फिल्म व सीरियल की शूटिंग के लिए जारी हुई गाइडलाइन्स, पढ़ें खबर

टीवी सीरियल, वेब सीरीज और फिल्मों की शूटिंग के लिए केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय ने रविवार, 23 अगस्त की सुबह गाइडलाइंस जारी कर दी.  सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने रवीवार, 23 अगस्त की दोपहर, करीब पौने बारह बजे ट्वीट कर इसकी जानकारी दी.

वैसे तो महाराष्ट्र सरकार ने 31 मई और फिर 23 जून को संशोधित गाइड लाइन जारी का ‘‘मिशन बिगेन अगेन’’ के तहत फिल्म, सीरियल व वेब सीरीज की शूटिंग शुरू करने की इजाजत दी थी.  जिसके चलते 25 जून से टीवी सीरियलों की शूटिंग जरुर शुरू हुई, पर दो दर्जन से अधिक सीरियलों के सेट पर कलाकार अथवा वर्कर कोरोना संक्रमित हो चुके हैं. इतना ही नहीं इसी कोरोना संक्रमण के चलते पार्थ समाथान और इरिका फर्नाडिष ने सीरियल ‘‘कसौटी जिंदगी की 2’’को बाय बाय करने का फैसला ले लिया है, तो अब इस सीरियल के प्रसारण के बंद होने की नौबत आ गयी है. तो वहीं सीरियल ‘‘भाखरवाड़ी’’ के सेट पर एक वर्कर यानी कि टेलर का काम करने वाले षख्स की कोरोना से मौत हो गयी और आठ वर्कर अस्पताल में हैं. अब खबर यह है कि इस सीरियल का भी प्रसारण बंद होने जा रहा है, तो वही सीरियल ‘‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’’के कलाकार भी इसे छोड़ रहे हैं, परिणामतः इसके भी बंद हो जाने की अफवाहें गर्म हैं. इसके मायने यह हुए कि महाराष्ट्र सरकार की गाइडलाइन्स में कुछ कमी है.

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इतना ही नहीं महाराष्ट्र सरकार द्वारा गाइड लाइन्स जारी होने के बाद से विवाद चले आ रहे हैं.  महाराष्ट्र सरकार ने 65 वर्ष व उससे अधिक उम्र के कलाकारों,  वर्कर व तकनीशियन के काम करने पर रोक लगा दी थी.  मुंबई उच्च न्यायलाय ने इस पर महाराष्ट्र सरकार की जमकर खिंचाई की और हर किसी को काम करने की छूट देने का निर्णय सुनाया. इतना ही नही महाराष्ट्र सरकार की गाइड लाइंस के अनुसर कलाकारों को भी मास्क पहनकर शूटिंग करना था. कई अन्य मसले भी थे. जिसकी वजह से फिल्म उद्योग के अंदर ही मतभेद चल रहे थे.

इसी वजह से फिल्म उद्योग से जुड़े कुछ संगठनों ने केंद्र सरकार से गुहार लगायी थी. बहरहाल, केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्रालय ने रवीवार, 23 अगस्त की सुबह फिल्मों की शूटिंग के लिए गाइडलाइंस जारी कर दी. इस गाइडलाइंस में सभी जगहों पर फेस मास्क के प्रयोग और छह फीट की सामाजिक दूरी बनाए रखना अनिवार्य किया गया है, मगर कलाकारों को इसमें छूट दी गयी है. सेट बनाने वाले, कैटरिंग, क्रू पोजिशंस,  कैमरा लोकेशंस आदि में दूरी बनाकर रखनी होगी. रिकॉर्डिंग स्टूडियोज,  एडिटिंग रूम्स में भी छह फीट की दूरी का ख्याल रखना अनिवार्य है. फिलहाल सेट्स पर दर्शकों को आने की इजाजत नहीं दी गई है.

गाइड लाइन्स के कुछ अन्य बिंदु इस प्रकार हैंः

1-मेकअप आर्टिस्ट्स, हेयर स्टायलिस्ट्स को पीपीई का उपयोग करना अनिवार्य
2-विग, कॉस्ट्यूम और मेकअप के सामान की शेयरिंग पर रोक
3-माइक के डायफ्राम से सीधा संपर्क न रखा जाए
4-हर शूटिंग या डबिंग या एडीटिंग आदि में उपयोग में आने वाले सभी उपकरणों को बार बार सेनीटाइज किया जाए.
5-सेट पर कम से कम वर्कर हों.
6-आउटडोर शूटिंग के लिए स्थानीय प्रशासन की अनुमति जरुरी.
7-उच्च जोखिम वाले कर्मचारियों को अतिरिक्त सावधानी बरतनी होगी
8-स्वच्छता मानदंडों का पालन करना होगा
9-हर स्टूडियो /सेट के प्रवेश द्वार पर थर्मल स्क्रीनिंग अनिवार्य
10-सभी एयर कंडीशनिंग उपकरणों के तापमान सेटिंग 24-30 डिग्री सेल्सियस की सीमा में होनी चाहिए
11-क्रास वेंटिलेशन सुनिश्चित करना होगा.
12-सामान्य स्थान जैसे सेट,  कैफेटेरिया,  मेकअप रूम,  एडिट रूम,  वैनिटी वैन,  वॉशरूम आदि को नियमित रूप से साफ किया जाएगा
13-वेशभूषा,  हेयर विग,  मेकअप आइटम,  उपकरण और पीपीई के उपयोग को साझा न किया जाए.
14-आरोग्य सेतु ऐप के उपयोग की सलाह

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रविवार को ही सूचना व प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने ट्वीट किया है-‘‘कम से कम संपर्क‘ एसओपी में मूलभूत है. यह कम से कम शारीरिक संपर्क और हेयर स्टाइलिस्टों द्वारा पीपीई,  प्रॉप्स शेयर करना और दूसरों के बीच मेकअप कलाकारों द्वारा सुनिश्चित किया जाएगा. ‘‘
मगर अहम सवाल अभी भी बना हुआ है कि क्या अब सारे विवाद खत्म हो जाएंगे और फिल्मों की शूटिंग शुरू हो पाएगी? क्योंकि फिल्मों की शूटिंग से जुड़े कई ऐसे मुद्दे अभी भी हैं,  जिन पर विचार करने की जरुरत है.

इमोशनल इम्यूनिटी का रखें ध्यान

जिस तरह हम बीमारी से लड़ने के लिए अपने शरीर की इम्यूनिटी को मजबूत बनाए रखने की कोशिश करते हैं उसी प्रकार मस्तिष्क की इम्यूनिटी को भी मजबूत बनाए रखना जरूरी होता है. आज के युग में हम हर चीज से वाकिफ और सुरक्षित रहने के लिए हर तरह की जानकारी लेते रहते हैं, लेकिन यह भूल जाते हैं कि इस का सीधा असर हमारे शरीर और मस्तिष्क पर पड़ता है.

हमारी जिंदगी में क्या हो रहा है और क्या हो सकता है, हमारा दिमाग इस के बीच का फर्क नहीं समझ पाता है. उदाहरण के लिए हो सकता है मैं ने यह हजारों बार सोच लिया हो कि दुनिया खत्म होने वाली है या मैं हमेशा के लिए अकेला रह जाऊंगा या मेरे परिवार के सदस्यों को भी कोरोना हो सकता है. लेकिन असल में देखा जाए तो ये सब मात्र हमारे विचार हैं, जबकि हमारा मस्तिष्क हमें भ्रमित करता रहता है, जिस के कारण हम अपने विचारों को सच समझते रहते हैं. ऐसे में खुद को शांत रखने के लिए इमोशनल इम्यूनिटी का मजबूत होना बेहद जरूरी है.

इस वायरस और कई अन्य समस्याओं से बाहर आने के लिए डर खत्म करना अनिवार्य है. इस प्रकार की भयभीत कर देने वाली स्थितियों में किसी भी प्रकार की जानकारी या खबर हमें अधिक सोचने पर मजबूर कर सकती है.

ऐसे में इन उपायों की मदद से इमोशनल इम्यूनिटी को मजबूत बनाया जा सकता है और हर स्थिति में स्वस्थ और सुरक्षित रह सकते हैं:

इमोशनल इम्यूनिटी को मजबूत बनाएं ऐसे

उपचार से बेहतर बचाव है: जी हां, बात चाहे मानसिक स्वास्थ्य की ही क्यों न हो, बचाव हमेशा अहम भूमिका निभाता है. कुछ बातों को समझना हमारे लिए बहुत जरूरी है. दुनिया में क्या चल रहा है इस की चिंता करने के बजाय मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर कैसे रखा जा सकता है, इस पर ध्यान दें. जाहिर है यदि हम स्वस्थ रहेंगे तभी हम खुश और सुरक्षित महसूस कर पाएंगे.

खुद को पैंपर करें

यह स्वस्थ रहने का एक कारगर विकल्प है. हम इस धरती पर मौजूद हैं, इस का सुबूत केवल हमारे शरीर से मिलता है, इसलिए उसे प्यार करना बेहद जरूरी है. सिर की मसाज करें, बौडी मसाज लें, पूरी मस्ती में नहाएं, त्वचा का खयाल रखें. ये सब करने से हमारे मस्तिष्क को राहत मिलती है.

कुकिंग, डांस, म्यूजिक, पेंटिंग, ड्राइंग, क्रिएटिंग: ताजा फलों को छू कर महसूस करें और उन के रंग, आकार और टैक्स्चर को देखें. अपना पसंदीदा म्यूजिक चला कर उस पर खुल कर डांस करें. आप को इंटरनैट पर कई प्रकार के ड्राइंग सैशन मिल जाएंगे. उन की मदद से मस्तिष्क को अच्छी चीजों में उलझए रखें. ऐसा करने से हमें इस बात का एहसास रहता है कि दुनिया में चाहे कितना बुरा हो रहा हो, लेकिन जिंदगी का एक यह भी रूप है जो हर चिंता, हर दर्द को खत्म कर देता है.

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अच्छी खबरें और जानकारी ढूंढ़ें: हम क्या पढ़ना और देखना पसंद करते हैं यह पूरी तरह से हम पर निर्भर करता है. इसलिए हमेशा नकारात्मक खबरें पढ़नेसुनने के बजाय सकारात्मक खबरें पढ़ें और जानें कि दुनिया में क्याक्या अच्छा हो रहा है.

परिवार के टच में रहें: अपने दोस्तों, परिवार के सदस्यों या पति/पत्नी के साथ बातचीत करते रहें. उन के साथ अच्छा समय बिताएं. इस से हमेशा खुश रहेंगे.

हैल्थ रिमाइंडर: बेहतर इम्यूनिटी के लिए केवल इतना काफी नहीं है, बल्कि आप को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि आप इस के लिए क्याक्या कर रहे हैं. यह रिमाइंडर आप को खुद पर विश्वास करना सिखाएगा और आप को मानसिक रूप से स्वस्थ रखेगा. इस के साथसाथ उन चीजों को भी नोट करें जिन से आप की इमोशनल इम्यूनिटी कमजोर होती है ताकि आप उन चीजों से बच सकें.

खुद से नकारात्मक बातें करना: कई बार ऐसा होता है कि हम समाज की बातों को अपने विचार समझने लगते हैं. समाज में क्या हो रहा हम खुद से वही बातें करने लगते हैं. इसीलिए हम वाकई क्या सोचते हैं इस पर ध्यान देना जरूरी है. दूसरों की बातों में न आ कर अपने विचारों के अनुसार खुद से बातें करें और हमेशा अच्छा सोचें.

बहुत ज्यादा खाना या बहुत कम खाना, ज्यादा सोना या कम सोना: हमारा शरीर हर चीज संतुलित मात्रा में चाहता है. हमें इस बात का खयाल रखना चाहिए कि हम अपनी भूख मिटाने के लिए खाना खाते हैं या खाने को खत्म करने के लिए खाते हैं. कम सोने से हमारे मस्तिष्क पर बुरा असर पड़ता है, जिस कारण हमारा स्वभाव चिड़चिड़ा होने लगता है. वहीं बहुत अधिक सोना भी किसी गंभीर समस्या का लक्षण हो सकता है.

खुद को श्रेय नहीं देना: इमोशनल इम्यूनिटी को मजबूत बनाए रखने के लिए आप जो भी करते हैं उस के लिए खुद को श्रेय दें. हमेशा खुद को याद दिलाते रहें कि आप जरूरी कदम उठा रहे हैं. हम अकसर चीजों के लिए खुद को श्रेय देना भूल जाते हैं.

गड़े मुरदे उखाड़ना: यदि हम पुरानी बातों को सोच कर अभी भी परेशान होते हैं, तो उन सभी बातों पर मिट्टी डालने का समय आ गया है. खराब यादें हमारे शरीर की ऊर्जा को बाधित करती हैं. यदि आप किसी हादसे से उभर नहीं पा रहे हैं तो किसी प्रोफैशनल की मदद लें.

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धीरेधीरे लौकडाउन को खोले जाने के साथ हमारा जीवन भी पटरी पर वापस आ रहा है. हमें यह समझने की आवश्यकता है कि हम हमेशा अपने घर में बैठे नहीं रह सकते हैं. इस स्थिति से लड़ने का सब से अच्छा तरीका यह है कि हम इस स्थिति को स्वीकार कर अपने जीवन को उसी के अनुसार फिर से शुरू कर दें और हमेशा सकारात्मक सोच बनाए रखें.

-डा. संदीप गोविल

-सलाहकार, मैंटल हैल्थ ऐंड बिहेवियर साइंसेस, सरोज सुपर स्पैश्यलिटी हौस्पिटल, नई दिल्ली. द्य

डाक्टर्स से जानें कोरोना में कैसे सेफ रहें प्रैग्नेंट महिलाएं

कोविड-19 ने हर व्यक्ति के जीने का तरीका पूरी तरह से बदल दिया है. देश में कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. प्रैग्नेंट महिलाओं में इस संक्रमण का खतरा ज्यादा है. दरअसल, प्रैग्नेंट महिलाओं को वक्तवक्त पर जांच की आवश्यकता पड़ती है, लेकिन कोरोनाकाल में उन का बाहर जाना खतरे से खाली नहीं है. घर से बाहर न जाना पड़े इसलिए गाइनेकोलौजिस्ट प्रैग्नेंट महिलाओं को औनलाइन वीडियो कंसल्टेशन के जरीए परामर्श दे रहे हैं.

अच्छी खबर यह है कि यह वायरस प्लेसेंटा के पार नहीं जा सकता है. इस का अर्थ यह है कि गर्भ में पल रहे बच्चे को इस वायरस से कोई खतरा नहीं है. लौकडाउन के दौरान एक कोरोना पौजिटिव महिला ने बिलकुल स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया. लेकिन इस का मतलब यह नहीं है कि आप अपनी सेहत या अपनी प्रैगनैंसी को ले कर लापरवाह हो जाएं, क्योंकि ऐसा करना आप और आप के होने वाले बच्चे के लिए बिलकुल सही नहीं होगा.

कोरोना वायरस के कारण बढ़ा तनाव का स्तर

हारमोनल बदलावों के कारण प्रैग्नेंट महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है. ऐसे में उन में तनाव, डिप्रैशन, चिंता, गुस्सा, मूड स्ंिवग्स आदि आम समस्याएं बन जाती हैं. इसलिए इस महामारी के दौरान उन्हें अपने स्वास्थ्य का खास खयाल रखने की आवश्यकता है. कोरोना का खतरा उन में ज्यादा है, यह जान कर तनावग्रस्त होना स्वाभाविक है. लेकिन एक प्रैग्नेंट महिला पर यह तनाव बहुत भारी पड़ सकता है.

आइए, जानते हैं कि कोरोना वायरस के दौरान प्रैग्नेंट महिलाओं को किनकिन बातों का ध्यान रखना चाहिए और किस प्रकार की सावधानी बरतनी चाहिए ताकि जच्चा और बच्चा दोनों स्वस्थ रहें:

ऐसे रहें स्वस्थ

अच्छा रूटीन तैयार करें: अच्छा रूटीन बनाएं और हर दिन उस का पालन करें. मदरहुड पर किताब पढ़ने से भी आप को पता चलेगा कि खुद का और गर्भ में पल रहे बच्चे का खयाल कैसे रखा जा सकता है. दिनभर अच्छी गतिविधियों में शामिल हों.

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हलकेफुलके व्यायाम करें: व्यायाम आप को न सिर्फ शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी स्वस्थ रखते हैं. इसलिए हर दिन सुबह जल्दी उठ कर व्यायाम करें. इस से मस्तिष्क में खून का प्रवाह बेहतर होता है, हैप्पी हारमोंस रिलीज होते हैं और औक्सिडेटिव तनाव कम होता है. हलकीफुलकी ऐक्सरसाइज भी सेहत के लिए अच्छी रहेगी.

स्वस्थ आहार: आप को पौष्टिक व संतुलित आहार के साथसाथ शारीरिक सक्रियता का भी पूरा खयाल रखना है. ऐसी चीजें खाएं जिन से आप की इम्यूनिटी मजबूत रहे. हारमोनल स्तर में उतारचढ़ाव के कारण कभी भूख ज्यादा लगती है तो कभी कुछ भी खाने का मन नहीं करता है. असल समस्या पर ध्यान दें, लौंग टर्म की दृष्टि के साथ सोचें और सही फैसला करें.

अच्छी नींद: प्रैग्नेंट महिला को हर रोज 6-7 घंटों की अच्छी नींद लेनी चाहिए. नींद पूरी होने से आप हमेशा स्वस्थ और सक्रिय महसूस करेंगी. अच्छी नींद से तनाव का असर भी कम होता है.

आराम जरूरी: प्रैग्नेंट महिलाओं को बहुत ज्यादा काम या भारी सामान नहीं उठाना चाहिए. व्यायाम भी हलकाफुलका हो करना चाहिए ताकि सेहत पर कोई बुरा असर न पड़े. जो महिलाएं भारी सामान उठाती हैं या बहुत अधिक काम करती हैं और ठीक से आराम नहीं कर पाती हैं उन में गर्भपात का खतरा बनता है. इसलिए लापरवाही न बरतें.

स्वच्छता जरूरी: प्रैग्नेंट महिलाओं के लिए स्वच्छता का खयाल रखना बेहद जरूरी है. बात कोरोना की हो तो स्वच्छता का खयाल रखना और अधिक जरूरी हो जाता है. इसलिए व्यक्तिगत साफसफाई पर पूरा ध्यान दें.

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डाक्टर द्वारा बताई गई दवाइयों का नियमित सेवन करें. जरूरत पड़ने पर ओब्स्टाट्रिशियन से संपर्क करने से बिलकुल न हिचकिचाएं.

-डा. सागरिका अग्रवाल

स्त्रीरोग विशेषज्ञा, इंदिरा आईवीएफ हौस्पिटल, नई दिल्ली.

महिलाएं फोन हैंडलिंग में दिखाएं स्मार्टनैस

पार्टनर 4 महीने से बिजनैस ट्रिप पर गया हुआ था, जिस कारण न सिर्फ उस की पत्नी रीता बोर फील कर रही थी, बल्कि उस की शारीरिक जरूरतें भी पूरी नहीं हो पा रही थीं. तभी उस की फ्रैंड नेहा ने उसे कुछ ऐसी साइट्स देखने की सलाह दी जिन्हें देख कर उसे संतुष्टि मिल सके. और हुआ भी ऐसा ही, अब रोज वह उन साइट्स पर विजिट करने लगी. लेकिन उस की गलती यह हुई कि उस ने जो भी लिंक खोल कर देखा न तो उसे हिस्ट्री से डिलीट किया और न ही डाउनलोड किए फोटो फोन से हटाए. ऐसे में जब पार्टनर वापस आया तो उस ने कुछ सर्च करने के लिए उस का फोन उठाया तो उस के होश उड़ गई. सफाई देने के बावजूद उस ने रीता की एक नहीं सुनी और दोनों के बीच  झगड़ा शुरू हो गया. उस ने रीता के कैरेक्टर पर उंगली उठा दी. रीता की छोटी सी गलती ने उन के रिश्ते में दूरियां पैदा कर दीं.

ऐसा सिर्फ महिलाएं ही नहीं, पुरुष भी करते हैं, बल्कि इस तरह की चीजें देखने में पुरुष महिलाओं से कहीं आगे होते हैं, लेकिन वे ज्यादा तकनीक के जानकार होने के कारण बच जाते हैं. यहां तक कि भले ही वे घर से बाहर निकलते हुए अपनी कुछ जरूरी चीजें भूल सकते हैं, लेकिन फोन कभी नहीं. तभी तो यह पुराना चुटकुला उन पर मशहूर है- एक शादीशुदा आदमी सबकुछ भूल सकता है, लेकिन घर पर मोबाइल नहीं. ऐसे में आप टैक्नोलौजी के मामले में पुरुषों से पीछे क्यों रहें.

जानिए, कैसे आप अपनेअपने फोन को स्मार्टली हैंडल कर सकती हैं:

फोन को नहीं ऐप्स को करें लौक

पुरुष काफी स्मार्ट होते हैं भले ही वे हमेशा अपने फोन को लौक कर के रखें, लेकिन पार्टनर का फोन उन्हें खुली किताब की तरह ही चाहिए. जब खोले उसे किसी पासवर्ड की जरूरत न हो. ऐसे में आप थोड़ी सम झदार बनें. भले ही उस में ऐसीवैसी कोई चीज न हो, फिर भी अपने फोन के ऐप्स को लौक कर के रखें. इस के लिए आप को आमतौर पर हर ऐप की सैटिंग में जा कर प्राइवेसी के औप्शन पर क्लिक कर के उस ऐप को लौक करना होगा. इस से फायदा यह होगा कि आप का पार्टनर आप के बिना आप का फोन नहीं खोल पाएगा. इस से जहां आप को तकनीक की जानकारी मिलेगी वहीं आप निश्चिंत भी रहेंगी.

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फोन को क्यों न करें लौक

अधिकांश लोगों की यह आदत होती है कि वे अपने फोन को लौक कर के रखते हैं ताकि कोई भी उन के फोन के साथ छेड़छाड़ न कर सके. जबकि फोन को लौक करना सही नहीं है, क्योंकि अगर आप कहीं भी जाते हुए किसी दुर्घटना का शिकार हो जाते हैं या फिर कहीं पर आप का फोन छूट जाता है तो फोन के लौक होने के कारण कोई भी आप के परिवार को सूचित नहीं कर पाएगा.

क्लाउड पर सेव करें डाटा

ऐप्पल डिवाइस में आई क्लाउड सुविधा होती है, जबकि ऐंड्रौयड स्मार्टफोन में गूगल ड्राइव पहले से इनबिल्ट होता है. ये क्लाउड स्टोरेज कहलाते हैं. मोबाइल पर जो डेटा हम सेवा करते हैं उसे डिजिटल माध्यम कहते हैं. लेकिन जो डेटा हम आई क्लाउड या गूगल ड्राइव पर सेव करते हैं उसे वर्चुअल माध्यम कहते हैं. इस में डेटा आप के फोन की लोकल ड्राइव में सेव नहीं होता, बल्कि दूसरी कंपनी के सर्वर पर सेव होता है. इस से जहां आप के फोन की मैमोरी भी नहीं भरती वहीं आप का डेटा भी स्टोर हो जाता है, जिसे आप जब चाहें, जहां से चाहें खोल कर देख सकती हैं. और जिसे चाहें भेज सकती हैं. इस में आप फोटो, फाइल्स, वीडियो कुछ भी सेव कर के रख सकती हैं. इस के लिए आप को ईमेल आईडी और पासवर्ड की जरूरत होती है और इंटरनैट होना जरूरी है.

उदाहरण के लिए जैसे आप ऐंड्रौयड फोन में ड्राइव पर डेटा सेव करती हैं तो उस के लिए आप को जो भी डौक्यूमैंट सेव करना है उस पर क्लिक कर के आप को शेयर के औप्शन को चूज करना है, फिर उस में आप सेव ड्राइव वाले औप्शन को क्लिक करें, जिस में सब से पहले आप को डौक्यूमैंट का नाम डालना होगा. फिर मेल आईडी, फिर फोल्डर के औप्शन पर क्लिक कर के सलैक्ट डैस्टिनेशन में न्यू फोल्डर में जा कर फोल्डर का नाम डालें और क्रिएट करें और उस फाइल को फोल्डर में सेव कर लें.

हिस्ट्री डिलीट करने की आदत डालें

अकसर औफिस में जब भी हम किसी कुलीग का कंप्यूटर यूज करते हैं तो उस से हिस्ट्री को डिलीट जरूर करते हैं ताकि कोई देख न पाए कि हम ने क्या सर्च किया है. ऐसे में जब भी आप गूगल पर कुछ भी सर्च करें तो हिस्ट्री को डिलीट जरूर करें. इस से अगर कोई आप का फोन यूज करेगा तब भी कोई नहीं जान पाएगा कि आप ने क्या सर्च किया है.

इस के लिए आप जब गूगल पेज ओपन करते हैं तो ऊपर की तरफ या फिर नीचे की तरफ डौट्स बने होते हैं, उन्हें आप क्लिक करें. आप को इस में हिस्ट्री का औप्शन दिखेगा, फिर उस पर क्लिक कर के आप क्लियर बरोसिंग डेटा पर क्लिक करें. इस में आप को लास्ट आवर का औप्शन दिखेगा, जिस पर क्लिक कर के आप को जो डेटा डिलीट करना है कर लें. इस से आप निश्चिंत हो कर फोन में कुछ भी सर्च कर सकती हैं.

एडल्ट साइट्स को सबस्क्राइब न करें

आज ढेरों ऐसे ऐप्स हैं जो एडल्ट कंटैंट देते हैं, साथ ही आप को नैट पर भी इस तरह की ढेरों सामग्री देखने को मिल जाएगी. ऐसे में जब भी आप इन साइट्स पर विजिट करें तो भूल कर भी सबस्क्राइब न करें, क्योंकि इस के बहाने आप की पर्सनल इन्फौरमेशन जैसे मेल आईडी, कौंटैक्ट नंबर उन तक चला जाता है, जो आप को मुसीबत में डाल सकता है.

अलाउ औप्शन ओके न करें

चाहे हम शौपिंग साइट्स पर विजिट करें या फिर किसी अन्य साइट पर, जब भी हम उस साइट पर जाते हैं तो नोटिफिकेशन के लिए अलाउ और डिसएग्री का औप्शन आता है, तो आप कभी भी अलाउ के औप्शन पर क्लिक न करें, क्योंकि इस से आप को थोड़ीथोड़ी देर में नोटिफिकेशन आने शुरू हो जाते हैं, जो न सिर्फ आप को परेशान करेंगे, बल्कि हो सकता है कि इन पर किसी की नजर भी पड़ जाए. ध्यान रखें बिना सोचेसम झे किसी पर भी क्लिक न करें.

फोन में चीजें डाउनलोड न करें

अकसर हमारी आदत होती है कि हमें जो भी साइट्स खोलते हुए अच्छा लगता है हम उसे डाउनलोड कर के फोन में रख लेते हैं. आप अपनी इस आदत को छोडि़ए, क्योंकि इस से न सिर्फ फोन की मैमोरी पर असर पड़ता है बल्कि कई बार ऐसी चीजें भी सेव कर लेते हैं, जिन से फोन हैंग होने का भी डर बना रहता है.

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व्हाट्सऐप को करें लौक

व्हाट्सऐप आजकल सब से ज्यादा चैटिंग करने के लिए प्रचलित ऐप है. आप उस को लौक कर के रखें. इस से आप के चैटिंग बौक्स को बिना आप की इजाजत के कोई नहीं खोल पाएगा. इस के लिए आप व्हाट्सऐप को ओपन करिए, फिर ऊपर की तरफ के डौट्स को क्लिक कर के अकाउंट में प्राइवेसी को क्लिक करना होगा. इस में आप लौक औप्शन को चूज कर सकती हैं और आप इसी में चैट पर जा कर अपनी चैट हिस्ट्री को डिलीट या फिर चैट बैकअप भी ले सकती हैं.

कैसे करें ऐंड्रौयड फोन में फोटो हाइड

कुछ मूवमैंट ऐसे होते हैं, जिन्हें हम अपने फोन में कैद कर के रखना चाहते हैं, लेकिन अनजाने में कोई आप के फोटो खोल कर देख ले तो आप को शर्मिंदा होना पड़ सकता है. ऐसे में आप के पास औप्शन है कि आप सभी फोटो हाईड कर के रखें और जब मन हो तब खोल कर देख लें.

इस के लिए आप फोन की गैलरी में जिस फोटो को हाइड करना चाहती हैं उस पर क्लिक करें. फिर ऊपर की तरह दिख रहे डौट्स पर क्लिक कर के कंप्रैस पर क्लिक करें. अब फाइल नेम, फाइल लोकेशन, जिस में आप को फाइल कहां सेव करनी है डाल कर पासवर्ड सैट करें और सेव कर लें. इस से आप की पर्सनल चीजें आप के पास भी रहेंगी और कोई उन्हें देख भी नहीं पाएगा.

इन बातों का भी रखें खयाल

– शौपिंग साइट्स पर कभी अपने कार्ड को सेव कर के न रखें.

– पासवर्ड कभी फोन में सेव न करें.

– बैंक डिटेल फोन में न रखें.

– नैट बैंकिंग हमेशा खुद के मोबाइल फोन से ही करें.

– सामान की लिस्ट बना कर फोन में सेव कर के रख सकती हैं.

– अपनी पर्सनल इन्फौरमेशन फोन में सेव न करें.

– जरूरी डेटा पासवर्ड प्रोटैक्टेड रखें.

– अगर आप को पासवर्ड भूलने की आदत है तो आप दूसरे शहर में रह रही अपनी किसी विश्वसनीय फ्रैंड से उसे शेयर कर दें ताकि भूलने की स्थिति में वह आप की मदद कर सके.

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इनके लिए कोरोना बन गया वरदान

2020 के प्रारम्भ में ही चीन के वुहान प्रान्त से निकले कोरोना वायरस ने शनैः शनैः समस्त संसार में तबाही मचा दी. मार्च में जब भारत में यह प्रारम्भिक दौर में ही था तो सरकार ने संक्रमण रोकने की दृष्टि से लॉक डाउन लगा दिया. इस लॉक डाउन में किसी की नौकरी गयी, देश की आर्थिक स्थिति बदहाल हो गयी और कइयों के तो घर ही छूट गए परन्तु कुछ वृद्धों के लिए ये लॉक डाउन वरदान साबित हुआ क्योंकि उन्हें उनका घर परिवार , बेटा बहू और नाती पोते मिल गए. ताउम्र अपने बच्चों के लिए जीने वाले माता पिता को जब उम्र के अंतिम पड़ाव में अपने ही बच्चों का सहारा नहीं मिलता तो उनकी जीने की इच्छा ही समाप्त हो जाती है परन्तु कोरोना ने समाज के अनेकों  वृद्धों को उनके परिवार से मिलाकर जीवन जीने की जिजीविषा को पुनः जाग्रत कर दिया. आइये नजर डालते हैं ऐसे ही चंद उदाहरणों पर,

2 बेटों और एक बेटी के पिता भोपाल के 70 वर्षीय मुन्नालाल ने  पारिवारिक विवाद के चलते 6 माह पूर्व घर छोड़ दिया था. पैसों और पिता की देखरेख को लेकर बच्चों में रोज होने वाले विवादों से वे इतने व्यथित हो गए कि जनवरी माह में घर छोड़कर एक वृद्धाश्रम में रहने लगे. वे कहते हैं ,” बच्चों ने कभी सुध लेने का प्रयास तक नहीं किया.” जब मार्च में लॉक डाउन हुआ तो  किसी तरह बेटी ने पिता का पता लगाया और लेने पहुंची और तब से पिता बेटी के साथ उसी के घर में रह रहे हैं. उनकी बेटी अनुराधा कहती है,”कोरोना में जब पूरा परिवार एक साथ था तो पिता की कमी बहुत खली. यह अहसास हुआ कि जीवन का  कोई ठिकाना नहीं है जब तक जिंदा हैं साथ ही रहेंगे”

ऐसी ही कहानी है हरीश चंद्र जी की. जनवरी के अन्त में पत्नी और बेटे से विवाद हो गया. बेटे की कही बातों ने उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाई तो घर छोड़कर एक वृद्धाश्रम आ गए .जब पत्नी ने भी नहीं रोका तो मन बहुत आहत हुआ. उनका बेटा कहता है” पिता के घर से जाने के बाद बहुत शांति महसूस हुई थी. काम के बीच कभी नहीं लगा कि मैंने कुछ गलत किया है. परन्तु मार्च में जब लॉक डाउन हुआ तो कुछ समय बाद ही मुझे उनके साथ गुजारे बचपन के दिन याद आने लगे..और पिता के बिना जीवन ही अधूरा लगने लगा. लॉक डाउन खुलते ही मैंने उनसे माफी मांगी और ससम्मान घर ले आया. अब जीवन बड़ा खुशमय प्रतीत होता है.

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ऐसा ही कुछ हुआ 68 वर्षीया प्रयागराज निवासी कंचन के साथ वे कहतीं है,”दोनों बेटे मुझे बोझ समझते थे, कोई बात तक नहीं करता था, बहुएं खाना नहीं देतीं थीं. एक दिन घर छोड़कर कुटुम्ब नामक आश्रम आ गईं. पिछले एक वर्ष से यहीं रह रहीं थीं.” उनका बेटा कहता है,”लॉक डाउन में जब हम घर में रहे तो जीवन अधूरा सा लगने लगा. मां हर रोज सपने में आने लगीं. हमें अपनी गल्ती का अहसास हुआ’जिस मां ने हमें इतना बड़ा किया वही आज हमारे होते हुए अनाथ है सोचकर हम अपनी ही नजरों में गिर गए थे.अब मां को ले आये हैं… तब जाकर चैन मिला है”

अमरावती निवासी सुरेश जी की पत्नी का 2 वर्ष पूर्व निधन हो गया. वे कहते हैं” घर में बेटा, बहू बच्चे सभी व्यस्त रहते हैं, मेरे लिए किसी के पास टाइम नहीं है.रोज रोज बेटे बहू के तानों से परेशान था सो यहाँ वृद्ध आश्रम आ गया. लॉक डाउन में बच्चों को जब आत्मचिंतन का अवसर मिला तो लेने आये. अब बच्चों के साथ सुख से रह रहा हूँ”

ये केवल इन चार वृध्दों की नहीं बल्कि भारत के अनेकों बूढों की कहानी है जब घर परिवार के होते हुए भी उन्हें अनाथों जैसा जीवन जीना पड़ता है. अपनी ही सुख सुविधा में खोए उनके बच्चों को अपने ही माता पिता की सुध तक नहीं आती. विचारणीय है कि लॉक डाउन ने उन्हें ऐसा क्या दिया कि उन्हें अपने जन्मदाता की याद आने लगी.

-पर्याप्त समय

वास्तव में कोरोना सारी दुनिया पर कहर बनकर तो टूटा परन्तु लॉक डाउन ने प्रत्येक इंसान को आत्ममंथन के लिए पर्याप्त समय दिया. आज हर इंसान जीवन की भागदौड़ औऱ रोजी रोटी कमाने में इतना अधिक व्यस्त है कि उसके पास अपने अलावा किसी अन्य के बारे में सोचने का समय ही नहीं है. लॉक डाउन में जब घर पर बिना किसी काम के रहने का अवसर मिला तो अपने द्वारा किये सही और गलत का तात्पर्य समझ में आया और माता पिता की अहमियत भी.

-कोरोना का भय

यूँ तो हम सभी जानते हैं कि बीमारी कभी भी अमीर गरीब देखकर नहीं आती परंतु कोरोना ने समस्त संसार को अवगत कराया कि जीवन कितना क्षणभंगुर है. एक छोटे से वायरस ने एक देश या इंसान नहीं बल्कि सम्पूर्ण मानवजाति के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया . लॉक डाउन में घर में रहने के दौरान इंसान को भी अहसास हुआ कि उनका जीवन भी कितने दिन का है नहीं पता इसलिए जब तक हैं पूरे परिवार के साथ सबका आशीष लेकर रहें.

-मददगार बने प्रेरणा

लॉक डाउन के प्रारंभिक चरण के बाद जब लोंगों को आवागमन की छूट दी गयी तो अनेकों मजदूर अपने कार्यस्थल से अपने घरों की ओर लौटने लगे जिनमें से अधिकांश के पास न पैसे थे और न ही भोजन ऐसे में अनेकों स्वयं सेवी संस्थाये, फिल्मी सितारे और आम लोग उनकी मदद को आगे आये….ऐसे लोगों की निस्वार्थ सेवा को देखकर जिनके माता पिता घर छोडकर चले  गए थे वे आत्मग्लानि से भर उठे और उन्हें  अनुभव हुआ कि वे कम से कम अपने जन्मदाता का ध्यान तो रख ही सकते हैं  और इसी आत्मग्लानि के कारण वे अपने माता पिता को वापस अपने साथ ले आये.

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उपरोक्त उदाहरण समाज का सच्चा आईना प्रदर्शित करते हैं. ऐसे उदाहरण हमें सोचने पर मजबूर करते हैं कि हम चाहे जितनी भी तरक्की कर ले परन्तु उस तरक्की के रास्ते पर बढ़ते समय बड़े बुजुर्गों और जन्मदाता के प्रति अपने कर्त्तव्यों की अवहेलना किसी भी कीमत पर न करें. वे हमारे जीवन और समाज का आधारस्तंभ हैं. वैसे भी इस उम्र में माता पिता को रुपये पैसे की नहीं बल्कि अपने बच्चों से केवल प्यार और तनिक सम्मान की दरकार होती है और जिसे पाने के वे हकदार भी हैं. इसलिए उनकी इस प्रत्याशा पर खरे उतरने की समाज के प्रत्येक युवा को प्रयास करना ही चाहिए.

कबाड़: क्या यादों को कभी भुलाया जा सकता है?

‘‘सुनिए, पुताई वाले को कब बुला रहे हो? जल्दी कर लो, वरना सारे काम एकसाथ सिर पर आ जाएंगे.’’

‘‘करता हूं. आज निमंत्रणपत्र छपने के लिए दे कर आया हूं, रंग वाले के पास जाना नहीं हो पाया.’’

‘‘देखिए, शादी के लिए सिर्फ 1 महीना बचा है. एक बार घर की पुताई हो जाए और घर के सामान सही जगह व्यवस्थित हो जाए तो बहुत सहूलियत होगी.’’

‘‘जानता हूं तुम्हारी परेशानी. कल ही पुताई वाले से बात कर के आऊंगा.’’

‘‘2 दिन बाद बुला ही लीजिए. तब तक मैं घर का सारा कबाड़ निकाल कर रखती हूं जिस से उस का काम भी फटाफट हो जाएगा और घर में थोड़ी जगह भी हो जाएगी.’’

‘‘हां, यह ठीक रहेगा. वैसे भी वह छोटा कमरा बेकार की चीजों से भरा पड़ा है. खाली हो जाएगा तो अच्छा है.’

जब से अविनाश की बेटी सपना की शादी तय हुई थी उन की अपनी पत्नी कंचन से ऐसी बातचीत चलती रहती थी. जैसेजैसे शादी का दिन नजदीक आ रहा था, काम का बोझ और हड़बड़ाहट बढ़ती जा रही थी.

घर की पुताई कई सालों से टलती चली आ रही थी. दीपक और सपना की पढ़ाई का खर्चा, रिश्तेदारी में शादीब्याह, बाबूजी का औपरेशन वगैरह ऐसी कई वजहों से घर की सफाईपुताई नहीं हुई थी. मगर अब इसे टाला नहीं जा सकता था. बेटी की शादी है, दोस्त, रिश्तेदार सभी आएंगे. और तो और लड़के वालों की तरफ से सारे बराती घर देखने जरूर आएंगे. अब कोई बहाना नहीं चलने वाला. घर अच्छी तरह से साफसुथरा करना ही पड़ेगा.

दूसरे ही दिन कंचन ने छोटा कमरा खाली करना शुरू किया. काफी ऐसा सामान था जो कई सालों से इस्तेमाल नहीं हुआ था. बस, घर में जगह घेरे पड़ा था. उस पर पिछले कई सालों से धूल की मोटी परत जमी हुई थी. सारा  कबाड़ एकएक कर के बाहर आने लगा.

‘‘कल ही कबाड़ी को बुलाऊंगी. थक गई इस कबाड़ को संभालतेसंभालते,’’ कमरा खाली करते हुए कंचन बोल पड़ीं.

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आंगन में पुरानी चीजों का एक छोटा सा ढेर लग गया. शाम को अविनाश बाहर से लौटे तो उन्हें आंगन में फेंके हुए सामान का ढेर दिखाई दिया. उस में एक पुराना आईना भी था. 5 फुट ऊंचा और करीब 2 फुट चौड़ा. काफी बड़ा, भारीभरकम, शीशम की लकड़ी का मजबूत फ्रेम वाला आईना. अविनाश की नजर उस आईने पर पड़ी. उस में उन्होंने अपनी छवि देखी. धुंधली सी, मकड़ी के जाले में जकड़ी हुई. शीशे को देख कर उन्हें कुछ याद आया. धीरेधीरे यादों पर से धूल की परतें हटती गईं. बहुत सी यादें जेहन में उजागर हुईं. आईने में एक छवि निखर आई…बिलकुल साफ छवि, कंचन की. 29-30 साल पहले की बात है. नईनवेली दुलहन कंचन, हाथों में मेहंदी, लाल रंग की चूडि़यां, घूंघट में शर्मीली सी…अविनाश को अपने शादी के दिन याद आए.

संयुक्त परिवार में बहू बन कर आई कंचन, दिनभर सास, चाची सास, दादी सास, न जाने कितनी सारी सासों से घिरी रहती थी. उन से अगर फुरसत मिलती तो छोटे ननददेवर अपना हक जमाते. अविनाश बेचारा अपनी पत्नी का इंतजार करतेकरते थक जाता. जब कंचन कमरे में लौटती तो बुरी तरह से थक चुकी होती थी. नौजवान अविनाश पत्नी का साथ पाने के लिए तड़पता रह जाता. पत्नी को एक नजर देख पाना भी उस के लिए मुश्किल था. आखिर उसे एक तरकीब सूझी. उन का कमरा रसोईघर से थोड़ी ऊंचाई पर तिरछे कोण में था. अविनाश ने यह बड़ा सा आईना बाजार से खरीदा और अपने कमरे में ऐसे एंगल (कोण) में लगाया कि कमरे में बैठेबैठे रसोई में काम करती अपनी पत्नी को निहार सके.

इसी आईने ने पतिपत्नी के बीच नजदीकियां बढ़ा दीं. वे दोनों दिल से एकदूसरे के और भी करीब आ गए. उन के इंतजार के लमहों का गवाह था यह आईना. इसी आईने के जरिए वे दोनों एकदूसरे की आंखों में झांका करते थे, एकदूसरे के दिल की पुकार समझा करते थे. यही आईना उन की नजर की जबां बोलता रहा. उन की जवानी के हर पल का गवाह था यह आईना.

आंगन में खड़ेखड़े, अपनेआप में खोए से, अविनाश उन दिनों की सैर कर आए. अपनी नौजवानी के दिनों को, यादों में ही, एक बार फिर से जी लिया. अविनाश ने दीपक को बुलाया और वह आईना उठा कर अपने कमरे में करीने से रखवाया. दीपक अचरज में पड़ गया. ऐसा क्या है इस पुराने आईने में? इतना बड़ा, भारी सा, काफी जगह घेरने वाला, कबाड़ उठवा कर पापा ने अपने कमरे में क्यों लगवाया? वह कुछ समझ नहीं पा रहा था. वह अपनी दादी के पास चला गया.

‘‘दादी, पापा ने वह बड़ा सा आईना कबाड़ से उठवा कर अपने कमरे में लगा दिया.’’

‘‘तो क्या हुआ?’’

‘‘दादी, वह कितनी जगह घेरता है? कमरे से बड़ा तो आईना है.’’

दादी अपना मुंह आंचल में छिपाए धीरेधीरे मुसकरा रही थीं. दादी को अपने बेटे की यह तरकीब पता थी. उन्होंने अपने बेटे को आईने में झांकते हुए बहू को निहारते पकड़ा भी था.

दादी की वह नटखट हंसी… हंसतेहंसते शरमाने के पीछे क्या माजरा है, दीपक समझ नहीं सका. पापा भी मुसकरा रहे थे. जाने दो, सोच कर दीपक दादी के कमरे से बाहर निकला.

इतने में मां ने दीपक को आवाज दी. कुछ और सामान बाहर आंगन में रखने के लिए कहा. दीपक ने सारा सामान उठा कर कबाड़ के ढेर में ला पटका, सिवा एक क्रिकेट बैट के. यह वही क्रिकेट बैट था जो 20 साल पहले दादाजी ने उसे खरीदवाया था. वह दादाजी के साथ गांव से शहर आया था. दादाजी का कुछ काम था शहर में, उन के साथ शहर देखने और बाजार घूमने दीपू चल पड़ा था. चलतेचलते दादाजी की चप्पल का अंगूठा टूट गया था. वैसे भी दादाजी कई महीनों से नई चप्पल खरीदने की सोच रहे थे. बाजार घूमतेघूमते दीपू की नजर खिलौने की दुकान पर पड़ी. ऐसी खिलौने वाली दुकान तो उस ने कभी नहीं देखी थी. उस का मन कांच की अलमारी में रखे क्रिकेट के बैट पर आ गया.

उस ने दादाजी से जिद की कि वह बैट उसे चाहिए. दीपू के दादाजी व पिताजी की माली हालत उन दिनों अच्छी नहीं थी. जरूरतें पूरी करना ही मुश्किल होता था. बैट जैसी चीजें तो ऐश में गिनी जाती थीं. दीपू के पास खेल का कोई भी सामान न होने के कारण गली के लड़के उसे अपने साथ खेलने नहीं देते थे. श्याम तो उसे अपने बैट को हाथ लगाने ही नहीं देता था. दीपू मन मसोस कर रह जाता था.

दादाजी इन परिस्थितियों से अच्छी तरह वाकिफ थे. उन से अपने पोते का दिल नहीं तोड़ा गया. उन्होंने दीपू के लिए वह बैट खरीद लिया. बैट काफी महंगा था. चप्पल के लिए पैसे ही नहीं बचे, तो दोनों बसअड्डे के लिए चल पड़े. रास्ते में चप्पल का पट्टा भी टूट गया. सड़क किनारे बैठे मोची के पास चप्पल सिलवाने पहुंचे तो मोची ने कहा, ‘‘दादाजी, यह चप्पल इतनी फट चुकी है कि इस में सिलाई लगने की कोई गुंजाइश नहीं.’’

दादाजी ने चप्पल वहीं फेंक दीं और नंगे पांव ही चल पड़े. घर पहुंचतेपहुंचते उन के तलवों में फफोले पड़ चुके थे. दीपू अपने नए बैट में मस्त था. अपने पोते का गली के बच्चों में अब रोब होगा, इसी सोच से दादाजी के चेहरे पर रौनक थी. पैरों की जलन का शिकवा न था. चेहरे पर जरा सी भी शिकन नहीं थी.

हाथ में बैट लिए दीपक उस दिन को याद कर रहा था. उस की आंखों से आंसू ढलक कर बैट पर टपक पड़े. आज दीपू के दिल ने दादाजी के पैरों की जलन महसूस की जिसे वह अपने आंसुओं से ठंडक पहुंचा रहा था.

तभी, शाम की सैर कर के दादाजी घर लौट आए. उन की नजर उस बैट पर गई जो दीपू ने अपने हाथ में पकड़ रखा था. हंसते हुए उन्होंने पूछा, ‘‘क्यों बेटा दीपू, याद आया बैट का किस्सा?’’

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‘‘हां, दादाजी,’’ दीपू बोला. उस की आंखें भर आईं और वह दादाजी के गले लग गया. दादाजी ने देखा कि दीपू की आंखें नम हो गई थीं. दीपू बैट को प्यार से सहलाते, चूमते अपने कमरे में आया और उसे झाड़पोंछ कर कमरे में ऐसे रख दिया मानो वह उस बैट को हमेशा अपने सीने से लगा कर रखना चाहता है. दादाजी अपने कमरे में पहुंचे तो देखा कि दीपू की दादी पलंग पर बैठी हैं और इर्दगिर्द छोटेछोटे बरतनों का भंडार फैला है.

‘‘इधर तो आइए… देखिए, इन्हें देख कर कुछ याद आया?’’ वे बोलीं.

‘‘अरे, ये तुम्हें कहां से मिले?’’

‘‘बहू ने घर का कबाड़ निकाला है न, उस में से मिल गए.’’

अब वे दोनों पासपास बैठ गए. कभी उन छोटेछोटे बरतनों को देखते तो कभी दोनों दबेदबे से मुसकरा देते. फिर वे पुरानी यादों में खो गए.

यह वही पानदान था जो दादी ने अपनी सास से छिपा कर, चुपके से खरीदा था. दादाजी को पान का बड़ा शौक था, मगर उन दिनों पान खाना अच्छी आदत नहीं मानी जाती थी. दादाजी के शौक के लिए दादीजी का जी बड़ा तड़पता था. अपनी सास से छिपा कर उन्होंने पैसे जोड़ने शुरू किए, कुछ दादाजी से मांगे और फिर यह पानदान दादाजी के लिए खरीद लिया. चोरीछिपे घर में लाईं कि कहीं सास देख न लें. बड़ा सुंदर था पानदान. पानदान के अंदर छोटीछोटी डब्बियां लौंग, इलायची, सुपारी आदि रखने के लिए, छोटी सी हंडिया, चूने और कत्थे के लिए, हंडियों में तिल्लीनुमा कांटे और हंडियों के छोटे से ढक्कन. सारे बरतन पीतल के थे. उस के बाद हर रात पान बनता रहा और हर पान के साथ दादादादी के प्यार का रंग गहरा होता गया.

दादाजी जब बूढ़े हो चले और उन के नकली दांत लग गए तो सुपारी खाना मुश्किल हो गया. दादीजी के हाथों में भी पानदान चमकाने की आदत नहीं रही. बहू को पानदान रखने में कोई दिलचस्पी नहीं थी. अत: पानदान स्टोर में डाल दिया गया. आज घर का कबाड़ निकाला तो दादी को यह पानदान मिल गया, दादी ने पानदान उठाया और अपने कमरे में ले आईं. इस बार सास से नहीं अपनी बहू से छिपा कर.

थरथराती हथेलियों से वे पानदान संवार रही थीं. उन छोटी डब्बियों में जो अनकहे भाव छिपे थे, आज फिर से उजागर हो गए. घर के सभी सदस्य रात के समय अपनेअपने कमरों में आराम कर रहे थे. कंचन, अविनाश उसी आईने के सामने एकदूसरे की आंखों में झांक रहे थे. दादादादी पान के डब्बे को देख कर पुरानी बातों को ताजा कर रहे थे. दीपक बैट को सीने से लगाए दादाजी के प्यार को अनुभव कर रहा था जब उन्होंने स्वयं चप्पल न खरीद कर उन पैसों से उसे यह बैट खरीद कर दिया था. नंगे पांव चलने के कारण उन के पांवों में छाले हो गए थे.

सपना भी कबाड़ के ढेर में पड़ा अपने खिलौनों का सैट उठा लाई थी जिस से वह बचपन में घरघर खेला करती थी. यह सैट उसे मां ने दिया था.

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छोटा सा चूल्हा, छोटेछोटे बरतन, चम्मच, कलछी, कड़ाही, चिमटा, नन्हा सा चकलाबेलन, प्यारा सा हैंडपंप और उस के साथ एक छोटी सी बालटी. बचपन की यादें ताजा हो गईं. राखी के पैसे जो मामाजी ने मां को दिए थे, उन्हीं से वे सपना के लिए ये खिलौने लाई थीं. तब सपना ने बड़े प्यार से सहलाते हुए सारे खिलौनों को पोटली में बांध लिया था. उस पोटली ने उस का बचपन समेट लिया था. आज उन्हीं खिलौनों को देख कर बचपन की एकएक घटना उस की आंखों के सामने घूमने लगी थी. दीपू भैया से लड़ाई, मां का प्यार और दादादादी का दुलार…

जिंदगी में कुछ यादें ऐसी होती हैं, जिन्हें दोबारा जीने को दिल चाहता है, कुछ पल ऐसे होते हैं जिन में खोने को जी चाहता है. हर कोई अपनी जिंदगी से ऐसे पलों को चुन रहा था. यही पल जिंदगी की भागदौड़ में कहीं छूट गए थे. ऐसे पल, ये यादें जिन चीजों से जुड़ी होती हैं वे चीजें कभी कबाड़ नहीं होतीं.

सोशलमीडिया पर छाया कुमकुम भाग्य फेम एक्ट्रेस का ब्राइडल फैशन, देखें फोटोज

टीवी एक्ट्रेस मृणाल ठाकुर (Mrunal Thakur) जल्द शाहिद कपूर के साथ स्क्रीन शेयर करने वाली हैं, जिसके बाद वह आए दिन सुर्खियों में रहती हैं. हाल ही में मृणाल ठाकुर ब्राइडल लुक में नजर आईं, जो करीना कपूर के लुक की तरह दिख रहा है. लेकिन दोनों का ही लुक बेहद खूबसूरत लग रहा. पर आज हम आपको मृणाल ठाकुर के ब्राइडल लुक के कुछ कलेक्शन के बारे में बताएंगे, जिसे आप शादी के खास दिन से लेकर अपने रिसेप्शन में कैरी कर सकते हैं. तो आइए आपको दिखाते हैं मृणाल ठाकुर के ब्राइडल कलेक्शन की झलक…

1. करीना कै जैसा लहंगा है खूबसूरत

ड्यूई मेकअप, स्लीक पोनीटेल और डार्क रेड लिप्स में मृणाल ठाकुर का लुक बेहद खूबसूरत है.  वहीं बात करें ज्वैलरी की तो मृणाल ने मनीष मल्होत्रा की डिजाइन की हुई करीना से मिलती जुलती ज्वैलरी भी कॉपी की है. न्यूड शेड कलर के हैवी लहंगे में मृणाल बेहद खूबसूरत लग रहा था.

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2. नीला कलर है खूबसूरत

 

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Not your babe! Go to bed 😜

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नीले रंग के हैवी वर्क लहंगे के साथ चोकर नेकपीस और राउंड ईयररिंग्स में मृणाल काफी अट्रैक्टिव नजर आ रही हैं. आप इस लुक को अपनी शादी के बाद रिसेप्शन में ट्राय कर सकती हैं, जो बेहद खूबसूरत लगेगा.

 

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🥰🥰 #repost @azafashions @azafashions presents The Aza Magazine, featuring Mrunal Thakur. When Love Sonia screened in Uzbekistan, it resulted in their parliament making amends to two laws with regards to women and human rights. “Fame is ephemeral, so I don’t let it get to me. But as an actor, I want to use my voice to make a difference,” says @mrunalofficial2016. Read more in the cover story of the @azafashions magazine at magazine.azafashions.com (link in bio). Lehenga – @anushreereddydesign Earrings – @thenehagoel Haathphool – @moh_maya_jewelry Necklace – @masayajewellery Photography – @tejasnerurkarr Styling – @castelino_priyanka MUA – @missblender Hair – @lakshsingh_hair #azafashions #azafashionsonline #azamagazine #magazine #mrunalthakur #anushreereddy #nehagoel #mohmayabydishakhatri #masayajewellery #bollywood #digitalmagazine #digitalcover #celebrity #celebrityfashion #covershoot #bridal #couture #readnow #shopnow

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3. फ्लावर प्रिंटेड लहंगे है खूबसूरत

 

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😇🦋🐝🌻💫🌝🌈✨🍒🍭

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अगर आप वेडिंग सीजन में कुछ खूबसूरत लुक ट्राय करना चाहती हैं तो मृणाल ठाकुर का ये लहंगे बेहद खूबसूरत है, जिसके साथ मैचिंग ज्वैलरी ट्राय कना ना भूलें.

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बता दें फिल्म बाटला हाउस में जॉन अब्राहम के अपोजिट काम कर चुकीं टीवी एक्ट्रेस मृणाल ठाकुर सोशलमीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं और अक्सर अपने लुक की खूबसूरत फोटोज फैंस के साथ शेयर करती रहती हैं.

World Ivf Day 2020: जानें क्या है इनफर्टिलिटी के कारण

मां बनने का एहसास हर महिला के लिए सुखद होता है. लेकिन यदि किसी कारण से एक महिला मां के सुख से वंचित रह जाए तो उसके लिए उसे ही जिम्मेदार ठहराया जाता है. हालांकि, कंसीव न कर पाने के कई कारण होते हैं लेकिन यह एक महिला के जीवन को बेहद मुश्किल और दुखद बना देता है. दरअसल, हमारे देश में आज भी बांझपन को एक सामाजिक कलंक के रूप में देखा जाता है. इसका प्रकोप सबसे ज्यादा महिलाओं को झेलना पड़ता है. जब भी कोई महिला बच्चे को जन्म नहीं दे पाती है तो समाज उसे हीन भावना से देखने लगता है. इस कारण से एक महिला को लोगों की खरी-खोटी सुननी पड़ती है जिसका उसके मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ता है. ऐसी महिलाएं उम्मीद करती हैं कि लोग उनकी स्थित और भावनाओं को समझेंगे. परिवार और दोस्तों से बात करके उन्हें कुछ हद तक अच्छा महसूस होता है इसलिए ऐसे समय में बाहरी लोगों से मिलने-जुलने से बचें क्योंकि गर्भवती महिला या बच्चों को देखकर आप डिप्रेशन का शिकार हो सकती हैं.

विश्व  आई  वी एफ दिवस  के अवसर पर, हम महिलाओं की इनफर्टिलिटी से संबंधित गलत धारणाओं को खत्म करने का उद्देश्य रखते हैं. असिस्टेड रिप्रोडक्टिव तकनीक (एआरटी) के क्षेत्र में हुई प्रगति के साथ, इनफर्टिलिटी से संबंधित कई समस्याओं का इलाज संभव है. इस प्रकार इलाज की मदद से अब कई महिलाएं संतान सुख प्राप्त कर सकती हैं.

महिलाओं में इनफर्टिलिटी के कारण

  • पेल्विक पैथलॉजी (ओवरियन, ट्यूबल, गर्भाशय), यूट्रीन फाइब्रॉयड, एडिनोमायोसिस, कंजेनिटल यूट्रीन एनमेलीज़, यूट्रीन अढ़ेशन, यूट्रीन पॉलिप्स, क्रोनिक एंडोमेट्रैटिस, ट्यूबल ब्लॉकेज, ओव्युलेट्री डिस्फंक्शन, पीसीओएस आदि बीमारयां.
  • अधिक उम्र होने पर महिलाओं के अंडों की गुणवत्ता खराब होने लगती है.
  • कामकाजी महिलाएं गर्भधारण को टालती रहती हैं लेकिन लोग उसे बांझ समझने लगते हैं.
  • जीवनशैली बदलाव जैसे कि धूम्रपान, शराब, तंबाकू का सेवन, शारीरिक गतिविधियों में कमी, नींद की कमी, खराब डाइट, मोटापा और तनाव आदि इनफर्टिलिटी को बढ़ावा देते हैं.
  • प्रदूषण और व्यावसायिक खतरा
  • आनुवांशिक विकार- क्रोमोसोमल असामान्यताएं, अपरिचित इनफर्टिलिटी, पुरुषों में समस्या, इनफर्टिलिटी का पारिवारिक इतिहास, असामान्य समस्याएं आदि.

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एआरटी- इनफर्टिलिटी वाली कई महिलाओं के लिए वरदान

एआरटी तकनीक आईवीएफ यानी इन विटरो फर्टिलाइजेशन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें अण्डों व शुक्राणुओं को लैब में फर्टिलाइज किया जाता है. लैब में महिला के स्वस्थ्य अंडे को उसके पति के स्पर्म के साथ मिलाकर भ्रूण तैयार किया जाता है, जिसे तैयार होने में कम से कम 3-4 दिनों का समय लगता है. भ्रूण तैयार होने के बाद उसे महिला के गर्भ में इंप्लान्ट कर दिया जाता है. कुछ ही दिनों में महिला प्रेग्नेंट हो जाती है. इस तकनीक को आईसीएसआई (इंट्रा साइटोप्लास्मिक स्पर्म इंजेक्शन), ब्लास्टोसिस्ट कल्चर, लेज़र असिस्टेड हैचिंग, टीईएसई (टेस्टीकुलर स्पर्म एक्सट्रेक्शन) आदि के साथ पूरा किया जाता है.

आईवीएफ बंद ट्यूब को खोलने तक ही सीमित नहीं है बल्कि इससे कमज़ोर ओवरी, पीसीओसी, पीओआई, एंडोमेट्रियोसिस, यूट्रीन फाइब्रॉयड्स, एडीनोमायोसिस, खराब सीमेन, प्रार्थमिक या माध्यमिक इनफर्टिलिटी, अपरिचित फर्टिलिटी आदि वाले लोगों को भी फायदा मिलता है.

इनफर्टिलिटी के लिए केवल महिला जिम्मेदार नहीं होती

लोगों में एक धारणा बनी हुई है कि यदि कोई कपल कंसीव नहीं कर पा रहा है तो समस्या महिला में है. जबकि असल में देखा जाए तो 40-50% मामलों में कंसीव न करने पाने का जिम्मेदार पुरुष पार्टनर होता है. अक्सर इस बात का पता तब चलता है जब जांच के बाद महिला में कोई कमी नहीं दिखती है. जब डॉक्टर पुरुष पार्टनर को टेस्ट करवाने की सलाह देते हैं तो समस्या पुरुष पार्टनर में निकलती है.

जब कोई महिला पहली बार जांच के लिए जाती है तो या तो वह अकेली होती है या उसके साथ परिवार का कोई अन्य सदस्य होता है. दुर्भाग्य से पुरुष पार्टनर जांच के लिए उसके साथ नहीं जाता है. वहीं यह भी देखा गया है कि पुरुष अपने सीमेन का सैंपल चुपचाप अकेले में देने जाता है जिससे वह इस बात को अन्य लोगों से छिपा सके.

कपल को यह समझना चाहिए कि जांच के लिए उन दोनों का मौजूद होना जरूरी है विशेषकर आइवीएफ ट्रीटमेंट के दौरान. आईवीएफ केवल जरूरी जांचों को महत्व देता है जिससे यह तकनीक लोगों को मंहगी न लगे और वे आसानी से इसका लाभ उठा सकें.

आवीएफ में की गई जांचे इनफर्टिलिटी के कारण की पहचान करती हैं जिसकी मदद से डॉक्टर एक उचित इलाज का चयन कर पाता है. इसके लिए ब्लड टेस्ट और अल्ट्रासाउंड की मदद से ओवरी की जांच की जाती है, यूट्रीन की जांच अल्ट्रासाउंड और हिस्टीरोस्कोपी से की जाती है और सीमेन की जांच की जाती है.

इंदिरा आईवीएफ हास्पिटल के आईवीएफ एक्सपर्ट डॉ.सागरिका अग्रवाल.

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मैं अभी गर्भवती नहीं होना चाहती?

सवाल-

मैं 25 साल की शादीशुदा महिला हूं. कोरोना वायरस से जहां पूरा विश्व परेशान है और डर का माहौल है, मैं अभी गर्भवती नहीं होना चाहती. पति भी फिलहाल बच्चा नहीं चाहते. मगर समस्या मेरी सासूमां को ले कर है. वे चाहती हैं कि उन्हें पोता या पोती हो और घर में किलकारियां गूंजे. कृपया उचित सलाह दें?

जवाब-

शादी के बाद फिलहाल बच्चा न हो, इस का निर्णय लेना कि सभी दंपति का अधिकार होता है. अगर आप व आप के पति ऐसा नहीं चाहते तो यही सही है. रही बात कोरोना के सय गर्भधारण व बच्चा जनने की बात तो इस का कोरोना से कोई लेनादेना एक दंपती का अधिकार है. अगर ऐसा कोई डर का माहौल होता तो देश के अस्पतालों में अभी डिलीवरी ही नहीं कराई जाती. अगर इस बात को ले कर मन में किसी तरह का भय है तो इस भय को मन से निकाल दें. फिलहाल आप दोनों बच्चा नहीं चाहते तो इस के लिए सासूमां से बात कर सकती हैं कि आप मानसिक रूप से अभी इस के लिए तैयार नहीं हैं. वे भी एक औरत हैं और कतई नहीं चाहेंगी कि बिना आप की मरजी से आप गर्भधारण करें.

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शादी के बाद कपल्स सारी कोशिश करके भी मां-बाप नहीं बन पाते हैं तो इसकी वजह इन्फर्टिलिटी यानी बांझपन को माना जाता है. इसमें बच्चा पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है या फिर पूरी तरह खत्म हो जाती है.

आमतौर पर शादी के एक से डेढ़ साल बाद अगर बिना किसी प्रोटेक्शन के कपल्स रिलेशनशिप बनाने के बाद भी मां-बाप नहीं बन पाते हैं तो मेडिकली इन्हें इन्फर्टिलिटी का शिकार माना जाता है. इसमें समस्या महिला और पुरुष दोनों में हो सकती है.

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पिंजरा- खूबसूरती का: जिस खूबसूरती को मानें सब वरदान, क्यों है मयूरा के लिए अभिशाप?

खूबसूरती को हमारे समाज में एक वरदान माना जाता है और हमारे इसी समाज का एक प्रमुख हिस्सा लड़कियों की सिर्फ सूरत देखता है, सीरत नहीं. ज्यादातर लोगों को यही लगता है कि अगर कोई लड़की खूबसूरत है तो उसे जिंदगी में सब कुछ आसानी से हासिल हो जाएगा. एक लड़की की खूबसूरती देखकर लोग उसकी खूबियाँ देखना भूल जाते हैं और अपनी खूबियों के दम पर अपनी पहचान बनाने की जद्दोजहद में उलझी, एक ऐसी ही लड़की की रोमांचक कहानी है कलर्स का नया सीरियल ‘पिंजरा- खूबसूरती का’.

खूबसूरती की बजाय खूबियों से पहचान बनाना चाहती है मयूरा

यह कहानी है मध्य प्रदेश के जबलपुर शहर में रहने वाली एक चुलबुली, जिंदादिल और बेइंतहा खूबसूरत लड़की मयूरा की, जो दूसरों की सेवा करना चाहती है और खूबसरती पर अपना हक समझने वाले ओमकार की.

एक तरफ मयूरा, जिसे पहचान मिली तो सिर्फ और सिर्फ उसकी खूबसूरती की वजह से. घर हो या बाहर लोग बस उसकी खूबसूरती की तारीफ करते हैं. इन्हीं वजहों से मयूरा की अपनी बहन, मेघा के दिल में उसके लिए जलन पैदा हो जाती है. मयूरा चाहती है कि वह एक होम्योपैथी डौक्टर बनकर अपने परिवार की मदद और लोगों की सेवा कर सके. उसकी चाहत यही है कि दुनिया उसकी खूबसूरती नहीं, बल्कि उसकी खूबियों की वजह से उसे जानें और ऐसे ही एक जीवनसाथी का मयूरा को है बेसब्री से इंतजार.

हर खूबसूरत चीज़ को कैद करना चाहता है ओमकार

दूसरी तरफ हैं ओमकार, जिसे पूरा शहर ‘संगमरमर का सरताज’ कहकर बुलाता है. पूरा बचपन मार्बल की खान में काम करते हुए गुजारने वाला ओमकार, हर खूबसूरत चीज को अपनी कैद में कर लेना चाहता है. उसे खूबसूरती से जितना प्यार है, उतनी ही नफरत है किसी भी गंदगी या दाग से. ओमकार के लिए किसी की खूबसूरती ही उसकी सबसे बड़ी खूबी है. यही वजह है कि जैसे ही उसकी नज़र मयूरा पर पड़ती है, वह उसे हासिल करने की ठान लेता है और उससे शादी करना चाहता है.

क्या मयूरा जान पाएगी ओमकार की असलियत या वह फंस जाएगी ओमकार के पिंजरे में? कैसा होगा दोनों का रिश्ता जब दोनों मिलेंगे, जानने के लिए देखिए ‘पिंजरा- खूबसूरती का’, आज से हर सोमवार से शुक्रवार, रात 9 बजे, सिर्फ कलर्स पर.

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