बेरोजगारी जिंदाबाद

जनवरी में जारी सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकौनोमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार 2013-14 से बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है और 2018 में इस बढ़ोतरी में और तेजी आई है. इस रिपोर्ट के अनुसार 2018 में 1 करोड़ 90 लाख लोगों को नौकरियों से हाथ धोने पड़े. पिछले आम चुनावों में रोजगार को मुख्य मुद्दा बनाने वाली भाजपा सरकार इन 5 सालों में देश के बेरोजगारों को कितना रोजगार दे पाई, जान कर हैरान रह जाएंगे आप…

2014में हुए आम चुनावों में प्रचार के वक्त नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी ने रोजगार को मुद्दा बनाया था. हर साल 2 करोड़ से अधिक रोजगार के अवसरों के निर्माण के वादे के तहत प्रधानमंत्री ने पिछले 4 वर्षों में कई योजनाओं और कार्यक्रमों की शुरुआत की. पिछले साल अगस्त में मोदी ने दावा किया था कि बीते वित्त वर्ष में औपचारिक क्षेत्र में 70 लाख रोजगार का निर्माण हुआ. मगर जनवरी में जारी सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकौनोमी (सीएमआईई) की रिपोर्ट के अनुसार 2013-14 से बेरोजगारी लगातार बढ़ रही है और 2018 में इस बढ़ोतरी में और तेजी आई है.

राजनीति में महिलाएं आज भी हाशिए पर

इस रिपोर्ट के अनुसार 2018 में 1 करोड़ 90 लाख लोगों को नौकरियों से हाथ धोने पड़े. मोदी ने 2016 में प्रधानमंत्री रोजगार प्रोत्साहन योजना की शुरुआत की थी. इस योजना के तहत 15,000 रुपए से कम वेतन पर रखे जाने वाले नए कर्मचारियों का 12% भविष्य निधि अनुदान (ईपीएफ) केंद्र सरकार वहन करेगी. औल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस के सचिव तपन सेन ने बताया कि देशभर में कम से कम 40% योग्य कर्मचारी इस योजना के दायरे से बाहर हैं. टिकाऊ रोजगार नहीं अप्रैल, 2015 को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) मंत्रालय ने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की घोषणा की. इस के तहत लक्षित 10 लाख उद्यमों को कर्ज दिया जाना था. लेकिन सार्वजनिक क्षेत्रों के आंकड़ों के अनुसार इस योजना के तहत दिया गया अधिकांश कर्ज डूब गया है.

बोल्ड अवतार कहां तक सही

इस योजना के तहत हाल तक 3 करोड़ रुपए से अधिक कर्ज दिया गया है. इस का आधा कर्ज तो केवल 2018 में दिया गया. लोकसभा में एक प्रश्न के जवाब में वित्त राज्यमंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने बताया कि मुद्रा योजना के तहत डूबा कर्ज 2018 में बढ़ कर 7,200 करोड़ रुपए हो गया है. महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों से मिली रिपोर्ट के अनुसार मुद्रा योजना के तहत दिया जाने वाला औसत कर्ज 30,000 रुपए है, जो इन व्यवसायों को टिकाने के लिए काफी नहीं है.

इसी प्रकार प्रधानमंत्री रोजगार निर्माण के तहत दिए गए कर्ज ने भी रोजगार के टिकाऊ अवसर बनाने में मदद नहीं की है. इस योजना के तहत यूनिटों को 25 लाख रुपए और व्यवसाय या सेवा उद्यमों को 10 लाख रुपए का कर्ज दिया जाता है. बैंगलुरु स्थिति अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय के टिकाऊ रोजगार केंद्र के निदेशक अमित बसोले का कहना है, ‘‘इन योजनाओं का ज्यादातर ध्यान एकदम छोटे कारखानों पर रहा. ये छोटे कर्ज हैं और इन पैसों से लगाए जाने वाले रोजाना का खर्च निकाल सकते हैं लेकिन टिकाऊ रोजगार का निर्माण नहीं कर सकते.

स्मार्ट वाइफ : सफल बनाए लाइफ

‘‘भारत के बेरोजगारी संकट के लिए इस योजना के तहत स्वरोजगार को प्रोत्साहन देना पर्याप्त नहीं है. हमें कुछ बड़ा करने की आवश्यकता है. बड़े कर्ज और बड़े उद्योगों में पैसा लगाने की जरूरत है जो विस्तार और अधिक संख्या में कर्मचारियों को रखने में सक्षम हैं. शहरी और राज्य स्तर पर स्थानीय सरकारें जब तक आधारभूत संरचना और सुविधाओं का निर्माण नहीं करतीं तब तक केंद्रीय योजनाएं प्रभावकारी नहीं हो पाएंगी.’’

बढ़ती बेरोजगारी देश में अपना धंधा चलाने वाले दूसरों के लिए रोजगार का इंतजार नहीं कर पा रहे हैं. ऐसे 80 फीसदी लोग खुद मासिक तौर पर 10,000 रुपए से कम कमाई कर रहे हैं. ये लोग दूसरों को रोजगार कैसे दे सकते हैं? 2015-16 के श्रम विभाग के रोजगार बेरोजगारी सर्वे के अनुसार देश के लगभग आधे मजदूर अपना रोजगार अकेले ही कर रहे हैं. भारतीय अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध शोध परिषद की फैलो राधिका कपूर के अनुसार भारतीय संदर्भ में स्वरोजगार चिंताजनक बात है. स्वेच्छा से स्वरोजगार करना और मजबूरन करने में बहुत अंतर है और भारत में अधिकांश लोग मजबूरन ऐसा कर रहे हैं.

बेटों से आगे निकलती बेटियां

भारत में बहुत सा स्वरोजगार संकटकालीन रोजगार है. मोदी के उस दावे के संदर्भ में जिस में उन्होंने कहा था कि पकौड़े तलने वाला एक आदमी दिन में 200 रुपए से अधिक की कमाई करता है और इसलिए वह बेरोजगार नहीं है, ऐसे में कपूर की बात बहुत स्पष्ट हो जाती है. मोदी के इस दावे के जवाब में पूर्व वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने पूछा था कि इस लिहाज से तो भीख मांगना भी एक काम है. मोदी ने 200 रुपए तो गिन लिए पर जिस दिन ग्राहक न आएं या बारिश, आंधी आ जाए या फिर वह खुद बीमार हो जाए तो क्या होगा नहीं गिना.

जुलाई 2015 में प्रधानमंत्री मोदी ने घोषणा की कि 2022 तक ‘प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना’ यानी स्किल इंडिया के तहत 40 करोड़ लोगों को प्रशिक्षण दिया जाएगा. लेकिन संसद की श्रम मामलों की स्थाई समिति की मार्च, 2018 की रिपोर्ट के अनुसार फरवरी, 2016 में इस योजना के आरंभ से ले कर नवंबर 2018 तक योजना के तहत 33 लाख 93 हजार लोगों को प्रमाणपत्र दिए गए, जिन में से सिर्फ 10 लाख 9 हजार लोगों को काम मिला. विकास दर कम हुई कौशल विकास मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के मुताबिक मार्च, 2018 से कुशल उम्मीदवारों की प्लेसमैंट दर 15% है, जो बेहद कम है.

ऐसी खबरें भी हैं कि सरकारी सब्सीडी प्राप्त करने के लिए इस योजना के लोग बोगस प्लेसमैंट कर रहे हैं. स्किल इंडिया के डेटा पर भरोसा नहीं किया जा सकता, क्योंकि इन को जांचने की कोई प्रामाणिक प्रक्रिया नहीं है और ये कौशल विकास केंद्रों द्वारा उपलब्ध आंकड़े हैं. नाम न बताने की शर्त पर एक अधिकारी ने बताया, ‘‘ऐसी भी व्यवस्था नहीं है जिस से जाना जा सके कि प्रशिक्षण दिया भी जा रहा है या नहीं.’’ मोदी की कर्णधार योजना के तहत लक्षित क्षेत्रों में हाल के दिनों में बेरोजगारी में बढ़ोतरी देखी गई है.

मोदी ने 2014 में ‘मेक इन इंडिया’ का आरंभ भारत को वैश्विक डिजाइन और विनिर्माण का केंद्र बनाने के उद्देश्य से किया था. मगर पिछले 4 सालों में इस क्षेत्र ने कोई विकास नहीं किया है. श्रम ब्यूरो सर्वे के अनुसार अप्रैल और जून 2017 की तिमाही में इस क्षेत्र में 87,000 नौकरियां खत्म हो गईं. एमएसएमई मंत्रालय के अनुसार कर्ज योजना के अंतर्गत रोजगार और लाभ में 2014 से कमी आई है. उत्पादन और निर्यात में 24 से 35% की गिरावट पिछले 4 सालों में रिकौर्ड की गई है.

हाशिए पर रोजगार गारंटी कानून उत्पादन क्षेत्र में कागजी खानापूर्ति, इंस्पैक्टर राज, नियमों, कानूनों के पचड़ों का समाधान न कर सकने के चलते मेक इन इंडिया फेल हो गया. दुनिया का बाजार अभी मंदी से बाहर नहीं निकला है, इसलिए भारतीय निर्यात भी हद से आगे नहीं जा सकता. हमें घरेलू बाजार पर ध्यान देना चाहिए. सीएमआईई की रिपोर्ट में महिला मजदूरों की घटती तादाद पर चिंता जताई गई है. इस रिपोर्ट के अनुसार 2018 में ज्यादातर महिलाओं ने खासकर 40 से कम या 60 से अधिक आयु की दिहाड़ी और खेतों में मजदूरी करने वाली ग्रामीण महिलाओं ने काम खोया.

उद्यमशीलता और स्वरोजगार पर जोर देने के चलते महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून हाशिए पर चला गया जो एक ऐसा सरकारी कार्यक्रम था, जिस में बड़ी संख्या में महिलाओं की भागीदारी थी. स्वरोजगार मनरेगा योजना की कीमत पर कतई नहीं होना चाहिए. -निलीना एम एस द्य

गरमी में नींबू पानी पीने के हैं ये 6 फायदे

नींबू कई रोग और शारीरिक परेशानियों में काफी लाभकारी होता है. अगर आप प्रतिदिन एक गिलास नींबू पानी का सेवन करते हैं तो छोटी-मोटी बीमारियों से हमेशा दूर रहेंगे. लोग अक्‍सर नींबू पानी को मोटापा घटाने के लिए रामबाण मानते हैं. चूंकि नींबू में विटामिन सी होता है जो शरीर को रोगमुक्‍त रखने में सहायक होता है. आइए जानते हैं किन किन रोगों से बचने के लिए आपको नींबू का सेवन करना चाहिए:

1 किडनी में पथरी

किडनी में पथरी का होना काफी परेशान करता है. अगर किसी को स्टोन की परेशानी हो तो नींबू पानी उसके लिए काफी फायदेमंद होगी. दरअसल, नींबू पानी में प्राकृतिक साइट्रेट होता है जो स्‍टोन को तोड़ देता है या उसे बनने से रोकता है.

2 मांसपेशियों में दर्द

जिन लोगों को हमेशा मांसपेशियों में दर्द की शिकायत रहती है उनके लिए नींबू पानी काफी लाभकारी होता है. नींबू पानी शरीर में लैक्टिक के गठन को कम कर देता है और शरीर की क्रियाविधि अच्‍छी हो जाती है.

3 पेट सम्‍बंधी विकार

अगर किसी व्‍यक्ति को पेट सम्‍बंधी कोई भी विकार है तो उसे नींबू पानी का सेवन करना चाहिए. गैस, कब्‍ज, कुपाचन आदि समस्‍याएं चुटकी में हल हो जाएगी.

4 भूख बढ़ाने के लिए

नींबू पानी के सेवन से भूख अच्छी लगती है. जिन लोगों को भूख ना लगने की समस्या है उन्हें नींबू पानी का सेवन करना चाहिए, उनकी समस्‍या दूर हो जाएगी.

5 मुंहासे

जिन लोगों को मुंहासे की परेशानी है, उन्‍हें नींबू पानी का सेवन करना चाहिए. इससे उनके शरीर में मुंहासे के लिए जिम्मेदार बैक्‍टीरिया मर जाएंगे और त्‍वचा भी चमकदार हो जाएगी. साथ ही चेहरे से तेल भी निकल जाता है.

6 इम्‍यून सिस्‍टम मजबूत बनाना

जिन लोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होता है उन्‍हें प्रतिदिन नींबू पानी का सेवन करना चाहिए. इससे उनकी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होगी.

टिप्स: अगर आप भी हैं सिंगल मदर तो ऐसे मैनेज करें नाइट शिफ्ट

टीवी अभिनेत्री डौली सोही सिंगल मदर हैं. वे 7 सालों से पति से अलग अपने माता-पिता के साथ रह रही हैं. शुरू-शुरू में तो उन्हें लगा था कि अब वे कैसे नाइट शिफ्ट में काम कर पाएंगी, लेकिन परिवार के सहयोग से नाइट शिफ्ट में काम करना मुश्किल नहीं रहा. उन की बेटी अमिलिया धनोवा अभी 8 साल की है. जब बेटी छोटी थी तो कई बार नाइट शिफ्ट करना मुश्किल हो जाता था. इस के लिए डौली को पहले से सारी तैयारी करनी पड़ती थी ताकि सुबह बेटी की देखभाल करने वाले को मुश्किल न हो.

डौली ही नहीं, कई ऐसी मांएं हैं जो या तो डिवोर्सी हैं या फिर सैपरेटेड और उन्हें नाइट शिफ्ट में काम के लिए जाना पड़ता है. ऐसे में बच्चे को अकेले रात भर छोड़ने की कई गुना जिम्मेदारी मां पर आ जाती है. काम के साथ-साथ उसे बच्चे की भी देखभाल करनी पड़ती है. ऐसे में अगर सपोर्ट सिस्टम सही है, तो नाइट शिफ्ट में काम करना मुश्किल नहीं. अगर ऐसा नहीं है तो मां को अच्छी प्लैनिंग करनी पड़ती है ताकि वह आराम से काम कर सके.

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अधिकतर देखा गया है कि नाइट शिफ्ट करने वाली मां के बच्चे मनमानी अधिक करते हैं, क्योंकि मां अपना क्वालिटी टाइम उन के साथ बिता नहीं पाती. ऐसे में सही प्लैनिंग ही बच्चे की सही परवरिश के लिए जरूरी है.

इस बारे में मुंबई की काउंसलर राशिदा कपाडि़या बताती हैं कि सिंगल मदर के लिए नाइट शिफ्ट में काम करना मुश्किल नहीं है. अगर बच्चा छोटा है, तो उसे अलग प्लैनिंग करनी पड़ती है और अगर बड़ा है, तो उसे अलग तरीके से संभालना पड़ता है. 4 साल की उम्र के बाद से मां बच्चे को कुछ-कुछ बातें समझा सकती है जैसेकि उसे नाइट शिफ्ट क्यों करनी पड़ रही है, बच्चे की क्या जिम्मेदारियां हैं बगैरा.

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पेश हैं, इस संबंध में कुछ टिप्स जिन पर गौर कर मां अपने पीछे बच्चे की देख-रेख के प्रति बेफिक्र रह सकती हैं:

1 अगर बच्चा छोटा हो तो सब से पहले मां को अपना मोबाइल हमेशा फुल चार्ज रखना चाहिए ताकि जब भी जरूरत हो कौल कर बच्चे के बारे में जानकारी ले सकें .

2 औफिस पहुंचते ही पहुंचने का संदेश करे ताकि बच्चे को संभालने वाले को मां के बारे में जानकारी हो. संदेश फैमिली मैंबर या पास रहने वाले किसी दोस्त को भी भेज सकती है, ताकि किसी भी जरूरत के समय वे कौल कर सकें.

3 छोटा बच्चा होने पर उस के खानपान की पूरी प्लैनिंग पहले से करे और उसे संभालने वाले को उस के बारे में पूरी जानकारी दे.

4 अगर घर में संभालने के लिए परिवार का कोई सदस्य न हो और बाई रखनी है तो उसे किसी जानकार और पुलिस की जांच करा कर ही रखें, क्योंकि कई बार मेड सर्वेंट अपना बौयफ्रैंड ले कर आती है. ये चोरी-डकैती या फिर किडनैपिंग को अंजाम देते हैं.

5 किसी भी घातक या ज्वलनशील वस्तु को बच्चे की पहुंच से दूर रखें.

6 घर में कोई भी महंगी वस्तु न रखें.

7 कहां और कब जा रही है, कब तक घर आने वाली है किसी भी बात को सोशल मीडिया पर कभी शेयर न करे, क्योंकि सोशल मीडिया पर सबकुछ कैद हो जाता है और ऐेसे बहुत लोग हैं, जो सोशल मीडिया को देख कर चोरी या डकैती करते हैं.

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8 बच्चे की तस्वीर को भी सोशल मीडिया पर कभी शेयर न करें.

9 अगर बच्चा बड़ा हो तो उसे अपने काम के बारे में जानकारी दे, उसे समझाए कि नाइट शिफ्ट क्यों करनी पड़ती है.

10 बच्चे को सिखाए कि बिना जानकारी के किसी के लिए भी दरवाजा न खोलें.

11 बड़े बच्चे को खाने-पीने से संबंधित जानकारी भी दे, ताकि भूख लगने पर वह कुछ ले या बना कर खा लें. उस के स्कूल जाने से संबंधित सारी तैयारी पहले से कर के रखे.

12 बच्चे को क्या डैंजर है, उस की सही जानकारी दे.

13 मोबाइल में औटो डायल की व्यवस्था डाउनलोड कर ले ताकि किसी भी समस्या को बच्चा या देखभाल करने वाला मां तक जल्दी पहुंचा सके.

14 ‘फर्स्ट ऐड बौक्स’ के बारे में सही जानकारी दे ताकि जरूरत के अनुसार वह दवा का प्रयोग कर सके. काम के दौरान मां को जब भी समय मिले बच्चे के बारे में जानकारी लेती रहे.

15 बच्चे के मानसिक और शारीरिक विकास का भी ध्यान रखे. हमेशा कोशिश करे कि उस के साथ कुछ समय बिताए ताकि उस की किसी भी जिज्ञासा की सही जानकारी उसे मिलती रहे और वह अपने रास्ते से भटके नहीं.

घर खर्च में पेरैंट्स का दखल कितना सही

एक मध्यवर्गीय घर में पति-पत्नी के बीच सब से ज्यादा चर्चा का विषय होता है घर खर्च. हर घर में घर खर्च पर होने वाले विवादों की स्क्रिप्ट लगभग एक सी होती है, जिसे ‘तोहमतों की स्क्रिप्ट’ भी कह सकते हैं. उस में पति कहता है, ‘‘आजकल घर के खर्चे कुछ ज्यादा ही बढ़ रहे हैं, जरा संभल कर घर चलाओ. पैसे पेड़ पर नहीं उगते.’’ अब बीवी भी कहां पीछे रहने वाली है. वह भी सुनाती है, ‘‘खर्च तो तुम लोगों के ऊपर ही होता है. मैं तो नमक से भी रोटी खा कर खुश हूं.’’

इस पर पति कहता है, ‘‘नमक से रोटी खा कर खुश हो, मगर जो सारा दिन एसी चला कर टीवी देखती हो, बिजली का बिल बढ़ाती हो उस का क्या?’’ ‘‘मेरा टीवी दिखता है और तुम जो गरमियों में भी गरम पानी से नहाने में बिजली फूंकते हो, 10 बार चाय-कौफी में चीनी-पत्ती और गैस खर्च करवाते हो उस का क्या?’’

जब देना हो गर्लफ्रेंड को सरप्राइज, फौलो करें ये 5 टिप्स

घर के साथ यह जो ‘खर्च’ शब्द जुड़ा है, हर इंसान के लिए उस की अलग-अलग परिभाषा होती है. उदाहरण के लिए एक परिवार जिस में सास-ससुर, पति-पत्नी और उन के 2 बच्चे हैं, बाहर रैस्टोरैंट में खाना खाने गए जिस का का 1,500 बिल आया. सास के लिए बाहर खाना खाने का मतलब कामचोरी और अय्याशी था. उन के लिए वह 1,500 का खर्च बिल्कुल फुजूल था. वे बार-बार खाते हुए यही बड़बड़ा रही थीं, ‘‘इस से अच्छा तो मैं घर पर ही बना लेती… आजकल तो बाहर खाने के लिए लोग अपना घर और सेहत बरबाद कर रहे हैं.’’

ससुर की नजरों में यह खर्च रिश्तों में इनवैस्टमैंट थी. वे यह देख कर बहुत खुश थे कि इतने दिनों बाद पूरा परिवार एकसाथ बाहर आया है और खुश है. उन के अनुसार ऐसी आउटिंग परिवार के लिए बेहद जरूरी है.

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बहू के लिए वह लंच जरूरत थी, क्योंकि उस की कमर में दर्द था और वह खाना बनाने में असमर्थ थी. बाहर आ कर खाने से उसे भी रसोई के 10 कामों से छुट्टी मिली. पति को यह सोच कर राहत थी कि अब बच्चे उसे अगले कुछ दिनों तक यह नहीं सुनाएंगे कि पापा हमें कितने दिनों से बाहर नहीं ले गए.

देखा आपने? अलग-अलग दृष्टिकोण के कारण एक ही खर्च के कितने मतलब निकल गए. किसी के लिए फुजूल, तो किसी के लिए इनवैस्टमैंट, किसी के लिए जरूरत, तो किसी के लिए राहत.

जहां दृष्टिकोण अलग हों और एक-दूसरे के दृष्टिकोण के लिए स्वीकारभाव न हो, वहीं विवाद पैदा होते हैं और जब 2 विवादग्रस्त लोगों के बीच हैल्दी कम्यूनिकेशन न हो तो उन के बीच बाहरी हस्तक्षेप शुरू हो जाता है. यदि विवाद का मुद्दा घर खर्च है तो यह हस्तक्षेप होता है पति-पत्नी दोनों की माओं का. वह इसलिए, क्योंकि एक लड़का जैसे अपनी मां को घर खर्च चलाते देखता है, वह सोचता है वही सही तरीका है और चाहता है उस की पत्नी भी वैसे ही घर चलाए. यही बात पत्नी पर भी लागू होती है. उस ने अपने मायके में जैसे देखा है उस के भीतर भी घर चलाने के वैसे ही गुण आते हैं.

एक अच्छे बौयफ्रेंड में होती हैं ये 5 खूबियां

रजनी ने अपनी मां को कभी बचा खाना फेंकते नहीं देखा. ऐसा करना उन की मां की नजरों में खाने का अपमान भी है और फुजूलखर्ची भी. वहीं रजनी में एक अजीब संस्कार भी है. दिल ढलते ही वह पूरे घर की लाइट औन कर देती है. शाम को घर में अंधेरा रखना उस की नजरों में अपशकुन है. ये दोनों आदतें मायके से सीख रजनी जब ससुराल आई तो वहां इस से उल्टी ही रीत थी. वे लोग एक समय का बचा खाना अगले दिन तो क्या, उसी दिन दूसरे समय भी नहीं खाते. उन की नजरों में यह अपव्यय नहीं है. वही दूसरी ओर दिन हो या रात, बिना जरूरत के लाइट, पंखा खुला छोड़ देने पर उस की सास बहुत गुस्सा करतीं.

घर खर्च पर चल रहे विवाद में मांओं के हस्तक्षेप से बात बिगड़ने की संभावनाएं ज्यादा रहती हैं, क्योंकि अक्सर देखा गया है कि ऐसे विवादों में सास अपने बेटे का और मां अपनी बेटी का पक्ष ही सुनती है. अपनी-अपनी औलाद का व्यर्थ खर्च भी उन्हें जरूरत और दूसरे का जरूरी खर्च भी ‘फुजूल’ लगता है और वे इसी आधार पर अपनी राय देती हैं.

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मां और सास का दखल कितना सही

यदि बहू-बेटे इंडिपैंडेंट हैं, अलग घर में रह रहे हैं और अपने बड़ों पर आर्थिक रूप से निर्भर नहीं हैं तो बेहतर है कोई भी मां किसी भी तरह का दखल न दे. यदि सास दखल देगी तो पत्नी को ऐतराज होगा और अगर पत्नी की मां दखल देगी तो पति को ऐतराज होगा. बेहतर यही है कि वे स्वयं को मध्यस्थ की भूमिका से दूर रखें. यदि सास या मां ने बच्चों के साथ ऐसी हैल्दी रिलेशनशिप बनाई है कि वे मां का कहा अन्यथा न लें तो मां कुछ बातों पर अपनी सलाह दे सकती है और उन्हें घर खर्च चलाने के गुर सिखा सकती हैं.

हैल्दी कम्यूनिकेशन को प्रेरित करें

मधु अपने पति राजीव की इस आदत से बहुत परेशान थी कि वह हर छोटे-बड़े घर खर्च की पूरी जानकारी लिखित तौर पर रखना चाहता था. हालांकि, राजीव ऐसा इसलिए करना चाहता था ताकि उस के आधार पर वह आगे की बजट प्लानिंग कर सके. मगर मधु को इस पर ऐतराज था. उसे लगता था राजीव उस पर भरोसा नहीं करता. इसीलिए घरखर्च को ले कर इतनी पूछताछ करता है और उसे खर्च लिखने को कहता है. मधु को बुरा इसलिए भी लगता था, क्योंकि उस ने अपने पापा को कभी ऐसा करते नहीं देखा था. इसलिए मधु और राजीव में इस बात  को लेकर अकसर झड़प हो जाती थी. एक  दिन तो गुस्से में मधु ने घर खर्च के लिए दिए गए पैसे राजीव के सामने पटक दिए और बोली, ‘‘लो, अब खुद ही घर चलाओ और खुद ही हिसाब रखो.’’

जब मधु ने अपनी मां से इस घटना का जिक्र शिकायती लहजे में किया तो उस की मां ने उसे समझाया, ‘‘यह तो बहुत अच्छी बात है बेटी कि राजीव घर के मनी मैनेजनैंट में इतनी रुचि ले रहा है. यह दिखाता है कि उस की नजरों में घर की कितनी अहमियत है. तुम्हारे पापा ने तो घर की और बचत की कभी परवाह ही नहीं की. सारा बोझ हमेशा मेरे ऊपर ही रहा. राजीव से लड़ने के बजाय बेहतर है उस से बात करो, उस की भावनाओं को समझो और उसे अपनी भावनाओं से भी अवगत कराओ. मिलबैठ कर तय करो कि कहां खर्च करना है, कहां नहीं, कितनी सेविंग करनी है और कहां करनी है.’’

मां के कहे अनुसार जब मधु ने राजीव से बैठ कर बात की तो सारा विवाद सुलझ गया. यदि विवाद सुलझाने की नीयत हो तो ऐसा कोई विवाद नहीं है जिसे बातचीत से सुलझाया न जा सके. अत: दोनों मांओं का दायित्व बनता है कि वे हस्तक्षेप के बजाय पति-पत्नी को आपसी बातचीत के लिए प्रेरित करें.

तेरा-मेरा नहीं हमारा…

लौजिक तो कहता है कि जिन घरों में पत्नियां वर्किंग हैं, वहां घरवखर्च पर विवाद नहीं होने चाहिए, क्योंकि वहां डबल इनकम आती है, मगर होता इस के ठीक उलटा है. ऐसे पति-पत्नियों के बीच खर्च को ले कर ज्यादा विवाद होते हैं. कारण, वही दृष्टिकोण का है. अपना खर्च जरूरत और दूसरे का खर्च फुजूल दिखता है. अपने खर्च को हर कोई तर्कसंगत ठहरा देता है. यदि आप किसी ऐसे इंसान से बात करें जो मोबाइल भी कपड़ों की तरह बदलता है, तो वह भी इस के पक्ष में इतने सटीक तर्क दे देगा कि आप को ही चुप होना पड़ेगा.

घरेलू पत्नी घर खर्च पर चल रहे विवाद में फिर भी थोड़ा झुक जाती है, क्योंकि वह कमाती नहीं, मगर वर्किंग वुमन नहीं झुकती. इसलिए ऐसे विवाद अक्सर ‘तू तेरा देख, मैं मेरा देखूंगा/देखूंगी’ के भाव के साथ खत्म होते हैं. ऐसा न हो इस के लिए दोनों मांओं को बेटा-बेटी की शादी से पहले ही उन्हें यह समझाने की जिम्मेदारी बनती है कि शादी के बाद वे एक छत शेयर करने नहीं, बल्कि एक जिंदगी शेयर करने जा रहे हैं. उस में तेरा-मेरा नहीं चलता, बल्कि हमारा हो कर जीना होता है, उन्हें एक-दूसरे की इच्छाओं का सम्मान करना होता है. एक-दूसरे की सहमति से ही खर्च करना सीखना होगा वरना घर कुरुक्षेत्र का मैदान बन जाएगा.

यह मेरा मत है

मां या सास जब भी बेटेबहू को घर खर्च को ले कर कोई सलाह दें तो इस बात का अवश्य ध्यान रखें कि उन की सलाह, सलाह ही लगे. थोपी हुई बात को आजकल की जैनरेशन नहीं मानती, उलटा उस का जोरदार प्रतिकार करती है.

रजनी और उस के पति जब अपने अलग घर में रहने लगे तो वह अपने हिसाब से घर चलाने लगी. यानी बचा खाना फ्रिज में रख लेती और अगले भोजन के समय गरम कर के परोस देती. एक बार जब सास उस के पास रहने आईं तो उस की इस आदत पर बार-बार टोकाटाकी करने लगीं कि मेरे घर में कभी ऐसा नहीं होता. बार-बार सुनने के बाद एक दिन रजनी ने भी जवाब दे दिया कि आप के घर में नहीं होता होगा, मगर यह मेरा घर है और यहां ऐसा होता है. रजनी का जवाब सुन कर सास का मुंह उतर गया.

कहने का मतलब यह है कि यदि आप को बहू या बेटे का घर चलाने का तरीका अखर रहा है तो आप अपनी बात कहें, मगर उसे अपनी राय बता कर कहें जैसे कि मैं ऐसा सोचती हूं, मेरा ऐसा मत है, आगे तुम्हारी मरजी. और यह राय भी बारबार न दें. जिन की शादी हो चुकी है, जाहिर है वे इतने छोटे तो नहीं होंगे कि आप को उन्हें बारबार कुछ सिखाना पड़े. उन्हें अपने अनुभव  से सीखने दें. इसी में उन की और आप की  भलाई है.

अपने खर्च खुद मैनेज करने दें

कुछ पेरैंट्स संतानों के प्रति अति मोहग्रस्त होते हैं और उन की शादी के बाद भी उन्हें  छोटा बच्चा ही समझते हैं. वे चाहते हैं कि बच्चों के घरखर्च का हिसाबकिताब उन्हीं के हाथों में रहे. बैंक डिटेल्स, सेविंग डिटेल्स सब उन को पता हो. यह भी पतिपत्नी के बीच  विवाद का जोरदार मुद्दा बनता है. पेरैंट्स को ऐसा नहीं करना चाहिए. अगर बच्चे बोलें भी तो भी बेहतर है कि स्वयं पर निर्भर रखने के बजाय उन्हें मनी मैनेजमैंट सिखा कर आत्मनिर्भर बनाएं, क्योंकि आप हमेशा उन के साथ नहीं रहने वाली हैं.

कुछ मांओं की ऐसी भी आदत होती है कि जरा सा बेटी या बेटे ने बढ़ते घरखर्च का रोना रोया नहीं, वे उसे झट से अतिरिक्त पैसे दे कर मदद कर देती हैं. इसे वे प्यार या केयर का नाम देती हैं, किंतु वे यह नहीं जानती कि यह प्यार नहीं, बल्कि बच्चों को बिगाड़ने का काम है. इस तरह तो वे कभी सही तरीके से घर चलाना, बचत करना, इच्छाओं पर नियंत्रण रखना सीखेंगे ही नहीं.

यदि आप अपने बेटे या बेटी की वास्तव में भलाई चाहती हैं तो प्यार के नाम पर ऐसा हस्तक्षेप बिलकुल न करें. हर किसी को अपनी चादर देख कर पैर पसारना आना चाहिए. यदि आप उन्हें कमी का अनुभव ही नहीं होने देंगी तो वे कैसे हाथ संभाल कर खर्च करना सीखेंगे?

अपने बच्चों को उन की किशोरावस्था से ही मनी मैनेजमैंट यानी पैसों का हिसाबकिताब रखना, बचत का ख्याल रखना, जरूरत और इच्छा में फर्क समझ कर गैरजरूरी खर्चों पर नियंत्रण रखना सिखाएं ताकि भविष्य में वे अपना घर अच्छी तरह चला सकें.

-दीप्ति मित्तल

गरमी में इन 5 घरेलू तरीकों से दूर भगाएं तन की दुर्गंध

नेहा बहुत ही खूबसूरत थी और हमेशा यूनीक स्टाइल ही कैरी करना पसंद करती थी, लेकिन फिर भी उस के फ्रैंड्स उस के पास ज्यादा देर बैठने से हिचकिचाते थे. वह मन ही मन सोचती कि मैं तो सब को अपनी ओर अट्रैक्ट करने के लिए नएनए स्टाइल कैरी करती हूं, मगर फिर भी सब मुझ से दूर भागते हैं. एक दिन जब उस ने परेशान हो कर स्नेहा से इस का कारण पूछा तो उस ने कहा कि तुम्हारे शरीर से बहुत दुर्गंध आती है, जिसे किसी के लिए भी सहन करना बहुत मुश्किल होता है इसलिए सब तुम से दूरदूर भागते हैं. तब जा कर नेहा को पूरा माजरा समझ में आया और उस ने इस समस्या के हल के बारे में जानकारी हासिल की ताकि उस के तन की दुर्गंध पर्सनैलिटी को न बिगाड़े.

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क्या है शरीर की दुर्गंध…

शरीर के तापमान में संतुलन बनाए रखने के लिए शरीर से पसीना निकलता है. वैसे तो पसीने के लिए कई कारण जिम्मेदार हैं, जिस में प्रमुख है बैक्टीरिया. जिस की वजह से ही अक्सर शरीर से दुर्गंध आती है. बैक्टीरिया एपोक्राइन ग्रंथी के उत्सर्जन से पनपते हैं. ये अमीनो एसिड का निर्माण करते हैं, जिस का परिणाम बदबूदार गंध होती है.

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दुर्गंध से निबटने के घरेलू नुस्खे…

1 बैकिंग सोडा: यह स्किन से मौइश्चर को अवशोषित करने के साथ दुर्गंध को दूर करता है. साथ ही यह बैक्टीरिया को नष्ट कर नैचुरल परफ्यूम की तरह काम करता है.

कैसे अप्लाई करें: एक चम्मच बेकिंग सोडा में एक चम्मच नीबू का रस मिला कर उसे अंडरआर्म्स व उन जगहों में लगाएं, जहां ज्यादा पसीना आता हो. फिर इसे थोड़ी देर बाद पानी से धो लें. इसे कुछ हफ्तों तक रोजाना दोहराएं.

2 एप्पल साइडर विनेगर: यह बैक्टीरिया से लड़ने के लिए बहुत ही कारगर इंग्रीडीऐंट है. साथ ही यह स्किन के पीएच बैलेंस को संतुलित रख कर, शरीर की दुर्गंध को कम करने का काम करता है.

कैसे अप्लाई करें: एप्पल साइडर विनेगर में कौटन बौल डाल कर उसे अंडरआर्म्स पर रब करें. फिर 2-3 मिनट बाद धो लें. इसे रोजाना 2 बार दोहराएं.

3 नीबू का रस: इस की एसिडिक प्रोपर्टी स्किन के पीएच लैवल को कम करती है, जिस के कारण बदबू पैदा करने वाला बैक्टीरिया पनप नहीं पाता.

कैसे अप्लाई करें: नीबू को काट कर उस के एक भाग को अंडरआर्म्स पर अच्छे से रगड़ें और फिर उसे धो लें. इस प्रक्रिया को रोजाना तब तक दोहराएं जब तक दुर्गंध चली न जाए.

4 रोजमैरी: इस में सुगंध के प्राकृतिक गुण होने के कारण यह बदबू पैदा करने वाले बैक्टीरिया को नष्ट करने का काम करता है.

कैसे अप्लाई करें: 4 कप गरम पानी में आधा कप सूखी रोजमैरी की पत्तियां डाल कर 10 मिनट के लिए छोड़ दें. फिर इसे पानी में डाल कर नहाएं. इस प्रक्रिया को रोजाना दोहराने से दुर्गंध से छुटकारा मिलेगा.

5 टी ट्री औयल: टी ट्री औयल में ऐंटीबैक्टीरियल गुण होने के कारण यह स्किन में मौजूद बैक्टीरिया को नष्ट करने का काम करता है.

कैसे अप्लाई करें: 2 चम्मच पानी में 2 बूंदें टी ट्री औयल की डाल कर अंडर आर्म्स पर अप्लाई करें. आप इस सौल्यूशन को स्प्रे बोतल में भर कर भी रख सकती हैं. इस से तन की दुर्गंध से नजात मिलता है.

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इन बातों का भी खास ख्याल रखें…

जब भी आप शावर लें तो ट्राई करें कि एक बार कुनकुने पानी से भी नहाएं, क्योंकि यह हमारी स्किन में छिपे बैक्टीरिया को नष्ट करने का काम करता है.

नैचुरल फाइबर के कपड़े पहनें, क्योंकि इन में हवा का आवागमन बना रहता है, जिस से पसीना जमा नहीं होता.

एक शोध के अनुसार, लहसुन, करी या अन्य स्पाइसी मसाले आप के पसीने की गंध को बढ़ा सकते हैं. इसलिए स्पाइसी खाने से परहेज करें.

अपने आर्मपिट के बालों को समयसमय पर क्लीन करती रहें, क्योंकि बाल होने से पसीना सोखने की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है, जिस से शरीर से दुर्गंध आती है.

रोजाना अपनी आर्मपिट्स को ऐंटी बैक्टीरियल साबुन से साफ करना चाहिए, क्योंकि इस से बैक्टीरिया की संख्या में कमी आने से शरीर से दुर्गंध नहीं आती.

जब आप नहा लें तो अच्छे से अपने शरीर को पोंछें, खासकर उन जगहों को जहां सब से ज्यादा पसीना जमा होता है.

गरमियों में ज्यादा पसीना आने के कारण कपड़े जल्दी गीले हो जाते हैं, जिन्हें ज्यादा देर तक पहने रहने से बदबू आने लगती है. इसलिए उन्हें बदल लें.

मनपसंद फ्रैगरैंस वाले परफ्यूम को अपनी पर्सनैलिटी का हिस्सा जरूर बनाएं. इस से तन की दुर्गंध से छुटकारा तो मिलेगा ही, आप भी तरोताजा महसूस करेंगी.

आप हम और ब्रैंड

‘‘हमारे उत्पाद महंगे नहीं हैं. जो भी उत्पाद बाजार में पेश किया जाता है, उसे बेहतर गुणों व किफायती मूल्य के साथ ही लाया जाता है…’’

दिब्येंदु राय (सीओओ, डेज मैडिकल)

युवाओं के लिए प्रेरणास्रोत दिब्येंदु राय किसी भी मुकाम को हासिल करने के लिए निरंतर प्रयास करते हैं. इन का मानना है कि कोशिश करने से ही आत्मविश्वास बढ़ता है. इन के हार न मानने वाले इसी जज्बे ने डेज मैडिकल को बुलंदियों पर पहुंचा दिया है. एफएमसीजी और रिटेल इंडस्ट्री में 22 वर्षों का अनुभव रखने वाले एवं हार्ड कोर मार्केटिंग प्रोफैशनल के रूप में प्रसिद्ध दिब्येंदु आज डेज मैडिकल में सीओओ के पद पर कार्यरत हैं.

आइए, जानते हैं दिब्येंदु की सफलता की कहानी उन्हीं की जुबानी:

कंपनी के सीओओ की जिम्मेदारी लेने के बाद आप ने क्या बदलाव किए?

डेज मैडिकल एक मशहूर कंपनी है, लेकिन इस में आने के बाद मैंने यह देखा कि इतना मजबूत और प्रसिद्ध ब्रैंड होने के बाद भी कोई इस की प्रसिद्धि का उपयोग सही ढंग से नहीं कर रहा. इसीलिए मैंने कंपनी की छवि निर्माण की पहल की. मैंने एक अलग मीडिया प्लान बनाने की कोशिश की. मैंने गौर किया कि यहां केवल टैलीविजन पर प्रमोशन होते थे और प्रिंट की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था. फिर मैंने हमारी ब्रैंड ऐंबैसेडर, हेयर ऐक्सपर्ट प्रिसिला कौर्नर के नाम से मैगजीन में इनोवेशन बनाने पर जोर दिया जोकि अपने ही तरीके से काफी प्रसिद्ध भी हुआ. मैं 2 साल तक केकेआर के साथ भी जुड़ा. हम ने फ्लाइट मैगजीन के पिछले कवर पर विज्ञापनों की शुरुआत की. हम युवाओं का ध्यान आकर्षिंत करने के लिए एमटीवी, वीटीवी के साथ भी जुड़े. हमने केयोकार्पिन को 10 रुपए के पैक में और जारों (शीशियों) में बाजार में पेश किया, जिस में हम आगे रहे. प्रमुख स्थान में अपनी जगह बनाना अपने आप में एक चुनौती थी. हम ने ग्रामीण क्षेत्रों में अपने विक्रेताओं और स्टौकिस्टों को बढ़ा दिया था. हम ऐसी श्रेणी में पहले थे, जिस ने हेयर औयल ब्रैंड के लिए किसी हेयर औयल ऐक्सपर्ट को रखा था. इस के अलावा हम ने लोगों को बालों की देखरेख के प्रति जागरूक बनाने के लिए अपनी कैच लाइन को ही बदल दिया था.

केयोकार्पिन की यूएसपी क्या है?

केयोकार्पिन की सब से मजबूत यूएसपी इस की गुणवत्ता और प्रदर्शन है. दूसरी इस की मनमोहक खुशबू. इस में एक अलग सा आकर्षण है, जिस ने आज हमें नंबर वन बना दिया. इतना ही नहीं पिछले 65-70 वर्षों से इस की खुशबू वैसी ही है जैसी पहले थी. हम ने औलिव औयल, विटामिन ई की शुरुआत की, जबकि केयोकार्पिन पहले जैसा ही है.

वह कौन सा रहस्य है, जो आप के ब्रैंड को भारतीय जीवनशैली से जोड़े रखता है?

पूर्वी भारत में बालों के तेल के बहुत सारे ब्रैंड मौजूद थे, लेकिन वे अब अप्रचलित हैं, लेकिन हमारा ब्रैंड आज भी लोकप्रिय है, जिस का कारण है कि हम ने अपने ब्रैंड को आधुनिक तरीके से बनाया है. यह तो आप को पता ही होगा कि आज के समय में औलिव औयल के बारे में लोग काफी जागरूक हैं. हम ने अपने प्रयोगकर्ताओं से बात की तो उन का कहना है कि यह केवल त्वचा को ही नहीं, बल्कि बालों को भी संपूर्ण पोषण प्रदान करता है. बालों को प्रदूषण से बचाने में हमारे उत्पाद यकीनन अच्छे हैं, जिस की वजह से हमारे ग्राहक हमारे प्रति वफादार हो गए हैं.

स्वास्थ्य देखभाल और व्यक्तिगत देखभाल उत्पादों के संदर्भ में उपभोक्ताओं को किस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है? आप के उत्पाद ऐसी समस्याओं का समाधान कैसे करते हैं?

महिलाओं के लिए आज जो मुख्य समस्या है, वह यह है कि बाहर काम पर जाने के कारण उन के पास व्यक्तिगत सौंदर्य के लिए समय का अभाव है. इस कारण उन्हें महंगे पार्लरों और सैलूनों का रास्ता चुनना पड़ रहा है. प्रदूषण और नौकरी का तनाव बालों की खूबसूरती छीन लेते हैं, जिस की वजह से बाल बेजान हो जाते हैं. फिर महिलाएं इन बेजान बालों से छुटकारा पाने के लिए विभिन्न कैमिकल युक्त उत्पादों और स्पा का प्रयोग करती हैं, जिस से उन के बालों पर दुष्प्रभाव पड़ता है और फिर बालों को इन दुष्प्रभावों से बचाने के लिए तेल की आवश्यकता पड़ती है. पहले समय में मांएं अपनी बेटियों के बालों को संवारा करती थीं. लेकिन आज के समय में कालेज और औफिस जाने वाली लड़कियों के पास समय का अभाव होता है. इन दिनों महिलाएं अधिक मात्रा में हेयर कलर, सीरम आदि का प्रयोग अपने बालों पर कर रही हैं, जिस से बाल नाजुक और सख्त हो जाते हैं. इसीलिए बालों को नुकसान से बचाने के लिए आप को बालों में तेल लगाने की आदत को अपनाना होगा. यही कारण है कि हमारी कैच लाइन ‘‘हेयर का इंश्योरैंस करो, रोज केयोकार्पिन करो’’ है.

किस तरह से केयोकार्पिन उपभोक्ताओं की उम्मीदों पर खरा उतरता है?

हमारे उत्पादों पर विश्वास उन के प्रदर्शन में निहित है. अगर ग्राहक हमारी कंपनी के द्वारा बनाए गए उत्पाद पर विश्वास नहीं करता, तो उसे खरीदता भी नहीं. हम ने इस की सामग्री, इस की महक में कोई बदलाव नहीं किया है. हम ने कभी केयोकार्पिन पर भी कोई प्रयोग नहीं किया है. जो उत्पाद 50 वर्ष पहले शुरू हुआ था, वह आज भी मौजूद है. लेकिन आज के आधुनिक ट्रैंड को ध्यान में रखते हुए हम ने औलिव औयल को शामिल किया है, जिस ने हमारे उत्पाद को काफी बेहतर बना दिया है.

आप महिलाओं से जुड़े उत्पादों का निर्माण करते हैं. क्या आप महिलाओं के रोजगार या सशक्तीकरण में पहल करते हैं?

जी हां, हमारे रिसर्च डिपार्टमैंट में महिलाएं शामिल हैं. लेकिन यदि हम हार्ड कोर लेबर श्रेणी की बात करें, तो हम ने यहां महिलाओं को नियुक्त नहीं किया है. मार्केटिंग विभाग के संदर्भ में हमारा मानना है कि इस काम के लिए ज्यादा समय लगने और दूरदराज के इलाकों में जाने के कारण किसी महिला को शामिल करना उचित नहीं होगा.

आप का उत्पाद मौजूद ब्रैंड से कैसे भिन्न है?

केयोकार्पिन एक सफल उत्पाद है. पिछले 50 वर्षों से इस ने मौजूदा ब्रैंड के रहते हुए भी अपनी एक अलग पहचान बनाई है. यह हमारी कंपनी की दूरदर्शिता थी कि आने वाले समय में कामकाजी महिलाओं की संख्या बढ़ेगी, जिस के कारण उन के पास अपने बालों की देखभाल करने के लिए समय का अभाव होगा. इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम ने उसी दौरान नौनस्टीकी, सुगंधित तेल पेश किया, जिस से आप के बाल उलझन फ्री रहेंगे. महिलाओं को बालों में अधिक चिपचिपापन अच्छा नहीं लगता जो कि नारियल तेल में अधिक पाया जाता है. हम ने महिलाओं की इस समस्या को पहचाना और उन के लिए भारत में पहली बार लाइट हेयर ?ले कर आए. बाद में हम ने विटामिन ई और औलिव औयल इस में शामिल कर इस के गुणों को और भी बढ़ा दिया.

क्या आप केवल बड़े शहरों के उपभोक्ताओं को ही लक्षित करते हैं या ग्रामीण क्षेत्रों के उपभोक्ता भी इस में शामिल हैं?

ऐसा नहीं है कि हम केवल शहरों पर ही ध्यान दे रहे हैं. अगर आप हमारे उत्पाद का आकार देखेंगे, तो हमारे स्टौक में 50 एमएल ही नहीं है बल्कि 25 एमएल  भी शामिल है. मात्रा के संदर्भ में शहरों से अधिक ग्रामीण क्षेत्रों में हमारा योगदान अधिक है, क्योंकि हम वहां 100 एमएल, 50 एमएल और 25 एमएल अधिक संख्या में बेचते हैं. लेकिन शहरी योगदान की बात करें, तो यहां भी हम पीछे नहीं हैं. यहां हम 500 एमएल और 300 एमएल अपने उपभोक्ताओं को बेचते हैं. इतना ही नहीं, हमारी उपभोक्ता केवल महिलाएं ही नहीं हैं, बल्कि एक शोध से पता चला है कि 42% पुरुष भी हमारे तेल का उपयोग करते हैं. इसीलिए हम दोनों को अपना लक्ष्य मानते हैं.

केयोकार्पिन बौडी औयल और औलिव औयल जैसे उत्पादों का निर्माण करते वक्त आप अपने उपभोक्ताओं की किन मूल जरूरतों को ध्यान में रखते हैं?

हम सब से पहली चीज जिसे ध्यान में रखते हैं वह है पैसे का मूल्य. हमारे उत्पाद महंगे नहीं हैं. जो भी उत्पाद बाजार में पेश किया जाता है, उसे बेहतर गुणों व किफायती मूल्य के साथ बाजार में लाया जाता है. इसीलिए तो हम इस की गुणवत्ता के साथ समझौता किए बिना इस की वृद्धि पर जोर देते हैं. अगर हम बौडी औयल की बात करें, तो त्वचा की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए हम ने इस में औलिव औयल शामिल किया है ताकि हमारे उपभोक्ताओं की त्वचा कोमल व सुरक्षित रहे.

उपभोक्ता इन दिनों औनलाइन उत्पादों की तलाश करते हैं. इस पर आप का क्या विचार है?

हम ई कौमर्स कंपनी जैसे अमेजन के साथ सूचीबद्ध हैं, जिस के जरीए हम अपने उत्पाद प्रस्तुत करते हैं, लेकिन क्योंकि इस का उत्पाद पोर्टफोलियो कम है और यह एक कोमोडिटी (लाभ) उत्पाद है, जिसे प्रतिदिन इस्तेमाल करने के लिए लक्षित किया जाता है, हम औनलाइन प्लेटफौर्म को बढ़ावा नहीं देते हैं.

आप ने पहले ही अपने तेल को काफी लोकप्रिय बना दिया है? अब पाइपलाइन में क्या है? क्या आप का अगला उत्पाद शैंपू है?

हमारे जेहन में काफी उत्पाद हैं, जिन्हें मैं अभी उजागर नहीं करना चाहता. हालांकि हम फायदे के लिए कोई नया उत्पाद पेश करने की जल्दबाजी में नहीं हैं. हम पहले शोध करेंगे और फिर अपने उपभोक्ताओं की जरूरतों को जानेंगे. लेकिन हम जो कुछ भी लाएंगे, यकीनन वह वैल्यू औफ मनी को ध्यान में रख कर बनाया जाएगा.

-अवंति सिन्हा

सेफ्टी टिप्स: गरमी में जानलेवा न बन जाए एसी

कुछ समय पहले तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई के एक ही परिवार के 3 लोगों की एसी की गैस रिसाव की वजह से मौत हो गई थी. जानकारी के अनुसार परिवार के लोग रात में ऐसी चला कर सोए थे. देर रात ऐसी से गैस लीक हुई और सोते तीनों लोगों की दम घुटने से मौत हो गई. एसी की वजह से जान के खतरे का यह पहला केस नहीं है. इस से पहले भी एसी का कंप्रैशर फटने से लोगों की जान पर आफत बन आई है. एसी की वजह से लोगों में सिरदर्द, सांस लेने में तकलीफ होने जैसी कई शिकायतें आई हैं. ऐसे में सवाल यह उठता है कि आखिर क्या वजह है जो ठंडक पहुंचाने वाला एसी जानलेवा बनता जा रहा है?

आप के बैडरूम में लगे एसी से भी जहरीली गैस का रिसाव हो सकता है. इसलिए एसी से होने वाली दुर्घटनाओं से बचने के लिए इन बातों का ध्यान रखें :

1 एसी को कभी ऐक्सटैंशन कौर्ड के जरीए कनैक्ट न करें. इस के लिए कम से 900 से 1200 वोट की पावर चाहिए होती है जोकि मोबाइल और लैपटौप में इस्तेमाल होने वाली पावर या ऐक्सटैंशन कौर्ड से काफी ज्यादा होती है. ज्यादा लोड होने की वजह से शौर्ट सर्किट होने का खतरा बरकरार रहता है.

2 एसी में इस्तेमाल किया गया स्विच हमेशा आप की पहुंच में होना चाहिए ताकि किसी भी तरह की आपात स्थिति में उसे बंद किया जा सके. एसी की वायर को गरम सतह से दूर रखें, क्योंकि इस से आग लगने का खतरा बन सकता है.

3 एसी के इलैक्ट्रिकल सौकेट को हमेशा चैक करते रहें कि किसी भी तरह के इलैक्ट्रिकल शौक का खतरा तो नहीं.

4 घर में एसी लगाने के लिए किसी प्रोफैशनल या फिर कंपनी के आधिकारिक इंजीनियर को ही बुलाएं. द्य एसी की हर साल सर्विस करवाएं.

5 दिन में एक बार कमरे की खिड़कियां और दरवाजे खोल दें ताकि प्रदूषित हवा बाहर निकल सके. द्य गैस की क्वालिटी पर ध्यान रखें. द्य इस बात का भी ध्यान रखें कि एसी के स्विच के पास किसी भी तरह का वाटर सोर्स नहीं होना चाहिए. इस के अलावा सजावट का सामान भी उस के पास नहीं रखा होना चाहिए.

6 अगर एसी को इनवर्टर या जनरेटर पर चला रहे हैं तो इस बात का खयाल रखें कि बिजली आने के बाद उसे इनवर्टर से स्विचऔफ कर दें.

7 एसी की बाहरी सतह के खराब होने या फिर उस में से किसी भी तरह की आवाज आने पर तुरंत इंजीनियर को बुलाएं.

8 एसी के एयर फिल्टर को समयसमय पर बदलवाते रहें.

9 गरमी के मौसम की शुरुआत में ही एसी को अच्छी तरह चैक करा लें. जरूरत हो तो सर्विस करवा लें ताकि एसी सही काम कर सके.

एसी से गैस लीक हो रही है यह पता कैसे चले…

आप के एसी से गैस लीक हो रही है यह पता करना मुश्किल होता है. सीएसई के मुताबिक, एसी गैस की कोई गंध नहीं होती. गैस लीक इन कुछ वजहों से होती है, जिन पर ध्यान रखा जाए:

1 अगर आप का एसी सही से फिट नहीं है.

2 जिस पाइप से गैस प्रवाह होती है वह सही से काम न करे.

3 पुराने एसी ट्यूब में लगा जंग.

4 अगर एसी अच्छी तरह ठंडा नहीं कर रहा हो.

एसी का तापमान कितना रखें

1 पलंग या सोफे पर बैठ कर टीवी देखते हुए एसी का तापमान 16 या 18 तक ले जाते हैं, जबकि सीएसई की मानें तो ऐसा करना आप की सेहत पर बुरा असर डाल सकता है.

2 घर या दफ्तर में एसी का तापमान 25-26 डिग्री सैल्सियस ही रखें.

3 दिन के मुकाबले रात में तापमान कम रखा जा सकता है. ऐसा करने से सेहत भी ठीक रहेगी और बिजली का बिल भी कम आएगा.

4 ऊर्जा मंत्रालय ने सलाह दी है कि एसी की डिफाल्ट सैटिंग 24 डिग्री सैल्सियस रखी जाए ताकि बिजली बचाई जा सके. ऊर्जा मंत्रालय का कहना है कि ऐसा करने से 1 साल में 20 अरब यूनिट बिजली बचेगी.

5 पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार भारत में एसी का तापमान 26 डिग्री सैल्सियस रखा जाना चाहिए.

-मिनी सिंह 

दुनिया के कुछ देशों में एसी का तापमान तय करने की कोशिशें हुई हैं:

चीन: 26 डिग्री सैल्सियस.

जापान: 28 डिग्री सैल्सियस.

हौंगकौंग: 25.5 डिग्री सैल्सियस.

ब्रिटेन: 24 डिग्री सैल्सियस.

हेयर रिमूवल टिप्स: गरमी में इन 4 घरेलू तरीकों से हटाए अनचाहे बाल

मौसम का मिजाज बदल गया है और गरमियों का आगमन हो गया है. गरमियों में खुद को कूल रखने के लिए युवतियों की पहली पसंद शौर्ट्स, स्कर्ट, कैप हैं. आजकल कामकाजी महिलाएं भी वैस्टर्न लुक को अहमियत दे रही हैं और औफिस में शौर्ट ड्रैसेज में आना पसंद करती हैं. लेकिन जब आप ये सब ड्रैसेज कैरी करती हैं तो आप के हाथों के बाल आप के स्टाइल और फैशन को फीका कर देते हैं. ऐसी स्थिति से बचने के लिए फेम फेयरनेस नेचुरल फेयर ऐंड सौफ्ट हेयर रिमूवल क्रीम बेहतर औप्शन है.

लंबे समय तक कोमलता का एहसास…

जब आप सूरज की रोशनी में बाहर निकलती हैं, तो आप ट्रैनिंग का शिकार हो जाती हैं और आप की त्वचा एकदम ड्राई हो जाती है. लेकिन यह फेम फेयरनेस नेचुरल फेयर ऐंड सौफ्ट हेयर रिमूवल क्रीम न केवल आप को अनचाहे बालों से छुटकारा दिलाती है, बल्कि आप की त्वचा को भी कोमल बनाती है.

हेयर रिमूवल क्रीम

3 मिनटों में काम करने वाली हेयर रिमूवल क्रीम हर उम्र की महिलाओं के लिए बेहतरीन ब्यूटी टूल है, क्योंकि इस भागदौड़ भरी जिंदगी में समय का अभाव हर किसी के पास है और पार्लर जाने के लिए भी समय नहीं निकल पाता. आप को पार्टी में जाना हो या औफिस में कोई स्पैशल डे हो या फिर डेट पर जाना हो, हेयर रिमूवल क्रीम आप की समस्या का तुरंत समाधान है. इसी के साथ यदि आप को वैक्स या शेव करना पसंद नहीं है, तो आप के लिए यह एक अच्छा विकल्प है.

हेयर रिमूवल के हर्बल उपाय

खूबसूरत दिखना भला कौन महिला नहीं चाहती. लेकिन अनचाहे बाल इस खूबसूरती पर दाग का काम करते हैं. जानिए, अनचाहे बालों को कैसे हटाएं ताकि खूबसूरती बरकरार रहे:

1 कच्चा पपीता: अनचाहे बालों से छुटकारा दिलाने में कच्चा पपीता बेहद मददगार है. कच्चे पपीते में पपाइन नाम का ऐंजाइम होता है और इस पपाइन में बालों को नष्ट करने की क्षमता होती है. यह बालों को बढ़ने से रोकता है. हेयर रिमूवल के लिए कच्चा पपीता सब से कारगर है.

2 अंडा: हैल्थ की दृष्टि से अंडा जितना खाने में फायदेमंद है, उतना ही यह खूबसूरती बढ़ाने में भी कारगर है. अंडे की सफेदी का प्रयोग करने से अनचाहे बालों से मुक्ति मिलती है.

3 चीनी और सिरका: चीनी और सिरका घरेलू वैक्स की तरह काम करते हैं. चीनी, नीबू और शहद के घोल की तरह यह भी वैक्सिंग का काम करती है.

4 बेसन: बेसन के प्रयोग से त्वचा मुलायम होती है और इस से अनचाहे बालों से छुटकारा भी मिलता है. बस आप को बेसन, हलदी और सरसों के तेल को मिला कर पेस्ट बनाना है. पेस्ट बनाने के बाद इसे चेहरे पर लगा कर सूखने दीजिए, फिर हलके हाथों से रगड़ कर उतार दीजिए.

घरेलू उपायों के अलावा एक और विकल्प है फेम फेयरनेस नेचुरल फेयर ऐंड सौफ्ट हेयर रिमूवल क्रीम अपनाएं क्योंकि यह क्रीम केवल आप के अनचाहे बालों को ही नहीं हटाती बल्कि त्वचा में निखार भी लाती है और एवोकाडो औयल लाइकोराइस ऐक्सट्रैक्ट युक्त इस का फार्मूला अनचाहे बालों को हटाने के बाद स्किनटोन को भी निखरा बनाए रखने में मदद करता है.

9 टिप्स: गरमी के मौसम में चिपचिपे बालों को ऐसे कहें बाय-बाय

गरमी का मौसम शुरू होते ही बालों की समस्याएं ज्यादा परेशान करने लगती हैं. ऐसे में इस मौसम में बालों की अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है. इस बारे में मुंबई के ‘क्यूटिस स्किन सौल्यूशन’ की त्वचारोग विशेषज्ञा डा. अप्रतिम गोयल बताती हैं कि गरमी के मौसम में बालों की नमी खो जाती है. वे बेजान हो कर झड़ने लगते हैं. मगर कुछ बातों का ध्यान रख कर बालों को इस मौसम की परेशानियों से बचाया जा सकता है. जी हां, गरमी में भी आप के बाल सिल्की और शाइनी दिख सकते हैं. कैसे, यह हम आप को बताते हैं…

स्टिकी हेयर प्रौब्लम का निदान

सिर की त्वचा में चिपचिपेपन की वजह से बाल चिपके और बेजान से नजर आते हैं. इस से सिर की स्किन पर रूसी अधिक होने की आशंका रहती है, जिस से बालों का झड़ना शुरू हो जाता है. ऐसे में रखें इन बातों का ध्यान:

1 सब से पहले ऐसे शैंपू का चुनाव करें, जिस में मौइश्चराइजर न हो.

2 हर दूसरे दिन शैंपू करें ताकि बालों में तेल जमा न हो सके, क्योंकि इस से प्राकृतिक रूप से मलासेजिया नामक फफूंद उत्पन्न होती है, जो डैंड्रफ का कारण बनती है.

3 चिपचिपे बालों के लिए हमेशा ठंडे पानी का प्रयोग करें.

4 कंडीशनर का प्रयोग न करें.

5 अधिक कंघी न करें. इस से तेलग्रंथियां उत्तेजित होती हैं.

6 बालों को धोने के बाद उन के सूखने से पहले उन्हें कस कर न बांधें. गीले बालों में पसीना आने से वे चिपचिपे हो जाते हैं.

7 प्रोटीन से भरपूर भोजन लें, क्योंकि प्रोटीन की कमी से बाल बेजान हो जाते हैं.

8 बाहर निकलने से पहले बालों को ढक लें.

9 बारबार बालों को न छुएं, क्योंकि इस से हाथों में मौजूद तेल उन में लग जाता है और वे स्टिकी हो जाते हैं.

तैलीय स्कैल्प का उपचार

1 स्कैल्प में कई सिबेशन ग्लैंड्स बनी होती हैं, जिन से सीबम निकलता है, जो बालों के लिए बहुत लाभदायक होता है. यह बालों को रूखा और बेजान होने से बचाता है. मगर इस के अधिक मात्रा में रिसाव से बाल औयली हो जाते हैं. ये टिप्स अपना कर इस परेशानी को दूर किया जा सकता है:

2 तैलीय स्कैल्प के लिए भी गरमी के मौसम में शैंपू का प्रयोग हर दूसरे दिन करें.

3 अगर आप डेली वर्कआउट या व्यायाम करती हैं, तो शैंपू का प्रयोग रोज करें, क्योंकि इस मौसम में पसीने से स्कैल्प की रक्षा करना जरूरी है.

4 अगर स्कैल्प औयली है तो कभी-कभी ड्राई शैंपू का भी स्प्रे बालों में कर सकती हैं. यह स्कैल्प के औयल को सोख कर बालों को चिपचिपा होने से रोकता है. बाहर जाने से पहले ड्राई शैंपू सब से अच्छा विकल्प है.

5 गरमी के मौसम में स्कैल्प पर तेल लगाना बंद कर दें, क्योंकि अगर स्कैल्प औयली है, तो तेल उसे और अधिक तैलीय बना सकता है. इस मौसम में ऐंटी डैंड्रफ शैंपू जिस में ऐंटी फंगल हो ज्यादा प्रयोग करें, जिस में कीटोकोनाजोल और सैलिसिलिक ऐसिड हो.

झड़ते बाल और प्रदूषण से बचाव…

डा. अप्रतिम के अनुसार एक स्टडी में पाया गया है कि यूथ, जो अधिकतर शहरों में काम करते हैं, उन्हें स्कैल्प में खुजली, औयली स्कैल्प, डैंड्रफ और बालों के झड़ने की समस्या अधिक होती है. इसकी मेन वजह लगातार प्रदूषण का बढ़ना है. अगर स्कैल्प में धूलमिट्टी, निकल, लीड, आर्सेनिक आदि जमा हो जाएं, तो बालों के झड़ने की समस्या शुरू हो जाती है. इस परेशानी से बचने के ये उपाय हैं:

1 क्लींजिंग सब से अच्छा उपाय है. इस के लिए बालों को बीचबीच में शैंपू कर साफ रखें. औयली स्कैल्प के लिए अल्टरनेट डे और ड्राई या रंगे बालों के लिए शैंपू की फ्रीक्वैंसी कम रखें. याद रखें, इस मौसम में स्कैल्प और बालों को हमेशा साफ और हैल्दी रखें, ताकि हेयरफौल कम हो.

2 इस मौसम में बालों की डीप कंडीशनिंग करना बहुत जरूरी है, क्योंकि इस से प्रदूषण से डैमेज हुए बालों का ड्राई होना, टूटना, झड़ना आदि कम हो जाता है. सप्ताह में 1 बार डीप कंडीशनिंग अवश्य करें.

3 ऐंटीऔक्सीडैंट सप्लिमैंट्स लेने बहुत जरूरी हैं. ताकि हेयर डैमेज को रोका जा सके. ओरल विटामिंस, मिनरल्स, ऐंटीऔक्सीडैंट बालों को सुरक्षा देने के अलावा उन की ग्रोथ भी बढ़ाते हैं.

4 बालों को प्रदूषण से बचाने के लिए कंडीशनर का प्रयोग करें ताकि यह स्कैल्प और बालों पर बैरियर का काम करे.

आजमाएं ये 3 घरेलू हेयर मास्क…

ऐलोवेरा मास्क बहुत अच्छा हेयर केयर मास्क है. इस के जैल से ड्राई हेयर और प्रभावित स्कैल्प की मसाज करें. 20 मिनट बाद हलके गरम पानी से धो कर माइल्ड शैंपू करें.

2-3 स्ट्राबेरी को कुचल कर उस में 2 बड़े चम्मच मेयोनेज मिला कर मास्क तैयार कर स्कैल्प पर लगाएं. स्ट्रोबेरी तेल के रिसाव को नियमित करती है, जबकि मेयोनेज नमी प्रदान करता है. इसे भी 20 मिनट तक लगा कर स्कैल्प को धो लें.

केला, शहद और औलिव औयल को मिला कर कंडीशनर तैयार कर 20 मिनट तक लगा रहने के बाद में धो लें. यह बहुत ही फायदेमंद कंडीशनर है.

रिव्यू : फिल्म देखने से पहले जाने कैसी है ‘रोमियो अकबर वाल्टर’

फिल्म: रोमियो अकबर वाल्टर

कलाकार: जौन अब्राहम, मौनी रौय, सिकंदर खेर, सुचित्रा कृष्णमूर्ति और जैकी श्रौफ

निर्देशक: रौबी ग्रवाल

रेटिंग: दो स्टार

भारत-पाक के बैकग्राउंड पर 2013 में प्रदर्शित निखिल अडवाणी की जासूसी फिल्म ‘‘डी डे’’, 2018 में रिलीज फिल्म ‘‘राजी’’ सहित कई बेहतरीन फिल्में आ चुकी हैं. इन फिल्मों के मुकाबले ‘‘रोमियो अकबर वाल्टर’’ एक अति सतही और बोर करने वाली लंबी फिल्म है. आर्मी बैकग्राउंड के फिल्मकार रौबी ग्रेवाल का दावा है कि उन्होने इस फिल्म का लेखन व निर्देशन करने से पहले काफी शोध कार्य करते हुए कई जासूस/स्पाई से बात की. मगर फिल्म देखकर उनका दावा कहीं से भी सच के करीब नहीं नजर आता.

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कहानी…

फिल्म ‘‘रोमियो अकबर वाल्टर’’ की कहानी 1971 के भारत पाक युद्ध की है. जब पाकिस्तान दो हिस्सों में बंटा हुआ था. पश्चिमी पाकिस्तान और पूर्वी पाकिस्तान. पूर्वी पाकिस्तान में मुक्तिवाहिनी सेना आजादी की लड़ाई लड़ रही थी. भारत भी इसकी आजादी का पक्षधर था. 1971 के युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान आजाद होकर बांग्लादेश बन गया. ऐसी ही परिस्थिति में भारतीय जासूसी संस्था ‘रौ’ के मुखिया श्रीकांत राय (जैकी श्राफ) को अपने साथ जोड़ने के लिए ऐसे इंसान की तलाश थी, जो कि आसानी से भीड़ का हिस्सा बन सके या अपने आस पास के इंसान को आसानी से भटका सके. श्रीकांत राय की यह खोज उन्हें आर्मी के शहीद मेजर के बेटे रोमियो अली (जौन अब्राहम) तक ले जाती है. रोमियो एक बैंक कर्मी है. बुजुर्ग बनकर कविताएं पढ़ता है. बैंक में उसकी सहकर्मी हैं पारूल(मौनी रौय), जिससे वो प्यार करता है. एक दिन बैंक में नकली डकैती होती है, जिसके बाद रोमियो अली को श्रीकांत राय के सामने पहुंचा दिया जाता है. रोमियो अली को जासूस बनने की ट्रेनिंग दी जाती है और फिर वह अकबर मलिक (जौन अब्राहम) के नाम से पीओके पहुंचता है. एक होटल में नौकरी करते हुए वह शरीक अफरीदी के करीब पहुंचता है और वह भारत में श्रीकांत तक सारी जानकारी मुहैया करता रहता है कि किस तरह 22 नवंबर को पूर्वी पाकिस्तान से सटे भारतीय गांव को तबाह करने की योजना है. अफरीदी का अपना बेटा नवाब अफरीदी अपने पिता का दुश्मन है, जो कि पाकिस्तान के उप सेनाध्यक्ष के साथ मिला हुआ है. कुछ समय बाद अकबर मलिक की मदद के लिए भारतीय डिप्लोमेट के रूप में श्रद्धा शर्मा (मौनी रौय) पहुंचती है. श्रद्धा शर्मा का फोन पाकिस्तानी आईएसआई टेप कर रही है. इसी के चलते श्रद्धा और अकबर मलिक की मुलाकात की जानकारी आईएसआई आफिसर खुदा बख्श सिंह (सिकंदर खेर) को पता चलती है. फिर खुदाबख्श सिंह, अकबर मलिक के पीछे पड़ जाता है और एक दिन उसे गिरफ्तार कर यातना देकर सच जानने का असफल प्रयास करता है. अफरीदी की मदद से वह छूट जाता है, मगर सेनाध्यक्ष की हत्या हो जाती है और उप सेनाध्यक्ष गाजी खान सेनाध्यक्ष बन जाता है. उसके बाद कहानी में कई मोड़ आते हैं. जिनके लिए आपको फिल्म देखनी होगी.

फिल्म समीक्षा : नोटबुक

पटकथा लेखक…

पटकथा लेखक की अपनी कमजोरियों के चलते ये जासूसी फिल्म की बजाय एक एक्शन और रोमांस से भरपूर वेब सीरीज नजर आती है. लेखक व फिल्मकार रौबी ग्रेवाल ने बेवजह भावनात्मक, रोमांटिक और सेक्शुअल सीन्स को भरकर एक बौलीवुड मसाला फिल्म बनायी है. फिल्म में जौन अब्राहम और मौनी रौय के बीच रोमांटिक और सेक्शुअल सीन फिल्म में पैबंद नजर आते हैं. इन्ही सीन्स के चलते फिल्म बेवजह लंबी हो गयी है. इतना ही नहीं एडीटिंग में फिल्म को कसने की जरुरत थी. इंटरवल से पहले तो कहानी खिसकती ही नही है. दर्शक कहने पर मजबूर हो जाता है कि कहां फंसा गया.

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एक्टिंग…

जहां तक अभिनय का सवाल है, तो यह फिल्म जौन अब्राहम के करियर की सबसे कमजोर फिल्म है. मौनी रौय तो महज खूबसूरत गुड़िया के अलावा कुछ नहीं है. फिल्म में अगर कोई किरदार याद रह जाता है, तो वह है श्रीकांत राय का, जिसे जैकी श्राफ ने निभाया है. जैकी श्राफ के अभिनय की जरुर तारीफ की जानी चाहिए. इसके अलावा एक भी कलाकार प्रभावित नहीं कर पाता. रघुबीर यादव सहित कई दिग्गज कलाकारों के कमजोर अभिनय के लिए लेखक व निर्देशक ही पूरी तरह से जिम्मेदार हैं. किसी भी किरदार को सही ढंग से चित्रित ही नहीं किया गया.

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