में ब्लू बेरी को भी शामिल करने की मांग कर रहे हैं. विशेषज्ञों की माने तो पौलिफिनौल्स हमारे सलाइवा में चिपके रह जाते हैं और लंबे समय तक मुंह में बैक्टीरिया से लड़ने में मदद करते हैं. इसके अलावा ये शुगर फ्री होते हैं जिससे इन्हें ओरल केयर प्रोडक्ट्स में कई तरीकों से शामिल किया जा सकता है.

3. कैविटीज से मिलता है छुटकारा

शोधकर्ताओं ने मुंह के बैक्टीरिया पर क्रैनबेरी, ब्लूबेरी और स्ट्राबेरी के असर का परीक्षण किया. नतीजों में पाया गया कि ब्लूबेरी के सेवन से बैक्टीरिया की संख्या में काफी कमी देखी गई. शोधकर्ताओं का मानना है कि इन्हें कैविटीज से लड़ने में प्राकृतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जा सकता है. पौलिफिनौल्स हार्ट डिसीज और कैंसर से भी लड़ने में मदद करता है. इसके अलावा इसमें एंटीऔक्सिडडेंट होते हैं जो हाइड्रेशन में मदद करते हैं.

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प्राइवेसी पर आक्रमण है ड्रैस कोड

रुचि को स्थानीय प्राइवेट स्कूल में अध्यापिका की नौकरी मिल गई. उस के पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे, क्योंकि यह शहर का सब से नामी स्कूल था, अच्छी तनख्वाह, आनेजाने के लिए बस और सभ्यसुसंस्कृत परिवार के विद्यार्थी. उस ने अपने लिए विद्यालय के हिसाब से कपड़े सिलवाए.

पहले दिन ही जब वह स्कूल पहुंची तो उस के होश उड़ गए. जब उसे ड्रैस कोड से संबंधित एक सर्कुलर दिया गया और यही नहीं अगले दिन उसे 12 हजार रुपए भी जमा करने को कहा गया, क्योंकि वहां पर सब अध्यापिकाओं को यूनीफौर्म पहननी होती है जो उस नामचीन विद्यालय की प्रिंसिपल निर्धारित करती हैं और सब से मजे की बात यह है कि प्रिंसिपल खुद अपने लिए कोई ड्रैस कोड निर्धारित नहीं करती हैं. वे खुद प्लाजो, स्कर्ट, सूट, साड़ी या चुस्त चूड़ीदार पहन सकती हैं पर मजाल है कोई भी टीचर बिना यूनीफौर्म के स्कूल आ जाए.

ऐसा ही कुछ पूजा के साथ भी हुआ. एक निजी कंपनी में उसे अकाउंटैंट की पोस्ट मिली और साथसाथ मिला ड्रैस कोड पर लंबाचौड़ा फरमान. उस फरमान के हिसाब से:

– कोई भी महिला कर्मचारी 4 इंच से डीप गला नहीं पहना सकती है.

– बांहों की लंबाई कम से कम तीनचौथाई होनी चाहिए.

– साड़ी बस कौटन या सिल्क की ही पहन सकती हैं.

– हाई नैक ब्लाउज ही पहनना है.

आज भी आजादी के इतने वर्षों बाद महिला कर्मचारी अपनी पसंद के मुताबिक कपड़े नहीं पहन सकती हैं.

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मजबूरी या जरूरी

संस्थाओं की ही बात क्यों करें. महिलाओं को तो निजी जीवन में भी कपड़े चुनने की स्वतंत्रता नहीं है. अगर आप इस बाबत किसी ऐसे स्कूल की प्रधानाचार्य से बात करें जहां महिला अध्यापिका की यूनीफौर्म है तो उन का यही जवाब होगा कि टीचर्स रोल मौडल होते हैं और बहुत बार यंग टीचर्स यह निर्धारित नहीं कर पाते कि उन्हें कैसे कपड़े पहनने चाहिए, इसलिए मजबूरन उन्हें यह निर्णय लेना पड़ता है.

गौरतलब बात यह है कि कैसे कपड़े सही हैं और कैसे गलत हैं यह कोई भी संस्था या व्यक्ति कैसे निर्धारित कर सकता है?

बहरहाल, ऐसी तालिबानी सोच कर्मचारियों का काम के प्रति मोटिवेशन खत्म करने में जरूर महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

कोई व्यक्ति या महिला क्या पहनना चाहती है यह उस का निजी निर्णय है. उस पर अपनी पसंद का ड्रैस कोड लागू करना एक तरह से उस के मौलिक अधिकार का हनन ही होगा.

प्राइवेट संस्थाओं में तो ड्रैस कोड भी लागू करेंगे और जेब भी उन्हीं कर्मचारियों की काटेंगे.

आप इधरउधर गौर करेंगे तो अधिकतर ड्रैस कोड महिलाओं पर ही लागू किए जाते हैं, क्योंकि उन के अनुसार महिलाओं को शायद तमीज ही नहीं है कि किस प्रकार के कपड़े पहनने हैं. पुरुषों के लिए तो एक ही राग होता है कि वे बेचारे क्या पहनेंगे पैंटशर्ट के अलावा. अगर भारतीय संस्कृति और सभ्यता के नाम पर महिलाओं को साड़ी नामक ड्रैस कोड में बांध दिया जाता है तो फिर पुरुषों को भी क्यों नहीं धोतीकुरता पहनाया जाता है?

क्या है नुकसान

एक महिला के शरीर में ऐसा क्या है कि चाहे घर हो या बाहर उसे ड्रैस कोड में कैद कर दिया जाता है? क्यों महिला का ड्रैस कोड उस की उम्र के हिसाब से तय करा जाता है?

40 वर्ष की महिला मिनी स्कर्ट नहीं पहन सकती, उसे बस सलवारसूट या साड़ी ही पहननी चाहिए. मेरे हिसाब से किसी भी महिला को क्या पहनना है क्या नहीं यह वह क्यों न खुद तय करे. अपने शरीर की बनावट के हिसाब से कोई कुछ भी पहन सकता है, जो उस की सुंदरता में चार चांद लगा सके.

क्यों हम महिलाओं को ही ड्रैस कोड में बांधना चाहते हैं? उसे ड्रैस कोड में बांधने का किसी व्यक्ति या संस्था को कोई अधिकार नहीं है.

ड्रैस कोड लागू करने का बस एक ही फायदा हो सकता है कि यह संस्था में काम करने वाले सभी आयवर्ग के कर्मचारियों को एक ही सीमारेखा में रखता है ताकि किसी के अंदर हीनभावना न हो.

मगर अब चलिए ड्रैस कोड से होने वाले नुकसान पर गौर करें:

– खूबसूरत दिखना हर महिला का मौलिक हक होता है पर यूनीफौर्म या ड्रैस कोड के नाम पर महिलाओं को ढीलेढाले कपड़े पहना दिए जाते हैं. यह ड्रैस कोड नहीं, बल्कि सुडौल शरीर को कपड़ों में छिपाने की साजिश है.

– निजी संस्थानों में ड्रैस कोड के नाम पर हर साल एक मोटी रकम कर्मचारियों की सैलरी से निकल जाती है. यह ड्रैस कोड मन को नहीं भाता है और नौकरीपेशा लोगों की जेब पर भारी पड़ता है.

– जब आप को ड्रैस कोड में बांध दिया जाता है तो ढंग से तैयार होने का जज्बा पहले ही खत्म हो जाता है.

– रोजरोज एक ही तरह के कपड़े पहनने से हमें मानसिक थकान भी महसूस होती है, जो हमारी काम की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव डालती है.

– किसी भी संस्था में ड्रैस कोड तय करते समय कर्मचारियों की राय कभी नहीं ली जाती. अगर आप को ड्रैस कोड या यूनीफौर्म लागू भी करनी है तो क्यों न इन के मानक निर्धारित करते हुए कर्मचारियों की राय भी ले ली जाए?

– अधिकतर मामलों में देखा गया है कि बौस स्वयं कभी यूनीफौर्म या ड्रैस कोड को नहीं फोलो करता, जिस की उम्मीद दूसरों से करी जाती है. बहुत सी संस्थाओं में महिलाएं शाल नहीं पहन सकती हैं, उन्हें बस ब्लेजर ही पहनना होता है. वह अलग बात है कि रोजरोज ब्लेजर पहनने के कारण सर्वाइकल के दर्द से पीडि़त रहती हैं. वहीं बौस की साड़ी के ऊपर पश्मीना शाल लहराती रहती है.

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– हम चाहे कितनी भी तरक्की कर लें पर दफ्तरों में अब भी वही गुलामी वाली मानसिकता है कि अपने अधीनस्थ कर्मचारियों को दबा कर रखना चाहिए. उन के और अपने बीच एक दूरी बना कर रखनी चाहिए और यूनीफौर्म या ड्रैस कोड इसी मानसिकता के तहत लागू करे जाते हैं. खुद को श्रेष्ठ और कर्मचारियों को दोयम दर्जे की श्रेणी में रखने की मानसिकता इस ड्रैस कोड के पीछे का प्रमुख कारण है.

किसी भी महिला की निजता पर सीधा प्रहार करते हैं ये दकियानूसी ड्रैस कोड और प्रगतिशील भारत में इस प्रकार के ड्रैस कोड की कोई आवश्यकता नहीं है. जरूरी नहीं है कि साड़ी पहन कर ही हम खुद को भारतीय साबित करें. नियमित टैक्स भरना और देश की सेवा करना भी भारतीयता की पहचान है.

ना बांधो मुझे आठ इंची बाजू और चार इंची गले की गहराई में, बंधे हुए रिवाजों में क्या कभी कोई रचनात्मकता पैदा हो पाई है?

किराए के घर में इन 4 चीजों से बचना है जरूरी

अपने घर के लिए सुविधाएं जुटाने से पहले ज्यादा हमें सोच-विचार की जरूरत नहीं होती, लेकिन अगर किराए के घर में रह रहे हैं, तो कोई भी सामान लेने से पहले सोचना जरूरी होता है. किराए के घर में अगर समझदारी के साथ सुविधाएं जुटाई जाएं, तो शिफटिंग के समय आने वाली परेशानियों से बचा जा सकता है. जरूरी नहीं कि हर घर एक जैसा ही हो, इसलिए फर्नीचर से लेकर इलैक्ट्रौनिक सामान तक सब कुछ ऐसा होना चाहिए कि किसी भी घर में फिट हो सके. साथ ही शिफटिंग के टाइम पर आप टूटफूट का खतरे से बच सकें.

1. सजावटी सामान से करें परहेज

झूमर, लाइट्स एवं कंदील आदि बहुत नाजुक होते हैं. घर को सजाने के लिए इस सामान से परहेज करें, क्योंकि शिफटिंग के समय इस के टूटने का खतरा सब से ज्यादा रहता है. कांच या चीनीमिट्टी के गमलों के बजाय मिट्टी के गमले लेना उचित रहता है, क्योंकि ये जल्दी टूटते नहीं और अगर टूट भी जाएं तो ज्यादा नुकसान नहीं होता.

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2. बिजली के उपकरण का भी रखें ध्यान

फ्रिज, टीवी, कंप्यूटर, पंखा व कूलर जैसे बिजली के आवश्यक उपकरणों के अलावा अन्य सामान, जैसे ए.सी., माइक्रोवेव, गीजर इत्यादि बहुत आवश्यकता पड़ने पर ही खरीदें. शिफ्ंिटग के दौरान ये महंगे उपकरण जल्दी खराब होते हैं और इन को ठीक करवाने में पैसा भी ज्यादा खर्च करना पड़ता है. इस के अलावा बिजली का बिल बढ़ाने में भी इन उपकरणों का खासा योगदान होता है.

3. सोच समझकर ही लें वाहन

अपना घर लेने तक अगर बहुत ज्यादा आवश्यकता न हो तो चौपहिया वाहन लेने से परहेज करें, क्योंकि अधिकतर किराए के मकानों में पार्किंग की सुविधा नहीं होती और पब्लिक पार्किंग पहले से ही बुक होती है. ऐसे में अगर आप वाहन गली में या सड़क के किनारे खड़ा करेंगे, तो वह गैरकानूनी होने के साथसाथ असुरक्षित भी रहेगा.

4. पालतू जानवर का शौक है बेकार

किराए के घर में पालतू जानवर रखने का शौक न ही पालें तो बेहतर होगा, क्योंकि अधिकतर घरमालिक इस की इजाजत नहीं देते. इस के अलावा दूसरा सब से बड़ा कारण यह है कि अगर आप को घर ग्राउंड फ्लोर के बजाय ऊपर की किसी मंजिल पर मिला है, तो पालतू जानवर को समयसमय पर बाहर ले जाना आप के लिए सिरदर्द बन सकता है. इसीलिए किराए के घर में जाने से पहले इन बातों का ध्यान जरूर रखें. ताकि बिना परेशानी किराए के घर में सुकून से रहें.

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बच्चे अलग सोएं या मां-बाप के साथ

बच्चों को अपने साथ सुलाएं या अपने से अलग, यह एक जटिल समस्या है. आप सोचेंगी, भला यह भी कोई समस्या है. पर विश्वास मानिए, यह एक गंभीर समस्या है. आज लोग बड़ेबड़े शहरों में 1-1 कमरे में गुजारा कर रहे हैं. ऐसे में यह एक ऐसी समस्या है, जो प्रत्येक मातापिता के सामने आती है.

मां व बच्चे के लिए स्वास्थ्यवर्धक बच्चों में शुरू से ही अलग सोने की आदत डालनी चाहिए. इस से कई लाभ होते हैं. बच्चे के अलग सोने से मां का स्वास्थ्य ठीक रहता है. मां आराम से सो लेती है. बच्चा भी पूरे बिस्तर पर करवट ले कर सो सकता है. अत: दोनों का ही स्वास्थ्य अच्छा रहता है. आए दिन डाक्टर के पास नहीं जाना पड़ता.

इस के विपरीत बच्चे के मां के साथ सोने से मां को बराबर यह चिंता बनी रहती है कि कहीं बच्चे का हाथ या पैर उस के शरीर के नीचे न दब जाए.

1. मां के लिए जरूरी भरपूर नींद

कभीकभी ऐसा भी सुनने में आता है कि मां के गहरी नींद में होने से मां का हाथ बच्चे के मुंह पर चला गया और बच्चे की सांस रुक जाने से मृत्यु हो गई. अत: अगर बच्चा अलग सोता है तो मां आराम से चैन की नींद सो लेती है. मां के लिए भी नींद बहुत जरूरी है. दिन भर काम करने के बाद निश्चिंत हो कर सोना आवश्यक है.

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लेकिन बच्चे को अलग सुलाने का मतलब यह नहीं है कि नवजात को ही अलग सुलाया जाए. ऐसा कहना या सोचना एकदम गलत है. ऐसा करना नवजात के लिए अहितकर होगा.

अकसर बच्चे रात में हिलडुल कर चादर या कपड़े हटा देते हैं. अत: मां के पास सोने से मां उसे सारी रात ढके रहती है और फिर नवजात को जिस स्वाभाविक गरमी की आवश्यकता होती है वह उसे मां के शरीर से मिल सकती है. इस के अलावा इस समय बच्चे जल्दीजल्दी अपना बिस्तर गीला करते हैं. फिर उन्हें थोड़ेथोड़े समय बाद भूख लगती है. पास होने पर मां आराम से स्तनपान करा सकती है.

2. किशोर बच्चों को न सुलाएं साथ

कम से कम साल भर तक के बच्चे को अपने साथ सुलाना चाहिए. इस के बाद बच्चे को अपने बराबर वाले बिस्तर पर या नीचे गद्दी और छोटा सा मोमजामा या रबड़ बिछा कर सुलाना चाहिए. रात में बीचबीच में उठ कर उसे देखते रहना चाहिए ताकि वह गीले बिस्तर पर ही न सोता रहे.

कई मांएं 7-8 साल तक के बच्चे को भी अपने साथ सुलाती हैं. यदि सब से छोटा बच्चा है या अकेला लड़का है तो फिर लाड़प्यार के कारण मांएं उसे 11-12 साल की उम्र तक भी अपने साथ सुलाती हैं. लेकिन इतने बड़े बच्चे को अपने साथ सुलाना मां व बच्चे दोनों के लिए अहितकर है.

7-8 महीने के बाद ही बच्चों को अपने से अलग सुलाना शुरू कर देना चाहिए. इस से बच्चे शुरू से ही अलग सोने के आदी हो जाएंगे और उन्हें आराम से फैल कर लेटने की आदत पड़ जाएगी. फिर धीरेधीरे जब बच्चे बड़े हो जाएं यानी 8-9 साल के तो उन्हें अपने से अलग कमरे में सुलाएं. यह कमरा आप के कमरे से सटा हो. ऐसा करने से धीरेधीरे उन का डर कम होने लगेगा और बाहर जाने पर उन्हें अकेले रहने पर डर नहीं लगेगा.

3. बचपन से डालें अलग सोने की आदत

बच्चों के कमरे में उन के पढ़ने की मेजकुरसी भी लगा दें. रात में हलकी रोशनी वाला बल्ब उन के कमरे में जलता रहना चाहिए. 2-3 सुंदर आकर्षक कैंलेडर भी अगर उन के कमरे में टांग दें तो और अच्छा रहेगा. आप उन्हें बता दें कि अब यह कमरा उन का है. यहां वे आराम से पढ़ाई भी करें और यहां उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी.

रात में सोते समय बीच का दरवाजा बंद न कीजिए. हां, एक परदा अवश्य डाल दीजिए ताकि दोनों कमरे अलग हो जाएं अन्यथा बच्चों के मन में आप के प्रति गलत भावना उत्पन्न होगी और वे आप का आदर करना छोड़ देंगे. वे चोरीछिपे आप को देखने का भी प्रयास कर सकते हैं.

हां, अगर आप के पास एक ही कमरा है तो समस्या आ जाती है. ऐसी हालत में कमरे का अस्थाई विभाजन कर लें. एक तरफ पतिपत्नी अपना बिस्तर लगाएं और दूसरी तरफ अपने बच्चों का. आजकल 2 से अधिक बच्चे परिवार में नहीं होते हैं. अत: छोटा परिवार होने के कारण आप का गुजारा आसानी से हो सकता है.

4. अलग सुलाना लाभदायक

बच्चों के बिस्तर अलग कर देना शारीरिक व मानसिक दोनों नजरिए से लाभदायक है. शारीरिक नजरिए से इसलिए कि इस तरह आप अपने पति की इच्छाओं की पूर्ति आराम से कर पाएंगी.

यह तो आप भली प्रकार से जानती हैं कि विवाह का एक प्रमुख उद्देश्य शारीरिक भूख को शांत करना भी है. प्रत्येक पति चाहे कितना भी थकाहारा क्यों न हो, रात में अपनी पत्नी का संसर्ग अवश्य पाना चाहता है. इस से उसे काफी मानसिक शांति मिलती है और वह फिर से तरोताजा हो उठता है.

5. संबंधों की मधुरता के लिए जरूरी

समयसमय पर पति की शारीरिक इच्छा पूरी करते रहने से पति में ताजगी रहती है फिर इस से आप के पति भी यह सोचते हैं कि अभी तो वे युवा हैं. अधिक परिश्रम कर सकते हैं.

उम्र के बढ़ने के साथसाथ पति पत्नी से संसर्ग के लिए तेजी से लालायित होता है. इच्छापूर्ति न होने पर उस में झुंझलाहट, चिड़चिड़ाहट पैदा होने लगती है. वह बातबात में लड़नेझगड़ने लगता है, जिस का प्रभाव पत्नी के साथसाथ बड़े हो रहे बच्चों पर भी पड़ता है. सारा परिवार बिखराव के कगार पर आ खड़ा होता है.

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बहुत सी पत्नियां यह सोचती हैं कि अब बच्चे बड़े हो गए हैं, इसलिए अब यह करना शोभा नहीं देता है. क्या सारी उम्र यही होता रहेगा? उन का ऐसा सोचना गलत है. बच्चों के बड़े हो जाने का मतलब यह नहीं कि पतिपत्नी का संबंध समाप्त हो गया है.

ज्यादातर भारतीय पत्नियां बहुत शीघ्र शारीरिक संबंधों से उकता जाती हैं और सारा ध्यान घरगृहस्थी व बच्चों में लगाना शुरू कर देती हैं. इस से पति अपने को अपेक्षित समझने लगता है और वह ज्यादा समय घर से बाहर रहना शुरू कर देता है. सुखी पारिवारिक जीवन में ऐसा नहीं होना चाहिए.

इस स्थिति को टालने के लिए आप शुरू से ही बच्चों में अलग सोने की आदत डालें ताकि पतिपत्नी के संबंध मधुर बने रहें और बच्चे भी कोई गलत धारणा न बना पाएं.

औनर किलिंग: भाग 1- अनजानी आशंका से क्यों घिरी थी निधि

निधि भागतेभागते थक चुकी थी. उस की सांसें बारबार उखड़ रही थीं. कपड़े झाडि़यों में उलझ कर कई जगह से फट गए थे. शुक्र है उस ने पैरों में स्पोर्ट्स शूज पहन रखे थे, वरना पांव तो कभी भी बेवफाई कर सकते थे. मगर शरीर तो आखिर शरीर ही है, उस की सहन करने की एक सीमा होती है. अब तो हिम्मत भी आगे बढ़ने से इनकार कर रही थी. मगर ‘नहीं, अभी कुछ देर और साथ दो मेरा…’ अपनी इच्छाशक्ति से रिक्वैस्ट करती हुई निधि ने अपनी अंदरूनी ताकत को जिंदगी का लालच दिया और एक बार फिर से अपना हौसला बढ़ा कर तेजी से भागने लगी उसी दिशा में आगे की ओर.

मगर इस बार हिम्मत उस की बातों में नहीं आई और उस ने आखिर दम तोड़ ही दिया. निधि ने एक पल ठहर कर भयभीत हिरणी की तरह इधरउधर देखा और पूरी तसल्ली करने के बाद एक पेड़ से अपनी पीठ टिका कर उखड़ी हुई सांसों को संयत करने लगी.

‘शायद सुबह होेने में अब ज्यादा देर नहीं है. मुझे सूरज निकलने से पहले ही कोई सुरक्षित ठिकाना तलाशना होगा वरना पता नहीं मैं फिर किसी सूरज का उगना देख भी सकूंगी या नहीं,’ मन ही मन यह सोचते हुए उस ने अंधेरे में देखने की कोशिश की तो उसे दूर कुछ रोशनी गुजरती हुई सी दिखाई दी. ‘शायद कोई सड़क है. मुझे किसी भी तरह वहां तक तो पहुंचना ही होगा, तभी किसी तरह की मदद की कोई उम्मीद जगेगी,’ सोचती हुई निधि ने फिर अपना सफर शुरू किया.

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निधि का अनुमान सही निकला. यह सड़क ही थी. हरियाणा और राजस्थान को आपस में जोड़ता एक स्टेट हाईवे, कुछ ही दूरी पर एक छोटा सा टोल नाका भी बना हुआ था. निधि किसी तरह अपनेआप को ठेलती हुई वहां तक ले कर गई, मगर कुछ बोल पाती, इस से पहले ही गिर कर अचेत हो गई.

टोल कर्मचारियों ने उसे देखा तो वे घबरा गए. उस की हालत देख कर उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचित करना ही उचित समझा. कुछ ही देर में ऐंबुलैंस सहित पुलिस की गाड़ी वहां आ गई और महिला पुलिस की निगरानी में निधि को सिटी हौस्पिटल ले जाया गया.

डाक्टरों के थोड़े से प्रयास के बाद ही निधि को होश आ गया. खुद को पुलिस की निगरानी में पा कर निधि के मन में दबे हुए गुबार को शब्द मिले और वह महिला कौंस्टेबल से लिपट कर फूटफूट कर रो पड़ी. इंस्पैक्टर सरोज ने उस की पीठ पर हाथ रखते हुए उसे भरोसे का एहसास दिलाया और कहा, ‘‘देखो, तुम हमारे पास पूरी तरह सुरक्षित हो. और तुम्हें घबराने या किसी से डरने की जरूरत नहीं है. तुम बेखौफ हो कर अपने साथ हुए हादसे के बारे में हमें बताओ. हम तुम्हारी मदद करने की पूरी कोशिश करेंगे.’’

निधि कुछ भी नहीं बोली, बस, टकटकी लगाए छत की तरफ देखती रही. किस पर लगाए इलजाम, किसे ठहराए दोषी, किसे सजा दिलवाए, किसे भिजवाए सलाखों के पीछे. जो भी उस की इस हालत के जिम्मेदार हैं, वो उस के अपने, उस के सगे ही तो थे. वे, जिन के साथ उस का खून का रिश्ता है. हां, ये हैं उस के पापा, जो उस की एक जिद पर सारी दुनिया उस पर न्योछावर कर देते थे. ये है उस की मां, जो उस की जरा सी तकलीफ पर पूरी रात आंखों में बिता दिया करती थीं. उस का भाई राज, जो उस के लिए शहरभर से बैर मोल ले लेता था. और तो और, उस की छुटकी सी बहन शालू भी, जो सदा उस के आगेपीछे दीदीदीदी कहती घूमा करती थी. निधि के मुंह से कोई शब्द नहीं निकल पाया. बस, उस की आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे.

डाक्टर ने इंस्पैक्टर सरोज से कहा, ‘‘अभी पेशेंट काफी सदमे में है, इसे नौर्मल होने दीजिए, फिर आप लोग अपनी पूछताछ कीजिएगा.’’

इंस्पैक्टर सरोज निधि को डाक्टर की निगरानी में छोड़ कर अपनी टीम के साथ लौट गईं. हां, एक महिला कौंस्टेबल को उस की सुरक्षा के लिए तैनात कर दिया गया था. सब के जाने के बाद निधि आंखें बंद कर लेट गई. रातभर भागते रहने के कारण उसे नींद आना स्वाभाविक था, मगर निधि सोना नहीं चाहती थी. वह तो यहां से भाग जाना चाहती थी अपने घर, अपने विनय के पास, उस की सुरक्षित बांहों के घेरे में जहां उसे किसी का डर नहीं, किसी की फिक्र नहीं. निधि के दिमाग में पिछले कई दिनों के घटनाक्रम चलचित्र की तरह घूमने लगे.

करीब 10 वर्षों पहले जब वह इंजीनियरिंग और एमबीए करने के बाद मुंबई में एक मल्टीनैशनल कंपनी में जौब करने लगी थी तभी उस की मुलाकात विनय से हुई थी. मजबूत और स्वस्थ शारीरिक बनावट वाला विनय अपने नाम के अनुरूप मन से बहुत ही विनय था. कोई अंदाजा भी नहीं लगा सकता था कि बाहर से एकदम शांत और सीधा सा दिखने वाला विनय अपने भीतर कवि हृदय भी रखता है. सब के साथ निधि को भी यह बात उस साल कंपनी की न्यू ईयर पार्टी में ही पता चली थी, जब उस ने वहां एक प्रेमगीत गाया था. उस की प्रेम कविताओं की धारा में बहतीबहती निधि कब उस के प्रेमपाश में बंध गई, उसे भान ही नहीं हुआ.

अब तो निधि जब देखो तब किसी न किसी बहाने से उस के आसपास ही बने रहने की कोशिश में लगी रहती थी. उस ने यह बात छुटकी शालू से शेयर की थी. शालू ने ही तो उसे इस रास्ते पर आगे बढ़ने का हौसला दिया था. उस ने कहा था, ‘कोई सामान्य पुरुष होता तो तुम्हारी नजदीकियों का भरपूर फायदा उठाने की कोशिश करता मगर विनय तुम से एक सम्मानजनक दूरी बनाए रखता है और उस की यही खूबी उसे सारी पुरुष जमात से अलग करती है.’

‘छुटकी की बात में दम है,’ सोच कर निधि विनय के और भी करीब होने लगी थी. निधि ने जब कंपनी के रिकौर्ड में विनय का प्रोफाइल देखा तो उसे सुखद महसूस हुआ कि वह न केवल उस की जाति से संबंध रखता है बल्कि वे दोनों तो एक ही प्रदेश से भी हैं. ‘अगर घर वालों को मानने में थोड़ी सी मेहनत की जाए तो हमारी शादी हो सकती है,’ सोच कर निधि खुद ही शरमा गई. वह अपनी सोच को बहुत आगे तक ले जा चुकी थी.

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औनर किलिंग: भाग-3 अनजानी आशंका से क्यों घिरी थी निधि

‘बाथरूम से बाहर आया तो उस का हुलिया देख कर मेरी भी हंसी छूट गई. विनय मेरे नाइट सूट में बहुत ही फनी लग रहा था. अभी हम दोनों चाय पी ही रहे थे कि बाहर बारिश फिर से बहुत तेज हो चली थी. मैं ने झिझकते हुए विनय से घर न जाने की जिद की. विनय को भी शायद यही ठीक लगा और वह मेरे पास ही रुक गया.

‘मेरी रूमपार्टनर आजकल छुट्टी पर अपने घर गईर् हुई थी और मेरा टिफिन भी बारिश के कारण नहीं आया था. खाने की बात आने पर विनय ने मुसकराते हुए रसोई संभाली और बहुत ही टैस्टी मटरपुलाव

बना लिया. बातें करतेकरते हमारा आपसी संकोच काफी हद तक दूर हो चुका था.‘हम देररात तक हंसीमजाक करते हुए एक ही सोफे पर बैठे टीवी देखते रहे. फिर न जाने कब हमें नींद आ गई और जब सुबह मैं उठी तो विनय की बांहों में थी. विनय अभी भी सो ही रहा था. पता नहीं क्या सम्मोहन था उस के मासूम चेहरे में कि मैं अपनेआप को रोक नहीं पाई और मैं ने झुक कर उस के होंठ चूम लिए. नींद में ही विनय ने मुझे बांहों में कस लिया और फिर हम दोनों…अब छोड़ न छुटकी. अब आगे बताते हुए मुझे शर्म आ रही है,’ निधि ने शर्माते हुए कहा तो छुटकी ने जोर से उसे गुदगुदी कर दी और दोनों बहनें खिलखिला उठीं.

दर्द में भी निधि के चेहरे पर एक मुसकान आ गई. मगर अचानक ही आंखों में फिर से डर की परछाइयां तैरने लगीं. उसे याद आ गया 10 दिनों पहले का वह मंजर जब शालू की शादी तय करवाने वाला बिचौलिया पंडित रामशरण शास्त्री शादी में होने वाले लेनदेन के सिलसिले में कुछ बात करने के लिए पापा से मिलने घर आया था. निधि को देख कर बोला, ‘यह आप की बड़ी बिटिया है क्या?’

‘हां जी, यह हमारी बड़ी बेटी निधि है और अपने पति के साथ मुंबई में रहती है. वो रेवाड़ी वाले चौधरीजी हैं न, उन के बेटे से ही शादी हुई है इस की,’ मां ने निधि की तरफ प्यार से देखते हुए शास्त्रीजी से उस का परिचय करवाया.

‘क्या बात करती हो भाभीजी? चौधरीजी और आप के पति दोनों एक ही गोत्र से संबंध रखते हैं. इस नाते तो यह शादी नाजायज हुई. यह तो भाईबहन का आपस में शादी करने जैसा ही पाप हुआ है,’ शास्त्रीजी ने अपने कानों को हाथ लगाते हुए कहा.

‘मगर हमारे परिवारों का आपस में तो कोई संबंध नहीं है,’ निधि के पापा ने अपनी सफाई देते हुए कहा.

‘उस से क्या फर्क पड़ता है? क्या हमारे पुरखों ने शादियों में गोत्र टालने का प्रावधान यों ही मजाक में किया था? नहीं साहब, हम चाहे कितने भी मौडर्न हो जाएं, लेकिन समाज की परिपाटी तो सभी को निभानी पड़ती है,’ शास्त्रीजी अब अपना यहां आने का मकसद भूल चुके थे और इस नई बहस में उलझ गए. पापामम्मी ने उन्हें समझाने की बहुत कोशिश की, मगर शास्त्रीजी ने किसी की एक न सुनी और आखिर में वे पापा से भुगतने को तैयार रहने की धमकी देते हुए चले गए.

किसी अनजानी आशंका से निधि का मन कांप गया और जैसा कि उसे डर था, शास्त्रीजी तीसरे ही दिन वापस आए तो उन के तेवर कुछ अलग ही थे. पापा और शास्त्रीजी बैठक में धीरेधीरे बातें कर रहे थे जोकि बीचबीच में तेज भी हो रही थीं. निधि के कान उधर ही लगे थे. उस ने सुना वे कह रहे थे, ‘पंचों की राय है कि निधि बिटिया की शादी को खारिज करार दिया जाए और वह पूरी पंचायत के सामने अपने पति को राखी बांध कर भाई बनाए,’ यह सुनते ही निधि के पैरों तले जमीन खिसक गई. वह सांस रोके आगे का वार्त्तालाप सुनने लगी.

‘मगर यह कैसे संभव है? निधि की शादी को 5 साल हो चुके हैं, ऐसे में वह कैसे यह सब कर सकती है?’ पापा ने विरोध किया था.

‘तो फिर आप शालू की सगाई को टूटा हुआ समझें. आप के होने वाले समधी इस हालात में आप के साथ रिश्ता रखने के इच्छुक नहीं हैं. और सिर्फ वही नहीं, अब तो शालू को कोई भी गैरतमंद आदमी अपने परिवार की बहू नहीं बनाएगा. यह भी पंचायत ने ही तय किया है,’ शास्त्री ने अपना दोटूक फैसला सुनाया.

‘क्या इस के अलावा और कोई रास्ता नहीं है?’ पापा ने हारे खिलाड़ी की तरह हथियार डालते हुए विनती की.

‘है क्यों नहीं, रास्ता है न. मगर निर्णय तो आप को ही लेना पड़ेगा. हां, निधि के रहते शालू की शादी नहीं हो सकती, यह तो तय है. आप को 2 दिनों बाद पंचायत ने तलब किया है, आप वहां आ कर अपना पक्ष रख सकते हैं.’ शास्त्रीजी पापा को पंचायत का फरमान सुना कर कह कर चले गए.

उस दिन घर में मातम सा पसर गया था. खाना बना तो था मगर किसी से भी एक निवाला तक नहीं निगला गया. सब चुपचाप थे. अपनेअपने विचारों में गुम. हर दिमाग में मंथन चल रहा था. न जाने कौन क्या सोच रहा था.

2 दिनों बाद निधि के पापा चौपाल में बुलाई गई विशेष पंचायत में पहुंचे और जब वापस आए तो निधि ने महसूस किया कि पापा और भाई दोनों का मूड उखड़ा हुआ था. मां ने पूछा तो भी वे टाल गए.

रात को अचानक निधि की नींद खुली तो उस ने देखा कि शालू बिस्तर पर नहीं है. ‘शायद बाथरूम में होगी’ सोच कर निधि उस का इंतजार करने लगी. मगर जब वह काफी देर तक नहीं आई तो निधि कमरे से बाहर निकल आई. पापा के बैडरूम की लाइट जलती देख कर वह उधर चल दी. भीतर से बहुत धीमीधीमी आवाजें आ रही थीं. निधि के अलावा पूरा परिवार वहां मौजूद था. सब किसी गहन मंत्रणा में लगे थे. निधि ने कानाफूसी सुनने की कोशिश की, मगर पूरी तरह कामयाब नहीं हो सकी. हां, इतना अंदाजा उसे हो गया था कि यह मीटिंग उसी को ले कर हो रही है.

भाई राज ने कहा, ‘समस्या की जड़ को ही खत्म कर देते हैं. न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी.’ यह सुनते ही निधि कांप उठी.

तभी पापा ने कहा, ‘समाज मेें अपनी इज्जत के लिए मैं ऐसी कई औलादें कुरबान कर सकता हूं.’

‘क्या कोई और रास्ता नहीं है जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे,’ इस बार मां की ममता ने विरोध किया मगर सब ने उसे सिरे से खारिज कर दिया.

निधि समझ गई कि यह मीटिंग उसे रास्ते से हटाने के लिए हो रही है. वह चुपचाप वहां से हट गई और वापस बिस्तर पर आ कर लेट गई. अब उस ने अपनेआप को यहां से सुरक्षित निकलने के बारे में सोचना शुरू किया. ‘विनय तो इतनी जल्दी यहां आ नहीं सकेगा. अपनी फ्रैंड राशि को मैसेज कर देती हूं ताकि वह कल किसी बहाने से आ कर मुझे घर से ले जाए. आगे तो मैं संभाल लूंगी.’ यह सोचते हुए निधि ने अपने मोबाइल की तरफ हाथ बढ़ाया. मोबाइल अपनी जगह पर न पा कर निधि समझ गई कि किसी सोचीसमझी साजिश के तहत उस का संपर्क बाहर की दुनिया से काट दिया गया है.

आगे पढ़ें- यानी कि यहां से निकलना इतना…

औनर किलिंग: भाग 4- अनजानी आशंका से क्यों घिरी थी निधि

यानी कि यहां से निकलना इतना आसान नहीं होगा जितना वह सोच रही है. तो फिर अभी अनजान बने रहने में ही भलाई है. मुझे मौके का इंतजार करना होगा. निधि ने सोचा और चुपचाप लेट गई. नींद उस की आंखों से कोसों दूर थी. तभी शालू भी आ कर बगल में लेट गई.

‘कहां चली गई थी?’ निधि ने उसे टटोला.

‘कहीं नहीं, यों ही नींद नहीं आ रही थी, तो छत पर टहल रही थी,’ शालू साफ झूठ बोल गई.

‘आ चल, मैं सुला दूं,’ कह हर निधि ने उस का सिर सहलाने की कोशिश की मगर शालू ने ‘रहने दो’ कह कर उस का हाथ? परे कर दिया.

निधि सारे घटनाक्रम से अनजान बने रहने का नाटक करती हुई घर की सारी गतिविधियों पर पैनी नजर रखे हुए थी. उस ने अपने मोबाइल के बारे में भी सब से पूछताछ की मगर किसी ने भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया. ‘चलो, कोई बात नहीं, खो गया होगा. नया ले आएंगे,’ निधि ने भी बात को हवा में उड़ाने की कोशिश की.

आज निधि को वह मौका मिल ही गया जिस की उसे तलाश थी. वह इसे किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहती थी. मां तो पापा को ले कर अपने मायके गई हुई थीं शादी का निमंत्रण देने और राज गया था शादी के लिए कुछ पैसों का इंतजाम करने पापा के दोस्त के यहां. सभी लोग कल दोपहर तक ही आने वाले थे. घर में वह और शालू ही थे. निधि ने अपने सारे रुपए और गहने पर्स के हवाले किए और पर्स को सिरहाने छिपा कर रख लिया. उस ने अपने स्पोर्ट्स शूज भी सुरक्षित रख लिए.

रात को शालू ने घर के मुख्य दरवाजे पर ताला लगा दिया और चाबी अपनी तकिया के नीचे रख ली. मौका पा कर निधि ने सोई हुई शालू के बालों को सहलाने के बहाने धीरे से वह चाबी निकाल ली और जब शालू गहरी नींद में थी तो चुपके से दरवाजा खोल कर बाहर आ गई. घर से बाहर निकलने से पहले उस ने शालू के कमरे का दरवाजा बाहर से बंद कर दिया और उस का मोबाइल बरामदे में ला कर रख दिया ताकि न तो निधि खुद दरवाजा खोल कर बाहर आ सके और न किसी से संपर्क साध सके. इतना समय काफी था निधि के पास अपनेआप को बचाने के लिए.

इस तरह निधि खुद को एक बार तो मौत के मुंह से निकाल कर ले आई, मगर जब तक वह वापस मुंबई नहीं पहुंच जाती, तब तक सुरक्षित नहीं थी.

रात लगभग बीत चुकी थी. मगर निधि ने अब तक अपनी पलकें भी नहीं झपकाई थीं. उसे डर था कि कहीं कोई उसे तलाश करता हुआ यहां तक न आ पहुंचे.

‘अब तक तो सभी घर वालों को मेरे भागने के बारे में यकीन हो ही गया होगा. मुझे 1-2 दिन और यहीं पुलिस की सुरक्षा में रहना चाहिए,’ सोचतेसोचते निधि ने एक बार फिर सोने की कोशिश की और इस बार उसे नींद आ ही गई.

सुबह जब उस की आंख खुली तो सूरज सिर पर चढ़ आया था. डाक्टर सुबह के राउंड पर आ गई थीं. निधि को देख कर मुसकराईं और उस की तबीयत के बारे में पूछा. तभी इंस्पैक्टर सरोज भी आ गईं और उन्होंने निधि का हाथ अपने हाथ में ले कर एक बार फिर से सहानुभूति से पूछताछ शुरू की. निधि ने भी अब सहयोग करनेकी सोच ली थी. उस ने पूरी बात इंस्पैक्टर को बता कर अनुरोध किया और कहा, ‘‘मुझे अपने घर वालों से जान का खतरा है. मेरे पति एक सप्ताह बाद इंडिया आएंगे. तब तक मुझे सुरक्षा उपलब्ध करवाएं. मगर मैं किसी के खिलाफ कोई केस दर्ज नहीं करवाना चाहती.’’ इंस्पैक्टर सरोज मानवता के नाते उसे अपने साथ अपने घर ले गईं. निधि ने फोन पर विनय से संपर्क साधा और उसे पूरी घटना की जानकारी दी. सप्ताहभर बाद विनय आ कर निधि को साथ ले गया.

‘‘निधि, तुम इस मुश्किल वक्त में मेरे मम्मीपापा के पास भी तो जा सकती थीं,’’ विनय ने प्यार से कहा.

‘‘जा तो सकती थी, और सब से पहले यही खयाल ही मेरे मन में आया था मगर मुझे समय पर भरोसा नहीं था. कितनी मुश्किल से मैं अपनी जान बचा कर भागी थी, मुझे डर था कि कहीं कुएं से निकल कर खाई में गिरने जैसी बात न हो जाए. कहीं वहां भी ऐसे ही हालात पैदा न हो जाएं. अगर मेरी आशंका सही निकलती तो फिर मैं आज यहां तुम्हारे पास न होती.’’ निधि अब तक भी डर के साए में ही थी.

विनय को भी उस की बात में दम लगा, इसलिए उस ने भी अपने मन का वहम निकाल लेना ही उचित समझा. विनय ने अपने पापा को फोन कर के पूरे घटनाक्रम का ब्योरा दिया और निधि के खिलाफ रची गई औनर किलिंग की साजिश के बारे में भी उन्हें बताया. सुनते ही पापा भड़क उठे, बोले, ‘‘हद हो गई. किस आदम युग में जी रहे हैं लोग आज भी, क्या हो रहा है यह सब…क्या न्यायपुलिस कुछ भी नहीं बचा? लेकिन तुम लोग फिक्र मत करो. मैं निधि के पापा से मिल कर उन्हें समझाने की कोशिश करता हूं. मुझे विश्वास है कि कोई न कोई रास्ता जरूर निकलेगा.’’

और जैसा कि चौधरीजी ने कहा था, वे एक दिन विनय की मां को ले कर निधि के पापा से मिलने उन के घर गए. उन का परिचय जानने के बाद निधि के पापा सकपका गए. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वे उन का सामना कैसे करें. दरअसल, वे लोग अब भी इसी मुगालते में थे कि निधि घर से भाग कर कहीं चली गई है और उस की ससुराल वाले उसे ढूंढ़ते हुए यहां तक आए हैं. लेकिन जब उन्हें पता चला कि निधि सहीसलामत अपने पति के पास पहुंच गई है तो उन्होंने भी राहत की सांस ली.

चौधरीजी के कुछ कहने से पहले ही निधि के पापा ने अपने किए पर शर्मिंदा हो कर उन से माफी मांग ली और अपनी दकियानूसी सोच को त्याग कर निधि और विनय को आदर के साथ घर लाने की बात कही.

‘‘मगर ऐसा करने से अगर शालू का रिश्ता टूट गया तो?’’ चौधरीजी ने एक बार फिर उन का मन टटोलने की कोशिश की.

‘‘टूटता है तो टूट जाए मगर मैं अब एक बेटी का घर बसाने के लिए दूसरी बेटी का बसाबसाया घर नहीं उजाड़ सकता. यह बात मेरी मोटी बुद्धि में बहुत अच्छी तरह से आ गई है,’’ निधि के पापा ने कहा तो चौधरीजी ने उन्हें प्यार से गले लगा लिया. निधि की मां अपने आंसू पोंछते हुए मेहमानों के लिए चायनाश्ते का इंतजाम करने भीतर चली गईं.

लेकिन उस दिन के बाद निधि ने कभी उस घर में पैर न रखने का फैसला कर लिया था. जो मातापिता उसे मार डालने को तैयार हों उन के किसी वादे का वह भरोसा नहीं कर सकती. न जाने कब कौन पंडा या शास्त्री टपक पड़े, न जाने कब कौन सा खाप सरपंच आ धमके.

आखिर अभय देओल ने क्यों कहा कि स्पष्टभाषी होने का उनके कैरियर पर असर पड़ा, जाने यहां

बचपन से अभिनय का शौक रखने वाले अभिनेता और प्रोड्यूसर अभय देओल ने इंडस्ट्री में अपनी एक अलग पहचान बनाई है. स्वभाव से स्पष्टभाषी अभय की चर्चित फिल्म ‘देवडी’ थी. इसके बाद उन्होंने कई अलग-अलग तरह की फिल्मों में अभिनय किया, जिसमें ‘जिंदगी न मिलेगी दोबारा, राँझणा,अहिस्ता-अहिस्ता, एक चालीस की लास्ट लोकल आदि कई है. वे फिल्मों के मामले में चूजी है और सोच समझकर ही फिल्मों को चुनते है.उनकी हॉट स्टार स्पेशल्स सीरीज ’1962 द वार इन दहिल्स’ रिलीज पर है. पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल- इस फिल्म को करने की खास वजह क्या रही?

इसकी फिलोजोफी मुझे पसंद आई, क्योंकि जंग से किसी को कुछ हासिल नहीं होता. वॉर में जीतने के बाद भी एक ट्रेजिडी रहती है. इसकी कीमत दोनों देश को चुकाना पड़ता है.इसके अलावा जंग में जाने पर उस फौजी की पत्नी और बच्चों की मानसिक दशा पर क्या गुजरती है, उसे दिखाने की कोशिश की गयी है. किसी भी तरफ से जंग लड़ने पर उस फौजी को कुछ नहीं मिलता, पर वे देश की खातिर शहीद हो जाते है. कहानी दोनों तरफ की एक ही होती है,  मुझे ये चीजें बहुत पसंद आई और मैंने हां कहा.

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सवाल- फौजी की भूमिका आप पहली बार कर रहे है, कितनी तैयारी करनी पड़ी?

तैयारी एक तरह की ही होती है, सिर्फ एक्शन पर अधिक ध्यान देना पड़ता है. इस सन्दर्भ में मैं कहना चाहता हूं कि एक्टर्स हमेशा फिट रहते है.अधिकतर काम कहानी पर करना पड़ा, जिसमें उसका ग्राफ, कहानी कैसे जा रही है, कहाँ कैसे ख़त्म हो रही है आदि, क्योंकि एक कलाकार का ग्राफ कहानी के साथ-साथ ही चलता है.

सवाल- फिल्म के किसी भाग को शूट करने में कठिनाई आई?

मैं अभिनय से प्रेम करता हूं इसलिए कभी समस्या नहीं आती. हालाँकि इस शो को लद्दाख में शूट किया गया है, इसलिए वहां जाते समय सांस लेने में परेशानी हुई और दिन अधिक बड़े होने की वजह से कभी-कभी समस्या आई, लेकिन काम करते-करते वह ठीक भी हो गयी.

सवाल- आपने कई फिल्मों में काम किया,लेकिन सभी में एक अलग भूमिका निभाई, इस तरह की अलग भूमिका निभाने की बात आपके मन में कैसे आती है?

मेरी पर्सनालिटी ही वैसी थी, इसलिए मैं ऐसी फिल्मों को चुनता हूं. बचपन से मुझे ट्रेवल करने और फिल्में देखने का मौका हमेशा मिला है. इसमें अमेरिकन, फ्रेंच, ब्रिटिश आदि कई फिल्में मैं देखता था. वर्ल्ड के बारें में मुझे अच्छा ज्ञान था. इसके अलावा मैंने विदेश में पढाई की, वहां रहा, तो मेरा एक्सपोजर इंटरनेशनल था और मैं कई बार ये सोचता था कि ऐसी फिल्में मैं बॉलीवुड में भी बना सकता हूं. एक ही फार्मूले के पीछे हम क्यों जा रहे है,जबकि हमारा कल्चर इतना रिच है, साथ ही यहाँ कई कहानियां भी है. लोग अलग-अलग  कम्युनिटी को एक्स्प्लोर नहीं कर रहे है. ऐसे में मुझे लगा कि कुछ अलग किया जाय और मैंने किया. दर्शकों ने भी उसे पसंद किया.

सवाल- आप स्पष्टभाषी है, क्या इसका असर आपके कैरियर पर पड़ा?

अवश्य पड़ा है, पर मुझे जो कहना था मैंने इंडस्ट्री को कह दिया. चाहे मेरे पीछे कोई रहे या न रहे, पर मैंने जो मुद्दे इंडस्ट्री के अंदर उठाये थे, वे सही मुद्दे थे और कोई उसे गलत भी नहीं कह सकता. अभी जो काम मैं कर रहा हूं और करने जा रहा हूं, उससे मैं बहुत संतुष्ट हूं. भले मुझे ब्लैक लिस्ट किया जाय, पर मैं ऑथेंटिक हूं. मुझे पता है,वही लोग मेरे साथ काम करेंगे, जो मेरी इस अथेंटिसिटी को सम्मान देंगे, लेकिन वैसे लोग इंडस्ट्री में हमेशा से कम थे और जो भी थे, उनकी पॉवर बहुत कम थी. हां ये सही है किमेरे स्पष्टभाषी होने का कैरियर पर असर पड़ा है.

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सवाल- आपके कम काम करने के पीछे की वजह क्या है?

मैं जैसा काम करना चाहता हूं, वैसा लोग लिखते और बनाते नहीं है. शुरुआत में मुझे उसे बनानी पड़ी, फिर चाहे डेव डी, एक चालीस की लास्ट लोकल, मनोरमा आदि कोई भी फिल्म हो. फिल्म ‘डेव डी’ के लिए मैंने खुद आईडिया लिखा. ‘मनोरमा’ फिल्म के लिए मैंने निर्माता और निर्देशक को सबसे परिचय करवाया, सोचा न था फिल्म के लिए निर्देशक इम्तियाज़ अली को मैं ढूंढ कर लाया. मुझे उस मौके को बनाना पड़ा. अभी भी वही फिल्में देखने पर आज के परिवेश के लगते है, जो आज निर्माता, निर्देशक बना रहे है,उसे मैंने 10 से 12 साल पहले कर चुका हूं. अभी जो मैं बनाने जा रहा हूं, उसे भी लोग 10 साल बाद बनायेंगे. मैं बॉलीवुड की सोच से आगे बढ़ चुका हूं. बॉलीवुड के कई लोगों का कहना होता है कि ऐसी फिल्में लोग देखते नहीं है, पर अभी वे ऐसी ही फिल्में बना रहे है, ऐसे में मैं अपने आपको रोक देता हूं.

सवाल- वर्ष 2020 कोरोना संक्रमण की वजह से बहुत कठिन रहा है, ऐसे में आपने कैसे समय बिताया?

पेंड़ेमिक के समय मैं गोवा घर में था और खुश था. योगा, वर्कआउट शुरू किया और कुछ लिखा भी. मैं करीब 7 महीने तक लॉकडाउन में फंस गया था. इसके बाद काम भी शुरू हो चुका था. पेंडेमिक के दौरान ही मुझे काम मिला और मैं कनाडा जाकर डिजनी अमेरिका से जुड़ा. अभी मैं अमेरिका की एक फिल्म ‘स्पिन’ में काम कर चुका हूं, जो गर्मी में रिलीज होगी.

सवाल- आप विदेश में और देश में काम भी काम कर चुके है, दोनों में अंतर क्या पाते है?

अभी अधिक फर्क नहीं है, प्रोफेशनल और तकनीक में करीब एक तरह के काम होते है. कल्चर में थोड़ी अलग है. भारत की कल्चर, कम्युनिटी और ट्रेडिशन दोनों काफी अलग है. फिल्में भी उसी के हिसाब से बनती है. उसके बाहर वे सोच नहीं पाते. जबकि विदेश में बनायीं जाने वाली फिल्में पूरे विश्व को सोचकर बनाई जाती है, जिससे हर देश के लोग रिलेट कर पाते है. फर्क काम में नहीं आइडियाज में है. आइडियाज बॉलीवुड के लिमिटेड है.

सवाल- अभिनय में सफलता का राज क्या है?

सच्चाई और ईमानदारीसे काम करने वाला ही सफल होता है. आप जो है, उसे ही प्रोजेक्ट करें, तो दर्शकों का रेस्पोंस काफी अच्छा रहता है.

सवाल- गृहशोभा के ज़रिये क्या कोई मेसेज देना चाहते है?

सच्चाई और ईमानदारी को अपने जीवन में लायें, किसी से अधिक शिकायत न करें.

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क्या 2020 में सिद्धार्थ शुक्ला और शहनाज गिल कर चुके हैं शादी, पढ़ें खबर

Bigg Boss का हर सीजन फैंस के बीच पौपुलर रहता है. वहीं इस शो में कई जोड़ियां बनती और टूटती हैं. इसी शो में सिद्धार्थ शुक्ला और शहनाज गिल की जोड़ी ने फैंस के दिल में खास जगह बनाई थी, जिसके बाद हर कोई इनके रिलेशनशिप में होने की बात करता है. हालांकि दोनों ने अपनी दोस्ती को किसी और रिश्ते का नाम देने से परहेज किया है. लेकिन अब खबर है कि दोनों ने शादी कर ली है. आइए आपको बताते हैं क्या है मामला…

क्या दिसंबर 2020 में हुई है शादी

खबरों की मानें तो बिग बौस 13 फेम सिद्धार्थ शुक्ला और शहनाज ने शादी कर ली है. दरअसल, दिसंबर 2020 में सिद्धार्थ और शहनाज ने कोर्ट मैरिज कर ली थी. रिपोर्ट की मानें तो दोनों ने मुंबई से बाहर शादी की थी और वह यह बात किसी शेयर नही करना चाहते थे क्योंकि अभी दोनों ही अपने करियर पर ध्यान देना चाहते हैं. इसीलिए वह यह बात नही बताना चाह रहे हैं. हालांकि अभी तक दोनों का इस मामले में कोई बयान सामने नही आया है.


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सिद्धार्थ की फैमिली संग किया था बर्थडे सेलिब्रेट

 

बीते दिनों शहनाज गिल ने अपना बर्थडे सेलिब्रेट किया था, जिसमें सिद्धार्थ शुक्ला और उनकी मां भी नजर आईं थीं, जिसके बाद दोनों ने काफी मस्ती भी की थी. वहीं इसी के बाद दोनों के रिश्ते को लेकर खबरें छा गई थी.

 

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फोटो हो चुकी है वायरल

रिलेशनशिप की खबरों के दौरान ही शहनाज गिल की सिंदूर और मंगलसूत्र में एक फोटो वायरल हुई थी, जिसके बाद दोनों की शादी की खबरें आ गई थीं. हालांकि बाद में पता चला था कि यह शहनाज के आने वाले प्रौजेक्ट की झलक है.

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बता दें, शहनाज गिल और सिद्धार्थ शुक्ला की मुलाकात और दोस्ती ‘बिग बॉस 13’ में हुई थी, जिस दौरान ही दोनों काफी करीब आ गए थे. वहीं शहनाज गिल अपने प्यार का इजहार भी कर चुकी हैं. लेकिन सिद्धार्थ इस रिश्ते को केवल दोस्ती का नाम देते आए हैं.

Aly Goni ने जैस्मीन संग किया 30वां बर्थडे सेलिब्रेट, फैमिली के सामने किया Kiss

‘बिग बॉस 14’ (Bigg Boss 14) फेम अली गोनी (Aly Goni) इन दिनों कश्मीर में वेकेशन का लुत्फ उठा रहे हैं, जिसमें एक्ट्रेस जैस्मीन भसीन और अली गोनी की फैमिली उनका साथ दे रही है. इसी बीच अली गोनी ने 25 फरवरी को अपना 30वां बर्थडे भी सेलिब्रेट किया है, जिसकी फोटोज और वीडियो सोशलमीडिया पर काफी वायरल हो रही है.  आइए आपको दिखाते हैं अली गोनी के बर्थडे की वायरल फोटोज और वीडियोज…

कश्मीर में मनाया बर्थडे

 

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‘बिग बॉस 14’ खत्म होने के बाद अपनी फैमिली के साथ क्वालिटी टाइम बिताने के लिए अली गोनी अपने होमटाउन कश्मीर पहुंचे हैं. जहां पर जैस्मीन भसीन भी उनका साथ देने पहुंची हैं. इसी मौके पर अली गोनी ने अपना बर्थडे भी सेलिब्रेट किया है.

 

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फैमिली के साथ सेलिब्रेट किया बर्थडे

 

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बर्थडे पर अली गोनी को उनकी फैमिली ने सरप्राइज दिया था. इस दौरान घरवालों ने अली के लिए एक और पार्टी का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने खूब धमाल मचाया है, जिसकी वीडियो सोशलमीडिया पर काफी धमाल मचा रही है.

कुछ ऐसा था जैस्मीन भसीन का लुक

 

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बर्थडे पार्टी के दौरान जैस्मिन भसीन और अली गोनी इस पार्टी में कैजुअल लुक में दिखे, जिसमें दोनों की जोड़ी बेहद खूबसूरत लग रहे थे.  वही केक कटिंग की वीडियो भी सोशलमीडिया पर वायरल हो रही है.

जैस्मीन संग फैमिली फंक्शन में पहुंचे अली गोनी

कश्मीर में फैमिली फंक्शन में अली गोनी और जैस्मीन भसीन संग पहुंचे. जहां अली सूट में हैंडसम लग रहे थे तो वहीं इंडियन लुक में जैस्मीन भसीन बेहद खूबसूरत लग रही थी.अली गोनी की फैमिली के साथ जैस्मीन काफी खुश नजर आ रही थीं. वहीं मस्ती भी करती दिख रही थीं.

 

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बता दें, ‘बिग बॉस 14’ में अपने प्यार को नाम देने वाले अली गोनी और जैस्मिन भसीन शादी करने वाले हैं, जिसको लेकर खबरे हैं कि दोनों जल्द ही सगाई भी करने वाले हैं. हालांकि अभी दोनों की तरफ से कोई औफिशयल अनाउंसमेंट नही की गई है.

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