लिपस्टिक के साथ मस्कारा पर जोर

प्रीति सेठ ( कॉस्मेटोलॉजिस्ट)

आजकल की जिंदगी में लुक्‍स का ध्‍यान रखना बहुत जरूरी है फिर चाहे ऑफिस हो, कॉलेज हो या आप एक हाउस वाइफ ही क्यों न हों. सुंदर और मुस्‍कुराता चेहरा हर किसी का ध्यान अपनी ओर खींच लेता है. चेहरे की चमक बढ़ाने और निखार लाने के लिए मेकअप की सहायता लेना कोई बुरी बात नहीं है. परफेक्ट मेकअप टिप्स हर महिला को ज़रूर ट्राई करने चाहिए. मेकअप करते समय लिप मेकअप के साथ ही आई मेकअप पर ज्यादा जोर देना चाहिए. चलिए जानते हैं आई मेकअप करने के तरीके और कुछ बेसिक टिप्स के बारे में;

अपने स्किन टोन के मुताबिक ही शेड्स का चुनाव और मेकअप करें. अगर आप का स्किन टोन साफ है तो थोड़ा डार्क आई मेकअप कर सकती हैं. अगर स्किन टोन मीडियम और डार्क है तो लाइट आई मेकअप करें.

कुछ लोगों की आंखे थोड़ी छोटी और अंदर की ओर आंखे धंसी हुई लगती हैं, उन्हें ज्यादा आई शैडो और लाइनर नहीं लगाना चाहिए. ऐसे में हल्का आई मेकअप करें.

हैवी ड्रेस के साथ लाइट मेकअप अच्छा लगता है. अगर आप की ड्रेस लाइट कलर की है तो बोल्ड लुक के लिए आप डार्क शेड्स का इस्तेमाल कर सकती हैं.

आप जैसे स्किन टोन के हिसाब से लिप शेड्स चुनती हैं उसी तरह आई मेकअप भी चुनें.

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आई शेप के हिसाब से मेकअप –

स्मोकी आइज़ देख कर आप भी इसे आज़माने के बारे में सोचती होंगी. पर जरूरी नहीं है कि यह सभी पर अच्छा लगे. हमारे कहने का मतलब यह है कि कोई भी लुक या आई मेकअप ट्रेंड अपनाने से पहले आप को अपनी आंखों का नैचुरल आईशेप पता होना चाहिए. अगर आप को यह पता होगा तो आप सही तरीके से आईशैडो व आईलाइनर लगा पाएंगी. यह आप की आंखों की खूबसूरती को और निखार देगा.

वाइड सेट आइज़

जब आंखों के इनर कॉर्नर नाक के ब्रिज से काफी दूरी पर होते हैं यानि आंखें एकदूसरे से सामान्य से ज़्यादा दूरी पर होती हैं तब उन्हें वाइड सेट आइज़ कहा जाता है. अधिकतर मॉडल्स की आई शेप यही होती है. बॉलीवुड एक्ट्रेस आलिया भट्ट भी इस सुंदर आईशेप की मालकिन हैं.

कंसीलर से करें शुरुआत

आई मेकअप की शुरुआत कंसीलर से होनी चाहिए. आंखों के नीचे काले घेरे या किसी और तरह का कोई स्पॉट हो तो उसे कवर करने के लिए आंखों के नीचे कंसीलर का इस्तेमाल करें. कंसीलर को अच्छी तरह से आंखों के नीचे लगाएं और फिर उसके नीचे फेस पाउडर या कॉम्पैक का प्रयोग करें.

आईशैडो और आईलाइनर पहले लगाएं

आम तौर पर हम पहले काजल लगाते हैं लेकिन सही तरीका है कि पहले आईशैडो या आईलाइनर लगाएं. पार्टी या मौके के अनुसार आईलाइनर का बेस तैयार करें. यह डबल डॉट हो सकता है, प्लेन या पॉइंटेड किसी भी स्टाइल का हो सकता है. अगर फॉल्स आईलैशेज लगाना है तो पहले वह लगाएं फिर आई लाइनर लगाएं.

आइब्रो पेंसिल

आई मेकअप की शरुआत आइब्रो को हाइलाइट करने से करें. इस के लिए आप आइब्रो पेंसिल की सहायता से अपनी आइब्रो को शेप दें. आइब्रो को मोटी या पतली अपने चेहरे की शेप को ध्यान में रखते हुए करें. याद रखें आइब्रो पेन्सिल के ज्यादा इस्तेमाल से आइब्रोज बहुत भारी लगने लगेंगी.

दो बार लगाएं मस्कारा

मस्कारा दो बार लगाएं क्योंकि पहली बार में अक्सर शुरुआत की कुछ पलकें छूट जाती हैं. मस्कारे को केवल ऊपर ही नहीं बल्कि नीचे की आईलैशज पर भी लगाएं. मस्कारे का पहला कोट बाहर की तरफ से पलकों पर लगाएं और दूसरा अंदर से बाहर की तरफ.

आई मेकअप में मस्कारा अहम होता है. अगर आई मेकअप करते समय आप सही तरह से मस्कारा नहीं लगाती हैं तो आप का पूरा लुक बिगड़ जायेगा. जैसे आईलाइनर लगाना एक कला है वैसे ही मस्कारा लगाना भी कला है. कई बार देखा जाता है कि मस्कारा फैल जाता है. इस से आप के चेहरे का बाकी मेकअप भी खराब होता है. अब एक बार मस्कारा फैल जाये तो बड़ी कोफ़्त होती है. फिर से पूरा मेकअप ठीक करना पड़ता है. इसलिए मस्कारा लगाते समय विशेष सावधानी रखें. यह बात याद रखें की मस्कारा लगाने से पहले आईलेशेज़ को कर्ल कर लें. यदि आप सीधी आईलेशेज़ पर मस्कारा लगाती हैं तो आप को एक अच्छा लुक नहीं मिलता. इसलिए अपनी आईलेशेज़ को कर्ल कर के उस पर मस्कारा लगाइए. अगर आप ऐसा नहीं करते हैं तो या तो आई लेशेज़ टूट जाती हैं या चिपक जाती हैं. आई मेकअप में इस का ध्यान ज़रूर रखें.

काजल का कोट लगा कर पूरा करें आई मेकअप

जब सारा मेकअप हो जाए तो काजल के कोट के साथ आई मेकअप पूरा करें. काजल का पहला कोट लगाने के बाद कॉटन से अगर कहीं काजल बह रहा हो तो साफ कर लें और फिर दूसरा कोट लगाएं. काजल के दोनों कोट पूरे हो जाएं तो आंखों के नीचे के हिस्से पर बहुत कम मात्रा में हल्का सा शिमर ले कर ब्रश से एक कोट लगाएं.

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आई मेकअप के टिप्स

आईशेप को ऐसे मेकअप की ज़रूरत है जो आंखों की दूरी को कम दिखाए. इस के लिए आंखों के इनर कॉर्नर पर गहरे यानी डार्क रंग के आईशैडो का इस्तेमाल करें और आउटर कॉर्नर पर हल्के रंग का इस्तेमाल करें. इनर कॉर्नर में डार्क रंग से शुरू करते हुए आउटर कॉर्नर तक आतेआते हल्के रंग के शेड में ब्लेन्ड कर सकती हैं.

ब्लैक या गहरे रंग के लाइनर को टियर डक्ट के जितना नजदीक लगाएंगी उतना बेहतर है. यही तरीका मस्कारा लगाते समय भी अपनाएं. आंखों के बीच से ले कर इनर कॉर्नर तक मस्कारा के कोट को अच्छी तरह से हर एक लैश पर लगाएं.

इस आई शेप वालों को लाइनर के विंग को बहुत लंबा नहीं रखना चाहिए क्योंकि इस से आंखें ज्यादा दूरी पर नज़र आएंगी जो नॉर्मल नहीं लगेगा.

सर्दियों में ऐसे करें अपने दिल की देखभाल

लेखक डॉ. ज़ाकिया खान, सीनियर कंसलटेंट – इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजी, फोर्टिस हॉस्पिटल, कल्याण 

जैसे-जैसे तापमान गिरने लगता है, दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ने लगता है. ठंड का मौसम हृदय संबंधी समस्याओं के लिए जोखिम पैदा कर सकता है. यहाँ जानिए इससे संबंधित आवश्यक बातें.

ठंड का मौसम और हृदय स्वास्थ्य

ठंड का मौसम आपके हृदय की मांसपेशियों में ऑक्सीजन युक्त रक्त की आपूर्ति को कम कर सकता है. यह आपके हृदय को अधिक काम करने के लिए मजबूर कर सकता है; नतीजतन आपका दिल अधिक ऑक्सीजन युक्त रक्त की मांग करता है. दिल में ऑक्सीजन की कम सप्लाई होना फिर दिल द्वारा ऑक्सीजन की अधिक मांग हार्ट अटैक का कारण बनता है. ठंड रक्त के थक्कों को विकसित करने के जोखिम को भी बढ़ा सकती है, जिससे फिर से दिल का दौरा या स्ट्रोक हो सकता है.

ठंड का मौसम थकान पैदा करता है और हार्ट फेलियर का कारण बनता है. ठंड का मौसम आपके शरीर को गर्म रखने के लिए आपके दिल को अधिक मेहनत कराता है. आपकी रक्त वाहिकाएं संकुचित हो जाती हैं ताकि हृदय आपके मस्तिष्क और अन्य प्रमुख अंगों में रक्त पंप करने पर ध्यान केंद्रित कर सके. यदि आपके शरीर का तापमान 95 डिग्री से नीचे चला जाता है तो हाइपोथर्मिया हो सकता है, जिससे हृदय की मांसपेशियों को गंभीर नुकसान पहुंचता है. इसके अलावा सामान्य से अधिक तेजी से चलना तब आम है जब आपके चेहरे पर हवा लग रही हो. ठंड में बाहर रहना हमें अधिक काम करने के लिए उत्तेजित करता है.

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फ्लू का प्रभाव

पहले से ही हृदय रोग के जोखिम वाले लोगों में मौसमी फ्लू का होना हार्ट अटैक को ट्रिगर कर सकता है. यह बुखार का कारण बनता है जिससे आपका दिल तेजी से धड़कता है (जिससे ऑक्सीजन की मांग बढ़ जाती है). फ्लू डिहाइड्रेशन का कारण भी बन सकता है, जो आपके रक्तचाप को कम कर सकता है (हृदय में ऑक्सीजन की आपूर्ति को कम कर सकता है). फिर जब मांग आपूर्ति से अधिक हो जाती है तो दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है. यदि आपको हृदय की समस्या है तो यह सलाह दी जाती है कि आप फ्लू के टीके लगवाने के लिए अपने जीपी से बात करें.

सबसे अधिक जोखिम

बुजुर्ग लोगों और बहुत छोटे बच्चों के लिए अपने तापमान को विनियमित करना कठिन होता है. अत्यधिक तापमान उन्हें अधिक जोखिम में डालता है. अपने स्वयं के स्वास्थ्य की रक्षा करते हुए, ठंड के दिनों में बुजुर्ग और अस्वस्थ्य दोस्तों, परिवार और पड़ोसियों के स्वास्थ्य का ध्यान रखें और यह सुनिश्चित करें कि वे गर्म और आरामदायक माहौल में हों. सुनिश्चित करें कि आप हार्ट अटैक के लक्षणों और संकेतों को पहचान सकते हैं और तुरंत इसकी जानकारी किसी मेडिकल एक्सपर्ट को दे सकते हैं.

चेतावनी के संकेत

यदि आप सीने में दर्द महसूस कर रहे हैं जो असहनीय है और वह आपकी गर्दन, कंधे और हाथ तक रैडीऐट हो रहा है, तो यह हार्ट अटैक का सबसे आम लक्षण है. लक्षण पुरुषों और महिलाओं के लिए भिन्न हो सकते हैं. पुरुष कभी-कभी मतली और चक्कर आने की शिकायत करते हैं जबकि महिलाएं चक्कर आना और थकान जैसे असामान्य लक्षण की शिकायत करती हैं.

स्वस्थ रहें, अपने दिल के स्वास्थ्य को बनाए रखें, एक सक्रिय जीवन जीएं और इस सर्दी के मौसम में अपने दिल को स्वस्थ रखने के लिए नीचे दिए गए सुझावों का पालन करें:

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● स्वस्थ आहार खाएं

• कम से कम 30 मिनट तक नियमित व्यायाम करें.

• अपने तनाव को कम करें.

• अपने रक्त शर्करा, रक्तचाप और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को बनाए रखें.

• यदि आप अपने शरीर में कुछ अनियमित महसूस करते हैं, तो अपने चिकित्सक से मिलें.

• त्योहारों के दौरान असंतुलित खाने से बचें; हल्का और स्वस्थ भोजन ही खाएं.

शादी में इतना खास था वरुण धवन की दुल्हन नताशा दलाल का लुक, देखें फोटोज

 साल 2021 की शुरुआत के साथ ही बॉलीवुड एक्टर वरुण धवन (Varun Dhawan) और उनकी लॉन्ग टाइम गर्लफ्रेंड नताशा दलाल (Natasha Dalal) शादी के बंधन में बंध चुके हैं, जिसकी वीडियो और फोटोज इन दिनों सोशलमीडिया पर छाई हुई हैं. लेकिन शादी से ज्यादा फैंस को इस कपल के मैचिंग आउटफिट्स ज्यादा पसंद आ रहे हैं. इसीलिए आज हम आपको वरुण धवन और नताशा दलाल के आउटफिट्स की खास झलक दिखाएंगे…

कपल का शादी का हर आउटफिट था खास

वरुण और नताशा ने शादी के लिए मैचिंग ट्रैडिशनल ऑउटफिट को चुना, जो बेहद खूबसूरत लग रहा था. ऑफ वाइट जरदोजी की कढ़ाई वाले नताशा के लहंगे के साथ वरुण की शेरवानी परफेक्ट कपल आउटफिट लग रहा था.

 

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नताशा ने खुद डिजाइन किया था लहंगा

 

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बौलीवुड एक्टर वरुण ने अपनी शादी में फैशन डिज़ाइनर मनीष मल्होत्रा की शेरवानी को पहना था, तो वहीं पेशे से फैशन डिजाइनर वाइफ नताशा ने अपनी शादी की ड्रेस खुद डिज़ाइन की गई थी. नीता अंबानी से लेकर श्लोका मेहता तक के लहंगे डिजाइन कर चुकी नताशा ने अपना लहंगा भी बेहद खास तैयार करवाया था.

लहंगा था खास

 

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शादी के लिए नताशा दलाल ने ऑफ वाइट एंड गोल्डन रंग का जरदोसी लहंगा पहना था, जिसे मैचिंग के घूंघट के साथ टीमअप किया गया था. हाथ से तैयार किए गए नताशा के लहंगे पर माइक्रो बूटीदार कढ़ाई के साथ सिक्विन पैटर्न डाला गया था. साथ ही लहंगे पर हेमलाइन पर जरी का बारीक काम था, जिसे गोल्डन मोटिफ्स के साथ खूबसूरत टच दिया गया.

 

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बता दें, वरुण धवन और नताशा दलाल लंबे समय से एक दूसरे को डेट कर रहे हैं. हालांकि इससे पहले दोनों की ब्रेकअप की खबरें भी आई थीं, लेकिन ये सभी अफवाह साबित हुई थी. लेकिन अब शादी की फोटोज देखकर फैंस दोनों के पूरी उम्र साथ रहने की दुआ मांग रहे हैं.

किशोर होते बच्चों के साथ ऐसे बिठाएं बेहतर तालमेल

किशोरावस्था के दौरान बच्चे और मातापिता के बीच का रिश्ता बड़े ही नाजुक दौर से गुजर रहा होता है. इस समय जहां बच्चे का साक्षात्कार नए अनुभवों से हो रहा होता है वहीं भावनात्मक उथलपुथल भी हावी रहती है. बच्चे इस उम्र में खुद को साबित करने और अपना व्यक्तित्व निखारने की जद्दोजहद में लगे होते है. विपरीत लिंग के प्रति आकर्षण भी बढ़ रहा होता है. अगर आप जान लें कि आप के बच्चे के दिमाग में क्या चल रहा है तो इस स्थिति से निपटना शायद आप के लिए आसान हो जाएगा .किशोरावस्था की शुरूआत अपने साथ बहुत से शारीरिक बदलावों के साथसाथ हार्मोनल बदलाव भी लाती है जो मिजाज में उतारचढ़ाव और बिल्कुल अनचाहे बर्ताव के रूप में सामने आता है. ऐसे में बच्चे के साथ बेहतर तालमेल बैठाने के लिए पेरेंट्स को कुछ बातों का ख़याल जरूर रखना चाहिए.

1. दें अच्छे संस्कार

घर में एकदूसरे के साथ कैसे पेश आना है, जिंदगी में किन आदर्शों को अहमियत देनी है, अच्छाई से जुड़ कर कैसे रहना है और बुराई से कैसे दूरी बढ़ानी है जैसी बातों का ज्ञान ही संस्कार हैं. इस की बुनियाद एक परिवार ही रखता है. पेरेंट्स ही बच्चों में इस के बीज डालते हैं. ये कुछ भी हो सकते हैं जैसे ईमानदारी, बड़ों का आदर करना, जिम्मेदार बनना, नशे से दूर रहना ,हमेशा सच बोलना, घर में दूसरों से कैसे पेश आना है आदि , इन सभी बातों को लिख कर अपने बच्चे के कमरे में चिपका दें ताकि ये बातें बारबार उस के दिमाग में चलती रहे और वह इन बातों को जल्दी याद कर पाये.

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2. थोड़ी आजादी भी दें

घर में आजादी का माहौल पैदा करें. बच्चे को जबरदस्ती किसी बात के लिए नहीं मनाया जा सकता. मगर जब आप सही गलत का भेद समझा कर फैसला उस पर छोड़ देंगे तो वह सही रास्ता ही चुनेगा. उस पर किसी तरह का दवाब डालने से बचिए. बच्चा जितना ज्यादा अपनेआप को दबाकुचला महसूस करेगा उस का बर्ताव उतना ही उग्र होगा.

अपने किशोर/युवा बच्चों को अपने सपनों को पूरा करने के लिये जरूरी छूट दें. याद रखें कि आप का बच्चा बड़ा हो रहा है. उसे अपने जज़्बात जाहिर करने दें पर उसे यह अहसास भी करायें कि वह मर्यादा की हदें न लांघे.

3. मातापिता के रूप में खुद मिसाल बनें

बच्चे के लिए खुद मिसाल बनें. बच्चे से आप जो भी कुछ सीखने या न सीखने की उम्मीद करते हैं पहले उसे खुद अपनाएं. ध्यान रखें बच्चे हमारे नक्शेकदम पर चलते हैं. आप उन्हें सफलता के लिए मेहनत करते देखना चाहते हैं तो पहले खुद अपने काम के प्रति समर्पित रहे .बच्चों से सच्चाई की चाह रखते हैं तो कभी खुद झूठ न बोले.

4. सज़ा भी दें और ईनाम भी

बच्चों को बुरे कामों के लिए डांटना जरुरी है तो वहीँ वे कुछ अच्छा करते हैं तो उन की तारीफ़ करना भी न भूलें. आप उन्हें सजा भी दें और ईनाम भी. अगर आप ऐसा करेंगे तो बच्चे को निष्चित ही इस का फायदा मिलेगा. वे बुरा करने से घबराएंगे जब कि अच्छा कर के ईनाम पाने को ले कर उत्साहित रहेंगे. यहाँ सजा देने का मतलब शारीरिक तकलीफ देना नहीं है बल्कि यह उन को मिलने वाली छूट में कटौती कर के भी दी जा सकती है, जैसे टीवी देखने के समय को घटा कर या उन्हें घर के कामों में लगा कर.

5. अनुशासन को ले कर संतुलित नज़रिया

जब आप अनुशासन को ले कर एक संतुलित नज़रिया कायम कर लेते हैं तो आप के बच्चे को पता चल जाता है कि कुछ नियम हैं जिन का उसे पालन करना है पर जरूरत पड़ने पर कभीकभी इन्हे थोड़ा बहुत बदला भी जा सकता है. इस के विपरीत यदि आप हिटलर की तरह हर परिस्थिति में उस के ऊपर कठोर अनुशाशन की तलवार लटकाये रहेंगे तो संभव है कि उस के अंदर विद्रोह की भावना जल उठे .

6. घरेलू कामकाज को जरूरी बनाना

बच्चे को शुरू से ही अपने काम खुद करने की आदत लगवाएं. मसलन अपना कमरा, कबर्ड ,बिस्तर, कपड़े आदि सही करने से ले कर दूसरी छोटीमोटी जिम्मेदारियों का भार उन पर डालें. हो सकता है कि इस की शुरूआत करने में मुश्किल हो मगर समय के साथ आप राहत महसूस करेंगे और बाद में उन्हे जीवन में अव्यवस्थित देख के गुस्सा करने की संभावना ख़त्म हो जायेगी.

7. अच्छी संगत

शुरू से ध्यान रखें और प्रयास करें कि आप के बच्चे की संगत अच्छी हो. अगर आप का बच्चा किसी खास दोस्त के साथ बंद कमरे में घण्टो का समय गुज़ारता है तो समझ जाइये कि यह ख़तरे की घण्टी है. इस की अनदेखी न करें. इस बंद दरवाजे के खेल को तुरंत रोकें. इस से पहले कि बच्चा गलत रास्ते पर चल निकले और आप हाथ मलते रह जाएँ थोड़ी सख्ती और दृढ़ता से काम लें. बच्चे को समझाएं.और सुधार के लिए जरुरी कदम उठाएं. इसी तरह दिनरात वह मोबाइल से चिपका रहे या किसी से चैटिंग में लगा रहे तो भी आप को सावधान हो जाना चाहिए.

8. सब के सामने बच्चे को कभी भी न डांटे

दूसरों के आगे बच्चे को डांटना उचित नहीं. याद रखें जब आप अकेले में समझाते हुए , वजह बताते हुए बच्चे को कोई काम से रोकेंगे तो इस का असर पॉजिटिव होगा. इस के विपरीत सब के सामने बच्चों के साथ डांटफटकार करने से बच्चा जिद्दी और विद्रोही बनने लगता है . किसी भी समस्या से निपटने की सही जगह है आप का घर. इस के लिए आप को सब्र से काम लेना होगा. दूसरों के सामने खास कर उस के दोस्तों के सामने हर बात में गल्तियां न निकालें और न ही उसे बेइज्ज़त करें.क्यों कि ऐसी बातें वह कभी भूल नहीं पायेगा और आप को अपना दुश्मन समझने लगेगा.

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9. उस की पसंद को भी मान दें

आप का बच्चा जवान हो रहा है और चीजों को पसंद और नापसंद करने का उस का अपना नज़रिया है इस सच्चाई को समझने का प्रयास करें. अपनी इच्छाओं और पसंद को उस पर थोपने की कोशिश न करें. किसी बात को ले कर बच्चे पर दवाब न डालें जब तक आप के पास इस के लिये कोई वाज़िब वजह न हो.

10. क्वालिटी टाइम बिताएं

यह सच है कि किशोर/युवा हो रहे बच्चे माता-पिता को अपनी जिंदगी से जुड़ी हर बात साझा करने से बचते हैं . पर इस का मतलब यह नहीं कि आप प्रयास ही न करें. प्रयास करने का मतलब यह नहीं कि आप जबरदस्ती करें और उन से हर समय पूछताछ करते रहे. इस के विपरीत जरुरत है बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम बिताने और उन से दोस्ताना रिश्ता बनाने की.उन के साथ फिल्म देखना, बाहर खाने के लिए जाना और खुले में उन के साथ कोई मजेदार खेल खेलना वगैरह. इस से बच्चा खुद को आप से कनेक्टेड महसूस करेगा और खुद ही आप से अपनी हर बात शेयर करने लगेगा.

Edited by Rosy

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स्मार्ट वुमंस के लिए बेहद काम की हैं ये एप्स

आजकल के बिजी लाइफस्टाइल में जहां लेडिज घर और औफिस के बीच पिसती जाती हैं. वहीं अपनी हेल्थ को नजरअंदाज करके खिलवाड़ करती है. हेल्दी रहना हर किसी के लिए जरूरी है, लेकिन महिलाएं रोजाना घर और परिवार की देखभाल के कारण अपने खानपान और हेल्थ पर ध्यान नहीं दे पाती. इसीलिए अब टैक्नोलौजी इतनी बदल गई है कि महिलाएं अपने घर-परिवार का ख्याल रखते हुए अपनी हेल्थ का ध्यान रख पाएंगी. एंड्रौयड फोन्स में आजकल कई ऐसे एप आ गए हैं, जो महिलाओं की हेल्थ और पर्सनल प्रौब्लम को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं, जो उनकी हेल्थ के साथ-साथ उनकी पर्सनल प्रौब्लम्स की भी जानकारी रखेगा, जिसे वह किसी के साथ शेयर नही कर सकती.

1. पीरियड ट्रैकर एप है जरूरी

ट्रैकिंग पीरियड, फर्टीलिटी और ओव्यूलेशन के अलावा, यह एप आपके मूड, दवाओं और यहां तक कि उन दिनों पर भी नज़र रखता है जब आप अपने पार्टनर के साथ इंटीमेट होते हैं.

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2. क्लू एप है आपकी हेल्थ के लिए परफेक्ट

यह एप महिलाओं को उनके सर्कल पर नज़र रखने में मदद करता है. लेडिज जितना ज्यादा डेटा एप में डालती है, और जितना ज्यादा वह एप का उपयोग करती है, उतना ही यह एप उपयोगी हो जाता है.

3. कईं लेडिज ने अपनाया है ज्ञान ज्योति एप

मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता, आशा) द्वारा बनाया गया यह एप शादीशुदा गांव की महिलाओं को वीडियो के जरिए उनके गर्भनिरोधक औप्शन्स के बारे में बताता है. ब्लूमबर्ग स्कूल औफ पब्लिक हेल्थ के जौन हौपकिंस विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक स्टडी के अनुसार, एप ने कुछ ही महीनों में मौर्डन परिवार नियोजन विधियों का उपयोग करने वाली महिलाओं की संख्या बढ़ाई है.

4. हेल्थ साथी एप का करें ट्राई

इस एप में महिलाओं और बच्चों के लिए बहुत सारी सर्विसें हैं और इसका उद्देश्य पूरे परिवार के लिए एक हेल्दी साथी होना है. यह बच्चों की देखभाल की सर्विस देता है.

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5. सेक्स और पर्सनल प्रौब्लम्स के लिए ट्राय करें लवडोक्टर एप

यह एक वर्चुअल काउंसलिंग प्लेटफौर्म है जहां महिलाएं अपने सेक्स और पर्सनल प्रौब्लम्स के बारे में प्रौफेशनल्स से बात कर सकती हैं. महिलाओं के लिए बनाई गई एक नौकरी पोर्टल साइट शेरोस (Sheroes) ने हाल ही में इसका अधिग्रहण किया था. कंपनी ने हाल ही में दुनिया का पहला स्नैपचैट चैनल लौन्च किया है जो उन टीनेजर्स को एडवाइस देते हैं, जो अब्यूसिव रिलेशन में हैं.

मजाक मजाक में: रीमा के साथ आखिर उसके देवर ने क्या किया- भाग 1

‘‘सुनो वह पौलिसी वाली अटैची तो लाना, जरा… रीमा सुन रही हो?’’ विवेक ने बैठक से पत्नी को आवाज लगाई.

‘‘क्या कह रहे हो… मुझे किचन में कुकर की सीटी के बीच कुछ सुनाई नहीं दिया. फिर से कहो,’’ रीमा अपने गीले हाथों को तौलिए से पोंछतेपोंछते ही बैठक में आ गई.

‘‘वह अटैची देना, जिस में बीमे की फाइलें रखी हैं… वैसे तुम कहीं भी रहो, कोई न कोई तुम्हें देख कर सीटी जरूर बजा देता है,’’ विवेक पत्नी को देख मुसकराते हुए बोला.

‘‘फालतू की बातें न करो. वैसे ही कितना काम पड़ा है… तुम्हें यह काम भी अभी करना था,’’ रीमा झुंझला पड़ी.

‘‘यह काम भी तो जरूरी है, जो पौलिसी मैच्योर हो रही है उस का क्लेम ले लूंगा.’’

‘‘तो सुनो कोई हौलिडे पैक लें? कहीं घूमने चलते हैं.’’

‘‘और रिनी की शादी का क्या प्लान है तुम्हारा?’’ रीमा की बात सुन विवेक ने पूछा.

‘‘अभी 22 साल की ही तो हुई है. अभी 2-3 साल और हैं हमारे पास.’’

‘‘उस के बाद कौन सी खजाने की चाबी हाथ लगने वाली है? जो भी पैसा है वह सब पौलिसी, शेयर, एफडी के रूप में बस यही है,’’ विवेक के अटैची खोलते हुए कहा, ‘‘अब चाहे खुद सैकंड हनीमून मना लो या बच्चों का घर बसा दो… 1-2 साल बाद तो रोहन बेटा भी शादी लायक हो जाएगा,’’ विवेक कागजों को उलटतेपलटते बोला, ‘‘अरे हां, कल छोटू भी मिला था जब मैं औफिस से निकल रहा था. बड़ा चुपचुप सा था पहले कितना हंसीमजाक करता था. चलो अच्छा है, उम्र के बढ़ने के साथ थोड़ी समझदारी भी बढ़ गई उस की.’’

रीमा कुछ न बोल कर चुपचाप रसोई में आ गई. फिर काम करते हुए सोच में पड़ गई कि समय कितनी तेजी से बीतता है, इस का आभास सिर्फ बीते पलों को याद करने पर ही होता है. उस की शादी को भी तो 27 साल हो गए. जब शादी तय हुई थी, तो मात्र 19 वर्ष की थी. सगाई से विवाह के बीच के 6 माह उसे कितने लंबे लगे थे. विवाह करूं या न करूं, सोचसोच कर पगलाने लगी थी. जहां एक ओर विवेक का व्यक्तित्व अपनी ओर आकर्षित करता, वहीं अपने लखनऊ शहर से मीलों दूर कानपुर के एक छोटे कसबे की कसबाई जिंदगी और उस का संयुक्त परिवार उस के सुनहरे सपनों में दाग की तरह छा जाता.

अपने सपनों के साथ अपनी अधूरी पढ़ाई के बीच विदा हो वह ससुराल आ गई. यहां के घुटन भरे माहौल से निकलने का एक यही रास्ता बचा था उस के पास कि वह अपनी पढ़ाई पूरी कर ले. बस इसी बहाने मायके का रूख करने लगी. स्नातक की पढ़ाई खत्म कर कंप्यूटर डिप्लोमा में दाखिला ले लिया. विवेक ने उसे भरपूर आजादी दे रखी थी. जहां विवाह के 4 वर्ष पूरे हुए उस की झोली में स्नातक डिग्री के साथ डिप्लोमा इन कंप्यूटर और 2 नन्हेमुन्ने रोहन और रिनी भी आ गए. ससुराल में 2 जेठजेठानियां उन के 4 बच्चे, सासससुर, 1 घरेलू नौकर समेत कुल 14 सदस्य एक बड़े से घर में एक छत के नीचे जरूर थे, मगर एकसाथ नहीं. सांझा चूल्हा भी इसीलिए जल रहा था, क्योंकि अनाज, दूध, घी, दही, सब्जियां सभी तो अपने घर की ही थीं, कमीपेशी के लिए ससुरजी की पेंशन व घर खर्च के नाम पर चंद रुपए सास को पकड़ा कर उन के बेटे निश्चिंत हो जाते. बहुओं में सारा झगड़ा काम को ले कर रहता. वह फटाफट रसोई का काम निबटा कर घर आए मेहमानों का भी स्वागतसत्कार बहुत सम्मान के साथ करती. महल्ले में उस की बड़ी तारीफ होने लगी तो दोनों जेठानियां एक तरफ हो उस के काम में तरहतरह के नुक्स निकलने लगीं. इसी बीच विवेक का ट्रांसफर हैड औफिस दिल्ली हो गया. तब वह बहुत खुश हुई थी कि चलो अब तो कहीं अपने हिसाब से जिंदगी बिताएगी. किंतु विवेक ने यह कह कर साफ मना कर दिया कि दिल्ली में मकान, बच्चों के स्कूल सभी कुछ इतना आसान नहीं है. तुम्हें बाद में ले जाऊंगा.

विवेक दवा कंपनी में एरिया मैनेजर था. रीमा फिर से एक बार मन मार कर रुक गई. फिर जब ससुराल के पास ही एक नया स्कूल खुला तब स्कूल में बच्चों के एडमिशन के साथ ही उसे भी कंप्यूटर टीचर की जौब मिल गई. विवेक ने हमेशा की तरह उसे प्रोत्साहित ही किया. अब तो दोनों जेठानियों ने सास के कान भरने शुरू कर दिए कि घर के काम से बचने के लिए स्कूल चल दी महारानी. सास को सुबहशाम की रोटी से मतलब रहता जिसे रीना समय पर दे देती. दोनों बच्चे अभी छोटे ही तो थे. रोहन 4 साल का और रिनी 3 साल की. दोनों को स्कूल में दाखिल करा दिया. अब वह निश्चिंत थी. मगर घर का माहौल जमे पानी सा सड़न पैदा करता. ऐसे में छोटू की हंसीमजाक, भरपूर बातें उसे ठंडीताजी हवा के झोंके सी लगतीं.

छोटू मतलब बलवीर सिंह. इस नाम से उसे कोई नहीं पुकारता था. पूरे महल्ले का प्रिय समाजसेवक, बस पढ़ाईलिखाई में मन न लगता, न ही शांति से घर में बैठ पाता. किसी को बाइक से सब्जी मंडी पहुंचा देता तो किसी की बहू को कार से हौस्पिटल. उस की डिलिवरी के समय भी दोनों वक्त छोटू की कार काम आई थी. छोटू तो अपने पिताजी के रिटायरमैंट के बाद का अघोषित ड्राइवर हो गया था. घर में उस से बड़े

2 भाई और भी थे. मगर वे भी कार नहीं चला पाते थे. फिर जब दिन भर छोटू घर भर के कामों के लिए गाड़ी दौड़ा ही रहा था तो उन्होंने भी ड्राइविंग सीखने की जहमत न उठाई.

6 फुट लंबातगड़ा जींस और टीशर्ट पहने, आंखों में धूप के चश्मे के साथ हाथ जोड़ विनम्रता से जिस के भी आगे खड़ा हो जाता वही गद्गद हो जाता. उस की ससुराल तो दिन भर में एक चक्कर जरूर लगा जाता.

अकसर रीमा को छेड़ता, ‘‘भाभी, आप की उम्र और मेरी उम्र बराबर ही होगी. लेकिन आप को देखो कभी खाली बैठे नहीं देखा और मैं हर वक्त खाली रहता हूं.’’

‘‘तो कोई काम क्यों नहीं करते? स्कूल ही जौइन कर लो.’’

‘‘वाह भाभी, खुद तो 2 बार में इंटर पास कर पाया हूं दूसरों को क्या पढ़ाऊंगा?’’

‘‘प्राइवेट स्नातक कर लो. आजकल तरहतरह के कंप्यूटर कोर्स भी हैं. तुम्हारे लिए एक अच्छा ओप्शन मिल ही जाएगा.’’

‘‘ठीक हैं, आप भी कंप्यूटर पढ़ने में मदद करेंगी तो मैं जौइन करने की सोचूंगा.’’

‘‘अरे वहां बहुत अच्छी तरह बताते हैं. प्रैक्टिकल भी कराते हैं. फिर भी कुछ समझ न आया करे तो आ कर पूछ लिया करना.’’

‘‘मैं जानता हूं कि आप कभी मना नहीं करेंगी… आप हैं ही बहुत स्वीट.’’

वह हंस पड़ी.

‘‘आप को पता भी है कि आप की हंसी कितनी कातिलाना है? मैं ने तो आप को शादी के बाद जब हंसते हुए देखा था तो देखता ही रह गया था. विवेक भैयाजी से बड़ी जलन हो गई थी मुझे.’’

‘‘तुम कुछ भी कैसे बोल देते हो?’’ रीमा नाराजगी से बोली.

‘‘सच कह रहा हूं भाभी. आप की हंसी और आप की इन आंखों को जो कोई एक बार देख लेता होगा वह जिंदगी भर नहीं भूल सकता होगा.’’

‘‘बसबस, ज्यादा मक्खन न लगाओ… अब अपना कंप्यूटर कोर्र्स जौइन करने के बाद ही मेरा सिर खाने आना,’’ रीमा ने उसे टालना चाहा.

आगे पढ़ें- अपनी तारीफ किसे अच्छी नहीं लगती. रीमा…

मजाक मजाक में: रीमा के साथ आखिर उसके देवर ने क्या किया- भाग 2

‘‘अरे आप मजाक समझ रही हैं क्या? मैं एकदम सच कह रहा हूं. आप ने क्या फिगर मैंटेन किया है… आप को तो कोई भी 2 बच्चों की मां तो दूर मैरिड भी नहीं समझ सकता. बिलकुल कालेजगोइंग स्टूडैंट लगती हैं.’’

‘‘हो गया पूरा पुराण? चलो, अब घर जाओ अपने,’’ वह रुखाई से बोली. फिर भी छोटू मुसकराते हुए एक गहरी नजर से उसे निहार गया.’’

अपनी तारीफ किसे अच्छी नहीं लगती. रीमा अपने बैडरूम में लगे आदमकद आईने के आगे खड़ी हो गई. बदन में जो चरबी बच्चों के पैदा होने पर चढ़ गई थी वह दिन भर की भागदौड़ में कब पिघल गई पता ही न चला उस की शादी न हुई होती तो वह भी अपनी सहेली सुमन की तरह पीएचडी करने कालेज जा रही होती. क्या गलत कहा छोटू ने, पर वह तो घरगृहस्थी की बेडि़यों में जकड़ी है. कालेज लाइफ की उन्मुक्त जिंदगी उस के हिस्से में नहीं थी. मन मसोस कर रह गई. सुमन ने ही उसे बताया था कि तुझे होली में बड़ा बढि़या टाइटिल मिला था, ‘इन आंखों की मस्ती के मस्ताने हजारों हैं… तेरी अचानक शादी का तो बेचारे क्लासमेट्स को पता ही न था. कितने दिल तोड़े तू ने कुछ पता भी है? जब दोबारा कालेज जौइन किया था तब उसे ऐसी कितनी बातों से दोचार होना पड़ा था. शशि उसे देख उछल पड़ी थी कि अरे मेरी लाड्डो जीजाजी के साथ कैसी छन रही है? कुछ पढ़ाई भी की तुम ने?

उसे अपने विवेक के साथ बिताए अंतरंग पल याद आ गए और उस का मुखड़ा शर्म से गुलाबी हो गया. मानो उस के बैडरूम में वे सभी अचानक प्रविष्ट हो गई हों.

‘‘अरे इसे देखो… क्या रूप निखर आया है,’’ सुमन ने छेड़ा.

यह सुन अनीता चहक कर बोली, ‘‘मेरी शादी होगी न तब देखना मेरा रूप.’’

सभी उस के बड़बोलेपन पर हंस पड़े.

कभी कोई परीक्षा कक्ष में कोई छेड़ देता, ‘‘क्यों तेरी ससुराल में साससुर सब साथ रहते हैं क्या?’’

वह झुंझला कर बोल पड़ती, ‘‘कुछ नहीं पढ़ा है यार. जो थोड़ाबहुत याद है उसे भी तुम लोगों की बकवास सुन कर भूल जाऊंगी.’’

फिर एक गहरी सांस ली उस ने कि बीती बातें क्या याद करनी, पर मन था कि भटक कर उन्हीं लमहों में जा पहुंचा…

उन्हीं दिनों मायके में उस की चचेरी बहन का विवाह तय हो गया. तब अपनी शादी के 5 वर्षों के बाद पहली बार उस ने ब्यूटीपार्लर का रुख किया था. विवेक के लाख मना करने पर भी बालों को एक नया आकार दिया. इतनी तैयारी तो अपने विवाह के पूर्व भी न की थी. शायद वह अपनी दबी हसरतों को इस मौके पर पूरा कर लेना चाहती थी. हुआ भी वैसा ही. विवाह के दिन जब वह अपने शादी के लहंगे में सजधज कर विवेक के सम्मुख खड़ी हुई तो वह बौखला सा गया, ‘‘इतना सजनेधजने की क्या जरूरत थी… कोई तुम्हारी शादी है क्या?’’

‘‘न हो, मेरी बहन की तो है और वह भी मुझ से बस 1 साल छोटी है… कितने सारे कौमन फ्रैंड हैं हमारे… आज सब मिलेंगे वहां पर… और ये मम्मीपापा, बच्चे सब कहां हैं?’’ उस ने हैरानी से पूछा.

‘‘तुम्हें अपने बनाव शृंगार से फुरसत नहीं थी. वे सभी टैक्सी कर चले गए. कह गए तुम दोनों बाइक से घर को लौक कर आ जाना.’’

‘‘तो चलो फटाफट,’’ उस ने उतावलेपन से कहा.

‘‘पहले बाइक की चाबी तो ले कर आओ… वहीं ऊपर तुम्हारे बैडरूम में है,’’ उस का बैडरूम अब भी उसी के नाम से था मायके के… कितनी यादें जुड़ी हैं इस कमरे से रीमा की. अभी भाई की शादी नहीं हुई है तो पूरे घर में उसे अपना ही राजपाठ दिखाई देता है.

‘‘तुम ले आओ न प्लीज, यह लहंगे में सीढि़या चढ़नेउतरने में दिक्कत होती है,’’ उस ने लहंगे को सोफे पर फैला कर बैठते हुए कहा.

‘‘तो यहीं बैठी रहो… मुझे नहीं पता कि तुम ने बाइक की चाभी कहां रखी है,’’ विवेक भी वहीं सोफे पर बैठते हुए बोला.

रीमा एक झटके से उठी और लहंगे को संभालती बड़बड़ाते हुए सीढि़यां चढ़ने लगी कि अपनी बहन की शादी होती तो साहब सब से पहले पहुंच जाते तोरण बांधने… मेरे मायके की शादी है, तो जितना नाटक करें उतना ही कम है.

चाबी बैड पर ही रखी थी. जैसे ही उठा कर पलटी एक झटके में विवेक ने उसे बांहों में भर बैड पर गिरा दिया. इस से पहले कि वह कुछ बोल पाती उस के होंठ पर विवेक ने अपने प्यार का ताला जड़ दिया.

किसी तरह खुद को अलग कर बोली, ‘‘मेरा सारा मेकअप खराब कर दिया तुम ने… यह सब बंद करो. वहां सब हमारा इंतजार कर रहे होंगे.’’

‘‘करने दो इंतजार सब को… पर मुझ से इंतजार नहीं होगा,’’ विवेक उस के कान में फुसफुसाया.

रीमा अपनी बेकाबू धड़कनों को संभालते हुए बोली, ‘‘अभी चलो प्लीज… हम जयमाला होते ही लौट आएंगे.’’

‘‘नहीं पहले प्रौमिस करो… तुम मायके में इतनी रम जाती हो कि फिर कुछ याद नहीं रहता,’’ विवेक अपनी बांहों के घेरे को और तंग करते हुए बोला.

‘‘पक्का प्रौमिस, कह कर रीमा खिलखिलाई, तो विवेक ने एक बार फिर से उस की लिपस्टिक बिगाड़ दी.’’

‘‘चलो हटो… वहां शादी हो रही है और यहां…’’ उस ने विवेक को अपने से दूर करते हुए कहा.

शादी में भी जयमाला के बाद विवेक की घर चलो की जिद ने रीमा का कितना मजाक बनाया था. वह सब को सफाई देतेदेते थक गई थी कि ये आज सुबह ही दिल्ली से आए हैं… सफर में नींद पूरी नहीं हुई है, मगर सभी मुंह दबा कर हंसते रहे. उसे अच्छी तरह समझ आ गया कि विवेक को उस के शृंगार को ले कर इतनी आफत क्यों आई थी. दरअसल, वह चाहता ही नहीं था कि उस के अलावा किसी की नजर उस पर पड़े, लेकिन उस के मुंह से कभी तारीफ के शब्द नहीं निकलते.

कितना सूनापन लगने लगा था. विवेक के दिल्ली जाने के बाद… दिन तो स्कूल, बच्चों रसोई में बीत जाता. मगर रात बहुत लंबी लगतीं. फोन तो रोज ही आता, मगर तब लैंड लाइन फोन होने के कारण कभी मां, कभी पिताजी ही बात कर फोन रख देते. अगर रीमा ने उठाया तब तो ठीक वरना वे उसे बता कर मुक्ति पा जाते कि विवेक का फोन आया था.

उस दिन फोन पर विवेक ने बताया कि वह मंगलवार को 12 से 1 के बीच घर पहुंच जाएगा. अत: तुम स्कूल से आधे दिन की छुट्टी ले कर आ जाना. बच्चे स्कूल बस से बाद में अपनेआप आ जाएंगे.

उस का उतावलापन सुन कर वह बोल पड़ी, ‘‘दिन के बाद रात तो आ ही जाएगी.’’

तब विवेक गुस्से से बोला था, ‘‘रहने दो तुम, अब मैं बाद में छुट्टी लूंगा.’’

‘‘अच्छा, नाराज न हो. मैं हाफ डे ले लूंगी,’’ उस ने कमरे में चारों तरफ नजर दौड़ा कर कहा, ‘‘कमरे में कोई मौजूद नहीं था. उसे झुंझलाहट हो आई कि फोन तो घर के चौराहे पर रखा है और लाट साहब को रोमांस सूझता है.’’

उस दिन उस ने सुबह ही घर में बता दिया था कि लंच टाइम तक ये आ जाएंगे. स्कूल में मासिक परीक्षा चल रही है. अत: स्कूल जाना जरूरी है. स्कूल में प्रिंसिपल से कहा कि घर में फंक्शन है. आज फिर जल्दी जाना है. कंप्यूटर प्रैक्टिकल परीक्षा पहले 4 पीरियडों में ही निबटा दी.

आगे पढ़ें- छुट्टी की मंजूरी मिलते ही तुरंत स्कूल के गेट तक…

मजाक मजाक में: रीमा के साथ आखिर उसके देवर ने क्या किया- भाग 3

छुट्टी की मंजूरी मिलते ही तुरंत स्कूल के गेट तक पहुंच गई. तभी न जाने कहां से भटकता आ गया. बोला, ‘‘घर जाना है क्या? आइए, मैं छोड़ देता हूं,’’ और फिर अपनी बाइक उस के आगे ला कर खड़ी कर दी.

उसे खुद घर जाने की जल्दी थी. कहीं देर हो गई सवारी ढूंढ़ने के चक्कर में तो विवेक फिर से गुस्से से लालपीला हो जाएगा.

‘‘क्या सोच रही हैं?

आज जल्दी कैसे आ गईं, स्कूल से बाहर?’’

तबीयत ठीक नहीं है.

‘‘अरे भाभी, अपना खयाल रखा करो,’’ बाइक स्टार्ट करते हुए बोला, ‘‘आप एकदम भोली हो… वहां तो भाई गुलछर्रे उड़ा रहा होगा और आप यहां अपने को कितना व्यस्त रखती हो.’’

‘‘क्या गुलछर्रे उड़ाते होंगे बेचारे… न ढंग का खाना, न देखभाल. घर से दूर हमारे लिए ही तो जीतोड़ मेहनत कर रहे हैं… चार पैसे बचेंगे तो हमारे बच्चों के भविष्य के ही काम आएंगे.’’

‘‘कर दी न वही घिसीपिटी बात… वहां नाइट क्लब होते हैं… खूब शराब और शबाब का दौर चलता है… वहां किसे अपनी बीवी याद आएगी.’’

फिर उस का मन हुआ कि वह छोटू को बता दे कि उस का पति घर में कितनी बेसब्री से उस का इंतजार कर रहा है… इन सब चक्करों से वह कोसों दूर है वरना आज उसे यों झूठ का सहारा ले कर आधे दिन की छुट्टी ले कर घर नहीं भागना पड़ता… पत्नी पति के हर परिवर्तन को झट भांप लेती है. मगर उस ने छोटू की बातों को कोई तवज्जो नहीं दी.

‘‘आओ चाय पी कर जाना,’’ उस ने अपने घर के गेट के आगे उतर कर छोटू से औपचारिकता निभाने को पूछा.

‘‘नहीं, फिर कभी… आज आप की तबीयत ठीक नहीं है, फिर आऊंगा. मुझे आप से कंप्यूटर की कुछ कमांड समझनी हैं.’’

‘‘ठीक है अगले हफ्ते आना… अभी बच्चों के टैस्ट चल रहे हैं.’’

‘‘जो हुकम स्वीट भाभी,’’ अपनी खीसें निपोरता हुआ बाइक को एक झटके से मोड़ कर वापस चला गया.

टीना ने चैन की सांस ली कि अगर अंदर आ जाता तो विवेक के प्रोग्राम का क्या होता?

सासससुर बरामदे में ही बैठे मिल गए, ‘‘आज जल्दी आ गई… विवेक आया है इसीलिए… अरे, हमारे साथ भोजनपानी कर लिया उस ने. तुझे इतनी चिंता क्यों हो गई,’’ ससुर ने कटाक्ष किया.

वह कुछ न बोल कर सिर झुकाए अपने कमरे की ओर बढ़ गई.

‘‘अरे बहू, वह तो सो भी गया होगा अब तक… तू हमारे लिए चाय बना.’’

कमरे में विवेक करवटें बदल रहा था. उसे देखते ही  खींच कर अपने सीने से लगा लिया मानो वह उसे सदियों के बाद मिल रहा हो.

‘‘कितने दिन बीत गए हैं पता है?’’ अपनी गरम सांसें उस के चेहरे पर टिकाते हुए विवेक ने कहा.

‘‘हां पूरा 1 महीना,’’ वह मुसकराई. विवेक ने उस पर अपने प्यार की बारिस कर दी.

‘‘अब तुम सोओगी क्या?’’ विवेक ने अपनी तृप्त आंखों से एक नजर उस पर डालते हुए कहा.

‘‘नहीं, नहाने जा रही हूं. बच्चे भी आते होंगे… देखना अभी तुम्हारी दोनों भाभियां मेरा कितना मजाक बनाने वाली हैं,’’ टीमा हंस कर बोली.

‘‘उन्हें क्या पता कि तुम ने क्या गुल खिलाएं हैं?’’ विवेक उस के हाथों को सहलाते हुए बोला.

‘‘हां, एक तुम्हीं तो हो कामदेव बाकी तो सब अज्ञानी हैं… छोड़ो मुझे तुम, अब चुपचाप सो जाओ. मैं नहा कर चाय बनाती हूं… 1 घंटा पहले ही ससुर फरमाइश कर रहे थे.’’

उस दिन सुबह से ले कर शाम तक कितने झूठ बोलने पड़े थे उसे… बच्चों को भी उसे जल्दी आने की अलग से सफाई देनी पड़ी.

ठीक 1 हफ्ते के बाद छोटू आ धमका. अपनी किताबे उठाए उस के बैडरूम में ही प्रवेश कर गया.

विवेक वापस जा चुका था. दोनों बच्चे बाहर खेल रहे थे… वह अपनी कपड़ों की अलमारी ठीक कर रही थी. उसे देख कर चौंक पड़ी. बोली, ‘‘चलो, बाहर बरामदे में बैठ कर पढ़ाई करते हैं.’’

‘‘हांहां, बाहर ही बैठ जाएंगे… वैसे आप का बैड भी बड़ा शानदार है,’’ उस ने बैड पर बैठते हुए कहा, ‘‘अकेले तो ऐसे गद्दों पर भी नींद नहीं आती होगी न?’’

रीमा कोई जवाब न दे कर कमरे से बाहर आ गई तो छोटू को भी पीछेपीछे आना पड़ा.

‘‘अरे भाभी, मैं तो मजाक कर रहा था… आप नाराज ही हो गईं.’’

जब से विवेक गए हैं तब से छोटू का मजाक कुछ ज्यादा ही सीमा लांघने लगा है… जितना उस से बचने की जुगत बैठाती, उतना ही कोई न कोई काम पड़ ही जाता. एक दिन रिनी सीढि़यों से लुढ़क गई. उस दिन भी उसी की कार से हौस्पिटल भागी. सिर्फ 3 टांके उस के माथे पर आए थे. मगर वह खून देख कर कितना घबरा गई थी, ऐसे में छोटू ने ही अपनी पहचान के डाक्टर से तुरतफुरत सब काम करवा दिए थे.

एक दिन आ कर बोला, ‘‘मैं बीमा पौलिसी का एजेंट बन गया हूं. एक पौलिसी तो आप को लेनी ही पड़ेगी.’’

रीमा ने रिनी के नाम से ले ली. जानती थी जब तक ले नहीं लूंगी तब तक पीछा नहीं छोड़ेगा. तब वह बहुत खुश हो गया.

‘‘यह हुई न बात स्वीट भाभी. भैया कब आ रहे हैं?’’ उस ने पूछा. इस पर रीमा तुनक पड़ी, ‘‘तुझे क्या काम याद आ गया उन से?’’

‘‘मुझे आप की तनहाईयां देख कर बहुत दुख होता है… यह भी कोई उम्र है तनहा रहने की?’’

‘‘तो क्या करूं… सब की अपनीअपनी मजबूरियां होती हैं.’’

‘‘अरे आप चाहो तो ऐश कर सकती हैं.’’

‘‘वह कैसे?’’ उस ने जानबूझ कर छोटू के मन की थाह लेने को पूछा.

‘‘अरे भाभी, आप के पास तो डबल लाइसैंस हैं?’’

‘‘मजे लेने के लिए कौन से लाइसैंस?’’ आज वह सब कुछ साफ कर लेने के मूड में थी.

‘‘एक तो आप मैरिड हो दूसरा फैमिली प्लानिंग भी कर चुकी हो… अब तो आप आजाद हो आकाश में उड़ते पंछी की तरह.’’

‘‘इस का क्या मतलब है? मैं कुछ

समझी नहीं?’’

‘‘तुम्हारी यही मासूमियत तो पागल कर जाती है भाभी… अरे जैसे भाई दिल्ली में दूसरी लड़कियों के साथ मौज करते हैं. वैसे ही आप भी मेरे साथ मजे ले सकती हो.’’

‘‘यह मेरा अपने पति को धोखा देना नहीं कहलाएगा क्या?’’ उस ने अपने क्रोध को दबाते हुए पूछा.

‘‘नहीं, बिलकुल नहीं. यह तो बस थोड़ा सा टाइमपास होता है जैसे तुम ने एक फिल्म देखी हो बस… फिल्म खत्म तुम अपने घर, मैं अपने घर.’’

‘‘अभी तुम्हारी शादी तो नहीं हुई है न, इसलिए तुम इस रिश्ते का महत्त्व नहीं जानते… जब तुम्हारी शादी होगी तब मैं तुम से कहूं कि एक फिल्म अपनी बीवी की विवेक को दिखा दो तो तुम्हें कैसा लगेगा?’’

‘‘अरे, मैं इतना दकियानूसी नहीं हूं… मुझे कोई फर्क नहीं पड़ेगा कि मेरी बीवी क्या करती है,’’ छोटू खिसिया कर बोला.

‘‘तो ठीक है जब तुम अपनी बीवी को इतनी आजादी दोगे. तब मैं तुम्हें मान जाऊंगी,’’ रीमा ने उसे चुनौती देते हुए कहा.

साल भर बाद ही वह विवेक के साथ कानपुर चली गई. विवेक को भी

दिल्ली के मुकाबले कानपुर रास आ गया. एक दिन अचानक छोटू का फोन आ गया.

‘‘क्या बात है बड़े दिनों के बाद याद आई हम लोगों की?’’ रीमा ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘क्या भाभी, आप लोग मेरी बरात में भी शामिल नहीं हुए,’’ उस ने नाराजगी दिखाई.

‘‘तुम ने हमें कार्ड ही नहीं भेजा… खैर कोई बात नहीं, तुम्हें और तुम्हारी दुलहन को बहुत सारी शुभकामनाएं.’’

‘‘भाभी, आप से एक काम था. इसीलिए फोन किया था… वह मेरी वाइफ का बीएड का रिजल्ट आ गया है, उसे कानपुर कालेज में दाखिला लेना है. आप की नजर में कोई अच्छा सा घर हो तो देखना…’’

‘‘अरे वाह, यह तो बहुत खुशी की बात है… घर की तुम बिलकुल चिंता न करो. यहां हमारे पास थ्री बैडरूम सैट है. तुम लोगों को कोई असुविधा नहीं होगी. अब फटाफट आ जाओ. तुम निश्चिंत रहो. यहां तुम्हारे भाई तो हैं ही उस की देखभाल को.’’

‘‘खटाक,’’ की आवाज के साथ फोन कट गया. छोटी की बीवी शायद उन के घर नहीं रहने आएगी.

रीमा हंस पड़ी कि वह तो सिर्फ मजाक कर रही थी और छोटू डर गया.

‘‘क्या बात है? अकेलेअकेले क्यों हंस रही हो,’’ विवेक रसोई में रखे फ्रिज से पानी की बोतल निकालते हुए बोला.

‘‘सुनो, छोटू से जो जीवन बीमा की पौलिसी ली थी. वह कब पूरी होगी?’’

‘‘अगले साल… 2 लाख मिलेंगे… वे सब बिटिया की शादी के बजट में काम आएंगे, पर तुम क्यों पूछ रही हो?’’

‘‘चलो कोई तो काम अच्छा किया छोटू ने.’’

‘‘कौन सा काम गलत किया उस ने? मुझे भी बताओ,’’ विवेक ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मैं ने यह तो नहीं कहा कि उस ने कोई गलत काम किया.’’

‘‘तुम औरतों से बात करना मतलब मुसीबत मोल लेना होता है.’’

‘‘हां, अब तुम ने एकदम सही बात की,’’ कह रीमा खिलखिला उठी.

जीत की जिदः लेखन, निर्देशन के साथ अमित साधा का कमजोर अभिनय

रेटिंग: 2 स्टार

निर्माताः बोनी कपूर, आकाश चावला व अरुणवा जॉय सेनगुप्ता

निर्देशकः विशाल मंगलोरकर

कलाकारः अमित साध,एली गोनी, सुशांत सिंह, मृणाल कुलकर्णी, अमृता पुरी व अन्य

अवधिः सात एपीसोड, कुल अवधि लगभग पौने 5 घंटे

ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5

सेना और सैनिकों से जुड़ी कहानियां सदैव रोमांचक व रोचक होती हैं. मगर कई सैन्य व राष्ट्रपति द्वारा उच्च सम्मान से सम्मानित कारगिल योद्धा व सेना में स्पेशल फोर्स के मेजर दीप सिंह सेंगर की जिंदगी की सत्य कथा को वेब सीरीज ‘‘जीत की जिद’’ में प्रभावी तरीके से पेश करने में निर्देशक विषाल मंगलोरकर मात खा गए हैं.

कहानीः

बचपन में अपने भाई को कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा मारे जाने के बाद दीप तय करता है कि वह सेना में भर्ती होगा और कश्मीर जाकर आतंकवादियों का सफाया करेगा. अपने माता पिता की इच्छा के विरुद्ध दीप सिंह सेंगर (अमित साध) सेना और वह भी स्पेशल फोर्स का हिस्सा बनते हैं. इसके लिए वह कई कठिन ट्रेनिंग भी हासिल करते हैं. सेना की कठिन परीक्षा पासकर वह कश्मीर पहुंचकर आतंकवादियों के सफाए में जुट जाते हैं. इसी बीच घायल होकर अस्पताल पहुंचते हैं.

अस्पताल से भागकर अपने सहकर्मी सैन्य अफसर सूर्या सेठी (एली गोनी) की शादी में पहुंचते हैं, जहां दीप की मुलाकात गणित की शिक्षक जया (अमृता पुरी) से होती है और वह जया को अपना दिल दे बैठते हैं. दोनों की मुलाकातें अस्पताल में होती हैं. फिर दोनो सगाई करने का निर्णय लेते हैं. पर तभी अस्पताल में ही दीप सिंह सेंगर को खबर मिलती है कि पाकिस्तान के खिलाफ कारगिल में युद्ध शुरू हो गया है.

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पूरी तरह से स्वस्थ न होते हुए भी अपनी जिद के चलते पाकिस्तानी सैनिको को सबक सिखाने के लिए अपनी सैन्य टीम के साथ दीप सिंह कारगिल पहुंचते हैं. जहां वह अपने मिशन में कामयाब होते है. मगर उनके पेट में पांच गोलियां लगती हैं. कुछ गोलियां आर पार हो जाती है. चार बड़े आपरेशन के बाद डाक्टर कह देते हैं कि अब मेजर दीप सिंह सेंगर अपने पैरों पर खड़े नहीं हो सकते.

मेजर दीप सिंह सेंगर अब जिंदगी भर व्हील चेअर पर ही चलेंगे, यह जानते हुए भी जया उनसे विवाह करती हैं. उसके बाद जया के उकसाने पर दीप सिंह सेंगर एमबीए करते हैं, कारपोरेट में अच्छी नौकरी मिल जाती है, पर फिर वह निराशा के गर्त में समाने लगते हैं. अंततः एक बार फिर कर्नल रंजीत चौधरी (सुशांत सिंह) दीप सिंह सेंगर को एक चैलेंज देते हैं.

लेखन व निर्देशनः

जिंदगी भर के लिए व्हील चेअर पर आने के बाद भी एक सैनिक हार नही मानता. यह एक अति प्रेरणादायक कहानी है, मगर अफसोस लचर लेखन व लचर निर्देशन के चलते यह कहानी प्रभावहीन हो गयी है. सात लंबे एपीसोड की इस वेब सीरीज का प्रस्तुतिकरण बहुत ही सतही है. वेब सीरीज में कहानी बार बार वर्तमान से अतीत में जाती है और ऐसा होते समय अतीत की कथा बहुत गलत तरीके से आती है, जिससे दर्शक बार बार दिग्भ्रमित होता रहता है. यह पटकथा लेखक के साथ साथ एडिटर की भी कमजोरी है.

फिल्म में गन फाइट के सीन वगैरह बहुत ही नकली लगते हैं. कम से कम इस वेब सीरीज के सर्जको को फिल्म ‘उरीः द सर्जिकल स्ट्राइक’ से ही कुछ सबक ले लेना चाहिए था. फिल्म ‘उरी’ में सब कुछ बहुत बेहतरीन तरीके से पेश किया गया है. मगर वेब सीरीज ‘जीत की जिद’ में सैन्य चॉपर, गन फाइट बैटल सहित सब कुछ डिजिटली रचा गया है. कैमरामैन ने भी अपनी जिम्मेदारी को गंभीरता से नहीं निभाया है. सैनिकों की ट्रेनिंग के दृष्य बार बार दोहराए गए हैं, जिससे दर्शकों को भी उब होने लगती है. पूरी वेब सीरीज देखते हुए कहीं भी रोमांच के क्षण पैदा ही नही होते.

सूर्या सेठी (एली गोनी) और दीप सिंह सेंगर (अमित साध) के बीच बाक्सिंग प्रतियोगिता दृष्य भी काफी शिथिल है. स्पेशल फोर्स की ट्रेनिंग के दृष्यों में जो सह कलाकार लिए गए हैं, उनका हाव भाव कहीं से भी सैनिकों जैसा नहीं लगता. ऐसा लगता है कि निर्देशक का सारा ध्यान सिर्फ इस बात पर रहा कि कितनी जल्दी इसकी शूटिंग खत्म की जाए.

फिल्म के एक दो संवादों को छोड़ दें, तो संवाद भी काफी सतही है. एक संवाद अच्छा है- ‘‘लीडर्स सिर्फ फ्रंट पर ही नहीं, हर फील्ड में होते हैं.’’

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो दीप सिंह सेंगर के किरदार में अमित साध निराश करते हैं. वह इस वेब सीरीज की सबसे कमजोर कड़ी साबित हुए हैं. आर्मी आफिसर और वह भी स्पेशल फोर्स का मेजर इतना मोटा व भरे गालों वाला नही हो सकता, जितने मोटे अमित साध हैं. उनका अभिनय प्रभावशाली नहीं है.

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एक दृष्य है, जिसमें उन्हे ट्रेनिंग के ही दौरान इलेक्ट्रिक शॉक दिया जाता है. इस सीन में अमित साध का अभिनय व उनकी प्रतिक्रिया देखकर हंसी आती है. इतना ही नही व्हील चेअर बैठे हुए एक भी दृष्य प्रभाव पैदा नही करते. बतौर अभिनेता अमित साध की यह असफलता ही है और इसके लिए निर्देशक भी पूरी तरह से दोषी हैं.

जया के किरदार में अमृता पुरी ने काफी सधा हुआ अभिनय किया है. सुशांत सिंह भी अपने अभिनय से प्रभावित नहीं करते.

विनीत कुमार सिंह ने गाया भारतीय सेना के जवानों के लिए गाना, हुआ वायरल

मूलतः आयुर्वेदिक डाक्टर विनीत कुमार सिंह ने बतौर डाक्टर प्रैक्टिस करने की बजाय 2002 में अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा था. ‘पिता’,‘हथियार’,‘बांबे टाॅकीज’, ‘गैंग आफ वासेपुर’ सहित कई फिल्मों में अभिनय करने के बाद वह फिल्म ‘‘मुक्काबाज’’ में हीरो बनकर आए थे, जिसकी कहानी व पटकथा विनीत कुमार सिंह ने अपनी बहन के साथ मिलकर लिखा था. अब वह नौ फरवरी को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली फिल्म ‘आधार’ में हीरो बनकर आ रहे हैं.

इन दिनों विनीत कुमार सिंह अपने गीत ‘‘उनके काज को न भूलो’ को लेकर चर्चा में हैं. विनीत कुमार सिंह ने यह भावुक गीत गणतंत्र दिवस के उत्सव पर भारतीय सेना के जवानों को श्रद्धांजलि देते हुए बनाया है.

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इस गीत को विनीत कुमार सिंह ने स्वयं अपनी आवाज में गाते हुए वीडियो बनाकर ऐन गणतंत्र दिवस से पहले वायरल किया, जिसे काफी पसंद किया जा रहा है. अभिनेता ने कहा कि उनका प्रयास 26 जनवरी को आने वाले देश के 71 वें गणतंत्र दिवस को मनाने के उद्देश्य से है.

इंस्टाग्राम पर विनीत ने अपने इस गीत का वीडियो साझा करते हुए लिखा है, ‘सेना के जवानों को एक छोटी श्रद्धांजली..यह गाना मैंने लिखा और गाया है…मुझे आशा है कि आपको पसंद आएगा.‘

विनीत कुमार सिंह कहते हैं- ‘‘गीत ‘उनके काज ना भूलो…‘ अपने आप लिख गया. इस गीत को लिखने के लिए मुझे गलवान घाटी की घटना से प्रेरणा मिली. गलवान घाटी की इस घटना के बारे में सुनकर मैं चौंक गया था. उस वक्त मैं लद्दाख में शूटिंग कर रहा था और मैं कई जवानों से मिल चुका हूं. हम उनसे मिलने जाते थे. उनकी चेक पोस्ट पर वह हमारा स्वागत करते थे.  बहुत प्यार और सम्मान देते थे. उनके साथ खड़ा होना बहुत गर्व की बात होती है. वह बहुत विपरीत परिस्थितियों से लड़ रहे होते हैं. इनमें सर्दी, खून, पसीना, आंसू और अपने कर्तव्य के लिए घर से दूर रहना शामिल है.‘

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विनीत आगे कहते है-‘‘सैनिक ऐसा इसलिए करते है ताकि भारत माता की रक्षा हो सके. ऐसी विपरीत परिस्थितियों में रहकर देश सेवा करना बहुत बड़ी बात है.यह बात मेरे ध्यान में हमेशा रहेगी. इसी के चलते यह गीत बनाया है. हमें हमारे जवानों और उनके परिवार की कर्तव्य परायणता को कभी नहीं भूलना चाहिए. यह कविता मेरी ओर से हमारे देश के सैनिकों के लिए एक ट्रिब्यूट है.‘’

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