Family Story : चौदह इंच की लंबी दूरी

Family Story : रात के 11 बज रहे थे. बाहर बारिश हो रही थी. अचला अपने बैडरूम की खुली खिड़की से बाहर का दृश्य देख रही थी, आंसू चुपचाप उस के गालों को भिगोने लगे थे. दिल में तूफान सा मचा था. वह बहुत उदास थी. कहां वह ऐसे हसीन मौसम का आनंद मनीष की बांहों में खो कर लेना चाहती थी और कहां अब अकेली उदास लेटी थी. उस ने 2 घंटे से लैपटौप पर काम करते मनीष को देखा, तो खुद को रोक नहीं पाई. कहने लगी, ‘‘मनीष, क्या हो रहा है यह… कितनी देर काम करते रहोगे?’’

‘‘तुम सो जाओ, मुझे नींद नहीं आ रही.’’

अचला का मन हुआ कि कहे नींद नहीं आ रही तो यह समय पत्नी के साथ भी तो बिता सकते हो, लेकिन वह कह नहीं पाई. यह एक दिन की तो बात थी नहीं. रोज का काम था. महीने में 10 दिन मनीष टूअर पर रहता था, बाकी समय औफिस या घर पर लैपटौप अथवा अपने फोन में व्यस्त रहता था.अचला को अपना गला सूखता सा लगा तो पानी लेने किचन की तरफ चली गई. सासससुर प्रकाश और राधा के कमरे की लाइट बंद थी. बच्चों के रूम में जा कर देखा तो तन्मय और तन्वी भी सो चुकी थे. घर में बिलकुल सन्नाटा था.वह बेचैन सी पानी पी कर अपने बैड पर आ कर लेट गई. सोचने लगी कि प्यार का खुमार कुछ सालों बाद इतना उतर जाता है? रोमांस का सपना दम क्यों तोड़ देता है? रोजरोज की घिसीपिटी दिनचर्या के बोझ तले प्यार कब और क्यों कुचल जाता है पता भी नहीं चलता. प्यार रहता तो है पर उस पर न जाने कैसे कुहरे की चादर पड़ जाती है कि पुराने दिन सपने से लगते हैं.

लोगों के सामने जब मनीष जोश से कहता कि मुझे तो घर की, मांपिताजी की, बच्चों की पढ़ाई की कोई चिंता नहीं रहती, अचला सब मैनेज कर लेती है, तो अचला को कुछ चुभता. सोचती बस, मनीष को अपनी पत्नी के प्रति अपना कोई फर्ज महसूस नहीं होता. आज वह बहुत अकेलापन महसूस कर रही थी. उस से रहा नहीं गया तो उठ बैठी. फिर कहने लगी, ‘‘मनीष, क्या हम ऐसे ही बंधेबंधाए रूटीन में ही जीते रहेंगे? तुम्हें नहीं लगता कि हम कुछ बेहतरीन पल खोते जा रहे हैं, जो हमें इस जीवन में फिर नहीं मिलेंगे?’’

मनीष ने लैपटौप से नजरें हटाए बिना ही कहा, ‘‘अचला, मैं आज जिस पोजीशन पर हूं उसी से घर में हर सुखसुविधा है… तुम्हें किसी चीज की कोई कमी नहीं है, फिर तुम क्यों उदास रहती हो?’’

‘‘पर मुझे बस तुम्हारा साथ और थोड़ा समय चाहिए.’’

‘‘तो मैं कहां भागा जा रहा हूं. अच्छा, जरा एक जरूरी मेल भेजनी है, बाद में बात करता हूं.’’

फिर मनीष कब बैड पर आया, अचला की उदास आंखें कब नींद के आगोश में चली गईं, अचला को कुछ पता नहीं चला. काफी दिनों से प्रकाश और राधा उन दोनों के बीच एक सन्नाटा सा महसूस कर रहे थे, कहां इस उम्र में भी दोनों के पास बातों का भंडार था कहां उन के आधुनिक बेटाबहू नीरस सा जीवन जी रहे थे. राधा देख रही थीं कि अचला मनीष के साथ समय बिताने की चाह में उस के आगेपीछे घूमती है, लेकिन वह अपनी व्यस्तता में हद से ज्यादा डूबा था. यहां तक कि खाना खाते हुए भी फोन पर बात करता रहता. उसे पता भी नहीं चलता था कि उस ने क्या खाया. अचला का उतरा चेहरा प्रकाश और राधा को तकलीफ पहुंचाता. बच्चे अपनी पढ़ाई, टीवी में व्यस्त रहते. उन से बात कर के भी अचला के चेहरे पर रौनक नहीं लौटती.

एक दिन प्रकाश और राधा ने मनीष को अपने पास बुलाया. प्रकाश ने कहा, ‘‘काम करना अच्छी बात है, लेकिन उस में इतना डूब जाना कि पत्नी को भी समय न दे पाओ, यह ठीक नहीं है.’’

‘‘पापा, क्या कह रहे हैं आप? समय ही कहां है मेरे पास? देखते नहीं कितना काम रहता है मेरे पास?’’

‘‘पढ़ीलिखी होने के बाद भी अचला ने घरगृहस्थी को ही प्राथमिकता दी. कहीं नौकरी करने की नहीं सोची. दिनरात सब का ध्यान रखती है, कम से कम उस का ध्यान रखना तुम्हारा फर्ज है बेटा,’’ मां राधा बोलीं.

‘‘मां, उस ने आप से कुछ कहा है? मुझे नहीं लगता कि वह मेरी जिम्मेदारियां समझती है?’’

‘‘उस ने कभी कुछ नहीं कहा, लेकिन हमें तो दिखती है उस की उदासी. मनीष, संसार में सब से लंबी दूरी होती है सिर्फ 14 इंच की, दिमाग से दिल तक, इसे तय करने में काफी उम्र निकल जाती है. कभीकभी यह दूरी इंसान का बहुत कुछ छीन लेती है और उसे पता भी नहीं चल पाता,’’ राधा ने गंभीर स्वर में कहा तो मनीष बिना कुछ कहे टाइम देखता हुआ जाने के लिए खड़ा हो गया.

प्रकाश ने कहा, ‘‘मुझे इस पर किसी बात का असर होता नहीं दिख रहा है.’’

राधा ने कहा, ‘‘आज अचला से भी बात करूंगी. अभी उसे भी बुलाती हूं.’’

उन की आवाज सुन कर अचला आई तो राधा ने स्नेह भरे स्वर में कहा, ‘‘बेटा, देख रही हूं आजकल कुछ चुप सी रहती हो. भावुक होने से काम नहीं चलता बेटा. मैं तुम्हारी उदासी का कारण समझ सकती हूं.’’

प्रकाश ने भी बातचीत में हिस्सा लेते हुए कहा, ‘‘स्थान, काल, पात्र के अनुसार इंसान को खुद को उस में ढाल लेना चाहिए. तुम भी कोशिश करो, सुखी रहोगी.’’

अचला ने मुसकरा कर हां में सिर हिला दिया. सासससुर उसे बहुत प्यार करते हैं, यह वह जानती थी. अचला अकेले बैठी सोचने लगी. मांपिताजी ठीक ही तो कह रहे हैं, मैं ही क्यों हर समय रोनी सूरत लिए मनीष के साथ समय बिताने के लिए उन के आगेपीछे घूमती रहूं? रोजरोज पासपड़ोस में निंदापुराण सुनने में मन भी नहीं लगता, लाइब्रेरी की सदस्यता ले लेती हूं. कुछ अच्छी पत्रिकाएं पढ़ा करूंगी. कंप्यूटर सीखा तो है पर उस से ज्यादा अपनों के साथ बात करना अच्छा लगता है. कहां दिल लगाऊं? पता नहीं क्यों आज एक नाम अचानक उस के जेहन में कौंध गया, विकास. कहां होगा, कैसा होगा? वह उस अध्याय को शादी से पहले समाप्त समझ साजन के घर आ गई थी. लेकिन आज उसी बंद अध्याय के पन्ने फिर से खुलने के लिए उस के सामने फड़फड़ाने लगे.

विकास उम्र का वह जादू था जिसे कोई चाह कर भी वश में नहीं कर सकता. यह भी सच था मनीष से विवाह के बाद उस ने विकास को मन से पूरी तरह निकाल दिया था. विकास से उस का विवाह जातिधर्म अलगअलग होने के कारण दोनों के मातापिता को मंजूर नहीं था. फिर मातापिता के सामने जिद करने की दोनों की हिम्मत भी नहीं हुई थी. दोनों ने चुपचाप अपनेअपने मातापिता की मरजी के आगे सिर झुका दिया था. आज जीवन के इस मोड़ पर नीरस जीवन के अकेलेपन से घबरा कर अचला विकास को ढूंढ़ने लगी. अचला ने कंप्यूटर औन किया, फेसबुक पर अकाउंट था ही उस का. सोचा उसे सर्च करे, क्या पता वह भी फेसबुक पर हो. नाम टाइप करते ही असंख्य विकास दिखने लगे, लेकिन अचानक एक फोटो पर नजर टिक गई. यह वही तो था. फिर उस ने उस का प्रोफाइल चैक किया, शहर, कालेज, जन्मतिथि सब वही. उस ने फौरन मैसेज बौक्स में मैसेज छोड़ा, ‘‘अचला याद है?’’

3 दिन बाद मैसेज आया, ‘‘हां, कभी भूला ही नहीं.’’

मैसेज आते ही अचला ने अपना मोबाइल नंबर भेज दिया. कुछ देर बाद ही वह औनलाइन दिखा और कुछ पलों में ही दोनों भूल गए कि उन का जीवन 15 साल आगे बढ़ चुका है. अचला भी मां थी अब तो विकास भी पिता था. अचला मुंबई में थी, तो विकास इस समय लखनऊ में था. अब दोनों अकसर चैट करते. कितने नएपुराने किस्से शुरू हो गए. बातें थीं कि खत्म ही नहीं होती थीं. पुरानी यादों का अंतहीन सिलसिला. प्रकाश और राधा चूंकि घर पर ही रहते थे, इसलिए बहू में आया यह परिवर्तन उन्होंने साफसाफ नोट किया. अचला के बुझे चेहरे पर रौनक रहने लगी थी. हंसतीमुसकराती घर के काम जल्दीजल्दी निबटा कर वह अपने बैडरूम में रखे कंप्यूटर पर बैठ जाती. कई बार वह विकास को अपने दिमाग से झटकने की कोशिश तो करती पर भूलाबिसरा अतीत जब पुनर्जीवित हो कर साकार सामने आ खड़ा हुआ तो उस से पीछा छुड़़ा पाना उतना आसान थोड़े ही होता है.

अब मनीष रात को लैपटौप पर होता, तो अचला फेसबुक पर. 1-2 बार मनीष ने पूछा, ‘‘तुम क्या ले कर बैठने लगी?’’

‘‘चैट कर रही हूं.’’

‘‘अच्छा? किस के साथ?’’

‘‘कालेज का दोस्त औनलाइन है.’’

मनीष चौंका पर चुप रहा. अचला और विकास अकसर एकदूसरे के संपर्क में रहते, पुरानी यादें ताजा हो चुकी थीं. दोनों अपनेअपने परिवार के बारे में भी बात करते. फोन पर भी मैसेज चलते रहते. एक दिन मनीष ने सुबह नाश्ते के समय अचला के फोन पर मैसेज आने की आवाज सुनी तो पूछा, ‘‘सुबहसुबह किस का मैसेज आया है?’’

अचला ने कहा, ‘‘फ्रैंड का?’’

‘‘कौन सी फ्रैंड?’’

‘‘आप को मेरी फ्रैंड्स में रुचि लेने का टाइम कब से मिलने लगा?’’

अचला मैसेज चैक कर रही थी, पढ़ कर अचला के चेहरे पर मुसकान फैल गई. विकास ने लिखा था, ‘‘याद है एक दिन मेरी मेज पर बैठेबैठे मेरी कौपी में तुम ने छोटे से एक पौधे का एक स्कैच बनाया था. आ कर देखो उस पौधे पर फूल आया है.’’ अचला की भेदभरी मीठी मुसकान सब ने नोट की. मनीष के चेहरे का रंग उड़ गया. वह चुप रहा. प्रकाश और राधा भी कुछ नहीं बोले.

तन्मय ने कहा, ‘‘मम्मी, आजकल आप बहुत बिजी दिखती हैं फोन पर. आप ने भी हमारी तरह खूब फ्रैंड्स बना लीं न?’’

तन्वी ने भी कहा, ‘‘अच्छा है मम्मी, कभी कंप्यूटर पर, कभी फोन पर, आप का अच्छा टाइमपास होता है न अब?’’

‘‘क्या करती बेटा, कहीं तो बिजी रहना ही चाहिए वरना बेकार तुम लोगों को डिस्टर्ब करती रहती थी.’’

मनीष ने उस के व्यंग्य को साफसाफ महसूस किया. प्रकाश और राधा ने अकेले में स्थिति की गंभीरता पर बात की. प्रकाश ने कहा, ‘‘राधा, मुझे लग रहा है हमारी बहू किसी से…’’

बात बीच में ही काट दी राधा ने, ‘‘मुझे अपनी बहू पर पूरा भरोसा है, मनीष को हम समझासमझा कर थक गए कि अचला और परिवार के लिए समय निकाले, पर उस के कान पर तो जूं तक नहीं रेंगती. पत्नी के प्रति उस की यह लापरवाही मुझे सहन नहीं होती. अब अचला अपने किसी दोस्त से बात करती है तो करने दो, मनीष का चेहरा देखा मैं ने आज, बहुत जल्दी उसे अपनी गलती समझ आने वाली है.’’

‘‘ठीक कहती हो राधा, मनीष बस काम को ही प्राथमिकता देने में लगा रहता है. मानता हूं वह भी जरूरी है पर उस के साथसाथ उसे अपने पति होने के दायित्व भी याद रखना चाहिए.’’ अगले कुछ दिन मनीष ने साफसाफ नोट किया कि अब अचला ने उसे कुछ कहना छोड़ दिया है. चुपचाप उस के काम करती. वह कुछ पूछता तो जवाब दे देती वरना अपनी ही धुन में मगन रहती. वह उस के औफिस जाने के बाद कंप्यूटर पर ही बैठी रहती है, यह वह घर के सदस्यों से जान ही चुका था. उस के सामने वह अपने फोन में व्यस्त रहती. अचला का फोन चैक करने की उस की बहुत इच्छा होती, लेकिन उस की हिम्मत न होती, क्योंकि घर में कोई किसी का फोन नहीं छूता था. यह घर वालों का एक नियम था.

एक दिन रात के 9 बज रहे थे. अचला विकास से चैटिंग करने की सोच ही रही थी कि अपना जरूरी काम जल्दी से निबटा कर और अचला का ध्यान कंप्यूटर और फोन से हटाने के लिए विकास ने अपना लैपटौप जल्दी से बंद कर दिया.

अचला ने चौंक कर पूछा, ‘‘क्या हुआ?’’

‘‘मूड नहीं हो रहा काम करने का.’’

‘‘फिर क्या करोगे?’’

मनीष ने उसे बांहों में कस लिया. शरारत से हंसते हुए कहा, ‘‘बहुत कुछ है करने के लिए,’’  और फिर रूठी सी अचला पर उस ने प्रेमवर्षा कर दी.

अचला हैरान सी उस बारिश में भीगती रही. उस में भीग कर उस का तनमन खिल उठा. अगले कई दिनों तक मनीष ने अचला को भरपूर प्यार दिया. उसे बाहर डिनर पर ले गया, औफिस से कई बार उस का हालचाल पूछ कर उसे छेड़ता, जिसे याद कर अचला अकेले में भी हंस देती. पतिपत्नी की छेड़छाड़ क्या होती है, यह बात तो अचला भूल ही गई थी. उस ने जैसे मनीष का कोई नया रूप देखा था. अब वह हैरान थी, उसे एक बार भी विकास का खयाल नहीं आया था. फोन के मैसेज पढ़ने में भी उस की कोई रुचि नहीं होती थी. मनीष को अपनी गलती समझ आ गई थी और उस ने उसे सुधार भी लिया था. उस ने अचला से प्यार भरे शब्दों में कहा भी था, ‘‘मैं तुम्हारा कुसूरवार हूं, मैं ने तुम्हारे साथ ज्यादती की है, तुम्हारा दिल दुखाने का अपराधी हूं मैं.’’ बदले में अचला उस के सीने से लग गई थी. उस की सारी शिकायतें दूर हो चुकी थीं. उसे भी लग रहा था विकास से संपर्क रख कर वह भी एक अपराधबोध में जी रही थी.

14 इंच की दूरी को मनीष ने अपने प्यार और समझदारी से खत्म कर दिया था. अब अचला को कहीं भटकने की जरूरत नहीं थी. एक दिन अचला ने अचानक अपने फोन से विकास का नंबर डिलीट कर दिया और फेसबुक से भी उसे अनफ्रैंड कर दिया.

Father’s Day 2025 : अब मैं नहीं आऊंगी पापा

Father’s Day 2025 : मैं अपने जीवन में जुड़े नए अध्याय की समीक्षा कर रही थी, जिसे प्रत्यक्ष रूप देने के लिए मैं दिल्ली से मुंबई की यात्रा कर रही थी और इस नए अध्याय के बारे में सोच कर अत्यधिक रोमांचित हो रही थी. दूसरी ओर जीवन की दुखद यादें मेरे दिमाग में तांडव करने लगी थीं.

उफ, मुझे अपने पिता का अहंकारी रौद्र रूप याद आने लगा, स्त्री के किसी भी रूप के लिए उन के मन में सम्मान नहीं था. मुझे पढ़ायालिखाया, लेकिन अपने दिमाग का इस्तेमाल कभी नहीं करने दिया. पढ़ाई के अलावा किसी भी ऐक्टिविटी में मुझे हिस्सा लेने की सख्त मनाही थी. घड़ी की सुई की तरह कालेज से घर और घर से कालेज जाने की ही इजाजत थी.

नीरस जीवन के चलते मेरा मन कई बार कहता कि क्या पैदा करने से बच्चे अपने मातापिता की संपत्ति बन जाते हैं कि जैसे चाहा वैसा उन के साथ व्यवहार करने का उन्हें अधिकार मिल जाता है? लेकिन उन के सामने बोलने की कभी हिम्मत नहीं हुई.

मां भी पति की परंपरा का पालन करते हुए सहमत न होते हुए भी उन की हां में हां मिलाती थीं. ग्रेजुएशन करते ही उन्होंने मेरे विवाह के लिए लड़का ढूंढ़ना शुरू कर दिया था. लेकिन पोस्ट ग्रेजुएशन करने के बाद ही मेरा विवाह विवेक से हो पाया. मेरी इच्छा या अनिच्छा का तो सवाल ही नहीं उठता था. गाय की तरह एक खूंटे से खोल कर मुझे दूसरे खूंटे से बांध दिया गया.

मेरे सासससुर आधुनिक विचारधारा के तथा समझदार थे. विवेक उन का इकलौता बेटा था. वह अच्छे व्यक्तित्व का स्वामी तो था ही, पढ़ालिखा, कमाता भी अच्छा था और मिलनसार स्वभाव का था. इकलौती बहू होने के चलते सासससुर ने मुझे भरपूर प्यार दिया. बहुत जल्दी मैं सब से घुलमिल गई. मेरे मायके में पापा की तानाशाही के कारण दमघोंटू माहौल के उलट यहां हरेक के हक का आदर किया जाता था, जिस से पहली बार मुझे पहचान मिली, तो मुझे अपनेआप पर गर्व होने लगा था.

विवाह के बाद कई बार पापा का, पगफेरे की रस्म के लिए, मेरे ससुर के पास मुझे बुलाने के लिए फोन आया. लेकिन मेरे अंदर मायके जाने की कोई उत्सुकता न देख कर उन्होंने कोई न कोई बहाना बना कर उन को टाल दिया. उन के इस तरह के व्यवहार से पापा के अहं को बहुत ठेस पहुंची. सहसा एक दिन वे खुद ही मुझे लेने पहुंच गए और मेरे ससुर से नाराजगी जताते हुए बोले, ‘मैं ने बेटी का विवाह किया है, उस को बेचा नहीं है, क्या मुझे अपनी बेटी को बुलाने का हक नहीं है?’

‘अरे, नहीं समधी साहब, अभी शादी हुई है, दोनों बच्चे आपस में एकदूसरे को समझ लें, यह भी तो जरूरी है. अब हमारा जमाना तो है नहीं…’

‘परंपराओं के मामले में मैं अभी भी पुराने खयालों का हूं,’ पापा ने उन की बात बीच में ही काट कर बोला तो सभी के चेहरे उतर गए.

मुझे पापा के कारण की तह तक गए बिना इस तरह बोलना बिलकुल अच्छा नहीं लगा, लेकिन मैं मूकदर्शक बनी रहने के लिए मजबूर थी. उन के साथ मायके आने के बाद भी उन से मैं कुछ नहीं कह पाई, लेकिन जितने दिन मैं वहां रही, उन के साथ नाराजगी के कारण मेरा उन से अनबोला ही रहा.

परंपरानुसार विवेक मुझे दिल्ली लेने आए, तो पापा ने उन से उन की कमाई और उन के परिवार के बारे में कई सवालजवाब किए. विवेक को अपने परिवार के मामले में पापा का दखल देना बिलकुल नहीं सुहाया. इस से उन के अहं को बहुत चोट पहुंची. पापा से तो उन्होंने कुछ नहीं कहा, लेकिन मुझे सबकुछ बता दिया. मुझे पापा पर बहुत गुस्सा आया कि वे बात करते समय यह भी नहीं सोचते कि कब, किस से, क्या कहना है.

मैं ने जब पापा से इस बारे में चर्चा की तो वे मुझ पर ही बरस पड़े कि ऐसा उन्होंने कुछ नहीं कहा, जिस से विवेक को बुरा लगे. बात बहुत छोटी सी थी, लेकिन इस घटना के बाद दोनों परिवारों के अहं टकराने लगे. उस के बाद, पापा एक बार मुझे मेरी ससुराल से लेने आए, तो विवेक ने उन से बात नहीं की. पापा को बहुत अपमान महसूस हुआ. जब ससुराल लौटने का वक्त आया तो विवेक ने फोन पर मुझ से कहा कि या तो मैं अकेली आ जाऊं वरना पापा ही छोड़ने आएं.

पापा ने साफ मना कर दिया कि वे छोड़ने नहीं जाएंगे. मैं ने हालत की नजाकत को देखते हुए, बात को तूल न देने के लिए पापा से बहुत कहा कि समय बहुत बदल गया है, मैं पढ़ीलिखी हूं, मुझे छोड़ने या लेने आने की किसी को जरूरत ही क्या है? मुझे अकेले जाने दें. मां ने भी उन्हें समझाया कि उन का इस तरह अपनी बात पर अड़ना रिश्ते के लिए नुकसानदेह होगा. लेकिन वे टस से मस नहीं हुए. मेरे ज्यादा जिद करने पर वे अपनी इज्जत की दुहाई देते हुए बोले, ‘तुम्हें मेरे मानसम्मान की बिलकुल चिंता नहीं है.’

मैं अपने पति को भी जानती थी कि जो वे सोच लेते हैं, कर के छोड़ते हैं. न विवेक लेने आए, न मैं गई. कई बार फोन से बात करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने बात नहीं की.

पापा के अहंकार के कारण मेरा जीवन त्रिशंकु बन कर रह गया. इन हालात को न सह सकने के कारण मां अवसाद में चली गईं और अचानक एक दिन उन की हृदयाघात से मृत्यु हो गई. इस दुखद घटना के बारे में भी पापा ने मेरी ससुराल वालों को सूचित नहीं किया तो मेरा मन उन के लिए वितृष्णा से भर उठा. इन सारी परिस्थितियों के जिम्मेदार मेरे पापा ही तो थे.

मां की मृत्यु की खबर सुन कर आए हुए सभी मेहमानों के वापस जाते ही मैं ने गुस्से के साथ पापा से कहा, ‘क्यों हो गई तसल्ली, अभी मन नहीं भरा हो तो मेरा भी गला घोंट दीजिए. आप तो बहुत आदर्श की बातें करते हैं न, तो आप को पता होना चाहिए कि हमारी परंपरानुसार दामाद को और उस के परिजनों को बहुत आदर दिया जाता है और बेटी का कन्यादान करने के बाद उस के मातापिता से ज्यादा उस के पति और ससुराल वालों का हक रहता है. जिस घर में बेटी की डोली जाती है, उसी घर से अर्थी भी उठती है. आप ने अपने ईगो के कारण बेटी का ससुराल से रिश्ता तुड़वा कर कौन सा आदर्श निभाया है. मेरी सोच से तो परे की बात है, लेकिन मैं अब इन बंधनों से मुक्त हो कर दिखाऊंगी. मेरा विवाह हो चुका है, इसलिए मेरी ससुराल ही अब मेरा घर है. मैं जा रही हूं अपने पति के पास. अब आप रहिए अपने अहंकार के साथ इस घर में अकेले. अब मैं यहां कभी नहीं आऊंगी, पापा.’

इतना कह कर, पापा की प्रतिक्रिया देखे बिना ही, मैं घर से निकल आई और मेरे कदम बढ़ चले उस ओर जहां मेरा ठौर था और वही थी मेरी आखिरी मंजिल.

Father’s Day 2025 : डियर पापा- क्यों श्रेया अपने पिता को माफ नही कर पाई?

Father’s Day 2025  : शाम के 7 बज चुके थे. सुजौय किसी भी वक्त औफिस से घर आते ही होंगे. मैं ने जल्दी से चूल्हे पर चाय चढ़ाई और दरवाजे की घंटी बजने का इंतजार करने लगी.  ज्यों ही घंटी की आवाज घर में गूंजी मेरे दोनों नन्हे शैतान श्यामली और श्रेयस उछलतेकूदते अपने कमरे से बाहर आ गए और दरवाजे की कुंडी खोलते ही पापापापा चिल्लाते हुए सुजौय की टांगों से लिपट गए.  सुजौय ने मुसकरा कर अपना ब्रीफकेस मुझे थमा दिया और दोनों बच्चों को बांहों में भर कर भीतर आ गए. तीनों के कहकहे सुन कर दिल को सुकून सा मिल रहा था. सुजौय को चाय दे कर मैं भी वहीं उन तीनों के पास बैठ गई. दोनों बच्चे बड़े प्यार से अपने पापा को दिन भर की शरारतें और किस्से सुना रहे थे. सुजौय भी बड़े गर्व से चाय पीते हुए उन दोनों की बातें सुन रहे थे. अपने पापा का पूरा ध्यान खुद पर पा कर बच्चों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था.

‘‘पापा, मैं और श्रेयस एक बहुत सुंदर ड्राइंग बना रहे हैं. उसे पूरा कर के आप को दिखाते हैं,’’ कह कर श्यामली ने अपने भाई का हाथ पकड़ा और दोनों भाग कर अपने कमरे में चले गए.

‘‘क्या सोच रही हो मैडम?’’

‘‘कुछ नहीं. आप हाथमुंह धो कर फ्रैश हो जाएं. तब तक मैं खाना गरम कर लेती हूं,’’ सुजौय के टोकने पर मैं ने मुसकरा कर जवाब दिया और फिर उठ कर रसोई की तरफ चल दी.

खाने की मेज पर भी दोनों बच्चे चहकते हुए अपने पापा को न जाने कौनकौन से किस्से सुना रहे थे. खाने के बाद कुछ देर तक सुजौय और मेरे साथ खेल कर बच्चे थक कर सो गए. सारा काम निबटा कपड़े बदलने के बाद जब मैं कमरे में पहुंची तो सुजौय पहले से ही पलंग पर लेटे हुए एकटक छत को निहार रहे थे. बत्ती बुझा कर मैं भी पलंग पर जा कर लेट गई और आंखें बंद कर के सोने की कोशिश करने लगी.

थोड़ी देर बाद सुजौय ने धीमे स्वर में पूछा, ‘‘श्रेया, नींद नहीं आ रही है क्या?’’

‘‘नहीं,’’ मैं ने गहरी सांस भर कर छोड़ते हुए जवाब दिया.

‘‘कोई टैंशन है?’’

‘‘नहीं?’’

‘‘श्यामली बता रही थी आज उस की नानी का फोन आया था.’’

‘‘क्या कहा मां ने? कैसी हैं वे?’’

‘‘ठीक हैं. हम सब का कुशलक्षेम पूछ  रही थीं.’’

‘‘और साकेत कैसा है? उस की परीक्षा कैसी हुई?’’

‘‘वह भी ठीक है. अच्छी हुई.’’

‘‘सिर्फ इतनी ही बात हुई?’’

‘‘हां.’’

‘‘तो फिर इतनी खोई हुई, उदास सी क्यों हो?’’

मेरे कोई जवाब न देने पर सुजौय ने मुझे आगोश में भर लिया और फिर मेरा सिर सहलाने लगे. अचानक हुई प्रेम और अपनेपन की अनुभूति से मेरी आंखों से आंसू बह निकले. मैं कस कर सुजौय से लिपट कर फूटफूट कर रोने लगी. सुजौय ने मुझे जी भर कर रोने दिया.  कुछ देर बाद जब आंसू थमे तो मैं ने हिम्मत कर के कहा, ‘‘कल पापा की बरसी है. मां ने हमें घर बुलाया है.’’

‘‘और तुम हमेशा की तरह वहां जाना नहीं चाहतीं,’’ सुजौय ने कहा.

‘‘आप को सब पता तो है. मैं वहां क्यों नहीं जाना चाहती हूं. मां भी सब जानती हैं. फिर भी हर साल मुझ से घर आने की जिद करती हैं,’’ मैं ने भर्राई आवाज में कहा.

‘‘श्रेया, तुम जानती हो न मां बस पूरे परिवार को एकसाथ खुश देखना चाहती हैं, इसलिए हर बार तुम्हारा जवाब जानते हुए भी तुम्हें पापा की बरसी पर घर आने के लिए कहती हैं.’’

‘‘मैं जानती हूं. मैं मां को दुख नहीं पहुंचाना चाहती हूं. उन्हें दुखी देख कर मुझे भी बहुत दुख होता है. अब आप ही बताएं कि मैं क्या करूं?’’ मैं ने निराश स्वर में पूछा.

‘‘अपने पापा को माफ कर दो.’’

इस से पहले कि मैं विरोध कर पाती सुजौय फिर बोल पड़े, ‘‘देखो श्रेया मैं तुम्हारी हर तकलीफ समझता हूं और तुम्हारे हर फैसले का सम्मान भी करता हूं पर इस तरह दिल में गुस्सा और दर्द दबा कर रखने में किसी का भला नहीं है. तुम अनजाने में ही अपने साथ अपनी मां को भी तकलीफ दे रही हो. अपने अंदर से सारा गुस्सा, सारा गुबार निकाल दो और अपने पापा को माफ कर दो.’’  मुझे समझा कर कुछ देर बाद सुजौय तो सो गए पर मेरी आंखों में नींद का नामोनिशान तक  न था. बीते कल की यादें खुली किताब के पन्नों की तरह मेरी आंखों के सामने खुलती चली जा रही थीं…

छोटा सा परिवार था हमारा- पापा, मम्मी, मैं और साकेत. पापा का अच्छाखासा  कारोबार था. घर में किसी सुखसुविधा की कोई कमी नहीं थी. बाहर से देखने पर सब कुछ ठीक ही लगता था. पर मेरी मां की आंखों में हमेशा एक उदासी, एक डर नजर आता था. शुरू में मैं मां के आंसुओं की वजह नहीं समझ पाती थी, पर जैसेजैसे बड़ी होती गई वजह भी समझ आती गई.  वजह थे मेरे पापा जो अकसर छोटीछोटी बातों पर या फिर बिना किसी बात के मां पर हाथ उठाते थे. मुझे कभी पापा का बरताव समझ नहीं आया. जब प्यार जताते थे तो इतना कि जिस की कोई सीमा नहीं होती थी और जब गुस्सा करते थे तो वह भी इतना कि जिस की कोई हद नहीं होती थी.

पहले पापा के गुस्से का शिकार सिर्फ मां होती थीं, पर वक्त बीतने के साथ उन के गुस्से की चपेट में आने वाले लोगों का दायरा भी बढ़ता गया. पापा ने मुझ पर भी हाथ उठाना शुरू कर दिया था.  जब पापा ने पहली बार मुझ पर हाथ उठाया था तब मैं ने 2 दिनों तक बुखार के कारण आंखें नहीं खोली थीं. जब पापा मुझे मारते थे तो मां मुझे बचाने के लिए बीच में आ जाती थीं. न जाने कितनी बार मां ने हम दोनों के हिस्से की मार अकेले खाई होगी. छोटी उम्र में इतनी मार खा कर मेरे शरीर पर से कई दिनों तक मार के निशान नहीं जाते थे.

स्कूल जाने पर ऐसा महसूस होता था मानो जैसे मेरे सहपाठी मेरी ओर इशारे कर के मेरा मजाक उड़ा रहे हैं. टीचर निशानों के बारे में पूछती थीं तो झूठ बोलना पड़ता था. न जाने कितनी बार साइकिल से गिरने का बहाना बनाया होगा. अब तो गिनती भी याद नहीं है.  शुरूशुरू में मैं मार खाते वक्त बहुत रोती थी, पर वक्त के साथ मेरा रोना भी कम होता गया और कुछ वक्त बाद तो एहसास होना ही बिलकुल बंद सा हो गया था. मां अब बहुत बीमार रहने लगी थीं. मेरी परी, सुंदर मां निढाल सी रहती थीं.

डाक्टरों को भले ही मां की बीमारी की वजह पता न चल पाई हो पर मैं जानती थी. मेरी मां को एक ही बीमारी थी- मेरे पापा. मैं 8 वर्ष की थी जब साकेत का जन्म हुआ था. कितनी प्यारी मुसकान थी मेरे छोटे भाई की. दुनिया की भलाईबुराई, झूठ, फरेब, संघर्षों और तकलीफों से अनजान मासूम हंसी थी उस की. पापा ने साकेत के जन्म का जश्न मनाने में पूरे शहर को दावत दे डाली थी. मुझे लगा कि अब शायद पापा बदल जाएंगे, हम पर हाथ उठाना और गालीगलौच करना छोड़ देंगे. मगर मैं गलत थी. इनसान की फितरत बदलना नामुमकिन है.

पापा के वहशीपन से मेरा भाई भी नहीं बच पाया. मुझे उस के चेहरे पर भोलेपन की जगह खौफ नजर आता था. जब पापा हमें मार चुके होते थे तब मैं ध्यान से उन का चेहरा देखती थी. हमें गालियां देने, मारने कोसने के बाद पापा के चेहरे पर संतोष के भाव होते थे, ग्लानि नहीं. ऐसा लगता था कि हमें रोते, गिड़गिड़ाते, दर्द से कराहते देखने में पापा को खुशी मिलती थी. खुद पर गरूर होता था. कभी मुझे लगता था कि कहीं पापा किसी मानसिक रोग के शिकार तो नहीं वरना यह उन्हें हम से कैसा प्यार था जो हमारी जान का दुश्मन बना हुआ था.  मैं कई बार मां से पूछती थी कि क्या हम पापा से कहीं दूर नहीं जा सकते हैं. इस पर मां रोते हुए इसे हमारी मजबूरी बता देती थीं.  पापा के परिवार वालों ने उन्हें कभी हमें प्रताडि़त करने से नहीं रोका, बल्कि वे

तो पापा को सही बता कर उन का साथ देते थे. पापा कभी अपने परिवार वालों की मानसिकता को समझ ही नहीं पाए. उन के लिए पापा बैंक का वह अकाउंट थे जिस से वे जब चाहें जितने चाहें रुपए निकाल सकते हैं पर अकाउंट कभी खाली नहीं होगा. पापा के भाई और उन के परिवार को मुफ्तखोरी की आदत लग गई थी. पापा को खुश करने के लिए वे लोग हम पर झूठे इलजाम लगाने से भी बाज नहीं आते थे.  मम्मी के परिवार वाले भी कम न थे. वे लोग शुरू से जानते थे कि पापा हमारे साथ क्या करते हैं पर उन्होंने कभी मां का साथ नहीं दिया. वजह मैं जानती थी. मेरे मामा के शौकीन मिजाज के कारण डूबते कारोबार में पापा ही रुपया लगाते थे. पापा की ही तरह उन का पैसा भी हमारा दुश्मन बन गया था.

अब मैं ने किसी से कुछ भी कहनासुनना छोड़ दिया था. पापा के लिए मेरे दिल में गुस्सा और नफरत लावा की तरह बढ़ते जा रहे थे जो अकसर फूट कर बाहर आ जाते थे. मैं अब कामना करती थी कि हमें इस नर्क से मुक्ति मिल जाए.

कुछ सालों तक सब ऐसा ही चलने के बाद अब पापा को शायद उन के कर्मों की सजा मिलनी शुरू हो गई थी. उन के भाई ने उन का सारा कारोबार डुबो दिया. सभी ने पापा का साथ छोड़ दिया था. ऐसे में मां ने अपने सारे गहने और जमापूंजी पापा को दे दिए और दिनरात कोल्हू के बैल की तरह जुत कर काम किया.  इस बीच मारपीट बिलकुल बंद सी ही थी. धीरेधीरे पापा का काम चल निकला. यह मन बड़ा पाजी चोर होता है. बारबार टूटने पर भी उम्मीद नहीं छोड़ना चाहता है. मेरे मन में पापा के बदल जाने की उम्मीद थी जो पापा ने हमेशा की तरह बड़ी बेदर्दी से रौंद डाली थी.

पापा ने फिर से वही रुख अपना लिया था. उन्होंने शायद सांप और बिच्छू की कहानी सुनी ही नहीं थी, इसलिए फिर से अपने धोखेबाज भाई पर भरोसा कर बैठे. बिच्छू ने आदत अनुसार पापा को दोबारा डस लिया और इस बार पापा धोखा बरदाश्त नहीं कर पाए. जब मम्मी एक दिन मुझे और साकेत को स्कूल से ले कर घर लौटीं तो हम ने देखा कि पापा ने आत्महत्या कर ली है. मम्मी बेहोश हो कर गिर गईं. भाई का रोतेरोते बुरा हाल  था पर मेरी आंखों में एक आंसू नहीं आया. पापा हमें रास्ते पर ला कर छोड़ गए थे. जैसा कि मुझे विश्वास था, पापा के घर वालों ने हम से हर नाता तोड़ लिया और मम्मी के घर वाले तो और भी समझदार निकले. उन्हें यह डर सता गया कि कहीं हम उन से वे रुपए न मांग ले जो पापा ने समयसमय पर उन्हें दिए थे.

हर किसी ने हमें देख कर रास्ता बदलना शुरू कर दिया था. मम्मी गहरे अवसाद की गिरफ्त में आती चली गईं. बीमारी के कारण भाई की जान जातेजाते बची.  पाप हम से सब कुछ छीन कर चले गए पर हमारा जीने का हौसला नहीं छीन पाए. बड़ी मुश्किलों से हम ने खुद को संभाला. मां ने दिनरात मेहनत व संघर्ष कर के हमें पाला. हमें कभी किसी चीज की कमी नहीं होने दी. उन की इसी तपस्या का फल बन कर सुजौय मेरे जीवन में आए.  पेशे से अधिकारी सुजौय को मेरे लिए मां ने ही पसंद किया था. मैं शुरूशुरू में उन पर विश्वास करने से डरती थी कि कहीं मेरा पति मेरे पापा जैसा न हो. पहले सुजौय को जीवनसाथी के रूप में पा कर और फिर श्यामली और श्रेयस के मेरी गोद में आने से मेरे सारे दुखों व संघर्षों पर विराम लग गया.

मां भी अब पहले से अच्छी अवस्था में थीं. साकेत भी पढ़ाई में अच्छा प्रदर्शन कर रहा था. ऐसे में दिल में सिर्फ एक कसक थी. मैं अभी तक पापा को माफ नहीं कर पाई थी. मां हर साल पापा की बरसी मनाती थीं. वे हमें भी घर आने को कहती थीं. हमेशा मुझ से कहती थीं कि मैं सब कुछ भुला दूं पर यह मेरे लिए संभव नहीं था. जब मैं सुजौय को अपने बच्चों के साथ देखती हूं तो बहुत खुश होती हूं. लेकिन साथ ही दिल में एक टीस भी उठती है कि क्या मेरे पापा ऐसे नहीं हो सकते थे. सुजौय बहुत अच्छे पति हैं और उस से भी अच्छे पिता हैं. मैं जानती हूं साकेत भी एक दिन अच्छा पति और पिता साबित होगा.

यादों की दुनिया से बाहर निकल कर मैं ने सुजौय की ओर देखा जो गहरी नींद में सो रहे थे. वे ठीक ही तो कहते हैं बीती बातों को दिल में दबाए रख कर खुद को पीड़ा देने से क्या फायदा. मां ने पापा का अत्याचार हम से कहीं ज्यादा सहा. पर फिर भी उन्होंने पापा को माफ कर दिया. अगर माफ नहीं करतीं तो उन के जाने के बाद कभी एक मजबूत चट्टान बन कर हमें सहारा न दे पातीं. सिर्फ एक मां का दिल ही इतना बड़ा हो सकता है.

अब मैं भी तो एक मां हूं फिर मुझ से इतनी बड़ी चूक कैसे हुई. मैं ने यह कैसे नजरअंदाज कर दिया कि मेरे भीतर की घुटन से मेरी मां का दम भी तो घुटता होगा. मैं पापा को सजा देने के नाम पर अनजाने में ही मां को सजा देती आई हूं. कहीं मैं भी पापा की तरह ही तो नहीं बनती जा रही हूं.

फिर मैं ने आंखें बंद कर के गहरी सांस ली और मन में कहा कि डियर पापा, मैं नहीं जानती कि आप ने हमारे साथ वह सब क्यों किया. मैं यह भी नहीं जानती कि आज भी आप को अपने किए का कोई पछतावा है भी या नहीं. मुझे आप से कोई गिलाशिकवा भी नहीं करना. आज मैं पहली और आखिरी बार आप से यह कहना चाहती हूं कि मैं आप से प्यार करती थी, इसलिए आप की मार और गालियां खाने के बाद भी उम्मीद करती थी कि शायद आप बदल जाओगे. खैर, अब इन सब बातों का कोई फायदा नहीं है. मैं बस इतना कहना चाहती हूं कि मैं आप को माफ करती हूं पर आप के लिए नहीं… अपने लिए और अपने परिवार के लिए. गुडबाय. बहुत सालों बाद मैं खुद को इतना हलका महसूस कर के चैन की नींद सोई.

अगली सुबह जब मैं नाश्ता बना रही थी तो सुजौय माथे पर बल डाले रसोई में आए, ‘‘यह क्या श्रेया… तुम ने मुझे जगाया क्यों नहीं… 8 बज चुके हैं. मुझे दफ्तर जाने में देर हो जाएगी… बच्चों को अभी तक स्कूल के लिए तैयार क्यों नहीं किया तुम ने?’’

‘‘आज बच्चे स्कूल नहीं जाएंगे. आप भी दफ्तर में फोन कर के बता दीजिए कि आज आप छुट्टी ले  रहे हैं.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि आज हम सब मम्मी के घर जा रहे हैं. आज पापा की बरसी है न… आप जल्दी से नहा कर तैयार हो जाएं तब तक मैं नाश्ता तैयार कर देती हूं.’’

‘‘श्रेया,’’ सुजौय ने भावुक हो कर मेरे कंधे पर हाथ रखा तो मेरे हाथ रुक गए.

‘‘तुम अपनी इच्छा से यह कररही हो न… देखो कोई जबरदस्ती नहीं है.’’  मैं ने डबडबाई आंखों से सुजौय की ओर देखा, ‘‘नहीं सुजौय, मां ठीक कहती हैं, आप भी  सही हो. अपने भीतर का यह अंधेरा मुझे खुद ही दूर करना होगा. मैं बीते कल की इन कड़वी यादों को भुला कर आप के और अपने परिवार के साथ नई, खूबसूरत यादें बनाना चाहती हूं. मैं पापा की बरसी में जाऊंगी.’’  सुजौय सहमति में सिर हिला कर मुसकरा दिए. उन की आंखों में अपने लिए गर्व और प्रेम की चमक देख कर मुझे विश्वास हो गया कि मैं ने बिलकुल सही निर्णय लिया है.

कुछ ही देर बाद मैं सुजौय और बच्चों के साथ मां के घर पहुंच गई. बच्चे तो नानी और मामा से मिलने की बात सुन कर ही खुशी से उछल रहे थे. मेरे घंटी बजाने के कुछ क्षणों बाद मां ने दरवाजा खोला. मुझे दरवाजे पर खड़ी पा कर मां चौंक गईं. उन्हें तो सपने में भी आज मेरे घर आने की उम्मीद न थी. उन के मुंह से मेरा नाम आश्चर्य से निकला, ‘‘श्रेया… बेटा तू…’’

‘‘मां मुझे तो यहां आना ही था. आज पापा की बरसी है न.’’

मेरे मुंह से यह सुनते ही मां की आंखें भर आईं और उन्होंने आगे बढ़ कर मुझे अपने गले से लगा लिया. आज बरसों बाद हम मांबेटी लिपट कर फूटफूट कर रो रही थीं और हमारे आंसुओं से सारी पुरानी यादों की कालिख धुलती जा रही थी.

Nikki Tamboli : अच्छा निर्देशक ही अच्छी फिल्में बना सकता है

Nikki Tamboli : बचपन से ही अभिनय की शौक रखने वाली निक्की तंबोली एक मौडल और अभिनेत्री हैं, जो मुख्य रूप से तेलुगु, तमिल सिनेमा और हिंदी टीवी में काम कर रही हैं. हालांकि उन्हें अभिनय क्षेत्र में कामयाबी आसानी से नहीं मिली, लेकिन रियलिटी शो ‘बिग बौस 14’ उन की सब से अधिक कामयाब शो रही, जिस में वे सैकंड रनरअप रह कर काफी सुर्खियां बटोरी.

‘बिग बौस’ में उन्होंने जिस तरह के प्रदर्शन किए, उस से काफी लोग इंप्रैस तो हुए, लेकिन कैरियर में उन्हें इस का नुकसान भुगतना पड़ा.

एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया कि ‘बिग बौस’ में कामयाबी के बाद उन्हें रिजैक्शन का अधिक सामना करना पड़ा.

उन्होंने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वे नहीं चाहती थीं कि वे जब भी फ्री रहें, इन सारी बातों की वजह से उन्हें डिप्रैशन का सामना करना पड़े.

परिवार का मिला साथ

उन्होंने अपने परिवार और दोस्तों के साथ काफी समय बिताया और तभी इस समस्या से उबर भी पाईं. आज अभिनेत्री निक्की इंडियन ऐंटरटेनमैंट इंडस्ट्री में अपनी एक खास जगह बना ली है. उन की ग्लैमरस छवि ही उन्हें रिएलिटी शोज, म्यूजिक वीडियोज और अन्य कई प्रोजैक्ट्स में कामयाबी दिलाती है.

आगे उन का लक्ष्य बौलीवुड इंडस्ट्री में एक मजबूत कैरियर स्थापित करना है.

अच्छे निर्देशकों के साथ फिल्में

इस दिशा में उन के प्रयास के बारे में पूछे जाने पर वे कहती हैं कि उन्हें अपने पसंद के कुछ निर्देशकों के साथ काम करने का मौका मिलना चाहिए, क्योंकि एक अच्छा निर्देशक ही एक अच्छी फिल्म का निर्माण कर सकता है और अपने कलाकार से उन की प्रतिभा को भी निकलवा सकता है.

इस सूची में उन्होंने निर्देशक राजकुमार हिरानी का नाम लिया, जिन के साथ काम करने पर उन्हें खुशी मिलेगी। वे कहती हैं कि राजकुमार हिरानी की फिल्में दिल छू लेने वाली होती हैं. उन की संवेदनशीलता और निर्देशन की गहराई कमाल की है. एक कलाकार के तौर पर आप चाहते हैं कि आप का निर्देशक हर बारीकी को समझे और यही खूबी उन के अंदर है. उन के साथ काम करना मेरे लिए एक सपने जैसा होगा.

इस के बाद उन की लिस्ट में निर्देशक संदीप रेड्डी वांगा हैं. निक्की उन की फिल्मों से काफी प्रभावित रही हैं. उन के हिसाब से संदीप रेड्डी बिना किसी डर के अपना विजन पेश करते हैं. उन की फिल्में बोल्ड, इमोशन से भरपूर और दमदार होती हैं. उन का आत्मविश्वास और जनून वाकई प्रेरणादायक है.

मरजी के निर्देशक

करण जौहर को निक्की अपनी मरजी के निर्देशक कहती हैं, क्योंकि वे हमेशा ग्लैमर और इमोशन को परदे पर पेश करते हैं, जो लाजवाब होता है. उन की फिल्मों में एक खास तरह की शांति और खूबसूरती होती है, जिसे निक्की अपनी जिंदगी में महसूस करना चाहती हैं.

निर्देशक रोहित शेट्टी की फिल्मों को निक्की कमर्शियल सिनेमा और ऐंटरटेनमैंट का असली उस्ताद मानती हैं। उन की फिल्मों की कौमेडी हो या ऐक्शन, हर चीज का एक अलग ही मजा होता है. उन के कंटैंट में निक्की खुद को अच्छे से फिट पाती हैं.

वे कहती हैं कि ऐसे निर्देशकों के साथ काम करना मस्तीभरा और धमाकेदार होगा.

इस के अलावा फिल्ममेकर संजय लीला भंसाली को निक्की भूल नहीं सकतीं, जिन की हर फिल्म उन्हें पसंद हैं. अभिनेत्री का कहना है कि अगर आप एक फीमेल ऐक्टर हैं और आप के पास सपने हैं, तो भंसाली के साथ काम करना उन में से एक सब से बड़ा सपना जरूर होता है.

वे जिस तरह से महिलाओं को अपनी फिल्मों में दिखाते हैं, वह बेहद शानदार और दिल से जुड़ा होता है. उन के साथ काम करना मेरे लिए कैरियर का एक नया अध्याय होगा.

वर्क फ्रंट पर बात करें, तो निक्की तंबोली के पास कई दिलचस्प प्रोजैक्ट्स हैं, जिन पर वे काम कर रही हैं और इस साल वे कुछ धमाकेदार अभिनय से दर्शकों को चकित करने वाली हैं.

Parenting Tips : बेटियों को सिखाएं जरूरी बातें

Parenting Tips : इस संसार में बेटी के लिए मातापिता का रिश्ता सब से प्यारा रिश्ता है और कोई भी दूसरा उन की जगह नहीं ले सकता है. हर मां दिल से यह चाहती है कि उस की बेटी ससुराल में खुश रहे इसलिए वह बचपन से ही उसे अच्छे संस्कार देती है. यदि बेटी मां की आंख का तारा होती है तो पिता के लिए उस का अभिमान भी होती है. एक बेटी को सब से ज्यादा प्यार और गर्व अपने पेरैंट्स पर होता है. इस के पीछे उन का अनकंडीशंड लव होता है जो किसी को भी उस के मां या पापा से बेहतर नहीं होने देता.

जब एक लड़की शादी के बाद ससुराल जाती है तो उस के ऊपर बहुत सी जिम्मेदारियां आ जाती हैं. जहां पहले वह आजाद पंछी की तरह थी वहीं अब उसे अपने इर्दगिर्द जिम्मेदारियां और ससुराल वालों के साथ पति की आंखों में उस से हजारों अपेक्षाएं दिखाई पड़ती हैं, जिन्हें वह अपने तरीके से पूरा करना चाहती है. उस की आंखों के सामने अपनी मां का तौरतरीका घूमता रहता है.

रिया के मायके में मेड 8 बजे नाश्ता मेज पर लगा देती थी और वह मम्मीपापा के साथ में नाश्ता करती थी. यहां ससुराल में पहले सुबह नहाना फिर पूजा, उस के बाद किचन में नाश्ता बनाना. उस ने मुश्किल से ससुराल में 1 महीना काटा फिर वह पति ओम के साथ मुंबई आ गई लेकिन ओम तो यहां भी उस से अपनी मां की तरह सुबह नहाना, पूजा करना तब किचन में जाना. रिया अपनी तरह से जीना चाहती थी. इस के लिए वह बहुत मुश्किल से पति ओम को राजी कर पाई थी.

डाक से जरूरी प्यार

हालांकि लड़की की शादी के बाद सिचुएशन में काफी बदलाव आ जाता है, उसे ससुराल की जिम्मेदारियां निभानी होती है परंतु पेरैंट्स को वह आसानी से नहीं भूल पाती है. वैसे तो शादी के बाद उस का लाइफ पार्टनर उस के लिए बहुत अहमियत रखता है लेकिन वह पार्टनर को भी अपने पेरैंट्स से ऊपर नहीं मान पाती है. बेटी अपने पार्टनर में अपने पिता के गुण देखने की कोशिश करती है.

35 वर्षीय रुचि मेहरा जो मुंबई में रहती हैं पति राघव की आदतों से परेशान रहती है, राघव औफिस से आने के बाद जूते कहीं, मोजे कहीं फेंक कर चाय की फरमाइश कर देता है. बस वह चिढ़ जाती है. उस ने अपने पापा को मम्मी के लिए अकसर चाय बना कर देते देखा है, इसलिए वह भी चाहती है कि चलो रोज न सही कभीकभी तो राघव उस के लिए चाय बना ही सकता है और अपने सामान को सही ढंग से तो रख ही सकता है.

बस इसी वजह से अकसर नोकझोंक होतेहोते रिश्तों में कड़वाहट बढ़ती जा रही थी. उस ने अपनी मां को सब चीजें करीने से निश्चित जगह पर साफसफाई से रखते देखा है, तो वह भी अपने घर में वैसा ही करना चाहती है, जबकि राघव सब चीजें लापरवाही से इधरउधर फेंक देता है. बैड पर गीला तौलिया देखते ही उस का मूड खराब हो जाता है.

कई बार रुचि उस की इन्हीं आदतों के कारण उस से लड़ने लगती है लेकिन राघव के कान पकड़ कर मासूम सा चेहरा बना कर सौरी बोलने पर वह मुसकराने से अपने को नहीं रोक पाती.

बेटी और उस का माइका

बेटी के लिए उस का मायका पावरहाउस की तरह होता है, जहां से लड़की को हमेशा ऐनर्जी मिलती रहती है. उस की मां उस के लिए चाइल्डहुड बडीज होते हैं, जिसे वह कभी नहीं भुला पाती. मांपापा उस की लाइफ का सपोर्ट सिस्टम होते हैं. शादी के बाद भी किसी भी तनाव या परेशानी होने पर वह अपना मन हलका कर लेती है और उन से मदद की आशा भी रखती है.

पुणे की 28 वर्षीय पूर्वी मेहरा ने पंजाब के अभय के साथ लव मैरिज कर ली थी. रईस परिवार की बेटी के लिए छोटे से घर में रहना और उस की छोटी सी तनख्वाह में गुजर करना मुश्किल हो रहा था. उस के पिता से बेटी का दुख देखा नहीं गया. उन्होंने बेटी के अकाउंट में बड़ी रकम ट्रांसफर कर दी और गाड़ी भी भेज दी. अभय को यह अपना अपमान महसूस हुआ. बस दोनों के आपसी संबंध बिगड़ गए और अंतत: पूर्वी का आपसी सहमति से तलाक हो गया.

बेटियां तो विवाह के बाद भी मां के दिल से जुड़ी रहती हैं. उच्च शिक्षा के बाद बेटी के जीवन के अध्यायों से कन्यादान, पराया धन व विदाई जैसे शब्दों को अब भूल जाने की जरूरत है. शिक्षा बराबरी के दरवाजे खोलती है. बेटी को कभी भी कम न आंकें, खुले मन से बेटियों को उड़ान भरने दें.

अब यह कहने की जरूरत नहीं है कि खाना बनाना सीख लो नहीं तो सास कहेगी कि मां ने तुम्हें कुछ नहीं सिखाया. आज सास भी जानती है कि बेटी पढ़ाई के बाद औफिस में इतनी बिजी रही है कि यह सब करने का अवसर ही नहीं मिला और जरूरत पड़ेगी तो वह सब कर लेगी और यह जो लौकडाउन के दौरान देखने को भी मिला कि सभी ने घर के अंदर रह कर सारे काम किए.

पहले रिश्ता

आज आवश्यकता यह है कि ससुराल वाले या पति स्वयं यह समझ लें कि पति से पहले उस की मां या पेरैंट्स हैं. आपसी रिश्ते बिगड़ने का मुख्य कारण यह मानसिकता है कि शादी के बाद मायका पराया हो गया और अब बहू पर ससुराल का हक है. पति परमेश्वर है. बाद में कोई दूसरा है, जबकि सच तो यह है कि पहले वह रिश्ता है, जिस के साथ इतने साल बिताए यदि उन्हीं के साथ रिश्ता सही से नहीं निभा पाई तो दूसरों के साथ भला क्या निभाएगी. यही वजह है कि बेटियां मन मार कर या छिप कर अपने मां या पापा की मदद करती हैं.

रावी की मां अकेली थीं और उन्हें ओबरी में सिस्ट का औपरेशन कराना था. उस ने पति के विरोध करने पर भी उन की सर्जरी करवाई और अपने घर के पास में फ्लैट में शिफ्ट कराया. सुबहशाम उन के पास जा कर हर तरह से उन की मदद करती रही. दोनों की आपस में अक्सर बहस हो जाती परंतु रावी का कहना था कि मां को इस हालत में वह अकेला कैसे छोड़ सकती है. चाहे रिश्ता टूटे तो टूटे. उसे परवाह नहीं.

आजकल एकल परिवार हैं. जहां 1 या 2 बेटी या बेटे हैं. बेटा विदेश में तो बेटी मां या पेरैंट्स को अकेले कैसे छोड़ सकती है. इसलिए अब आवश्यक है कि बिंदास हो कर अपने मन की बात कहें और करें. कुछ चीजों को पहले क्लीयर करें तब लाइफ में आगे बढें़.

इज्जत और सम्मान

नई दिल्ली की ईशा शर्मा स्पष्ट रूप से कहती हैं कि उन के मातापिता उन के लिए बैकबोन की तरह हैं. मेरे पेरैंट्स मेरे लिए पहले हैं. बाकी रिश्ते बाद में. परंतु इस का मतलब यह नहीं कि मैं पति और ससुराल वालों से प्यार नहीं करती. बेशक वे मेरे लिए बहुत इंपौर्टैंट हैं और मैं उन्हें बहुत प्यार भी करती हूं. वैसे वे भी जानते हैं कि वे मेरे पेरैंट्स के बाद आते हैं.

उत्तराखंड की 31 वर्षीय श्रेया जोशी कहती हैं कि मेरे लिए मेरे पेरैंट्स पहले हैं. उस के बाद कुछ और इसीलिए मैं ने अपने शहर शिमला के लड़के के साथ शादी की है और जब मेरा मन चाहता है तब उन से मिलने पहुंच जाती हूं और आवश्यकता पड़ने पर उन की मदद भी करती हूं .

शादी से पहले हर लड़की के मन में यह भावना रहती है कि उस का पति उस के पेरैंट्स को इज्जत दे और उन्हें अपना समझें. जब पत्नी पति के पेरैंट्स को अपना मान कर उन की जरूरतों का ध्यान रखती है तो फिर पति क्यों नहीं मान सकता? यदि पतिपत्नी दोनों एकदूसरे के पेरैंट्स को मानइज्जत देते हैं जैसाकि आजकल देखा जा रहा है तो जीवन बहुत आसान और खुशनुमा हो जाता है.

32 वर्षीय सना गांगुली कहती हैं कि यह तो सीधासीधा गिव ऐंड टेक का मामला है जब पति पत्नी के पेरैंट्स को अपना पेरैंट्स मानतेसमझते हैं तो फिर पत्नी का भी फर्ज बनता है कि वह भी पति और उन के घर वालों के बीच में न आए और किसी तरह की गलतफहमी न पैदा करे. मांबेटे के प्यार को ऐक्सैप्ट करे, उन से ईर्ष्या न करे. जब पति अपनी मां को ज्यादा अहमियत देते हैं तो उस सच को उसी तरह स्वीकार करें जैसे आप के पति ने आप के और आप के पेरैंट्स के रिश्ते को स्वीकार किया है. इस तरह से साफसाफ गिव ऐंड टेक हुआ.

प्यार और नजदीकियां

अब सिचुएशन बदल चुकी है. अब वह जमाना नहीं रहा जब बेटी के पेरैंट्स उस के घर का पानी भी नहीं पीया करते थे. अब तो बेटियां लड़कों के समान अपने पेरैंट्स की पूरी जिम्मेदारियां निभा रही हैं और ऐसा करने में उन के पति का भी पूरा सहयोग मिल रहा है.

कई बार यह भी देखा जाता है कि आप के और आप के पेरैंट्स के बीच का प्यार और नजदीकियां देख कर पति जैलस फील करते हैं परंतु उस समय आप उन्हें सम?ाएं कि उन की अहमियत भी जिंदगी में कम नहीं है. पेरैंट्स और पति दोनों का स्थान अलगअलग है.

यदि आप के पति आप के मायके के प्रति मोह को देख कर परेशान हैं तो यह आप की ड्यूटी है कि आप उन्हें यह विश्वास दिलाएं कि ससुराल भी उन के लिए उतना ही अहम है जितना कि मायका. यह आप के व्यवहार में दिखना चाहिए और जरूरत पड़ने पर आप वहां भी अपने रिश्ते उसी ईमानदारी के साथ निभाएंगी जितनी ईमानदारी से अपने मातापिता के साथ रिश्ता निभाती हैं.

नीना की ननद की शादी थी. उस ने अपनी बचत के रुपयों को खर्च कर के खूब धूमधाम से उस की शादी की, जबकि उस की मां को यह अच्छा नहीं लग रहा था. मगर उस ने किसी की नहीं सुनी. ससुराल में अब नीना को इतनी इज्जत और मानसम्मान मिलता है कि उस की कोई सीमा नहीं और जब उस के भाई मधुर का ऐक्सीडैंट हुआ तो वह तो सुनते ही बेहोश हो गई और हौस्पिटल ले जाना पड़ा. सबकुछ उस के ससुरालवालों ने ही संभाला था.

कुछ लड़कियां शादी के बाद भी उसी तरह से जीना चाहती हैं, जिस तरह से शादी से पहले रहती थीं परंतु शादी के बाद ऐसा संभव नहीं हो सकता. शादी के बाद लड़के और लड़की को एकसाथ रहना होता है इसलिए दोनों की जिम्मेदारी बनती है कि दोनों एकदूसरे को समझें, एकदूसरे के लाइफस्टाइल के अनुरूप एडजस्ट होने की कोशिश करें.

आप के साथ शादी कर के एक लड़की अपना घरपरिवार छोड़ कर आप के घर आई है तो आप का फर्ज बनता है कि आप उस लड़की की यहां एडजस्ट होने में मदद करें. उस का खयाल रखें क्योंकि लड़की को सब से ज्यादा भरोसा अपने पति पर होता है.

ऐसे पाएं इज्जत

ससुराल वाले और पति अपनी पत्नी को थोड़ा वक्त दें नई जगह में एडजस्ट होने में थोड़ा समय लगना तो स्वाभाविक ही है. कुछ लोग इतने बेसब्र होते हैं कि पहले दिन से कभी मायके को ले कर तो कभी किसी और बात को इशू बना कर बतंगड़ बना देते हैं. अब बेटियां पहले जमाने की नहीं हैं जो ससुराल वालों की उलटीसीधी बातें सुन लें. आप इज्जत देंगे तभी आप को इज्जत मिल सकती है.

लड़की ससुराल में अपने को अकेला महसूस करती है क्योंकि वह खुल कर अपने मन की बात किसी से कह नहीं पाती. अरेंज्ड मैरिज में कई बार पत्नी पति से भी ज्यादा नहीं मिलीजुली होती. ऐसे में पति और ससुराल वालों का फर्ज है कि वहां के तौरतरीके खानपान समझने और अपनाने में उस की मदद करें.

गार्गी के मायके में प्याजलहसुन से भी परहेज था और ससुराल में पति नौनवेज का शौकीन. लेकिन उस को याद आया कि उस के पापा भी अपने फ्रैंड्स के साथ नौनवेज खूब स्वाद से खाया करते थे. बस उस ने पति के शौक को स्वीकार कर लिया.

Social Media : रियल नहीं हैं ये रील्स

Social Media :  रील्स… जी हां रील्स … आज से कुछ साल पहले अगर ये लफ्ज हमारे कानों में जाते तो इस का मतलब या तो फिल्मों से या फिर जिंदगी के खूबसूरत और यादगार लमहे कैद करने वाले कैमरे की रील से होता.

मगर आज के इस स्मार्टफोनयुग में इस लफ्ज रील को किसी इंट्रोडक्शन की जरूरत नहीं. आज के इस दौर में अगर कोई इंसान स्मार्ट फोन यूजर है या अगर नहीं भी है तो वह इन पलपल बदलती रील्स से अनजान तो बिलकुल नहीं.

कहने को तो रील बिलकुल छोटा सा लफ्ज है मगर इस ने तो हमारी उंगलियों के जरीए हमारे माइंड पर ऐसा कब्जा जमाया है कि अगर एक बार अपने स्मार्टफोन पर हमारी उंगलियां जब इन रील्स के यूनिवर्स के अंदर जाती हैं तो कुछ सैकंड्स से शुरू हुआ वह सफर कब मिनटों में और कभीकभी तो घंटों में बदल कर ही रुकता है.

कोई तो इसे कुछ मिनटों के लिए टाइम पास समझ कर देखना शुरू करता है तो कोई एकाध घंटा. मगर इस जैनरेशन का एक हिस्सा ऐसा भी है जो इन रील्स पर अपने दिन के 24 घंटों में से न जाने कितने घंटे गुजार देता है.

अनगिनत रील्स की बाढ़

जी हां आज जब अपने स्मार्टफोन पर उंगलियां पहले किसी एक रील पर जा कर थमती हैं तो फिर एक सिलसिला सा शुरू हो जाता है. उस एक रील के बाद दूसरी रील, फिर तीसरी आती है और फिर एक के बाद एक उंगलियां अपनेआप ही सामने आने वाली उन रील्स पर स्क्रौल करती ही चली जाती हैं. फिर न तो वो अंगूठा ही थमता है और न फोन के अंदर से आती हुई अनगिनत रील्स की वह बाढ़.

उस 1 मिनट की रील में कभी कोई अपने पूरे 24 घंटे की लाइफ समेट कर दिखाने के दावे करता हुआ दिखाई देता है, कभी कोई जिंदगी जीने के 7 अहम गुर सिखा रहा होता है तो कभी कोई उन 60 सैकंड्स में बेहतरीन खाने की डिश की पूरी रैसिपी बता चुका होता है यानी 1 मिनट में जो मरजी चाहे देख लो. एक बार देख लो या जितनी बार जी चाहे देख लो. फिर उतार लो या कहें कि कौपी पेस्ट कर लो अपनी लाइफ में.

मगर जब 1 मिनट की यह क्लिप अपने दिलोदिमाग पर हावी हो जाती है और उस रील में दिख रहा सबकुछ रियल लग रहा होता है तब माइंड चाहे कितना भी प्रैकटिकली क्यों न सोच ले दिल उसे यह सोचने पर मजबूर कर ही देता है कि अभीअभी आंखों से गुजरा वह 60 सैकंड्स का नजारा लाइफ में सबकुछ ठीक कर सकता है.

चाहे वह दिनरात चढ़तेगिरते शेयरों की अपडेट हो या मार्केट में आने वाली तबाही से खुद को बचाने के लिए दिए गए आसान से लगने वाले टिप्स जो पहले तो उंगलियों पर गिना दिए जाते हैं मगर जब वह रील आंखों से आ कर गुजर जाती है तो शायद ही उस का आधा हिस्सा भी माइंड की मेमोरी में रुक पाता है.

अगर वह रील ऐंटरटेनिंग है तो भी कुछ सैकंड्स के उस प्लेजर के लिए या अगर वह रील इनफौर्मेटिव है तो भी उसे रिकाल करने के लिए दोबारा से देखना ही पड़ता है.

यही होता है जब कोई आसान सी दिखने वाली रैसिपी हो या फिर बेहद अट्रैक्टिव तरीके से सिखाए जा रहे बौडी फिटनैस मंत्र सब एक नजर में ही आजमाए जाने के लायक लगते हैं.

रील्स की बेलगाम दुनिया

रील्स की इस बेलगाम दुनिया में सबकुछ बस 1 मिनट में ही मिल जाने की जब अपनी खुली आंखों के सामने कोई गारंटी दिख रही होती है तो लाइफ कितनी सौर्टेड और कंट्रोल में नजर आती है. कभी किसी खास इंसान की लाइफ के 24 घंटे समेटने वाली ये रील वाकई में उन 24 घंटों में ही फिल्माई जाती हैं और फिर घंटों की मेहनतमशक्कत और ऐडिटिंग के बाद ही वे उस 60 सैकंड्स के फ्रेम में फिट कर दी जाती हैं. इसी तरह कभी 1 मिनट में बनने वाली वह खास रैसिपी भी रिऐलिटी में 2 से 3 घंटों में ही बन कर तैयार हो पाती है.

और तो और फिटनैस गोल्स सैट करने वाली वह रील तो न जाने कितने दिनों और कितने हफ्तों की मेहनत के बाद उस 1 मिनट की क्लिप में समा पाती है.

मगर हमें तो जो दिखाई देता है उस पल हम उसे ही सच मान लेते हैं. 1 मिनट में आंखों से गुजरने वाला वह नजारा कितना अच्छा और इतना सच्चा लगने लगता है कि हम खुली आंखों से उस छलावे को हकीकत मान लेते हैं और फिर लग जाते हैं उस अंधी दौड़ में जिस की कोई फिनिशिंग लाइन है ही नहीं.

Monsoon Skin Care : जानें मौनसून में कैसे रखें अपने स्किन को हैल्दी

Monsoon Skin Care :  हमारी स्किन बहुत ही नाजुक और संवेदनशील होती है. गरमियों के मौसम में अलट्रावायलेट किरणें स्किन को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं. तब टैनिंग और सनबर्न से स्किन की रंगत खो जाती है.

तब आप अपनी स्किन को टैनिंग और सनबर्न से बचाने के लिए 4 एस का नियम अपना सकती हैं. क्या है यह नियम? आइए जानते हैं:

4 एस नियम यानी सनस्क्रीन+स्टे हाइड्रेटेड+ स्क्रब+स्किन नरिशमैंट.

सनस्क्रीन का इस्तेमाल

वैसे तो सनस्क्रीन की जरूरत हर मौसम में होती है लेकिन गरमियों के मौसम में जो महिलाएं अपना ज्यादा वक्त धूप यानी बाहर महिलाएं बिताती हैं. उन्हें 30-50 एसपीएफ वाला सनस्क्रीन चेहरे पर लगाने की जरूरत होती है ताकि अपनी स्किन को टैनिंग और सनबर्न से बचा कर रख सकें. मौनसून में सनस्क्रीन का इस्तेमाल स्किन के लिए सुरक्षा कवच का काम करता है. इस के लिए बाहर जाने से करीब 15 मिनट पहले स्किन पर सनस्क्रीन लगाएं. ऐसा करने से सनस्क्रीन आप की त्वचा पर आसानी से अवशोषित हो जाता है और आप को सूर्य की यूवी किरणों से बचाए रखता है.

सनस्क्रीन के फायदे

स्किन को नमी प्रदान कर उसे तरोताजा रखता है और रूखेपन से मुक्त बनाता है.

स्किन को उम्र के लक्षणों से बचा कर उसे स्वस्थ और जवां बनाए रखता है.

यूवी रैडिएशन को रोक कर स्किन को सुरक्षा प्रदान करता है.

स्टे हाइड्रेटेड इन समर

गरमियों के मौसम में तापमान बढ़ने पर मौनसून बढ़ती है, जिस के कारण शरीर से ज्यादा पसीना निकलता है और शरीर डिहाइड्रेटेड हो जाता है. इस मौसम में डिहाइड्रेशन की समस्या से बचने के लिए जरूरी है कि आप अपने शरीर की हाइड्रेटेड रखें और डाइट में ऐसी चीजों को शामिल करें, जिन से शरीर में पानी और मिनरल्स की कमी दूर हो सके.

गरमियों में मिलने वाले सीजनल फल और सब्जियां जैसेकि तरबूज, खीरा, अंगूर और खरबूजा जैसी चीजें खाने से आप हाइड्रेटेड रह सकती हैं, साथ ही ये शरीर को ताजगी भी देते हैं.

शरीर का काम करने के लिए हाइड्रेट रहना जरूरी होता है ताकि शरीर के सभी अंग ठीक से काम करते रहें एवं ऊर्जा बनी रहे, एक बेहतर पाचनतंत्र, ब्लड फ्लो और शरीर के तापमान के  नियंत्रण के लिए हाइड्रेट रहने की जरूरत होती है. इस के लिए भोजन में पानी से भरपूर खाद्यपदार्थ जैसे तरबूज, संतरा, स्ट्राबेरी, खीरा, सलाद, टमाटर और सूप शामिल करें. ये खाद्यपदार्थ न केवल हाइड्रेट करते हैं बल्कि आवश्यक विटामिन, खनिज और ऐंटीऔक्सीडैंट भी प्रदान करते हैं .

मौनसून के मौसम में पसीना आने से शरीर में इलैक्ट्रोलाइट का संतुलन बिगड़ सकता है. इस के लिए इलैक्ट्रोलाइट्स से भरपूर खाद्यपदार्थों का सेवन कर के पसीने के माध्यम से खोए गए इलैक्ट्रोलाइट्स की भरपाई करने के लिए नारियल पानी, मठा, केले, टमाटर या टमाटरों का सूप जैसे पोटैशियम युक्त खाद्यपदार्थ शामिल करें. इलैक्ट्रोलाइट्स हाइड्रेशन और मांसपेशियों के कार्य को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.

मौनसून के मौसम में डिहाइड्रेशन से बचने के लिए सादे पानी के साथसाथ इन्फ्यूज्ड पानी भी पी सकते है इस के लिए आप नीबू, पुदीना, खीरा और स्ट्राबेरी जैसी चीजों को पानी में मिला कर रख सकते हैं और घर में इन्फ्यूज्ड वाटर तैयार कर सकती हैं. यह पानी पीने में स्वादिष्ठ लगता है और इसे पीने से शरीर को आवश्यक पोषक तत्त्व भी मिलते हैं.

गरमियों में स्क्रब

मौनसून के मौसम में स्किन पर अधिक पसीना और गंदगी जमा होती है जो रोमछिद्रों को बंद कर सकती है, स्क्रबिंग से स्किन की गंदगी और डैड स्किन सैल्स से छुटकारा पाने में मदद मिलती है एवं स्किन पर ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है. स्क्रबिंग स्किन को साफ, मुलायम और चमकदार बनाने में मदद करता है, जिस से पिंपल्स और ऐक्ने की समस्या कम हो सकती है.

मौनसून के मौसम में त्वचा जल्दी सूख जाती है. कुछ स्क्रब जैसे नारियल का तेल और शहद त्वचा को हाइड्रेट करने में मदद करते हैं और कुछ स्क्रब जैसे खीरे का रस और दही त्वचा को ठंडक पहुंचाते हैं.

रखें ध्यान

ज्यादा स्क्रबिंग से त्वचा को नुकसान हो सकता है, इसलिए महीने में 2-3 बार ही स्क्रब करें.

स्क्रब करते समय स्किन जोर से न रगड़ना इस के लिए हलके हाथों से स्क्रब करें.

स्क्रब करने के बाद मौइस्चराइजर लगाना न भूलें.

कई बार स्क्रबिंग के बाद स्किन ड्राई हो सकती है, इस के लिए मौइस्चराइजर लगाएं.

स्क्रब करने के बाद ठंडे पानी का इस्तेमाल करें. यह  स्किन को ठंडक पहुंचाता है.

यदि आप की स्किन सैंसिटिव है तो आप घर पर बने स्क्रब का इस्तेमाल करें जैसे ओट्स, बेसन, दही और चंदन त्वचा के लिए सुरक्षित होते हैं.

दही का स्क्रब: गरमियों में चेहरे से टैनिंग दूर करने के लिए इस स्क्रब को लगाया जा सकता है. दही का स्क्रब बनाने के लिए 1 चम्मच दही में 1 चम्मच संतरे का रस और 11/2 चम्मच शहद मिला कर पेस्ट तैयार करें. इस तैयार स्क्रब को चेहरे पर मलें और फिर चेहरा धो कर साफ कर लें.

ऐलोवेरा का स्क्रब

गरमियों में खिलीखिली त्वचा पाने के लिए ऐलोवेरा का स्क्रब इस्तेमाल कर सकती हैं. इसे बनाने के लिए 1 चम्मच ऐलोवेरा जैल में 1 चम्मच कौफी मिलाएं. इसे चेहरे पर लगाएं. लगभग 10-15 मिनट बाद पानी से धो लें.

स्किन नरिशमैंट

जब गरमियों में स्किन की देखभाल की बात आती है तो नैचुरल चीजों का उपयोग करना ही सब से अच्छा तरीका होता है क्योंकि वे स्किन को किसी भी तरह के नुकसान से बचाए रखते हैं, साथ ही स्किन को  नमी और पोषण देते हैं.

नैचुरल चीजों के लिए गरमियों में ऐलोवेरा, नीम और हलदी का इस्तेमाल आप की स्किन को स्वस्थ बनाए रखता है.

ऐलोवेरा

ऐलोवेरा एक नैचुरल घटक है जो स्किन को आराम देने और अपने हाइड्रेटिंग गुणों के लिए जाना जाता है. ऐलोवेरा जैल में स्किन का लचीलापन बढ़ाने और ऐंटीऐंजिंग के गुण होते हैं, साथ ही इस में ऐसे एंजाइम्स और ऐंटीऔक्सीडैंट्स होते हैं जो स्किन की सूजन और लालिमा को कम करने में मदद करते हैं.

नीम और हलदी

गरमियों में नीम और हलदी दोनों ही स्किन के लिए फायदेमंद होते हैं. नीम के ऐंटीबैक्टीरियल और ऐंटीइनफ्लैमेटरी, ऐंटीफंगल गुण पिंपल्स, खुजली और त्वचा के संक्रमण से राहत दिलाते हैं, जबकि हलदी के ऐंटीऔक्सीडैंट्स और ऐंटीबैक्टीरियल गुण त्वचा को स्वस्थ और चमकदार बनाने में मदद करते हैं.

नीम के फायदे

नीम और हलदी का एकसाथ उपयोग पिंपल्स, ऐक्ने और त्वचा के संक्रमण के लिए बहुत प्रभावी होता है.

हलदी के फायदे

हलदी त्वचा के रंग को निखारने, दागधब्बों को कम करने और त्वचा को चमकदार बनाने में मदद करती है. हलदी में ऐंटीऔक्सीडैंट और ऐंटीइनफ्लैमेटरी गुण होते हैं जो शरीर की सूजन को कम करने और बीमारियों से लड़ने में मदद करते हैं. आप नीम के पत्तों का पेस्ट बना कर हलदी पाउडर के साथ मिला कर त्वचा पर लगा सकती हैं.

ऐसे बना सकती हैं नीमहलदी का फेस पैक

एक कटोरी में नीम की पत्तियों का पेस्ट, बेसन और थोड़ी सी हलदी मिला कर गाढ़ा पेस्ट तैयार करें.

जरूरत पड़ने पर पानी या गुलाबजल भी मिला सकती हैं.

इसे पूरे चेहरे पर लगाएं और 15-20 मिनट सूखने के बाद नौर्मल पानी से धो लें.

स्किन नरिशमैंट के लिए क्या खाएं

गरमियों में स्किन को बाहर से जितनी केयर की जरूरत होती है उतना ही अंदर से भी उस की हैल्दी रहना जरूरी होता है. अत: आप जो भी खाते हैं उस का सीधा असर आप की स्किन पर दिखाई देता है. गरमियों में कुछ चीजों का सेवन मुंहासों और दूसरी स्किन से जुड़ी समस्याओं का कारण बन सकते हैं वहीं कुछ चीजें आप की स्किन को हाइड्रेटेड और कोमल बनाए रखने में मदद कर सकती हैं.

आइए, जानते हैं वे फूड आइटम्स जो गरमियों में आप की स्किन को ग्लोइंग और हाइड्रेटेड बनाए रखने में मदद कर कर सकते हैं:

हाइड्रेटिंग फूड्स

तरबूज: यह पानी का अच्छा स्रोत है जो त्वचा को हाइड्रेटेड रखने में मदद करता है.

खीरा: खीरा भी एक बेहतरीन हाइड्रेटिंग फूड है जो त्वचा को ठंडा और ताजा रखता है.

नारियल पानी: गरमियों में नारियल और नारियल पानी का सेवन करना सेहत के साथसाथ त्वचा के लिए भी बेहद लाभदायक होता है. यह इलैक्ट्रोलाइट्स का अच्छा स्रोत है जो त्वचा को अंदर से हाइड्रेटेड रखता है. नारियल का सेवन करने से शरीर को विटामिन ई मिलता है, जिस से त्वचा को पोषण मिलता है. नारियल में ऐंटीबैक्टीरियल गुण होते हैं जो त्वचा संक्रमण से बचाते हैं.

ऐंटीऔक्सीडैंट रिच फूड

ऐंटीऔक्सिडैंट रिच फूड स्किन को फ्री रैडिकल्स, यूवी रेज और पौल्यूशन से होने वाले नुकसान से बचाने में मदद करते हैं. ये कोलोजन बूस्ट करने और स्किन को रिपेयर करने में बढ़ावा देते हैं. इस के लिए अपने खाने में कलरफुल फल और सब्जियां जैसे जामुन, संतरे, टमाटर और पत्तेदार सब्जियां शामिल करें.

विटामिन सी युक्त फल और सब्जियां

संतरा, नीबू, टमाटर आदि पालक विटामिन सी के अच्छे स्रोत हैं जो त्वचा को जवां रखने और कोलोजन उत्पादन को बढ़ावा देने में मदद करते हैं. ये स्किन को रिंकल्स से बचाए रखते हैं.

बेरी

बेरी जैसे ब्लूबेरी, स्ट्राबेरी आदि ऐंटीऔक्सीडैंट से भरपूर होती हैं जो त्वचा को नुकसान से बचाने में मदद करती हैं.

ओमेगा 3 फैटी ऐसिड

ओमेगा 3 फैटी ऐसिड स्किन को हाइड्रेटेड रखने में मदद करता है. सूजन को कम करता है और स्किन को बेहतर तरीके से फंक्शन करने में मदद करता है. यह स्किन को ग्लोइंग, स्मूथ और इवन बनाए रखने में मदद करता है. अपनी डाइट में ओमेगा 3 के लिए अलसी के बीज, चिया सीड्स और अखरोट शामिल करें.

Family : पति के परिवार को ऐसे बनाएं अपना

Family : शादी सिर्फ 2 लोगों का ही नहीं बल्कि 2 परिवारों का भी मिलन होता है. हमारी संस्कृति में बहू से अपेक्षा होती है कि वह पति के परिवार को अपना माने लेकिन यह प्रक्रिया कई महिलाओं के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है.

कई मनोवैज्ञानिकों ने इस पर शोध किया है और उन के अनुसार, आत्मसम्मान और सीमाओं को बनाए रखते हुए रिश्तों को मजबूत किया जा सकता है.

नर्मी से शुरुआत

अगर आप ससुराल वालों के साथ तालमेल बैठाना चाहती हैं तो शुरुआत में ही टकराव से बचें. छोटेछोटे हावभाव जैसे:

उन के रीतिरिवाजों और पारिवारिक मूल्यों को समझने की कोशिश करें.

शुरू में ज्यादा बदलाव की उम्मीद न रखें, पहले भरोसा बनाएं.

सीमाएं तय करें

बहू को खुद को बदलने के दबाव में नहीं आना चाहिए. अगर आप को कुछ चीजें असहज लगती हैं तो सम्मानजनक तरीके से अपनी सीमाएं तय करें, जैसे:

अगर ससुराल की कोई परंपरा आप को नहीं जंचती तो प्यार से अपनी राय रखें.

अपनी व्यक्तिगत जरूरतों को नजरअंदाज न करें, चाहे वह आप की नौकरी हो या अकेले समय बिताने की इच्छा.

प्रेम की भाषा समझें

हर इंसान अपने तरीके से प्यार व्यक्त करता है. कुछ लोग शब्दों से, कुछ उपहारों से, कुछ सेवाभाव से और कुछ समय दे कर.

सासससुर की लव लैंग्वेज को सम?ाने की कोशिश करें. अगर वे सराहना पसंद करते हैं तो उन की तारीफ करें. अगर उन्हें सेवाभाव खुश करता है तो उन की सेवा करें.

असली और नकली अपनापन

जब आप खुद को किसी रिश्ते में पूरी तरह खो देती हैं तो अपनापन महसूस करने के बजाय असुरक्षा बढ़ सकती है.

शादी के बाद महिलाएं अकसर खुद को भूल जाती हैं. माना कि परिवार को अपनाना जरूरी है लेकिन यह अपनी इच्छाओं और जरूरतों को दबाने की कीमत पर नहीं होना चाहिए.

अपने विचार और भावनाएं खुल कर रखें ताकि आप ससुराल में अपनी जगह बना सकें.

हर बात पर हां कहना जरूरी नहीं. आत्मसम्मान को बनाए रखना भी जरूरी है.

हर दिन थोड़ा समय खुद के लिए निकालें,

चाहे वह योग हो, किताब पढ़ना हो या दोस्तों से बात करना.

पति के परिवार को अपनाना एक प्रक्रिया है, जिस में धैर्य, समझदारी और आत्मसम्मान की जरूरत होती है. जब आप खुद को खोए बिना परिवार में घुलनेमिलने की कोशिश करेंगी तो न सिर्फ आप का रिश्ता मजबूत होगा बल्कि आप खुद भी खुश और संतुष्ट महसूस करेंगी.

Grihshobha Empower Moms: A Special Tribute to Mothers

Grihshobha Empower Moms: Delhi, May 10 – A day before Mother’s Day, Grihshobha magazine hosted its “Empower Moms” event at Casa Royal, Peeragarhi, celebrating the tireless spirit of mothers who manage everything—from homes to lives. After successful editions in Mumbai, Bengaluru, Ahmedabad, Lucknow, Indore, Chandigarh, Ludhiana, and Jaipur, Season 3 kicked off in Delhi, with plans to expand to 10+ cities, including Noida, Pune, and Mumbai.

 

Session 1: Women’s Mental Health & Wellness

Clinical psychologist Shirley Raj (consultant at Ampower – The Centre, Lajpat Nagar, and former faculty at Amity University) addressed often-overlooked mental health challenges. She emphasized:

  • *”Self-care isn’t selfish—it’s essential. Even 10 minutes of tea or mindful breathing can transform your household’s energy.”*

  • Solutions for anxiety (GAD, OCD, phobias), parenting stress, and emotional neglect.

Silk Mark India (Deputy Secretary Tek Shri Dashrathi Behera) also educated attendees on identifying pure silk products.

Session 2: SIP Saheli – Finance Workshop

Sagarika Singh (Mutual Fund Expert, HDFC Mutual Fund) decoded:

  • Goal-based investing in mutual funds (SIPs, long-term wealth creation).

  • Why financial independence matters for mothers.

Session 3: Quick Makeup & Hair Styling Demo

Entrepreneur Annie Munjal Kharbanda (founder, Star Academy) shared:

  • 5-minute glam hacks for busy moms: “Look like a queen to be treated like one!”

  • Hands-on demo transforming looks from “Ugh” to “Yes, Queen!”

Inspirational Journeys

  • Jeneeya Chaddha (Anchor/Influencer) and Pooja Jangra (Teacher) shared heartfelt stories of maternal support shaping their confidence.

Fun & Prizes

Games, Q&A rounds, and gifts by Vivel kept the energy high. Attendees left with goodie bags and a renewed spark!

Event Partners:

  • Silk Purity Partner: Silk Mark India

  • Financial Education Partner: HDFC Mutual Fund

  • Associate Sponsor: Haier

  • Beauty Partner: Green Leaf Aloe Vera Gel (Brihans Natural Products)

  • Gifting Partner: ITC Personal Care

Sad Hindi Story: जाने के बाद- उजड़े सिंदूर से व्यथित पत्नी

Sad Hindi Story: काश, यह सपना ही होता क्योंकि मेहंदी का रंग हलका भी नहीं हुआ था, मन की हसरतें पूरी भी न हुई थीं और प्रियांश का पार्थिव शरीर कल्याणी के सामने था. बाहर मीडिया का शोर है. उस से ज्यादा शोर कल्याणी के हृदय में मच रहा है.

कितना कुछ है उस के भीतर, उसे समझ ही नहीं आ रहा है कि वह कहां है. एक पल वह कमरे में चल रहे एसी से खुद को यकीन दिलाती है कि वह पहाड़ों की ठंडी हवाओं में नहीं, मैदानी इलाके में वापस लौट आई है और दूसरे ही पल उसे लगता है कि उस ने एक खौफनाक सपना देखा है और नींद खुल जाने से उस की जान बच गई है. कभी उस के जेहन में खयाल आता है कि अभी उस की शादी ही कहां हुई हैं, अभी तो उस के हनीमून की जगह ही फाइनल नहीं हो पाई है.
प्रियांश भी तो फोन पर यही कह रहा था- ‘सुनो, एक बात तो पूछनी ही रह गई?’
‘यही घंटाभर पहले ही तुम ने कितने प्रश्न किए थे- कौन सा रंग पसंद है? कौन सी मिठाई पसंद है? कौन सी किताब पसंद है? अब और क्या रह गया है? मुझे तो लगता है तुम्हारी कोई गर्लफ्रैंड कभी रही ही नहीं.’
‘तुम ऐसा कैसे कह सकती हो?’
‘क्योंकि जो बातें तुम मुझ से पूछते हो न, वह टीनऐजर एकदूसरे से पूछते हैं. हमारी 2 महीने में शादी होने वाली है. कुछ मैच्योर बातें करो.’
‘तुम्हीं बता दो न फिर, वह मैच्योर बातें,’ प्रियांश ने कहा.
‘हम लोग हनीमून पर कहां चलें, यह पूछो तो लगे भी कि होने वाले पतिपत्नी की बातें हैं.’
‘ओह हां, दरअसल पूछना तो यही चाहता था मगर वह गले में अटक कर रह जा रहा था,’ प्रियांश ने कहा.
‘सो स्वीट, तुम कितने सौम्य हो, वह गाना सुना है- ‘बड़ा भोला सा है दिलबर…’ मुझे तो लगता है कि तुम शादी के बाद भी मुझ से पूछे बिना मेरा हाथ नहीं पकड़ोगे, कहोगे, ‘सुनो, क्या मैं तुम्हारा हाथ थाम सकता हूं’.’
‘उड़ा लो मजाक, शादी के बाद ही तुम्हें पता चलेगा कि मेरी पकड़ कितनी मजबूत है. अभी तो तुम पराई ही हो मेरे लिए. एक बार हमारी शादी हो जाए, फिर देखना, मेरे हाथों की पकड़. अरे देखो न, जो पूछना था वह तो रह ही गया.’
‘हनीमून की जगह न? मैं हनी हूं और तुम मून हो. जब हम दोनों एकसाथ हो जाएंगे तो वह जगह हनीमून की, अपनेआप ही हो जाएगी. उस के लिए क्यों परेशान हो?’ कल्याणी खिलखिलाई.
‘तो ठीक है मैं बेकार ही एक हफ्ते से टूर एंड ट्रैवल के साथ माथापच्ची करने में लगा हुआ था. सोच रहा था कि तुम्हें सरप्राइज दूंगा. लेकिन मेरे दोस्त तिमिर ने कहा, ‘यार, ऐसी गलती न करना. मैं ने अपनी सुहागसेज लाल गुलाब से भर दी थी और मेघना की छींकछींक कर हालत खराब हो गई. पता चला कि उसे गुलाब क्या हर फूल से एलर्जी है. वह दवा खा कर सो गई और अपनी सुहागरात की ऐसीतैसी हो गई.’
‘अब समझ आया कि फल, फूल, मिठाई के बहाने तुम मेरी एलर्जी का पता लगाना चाहते हो. तो सुनो, न तो मुझे किसी फल, फूल से एलर्जी है और न ही पहाड़ की चोटियों व समुद्र की गहराइयों में जाने से कोई डर या फोबिया है.’
‘तब ठीक है, मैं ने अंडमान और कश्मीर यानी या तो अपने देश के नक्शे में टौप पर या एकदम चरणों में बिछे हुए आइलैंड को फाइनल किया हुआ है. दोनों में से कौन सी जगह है, अब यह सीक्रेट रहेगा,’ प्रियांश ने उत्साह से भर कर कहा.
‘अभी 2 महीने बाकी हैं, देखती हूं तुम्हारे पेट में कितने दिनों तक बात पचती है.’

कल्याणी की आंखें नींद से बोझिल होने लगीं. दवा का असर होने लगा था. मानसिक तनाव घटने से वह नींद की गहराइयों में चली गई.
‘बहनजी, ये गुलाबी लहंगा सगाई के दिन के लिए तो ठीक है मगर शादी के दिन के लिए यह हलका है. यह वाला लहंगा देखिए. यह चटक लाल रंग, इस में जरदोजी और मोतियों का कितना सुंदर काम है. इधर नजर डालिए, इस के निचले भाग में पूरी बरात ही सजी है- डोली ले जाते कहार, आगे शहनाई वादक, डोली के पीछे नाचतेगाते बराती,’ दुकानदार सुभाष पूरी ताकत लगा कर दुकान के सब से कीमती लहंगे को आज ही बेच देना चाहता था. इस परिवार को वह बरसों से जानता है. बड़ी बहन विमिता, भाई आलोक सभी की शादी की शौपिंग उस के शोरूम में आए बिना पूर्ण हो न सकी.
‘ऐसा ही आप ने मेरी शादी पर भी कहा था कि ऐसा लहंगा, बस, एक ही पीस बना है. बाद में मेरी सहेली गौतमी ने भी अपनी शादी में वैसा ही लहंगा पहना हुआ था,’ विमिता तुनक कर बोली.
‘आप ने पूछा नहीं उस से कि उस ने वह लहंगा कहां से खरीदा था?’ सुभाष आज लहंगे को बेचे बिना कहां हार मानने वाला था.
‘आप की दुकान से ही तो लिया था,’ विमिता तुनक कर बोली.
‘आप की शादी की फोटो साथ में ले कर आई थी कि उसे भी ऐसा ही लहंगा बनवाना है, पीछे ही पड़ गई थी. जरा आप ही सोचिए, वह पूरे शहर में लहंगा पसंद करने तो गई ही होगी, फिर भी आप के लहंगे से बेहतर न मिला होगा. तभी तो जिद कर के वैसा ही बनवाया. लेकिन आप की शादी से पहले किसी के पास देखा आप ने ऐसा लहंगा?’
‘हां यह बात तो सही कही आप ने, मेरे लहंगे की कशीदाकारी की तो ससुराल में भी बड़ी चर्चा हुई थी,’ विमिता ने कहा.

‘सुन रही हैं कल्याणी बहन,
आज इस लहंगे को फाइनल
कर दीजिए. आप के लिए ही खास तैयार करवाया है. आप बहनों की पसंद तो बचपन से ही हमें पता है, सब से अलग, हट कर है. आप को हुनर की कद्र भी है और सम?ा,’ सुभाष को लहंगा किसी भी तरह आज बेचना ही है.
‘मु?ो इस का रंग कुछ ज्यादा ही चटख लग रहा है,’ कल्याणी हिचकिचाती
हुई बोलीं.
‘अरे बहन, अभी तो उम्र है चटख पहनने की. वह क्या कहते हैं कि मौका भी है और दस्तूर भी. आप के लिए 5 परसैंट डिस्काउंट.’
‘ओके, इसे तैयार करवा दीजिए.’
कल्याणी ने करवट बदली और नींद खुल गई. बैड में अभी भी सूखे फूलों की डोरियां लटकी हुई थीं जिन्हें देख कर कल्याणी की आंखों से आंसू गिरने लगे. वह वर्तमान में लौट आई थी.
तभी कमरे का दरवाजा खुला, विमिता हाथ में भोजन की थाली उठाए चली आ रही थी.
‘‘क्या प्रियांश आ गए?’’ आंखों से बहते आंसुओं को पोंछती हुई कल्याणी ने कहा.
थाली को बैड के साइड टेबल पर रख कर विमिता ने उस के आंसू पोंछे और उस के होंठों की तरफ पानी का गिलास बढ़ाते हुए कहा, ‘‘कल सुबह तक आ जाएंगे,’’
‘‘वे ठीक तो हो जाएंगे न?’’ कल्याणी ने उस के हाथ को बीच में ही रोक कर पूछा.
‘‘हां श-शायद,’’ कहते हुए उस की जबान लड़खड़ा गई.
‘‘ठीक ही होंगे, उन्हें कुछ नहीं हो सकता. मैं भी तो बच गई न उस गोलाबारी के बीच. बहुत से बच गए. सब दौड़ पड़े थे न. प्रियांश को तो गोली लगी थी, वे पीछे रह गए थे. बाद में सब को अस्पताल ले कर गए थे न वे लोग. उन्हें भी ले कर गए थे. वे लोग कह रहे थे, तुम चिंता मत करो, उसे कुछ नहीं होगा,’’ कल्याणी बड़बड़ाने लगी.

विमिता उस की बात में हांहां कहती हुई उस के मुंह में रोटी के दोचार कौर ठूंसने में सफल हो गई.
‘‘सुनो न, वे आतंकवादी उन्हीं घने पेड़ों के जंगल से अचानक निकल कर आए थे जहां सब लोग रील बना रहे थे. गोलियां चलने लगीं, सब भागने लगे.  कुछ लोगों को 4 लोगों ने घेर लिया, वहीं पर शूट कर दिया. हम भी हाथ पकड़ कर भागे लेकिन तब तक इन के कमर में गोली मार दी गई थी. मेरे हाथों में भी खून ही खून हो गया था.’’
‘‘मुंह खोलो, यह दवा खा लो,’’ उस की बारबार दोहराई जाने वाली बातों को विमिता ने बीच में ही काट दिया.
कल्याणी अपने मेहंदी रचे हाथों को घूरघूर कर देखने लगी, फिर उठ कर वाशबेसिन में हैंडवाश से हथेलियों को रगड़रगड़ कर धोने लगी मानो हाथों में लगे खून को साफ करना चाह रही हो.
विमिता जो कल से अपनी छोटी बहन की इसी कहानी और हरकत को दोहराते हुए देख रही थी, अपने आंसुओं को पोंछ कर कल्याणी को संभालने के लिए उठी और उस के हाथों को तौलिए से पोंछते हुए बोली, ‘‘यह देखो, तुम्हारे हाथ एकदम साफ हैं, इन में कुछ नहीं लगा है.’’
‘‘मेहंदी लगी हुई है, देखो न, कितनी गहरी रची है. वह तुम्हारी फ्रैंड गौतमी क्या कह रही थी, याद है?’’
‘‘नहीं, मुझे कुछ याद नहीं,’’ विमिता ने कहा.
‘‘यही कि जिस की मेहंदी जितनी गहरी रचती है, उस का पति उसे उतना ही ज्यादा प्यार करता है. सच है एकदम. ये भी मुझे बहुत प्यार करते हैं. यह देखो, मेरी मेहंदी का रंग इसी बात का सुबूत है,’’ कल्याणी की बहकीबहकी बातें सुन कर विमिता का कलेजा मुंह को आने लगा.

उस ने कल्याणी को बिस्तर पर लिटा दिया. उस का माथा दबाती हुई बोली, ‘‘सो जा, बहन. सुबह बहुत से काम करने होंगे.’’
‘‘कौन से काम, मैं कोई काम नहीं करूंगी. कल तो प्रियांश भी अस्पताल से घर आ जाएंगे. वे तो कहते हैं, ‘मैं तो तुम्हें रानी बना कर रखूंगा,’’ कल्याणी बुदबुदाने लगी. दवा के असर से उस की आंखें बंद होने लगीं.
विमिता ने उस के कमरे की रोशनी धीमी कर दी और खाने की थाली ले कर बाहर निकल गई.
तेज पटाखों की रोशनी व शोर, बैंडबाजों की धुनों के बीच घोड़ी पर सवार प्रियांश, उस के दरवाजे बाजेगाजे के साथ पहुंच गया. कल्याणी अपनी छत से उसे देख रही है. नीचे दूल्हे की द्वारचार की रस्म चल रही है.
‘चल कल्याणी, बहुत देख ली अपनी बरात,’ उसे गौतमी ने छेड़ा.
‘‘चल उठ, कल्याणी,’’ विमिता ने उसे जगा दिया.
‘‘प्रियांश, प्रियांश कहां हैं?’’
‘‘बाहर चलो, सभी वही हैं.’’
‘‘लेकिन मैं तो अभी तैयार नहीं हुई. इतनी जल्दी बरात कैसे आ गई, क्या मेरी विदाई ऐसे ही हो जाएगी?’’ कल्याणी
ने पूछा.
‘‘तेरी नहीं, प्रियांश की अंतिम विदाई है. जा बहन, उस के अंतिम दर्शन कर ले. वह आतंक का शिकार हो गया है. उसे आने में इसीलिए देर हुई क्योंकि बहुत सी कानूनी कार्यवाही पूरी करनी थी. तुझे तो ग्रुप के साथ पहले भेज दिया गया था. होश में आ, कल्याणी.’’
‘‘तुम झूठ कह रही हो, अभी मेरी शादी ही कहां हुई, अभी तो सिर्फ बरात ही आई है,’’ कल्याणी सच को स्वीकारने की स्थिति में नहीं थी.
कल्याणी के आगे उस के विवाह कार्ड को लहराते हुए विमिता ने कहा, ‘‘याद कर, एक हफ्ते पहले ही तेरी शादी हुई है. फिर तुम लोग कश्मीर घूमने गए थे और वहीं आतंकवादी हमले में जो लोग शहीद हो गए उन्हीं में एक तेरा, हमारा, हम सब का प्यारा प्रियांश भी था. इस सच को स्वीकार कर लो, बहन. पिछले एक हफ्ते में तेरी जिंदगी इतनी तेजी से भागी है कि तेरे दिलोदिमाग पर गहरा असर हो चला है,’’ विमिता उसे सहारा दे कर बाहर के कमरे में ले आई.
उस कमरे से बाहर गेट तक प्रियांश के पार्थिव शरीर को श्रद्धांजलि देने के लिए लोगों की कतारें लगी हुई थीं. मीडिया के फ्लैश उसे देखते ही चमकने लगे.
मीडियाकर्मी उस के मुंह पर माइक लगाने को उतावले हो उठे, ‘‘आप बताइए कि यह सब कैसे हुआ?’’
‘‘सब से पहले आतंकियों ने किसे गोली मारी थी?’’
‘‘आप के साथ और कौनकौन था?’’
‘‘कितने आतंकी थे? आप ने उन का चेहरा देखा था या उन के मुंह ढके
हुए थे?’’
‘‘उन का हुलिया, मतलब, पहनावा कैसा था?’’
‘‘नहीं, यह सच नही है. कहो कि सब ठीक है,’’ कल्याणी चीत्कार कर उठी और प्रियांश के पार्थिव शरीर से लिपट गई. उस के माथे को बारबार चूमती हुई कहने लगी, ‘‘उठो
प्रियांश, कहो न, कहो प्रियांश, यह सब ठीक है.’’
‘‘मेरे बस में होता तो इस घटना को झुठला देती,’’ कह कर विमिता उस के गले लग कर, फफक कर रो पड़ी.
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