अब नहीं चलेगा कोई बहाना

इस बार के लोकसभा चुनावों में औरतों ने बढ़चढ़ कर भाग लिया  और उन की वोटिंग आदमियों सी रही. स्वाभाविक है कि अगर नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी इतने विशाल बहुमत से जीती है तो उस में आधा हाथ तो औरतों का रहा. उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार अब तो औरतों के बारे में कुछ अलग से सोचने की कोशिश करेगी.

जो समस्याएं आदमियों की हैं वही औरतों की भी हैं पर औरतों की कुछ और समस्याएं भी हैं. इन में सब से बड़ी समस्या सुरक्षा की है. जैसे-जैसे औरतें घरों से बाहर निकल रही हैं अपराधियों की नजरों में आ रही हैं. घर से बाहर निकलने पर लड़कियों को डर लगा रहता है कि कहीं उन्हें कोई छेड़ न दे, उठा न ले, बलात्कार न कर डाले, तेजाब न डाल दे.

घर में भी औरतें सुरक्षित नहीं है. घरों में कभी पति से पिटती हैं तो कभी बहुओं से. दहेज के मामले कम हो गए हैं पर खत्म नहीं हुए हैं. इतना फर्क और हुआ है कि अब अत्याचार छिपे तौर पर किया जाता है, मानसिक ज्यादा होता है, यदि शारीरिक नहीं तो.

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लड़कियां पढ़-लिख कर लड़कों से ज्यादा नंबर ले कर आ रही हैं पर उन्हें नौकरियां नहीं मिल रहीं. लड़कों को कोई कुछ नहीं कहता पर यदि लड़की को नौकरी

न मिले तो उसे जबरन शादी के बंधन में बांध दिया जाता है. यह बंधन चाहे कुछ दिन खुशी दे पर होता तो अंत में उस में बोझ ही बोझ है. सारा पढ़ालिखा समाप्त हो जाता है.

सरकार को बड़े पैमाने पर लड़कियों के लिए नौकरियों का प्रबंध करना चाहिए चाहे नौकरी सरकारी हो, प्राईवेट हो या इनफौर्मल सैक्टर की. अब भाजपा सरकार के पास बहाना नहीं है कि उस के हाथ बंधे हैं. जनता ने भरभर कर वोट दिए हैं. जनता को वैसी ही अपेक्षा भी है.

इस बार चूंकि कांग्रेस, समाजवादी, बहुजन समाज पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, जनता दल आदि का सफाया हो गया है, सरकार यह नहीं कह सकती कि उसे काम नहीं करने दिया जा रहा. सरकार अब हर तरह के फैसले ले सकती है.

सुरक्षा के साथ-साथ सरकार को साफसफाई भी करनी होगी. देश के शहर 5 सालों में न के बराबर साफ हुए हैं. शहरों में बेतरतीब मकानों व गंदे माहौल में करोड़ों औरतों को बच्चे पालने पड़ रहे हैं. खेलने की जगह नहीं बची. औरतों को सांस लेने की जगह नहीं मिलती. शहर में बागबगीचे होते भी हैं तो बहुत दूर जहां तक जाना ही आसान नहीं होता.

यह डर भी लग रहा है कि सरकार कहीं टैक्स न बढ़ा दे. अगर ऐसा हुआ तो उस की मार औरतों पर ही पड़ेगी. औरतों ने नोटबंदी का जहर पी कर भी नरेंद्र मोदी को वोट दिया है. अब महंगाई कर के उन का चैन न छिन जाए.

औरतों के लिए बने कानूनों में भी सरलता आनी चाहिए. तलाक लेना कोई अच्छी बात नहीं पर जब लेना ही पड़े तो औरतें सालों अदालतों के गलियारों में भटकती रहें, ऐसा न हो. कहने को औरतों के लिए कानून बराबर है पर आज भी रीतिरिवाजों, परंपराओं के नाम पर औरतों को न जाने क्याक्या सहना पड़ता है. इस सरकार से उम्मीद है कि वह औरतों को इस से निजात दिलाएगी.

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वैसे तो औरतों को धार्मिक क्रियाकलापों में ठेल कर उन की काफी शक्ति छीन ली जाती है पर इस बारे में यह सरकार शायद ही कुछ करे, क्योंकि यह ऐसा क्षेत्र है जिस पर सरकार की नीति साफ है, जो 2000 साल पहले होता था वही अच्छा है. फिर भी जो इस बंधन को सहर्ष न अपनाना चाहे कम से कम वह तो अपनी आजादी न खोए.

सरकार को इस बार जो समर्थन मिला है उस में अब केवल वादों की जरूरत नहीं है. 350 से ज्यादा सीटें जीतने का अर्थ है कि देश 350 किलोमीटर की गति से बढ़े और औरतें सब से आगे हों.

नोबलमेन फिल्म रिव्यू: बोर्डिंग स्कूलों की बंद दुनिया का भयावह कड़वा सच का सटीक चित्रण

रेटिंगः तीन स्टार

निर्माताः विक्रम मेहरा व सिद्धार्थ आनंद कुमार

निर्देशकः वंदना कटारिया

लेखकः सुनील ड्रेगो, वंदना कटारिया व सोनिया बहल

कैमरामैनः रामानुज दत्ता

कलाकारः अली हजी, कुणाल कपूर, मुस्कान जाफरी, इवान रौड्क्सि, हार्दिक ठक्कर, मोहम्मद अली मीर, शान ग्रोवर, सोनी राजदान, एम के रैना व अन्य.

अवधिः एक घंटा 51 मिनट

फिल्मकार वंदना कटारिया ने विलियम शेक्सपिअर के नाटक ‘‘द  मर्चेट आफ वेनिस’’ की अपनी व्याख्या के साथ इस फिल्म का निर्माण किया है. यह नाटक अपमानित व उत्पीड़ित होने के बाद बदला लेने की बात करता है.इसे ही फिल्मकार ने अपनी फिल्म का विषय बनाते हुए बोर्डिंग स्कूल में होने वाली बुलिंग बदमाशियों के साथ समलैंगिकता का मुद्दा भी उठाया है.शेक्सपिअर के इस दुःखद नाटक की ही तरह फिल्म भी बेहद डार्क, क्रूर व संवेदनाओं की परीक्षा लेती है.पर वरिष्ठ छात्रों की बदमाशी किस तरह किशोर व मासूम छात्र की मासूमियत छीनकर उसे शैतान बनने पर मजबूर करती है.

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कहानीः

मसूरी के पौश बोर्डिंग स्कूल मांउट नोबल हाई में दसवीं कक्षा में पढ़ने वाला मासूम शाय (अली हाजी) अपने मोटे भाले भाले मासूम क्यूट दोस्त गणेश (हार्दिक ठक्कर)और पिया (मुस्कान जाफरी) के साथ खुश है.पर शाय अपने किशोरवय से जूझ रहा है. पिया की मां भी इसी स्कूल में शिक्षक हैं. शौय का सीनियर और करोड़पति बौलीवुड स्टार का बेटा बादल (शान ग्रोवर) हर चीज पर अपना हक जताता है. बादल,पिया को चाहता है और उस पर सिर्फ अपना हक मानता है. जब शाय को ड्रामा थिएटर शिक्षक मुरली (कुणाल कपूर) शेक्सपियर के नाटक ‘द मर्चेट औफ वेनिस’ के मुख्य पात्र के लिए चुनता है, तो उसकी जिंदगी में हादसों का सिलसिला शुरू हो जाता है. क्योंकि इस नाटक की हीरोईन के किरदार में पिया है.बादल को यह बर्दाश्त नही होता.वह पहले ड्रामा शिक्षक मुरली पर दबाव डालकर शाय की जगह खुद को नाटक का हिस्सा बनाने के लिए कहता है. वह अपने पिता से कई तरह की मदद का आश्वासन भी देता है. मगर मुरली मना कर देते हैं.

तब बादल अपने रास्ते से शाय को हटाने और नाटक में मुख्य किरदार में खुद को शामिल करवाने के लिए बादल अर्जुन की मदद लेता है. अर्जुन (मोहम्मद अली मीर) बोर्डिग स्कूल के सबसे ताकतवर गैंग का मुखिया है. अर्जुन फुटबौल चैंपियन होने के साथ साथ प्रीफेक्ट भी है. अर्जुन अपने तरीके से शाय को प्रताड़ित कर नाटक छोड़ने के लिए कहता है. मगर शाय अपने पसंदीदा अभिनय और नाटक के पसंदीदा पात्र से खुद को अलग करने को तैयार नही होता. उसके बाद बादल व अर्जुन अपने पूरे गैंग के साथ मिलकर शाय को हर तरह से प्रताड़ित करते हैं. शाय का साथ देने की कीमत उसके दोस्तों पिया और गणेश को भी चुकानी पड़ती है.

नाटक के शिक्षक शाय का साथ देने का प्रयास करते हैं.पर हालात ऐसे बन जाते है कि अपमान से त्रस्त शाय,मुरली को भी अपना दुश्मन मान बैठता है.अर्जुन के गैंग का मुकाबला करने के साथ शाय अपनी होमो सेक्सुआलिटी समलैंगिकता को लेकर भी जूझता है. जैसे जैसे कहानी आगे बढ़ती जाती है, बदमाश गैंग की बदमाशी बढ़ती जाती है. एक वक्त ऐसा आता है,जब वह अपनी सारी हदें पार कर जाते हैं.बदला लेने के लिए परेशान होने लगता है.अंततः निर्दोषता के साथ ही एक जिंदगी खत्म होती है.

लेखन व निर्देशनः

लेखक ने बोर्डिंग स्कूल में ज्यूनियर छात्रों के साथ सीनियर छात्रों की छोटी छोटी बुलिंग बदमाशी कितना भयानक रूप लेती है, इसका सटीक चित्रण है.लेखक व निर्देशक अपनी इस फिल्म के माध्यम से बोंर्डिंग स्कूल के स्याह पक्ष के साथ कड़वी सच्चाई पेश करने में सफल हैं. फिल्म हमें नामचीन बोर्डिंग स्कूलों की उस दुनिया में ले जाती है, जिससे हम अनभिज्ञ है.यह दुनिया है गुमराह करने वाली धारणाएं, छात्रों का लगातार मौखिक व शारीरिक उत्पीड़न, यौन उत्पीड़न, हिंसात्मक प्रवृत्ति, बौलीवुड स्टार के बेटे का अपना ओहदा आदि.

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इंटरवल से पहले फिल्म की गति काफी धीमी हैं.पर इंटरवल के बाद कई घटनाक्रम तेजी से घटित होते हैं. फिल्म का क्लायमेक्स व अंत बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है. फिल्म का अंत ऐसा है कि बुराई पर अच्छाई जीत हासिल करने के बाद बुराई बन जाती है.

फिल्म में किशोरवय का मासूम शाय एक घायल चिड़िया को स्कूल के अध्यापक आदि से छिपाकर अपने साथ रखकर उसकी सेवा करता है. जिसे बाद में अर्जुन मार डालता है. यानी कि शाय को इतना कोमल हृदय वाला बालक बताया है. नाटक के शिक्षक मुरली उसका पक्ष लेते रहते हैं.पर फिल्म के अंत में शाय जो कदम उठाता है, वह कई भयानक सवाल उठाता है. पर फिल्मकार ने अंत में ‘लड़कों को पुरूष बनने के लिए कानून के बल पर अनुशासित होने की जरुरत है.’का सशक्त संदेश दिया है.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाह तो शाय का किरदार निभाने वाले अभिनेता अली हजी बाल कलाकार के तौर पर ‘फना’ और ‘पार्टनर’में अभिनय कर चुके हैं.पर इस फिल्म में किशोर वय के शाय के किरदार की जटिलताओं को गहराई से जीते हुए परदे पर पेशकर उत्कृष्ट अभिनेता होने का परिचय दिया है. नकारात्मक पात्र अर्जुन को मोहम्मद अली मीर ने शिद्दत से जिया है.नाटक के शिक्षक मुरली के किरदार में कुणाल कपूर ने शानदार अभिनय किया है. पिया के किरदार में मुस्कान जाफरी अपना प्रभाव छोड़ जाती हैं.बाकी कलाकार भी ठीक-ठाक हैं.

जो माता पिता अपने बच्चों को उत्कृष्ट शिक्षा दिलाने के लिए बोर्डिंग स्कूल में भेजकर अपनी इतिश्री समझ लेना चाहते हैं, उन्हें यह फिल्म जरुर देखनी चाहिए.

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क्या है 2 बहनों का अनोखा मीटू

पिछले कुछ समय में देशविदेश की बहुत सी नामचीन औरतों ने मर्दों द्वारा सताए जाने के बरसों पुराने रिश्तों के गड़े मुरदे उखाड़े तो यह एक मुहिम बन गई जिसे मीटू का नाम दिया गया और उन औरतों की इस बेबाकी के लिए समाज द्वारा उन का हौसला भी बढ़ाया गया. मगर क्या मीटू का यही एक विकृत रूप हो सकता है? क्या कोई औरत किसी दूसरी औरत के साथ मीटू जैसा कुछ नहीं कर सकती है?

फर्ज कीजिए अगर कोई औरत दूसरी औरत के सैक्सुअल रिलेशंस की पोल खोलने की धमकी दे और ऐसा न करने के एवज में उसे ब्लैकमेल करे और पीडि़ता सब को यह बात बता दे तो क्या उसे भी मीटू के दायरे में नहीं लाना चाहिए?

एक खुलासा

ऐसा ही कुछ खुलासा भारत की एक नामचीन खिलाड़ी ने किया है, जो रेसिंग ट्रैक पर तो फर्राटा भरते हुए दौड़ती है, पर मन में एक भारी बोझ लिए हुए, जो उस के किसी अपने ने ही उस पर लादा है.

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यह दर्द है 100 मीटर में राष्ट्रीय रिकौर्ड बनाने वाली और एशियाई खेलों में 2 सिल्वर मैडल जीत चुकी स्टार महिला धावक 23 साल की दुती चंद का जो भारत की अब तक की तीसरी ऐसी महिला खिलाड़ी हैं, जिन्होंने 2016 के रियो ओलिंपिक खेलों के 100 मीटर के इवेंट में क्वालीफाई किया था. उन्होंने हाल ही में खुलासा किया कि वे समलैंगिक हैं. उन के पिछले 3 साल से एक लड़की के साथ संबंध हैं.

ओडिशा की रहने वाली दुती चंद ने 19 मई, 2019 को इस सिलसिले में भुवनेश्वर में एक प्रैस कौन्फ्रैंस में बताया, ‘‘जब सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 पर अपना फैसला सुनाया तब हम ने फैसला किया कि अब एकसाथ जिंदगी बिताने में किसी तरह का खतरा नहीं है. हम ने फैसला किया कि हम शादी करेंगी और खुद का एक छोटा सा परिवार बसाएंगी.

‘‘वह लड़की मेरे शहर की है और उसे भी खेल पसंद है. उस ने मेरे बारे में पढ़ा था कि मुझे खेल में अपना कैरियर बनाने के लिए कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. उस ने मुझे से कहा था कि वह मेरी कहानी से प्रेरित हुई है. इस तरह से हमारी मुलाकात हुई थी.’’

अपनी उस साथी का नाम न बताते हुए दुती चंद ने माना कि उन्होंने समलैंगिक होने की जानकारी को इसलिए सार्वजनिक किया, क्योंकि उन्हें अपनी जिंदगी को अपने हिसाब से जीने का हक है. वे जो कर रही हैं, वह कोई अपराध नहीं है. यह उन की जिंदगी है और वे इसे जैसे चाहें वैसे जी सकती हैं.

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दुती चंद ने आगे बताया, ‘‘मैं अभी लोगों की नजरों में हूं, क्योंकि मैं अपने देश के लिए खेल रही हूं, लेकिन खेल से अलग होने के बाद भी मुझे जिंदगी जीनी है.’’

मामला हुआ पेचीदा

दुती चंद ने यह हिम्मत भरा खुलासा तो कर दिया, पर इसे उजागर करने की वजह कुछ और ही थी. 21 मई, 2019 को दोबारा प्रैस कौन्फ्रैंस कर के दुती चंद ने बताया कि उन्होंने यह राज अपनी बड़ी बहन सरस्वती के चलते खोला है, क्योंकि वे उन्हें ब्लैकमेल कर के क्व25 लाख की मांग कर रही थीं.

दुती चंद ने कहा, ‘‘मेरे परिवार में मेरी बड़ी बहन सरस्वती का काफी दबदबा है. उन्होंने मेरे बड़े भाई को घर से बाहर कर दिया, क्योंकि उन्हें उस की पत्नी पसंद नहीं थी. उन्होंने मुझे धमकी दी है कि मेरे साथ भी ऐसा ही होगा. लेकिन मैं भी बालिग हूं जिस की निजी आजादी है, इसलिए मैं ने इस रिश्ते को उजागर करने का फैसला किया.’’

दूसरी तरफ दुती चंद की बड़ी बहन सरस्वती ने बताया, ‘‘मैं बहुत ही दुख के साथ कह रही हूं कि दुती ने जो फैसला लिया है, वह उस का अपना नहीं है. उस की पार्टनर लड़की और उस के परिवार ने दुती पर शादी के लिए दबाव डाला और ब्लैकमेल किया है. ये सब दुती की जायदाद और पैसा हड़पने के लिए किया गया है. दुती की जिंदगी और जायदाद खतरे में है, इसलिए मैं सरकार से उस की हिफाजत की गुहार लगाती हूं. मेरी बहन का ध्यान खेल से भटकाने के लिए उसे जाल में फंसाया गया है.

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‘‘वह बालिग है. यह उस का फैसला है कि वह लड़के से शादी करे या लड़की से, लेकिन दुती पर ये सब कहने के लिए दबाव डाला गया है. वरना शादी के बारे में बाद में चर्चा की जा सकती थी.’’

सरस्वती मानती हैं, ‘‘जब कोई बच्चा आगे बढ़ता है, तो उस के परिवार वाले खुश होते हैं. उन की समाज में इज्जत बढ़ती है और लोग मातापिता को भी बधाई देते हैं. इस के उलट अगर कोई बच्चा गलत काम करता है तब सिर्फ परिवार ही उस की जिम्मेदारी लेता है.’’

इतना ही नहीं, दुती चंद की मां अखूजी ने एक समाचार एजेंसी को बताया कि दुती एक लड़की से शादी करना चाहती है. वह लड़की मेरी भानजी की बेटी है, इसलिए वह मेरी पोती हुई. ऐसे में दुती उस लड़की के लिए मां जैसी हुई. इस रिश्ते को कैसे स्वीकारा जा सकता है?

अब आगे यह मामला कोई भी मोड़ ले, लेकिन एक इंटरनैशनल लैवल की खिलाड़ी का अपनी बड़ी बहन पर यों इलजाम लगाना चौकाने वाला है, पर साथ ही यह सवाल भी खड़ा करता है कि अगर दुती चंद को वाकई उस की बड़ी बहन ने बदनाम करने की साजिश रची है, तो महिला आयोग इस पर क्या कदम उठाएगा?

अच्छे संबंध और खुशी का क्या है कनैक्शन

अनुभव को नया-नया मैनेजर बनाया गया था. अब उस की जिंदगी में एक ही चीज महत्त्वपूर्ण रह गई थी और वह था काम. इस के सिवा वह कहीं अपना वक्त जाया नहीं करता. यहां तक कि रिश्तों को संभालने या दोस्तों के साथ हंसीमजाक भी नहीं. वह  सुबह औफिस चला जाता और पूरा दिन फाइलों में गुम रहता. देर रात घर लौटता. तब तक उस के बच्चे सो चुके होते. पत्नी से भी केवल काम की बातें करता. बाकी समय अपने मोबाइल या लैपटौप में बिजी रहता. समय के साथ उस के जीवन में हर तरफ से उदासीनता पसरती चली गई. औफिस कुलीग्स भी उस से कटने लगे. पत्नी से झगड़े बढ़ने लगे. खुद बहुत चिडि़चिड़ा रहने लगा. इतना चिड़चिड़ा रहने लगा कि बच्चों का मस्ती करते हुए चीखनाचिल्लाना भी बरदाश्त नहीं कर पाता और उन पर हाथ उठा देता. अकसर बीमार भी रहने लगा.

एक दिन अनुभव के एक डाक्टर दोस्त ने उसे अच्छे संबंधों की आवश्यकता और मानसिक खुशी के सेहत पर पड़ने वाले असर के बारे में विस्तार से जानकारी दी. उसे जीवन जीने का सही तरीका सिखाया. तब अनुभव को भी समझ में आ गया कि रिश्तों से कट कर वह कभी आगे नहीं बढ़ सकता, समयसमय पर पौधों की तरह रिश्तों को प्यार और विश्वास के पानी से सींचते रहना जरूरी है. इन बातों को ध्यान में रखेंगे तो रिश्ते और जिंदगी में प्यार बना रहेगा:

जिंदगी को बहुत सीरियसली न लें

कुछ लोग जिंदगी को इतना सीरियसली ले लेते हैं कि वे जीवन में छोटेमोटे उतारचढ़ाव को भी स्वीकार नहीं कर पाते और डिप्रैशन में चले जाते हैं, जबकि व्यक्ति का व्यक्तित्व ऐसा होना चाहिए कि बड़ी से बड़ी आंधी भी मन को विचलित न कर सके. लोगों से उलझने के बजाय बातों को हंसी में टालना सीखना चाहिए. इस से रिश्तों में कभी गांठ नहीं पड़ती और आप के अंदर की प्रसन्नता भी कायम रहती है.

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थैंकफुलनैस जरूरी

अध्ययनों के मुताबिक आप जिन बातों के लिए दूसरों के शुक्रगुजार हैं उन्हें एक डायरी या मोबाइल में लिख लेने से मन में अलग सी खुशी पैदा होती है. ऐसा करना आपसी रिश्तों के साथसाथ सेहत के लिए भी काफी लाभकारी होता है. कई दफा हम किसी शख्स की उन बातों पर फोकस करने लगते हैं जब उस ने हमारे साथ बुरा किया. इस से हमारा व्यवहार भी उस के प्रति कठोर हो जाता है. इस से रिश्ते में कड़वाहट आने की संभावना बढ़ जाती है. ऐसे में लिखी उन पुरानी बातों को पढ़ें जब उस ने आप की मदद की थी, कुछ अच्छा किया था. इस से आप के दिमाग को बहुत सुकून मिलेगा और आप ज्यादा संतुलित और मैच्योर तरीके से उस परिस्थिति से निबट पाएंगे.

‘पर्सनल रिलेशनशिप’ नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक वैसे कपल्स जो अपनी रिलेशनशिप में एकदूसरे के प्रति थैंकफुलनैस कायम रखते हैं उन में तलाक कम होते हैं.

गहरे रिश्ते जरूरी

जब आप किसी के साथ बिना किसी छलकपट के दिल से जुड़े होते हैं, उस के सुखदुख को अपना महसूस करते हैं और अपने दिल की हर बात उस से शेयर करते हैं, तो आप का मन बहुत हलका रहता है. खुश रहने के लिए इस तरह के गहरे रिश्ते बनाने जरूरी हैं, क्योंकि जब आप कुछ लोगों के साथ गहराई से जुड़े होते हैं तो वे आप के गम को आधा और खुशियों को दोगुना कर देते हैं. ऐसे रिश्ते में औपचारिकता नहीं वरन अपनापन होता है.

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फर्क

भाग-1

कहानी- दिनेश पालीवाल

इरा को स्कूल से लौटते हुए देर हो गई थी. बस स्टाप पर इस वक्त तक भीड़ बहुत बढ़ गई थी. पता नहीं बस में चढ़ भी पाएगी या नहीं… कंधे पर भारी बैग लटकाए, पसीना पोंछती स्कूल के फाटक से निकल वह तेजी से बस स्टाप की ओर चल दी. यह बस छूट गई तो पूरे 1 घंटे की देर हो जाएगी… और 1 घंटे की देर का मतलब, पूरे घर की डांटफटकार सुननी पड़ेगी.

नौकरी के वक्त इरा ने जो प्रमाणपत्र लगाए थे उन में अनेक नाटकों में भाग लेने के प्रमाणपत्र भी थे और देश के नामीगिरामी नाटक निर्देशकों के प्रसिद्ध नाटकों में काम करने का अनुभव भी… प्रधानाचार्या ने उसी समय कह दिया था, ‘हम आप को रखने जा रहे हैं पर आप को यहां अंगरेजी पढ़ाने के अलावा बच्चों को नाटक भी कराने पड़ेंगे और इस के लिए अकसर स्कूल समय के बाद आप को घंटे दो घंटे रुकना पड़ेगा. अगर मंजूर हो तो हम अभी नियुक्तिपत्र दिए देते हैं.’

‘नाटक करना और नाटक कराना मेरी रुचि का काम है, मैडम…मैं तो खुद आप से कह कर यह काम करने की अनुमति लेती,’ बहुत प्रसन्न हुई थी इरा.

इंटरव्यू दिलवाने पति पवन संग आए थे, ‘जवाब ठीक से देना. तुम तो जानती हो, हमारे लिए तुम्हारी यह नौकरी कितनी जरूरी है.’

इरा को वह दिन अनायास याद आ गया था जब पवन अपने मातापिता के साथ उसे देखने आए थे. मां ने साफ कह दिया था, ‘लड़की सुंदर है, यह तो ठीक है पर अंगरेजी में प्रथम श्रेणी में एम.ए. है, हम इसलिए आप की बेटी को पसंद कर सकते हैं…लड़की को कहीं नौकरी करनी पड़ेगी. इस में तो आप लोगों को एतराज न होगा?’

कहा तो मां ने था पर बात शायद पवन की थी, जो वे लोग घर से ही तय कर के आए होंगे. शादीब्याह अब एक सौदे के ही तहत तो किए जाते हैं. इरा के मांबाप ने हर लड़की के मांबाप की तरह खीसें निपोर दी थीं, ‘शादी से पहले लड़की पर मांबाप का हक होता है, उसे उन की इच्छानुसार चलना पड़ता है. पर शादी के बाद तो सासससुर ही उस के मातापिता होते हैं. उन्हीं की इच्छा सर्वोपरि होती है. आप लोग और पवन बाबू जो चाहेंगे, इरा वह हंसीखुशी करेगी. उसे करना चाहिए. हर बहू का यही धर्म होता है. इरा जरूर अपना धर्म निबाहेगी.’

बहू का धर्म, बहू के कर्तव्य, बहू के काम, बहू की मर्यादाएं, बहू के चारों ओर ख्ंिची हुई लक्ष्मण रेखाएं, बहू की अग्निपरीक्षाएं, बहू का सतीत्व, पवित्रता, चरित्र, घरपरिवार चलाने की जिम्मेदारियां… न जाने कितनी अपेक्षाएं बहुओं से की जाती हैं.

इंटरव्यू के बाद इरा को कुछ समय एक ओर कमरे में बैठने को कह दिया गया था. इस बीच किसी क्लर्क को बुलाया गया था. स्कूल के पैड पर जल्दी एक पत्र टाइप कर के मंगवाया गया था. प्रधानाचार्या ने वहीं हस्ताक्षर कर दिए थे और उसे बुला कर नियुक्तिपत्र थमा दिया था, ‘बधाई, आप चाहें तो कल से ही आ जाएं काम पर…’

धन्यवाद दे कर वह खुशी मन से बाहर आई तो पवन बड़ी बेचैनी से उस की प्रतीक्षा कर रहे थे. पूछा, ‘कैसा रहा इंटरव्यू?’

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जवाब में इरा ने नियुक्तिपत्र पवन को थमा दिया. एक सांस में पढ़ गए उसे पवन और एकदम खिल गए, ‘अरे, यानी 10 हजार की यह नौकरी तुम्हें मिल गई?’

‘इस पत्र से तो यही जाहिर हो रहा है,’ इरा इठला कर बोली थी, ‘पर जानते हो, अंगरेजी विषय की प्रथम श्रेणी उतनी काम नहीं आई जितने काम मेरे नाटक आए… नाटकों का अनुभव ज्यादा महत्त्व का रहा.’

सुन कर चेहरा मुरझा सा गया पवन का.

इरा को याद हो आया…शादी के बाद जब वह ससुराल आई थी और उस ने अपनी शैक्षणिक योग्यता के सारे प्रथम श्रेणी के प्रमाणपत्र पवन को दिखाए तो साथ में नाटकों के लिए मिले श्रेष्ठता के पुरस्कार और प्रमाणपत्र भी दिखाए थे. उन्हें बड़ी अनिच्छा से पवन ने एक ओर सरका दिया था, ‘अब यह नाटकसाटक सब भूल जाओ. ंिंजदगी नाटक नहीं है, इरा, एक ठोस हकीकत है. शादी के बाद जिंदगी की कठोर सचाइयों को जितनी जल्दी तुम समझ लोगी उतना ही अच्छा रहेगा तुम्हारे लिए… पापा रिटायर होने वाले हैं. मेरी अकेली तनख्वाह घर का यह भारी खर्च नहीं चला सकती. बहनों की शादी, भाइयों की पढ़ाईलिखाई… बहुत सी जिम्मेदारियां हैं हमारे सामने… तुम्हें जल्दी से जल्दी अपनी अंगरेजी की एम.ए. की डिगरी के सहारे कोई अच्छी नौकरी पकड़नी होगी…अगर तुम हिंदीसिंदी में एम.ए. होतीं तो मैं हरगिज तुम से शादी नहीं करता, भले ही तुम मुझे पसंद आ गईं होतीं तो भी… असल में मुझे ऐसे ही कैरियर वाली बीवी चाहिए थी जो मुझ पर बोझ न बने, बल्कि मेरे बोझ को बंटाए, कम करे…’

बस स्टाप की भीड़ बढ़ती जा रही थी. नाटक का पूर्वाभ्यास कराने में उस की चार्टर्र्ड बस निकल गई थी. अब तो सामान्य बस में ही घर जाना पड़ेगा.

घर के नाम पर ही उस के पूरे शरीर में एक फुरफुरी सी दौड़ गई. पवन अब तक लौट आए होंगे. चाय के लिए उस की प्रतीक्षा कर रहे होंगे. देवर हाकी के मैदान से लस्तपस्त लौटा होगा, उसे दूध गरम कर के देना भी इरा की ही जिम्मेदारी है. बड़ी ननद ब्यूटी पार्लर का काम सीख रही है, वहां से लौटी होगी. वह भी इरा का इंतजार कर रही होगी. बेटे का आज गणित का पेपर था. वह भी इंतजार कर रहा होगा.

सहसा इरा को याद आया कि आज तो बेटे सुदेश का जन्मदिन है. उसे हर हाल में जल्दी घर पर पहुंचना चाहिए था पर प्रधानाचार्या ने एक व्यंग्य नाटक के सिलसिले में उसे रोक लिया था. इरा ने बहुत सोचसमझ कर हरिशंकर परसाई की एक व्यंग्य रचना ‘मातादीन इंस्पेक्टर चांद पर’ कहानी का नाट्यरूपांतर किया और बच्चों को तैयार कराना शुरू कर दिया. चांद के लोग सीधेसादे हैं. वहां भ्रष्टाचार नहीं है. पृथ्वी के बारे में चांद के निवासियों को पता चलता है कि वहां पुलिस सब से आवश्यक है. चांद के निवासी पृथ्वी से एक इंस्पेक्टर मातादीन को चांद पर लिवा ले जाते हैं. वे चाहते हैं कि चांद पर भी पृथ्वी की तरह एक पुलिस विभाग बनाया जाए जिस से भविष्य में अगर कोई अपराध हो तो उसे काबू किया जा सके.

इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर भ्रष्टाचार की ऐसी गंगा बहाते हैं कि दर्शक लोटपोट हो जाते हैं. बहुएं दहेज के कारण जलाई जाने लगीं. जेबकतरी, चोरी, हत्या, डकैती, राहजनी, लूटमार, आतंकवाद, अपहरण, वेश्याबाजार आदि इंस्पेक्टर मातादीन की कृपा से चांद पर होने लगे और चारों ओर त्राहित्राहि मच गई.

प्रधानाचार्या को जब यह कहानी इरा ने सुनाई तो वह बहुत खुश हुईं, ‘अच्छी कहानी है, इसे जरूर करो.’

इंस्पेक्टर मातादीन के लिए उन्होंने कक्षा 10 के एक विद्यार्थी मुकुल का नाम सुझा दिया.

‘मुकुल क्यों, मैम…?’ इरा ने यों ही पूछ लिया. इरा के दिमाग में कक्षा 11 का एक लड़का था.

‘उस के पिता यहां के बड़े उद्योगपति हैं और उन से हमें स्कूल के लिए बड़ा अनुदान चाहिए. उन के लड़के के सहारे हम उन्हें खुश कर सकेंगे और अनुदान में खासी रकम पा लेंगे.’

मुकुल में प्रतिभा भी थी. इंस्पेक्टर मातादीन का अभिनय वह बहुत कुशलता से करने लगा था. अपना पार्र्ट उस ने 2 दिन में रट कर तैयार कर लिया था. उसी के पूर्वाभ्यास में इरा को आज देर हो गई थी.

मन ही मन झल्लाती, कुढ़ती, परेशान, थकीऊबी इरा, बस की प्रतीक्षा करती बस स्टाप पर खड़ी थी.

‘‘गुड ईवनिंग, मैम…’’ सहसा उस के निकट एक महंगी कार आ कर रुकी और उस में से इंस्पेक्टर मातादीन का किरदार निभाने वाला लड़का मुकुल बाहर निकला, ‘‘गाड़ी में पापा हैं, मैम… प्लीज, हमारे साथ चलें आप… पीछे, पापा बता रहे हैं कहीं एक्सीडेंट हो गया है, वहां लोगों ने जाम लगा दिया है. गाडि़यां नहीं आ रहीं. आप को बस नहीं मिलेगी. हम पहुंचा देंगे आप को.’’

एक पल को हिचकती हुई सोचती रही इरा, जाए या न जाए? तभी गाड़ी से मुकुल के पिता बाहर निकल आए. उन्हें बाहर देखते ही पहचान गई इरा, ‘‘अरे आप…मुकुल, आप का बेटा है…?’’ एकदम चहक सी उठी इरा. अरसे बाद अपने सामने शरदजी को देख कर उसे जैसे आंखों पर विश्वास ही न हुआ हो.

‘‘बेटे ने जब आप का नाम बताया और कहा कि हरिशंकर परसाई की व्यंग्य कथा ‘इंस्पेक्टर मातादीन चांद पर’ को नाटक के रूप में प्रस्तुत कर रही हैं तो विश्वास हो गया कि हो न हो, यह इरा मैम आप ही होंगी जिन्हें हम ने कभी अपने नाटक में नायिका के रूप में प्रस्तुत किया था… अपने-

आप को रोक नहीं पाया. बेटे को    लेने के बहाने मैं स्वयं आया, शरदजी बहुत खुश थे. आगे बोले, ‘‘प्लीज, इराजी… आप संकोच छोड़ें और हमारे साथ चलें… हम आप को घर छोड़ देंगे…’’

इरा दुविधा में फंसी पिछली सीट पर बैठी रही. बेटे के लिए कहीं से कोई उपहार खरीदे या नहीं? गाड़ी रुकवाना उचित लगेगा या नहीं? कहीं से केक लिया जा सकता है?… उस ने अपने पर्स में रखे नोट गिने… कुछ कम लगे. सकुचा कर बैठी रही.

मुकुल अपने पापा की बगल में आगे की सीट पर बैठा था. सहसा इरा ने उस से कहा, ‘‘मुकुल, जरा पापा से कहो, कहीं गाड़ी रोकें… मेरे बेटे का जन्मदिन है आज… उस के लिए कहीं से कोई चीज ले लूं और मिल जाए तो केक भी…’’

शरदजी ने गाड़ी रोकते हुए कहा, ‘‘अरे, आप भी कैसी मां हैं, इराजी? इतनी देर से आप साथ चल रही हैं और यह जरूरी बात बताई ही नहीं.’’

उन्होंने गाड़ी एक आलीशान शापिंग कांप्लेक्स की पार्किंग में पार्क की और इरा को ले कर चले तो सहम सी गई इरा. बोली, ‘‘यहां तो चीजें बहुत महंगी होंगी.’’

‘‘उस सब की आप फिक्र मत करिए. आप तो सिर्फ यह बताइए कि आप के बेटे को पसंद क्या आएगा?’’ हंसते हुए साथ चल रहे थे शरदजी.

कंप्यूटर गेम का सेट दिलवाने पर उतारू हो गए वे, ‘‘अरे भाई यह सब हमारा क्षेत्र है… हम यही सब डील करते हैं… आप का बेटा आज से कंप्यूटर गेम्स का आनंद लेगा…’’

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इरा की बेचैनी बढ़ गई, उस के पर्स में तो इतने रुपए भी नहीं थे.

मौनसून में इन 4 टिप्स से सेफ रहेंगी ज्वैलरी

हर शादी या पार्टी में आपके लुक पर चार-चांद लगाती है ज्वैलरी. साथ ही आपके लुक को भी कम्पलीट करती है. वहीं मौनसून में भी आप किसी पार्टी या शादी का हिस्सा बनते होंगे. पर क्या आप अपनी ज्वैलरी का ख्याल रखते है. गरमियों में ज्वैलरी का ख्याल रखना आसान है लेकिन जब बाद मौनसून की आती है तो ज्वैलरी पर का ख्याल रखना जरूरी हो जाता है. मौनसून में नमी से ज्वैलरी का ख्याल न रखने से वह खराब हो सकती हैं, इसीलिए आज हम आपको कुछ टिप्स बताएंगे जिससे आपकी ज्वैलरी मौनसून में भी चमकती रहेगी.

1. ज्‍वैलरी को क्लीन रखना है जरूरी  

ज्वैलरी की चमक को बनाए रखने के लिए उसे अच्‍छी तरह से साफ करके और सुखाकर रखें. गले का हार हो, अंगूठी, ब्रेसलेट, ईयर रिंग या फिर कोई भी ज्वैलरी आइटम हो, आपको उसे किसी क्रीम, लोशन, परफ्यूम और आयल या पानी से साफ करके ही रखना चाहिए. ज्वैलरी को पहनने से पहले उस पर क्रीम या परफ्यूम लगाना ना भूलें. सभी ज्वैलरी को अलग-अलग बॉक्‍स में रखें ताकि उनका रंग एक-दूसरे की वजह से खराब ना हो. आप चाहें तो एक बड़े से बॉक्‍स में अलग-अलग ज्वैलरी के छोटे बाक्‍स भी रख सकती हैं.

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2. ध्‍यान से रखें ज्‍वैलरी

अपनी फैशन ज्वैलरी को किसी सुरक्षित जगह पर ही रखें. गले के हार को उसके हूक्‍स में डालकर रखें और कोई भी ज्वैलरी एक-दूसरे के साथ चिपके ना. कोई भी कीमती ज्वैलरी तो बिलकुल भी एक-दूसरे से स्‍पर्श नहीं करनी चाहिए वरना उस पर जंग लग सकती है.

3. पहनने के बाद जरूर करें साफ

कभी-कभी ज्वैलरी पहनने के बाद अंगूठी, ईयर रिंग और गले का हार पहनने के बाद उस पर साबुन, तेल या परफ्यूम लग जाता है. इसकी वजह से ज्वैलरी पर कालापन आ सकता है या उनकी चमक जा सकती है. इससे बचने के लिए ज्वैलरी पहनने के बाद उसे साफ करना बिलकुल ना भूलें.

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4. ज्वैलरी पहनकर सोने की ना करें गलती

सोने से पहले हमेशा अपनी ज्वैलरी उतार दें. अगर आप सोने से पहले ज्वैलरी नहीं उतारती हैं तो आपकी ये लापरवाही ज्वैलरी को खराब भी कर सकती है. इस वजह से ज्वैलरी के टूटने का खतरा भी बना रहता है. वहीं ज्वैलरी पहनकर सोन पर आपकी स्किन स्‍क्रैच पड़ सकते हैं.

मौनसून में ज्वैलरी को नमी में रखने की गलती कभी न करें, अगर आपकी आर्टिफिशल ज्वैलरी है तो उसे कौटन में पैक करके रखें वरना ये मौनसून में काली पड़नी शुरू हो जाएगी.

हेयरस्टाइल ट्राय करने के लिए ये 4 टिप्स से बाल रहेंगे हेल्दी

बाल खूबसूरत हों, चेहरे के अनुकूल कटे हों, तो पर्सनैलिटी में चार चांद लगा देते हैं. मगर बाल खिलेखिले दिखें इसके लिए हम कितनी कोशिश करते हैं, लेकिन फिर भी डेली लाइफस्टाइल में केयर न होने के कारण हम केयर नही कर पाते. पर आज हम आपको कुछ ऐसे टिप्स बताएंगे, जिससे हेयरस्टाइल करते समय आपके बाल हेल्दी रहेंगे. आइए जानते हैं हेयर केयर से जुड़ी कुछ खास टिप्स…

1. हेयर सीरम का करें इस्तेमाल

बालों को खिलाखिला रखने के लिए तेल की जगह हेयर सीरम लगाएं. यह कम चिपचिपा होता है, जिससे बाल खिले-खिले लगते हैं. रूखे, सूखे और खराब बालों के लिए हेयर सीरम एक जादुई छड़ी के समान है. हेयर सीरम में सिलिकौन होता है, जो बालों में समा कर उन्हें चमकीला दिखाता है, साथ ही इसे लगाने से सूर्य की यूवी किरणें, प्रदूषण और वातावरण की नमी बालों पर कोई बुरा असर नहीं डाल पाएगी.

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हेयर सीरम को लगाने से बाल सुलझे हुए और स्वस्थ दिखते हैं. हेयर सीरम को बालों की लंबाई के अनुसार कवर कर के लगाना चाहिए. इसे जड़ों में नहीं लगाया जाता वरना बाल औयली हो जाते हैं. अच्छा रिजल्ट पाने के लिए सीरम गीले बालों में ही लगाना चाहिए.

2. ब्लो आउट या आयरनिंग के लिए करें ड्राई शैंपू का इस्तेमाल

अगर आप अपना ब्लो आउट या आयरनिंग ज्यादा देर तक अच्छा रखने की कोशिश कर रही हों तो ऐसी स्थिति में ड्राई शैंपू का इस्तेमाल करना फायदेमंद होगा. ड्राई शैंपू बालों और स्कैल्प से चिपचिपापन और औयल खींच लेता है जिस से ऐसा लगता है जैसे आप ने बाल अभीअभी धोए हों. मगर ध्यान रखें कि ड्राई शैंपू पानी से बाल धोने का औप्शन नहीं है, बल्कि बाल धोने का समय बढ़ाने के लिए या फिर जब आप जल्दी में हों सिर्फ तभी इसे इस्तेमाल करें.

ड्राई शैंपू का सब से बड़ा फायदा यह है कि पानी से बाल धोए बिना आप स्वच्छ और सुगंधित बाल पा सकती हैं. इस के अलावा ड्राई शैंपू का उपयोग करने के बाद बालों को अच्छा वौल्यूम मिलता है, जिस से आप किसी भी प्रकार का हेयरस्टाइल कैरी कर सकती हैं. ड्राई शैंपू स्प्रे करने के बाद बालों में सफेद पाउडर रह जाता है. मगर अपनी उंगलियों से कंघी करने के बाद यह भी चला जाता है और आप को मिलते हैं स्वस्थ दिखने वाले बाल बस चंद मिनटों में.

3. फ्लफी इफैक्ट के लिए अपनाएं ये टिप

बालों को शैंपू करने के बाद कंडीशनर लगाएं. जब हल्के सूख जाएं तब जड़ों से सिरों तक मूस लगाएं. पैडल ब्रश की सहायता से ब्लो ड्राई करें. अब एक राउंड थर्मो ब्रिसल ब्रश से धीरेधीरे बालों को स्ट्रेट करें. स्टाइलिंग स्प्रे डालें. फिर छोटेछोटे सैक्शन में बांट कर सैल्फ होल्डिंग थर्मो रोलर्स लगाएं. हीट दे कर 10 मिनट तक सैट करें. रोलर्स हटा कर ब्रश से हलके से वौल्यूम देते हुए बालों को सैट करें. दूर से शाइन स्प्रे करें.

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4. फिनिशिंग टच देने के लिए करें ये ट्राई

घर से बाहर जाते समय अपने सिर को फ्लिप करें और बालों को अच्छी तरह से हिलाएं. इस से भरेभरे से लगते हैं. इस के बाद बालों में हेयरस्प्रे करें. नमी वाले मौसम में हेयर जैल का प्रयोग न करें, क्योंकि यह क्रीमी होती है. इन उत्पादों का प्रयोग करने पर आप का लुक ऐसा दिखेगा जैसे आप ने अभीअभी बालों में औयल मसाज की हो.

आर्टिकल 15 फिल्म रिव्यू: आयुष्मान की एक्टिंग से सजी सामाजिक विषमता पर बेहतरीन फिल्म’’

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताःअनुभव सिन्हा व जी स्टूडियो

निर्देशकः अनुभव सिन्हा

लेखकःअनुभव सिन्हा,गौरव सोलंकी

कलाकारःआयुश्मान खुराना, ईशा तलवार, सयानी गुप्ता, कुमुद मिश्रा, मनोज पाहवा,नसर,अशीश वर्मा, जीशान अयूब खान व अन्य.

अवधिः दो घंटे 11 मिनट

संविधान के आर्टिकल 15 अर्थात अनुच्छेद 15 में डौ.बाबा साहेब आंबेडकर ने साफ साफ लिखा है कि राज्य,किसी नागरिक के विरूद्ध केवल धर्म,मूल वंश,जाति,लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के भी आधार पर विभेद नहीं करेगा.पर यह भेदभाव आज भी समाज में है.‘ एकता में ही शक्ति है’ इसे हम सभी मानते हैं. मगर धर्म ही नहीं जाति की बात आते ही हम सभी इसे भूल जाते हैं. यह कटु सत्य है. मगर फिल्मकार की इस फिल्म की कहानी 2019 की है,कम से कम 2019 में जाति व धर्म को लेकर उस कदर का विभाजन नही है, जिस हद तक का विभाजन फिल्मकार ने अपनी फिल्म ‘‘आर्टिकल 15’’में दिखाया है.

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फिल्मकार अनुभव सिन्हा की फिल्म ‘‘आर्टिकल 15’’ की कहानी का ढांचा 1988 में प्रदर्शित हौलीवुड निर्देशक अलान पारकर  निर्देशित अमरीकन अपराध प्रधान रोमांचक फिल्म ‘‘मिसीसिपी बर्निंग’’ के कथानक से प्रेरित नजर आता है. ‘‘मिसीसिपी बर्निंग’’ को उठाकर उसका भारतीय करण करते हुए उसमें बदायूं के गैंग रैप और उना सहित कुछ घटनाओं और गटर साफ करने वाले बाल्मिकी समाज की कथा को पिरोते हुए फिल्म ‘‘आर्टिकल 15’’ का निर्माण, लेखन व निर्देशन किया है. फिल्म ‘‘मिसीसिपी बर्निंग’’ की कहानी तीन (दो जेविश और एक ब्लैक) गायब पुरूषों से शुरू होती है, जिसमें से दो मारे जाते हैं और एक (ब्लैक) जंगल में छिपा रहा है. फिल्म ‘‘आर्टिकल 15’’ में तीन लड़कियां (दो चचेरी बहने और एक दलित नेता की प्रेमिका गौरा की बहन पूजा) गायब होती हैं, जिसमें से दो (चचेरी बहनों) की लाश पेड़ से लटकी मिलती है और तीसरी (पूजा) लड़की बाद में जंगल में छिपी मिलती है.

कहानीः

दिल्ली में शास्त्री से मतभेद के चलते आईपीएस अधिकारी अयान रंजन( आयुश्मान खुराना) को एडीशनल वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक बनाकर लालगांव पुलिस स्टेशन भेज देते हैं. यूरोप से उच्च शिक्षा हासिल कर वापस लौटे अयान बहुत उत्साहित हैं, वह अपनी प्रेमिका अदिति (ईशा तलवार) से मोबाइल पर संदेश के माध्यम से संपर्क में रहते हैं. यहां पहुंचते हुए रास्ते में जो अनुभव होते हैं, उनके आधार पर वह अदिति को बता देते हैं कि यहां की दुनिया शहरी दुनिया से बहुत अलग है. लालगांव पहुंचकर सब कुछ समझ पाने के पहले ही अयान रंजन को खबर मिलती है कि चमड़ा फैक्टरी में काम करने वाली तीन दलित लड़कियां गायब हैं.पर इलाके के सीओ धर्म सिंह (मनोज पाहवा)इन लड़कियों की गुमशुदी की एफआर आई तक दर्ज नहीं करता. धर्म सिंह और जाटव (कुमुद मिश्रा), अयान रंजन को बताते हैं कि उनके यहां ऐसा ही होता है. लड़कियां व लड़के गायब होते है, फिर खुद ब खुद वापस आ जाते हैं. कई बार  लड़कियों के माता पिता खुद ब खुद औनर किलिंग कर पेड़ से लटका देते हैं. दूसरे दिन एक पेड़ से दो दलित लड़कियों की लटकी हुई लाशें मिलती है. सीओ धर्मसिंह इसे औनर किंलिंग की कहानी बता देते हैं कि दोनो चचेरी बहनें थीं और दोनों के बीच समलैंगिक संबंध थे. इसी बात से नाराज होकर इन्हे इनके पिता ने मारकर पेड़ से लटका दिया. पूरा मामला जाति से जोड़ दिया जाता है.

मगर दलित लड़की गौरा (सयानी गुप्ता) व गांव के कुछ लोग अयान रंजन से मिलकर बताते हैं कि इन लड़कियों ने सड़क मरम्मत के काम को करने के लिए ठेकेदार से तीन रूपए बढ़ाने के लिए कहा था. ठेकेदार ने ऐसा नही किया,तो इन लड़कियों के साथ कुछ अन्य लड़कियां ने दूसरे गांव की चमड़े की फैक्टरी में काम करने लगी थी. यह बात ठेकेदार को पसंद नहीं आयी. इसके अलावा गौरा बताती है कि तीसरी गायब लड़की उसकी बहन पूजा है. अब अयान रंजन अपनी तरफ से पुलिस बल को पूजा की तलाश करने के लिए कह देते हैं. अयान रंजन को अहसास होता है कि उनके पुलिस विभाग के कुछ लोग ही गलत बात बयां कर रहे हैं. धर्म सिंह डौक्टर पर गलत पोस्टमार्टम रिपोर्ट बनाने के लिए कहता है, जबकि हकीकत में गैंप रैप हुआ होता है. जब अयान रंजन खुद जांच में दिलचस्पी लेते हैं तो पता चलता है कि जातिवाद के नाम पर फैलायी गयी इस दल दल में कौन किस हद तक फंसा हुआ है.

इधर धर्म सिंह लगातार अपनी तरफ से अयान रंजन पर गैंगरैप के इस केस को औनर कीलिंग के नाम पर बंद करने के लिए दबाव डालता रहता है. पर अयान अपने तरीके से जांच करता रहता है. वह दलित नेता निषाद (जीशान अयूब खान) से भी मिलते हैं. बीच में हिंदू धर्म अनुयायी महंत का जिक्र होता है और महंत का दूसरे दलित नेता के साथ मिलकर निषाद के खिलाफ एकता रैली निकाली जाती है. आगजनी होती है.

उधर जब अयान की तरफ से ठेकेदार को गिरफ्तार करने की शुरूआत होती है, तो धर्म सिंह उस ठेकेदार को गोली मार देते हैं और अयान से कहते है कि ठेकेदार का इनकाउंटर करना पड़ा. पर सच सामने आ जाता है कि दोनों लड़कियों का गैंगरेप ठेकेदार के साथ ही सीओ धर्म सिंह व दूसरे पुलिस के सिपाही निहाल सिंह ने किया था. इस बीच धर्म सिंह राजनेता की मदद से सीबीआई की जांच बैठवा देता है. सीबीआई के अफसर अयान को सस्पेंड कर देते हैं. निहाल सिंह ट्रक के नीचे आकर आत्महत्या कर लेता है. अयान रंजन पर अपनी जांच रिपोर्ट सबूत के साथ सीबीआई के साथ मदन शास्त्री व मुख्यमंत्री को दे देते हैं. अंततः धर्मसिंह को ग्यारह साल की सजा हो जाती है.

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लेखनः

यथार्थ परक फिल्म के नाम पर फिल्म को जरुरत से ज्यादा बोझिल कर दिया गया है. फिल्म की गति कई जगह बहुत धीमी हो जाती है. फिर भी फिल्म अंत तक दर्शकों को बांधकर रखती है व दर्शक सोचने पर मजबूर भी होता है. मगर फिल्म में मनोरंजन का अभाव है. इतना ही नहीं फिल्मकार ने गैंगरैप के मुद्दे को ही गौण कर दिया. फिल्मकार फिल्म में जाति विभाजन की भयावहता तक ही खुद को सीमित रखा है. फिल्म की कहानी जिस छोटे शहर या गांव की जिंदगी दिखायी गयी है, वहां पर जमीन के नीचे गटर नही है. यह फिल्मकार को याद नही रहा.

फिल्म लड़कियों के साथ गैंग रैंप की कहानी हैं, पर फिल्मकार ने इसे जातिगत दलदल की कहानी के रूप में पेश किया है. यूं तो किसी दलित को ‘चमार’जैसे शब्द कहने पर सजा का प्रावधान है, मगर इस फिल्म में ‘चमार’,जाट, पासी, कायस्थ, ठाकुर, क्षत्रिय, ब्राम्हण सहित हर जातिगत शब्द मौजूद हैं. फिल्म में समाजिकता को बरकरार रखने की बात करते हुए सामाजिक विषमता का जो भयावह चेहरा पेश किया गया है, वह यदि यथाथ है, तो अति सोचनीय मुद्दा है. मगर 2019 में हालात ऐसे नही हैं. अब इंसान बिसलरी पानी की बोटल खरीदते समय यह नही पूछता कि बेचने वाली की जाति क्या है? मगर शायद जाति विभाजन के अनुभव  फिल्मकार, कहानीकार या जाति की राजनीति करने वालों के पास ज्यादा है.

फिल्म की कहानी 2019 की है.फिल्म में एक संवाद है कि बिसलरी की बोटल बेचाने वाला पासी है,इसलिए यह पानी वह नहीं पिएंगे. एक किरदार कहता है कि हम तो पासी की परछार्इं से भी दूर रहते हैं. एक किरदार कहता है कि,‘हम चमार हैं और हमारी जाति पासी से भी उच्च है.’अफसोस की बात यह है कि फिल्म में जातिगत यह सारे संवाद पुलिस विभाग में बैठे लोग ही कर रहे हैं.

निर्देशनः

अनुभव सिन्हा ने निर्देशक के तौर पर बेहतरीन काम किया है.कुछ दृश्यों का संयोजन काबिले तारीफ है. ग्रामीण पृष्ठभूमि में सामाजिकता विषमता की क्रूरता को चित्रित करने में अनुभव सिन्हा सफल रहे हैं.

फिल्म के कैमरामैन ईवान मुलिगन अवश्य बधाई के पात्र हैं.उन्होने कुछ दृश्य बड़ी खूबसूरती से फिल्माए हैं. मसलन-पेड़ पर लटकी दो लड़कियों की लाश का दृश्य हो या नंगे बदन गंदे नाले के अंदर जाकर सफाई करने का दृश्य हो.इस तरह के दृश्य दर्शकों को विचलित करते हैं. दलित नेता निषाद (जीशान अयूब खान) के संवाद जरुर चुटीले हैं.

अभिनयः

निडरता के साथ अपने फर्ज के प्रति दृढ़प्रतिज्ञ अयान रंजन के किरदार में आयुश्मान खुराना का शानदार अभिनय है. निषाद के छोटे किरदार में जीशान अयूब खान प्रभाव छोड़ जाते हैं. गौरा के किरदार में सयानी गुप्ता की आंखे बहुत कुछ कह जाती हैं. ईशा तलवार की प्रतिभा को जाया किया गया है. मनेाज पाहवा व कुमुद मिश्रा भी अपने अभिनय के कारण याद रह जाते हैं.

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‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में अब कभी नहीं लौटेंगी ‘दयाबेन’

कौमेडी सीरियल्स में सालों से लोगों के दिल में जगह बनाने वाले सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में लंबे समय से ‘दयाबेन’ यानी दिशा वकानी के वापस लौटने का इंतजार कर रही औडियंस के लिए बुरी खबर है. हाल ही में खबरें थीं कि ‘दयाबेन’ के कैरेक्टर में नजर आने वाली दिशा वकानी दोबारा सीरियल में वापसी करेंगी, लेकिन अब सीरियल के प्रौड्यूसर ने उनके सीरियल में वापस न आने की खबरों पर मोहर लगा दी है.

प्रोड्यूसर ने किया खुलासा

 

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हाल ही में आई रिपोर्ट्स की माने तो अब दिशा वकानी ‘दयाबेन’ के तौर पर कभी भी शो का हिस्सा नहीं बन पाएगी. ये बात सीरियल के प्रोड्यूसर असित मोदी ने एक इंटरव्यू के दौरान की. इंटरव्यू में असित मोदी ने बताया है कि, अब वो ज्यादा दिन दिशा का इंतजार नहीं कर सकते हैं.

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असित के मुताबिक, अब वह दिशा को शो से बाहर कर चुके हैं. ऐसे में अब दिशा शो में कभी नजर नहीं आएंगी. वो बात अलग है कि उन्होंने इस बात का खुलासा नहीं किया है कि, ‘दयाबेन’ का किरदार आगे जारी रखा जाएगा या नहीं.

‘दयाबेन’ के फैंस को होगा दुख

 

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इतना ही नहीं अभी इस बात का भी खुलासा नहीं हो पाया है कि किसको ‘दयाबेन’ के रोल के लिए अप्रोच किया गया है. अपने इस बयान के साथ ही असित ने इस बात पर मोहर लगा दी है कि अब दिशा वापसी तो नहीं करेंगी. ऐसे में अब आप ‘दयाबेन’ के रूप में दिशा वकानी को जरूर मिस करने वाले हैं.

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बता दें, ‘दयाबेन’ यानी दिशा वकानी ने  साल नवंबर 2015 में शादी की थी, जिसके बाद नवंबर 2017 में उन्होंने अपने पहले बच्चे को जन्म दिया था और तब से वह मैटरनिटी लीव पर थीं.

अर्जुन के बर्थडे पर मलाइका ने किया प्यार का इजहार, फोटो वायरल…

बौलीवुड की सुर्खियों में रहने वाली जोड़ी मलाइका अरोड़ा और अर्जुन कपूर एक बार फिर सुर्खियों में आ गए हैं. 26 जनवरी यानी बीते दिन अर्जुन कपूर का बर्थडे था, जिस पर मलाइका ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर अर्जुन के साथ रोमेंटिक पोज करते हुए उनको बर्थडे विश किया और अब इसके बाद फैंस ने इसी फोटो को लेकर मलाइका को ट्रोल करना शुरू कर दिया है. आइए आपको बताते हैं पूरा मामला…

हाथ थामते हुए अर्जुन के साथ मलाइका ने की फोटो शेयर

 

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बौलीवुड एक्टर अर्जुन कपूर के बर्थडे के मौके पर मलाइका अरोड़ा ने उन्हें खास अंदाज में विश करते हुए अपने इंस्टाग्राम पर अपनी और अर्जुन की एक रोमांटिक फोटो शेयर की है, जिसमें दोनों एक दूसरे का हाथ थामे नजर आ रहे हैं. जिसे मलाइका ने शेयर करते हुए एक कैप्शन लिखा, Happy bday my crazy,insanely funny n amazing @arjunkapoor … love n happiness always.

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फैंस ने फोटो को लेकर कर दिया ट्रोल

malaika-trolled

मलाइका और अर्जुन की ये फोटो जितनी सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है उतना ही ट्रोल भी हो रही है. दोनों की फोटो पर यूजर्स तरह-तरह के कमेंट कर रहे हैं. कुछ लोग अर्जुन को जन्मदिन की बधाई दे रहे हैं तो कुछ मलाइका और अर्जुन को मां-बेटे की जोड़ी बता रहे हैं. तो कुछ दोनों के बीच के एज गैप को लेकर उन्हें ट्रोल कर रहे हैं.

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एयरपोर्ट पर भी आए थे नजर

 

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#malaikaarora & #arjunkapoor snapped at airport last night #airportdiaries #viralbhayani @viralbhayani

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हाल ही में अपने बर्थडे के लिए अर्जुन के साथ मलाइका एयरपोर्ट पर नजर आईं थी, जिसके बाद उनकी फोटोज वायरल हो गई थी. वहीं इन फोटोज से अर्जुन और मलाइका के रिलेशन पर भी विराम लग गया था.

बता दें, मलाइका के अलावा अर्जुन कपूर के बर्थडे पर कई सैलिब्रिटीज ने उन्हें विश किया है. सोनम कपूर ने अर्जुन के साथ अपनी दो तस्वीरें शेयर कीं. पहले तस्वीर उनके बचपन के दिनों की है और दूसरी तस्वीर में दोनों यंग दिख रहे हैं. वहीं अर्जुन कपूर की बहन जाह्न्वी कपूर भी इंस्टाग्राम पर कैप्शन के साथ फैमिली फोटो शेयर कर चुकी हैं.

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