DIY हेयर मास्क से बनाए बालों को खूबसूरत

हम अकसर बालों को खूबसूरत दिखाने के लिए अलगअलग हेयर स्टाइल बनाते हैं, जिस के लिए हीटिंग मशीन और कैमिकल प्रौडक्ट्स का इस्तेमाल किया जाता है. हीट और कैमिकल प्रौडक्ट के इस्तेमाल से बाल रूखे और बेजान दिखने लगते हैं. इसलिए बालों को हमेशा एक्सट्रा केयर की जरूरत होती है.

बालों को एक्सट्रा केयर देने के लिए आप DIY हेयर मास्क का इस्तेमाल कर सकतीं हैं. हेयर मास्क डैमेज्ड हेयर को ठीक करने में मदद करता है, बालों की चमक बरकरार रखता है. इस के इस्तेमाल से बाल हेल्दी भी नजर आने लगते हैं.

आइए, जानते हैं घर पर कैसे बनाएं DIY हेयर मास्क

बालों को सुंदर और डेमैज फ्री बनाने के लिए आप घर पर ही कई तरह के हेयर मास्क बना सकती हैं. घर पर हेयर मास्क बनाना बेहद आसान है.

केले से बनाएं मास्क

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सेहत के साथसाथ केला त्वचा और चेहरे के लिए भी फायदेमंद होता है. केले में विटामिन की मात्रा भरपूर होती है. केले से बना मास्क रूखे बेजान बालों को हेल्दी और खूबसूरत बनाने में बहुत असरदार माना जाता है.

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मास्क बनाने के लिए 1 पके हुए केले को अच्छी तरह मैश कर लें. अब इस में 1 चम्मच ओलिव ओयल और 2 चम्मच शहद डालें और अच्छे से मिला लें. इस मास्क को अब बालों की जड़ों में लगाएं. 30 मिनट बाद बाल धो लें. ये मास्क सप्ताह में 2 बार बालों में लगा सकती हैं.

एवोकाडो हेयर मास्क

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एवोकाडो हेयर मास्क घर पर बनाना बहुत आसान है. एवोकाडो का गूदा निकाल कर मिक्सी में चला लें. अब इस में 2 चम्मच नारियल का तेल और 2 बड़े चम्मच दूध मिला दें. इस पेस्ट को बालों की जड़ो में अच्छे से लगाएं. करीब 30 मिनट बाद हेयर वाश कर लें. एवोकाडो में विटामिन ई की मात्रा अधिक होती है जो बालों को जल्दी सफेद होने नहीं देता और बालों की चमक बनाए रखता है.

डेमैज्ड हेयर के लिए दही और अंडा

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बालों का रूखापन दूर करने के लिए और बालों को डैमेज होने से बचाने के लिए अंडे और दही का हेयर मास्क बहुत फायदेमंद होता है. इस का इस्तेमाल करने के लिए एक कटोरी में दो चम्मच दही और एक अंडे को अच्छे से फेंट लें. अब इसे पूरे बालों में लगाएं. मास्क को 20 मिनट तक बालों में लगे रहने दें. 20 मिनट बाद शैंपू कर लें. महीने में 3 से 4 बार इस मास्क को बालों में लगाएं. आप के बाल पहले से बहुत सोफ्ट और हेल्दी दिखने लगेंगे.

कोकोनट मिल्क हेयर मास्क

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नारियल का तेल जितना बालों के लिए फायदेमंद होता है उतना ही नारियल से बना मिल्क भी बालों के लिए फायदेमंद होता है. इस के इस्तेमाल से बालों की लंबाई बढ़ती है, बालों की खोई चमक वापस आती है, बाल जड़ से मजबूत होते हैं.

कोकोनट मिल्क मास्क बनाने के लिए एक कटोरी में आधा कप कोकोनट मिल्क लें अब उस में एक चमच मैथी पाउडर और एलोवेरा जैल मिलाएं. इस मास्क को बालों में लगाएं और 1 घंटे के लिए बालों में लगे रहने दें. अच्छे रिजल्ट के लिए आप बालों में स्टीम जरूर लें.

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बालों की ऐसे करें देखभाल

• बालों की अच्छी ग्रौथ के लिए हर महीने बालों को ट्रिम जरूर करें. बालों को ट्रिम करने से बेजान और रूखे बाल हट जाते हैं.

• शैंपू का इस्तेमाल रोज न करें. हफ्ते में 2 या 3 बार शैंपू करें.

• शैंपू करने से 1 घंटा पहले बालों में तेल जरूर लगाएं.

• बालों को गरम पानी से धोने से बचें. इस से बाल ड्राई हो जाते हैं और टूटने लगते हैं.

• बालों को नेचुरली ड्राइ होने दें. ड्रायर का इस्तेमाल कम से कम करें.

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नेपोटिज्म और खेमेबाजी का केंद्र है बॉलीवुड 

आप कहां से यहां आये हो और यहां सीडियों पर बैठकर कर क्या रहे हो? मैडम मैं एक लेखक  और अपना नाम फिल्म राइटर्स एसोसिएशन में लिखवाने आया . इससे क्या होगा? मैं कवितायेँ लिखता  और राजस्थान के एक गांव से आया . यहां मैं अपने कविताओं को पहले रजिस्टर करवाकर फिर किसी म्यूजिक डायरेक्टर को देना चाहता , क्योंकि यहां मैंने सुना है कि कविताओं की चोरी संगीत निर्देशक कर लेते है. काम के लिए मैं हर रोज किसी संगीत निर्देशक के ऑफिस के बाहर घंटो अपनी कविताओं को लेकर बैठता , जिस दिन उनकी नज़र मेरे उपर पड़ी, मेरा काम बन जायेगा.’ मुझे उसकी बातें अजीब लगी थी, क्योंकि वह करीब 2 साल से ऐसा कर रहा था.

पत्नी और दो बच्चों के पिता होकर भी उसकी कोशिश बॉलीवुड में काम करने की थी, जिसके लिए उसके परिवार वाले पैसे जुटा रहा था, उसे काम कभी मिलेगा भी या नहीं, ये सोचने पर मजबूर होना पड़ा. ऐसे न जाने कितने ही लेखक और कलाकार मुंबई की सडको पर एक अवसर पाने की कोशिश में लगातार घूमते रहते है. इक्का दुक्का ही सफल होते है, बाकी या तो वापस चले जाते है, या डिप्रेसड होकर गलत कदम उठा लेते है. 

 इंडस्ट्री में प्रोडक्शन हाउस से लेकर कास्टिंग डायरेक्टर तक हर जगह खेमेबाजी और नेपोटिज्म चलता है. इन प्रोडक्शन हाउसेस में काम करने वाले आधे से अधिक लोगों के वेतन पेंडिंग रहते है, जिसके लिए कर्मचारी हर दिन इनके चक्कर लगाते रहते है. इसकी वजह प्रोडक्शन हाउस के मालिकों का कर्मचारियों को कम पैसे में पकड़ कर रखना है, ताकि वे दूसरी जगह काम न कर सके. ऐसे में कर्मचारी अपने दोस्तों और परिवार वालों से पैसे मांगकर किसी तरह गुजारा करते है, पर घरवालों को नहीं बता पाते, क्योंकि उनका हौसला टूट जाएगा. उनकी बदनामी होगी.

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देखा जाए तो नेपोटिज्म और खेमेबाजी सालों से बॉलीवुड पर हर स्तर पर हावी रही, जिसका किसी ने बहुत खुलकर विरोध नहीं किया, क्योंकि जो उसे सह गये, वही इंडस्ट्री में रह गए और जिसने सहा नहीं वे निकाल दिए गये. अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने इंडस्ट्री के सभी को झकझोर कर रख दिया है और एक नए मिशन को हवा दी है. भले ही सुशांत ने आत्महत्या किसी और वजह से की हो, जो अभी तक साफ़ नहीं है, लेकिन इतना सही है कि बड़े निर्माता, निर्देशक के खेमेबाजी के शिकार वे हुए थे. इस आन्दोलन से आगे किसी कलाकार, निर्देशक या लेखक से ऐसा करने से पहले प्रोडक्शन हाउसेस थोडा अवश्य सोचेंगे. ऐसा सभी मान रहे है. इससे पहले ‘मी टू मूवमेंट’ भी ऐसी ही एक आन्दोलन है, जिसमें सभी बड़े-बड़े कलाकारों की पोल खोल दी और आज कोई भी किसी अभिनेत्री से कुछ कहने से डरते है. 

ये सही है कि नेपोटिज्म हर क्षेत्र में होता है, लेकिन इसकी सीमा बॉलीवुड में सालों से बेलगाम है. खेमेबाजी के शिकार भी तक़रीबन हर आउटसाइडर कलाकार को होना पड़ता है. अभिनेत्री कंगना ने तो डंके की चोट पर सबके आगे आकर इस बात को बार-बार दोहराई है, उसका कहना है कि मैं इंडस्ट्री के किसी से भी नहीं डरती अगर मुझे काम नहीं मिलेगा तो मैंने एक अच्छा घर अपने शहर में बनाया है और वहां जाकर रहूंगी. केवल कंगना ने ही नहीं अभिनव कश्यप, रवीना टंडन, साहिल खान, विवेक ओबेरॉय, सिंगर अरिजीत सिंह आदि जैसे कई कलाकारों ने अपनी बात नेपोटिज्म और खेमेबाजी को लेकर कही है. अभिनेता अभय देओल जो सपष्टभाषी होने के लिए जाने जाते है, वे भी इस खेमेबाजी का शिकार हो चुके है. उन्होंने कई इंटरव्यू में इस बात को दोहराया है कि उनका नाम पहले फिल्म में लीड बताया जाता है, बाद में उन्हें हटाकर दूसरे कलाकार को ले लिया जाता है और अवार्ड भी उन्हें ही दे दिया जाता है. ऐसे में उन्होंने लीक से हटकर फिल्मों में काम किया और अपनी अलग पहचान बनायीं. इसके अलावा वे फिल्में प्रोड्यूस करने और ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म पर काम करना ही उचित समझते है. 

निर्देशक अभिनव कश्यप ने भी कहा है कि उनके कैरियर को ख़राब करने में सलमान ने कोई कसर नहीं छोड़ी. ये तो अच्छा हुआ कि उन्हें दूसरा अच्छा विकल्प मिल गया. ऐसी सोच हर क्रिएटिव पर्सन के पास होनी चाहिए. खासकर सुशांत सिंह जैसे होनहार कलाकार जो हर फिल्म में किरदार को पूरी तरह से उतारते थे, पर दुःख इस बात का है कि उन्होंने इतनी जल्दी इंडस्ट्री की खेमेबाजी से हार मान गए.  

जानकार बताते है कि पिछले दिनों सुशांत की कुछ फिल्में बॉक्स ऑफिस पर चल नहीं पायी थी, जिसका प्रभाव उसके कैरियर पर पड़ने लगा था, लेकिन इससे वह निकल सकता था, क्योंकि कई दूसरे निर्माता निर्देशकों ने उसे अपनी फिल्मों में लेने की बात कही थी. बॉलीवुड हमेशा किसी भी कलाकार के हुनर से अधिक फिल्म की सफलता और उससे मिले पैसे को अधिक आंकता है. इसमें वे अपने परिवार को भी झोंकने से नहीं कतराते. 

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अभिनेत्री शमा सिकंदर कहती है कि नेपोटिज्म और खेमेबाजी हमेशा से इंडस्ट्री में है और इसका शिकार मैं भी हुई . मैं डिप्रेशन में गयी और उससे काफी समय बाद निकली भी, जिसमें मेरे परिवारवालों ने साथ दिया. इन सबमें गलती दर्शकों की है. फिल्म कैसी भी हो, वे किसी स्टार के बेटे और बेटी को देखने के लिए हॉल में चले जाते है, जबकि बाहर से आये एक नए कलाकार को कोई देखना नहीं चाहता. दर्शक ही कीसी फिल्म को देखकर उसे सुपरहिट बना सकता है. कई फिल्में नए कलाकारों की आई, जो बहुत अच्छी थी, पर दर्शकों ने उन्हें देखा नहीं, साथ नहीं दिया. नए प्रतिभा को अगर दर्शकों का साथ मिलेगा तो, निर्माता, निर्देशक उसे लेने से कभी नहीं कतरायेंगे. नए कलाकार को दर्शक तब देखते है, जब उनकी कुछ फिल्में सफल हुई हो और ये बहुत मुश्किल से हो पाता है. मुश्किल से एक काम मिलता है, ऐसे में अगर कोई हॉल तक उसे देखने ही न पहुंचे तो उसे अगला काम कैसे मिलेगा? आप बैन प्रोडक्शन हाउस को नहीं, खुद इस दायरे से निकल कर एक नए कलाकार को मौका दे. इस खेमेबाजी और नेपोटिज्म को दर्शक ही हटा सकता है. इतना ही नहीं किसी पार्टी या अवार्ड फंक्शन में नए स्थापित कलाकारों को आमंत्रित भी नहीं किया जाता.

इसके आगे शमा कहती है कि इंडस्ट्री व्यवसाय पर आधारित है, ऐसे में वे उन्हें ही लेना पसंद करते है, जो उन्हें अच्छा व्यवसाय दे सके. आज जिस फिल्म के लिए सुशांत सिंह राजपूत सबको देखने के लिए कहता रहा, आज दर्शक उसे ही ओटीटी प्लेटफॉर्म पर सबसे अधिक देख रहे है, इसका अर्थ अब क्या रह गया है? दर्शकों की वजह से भी कलाकर तनाव में जाता है. मैं चाहती  कि सुशांत की आत्महत्या को कोई गलत रंग न दिया जाय, एक प्रतिभावान कलाकार ने अपनी जान दी है, इसलिए इस खेमेबाजी और नेपोटिज्म के अंदर जन्मी इस मुद्दे को सही रूप में सामने लायी जाय, जिसमें जो भी प्रतिभावान कलाकार है, उन्हें इंडस्ट्री में जोड़ा जाय. नए प्रतिभा को मौका दिया जाय, ताकि अभिनय की रीपिटीशन न हो. 

मराठी अभिनेत्री प्रिया बापट ने भी एक इंटरव्यू में कहा है कि गॉडफादर न होने पर बॉलीवुड में काम मिलना बहुत मुश्किल होता है. सुपर स्टार के बेटे या बेटी होने पर ये काम आसान होता है. उनके लिए फिल्में भी लिखी जाती है. कुछ बड़ी मीडिया ग्रुप भी इस खेमेबाजी में शामिल होती है, जो कुछ पैसे लेकर किसी भी फिल्म को सबसे अच्छी फिल्म की रिव्यु दे देती है, जबकि फिल्म देखने के बाद इसकी असलियत पता चलती है. अभिनेता ओमी वैद्य ने भी माना है कि कोरोना काल की वजह से इंडस्ट्री में नए प्रतिभावान कलाकार और निर्देशक को काम मिलना आसान हुआ है, क्योंकि अधिकतर फिल्में डिजिटल पर जा रही है, जिसे कोई भी बना सकता है.    

इसके अलावा रातों रात नाम बदल देना और नाम निकाल देना इसी भाई-भतीजावाद और खेमेबाजी का हिस्सा सालों से हिंदी सिनेमा जगत में रहा है. सिंगर से लेकर लेखक सभी इस समस्या से गुजरते है. सिंगर सोनू निगम ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि मैं कई बार खेमेबाजी का शिकार हुआ पर मैं किसी से डरा नहीं, जिसे जो कहना था कह दिया. सिंगर कुमार शानू ने भी कहा है कि कई फिल्मों में उनके गाने को लिया गया, पर बाद में हटा दिया. यहां तक कि उस गीत को उस फिल्म के हीरो से गवाया गया. आज संगीत में तकनीक के आने से रियलिटी ख़त्म हो गयी है. कोई भी कभी भी सिंगर बन सकता है. इसलिए आजकल मैं एल्बम बनाता  और शोज करता . जिसमें मेरी आवाज आज भी सबको पसंद आती है. 

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ये सही है कि बॉलीवुड में खेमेबाजी और भाई-भतीजावाद सालों से है लेकिन सुशांत सिंह राजपूत की सुइसाइड ने सबको सोचने पर मजबूर कर दिया है कि इस जाग्रत अभियान में शामिल होकर इंडस्ट्री को एक नयी दिशा दी जाए, जो आज सबकी मांग है. 

लॉकडाउन में बच्चों का ऐसे हो पूरा विकास

लॉक डाउन के चलते पिछले कई महीनों से स्कूल बंद है. कब खुलेंगे ये भी किसी को पता नहीं है, क्योंकि कोरोना संक्रमण लगातार बढ़ने की दिशा में है, ऐसे में बच्चों की शारीरिक और मानसिक अवस्था को ठीक रखना माता-पिता के लिए चुनौती है. इतना ही नहीं बच्चे पार्क या किसी सार्वजनिक स्थानों पर भी नहीं जा पा रहे है, ताकि वे खुश रह सकें. ये समस्या वयस्कों को ही नहीं हर उम्र के बच्चों को बहुत हद तक प्रभावित किया है. हाल ही में एक सर्वेक्षण से पता चला है कि यूके, जर्मनी, फ़िनलैंड, स्पेन और अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों में 65 प्रतिशत बच्चों ने अकेलेपन और बोरिंग का सामना किया है. लॉकडाउन की वजह से विश्व में करीब 1.3 बिलियन हर उम्र के बच्चे प्रभावित हुए है.

इस बारें में गोदरेज सोल्यूशन्स, चाइल्ड साइकोलोजिस्ट चांदनी भगत कहती है कि लॉक डाउन में माता- पिता बच्चों के करीब रहकर उन्हें कई अच्छी चीजे सिखा सकते है, क्योंकि वे दिन-रात उनके साथ है, ऐसा करने से बाद में वे तनावमुक्त हो सकेंगे, क्योंकि स्कूल खुलने से पहले कामकाजी महिलाओं को ऑफिस जाना पड़ सकता है. उस समय कोई सार्वजानिक स्थल पर जाना या क्रेच में बच्चों को रखना मुश्किल होगा, क्योंकि हायजिन और सोशल डिस्टेंसिंग  का पालन वहां संभव नहीं, इसलिए अब अगर उन्हें सही तरह से निर्देश इस दौरान दे दिया जाय तो बच्चे आसानी से उसे फोलो कर घर पर रह सकेंगे. वैसे बच्चे लॉक डाउन की वजह से घर पर रहने की आदत कुछ हद तक सीख चुके है, ऐसे में कुछ दिशा निर्देश अगर माता-पिता सावधानी पूर्वक उनमें डालने की कोशिश करेंगे तो अच्छा होगा. 

1. अच्छा संवाद बनाये 

लॉक डाउन में बच्चे अपने दोस्तों के साथ मिलने-जुलने या खेलने में असमर्थ है. इस वजह से वे कई बार चिडचिडे और मूडी हो जा रहे है. किसी बात को न सुनने की जिद उनमें पनपती जा रही है, ऐसे में उन्हें सम्हालना पेरेंट्स के लिए टेढ़ी खीर हो रही है. माता-पिता को इस समय धीरज के साथ उन्हें समझाने और उनकी बातों को सुनने की जरुरत है. उन्हें स्थिति की गंभीरता के बारें में बताने की आवश्यकता है.  ये सब उनकी उम्र को देखते हुए करने की जरुरत है, ताकि वे सहजता से इसे समझ सके और आपको उनके मन की बात भी पता चले.

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2. तकनीक का करे उपयोग 

अधिकांश माता-पिता बच्चे को तकनीक का प्रयोग करने देने से डरते है, क्योंकि उन्हें लगता है कि ऐसा करने से वे उसके एडिक्ट बन जायेंगे. ये सही भी है कि ऐसा बच्चों के साथ होता है, क्योंकि उनमें जिज्ञासा अधिक होती है. इसके लिए पेरेंट्स को उनपर थोड़ी नजर रखने की आवश्यकता है. इसके अलावा उन्हें उनकी पसंदीदा शो देखने कि आज़ादी दें. ये 30 मिनट से एक घंटे तक ही ठीक रहता है. वीडियोज, लर्निंग एप्स, स्निपेट्स आदि छोटे-छोटे विजुअल कम्युनिकेशन के ज़रिये बच्चे किसी भी चीज को अच्छा सीख सकते है. साथ ही मजेदार डांसिंग वीडियोज देखकर उन्हें डांस करने के लिए प्रोत्साहित करें इससे उनकी शारीरिक एक्टिविटीज भी अच्छी रहेगी. 

3. करे तैयार भविष्य के लिए 

बच्चों को व्यक्तिगत सुरक्षा के महत्व को बताना आवश्यक होता है. 8 साल से कम उम्र के बच्चे अधिकतर फ़ोन चलाना जानते है. उन्हें इमरजेंसी कॉल करने की जानकारी नंबरों के साथ दें और सिखाये कि इमरजेंसी में वे इस तकनीक का उपयोग कैसे कर सकते है. इसके अलावा घर में होम कैमरा लगवा लें, जिससे आप कही भी रहकर अपने बच्चे की देखभाल कर सकते है. इसका प्रशिक्षण अभी से देना शुरू कर दें. स्वास्थ्य और सुरक्षा के महत्व के बारें में उन्हें बार-बार बताएं. इसके अलावा वीडियो डोर ओपन करना सिखाएं और उन्‍हें बतायें कि वो किसी भी अपरिचित के लिए दरवाजा न खोलें. खुद अपने वीडियो डोर फोन या होम कैमरा से कनेक्‍ट करने वाले अपने फोन एप्‍प के जरिए इसकी निगरानी करके देखें कि वे बतायी गयी बातों का ठीक से पालन कर पाते हैं या नहीं. 

4. घर से पढ़ाई करने के बारें में उन्हें दे जानकारी 

अभी भी लॉकडाउन ही चल रहा है, इसलिए सभी उम्र के बच्‍चों को चाहिए कि वो ऑनलाइन क्‍लासेज करें. हालांकि, इसकी वजह से बच्चों को लंबे समय तक कंप्‍यूटर के सामने बैठना पड़ता है, जो हमेशा के लिए खासकर 10 वर्ष से कम उम्र के बच्‍चों के लिए यह बेहतर विकल्‍प नहीं है। इस नयी व्‍यवस्‍था के साथ बच्‍चों को सहज बनाने का एक तरीका यह है कि उन्‍हें प्रैक्टिकल एप्लिकेशन-आधारित लर्निंग गेम्‍स दें. शिक्षक विभिन्‍न विषयों के लिए वर्कबुक्‍स दे सकते हैं. कम-से-कम दो घंटे बच्‍चों के साथ एजुकेशनल गेम्‍स व क्विज खेलना अच्छा होता है. इससे उन्‍हें उनके साथ समय बिताने का अच्‍छा मौका भी मिल जाता है और इससे बच्‍चे स्‍क्रीन से दूर भी रह पाते हैं. बड़े बच्‍चे नये मानकों के अनुरूप ऑनलाइन परीक्षाओं व प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी कर सकते है. उनके लिए कक्षाएं और लेक्‍चर्स ऑनलाइन ही दिया जाना सही है, ताकि वे स्टडी से दूर न रहे. इसके अलावा  12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्‍चों के लिए, सेल्‍फ-डिसिप्‍लीन की जरूरत अधिक होती है. उन्हें ऑनलाइन व ऑफलाइन की पढ़ाई का समय बांट लेना जरुरी है. होम कैमरा के जरिए उन पर नजर रखकर यह देखा भी जा सकता है कि वो कंप्‍यूटर पर कितना समय बीता रहे हैं और अगर वे अधिक समय बिताते है तो उन्हें बैठकर समझाना या थोड़ी डांट भी दिया जा सकता है. 

5. रूटीन बनाएं

 अधिकांश गतिविधियों पर ताला लग चुका है, ऐसे में बच्‍चों के सामने यह समस्‍या है कि वो किस पैटर्न को अपनायें और माता-पिता का उनपर हमेशा ख्याल रखना भी संभव नहीं होता, ऐसे में एक नियमित रूटीन बनाने से कुछ हद तक इसे फोलो किया जा सकता है, जिसमें बच्‍चों के साथ खेलना, पहेलियां बुझाना या साथ मिलकर होमवर्क करना, उन्‍हें नये कंसेप्‍ट्स सीखाना आदि होने की जरुरत है. 6 से 7  वर्ष की उम्र के बच्‍चों को गतिविधियों में व्‍यस्‍त रखने का सबसे शानदार तरीका यह है कि माता या पिता खाना पकाने के दौरान भी उन्‍हें छोटी-छोटी चीजें करने के लिए कहें. इससे बच्चे अपने आप को अकेला महसूस नहीं करेंगे. 

6. उन्‍हें दे प्रोत्‍साहन 

 घर के किसी काम करने के बाद उन्हें प्रोत्साहन दें, ये रिवार्ड्स पॉइंट्स के रूप में भी हो सकते हैं। जब कोई कार्य पूरा न हो पाया हो, तो उसके बदले में एक पॉइंट काट लें. यह बच्‍चों को यह बताने के लिए भी शानदार मौका है कि दैनिक कार्य किसी लिंग-विशेष के व्‍यक्ति के ही करने के लिए नहीं होते हैं, बल्कि इसका लड़का या लड़की, पुरुष या महिला होने से कोई लेन-देन नहीं होता. एक निश्चित पॉइंट हासिल कर लेने के बाद, आप उनके स्‍क्रीन टाइम को थोड़ा बढ़ा सकते हैं या उनके पसंद की कोई स्‍वादिष्‍ट चीज उन्‍हें दे सकते हैं.

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7. डिजिटल प्‍लेडेट्स 

अभी डिजिटल का जमाना है, ऐसे में बच्चे अपने दोस्तों के साथ फ़ोन पर भी बात कर लेते है. इंटरेक्टिव तकनीक के जरिए बच्‍चों को उसके दोस्‍तों के साथ प्‍ले डेट्स एरेंज किया जा सकता है. जैसे ऑनलाइन गेम्‍स,पहेलियां, छोटी बर्थडे पार्टी आदि. इससे उन्‍हें उनके दोस्‍तों के साथ जुड़े रहने में मदद मिल सकती है  और वे खुश भी रह सकते है. 

असल में लॉकडाउन में घर में लगातार रहना किसी के लिए भी आसान नहीं है। हमें पुराने नियमों को छोड़ नये नियमों, नये मानकों को अपनाना होगा. जहां माता-पिता को इस दौरान अपने बच्‍चों के लिए नई आदतें डालने की आवश्‍यकता है, वहीं पेरेंट्स के लिए यह भी समान रूप से महत्‍वपूर्ण है कि वो ऐसे कार्य करें जिससे इस अवधि का उपयोग बच्‍चों के सर्वांगीण विकास के लिए हो. 

करैक्शन : सोशल नहीं, बोलिए फिजिकल डिस्टेंसिंग

ताज़ा वैश्विक महामारी से चर्चा में आए कुछ शब्दों में से एक है सोशल डिस्टेंसिंग. दुनियाभर में इसे लागू किया गया और लोगों ने इस पर अमल भी किया, हालांकि, इस का मकसद दूसरा था. यानी, यह शब्द फिट नहीं. इस शब्द के इस्तेमाल करने की सलाह विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने दी थी.

दरअसल, सोशल डिस्टेंसिंग शब्द विरोधाभासी है. इस से लगता है कि हमें एकदूसरे से अलग हो जाना है.
जबकि दुनिया पर नजर डालें या औनलाइन मंचों को देखें तो पता चलता है कि लोग सिर्फ शारीरिक तौर पर दूर रहना चाहते हैं, सामाजिक तौर पर नहीं. यानी, एकदूसरे से कट कर नहीं.

विभाजनकारी है यह :

सोशल डिस्टेंसिंग शब्द तो ‘एकला चलो रे’ सरीखा गलत संदेश देता है. आगे चल कर यह सामाजिक ढांचे के थराशायी होने की वजह बन सकता है. यह विभाजनकारी शब्द लगता है.इस के इस्तेमाल से बचा जाना चाहिए. यह समाज को एकदूसरे से अलगअलग तरह से रहने के लिए प्रेरित करने के साथ उसे  सही भी ठहराता प्रतीत होता है.

भारत पर नजर डालें तो हमारा समाज एक लंबे समय तक छुआछूत, जो एक प्रकार की सोशल डिस्टेंसिंग ही है,  को मानता रहा है. जाति आधारित गांवों के विभिन्न टोले लंबे समय से चले आ रहे सोशल डिस्टेंसिंग के ही उदाहरण हैं.आज भी यह प्रथा और परंपरा
देश में मौजूद है.  बल्कि, भारत ही नहीं, दुनियाभर में रंग, नस्ल और जातिगत भेदभाव रहे हैं.

भारत में सोशल डिस्टेंसिंग रगरग में समाई है :

‘सोशल डिस्टेंसिंग’ को भारतीय जनमानस जिन अर्थों में ग्रहण करता है, उस के पीछे की सामाजिक व ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को ध्यान में रखना जरूरी है. यह शब्द हमारे देश में लंबे समय से सामाजिक वर्चस्व बनाए रखने के लिए इस्तेमाल होता रहा है. ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ हमेशा ताकतवर समूह द्वारा कमजोर समूह पर थोपी जाती है. भेदभाव और दूरी बनाए रखने व छुआछूत को अमल में लाने के तरीके के तौर पर इस का इस्तेमाल होता रहा है. यह पवित्र और अपवित्र की धार्मिक धारणा का सामाजिक जीवन में विस्तार है.

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दरअसल, सोशल डिस्टेंसिंग का कोरोना या किसी दूसरी बीमारी से कोई संबंध नहीं है. इस शब्द का प्रयोग समाज के शक्ति संबंधों को समझाने के लिए किया जाता है. कोरोना के फ़ैलने का संबंध ‘शारीरिक डिस्टेंसिंग’ से है न कि सोशल डिस्टेंसिंग से. यानी, बीमार व्यक्ति के शरीर से दूर रहो, अपनी बीमारी दूसरे को मत दो और दूसरे की बीमार मत लो.

डब्लूएचओ ने किया करैक्शन :

समाज विज्ञानियों के साथ अब डब्लूएचओ का भी मानना है कि कोरोना वायरस के चलते एकदूसरे से दूर रहने को ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ अपनाने को कहने से लोगों में गलत मैसेज जा रहा है. सो, वर्ल्ड हेल्थ और्गेनाइजेशन ने इस की जगह ‘फिजिकल डिस्टेंसिंग’ शब्द इस्तेमाल करने की घोषणा कर दी है.

डब्लूएचओ की महामारी विशेषज्ञ मारिया वान करखोव के हवाले से  डब्लूएचओ के स्टेटमैंट में कहा गया है – ‘सोशल कनैक्शन के लिए जरूरी नहीं है कि लोग एक ही जगह पर हों, वे तकनीक के जरिए भी जुड़े रह सकते हैं. इसीलिए हम ने इस शब्द में बदलाव किया है ताकि लोग यह समझें कि उन्हें एकदूसरे से संपर्क तोड़ने की नहीं, बल्कि केवल शारीरिक तौर पर दूर रहने की जरूरत है.’ यानी सामाजिक दूरी नहीं, बल्कि शारीरिक दूरी बनाना/रखना है ताकि वायरसी महामारी से सुरक्षित रहा जा सके. 6 फुट की दूरी पर रह कर लोग एकदूसरे से बात करें, एकदूसरे से संपर्क न तोड़ें. आसान शब्दों में – शारीरिक दूरी बनी रहे लेकिन सामाजिक संपर्क ख़त्म न हो.

कई समाज विज्ञानी और भाषा विशेषज्ञ शुरूआत से ही कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए एकदूसरे से दूर रहने को सोशल डिस्टेंसिंग कहने का विरोध कर रहे थे. उनका कहना था कि इस शब्द से लोगों में यह संदेश जाएगा कि उन्हें अपने आसपास के लोगों से बातचीत ही नहीं करनी है या उनसे किसी तरह का कोई संपर्क ही नहीं रखना है. कोरोना वायरस की भयावहता और उस के फैलने के तरीकों के चलते लोगों में इस तरह का भ्रम पैदा हो जाना स्वाभाविक ही था. मसलन, इस समय लोग बातचीत करने से इसलिए बच रहे हैं ताकि कहीं बोलते हुए सामने वाले व्यक्ति के मुंह से निकलने वाली सलाइवा ड्रौप्लेट्स (बूंदें) उन पर न गिर जाएं. ऐसा संक्रमण से बचने के लिए किया जा रहा है, न कि दूसरों से संपर्क ही तोड़ देने के लिए.

विशेषज्ञ कह रहे हैं कि यह शारीरिक दूरी रखने का समय है, लेकिन वहीँ यह सामाजिक व पारिवारिक तौर पर एकजुट होने का भी समय है. अमेरिका में नौर्थ ईस्टर्न यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के प्रोफैसर डेनियल एलड्रिच तो यहां तक कह रहे हैं कि सोशल डिस्टेंसिंग शब्द का इस्तेमाल न सिर्फ गलत है, बल्कि इस का ज्यादा इस्तेमाल नुकसानदेह साबित होगा. उन का संदेश है कि शारीरिक दूरी रखें और सामाजिक तौर पर एकजुटता बनाए रखें.

सरकार का सोशल डिस्टेंसिंग पर जोर :

कोरोनावायरस की महामारी के समय भारत में ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ शब्द काफी प्रचलित है. इस का प्रयोग प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने भाषण में किया है. स्वास्थ्य मंत्रालय भी इसी शब्द का इस्तेमाल अपने दस्तावेजों और निर्देशों में कर रहा है.

सोशल डिस्टेंसिंग को परिभाषित करते हुए भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि ‘यह संक्रामक बीमारियों को रोकने की एक अचिकित्सकीय विधि है जिस का मकसद संक्रमित और असंक्रमित लोगों के बीच संपर्क को रोकना या कम करना है ताकि बीमारी को फैलने से रोका जाए या संक्रमण की रफ्तार को कम किया जा सके. सोशल डिस्टेंसिंग से बीमारी के फैलने और उस से होने वाली मौतों को रोकने में मदद मिलती है.’

इस का वर्तमान संदर्भ में यह मतलब बताया जा रहा है कि लोगों को अनावश्यक एकदूसरे के संपर्क में या पासपास नहीं रहना चाहिए, बिना वाजिब वजह के घर से नहीं निकलना चाहिए, हाथ मिलाने या गले मिलने से परहेज करना चाहिए ताकि नोवल कोरोना वायरस फैल न सके.

 सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ :

जातियों में ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ जाति व्यवस्था को बनाए रखने के लिए है. इन में शादी, खानेपीने से ले कर छूने तक में ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का क्रूरतम रूप सामने आता है. अभी भी देश में पानी भरने से ले कर सार्वजनिक स्थलों, मंदिरों और कई जगहों पर रेस्टोरेंट व आटाचक्की तक पर दलितों के साथ ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ का व्यवहार किया जाता है. किस का बनाया हुआ खाना कौन खा सकता है और कौन नहीं खा सकता, इस का पूरा विधान है और वह व्यवस्था खत्म नहीं हुई है.

उच्च जातियों के लोग इस महामारी के दौरान ‘सोशल डिस्टेंसिंग’ के सूत्र से लोगों के सामने जातिव्यवस्था के औचित्य का तर्क रखने लग गए हैं. यह तर्क बारबार आ रहा है कि न छूकर किया जाने वाला अभिवादन, यानी हाथ जोड़ कर दूर से किया जाने वाला नमस्ते, भारतीय परंपरा की श्रेष्ठता को दर्शाता है. हालांकि, ऐसा बोलने वाले भूल जाते हैं कि चरणस्पर्श भी उसी परंपरा का हिस्सा है. समान लोगों के बीच गले मिलने यानी आलिंगन की भी परंपरा है. यानी, दूरी बरती जाती है का मतलब यह नहीं है कि दूरी हर किसी के बीच बरती जाती है.

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बहरहाल, विचारणीय यह भी है कि भारतीय समाज का आर्थिक रूप से निचला तबका न तो एक आदर्श फिजिकल डिस्टेंसिंग रख सकता है और न ही सोशल डिस्टेंसिंग. उस के सामने असल समस्या है-  भूख की, रोजगार की, जीवन जीने की, और अपने परिवार से दूर रहने की. मैट्रोपोलिटन शहरों में एकएक कमरे में कईकई कामगार एकसाथ रहते हैं, कितने ही परिवार छोटी सी झोपड़ी में जीवन बसर कर रहे हैं. उन से किसी भी प्रकार की फिजिकल डिस्टेंसिंग की बात करना मज़ाक करने जैसा है.

Monsoon Special: बारिश में खाएं चटपटी भुट्टा पकौड़ी

मानसून का महीना शुरू हो चुका है बरसात में एक ओर जहां मौसम ठंड़ा हो गया है वहीं इस मौसम में पकौड़े खैने का अपना अलग ही आनंद होता है. यूं तो पकौड़े अलग-अलग प्रकार के बनते हैं किसी को आलू तो किसी को गोभी के पकौड़े पसंद आते हैं लेकिन क्या कभी आपने भुट्टे के पकौड़े खाएं हैं? भुट्टे के पकौड़े खाने में जितने स्वादिष्ट होते हैं उतने ही बनाने में भी आसान होते हैं आइए जानते हैं क्या है भुट्टे के पकौड़े बनाने की रेसिपी.

हमें चाहिए

ताजे नर्म भुट्टे 1 किलो

एक-डेढ़ कप बेसन

1 शिमला मिर्च

1 प्याज( बारीक कटे हुए)

1 चम्मच अदरक-हरी मिर्च का पेस्ट

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चुटकी भर हींग

1 चम्मच चिली सॉस

2 चम्मच सोया सॉस

एक चम्मच सौंफ

स्वादानुसार नमक और तेल (तलने के लिए).

बनाने का तरीका

सबसे पहले भुट्टे कद्दूकस कर लें. फिर इसमें बारीक कटी सब्जियां, दोनों तरह के सॉस, नमक, अदरक व हरी मिर्च पेस्ट, हींग तथा सौंफ डालकर अच्छे से मिला लें और थोड़ा गाढ़ा घोल तैयार कर लें.

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अब एक कड़ाही में तेल गर्म करें. इसमें भुट्टे के मिश्रण के पकोड़े मध्यम आंच पर सुनहरे होने तक तल लें. पेपर पर अतिरिक्त तेल निकालने के लिए रखें. मनभावन भुट्‍टा पकौड़ी को टोमॅटो सॉस या ही चटनी के साथ गरमा-गरम परोसें.

डाइट में 7 बदलाव है जरूरी

हम खाना अपने शरीर की जरूरतों को पूरा करने के लिए ही नहीं खाते, बल्कि अपने स्वाद के लिए ज्यादा खाते हैं. इस चक्कर में हम पौष्टिक भोजन कम खाते हैं और जिन चीजों में न्यूट्रिऐंट्स कम और सिर्फ  टेस्ट ही होता है उन्हें खाने में हमारी ज्यादा दिलचस्पी होती है. आइए जानते हैं इस बारे में न्यूट्रिशनिस्ट प्रीति त्यागी से:

क्या है हैल्दी डाइट

हैल्दी डाइट से मतलब ऐसी डाइट से है, जिस में प्रोटीन, विटामिन, मिनरल, आयरन, कैल्सियम, कार्बोहाइड्रेट्स, फैट्स सभी पौष्टिक तत्व शामिल हो. क्योंकि अगर खाने में प्रोटीन का अभाव होगा तो हमें ऊर्जा नहीं मिल पाएगी, साथ ही जल्दीजल्दी संक्रमित होने के चांसेस भी रहते हैं. वहीं कैल्सियम मसल्स के फंक्शन के लिए तो जरूरी होता ही है साथ ही यह मेटाबोलिज्म के लिए भी सहायक होता है. वहीं कार्बोहाइड्रेट्स व फैट्स ऊर्जा प्रदान करने के साथसाथ हैल्दी सैल्स के निर्माण का कार्य करते हैं.

बता दें कि आयरन शरीर के लिए बहुत जरूरी होता है. यह पूरे शरीर में औक्सीजन को पहुंचाने का काम करता है.

वर्ल्ड हैल्थ आर्गेनाईजेशन के अनुसार, छोटी उम्र से ही क्रोनिक डिजीज जैसे डायबिटीज और उच्च रक्तचाप की शिकायत होने की एक मुख्य वजह अनहैल्थी ईटिंग हैबिट्स को अपनाना होता है.

आइए, जानते हैं कि कैसे अपने खानपान में सेहत को जोड़ा जा सकता है:

1. फास्ट नहीं आराम से खाएं

अगर हम किसी भी चीज को तुरंत बदलना चाहें तो नहीं बदल सकते, इस के लिए हमें धीरेधीरे अपनी पुरानी आदतों को बदलने की जरूरत होती है. बहुत से लोगों की यह आदत होती है कि उन के सामने खाना आया नहीं कि वे झट से खा लेते हैं. और इस बीच दोबारा भूख लगने पर दोबारा फरमाइश आ जाती है. ऐसा इसलिए होता है क्योंकि आप को कितना खाना खाना है और आप का पेट भरा है या नहीं यह सब हार्मोंस कंट्रोल करते हैं. ये हार्मोंस ब्रेन को सिग्नल देते हैं कि पेट खाली है या फुल. लेकिन जब ऐसा नहीं हो पाता तो ओवर ईटिंग होती है.

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अनेक शोधों में यह साबित हुआ है कि तेज स्पीड से खाना खाने वालों में मोटापे की समस्या देखी जाती है. इसलिए भले ही आप की डाइट हैल्दी हो लेकिन आप को अपनी इस आदत को बदलना होगा, तभी आप के शरीर को सभी न्यूट्रिऐंट्स का फायदा मिल पाएगा.

2. टीकौफी की जगह हो जाए छाछ

यों तो ज्यादातर लोग चायकौफी को थकान दूर करने के लिए पीते हैं, मगर फिर हम इसे अपनी आदत में शामिल कर लेते हैं और फिर जब भी मन करता है तो यही पीना पसंद करते हैं. जबकि इस के अधिक सेवन से नींद में दिक्कत, जलन जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं.

लेकिन अगर आप टी, कौफी की जगह छाछ का विकल्प चुनें, तो यह सिर्फ  हैल्दी औप्शन होता है बल्कि आप के शरीर की पानी की जरूरतों को भी पूरा करने का काम करता है. क्योंकि छाछ में 90% पानी जो होता है.

इस में प्रोटीन, फैट, कार्बोहाइड्रेट्स, कैल्सियम और विटामिंस आदि होते हैं जो शरीर की जरूरतों को पूरा करने के साथसाथ शरीर को ठंडक पहुंचाने का भी काम करते हैं. यहां तक कि यह लंबे समय तक टमी को भी फुल रखने का काम करते हैं, जिस से हम अनहैल्दी चीजों के सेवन से बचते हैं. आप को बता दें कि छाछ बौडी को डीटौक्स करने का भी काम करती है, जिस से शरीर से सारे विषैले तत्व बाहर निकल कर हमारी पाचन क्रिया सुचारु होती  है. छाछ में गुड बैक्टीरिया होते हैं जिस से हमारा इम्यून सिस्टम मजबूत बनता है. तो फिर दिन में

1-2 बार छाछ का सेवन जरूर करें.

3. ट्राई करें नई रैसिपीज

अगर हम खुद को व अपने परिवार को हैल्दी रखना चाहते हैं तो उन की अनहैल्दी ईटिंग हैबिट्स को हैल्दी ईटिंग हैबिट्स में बदलना होगा. और इस की शुरुआत आप कुछ अलग कर के कर सकती हैं. जैसे रोजरोज एक ही रैसिपी को बनाने से बेहतर होगा कि आप हफ्ते में 1-2 बार कुछ अलग हैल्दी रैसिपी बनाएं. जैसे अंडे का चीला, मिक्स वैज परांठा आदि. यकीन मानिए आप का ये आईडिया आप के परिवार को फिट रखने का काम करेगा.

4. फ्रूट जूस की जगह फ्रूट्स

कुछ लोगों को फू्रट्स खाने से ज्यादा फ्रूट जूस पीना अच्छा लगता है. भले ही वह घर में निकाला हुआ हो या फिर बाहर का हो. लेकिन यह ओप्शन हैल्दी नहीं है. क्योंकि जहां हम एक फ्रूट खा कर संतुष्ट हो जाते हैं वहीं जूस की फौर्म में हम उसी फू्रट को कई गुना ज्यादा लेते हैं. जूस पीने से फाइबर की मात्रा भी घटती है और शुगर इन्टेक भी ज्यादा होता है, क्योंकि वह तुरंत डाइजैस्ट जो हो जाता है.

जबकि फू्रट्स वाटर, फाइबर, विटामिंस और ऐंटीऔक्सीडैंट्स से भरपूर होते हैं. जो डायबिटीज, दिल की बीमारियों व कैंसर से बचाने का काम करते हैं. धीरेधीरे पचने के कारण ये ब्लड शुगर लेवल को भीबढ़ने नहीं देते हैं. इसलिए आप हैल्दीरहने के लिए अपनीडाइट में रोजाना एक फ्रूट को शामिल जरूर करें और फू्रट जूस पीने की हैबिट को धीरेधीरे छोड़ें.

5. साबुत अनाज है सेहत का राज

क्या आप जानते हैं कि साबुत अनाज में सेहत का राज छिपा होता है, क्योंकि इस में भरपूर मात्रा में विटामिन बी, विटामिन ई, मैग्निसियम, फाइबर, कार्बोहाइड्रेट्स जो होते हैं, जो सेहत के लिहाज से काफीजरूरीमाने जाते हैं.

कई शोधों में यह साबित हुआ है कि जो लोग साबुत अनाज, दालों व साबुत अनाज से बनीचीजों का सेवन करते हैं उन्हें  डायबिटीज, हार्ट प्रौब्लम्म, ब्लड प्रेशर कीशिकायत कम होतीहै. यहां तक कि साबुत अनाज वजन कम करने में भीसक्षम है, क्योंकि ये फाइबर से भरपूर जो होते हैं. यहां तक कि आंतों कीसूजन को भीकम करता है. इसलिए आप साबुत अनाज को अपनीडेलीडाइट में जरूर शामिल करें.

6. सब्जियों व दालों के बिना खाना अधूरा

वह खाना हीक्या जिस में दाल व सब्जियां न हों, क्योंकि इन से सिर्फ हमारीथालीकीरौनक बढ़तीहै, बल्कि इन में प्रोटीन, मैग्निसियम, आयरन, कैल्सियम, विटामिंस होते हैं. साथ हीइन में पानीकीमात्रा ज्यादा और कैलोरीज कम होने के कारण ये आप के शरीर कीजरूरतों को पूरा करने का काम करते हैं. ये उच्च रक्तचाप कीसमस्या से भीनजात दिलवाते हैं, क्योंकि इन में पोटैशियम कीमौजूदगीजो होतीहै, जो शरीर में नमक की मात्रा को संतुलित बनाने का काम करतीहै. साथ हीइन के सेवन से स्किन हैल्दीभीहोतीहै, क्योंकि जब शरीर अंदर से फिट होगा तभीतो बाहर से स्किन खिलीखिली नजर आएगी.

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7. सब्जियों का सूप

अकसर हमें बीचबीच में भूख लगतीरहतीहै ऐसे में हम अपनीभूख को शांत करने के लिए कभीचिप्स खा लेते हैं तो कभी बिस्कुट या फिर फ्राइड चीजें. ये सभी भले हीहमारीभूख को शांत कर दे, लेकिन इन से हमारे शरीर को कोई फायदा नहीं पहुंचता. लेकिन अगर आप अपनीभूख को शांत करने के लिए सब्जियों का सूप लें, जो विटामिन, कैल्सियम, पोटैशियम से युक्तहोने के कारण आप कीइम्युनिटीको बढ़ाने का काम करता है.

ड्राईफू्रट्स रखेंगे आप को तंदुरुस्त

अकसर हम यहीसोचते हैं कि अगर हम ड्राईफ्रूट्स खाएंगे तो मोटे हो जाएंगे, जबकि ऐसा नहीं है, क्योंकि ड्राईफू्रट्स आप को फुल, फिट रखने के साथसाथ इम्युनिटी बूस्टर का काम करते हैं. इसलिए रोज थोड़े से नट्स जरूर खाएं. इस से आप कीसोचनेसमझने कीशक्ति बढ़तीहै और आप बीमारियों से बचे रहते हैं. इस तरह आप खुद को व अपने परिवार को हैल्दी रख सकती हैं.

-पारुल भटनागर द्य

फिल्मों में डांस बनावटी

टैलीविजन अचानक पुराना पड़ गया है, जो भी आज दिखाया जा रहा है यदि उस में कोरोना का नाम नहीं है तो पुराना है जो आज के युग में हकीकत से मेल नहीं खाता. कपिल शर्मा शो में भारी भीड़ अजीब लगती है, क्योंकि पक्का है कि अभी महीनों तक इस तरह की भीड़ नहीं जुटेगी. फिल्मों में डांस बनावटी लगते हैं, क्योंकि अब तो 10 लोगों का एकसाथ नाचना सपनों की तरह लगता है.

अब लोग भरे बाजार में चलना भूल गए हैं और इसलिए फिल्म में भीड़ दिखे तो लगता है कि यह साइंस फिक्शन है, असलियत से दूर. अगर कहीं ट्रैवल शो हो तो ऐसा लगता है मानो नील आर्मस्ट्रांग को चांद की धरती पर उतरते देख रहे हैं. स्विट्जरलैंड तो न जाने कौन से ग्रह पर है. अब तो शिमला और गोवा भी अपने देश के नहीं लगते.

अब टैलीविजन के इंटरव्यू घरों से हो रहे हैं, जिन में स्काइप की पूअर क्वालिटी पर आड़ेतिरछे बैठे पात्र नजर आ रहे हैं और पीछे से उन के मकान उन की चुगली कर रहे हैं. टीवी स्क्रीनों पर शार्पनैस गायब हो गई है.

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फिल्मों का भी यही हाल है. कल की बौक्स औफिस हिट फिल्म चाहे 2019 में ही क्यों न बनी हो लगता है किसी पुराने जमाने की बात कर रही है. जब हमें यह भी नहीं पता कि कोरोना के बाद नया रोमांस कब किस से कैसे होगा फिल्मों में ट्रेन या हवाईजहाज अथवा रेस्तरां में होने वाला रोमांस कैसे अच्छा लगेगा?

कोरोना ने पूरा साहित्य बदल डाला है. मार्च, 2020 से पहले लिखा गया सबकुछ निरर्थक हो गया है. साहित्यिक उपन्यासों पर बनी फिल्मों में बनावटीपन दिखने लगा है. नाचगाने अजीब लगने लगे हैं. अब तो हरेक को अपने घर में नाचना पड़ रहा है, अकेले.

शादियां, शिक्षा, कामकाज सब बदल रहा है और जो कुछ भी इस बदलाव से पहले रचा गया, फिल्माया गया वह सब पुराना पड़ गया है. कोरोना ने टैलीविजन को तो बदल ही दिया है, आप भी ज्यादा कल तक में न चिपकी रहें, पुरानी पड़ जाएंगी.

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नेक्स्ट डोर महिला जब पति में कुछ ज्यादा  रुचि लेने लगे

मेघा ने अपने नए पड़ोसियों का स्वागत खुले दिल से किया, फ्लोर पर ही सामने वाले फ्लैट में आए अंजलि, उस के पति सुनील और उन की 4 साल की बेटी विनी भी उन से अच्छी तरह बात करते, सामना होने पर हंसते, मुसकराते, सुनील का टूरिंग जौब था, मेघा के पति विनय और उन का युवा बेटा यश थोड़े इंट्रोवर्ट किस्म के इंसान थे.

कुछ ही दिन हुए कि मेघा ने नोट किया कि अंजलि जानबूझ कर उसी समय पार्किंग में टहल रही होती है जब विनय का औफिस से आने का समय होता है. पहले तो उस ने इसे सिर्फ इत्तेफाक समझा पर जब विनय ने एक दिन आ कर बताया कि अंजलि उस से बातें करने की कोशिश भी करती है, उन का फोन नंबर भी यह कह कर ले लिया कि अकेली ज्यादा रहती हूं, पड़ोसियों का नंबर होना ही चाहिए तो मेघा हैरान हुई कि कितनी बार तो उस से उस का आमनासामना होता है, उस से तो कभी ऐसी बात नहीं की.

अंजलि अकसर उस टाइम आ धमकने भी लगी जब वह किचन में बिजी होती, विनय टीवी देख रहे होते. उस के रंगढंग मेघा को कुछ खटकने लगे. एक दिन विनय ने बताया कि वह उन्हें मैसेज, जोक्स भी भेजने लगी है. पहले तो मेघा को बहुत गुस्सा आया फिर उस ने शांत मन से विनय को छेड़ा, ‘‘तुम इस चीज को एेंजौय तो नहीं करने लगे?’’

‘‘ऐंजौय कर रहा होता तो बताता क्यों,’’ विनय ने भी मजाक किया, ‘‘मतलब तुम्हारा पति इस लायक है कि कोई पड़ोसन उस से फ्लर्ट करने के मूड में है, माय डियर प्राउड वाइफ.’’

‘‘चलो, फिर पड़ोसन का फ्लर्टिंग का भूत उतारना तो मेरे बाएं हाथ का काम है. अच्छा है, तुम्हें इस में मजा नहीं आ रहा नहीं तो 2 का भूत उतारना पड़ता,’’ मेघा की बात पर विनय ने हंस कर हाथ जोड़ दिए.

अगले दिन मेघा विनय के आने के समय पार्किंग प्लेस के आसपास टहल रही थी. उसे अंजलि दिखी, अचानक अंजलि उसे देख कर थोड़ी सकपका गई, फिर हायहैलो के बाद जल्दी ही वहां से हट गई. मेघा मन ही मन मुसकरा कर रह गई. शाम के समय विनय और यश टीवी में मैच देख रहे थे, वह भी आ धमकी और यह कहते हुए विनय के आसपास ही बैठ गई कि

उसे भी मैच देखने का शौक है. उस के पति को तो स्पोर्ट्स में जरा भी रुचि नहीं. उस की बात सुनते ही मेघा बोली, ‘‘आओ अंजलि, हम लोग अंदर बैठते हैं. इन दोनों को मैच देखने में क्या डिस्टर्ब करना.

‘‘नहीं, मैं अब चलती हूं, विनी अकेली है.’’

‘‘हां, उसे अकेली ज्यादा मत छोड़ा करो.’’

उस दिन तो जल्दी ही अंजलि चली गई. फिर एक दिन विनय ने कहा, ‘‘यार, काफी मैसेज भेजती रहती है, कभी गुडमौर्निंग, कभी जोक्स.’’

‘‘दिखाना,’’ मेघा ने विनय के फोन पर अंजलि के भेजे मैसेज पढ़े, सभी ऐडल्ट जोक्स वीडियो भी आपत्तिजनक, जिन्हें विनय ने देखा ही नहीं था अभी तक, क्योंकि विनय औफिस में ज्यादा ही बिजी रहता था और वह उसे बिलकुल भी लिफ्ट देने के मूड में था ही नहीं. अब मेघा गंभीर हुई.

अगले दिन यों ही अंजलि के फ्लैट पर गई. थोड़ी देर बैठने के बाद उस ने बातोंबातों में कहा, ‘‘तुम शायद बहुत बोर होती हो. विनय बता रहे थे कि उन्हें खूब वीडियो, जोक्स भेजती रहती हो. उन्हें तो देखने का भी टाइम नहीं, मैं ने ही देखे वे वीडियो, उन्हें भेजने का क्या फायदा मुझे भेज दिया करो, मैं देख लूंगी. विनय कुछ अलग टाइप के इंसान हैं, मुझ से कुछ छिपाते नहीं, तुम मेरा फोन नंबर ले लो.’’ अंजलि को बात संभालना मुश्किल हो गया. बुरी तरह शर्मिंदा होती रही. मेघा घर लौट आई. उस दिन से कभी अंजलि ने विनय को एक मैसेज भी नहीं भेजा, न उस के आसपास मंडराई. उस का किस्सा मेघा की लाइफ से खत्म हुआ.

मामला अलग स्थिति अलग

अगर यहां विनय पड़ोसन के साथ फ्लर्ट कर रहा ?होता तो बात दूसरी होती, समस्या पड़ोसन की नहीं, पति की होती पर यहां मामला अलग था. ऐसी स्थिति को बहुत जल्दी ही संभाल लेना चाहिए, फ्लर्टिंग को अफेयर बनते देर नहीं लगती.

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ट्रेसी कौक्स जो डेटिंग, सैक्स और रिलेशनशिप ऐक्सपर्ट हैं, का कहना है कि महिलाएं विवाहित पुरुषों की तरफ ज्यादा आकर्षित होती हैं, कोई महिला आप के पति के साथ फ्लर्ट कर रही है या नहीं, कैसे समझ सकते हैं, जानिए:

– यदि आप का पति उस की कौल्स और मैसेज के बारे में आप को बता देता है तो इस का मतलब है कि वह आप को प्यार करता है, पर यदि आप को खुद ही यह सब पता चला है तो इस का मतलब है कि आप के पति भी उसे बढ़ावा दे रहे हैं.

– जब वह आप के पति के आसपास मंडराती

है तो वह कुछ अलग ही मेकअप, कपड़ों में होती है, वह उस में रुचि ले रही हैं तो उस

का ध्यान आप के पति को आकर्षित करने

में होगा.

– कोई भी महिला जो किसी विवाहित पुरुष में रुचि लेती है, वह हमेशा यह दिखाने की कोशिश करती है कि वह उस की पत्नी से

बैटर है, अगर उसे पता चलता है कि पति

को कोई शौक है और पत्नी को नहीं है तो वह पति वाले शौक को ही अपना बताने की कोशिश करेगी.

क्या करें

अब सवाल यह उठता है कि ऐसे में एक पत्नी को क्या करना चाहिए, अपने पति पर शक करते हुए उस से सवालजवाब करने से आप के वैवाहिक जीवन में तनाव हो सकता है, उसे ऐसा लगेगा कि आप उस पर विश्वास नहीं करतीं, यह बात आप को नुकसान पहुंचा सकती है, पति के साथ फ्लर्ट करने वाली महिला के साथ कैसे व्यवहार करें, ऐसी कुछ टिप्स जानिए:

– पड़ोसन को सीधेसीधे कुछ कहेंगीं तो आप सनकी, इन्सेक्युर पत्नी लगेंगी. उस के साथ अच्छी तरह पेश आइए, ऐसे कि वह असहज हो जाए. सच यही है कि वह आप को पसंद नहीं करती होगी क्योंकि उस की रुचि आप के पति में है. उसे यह न महसूस होने दें कि आप भी उसे पसंद नहीं करतीं, उस की अच्छी फ्रैंड होने का नाटक करें, उसे अपने पति के साथ टाइम बिताने का मौका बिलकुल न दें. वह खुद ही अनकंफर्टेबल हो कर पीछे हट जाएगी.

– अपने पति से बात करें. उस के इरादों के बारे में आप के पति को भी संदेह हो सकता है. अपने पति पर सवालों की बौछार न करते हुए शांति से बात करें. याद रखें, यहां विक्टिम वह है, उस से पूछें कि क्या उसे भी यही लग रहा है कि पड़ोसन उस के साथ फ्लर्ट कर रही है. यदि पति कहे कि आप को ही बेकार का शक हो रहा तो उन्हें घटनाओं के साथ स्पष्ट करें कि वह फ्लर्ट कर रही थी. अपने पति की इस स्थिति को समझने में हैल्प करें और मिल कर इस से निबटें.

– इस स्थिति पर हंसना सीखें. कोई महिला उस पुरुष के साथ फ्लर्ट करने की कोशिश कर रही है जो आप को प्यार करता है, यह तो फनी है.  अपने विवाह पर फोकस रखें, हर समय इस महिला के बारे में सोच कर तनाव में न रहें.

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– ऐसी महिलाएं आप के और आप के पति के बीच मिसिंग स्पार्क का फायदा उठाने की कोशिश करती हैं. इसलिए उन्हें ऐसा करने का मौका न दें.

अपने पति पर विश्वास रखें, उसे बताएं कि आप को उस पर विश्वास है भले ही कोई भी स्थिति हो. यदि वह गलत नहीं है तो उसे अच्छा लगेगा कि उस की पत्नी को उस पर विश्वास है.

अगर पतंजलि के सारे दावे सही हैं तो तथ्यों और सबूतों के साथ यह आंखमिचैली क्यों?

पतंजलि योगपीठ के आयुर्वेदाचार्य और पतंजलि कारोबार के कार्यकारी मुखिया आचार्य बालकृष्ण ने सबसे पहले 11 जून 2020 को एक प्रेस कान्फ्रेंस की थी, जिसमें यह दावा किया गया कि उन्होंने कोरोना की दवा बना ली है, जिससे शत प्रतिशत नतीजे हासिल हुए हैं यानी जिस भी मरीज पर उस दवा का इस्तेमाल किया गया, वो सब सही हुए. यही नहीं आचार्य बालकृष्ण ने यह भी कहा कि 80 फीसदी मरीज तो सिर्फ 5 से 6 दिन के भीतर ठीक हो गये. कुछ को ठीक होने में 12 से 14 दिन लगे. लेकिन अधिकतम 14 दिनों के भीतर सभी मरीज ठीक हो गये यानी उनकी दवा 100 फीसदी कारगर रही. इस काॅन्फ्रेंस में आचार्य बालकृष्ण ने यह भी घोषणा की थी कि अगले 4-5 दिनों में यानी 15-16 जून 2020 तक हम अपनी इस दवा के लिए किये गये व्यापक शोध का क्लिनिकल कंट्रोल डाटा पूरी दुनिया के सामने उजागर कर देंगे.

लेकिन क्लिनिकल कंट्रोल डाटा या क्लिनिकल ट्रायल डाटा तो दावे के मुताबिक कुछ नहीं पेश किया गया, हां, 23 जून 2020 को योगगुरु बाबा रामदेव कुछ वैज्ञानिकों और अपने सहयोगियों के साथ हरिद्वार में प्रेस काॅन्फ्रेंस करके कोरोना की दवाई जरूर पेश कर दी. इसका नाम कोरोनिल है. दिव्य कोरोनिल टैबलेट. बाबा रामदेव ने भी आचार्य बालकृष्ण की तरह प्रेस काॅन्फ्रेंस में कहा कि हमने इसे बनाने के पहले क्लिनिकल कंट्रोल स्टडी की है और फिर 100 लोगों पर इसका टेस्ट किया गया है जिनमें 65 फीसदी पाॅजीटिव रोगी, 5 दिनों के अंदर नेगेटिव हो गये. यही नहीं उनके मुताबिक अगले 7 दिन में सभी 100 फीसदी रोगी बिल्कुल ठीक हो गये. इस तरह उनकी दवा की 100 फीसदी रिकवरी रेट हुई. पतंजलि के दावों के मुताबिक उनका यह शोध और ट्रायल जयपुर के बाहरी हिस्से में स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज द्वारा किया गया है.

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लेकिन अभी इस प्रेस काॅन्फ्रेंस के 24 घंटे भी नहीं गुजरे थे कि भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने साफ कर दिया कि उन्हें ऐसी किसी दवा के बारे में कोई जानकारी नहीं है और न ही उसके लिए किये गये किसी तरह के शोध या टेस्ट की जानकारी है. यही नहीं आयुष मंत्रालय ने साफ शब्दों में कह दिया कि पतंजलि को अपना विज्ञापन तत्काल बंद करना होगा. क्योंकि ड्रग एंड रेमेडीज एक्ट 1954 के मुताबिक यह अपराध है.

हालांकि आचार्य बालकृष्ण ने ट्वीट करके कहा कि आयुष मंत्रालय को सफाई दे दी गई है, साथ ही उन्हें वो सारे डाक्यूमेंट भिजवा दिये गये हैं. लेकिन इस ट्वीट के बाद भी समस्या खत्म नहीं हुई. हद तो यह है कि उत्तराखंड सरकार पर जब यह दबाव पड़ा कि किस आधार पर दवा को लाॅन्च किया गया है, तो सरकार के आयुर्वेद लाइसेंसिंग अथाॅरिटी के ड्रग डिपार्टमेंट ने साफ शब्दों में कहा कि पतंजलि को जो लाइसेंस दिया गया है वो इम्यूनिटी बूस्टर दवा के नाम पर दिया गया है, जो बुखार और खांसी की दवा है. उन्हें कोरोनिल टैबलेट के लिए कोई लाइसेंस नहीं दिया गया.

इस तरह देखा जाए तो साफ साफ पता चलता है कि चाहे पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड के सीईओ आचार्य बालकृष्ण हों या योगगुरु बाबा रामदेव. किसी ने भी तथ्यों के संदर्भ में ही नहीं अपनी कही बातों के संदर्भ में भी ईमानदारी और पारदर्शिता नहीं बरती. ऐसे में सोशल मीडिया से लेकर आम जनजीवन तक इस संबंध में भारी प्रतिक्रिया होनी ही थी.  हालांकि दुनिया के ज्यादातर देशों ने इस दावे पर आश्चर्य नहीं जताया और न ही इसे खारिज किया. लेकिन भारत में विशेषकर सोशल मीडिया में एक बड़ा तबका है, जिसने पतंजलि की इस सारी चूक को सरासर षड़यंत्र के रूप में पेश किया.

सवाल उठता है एक ऐसे समय में जबकि आयुष मंत्रालय ने वैकल्पिक दवाओं के निर्माताओं को स्पष्ट तौरपर चेतावनी दी है कि कोई भी दवा निर्माता उपभोक्ताओं को गुमराह करने के लिए अपने उत्पाद को झूठमूठ में कोविड-19 के इलाज या रोकथाम में कारगार बताकर प्रचारित नहीं करे, वरना 6 साल तक की सजा और 1 लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है.

सवाल है ऐसे समय में आखिरकार पतंजलि ऐसा गड्डमड्ड क्यों कर रहा है? जिससे अगर वह चोर नहीं है तो चोर जैसा साबित हो और अगर वाकई उसने बिना किसी ठोस सबूत के ये तमाम दावे किये हैं तो फिर हैरानी इस बात पर है कि ये सब क्या हो रहा है? क्योंकि कोई सामान्य समय हो तो अलग बात है, इस समय पूरी दुनिया कोरोना की दवा पाने के लिए व्याकुल है. इस समय दुनिया का शातिर से शातिर शख्स भी ऐसी शातिरी नहीं दिखा सकता. क्योंकि इस समय दुनियाभर में हजारों, लाखों वैज्ञानिक और वैज्ञानिक अनुसंधान कोरोना के क्षेत्र में ही दिन रात नजरें गड़ाये हुए हैं.

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लेकिन इस सबके बीच पतंजलि के विरोधी जिस तरह पतंजलि के संजीवनी बूटी के दावे को सामने रख रहे हैं, जो कि ऐसी ही बड़ी घोषणा के बाद झूठ निकला था, उस सबको देखते हुए लगता है कि अगर वाकई पतंजलि के पास ठोस सबूत हैं तो उन्हें उसने अपने दावे के मुताबिक दवा लांच करने के पहले क्यों नही पेश किया? अगर बाबा अपनी विरोधियों के मुताबिक पैसा कमाने के लिए झूठ का सहारा ले रहे हैं तो यह झूठ कम से कम इस समय नहीं चलने वाला और इससे पतंजलि की अब तक की साख मिट्टी में मिल जायेगी. अगर लगा कि वह सरकार से नजदीकी होने के कारण कोई चतुराई दिखा रहे थे.

हालांकि पतंजलि योगपीठ का दावा है कि उन्होंने जनवरी 2020 में ही इस संबंध में शोध शुरु कर दिये थे और करीब 1550 पौधों के कंपाउंडों का दिन-रात अध्ययन करके इस दवा तक पहुंचे हैं. इसमें पतंजलि योगपीठ के मुताबिक उनकी 14 वैज्ञानिकों की टीम पूरी दुनिया के उन वैज्ञानिकों के साथ संपर्क में रही है, जो इस पर काम कर रहे हैं. इन तमाम दावों के बीच भी सवाल उठता है कि उसने सबूत क्यों नहीं पेश किये? अगर ये दावे गलत निकलते हैं तो सिर्फ पतंजलिभर की थू थू होगी बल्कि पूरे देश की साख में बट्टा लग जायेगा.

25 जून से शुरू हुआ इन 2 शोज का शूट, जानें कब होगी ‘Ye Rishta’ की शूटिंग

महाराष्ट्र सरकार से 31 मई को ही फिल्म,टीवी सीरयल और वेब सीरीज की शूटिंग शुरू करने को लेकर दिशा निर्देश आ गए थे, मगर बाॅलीवुड में कार्यरत एसोसिएशनो के बीच कई मुद्दों पर आम सहमति न बन पाने की वजह से मामला अटका हुआ था और शूटिंग शुरू नही हो पा रही थीं.टीवी सीरियल के निर्माता और उनके संगठन अपनी अकड़ बनाए रखना चाहते थे.जिसके चलते 20 और 22 जून से टीवी सीरियल शुरू करने की कुछ निर्माताओं द्वारा घोषणा किए जाने के बावजूद शूटिंग शुरू नहीं हो पायी थी. सूत्रों के अनुसार ब्राडकास्टर के दबाव में सीरियल के निर्माता व उनके संगठन  कलाकारों, तकनीशियन व वर्कर के साथ अव्यावहारिक रवैया अपनाने पर ही अड़े हुए थे.

सीरियल निर्माताओं के अपने तर्क थे.वह कह रहे थे कि ‘‘हर स्टेक होल्डर (कलाकार, निर्देशक, लेखक, निर्माता, तकनीशियन, वर्कर आदि) को इस संबंध में अपने अपने हिसाब से सोचना पड़ेगा कि यदि ब्राडकास्टर बजट में पंद्रह से पैंतिस प्रतिशत कटौती कर रहा है, तो उन्हें भी कुछ कटौती करके लेना पड़ेगा. यदि कोई स्टेक होल्डर यह समझता है कि हम तो कुछ करेंगे नहीं, हम कोई कटौती नहीं करेंगे,सारा बोझ निर्माता ही वहन करे और सेट पर डाक्टर भी आ जाए, एंबुलेंस भी आ जाए,इंषुरेंस भी हो जाए तथा शूटिंग शुरू हो जाए,तो मैं समझता हूं कि बहुत मुश्किल है.’’पर यह निर्माता इस बात को नजरंदाज कर रहे थे कि कलाकारों व तकनीशिन की जिन शर्तों पर सहमति बनाकर कलकत्ता यानी कि बंगला फिल्म व टीवी इंडस्ट्री में शूटिंग शुरू  हुई है,उन पर बाॅलीवुड में सहमति क्यों नहीं हो सकती.

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बहरहाल, बुधवार को महाराष्ट्र सरकार ने 31 मई के दिशा निर्देश में कुछ बदलाव करने का नया आदेश जारी कर दिया,तो वहीं बुधवार को ही देर रात तक आईएफटीपीसी,सिंटा और एफ डब्लूआई सी ई के बीच वच्र्युअल बैठकों का लंबा दौर चला,जिसके बाद उन सभी मुद्दों को हल कर लिया गया,जिससे फिर से शूटिंग शुरू करने का मार्ग प्रशस्त हो गया.फिलहाल यह आम सहमति तीन माह तक के लिए बनी है.इस बीच हर पंद्रह दिन में एक कमेटी हालात का जायजा लिया करेगी और शूटिंग के दौरान जो व्यावहारिक दिक्कतें आएंगी,उन पर बात की जाएगी.

‘आईएफटीपीसी’, ‘सिंटा’और ‘एफ डब्लूआई सी ई’के साथ ब्राडकास्टर ने जिस तरह से फैसला लिया,उसके चलते आज से ही रश्मि शर्मा निर्मित दो सीरियलों ‘शक्ति’ और ‘प्यार की लुका छिपी’की शूटिंग शुरू हो गयी है.वास्तव में इनका मुंबई से सटे सुरक्षित जोन वाले इलाके नायगांव में अपना स्टूडियो है.इन्होने अपने स्टूडियो व सभी उपकरण पहले से ही सेेनेटाइज करा लिए थे.इतना ही नहीं पिछले एक सप्ताह से इनके लाइट मैन व स्पाॅट ब्वाॅय तो इस स्टूडियो में ही रह रहे थे.जबकि शनिवार से राजन साही अपने तीन सीरियलों ‘‘अनुपमा’’, ‘‘यह रिश्ता क्या कहलाता है’’और ‘‘यह रिश्ते प्यार के’’की शूटिंग शुरू करेंगे.

अब तक सीरियल निर्माता और सीरियल निर्माता संगठन ‘आईएफटीपीसी’ कोरोना सुरक्षा के लिए बीमा के मसले पर ही तांग अड़ाए हुए थे,मगर इस बैठक में बीमा कवरेज के दो सेट प्रदान करने पर सहमति व्यक्त बन गयी.यानी कि ‘कोविड -19’के कारण 25 लाख रुपए का मृत्यु बीमा और दो लाख रूपए का अस्पताल में इलाज का बीमा हर क्रू मेंबर को देने पर सहमति बन गयी. इसी के साथ ‘आईएफटीपीसी’ने आष्वस्त किया कि   सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार हर सावधानी को पूरे कलाकारों ,तकनीषियन,वर्कर आदि की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सेट पर उपाय किए जाएंगे.

अब तक पुनः शूटिंग शुरू करने के लिए‘‘सिंटा’’व ‘‘एफ डब्लूआई सी ई’’की सबसे बड़ी माॅंग पारिश्रमिक राषि के भुगतान को लेकर थी, इस पर भी आम सहमति बन गयी.अब‘आईएफटीपीसी’ने मान लिया है कि पारिश्रमिक राशि के भुगतान की अब तक जो नब्बे दिन की प्रथा चली आ रही थी, उसे खत्म कर तीस दिन में पारिश्रमिक राशि का भुगतान किया जाएगा. तीन माह बाद पुनः हर स्थिति को लेकर बैठक होगी.

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इस बैठक में कोरोना के दौरान कलाकारों और वर्करों के लिए ‘‘सिंटा’’व ‘‘एफ डब्लूआई सी ई’’द्वारा उठाए गए कदमों को भी किए गए ‘आईएफटीपीसी’ने स्वीकार किया. ‘आईएफटीपीसी’ने माना कि कोरोना व लाॅक डाउन के आपत्तिकाल में राष्ट्रीय हित के मद्देनजर श्रमिकों ने अनुकरणीय समझ और परिपक्वता दिखायी.

‘आईएफटीपीसी’के अध्यक्ष साजिद नाडियाडवाला ने ‘‘सिंटा’’,‘‘एफ डब्लूआई सी ई’’,ब्राॅडकास्टर,महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री  उद्धव ठाकरे,संस्कृति मंत्री अमित देषमुख, सांस्कृतिक सचिव डॉ संजय मुखर्जी, और श्री आदेश बांदेकर के के अनुकरणीय सहयोग के लिए आभार माना.

इस बैठक में आईएफटीपीसी  की टीवी और वेब शाखा के अध्यक्ष जे डी मजीठिया के साथ श्यामाशीश भट्टाचार्य व नितिन वैद्य,‘‘एफ डब्लूआई सी ई’’के अध्यक्ष बीएन तिवारी के साथ अशोक दुबे व गंगेश्वर श्रीवास्तव  तथा ‘सिंटा’की तरफ से अध्यक्ष मनोज जोशी के साथ उपाध्यक्ष  दर्शन जरीवाला,वरिष्ठ संयुक्त सचिव अमित बहल,कार्यकारिणी सदस्य संजय भाटिया ने हिस्सा लिया.

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