वनराज को भड़काएगी काव्या तो राखी का प्लान होगा कामयाब, अब क्या करेगी अनुपमा

सीरियल अनुपमा (Anupama) में इन दिनों हाई वोल्टेज ड्रामा देखने को मिल रहा है. जहां एक तरफ अनुपमा ने तलाक का फैसला किया है तो वहीं वनराज की नौकरी काव्या को मिल गई है. इसी बीच सीरियल में कई और नए ट्विस्ट आने बाकी हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा शो में आगे…

वनराज की पोस्ट पर किंजल को मिलती है नौकरी

अब तक आपने देखा कि जहां किंजल की नौकरी लगने से पूरा घर बेहद खुश होता है तो वहीं नौकरी जाने से वनराज काफी परेशान होता है. इसी बीच सभी घरवालों को पता चलता है कि वनराज की पोस्ट पर किंजल को नौकरी दी गई है, जिसके बाद सभी घरवाले किंजल को जौब छोड़ने के लिए कहते नजर आते हैं.

 

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वनराज को भड़काएगी काव्या

 

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अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि वनराज को भड़काने के लिए काव्या नई चाल चलती नजर आएगी. दरअसल, काव्या, वनराज से कहेगी कि उसके पोस्ट पर वेकेंसी होने की बात केवल अनुपमा को पता थी, जिसका फायदा उसने किंजल को नौकरी देकर उठाया है. वहीं काव्या अनुपमा से कहेगी कि वनराज की पोस्ट पर किंजल का आना कोई इत्तेफाक नहीं बल्कि उसकी एक सोची समझी चाल थी.

राखी के कोचिंग को जौइन करेगा परितोष

वनराज की पोस्ट पर नौकरी छोड़ने के लिए परितोष, किंजल को कहेगा. हालांकि इस बात से वह इंकार कर देगी. इसी के चलते परितोष किंजल से कहेगा कि वह दवे कोचिंग सेंटर जो की राखी का है, उसे जौइन कर रहा है. वहीं परितोष की इस बात से पूरा परिवार हैरान हो जाता है. इसी बीच परितोष दवे कोचिंग सेंटर से जुड़ तो जाता है. लेकिन आगे जाकर इस राखी के इस फैसले से उसके बिजनेस को भारी नुकसान होगा.

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आज़ादी है अपने साथ, अगर सुरक्षा हो अपने हाथ

सालों से महिलाओं को हमेशा किसी पुरुष के साथ बाहर निकलने की सलाह दी जाती रही है, ताकि वे किसी भी अनहोनी घटना से महिला को बचा सकें. इसमें पहले पिता, भाई फिर पति के संरक्षण में एक महिला को पूरा जीवन बिताना पड़ता था, उन्हें जीने की आजादी कभी मिली ही नहीं, क्योंकि शारीरिक रूप से महिला पुरुषों से हमेशा कमजोर रही है, लेकिन समय के साथ-साथ महिलाओं की सोच में भले ही परिवर्तन हुआ हो और वे हर फील्ड में काम कर अपनी मुकाम हासिल कर रही हो, लेकिन पुरुषों की सोच में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, वे आज भी महिला को कमजोर समझते है, यही वजह है कि आये दिन महिलाओं के साथ छेड़-छाड़, रेप आदि की घटनाएं सुर्ख़ियों में देखने को मिलती है. इतना ही नहीं कुछ पुरुषों ने महिलाओं के पोशाक और रहन-सहन को भी गलत ठहराने में पीछे नहीं हटे, ऐसे में महिलाओं और लड़कियों की आज़ादी कुछ भी करने की नहीं रह जाती. अगर उन्हें आजादी की इच्छा हो तो उन्हें खुद को मजबूत बनने के साथ-साथ, अपनी रक्षा के बारें में भी कदम उठाने की जरुरत है, ताकि किसी भी प्रकार की अनहोनी से वे खुद को बचा सकें. 

इस बारें में पिंक बेल्ट मिशन की सेल्फ डिफेन्स एक्सपर्ट और मार्शल आर्ट चैम्पियन अपर्णा राजावत कहती है कि हर महिला को सेल्फ डिफेन्स के बारें में थोड़ी जानकारी होनी चाहिए, ताकि राह चलते किसी के भी छेड़-छाड़ करने पर वे उसका सामना कर सही जवाब दे सकें. कुछ महिलाओं को लगता है कि ये क्षेत्र पुरुषों का है और वे इसपर अधिक ध्यान नहीं देती. इसलिए सबसे पहले इसके बारें में जान लेना आवश्यक है. कुछ गाइडलाइन्स निम्न है.

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जाने सेल्फ डिफेन्स को 

सेल्फ डिफेंस का अर्थ हमलावरों से मारपीट करना नहीं, बल्कि किसी हमले से खुद को बचाना होता है, जिसमें पहले हमलावर को हिट करना, दौड़ना और उस परिस्थिति से भाग जाना होता है.सेल्फ डिफेन्स का ज्ञान आत्मविश्वास को बढ़ाने के साथ-साथ शारीरिक और मेंटल हेल्थ को भी मजबूत बनाने से है, जिससे खुद को सुरक्षित रखना आसान हो जाता है. यहाँ कुछ सेल्फ डिफेन्स के मूव्स है, जिसे हर महिला को जान लेना आवश्यक है,

वन हैण्ड कैच टाइप 1 

अगर कोई हमलावर आपका हाथ पकड़ता हो तो उसके कमजोर सेक्शन को नोटिस करें, जिसमें उसका अंगूठा और तर्जनी मिलती है, उस भाग की तरफ अपनी हाथ या कलाई को मोड़ते हुए प्रेशर दें. ये सेक्शन अधिकतर हाथ के उपरी भाग में होता है, इसलिए हाथ का प्रेशर उपर की तरफ दें, ताकि हाथ आसानी से छूट जाएँ.

वन हैण्ड कैच टाइप 2 

अगर आपका टाइप वन काम नहीं कर रहा है, तो तुरंत दूसरे विकल्प पर जाएँ. अगर हमलावर ने एक हाथ पकड़ा हो, तो सबसे पहले एक ओर घूम जाएँ और पैरों को अपने हिसाब से फैला लें, नीचे जाते समय दोनों घुटने को मोड़कर  उकडूं बैठ जाएँ और अपनी कुहनी से हमलावर की कुहनी में प्रेशर देते रहे, ऐसे में हमलावर का हाथ बंद होने की वजह से वह अपने हाथ को झटका नहीं दे पायेगा और पूरा प्रेशर हमलावर के अंतिम ऊँगली पर पड़ेगा, जिससे उसकी पकड़ कमजोर हो जाएगी और वह अधिक समय तक आपके हाथ को पकड़कर नहीं रख सकता, इससे आपको हाथ छुड़ाना आसान हो जायेगा. 

जब पकड़े गर्दन 

अगर किसी ने सामने से आपके गर्दन को पकड़ा है, तो अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर अपने पैरों को फैला लें, अपने शरीर को ट्विस्ट कर और पैरों को एक साइड में मोड़ ले. इससे उसकी पकड़ ढीली पड़ जाएगी. साथ ही आपके एक ओर ट्विस्ट होने और दोनों हाथों को ऊपर उठाने की वजह से आपकी कुहनी, हमलावर के कुहनी के ऊपरी भाग पर चोट करेगी, इससे हमलावर आपको अधिक समय तक पकड़ कर नहीं रख सकता. इसके अलावा अगर आपने हमलावर को हिट किया है, तो वह खुद को बचाने के लिए नीचे झुक जायेगा, जिससे आसानी से आप कुहनी से हमलावर के गर्दन या चेहरे पर वार कर सकती है और भागकर खुद को सुरक्षित कर सकती है. 

सिखाएं सबक सामान छीनने वालों को 

कई लड़कियों और महिलाओं को बैग या पर्स छीनने वालों का सामना करना पड़ता है. इस मूव्स की सहायता से आप हमलावर से अपने सामान को सुरक्षित रख सकते है. असल में ऐसे चोर या हमलावर सामान लेकर जल्दी भागने की कोशिश करते है, जिसके लिए अधिकतर वे किसी चलती हुई वाहन का प्रयोग करते है, ताकि वे आसानी से भाग सकें. जब कोई व्यक्ति आपके सामने से बैग छीनने की कोशिश करें, तो बैग को सख्ती से पकड लें और अपने बॉडी वेट का दबाव बनाते हुए नीचे बैठ जाएँ. ये किसी भी हमलावर के मूवमेंट को कम कर देगी और आपके बॉडी वेट की वजह से बैग कंट्रोल में आ जायेगा. 

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शस्त्र के रूप में करें डेली आइटम्स का प्रयोग 

इसके आगे अपर्णा कहती है कि हर महिला के पास हमेशा कुछ ऐसी चीजें पर्स में होती है, जिनका प्रयोग सेल्फ डिफेन्स के रूप में किया जा सकता है, जो निम्न है, 

पेन 

कलम अति उत्कृष्ट शस्त्र है, जिसके द्वारा हिट या स्टैब चेहरे के किसी भी भाग पर किया जा सकता है, इससे आपको भागने का पर्याप्त समय मिल जाता है.

मेटल बैंगल 

स्टील के कड़े या मेटल बैंगल काफी स्ट्रोंग होता है, जिसके द्वारा निकल पंच, जिसमे कड़े को हथेली पर पहनकर हाथ को बंद कर हमलावर को स्ट्रोंग हिट किया जा सकता है. 

चाभी के गुच्छे 

चाभी के गुच्छे सेल्फ डिफेन्स में बहुत काम आते है. चाभी के गुच्छे को दो उँगलियों के बीच में रखकर हमलावर को पंच मारे, जोर से पंच मारने पर ये चाभियाँ स्पाइक की तरह काम करती है. 

लाइटर 

अगर आप धूम्रपान न भी करते हो, फिर भी एक लाइटर आपके पर्स के किसी कोने में होनी चाहिए, इसे जलाकर हमलावर के स्किन को थोडा जलाया जा सकता है, इससे वह पीछे हटेगा और आपको भागने का समय मिल जायेगा. 

नेल फाइलर 

नेल फाइलर से हमलावर के चेहरे और गर्दन पर हिट किया जा सकता है, ये एक अच्छा विकल्प सेल्फ डिफेन्स का है.

पीपर स्प्रे

काली मिर्च या मिर्च पाउडर हर स्त्री के पास होनी चाहिए. ये एक प्रकार का केमिकल स्प्रे है, जिसे हमलावर के चेहरे पर छिड़का जा सकता है, जिससे उसको दर्द होगा और आंसू बहेंगे, इससे कभी-कभी कुछ देर के लिए उसे ब्लाइंडनेस भी हो सकता है, जिससे आपको भागने में समय मिल जाता है. 

रहे हमेशा एलर्ट और सुरक्षित  

  • मार्शल आर्ट चैम्पियन अपर्णा का आगे कहना है कि जब भी किसी महिला को लगातार किसी व्यक्ति का उसकी मर्जी के बिना छूना, मारना, गन्दी बातें कहना आदि पसंद न हो, तो हमेशा आवाज उठायें, चिल्लाएं और उसे ऐसा करने से उन्हें रोकें. इसके लिए अगर भीड़ जमा करनी पड़े, तो भी वैसा ही करें, ताकि उस व्यक्ति को सबक मिल सकें. अगर सभी महिलाओं ने ऐसा करना शुरू कर दिया है, तो हर व्यक्ति गलत व्यवहार करने से डरेंगे. 
  • अगर आप अकेले किसी odd समय पर कही ट्रेवल कर रही है, तो सेफ्टी एप्स को फ़ोन में डाउनलोड अवश्य कर लें, मसलन रक्षा, 112 इंडिया, हिम्मत प्लस (दिल्ली के लिए ) आदि कई एप है. किसी भी विषम परिस्थिति में ये एप आपके परिवार जन और दोस्तों तक आपका लोकेशन शेयर करती है. 
  • किसी भी विषम परिस्थिति में आत्म-रक्षा के मूव्स को अपनाएं और वहां से भागने की कोशिश करें, ऐसा आप तभी कर सकती है, जब आप शारीरिक और मानसिक रूप से फिट हो, जिसमें बॉडी स्ट्रेंथ को बढ़ाने के लिए नियमित व्यायाम, दौड़ने की प्रैक्टिस करना, संतुलित भोजन लेना आदि की खास जरुरत है.
  • अधिकतर महिलाएं हमलावर के पास आने पर भाग जाती है या लडाई करती है, लेकिन कुछ महिलाएं डर के मारे फ्रीज़ होकर कुछ भी नहीं कर पाने में असमर्थ हो जाती है, जो गलत है. कभी भी हमलावर के सामने फ्रीज़ न हो, आत्मविश्वास और मानसिक रूप से खुद को हमेशा मजबूत बनाए रखें, ताकि हमलावर आपसे 2 कदम की दूरी पर रहे. 

हालाँकि इन सब बातों को करना आसान नहीं होता, लेकिन आपकी लगातार प्रशिक्षण और तकनीक के ज्ञान से इसे मजबूत और प्रभावी बनाया जा सकता है.  

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घर की कैलोरी डस्टबिन न बनें

ग्लोबल न्यूट्रिशन रिपोर्ट 2017 के अनुसार 51 फीसदी भारतीय औरतें प्रजनन उम्र में ऐनीमिया की शिकार होती हैं. ‘इंडियन ह्यूमन डैवलपमैंट सर्वे’ यानी आईएचडीएस 2011 के एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली की 15 से 49 वर्ष की 5 में से 1 शादीशुदा औरत और उत्तर प्रदेश की पूर्ण जनसंख्या की आधी औरतें अपने पति के बाद खाना खाती हैं. ‘सोशल ऐटिट्यूट्स रिसर्च फौर इंडिया’ ने टैलीफोनिक इंटरव्यू द्वारा 2016 में की गई रिसर्च में पाया कि आंकड़े आईएचडीएस  की 2011 की रिपोर्ट से ज्यादा भिन्न नहीं हैं.

जिन औरतों से यह बातचीत की गई थी उन के परिवार में पति के बाद खाने का अर्थ है सब से आखिर में खाना खाना. परिवार के लिए जितना खाना बनता है उस में से जो बचता है उसे ये औरतें खा लेती हैं. इस स्थिति में कई बार औरतें अपनी पोषण आवश्यकता से कम खाती हैं.

भारतीय परिवारों में रोटियों को ले कर अकसर एक बात कही जाती है कि आखिर में बनी रोटी जोकि बचे आटे की होती है और बाकी रोटियों से पतली होती है, घर के मर्द को नहीं खानी चाहिए, क्योंकि इस से उस की सेहत खराब हो सकती है. यह कैसी मानसिकता है, यह तो पता नहीं, लेकिन पूर्णरूप से निरर्थक है, यह साफ है.

जाहिर है कि किस तरह बचे कहे जाने वाले खाने को भी औरतों के सिर कितनी आसानी से मढ़ दिया जाता है. वैसे यह आज की बात नहीं है, सदियों से भारतीय परिवारों में यह परंपरा है कि घर के मर्द जब तक न खा लें उस से पहले औरत का खाना खा लेना उस के लिए पाप समान है.

औरतों पर मढ़ा गया बचा खाना

खुद हिंदू धर्मग्रंथों में ‘उच्छिष्ट’ का वर्णन मिलता है, जिस का अर्थ है बचा खाना या इंग्लिश में लैफ्टओवर. इस उच्छिष्ट खाने का अर्थ है किसी का बचा हुआ या जूठा खाना जिसे हिंदू धर्म में अवांछित माना गया है परंतु कुछ स्थितियों में इसे खाना अच्छा काम है जैसे, शूद्र का ऊंची जाति या ब्राह्मण के उच्छिष्ट या पत्नी का अपने पति के उच्छिष्ट का सेवन करना. कहीं भी इस बात का वर्णन नहीं है कि पति अपनी पत्नी का उच्छिष्ट खा सकता है.

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औरतों के आखिर में खाना खाने पर 2 स्थितियां सामने आती हैं. पहली, जिस में वह अंडरवेट हो जाती हैं और दूसरी जिस में उन का वेट अपने बच्चों की प्लेट से बचा खाने पर ओवरवेट हो जाता है. ये दोनों ही स्थितियां एकदूसरे से काफी अलग हैं और दोनों के ही अपने नुकसान हैं.

औरतों का अंडरवेट होना व कम खाना खाना केवल उन के खुद के लिए ही हानिकारक नहीं है, बल्कि यह गर्भधारण के समय उन के होने वाले बच्चे को भी अत्यधिक प्रभावित करता है. भारत में कुपोषण के शिकार बच्चों की गिनती प्रति वर्ष बढ़ रही है.

ऐनीमिया से ग्रस्त औरतों का आंकड़ा 60 फीसदी के पार है. बच्चे की सेहत उस की मां पर निर्भर करती है. बच्चे के जीवन के 2 साल पूर्णरूप से उस की मां की सेहत से जुड़े होते हैं. गर्भावस्था में मां के शरीर से भ्रूण को अपना पोषण मिलता है, उस का विकास होता है. पैदा होने के 6 महीने तक पूर्णरूप से नवजात अपनी मां के दूध पर आश्रित होता है. ऐसे में जब मां की खुद की सेहत सही नहीं होगी तो उस के बच्चे का सही विकास कैसे होगा?

बचा खाना खाने के गंभीर परिणाम

रिसर्च से सामने आया है कि अधिकतर भारतीय औरतें गर्भावस्था से पहले अंडरवेट होती हैं और गर्भावस्था के दौरान उन का वजन कुछ हद तक बढ़ता है. इस से पैदा होने वाले बच्चे का वजन सामान्य से कम होता है, नजवात की मृत्यु हो सकती है, वह बौना भी पैदा हो सकता है.

औरतें अकसर अपने बच्चों की प्लेट से बचा खाना उस समय भी उठा कर खाती हैं जब वे गर्भावस्था में होती हैं. गर्भावस्था के दौरान किसी का जूठा, बचा खाने से महिला के गर्भ में पल रहा बच्चा मानसिक रूप से अपंग भी हो सकता है. यूके में हर वर्ष 1 हजार बच्चे सीएमवी यानी साइटोमेगालो वायरस के शिकार होते हैं, जिन में से करीब 200 सेरेब्रल पाल्सी, ऐपिलैप्सी, सिर का छोटा आकार व अन्य विकास संबंधित बीमारियों से ग्रस्त होते हैं.

सीएमवी से महिला को गर्भपात भी हो सकता है तथा जो बच्चा इस इन्फैक्शन के साथ पैदा होता है उसे जन्म के तुरंत बाद चाहे कोई बीमारी न हो, लेकिन कुछ सालों के भीतर लक्षण दिखने शुरू हो जाते हैं. इस बीमारी का सब से बड़ा कारण है किसी का सलाइवा जूठे खाने के माध्यम से गर्भवती महिला के संपर्क में आना. इसलिए गर्भवती महिलाओं के लिए अपने पति या बच्चों की प्लेट से बचा खाना खाने की आदत को छोड़ना बहुत जरूरी है.

बचा और जूठा खाने की मजबूरी

परिवार के साथ बैठ कर खाना खाने वाली महिलाएं एपीआई आवश्यकतानुसार भोजन करती हैं, बावजूद इस के जब उन के पति या बच्चे खाने की प्लेट में कुछ बचा देते हैं तो भूख न होते हुए भी वे उसे खा लेती हैं. पति और बच्चे तो अपनीअपनी प्लेट सरका कर उठ जाते हैं, लेकिन औरत का यह मानना कि चाहे कुछ भी हो जाए खाना व्यर्थ न जाए, उस की इस आदत की सब से बड़ी वजह है. वह खाना व्यर्थ न करने के लिए अपनी भूख से ज्यादा खा लेती है. इस से उस के शरीर में 400 कैलोरी तक बढ़ सकती है.

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यदि अपने बच्चे को खाना परोस रही हैं तो उस की जरूरत के हिसाब से दें. प्रोटीनयुक्त खाद्यपदार्थ जैसे चिकन या मछली उस की हथेली के साइज का दें. फल और सब्जियां 2 हथेलियों के बराबर और फैट्स जैसेकि चीज और मक्खन एक अंगूठे जितना दें. चावल आप उसे मुट्ठीभर दें व दाल और रोटी भी उस की भूख के हिसाब से दें. इस से न खाना बचेगा न आप को खाना पड़ेगा. यदि बच्चों ने रोटीसब्जी बचा दी है या कोई और स्नैक तो उसे बाद केलिए बचा लें. जब बच्चे को फिर भूख लगे तब दें.

अधिकतर बच्चों की आदत होती है कि पैक्ड फूड के बड़ेबड़े पैकेट्स तो वे शौक से खोल लेते हैं और एकाधा बाइट खा कर ही अपनी मां को पकड़ा देते हैं. कभी चौकलेट तो कभी बिस्कुट, कभी नमकीन तो कभी बची पेप्सी, सब मां के हिस्से में ही आता है. घर में तो फिर भी औरतें बच्चों का बचा खाने से पहले सोचती हैं, लेकिन बच्चों की यही आदत जब किसी रिश्तेदार या दोस्त के घर दिखने लगे तो मां के पास बच्चों के छोड़े खाने को खाने के अलावा कोई चारा नहीं बचता. आखिर जिन के घर गए हैं उन के खाने को बरबाद करना भी तो ठीक नहीं.

बासी खाने की परंपरा

स्थिति केवल बचे खाने को मां द्वारा खाने की ही नहीं है, बल्कि बचे खाने को बासी कर खाने की भी है. भारतीय परिवारों में पति को बासी खाना देना औरत के लिए एक अपमान की बात सम झी जाती है, जिस का एक कारण लोगों का यह मानना है कि पति काम कर के, खूनपसीना बहा कर आता है और इस बाबत उसे ताजा पका खाना ही देना चाहिए. दूसरा, यह पितृसत्तात्मक समाज की देन है. वहीं बच्चे तो अकसर सभी के नखरीले ही होते हैं और उन्हें पिछली रात का या सुबह का खाना नहीं खाना तो मतलब नहीं खाना. तो इस में भी इस बासी भोजन को खाने का जिम्मा औरत के सिर ही आता है.

बासी खाना खाने से व्यक्ति को गंभीर पाचन संबंधी बीमारियां हो सकती हैं. खाना बनने के 2 घंटे के भीतर ही उसे फ्रिज में न रखा जाए तो उस में बैक्टीरिया लगने शुरू हो जाते हैं, जिस से फूड पौइजनिंग तक हो सकती है. ऐसिडिटी भी हो सकती है.

इस बात का ध्यान रखें कि आप कोई डस्टबिन नहीं हैं जो कुछ भी उठाया और खा लिया. साथ ही परिवार के साथ बैठ कर खाना जरूरी है बजाय सभी के बाद खाने के. बदलाव ही जीवन का आधार है और यदि आप अपनी आदतें या कहें पुरानी परंपराएं नहीं बदलेंगी तो आप का शरीर बदलने लगेगा. आप की सेहत

में बदलाव होगा. बुरे बदलावों की गुंजाइश ऐसे में ज्यादा होती है. इसलिए अपनी और अपने परिवार की सेहत के लिए अच्छी आदतें अपनाइए और अपने शरीर के साथ खिलवाड़ करना छोड़ दीजिए.

‘इंडियन ह्यूमन डैवलपमैंट सर्वे’ यानी आईएचडीएस 2011 के एक सर्वे के मुताबिक दिल्ली की 15 से 49 वर्ष की 5 में से 1 शादीशुदा औरत और उत्तर प्रदेश की पूर्ण जनसंख्या की आधी औरतें अपने पति के बाद खाना खाती हैं.

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सैंट जौर्जेस यूनिवर्सिटी, लंदन के वैज्ञानिकों की रिसर्च के मुताबिक जो महिलाएं गर्भावस्था के दौरान बचा, जूठा खाना खाती हैं सीएमवी यानी साइटोमेगालो वायरस की चपेट में आ सकती हैं. इस रोग के चलते उन के बच्चे का विकास बाधित हो सकता है, मानसिक बीमारियां हो सकती हैं. वह बेहरा भी पैदा हो सकता है.

वर्ल्ड बैंक रिपोर्ट के अनुसार भारत में 4 वर्ष से कम आयु के करीब आधे बच्चे कुपोषण के शिकार हैं वहीं 30 फीसदी नवजात कुपोषित पैदा होते हैं.

40 की उम्र में भी बेटी पलक को फैशन के मामले में कड़ी टक्कर देती हैं श्वेता तिवारी, देखें फोटोज

टीवी एक्ट्रेस श्वेता तिवारी इन दिनों बेटी पलक तिवारी के चलते सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. दरअसल, पलक जल्द ही बड़े पर्दे पर नजर आने वाली हैं, जिसके चलते वह लाइमलाइट में हैं. हालांकि श्वेता तिवारी भी आए दिन फैशन के मामले में अपनी बेटी को कड़ी टक्कर देती हैं. हाल ही में श्वेता तिवारी ने अपने लुक की कुछ फोटोज शेयर की हैं, जिसमें वह 40 की उम्र में भी अपनी बेटी पलक तिवारी को टक्कर दे रही हैं. आइए आपको दिखाते हैं श्वेता तिवारी के लुक्स की खास फोटोज…

साड़ी में जलवे बिखेरती दिखीं श्वेता

हाल ही में किए गए एक फोटोशूट में श्वेता तिवारी साड़ी में नजर आईं. हालांकि साड़ी को मौर्डन टच दिया गया था. दरअसल, श्वेता ने धोती साड़ी पहनी थी, जिसके साथ कौलर टाइप का शर्ट ब्लाउज कैरी किया था. श्वेता का ये लुक महिलाओं के लिए वेडिंग या पार्टी के लिए बेस्ट औप्शन है.

 

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औफशोल्डर ड्रैस में लगती हैं हौट

 

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ड्रैसेस के कलेक्शन की बात करें तो श्वेता त्रिपाठी अक्सर शौर्ट ड्रैसेस से फैंस का दिल जीतती हैं. वहीं श्वेता की ये औफ शोल्डर ड्रैस आपके लिए भी परफेक्ट औप्शन है.

 बनारसी साड़ी करें ट्राय

 

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इन दिनों जहां देखो वहां बनारसी साड़ी पहने महिलाएं नजर आती हैं, जिसे इन दिनों ट्रैंड कहा जा रहा है. वहीं श्वेता भी इस ट्रैंड को ट्राय करते हुए हाल ही में बनारसी साड़ी में नजर आईं.

चिकन कुर्ता सूट करें ट्राय

 

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अगर आप श्वेता की तरह खूबसूरत फैशन ट्राय करना चाहती हैं तो श्वेता तिवारी का ये ग्रे कलर का चिकन कुर्ता आपके लिए परफेक्ट औप्शन है.

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हौट लुक के लिए ट्राय करें ये साड़ी

 

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अगर आप साड़ी में हौट दिखना चाहती हैं तो श्वेता की तरह डीप नेक वाला V शेप वाला ब्लाउज और उसके साथ साड़ी आपके लुक को हौट बना देगा.

5 टिप्स: बर्तन धोते समय रखें इन चीजों का ख्याल

आजकल बर्तन धोने के लिए मार्केट में कईं प्रौडक्ट आ गए हैं, जिनमें बर्तन धोने के लिए गल्व्स या दस्ताने भी हैं, लेकिन आज भी कुछ लोग ऐसे हैं जो बिना गल्व्स या दस्ताने के बर्तन धोना पसंद करते हैं. पर जरुरी है कि हमें बिना दस्ताने के बर्तन धोते समय कुछ चीजों का ख्याल रखना चाहिए. कईं बार बर्तनों को साफ करने के बावजूद बर्तनों गंदे रह जाते हैं, जिसके कारण कईं बीमारियां और इंफेक्शन होने का खतरा बन जाता है. इसीलिए आज हम आपको बर्तन धोते समय किन चीजों का ध्यान रखें इसके बारे में बताएंगे.

1. बर्तन कर लें एक जगह इक्ट्ठा

बर्तनों को धोने से पहले एक जगह इक्‍टट्ठा कर लें. बार-बार भाग-दौड़ न करें. बाकी सारी चीजें जैसे- साबुन, स्‍क्रबर और तौलिया को भी रख लें.

2. नाजुक बर्तन पहले धुलें

भारी या बड़े बर्तनों को धोने से पहले हल्‍के या क्रौकरी वाले बर्तन पहले धोयें. वरना उनके टूटने का डर बना रहता है. चम्‍मचें, कांटे और छुरियां भी पहले धो लें.

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3. चिकनाई वाले बर्तनों को भिगोएं

बर्तनों को धोने से पहले चिपकने वाले बर्तनों को एक जगह रख कर उनमें गर्म पानी और साबुन डाल दें, ताकि उनकी चिकनाई छूट जाए और उन्‍हें धोने में ज्‍यादा मशक्‍कत न करनी पड़े.

4. बर्तनों को धोएं बारी-बारी

बर्तनों को मांजने के बाद उन्‍हें छोटे से लेकर बड़े के क्रम में धोना शुरू करें. इससे पानी की खपत कम होगी और वो अच्‍छे से साफ भी हो जाएंगे.

5. बर्तनों को सुखाना है जरूरी

बर्तनों को धोने के बाद एक साथ घुसाकर न रखें बल्कि डलिया आदि में अलग-अलग रखें. बाद में उन्‍हें तौलिया से पोंछकर सूखने रख दें. अगर बर्तन अच्‍छी तरह नहीं सूखते हैं तो पेट में इंफेक्शन होने का खतरा होता है.

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क्या आप जानती हैं फेशियल औयल के इन फायदों के बारे में

पिछले सैकड़ों सालों से औयल को सिर से लेकर पैर तक इस्तेमाल किया जाता है. इसका कारण ये है कि तेल आपकी स्किन को हेल्दी रखता है.

मार्केट में फेस औयल की भरमार है. लेकिन सबसे बड़ी समस्या ये होती है कि अक्सर आपको को ये पता नहीं होता है कि कौनसा औयल आपकी स्किन को सूट करेगा.

इसका जवाब हम देते हैं. चेहरे के लिए आपको लाइट और नौन-कौमेडोजेनिक (non-comedogenic, जिससे पिंपल्स ना हो) औयल इस्तेमाल करें. इसकी कुछ बूंदे ही आपके लिए काफी है.

फेस औयल को लेकर अमूमन लोगों के बीच कई तरह की गलत फैहमी होती है. कभी भी अपने चेहरे पर नारियल तेल या जैतून का तेल (औलिव औयल ) ना लगाएं, क्योंकि ये आपके पोर्स को बंद कर देते हैं. आइए जानते हैं फेस औयल किस तरह आपकी स्किन को स्वस्थ और सुंदर बना सकता है.

1. स्किन में दरार

कोल्ड-प्रेस सीड औयल सेंसीटिव स्किन के लिए काफी फायदेमंद होता हैं और यह स्किन की दरार को ठीक करने में भी मदद करता है. वहीं यह तेल मुंहासों को मिटाने में भी कारगर साबित हो सकता है. जीरा, गुलाब और कमिया बीज के तेल का मिश्रण बनाकर चेहरे पर लगाने से काफी फायदा मिलता है. इनमें मौजूद एंटीऔक्सीडेंट चेहरे की स्किन को और भी सुंदर बनाते हैं.

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2. स्किन के लिए मददगार

कई बार लोगों को यह गलत फैह्मी हो जाती है कि फेस ऑयल से स्किन ऑइली होती है लेकिन एक्सपर्ट्स की राय कुछ और है. एक्सपर्ट्स की मानें तो तेल की कमी से स्किन में सीबम नामक एक पदार्थ की मात्रा काफी बढ़ जाती है, जिससे स्किन और ज्यादा औइली होने लगती है.

सही मात्रा में तेल आपकी स्किन को ज्यादा स्वस्थ और चमकदार बनाता है. इसके अलावा मौइश्चराइजर के साथ फेस औयल की कुछ बूंदों को मिलाकर लगाने से भी स्किन को काफी फायदा होता है.

3. औयल स्किन केयर प्रौडक्ट्स होते हैं मददगार

ऐसा माना जाता है कि अपनी स्किन के लिए औयल -फ्री प्रौडक्ट्स का इस्तेमाल ही बेहतर होता है लेकिन यह जरूरी नहीं. मुंहासो और बेजान स्किन को हाइड्रेट करने में फेस औयल या फिर औयल स्किन केयर प्रौडक्ट्स काफी मददगार साबित हो सकते हैं. साथ ही ये आपकी स्किन को भी कोमल बनाए रखने में मदद करते हैं.

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मास्साबः सहज व सरल लहजे में बनी फिल्म, पढ़ें रिव्यू

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः पुरूषोत्तम स्टूडियो

लेखक व निर्देशकः आदित्य ओम

कलाकारः शिवा सूर्यवंशी, शीतल सिंह,  बेबी कृतिका सिंह, चंद्रभूषण सिंह व अन्य.

अवधिः एक घंटा 54 मिनट

प्रदर्शनः 29 जनवरी से सभी सिनेमाघरों में

समाज सेवा में संलग्न तथा तेलुगू और हिंदी के प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता और निर्देशक आदित्य बतौर लेखक व निर्देशक सामाजिक सरोकार वाली फिल्में ही बनाते रहे हैं. इस बार वह शिक्षातंत्र की कलई खोलने वाली फिल्म ‘मास्साब’यानी कि मास्टर साहब उर्फ शिक्षक लेकर आए हैं. ’इसमें समाज सेवक के तौर पर वह ग्रामीण स्कूलों में जिस तरह के बदलाव के अरमान देखते थे, उन सभी का इसमें चित्रण किया है. यह सदेश परक फिल्म बड़े सहज ढंग से ग्रामीण प्राथमिक स्कूलों के हालात का सच बयां करने के साथ साथ कई अहम बातें कह जाती है. राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहो में 48 पुरस्कारों से नवाजी जा चुकी इस फिल्म को 29 जनवरी से देश के सभी सिनेमाघरो में देखा जा सकता है.

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कहानीः

फिल्म की शुरूआत भारत के सबसे बड़े राज्य के अंदरूनी हिस्से खुरहंद नामक गॉंव के सरकारी प्राथमिक स्कूल से होती है. जहां बच्चे पढ़ने के लिए नहीं आते हैं. महिला शिक्षक बच्चों को पढ़ाने की बनिस्बत स्वेटर बुनने में व्यस्त रहती हैं. पर तभी बेसिक शिक्षा अधिकारी स्कूल में मुआयना करने आते हैं. कुछ बच्चों को पीटकर जबरन कक्षा में बैठाया जाता है. शिक्षा अधिकारी के पहुंचने के बाद धीरे धीरे रहस्य उजागर होते हैं. पता चलता है कि छात्र नकली हैं. स्कूल के शिक्षक महेंद्र यादव(चंद्रभूषण सिंह)तो ठेकेदारी के काम में व्यस्त है, उनके स्थान पर फर्जी शिक्षक के तौर पर उनका भाई जीतेंद्र स्कूल में है, प्रिंसिपल भी अपने बड़े भाई की जगह पर बैठे हुए हैं. इतना ही नही स्कूल का मुआना करने आए शिक्षा अधिकारी भी फर्जी हैं. कुछ मुट्ठी भर छात्र स्कूल महज सराकरी ‘मिड डे मील’के तहत परोसे जाने वाले दोपहर के भोजन के लिए आते हैं और भोजन कर लापता हो जाते हैं.

सरकारी प्राथमिक स्कूल की इसी हालत के चलते गांव से कुछ दूर बना निजी ‘भानु पब्लिक स्कूल’’में छात्रों की तादात काफी है और भानु पब्लिक स्कूल गॉवो के किसानों से उनके बच्चों की फीस के नाम पर मनमानी रकम वसूल कर रहा है. तभी खुरहंद के सरकारी प्राथमिक स्कूल में नए शिक्षक आशीष कुमार (शिव सूर्यवंशी) आते हैं, जो कि आईएएस की नौकरी छोड़कर शिक्षा जगत में अमूल चूल परिवर्तन करने के इरादे से आए हैं. गांव पहुंचते ही आशीष कुमार की पहली मुठभेड़ गांव की युवा महिला सरपंच उषा देवी(शीतल सिंह)से होती है. यहां शिक्षक को ‘मास्साब’ कहकर ही बुलाते हैं.

आशीष आदर्शवादी शिक्षक हैं. उनके लिए शिक्षा ही धन है. वह पहले दिन से ही अपनी कक्षा में अमूलचूल बदलाव कर देते हैं. मिड डे मील की जिम्मेदारी संभाल रहे अवधेश को अपनी तरफ से चंद रूपए हर माह देने का वादाकर उनसे कहते हैं कि वह बच्चों को सेहत वाला ‘मिड डे मील’ही परोसे. धीरे धीरे आशीष कुमार को आए दिन भ्रष्ट व्यवस्था से लड़ते हुए अपनी कक्षा में नए नए प्रयोग करते रहना पड़ता है, जिसमें उन्हें गाम प्रधान उषा देवी से भी मदद मिलती है. धीरे धीरे पूरे स्कूल के बच्चे ही नही गॉंव का हर शख्स आशीष कुमार का दीवाना हो जाता है. महेंद्र यादव,  बेसिक शिक्षा अधिकारी नंद किशोर यादव के कान भरते हैं. बेसिक शिक्षा अधिकारी अचानक स्कूल का मुआयना करने पहुंच जाते हैं, जहां वह पाते हैं कि स्कूल में बहुत कुछ बदलाव आ गया है. इससे वह खुश होते हैं. बाद में आशीष कुमार को ही स्कूल का प्रिंसिपल बना दिया जाता है. अब आशीष कुमार जीतेंद्र व महेंद्र दोनों को स्कूल आने से मना कर देते हैं, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी धन लेने के बावजूद महेंद्र की मदद करने से इंकार कर देता है. तब महेंद्र दबंगई दिखाते हैं, पर पूरा गांव आशीष के साथ खड़ा रहता है.

उधर भानु स्कूल के मालिक चाहते हैं कि आशीष कुमार सरकारी प्राथमिक स्कूल की नौकरी छोड़कर उनके स्कूल में शिक्षक बन जाएं, पर आशीष कुमार मना कर देते हैं. तब भानु स्कूल के प्रबंधक राणा सिंह, आशीष कुमार से कहते हैं कि वह अपने स्कूल के बच्चों को लेकर वाद विवाद प्रतियोगिता में आएं और यदि उनके स्कूल का बच्चो प्र्रतियोगिता हार जाए, तो उन्हे राणा सिंह की बात माननी होगी. आशीष कुमार गांव के पहलवान जिलेदार की बेटी रमा देवी (बेबी कृतिका सिंह)को वाद विवाद प्रतियोगिता में भेजते हैं. जिलेदार का मानना है कि उनकी बेटी को शुद्ध हिंदी बोलनी नही आती. मगर वह वाद विवाद प्रतियोगिता प्रथम स्थान से जीतती है. उसके बाद आशीष कुमार के खिलाफ बहुत गहरी साजिश रची जाती है, जिसके चलते उनका तबादला दूसरे गांव के स्कूल में हो जाता है.

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लेखन व निर्देशनः

लेखक व निर्देशक ने ग्रामीण प्राथमिक स्कूलों का एक यथार्थ, सहज व सरल चित्रण किया है. फिल्म के संवाद व फिल्म की प्रस्तुति इस तरह की है कि बच्चे भी फिल्म की बात को समझ सके. लेकिन फिल्म की लंबाई कुछ अधिक हो गयी है, इसे एडीटिंग टेबल पर कसे जाने की जरुरत थी. फिल्म सर्जक ने अपने मूल विषय से खुद को भटकने नहीं दिया, जबकि उन्होने ग्रामीण परिवेश में जाति, उंची व नीची जाति के भेदभाव से लेकर लड़कियों पढ़ाने का रिवाज न होने तक के कई छोटे छोटे मुद्दांे को भी इस कहानी में खूबसूरती से पिरोया है. फिल्मकार ने दलित शिक्षक व ठाकुर परिवार से संबंध रखने वाली ग्राम प्रधान उषा देवी के बीच रोमांस के सब प्लाट को अंत तक सुंदर ढंग से जीवंत रखा, मगर बड़ी चालाकी से इस प्लॉट में जाति के मुद्दे से दूरी बना ली, अन्यथा फिल्म में एक नया मोड़ आ सकता था और शिक्षा का मूल मुद्दा गौड़ हो जाता है. अमूमन बौलीवुड के ज्यादातर फिल्मकार फिल्म की व्यावसायिक सफलता की सोच के चलते इस तरह के मुद्दों में भटक जाते हैं.

फिल्मकार ने एक शिक्षित व समझदार इंसान आशीष कुमार को एक शांतचित्त व्यक्ति के रूप में चित्रित करते हुए एक नई सोच को दिशा देने में कामयाब रहे हैं कि भ्रष्टाचार व सिस्टम से लड़ाई लड़ते समय क्रोधित या निराश होने की बजाय करूणा के साथ भी लोगों का दिल जीता जा सकता है.

बच्चों से जिस तरह निर्देशक ने अभिनय करवाया है, उसके लिए वह प्रशंसा के पात्र हैं.

फिल्म के लेखक व निर्देशक ने ग्रामीण परिवेश को एकदम यथार्थ परक तरीके से फिल्म में चित्रित किया है. इसके लिए फिल्म के कैमरामैन श्रीकांत असाती भी बधाई के पात्र हैं.

निर्देशक आदित्य ओम ने भारत के छोटे छोटे गाँवों में सरकार द्वारा संचालित प्राथमिक स्कूलों की कठोर व कटु वास्तविकता दिखाने से कोई परहेज नहीं किया है. फिल्म बुंदेलखंड में फिल्मायी गयी है, मगर फिल्म का एक भी किरदार बुंदेलखंडी भाषा में बात करते हुए नहीं दिखता, यह बात अखरती है. मगर फिल्म जिस नेक नियति के साथ बनायी गयी है, उसे देखते हुए कुछ कमियों को नजरंदाज कर फिल्म देखनी चाहिए.

फिल्म के कुछ संवाद समाज व शिक्षा तंत्र के अंदरूनी दोषों पर कड़ा प्रहार करते हैं. मसलन-एक संवाद है-‘‘कोई भी पानी अपने आप खराब नहीं होता. ’’ दूसरा संवाद – ‘‘यदि समाज व्यक्ति को सुधरने नही देगा, तो व्यक्ति अपराधी ही रहेगा. ’

शिक्षा के संदर्भ मे आशीष कुमार का भानु पब्लिक स्कूल के संचालक को दिए गए जवाब वाला संवाद-‘‘शिक्षा व्यक्ति का मौलिक अध्किार है. जिसे आप लोगो ने व्यापार बना रखा है. . . ’’बहुत कुछ कह जाता है.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो शिक्षक आशीश कुमार के किरदार में शिवा सूर्यवंशी ने कमाल का और काफी सधा हुआ अभिनय किया है. शिक्षा@पढ़ाई के प्रति जुनून व विनम्रता के अद्भुत संगम को शिवा सूर्यवंशी ने अपने अभिनय से बाखूबी उकेरा है. उषा देवी के किरदार में शीतल सिंह ने ठीक ठाक अभिनय किया है. सभी बच्चे अपने अभिनय से प्रभाव छोड़ते हैं.

Bigg Boss 14: पूल में गिरी Rubina Dilaik तो इस शख्स ने बचाया, देखते ही रह गए अभिनव

 कलर्स के पौपुलर रियलिटी शो को एक्सटेंशन मिलने के बाद से शो की टीआरपी में उछाल देखने को मिल रहा है. वहीं शो के मेकर्स टीआरपी को बनाए रखने के लिए नए-नए ट्विस्ट शो के कंटेस्टेंट को देते नजर आ रहे हैं. वहीं शो की पौपुलर कंटेस्टेंट रुबीना दिलाइक को भी एक टास्क दिया गया है, जिसे देखने के लिए फैंस काफी एक्साइटेड हैं. आइए आपको दिखाते हैं शो का नया प्रोमो…

प्रोमो हुआ वायरल

हाल ही में ‘बिग बॉस 14’ (Bigg Boss 14) के मेकर्स द्वारा रिलीज किए गए नए प्रोमो में रुबीना दिलाइक बिग बॉस के निर्देश पर स्विमिंग पूल में कूदती हुई दिख रही हैं. दरअसल, प्रोमो की मानें तो रुबीना दिलाइक को एक टास्क दिया जाएगा, जिसमें वह बिग बौस के एक आदेश पर पूल में कूदती नजर आएंगी. वहीं रुबीना दिलाइक को स्विमिंग पूल में गिरते हुए देखकर विकास गुप्ता और अली गोनी चीखते नजर आएंगे.  प्रोमो में भी अली गोनी स्विमिंग पूल में कूदकर रुबीना दिलाइक को बचाने की कोशिश करते हुए भी नजर आ रहे हैं.

https://www.youtube.com/watch?v=MyyRoc5UWnw

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टास्क से घर होगा पागल

https://www.youtube.com/watch?v=GwuX8vstI0s

दर्शकों को एंटरटेन करने के लिए बिग बॉस जल्द ही घरवालों को एक नया टास्क देंगे, जिसके चलते बिग बौस घर में इस टास्क की घोषणा करते वक्त मेकर्स लाइट को जलाने बुझाने वाले हैं. जलती-बुझती लाइटों को देखकर घरवालों के होश उड़ जाएंगे. वहीं अगले ही पल सभी इस टास्क को पूरा करने की जद्दोजहद में जुटते हुए  सभी कंटेस्टेंट्स एक ही चीज को बार-बार दोहराते हुए नजर आएंगे.

 

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बता दें, पिछले हफ्ते जहां कम वोटों के कारण सोनाली फोगाट शो से बाहर हुई तो वहीं इस हफ्ते एजाज की प्रौक्सी देवोलीना भट्टाचार्जी, विकास गुप्ता, निक्की तम्बोली और राहुल वैद्य नॉमिनेट हुए हैं. हालांकि विकास गुप्ता के घर से जाने के ज्यादा चांस है. हालांकि खबरों की मानें तो विकास गुप्ता अपने जोकर कार्ड का इस्तेमाल इस परेशानी से निकलने के लिए कर सकते हैं.

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‘गुम है किसी के प्यार में’ के ‘विराट और पाखी’ का हुआ रोका, PHOTOS VIRAL

स्टार प्लस की सीरियल ‘गुम है किसी के प्यार में’ इन दिनों सुर्खियों में छाया हुआ है. जहां शो की टीआरपी धीरे-धीरे बढ़ रही है तो वहीं अब शो के लीड स्टार्स यानी एक्टर नील भट्ट (विराट) और ऐश्वर्या शर्मा (पाखी) एक रिश्ते में बंध चुके हैं. दरअसल, नील और ऐश्वर्या ने अपने रिश्ते को औफिशयल करते हुए फैंस को चौंका दिया है. आइए आपको दिखाते हैं नील और ऐश्वर्या के सगाई की फोटोज…

रोका की फोटोज से चौंके फैंस

 

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टीवी शो ‘गुम है किसी के प्यार में’ में विराट और पाखी का रोल निभाने वाले नील भट्ट और ऐश्वर्या शर्मा ने अपना रिलेशनशिप ऑफिशल करते हुए एक फोटो शेयर की है, जिसमें दोनों ने अपने फैंस को बताया है कि हाल ही दोनों का रोका हुआ है. जहां फैंस इस खबर से चौंक गए हैं तो वहीं नील और ऐश्वर्या अपने इस रिश्ते को नाम देकर बेहद खुश हैं, जिसका अंदाजा फोटोज से लगाया जा सकता है.

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एक्स लवर्स का रोल अदा कर रहा है ये कपल

 

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शो में नील भट्ट और ऐश्वर्या शर्मा के रोल की बात करें तो दोनों एक्स-लवर्स का रोल अदा कर रहे हैं, जिसके कारण दोनों का रोका होना फैंस के लिए किसी झटके से कम नही है. वहीं फैंस को झटका देते हुए ऐश्वर्या और नील ने रोका सेरिमनी की फोटोज शेयर करते हुए लिखा, ‘साथ में किए पागलपन से लेकर मस्ती और फिर वो प्यार जो हमारे बीच पनपा. हम जिंदगीभर के लिए एक हो गए.’

 

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बता दें, ‘ये है मोहब्बतें’ और ‘कहां हम कहां तुम’ जैसे टीवी सीरियल्स में काम कर चुके अभिषेक मलिक ने भी अपनी गर्लफ्रेंड सुहानी चौधरी से सगाई कर ली है, जिसकी फोटोज भी इन दिनों सोशलमीडिया पर छाई हैं. वहीं बौलीवुड की बात करें तो वरुण धवन ने भी अपनी लौंग टाइम गर्लफ्रेंड से शादी कर ली है.

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हमारी शिक्षा नहीं दे सकी है लड़कियों को बराबरी का हक़

36 साल की अनुषा देओल महिला कॉलेज में लेक्चरर है. उस ने मनोविज्ञान में पीएचडी कर के अपने लिए यह फील्ड चुना. उस का पति साधारण ग्रैजुएट है और प्रॉपर्टी डीलिंग का काम करता है. घर में पति के अलावा सासससुर और तलाक़शुदा जेठ है. अनुषा को घर में अक्सर कहा जाता है कि वह जॉब छोड़ दे मगर अनुषा इस के लिए तैयार नहीं होती. उसे लगता है कि जॉब के बहाने कुछ समय तो वह इस घर की चारदीवारी से दूर समय बिता सकेगी.

उस ने बहुत मुश्किल से घर में सब को राजी कर जॉब कंटीन्यू की है. कॉलेज जाने से पहले उसे घर का सारा काम करना पड़ता है. नाश्ते के साथ ही लंच की पूरी तैयारी कर दौड़तीभागती वह कॉलेज पहुँचती है. पूरे दिन काम कर शाम में थकीहारी लौटती है तो कोई उसे एक कप चाय भी बना कर नहीं देता. सास कोई न कोई शिकायत ले कर जरूर पहुँच जाती है. बेटी को पढ़ाना हो या कोई और काम सब उसे ही करना होता है. पति उस पर हर समय हुक्म चलाता रहता है.

जब भी वह किसी गलत बात का विरोध कर अपना पक्ष रखना चाहती है तो पति उसे डांटता हुआ कहता है,” खुद को बहुत पढ़ालिखा समझ कर मुझ से जुबान लड़ाती है. जुबान खींच कर हाथ में दे दूंगा. ”

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पीछे से सास भी आग में घी डालने का काम करते हुए कहती है, “कितना कहा था पढ़ीलिखी लड़कियां किसी काम की नहीं होतीं. जुबान गज भर की और काम का सलीका जरा भी नहीं। उस पर तेवर ऐसे जैसे यही हमारा घर चला रही हो. याद रख तेरे कुछ हजार रुपयों से हमारा खजाना नहीं भर गया जो आँखें दिखाएगी. बहू है तो बहू की तरह रह वरना जा अपने बाप के घर. वहीँ जा कर नखरे दिखाना.”

उसे इस तरह की धमकियां और पति के द्वारा मारपीट अक्सर सहनी पड़ती है पर वह खामोश रह जाती है. अकेले में ख़ामोशी से आंसू बहा कर जी हल्का कर लेती है और फिर काम में लग जाती है. उसे पता है कि मायके में भी कोई उस की नहीं सुनने वाला। बचपन से मांबाप ने भी भाई और उस में भेदभाव ही किए थे. वैसे वह इतना कमाती है कि अपना और बच्ची का गुजारा अच्छे से कर सकती है मगर वह जानती है कि अकेली रह रही महिलाओं के साथ समाज का नजरिया कैसा होता है.

देखा जाए तो ज्यादातर मध्यमवर्गीय परिवार की महिलाएं इसी तरह की परिस्थितियों से जूझ रही हैं. वे भले ही कितना भी पढ़लिख लें मगर जब बात आती है घर में मिलने वाले इम्पोर्टेंस और केयर की तो उन्हें निराश ही होना पड़ता है. यदि वे अविवाहित हैं तो घर में भाई की तूती बोलती है और यदि विवाहित है तो पति भले ही कम पढ़ालिखा हो मगर वह पत्नी पर अकड़ दिखाना अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझता है. महिला यदि जॉब नहीं करती तो नौकरानियों की तरह उस का पूरा दिन काम करते गुजरता है पर घर में कोई उसे अहमियत नहीं देता। यदि वह जॉब करती है तो उसे घर के साथसाथ ऑफिस का काम भी करना पड़ता है। घर में कोई उस की मदद करने का प्रयास भी नहीं करता. दोहरी जिम्मेदारियों के बावजूद कहीं भी उस की कद्र नहीं होती.

हम सब इस बात को मानते हैं कि हमारे स्वाभिमान को जगाने और आजादी दिलाने का रास्ता शिक्षा है. शिक्षा वह सीढ़ी है जिस पर चढ़ कर ही महिलाओं को अपने क़ानूनी और संवैधानिक अधिकारों का पता चलता है और सफलता के नए रास्ते खुलते हैं. शिक्षा ही महिलाओं के सशक्तीकरण की पहली शर्त होती है. मगर जब शिक्षा के साथ महिलाओं की ओवरआल स्थिति पर ध्यान दें तो पता चलता है शिक्षा के बावजूद महिलाएं कितने बुरे हालातों से गुजर रही हैं.

दुनियाभर में लड़कियों की स्थिति शिक्षा के मामले में भले ही बेहतर हुई है लेकिन इस के बावजूद लड़कियों को हिंसा और भेदभाव सहना पड़ रहा है. यूनिसेफ़ की ताज़ा रिपोर्ट के मुताबिक़ दुनियाभर में महिलाओं और लड़कियों के ख़िलाफ़ हिंसा होना अब भी आम है. रिपोर्ट के मुताबिक़ पिछले बीस सालों में स्कूल न जाने वाली लड़कियों की तादाद सात करोड़ 90 लाख कम हुई है और पिछले एक दशक में सेकेंड्री स्कूल में लड़कों के मुक़ाबले लड़कियों की संख्या बढ़ी है.

अगर भारत की बात की जाए तो भारत में शिक्षा के क्षेत्र में लड़कियों और लड़कों के लिंगानुपात की स्थिति बेहतर हुई है. प्राथमिक विद्यालयों में लैंगिक अनुपात सुधरा है. जिस के कारण बाल विवाह में कमी आई है.

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चौंकाने वाली बात ये है कि इस के बावजूद दुनियाभर में 15 से 19 साल की उम्र की एक करोड़ तीस लाख लड़कियां यानी हर 20 में से एक लड़की बलात्कार की शिकार हुई है.

भारत में राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण के 2015-16 के आंकड़ों के मुताबिक़ 15 साल की उम्र तक भारत में हर पाँच में से एक लड़की यानी एक करोड़ बीस लाख लड़कियों ने शारीरिक हिंसा झेली है. वहीं 15 से 19 साल की हर तीन में से एक लड़की (34%) ने चाहे वह शादीशुदा हो या परिवार के साथ रहती हो, अपने पति या पार्टनर से शारीरिक, मानसिक या यौन हिंसा की पीड़ित रही है.

राष्ट्रीय स्वास्थ्य परिवार सर्वेक्षण की मानें तो 16 फ़ीसदी लड़कियों (15-19) ने अपने साथ हुई शारीरिक हिंसा की बात बताई है. तीन फ़ीसदी ने यौन हिंसा की बात कही है. वहीं 15 से 49 साल की शादीशुदा महिलाओं में से 31% ने पति की ओर से शारीरिक, यौन या मानसिक प्रताड़ना सहा है.

काम के क्षेत्र में भेदभाव

28 साल की मिस जूली ने हाल ही में कंपनी ज्वाइन की थी. वह कंपनी में ऐड डेवलेपर के तौर पर नियुक्त हुई थी. उस दिन मीटिंग में जब नए सॉफ्ट ड्रिंक के लांच की तैयारी पर बात हो रही थी और मैनेजर ने बोतल के कलर पर बात की तो जूली ने ऑरेंज कलर चूज करने की सलाह दी.

यह एक नार्मल बात थी जिसे पास बैठे एक पुरुष कुलीग ने कुछ अलग ही नजरिया देते हुए कहा,”यस मिस जूली आप तो ऑरेंज कलर कहेंगी ही। आखिर यह कलर आप की लिपिस्टिक से जो मैच करता है. ”

उस के ऐसा कहते ही मीटिंग में बैठे सभी पुरुष सदस्य ठहाके लगा कर हंस पड़े जब कि जूली झेंप गई. अक्सर महिलाओं को इस तरह की लिंग आधारित भेदभाव पूर्ण टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है. इस तरह की टिप्पणियां अक्सर पुरुष सहकर्मी महिलाओं को नीचा दिखाने या मजाक बनाने के लिए कर देते हैं. उन्हें लगता है जैसे महिलाओं को फैशन और मेकअप के अलावा कुछ नहीं दिखता. पुरुष कभी भी दिमागी तौर पर स्त्रियों को अपने बराबर या अपने से ज्यादा मानने को तैयार नहीं होते. यह मानसिकता उस पुरुषवादी सोच को प्रतिबिंबित करती है जिसे पूरी तरह से खत्म होने में सदियां लगेंगी।

हाल ही में फ़ोर्ब्स द्वारा जारी विश्व की सब से शक्तिशाली महिलाओं की सूची के टॉप 100 में सिर्फ 4 भारतीय महिलाएं ही आ सकीं. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जो टॉप की 500 कंपनियाँ हैं उन में सिर्फ 10 प्रतिशत महिलाएँ ही सीनियर मैनेजर हैं. भारत में 3 प्रतिशत से भी कम महिलाएं सीनियर मैनेजर के पद पर हैं. हकीक़त यही है कि प्रमुख निर्णायक और प्रतिष्ठित जगहों पर महिलाओं की गिनती न के बराबर रहती है. दरअसल बहुत कम पुरुष ऐसे हैं जो महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने के लिए तैयार होते हैं.

आज भले ही पुरुष और महिलाएँ कंधे से कंधा मिला कर काम कर रहे हैं लेकिन समाज में लिंग आधारित भेदभाव अब भी मौजूद है. कभी योग्य कैंडिडेट को महज इसलिए पदोन्नति नहीं दी जाती क्यों कि वह लड़की है और नियोक्ता को यह भय होता है कि जल्द ही उस की शादी हो जायेगी. इस से वह अपने काम के प्रति लापरवाह हो जायेगी और ऑफिस में पूरा समय भी नहीं दे पाएगी. इसी तरह कई बार मैटरनिटी लीव के बाद महिलाओं को वापस काम पर नहीं लिया जाता. कई महिलाओं या लड़कियों को ऑफिस में पुरुष सहकर्मियों से लिंग के आधार पर भेदभाव से भरी टिप्पणियां सुनने को मिलती हैं.

अक्सर महिलाओं की कबिलियत पर भी सवाल उठाये जाते हैं, उन के सही फैसलों को गलत ठहराया जाता है. जब पुरुष दृढ़ता से फैसले लेता है तो उसे डायनेमिक समझा जाता है लेकिन जब महिला उसी किस्म की दृढ़ता प्रदर्शित करती है तो वह पुरुषों की आंख की किरकिरी बन जाती है.

कभीकभी महिलाओं को कार्यस्थल पर सेक्सुअल पॉलिटिक्स का भी सामना करना पड़ता है. कुछ पुरुष अपनी महिला कुलीग के प्रति यह राय बना कर चलते हैं कि स्त्री होने के कारण उसे बॉस का फेवर मिलता है. उस की मेहनत और कार्य के प्रति समर्पण को नज़रअंदाज़ कर पीठ पीछे उस का मजाक भी उड़ाया जाता है. जब तक इस तरह की मानसिकता नहीं बदलेगी लड़कियों को कितना भी पढ़ा लिया जाए उन के साथ भेदभाव बदस्तूर चलता रहेगा.

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बचपन से ही पढ़ाया जाता है भेदभाव

आप कभी बच्चों के स्कूल की किताबें खोल कर देखिये. ज्यादातर किताबों में लड़कियों को या तो परंपरागत भूमिकाओं में दिखाया जाता है या फिर किताब में लड़कियों की तस्वीर न के बराबर होती है. लगभग हर क्लास की किताबों में इस तरह का भेदभाव देखा जा सकता है जिस के बारे में हम कभी सोचते भी नहीं.

यूनाइटेड नेशन एजुकेशनल साइंटिफिक एंड कल्चर ऑर्गेनाइजेशन (UNESCO) ने हाल ही में अपनी ग्लोबल एजुकेशन मॉनिटरिंग रिपोर्ट 2020 जारी की. एनुअल रिपोर्ट के इस चौथे संस्करण के मुताबिक अलगअलग देशों के पाठ्यक्रम में महिलाओं को किताबों में कम प्रतिष्ठित पेशे वाला दर्शाया गया है साथ ही महिलाओं के स्वभाव को भी अंतर्मुखी और दब्बू बताया गया. किताबों में एक ओर यदि पुरुषों को डॉक्टर दिखाया जाता है तो वहीं महिलाओं की भूमिका एक नर्स के रूप में दर्शायी जाती है. अपनी रिपोर्ट में यूनेस्को ने यह भी कहा कि महिलाओं को सिर्फ फूड, फैशन और एंटरटेनमेंट से जुड़े विषयों में दिखाया जाता है

यूनेस्को की इस रिपोर्ट के मुताबिक फारसी और विदेशी भाषा की 60, विज्ञान की 63 और सामाजिक विज्ञान की 74 फीसदी किताबों में महिलाओं की कोई तस्वीर नहीं है.

एक मलेशियाई प्राथमिक स्कूल की किताब में सलाह दी गई है कि लड़कियां अगर अपने शील की रक्षा नहीं करतीं तो उन्हें शर्मिंदा होने और बहिष्कार किए जाने का ख़तरा है.
अमरीका में अर्थशास्त्र की किताबों में महिलाओं के सिर्फ़ 18 प्रतिशत किरदार ही थे. वो भी खाने, फ़ैशन और मनोरंजन से संबंधित थे.

इस रिपोर्ट में 2019 की महाराष्ट्र की उस पहल का भी ज़िक्र किया गया है जिस में किताबों से लिंग आधारित रूढ़ियों को हटाने के लिए किताबों के चित्रों की समीक्षा की गई थी. समीक्षा के बाद किताबों में महिला और पुरुष दोनों को घर के कामों में हाथ बंटाते दिखाया गया. यही नहीं महिला एक डॉक्टर के रूप में तो पुरुष की तस्वीर शैफ के रूप में दिखाई गई. बच्चों को इन चित्रों पर ध्यान देने और इन पर चर्चा करने के लिए कहा गया.

हमारे समाज में पितृसत्तात्मक सोच हावी है जो किताबों में भी दिखाई पड़ती है. भले ही ये किताबें शिक्षित लोग तैयार करते हैं लेकिन वे भी कहीं न कहीं पुरुषवादी सोच से संचालित होते हैं. ऐसे में महिलाओं को रुढ़िवादी भूमिकाओं में रखा जाता है और उन की भागीदारी कम दिखाई जाती है. जब बच्चे ऐसी किताबें पलटते या पढ़ते हैं तो बचपन से उन के मन में स्त्रीपुरुष से जुड़ी भेदभाव की लकीर गहरी होने लगती है. महाराष्ट्र की तरह हर जगह एक पहल करने की जरुरत है.

महिलाओं पर केंद्रित होती हैं ज्यादातर गालियां

कभी आप ने गौर किया है कि जब भी दो लोगों के बीच कोई बहस या झगड़ा होता है तो गालियां शुरू हो जाती हैं और ये गालियां ज्यादातर महिलाओं पर ही केंद्रित होती हैं. यानी झगड़ा भले ही दो मर्दों के बीच हो रहा हो मगर गालियां महिलाओं से जुड़ी ही होती हैं. शर्मनाक बात तो यह है कि ज्यादातर लोगों को इस में कोई आपत्ति भी नजर नहीं आती. इन गालियों का प्रयोग महिलाओं का अपमान करने और उन्हें छोटा दिखाने के मकसद से किया जाता है.

जाहिर है कि आप किसी को नीचा दिखाना चाहते हैं, तंग करना चाहते हैं तो उन के घर की महिलाओं से केंद्रित गालियां देना शुरू कर दीजिए ताकि वह विचलित हो जाए. यह मानसिकता दिखाती है कि महिलाएं चाहें कितना भी पढ़लिख लें, ऊँचे ओहदों पर पहुँच जाएं मगर उन्हें नीचा दिखाने के लिए लोग उन्हें आपसी रंजिश में भी घसीटने से नहीं चूकते. अगर सामान्य रूप से दी गई गालियों को देखा जाए तो करीब 30 से 40 प्रतिशत गालियां महिलाओं को नीचा दिखाने वाली मिलेंगी.

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दरअसल हमारे समाज में पुराने समय से स्त्रियों को पुरुषों की संपत्ति माना जाता रहा है. मां बहन की गाली दे कर पुरुष अपने अहंकार की तुष्टि करते हैं और दूसरे को नीचा दिखाते हैं. किसी को अपमानित करना है तो उस के घर की महिला को गाली दे दो. किसी पुरुष से बदला लेना हो तो बोल दो कि तुम्हारी स्त्री/बहन को उठा लेंगे. पहले ऐसी गालियां समाज के निचले पायदान पर रहने वाले लोग ही देते थे लेकिन अब आम पढ़ेलिखे लोग भी देने लगे हैं. लोग अपने घर की लड़कियों को पढ़ा जरूर रहे हैं मगर उन के प्रति अपनी सोच नहीं बदल सके हैं .

जरूरी है सोच में बदलाव

दरअसल महिलाओं को शिक्षा प्रदान करना ही काफ़ी नहीं है. हमें लोगों का बर्ताव और लड़कियों के प्रति उन की सोच को भी बदलनी होगी. देखा जाए तो महिलाओं और लड़कियों के साथ हिंसा और भेदभाव होने की मूल वजह हमारा पितृसत्तात्मक समाज है. पुरुषों की यह स्वाभाविक प्रवृति होती है कि वे खुद को सुपीरियर समझते हैं. महिलाओं पर ताक़त दिखाने और नियंत्रण रखने के लिए पुरुष कभी भी उन्हें बराबरी का हक़ देना नहीं चाहते. महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव दूर करने के लिए जरूरी है कि शिक्षा के साथसाथ इस पितृसत्तात्मक सोच में बदलाव लाया जाए.

बचपन से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भी बच्चों को समानता का पाठ पढ़ाया जाए. लड़कों की मनमानियों पर रोक लगाईं जाए. लड़कियों को बचपन से सिखाया जाए कि जुल्म सहने के बजाय उस के खिलाफ आवाज उठाएं. यही नहीं अक्सर महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन होती हैं. घर की औरतें अपनी बेटियों को भाई से दबना सिखाती हैं. घर की सास अपनी बहू को घर के पुरुषों की दासी बन कर रहने की सीख देती है. इस तरह की सोच बदलनी होगी. महिलाओं को महिलाओं का साथ देना होगा. वरना जब तक पुरुष और महिला की बराबरी समाज में स्वीकार नहीं की जायेगी तब तक महिलाओं पर हिंसा भी होती रहेगी और भेदभाव भी चलता रहेगा.

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