जब बहुएं ही देती हैं धमकी…..

अगर एक जगह कोई महिला घरेलू हिंसा का शिकार होती है तो वहीं दूसरी ओर कुछ महिलाएं ऐसी होती हैं जो घरेलू हिंसा का शिकार तो नहीं होती लेकिन अपने ही ससुरास वालों को झूठे केस में फंसाने की धमकी देती हैं और पति के साथ-साथ पूरे परिवार को अपने काबू में रखना चाहतीं हैं. लेकिन जब वो ऐसा नहीं कर पातीं तो घरवालों को धमकी तक दे देती हैं.इतना ही नहीं उस लड़की के अपने माता-पिता भी बेटी के इन कामों में उसका साथ देते हैं.

अक्सर ऐसा होता है कि जब सास चाहती है कि बहु घर के कामों में हाथ बंटाए लेकिन जब बहु कुछ नहीं करती तो सास बेटे से शिकायत कर बैठती है कि तेरी पत्नी घर के काम नहीं करती मैं अकेले कितना करूं.जब यही बात पति कहता तो पत्नी से उसकी कहा-सुनी होती है साथ ही उसकी नजरों में सास गलत हो जाती है. बस बहु सास को अपना दुश्मन मान बैठती है जो सही नहीं है. भले ही कुछ सासें अच्छी नहीं होती हैं लेकिन हर जगह ऐसी नहीं होती है सास बहु को बेटी मानती है लेकिन मामला तब बिगड़ जाता है जब बहु ही सास को अपना नहीं मानती….

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इनके रिश्तों में खटास इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि बहुएं कभी-कभी तो पति को ही उसके मां के खिलाफ भड़काना शुरू कर देंती हैं…मामला इस हद तक आगे आ चुका होता है यदि सास-ससुर कमजोर पड़ते हैं तो बहुएं उन्हें वृध्दाश्रम तक भेज देती हैं…..पति के सामने खुद में और मां-बाप में से किसी एक को चुनने पर मजबूर कर देती हैं. इस बात का उदाहरण आपर अमिताभ बच्चन के बागबान फिल्म या राजेश खन्ना और गोविंदा की फिल्म स्वर्ग से बखूबी समझ सकते हैं.

हमेशा सास ही गलत नहीं होत है…जरा आप सोचिए भला कौन सी सास ये नहीं चाहती कि उसकी बहु उसकी सेवा न करें…जिस तरह बहु अपने माता-पिता की सेवा करती है वैसे ही अगर थोड़ा अपने सास-ससुर की सेवा कर ले तो भला क्यों हो तकरार.बहुएं हमेशा अपना हक मांगती हैं लेकिन क्या वो अपना फर्ज निभाती हैं जो उनके ससुराल के प्रति है? अगर नहीं तो फिर अपने हक की उम्मीद कैसे कर सकती हैं. अक्सर ही घरों में सास-बहु में 36 का आंकड़ा होता है,लेकिन इसमें हमेशा सास ही गलत हो ये जरूरी नहीं हैं.

हम हमेशा ये देखते हैं कि बहुएं दहेज मांगने का आरोप लगाती हैं शिकायत करती हैं…तो पहली बात तो ये आज भी बहुत सी लड़कियों की फैमिली ऐसी होती है जो खुद ही दहेज देती है,इसमें उसकी खुद की मर्जी होती है तो क्या वो दोषी नहीं हैं?क्या उनकों सजा नहीं होनी चाहिए? एक रिपोर्ट पढ़ने पर पता चला कि महिलाएं खुद की मां के द्वार भी हिंसा का शिकार होती हैं पर वे इस पर ध्यान नहीं देती हैं और तो और उन्हें बचपन से ही सास से घृणा करना सिखा दिया जाता है इसलिए वो सास को अपना दुश्मन समझने लगती हैं.  एक सास अपनी बहु को अपना बेटा देती हैं हमेशा के लिए और अगर वही लड़का अपनी बीवी के कहने पर मां को गलत समझे तो क्या ये सही है नहीं बिल्कुल भी नहीं,मेरी नजर में ये कहीं से भी सही नही है इसलिए बहुओं को अपना नजरिया बदला होगा.

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बहु अगर सच में एक अच्छी बहु बनना चाहती है अपने सास की बेटी बनना चाहती है तो उसको कुछ अपनी जिम्मदारियों को निभाना होगा जिससे सास और बहु के रिश्ते को अच्छा बनाया जा सकता है..जैसे..

  • सास को सास नहीं मां समझे
  • सास की मां की तरह सेवा करें
  • ससुराल को सिर्फ ससुराल नहीं अपना घर समझें
  • घर के कामों में हांथ बटाएं
  • अपने मायके में ससुराल की बुराई न करें
  • पति से सास की बुराई न करें

Edited by Rosy

आप हम और ब्रैंड

लेखक-पूजा भारद्वाज 

– सुशील कुमार सीकरिया ( मैनेजिंग डाइरैक्टर, सनकेयर फौरम्यूलेशन)

अब्दुल कलाम ने कहा था कि सपने वे नहीं होते, जो आप सोने के बाद देखते हैं. सपने वे होते हैं, जो आप को सोने नहीं देते. उन की ये पंक्तियां मेहनती, बेहद शांत व बहुमुखी प्रतिभा के धनी सुशील कुमार सीकरिया पर बिलकुल सटीक बैठती हैं, क्योंकि अपनी कंपनी को शुरू करने का सपना उन्हें सोने नहीं देता था और आज वे अपने प्रयत्न से इस मुकाम पर पहुंचे हैं और अपनी कंपनी ‘सनकेयर फौरम्यूलेशन’ का नाम सफल कंपनियों में शुमार करवा चुके हैं.

जानते हैं, सुशील कुमार सीकरिया की सफलता की कहानी उन्हीं की जबानी: कैसे और कहां से हुई सनकेयर की शुरुआत?आज यह कंपनी जिस मुकाम पर है वहां तक इसे पहुंचाने में बहुत मेहनत और कठिनाइयों को पार करना पड़ा. मैं कम उम्र में ही फार्मा व्यवसाय से जुड़ गया था. फिर एक रिटेल काउंटर शुरू किया. उस काउंटर पर मैं दवाएं प्रैस्क्राइब करता था, बस उसी दौरान एक मैडिसिन से मेरा परिचय हुआ, जो कि बिस्मथ बेस्ड मैडिसिन थी. मैं ने कुछ मैडिकल जर्नल्स में इस दवाई के बारे में पढ़ा और पाया कि यह दवा बड़े कमाल की है. बस वहीं से मुझ पर इसे बनाने की धुन सवार हुई.

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मेरे दिमाग में बस एक ही बात थी कि कैसे भी मुझे यह दवा बनानी है. हालांकि इस बीच काफी मुश्किलों का सामना भी किया. मन में संशय भी था कि कहीं इसे बनाने में कोई कमी न रह जाए. लेकिन जो ठाना था उसे तो पूरा करना ही था. इस के लिए मैं ने एक लोकल कैमिस्ट्री टीचर से सौल्ट के बारे में समझा, फिर कोलकाता गया, वहां भी कुछ लोगों से समझा. फिर मेरी मुलाकात एक ऐसे शख्स से हुई, जो मुझे सौल्ट बना कर देने के लिए तैयार हो गए. उन की मदद से ही मैं ने यह मैडिसिन घर में एक छोटे से कमरे में बनाई. उस के बाद इस का ट्रायल लिया. इस के इस्तेमाल से लोगों को काफी फायदा हुआ. यहीं से दिमाग में आया कि हमें इस का प्रोडक्शन कंस्ट्रक्शन चालू करना चाहिए. अत: हमारी कंपनी ‘सनकेयर’ की शुरुआत हुई.

सवाल- आप ने सनकेयर की स्थापना के बाद क्याक्या बदलाव किए?

मेरा शुरू  से ही फोकस रहा है कि हमें दवा बेहतर क्वालिटी की ही बनानी है. बस इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम जरूरत पड़ने पर काफी सुधार करते रहते हैं. पहले हमारे प्लांट की क्षमता करीब 50 हजार लिटर माल बनाने की थी जो अब 1 लाख लिटर हो गई है. अब मुझे अपने दोनों बेटों संजय सीकरिया और संदीप सीकरिया का भी सहयोग मिल रहा है. अब नई जैनरेशन है, तो नई सोच और नए विचार भी होंगे. इन्होंने भी कंपनी की एक सकारात्मक इमेज बनाई है और प्लांट में काफी वैरिएशन भी किए. देहरादून में प्लांट की शुरुआत की. यहां प्लांट शुरू करने का कारण यह था कि यहां भरपूर सुविधाएं मुहैया हैं.

फार्मा इंडस्ट्री की चुनौतियां से कैसे निबटते हैं?

सरकारी और बाजारी दोनों ही चुनौतियां हैं. सरकारी नियमकानून हैं, उन की कंप्लाइंस की चुनौतियां हैं. जो नएनए कंप्लाइंस आ रहे हैं उन्हें मीटआउट करना चुनौती है. इस के अलावा जैसेजैसे प्रगति हो रही है वैसेवैसे फार्मा इंडस्ट्री पर चुनौतियां बढ़ती जा रही हैं. इंडस्ट्री के ऊपर इस बात का दबाव बढ़ता जा रहा है कि आप की दवा की क्वालिटी इंटरनैशनल स्टैंडर्ड को मीट करे. इस के लिए सरकार भी बहुत ज्यादा प्रतिबद्ध है. इस में बदलाव आते रहते हैं और इस की वजह से हमें सीखने का मौका मिलता रहता है, हम खुद भी बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं. इस की वजह से हमारे उत्पादों की गुणवत्ता दिनबदिन बेहतर होती जा रही है. मगर इस प्रतिस्पर्धा में हम ने यह महसूस किया कि अगर आप के उत्पाद में गुणवत्ता है और पेशैंट को दवा फायदा कर रही है, तो डाक्टर व पेशैंट खुद ही कम लाभ देने वाली दवा को नजरअंदाज कर उत्तम दर्जे की दवा का रूख करते हैं.

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बाजार में पेट से जुड़े विकारों के लिए कई उत्पाद हैं. ऐसे में स्टोमाफिट को स्थापित ब्रैंड कैसे बनाया?

पेट से जुड़े विकारों के लिए बाजार में जितने भी उत्पाद हैं उन सब उत्पादों में कहीं न कहीं थोड़ीबहुत कमियां हैं, क्योंकि ये उत्पाद आप को कब्ज, गैस, डायरिया से थोड़े समय के लिए तो आराम दिला देंगे, लेकिन इन से आप को परमानेंट फायदा नहीं होता है. दवा खाते रहेंगे, तो आराम रहेगा वरना

फिर परेशानी चालू हो जाएगी. अब यदि स्टोमाफिट की बात करें, तो इस में है बिस्मथ, जो इस का एक खास घटक है. बिस्मथ आतों के अंदर एक लेयरिंग कर देता है, एक पतला सा आवरण बना लेता है, जो काले रंग का होता है.

आवरण बनने के बाद बैक्टीरिया को कुछ खाने के लिए नहीं मिलता है, जिस की वजह से वे पेट में ही मर जाते हैं और इस पूरी प्रक्रिया में 90 मिनट लगते हैं. स्टोमाफिट में एक और खासीयत है कि यह अमोनिया बेस्ड प्रोडक्ट है, जिस की वजह से बैक्टीरिया इसे अपनी फैमिली का समझ कर इस की तरफ आकर्षित हो जाते हैं. इसलिए बिस्मथ के अन्य उत्पादों के मुकाबले स्टोमाफिट इसलिए भी ज्यादा फायदेमंद है और जब ये बैक्टीरिया मर जाते हैं, तो आप सारी परेशानी से मुक्त हो जाते हैं.

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आप खुद ही सोचिए कि जहां आप को कब्ज के लिए अलग, गैस लिए अलग, बदहजमी के लिए अलग दवा खानी है, तो

फिर आप इन सब बीमारियों के लिए एक ही दवा क्यों न खाएं. यह एक साइड इफैक्ट रहित दवा है.

 सवाल- अपने उत्पादों की यूएसपी के बारे में विस्तार से बताएं?

हमारे उत्पादों की सब से मजबूत यूएसपी उच्च गुणवत्ता व प्रदर्शन और दवा का उचित दाम है. दूसरी बात यह कि यह अंतर्राष्ट्रीय मानक पर खरी उतरती है. इस के अलावा ग्राहकों को ज्यादा से ज्यादा लाभ पहुंचाना भी हमारी यूएसपी है. वैसे अधिकतर कंपनियां यह सोचती हैं कि दवा का स्वाद ठीकठाक हो. लेबल क्लेम पूरा हो. मगर हमारे प्रोडक्ट की खास बात यह है कि हम ने प्रोडक्ट में न सिर्फ आयरन और फौलिक ऐसिड पर ध्यान दिया, बल्कि दवा के शरीर में अवशोषण पर भी ध्यान दिया. इस के लिए हम ने शुगर को ब्रेकडाउन कर एक आर्टिफिशियल शहद बनाया ताकि दवा का कड़वापन खत्म हो सके.

 सवाल- उत्पादों के डिस्ट्रिब्यूशन में किन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है और उन से कैसे निबटते हैं?

डिस्ट्रिब्यूशन में उन रिटेलरों व डाक्टरों से खासा दिक्कत होती है, जिन का लक्ष्य प्रोडक्ट से ज्यादा से ज्यादा मार्जिन कमाना है, क्योंकि उन्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होता कि मरीज को दवा से कोई फायदा हो रहा है या नहीं. वे क्वालिटी की तरफ बिलकुल ध्यान नहीं देते हैं. कम क्वालिटी के माल से ज्यादा मार्जिन मिलने की अपेक्षा रखते हैं. ऐसे लोगों से हमें ज्यादा परेशानी होती है. वैसे हमें कोई और मुश्किल नहीं होती है.

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सवाल- उपभोक्ता औनलाइन उत्पादों की तलाश करते हैं. इस पर आप के क्या विचार हैं?

हमारे कुछ रिटेलरों ने हमारे प्रोडक्ट को औनलाइन बेचने की शुरुआत जरूर की है, लेकिन कंपनी की तरफ से अभी इस प्लेटफौर्म का उपयोग नहीं किया गया है. मगर जैसी आज की डिमांड है यानी डिजिटल दुनिया का जमाना है, तो हम भी इस तरफ जरूर जाना चाहेंगे और इस की जल्द ही शुरुआत करेंगे.

 सवाल- आप का सक्सैस मंत्र क्या है?

जो दवा हम बनाते हैं उस से बेहतर दवा हमें बाजार में न मिले. दूसरा यह कि ग्राहक ने जो रुपए दवा पर खर्च किए हैं उसे अपने पैसे की पूरी कीमत वसूल हो जानी चाहिए.

 सवाल- आपकी मैनेजमैंट फिलौसफी क्या है?

मैनेजमैंट की बात करूं, तो जितना भी हमारा स्टाफ है, हम उसे ऐसा माहौल देते हैं कि वह एक परिवार की तरह काम करे. सब मिल कर पूरी मजबूती से कंपनी के साथ खड़े रहें ताकि कंपनी की निरंतर प्रगति होती रहे. साथ मिल कर काम करने में जो मजा है वह अकेले में नहीं.

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इन 5 होममेड टिप्स से पाएं दोमुंहें बालों से छुटकारा

घर पर ही हम दोमुंहें बालों से छुटकारा पा सकते हैं. कुछ प्रकृतिक प्रदार्थ का इस्तेमाल करके हम फिर से अपने सुंदर, घने, चमकदार बाल वापस पा सकते हैं. यह कुछ ऐसे प्रदार्थ है जिससे बालों में चमक तो आएगी साथ ही दोमुंहें बालों से भी छुटकारा मिलेगा. दूध, दही, शहद, पपीता, अंडा, आदि के प्रयोग से दोमुंहें जैसी समस्या को दूर की जा सकती हैं.

1. अंडा का करें ऐसे इस्तेमाल

अंडा हमारी त्वचा और बाल दोनो के लिए ही फायदेमंद होता है. इसे लगाने से बाल चमकदार और मुलायम तो होते ही हैं साथ ही इसमें मौजूद प्रोटीन और फैटी एसिड लआपको दोमुंहे बा समस्या से मुक्ति दिलाते हैं इसे लगाने के लिए अंडे के पीले भाग को निकाल कर इसमें शहद और  जैतून के तेल की कुछ बूंदें मिलाकर अच्छे से फेट लें. अब इसे गीले बालों पर लगाएं और कुछ समय बाद धो लें. अंडा आपके बालो में एक कंडीशनर की तरह काम करता हैं.इससे महीने में 2 बार जरूर करें.

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2. दूध और मलाई का भी करें इस्तेमाल

मलाई और दूध आपके बालों की खोई हुई चमक लौटाता है और दो मुहें बालों को हटाता है. इसके लिए आधा कप दूध में मलाई डालकर अच्छे सेमिला ले और बालों परलगा लें,15 मिनट इसे लगा रहने देंऔर फिर शैम्पू करलें.

3. गर्म तेल की चंपी रहेगी फायदेमंद
गर्म तेल से चंपी करने से हमें रिलेक्स तो महसूस होता है साथ ही गर्म तेल की मालिशसे बालों की कई समस्या का समाधाननिकल जाता है. अगर आप के बाल झड़ने लगे हैं या फिर दोमुंहे हो गए हैं तो गर्म तेल की मालिश आपके लिए फायदेमंड हैं. इसके लिए नारियल, बादाम या जैतून का तेल गर्म कर के बालों की अच्छे से मालिश करें और रात भर इसे लगा रहने दें. सुबह शैम्पू करलें. ध्यान रहें तेल ज्यादा गर्म ना हों.

4. केला का ऐसे करें इस्तेमाल

केला हमारे लिए बहुत फायदेमंद हैं.केला आपको स्वस्थ भी बनाता और बालों की कई समस्याओं से मुक्तिभी दिलाता है.केला से दोमुंहे बालों की समस्याआसानी से दूर हो जाती हैं. इसके लिए एक पके हुए केले को दही और गुलाबजल के साथ मिलाकर अच्छे सेपेस्ट बना लें और इसे बालों में लगाएं. करीब एक घंटे तक इसको लगा रहने दे और फिर इसे धोले.

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5. पपीता के इस्तेमाल से पाएं छुटकारा

पपीता हमारे चेहरे और हमरे बालों दोनों के लिए बहुत फायदेमंद हैं. पपीता के एंटी औक्सीडेंट्स बालों को हेल्दी और रूखापन हटाने में मदद करता हैं. पपीता को पीस कर बालों के जड़ और दोमुंहें बालों पर लगाले और 1 घंटे बाद शैम्पू कर लें.

दोमहें बालो से बचने के लिए सही खान-पान का सेवन करें, प्रोटीन युक्त आहार का सेवन करें.

Web Series Review: द हैंडमेड्स टेल

रिलीज इयर– 2017

क्रिएटर- ब्रूस मिलर

कास्ट– एलिज़ाबेथ मोस, जोसफ फ़िएन्नेस, य्वोन स्ट्राहोव्सकी, एलेक्सिस ब्लेडेल

जोनर– ड्रामा, डिसटोपियन फिक्शन

मार्गरेट अटवुड की डिस्टोपियन नोवल ‘द हैंडमेडस टेल’ पर बेस्ड यह सीरीज एक ऐसी सोसाइटी को दिखाती है जहां कुछ औरतों को बंदी बनाकर उन्हें हैंडमेड बना दिया जाता है. इन हैंडमेड्स का काम अपने मालिकों को बच्चे पैदा करके देना होता है. इन के साथ बलात्कार होता है, हर तरह का अत्याचार होता है और आवाज उठाने पर इनका हाथ, जीभ यहां तक की जननांग भी काट दिए जाते हैं.

यह सीरीज जितनी रिमार्केबल है उतनी ही टेरीफाइंग भी है. इसमें ऐसे कितने ही मूमेंट्स हैं जब इसे देखना कठिन हो जाता है फिर भी इग्नोर नहीं किया जाता. सीरीज का मुख्य किरदार एलिज़ाबेथ मोस ने निभाया है जिनकी एक्टिंग और परफौरमेंस ब्रिलियंट है.

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एलिज़ाबेथ का किरदार ओफ़्फ़्रेड/जून एक अमेरिकी महिला है जिसे गिल्लीएड में बतौर हैंडमेड रखा गया है. जिस परिवार में जून को भेजा जाता है वहां सेरेना और फ्रेड वाटरफोर्ड उससे एक बच्चे की उम्मीद रखते हैं जिसके चलते उसका बारबार बलात्कार किया जाता है. हिम्मत हारने की बजाए जून इस पूरी व्यवस्था के खिलाफ लड़ती है और एक ऐसे कैरेक्टर को पोट्रेट करती है जो गलतियां करता है, बेवकूफी भरे कदम भी उठाता है लेकिन अपने साथ हो रहे अन्याय को चुप्पी साधकर सहता नहीं रहता.

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जून के साथ-साथ एमिली, जनीन, मोइरा और सेरेना का किरदार बेहद स्ट्रोंग है. यह एक मस्ट वाच सीरीज है. इसके अब तक तीन सीजन आ चुके हैं.

ऋषि कपूर ने जीती कैंसर से जंग, मिलने पहुंचे फिल्मी सितारे

अमेरिका में कैंसर का इलाज करवा रहे बौलीवुड अभिनेता ऋषि कपूर अब कैंसर मुक्त हो चुके है. लेकिन उनसे मिलने वालों का सिलसिला अभी भी जारी हैं. हाल में ही उनसे मिलने दीपिका पादुकोण, विकी कौशल और बोमन ईरानी न्यूयौर्क पहुंचे थे. इससे पहले शाहरुख खान, अमीर खान, प्रियंका चोपड़ा जोनस और अनुपम खेर जैसे सितारे भी ऋषि कपूर से मिल चुके है. वहीं अभिषेक बच्चन और ऐश्वर्या राय बच्चन भी ऋषि कपूर का हाल चाल पूछने न्यूयौर्क पहुंच गए.

नीतू कपूर ने सोशल मीडिया पर शेयर की फोटो

 

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Your family is your whole world ❤️ so so many LOVES in these beautiful moments ???

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ऋषि कपूर की पत्नी नीतू कपूर ने सोशल मीडिया पर एक फोटो अपलोड की है. फोटो में अभिषेक बच्चन, ऐश्वर्या राय बच्चन और उनकी बेटी आराध्या बच्चन के साथ पूरा कपूर परिवार नजर आ रहा है. खास बात यह है की इस फोटो में रणबीर कपूर के साथ अलिया भट्ट भी दिखाई दे रही हैं. आलिया भट्ट और रणबीर कपूर लंबे समय से एक दूसरे को डेट कर रहे हैं.

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ऋषि कपूर हुए कैंसर फ्री

ऋषि कपूर की तबीयत में काफी सुधार आ चुका हैं. अब वो कैंसर फ्री हैं और इसका शुक्रिया उन्होनें अपने परिवार और फैंस को दिया है. उन्होनें कहां की ‘किसी भी बीमारी से छुटकारा पाना बहुत बड़ी बात है और यह सब मेरे परिवार और मेरे फैंस की प्रार्थनाओं और दुआओं के कारण हुआ है. मैं उन सभी को धन्यवाद देता हूं.’

जल्द करेंगे फिल्म की शूटिंग शुरु

 

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Such a fun evening with adorable @deepikapadukone .. gave lot of love n warmth ??

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ऋषि कपूर अगस्त के अंत तक भारत वापस लौट सकते हैं और आते ही अपनी अगली फिल्म की शूटिंग भी शुरू कर सकते हैं. भारत आने के लिए ऋषि बहुत उत्सुक है.

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क्या सच में बिग बी की नातिन को डेट कर रहे हैं जावेद जाफरी के बेटे?

मशहूर फिल्मकार संजय लीला बतौर निर्माता फिल्म ‘‘मलाल’’ लेकर आ रहे हैं.  पांच जुलाई को प्रदर्शित होने वाली फिल्म ‘‘मलाल’’ 2004 की सफल तमिल फिल्म ‘‘7 जी रेंबो कालोनी’’का हिंदी रीमेक है.  1998 की पृष्ठभूमि के मुंबई की एक प्रेम कहानी से बौलीवुड में कदम रखने जा रहे मीजान जाफरी फिल्मी बैकग्राउंड से आते हैं, उनके दादा जगदीप और पिता जावेद जाफरी बौलीवुड के नामचीन अभिनेताओं में से एक हैं.  म्यूजिक और स्पोर्टस में अपनी पहचान की आजमाने की चाहत रखने वाले मीजान जाफरी के करियर की शुरूआत एक्टिंग से हुई, पेश है उनसे हुए एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश. . .

सवाल- सुना है आप म्यूजिक और स्पोर्टस में काम करना चाहते थे,मगर फिल्मी माहौल की परवरिश ने आपको भी अभिनेता ही बना दिया?

-मुझे स्कूल दिनों से ही संगीत और स्पोर्टस में रूचि रही है.  मुझे इन्ही क्षेत्रों में कुछ करना था.  पर यह भी सच है कि मेरे दादा जगदीप जी का बौलीवुड में अपना एक मुकाम रहा है.  मेरे पिता जावेद जाफरी ने भी अभिनय में अच्छा नाम कमाया है.  मैंने अपने दादा की फिल्म ‘दो बीघा जीमन’ भी देखी है, जिसमे वह बाल कलाकार थे.  तो जिस माहौल में परवरिश हो रही हो, उसका असर होना स्वाभाविक है.  अनजाने ही दिमाग में फिल्मों की बात आ ही जाती है.  मगर मेरा फिल्मों से जुड़ने के पीछे असली वजह संजय लीला भंसाली सर हैं.

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वास्तव में जब मैं अमरीका में पढ़ाई करने के दौरान छुट्टियों में मुंबई आया, तो अचानक एक दिन मेरी मुलाकात संजय सर (संजय लीला भंसाली) से हो गयी.  उन्होने ही मुझसे अभिनय करने के लिए कहा. उन्होने कहा कि व मुझे अपने बैनर की फिल्म से लांच करेंगें.  तब पहली बार मेरे दिमाग में आया कि मुझे यही करना है. यदि बौलीवुड का इतना बड़ा निर्देशक कुछ कहे, तो उसके मायने होते हैं.  उससे पहले मैं अमरीका के एक कौलेज में बिजनेस की पढ़ाई कर रहा था.

सवाल- संजय लीला भंसाली से आपकी मुलाकात कैसे हुई?

-यह 2014 की बात है. उस वक्त संजय सर अपनी फिल्म‘‘बाजीराव मस्तानी’का प्री प्रोडक्शन कर रहे थे. शर्मिन इस फिल्म में साथ सहायक कास्ट्यूम डिजायनर के तौर पर काम कर रही थी. शर्मिन के मामा हैं संजय सर. शर्मिन और मैं एक ही स्कूल में पढ़े हैं और हमारे बीच अच्छी दोस्ती है.  उन्ही दिनो मैं छुट्टियों में अमरीका से वापस आया था.  एक दिन शर्मिन ने मुझे फोन करके बुलाया कि उसे कास्ट्यूम का ट्रायल करना है, तो मैं उसकी मदद के लिए आ जाउं.  मैं इसी औफिस में आया.  मैने बाजीराव (बाजीराव का किरदार रणवीर सिंह ने निभाया था) के कास्ट्यूम के लिए ट्रायल दिया. संजय सर ने मुझसे कहा कि मेरे अंदर स्टार मटेरियल है.  उस वक्त तक उन्हे पता नहीं था कि मैं जावेद जाफरी का बेटा और जगदीप का पोता हूं.  पर बात-बात में मैने उन्हें बता दिया कि मेरे पिता जावेद जाफरी हैं.  कुछ सप्ताह बाद संजय सर ने फोन करके औफिस बुलाया.  संजय सर ने मुझे का औफर दे दिया.  दूसरे दिन मुझसे अपने माता पिता को लेकर आने के लिए कहा गया.  आफिस से नीचे उतरकर मैं काफी देर तक चुपचाप खड़े रहकर अपनी इतनी बड़ी खुशी को समेटने का प्रयास करता रहा. फिर मैने फोन करके सारी बात अपनी मां को बतायी. मां को पहले यकीन नहीं हुआ. पर उन्हे भी बहुत खुशी हुई. दूसरे दिन मेरे पिता की किसी एड फिल्म की शूटिंग थी. मैने वह शूटिंग कैंसिल करवाकर अपने माता पिता के साथ आकर संजय सर से मिला. पर मेरे पिता ने संजय सर से कहा कि उन्हे खुशी है कि वह उनके बेटे को लौंच कर रहे हैं, पर वह चाहते हैं कि मिजान पहले कौलेज की पढ़ाई खत्म करे, उसके बाद उनके साथ काम करे. मेरे पिता ने मुझे सलाह दी कि फिल्म इंडस्ट्री बहुत ही अनिश्चय वाली इंडस्ट्री है. मुझे बिजनेस की डिग्री पहले लेकर खुद को सुरक्षित कर लेना चाहिए. संजय सर ने तीन साल के लिए फिल्म को रोक दिया.

मैं वापस अमरीका चला गया. वहां जाकर मेरा मन पढ़ाई में लगा ही नही. कुछ दिन बाद मैने पिताजी को फोन करके कहा कि मेरा मन कह रहा है कि अब मैं फिल्म स्कूल ज्वाइन कर लूं. बड़ी बहस के बाद मेरे पिता ने कहा ठीक है. पर उन्होने सलाह दी कि में कैमरामैन या फिल्म एडीटिंग या निर्देशन की ट्रेनिंग हासिल करुं. मैं जब 20 साल का होने वाला था, तब मैने अमरीका के न्यूयार्क शहर में ‘‘स्कूल आफ विज्युअल आटर्स’’ में एडमीशन लिया. चार साल का कोर्स था. पर मैने दो साल तक पढ़ाई करने के बाद बिना पिता जी को बताए पढ़ाई छोड़कर मुंबई वापस आ गया. क्योंकि तब मुझे शर्मिन से ही पता चला कि संजय सर ‘पद्मावत’ शुरू कर रहे हैं. मैने सोचा कि संजय सर के साथ काम करते हुए मैं प्रैक्टिकल ट्ेनिंग हासिल कर सकता हॅूं. मुंबई आकर मैने ‘पद्मावत’ में सहायक के तौर पर काम किया. उसके बाद मुझे शर्मिन के साथ ‘मलाल’ मे हीरों बना दिया गया. अब पॉंच जुलाई को ‘मलाल’ रिलीज हो रही है.

सवाल- आपने फिल्म स्कूल की ट्रेनिंग बीच में ही छोड़ दी थी. अब बतौर अभिनेता आपकी पहली फिल्म ‘‘मलाल’’ रिलीज होने जा रही है. बीच में ही छोड़ दिया था. अब आपके अनुसार क्या अभिनय की ट्रेनिंग लेनी चाहिए?

-जी हॉ!मैंने न्यूयार्क के फिल्म स्कूल में जो कुछ सीखा,वह कहीं न कहीं मेरे लिए मददगार साबित हुआ. फिल्म स्कूल में मैने जो कुछ सीखा है, वह आगे कभी न कभी काम आने वाला ही है. लोगों को यह नहीं सोचना चाहिए कि आज सीखा है, तो कल से वह उनके काम आ जाएगा. आपने जो कुछ सीखा है, वह पता नही कब काम आ जाए. शिक्षा बेकार नहीं जाती. मैने स्कूल के दिनो में भी बहुत काम ऐसा किया है, जो आज मेरे काम आ रहा है. मुझे नहीं पता था कि मैं पियानो बजाना सीख रहा हूं, इससे मुझे रिदम का सेंस मिलेगा,जो कि मेरे अभिनय में मदद करेगा. जब मैं पियानो बजाना सीख रहा था,तब मेरे दिमाग में भी नहीं था कि मैं कभी एक्टर बनूंगा.

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सवाल- ‘‘मलाल’’है क्या?

-मलाल का मतलब ‘रिग्रेट’. यानी कि जो न कर पाएं.

सवाल- मेरा मतलब यह है कि आप फिल्म ‘‘मलाल’’को लेकर क्या कहेंगे?

-यूं तो यह विपरीत परिवेश में पाने वालों की प्रेम कहानी है. तो वहीं मुंबई में चाल में रहने वाले निम्न मध्यम वर्गीय महाराष्ट्यिन परिवार के लड़के शिवा मोरे की कहानी है. शिवा अपने अंदर की प्रतिभा को सही राह पर नहीं ले जा पाता. जबकि वह उम्र के ऐसे पड़ाव पर है, जहां वह सही या गलत राह पर जा सकता है. पर अचानक उसकी जिंदगी में आस्था त्रिपाठी नामक लड़की आती है, तो सब कुछ बदल जाता है. आस्था उसकी जिंदगी बदलती है. यह फिल्म शिवा की यात्रा है, जिस यात्रा में शिवा को आस्था त्रिपाठी से प्यार हो जाता है. पर आस्था को शिवा से प्यार नहीं है.

सवाल- शिवा मोरे व मिजान में कितनी समानता है?

-कोई समानता नहीं. शिवा महाराष्ट्यिन कल्चार में पला बढ़ा निम्न मध्यमवर्गीय परिवार से है. लोकल ट्रेन में यात्रा करता है. मराठी भाषा में बात करता है. चाल के कमरे में रहता है,जिसमें पांच लोग रहते हैं. जबकि मिजान फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता है. जुहू के पौश इलाके के पांच बेडरूम के मकान में रहता है. मर्सडीज में घूमता है. शिवा मोरे काफी लाउड है. बाकि मैं निजी जीवन में काफी प्रैक्टिकल इंसान हूं. फिल्म में शिवा का जिस तरह का रिश्ता है, उस तरह का निजी जिंदगी में मेरा कोई रिश्ता नहीं रहा. इसलिए मिजान के लिए शिवा मोरे की जिंदगी से जुड़ना काफी बड़ी चुनौती रही.

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सवाल- अमिताभ बच्चन की नातिन नाव्या नवेली नंदा संग आपके रिश्ते की खबरें काफी गर्म हैं?

-गलत… मैं किसी के भी साथ डेट नहीं कर रहा. नाव्या भी हमारे दोस्तों के ग्रुप का हिस्सा है. वह मेरी बहन की खास सहेली है. मेरी बहन और नाव्या नवेली नंदा न्यूयार्क में एक ही कालेज में पढ़ती हैं.

सवाल- शिवा मोरे के किरदार को निभाने में फिल्म के निर्देशक मंगेश हडवले से कितनी मदद मिली?

-वह खुद महाराष्ट्यिन हैं. उन्होने ही इस किरदार को गढ़ा है. मैंने वही किया जो कहा, उन्होने कहा. हम उनके साथ बैंड स्टैंड पर जाकर बैठते थे, लोगों की बातें सुनते थे. चाय की तपरी पर बैठकर चाय पीते हुए हम सुनते थे कि महाराष्ट्यिन लड़के आपस में क्या बात कर रहे हैं. उनकी समस्याओं, लड़कियों को लेकर उनके विचार आदि चुपचाप हम सुनते थे. जब कोई बात से समझ में न आती,तो मंगेश जी हमें समझाते थे. फिर मंगेश से हिंदी या अंग्रेजी की बजाय मराठी में ही बात करनी शुरू की. मैं हिंदी में उनसे कुछ कहता, तो वह उसका जवाब ही नहीं देते थे. मराठी भाषा और महाराष्ट्यिन कल्चर को लेकर मेरा कंफीडेंस बढ़ गया.

क्या शिवा मोरे के किरदार के लिए आपने सिर पर खास तरह के बाल रखे?

-मुझे लंबे बाल रखने का शौक है. पर मेरे बाल एकदम सीधे हैं. किंतु फिल्म के मेरे शिवा मोरे के किरदार के लिए बालों को थोड़ा सा कर्ली किया. हर दिन शूटिंग से पहले मुझे एक घंटा अपने बालों की कर्ल स्टाइल को बनाने में लगते थे. मैं दाढ़ी भी रखता हूं.

सवाल- फिल्म ‘‘मलाल’’ करने के बाद आपको अपने अंदर के पौजीटिव व नगेटिब प्वाइंट पता चले होंगे?क्या उन पर रोशनी डालना चाहेंगे?

-मेरा पौजीटिव प्वाइंट यह है कि मेरे अंदर पैशंस बहुत है. आप मुझे दस हजार गालियां भी दे देंगे, तो मैं चुपचाप सुन लूंगा. मैं भले ही मन ही मन अपने आपसे कुछ कह लूं. मेरे अंदर नगेटिब बात यह है कि मुझे हमेशा अपना निर्णय ही सही लगता है. इस फिल्म में अभिनय करने के बाद मेरी समझ में आया कि जिंदगी में दूसरे की राय पर अमल करना जरुरी है. हर इंसान को दूसरे की बात सुनकर दूसरे के नजरिए को अपने नजरिए में मिलाना चाहिए.

सवाल- पिता जावेद जाफरी संग डांस करने के अनुभव?

-जब हम वीडियो के लिए अपने पिता के साथ डांस कर रहा था, तो  यह पहल मौका था. पर मुझें हमेशा यह सीन याद रहेगा. हमारे परिवार के लिए यह महत्वपूर्ण दिन था. क्योंकि मेरे पिता मशहूर डांसर हैं. इससे पहले मैने कभी भी उनके साथ डांस नही किया था.

सवाल- आपको अपने दादा जगदीप की कौन सी फिल्में पसंद हैं?

-सबसे ज्यादा‘शोले’पसंद है. ‘दो बीघा जमीन’’में उन्होने बाल कलाकार के तौर पर काम किया था. वह फिल्म व उनका काम बहुत पसंद है. फिल्म ‘कालिया’ में मुझे उनका काम पसंद है. पुरानी फिल्म‘ एजेंट विनोद’ में भी उनका किरदार बुहत अच्छा है.

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सवाल- पिता जावेद जाफरी की कौन सी फिल्में पसंद हैं?

-‘सलाम नमस्ते’. मेरे पिताजी ने एक नाटक किया था-‘‘हम ले गए,तुम रह गए’भी मुझे बहुत पसंद है. इसमें उन्होने चार किरदार निभाए थे.

सवाल- आगे किस तरह के किरदार करना चाहेंगे?

-सिर्फ चुनौतीपूर्ण किरदार ही करना चाहूंगा. मेरी कोशिश होगी कि अगली फिल्म का मेरा किरदार ‘मलाल’के शिवा मोरे से अलग हो. हर तरह का किरदार करना है. थ्रिलर, कौमेडी सब कुछ करना है.

सवाल- सोशल मीडिया पर कितना सक्रिय हैं?

-पहले मैं सोशल मीडिया पर बिलकुल नहीं था. पर जब से फिल्म का प्रमोशन चल रहा है, तब से सोशल मीडिया पर आया हूं. फिलहाल फेशबुक,ट्वीटर व इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफार्म को समझने का प्रयास कर रहा हूं. सोशल मीडिया सेे हम लोगों से जल्दी कनेक्ट हो जाते हैं और हमें एक्सपोजर भी मिलता है. मेरे पिता जावेद जाफरी सिर्फ ट्वीटर पर हैं. मेरे दादा जगदीप जी सोशल मीडिया पर नहीं है. सोशल मीडिया का आज की पीढ़ी ही ज्यादा उपयोग कर रही है.

सवाल- सोशल मीडियम से नुकसान?

-बच्चों के लिए सोशल मीडिया नुकसानदेह है. ज्यादा एक्सपोजर के ही चलते लोग अपनी पहचान खो बैठते हैं. आजकल सभी बच्चे, यहां तक कि मेरा छोटा भाई भी दिन भर फेशबुक, इंस्टाग्राम व ट्वीटर पर चिपका रहता है. इसके चलते वह घर से बाहर खेलने नहीं जाता. बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए उसका घर से बाहर खेलना कूदना बहुत जरुरी है.

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सवाल- शौक?

-पियानो बजाता हूं. गिटार बजाता हूं. गाना गाता हूं. स्कूल दिनों में बास्केट बाल और फुटबाल खेलता था. मैने बास्केट बाल तो महाराष्ट् के लिए भी खेला है. मैं एथलिट रहा हूं. दौड़ता भागता था. मैंने हर साल स्पोटर्स में काफी ट्रौफी जीती हैं. संगीत में अभी भी रूचि है. गीत गाता रहता हूं.

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मलाइका के साथ बर्थडे मनाएंगे अर्जुन, गुपचुप हुए रवाना

बौलीवुड एक्ट्रैस मलाइका अरोड़ा खान इन दिनों काफी चर्चाओं में हैं. कभी अपने लुक के कारण तो कभी अपने 12 साल छोटे एक्टर अर्जुन कपूर के साथ रिलेशनशिप को लेकर. वहीं बीती रात अर्जुन और मलाइका अरोरा को एक साथ एयरपोर्ट पर स्पौट किया गया, जिसके बाद सोशल मीडिया में उनकी फोटोज वायरल हो गई. आइए आपको दिखाते हैं उनकी लेटेस्ट वायरल फोटोज…

एयरपोर्ट पर साथ दिखे मलाइका-अर्जुन

 

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मलाइका और अर्जुन बीती रात एयरपोर्ट पर साथ नजर आए. इस दौरान दोनों बेहद सिंपल लेकिन ट्रैंडी लुक में स्पौट हुए. 26 जून को अर्जुन कपूर का बर्थडे है, जिसे मनाने के लिए दोनों घूमने निकलें है.

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रेड ट्रैक सूट में एयरपोर्ट पहुंची मलाइका

 

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एयरपोर्ट पर स्पौट होने के दौरान मलाइका रेड कलर के ट्रैक सूट में नजर आईं, जिसे देखकर साफ पता चल रहा था कि दोनों कहीं घूमने जा रहे हैं.

सिंपल लुक में नजर आए अर्जुन

मलाइका जहां रेड कलर के ट्रैक सूट के फैशन में नजर आईं तो वहीं, अर्जुन कपूर इस दौरान एकदम रफ एंड टफ लुक सिंपल दिखाई दिए.

अर्जुन के बर्थडे की प्लानिंग के लिए निकले साथ

26 जून को अर्जुन कपूर का जन्मदिन है, इसीलिए मलाइका के साथ अर्जुन कपूर घूमने की तैयारी में निकले हैं.

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मीडिया को देख दिया ये रिएक्शन

 

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एयरपोर्ट में स्पौट होने के दौरान मलाइका अरोड़ा ने मीडिया को देख कुछ पोज भी दिए, जिससे साफ पता चला रहा है कि अब दोनों अपने रिलेशनशिप को छिपाना नहीं चाहते.

बता दें, हाल ही में अर्जुन कपूर की कजन एक्ट्रेस सोनम के बर्थडे की पार्टी में मलाइका साड़ी में पहुंची थीं, जिसके बाद लोगों नें सिंपल पार्टी में सज-धज कर पहुंचने को लेकर लोगों ने ट्रोल कर दिया था.

ट्रैंडी लुक के लिए ट्राय करें ये 9 ट्रिकी टिप्स

हर महिला की तमन्ना होती है कि वह दूसरों से अलग, खूबसूरत और फ्रैश दिखे, सभी का अट्रेक्शन उस पर ही टिकें और वह इतराती हुई आगे बढ़े. मौनसून में खुद को रिफ्रैश करने और अपनी अलग पहचान बनाने के लिए आइए जानते हैं मोंटे कार्लो की ऐग्जीक्यूटिव डाइरैक्टर मोनिका ओसवाल से के कुछ स्टाइल स्टेटमैंट्स के बारे में जिन्हें हर महिला/लड़की फौलो कर फैशन गेम में खुद को सब से आगे रख सकती है:

1. कैजुअल लुक के लिए ये करें ट्राई

किसी पार्टी में जाना हो, मूवी नाइट का प्लान हो अथवा दोस्तों से मुलाकात करनी हो, आप अपना खुद का स्टाइल स्टेटमैंट बनाने के लिए कुछ वाइल्ड और बोल्ड ट्राई कर सकती हैं. इस के लिए आप नए प्रिंट्स, ऐक्सैसरीज फैब्रिक और कलर ट्राई कर सकती हैं.

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2. पफ शोल्डर है ट्रैंडी

विंटेज पफ शोल्डर फिर से ट्रैंड में आ गया है. टौप ड्रैस व ब्लाउज आदि में पफ्ड स्लीव ट्राई कर सकती हैं. किसी भी पार्टी में पफ्ड स्लीव वाली ब्लैक पैंसिल ड्रैस पहनें और फिर देखें कैसे आप हर किसी के आकर्षण का केंद्र बनती हैं. अगर आप कूल गर्ल वाला लुक पाना चाहती हैं तो ओवरसाइज्ड शोल्डर वाली लंबी शर्ट ऐंकल लैंथ बूट के साथ पहनें और परफैक्ट कूल लुक पाएं.

3. फैशन के नए फंडे हैं जरूरी

ब्रीजी व्हाइट ड्रैस, स्ट्रैपी सैंडल, सिल्की मिडी स्कर्ट, स्मोक्ड टौप, चैक्ड पैंट और ऐसिमैट्रिक नैकलाइंस आजकल फैशन में हैं. पंख/फर वाली ड्रैसेज फिर से चलन में आ रही हैं. लाइलैक फैशन में है और रैड व पिंक का कौंबिनेशन सब से अधिक फौलो किया जा रहा है.

4. व्हाइट टैंक टौप करें ट्राई

एक बेहतरीन फिटिंग वाला सफेद टैंक टौप चौड़ी मुहरी वाली पैंट या प्लाजो या जींस, सेलर पैंट या फिर जोधपुरी पाजामे के साथ पहनें और एक प्रिंटेड स्कार्फ के साथ इसे ऐक्सैसराइज करें, साथ में बालों को मेसी अप डू लुक दे कर आप परफैक्ट लेडी लुक पा सकती हैं.

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5. प्रोफैशनल लुक के लिए

हमें फैशन के साथ खेलते हुए स्टाइल को अपने औफिस के आउटफिट के साथ फिट करना होता है. औफिस के फैशन में एक संतुलन और सादगी वाले ग्लैमर की जरूरत होती है. हालांकि अधिकतर कौरपोरेट कंपनियों में बटन वाली ड्रैस पहनने का नियम है, मगर आप इस में भी स्टाइल और फैशन का संयोजन बखूबी ला सकती हैं.

6. फौर्मल ड्रैसिंग के साथ परफैक्ट लुक के टिप्स

प्रोफैशनल इमेज में रंग बेहद महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. न्यूट्रल कलर जैसेकि काला, मैरून, सफेद, नेवी, क्रीम, चारकोल, ग्रे आदि रंगों को प्राथमिकता दें. इन में से अधिकतर रंग पैंटसूट, स्कर्ट और शूज में अच्छे लगते हैं. इन रंगों को सौफ्ट फैमिनाइन रंगों जैसेकि आइस ब्लू, लाइलैक, सौफ्ट पिंक और आइवरी के साथ मैच करें.

7. कौंप्लिकेडेट हेयरस्टाइल और ऐक्सैसरीज के इस्तेमाल से बचें

याद रहे प्रिंट ऐक्सैसरीज की कमी को पूरा कर देते हैं. अपने लुक को अधिक प्रोफैशनल दिखाने के लिए बड़े-बड़े इयररिंग्स, चटक रंगों वाले हैंडबैग और ब्राइट ग्लासेज के इस्तेमाल से बचें. अपनी ऐक्सैसरीज में बहुत सारे रंगों के इस्तेमाल से बचें. बालों में फ्रैश ब्रैड, साइड चोटी, फ्रैंच रोल आदि ट्राई करें. स्लीक हेयरस्टाइल इन दिनों फैशन में है. इस के लिए एक साफ रैप अराउंड पोनीटेल ट्राई कर सकती हैं.

8. छोटे प्रिंट्स लगते हैं बेहतर

अगर आप अपने औफिस में अनावश्यक आकर्षण का केंद्र नहीं बनना चाहती हैं तो अपने कपड़ों के प्रिंट्स को कम से कम भड़कीला रखें. लाउड प्रिंट्स के बजाय थौटफुल प्रिंट्स बेहतर रहते हैं. फ्लोरल प्रिंट्स फैशन में हैं. आप सफेद अथवा पिस्ता कलर के बेस पर छोटे गुलाब वाले प्रिंट्स का ब्लाउज ट्राई कर सकती हैं.

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9. फैशन में करें माइंडफुल पेयरिंग

बौटमवियर और टौप के बीच संतुलन बहुत जरूरी है. फ्लौवर कैट्स अथवा हार्ट प्रिंट वाले ब्लाउज परंपरागत बौटमवियर के साथ पहनें.

Edited by Rosy

आखिर क्यों बढ़ रहे हैं लंग कैंसर के मरीज

पिछले कुछ सालों से लंग कैंसर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. पहले इसे ‘स्मोकर्स डिसीज’ कहा जाता था, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल चुकी है. अब युवा, महिलाएं और धूम्रपान न करने वाले भी तेजी से इस की चपेट में आ रहे हैं. लंग केयर फाउंडेशन द्वारा हाल ही में किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में लंग कैंसर के शिकार 21% लोग 50 से कम उम्र के हैं. इन में से कुछ की उम्र तो 30 वर्ष से भी कम है. युवा पुरुषों के साथसाथ युवा महिलाएं भी अब इस की चपेट में अधिक आ रही हैं.

ये होता है लंग कैंसर

फेफड़ों में असामान्य कोशिकाओं का अनियंत्रित विकास होने पर लंग कैंसर होता है. ये कोशिकाएं फेफड़ों के किसी भी भाग से हो सकती हैं या फिर वायुमार्ग में भी हो सकती हैं. लंग कैंसर की कोशिकाएं बहुत तेजी से विभाजित होती हैं और बड़ा ट्यूमर बना लेती हैं. इन के कारण फेफड़ों की कार्यप्रणाली प्रभावित होती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार हर साल विश्वभर में 76 लाख लोगों की मौत फेफड़ों के कैंसर के कारण होती है, जो विश्वभर में होने वाली मौतों का 13% है.

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पहले 10 पुरुषों पर 1 महिला को लंग कैंसर होता था जो अब बढ़ कर 4 हो गया है. यह चिंता का विषय है. लंग कैंसर द्वारा महिलाओं की मृत्यु में हर साल बहुत तेजी से वृद्धि हो रही है. यूटराइन कैंसर और ओवेरियन कैंसर की तुलना में ब्रैस्ट कैंसर कहीं ज्यादा है.

ये हैं लंग कैंसर के कारण

–  लंग कैंसर के 10 में से 5 मामलों में इस का सब से प्रमुख कारण तंबाकू का सेवन होता है, लेकिन अब स्थिति पूरी तरह बदल रही है, क्योंकि अब लंग कैंसर के मामले धूम्रपान न करने वालों में भी तेजी से बढ़ रहे हैं.

–  जो लोग धूम्रपान करने वालों के साथ रहते हैं. सैकंड हैंड स्मोकिंग के कारण उन में भी लंग कैंसर होने की आशंका 24% तक बढ़ जाती है.

–  सीओपीडी से पीडि़त लोगों में लंग कैंसर का खतरा 4 से 6 गुना बढ़ जाता है.

–  लंग कैंसर का एक कारण आनुवंशिक भी है.

–  वायुप्रदूषण के कारण भी लंग कैंसर के मामले बढ़ रहे हैं.

लंग कैंसर के लक्षण

–  लगातार बहुत ज्यादा खांसी रहना.

–  बलगम में खून आना.

–  सांस लेने और कुछ निगलने में परेशानी होना.

–  आवाज कर्कश हो जाना.

–  सांस लेते समय तेज आवाज आना.

–  निमोनिया होना इत्यादि.

लगातार खांसी रहना और खांसी के साथ खून आना लंग कैंसर का प्रमुख लक्षण है, जो पुरुषों व महिलाओं दोनों में होता है. बाकी लक्षण ऐसे हैं जो दूसरी बीमारियों में भी हो सकते हैं. कोई भी लक्षण दिखने पर तुरंत उपचार कराना बेहद जरूरी है.

फेफड़ों के कैंसर का ऐसे करें इलाज

कैंसर का उपचार इस पर निर्भर करता है कि कैंसर का प्रकार क्या है और यह किस चरण में है. लंग कैंसर के इलाज के कई तरीके हैं-सर्जरी, कीमोथेरैपी, टारगेट थेरैपी, रैडिएशन थेरैपी एवं इम्यूनोथेरैपी.

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फेफड़ों के कैंसर की सर्जरी

पहले और दूसरे चरण में सर्जरी कारगर रहती है, क्योंकि तब तक बीमारी फेफड़ों तक ही सीमित होती है. सर्जरी थर्ड ए स्टेज में भी की जा सकती है, लेकिन जब कैंसर फेफड़ों के अलावा छाती की झिल्ली से बाहर निकल या दूसरे अंगों तक फैल जाता है तब सर्जरी से इस का उपचार नहीं किया जा सकता. ऐसी स्थिति में कीमोथेरैपी, टारगेट थेरैपी और रैडिएशन थेरैपी की मदद ली जाती है.

कीमोथेरैपी भी है एक इलाज

कीमोथेरैपी में साइटोटौक्सिक दवा को नस में इंजैक्शन के द्वारा शरीर के अंदर पहुंचाया जाता है, जो कोशिकाओं के लिए घातक होती है. इस से अनियंत्रित रूप से बढ़ती कोशिकाएं तो नष्ट होती ही हैं, साथ ही यह कई स्वस्थ कोशिकाओं को भी प्रभावित करती है.

टारगेट थेरैपी: कीमोथेरैपी के दुष्प्रभावों को देखते हुए टारगेट थेरैपी का विकास किया गया. इस में सामान्य कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाए बिना कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को नष्ट किया जाता है. इस के साइड इफैक्ट्स भी कम होते हैं.

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क्लीनअप के लिए की जाती है रैडिएशन थेरैपी

रैडिएशन थेरैपी में कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को मारने के लिए अत्यधिक शक्ति वाली ऊर्जा की किरणों का उपयोग किया जाता है. इन का उपयोग कई कारणों से किया जाता है. कई बार इन्हें सर्जरी के बाद बची हुई कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को क्लीनअप करने के लिए किया जाता है तो कई बार सर्जरी के पहले कीमोथेरैपी के साथ किया जाता है ताकि सर्जरी के द्वारा निकाले जाने वाले ट्यूमर के आकार को छोटा किया जा सके. उसे सर्जरी के द्वारा निकाला जा सके.

कैंसर रोकने के लिए इम्यूनोथेरैपी

बायोलौजिकल उपचार के तहत कैंसरग्रस्त कोशिकाओं को मारने के लिए इम्यून तंत्र को स्टिम्युलेट किया जाता है. पिछले 2-3 सालों से ही इस का इस्तेमाल लंग कैंसर के उपचार के लिए किया जा रहा है. कई रोगियों में इसे मूल इलाज के रूप में इस्तेमाल किया जाता है.

फेफड़ों के कैंसर में इन चीजों का भी रखें ध्यान

–  धूम्रपान और तंबाकू का सेवन न करें.

–  प्रदूषित हवा में सांस लेने से बचें.

–  विषैले पदार्थों के संपर्क से बचें. कोयला व मार्बल की खदानों से दूर रहें.

–  अगर मातापिता या परिवार के अन्य सदस्य को लंग कैंसर है तो विस्तृत जांच कराएं.

–  घर में वायु साफ करने वाले पौधे जैसे कि एरिका पौम, ऐलोवेरा, स्नैक प्लांट इत्यादि लगाएं.

–  शारीरिक रूप से सक्रिय रहें. नियमित एक्सरसाइज करें.

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Edited by Rosy

मौनसून में छाता खरीदते समय रखें इन 6 बातों का ध्यान

मौनसून की शुरूआत होते ही हमें गरमी से राहत मिल जाती है, लेकिन घर से जुड़ी कईं चीजों की जरूरत हमें होने लगती है. बारिश में हमारे लिए सबसे जरूरी होता है छाता.  भीगने से बचने के लिए छाता खरीदना जरूरी होती है. कई लोग छाता सिर्फ उसका कलर और वो सही काम कर रहा है कि नहीं ये देखकर खरीद लेते हैं, लेकिन कई ऐसी चीजें हैं जो छाता खरीदते समय ध्यान रखना जरूरी है.

1. टू इन वन खरीदे छाता

छाता खरीदने से पहले भी उसकी खूबियों को देख लेना चाहिए. छाता खरीदते समय यह भी ध्यान रखना चाहिए कि छाता ऐसा हो जो बारिश और गरमियों दोनों मौसम में हमारे काम आ सके.

2. छतरी की गोलाई का भी रखें ध्यान

छतरी की गोलाई अच्छी होनी चाहिए. अगर हमें एक छाते के नीचे दो लोगों को जाना पड़े तो वह भीगने से बच जायें या कभी आपके पास कोई बैग हो तो वह भी बारिश से बच जाये.

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3. छाते का हैंडल भी देखना न भूलें

छाते की गोलाई के साथ-साथ उसका हैंडल भी चेक कर लें क्योंकि सबसे ज्यादा हमें उसे ही पकड़ना पड़ता है. इसलिए छाते का हैंडल आरामदायक होना चाहिए ताकि बहुत देर तक हैंडल पकड़ने पर भी हाथों में दर्द न हो.

4. छाते की लंबाई का भी रखें ध्यान

ध्यान रहे आपके छाते की लंबाई कम से कम 10 या 11 इंच हो तो होनी ही चाहिए और दाम देखकर कभी भी छाता नहीं खरीदें, छाते की क्वालिटी का विशेष ध्यान दें.

5. छाते का शाफ्ट भी हो मजबूत

छाते का शाफ्ट मजबूत होना चाहिए. छाता खरीदते समय उसके कपड़े पर विशेष ध्‍यान दें क्योंकि तेज बरसात के दौरान वहीं आपको भीगने से बचाता है अक्‍सर तेज बारिश में कुछ छाते टपकने लगते हैं या पानी को बौछारों को रोक नहीं पाते हैं तो इसका ध्‍यान रखें.

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6. बच्चों के लिए अलग खरीदें छतरी

छोटे बच्चों के लिए बाजार में कई तरह की छाते मिलते हैं छाते की शक्ल की हैट और टोपियां मिलती है जो कि और हैंड-फ्री होने के साथ-साथ बारिश से भी बचाने का काम करती हैं तो बच्चों के लिए हो सके तो वही छाते खरीदें.

मौनसून में छाता खरीदते समय जितना आप ख्याल रख रहें हैं, ध्यान रखें मौनसून में भी छाते की केयर करना न भूलें.

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