Hindi Drama Story: विश्वास- शिखा ने क्यों किया मां और अंकल के रिश्तों पर शक

Hindi Drama Story: फोन पर ‘हैलो’ सुनते ही अंजलि ने अपने पति राजेश की आवाज पहचान ली.

राजेश ने अपनी बेटी शिखा का हालचाल जानने के बाद तनाव भरे स्वर में पूछा, ‘‘तुम यहां कब लौट रही हो?’’

‘‘मेरा जवाब आप को मालूम है,’’ अंजलि की आवाज में दुख, शिकायत और गुस्से के मिलेजुले भाव उभरे.

‘‘तुम अपनी मूर्खता छोड़ दो.’’

‘‘आप ही मेरी भावनाओं को समझ कर सही कदम क्यों नहीं उठा लेते हो?’’

‘‘तुम्हारे दिमाग में घुसे बेबुनियाद शक का इलाज कर ने को मैं गलत कदम नहीं उठाऊंगा…अपने बिजनेस को चौपट नहीं करूंगा, अंजलि.’’

‘‘मेरा शक बेबुनियाद नहीं है. मैं जो कहती हूं, उसे सारी दुनिया सच मानती है.’’

‘‘तो तुम नहीं लौट रही हो?’’ राजेश चिढ़ कर बोला.

‘‘नहीं, जब तक…’’

‘‘तब मेरी चेतावनी भी ध्यान से सुनो, अंजलि,’’ उसे बीच में टोकते हुए राजेश की आवाज में धमकी के भाव उभरे, ‘‘मैं ज्यादा देर तक तुम्हारा इंतजार नहीं करूंगा. अगर तुम फौरन नहीं लौटीं तो…तो मैं कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दे दूंगा. आखिर, इनसान की सहने की भी एक सीमा…’’

अंजलि ने फोन रख कर संबंधविच्छेद कर दिया. राजेश ने पहली बार तलाक लेने की धमकी दी थी. उस की आंखों में अपनी बेबसी को महसूस करते हुए आंसू आ गए. वह चाहती भी तो आगे राजेश से वार्तालाप न कर पाती क्योंकि उस के रुंधे गले से आवाज नहीं निकलती.

शिखा अपनी एक सहेली के घर गई हुई थी. अंजलि के मातापिता अपने कमरे में आराम कर रहे थे. अपनी चिंता, दुख और शिकायत भरी नाराजगी से प्रभावित हो कर वह बिना किसी रुकावट के कुछ देर खूब रोई.

रोने से उस का मन उदास और बोझिल हो गया. एक थकी सी गहरी आस छोड़ते हुए वह उठी और फोन के पास पहुंच कर अपनी सहेली वंदना का नंबर मिलाया.

राजेश से मिली तलाक की धमकी के बारे में जान कर वंदना ने उसे आश्वासन दिया, ‘‘तू रोनाधोना बंद कर, अंजलि. मेरे साहब घर पर ही हैं. हम दोनों घंटे भर के अंदर तुझ से मिलने आते हैं. आगे क्या करना है, इस की चर्चा आमने- सामने बैठ कर करेंगे. फिक्र मत कर, सब ठीक हो जाएगा.’’

वंदना उस के बचपन की सब से अच्छी सहेली थी. उस का व उस के पति कमल का अंजलि को बहुत सहारा था. उन दोनों के साथ अपने सुखदुख बांट कर ही पति से दूर वह मायके में रह रही थी. अपना मानसिक संतुलन बनाए रखने के लिए अंजलि जो बात अपने मातापिता से नहीं कह पाती, वह इन दोनों से बेहिचक कह देती.

राजेश से फोन पर हुई बातचीत का ब्योरा अंजलि से सुन कर वंदना चिंतित हो उठी तो उस के पति कमल की आंखों में गुस्से के भाव उभरे.

‘‘अंजलि, कोई चोर कोतवाल को उलटा नहीं धमका सकता है. राजेश को तलाक की धमकी देने का कोई अधिकार नहीं है. अगर वह ऐसा करता है तो समाज उसी के नाम पर थूथू करेगा,’’ कमल ने आवेश भरे लहजे में अपनी राय बताई.

‘‘मेरी समझ से हमें टकराव का रास्ता छोड़ कर राजेश से बात करनी चाहिए,’’ चिंता के मारे अपनी उंगलियां मरोड़ते हुए वंदना ने अपने मन की बात कही.

‘‘राजेश से बातचीत करने को अगर अंजलि उस के पास लौट गई तो वह अपने दोस्त की विधवा के प्रेमजाल से कभी नहीं निकलेगा. उस पर संबंध तोड़ने को दबाव बनाए रखने के लिए अंजलि का यहां रहना जरूरी है.’’

‘‘अगर राजेश ने सचमुच तलाक की अर्जी कोर्ट में दे दी तो क्या करेंगे हम? तब भी तो अंजलि

को मजबूरन वापस लौटना पडे़गा न.’’

‘‘मैं नहीं लौटूंगी,’’ अंजलि ने सख्त लहजे में उन दोनों को अपना फैसला सुनाया, ‘‘मैं 2 महीने अलग रह सकती हूं तो जिंदगी भर को भी अलग रह लूंगी. मैं जब चाहूं तब अध्यापिका की नौकरी पा सकती हूं. शिखा को पालना मेरे लिए समस्या नहीं बनेगा. एक बात मेरे सामने बिलकुल साफ है. अगर राजेश ने उस विधवा सीमा से अपने व्यक्तिगत व व्यावसायिक संबंध बिलकुल समाप्त नहीं किए तो वह मुझे खो देंगे.’’

वंदना व कमल कुछ प्रतिक्रिया दर्शाते, उस से पहले ही बाहर से किसी ने घंटी बजाई. अंजलि ने दरवाजा खोला तो सामने अपनी 16 साल की बेटी शिखा को खड़ा पाया.

‘‘वंदना आंटी और कमल अंकल आए हुए हैं. तुम उन के पास कुछ देर बैठो, तब तक मैं तुम्हारे लिए खाना लगा लाती हूं,’’ भावुकता की शिकार बनी अंजलि ने प्यार से अपनी बेटी के कंधे पर हाथ रखा.

‘‘मेरा मूड नहीं है, किसी से खामखां सिर मारने का. जब भूख होगी, मैं खाना खुद ही गरम कर के खा लूंगी,’’ बड़ी रुखाई से जवाब देने के बाद साफ तौर पर चिढ़ी व नाराज सी नजर आ रही शिखा अपने कमरे में जा घुसी.

अंजलि को उस का अचानक बदला व्यवहार बिलकुल समझ में नहीं आया. उस ने परेशान अंदाज में इस की चर्चा वंदना और कमल से की.

‘‘शिखा छोटी बच्ची नहीं है,’’ वंदना की आंखों में चिंता के बादल और ज्यादा गहरा उठे, ‘‘अपने मातापिता के बीच की अनबन जरूर उस के मन की सुखशांति को प्रभावित कर रही है. उस के अच्छे भविष्य की खातिर भी हमें समस्या का समाधान जल्दी करना होगा.’’

‘‘वंदना ठीक कह रही है, अंजलि,’’ कमल ने गंभीर लहजे में कहा, ‘‘तुम शिखा से अपने दिल की बात खुल कर कहो और उस के मन की बातें सहनशीलता से सुनो. मेरी समझ से हमारे जाने के बाद आज ही तुम यह काम करना. कोई समस्या आएगी तो वंदना और मैं भी उस से बात करेंगे. उस की टेंशन दूर करना हम सब की जिम्मेदारी है.’’

उन दोनों के विदा होने तक अपनी समस्या को हल करने का कोई पक्का रास्ता अंजलि के हाथ नहीं आया था. अपनी बेटी से खुल कर बात करने के  इरादे से जब उस ने शिखा के कमरे में कदम रखा, तब वह बेचैनी और चिंता का शिकार बनी हुई थी.

‘‘क्या बात है? क्यों मूड खराब है तेरा?’’ अंजलि ने कई बार ऐसे सवालों को घुमाफिरा कर पूछा, पर शिखा गुमसुम सी बनी रही.

‘‘अगर मुझे तू कुछ बताना नहीं चाहती है तो वंदना आंटी और कमल अंकल से अपने दिल की बात कह दे,’’  अंजलि की इस सलाह का शिखा पर अप्रत्याशित असर हुआ.

‘‘भाड़ में गए कमल अंकल. जिस आदमी की शक्ल से मुझे नफरत है, उस से बात करने की सलाह आज मुझे मत दें,’’  शिखा किसी ज्वालामुखी की तरह अचानक फट पड़ी.

‘‘क्यों है तुझे कमल अंकल से नफरत? अपने मन की बात मुझ से बेहिचक हो कर कह दे गुडि़या,’’ अंजलि का मन एक अनजाने से भय और चिंता का शिकार हो गया.

‘‘पापा के पास आप नहीं लौटो, इस में उस चालाक इनसान का स्वार्थ है और आप भी मूर्ख बन कर उन के जाल में फंसती जा रही हो.’’

‘‘कैसा स्वार्थ? कैसा जाल? शिखा, मेरी समझ में तेरी बात रत्ती भर नहीं आई.’’

‘‘मेरी बात तब आप की समझ में आएगी, जब खूब बदनामी हो चुकी होगी. मैं पूछती हूं कि आप क्यों बुला लेती हो उन्हें रोजरोज? क्यों जाती हो उन के घर जब वंदना आंटी घर पर नहीं होतीं? पापा बारबार बुला रहे हैं तो क्यों नहीं लौट चलती हो वापस घर.’’

शिखा के आरोपों को समझने में अंजलि को कुछ पल लगे और तब उस ने गहरे सदमे के शिकार व्यक्ति की तरह कांपते स्वर में पूछा, ‘‘शिखा, क्या तुम ने कमल अंकल और मेरे बीच गलत तरह के संबंध होने की बात अपने मुंह से निकाली है?’’

‘‘हां, निकाली है. अगर दाल में कुछ काला न होता तो वह आप को सदा पापा के खिलाफ क्यों भड़काते? क्यों जाती हो आप उन के घर, जब वंदना आंटी घर पर नहीं होतीं?’’

अंजलि ने शिखा के गाल पर थप्पड़ मारने के लिए उठे अपने हाथ को बड़ी कठिनाई से रोका और गहरीगहरी सांसें ले कर अपने क्रोध को कम करने के प्रयास में लग गई. दूसरी तरफ तनी हुई शिखा आंखें फाड़ कर चुनौती भरे अंदाज में उसे घूरती रहीं.

कुछ सहज हो कर अंजलि ने उस से पूछा, ‘‘वंदना के घर मेरे जाने की खबर तुम्हें उन के घर के सामने रहने वाली रितु से मिलती है न?’’

‘‘हां, रितु मुझ से झूठ नहीं बोलती है,’’ शिखा ने एकएक शब्द पर जरूरत से ज्यादा जोर दिया.

‘‘यह अंदाजा उस ने या तुम ने किस आधार पर लगाया कि मैं वंदना की गैर- मौजूदगी में कमल से मिलने जाती हूं?’’

‘‘आप कल सुबह उन के घर गई थीं और परसों ही वंदना आंटी ने मेरे सामने कहा था कि वह अपनी बड़ी बहन को डाक्टर के यहां दिखाने जाएंगी, फिर आप उन के घर क्यों गईं?’’

‘‘ऐसा हुआ जरूर है, पर मुझे याद नहीं रहा था,’’ कुछ पल सोचने के बाद अंजलि ने गंभीर स्वर में जवाब दिया.

‘‘मुझे लगता है कि वह गंदा आदमी आप को फोन कर के अपने पास ऐसे मौकों पर बुलाता है और आप चली जाती हो.’’

‘‘शिखा, तुम्हें अपनी मम्मी के चरित्र पर यों कीचड़ उछालते हुए शर्म नहीं आ रही है,’’ अंजलि का अपमान के कारण चेहरा लाल हो उठा, ‘‘वंदना मेरी बहुत भरोसे की सहेली है. उस के साथ मैं कैसे विश्वासघात करूंगी? मेरे दिल में सिर्फ तुम्हारे पापा बसते हैं, और कोई नहीं.’’

‘‘तब आप उन के पास लौट क्यों नहीं चलती हो? क्यों कमल अंकल के भड़काने में आ रही हो?’’ शिखा ने चुभते लहजे में पूछा.

‘‘बेटी, तेरे पापा के और मेरे बीच में एक औरत के कारण गहरी अनबन चल रही है, उस समस्या के हल होते ही मैं उन के पास लौट जाऊंगी,’’ शिखा को यों स्पष्टीकरण देते हुए अंजलि ने खुद को शर्म के मारे जमीन मेें गड़ता महसूस किया.

‘‘मुझे यह सब बेकार के बहाने लगते हैं. आप कमल अंकल के कारण पापा के पास लौटना नहीं चाहती हो,’’ शिखा अपनी बात पर अड़ी रही.

‘‘तुम जबरदस्त गलतफहमी का शिकार हो, शिखा. वंदना और कमल मेरे शुभचिंतक हैं. उन दोनों का बहुत सहारा है मुझे. दोस्ती के पवित्र संबंध की सीमाएं तोड़ कर कुछ गलत न मैं कर रही हूं न कमल अंकल. मेरे कहे पर विश्वास कर बेटी,’’ अंजलि बहुत भावुक हो उठी.

‘‘मेरे मन की सुखशांति की खातिर आप अंकल से और जरूरी हो तो वंदना आंटी से भी अपने संबंध पूरी तरह तोड़ लो, मम्मी. मुझे डर है कि ऐसा न करने पर आप पापा से सदा के लिए दूर हो जाओगी,’’ शिखा ने आंखों में आंसू ला कर विनती की.

‘‘तुम्हारे नासमझी भरे व्यवहार से मैं बहुत निराश हूं,’’ ऐसा कह कर अंजलि उठ कर अपने कमरे में चली आई.

इस घटना के बाद मांबेटी के संबंधों में बहुत खिंचाव आ गया. आपस में बातचीत बस, बेहद जरूरी बातों को ले कर होती. अपने दिल पर लगे घावों को दोनों नाराजगी भरी खामोशी के साथ एकदूसरे को दिखा रही थीं.

शिखा की चुप्पी व नाराजगी वंदना और कमल ने भी नोट की. अंजलि उन के किसी सवाल का जवाब नहीं दे सकी. वह कैसे कहती कि शिखा ने कमल और उस के बीच नाजायज संबंध होने का शक अपने मन में बिठा रखा था.

करीब 4 दिन बाद रात को शिखा ने मां के कमरे में आ कर अपने मन की बातें कहीं.

‘‘आप अंदाजा भी नहीं लगा सकतीं कि मेरी सहेली रितु ने अन्य सहेलियों को सब बातें बता कर मेरे लिए इज्जत से सिर उठा कर चलना ही मुश्किल कर दिया है. अपनी ये सब परेशानियां मैं आप के नहीं, तो किस के सामने रखूं?’’

‘‘मुझे तुम्हारी सहेलियों से नहीं सिर्फ तुम से मतलब है, शिखा,’’ अंजलि ने शुष्क स्वर में जवाब दिया, ‘‘तुम ने मुझे चरित्रहीन क्यों मान लिया? मुझ से ज्यादा तुम्हें अपनी सहेली पर विश्वास क्यों है?’’

‘‘मम्मी, बात विश्वास करने या न करने की नहीं है. हमें समाज में मानसम्मान से रहना है तो लोगों को ऊटपटांग बातें करने का मसाला नहीं दिया जा सकता.’’

‘‘तब क्या दूसरों को खुश करने के लिए तुम अपनी मां को चरित्रहीन करार दे दोगी? उन की झूठी बातों पर विश्वास कर के अपनी मां को उस की सब से प्यारी सहेली से दूर करने की जिद पकड़ोगी?’’

‘‘मुझ पर क्या गुजर रही है, इस की आप को भी कहां चिंता है, मम्मी,’’ शिखा चिढ़ कर गुस्सा हो उठी, ‘‘मैं आप की सहेली नहीं बल्कि सहेली के चालाक पति से आप को दूर देखना चाहती हूं. अपनी बेटी की सुखशांति से ज्यादा क्या कमल अंकल के साथ जुडे़ रहना आप के लिए जरूरी है?’’

‘‘कमल अंकल मेरे लिए तुम से ज्यादा महत्त्वपूर्ण कैसे हो सकते हैं, शिखा? मुझे तो अफसोस और दुख इस बात का है कि मेरी बेटी को मुझ पर विश्वास नहीं रहा. मैं पूछती हूं कि तुम ही मुझ पर विश्वास क्यों नहीं कर रही हो?  अपनी सहेलियों की बकवास पर ध्यान न दे कर मेरा साथ क्यों नहीं दे रही हो? मेरे मन में खोट नहीं है, इस बात को मेरे कई बार दोहराने के बावजूद तुम ने उस पर विश्वास न कर के मेरे दिल को जितनी पीड़ा पहुंचाई है, क्या उस का तुम्हें अंदाजा है?’’ बोलते हुए अंजलि का चेहरा गुस्से से लाल हो गया.

‘‘यों चीखचिल्ला कर आप मुझे चुप नहीं कर सकोगी,’’ गुस्से से भरी शिखा उठ कर खड़ी हो गई, ‘‘चित भी मेरी और पट भी मेरी का चालाकी भरा खेल मेरे साथ न खेलो.’’

‘‘क्या मतलब?’’ अंजलि फौरन उलझन का शिकार बन गई.

‘‘मतलब यह कि पापा ने अपनी बिजनेस पार्टनर सीमा आंटी को ले कर आप को सफाई दे दी तब तो आप ने उन की एक नहीं सुनी और यहां भाग आईं, और जब मैं आप से कमल अंकल के साथ संबंध तोड़ लेने की मांग कर रही हूं तो किस आधार पर आप मुझे गलत और खुद को सही ठहरा रही हो?’’

अंजलि को बेटी का सवाल सुन कर तेज झटका लगा. उस ने अपना सिर झुका लिया. शिखा आगे एक भी शब्द न बोल कर अपने कमरे में लौट गई. दोनों मांबेटी ने तबीयत खराब होने का बहाना बना कर रात का खाना नहीं खाया. शिखा के नानानानी को उन दोनों के उखडे़ मूड का कारण जरा भी समझ में नहीं आया.

उस रात अंजलि बहुत देर तक नहीं सो सकी. अपने पति के साथ चल रहे मनमुटाव से जुड़ी बहुत सी यादें उस के दिलोदिमाग में हलचल मचा रही थीं. शिखा द्वारा लगाए गए आरोप ने उसे बुरी तरह झकझोर दिया था.

राजेश ने कभी स्वीकार नहीं किया था कि अपने दोस्त की विधवा के साथ उस के अनैतिक संबंध थे. दूसरी तरफ आफिस में काम करने वाली 2 लड़कियों और राजेश के दोस्तों की पत्नियों ने इस संबंध को समाप्त करवा देने की चेतावनी कई बार उस के कानों में डाली थी.

तब खूबसूरत सीमा को अपने पति के साथ खूब खुल कर हंसतेबोलते देख अंजलि जबरदस्त ईर्ष्या व असुरक्षा की भावना का शिकर रहने लगी.

राजेश ने उसे प्यार से व डांट कर भी खूब समझाया पर अंजलि ने साफ कह दिया, ‘मेरे मन की सुखशांति, मेरे प्यार व खुशियों की खातिर आप को सीमा से हर तरह का संबंध समाप्त कर लेना होगा.’

‘मैं ऐसा कुछ नहीं करूंगा जिस से अपनी नजरों में गिर जाऊं. मैं कुसूरवार हूं ही नहीं, तो सजा क्यों भोगूं? अपने दिवंगत दोस्त की पत्नी को मैं बेसहारा नहीं छोड़ सकता हूं. तुम्हारे बेबुनियाद शक के कारण मैं अपनी नजरों में खुद को गिराने वाला कोई कदम नहीं उठाऊंगा,’ राजेश के इस फैसले को अंजलि किसी भी तरह से नहीं बदलवा सकी.

पहले अपने पति और अब अपनी बेटी के साथ हुए टकरावों में अंजलि को बड़ी समानता नजर आई. उस ने सीमा को ले कर राजेश पर चरित्रहीन होने का आरोप लगाया था और शिखा ने कमल को ले कर खुद उस पर.

वह अपने को सही मानती थी, जैसे अब शिखा अपने को सही मान रही थी. वहां राजेश अपराधी के कटघरे में खड़ा हो कर सफाई देता था और आज वह अपनी बेटी को सफाई देने के लिए मजबूर थी.

अपने दिल की बात वह अच्छी तरह जानती थी. उस के मन में कमल को ले कर रत्ती भर भी गलत तरह का आकर्षण नहीं था. इस मामले में शिखा पूरी तरह गलत थी.

तब सीमा व राजेश के मामले में क्या वह खुद गलत नहीं हो सकती थी? इस सवाल से जूझते हुए अंजलि ने सारी रात करवटें बदलते हुए गुजार दी.

अगली सुबह शिखा के जागते ही अंजलि ने अपना फैसला उसे सुना दिया, ‘‘अपना सामान बैग में रख लो. नाश्ता करने के बाद हम अपने घर लौट रहे हैं.’’

‘‘ओह, मम्मी. यू आर ग्रेट. मैं बहुत खुश हूं,’’ शिखा भावुक हो कर उस से लिपट गई.

अंजलि ने उस के माथे का चुंबन लिया, पर मुंह से कुछ नहीं बोली. तब शिखा ने धीमे स्वर में उस से कहा, ‘‘गुस्से में आ कर मैं ने जो भी पिछले दिनों आप से उलटासीधा कहा है, उस के लिए मैं बेहद शर्मिंदा हूं. आप का फैसला बता रहा है कि मैं गलत थी. प्लीज मम्मा, मुझे माफ कर दीजिए.’’

अंजलि ने उसे अपने सीने से लगा लिया. मांबेटी दोनों की आंखों में आंसू भर आए. पिछले कई दिनों से बनी मानसिक पीड़ा व तनाव से दोनों पल भर में मुक्त हो गई थीं.

उस के बुलावे पर वंदना उस से मिलने घर आ गई. कमल के आफिस चले जाने के कारण अंजलि के लौटने की खबर कमल तक नहीं पहुंची.

वंदना को अंजलि ने अकेले में अपने वापस लौटने का सही कारण बताया, ‘‘पिछले दिनों अपनी बेटी शिखा के कारण राजेश और सीमा को ले कर मुझे अपनी एक गलती…एक तरह की नासमझी का एहसास हुआ है. उसी भूल को सुधारने को मैं राजेश के पास बेशर्त वापस लौट रही हूं.

‘‘सीमा के साथ उस के अनैतिक संबंध नहीं हैं, मुझे राजेश के इस कथन पर विश्वास करना चाहिए था, पर मैं और लोगों की सुनती रही और हमारे बीच प्रेम व विश्वास का संबंध कमजोर पड़ने लगा.

‘‘अगर राजेश निर्दोष हैं तो मेरा झगड़ालू रवैया उन्हें कितना गलत और दुखदायी लगता होगा. बिना कुछ अपनी आंखों से देखे, पत्नी का पति पर विश्वास न करना क्या एक तरह का विश्वासघात नहीं है?

‘‘मैं राजेश को…उन के पे्रम को खोना नहीं चाहती हूं. हो सकता है कि सीमा और उन के बीच गलत तरह के संबंध बन गए हों, पर इस कारण वह खुद भी मुझे छोड़ना नहीं चाहते. उन के दिल में सिर्फ मैं रहूं, क्या अपने इस लक्ष्य को मैं उन से लड़झगड़ कर कभी पा सकूंगी?

‘‘वापस लौट कर मुझे उन का विश्वास फिर से जीतना है. हमारे बीच प्रेम का मजबूत बंधन फिर से कायम हो कर हम दोनों के दिलों के घावों को भर देगा, इस का मुझे पूरा विश्वास है.’’

अंजलि की आंखों में दृढ़निश्चय के भावों को पढ़ कर वंदना ने उसे बडे़ प्यार से गले लगा लिया.

Hindi Drama Story

Short Hindi Story: सासें भांति भांति की

Short Hindi Story: विविधता से परिपूर्ण हमारे देश में भांतिभांति के अजूबे पाए जाते हैं. हमारी हर बात निराली होती है. लेकिन हमारे देश की संस्कृति में एक अजूबा चरित्र ऐसा भी है, जो भारत की विविधताओं में एकता का गुरुतर भार अपने कंधों पर सदियों से ढोता आ रहा है.

कश्मीर से कन्याकुमारी और अटक से कटक तक संपूर्ण भारतवर्ष में यह जीव सर्वत्र नजर आता है. इस अद्भुत चरित्र का नाम है सास. प्रादेशिक भाषाओं में इसे सासू, सास, सासूमां अथवा अन्य किसी संबोधन से पुकारा जाता है, लेकिन इस का मुख्य अर्थ है पति की माताश्री, जिन्हें आदर के साथ सास कहा जाता है. वैसे पत्नी की माताश्री भी जंवाई राजा की सास कहलाती है, लेकिन वह सास का गौणरूप है.

सास का मुख्य और अहम स्वरूप पति की माता के रूप में अधिक वर्णनीय है. यह चरित्र सरल भी है, खासा जटिल भी. जलेबी की तरह सीधा भी है तो करेले की तरह मीठा भी, यह नमक की तरह खारा भी है तो स्वाद का राजा भी.

यदि दुनिया की गूढ़ पहेलियों की बात की जाए तो सास की पहेली सब से ज्यादा जटिल नजर आती है. बीजगणित के जटिल समीकरण आसानी से हल हो सकते हैं, लेकिन सासबहू के समीकरण को समझना और हल करना हम जैसे तुच्छ प्राणी के वश की बात नजर नहीं आती है. हमें उम्मीद नहीं लगती कि कभी कोई विद्वान 36 के ऐसे आंकड़े के रहस्य से परदा उठा पाएगा. सासबहू के विवाद का हर गृहस्थी को सामना करना पड़ता है.

सास शब्द की उत्पत्ति पर विचार करना भी कठिन है. यदि व्याकरण के नियमों और सिद्धांतों को ताक पर रख कर हम थोड़े व्यावहारिक दृष्टिकोण से चिंतन करें तो प्रतीत होता है जैसे सृष्टि को नियंत्रित करने के लिए ही इस जीव विशेष की रचना हुई होगी. सास शब्द निश्चय ही श्वास से जुड़ा होगा. हमारे अनुसार सास की सरल परिभाषा अथवा भावार्थ यह हो सकता है कि सास वह होती है, जो सांसों को नियंत्रित करने का जिम्मा उठाती है. सासबहू के संबंध गृहस्थी की नींव होते हैं, इसलिए एक गृहस्थ की सांसें इस नींव पर ही टिकी रहती हैं. सासें विभिन्न प्रकार की हो सकती हैं. इन के गुणधर्म और आचारव्यवहार के आधार पर हम ने इन्हें विभिन्न श्रेणियों में विभाजित कर के समझने का प्रयास किया है.

उपयोगिता की दृष्टि से सकारात्मक सोच वाली सासें अपनी बहू के लिए एक आदर्श और मजबूत संबल होती हैं, तो नकारात्मक भूमिका वाली सासें गृहस्थी का बंटाढार करने के लिए जगतप्रसिद्ध हैं. सासें चाहें तो घर की बागडोर को अच्छी तरह हैंडल कर सकती हैं तथा नईनवेली बहुओं के लिए आदर्श प्रशिक्षिका भी साबित हो सकती हैं, जिस में सारे परिवार का उद्धार निहित है.

पहली श्रेणी उन सासों की है, जो अकसर बड़बड़ करती रहती हैं. इस श्रेणी की सासों को ‘बकबक सासें’ कहा जा सकता है. उन का पहला और आखिरी काम होता है बहुओं के क्रियाकलापों पर टीकाटिप्पणी करना. ऐसी सासें जब चाहें तब तिल का पहाड़ बना कर विस्फोट करा सकती हैं. उन का खून गरम होता है, अत: तापमान को ज्वलनशीलता की ओर अग्रसर करना उन के बाएं हाथ का खेल होता है. बहुओं की छोटी से छोटी बात पर भी पैनी नजर रखना उन की सामान्य आदत होती है. मीनमेख निकालने की कला में वे दक्ष होती हैं. संभवत: इसी क्रिया द्वारा उन का भोजन पचता है. साधारणतया इस श्रेणी की सासों के वार्तालाप का मुख्य विषय भी बहू पर ही केंद्रित होता है. ऐसी सासें अपनी बहुओं के दोषों का बखान करते कभी नहीं थकतीं. उन की अपनी बहुओं से हमेशा तनातनी चलती रहती है. ऐसी सासें सब से ज्यादा संख्या में पाई जाती हैं.

दूसरे प्रकार की सासों को ‘सौम्य सासें’ कहा जा सकता है. वे गऊछाप सासें होती हैं, इसलिए उन की प्रकृति बहुओं पर दोष मढ़ने की नहीं होती, बल्कि उन्हें प्यार से समझा कर उन की गलतियों को सुधारने की होती है. लेकिन ऐसी सासों का अकसर अकाल ही रहता है. ऐसी सासों  का पाला अगर ‘हू हू’ किस्म की यानी डरावनी बहू से पड़ जाए तो वे दहेज के झूठे इलजाम में हवालात की गौशाला में भी बंधी नजर आ सकती हैं.

तीसरी श्रेणी की सासें ‘पहलवान टाइप’ होती हैं. वे अपने बाहुबल के प्रदर्शन का अवसर कभी नहीं चूकती हैं. मौका मिलते ही थप्पड़ जड़ना उन का शगल होता है. लेकिन वरीयता क्रम में पिछड़ी इन सासों की लोकप्रियता आधुनिक युग में बड़ी तेजी के साथ घटती जा रही है. वर्तमान कानून और प्रतिबंध उन की वंशवृद्धि में बड़ी रुकावट पैदा कर रहे हैं. ऐसी सासों को शास्त्रीय अथवा क्लासिकल सासें कहना भी उचित होगा.

एक जमाना था जब ऐसी सासों ने बौलीवुड की फिल्मों में धाक जमाई हुई थी. ललिता पवार को ऐसी सास के अभिनय ने लोकप्रियता की बुलंदियों पर पहुंचा दिया था. ऐसी सासों से बहूबेटे ही नहीं बल्कि पूरा महल्ला डरा करता था. लेकिन अब ऐसे रोबदाब वाली सासों के दिन लद गए हैं. उन का स्वर्ण युग इतिहास के पन्नों तक सिमट कर रह गया है. अलबत्ता दहेज कानूनों ने इस ब्रैंड की बहुओं की फौज जरूर खड़ी कर दी है.

चौथी श्रेणी में ‘चुगलबाज सासों’ को रखा जा सकता है. उन का प्रिय शौक चुगलबाजी करना होता है. अत: अपने घरपरिवार की बातें मीडिया की तरह जनसाधारण तक पहुंचाने में उन्हें बड़ा आनंद मिलता है. उन की रिपोर्टिंग के आगे इलैक्ट्रौनिक अथवा प्रिंट मीडिया भी फेल साबित होता है. आज बहू कब सो कर उठी अथवा सब्जी में नमक ज्यादा था या कम जैसी महत्त्वपूर्ण खबरें हजारों मील दूर बैठे रिश्तेदारों को सहज ही पता चल जाती हैं.

5वीं श्रेणी ‘फरमाइशी सासों’ की है. कारण, उन की फरमाइशें कभी पूरी नहीं होती हैं. बहुओं से उन की फरमाइशें हमेशा चलती रहती हैं. ऐसी सासें दहेज से कभी संतुष्ट नहीं दिखतीं. उन्हें पूंजीवादी सासें भी कहा जा सकता है, क्योंकि उन की सारी चिंता पूंजी पर केंद्रित रहती है.

छठे वर्ग की सासों को ‘समाजवादी सासें’ कहना उचित होगा. उन्हें हमेशा समाज की चिंता सताती रहती है. उन्हें हमेशा डर रहता है कि पता नहीं बहू कब उन की प्रतिष्ठा की नाक समाज में कटवा डाले, किसी ने देख लिया तो लोग क्या कहेंगे जैसे जुमले उन के मुंह पर हमेशा चढ़े रहते हैं. ऐसी सासें हमेशा अपनी बहुओं के कृत्यों और उन के समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का मूल्यांकनविश्लेषण करती प्रतीत होती हैं.

7वीं श्रेणी में ‘शिकायतप्रधान सासें’ आती हैं. वे मुंह पर थप्पड़ की तरह अपनी शिकायतें दागती रहती हैं. ऐसी सासों को झेलने के लिए जरूरी है कि बहुएं अपने कानों में हमेशा रुई ठूंस कर रखें अथवा सास की बात को एक कान से सुनें और दूसरे से निकाल दें.

8वीं श्रेणी ‘भक्तिप्रधान सासों’ की है. उन का ज्यादातर समय बहू पुराण पर बतियाते हुए पूजापाठ करने, माला जपने या भजनकीर्तन करने में व्यतीत होता है. उन के शरीर में कभीकभी सास की ओरिजनल फौर्म भी अवतरित होती रहती है. बहू के कारनामों के टर्निंग पौइंट से वे भी मुक्त नहीं होतीं. माला घुमाते वे बहू को हुक्म देने के विस्फोटक बीज मंत्रों का उच्चारण भी करती रहती हैं.

लेकिन यह तथ्य भी बेहद महत्त्वपूर्ण है कि वर्तमान समय में आधुनिकता के दौर में सासों की दशा बेहद खराब है. हम दो हमारे दो के फैशन में एकल परिवारों में सासससुर अवांछित सदस्य समझे जाने लगे हैं.

अतीत के आक्रामक रूप से पिछड़ कर अब सास सुरक्षात्मक भूमिका तक सीमित हो गई है. अब वह जमाना भी कहां रहा जब सास की झिड़कियों को प्रसाद समझ कर बहुएं उन पर अमल करती थीं. सासों को सर्वत्र आदरसम्मान प्राप्त था. वर्तमान तो ‘जैसे को तैसा’ का युग है, इसलिए बदले जमाने में तो सासों का शास्त्रीय रूप दुर्लभ होता जा रहा है.

यह भी सत्य है कि सासबहू की खटपट कभी खत्म नहीं होती, उन का कोल्ड वार जारी रहता है. बहू हो या जंवाई राजा, उन्हें अपनीअपनी सासूमां की अंतहीन शिकायतें सुननी ही पड़ती हैं. शीत युद्ध लड़ना उन की विवशता होती है, वे चाहे मीठीं हों या कड़वी. समाज का तानाबाना ही ऐसा बुना गया है कि आमतौर पर उन्हें नाराज करने का रिस्क कोई नहीं लेता.

फिलहाल सासों की शोचनीय हालत से लगता है कि उन्हें सरकारी संरक्षण की जरूरत पड़ने वाली है. ‘सेव टाइगर’ की तरह ‘सेव मदर इन ला’ की योजना सरकार को लांच करनी पड़ेगी, क्योंकि यदि यही हाल रहा तो सास धीरेधीरे अपना मूल स्वरूप खो कर अतीत की धरोहर मात्र रह जाएगी.

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Best Hindi Story: मुखौटा- समर का सच सामने आने के बाद क्या था संचिता का फैसला

Best Hindi Story: भारतीय लड़कियों की किसी अमेरिकन या अंगरेज लड़के से शादी करने के बाद क्या हालत होती है इस का वर्णन करना आसान नहीं है. वे धोखा केवल इसलिए खाती हैं क्योंकि उन के परिवार वाले शादी से पहले लड़के की ठीक से तहकीकात नहीं करते.

निर्मला पुणे की रहने वाली हैं. उन की माता और महिला मंडल में आने वाली वत्सलाजी से अच्छी जानपहचान थी. एक दिन बातोंबातों में संचिता की शादी का जिक्र किया तब वत्सलाजी ने उन्हें अपने अमेरिका में रहने वाले भतीजे समर के बारे में बताया जो शादी के लायक हो गया था.

फिर दोनों अपनेअपने घर में इस बारे में बात करती हैं. संचिता अमेरिका में रहने वाले लड़के से शादी के लिए तैयार हो जाती है. वत्सलाजी भी समर को फोन कर के उस की राय मांगती है. तब वह भी शादी के लिए राजी हो जाता है. दोनों वीडियो चैट करते हैं तो सब ठीकठाक लगता है.

समर 2 महीनों के लिए भारत आ गया और झट मंगनी पट ब्याह हो गया. समर की कोई भी तहकीकात किए बिना सिर्फ वत्सलाजी के भरोसे संचिता के मातापिता उस का ब्याह समर से कर दिया. वैसे वत्सलाजी पर भरोसा करने के पीछे एक वजह और थी और वह यह कि समर को वत्सलाजी ने ही पालपोस कर बड़ा किया था. समर  जब छोटा था तब उस के मातापिता की एक दुर्घटना में मौत हो गई थी.

समर की जिम्मेदारी उठाने के लिए कोई तैयार नहीं था. पर जब समर के अमीर मातापिता की प्रौपर्टी में से समर का पालनपोषण करने

वाले व्यक्ति क ो हर महीने 25 हजार रुपए देने की बात सामने आई, जोकि उन की प्रौपर्टी के पैसों के ब्याज में दिए जाने थे, वत्सलाजी उसे संभालने के लिए आगे आ गईं. वत्सलाजी विधवा थीं, उन्हें बच्चे भी नहीं थे और उन्हें मिलने वाली पैंशन से वे सिर्फ अपना ही गुजारा कर सकती थीं, इसलिए वे पहले समर को पालने के लिए मना पर 25 हजार रुपए महीने मिलने की बात सुन कर वे समर को पालने के लिए राजी हो गई.

वत्सलाजी ने समर के पालनपोषण में कोई कमी नहीं छोड़ी. उसे अच्छे स्कूल में पढ़ायालिखाया. उसे सौफ्टवेयर इंजीनियर बनाया. समर के 18 बरस का होने के बाद उस की प्रौपर्टी उस के नाम कर दी गई और 21 साल का होने के बाद उस के हाथों सौंप दी गई. पर पैसा मिलते ही समर की ख्वाहिशें बढ़ने लगीं और वह अमेरिका में बसने के सपने देखने लगा और फिर उस ने वैसा ही किया.

सौफ्टवेयर इंजीनियर बनते ही वह एक कंपनी में नौकरी के जरीए अमेरिका चला गया और वहीं पर बस गया. अब शादी के सिलसिले में वह भारत आया और संचिता के साथ शादी कर के उसे भी अमेरिका ले गया. समर के साथ खुशीखुशी कब 2 साल बीत गए संचिता को पता ही नहीं चला. उसे लगने लगा था मानो समर के साथ उसे दुनिया के सारे सुख मिल रहे हैं. ऐसे में ही उसे अपने गर्भवती होने का एहसास हुआ. डाक्टर के पास चैकअप करा कर इस बात की तसल्ली कर ली और फिर समर के आने की राह देखने लगी. वह जल्द से जल्द यह खुशखबरी समर को बताना चाहती थी.

शाम को समर के घर आते ही उस ने सब से पहले उसे यही खुशखबरी दी. पर उस के चेहरे पर खुशी की जगह और ही भाव नजर

आने लगे. उस का बदला रूप देख कर संचिता पलभर के लिए कांप गई. लेकिन कुछ ही क्षणों में समर संभल गया और संचिता को बांहों में भरते हुए बोला, ‘‘मुझे तो विश्वास ही नहीं हो रहा है मैं बाप बनने वाला हूं. सच कहूं तो तुम ने जब यह खुशखबरी दी तब मुझे कुछ सूझा ही नहीं. अब तुम आराम करो. कल हम अपनी अच्छी पहचान वाली लेडी डाक्टर के पास जाएंगे ताकि वह अच्छी तरह तुम्हारा चैकअप करें.’’

दूसरे दिन संचिता ने जब आंखें खोली तब उसे अपनी कमर के नीचे का भाग कुछ भारीभारी सा लग रहा था. उस ने कमरे का निरीक्षण किया तब उसे ऐसा लगा कि वह किसी अस्पताल के कमरे में है. उस ने उठने की कोशिश की तो उस से उठा भी नहीं जा रहा था. तब एक नर्स दौड़ती हुई उस के पास आई और बोली, ‘‘अब थोड़ी देर और आराम करो. 2-3 तीन घंटे बाद तुम उठ सकती हो.’’

संचिता ने जब उस से पूछा कि उसे क्या हुआ तब नर्स ने उसे हैरानी से देखते हुए कहा कि तुम्हारा अबौर्शन हुआ है. सुनते ही संचिता के पांवों के नीचे से जमीन खिसक गई क्योंकि वह तो सिर्फ चैकअप के लिए आई थी. डाक्टर ने

उसे कोलड्रिंक पीने के लिए दिया था. उस के बाद उसे गहरी नींद आने लगी और वह सो गई. पर अब उसे सब पता चल गया था. कुछ घंटों बाद समर आ कर उसे ले गया. घर जाने के

बाद उस ने शाम को संचिता से बस इतना ही कहा कि अभी वह बच्चे के लिए तैयार नहीं है. उसे अभी बहुत कुछ करना है. अगर वह उसे गर्भपात कराने को कहता तो शायद वह कभी तैयार नहीं होती, इसलिए उस ने यह रास्ता अपनाया.

अब संचिता के पास झल्लाने के सिवा कुछ नहीं बचा था. उस ने समर से बात करना छोड़ दिया. पहले समर के प्रति उस के मन में जो प्यार और आदर की भावना थी उस की जगह अब उस पर घृणा, तिरस्कार और चिड़ आने लगी थी. पर यहां विदेश में समर से बैर लेना उस ने उचित नहीं समझ क्योंकि यहां उस का कोई नहीं था. न कोई दोस्त न रिश्तेदार न पड़ोसी. अपना दर्द वह किसे सुनाती.

तभी एक दिन दोपहर को वत्सला बूआ का फोन आया. उन्होंने उसे बताया कि पिछले 15 दिनों में समर का 3 बार फोन आ चुका है और वह हर बार 25 लाख रुपए उस के अमेरिका के खाते में जमा करने की बात कह रहा है. उस ने बूआ को यह कहा कि  उस ने अपनी नौकरी छोड़ दी है और खुद का कोई कारखाना शुरू करना चाहता है, जिस के लिए उसे पैसों की सख्त जरूर है. पर बूआ को दाल में कुछ काला नजर आया, इसलिए उन्होंने संचिता से इस बारे में पूछना चाहा. पर संचिता को तो इस बारे में कुछ भी पता नहीं था. उलटा उस ने जब समर द्वारा धोखे से उस का गर्भपात कराने की बात वत्सला बूआ को बताई तब वे और भी हैरान रह गईं.

अब तो संचिता को समर से डर लगने लगा था. उस की सारी सचाई सामने आने लगी थी. विदेश में उस से बैर लेना मुनासिब नहीं था और मामापिता को सचाई बता कर वह उन्हें मुश्किल में नहीं डालना चाहती थी.

दूसरे दिन अब आगे क्या करना है, इस कशमकश में डूबी संचिता भारतीय

भूल के अमेरिका में रह रहे लोगों के लिए निकाले जा रहे अखबार के पन्ने पलट रही थी. तब एक तसवीर देख कर उस के हाथ रुक गए और उस ने वह खबर पढ़ी. प्रणोती, क्राइम विभाग की पत्रकार ने अपनी हिम्मत और दिमाग से बड़े सैक्स रैकेट का परदाफाश किया और सफेदपोश कहे जाने वाले भारत और पाकिस्तान के काले दरिंदों को सलाखों के पीछे पहुंचा दिया. उस ने 2-3 बार वह खबर पढ़ी. उसे आशा की किरण नजर आने लगी. उस ने तुरंत अखबार के कार्यालय में फोन लगाया और प्रणोती के घर का पता और फोन नंबर ले लिया. प्रणोती उस की सहपाठी निकली. दोनों पूना में एकसाथ पढ़ा करती थीं. उस के पिताजी नौकरी के सिलसिले में अमेरिका गए और उस की मां को भी साथ ले गए और फिर हमेशा के लिए अमेरिका में ही बस गए.

संचिता ने फोन कर के प्रणोती से संपर्क किया और उस से मिलने की इच्छा जाहिर की. प्रणोती ने उसे तुरंत अपने घर बुला लिया. अमेरिका में भी उस का अपना कोई है यह जान कर संचिता को बहुत अच्छा लगा. प्रणोती से मिल कर उस ने उस के साथ जो कुछ घटा और वत्सला बूआ ने 25 लाख रुपयों के बारे में जो कुछ कहा वह सब बताया.

प्रणोती ध्यान से उस की बातें सुनती रही. लगभग 2 घंटे दोनों में इस बात पर चर्चा चली. फिर प्रणोती से विदा ले कर संचिता अपने घर चली गई. प्रणोती ने उसे आश्वासन दिया कि वह मामले की तह तक जाएगी.

इधर संचिता रातभर समर की राह देखती रही पर वह घर नहीं आया. फिर कब उस की आंख लग गई उसे पता ही नहीं चला. पर सुबह भी वह नहीं आया. उस ने झट से चाय बना कर पी और नहाधो कर प्रणोती से मिलने जाने की तैयारी की. उस की गैरहाजिरी से समर घर आ सकता था, इसलिए उसे जाते एक चिट्ठी छोड़ दी कि वह मार्केट जा रही है.

प्रणोती के घर जाते ही प्रणोती ने उसे बैठाया और कहा, ‘‘आज मैं जो बताने जा रही हूं उसे धैर्य से सुनना. तुम ने मुझे समर के औफिस का पता और उस के बारे में जो जरूरी जानकारी दी थी उस के आधार पर मैं ने कल ही उस की तहकीकात शुरू कर दी थी. संचिता, कल रात समर को खून के मामले में पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है. वह शबर के पुलिस लौकअप में बंद है. दूसरी बात उस ने नौकरी से इस्तीफा नहीं दिया बल्कि उसे नौकरी से निकाला गया है क्योंकि उस ने औफिस में भारतीय मुद्रा के रूप में 25 लाख रुपयों का गबन किया था. वत्सला बूआ से उस ने सब झठ कहा था. कल सुबह उस के खाते में पैसे जमा होते ही उस ने वे पैसे कंपनी में भर कर खुद को छुड़ा लिया.

‘‘फिर दिनभर यहांवहां भटक कर शराब के नशे में धुत्त हो कर वह देर रात को कैसिनो में पहुंचा. वह हमेशा का ग्राहक था इसलिए कैसिनो के मालिक ने उसे जुआ खोलने के लिए 2 लाख रुपए उधार दिए, पर समर घंटेभर में ही सारे

पैसे हार गया और उस ने कैसिनो के मालिक से फिर से पैसों की मांग की. पर कैनो के मालिक ने उसे पहले के दो लाख रुपए 24 घंटों के अंदर वापस करने की बात कहते हुए और

पैसे देने से मना कर दिया. तब दोनों में इस बात को ले कर झगड़ा हो गया और झगड़ा बढ़तेबढ़ते लड़ाई में बदल गया जिस में समर के हाथों कैसिनो के मालिक का खून हो गया. वह वहां

से भागने की फिराक में था पर कैसिनो के बाउसरों ने उसे पकड़ लिया और पुलिस के हवाले कर दिया.

‘‘और अब मैं जो कहने जा रही हूं वह सुन कर तुम्हारे पांवों तले की जमीन खिसक जाएगी. तुम्हारी शादी से 6 महीने पहले उस ने एक जरमन लड़की से शादी की पर उस लड़की ने समर की चालढाल देख कर उसे छोड़ दिया. दोनों का अब तक कानूनी तौर पर तलाक भी नहीं हुआ है. इसलिए तुम्हारी शादी गैरकानूनी मानी जा सकती है. तुम्हारा गर्भपात कराने के पीछे भी शायद यही मंशा थी कि तुम्हारी और तुम्हारे बच्चे की वजह से वह मुश्किल में पड़ सकता था.

‘‘संचिता, समर पूरी तरह फ्रौड निकला. उस पर दया करने की कोई जरूरत नहीं है. तू जैसे भी हो अपनेआप को उस के चंगुल से छुड़ा ले. मैं अपने वकील से बात करती हूं. देखते हैं वे क्या सलाह देते हैं. कल दोपहर को समर को कोर्ट में हाजिर किया जाएगा. हम वहां अपने वकील के साथ जाएंगे. अभी तुम अपने घर जाओ और तुम्हारा जितना सामान, जेवरात और पैसे हैं उन्हें ले कर मेरे घर आ जाओ. यहां तुम्हारी सारी चीजें बिलकुल महफूज रहेंगी और मामला पूरी तरह से निबटने तक तुम मेरे घर मेरी सहेली, मेरी बहन बन कर रह सकती हो.’’

संचिता ने आंसू पोंछे और प्रणोती के हाथों पर हाथ रख कर हां में सिर हिलाते हुए चली गई. घर पहुंचते ही संचिता ने तुरंत अपनी बैग निकाला और सारे कपड़े उस में भर दिए.

अपने जेवर सहीसलामत देख कर उसे राहत महसूस हुई. उस ने जेवर, नकद रुपए, अपने सारे कागजात और पासपोर्ट व वीजा भी बैग में रखा. फिर पूरे घर पर एक नजर डाल कर अपना बैग उठा कर प्रणोती के घर चल दी.

दूसरे दिन समर को कोर्ट में हाजिर किया गया. संचिता प्रणोती के साथ वहीं खड़ी थी. कोर्ट से बाहर आने के बाद संचिता ने समर का कौलर पकड़ कर उस से पूछा कि उस ने

ऐसा क्यों किया, पर समर ने कोई जवाब नहीं दिया और पुलिस की गाड़ी में जा बैठा. संचिता प्रणोती के साथ मिल कर उस जरमन लड़की से भी मिली जिसे समर ने धोखा दिया था. समर के कारनामे सुन कर वह लड़की हैरान रह गई. उस ने संचिता से सहानुभूति दिखाई और कहा कि समर से छुटकारा पाने के लिए अगर उसे उस से कोई मदद चाहिए तो वह उस की जरूर मदद करेगी.

अब संचिता को विश्वास हो गया कि वह समर से आसानी से छुटकारा पा लेगी. लेकिन समर का केस पूरे डेढ़ साल तक चला. समर को 10 साल की कैद की सजा सुनाई गई. इस बार संचिता ने उस के सामने तलाक के कागजात रख दिए और समर ने भी बिना कुछ कहे उन पर साइन कर दिए. संचिता आजाद हो चुकी थी. उस ने प्रणोती को बहुतबहुत धन्यवाद दिया.

समर के काले कारनामों की पूरी जानकारी संचिता ने वत्सला बूआ और अपने मातापिता को दे दी. उन सभी को गहरा आघात लगा. वत्सला बूआ ने संचिता के मातापिता से माफी मांगी. लेकिन इस में वत्सला बूआ की कोई गलती नहीं थी और वे भी समर के धोखे की शिकार हुई थीं, इसलिए संचिता के मातापिता ने उन्हें माफ कर दिया.

अगले हफ्ते संचिता मुंबई के सहारा हवाईअड्डे पर उतर रही थी. उस के मातापिता और वत्सला बूआ उस के स्वागत के लिए खड़े थे, उस ने समर के चेहरे पर लगा झठ का मुखौटा जो निकाल फेंका था और उस का असली चेहरा दुनिया के सामने लाया था. ऐसे और भी कितने समर इस दुनिया में मौजूद हैं, जिन के चेहरे पर चढ़ा झठ का मुखौटा निकाल फेंकने के लिए खुद महिलाओं को ही आगे आना होगा.

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ब्रेकअप के बाद भी एकसाथ काम करने वाले फिल्मी सितारे

Bollywood Breakups: जिंदगी में कई बार ऐसे मोड़ आते हैं जब हमें जिंदगी की असली सचाई का पता चलता है. जवानी की दहलीज पर कदम रखते वक्त जहां प्यार ही सब कुछ होता है, प्यार में हम पूरी तरह अंधे हो जाते हैं, वहीं कुछ समय के बाद यह एहसास होने लगता है कि पैसे और अच्छी जिंदगी से ज्यादा कुछ भी महत्त्वपूर्ण नहीं होता क्योंकि आज के समय में प्यार भी वही फलताफूलता है जहां पैसा होता है. पैसों के अभाव में कई बार प्यार भी दम तोड़ देता है.

सालों पहले एक गाना आया था,’यार दिलदार तुझे कैसा चाहिए, प्यार चाहिए कि पैसा चाहिए…’ जिस के जवाब में अगली लाइन थी, ‘प्यार के लिए मगर पैसा चाहिए…’ कहने का मतलब यह है कि आज के आधुनिक युग में जहां लोगों के लिए पैसा ही सबकुछ है, वहां प्यार से ज्यादा आज लोगों के लिए पैसा महत्त्वपूर्ण है क्योंकि एक बार प्यार के बिना तो जिंदगी जी जा सकती है, लेकिन बिना पैसे के आज के समय में प्रेमी भी नहीं पूछते. यही वजह है कि एक समय में जहां एक गाना बना, ‘जब दिल ही टूट गया, तो जी कर क्या करेंगे…’ वहीं आज के समय में ब्रेकअप होने के बाद ‘तू नहीं और सही’ फौर्मूले को अपनाते हुए कई लोग ब्रेकअप पार्टी रखते हैं और प्यार में धोखा खाने के बावजूद जिंदगी में आगे बढ़ जाते हैं और पिछला सबकुछ भूल भी जाते हैं.

ऐसे टूटे दिल वाले बहुत बार पहले से ज्यादा मजबूत हो जाते हैं इस सोच के साथ कि दिल टूटने से तकलीफ तो बहुत हुई मगर जिंदगीभर का आरंभ हो गया क्योंकि प्यार से दिल तो खुश हो जाता है लेकिन पेट नहीं भरता, जरूरतें पूरी नहीं होतीं जबकि पैसा सारी सुखसुविधाएं दे सकता है.

इसी सचाई के साथ जीते हैं कई सारे ऐसे लोग जो एक ही फील्ड में साथ काम करते वक्त प्यार में पड़ जाते हैं और किन्हीं वजहों से उन का प्यारभरा रिश्ता टूट जाता है, लेकिन एक ही प्रोफेशन होने की वजह से साथ काम करना पड़ता है. इन का आपस में बारबार सामना भी होता है. जैसे अगर शिक्षा के लिए स्कूल, कालेज में पढ़ाने वाले टीचर्स की बात करें तो वे कई सालों तक एक ही स्कूल में साथ काम करते हैं और स्कूल के दौरान प्रेम संबंध टूटने के बावजूद उन का बारबार अपने एक्स प्रेमी से सामना होता है, जिस से उन का प्यार शुरुआती दिनों में हुआ था.

इसी तरह आईएएस में सिलेक्ट हुए लोग और गवर्नमैंट नौकरी में भी दायरा बहुत छोटा होता है जिस में वहां काम कर रहे लोगों को बारबार एकदूसरे से मिलना पड़ता है. ब्रेकअप होने के बाद भी काम के सिलसिले में औपचारिक रूप से बातें करनी पड़ती हैं. ऐसे में कई लोग हालात से समझौता करते हुए पुरानी बातें भूल कर आपस में प्रोफेश्नल रिश्ते निभाते हैं. इस में प्यार तो नहीं होता लेकिन एक प्रोफेशनल रिश्ता जरूर बन जाता है, जिस में भावनाएं नहीं होतीं बस ‘हायहैलो’ वाला रिश्ता बन जाता है.

ऐसे ही रिश्तों में हमारे कई बौलीवुड स्टार्स भी शामिल हैं जो ब्रेकअप के बाद भी साथ काम कर रहे हैं. पेश हैं, इसी सिलसिले पर एक नजर :

ब्रेकअप के बाद भी साथ फिल्मों में काम किया

हिंदी फिल्मों में साथ काम करने वाले कलाकार जो 24 घंटे और कई महीनों तक एकसाथ रहते हैं, फिल्म की शूटिंग के दौरान लव सीन और इंटिमेट सीन करते हुए कई बार प्यार में पड़ जाते हैं. इस के बाद इन हीरोहीरोइन का अफेयर सालों चलता है, लेकिन कुछ सालों बाद मनमुटाव और खराब हालात के चलते ब्रेकअप हो जाता है. ऐसे में साथ काम करना तो दूर एकदूसरे की बारबार शक्ल देखना भी मुश्किल हो जाता है. ऐसे में कई सितारे जिन का प्यार में दिल टूटा होता है और कड़वाहट ज्यादा हो जाती है तो वे एकदूसरे के साथ काम करना पसंद नहीं करते, जैसे एक जमाने की हिट रियल लाइफ जोड़ी सलमान खान और ऐश्वर्या राय, अभिषेक बच्चन और करिश्मा कपूर, जिन का प्यार सालों चला और बाद में ब्रेकअप हो गया, जिस के बाद इन प्रेमी जोड़ों ने एकदूसरे की शक्ल देखना भी मंजूर नहीं किया.

लेकिन बौलीवुड में कई ऐसी मशहूर जोड़ियां हैं जिन का एक समय में गहरा प्रेम संबंध था, लेकिन बाद में ब्रेकअप हो गया. कुछ सालों बाद जैसे कि कहते हैं कि वक्त हर जख्म भर देता है, लिहाजा ये सारे कलाकार ब्रेकअप के बाद भी पुरानी बातें भूल कर एकदूसरे के साथ फिल्म करते नजर आए. इस दौरान एक समय की लवर्स जोड़ी अब अपनी जिंदगी में आगे बढ़ चुकी है और अपने पिछले प्रेमी को ले कर उन के मन में कोई भावना भी नहीं है. फिलहाल ये जोड़ियां अपने एक्स प्रेमी के साथ प्रोफेशल रिश्ते के साथ फिल्मों में अभिनय कर रहे हैं.

दीपिका पादुकोण और रणबीर कपूर एकदूसरे को दिल दे बैठे थे लेकिन ब्रेकअप के बाद दीपिका पादुकोण डिप्रैशन तक में चली गई थी, लेकिन बाद में दीपिका पादुकोण की लाइफ में रणवीर सिंह की ऐंट्री हो गई और रणवीर के साथ शादी भी हो गई, जिस के बाद सब भूल कर ब्रेकअप के बाद भी दीपिका ने रणबीर के साथ ‘तमाशा’ और यह ‘जवानी है दीवानी’ जैसी बेहतरीन सुपरहिट फिल्में दीं.

करीना कपूर और शाहिद कपूर

करीना कपूर और शाहिद कपूर का रोमांस काफी सालों तक चला जब ‘वी मेट’ की शूटिंग के दौरान शाहिद और करीना की नजदीकियां बढ़ी थीं लेकिन बाद में उन का ब्रेकअप हो गया. ब्रेकअप के बाद दोनों ने ‘फिर मिलेंगे’ और ‘उड़ता पंजाब’ में एकसाथ काम किया.

सलमान खान कैटरीना कैफ

सलमान खान उन हीरोज में हैं जिन का अफेयर लंबे समय तक नहीं टिकता. ऐश्वर्या राय के बाद सलमान खान का कैटरीना कैफ के साथ अफेयर हुआ लेकिन बाद में कैटरीना की जिंदगी में रणबीर कपूर आ गए और सलमान से उन का ब्रेकअप हो गया. उस के बाद भी कैटरीना कैफ ने सलमान के साथ ‘भारत’, ‘टाइगर जिंदा है’ आदि कई फिल्मों में काम किया. आज भी कैटरीना के सलमान के साथ दोस्ताना रिश्ते हैं.

अक्षय कुमार रवीना टंडन

एक समय में रवीना टंडन और अक्षय कुमार का गहरा रोमांटिक रिश्ता था, जो ‘मोहरा’ फिल्म के साथ शुरू हुआ था. अक्षय कुमार की रवीना टंडन से सगाई तक हो गई थी, लेकिन बाद में किन्हीं कारणों से अक्षय और रवीना का रिश्ता खत्म हो गया. लेकिन उस के बाद सब भूल कर रवीना और अक्षय ने अवार्ड फंक्शन में स्टेज शेयर किया और कई सालों बाद दोनों ने फिल्म ‘वेलकम टू जंगल’ में स्क्रीन भी शेयर किया. यह फिल्म दिसंबर में रिलीज होगी.

संजय दत्त माधुरी दीक्षित

90 के दशक में संजय दत्त और माधुरी दीक्षित का अफेयर सुर्खियों में था. दोनों ने कई फिल्मों में साथ काम किया था. खबरों के अनुसार संजय दत्त और माधुरी दीक्षित की शादी भी होने वाली थी लेकिन बाद में संजय दत्त जेल चले गए और दोनों का रिश्ता भी खत्म हो गया. लेकिन बाद में काफी समय के बाद संजय दत्त और माधुरी दीक्षित करण जौहर की फिल्म ‘कलंक’ में एकसाथ नजर आए.

अक्षय कुमार और शिल्पा शेट्टी

अक्षय कुमार और शिल्पा शेट्टी का भी अफेयर काफी समय तक चला लेकिन बाद में ब्रेकअप के बाद दोनों ने साथ कोई फिल्म तो नहीं की, लेकिन अवार्ड फंक्शन और डांस रियलिटी शोज में पुरानी बातें भूल कर एकसाथ डांस जरूर किया.

इस से साबित होता है कि ऐक्टर्स अपनी प्रोफेशनल लाइफ में पर्सनल लाइफ को नहीं आने देते हैं और काम के प्रति ईमानदारी दिखाते हुए सबकुछ भूल कर ब्रेकअप के बाद भी साथ फिल्में करने के लिए भी तैयार हो जाते हैं क्योंकि उन का मानना है,’शो मस्ट गो औन’.

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Aalisha Panwar: एक्स्ट्रा बोल्ड कंंटेंट के साथ मैं सहज नहीं

Aalisha Panwar: हिमाचल प्रदेश के शिमला में जन्मीं व पलीबड़ी खूबसूरत अलिशा पनवार ने अभिनय कैरियर की शुरुआत 2012 में फिल्म ‘अक्कड़ बक्कड़ बंबे बो’ से की थी. साल 2015 में शो ‘बेगूसराय’ में नजमा की भूमिका में पहली बार अभिनय की शुरुआत की. इस के बाद उन्होंने ‘थपकी प्यार की’, ‘इश्क में मरजावां’ आदि कई धारावाहिकों और शौर्ट फिल्मों में काम किया है.

उन की मां अनीता पनवार स्कूल की शिक्षिका हैं और पिता दिनेश पनवार पेशे से वकील हैं. अलिशा को बचपन से ही अभिनय की इच्छा थी और उन के मातापिता ने हमेशा उन्हें मनमुताबिक काम करने की आजादी दी.

इन दिनों अलिशा ओटीटी हंगामा पर मिनी वैब सीरीज ‘विन्नी की किताब’ में विन्नी की मुख्य भूमिका निभा रही हैं. वे अपनी भूमिका को ले कर काफी उत्साहित हैं क्योंकि इंडस्ट्री में 10 साल पूरे होने बाद यह उन की पहली हिंदी वैब सीरीज है. उन्होंने खास गृहशोभा के साथ बात की. पेश हैं, कुछ खास अंश.

एक इमोशनल जर्नी

‘विन्नी की किताब’ शो को करने के बारे में अलिशा का कहना है कि यह एक मिनी वैब सीरीज है, जिस में मैं विन्नी की भूमिका निभा रही हूं, जो एक राइटर है. उस के दिमाग की सोच और फैंटेसी से जुड़ी हुई कहानी वह लिखती जाती है, जो हर लड़की की एक इमेजिनरी सोच होती है. यह बहुत ही खूबसूरत स्टोरी है, जिस से सारे दर्शक रिलेट कर सकते हैं. देखा गया है कि लड़कियों का लव लाइफ या लव औफर लाइफ को ले कर कई सारे ड्रीम्स होते हैं, जिस में प्यार के बाद शादी कर साथ रहने की होती है, लेकिन कैसे वह एक रोमांटिक लाइफ से घरेलू हाउसवाइफ बन कर सब हैंडल करती है, इन सब के बीच में रोमांस गायब हो जाता है और जिम्मेदारी आ जाती है.

ऐसे में उसे निभाना कितना मुश्किल होता है, उस के सपनों पर किस तरह पानी फिर जाता है वगैरह कई बातों को दिखाने की कोशिश की गई है, जिसे लोग पसंद कर रहे हैं. असल में यह एक लड़की की इमोशनल जर्नी के बारे में है, जो आज की काफी लड़कियां फेस कर रही हैं.

इस भूमिका से अलिशा खुद को अधिक रिलेट नहीं कर पातीं. वे कहती हैं कि मैं केवल विन्नी की मासूमियत से खुद को रिलेट कर सकती हूं क्योंकि मैं भी एक मासूम लड़की हूं.

मिली प्रेरणा

अलिशा कहती हैं कि मुझे बचपन से ही ऐक्टिंग का शौक था. मैं 5 साल की उम्र से ही टीवी देख कर मां से ऐक्टिंग करने की बात कहती रहती थी. दिमाग में था कि मैं एक सुपर स्टार बनूं, लोग मुझे जानें. एक किड की तरह मेरी फैंटेसी रही, जिस की वजह से मैं यहां तक पहुंच पाई.

बचपन से था शौक

अलिशा कहती हैं कि मैं ने बचपन से ही सोच लिया था कि मैं ऐक्टिंग करूंगी और मेरा विजन बहुत क्लीयर था. मेरे पेरैंट्स ने भी बहुत सहयोग दिया. शुरू में मुझे छोटेछोटे जो भी रोल मिलते थे, मैं करती गई, क्योंकि मैं शिमला एक छोटी सी जगह से हूं, जहां मुझे बहुत अधिक मौका इस फील्ड में नहीं मिल सकता था. छोटेछोटे औडिशंस होते रहते थे. मैं हर जगह चली जाती थी. मुझे याद है कि मैं ने 15 साल की उम्र में शिमला क्वीन का खिताब जीता था. मैं ने 12 साल की उम्र में पहली बार एक डांस रिएलिटी शो के लिए कैमरा फेस किया था. उस की शूट के लिए मैं चंडीगढ़ गई थी. मैं उस समय महज 7वीं कक्षा में पढ़ रही थी. मेरे पेरैंट्स ने उस समय मेरा बहुत साथ दिया है. तब मैं ने पहली बार खुद को टीवी पर देखा था, उस के बाद से आगे बढ़ने का सिलसिला जारी रहा.

शिमला से मुंबई का सफर

जब मैं कालेज की प्रथम वर्ष में पढ़ रही थी, मैं ने सुना कि एक नए चैनल का लौंच हो रहा है और उस के किसी शो के लिए औडिशन शिमला में हो रहा है, जिस में एक मुसलिम लड़की की चरित्र के लिए औडिशन हो रहा था. मैं ने अपनी मां से इसे बताई, तो वे मुझे वहां ले कर भी गईं, तब मुझे औडिशन की एबीसी तक नहीं आती थी. मुझे स्क्रिप्ट दिया गया और मैं ने उसे ऐसे ही पढ़ दिया. तब मेकअप भी मुझे करना नहीं आता था. मैं एक लिपबाम और काजल लगा कर औडिशन के लिए चली गई थी, लेकिन उन्होंने मुझे चुन लिया, पर बाद में कई बार मैं चंडीगढ़ लुक टेस्ट के लिए गई. शो का नाम ‘बेगूसराय’ था.

इस के बाद मुझे मुंबई बुलाया गया. मुझे कालेज छोड़ना पड़ा, लेकिन मैं ने अपनी पढ़ाई डिस्टैंस से ही पूरा किया. मेरे पिता मुझे मुंबई छोड़ने आए थे. मैं यहां कई लड़कियों के साथ शेयरिंग में रहने लगी थी. मैं पहली बार मुंबई आई थी और मुझे मालाड से भयंदर जा कर शूटिंग करनी पड़ती थी. मैं इस शहर से बिलकुल अनजान थी, ऐसे में पिता ने मुझे सेट पर पहुंचने की सारी जानकारी जुटा दी थी, जिस से मेरा काम करना आसान हुआ. इस तरह से मेरी ऐक्टिंग की जर्नी शुरू हो गई.

मुंबई बङा शहर है, ऐसे में किसी छोटे शहर से बड़े शहर में आ कर रहना मेरे लिए आसान नहीं था. मगर धीरेधीरे मैं ने सबकुछ सीखा है.

परिवार का सहयोग

अलिशा ने जब पहली बार जब पिता को मुंबई जा कर ऐक्टिंग करने की बात कही, तो वे शौक्ड हो गए थे क्योंकि मुंबई में उन का कोई नहीं था, लेकिन उन्होंने उन का मजाक नहीं बनाया, बल्कि सीरियसली लिया और हां कर दी. इस से अलिशा के अंदर एक विश्वास पैदा हुआ और वे आगे बढ़ पाईं.

रहा संघर्ष  

अलिशा को पहला शो आसानी से मिला था, लेकिन वह शो 1 साल में बंद हो गया. इस के बाद वे आगे क्या करेंगी, सोचना कठिन रहा क्योंकि वे किसी प्रोडक्शन हाउस या कोऔर्डिनेटर को जानती नहीं थीं.

अलिशा कहती हैं कि मुझे इस बात का भी डर था कि मैं एक छोटे शहर से हूं और एकदम अनजान शहर में किसी गलत इंसान से न टकरा जाऊं. लेकिन संयोग से सभी सही लोग मुझ से मिले, जिन्होंने मुझे सही गाइड किया और मुझे काम मिलता गया. मुझे याद है कि जब मैं एक दिन पूरी तैयार हो कर गरमी में औटो रिक्शा में बैठ कर एक जगह से दूसरे जगह 4 औडिशन देने गई, जहां लंबी कतार में 2 से 3 घंटे खड़ी हो कर औडिशन दिया. इन सब चीजों को मैं अभी भी याद करती हूं.

पहली शो के बाद मैं ने ‘जमाई राजा सीजन 2’ में पैरेलल लीड किया, इस के बाद एक शो में बहन, दोस्त आदि भूमिकाएं निभाते हुए आगे बढ़ी और ‘इश्क में मरजावा सीजन 1’ में मैं ने मुख्य भूमिका निभाई. मैं ने अपनी छोटीछोटी भूमिका को ले कर कभी शर्म महसूस नहीं किया, बल्कि अभिनय की बारीकियों को बेस लेवल से जाना है क्योंकि मैं ने अभिनय की तालिम नहीं ली है और इन सभी भूमिकाओं ने मुझे लीड के लिए परिपक्व बनाया है.

अलिशा ने केवल सकारात्मक ही नहीं नकारात्मक भूमिका भी निभाई है. वे कहती हैं कि मुझे दोनों तरह की भूमिकाओं को करने में मजा आता है. मैं ने दोनों में लीड भूमिका निभाई है, दोनों के अलगअलग शेड्स हैं, जिसे करना मेरे लिए अच्छी बात रही है.

ऐक्स्ट्रा बोल्ड सीन

वे कहती हैं कि पहले भी मुझे कई वैब सीरीज के औफर्स मिले हैं, लेकिन तब मैं ने उस में बोल्ड कंटेंट की वजह से अस्वीकार किया है क्योंकि मैं इन दृश्यों के साथ अधिक कंफर्ट फील नहीं करती, लेकिन इस वैब सीरीज में मेरे हिसाब से सीन्स हैं, जिस में मैं कंफर्ट फील कर रही हूं.

मेरी ड्रीम है कि मैं फिल्ममेकर संजय लीला भंसाली के साथ किसी भी फिल्म या वैब सीरीज में काम करूं. मैं जानती हूं कि ऐक्स्ट्रा बोल्ड सीन्स से मुझे परहेज है, लेकिन उम्मीद है कि कुछ ऐसा अवश्य बनेगा, जिस में मैं काम कर पाऊंगी.

सपनों का राजकुमार

खूबसूरत अलिशा सिंगल हैं क्योंकि अभी कोई लाइफ पार्टनर उन्हें नहीं मिला है, लेकिन अगर मिला, तो इन 5 चीजों पर अवश्य गौर करेंगी- सच्चा प्यार, रिस्पेक्ट, ट्रस्ट, समझदारी और पारदर्शिता, जिसे लड़के में भी होना जरूरी है.

Aalisha Panwar

Shweta Tiwari: 44 की उम्र में भी हुस्न की मलिका, क्या है फिटनैस का राज

Shweta Tiwari: टीवी और भोजपुरी फिल्मों की मशहूर अदाकारा श्वेता तिवारी आज उन लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं, जो बढ़ती उम्र के साथ उन की तरह ही खूबसूरत और जवान दिखना चाहती हैं.

टीवी सीरियल ‘कसौटी जिंदगी की’, ‘कहीं किसी रोज’, ‘कुमकुम एक प्यारा सा बंधन’, ‘कहानी घरघर की’ में काम कर चुकीं श्वेता तिवारी ‘झलक दिखला जा 3’, ‘नच बलिए’ जैसे डांस शो में बतौर प्रतियोगी और ऐंकर नजर आईं. इस के अलावा ‘बिग बौस 4’ की विजेता भी घोषित हुईं.

टीवी के अलावा ‘आबरा का डाबरा’, ‘मदहोशी’ जैसी फिल्मों में काम कर चुकीं और पर्सनल लाइफ में 2 शादियां और 2 तलाक के बाद अपनी बेटी और बेटे के साथ स्वतंत्र मां के रूप में जिंदगी बिताने वाली श्वेता तिवारी 44 वर्ष की उम्र में भी पूरे आत्मविश्वास के साथ बेहद खूबसूरत नजर आती हैं.

खूबसूरती का राज

अपनी इस खूबसूरती का राज और फिटनैस को ले कर श्वेता ने कई राज खोले. उन्होंने बताया कि उन की फिटनैस का राज क्या है? रूटीन क्या है? अपनी डाइट को कैसे फौलो करती हैं? इस के अलावा वे अपने बढ़ते वजन को किस तरह कंट्रोल में रखती हैं वगैरह.

खुद से करें प्यार

श्वेता तिवारी कहती हैं कि मेरा मानना है जब तक आप खुद से प्यार नहीं करेंगे, अपनी सेहत को ले कर अनुशासित नहीं होंगे तब तक कोई भी आप को सही राह नहीं दिखा सकता. मैं अपने शरीर और खूबसूरती को ले कर हमेशा अलर्ट रहती हूं, हालांकि बीच में कुछ समय पहले मेरा वजन थोड़ा बढ़ने लगा था जिसे मैं ने अनुशासन में रह कर व सही डाइट फौलो कर के और  ऐक्सरसाइज व वर्कआउट कर के न सिर्फ वजन कंट्रोल में किया बल्कि मैं ने अपने शरीर को शेप में भी लाया, जिस के बाद मुझे अपनी उम्र से कम और जवान दिखने को ले कर कई कौप्लीमैंट्स मिले, जो हर लड़की हर उम्र में सुनना चाहती है.

फिटनैस है प्राथमिकता

वे कहती हैं कि बिजी शूटिंग शैड्यूल के बावजूद मैं ने फिटनैस को प्राथमिकता दी. पौजिटिव माइंड के साथ मैं ने अपना डेली रूटीन प्रौपर डाइट के साथ फौलो किया.

श्वेता तिवारी अपनी ब्यूटी, फैशन सेंस, ऐनर्जी और फिटनैस से युवाओं को भी टक्कर देती हैं. उन की यही बात उन को फिटनैस आइकन बनाती है.

वे कहती हैं कि फिट रहने के लिए मैं नियमित रूप से वर्कआउट करती हूं. मेरी डाइट मेरी डाइटिशियन और न्यूट्रीशनिष्ट फ्रैंड किनिका कड़ाकियां पटेल सेट करती हैं. वही मुझे बताती हैं कि कब, क्या और कितना खाना है और क्या नहीं खाना है. मैं अपनी सुबह की शुरुआत वाकिंग से करती हूं. हर रोज मैं 10 हजार स्टेप्स चलती हूं. इस के बाद मैं 45 मिनट साइकिल चलाती हूं और उस के बाद 45 मिनट वर्कआउट करती हूं क्योंकि मैं यह रोज करती हूं इसलिए अब मुझे इस की आदत पड़ गई है.

कङी मेहनत

श्वेता कहती हैं कि अपनी न्यूट्रिशनिस्ट फ्रैंड की डाइट फौलो करने से पहले मुझे ब्लड टेस्ट करना पड़ा ताकि बौडी की जरूरत के हिसाब से मैं अपनी डाइट फौलो करूं. जैसे सुबह में मैं 500 एमएल पानी पीती हूं जिस में कोलेजन होता है. दोपहर के खाने में मैं एक बड़ी कटोरी दाल लेती हूं जिस में कई दाल शामिल होती हैं और उस में 2 बङे चम्मच चावल लेती हूं. शाम को 5 बजे मैं कौफी लेती हूं जिस के साथ थोड़े नट्स लेती हूं. रात को 8:30 बजे तक मैं खाना खा लेती हूं, जिस में अच्छी मात्रा में टोफू और सब्जियां शामिल होती हैं. इस के अलावा मन को खुश करने के लिए मैं कम से कम आधा घंटा डांस और ऐक्सरसाइज करती हूं. मानसिक तौर पर संतुलित रहने के लिए हर रोज मैडिटेशन भी करती हूं.

जीवन का मूलमंत्र

अपनेआप को फिट रखने के लिए सब से ज्यादा जरूरी है दिमागी तौर पर स्वस्थ रहना क्योंकि अगर आप मानसिक तौर पर शांत और स्ट्रौंग रहेंगे तो शारीरिक तौर पर अपनेआप ही फिट नजर आएंगे. मैं ने अपने जीवन में मूलमंत्र के रूप में इस बात को मन में बैठा लिया है और यही वजह है कि कई मुसीबत और परेशानी झेलने के बावजूद मैं पूरी तरह से फिट और ऐक्टिव हूं.

Shweta Tiwari

Helen: सलीम खान से शादी से पहले सहनी पड़ी प्रताड़ना, एक अनसुनी कहानी

Helen: कहते हैं ‘साज की धुन सब ने सुनी, मगर साज पर क्या गुजरी किसी ने न जाना…’ ऐसा ही कुछ हाल फिल्मी व ग्लैमर वर्ल्ड से जुड़े लोगों का भी होता है, जिन की खूबसूरती चकाचौंध से भरी तो दिखाई देती है लेकिन उस के पीछे का दुख, जिंदगी में दुखों से भरे लंबे झटके को झेलने वाले वे खुद ही होते हैं.

दुख, धोखा, फरेब

ऐसा ही कुछ एक जमाने की मशहूर हीरोइन हेलन के लिए भी कहा जा सकता है. बहुत कम लोग जानते हैं कि सलीम खान से शादी से पहले हेलन की पहले भी एक शादी हुई थी जिस में उन्हें दुख, तकलीफ और धोखे के अलावा कुछ नहीं मिला था.

पहली शादी के दौरान हेलन का जीना दुश्वार हो गया था, इस बात की जानकारी मुंबई के पूर्व कमिश्नर राकेश मारिया की नई किताब ‘द अनटोल्ड स्टोरीज औफ द अंडरवर्ल्ड’ नामक किताब में हेलन के पहले पति का जिक्र है, जिस के अनुसार हेलन को न सिर्फ प्रताड़ित किया गया था, बल्कि उन की पूरी संपत्ति भी हड़प ली गई थी और हेलन को घर से निकाल दिया गया था.

अंडरवर्ल्ड की मदद

इस किताब में यह दावा किया गया है कि उस दौरान अंडरवर्ल्ड डौन करीम लाला ने हेलन की मदद की थी.

हेलन ने 1957 में फिल्ममेकर प्रेम नारायण अरोड़ा से शादी की थी. इस के बाद उन्होंने काफी दुख झेले थे. हेलन के पहले पति ने न सिर्फ हेलन को मारापीटा था, बल्कि उन की संपत्ति हड़प कर घर से निकल भी दिया था. इस के बाद हेलन ने करीम लाला की मदद ली थी. उस वक्त हेलन फिल्मों में भी नहीं आई थीं.

करीम लाला, जो अंडरवर्ल्ड के डौन थे और 30 साल उन्होंने अंडरवर्ल्ड पर राज किया था, हेलन के बुरे वक्त में मदद के लिए आगे आए थे.

सलीम आए जिंदगी में

मुंबई के पुलिस कमिश्नर राकेश मरिया ने हेलेन और करीम लाला का यह मदद करने वाला किस्सा और हेलन को उन का हङपा हुआ घर वापस दिलाने का किस्सा अपनी किताब में बताया है.

पहले पति से छुटकारा पाने के बाद हेलन ने 1981 में सलमान खान के पिता सलीम खान से शादी कर ली थी.

Helen

Moral Story: ऊंची उड़ान- क्या है राधा की कहानी

Moral Story: जाड़े की कुनकुनी धूप में बैठी मैं कई दिनों से अपने अधूरे पड़े स्वैटर को पूरा करने में जुटी थी. तभी अचानक मेरी बचपन की सहेली राधा ने आ कर मुझे चौंका दिया.

‘‘क्यों राधा तुम्हें अब फुरसत मिली है अपनी सहेली से मिलने की? तुम ने बेटे की शादी क्या की मुझे तो पूरी तरह भुला दिया… कितनी सेवा करवाओगी और कितनी बातें करोगी अपनी बहू से… कभीकभी हम जैसों को भी याद कर लिया करो.’’

‘‘कहां की सेवा और कैसी बातें? मेरी बहू को तो अपने पति से ही बातें करने की फुरसत नहीं है… मुझ से क्या बातें करेगी और क्या मेरी सेवा करेगी? मैं तो 6 महीनों से घर छोड़ कर एक वृद्धाश्रम में रह रही हूं.’’

यह सुन कर मुझे ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरे पैरों तले से जमीन खींच ली हो. मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पाई. क्या बोलती उस राधा से जिस ने अपना सारा जीवन, अपनी सारी खुशियां अपने बेटे के लिए होम कर दी थीं. आज उसी बेटे ने उस के सारे सपनों की धज्जियां उड़ा कर रख दीं…

अपने बेटे मधुकर के लिए राधा ने क्या नहीं किया. अपनी सारी इच्छाओं को तिलांजलि दे, अपने भविष्य की चिंता किए बिना अपनी सारी जमापूंजी निछावर कर उसे मसूरी के प्रसिद्ध स्कूल में पढ़ाया. उस के बाद आगे की पढ़ाई के लिए उसे दिल्ली भेजा. इस सब के लिए उसे घोर आर्थिक संकट का सामना भी करना पड़ा. फिर भी वह हमेशा बेटे के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना कर खुशीखुशी सब सहती रही. जब भी मिलती अपने बेटे की प्रगति का समाचार देना नहीं भूलती. वह अपने बेटे को खरा सोना कहती.

मैं बहुत कुछ समझ रही थी पर उस की दुखती रग पर हाथ रखने की हिम्मत नहीं हो रही थी. मैं बात बदल कर नेहा की पढ़ाई और शादी पर ले आई. शाम ढलने से पहले ही राधा आश्रम लौट गई, पर छेड़ गई अतीत की यादों को…

उस की स्थिति मेरे मन को बेचैन किए थी. बारबार मन चंचल बन उस अतीत में विचरण कर रहा था जहां कभी मेरे और राधा के बचपन से युवावस्था तक के पल गुजरे थे.

राधा मेरे बचपन की सहेली और सहपाठी थी. उस का एक ही सपना था कि वह बड़ी हो कर डाक्टर बनेगी. अपने सपने को पूरा करने के लिए मेहनत भी बहुत करती थी. टैंथ की परीक्षा में पूरे बिहार में 10वें स्थान पर रही थी.

अपने 7 भाईबहनों में सब से बड़ी होने के कारण उस के पिता ने 12वीं कक्षा की परीक्षा समाप्त होते ही विलक्षण प्रतिभा की धनी अपनी इस बेटी की शादी कर दी. शादी के बाद उसे आशा थी कि शायद पति की सहायता से अपना सपना पूरा कर पाएगी पर उस का पति तो एक तानाशाह किस्म का था जिसे लड़कियों की पढ़ाई से चिढ़ थी. इसलिए उस ने डाक्टर बनने के रहेसहे विचार को भी तिलांजलि दे दी और अपने इस रिश्ते को दिल से निभाने की कोशिश करने लगी.

जब वह पूरी तरह अपनी शादी में रम गई, तो कुदरत ने एक बार फिर उस की परीक्षा ली. एक सड़क हादसे में उस ने अपने पति को भरी जवानी में खो दिया. वह अपने 3 वर्ष के अबोध बेटे मधुकर और अपनी बूढ़ी सास के साथ अकेली रह गई. वैधव्य ने भले ही उसे तोड़ दिया था पर उस ने अपनेआप को दीनहीन नहीं बनने दिया. हिम्मत नहीं हारी. भागदौड़ कर अपने पति के बिजनैस को संभाला पर अनुभव के अभाव में उसे सही ढंग से चला नहीं पाई. फिर भी खर्च के लायक पैसे आ ही जाते थे.

उस के पति अपने मातापिता की इकलौती संतान थे, इसलिए कोई करीबी भी नहीं था, जो उसे किसी प्रकार का संरक्षण दे. फिर भी उस कर्मठ औरत ने हार नहीं मानी. अपने बेटे के उज्ज्वल भविष्य के लिए अच्छी से अच्छी शिक्षा की व्यवस्था की.

राधा के घोर परिश्रम का ही परिणाम था कि मधुकर आज आईआईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद अहमदाबाद के प्रसिद्ध कालेज से मैनेजमैंट की पढ़ाई पूरी कर एक मल्टीनैशनल कंपनी में काफी ऊंचे पद पर काम कर रहा था. अपने बेटे की सफलता पर गर्व से दमकती राधा की तृप्त मुसकान देख मुझे लगता अंतत: कुदरत ने उस के साथ न्याय किया. अब उस के सुख के दिन आ गए हैं पर आज स्थिति यह है कि वह वृद्धाश्रम में आ गई है. वह भी अपने बेटे की शादी के मात्र 1 साल बाद ही. यह बात मेरे गले नहीं उतर रही थी.

मेरे मन की परेशानी को नेहा ने न जाने कैसे बिना बोले ही भांप लिया था. बोली, ‘‘क्या बात है ममा, जब से राधा मौसी गई हैं आप कुछ ज्यादा ही परेशान और खोईखोई लग रही हैं?’’

‘‘मैं आज यही सोच रही हूं कि इस आधुनिक युग में शिक्षा का स्तर कितना गिर गया है कि आज के उच्च शिक्षा प्राप्त लड़के भी अपने रिश्तों को अहमियत देने के बदले पैसों के पीछे भागते हैं… इन के आचरण इतने घटिया हो जाते हैं कि न मातापिता को सम्मान दे पाते हैं न ही उन की जिम्मेदारी उठाने को तैयार होते हैं. क्या फायदा है इतने बड़ेबड़े स्कूलकालेजों में पढ़ा कर जहां के शिक्षक सिर्फ सबजैक्ट का ज्ञान देते हैं आचरण और संस्कार का नहीं.’’

‘‘ममा… आप को बुरा लगेगा पर आप हमेशा अपने संस्कारों और संस्कृति की दुहाई देती हैं और यह भूल जाती हैं कि समय में परिवर्तन के अनुसार इन में भी बदलाव स्वाभाविक है. आधुनिक युग में शिक्षा नौकरशाही प्राप्त करने को साधन मात्र रह गई है, जिसे प्राप्त करने के लिए आचरण चंद लाइनों में लिखी इबारत होती है. फिर आचरण का मूल्य ही कहां रह गया है?

शिक्षक भी क्या करें उन्हें सिर्फ लक्ष्यप्राप्ति का माध्यम मान लोग पैसों से तोलते हैं. जब मातापिता को बच्चे के आचरण से ज्यादा किताबी ज्ञान प्राप्त करने की चिंता रहती है, तो शिक्षक भी यही सोचते हैं कि भाड़ में जाएं संस्कार और संस्कृति. जिस के लिए वेतन मिलता है उसी पर ध्यान दो, क्योंकि अर्थ ही आज के समाज में लोगों का कद तय करता है. इसी सोच के कारण अर्थ के पीछे भागते लोगों के अंदर भोगविलासिता इतनी बढ़ गई है कि उन्हें उसूलों और मानवता के लिए आत्मबलिदान जैसी बातें मूर्खतापूर्ण और हास्यप्रद लगती हैं और करीबी रिश्ते व्यर्थ के मायाजाल लगते हैं, जो उन्हें मिली शिक्षा और संस्कार के हिसाब से सही हैं.

‘‘अगर आप अपने अंदर झांकिएगा तो आप को खुद अपनी बातों का खोखलापन नजर आएगा, क्योंकि पैसे और पावर के पीछे भागने की प्रेरणा सब से पहले उन्हें अपने मातापिता से ही मिलती है, जो अपने बच्चों को अच्छा व्यक्ति और नागरिक बनाने से ज्यादा इस बात को प्राथमिकता देते हैं कि उन के बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में उच्च प्रदर्शन करें. उन के नंबर हमेशा अपने सहपाठियों की तुलना में ज्यादा हों, यहां तक कि अपने बच्चों के अभ्युत्थान के लिए अपनी सामर्थ्य से ज्यादा संसाधन प्रयोग करते हैं, जिस का बोझ कहीं न कहीं बच्चों के दिलोदिमाग पर रहता है.

‘‘मातापिता की यही लालसा शिक्षा के रचनात्मक विकास के बदले तनाव, चिंता और आक्रोश का कारण बनती है और कभीकभी आत्महत्या का भी. ममा, क्या अब भी आप को लगता है कि सारा दोष इस नई पीढ़ी का ही है? अगर लड़कियां रिश्तों से ज्यादा अपने कैरियर को अहमियत दे रही हैं तो इस में उन की क्या गलती है? उन की यह सोच उन के अपने ही मातापिता और बदलते समय की देन है.’’

‘‘पुरुष तो वैसे भी भावनात्मक तौर पर इतने अहंवादी होते हैं कि अपने कैरियर को परिवार के लिए विराम देने की बात सोच भी नहीं सकते, तो लड़कियां ही सारे त्याग क्यों करें? यह आपसी टकराव सारे रिश्तों की धज्जियां उड़ा रहा है… इस स्थिति को आपसी समझदारी से ही सुलझाया जा सकता है, नई पीढ़ी को कोसने से नहीं.’’

‘‘चुप क्यों हो गई और बोलो. नैतिक मूल्यों को त्याग सिर्फ भौतिक साधनों से लोगों को सुखी बनाने की बातें करो. यही संस्कार मैं ने तुम्हें दिए हैं कि समाज और परिवार को त्याग, प्यार, ममता और मानवता के लिए कुछ कर गुजरने की भावना को भूल सिर्फ अपने लिए जीने की बातें करो जैसे मधुकर ने अपने सुखों के लिए अपनी वृद्ध मां को वृद्धाश्रम भेज दिया. मुझे पता है भविष्य में तुम भी मधुकर के नक्शेकदम पर चलोगी, क्योंकि मधुकर कभी तुम्हारा बैस्ट फ्रैंड हुआ करता था.’’

‘‘जहां तक मेरी बात है ममा वह तो बाद की बात है, अभी तो मेरी पढ़ाई भी पूरी नहीं हुई है. पर एक बात जरूर है कि राधा मौसी के वृद्धाश्रम जाने की बातें सुन मधुकर से आप को ढेर सारी शिकायतें हो गई हैं. पर जैसे आप राधा मौसी को समझती हैं मैं मधुकर को समझती हूं. सच कहूं तो राधा मौसी अपनी स्थिति के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं. कभी आप ने सोचा है संतान का कोई भी कर्म सफलता या विफलता सब कहीं न कहीं उस के मातापिता की सोच और परवरिश का परिणाम होता है? वह राधा मौसी ही थीं, जिन्हें कभी जनून था कि उन का बेटा हमेशा अव्वल आए. वह इतनी ऊंची उड़ान भरे कि कोई उस के बराबर न आने पाए. नातेरिश्तेदार सब कहें कि देखो यह राधा का बेटा है जिसे राधा ने अकेले पति के बिना भी कितने ऊंचे पद पर पहुंचा दिया, जहां विरले ही पहुंच पाते हैं.

‘‘आप को याद है ममा… याद कैसे नहीं होगा, राधा मौसी अपना हर फैसला तो आप की सलाह से ही लेती थीं. मधुकर की दादी यमुना देवी जीवन की अंतिम घडि़यां गिन रही थीं. उन के प्राण अपने बेटे की अंतिम निशानी मधुकर में अटके हुए थे. बारबार उसे बुलवाने का अनुरोध कर रही थीं. उस समय मधुकर दिल्ली में आईआईटी की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था. पर राधा मौसी ने उसे पटना बुलाना जरूरी नहीं समझा. उन का कहना था कि अगर वह फ्लाइट से भी आएगा तो भी 2 दिन बरबाद हो जाएंगे और फिर दादी को देख डिस्टर्ब हो जाएगा वह अलग. उन्होंने यमुना देवी के बीमार होने तक की सूचना मधुकर को नहीं दी, क्योंकि मधुकर भी अपनी दादी से बेहद प्यार करता था. यहां तक कि यमुना देवी का देहांत हो गया, तब भी मधुकर को सूचित नहीं किया.

‘‘मधुकर का जब आईआईटी में चयन हो गया और वह पटना आया तब उसे पता चला कि उस की दादी नहीं रहीं. वह देर तक फूटफूट कर रोता रहा, पर राधा मौसी अपनी गलती मानने के बदले अपने फैसले को सही बताती रहीं. ऐसा कर मधुकर के अंदर स्वार्थ का बीज तो खुद उन्होंने ही डाला. अब वह हर रिश्तेनाते और अपनी खुशी तक को भुला सिर्फ अपने कैरियर पर ध्यान दे रहा है, तो क्या गलत कर रहा है? मां का ही तो अरमान पूरा कर रहा है?

‘‘मधुकर राधा मौसी की कसौटी पर पूरी तरह खरा उतरा. उस ने अपनी मां की सभी इच्छाएं पूरी कीं. उस के बदले वह अपनी मां से सिर्फ इतना ही चाहता था कि जिस लड़की से वह प्यार करता है, उस के साथ राधा मौसी उस की शादी करवा दें.

‘‘उस की बात मानने के बदले राधा मौसी ने हंगामा बरपा दिया, क्योंकि उन्हें जनून था कि उन की बहू भी ऐसी हो, जो नौकरी के मामले में उन के बेटे से कतई उन्नीस न हो. मधुकर जिस से प्यार करता था वह लड़की अभी पढ़ ही रही थी. अपनी महत्त्वाकांक्षा के आगे उन्होंने मधुकर की एक नहीं सुनी. न ही उस की खुशियों का खयाल किया. उन्होंने साफसाफ कह दिया कि वह मखमल में टाट का पैबंद नहीं लगने देंगी. उन्होंने अपनी जान देने की धमकी दे मधुकर को फैसला मानने पर मजबूर कर दिया और उस की शादी अपनी पसंद की लड़की रश्मि से करवा दी.

‘‘अपनी सोच के अनुसार उन्होंने अपने बेटे के जीवन को एक नई दिशा दी, अपनी सारी इच्छाएं पूरी कीं पर अब हाल यह है कि बेटाबहू दोनों काम के बोझ तले दबे हैं. कभी मधुकर घर से महीने भर के लिए बाहर रहता है, तो कभी रश्मि, तो कभी दोनों ही. एकदूसरे के लिए भी दोनों न समय निकाल पा रहे हैं न ही परिवार बढ़ाने के बारे में सोच पा रहे हैं. फिर राधा मौसी के लिए वे कहां से समय निकालें? दोनों में से कोई भी अपनी तरक्की का मौका नहीं छोड़ना चाहता है. रश्मि वैसे अच्छी लड़की है पर अपने कैरियर से समझौता करने के लिए किसी भी शर्त पर तैयार नहीं है. यह सोच उस को अपनी मां से मिली है. वह अपने मातापिता की इकलौती संतान है. बचपन से ही उस में यह जनून इसलिए भरा गया था कि लोगों को दिखा सकें कि उन की बेटी किसी के लड़के से कम नहीं है.

‘‘दुनिया चाहे कितनी भी बदल जाए पर ममा किसी रिलेशनशिप में सब से बड़ी होती है आपसी अंडरस्टैंडिंग. अगर हम अपने नजरिए से सोचते हैं, तो वह अपने लिए सही हो सकता है पर दूसरों के लिए जरूरी नहीं कि सही हो. आप को अच्छा नहीं लगेगा पर राधा मौसी ने अपना हर फैसला खुशियों को केंद्र में रख कर लिया, जो उन के लिए जरूर सही था पर मधुकर के लिए नहीं. अपने फैसले का परिणाम वे खुद तो भोग ही रही हैं, कहीं न कहीं मधुकर भी अपने प्यार को खो देने का गम भुला नहीं पा रहा है.’’

नेहा की बातें सुन मैं हतप्रभ रह गई. वास्तव में हम अपने बच्चों में कैरियर को ले कर ऐसा जनून भर देते हैं कि पूरी उम्र उन की जिंदगी मशीन बन कर रह जाती है.

नेहा के अत्यधिक बोलने और आंखों में अस्पष्ट असंतोष और झिझक देख मेरे दिमाग में बिजली सी कौंध गई. मैं अपने को रोक नहीं सकी. बोली, ‘‘कहीं मधुकर तुम से तो प्यार नहीं करता था?’’

मेरी बात सुन वह पल भर को चौंकी, फिर अचानक उठ खड़ी हुई जैसे अपने मन की वेदना को संभाल नहीं पा रही हो और मेरे गले से आ लगी. उस की आंखों से आंसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा. आज पहली बार मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ.

पश्चिमी सभ्यता की चकाचौंध में हमारी आंखें इस कदर चौंधियां गई हैं कि हम समृद्धि और ऐशोआराम की चीजों को ही अपनी सच्ची खुशी समझने लगे हैं, हालांकि जल्द ही हमें इन से ऊब होने लगती है. अगर हम गहराई से देखें तो यही विलासिता आगे चल कर अकेलेपन और सामाजिक असुरक्षा का कारण बनती है. नई पीढ़ी के इस भटकाव का कारण कहीं न कहीं उस के मातापिता ही होते हैं. फिर मैं उस के बाल सहलाते हुए बेहद आत्मीयता से बोली, ‘‘मैं मानती हूं कि बड़ों की गलतियों की बहुत बड़ी सजा तुम दोनों को मिली, फिर भी अब तो यही कहूंगी कि अतीत को भुला आगे बढ़ने में ही सब की भलाई है. तुम्हारी मंजिल कभी मधुकर था, अब नहीं है तो न सही, मंजिलें और भी हैं. अब से तुम्हारी मां तुम्हारे हर कदम में तुम्हारे साथ है.’’

Moral Story

Bridal Lingerie: दुल्हन की लौंजरी भी कुछ खास होनी चाहिए

Bridal Lingerie: शादी की तैयारी के समय दुलहन अपने गहनों और ड्रैसेज पर सब से अधिक ध्यान देती है. एक बेहतरीन फिटिंग वाली लौंजरी आप को आत्मविश्वास से भर देती है और आप सैक्सी महसूस करने लगती हैं. लेकिन कई बार उन की गलत ब्रा वैडिंग आउटफिट में उन की शेप को पूरी तरह बिगाड़ कर रख सकती है, इसलिए डिजाइनर ड्रैस की जितनी जरूरत होती है, उतनी ही जरूरी है सही ब्रा.

आइए, जानें होने वाली दुलहन के पास किस तरह की लौंजरी होनी चाहिए :

निप्पल कवर या पेस्टी खरीदें

अगर आप स्लीवलैस या बैकलेस आउटफिट पहनती हैं, तो अकसर उस में से कई बार ब्रा के स्टेप नजर आते हैं. इस से ड्रैस लुक बहुत खराब हो जाता है. आप चाहती हैं कि यह आप के साथ न हो तो इस के लिए निप्पल कवर और पेस्टी बिलकुल सही है.

गहरी वीनेक पोशाक पहन रही हों तो भी निप्पल कवर और पेस्टीज आप के लिए बैस्ट रहेंगे. आप बस अपने निपल्स को कवर करने के लिए उन पर सिलिकन निप्पल कवर या पेस्टी चिपका सकते हैं. जब आप डीप वीनेक आउटफिट पहन रही हों तो आप अपने ब्रैस्ट को लिफ्ट करने के लिए बौडी टेप का भी उपयोग कर सकती हैं.

ब्रालेट भी है गुड औप्शन

आप ने कियारा आडवाणी को ऐथनिक वियर में देखा होगा. वे अकसर लहंगे और साड़ी के साथ ब्रालेट पहनती हैं. दरअसल, ब्रा की तुलना में ब्रालेट आमतौर पर ज्यादा आरामदायक होती है क्योंकि इस में अकसर अंडरवायर या भारी पैडिंग नहीं होती. नई दुलहन के लिए आराम बहुत महत्त्वपूर्ण है. ब्रालेट कई खूबसूरत और फैशनेबल डिजाइन, जैसेकि लेस, जाली और जटिल स्ट्रैप्स में आती हैं. ये आधुनिक और रोमांटिक दोनों तरह का लुक दे सकती हैं. इन्हें न केवल बैडरूम में पहना जा सकता है, बल्कि कुछ डिजाइन को आप हनीमून के दौरान या बाद में एक स्टाइलिश टौप के नीचे भी पहन सकती हैं.

अगर आप ब्रालेट लेने का सोच रही हैं तो आप लेस, साटन या शीयर फैब्रिक में और सफेद, शैंपेन या हलके पेस्टल कलर में ले सकती हैं.

साड़ी के लिए पैडेड ब्रा लें

यदि आप साड़ी पहन रही हैं, तो एक परफैक्ट लुक या आप की फिगर नजर आए तो इस के लिए आप ब्रा में पैडेड पहनें. यह आप को बेहतरीन लुक देगी. इस को पहन कर आप पूरा दिन कंफर्टेबल महसूस करेंगी. आप यदि शिफान, लेस, कौटन या सिल्क ब्लाउज पहन रही हैं तो इस के लिए पेडेड ब्रा सब से बेहतर औप्शन है. यह कपड़ों के नीचे एक सीमलेस और चिकना लुक देती है, जिस से निप्पल का निशान कपड़ों से नहीं दिखता.

कई पैडेड ब्रा (जैसे पुशअप ब्रा) में नीचे की तरफ अतिरिक्त पैडिंग होती है, जो स्तनों को हलका लिफ्ट देती है और सैक्सी क्लीवेज बनाने में मदद करती है.

टीशर्ट ब्रा

यह ब्रा स्पैशली टीशर्ट के साथ पहनने के लिए काफी अच्छी रहती है क्योंकि इस में लगे कप्स सौफ्ट और स्मूद होते हैं. यह काफी डीपकट होते हैं इसलिए ब्लाउज के साथ भी चल जाते हैं. इन्हें आप इंडियन और वैस्टर्न दोनों तरह के कपड़ों के साथ पहन सकती हैं.

इंडोवैस्टर्न ड्रैस के लिए कैसी ब्रा लें

नए शादीशुदा लड़कियों को इंडो वैस्टर्न ड्रैस काफी पसंद आती हैं क्योंकि इन्हें पहनना काफी आसान होता है. लेकिन इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि इस ड्रैस के साथ आप को कैसी ब्रा पहननी चाहिए. वैसे तो इंडोवैस्टर्न में अधिकतर श्रग या फिर ऊपर लौंग जैकेट होती है. ऐसे में आप अपनी पसंद की ट्रेडिंग ब्रा खरीद सकती हैं.

पेडेड ब्रा हो या फिर फैंसी ब्रा, आप कुछ डिफरैंट लुक में इन्हे खरीदें. इस के लिए प्लंज ब्रा अच्छा औप्शन है. इस ब्रा का सेंटर पैनल (बीच का हिस्सा) बहुत नीचे होता है, जो गहरी वी-नेकलाइन के नीचे पूरी तरह छिप जाता है, फिर भी अच्छा लिफ्ट और क्लीवेज देता है.

इस के आलावा स्ट्रैपलेस ब्रा या मल्टीवे ब्रा भी ठीक रहता है क्योंकि इंडोवैस्टर्न में अकसर औफ शोल्डर टौप या चौड़ी नेकलाइन होती है. स्ट्रैपलेस ब्रा पट्टियों को दिखने से रोकती है. मल्टीवे ब्रा की पट्टियों को हाल्टर नेक या क्रौस बैक स्टाइल में ऐडजस्ट किया जा सकता है.

स्टिकऔन ब्रा/सिलिकन ब्रा या ब्रा टेप भी सही रहती है क्योंकि इंडोवैस्टर्न गाउन और ब्लाउज में अकसर डीप कट बैक होता है. ये विकल्प आप को पूरा सपोर्ट देते हैं और बैक पूरी तरह से खाली रहती है.

कौर्सेट ब्रा

कौर्सेट न केवल आप को एक परफैक्ट शेप देती है बल्कि यह आप को रौयल लुक भी देती है. इसे आप शादी के जोड़े के नीचे पहन सकती हैं. यह आप के पेट और कमर को टाइट कर फिगर और लुक को सुंदर बनाती है.

ट्यूब ब्रा

सब से ज्यादा मददगार हनीमून वार्डरोब में यही ब्रा हो सकती है. औफ शोल्डर ड्रैस, टौप यहां तक कि साड़ियों के लिए भी ये काफी अच्छे हो सकते हैं. इन्हें हाल्टरनेक, क्रिसक्रौस ब्रा की तरह भी पहना जा सकता है, जो आरामदायक भी रहेगा और साथ ही साथ आप के स्टाइलिश कपड़ों में कोई दिक्कत नहीं करेगा. यह काफी फैशनेबल होगा.

टमी टाइट शेपवियर

अगर आप का टमी निकला हुआ है और आप इस वजह से कई ड्रैसेज पहनने से कतराती हैं तो यह शेपवियर आप के पास जरूर होना चाहिए. यह एक तरह की चौड़ी बेल्ट होती है जो केवल कमर और पेट के हिस्से को टारगेट करती है. यह मजबूत कंप्रेशन देती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यह कमर को टाइट कर पेट को अंदर ले जाता है और एक अच्छी शेप देता है.

Bridal Lingerie

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