बौलीवुड के ये गाने बनाएंगे Janmashtami को और भी स्पैशल

बौलीवुड फिल्मों में शुरुआत से ही हर फेस्टिवल को धूमधाम से दिखाया जाता है. होली-दिवाली से लेकर राखी तक हर त्यौहार के लिए फिल्मों ने गाने दिए है. तो जन्माष्टमी के मौके पर हम आपको कुछ ऐसे ही गानों के बारे में बताने जा रहे हैं जो हर साल जन्माष्टमी के अवसर पर सभी के जुबान पर आ ही जाते हैं.

1. गो गो गो गोविंदा…

जन्माष्टमी के सदाबहार गानों में ये गाना सबसे टौप पर है. फिल्म ‘ओह माइ गोड’ (2012) के इस गाने को सुनकर बेहद अच्छा लगता है. इस गाने में प्रभुदेवा और सोनाक्षी सिन्हा जमकर दहीहांडी के कार्यक्रम में ठुमके लगा रहे हैं. इस गाने के पीछे श्रेया घोषाल और अमित त्रिखा की आवाज है.

2. राधे राधे

एक के बाद एक हिट फिल्में करने के बाद आयुष्मान खुराना की अपकमिंग फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’ का पहले गाने का नाम है ‘राधे राधे’ और इस गाने को अपनी आवाज दी है, मीत ब्रदर्स और अमित गुप्ता ने. जन्माष्टमी के अवसर पर फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’ के पहले सौंग राधे राधे को दर्शको ने काफी पसंद किया है और भरपूर प्यार दिया है.

3. राधा नाचेगी…

2015 में सोनाक्षी सिन्हा और अर्जुन कपूर की फिल्म ‘तेवर’ में ‘राधा नाचेगी’ नाम का गाना दिखाया गया था. इसमें सोनाक्षी ने राधा बनकर बेहतरीन डांस किया है. इस गाने की आवाज़ के पीछे ऋतु पाठक, शबाब सबरी और दानिश सबरी है.

4. राधा औन द डांस फ्लोर…

जैसा कि आप सब जानते हैं करण जौहर की फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ से आलिया भट्ट, सिद्धार्थ मल्होत्रा और वरुण धवन ने डेब्यू किया था. इसी फिल्न का एक गाना है ‘राधा’ जिसमें आलिया भट्ट काफी अच्छा डांस करती दिखाई दे रही हैं. फिल्म ‘स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ की ये गाना दर्शको ने बहुत पसंद किया था. इस गाने को आवाज़ श्रेया घोषाल, उदित नारायण, विशाल ददलानी, और शेखर रविजानी ने दी है.

5. गोविंदा आला रे…

‘रंगरेज’ फिल्म(2013) का यह प्यारा गाना किसे याद नहीं होगा. दहीहांडी को सबसे खास बताने वाले भाव से भरे इस गाने को सुनने के बाद, हर किसी की मन दहीहांडी फोड़ने को कर जाता है. इस गाने को ओर भी खास बनाया है वाजिद खान नें अपनी मीठी आवाज देकर.

‘कायरव’ को लेकर ‘नायरा-कार्तिक’ के बीच शुरू हुई जंग, देखें Video

स्टार प्लस का सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ औडियंस के बीच इन दिनों अपनी खास जगह बना चुका है.’ नायरा-कार्तिक’ की जोड़ी हो या ‘नायरा’ से ‘दादी’ की तकरार फैंस को शो की हर चीज पसंद आती है. वहीं इन दिनों ‘कायरव’ को लेकर भी लोगों का अच्छा रिस्पौंस मिल रहा है. लोगों के अच्छे रिस्पौंस को देखते हुए शो के मेकर्स अब कुछ नए ट्विस्ट लाने जा रहे हैं. आइए आपको बताते हैं शो में कौनसा नया ट्विस्ट करेगा आपको एंटरटेन…

दादी और नायरा की दिखेगी तकरार

सीरियल से जुड़ी खबरों की मानों तो ‘कायरव’ की सर्जरी ठीक होने के बाद अब डाक्टर ‘नायरा’ और ‘कार्तिक’ को ‘कायरव’ को घर ले जाने के लिए कहेंगे, इसी के साथ ही दादी हर हाल में ‘कायरव’ को ‘नायरा’ से अलग करने की प्लानिंग भी कर लेंगी. वहीं ‘नायरा’ का भाई ‘नक्क्ष’ यानी दादी के इरादों को भांप लेगा और ‘नायरा’ से कहेगा कि वह सिंघानिया सदन में अपने बेटे को लेकर आ जाए.

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कायरव के ट्विस्ट के चलते नम्बर 1 बना शो

साल 2019 के 33वें हफ्ते की टीआरपी लिस्ट में सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ ने पहले पायदान पर पहुंच गया है. वहीं अगर सीरियल के टर्न और ट्विस्ट को देखें तो लग रहा है कि आने वाले कई हफ्तों तक ये सीरियल पहले पायदान से हटने नहीं वाला है.

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बता दें, बीते दिनों सीरियल में दिखाया जा रहा है कि ‘कायरव’ को ‘दादी’ गोयनका सदन में लाने के सपने देखने में लगी हैं. साथ ही वह ‘सुरेखा’ को ‘कायरव’ का कमरा सजाने के लिए कहती हुईं नजर आती हैं. वहीं खबरें हैं कि जल्द ही ‘दादी’ ‘कार्तिक’ को ‘नायरा’ से तलाक लेकर ‘कायरव’ की कस्टडी लेने को कहेंगी, जिसके खिलाफ ‘नायरा’ आवाज उठाती नजर आएंगी. अब देखना ये है कि क्या ‘नायरा’ ‘कायरव’ को अपनी जिंदगी से दूर होने से रोक पाएगी.

क्या मां बनने के बाद लग जाता है करियर पर ब्रेक?

प्रोफैशनल वर्ल्ड में महिलाओं के लिए गर्भावस्था चुनौतीपूर्ण समय होता है. सिर्फ शारीरिक तौर पर ही नहीं, बल्कि इस समय उन के सामने मानसिक तौर पर भी बहुत सारी चुनौतियां खड़ी हो जाती हैं. गर्भावस्था में पेश आने वाली चुनौतियों में से एक नौकरी के स्तर पर महसूस होने वाली चुनौती भी है. इस संदर्भ में हुए एक शोध में यह बात सामने आई है कि गर्भावस्था के दौरान ज्यादातर महिलाओं को नौकरी से निकाले जाने का डर लगा रहता है.

अधिकतर कामकाजी महिलाओं को ऐसा लगता है कि गर्भवती होने से उन की नौकरी को खतरा हो सकता है. उन्हें नौकरी से निकाल दिया जा सकता है जबकि पिता बनने वाले पुरुषों को अकसर नौकरी या कार्यस्थल पर बढ़ावा मिलता है.

क्या कहता है शोध

अमेरिका की फ्लोरिडा स्टेट यूनिवर्सिटी के शोध से जुड़े इस निष्कर्ष को ऐप्लाइड मनोविज्ञान के जर्नल में प्रकाशित किया गया. इस में इस बात की पुष्टि की गई है कि मां बनने वाली औरतों को ऐसा महसूस होता है कि गर्भ के दौरान व बाद में कार्यस्थल पर उन का ठीक से स्वागत नहीं किया जाएगा.

अध्ययन में पाया गया कि जब कामकाजी महिलाओं ने अपनी प्रैगनैंसी का जिक्र अपने मैनेजर या सहकार्यकर्ताओं से किया तो उन्हें कैरियर के क्षेत्र में प्रमोशन दिए जाने की दर में कमी आई जबकि बाप बनने वाले पुरुषों को प्रमोशन किए जाने की दर में बढ़ोतरी हुई.

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स्त्री सशक्तीकरण के इस दौर में जब महिलाएं हर क्षेत्र में कामयाबी के झंडे गाढ़ रही हैं, इस तरह के खुलासे थोड़ा हतोत्साहित करते हैं, पर यह हकीकत है. कहीं न कहीं घरपरिवार के साथ कार्यस्थल की दोहरी जिम्मेदारियों के बीच स्त्री का कैरियर पीछे छूट ही जाता है. वह चाह कर भी दोनों क्षेत्रों में एकसाथ बेहतर परिणाम नहीं दे पाती.

इस सच से इनकार नहीं किया जा सकता कि शादी के बाद एक स्त्री का प्राकृतिक दायित्व अपने परिवार की तरफ होता है. बड़ेबुजुर्गों की सेवा, पति व अन्य परिजनों की देखभाल, बच्चों की परवरिश जैसे काम उसे निभाने ही होते हैं. इस के अलावा शादी के बाद परिवार बढ़ाना भी एक सामाजिक जिम्मेदारी है. वैसे भी आम भारतीय घरों में एक मां से यह अपेक्षा की जाती है कि वह हर तरह के हितों को जिन में उस के खुद के हित भी शामिल हैं, को बच्चे से नीचे रखे.

गर्भावस्था और उस के बाद के 1-2 साल स्त्री को अपने साथसाथ नए मेहमान की सुरक्षा और जरूरतों का भी पूरा खयाल रखना होता है. ऐसे में यदि उसे घर से पूरी सपोर्ट, अच्छा माहौल, आनेजाने यानी ट्रांसपोर्ट की बेहतर सुविधा न मिले तो नई मां के लिए सबकुछ मैनेज करना बहुत कठिन हो जाता है.

एक तरफ जहां उस से घर के सारे काम करने और परिवार की तरफ पूरी जिम्मेदारियां निभाने की अपेक्षा की जाती है, वहीं दूसरी तरफ औफिस में इंप्लौयर भी अपने काम में कोई कोताही नहीं सह सकता. मां कैरियर के किसी भी मुकाम पर क्यों न हो बात जब बच्चे के जन्म और पालनपोषण की आती है तो पिता के मुकाबले एक महिला पर बहुत सारी जिम्मेदारियां आ जाती हैं और इस दौरान उसे बहुत त्याग करने पड़ते हैं. उसे कैरियर के बजाय परिवार को प्राथमिकता देनी पड़ती है.

कामकाजी महिलाओं की संख्या में कमी

विश्वबैंक की एक रिपोर्ट पर नजर डालें तो भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या लगातार कम हो रही है. कार्यक्षेत्र में हिस्सेदारी के मामले में भारत की महिलाएं 131 देशों में 121वें स्थान पर हैं. यह धर्म के कारण भी है, क्योंकि केवल गर्भधारण या बच्चे ही नहीं, धार्मिक पाखंड पूरे करने में भी कामकाजी औरतों को रिआयत नहीं दी जाती और उन्हें घर, परिवार, पति, बच्चों के साथ धार्मिक रीतिरिवाज भी पूरे करने पड़ते हैं, जिस से काम के बारे में सोचने या घर पर काम करने की क्षमता नहीं रहती.

2004-05 में देश में लगभग 43 फीसदी महिलाएं कामकाजी थीं. कुछ ऐसा ही आंकड़ा 1993-94 में भी था. लेकिन 2016-17 में जब देश नए कीर्तिमान रच रहा था कामकाजी महिलाओं का आंकड़ा 27% से भी कम होता जा रहा था.

हमारे देश से अच्छी स्थिति नेपाल, बंगलादेश और श्रीलंका जैसे देशों की हैं. जैसेजैसे देश में धर्म का प्रचार बढ़ रहा है, औरतों की नौकरियां कम हो रही हैं. औरतों को तो मंदिरों से फुरसत नहीं रहती.

विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 2011-12 के बीच विभिन्न कारणों से 1.97 करोड़ महिलाओं ने नौकरी छोड़ी. यह बात अलग है कि जो महिलाएं काम कर रही हैं वे अपनी काबिलीयत के झंडे गाढ़ रही हैं. मगर इन की संख्या संतोषजनक नहीं है.

ग्लोबल जैंडर 2015-16 की रिपोर्ट के मुताबिक 144 देशों में किए गए सर्वे में भारत 136वें नंबर पर है. भारत में महिला कार्यबल की भागीदारी महज 27% है, जो वैश्विक औसत के मुकाबले 23% कम है.

वर्ल्ड इकौनौमिक फोरम द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में हर 5 में से 4 कंपनियों में 10% से भी कम महिला कर्मचारी काम कर रही हैं. भारत की ज्यादातर कंपनियां महिलाओं की जगह पुरुष कर्मचारियों को भरती करना पसंद करती हैं.

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मैटरनिटी बैनिफिट ऐक्ट 2016 के जरीए प्रैगनैंसी के दौरान छुट्टियों को 12 हफ्ते से बढ़ा कर 26 हफ्ते किया गया है ताकि महिलाओं को इस तनाव से उबारा जा सके. हालांकि अभी असंगठित क्षेत्रों में यह तनाव बरकरार है पर सरकारी नौकरियों में बहुत हद तक महिलाएं इस तनाव से बाहर आ रही हैं.

दरअसल, मैटरनिटी लीव के बढ़ते दबाव के कारण कंपनियां महिलाओं को भरती करने से गुरेज करती हैं. बड़ी कंपनियां इस मामले में सकारात्मक रूख अपनाती हैं. वे ऐक्ट से हुए बदलाव का समर्थन करते हुए महिलाओं की भरती में कोई कमी नहीं करतीं. लेकिन असली दिक्कत छोटी और मीडियम कंपनियों से है. इन में महिलाओं की सैलरी कम करने जैसे तरीके अपनाए जाते हैं या इन की हायरिंग ही कम कर दी जाती है.

इंप्लौयर का पक्ष भी देखें

अगर कोई महिला प्रैगनैंसी के बाद 6 माह लीव पर चली जाए और इंप्लौयर को उस के बदले किसी और को रखने की जरूरत न पड़े तो इस का मतलब यह भी माना जा सकता है वह जो काम कर रही थी न के बराबर का था और उस के न होने से किसी को फर्क नहीं पड़ेगा. मान लीजिए कि किसी कंपनी या एक सरकारी यूनिवर्सिटी में कोई महिला काम कर रही है और उसे बच्चे के बाद 6 माह की लीव पर जाना पड़ा. उस के बाद भी उस ने एकडेढ़ साल की पेड लीव ले ली.

जाहिर है, इतने समय तक उस के बगैर काम चल सकता है यानी उस के पास कोई महत्त्वपूर्ण काम नहीं. कार्यालय में उस की उपयोगिता न के बराबर है. उस के होने या न होने से कंपनी या यूनिवर्सिटी को कोई फर्क नहीं पड़ता. मगर यदि उस के बदले किसी और को ऐडहौक पर रखना पड़ता है तो फिर यही इंगित करता है कि कंपनी को उस महिला की वजह से नया इंप्लोई रखने पर खर्च करना पड़ा. ऐसे में इंप्लौयर अपनी सुविधा देखते हुए भविष्य में महिला इंप्लौइज को कम से कम लेना शुरू कर देगा या फिर उन की सैलरी शुरू से कम रखेगा ताकि भविष्य में उसे अधिक नुकसान न हो.

पारिवारिक ढांचा है मददगार

महिलाओं की इन तमाम दिक्कतों से निबटने में घर और औफिस में अच्छा सपोर्ट सिस्टम मदद कर सकता है. अगर बौस वूमन हो तो इन दिक्कतों को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है. इसी तरह परिवार का सहयोग भी काफी माने रखता है. जैसेजैसे संयुक्त परिवार खत्म हो रहे हैं वैसेवैसे बच्चों की परवरिश मुश्किल होती जा रही है. जहां एक अध्ययन के मुताबिक एक छोटा बच्चा होने से महिलाओं के रोजगार पर नकारात्मक असर पड़ता है, वहीं किसी बड़ी महिला के परिवार में होने से कामकाजी महिलाओं के काम करने के आसार बढ़ जाते हैं.

इस तरह मां बनने वाली महिलाओं के प्रति कैरियर से जुड़े प्रोत्साहन को कम नहीं किया जाना चाहिए. इस के विपरीत मातापिता दोनों को ही सामाजिक और कैरियर से जुड़ी हर संभव सहायता प्रदान करनी चाहिए ताकि काम और परिवार से जुड़ी जिम्मेदारियों को बखूबी निभाने में उन्हें मदद मिले.

इस दौर में पिता की भूमिका भी तेजी से बदल रही है. उन को मालूम है कि 2 कमाने वाले होंगे तो बेहतर रहन-सहन हो सकता है. इसलिए अब वे अपनी पत्नी की सपोर्ट कर रहे हैं. फिर भी जब तक रूढि़वादी मानसिकता नहीं बदलेगी तब तक रियल में हालात नहीं बदल सकते.

क्या है समाधान

यदि कैरियर के साथ प्रैगनैंट होना है तो प्रयास करें कि 35 के बाद यह नौबत आए, क्योंकि उस समय तक लड़की अपने पेशे से जुड़े हुनर अच्छी तरह सीख चुकी होती है. वह कैरियर के मामले में सैटल और हर तरह से मैच्योर रहती है. उस में इतनी काबिलीयत आ जाती है कि घर से भी काम कर के दे सकती है. वैसे भी तकनीकी विकास का जमाना है. इंप्लौयर भी उसे सपोर्ट देने को तैयार रहता है, क्योंकि वह कंपनी के लिए काफी कुछ कर चुकी होती है.

मगर 27-28 साल की उम्र में यदि लड़की प्रैगनैंट हो जाए और इंप्लौयर, उसे सिखा रहा होता है तो यह इंप्लौयर के लिए काफी घाटे का सौदा साबित होता है. यदि लड़की मार्केटिंग फील्ड में है तो जाहिर है कि कम उम्र में उस का अधिक दौड़भाग का काम होगा जबकि उम्र बढ़ने पर वह सुपरवाइजर बन चुकी होती है. इसी तरह किसी भी फील्ड में उम्र बढ़ने पर थोड़ी स्थिरता का काम मिल जाता है. ऐसे में यदि वह 2-4 घंटों के लिए भी आ कर महत्त्वपूर्ण काम निबटा जाए तो इंप्लौयर का काम चल जाता है. साथ काम करने वाली लड़कियों को भी समस्या हो सकती है, क्योंकि जो लड़की शादीशुदा है, प्रैगनैंट हो जाती है तो उसे एकमुश्त 6 माह की छुट्टी मिल जाती हैं. मगर 200 में से यदि 140 लड़कियां ऐसी हैं जो अविवाहिता हैं या प्रैगनैंट नहीं होती हैं तो उन के लिए तो यह एक तरह का लौस ही है. भला उन का क्या कसूर था कि उन्हें काम की चुनौतियों को सहना पड़ा. अविवाहिताओं के लिए यह बड़ा भेदभाव है.

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इसी तरह स्वाभाविक है कि इन परिस्थितियों में कोईर् भी इंप्लौयर मेल कैंडीडेट्स को ही तरजीह देगा और अपना घाटा कम करने का प्रयास करेगा. उसे या तो प्रोडक्ट की कीमत में वुद्धि करनी पड़ेगी और तब सोसाइटी द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से वह खर्र्चवहन किया जाएगा या फिर समाधान यह है कि समाज खुद आगे आए और यह खर्च वहन करे या फिर जिस ने कानून बनाया वही यानी सरकार इस का समाधान करे.

Janmashtami Special: ‘राधा-कृष्ण’ से कम नहीं TV के ये रियल लाइफ कपल

टीवी की दुनिया में कई ऐसे कपल हैं, जिनकी जोड़ी फैंस को काफी पसंद है, लेकिन टीवी इंडस्ट्री में कुछ ऐसे रियल लाइफ कपल भी हैं जिनका प्यार और कमिंटमेंट बिल्कुल ‘राधा-कृष्ण’ की तरह है. जिस तरह से दुनिया आज तक इस जोड़ी के प्यार की मिसाल देती है. उसी तरह टीवी के ये जोड़ियां भी लोगों के लिए आइडियल बन चुकी हैं. आज हम आपको ऐसी ही कुछ टेलीविजन जोड़ियों के बारे में बताने वाले हैं जो  रील लाइफ के साथ-साथ रियल लाइफ में ‘राधा-कृष्ण’ की जोड़ी से कम नहीं लगते.

1. ‘नायरा और कार्तिक’ की कैमिस्ट्री है कमाल

स्टार प्लस के सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में अपनी औनस्क्रीन कैमिस्ट्री से नायरा और कार्तिक यानी शिवांगी जोशी और मोहसीन खान लोगों का दिल जीत चुके हैं. वहीं खबरें हैं कि शिवांगी और मोहसीन एक दूसरे को इन दिनों डेट कर रहे हैं, जिसके कारण फैंस दोनों की जोड़ी को और भी ज्यादा पसंद करने लगे हैं.

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2. दिव्यंका त्रिपाठी और विवेक दहिया भी नहीं हैं किसी से कम

 

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सीरियल ‘ये हैं मोहब्बतें’ में भले ही दोनों रोमांटिक रोल में न नजर आए हों लेकिन एक ही सेट पर दोनों की मुलाकात इतनी गहरी हो गई कि दोनों शादी के गहरे बंधन में बंध गए. वहीं नच बलिए का हिस्सा बनने के बाद से दोनों काफी पौपुलर भी हो गए हैं.

3. दीपिका और शोएब हैं परफेक्ट 

 

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I love to cook!!! because he loves to eat ❤️!!

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सीरियल ‘ससुराल सिमर का’ से लोगों के दिल में जगह बनाने वाली ‘सिमर’ यानी दीपिका कक्कड़ और शोएब की जोड़ी के बारे में तो आप जानते ही होंगे. दीपिका और शोएब की जोड़ी इतनी परफेक्ट है कि फैंस अक्सर सोशल मीडिया पर उनकी फोटोज शेयर करते रहते हैं और तारीफें हैं.

4. सनाया ईरानी और मोहित सहगल

 

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Mr and Mrs ?? @itsmohitsehgal Photographed by @imshoaibqureshi

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सीरियल ‘मिले जब हम तुम’ से फैंस की तारीफें बटोरने वाली जोड़ी सनाया ईरानी और मोहित सहगल रियल लाइफ में भी एक दूसरे से बेहद प्यार करते हैं. हाल ही में मोहित और सनाया ने अपनी कुछ फोटोज अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर शेयर की, जिनमें दोनों स्विट्जरलैंड की हसीन वादियों में घूमते नजर आ रहे हैं. शादी को 3 साल बीत जाने के बाद भी दोनों का प्यार एक-दूसरे के लिए कम नही हुआ है.

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फैमिली को खिलाएं टेस्टी शाही भिंडी

फेस्टिवल्स में जरूरी नहीं की आप कुछ मीठा ही बनाएं आज हम आपको कुछ स्पाइसी और टेस्टी सब्जी के बारे में बताएंगे, जिसे आप फेस्टिवल में ट्राय कर सकते हैं. शाही भिंडी के बारे में आपने जरूर सुना होगा, लेकिन क्या आपने घर पर ट्राय किया है. इसीलिए हम आपको शाही भिंडी की रेसिपी के बारे में बताएंगे, जिसे आप अपनी फैमिली को खिला सकते हैं.

हमें चाहिए

– 250 ग्राम भिंडी लंबे टुकड़ों में कटी

– 1-2 हरीमिर्चें

– 1 प्याज कटा

– 1 टमाटर कटा

– 1 चम्मच काजू का पाउडर

– 1 बड़ा चम्मच क्रीम

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– 1/2 छोटा चम्मच अजवाइन

– चुटकीभर हींग

– 1/4 छोटा चम्मच हलदी पाउडर

– 1 बड़ा चम्मच धनिया पाउडर

– 1/4 छोटा चम्मच लालमिर्च पाउडर

– 1/4 छोटा चम्मच गरममसाला पाउडर

– तलने के लिए पर्याप्त तेल

– थोड़ी सी धनियापत्ती कटी

– थोड़ा सा बारीक अदरक कटा

– 3-4 कलियां लहसुन

– नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

कड़ाही में तेल गरम कर के भिंडी तल कर निकाल लें. इसी तेल में प्याज भून लें. तले हुए प्याज को टमाटर, अदरक, लहसुन व हरीमिर्चों के साथ पीस लें. कड़ाही में तेल गरम कर के अजवायन डालें. फिर सारे मसाले डाल कर भून लें. मसाला जब तेल छोड़ने लगे तब नमक, काजू का पाउडर डाल कर तली भिंडी मिला कर अच्छी तरह भून कर धनियापत्ती से सजा कर परोसें.

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अगर आपके पास भी ऐसी ही कोई रेसिपी हो तो हमारे साथ जरूर शेयर करें.

ब्रैस्टफीडिंग को हाइजीनिक बनाने के लिए अपनाएं 6 टिप्स

नवजात का शरीर बहुत कोमल होता है. उसे ज्यादा देखभाल की जरूरत होती है. ऐसे में ब्रैस्ट फीड कराने वाली मांओं के लिए ब्रैस्ट की साफसफाई पर बहुत ध्यान देने की आवश्यकता होती है. साफसफाई से संबंधित ये टिप्स हर मां के लिए जानने जरूरी हैं:

1. हाथ जरूर धोएं

एक मां को यह पता होना चाहिए कि बच्चे को फीड कराने से पहले हाथ जरूर धोने चाहिए, क्योंकि आप दिनभर में हाथों से कई काम करती हैं. ऐसे में उंगलियों व हथेलियों के गंदे व संक्रमित होने की संभावना अधिक रहती है. वैसे भी संक्रमित करने वाले जीवाणु व विषाणु इतने छोटे होते हैं कि दिखाई नहीं देते हैं और नवजात को दूध पिलाने के दौरान स्थानांतरित हो जाते हैं. इस से शिशु कई बीमारियों से ग्रस्त हो जाता है. इसलिए शिशु में बीमारियों को फैलने से रोकने के लिए मां का अपने हाथों को उचित तरीके से धोना बेहद आवश्यक है.

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2. निपल रखें साफ

स्तनों व निपलों को साफ रखना भी जरूरी है, क्योंकि कपड़ों की वजह से निपलों पर पसीना जमने से वहां कीटाणु पनपते हैं, जो ब्रैस्ट फीडिंग के दौरान शिशु के पेट में पहुंच जाते हैं और फिर उसे नुकसान पहुंचाते हैं. इसलिए ध्यान रहे कि शिशु को स्तनपान कराने से पहले अपने स्तनों व निपलों को कुनकुने पानी में रुई या साफ कपड़ा भिगो कर उस से अच्छी तरह पोंछें. निपल की सूजन को कम करने के लिए आप दूध की 4-5 बूंदें निपल पर लगा कर सूखने दें. कई बार नवजात बच्चा दूध पीते वक्त दांतों से काट लेता है, जिस से जख्म बन जाता है और फिर दर्द होता है. इस दर्द को कम करने में भी मां का अपना दूध काफी मददगार साबित होता है.

3. टाइट ब्रा पहनने से बचें

शिशु के जन्म के बाद से ही मां के स्तनों के आकार में परिवर्तन आ जाता है. ऐसी स्थिति में टाइट ब्रा पहनने से बचना चाहिए, क्योंकि टाइट ब्रा पहनने के बहुत नुकसान होते हैं. एक तो शिशु को दूध पिलाने में दिक्कत होती है दूसरा स्तनों में दूध का जमाव बढ़ जाता है, जोकि बाद में गांठ का रूप ले लेता है.

4. निपल शील्ड को करें स्टेरलाइज

कई मांएं ब्रैस्ट फीड कराते समय निपल शील्ड का उपयोग करती हैं, जो दूध पिलाते वक्त उन के सामने आने वाली समस्याओं का अल्पकालीन समाधान है. इन निपल शील्ड को उपयोग करते समय इन की साफसफाई पर भी ध्यान देना जरूरी है. और इन्हें लगा कर दूध पिलाने से पहले इन्हें हर बार स्टेरलाइज कर लेना चाहिए ताकि शील्ड पर मौजूद कीटाणु हट जाएं और नवजात के पेट में न जा पाएं.

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5. हर दिन बदलें ब्रा

ब्रैस्ट फीडिंग कराने वाली मांएं रैग्युलर ब्रा की जगह नर्सिंग ब्रा पहनती हैं, जिस से शिशु को फीड कराना आसान रहता है, क्योंकि यह साधारण ब्रा के मुकाबले काफी आरामदायक व फ्लैक्सिबल होती है. कौटन से बनी इस ब्रा में जहां हवा पास होती रहती है वहीं इस में लगा इलास्टिक त्वचा को काफी सौफ्ट टच देता है. अगर आप अभी मां बनी हैं और बच्चे को ब्रैस्ट फीड कराती हैं, तो बौडी केयर की नर्सिंग ब्रा एक अच्छा विकल्प है. इस तरह की ब्रा में कप में निपल वाली जगह खोलने की सुविधा होती है और पीछे हुक भी अधिक लगे होते हैं, जिन्हें आप अपने हिसाब से लूज व टाइट कर सकती हैं. इस ब्रा की बनावट स्तनों  को पूरा सहारा देती है. लेकिन कई बार दूध पिलाते वक्त ब्रा पर दूध गिर जाने से वहां बैक्टीरिया पनप जाते हैं और वह गंदी भी हो जाती है. इसलिए नर्सिंग ब्रा को हर दिन बदलें.

6. ब्रैस्ट पंप की सफाई है जरूरी

स्तनपान के लिए आप जिन उपकरणों जैसेकि ब्रैस्ट पंप का उपयोग कर रही हैं, तो उस की साफसफाई भी जरूरी है. ब्रैस्ट पंप धोने के लिए रसोईर् या शिशु की बोतल धोने वाले ब्रश का प्रयोग भूल कर भी न करें. इसे साफ करने के लिए अलग साधन का प्रयोग करें.

डा. अनिता गुप्ता, गाइनोकोलौजिस्ट से पूजा भारद्वाज द्वारा की गई बातचीत पर आधारित

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‘प्लास्टिक’ की दुनिया: मौत या दोस्त

प्लास्टिक ज़िंदगी को आसान तो बनाता है लेकिन यह तिलतिल हमें  मौत के घाट उतार रहा है. इसके जिम्मेवार हम खुद हैं. रोज सुबह के बच्चो के टिफ़िन से लेकर रात को सोने से पहले दूध पीने तक हम पूरा दिन प्लास्टिक का इस्तेमाल करते नहीं थकते.किसी न किसी  तरह उसके कणों को निगल रहे हैं हर चीज़ प्लास्टिक से बनी हुई हैं चाहे टीवी का रिमोट, फ्रिज मे रखी कंटेनर, बोतले, क्रेडिट कार्ड, चाय के कप, प्लेट ,चम्मच, बोतल बंद पानी हो हर चीज प्लास्टिक से बनी हैं

प्लास्टिक  का उत्पादन

दुनिया मे हर साल  30  करोड़ टन प्लास्टिक कचरा पैदा  होता हैं .जोकि दुनिया की जनसंख्या के बराबर हैं .सन 1950  से अबतक 800 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन हुआ हैं अब तक जितना कचरा पैदा हुआ हैं उसका सिर्फ 9% कचरा ही रीसायकल हो पाया हैं व 12%कचरा ही नष्ट हो सका  हैं और 79% कचरा पर्यावरण  मे मिल गया हैं. यही मिला हुआ कचरा हवा, पानी के जरिये हमारे ही शरीर के अंदर पहुंच रहा हैं.

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सागरों को कर रहा दूषित

प्रशांत महा सागर में प्लास्टिक का कचरा सुप की तरह तैर रहा हैं. कचरा नदियों सागर मे जा कर मिल जाता हैं .और निचे  जा कर बैठ जाता हैं जिस कारण वहां औक्सीजन की कमी होती हैं और जीव जन्तु मर जाते हैं ये ही नहीं व्हेल जैसा  विशाल प्राणी भी मौत के घाट उतर रहे हैं.

हर कोई इस बात से वाकिफ हैं की प्लास्टिक का इस्तेमाल खतरनाक हैं क्युकी न तो ये सड़ता हैं और जलाया जाये तो हवा को प्रदूषित   करता हैं. इनके जलने से जहां गैस निकलती हैं. वहीं   यह मिटटी मे पहुंच कर भूमि की उर्वरक शक्ति को भी नष्ट करता  है.

खतरनाक सिंगल यूज प्लास्टिक

सिंगल यूज़ प्लास्टिक सबसे ज्यादा नुकसानदेह है  जो सिर्फ एक बार प्रयोग मे आता है. जैसे चाय के कप ,प्लेट चम्मच पौलीथिन बैग. आपको यह जानकर हैरानी होगी की प्लास्टिक को घुलने मे  500 -1000 साल लग जाते हैं.

प्लास्टिक से होने वाली बीमारी

प्लास्टिक में अस्थिर प्रकृति का जैविक कार्बनिक एस्सटर (अम्ल और अल्कोहल से बना घोल) होता है, जिसकी वजह से कैंसर होता है प्लास्टिक को रंग प्रदान करने के लिए उसमें कैडमियम और जस्ता जैसी विषैली धातुओं के अंश मिलाए जाते हैं. जब इन मे कहानी की वस्तु रखी जाती है तो ये जहरीले तत्त्व धीरे-धीरे उनमें प्रवेश कर जाते हैं. कैडमियम की अल्प मात्रा के शरीर में जाने से उल्टियां, हृदय रोग हो सकता है और जस्ता से  इंसानी मस्तिष्क के ऊतकों का क्षरण होने लगता है जिससे स्मृतिभ्रंश जैसी बीमारियां होती हैं.

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दुनिया में 40 देशों में हैं बैन

दुनिया में 40 देशों में प्लास्टिक प्रतिबंधित हैं. जिसमे फ्रांस, चीन, इटली, रवांडा और अब केन्या जैसे देश भी इसमे शामिल  हैं.

हमारे देश मे 56 लाख टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन करता हैं जिसमे 9205  टन प्लास्टिक को रीसायकल कर दोबारा उपयोग मे लिया जा सका  हैं केन्द्र्य नियंत्रण बोर्ड के अनुसार हर रोज दिल्ली मे सबसे ज्यादा कचरा 690 टन कचरा फैंका जाता हैं व्ही छेने मे 429 ,मुंबई मे 408 टन कचरा फैंका जाता हैं .

परिस्थिति  के असंतुलन को न तो हम खुद समझ पा रहे हैं और न ही सरकार  इसके प्रति कोई ठोस कदम उठा रही हैं अब हालत यह हैं की जल संकट ,जंगलों मे आंग ,पहाड़ो मे तबही  आ रही हैं .ग्लेसियर पिघल रहे हैं गांव से लेकर शहरों  तक उदारीकरण और उपभोक्ता वाद की भेट चढ़ रहे हैं.  पर्यावरण का संकट हमारे लिये चुनौती के रूप मे उभर रहा है .वो दिन दूर नहीं जब बिना ऑक्सीजन मास्क के लोग घर से बाहर कदम भी नहीं रख पाएंगे .

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कभी सड़कों पर गाती थीं ये महिला, अब मिला हिमेश रेशमिया का साथ

करीब एक महीने पहले कोलकाता रेलवे स्टेशन पर रानू मंडल नामक एक बुजुर्ग महिला लता मंगेशकर का फेमस गाना ‘एक प्यार का नगमा’ गाती दिखाई दीं थी. उनका ये वीडियो सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ था. रानू की आवाज को लोगों ने बेहद पसंद किया. जिसके बाद वो रातों रात स्टार बन गईं. यहां तक एक एनजीओ ने उनकी मदद की और उनका मेकओवर भी किया. लेकिन अब रानू को बौलीवुड का सहारा भी मिल गया है.

हिमेश रेशमिया के साथ गाया गाना…

जी हां, रानू मंडल को उनके सुरों की पहचान करने वाला मिल गया है और ये कोई और नहीं बल्कि खुद सुरों के बेताज बादशाह हिमेश रेशमिया है. हिमेश ने रानू मंडल के साथ अपनी आने वाली फिल्म ‘हैप्पी हार्डी एंड हीर’ का एक ट्रैक रीकौर्ड किया है. जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है.

 

हिमेश ने किया शेयर…

हिमेश रेशमिया ने खुद इस गाने की एक छोटी सी क्लिप अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर शेयर की है. खुशी की बात ये है कि रानू मंडल के स्टेशन वाले वीडियो की तरह ये वीडियो भी कुछ ही घंटो मे वायरल हो गया. लोगों ने उनकी आवाज को काफी पसंद किया है और उनकी आवाज की तारीफ भी की है.

सिंगिंग शो ‘सुपरस्टार सिंगर’ में भी की धमाकेदार एंट्री… 

रानू मंडल ने हिमेश रेशमिया के पौपुलर सिंगिंग शो ‘सुपरस्टार सिंगर’ में भी धमाकेदार एंट्री की थी. जहां उन्होंने सभी बच्चों को अपना आशीर्वाद दिया और जजों से मिलीं. हिमेश ने बताया कि रानू को मौका देने के पीछे सलमान खान के पिता सलीम खान का बहुत बड़ा हाथ है. वो ऐसे कि सलीम खान ने एक बार हिमेश रेशमिया से कहा था कि जिंदगी में अगर कभी भी ऐसे टैलेंटेड लोगों से मिलो तो कभी उन्हें जाने न दो. उन्होंने सलाह दी थी कि ऐसे टैलेंट को निखारने में हमेशा मदद करनी चाहिए.

बता दें, रानू मंडल और हिमेश रेशमिया के अपकमिंग सौंग का नाम है, “तेरी मेरी कहानी”. हिमेश ने रानू के बारे में भी कहा कि, “जब मैं रानूजी से मिला तो मुझे महसूस हुआ कि उन्हें भगवान की ओर से ये तोहफा मिला हुआ है. उनकी सिंगिंग दिल को छू लेने वाली है और मैं उन्हें खुद को अपनी और से बेस्ट देने से रोक नहीं पाया. उनके पास भगवान की ओर से मिला तोहफा है जिसे दुनिया के साथ शेयर करने की जरुरत है और मुझे लगता है कि आने वाली फिल्म हैप्पी हार्डी एंड हीर से उनकी आवाज सभी तक पहुंच सकेगी.”

Written by- Karan Manchanda

बढ़ते-कदम, बढ़ते-हाथ

हम समाज से बहुत कुछ सीखते हैं और उसी के सहारे आगे बढ़ते हुए अपनी मंजिल तक पहुंचते हैं. ऐसे में कुछ लोग सामाजिक भेदभाव, गरीबी, बहिष्कार को निर्मूल करने के प्रयास में जुट कर समाज में जाग्रति लाने में जुटे हैं. उन्हीं में शुमार हैं ये हस्तियां:

पूर्णिमा सुकुमारन की अनूठी मुहिम

कोडीहल्ली, बैंगलुरु की पूर्णिमा ने सामाजिक व ह्यूमन वैलफेयर की भावना से ‘अरावनी आई प्रोजैक्ट’ की स्थापना की. इस प्रोजैक्ट में पेंटिग्स द्वारा भावों और विचारों को व्यक्त किया जाता है. पूर्णिमा ने इस प्रोजैक्ट द्वारा ट्रांसजैंडर कम्यूनिटी के लिए, जोकि आम भाषा में हिजड़ा /किन्नर के नाम से जानी जाती है, के लिए पूरी दीवार पेंट की.

किन्नरों का इतिहास 4 हजार वर्ष से भी ज्यादा पुराना है. इन की आबादी करीब 48 लाख है और ये समाज से बाहर ही रहते हैं. इन की इस स्थिति को देख कर पूर्णिमा ने 10 किन्नरों का गु्रप बनाया और फिर उसे भित्ति चित्रण के लिए उत्साहित किया. इस कार्य में स्ट्रीट पेंटिंग्स और दीवारों पर भी पेंटिंग्स शामिल थीं. इस संस्था के साथ और भी लोग जिन में स्त्रीपुरुष दोनों थे, जोड़े गए.

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पूर्णिमा का मानना है कि सामाजिक मुद्दों के बारे में चर्चा करने से उतनी बात नहीं बनती जितनी कि चित्रण द्वारा वही बात दिलोदिमाग पर अंकित होती है. पूर्णिमा ने रैगपिकर्स बच्चों व सैक्सवर्कर्स की बेटियों के साथ भी काम किया. रैगपिकर्स बच्चों के साथ एक लाइब्रेरी पेंट की. सैक्सवर्कर्स की बेटियों के साथ रैडलाइट एरिया की दीवारें भी पेंट कीं. चित्रण द्वारा जाग्रति फैलाने के लिए पूर्णिमा एक पुरुष एक स्त्री का चित्रण कर उन की बराबरी दर्शाते हुए एक स्लोगन लिखवाती हैं. बैंगलुरु के जुविनाइल होम्स में लड़केलड़कियों के साथ तथा स्कूलों में भी छोटे-छोटे प्रोजैक्ट करती हैं.

तनुश्री ने बनाया कतरन को उपयोगी

यों तो महिलाएं अकसर फुरसत के पलों में कुछ न कुछ क्राफ्ट जैसे सिलाई, बुनाई आदि करती हैं, पर इस से आर्थिक संबल जोकि परिवार के उत्थान में सहायक हो, नहीं मिल पाता, जिसे संभव बनाया तनुश्री शुक्ला ने. उन्होंने 2015 में ‘चिंदी’ नामक संस्था स्थापित की.

तनुश्री ने अपने फैमिली गारमैंट प्रोडक्शन में हर शाम बचा व कटा हुआ फैब्रिक फिंकता देखा, इस वेस्ट को चिंदी कह कर फेंक दिया जाता था. यह देख तनुश्री के मन में इस वेस्ट से खूबसूरत और उपयोगी आइटम्स बनाने का विचार आया. इसी विचार पर ‘चिंदी’ संस्था का जन्म हुआ. इस संस्था द्वारा मनखुर्द मुंबई की आर्थिक रूप से कमजोर महिलाओं से काम कराया जाता है.

इस के लिए गारमैंट बनाने वाली फैक्टरियों से टेलरिंग यूनिट्स से टाइअप कर के कतरनों को मंगा कर इस कार्य को विस्तार दिया जाता है. महिलाओं को डिजाइन दे कर तनुश्री हैट, बैग, कुशन कवर, टेबलपोस आदि बनवा कर बाजार तक बिक्री का प्रबंध करती हैं. इस संस्था द्वारा महिलाओं को ट्रेनिंग भी दी जाती है.

तनुश्री ने अनपढ़ और कम पढ़ीलिखी महिलाओं को अपनी स्किल पर गर्व महसूस करने की ओर कदम बढ़वा उन्हें आत्मनिर्भर बनाया. आज बढ़ती पारिवारिक आय व नईनई वस्तुएं बनाने के हुनर से महिला सशक्तीकरण को भी बल मिला है.

बच्चों का भविष्य बनातीं शिखा

कोलकाता की 65 वर्षीय शिखा दास 2000 में मुंबई आईं. घर के काम से फ्री हो कर खाली वक्त में समाज के लिए कुछ करने की इच्छा से 2002 से उन्होंने नौकरानियों और ड्राइवरों के बच्चों को पढ़ाना शुरू किया. परिवार ने भी इस में उन्हें सपोर्ट किया. यहां तक कि कभी उन के घर मेहमान भी आ जाते तो भी इन के कार्य में अवरोध नहीं होता, बल्कि उलटे कुछ मेहमान भी बच्चों को पढ़ाने में मदद कर देते थे. शिखा अपनी बेटी और दामाद के साथ मुंबई में ही रहती हैं.

शिखा क्रिसमस, न्यूईयर, बर्थडे आदि पढ़ने आए बच्चों के साथ सैलिब्रेट करती हैं. हर बच्चे के जन्मदिन पर कोई न कोई गिफ्ट अवश्य देती है. फिर चाहे वह चौकलेट हो, पैंसिल बौक्स हो या कोई बुक. वे कहती हैं कि बच्चों के चेहरों पर बिखरी खुशी देखना उन्हें बहुत अच्छा लगता है. इस से उन्हें बहुत सुकून मिलता है.

कोई खास बात जो आप को याद आती हो? कहने पर उन्होंने बताया, ‘‘एक सचिन नामक बच्चा पहली कक्षा से 10वीं कक्षा तक मेरे पास पढ़ने आता रहा. 10वीं कक्षा में उस के 98% मार्क्स आए. तब मुझे ऐसा फील हुआ जैसे कि मैं ही परीक्षा में इतने नंबरों के साथ उत्तीर्ण हुई हूं.

‘‘एक और बच्चा याद है जोकि बहुत डल था, उसे बारबार याद कराना पड़ता था. उस के साथ मैं ने बहुत मेहनत की. उस का नाम था सुजान सिंह. मगर महते हैं न कि करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान. अत: उस बच्चे का भी बेस स्ट्रौंग होने पर वह अच्छे नंबरों के साथ पास होने लगा था.’’

शिखा दास का चेहरा खुशी और संतुष्टि से चमक रहा था, यह स्पष्ट देखा जा सकता था.

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शिखा ने कामवाली बाइयों को भी पढ़ने के लिए प्रेरित किया ताकि वे अपने बच्चों पर थोड़ा ध्यान दे सकें. उन बाइयों के लिए कापियां, बैनर, पैंसिल, किताबें भी खरीद कर देतीं. शाम के खाली समय में हफ्ते में 3 दिन उन्हें पढ़ा देतीं. वे 16 वर्षों से कमजोर तबके के बच्चों का मार्ग प्रशस्त करने में क्रियाशील हैं. उन्होंने कामवालियों को पढ़ा कर, नारी सशक्तीकरण में कुछ योगदान देने के उद्देश्य से इस ओर कदम बढ़ाया था.

रक्षा का सेवाभाव

हिमाचल में जन्मीं, दिल्ली की निवासी रक्षा टीचिंग जौब (रामजस स्कूल)से अवकाश ग्रहण कर सफदरजंग अस्पताल में जरूरतमंद लोगों की वर्षों से मदद करती आ रही हैं. यह कार्य छोटे स्तर पर प्रारंभ हुआ था. रक्षा अस्पताल में कपड़े, खाद्यसामग्री, दवा आदि भी देती हैं. इन का सेवाभाव व हौसला देख कर बहुत से लोग जिन में युवा भी शामिल हैं, इन के साथ जुड़ गए हैं.

सफदरजंग अस्पताल के पास बनी धर्मशाला में रह रहे मरीजों के रिश्तेदारों, घर वालों जो गरीब होते हैं उन्हें और दूरदूर से आने वाले दूसरे लोगों को भी वे कपड़े आदि बांटती हैं. जो मरीज आर्थिक स्तर पर कमजोर होते हैं और औपरेशन के बाद जिन्हें व्हीलचेयर की जरूरत होती है रक्षा उन्हें सहयोग देती हैं.

रक्षा कहती हैं कि एक व्हीलचेयर पर क्व3,550 खर्च आता है. इस में उन की बेटियां, पड़ोसी और रिश्तेदार अपनी इच्छा से स्वयं ही धनराशि दे कर जरूरतमंदों के लिए सहयोग देते हैं. जहां तक संभव होता है वे अपनी ओर से ही जरूरतमंदों की जरूरत पूरा करने का प्रयास करती हैं.

रक्षा 4 सालों से ब्लड कैंप भी लगवा रही हैं. कैंप लगाने के लिए सफदरजंग अस्पताल अपना स्टाफ भेजता है (ब्लड बैंक का) जिस से यह कार्य सावधानी व सुगमता से हो जाता है. इस तरह जरूरत पड़ने पर मरीज को ब्लड देने की समस्या भी हल हो जाती है.

सेवाभाव में संलग्न रक्षा कहती हैं, ‘‘मैं अपनी शक्ति के अनुसार जरूरतमंदों को सहयोग देने के लिए दृढ़ संकल्प हूं. हमारे, आप के घरों में, कितना कुछ रसोई में वेस्ट होता है, अलमारियों में बेकार में कपड़े टंगे रहते हैं. हम उन्हें जिन्हें यूज ही नहीं कर पाते हैं ऐसी चीजों को जरूरतमंदों में बांट कर उन्हें यूजफुल बनाना सब से बड़ी समाजसेवा है. अपने वेतन से हर माह थोड़े से रुपए निकाल कर किसी भी जरूरतमंद की मदद की जा सकती है. बूंदबूंद से घड़ा भरता है. मेरी यही कोशिश है कि मेरा यह कार्य चलता रहे.’’

अंजू के रौक स्टार्स

सालों से सोशल सैक्टर में कार्यरत अंजू खेमानी ने बधिर लोगों के लिए कुछ करने की इच्छा से डीएडी यानी ड्राम ऐसोसिएशन औफ द डैफ की 2013 में हैदराबाद में स्थापना की. यह संस्था बधिर लोगों को प्रोत्साहित करती है ताकि वे थिएटर में काम कर सकें. अंजू विकलांग लोगों की मानसिक, सामाजिक और आर्थिक परेशानियों को दूर करने में मदद करती हैं. ‘नैशनल स्कूल औफ ड्रामा’ से थिएटर की शिक्षा प्राप्त करने वाली अंजू खेमानी ने साइन लैंग्वेज द्वारा डैफ ऐक्टर्स को डांस सिखाया ताकि वे जनरल पब्लिक से बातचीत कर सके. इस डांसर्स टीम का नाम है- द रौक स्टार्स.

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अंजू ने जब बधिर गु्रप को डांस और ड्रामा सिखाना शुरू किया तब म्यूजिकल बीड्स समझाते वक्त कभी नहीं सोचा था कि इस का परिणाम इतना आश्चर्यजनक व सुखद होगा. गु्रप के बढ़ते कदम देख ही उन्होंने डीएडी की स्थापना की थी.

जब डीएडी के सदस्यों ने संगीत की धुन पर साइनलैंग्वेज से डांस किया तो दर्शक हैरान रह गए कि म्यूजिकल बीड्स को सुनने में अशक्त वे सब एकसाथ कैसे डांस कर पा रहे हैं. इस का आधार थे गुब्बारे. हर डांसर के हाथ में 1 गुब्बारा था, जो म्यूजिकल इंस्ट्रूमैंट के बजने पर अपनी कंपन से बीड्स को समझने में सहायक हो रहा था.

हैदराबाद में इस ग्रुप ने अपने काम से सब को अचंभित कर रखा है. अंजू के इस प्रयास से बधिरों को अपने जीवन में आगे कदम बढ़ाने का मार्ग मिला है.

इन सभी हस्तियों के प्रयासों ने साबित कर दिया है कि बढ़ते कदम बढ़ते हाथ, समाज को मजबूत बनाने में सहायक होते हैं.

तो अब ये एक्ट्रेस निभाएंगी ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में ‘सोनू’ का किरदार

टीवी का पौपुलर कौमेडी सीरियल ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ पिछले कुछ दिनों से अपने किरदारों को लेकर काफी सुर्खियों में है. एक तरफ सब दया बेन की वापसी का इंतजार कर रहे थे तो वहीं दूसरी तरफ शो में ‘सोनू’ का किरदार निभाने वालीं एक्ट्रेस निधि भानुशाली ने भी अपनी पढ़ाई पर फोकस करने की वजह से शो छोड़ दिया था. शो के निर्माता भी निधि के शो छोड़ने के बाद से सोनू के किरदार के लिए नई एक्ट्रेस को खोज रहे थे और अब उनकी ये तलाश खत्म हो गई है.

सोनू के किरदार में ये एक्ट्रेस आएंगी नजर

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक सोनू के किरदार के लिए नई एक्ट्रेस मिल गई है और उस एक्ट्रेस का नाम है पलक सिधवानी. पलक सिधवानी अब सोनू का किरदार निभाएंगी. बता दें कि पलक कई छोटी फिल्मों में काम कर चुकी हैं.पलक ने तारक मेहता का उल्टा चश्मा के लिए शूटिंग भी शुरू कर दी है.

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11 साल से शो कर रहा है एंटरटेन

‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ की बात करें तो ये शो 11 साल से सब टीवी पर प्रसारित हो रहा है. इस शो को दर्शकों से अच्छा रिस्पौन्स मिलता आ रहा है. शो में कई उतार-चढ़ाव आए. कभी कोई एक्टर शो छोड़कर गया तो कभी कुछ लेकिन फिर भी इस शो को दर्श पसंद करते आ रहे हैं.

नई दया का है लोगों को इंतजार

बता दें कि पिछले कुछ समय से तो शो अपने पौपुलर किरदार ‘दया बेन’ को लेकर काफी चर्चा में है. दरअसल, काफी समय से दया बेन शो से गायब हैं. ‘दया’ ने प्रेगनेंसी  के समय मैटरनिटी लीव ली थी, लेकिन उसके बाद से अभी तक वो शो में वापस नहीं आई हैं. शो के प्रोड्यूसर से लेकर फैन्स तक सभी दया बेन की वापसी का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन ना तो अभी वो वापस आई हैं और ना ही उनके आने की खबर. कुछ दिनों पहले शो के प्रोड्यूसर ने कहा था कि अगर दया बेन समय पर वापस नहीं आईं तो उन्हें किसी नई एक्ट्रेस को लेकर आना होगा.

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