“मां का साया”: एक कविता मां के नाम

कंचन शर्मा

मेरे लिए सबसे सुकून भरा हुआ करता था जो,
और कुछ नहीं था बस मेरी मां का साया था वो,

जिसकी छांव में मेरी पूरी जिंदगी बस्ती थी,
जब मुझे एक नजर देख कर मेरी मां हस्ती थी,
मेरे सारे दर्द कम हो जाया करते थे
जब वो अपना हाथ प्यार से मेरे माथे पर रखती थी

मेरे लिए सबसे सुकून भरा हुआ करता था जो,
और कुछ नहीं था बस मेरी मां का साया था वो,

मेरी छोटी से छोटी गलती भी अपने दामन में छुपा लेती
मेरी आंखों के आंसू को अपनी अपनी आंखों में बसा लेती
मैं अगर नाराज भी हो जाऊं तो मां बस मुस्कुरा देती
अपने अनगिनत तरीकों से मुझे मना ही लेती…..

मेरे लिए सबसे सुकून भरा हुआ करता था जो,
और कुछ नहीं था बस मेरी मां का साया था वो,

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Cannes 2019: बौलीवुड की क्वीन ने कान्स में बिखेरा जलवा

बौलीवुड में फिल्मों में दमदार रोल में नजर आने वाली एक्ट्रेस कंगना रनौत पेरिस में होने वाले कान्स फिल्म फेस्टिवल में भी दमदार लुक में नजर आईं. जहां दूसरी बौलीवुड हसीनाएं वेस्टर्न लुक में जलवा बिखेरती नजर आईं तो वहीं कंगना इंडियन लुक में इंडिया का मान बढ़ाती नजर आईं. आपको दिखाते हैं उनके कान्स में कैरी किए इंडियन लुक की कुछ खास तस्वीरें…

गोल्डन साड़ी में कगंना ने कान्स में मारी धमाकेदार एंट्री

‘कांस फिल्म फेस्टिवल’ में कंगना गोल्डन कलर की साड़ी में नजर आईं. जिसे देखकर यह कहना गलत नहीं होगा कि इस इवेंट में कंगना ने धमाकेदार एंट्री मारी है.

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इंडियन लुक को वेस्ट्रन टच देती नजर आईं कंगना

 

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The world’s a stage! ? . . . . #KanganaAtCannes #Queenatcannes #Cannes2019 #Greygooselife #LiveVictoriously

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अपने इस इंडियन लुक को वेस्ट्रन टच देने के लिए कंगना ने पर्पल कलर के ग्लव्स पहने हुए थे. साथ ही गोल्डन साड़ी के साथ कंगना का स्टाइलिश हेयर स्टाइल उनके लुक को रौयल लुक दे रहा था.

कान्स में क्वीन से कम नहीं लग रही थीं कंगना

इस दौरान बौलीवुड की ये हसीना यानी कंगना इतनी बेहतरीन लग रही थी कि लुक देखकर कोई भी उनको क्वीन का दर्जा दे ही देगा.

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काले चश्मे के स्वैग में पोज देती नजर आईं कंगना

 

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कंगना साड़ी के साथ काला चश्मा लगाए नजर आईं. वहीं इस दौरान इंटरनेशनल मीडिया के सामने जम कर पोज देती भी नजर आईं. साथ ही फैंस को निराश न करते हुए कंगना ने फैंस के साथ सैल्फी लेने से भी परहेज नही किया और उनके साथ पिक्चर्स क्लिक करवाईं.

Cannes 2019: रेड कारपेट पर छाई दीपिका और प्रियंका

बौलीवुड की जानी मानी एक्ट्रैसेस दीपिका पादुकोण और प्रियंका चोपड़ा ‘मेट गाला 2019’ में बिजली गिराने के बाद अब कान्स फिल्म फेस्टिवल (Cannes Film Festival 2019) में अपने लुक को लेकर सुर्खियां बटोरती नजर आईं. एक तरफ जहां प्रियंका पहली बार कान्स फिल्म फेस्टिवल में भारतीय अंदाज में हाथ जोड़कर फैन्स का वेलकम करती नजर आईं. तो दूसरी तरफ दीपिका अपने सेक्सी लुक में रेड कार्पेट पर जलवे बिखेरते दिखीं. आइए आपको दिखाते हैं दीपिका और प्रियंका की कुछ हौट फोटोज…

भारतीय परम्परा दिखाती नजर आईं प्रियंका

 

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Cannes 2019 @red #5BFilm

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Cannes Film Festival 2019 के रेट कार्पेट पर प्रियंका चोपड़ा ने शाईनिंग ब्लैक एंड ब्राउन कलर का एक गाउन पहना और वह इसमें बहुत ही खूबसूरत लग रही थीं.

दीपिका ने अपने लुक से जीता फैंस का दिल

 

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slayed & how ?? #cannes2019 @deepikapadukone

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वहीं दीपिका  भी औफ व्हाइट गाउन पहना जिसमें लगी बड़ी सी बो ने सबका अट्रैक्शन अपनी ओर खींच लिया. दीपिका की ये ड्रेस हाई स्टिट और डीप नेक है. ड्रेस के साथ दीपिका ने हाई पोनी टेल की. साथ ही रिवर्स कैट आई मेकअप ने दीपिका के लुक को कम्पलीट कर दिया.

 

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बता दें, प्रियंका चोपड़ा ने कान्स फिल्म फेस्टिवल में पहली बार कदम रखा है. जबकि दीपिका पहले भी इसका हिस्सा रह चुकी हैं. और अपनी अदाओं से सबको दिवाना बना चुकीं हैं. वहीं दीपिका और प्रियंका हाल ही में हुए मेट गाला 2019 में अपने लुक को लेकर सुर्खियों में आ गए थे. साथ ही ट्रौल भी हो गईं थी.

‘दे दे प्यार दे’ फिल्म रिव्यू: रोमांस के नाम पर बेशर्मी और डबल मीनिंग डायलौग

फिल्म- दे दे प्यार दे

निर्देशक- अकीव अली

कलाकार- अजय देवगन, तब्बू, रकूल प्रीत सिंह, आलोकनाथ, जावेद जाफरी, जिम्मी शेरगिल, भाविन भानुशाली, हुयेन दलाल, अंजीला व अन्य.

रेटिंग- डेढ़ स्टार

बतौर निर्देशक अकीव अली अपनी पहली फिल्म ‘दे दे प्यार दे’ में हास्य के नाम पर जमकर बेशर्मी और फूहड़ता परोसी है. पूरी फिल्म नारी को अपमानित करने का ही काम करती है.यूं भी इस फिल्म के निर्माता व कहानीकार लव रंजन पर उनके द्वारा निर्देशित पहली फिल्म ‘‘प्यार का पंचनामा’’से ही नारी विरोधी होने का आरोप लगता रहा है. इस फिल्म में एक कदम आगे बढ़ते हुए एक पुरूष के लिए दो नारियों को ही बेशर्मी के साथ एक दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया है. फिल्म ‘‘दे दे प्यार दे’’में एक नारी को उसके रूप, उसके कद, उसकी उम्र, उसके रिश्ते के विकल्प आदि को लेकर शर्मिंदा करने का ही काम करती है.

कहानीः

फिल्म की कहानी लंदन से शुरू होती है. जहां पचास साल के आशीश(अजय देवगन)एक महल नुमा घर में अकेले रह रहे हैं. उन्होने अपनी पत्नी मंजू राव( तब्बू ),बेटे विनोद(भाविन भानुशाली) व बेटी इशिता ( इनायत),माता व पिता वीरेंद्र मेहरा (आलोकनाथ)को भारत में ही छोड़ दिया है. मंजू व अशीश के बीच तलाक नहीं हुआ है,मगर 18 साल से आशीश भारत नहीं गया.

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एक दिन वह अपने दोस्त की शादी से पहले उसकी बैचलर पार्टी अपने घर में रखता है, जिसमें आशीश से बीस साल छोटी आएशा खुराना(रकुल प्रीत सिंह )पहुंच जाती है. रात में शराब पीकर आएशा, आशीश के घर में ही रह जाती है. जब सुबह आएशा सोकर उठती है, तो दर्शकों को पता चल जाता है कि रात में क्या हुआ होगा.उसके बाद इनकी मुलाकातें बढ़ती हैं. अशीश, आएशा को बताता है कि उसके बड़े बच्चे हैं और उसने अपनी पत्नी को छोड़ दिया है, वह सभी भारत में रहते हैं. पर दोनों बिना शादी किए एक साथ पति पत्नी की तरह रहने लगते हैं.

एक दिन आशीश अपने पूरे परिवार से मिलाने के लिए आएशा को लेकर भारत के हिल स्टेशन के रिसोर्टनुमा अपने घर पर पहुंचता है. जहां सबसे पहले मुलाकात आशीश की बेटी इशिता से होती है, वह गुस्से में आशीश को वापस जाने के लिए कहती है, क्योंकि इशिता की शादी की बात करने के लिए श्रेया का प्रेमी अपने पिता अतुल के साथ वहॉं आ रहा है. इशिता ने कह रखा है कि बचपन में ही उसके पिता मर गए थे. हालात को देखते हुए तय होता है कि अतुल से आशीश की मुलाकात इशिता के मामा के रूप में कराई जाएगी. हालात के मद्दे नजर आशीश सत्य बताने की बजाए आएशा को अपनी सेक्रेटरी बता देता है. इशिता शादी से पहले लिव इन रिलेशनशिप में रहना चाहती है, जिसके लिए अतुल तैयार नही होते. खैर मामला तय होता है कि सगाई के बाद दोनो लिव इन रिलेशनशिप में रहेंगे.

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कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. आशीश अपनी बेटी इशिता को आशीश व आएशा के रिश्ते का सच पता चल जाता है.वह गुस्से में सबके सामने कह देती है कि आशीश उसके पिता हैं. अतुल शादी तोड़कर अपने बेटे के साथ वापस चले जाते हैं. आशीश व आएशा के बीच भी मनमुटाव हो जाता है और आएशा वापस लंदन चली जाती है. पर बेटी को दुःखी देखकर आशीश उसकी शादी कराने के लिए अतुल के पास जाता है. पर सगाई वाले दिन मंजू लंदन से आएशा को लेकर पहुंच जाती है.

इंटरवल तक तो फिल्म महज अजय देवगन द्वारा आएशा के शरीर की मालिश करने, उसके लिए खरीददारी करने, उसके साथ घूमने या रात में बिस्तर पर रहने तक ही सीमित है. पर द्विअर्थी संवाद व बेशर्मी वाला रोमास जरुर नजर आता है. इंटरवल के बाद ‘लिव इन रिलेशनशिप’, तलाक, पति पत्नी के रिश्ते, पारिवारिक रिश्तों, बेटी व पिता के रिश्ते, पति पत्नी के बीच उम्र के अंतर सहित कई मुद्दों को चूं चूं का मुरब्बा की तरह पेशकर फिल्मकार ने फिल्म को बर्बाद करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी. पूरी फिल्म अस्वाभाविक व अविश्वसनीय घटनाक्रमों से भरी हुई है. आएशा कैसे अनजान इंसान आशीश के घर पहुंचती है, पता ही नही चलता.

हम इक्कीसवी सदी में पहुंच गए हैं. पुरूष व नारी समानता के साथ साथ नारी स्वतंत्रता की बातें हो रही है. नारी उत्थान व नारी सशक्ती करण के नाम पर काफी कुछ हो रहा है. नारी खुद को स्वतंत्र मानते हुए हर क्षेत्र में बढ़-चढ़कर काम कर रही हैं. इसके बावजूद फिल्मकार लव रंजन और अकीव अली की सोच यही कहती है कि नारी चाहे जितनी स्वतंत्र व सशक्त हो जाए, पर उसका अस्तित्व उसके साथ एक पुरूष के होने या न होने पर निर्भर है.

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फिल्मकार की मानसिकता को फिल्म के एक लंबे दृश्य से समझा जा सका है. इस दृश्य में अजय देवगन, तब्बू और रकूल प्रीत एक साथ एक पुरानी कार में बैठकर जा रहे हैं. इस दृश्य में रकूल प्रीत व तब्बू दोनों एक दूसरे को नीचा दिखाने के लिए कार को नारी शरीर का प्रतीक मानकर पुरानी गाड़ी व नई गाड़ी की तुलना करते हुए जिस तरह के शब्दों व भाषा का प्रयोग करती हैं, वह कम से कम वर्तमान यानी कि 2019 में जायज नहीं ठहराया जा सकता. फिल्म में अभिनेता जिम्मी शेरगिल का किरदार जबरन ठूंसा हुआ है.जबकि इसका कहानी से कोई संबंध नहीं है.

पटकथा बहुत ही ज्यादा कन्फूयज करने के साथ ही विरोधाभासी संवादो व सोच से भरी हुईहै.लेखक व निर्देशक दोनों ही फिल्म में आधुनिक व सदियों पुराने नैतिक मूल्यों के बीच संतुलन बनाने में बुरी तरह से विफल रहे हैं. फिल्म का क्लायमेक्स भी अजीब सा है.

अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है, अजय देगवन किसी भी दृश्य में प्रभावित नहीं करते. पूरी फिल्म रकूल प्रीत सिंह महज अत्याधुनिक व अतिग्लैमरस नजर आती हैं. तब्बू के अभिनय की तारीफ करनी पड़ेगी. वही इस फिल्म की हीरो हैं. कहानी का हिस्सा न होते हुए भी छोटी सी भूमिका में जिम्मी शेरगिल अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं.

‘आगे बढ़ने के लिए अपने विवेक और अपनी भावनाओं में संतुलन रखें.’’

42 वर्षीय शोना चौहान पारले एग्रो में मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं. 1999 में उन्होंने 22 वर्ष की आयु में कंपनी के बोर्ड में बतौर डाइरैक्टर जौइन किया था. 2006 में उन के सीईओ बनने के बाद उन का गु्रप विभिन्न क्षेत्रों में अपनी उपस्थिति दर्ज करा 50 से अधिक देशों का निर्यातक बना. ‘बिजनैस स्कूल लुसाने’ से बैचलर की डिगरी ले कर शोना चौहान अपने पिता प्रकाश चौहान के साथ फैमिली व्यवसाय में शामिल हुई थीं. ‘इंदिरा सुपर अचीवर अवार्ड, सितंबर 2004, ‘बैस्ट यंग कौरपोरेट लीडर 2006,’ एफआईसीसीआई एफएलओ यंग वूमन अचीवर्स अवार्ड्स, 2008,’ ‘जीआर8 एफएलओ वूमन अचीवर्स 2009’ सहित शोना चौहान को ढेरों अवार्ड मिल चुके हैं. उन का जीवनमंत्र दूसरों से नहीं, बल्कि खुद से आगे निकलना है. शोना चौहान से हुई बातचीत के कुछ अंश पेश हैं:

इस मुकाम तक पहुंचने के दौरान किस तरह के संघर्ष का सामना करना पड़ा?

सही लोगों को भरती करने, अच्छी प्रतिभाओं को कंपनी से जोड़े रखने, नए बदलावों के अनुसार कंपनी को ढालने जैसी चुनौतियां अकसर आती हैं. मगर मैं इन्हें कठिनाइयों के रूप में नहीं देखती. बदलावों का सामना केवल लीडर्स को ही नहीं करना होता, बल्कि आवश्यकता पड़ने पर पूरी कंपनी को इस से गुजरना होता है. समस्याओं के अधिक जटिल बनने से पहले ही उन का हल निकालना भी एक चुनौती है.

अपना मैंटोर किसे मानती हैं?

मैं अपने पिता को ही अपना मैंटोर मानती हूं. मैं ने बहुत कम उम्र से उन के साथ काम करने का अवसर हासिल किया और उन से बहुत कुछ सीखा.

ये सब करने की प्रेरणा कहां से मिलती है?

मेरी प्रेरणा अंदर से उत्पन्न होती है. मैं अपने कार्य के प्रति तथा आने वाली चुनौतियों के प्रति जनून रखती हूं. हर चुनौती आप को यह सिखा जाती है कि अगली बार आने वाली चुनौती से आप को किस तरह निबटना है.

खुद को रिलैक्स करने के लिए क्या करती हैं?

मैं अपने बेटे जहान के साथ समय बिताती हूं.

आप का सपोर्ट सिस्टम क्या है?

मुझे अपनी मां से हर तरह का सहयोग मिलता रहा है. मेरी मां ही एक ऐसी शख्सीयत हैं, जिन पर मैं हर मामले में पूरा भरोसा कर सकती हूं. वे मेरी एक मां, एक दोस्त और एक मार्गदर्शक हैं.

आप की नजरों में कौन्फिडैंस क्या है?

अपने जैसा बनें, वह बनें जो आप हैं.

आप को वर्कहोलिक कहा जाता है. इस पर क्या कहेंगी?

यह कई तरह से मुझे तनावमुक्त करने में कारगर है. मैं हर समय कार्य करने में आनंद लेती हूं. हालांकि मुझे पता होता है कि कब मैं थक गई हूं और कब खुद से ज्यादती कर रही हूं. ऐसे में मैं सबकुछ पीछे छोड़ कर अपने परिवार के साथ समय बिताती हूं.

कामकाजी महिलाओं को क्या सलाह देना चाहेंगी?

चुनौतियों से सबक मिलते हैं. जब हम अपने सपनों का पीछा करते हैं तो इस क्रम में हमें आने वाली बाधाओं से भी कुछ न कुछ सीखने को मिलता है. रास्ते में जब रुकावटें आएं तो उन से पार पाने के लिए ढेर सारे जनून के साथ अपना कार्य करें. आगे बढ़ने के लिए अपने विवेक और अपनी भावनाओं में संतुलन कायम रखें.

बिजनैस प्लानिंग करते समय आप का मुख्य मकसद क्या होता है?

बिजनैस प्लानिंग करते समय मैं अपनी कंपनी के विकास का खयाल रखती हूं.

बतौर स्त्री आगे बढ़ने के क्रम में क्या कभी असुरक्षा का एहसास हुआ?

एक महिला के रूप में कभी असुरक्षा महसूस नहीं हुई. बिजनैस की सामान्य चुनौतियां आईं, पर उन का सभी सामना करते हैं.

घर और काम को एकसाथ कैसे संभालती हैं?

मैं इस बात को प्राथमिकता देती हूं कि मुझे क्या करना है और मुझे उसे कब तक कर लेना है.

 और क्या करने का प्लान है?

मैं अपने फैमिली बिजनैस में अपने बेटे को शामिल कर उसे सक्षम बनाना चाहती हूं जैसा कि मेरे पिता ने मुझे बनाया. जो स्किल्स मुझे अपने पिता से मिलीं उन्हें मैं आगे बढ़ाना चाहती हूं.

पुरुषों में बढ़ता तनाव: ये 5 टिप्स करेंगे आपकी मदद…

अपने रोजमर्रा के जीवन में  पुरुष अक्सर छोटी-छोटी बातों पर तनाव ले लेते हैं. जो उनकी हेल्थ के लिए हानिकारक तो है ही साथ ही उनके वैवाहिक जीवन के लिए चिंता का सबब बन सकता है. पुरुषों के बीच तनाव की समस्या, इसके लक्षणों की पहचान और इससे कैसा बचा जाए ये हम आपको बताते है.

इन बातों का रखे ध्यान

तनाव पुरुषों के जीवन के लगभग सभी क्षेत्र को प्रभावित करता है, इसलिए जीवनशैली में बदलाव तनाव की समस्या को कम करने में मदद करता है. तनाव के कारण पुरुषों के स्वास्थ्य में कई तरह के बदलाव देखने को मिलते है जैसे…

1.ब्लड प्रेशर का बढ़ना- 

बढ़ते तनाब के चलते पुरुषों में ब्लड प्रेशर की समस्या आम बात है. हाईपर टेंशन के चलते भी ब्लड प्रेशर में परिवर्तन आता है, जिसके चलते पुरुष ज्यादा गुस्सा और चिड़-चिड़े हो जाते है.

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2.थका हुआ महसूस करना – 

तनाव पुरुषों को शारिरीक रुप से तो कमजोर करता ही है पर मानसिक रुप से भी नुकसान पहुंचाता है. जिसके चलते पुरुष थका हुआ महसूस करने लगते है.

3.दिल तेजी से धड़कना-  

तनाव में घबराहट होना एक आम बात है जिसके चलते आपकी दिल की धड़कन तेजी से बढ़ने लगती है.

4.इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर होना-

तनाव, घबराहट होना, हाईपर टेंशन और दिल की धड़कन तेजी से  बढ़ना इन सभी कारणों से इम्यूनिटी सिस्टम कमजोर हो जाता है.

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लाइफस्टाइल में बदलाव बचा सकता है तनाव से

  • योग और मेडिटेशन का प्रयोग करें, इससे मानसिक और शारीरिक दोनों प्रकार के तनाव दूर करने में मदद मिलती है.
  • तनाव से बचाव के लिए पर्याप्त नींद लें.
  • अपनी परेशानियों को दोस्तों और परिवार के साथ साझा करें.
  • तनाव को कम करने के लिए आप अपनी पसंद का गाना सुनें.
  • लाफ्टर थेरेपी का इस्तेमाल भी कर सकते हैं.

इन सभी टिप्स को फौलो करने से आप तनाव मुक्त रहेंगे.

गरमी में स्किन टाइप के हिसाब से खरीदेंगे लोशन तो होगा दुगुना फायदा

गरमी हो या सरदी आप कभी लोशन लगाना नही भूलते. लोशन हमारी स्किन का मौइशचर को लौटाता है, लेकिन कभी-कभी यह स्किन के लिए आफत का कारण भी बन जाते हैं. जैसे अगर हम स्किन के लिए थिक लोशन खरीदते हैं, तो स्किन को चिपचिपा बना देती है. गरमियों में भी हमारी स्किन को मौइस्चर की जरूरत होती है. ऐसे में अगर आप भी बिना अपनी स्किन के बारे में जानें गलत लोशन का इस्तेमाल करती हैं, तो यह आपकी स्किन को नुकसान पहुंचा सकता है. इसलिए आप अपने लिए कैसे लोशन चुनें इसके लिए इन टिप्स का ध्यान जरूर रखें.

1. नौर्मल स्किन पर यूवी प्रौटेक्शन वाले लोशन का करें इस्तेमाल

अगर आपकी स्किन नौर्मल है तो आप पर सभी तरह के लोशन काम करेंगे, लेकिन ज्यादा थिक लोशन से बचने की कोशिश करें. गरमी में थिक लोशन्स से बौडी पर ज्यादा पसीना आने लगता है, जो स्किन को चिपचिपा बना सकता है. ऐसे लोशन चुनें जो स्किन को यूवी प्रॉटेक्शन दे, जिसके लिए बाजार में कई औप्शन्स मौजूद हैं.

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2. औइली स्किन पर वौटर बेस्ड या जेल बेस्ड लोशन का करें इस्तेमाल

गरमियों में सबसे ज्यादा प्रौब्लम औइली स्किन वालों को होती है, क्योंकि अगर गलती से आपने गलत लोशन या मौइस्चराइजर चुन लिया तो यह आपकी स्किन को और भी औयली और चिपचिपा बना देगा, जो दिनभर आपके लिए परेशानी का सबब बन जाएगा. इसके साथ ही औइली स्किन वालों को पसीना भी ज्यादा आता है तो बेहतर होगा कि ऐसा लोशन चुनें वौटर बेस्ड या जेल बेस्ड ज्यादा हो. चाहे तो ऐलोवेरा बेस्ड लोशन भी चुन सकते हैं जो स्किन को प्रौटेक्ट करने के साथ ही सूदिंग भी देगा.

3. ड्राई स्किन पर थिकनेस वाला लोशन करें इस्तेमाल

ड्राई स्किन वाले अगर लोशन न लगाएं तो उनकी स्किन के डैमेज होने का खतरा ज्यादा रहता है. ऐसा इसलिए क्योंकि उनकी स्किन एक तो वैसे ही ड्राई है ऊपर से धूप और गर्मी त्वचा के मौइस्चर को भी सोख लेती है, इससे स्किन के जलने या फिर टैन होने का खतरा बढ़ जाता है. ड्राई स्किन वाले ऐसा लोशन चुनें जिसकी थिकनेस थोड़ी ज्यादा हो. बाजार में कई ऐसे लोशन मौजूद हैं, जिनमें मौइस्चराइजिंग प्रौपटीज होने के साथ ही यूवी प्रौटेक्शन की खासियत भी होती है.

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मेरी मां- “मां के नाम एक कविता”

पूजा मिश्रा…

रात के अंधेरों से लड़ना सिखाया उसने,
दिन के उजाले में ढलना सिखाया उसने,
कहते हैं उसको मां जो सबसे कीमती ही मेरे लिए
मेरे लड़खड़ाते क़दमों को थाम कर मुझे चलना सिखाया उसने

पथरीली सड़क हो या सीधा रास्ता,
बिना गिरे और बिना रुके संभलना सिखाया उसने,
आंखों से बहने वाले आंसू को कमजोरी नहीं, हिम्मत बताया उसने
नहीं कोई अंतर बेटियों और बेटों में, इस राज़ से पर्दा उठया उसने

मेरी बेतुकी सी शैतानियों पर नाराज होकर भी बस मुस्कुराया उसने
मेरे हर कदम पर साया बन कर, मेरा साथ निभाया उसने,

उस मां का क़र्ज़ कभी नहीं उतार सकती मैं,
जिसने जीने लायक बनाया मुझे,

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कहानी- मां ने दी जिंदगी की सीख

अंजली खेर, (भोपाल)

संकल्‍प के कमरे का दरवाजा खोलते ही वीणा का मन कसैला सा हो गया. कितना बे‍तरतीब सा कर रखा हैं सब, धुले कपड़े चादर की गठरी से बाहर निकलकर जैसे चिढ़ा रहे थे– ‘’बहुत तहज़ीब पसंद हो ना, अब अपने बेटे को थोड़ा शरूर सिखाओं तो जानें.‘’

चादर झटकारने के लिए तकिया उठाया ही था कि देखा, तकिये के नीचे रोमांटिक पत्रिका रखी हुई हैं, पन्‍ने पलटे तो मन घृणा से भर उठा –‘’ये मेरा ही बेटा है? घिन आती है इसकी सोच पर मुझे. सोचने को मजबूर हो जाती हूं कि क्‍या वाकई बच्‍चों के गुण-अवगुण, आदतें माता- पिता के जींस पर ही निर्भर करते हैं? संकल्‍प के पापा और मैं तो ऐसे नहीं थे, फिर ये हमारा बेटा ऐसा कैसे हो गया?

चादर झटकारकर वीणा से मैग्‍जीन जस की तस तकिये के नीचे रख दी. कमरा थोड़ा सलीके से करके वह बाहर आई तभी डोरबेल बजी. दरवाजा खोला तो सामने संकल्‍प कौलेज का बैग पकड़े खड़ा था.

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हाय मौम, कैसी हो, क्‍या कर रही हो? मैं तो ठीक हूं, चाय बना रही हूं, पिएगा मेरे साथ?

मेरे मन की बात कह दी मौम, आप चाय बनाओ जल्‍दी से, बहुत थकान सी लग रही हैं. मैं फ्रेश होकर आता हूं. वीणा दो कप चाय और बिस्किट ट्रे में ले आई. संकल्‍प टौवेल से मुंह पोंछकर चाय का कप उठाता हैं.

कैसा रहा कौलेज, आज तो चार घंटे लेट आये हो, कोई खास वजह? अरे मौम, आज हम लोग कौलेज के बाद ग्रुप डिस्‍कशन कर रहे थे, इंटर कौलेज कौम्‍पटीशन होने वाले हैं ना.

कौलेज में ही डिस्‍कशन चल रहा था या फिर कहीं और गये थे तुम सब? अरे मौम कौलेज में नहीं थे, बिट्टन मार्केट के कैफे में गये थे, पेट-पूजा के साथ काफी कुछ डिस्‍कस किया. बहुत मजा आया. वाह मौम, चाय तो बहुत ही जायकेदार बनी है, बहुत दिन बाद आपके हाथ की चाय पी हैं.

तुम्‍हारे पास समय ही कहा हैं बेटा, कौलेज, दोस्‍त-सहेलियां, कौम्‍पटीशन्‍स, पता नहीं और भी क्‍या क्‍या

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आपको क्‍या लगता हैं मौम मैं क्‍या टाइमपास करता हूं बाहर जाकर?

नहीं बेटा, ऐसा कुछ नहीं. मुझे तुम पर विश्‍वास हैं. अरे हां तुमको पता हैं, शमिता आंटी आई थी कल शाम घर पर, बहुत परेशान सी थी अपनी बेटी के बारे में लोगों से सुन-सुन कर.

क्‍यों ऐसा क्‍या कर दिया बेटी ने?

अरे अपने किसी दोस्‍त के साथ कहीं घूमने या यूं ही ग्रुप डिस्‍कशन के लिए कही गई होगी,

किसी रिश्‍तेदार या पड़ोसी ने देखा होगा तो बताया कि तुम्‍हारी बेटी किसी आवारा से लड़के के

साथ घूमते दिखी, कौलेज बैग पीठ पर टांगे हुए. सुनकर शमिता को समझ ही नहीं आ रहा कि

बेटी को कैसे समझाये, कि वह गलत राह पर जा रही हैं.

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अरे मौम, लड़कों का क्‍या जाता हैं, उनको तो रोज नई-नई गर्लफ्रेंड चाहिए घुमाने के लिए. लड़कियों का क्‍या हैं, दो-चार तोहफें दे दों, पट जाती हैं. फिर बदनामी की भी फिक्र नहीं होती उन्‍हें.

लड़कियों को भले ही नहीं समझ आता होगा, पर लड़कों के गर्लफ्रेंड बनाने के फितूर और टाइमपास की मानसिकता के कारण लड़कियों की जिंदगी तो दागदार बन ही जाती हैं, माता-पिता के लिए जिंदगी भर तिल-तिल कर मरने का सबब. क्‍या तुम्‍हारी बहन या घर की बेटी के साथ ऐसा हो तो तुमको गंवारा होगा.

इन लड़कियो को कहा किसने कि 100-200 के तोहफों के लिए अपनी और मां-बाप की जिंदगी में जहर घोलने के लिए, समझाएं भी तो कौन इन बेवकूफ लड़कियों को? इनका अपना विवेक तो होता नहीं, और लड़के इन्‍हें मोहरा बना अपना मनोरंजन कर लेते हैं. मेरी बहन– बेटी ऐसा करें तो मैं सरे बाजार दो हाथ जड़कर उसका घर से बाहर निकलना बंद करा देता.

संकल्‍प, मैं समझाऊंगी उन लड़कियों को, दो उन लड़कियों का नंबर मुझे अभी और इसी वक्‍त. किनकी बात कर रही हो मौम? मैं शमिता आंटी और उनकी बेटी को जानता भी नहीं. अरे मेरे जलेबी से सीदे-साधे, भोले बेटे, शमिता आंटी की बेटी की नहीं, मैं उन बेवकूफ लड़कियों की बात कर रही हूं, जो गाहे-बगाहे तुम्‍हारी बाइक पर तुम्‍हारे कंधों पर झूलते हुए तुम्‍हारे साथ रोजाना घूमा करती हैं, कम से कम 2-4 लड़कियों की जिंदगी तबाह होने से से बच जाये. मौम आपने कब देख लिया मेरे साथ लड़कियों को घूमते हुए?

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मैने नहीं देखा बेटा, पर आए दिन तुम्‍हारे ऐसे मनोरंजक दौरों के बारे में अपने ही लोगों से सुन-सुनकर थक चुकी हूं, इसीलिए ऐसी मनगढ़ंत कहानी कहकर तुम्‍हारी मानसिकता को टटोला. बेवकूफ वो लड़कियां हैं या नहीं मुझे नहीं पता, पर इतना तो पक्‍का हैं कि तुम जैसे लड़के अपने मां-बाप को मूर्ख समझकर दूसरे की बेटियों को खिलौना बनाकर अपना वर्तमान और भविष्‍य दोनों तबाह कर रहे हो.

एक बात ध्‍यान रखना, दूसरे की बेटियों की जिंदगी का नासूर बनाकर तुम कुछ समय के लिए तो खुश हो सकते हो पर इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि तुम्‍हारे अंतस में कहीं ना कहीं ऐसे गलत कामों का नकारात्‍मक असर दिखाई ना पड़ता हो.

तुम सच कहती हो मौम, हम लोग आपस में ज्‍यादा गर्लफ्रेंड बनाने की शर्त लगाते हैं और अपना सारा समय उन्‍हें घुमाने-फिराने, गिफ्ट खरीदकर देने जैसे बेतुके कामों में जाया करते हैं. मैं वादा करता हूं, अब इन कामों में अपना समय जाया नहीं करूंगा, अपने कैरियर की तरफ ध्‍यान लगाउंगा.

ये हुई ना बात,,,,, जब तुम अपनी बहन और बेटियों के साथ ऐसे घिनौने काम की कल्‍पना भी नहीं कर सकते तो फिर दूसरी लड़कियां भी तो किसी की बहन, बेटी हैं. यदि सभी लड़के ये बात समझ जाये तो शायद किसी मां को ऐसी कहानियां गढ़ने का कारण ही ना मिले.

हां मौम, मेरी बुद्धि पर चढ़ी धुंध अब छंट गई हैं. चलो, देर आएं दुरूस्‍त आए मेरे लाल

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‘बदनाम गली’ में क्या कर रही हैं राजकुमार राव की गर्लफ्रेंड?

2014 में महेश भट्ट निर्मित और हंसल मेहता निर्देशित माइग्रेशन की समस्या पर बनी फिल्म ‘‘सिटी लाइट’’ में राजकुमार राव के साथ अभिनय कर अपने कैरियर की शुरूआत करने वाली एक्ट्रेस पत्रलेखा हमेशा राजकुमार के साथ अपने रिश्तों को लेकर चर्चा में बनी रहती हैं. जबकि उनका अभिनय कैरियर अभी तक सही दिशा में आगे नहीं बढ़ पाया है. ‘सिटी लाइट’ के बाद 2016 में उन्होने इरोटिक फिल्म ‘‘लव गेम्स’’ में सेक्स पैडलर महिला का किरदार निभाया. फिर 2018 में वह मल्टीस्टारर फिल्म ‘नानू की जानू’ में नजर आयीं. अब उन्होंने अपने कैरियर की चौथी फिल्म दिव्येंदू शर्मा के संग ‘‘बदनाम गली’’ की है, जिसे दस मई को थिएटर की बजाय डिजिटल प्लेटफार्म ‘‘जी 5’’पर रिलीज किया गया.

‘‘सिटी लाइट्स’’ जैसी चर्चित सफल फिल्म करने के बाद भी आपका कैरियर बहुत धीमी गति से आगे बढ़ रहा है?

-एक सफल व चर्चित फिल्म करने के बावजूद मेरे कैरियर की गति धीमी होने की वजह मुझे नहीं पता. पर मेरी राय में हर किसी की अपनी एक डेस्टिनी होती है. मगर यह फिल्म मेरी जिंदगी और करियर का अहम हिस्सा है. मैं आज भी सोशल मीडिया पर अक्सर ऐसे लोगों से मिलती हूं, जो कि इस फिल्म को लेकर मुझसे चर्चा करते हैं. अक्सर ऐसे लोगों से मेरी मुलाकात होती रहती है, जो कि इस फिल्म को लेकर मेरी तारीफ करते हैं. मेरी राय में हर चीज का आपकी जिंदगी व कैरियर पर असर होना जरुरी नही है. मेरे लिए महत्वपूर्ण बात यह रही कि मुझे अपने अंदर की कला को प्रदर्शित करने का प्लेटफार्म मिला, जिसके लिए मैं अपने आपको भाग्यशाली मानती हूं. वरना यहां तो हर साल हजारों लड़कियां आती हैं,पर सभी को मौका नहीं मिल पाता. सभी को महेश भट्ट साहब के साथ बैठकर उनसे घंटों बातें करने और उनकी ज्ञान भरी बातें सुनने का मौका नहीं मिलता. यह सच है कि ‘सिटीलाइट’ के बाद मेरी जिंदगी एकदम से बदल गयी. इस तरह जो कुछ हुआ, मेरे लिए अच्छा ही हुआ. कैरियर के साथ-साथ जिंदगी में भी मैं एक कदम ऊपर बढ़ी. इस फिल्म के बाद लोगों ने मुझे प्रोफेशनल एक्टर मान लिया. लोगों ने मान लिया कि मैं अभिनय करके पैसे कमा सकती हूं. इसलिए आज बैठकर मैं कैलकुलेट नहीं करती कि मुझे क्या मिला क्या नहीं? या मेरे साथ क्या होना चाहिए था?

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Weekend vibes ??? #Gaga #mydoll

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आपने कहा कि फिल्म सिटी लाइटसे आपकी जिंदगी में बदलाव आया. वह क्या है?

-सबसे पहला बदलाव यह रहा कि मैं पब्लिक प्लेटफार्म पर आ गयी. लोगों ने मुझे कलाकार के तौर पर पहचानना शुरू किया. अब कुछ लोग ऐसे हैं, जो मुझे पसंद करते हैं और कुछ लोग ऐसे हैं, जो पसंद नही करते हैं. मैं भट्ट साहब के साथ बैठी, उनसे बातें की. वह मेरी जिंदगी में बहुत ही इज्जतदार इंसान हैं. मैं उनका बहुत सम्मान करती हूं. उसके बाद मैं काम करती गयी. एकदम खाली नहीं बैठी. ‘लव गेम्स’ व ‘नानू की जानू’ जैसी फिल्में की. अब मैंने ‘बदनाम गली’ की है.

फिल्म बदनाम गली को लेकर क्या कहेंगी?

-सरोगेटेड मदर की कहानी पर दोस्ती की बात करने वाली यह एक फनी फिल्म है. वास्तव में हम समाज को लेकर बहुत ही ज्यादा जजमेंटल हैं. यह फिल्म कहती है कि इंसान को किसी के भी प्रति जजमेंटल नहीं होना चाहिए. इसमें मैंने सरोगेटेड मदर का किरदार निभया है, जिसे मैं बुरा नही मानती. फिल्मकार ने इस फिल्म में हमारे समाज के सबसे बड़े टैबू सरोगसी यानी कि सरोगेटे मदर पर कौमेडी के साथ बात की है.

आपने कहा कि लोगो ने मान लिया कि आप अभिनय करके पैसा कमा सकती हैं. तो क्या कलाकार का मकसद सिर्फ पैसा कमाना ही होता है?

-मैंने ऐसा तो नहीं कहा. लेकिन कलाकार का काम महज यह नही होता है कि उसके पास चाहे जिस तरह की फिल्म का आफर आए और वह उसे स्वीकार कर ले. कलाकार की अपनी पसंद-नापसंद भी होती है. कलाकार के तौर पर हम वह किरदार निभाना चाहते हैं या उन फिल्मों में अभिनय करना चाहते हैं, जिनसे हमें संतुष्टि मिले, काम करने में मजा आए .मैं आप के सामने ईमानदारी से कबूल करती हूं कि मेरे पास इस तरह की फिल्में नही आ रही है, जिन्हें करके कलाकार के तौर पर मुझे संतुष्टि मिल सके.

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देखिए,किसी भी फिल्म को स्वीकार करते समय हमें कई चीजों पर सोचना पड़ता है. फिल्म की स्क्रिप्ट कैसी है? मेरा किरदार किस तरह का है? फिल्म के निर्माता निर्देशक कौन हैं? क्या इस फिल्म का विषय समय के अनुरूप है? इन सारी चीजों पर सोच कर अंतिम निर्णय लेने में समय भी लगता है. यह एक लंबा प्रोसेस हैं, जिसे मैं खुद के लिए महत्वपूर्ण मानती हूं. इससे भी मेरी जिंदगी में काफी बदलाव आते. देखिए, हम जिस फिल्म में अभिनय करते हैं, उससे हम कुछ न कुछ सीखते हैं और उससे हमारी जिंदगी बदलती है. आप मानकर चलें कि जब हम किसी एक फिल्म में काम करना स्वीकार करते हैं, तो शूटिंग के लिए कम से कम 45 दिन देने पड़ते हैं. उसके बाद उसकी डबिंग और प्रमोशन करना है. उसके बाद डेस्टिनी सामने आ जाती है कि फिल्म चली या नही. लोगों ने फिल्म को पसंद किया या नही. तो आपकी जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा इस तरह से गुजरता है. मैं फिल्म के औफर आने के बाद फिल्म की रिलीज तक के प्रोसेस का स्तर बनाए रखना चाहती हूं. हर फिल्म को करने का निर्णय लेते समय मेरी कोशिश होती है कि हम दो कदम आगे बढे़ं.

यदि आपकी इस बात को हम सही मान लें, तो क्या फिल्म लव गेम्सकरने को आप सही कदम मानती हैं?

-बिलकुल नहीं.. मैं इसे सही कदम नही कह सकती. पर महेश भट्ट साहब ने ही मुझे एक नए अवतार में आने का मौका दिया, जिसके लिए मैं उनकी शुक्रगुजार हूं. उस वक्त मेरी उम्र 26-27 साल की रही होगी. तब मुझे नहीं पता था कि इस फिल्म को करने का क्या असर होगा? मुझे इस बात का बिलकुल अहसास नहीं था कि यह फिल्म इरोटिक जौनर की कही जाएगी. मुझे उस वक्त यह सारी बातें समझ नहीं आती थी. लेकिन महेश भट्ट साहब ने मुझे इस फिल्म को करने के लिए कहा, मैंने किया. लोगों ने मुझसे नफरत की. लोगों ने मुझे पसंद नही किया. मुझे भी पता चला कि यह मेरा अपना जानर नहीं है. मुझे इस तरह कि फिल्में नहीं करनी चाहिए. यदि आपने फिल्म देखी होगी तो आपको अहसास हुआ होगा कि उन सीन्स में मैं भी बहुत असहज नजर आती हूं. पर वह एक मसला था, जो वहीं खत्म हो गया. उसके बाद से मैं कुछ और अधिक सोच समझ कर फिल्में चयन करने लगी.

जब आप शूटिंग नहीं कर रही होती हैं, उस वक्त कुछ और काम करती हैं?

-मुझे यात्राएं करने और किताबें पढ़ने का बहुत शौक है. फिल्में देखती हूं. साल में कुछ माह काम भी करती हूं और फिर मैं इतने पैसे कमा लेती हूं कि मेरी जिंदगी अच्छे ढंग से गुजर जाती है. मुझे किसी से कोई शिकायत करने की जरूरत नहीं पड़ती.

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आप यात्राएं बहुत करती हैं? कहां घूमना पसंद करती हैं?

-सर मैं हर जगह जाना चाहती हूं. मुझे नई नई जगहों पर जाना और लोगों से बातें करना बहुत पसंद है. मुझे दूसरो के कल्चर उनके खान-पान को जानने की इच्छा ज्यादा होती है. लोगों का रहन सहन मुझे बहुत प्रभावित करता है.

किस तरह की किताबें पढ़ती हैं?

-अभी मैंने दो किताबें पढ़ी हैं.एक है एम रेन फाउटेन हेड और दूसरी ‘औटोबायोग्राफी औफ योगी’. इन दोनों फिल्मों ने बहुत बड़े स्तर पर मेरी जिंदगी को बदला था. जब आप किसी किताब को पढ़ते हैं, तो वह कहीं न कहीं आपके दिमाग पर असर करती हैं और आप एक अलग दुनिया में चले जाते हैं.

आपने कहा कि उन किताबों ने आपकी जिंदगी को बदला. क्या उसके बारे में बताएंगी?

-यह बहुत ही निजी मसला है. मैं इस पर बात नहीं करूंगी.

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Hey @rajkummar_rao,we celebrate love and life everyday..But just a shout out to you #Happyvalentinesday ❤️

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क्या आपको लगता है कि सोशल मीडिया कलाकार के स्टारडम को बरकरार रखने में मदद करता है?

मैंने पहले ही कहा कि स्टार, सुपरस्टार या स्टारडम सबकी परिभाषा खत्म हो गयी. मेरी नजरों में तो खान के बाद किसी भी कलाकार को सुपर स्टार नहीं कहा गया. आप वरूण धवन को देखिए. उसे लोग सुपर स्टार नहीं कहते. लेकिन इसकी हर फिल्म में अपनी उपस्थिति होती है. हर जगह नजर आता है. लोगों का मनोरंजन करता है. आप इंस्टाग्राम पर जाएं, तो भी मिल जाएगा. मुझे तो इंस्टाग्राम पर उसके पोस्ट, उसकी फोटोग्राफ देखना बहुत अच्छा लगता है. मुझे खुशी होती है कि यह तो मेरा दोस्त है, जिसे मैं रोज देखती हूं. तो सोशल मीडिया से कलाकार प्रशंसकों के बीच अपनापन पा जाता है. पर सोशल मीडिया से दर्शक नही मिलते? समाज के साथ साथ और भी बहुत कुछ बदला है. अब यह जरूरी है कि आप लोगों की नजर में आते रहें और लोग आपको पहचाने. यह काम सोशल मीडिया से पूरा होता है. धीरे-धीरे और भी बदलाव आता जाएगा.

इन दिनों कोई दूसरी फिल्म कर रही हैं?

-जी हां! एक कन्नड़ भाषा की फिल्म कर रही हूं, जिसके लिए फिलहाल कन्नड़ भाषा की मेरी ट्रेनिंग जारी है. एक हिंदी फिल्म है, जिसकी चर्चा नहीं कर सकती.

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