पिछला भाग- लंबी कहानी: कुंजवन (भाग-6)
दादू को आखिर लंदन जाना ही पड़ा. शिखा उन को भेजना नहीं चाहती थी, स्वयं ही जाती. लंदन उस की परिचित जगह है. जानने वाले भी कम नहीं हैं पर यहां जैकेटों के सप्लाई को ठीक समय पर भेजना है, उन की क्वालिटी पर नजर रखना है दुश्मनों की कमी नहीं इतना बोझ दादू के लिए संभालना जरा कठिन था और जब से बंटी को साफ मना कर आई है तब से उसे पूरा विश्वास है कि वो चुप नहीं बैठेगा, कहीं से ना कहीं से नुकसान पहुंचाने की कोशिश तो करेगा ही, ऐसे में दादू को अकेले छोड़ना…लंदन पार्टी से बातचीत पूरी हो चुकी है. पावर आफ एटौर्नी ले कर गए हैं काम हो जाएगा. शिखा अब बाहर की पार्टियों में ज्यादा रुचि ले रही है. इधर बंटी की तरफ से उस के मन में आशंका बढ़ी है बहुत सतर्क रहना पड़ रहा है. वो सोच रही थी दुर्गा मौसी के घर की घटना को हफ्ता बीता पर बंटी चुप क्यों है? सुलह करने की कोशिश क्यों नहीं की? रविवार का दिन था थोड़ी देर से उठी वो. रात देर तक काम किया था. दादू से बात भी हुई काम बन गया, साईन हो गए कल सुबह चले आएंगे. यह भी बड़ी डील है शिखा घबरा रही थी पर दादू ने साहस जुटाया, ‘‘घबराने की कोई बात नहीं, हम सोचते हैं हम कर रहे हैं पर करने वाला तो कोई और है.’’
लच्छो मौसी ने आज उस के पसंद का नाश्ता बनाया है, आलू परांठा, मूली के लच्छे, बूंदी का रायता. वो शाकाहारी नहीं है पर मांस अंडा ज्यादा पसंद नहीं करती.
दादू तो पूरी तरह शाकाहारी हैं. शिखा मेज पर बैठी ही थी कि दुर्गा मौसी आ धमकी. शिखा को उन का आना बुरा नहीं लगा. अकेली बैठ खाना अच्छा नहीं लगता. उस ने मौसी का हार्दिक स्वागत किया.
‘‘आओ मौसी. नाश्ता करो.’’
तभी लच्छो गरम परांठा ले कर आई. सुगंध से कमरा महक उठा.
‘‘मौसी, एक और प्लेट ला दो.’’
दुर्गा मौसी तुरंत बैठ कर गोद में नैपकिन बिछाते बोली, ‘‘तेरे दादू नाश्ता नहीं करेंगे आज?’’
सतर्क हुई शिखा, मौसी उस की सगी है पर निकटता है मेहता परिवार से क्योंकि रुचि और सोच उन लोगों से ही मिलती है इन की. एक प्लेट में परांठा डाल कर ही लाई लच्छो रख गई मौसी के सामने. वो तुरंत टूट पड़ी प्लेट के ऊपर.
‘‘तेरे दादू क्या दिल्ली से बाहर गए हैं?’’
‘‘नहीं. द्वारका में उन के गुरुभाई के घर कुछ पूजा प्रवचन है.’’
‘‘हूं.’’
पूरी कटोरी भर रायता पी फिर से कटोरी भरती बोलीं, ‘‘कामकाज, जिम्मेदारी कुछ है नहीं तो यह सब फालतू काम करो.’’
‘‘यह फालतू काम तो है मौसी पर साफ शुद्ध भगवान का नाम तो है. जिम्मेदार कामकाजी लोग तो शराब की पार्टी करते चार सौ बीवी का प्लान बनाते उस से तो अच्छा है.’’
मौसी इतनी भी मूर्ख नहीं कि व्यंग के तीर की दिशा ना समझे पर इस समय अपने मिजाज पर कंट्रोल करना बहुत जरूरी है. तुरंत प्रसंग टाल दिया.
‘‘बेबी, बंटी की ओर देख कर छाती फटती है मेरी.’’
‘‘अरे क्या हुआ? हाथपैर टूट गए क्या? हां गाड़ी बड़ी तेज चलाता है. असल में पीने के बाद कंट्रोल नहीं कर पाता. एक ड्राइवर रखने को कहो उसे.’’
गुस्सा पी लिया मौसी ने.
‘‘तू समझती क्यों नहीं, तू ने बड़ा दुख दिया है उसे. बचपन से उस ने तुझे अपना समझ, प्यार किया.’’
‘‘अपना समझा होगा, क्योंकि किसी भी चीज को कोई भी उस की अपनी चीज समझ सकता है पर प्यार का नाम मत लो इस शब्द का मतलब भी नहीं पता उसे.’’ नरम स्वर में दुर्गा मौसी ने कहा.
‘‘उन को आस थी कि तू बंटी की दुलहन बनेगी और यह कोई खयाली पुलाव भी नहीं. मेरे सामने मंजरी ने वचन दिया था तभी तो…’’
‘‘मौसी, उस समय तुम तीनों ही नशे में धुत् थीं शायद बंटी भी गिलास ले साथ दे रहा था.’’
‘‘पर वचन तो दिया ही था.’’
‘‘बारबार तुम ‘वचन’ शब्द को मत दोहराओ तुम्हारे मुख से शोभा नहीं देता. यह बड़ा पवित्र शब्द है उसे गंदे शराब के गिलास में मत बोलो. सुनो नशे के धुन में किए काम को कानून भी मान्यता नहीं देती. मैं ने तो साफ कह दिया है कि मैं इस बात को नहीं मानती.’’
‘‘पर अपनी मां का तो मान रख.’’
‘‘मां. नहीं मां के प्रति मेरे मन में कोई भी अनुभूति नहीं है और मां ने कभी बेटी का प्यार दिया है मुझे.’’
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‘‘गुस्सा मत कर मैं तो यों ही कह रही थी. ठीक है बंटी ना सही कोई दूसरा लड़का.’’
‘‘चुना एक बार ही जाता मौसी बारबार नहीं.’’
‘‘बेटा तू ही सोच वो अनाथ, गरीब आश्रम में पला लड़का तेरे स्तर, तेरे परिवार में बेमेल नहीं था?’’
‘‘बंटी किस बात से मेल खा रहा, शराबी, चरित्रहीन, सड़क पर आ कर खड़े होने वाले भ्रष्ट व्यापारी परिवार…’’
मौसी के शब्द ही खो गए. जाते समय बोल गई, ‘‘बेबी, तू माने या ना माने पर मुझे तेरे लिए बड़ी चिंता है.’’
‘‘इस का सीधा मतलब है कि तुम भी बंटी को विश्वास नहीं करती वो अपने मतलब के लिए मेरे साथ कुछ भी गलत कर सकता है. हद से नीचे जा सकता है. मौसी के पास इस का कोई उत्तर नहीं था. वो थोड़ी देर चुप रह कर बोली, पर बेबी, तेरे दादू और कितने दिन के… तू अकेली कैसे?’’
‘‘तब सोचूंगी कुछ.’’
‘‘वो…वो लड़का… मिलता है कभी?’’
‘‘सुकुमार? नहीं वो वचन का पक्का है.’’
‘‘मैं चाहती हूं तू अकेली ना रहे?’’
‘‘कल किसी को नहीं पता पर जो भी हो बंटी नहीं.’’
दुर्गा मौसी चुप हो गई.
‘‘लंदन’’ का आर्डर मिल गया. काम बढ़े पहले सोचा था हाथ का काम निबटा दूसरे काम में हाथ डालेगी पर ऐसा हुआ नहीं समय सीमा इन की भी कम है, टैंडर बुलाना पड़ा. दादू ने लौट कर पूरी घटना सुनी तो बहुत तनाव में आ गए, ‘‘बेटा, मुझे डर लग रहा है.’’
‘‘नहीं दादू, अगर चार दुश्मन हैं तो आठ दोस्त भी हैं.’’
‘‘समय पर कोई पास ना हुआ तो?’’
‘‘आप क्या सोच रहे हैं?’’
‘‘यही इस समय वो बौखलाए हुए हैं, डेसपरेट हैं.’’
‘‘कितना बड़ा कारोबार था. हमारे साथ टक्कर लेने वाले थे. सब बरबाद कर दिया.’’
‘‘उस के पीछे एक कारण है दादू.’’
‘‘क्या?’’
‘‘अय्याश तो यह लोग पहले से ही थे, दिमाग में मुफ्त में कंपनी को पाने का सपना पाल बैठे.’’ जानकीदास को चिंता थी शिखा की सुरक्षा की.
‘‘बेबी, एक गार्ड रख दूं?’’
‘‘क्या दादू? इतना भी क्या डरना.’’
‘‘यह अच्छे लोग नहीं हैं. बंटी की संगत बहुत बुरी है.’’
‘‘मैं अपनी गाड़ी में रहती हूं.’’
‘‘उसी का डर है. औफिस गार्ड को मना कर दूंगा कि बंटी अंदर ना आने पाए.’’
‘‘जैसा आप ठीक समझो.’’
‘‘सोच रहा था एक बार जोशीमठ हो आता पर.’’
‘‘जोशीमठ’’ के थोड़ा नीचे गंगा किनारे एक गांव में अति मनोरम स्थान पर पापा ने चार एकड़ जमीन ली थी. कहते थे.
‘‘तेरी शादी के बाद मैं वहां चला जाऊंगा. यहां तो मैं बस तेरे लिए पड़ा हूं. फिर वहां मैं फूलों की खेती करूंगा और शांति से रहूंगा.’’
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वहां एक सुंदर आरामदेह काटेज भी बनवाया था. कभीकभी जा कर रहते भी थे. उसे भी साथ लाना चाहते पर मम्मा के डर से कभी नहीं ले जा पाए. अब दादू महीना दो महीना में जाते हैं. फूलों का बगीचा भी लगाया है. माली है एक केयर टेकर परिवार सहित आउट हाउस में रहता है. झड़ाईसफाई करते हैं और दादू जब रहते हैं तब सेवा करते हैं. नई उम्र का जोड़ा है, सीधेसादे भले लोग.
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