लॉकडाउन वेडिंग: ‘भल्लालदेव’ से पहले इस साउथ सुपरस्टार ने की शादी, वायरल हुईं Photos

फिल्म बाहुबली में भल्लालदेव का किरदार निभाने वाले राणा डग्गुबती की जल्द शादी की खबरों के बीच साउथ सुपरस्टार निखिल सिद्धार्थ (Nikhil Siddhartha) ने अपनी मंगेतर पल्लवी शर्मा (Pallavi Sharma) के साथ 14 मई को कोरोनावायरस लॉकडाउन के बीच शादी कर ली है. वहीं इसी बीच दोनों की वेडिंग फोटोज सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होनी शुरू हो गए हैं. आइए आपको दिखाते साउथ सुपरस्टार की वेडिंग फोटोज वायरल….

वेडिंग आउटफिट में खूबसूरत दिखी दुल्हन

 

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Just Got MARRIED 😇🙏🏽 #nikhilpallavi #nikpal #lockdownwedding @aswin_suresh_photography @ekaa_customdecor

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वेडिंग के दौरान निखिल गोल्डन कलर की शेरवानी में दिखाई दिए तो वहीं पल्लवी रेड कलर की सिल्क साड़ी में नजर आईं. पल्लवी का लुक साउथ इंडियन था, जिसमें वह बेहद खूबसरत नजर आ रही थीं.

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पेशे से डॉक्टर हैं पल्लवी शर्मा

 

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#WillBeTogetherSoon But for now, Love You From Afar… ❤️

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जहां निखिल सिद्धार्थ साउथ के यंग एक्टर्स में से हैं, वहीं उनकी पत्नी पल्लवी पेशे से एक डॉक्टर हैं. वहीं शादी के दौरान क्लिक की गई इन फोटोज में पल्लवी शर्मा और निखिल सिद्धार्थ की जोड़ी बेहद सुंदर लग रही है.

लंबे समय से रिलेशनशिप में थे निखिल और पल्लवी

 

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Happy Valentines Day ♥️ to all of You from Us Both 👩‍❤️‍👨 #NikPal

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निखिल और पल्लवी दोनों एक दूसरे को काफी लंबे समय से डेट कर रहे हैं, जिसके बाद इन्होंने शादी करने का फैसला किया था और शादी का दिन 16 अप्रैल को निकला था, लेकिन लॉकडाउन की वजह से इसे टाल दिया गया.

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लॉकडाउन का रखा पूरा ख्याल

 

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SHE SAID YESS… Next Adventure In Life 🥂🍾

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लॉकडाउन के सारे नियमों का ध्यान रखते हुए शादी के दौरान निखिल और पल्लवी ने मास्क और सैनिटाइजर का भी पूरा इंतजाम किया था. वहीं इससे पहले हल्दी की रस्में भी कोरोना लॉकडाउन के बीच सभी सावधानियों को ध्यान में रखते हुए पूरी की गई थी. शादी की सभी रस्मों को परिवारवालों ने शांतिपूर्वक पूरा किया और कोरोना वायरस लॉकडाउन के नियमों का ध्यान रखा.

बता दें, हाल ही में बाहुबली फेम राणा डग्गुबती की शादी की खबरें आई थीं. राणा डग्गुबती ने बिजनेसमैन मिहिका बजाज के साथ मुस्कराते हुए अपनी एक फोटो इंस्टाग्राम पर शेयर की थी. इस पोस्ट के कैप्शन में उन्होंने लिखा था “उसने हां कर दी”. राणा ने अपने कैप्शन में मिहिका बजाज के नाम के साथ हैशटैग लगाते हुए दिल का सिम्बल भी बनाया था, जिसके बाद से उनकी शादी की फैंस इंतजार कर रहे हैं.

 

Mother’s Day 2020: मेरी मां का ड्राइव करना मेरे लिए गर्व हुआ करता था– गोल्डी बहल

फिल्म बस इतना सा ख्वाब है से निर्माता, निर्देशक के क्षेत्र में कदम रखने वाले निर्माता, निर्देशक गोल्डी बहल ने 15 साल की उम्र में अपने पिता और फिल्ममेकर रमेश बहल को खोया. तबसे लेकर आजतक वे फिल्म निर्माण और निर्देशन का काम करते आये है. उन्हें हर नयी कहानी को कहना पसंद है. सालों पहले उन्होंने इस क्षेत्र में कदम रखी और फिल्मों के काम के ज़रिये उन्होंने प्रोफेशनल ट्रेनिंग ली है. फिल्म ‘नाराज़’ के दौरान, महेश भट्ट को एसिस्ट करते हुए वे अभिनेत्री सोनाली बेंद्रे से मिले प्यार हुआ, शादी की और बेटा रणवीर के पिता बने. अभी जी 5 पर उनकी वेब सीरीज रिजेक्ट्स का दूसरा भाग रिलीज पर है, जिसे लेकर वे काफी उत्साहित है. पेश है उनसे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल-ये कहानी क्या कहना चाहती है? क्या कोई मेसेज है?

ये यूथ की कहानी है, जहां मौज मस्ती के साथ-साथ थ्रिलर, क्राइम और तकलीफे दोनों ही है. साथ में ये संगीतमय भी है, क्योंकि इसमें एक बैंड की ग्रुप है. इसके अलावा इसमें कुछ ऐसी समस्या भी दिखाई गयी है, जो पैसों से भी हल नहीं हो सकती, ऐसे में वे कैसे बाहर निकलते है उसे दिखाने की कोशिश की गयी है. बड़े से बड़े इंसान भी पैसे से सबकुछ नहीं कर सकता, कुछ चीजे उनके हाथ में नहीं होती.

फिल्म मेकर के हिसाब से मैंने किसी मेसेज के बारे में नहीं सोचा है, मनोरंजक फिल्म बनाने की कोशिश की है, पर अगर कोई मेसेज जाती है, तो अच्छी बात है.

सवाल-आप यंग ऐज में कैसे थे और कोई यादगार पल जो आप शेयर करना चाहे.

मैं जब 15 साल का था तो मेरे पिताजी गुजर गए थे. उस उम्र में मैंने काम शुरू कर दिया था. मैं कॉलेज जा नहीं पाया. काश मैं उसे फील कर पाता. शायद यही वजह है कि मैं अधिकतर यंग शोज बनाता हूं और जिंदगी को अपनी कहानी और चरित्र के ज़रिये जीता हूं. ये सही है कि मैंने उस अवस्था को जी नहीं पाया और काम पर लग गया. मेरे हिसाब से फिल्म लाइन में भी शिक्षा का होना जरुरी होता है. फिल्म स्कूल में जाना और तकनीक का ज्ञान जरुरी है. मैंने काम के साथ-साथ ट्रेनिंग ली, मसलन किसी का एसिस्टेंट डायरेक्टर बन गया या फिर पिता की अधूरी फिल्म को पूरी कर दी. परिवार का व्यवसाय था, इसलिए उसमें जाकर सीखा और ये सही तरीका नहीं होता है. इसमें प्रैक्टिकल नॉलेज मिल जाती है, लेकिन उसके ग्राफ को बनाये रखने के लिए स्कूल की ट्रेनिंग जरुरी है.

सवाल-आपने ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म के बारें में सालों पहले सोचा था और आज इसका बोलबाला है, इस बारें में तब कैसे सोचा ?

मैंने दो तीन फिल्में बनायीं जो बिलकुल कामयाब नहीं थी. मेरी बहन भी मेरे साथ काम करती थी. मैंने सोचा कि जो कहानी मैं कहना चाहता हूं. जब उसे बनाता भी हूं तो उस कहानी के बनने के बाद समय के हिसाब से एडिटिंग करते वक़्त कई चीजे काट देता हूं और कहानी सही नहीं बन पाती. वेब सीरीज की इस फोर्मेट में मैंने देखा कि विदेश में एपिसोडिक फिल्में बन रही है, जिसमें कहानी को कहने के लिए बहुत सारा समय मिल जाता है, ये मुझे अच्छा लगा. मैंने फिर इसी को अपनाना शुरू कर दिया. इसमें बजट और समय की पाबन्दी नहीं होती . ड्रामा अब स्माल स्क्रीन पर आ गया है. हॉल तक न जाकर भी आप फिल्में देख सकते है.

सवाल-लॉक डाउन का असर इंडस्ट्री पर कितना पड़ने वाला है?

कुछ फिल्में जो तैयार है वह ओटीटी पर रिलीज हो जाएगी, जिससे एक्टर्स से लेकर टेक्नीशियन सभी को थोडा-थोडा पैसा मिल जायेगा, जो अच्छी बात है, पर कुछ कहानी के लिए थिएटर ही सही होता है. उन्हें रुकना पड़ेगा. सलमान खान की फिल्म हॉल में ही देखना अच्छा लगता है. इस समय थिएटर सबसे अधिक प्रभावित है, क्योंकि इस हालात में उसे खोलना संभव नहीं होगा. दिवाली तक उम्मीद है थिएटर खुल पायेगा.

सवाल-आप के जीवन में जब मुश्किल घड़ी आई, उससे आप कैसे निकले? देश में भी कठिन दौर चल रहा है, क्या सन्देश देना चाहते है?

समय किसी का नही होता. अगर अच्छा समय नहीं रहता है, तो ख़राब समय भी अधिक दिनों तक नहीं रहेगा. मेरे जीवन में बहुत कठिन दौर आया और इसी के साथ मैं आगे बढ़ा हूं.

देश पर आये इस समय को भी हम अगले साल याद करेंगे, जब सबकुछ ठप्प हो गया था. ये पृथ्वी केवल मानव की नहीं, जीव जंतुओं की भी है. पृथ्वी हमारी नहीं हम पृथ्वी के है.

सवाल-बचपन में मां के साथ बिताया पल जिसे आप मिस करते है?

मां अभी मेरे साथ रहती है. जब भी समय मिलता है, मैं उनके पास बैठ जाता हूं. बचपन में मेरी मां हर जगह ड्राइव कर ले जाती थी, उसे मैं मिस करता हूं. बहुत मज़ा आता था, क्योंकि वह जब भी ड्राइव करती थी तो मैं उनके बगल में बैठता था. मेरे लिए ये बात गर्व का हुआ करता था कि मेरी मां ड्राइव जानती है.

ड्रैस से मैंचिंग मास्क : सुरक्षा के साथ सुंदरता भी

दुनियाभर में लोग कोरोना वायरस के प्रकोप से बचने के लिए अपनी तरफ से हर तरीके अपना रहे हैं. भारत सहित कई देशों ने लौकडाउन कर दिया है. इसलिए लोग घरों में कैद होने को मजबूर हो गए हैं.

इस वायरस से बचने के लिए लोग घरों के अंदर रहने के साथ ही सामाजिक दूरी बनाए हुए हैं, शारीरिक संपर्क से बच रहे हैं, चेहरे पर मास्क और हाथों में दस्ताने पहन पर निकल रहे हैं. समयसमय पर हाथ धो रहे हैं और साफसफाई का पूरा ध्यान भी रख रहे हैं.

हालांकि, बहुत से लोग मास्क और दस्ताने की वजह से अप ने ड्रैसिंग सैंस को खराब नहीं होने देना चाह रहे, इसलिए अब लोगों में मैचिंग मास्क की मांग होने लगी है.

दक्षिण कोरिया के लोग गुलाबी रंग के फेस मास्क की मांग करने के साथ मास्क लगाने के बाद चेहरे के चारों ओर मेकअप कैसे करें, इस का तरीका सीख रहे हैं, तो वहीं स्लोवाकिया की राष्ट्रपति जुजान कैपुटोवा ने एक और कदम आगे बढ़ाया है. वे मैचिंग ड्रैस के रंग में हाथ से बने मैचिंग मास्क और दस्ताने पहन रही हैं.

लोगों को फेस मास्क में फैशनैबल मोड़ देने के लिए बेहतरीन तरीका बताया गया है. जहां आम लोग बाजार में उपलब्ध मास्क से ही काम चला रहे थे, वहीं अब वे भी ड्रैस से मैचिंग मास्क लगाने लगे हैं.

बाजार में छा गए हैं रंगबिरंगे मास्क

फैशन को देखते हुए अब सादे ही नहीं बल्कि घरों में तैयार अलगअलग कपड़ों से रंगबिरंगे मास्क भी बाजार में नजर आने लगे हैं. लोगों ने कोरोना मास्क में फैशनेबल टच देना शुरू कर दिया है. महिलाएं अपने सूट से मैच खाता मास्क पहने खूब नजर आने लगी हैं. सोशल मीडिया पर भी सूट से मैच खाता हुआ मास्क खूब वायरल हो रह है. बाजार में सलवारसूट, कुरती और साड़ियों के ही नहीं, बल्कि शर्ट, टी शर्ट के डिजाइन से मैच करने वाले मास्क उतर आए हैं. ये युवाओं और महिलाओं को ध्यान मे रख कर तैयार किए जा रहे हैं. मतलब अब सुरक्षा के साथ सुंदरता को भी जोड़ दिया गया है.

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लोगों का मानना है कि कोरोना का दहशत आगे भी बनी रही तो महिलाओं में जल्द ही सूट के साथ मैंचिंग मास्क विभिन्न समारोहों व कार्यक्रमों में भी लोगों का ध्यान आकर्षित करता दिखेगा.

मास्क बनाने वाली कंपनियों का कहना है कि अब लोगों में कलरफुल मैचिंग मास्क की डिमांड बढ़ने लगी है. मतलब यह कि हरकोई इस महामारी के दौरान अपनेआप को सर्वश्रेष्ठ दिखाने के तरीके ढूंढ़ रहा है.

मास्क बना फैशनेबल

पूरी दुनिया इस वक्त कोरोना महामारी से जूझ रही है, ऐसे में बड़ीबड़ी कंपनियां फैशनैबल मास्क बाजार में उतार रही हैं. मसलन :

•लोग एक तरह के मास्क पहन कर बोर न हो जाएं इसलिए कंपनियां मास्क में भी रचनात्मक ला रही हैं और रंग व डिजाइन को ध्यान में रखा जा रहा है. हालांकि, अभी भी बहुत से ऐसे लोग हैं जो मास्क की जगह रूमाल जैसे कपड़ों का इस्तेमाल कर लेते हैं, जबकि सरकार की सलाह है कि घर से निकलते वक्त लोग अपना चेहरा सही तरीके से ढंकें. इसलिए मुंबई की सड़कों पर मास्क लगाने का संदेश देने के लिए पुलिसकर्मी ने खास मास्क पहना. इस मास्क पर हिन्दी फिल्म ‘गली बौय’ का मशहूर गाना ‘अपना टाइम आएगा…’ लिखा हुआ था.

•फिलमिस्तान में लोगों को मास्क पहनने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए कलाकार अपनी तरफ से कोशिश कर रहे हैं. वे मास्क में रंग लगा कर उसे आकर्षित बना रहे हैं.

•भारत में ऐसे लोगों के लिए बनियान से बने मास्क बांटे जा रहे हैं जो मास्क खरीदने में असमर्थ हैं.

•मास्क पहनने का संदेश सभी लोगों तक पहुंचाने के लिए लोग तरहतरह के प्रयोग भी कर रहे हैं.

लौकडाउन के बावजूद देश के कई हिस्सों में कपड़ों के साथ मास्क तैयार करा रही रैडिमैड कंपनियों को लगता है कि आने वाले दिनों में शर्ट व कुरती से मैच करता हुआ मास्क फैशन का हिस्सा हो जाएगा.

गमछा भी है फैशन में

सोशल मीडिया पर कई युवा गमछे को लेकर नएनए ट्रैंड ला रहे हैं और सोशल मीडिया पर अपनी फोटो अपलोड कर रहे हैं. कहीं लोग गमछा चैलेंज हैशटैग के साथ फोटो पोस्ट कर रहे हैं, तो कहीं स्टाइल से बांध कर इसे हिट किया जा रहा है. इतना ही नहीं, कई बुजुर्ग भी इस ट्रैंड को पसंद कर रहे हैं.

गमछा चैलेंज के बारे में स्टूडैंट तुषा कपूर कहती हैं कि गमछा, स्कार्फ की तरह ही एक ऐक्सैसरीज है. इस से स्टाइलिश लुक पाना बेहद आसान है. दिखने में यह अच्छा लगता है और इस से बीमारों जैसी नहीं, बल्कि एक पोजिटिव फिलिंग आती है. इस में वैरायटी भी बहुत है, इसलिए मैचिंग करवाना भी आसान है.

बौलीवुड स्टार्स को भी पसंद है गमछा

अमिताभ बच्चन से ले कर अक्षय कुमार और सलमान खान तक इस ऐक्सैसरीज में नजर आ चुके हैं. फिल्ममेकर अनुराग बसु को तो कई बार सूट के साथ गमछे को कैरी किए हुए देखा गया है. वैसे गमछे की पापुलैरिटी का आलम यह है कि अब आप को गमछा पैटर्न साड़ी और स्टौल भी यह खूब देखने को मिल जाएगा.

जाने क्या कहते हैं बिक्रेता

रैडीमेड के थोक बिक्रेता रवि जयसवाल का कहना है कि लौकडाउन के बाद जब बाजार खुलेगा तो बहुत कुछ नया देखने को मिलेगा. खासकर रैडीमेड कपड़ों को ले कर बड़ा बदलाव आएगा. कपड़ों के साथ उसी रंग का मास्क भी ग्राहक को उपलब्ध कराया जाएगा क्योंकि अब मास्क जिंदगी का हिस्सा बन चुका है.

कांग्रेस नेता और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी अलगअलग ड्रैस के साथ मैच करता हुया मास्क पहन कर बैठकों में भाग लेने लगे हैं. मतलब हर मीटिंग के लिए अलग ड्रैस और हर बार उस ड्रैस से मैच करता हुआ मुंह पर मास्क. वैसे उन के इस खास अदा पर लोगों ने निशाने साधे.
उनके अलगअलग कपड़ों में मैचिंग मास्क के साथ उन की कई तसवीरें भी ट्विटर पर पोस्ट की गई हैं.

•बाजार में मास्क सस्ते भी मिल रहे हैं और महंगे भी. कुछ बड़ी कंपनियां हैं जो प्रदूषण से लड़ने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले मास्क बनाते हैं, हालांकि, इन की कीमत भी ज्यादा है.

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दिल्ली के खान मार्केट में वायु प्रदूषण से बचने के लिए तमाम तरफ की चीजें मिलती हैं, जिस में मास्क अहम है. यहां डिजाइनर मास्क अलगअलग रंग और रैंज में मिल रहे हैं.
₹ 2 हजार से शुरू होने वाले इन मास्क की रैंज ₹5 हजार तक है और ये केवल फैशनेबल ही नहीं, बल्कि एन 95 मास्क हैं जिन्हें दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है.
₹2 हजार से ₹3 हजार वाले मास्क को 5 से 6 महीने तक पहना जा सकता है और ₹4 हजार से ऊपर वाले मास्क में केवल फिल्टर बदल कर बारबार इस्तेमाल कर सकते हैं. इन मास्क के फिल्टर को 2 से 3 हफ्ते तक इस्तेमाल कर सकते हैं.
ये मास्क न सिर्फ आप को सुरक्षित रखेंगे बल्कि आप को नया स्टाइल भी देंगे. मास्क लगाने के अलावा अब लोगों के पास कोई औप्शन नहीं है.

क्या स्किन पर ब्लीच का इस्तेमाल कर सकते हैं?

सवाल-

मेरी बेटी 17 वर्ष की है. क्या मैं उसकी स्किन पर ब्लीच का इस्तेमाल कर सकती हूं?

जवाब-

बिगड़ती रंगत को सुधारने के लिए ब्लीच का इस्तेमाल सब से बेहतर विकल्प है. लेकिन ब्लीच में कैमिकल्स होते हैं जो त्वचा को नुकसान पहुंचा सकते हैं. आप की बेटी की त्वचा कोमल और सैंसिटिव होगी. अगर आप ब्लीच का इस्तेमाल करेंगी तो उस की त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है.

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फेस से अतिरिक्त बालों को छिपाने और फेस को खूबसूरत बनाने व  फेस से टैनिंग को कम करने के लिए ब्लीच किया जाता है. ब्लीच करने के लिए  कौस्मेटिक्स ब्लीच का इस्तेमाल करते हैं लेकिन क्या आप जानती हैं कि जरूरत से ज्यादा ब्लीच करना आपकी स्किन के लिए हानिकारक हो सकता है. अगर आप अक्सर ब्लीच का इस्तेमाल करते हैं तो इससे आपकी स्किन को काफी नुकसान पहुंच सकता है. ऐसे में आपको ब्लीच का इस्तेमाल अपनी स्किन पर बहुत कम करना चाहिए. आइए जानते हैं कि ब्लीच करने से कैसे आपकी स्किन पर क्या-क्या दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं.

1. जलन

ब्लीच का ज्यादा इस्तेमाल या ज्यादा समय तक इस्तेमाल आप के फेस  के बालों को सुनहरा कलर तो जरूर देगा लेकिन साथ में देगा जलन. जो कि ब्लीच क्रीम में मौजूद केमिकल के कारण होती है, जिससे की स्किन लाल पड़ जाती है और जलन होने लगती है. अगर आपकी स्किन संवेदनशील होती है तो ऐसे में फेस पर जलन और भी तेजी से होगी.

2. आंखों से पानी बहना

ज्यादा ब्लीच का इस्तेमाल या ज्यादा देर तक इसका प्रयोग आपकीी आंखों पर भी बुरा प्रभाव डालताा है क्योंकि इसम मौजूद केमिकल की गंध बहुत तीव्र होती है .जो आंखोंं पर असर करतीी है .जिसकी वजह से  आंखों से पानी गिरना और आंखें लाल पड़ने जैसी समस्याएं पैदा हो जाती है .

पूरी खबर पढ़ने के लिए- ब्लीच के इस्तेमाल से पहले जान लें ये बातें

किचन में ही छिपे हैं ब्यूटी सीक्रैट्स

क्या आप को मेकअप से ऐलर्जी हो जाती है या फिर महंगेमहंगे कौस्मैटिक प्रोडक्ट्स खरीदते वक्त आप को सोचना पड़ता है तो अब आप परेशान न हों. क्योंकि जिस किचन में आप ज्यादा समय बिता कर अपने परिवार के लिए हैल्थी डिशेज बनाती हैं उसी किचन में आप की सुंदरता का राज भी छिपा हुआ है. जो आप की स्किन को किसी भी तरह का कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा. बस थोड़ा सा अप्लाई करने पर आप की बौडी ग्लो करने लगेगी. तो हुआ न किचन में सुंदरता का राज.

इन चीजों से निखारें सुंदरता

हनी फेसियल मास्क: हनी तो हर किचन में होता है, क्योंकि यह न सिर्फ डेजर्ट्स में मिठास बढ़ाने का काम करता है, बल्कि कफ से भी बचाने का काम करता है. स्किन के लिए भी इस के काफी फायदे होते हैं. इस में ऐंटीबैक्टीरियल प्रौपर्टीज होने के कारण ये ऐक्ने को बचाता है. ये ऐंटिऔक्सीडैंट्स से भरपूर होने के कारण यह स्किन को हानिकारक फ्री रैडिकल्स से भी बचाने का काम करता है. साथ ही इस से स्किन में मौइस्चर भी बरकरार रहता है. जिस से स्किन सौफ्ट ऐंड स्मूद दिखती है.

इसलिए बाजार से हनी फेसिअल मास्क खरीदने के नाम पर खुद को लुटने न दें, बल्कि अपनी किचन में रखे हनी से ही फेस मास्क बना कर स्किन को बनाएं खूबसूरत.

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कैसे अप्लाई करें

ऐक्ने प्रोन स्किन: अगर आप ऐक्ने की समस्या से परेशान हैं तो किचन में रखे

2 इंग्रीडिऐंट्स के इस्तेमाल मात्र से आप को इस समस्या से नजात मिलेगी. इस के लिए आप एक बाउल में 3 छोटे चम्मच हनी में थोड़ी सी दालचीनी मिला कर पेस्ट तैयार करें. फिर इस मास्क को फेस पर 15-20 मिनट के लिए लगा रहने दें. फिर पानी से फेस को साफ करें. हनी व दालचीनी की ऐंटीबैक्टीरियल प्रौपर्टीज आप को ऐक्ने की समस्या से छुटकारा दिलवाएगी.

ड्राई स्किन: अगर आप अपनी रूखी त्वचा से परेशान हैं तो आप एक छोटा चम्मच फुल क्रीम दही में 1 छोटा चम्मच हनी मिला कर पेस्ट तैयार करें. फिर इसे 10-15 मिनट के लिए चेहरे पर लगा छोड़ दें. दही में लैक्टिक एसिड होने के कारण यह आप को सौफ्ट व स्मूद स्किन देगा.

सैंसिटिव स्किन

अगर आप की सैंसिटिव स्किन है और आप कुछ भी लगाने से डरती हैं तो हनी और ऐलोवेरा मास्क आप की स्किन को बिना कोई नुकसान पहुंचाए स्किन को ग्लोइंग भी बनाएगा साथ ही रैडनैस, जलन जैसी समस्याओं से भी नजात मिलगी. क्योंकि हनी के साथ एलोवेरा में हीलिंग प्रौपर्टीज जो होती हैं.

कोकोनट औयल फोर मेकअप रिमूवर: बहुत से लोग कोकोनट औयल से ही खाना बनाना पसंद करते हैं, क्योंकि यह न सिर्फ हैल्थी होता है, बल्कि स्किन व बालों को भी फायदा पहुंचाता है. क्योंकि इस में ऐंटीबैक्टीरियल व ऐंटीफंगल प्रौपर्टीज जो होती हैं. ऐसे में अगर आप अपने मेकअप को रिमूव करने के लिए महंगे प्रोडक्ट्स पर निर्भर रहती हैं तो एक बार कोकोनट औयल से मेकअप को रिमूव करने के बारे में जरूर सोचें, क्योंकि यह जहां अप्लाई करते ही स्किन से मेकअप को हटा देगा वहीं इस से स्किन में किसी तरह की कोई इर्रिटेशन नहीं होगी और स्किन इतनी सौफ्ट हो जाएगी कि बारबार आप को उसे छूने को दिल करेगा.

दही, हलदी व बेसन का पैक: क्या आप ऐक्ने, पिगमैंटेशन, ओपन पोर्स या फिर अनइवन स्किन टोन की समस्या को फेस कर रही हैं तो आप के लिए दही, हलदी व बेसन का पैक काफी फायदेमंद साबित होगा, क्योंकि एक तो ये सभी चीजें आसानी से आप के किचन में मिल जाएंगी वहीं दही व बेसन आप की स्किन को स्मूद बनाने का काम करेगा. हलदी में ऐंटीबैक्टीरियल तत्त्व होने के कारण यह स्किन टैनिंग, दागधब्बों आदि को दूर कर सिकन को सौफ्ट बनाए रखेगी.

एक बाउल में 1 बड़ा चम्मच दही में चुटकी भर हलदी और थोड़ा सा बेसन मिला कर पेस्ट बनाएं. फिर इस पेस्ट को चेहरे पर करीब 10-15 मिनट के लिए लगा छोड़ दें. फिर हलके हाथों से फेस को रब कर धो लें. इस पैक को आप हफ्ते में 3-4 बार अप्लाई कर सकती हैं. इस से धीरेधीरे आप की स्किन बिलकुल क्लियर नजर आने लगेगी.

ब्राउन शुगर लिप स्क्रब: जब भी मौसम बदलता है तो सब से पहले हमारे होंठ ड्राई हो जाते हैं. जिस से हमें कंफर्टेबल फील नहीं होता है. इस से बचाव के लिए हम मार्केट से महंगेमहंगे लिप बाम खरीद लाते हैं जो हमें सिर्फ कुछ देर के लिए ही आराम पहुंचाते हैं फिर वैसे के वैसे ही हो जाते हैं. जबकि अगर आप अपनी किचन में एक नजर डालें तो आप को जरूर वहां पर ब्राउन शुगर नजर आएगी, जो सेहत के लिए तो काफी फायदेमंद होती है साथ ही लिप्स की ड्राईनैस को तो 2-4 बार अप्लाई करने पर दूर कर देती है.

इस के लिए बस आप को थोड़ी सी ब्राउन शुगर में कुछ बूंदे कोकोनट औयल या फिर औलिव औयल को डाल कर स्क्रब तैयार करने की जरूरत होगी. फिर उसे होंठों पर अप्लाई कर के उस से स्क्रब करें. इस से डैड स्किन रिमूव होने के साथ ही लिप्स सौफ्ट हो जाएंगे व उन में मौइस्चर आ जाएगा. ऐसा आप कुछ दिन तक लगातार करें, आप को अपने लिप्स में बदलाव नजर आने लगेगा.

ओट्स से स्किन इर्रिटेशन से छुटकारा: आज हर कोई हैल्थ कौंशस हो गया है, इसलिए अब ब्रेकफास्ट में परांठे की जगह ओट्स ने ले ली है, क्योंकि ये हाई फाइबर रिच डाइट होने के कारण लंबे समय तक आप की टम्मी को फुल रख कर फिट रखने का काम जो करता है. ये आप की स्किन में इर्रिटेशन, डायनैस की प्रौब्लम से भी छुटकारा दिलवाता है.

इस के लिए आप ओट्स का पाउडर बना कर उस में थोड़ा सा पानी व दही मिला कर पेस्ट तैयार करें. इस पेस्ट को चेहरे पर लगाने से आप को स्किन प्रौब्लम्स से छुटकारा मिलने के साथ स्किन सौफ्ट भी नजर आने लगती है.

मसूर दाल पैक से निखारें रंगत: अगर आप अपना रंग और साफ करना चाहती हैं तो आप के लिए होममेड मसूर दाल पैक काफी अच्छा साबित होगा. इस के लिए आप रात भर के लिए थोड़ी सी मसूर दाल को भिगो कर रख दें. फिर सुबह उसे पीस कर उस में थोड़ा सा कच्चा दूध मिला कर फेस पर अप्लाई करें. फिर पैक के सूखने पर हलके हाथों से उसे रब करते हुए चेहरे को धो लें. इस से स्किन साफ होने के साथ ही ऐक्ने की समस्या भी दूर होगी.

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उरद दाल करे ब्लीच का काम: हार्मोनल बदलावों की वजह से या फिर किसी अन्य कारण से स्किन पर बाल आ जाते हैं जो किसी लड़की को गवारा नहीं होते. इस के लिए वह हर 15-20 दिन में पार्लर जा कर ब्लीच करवा लेती हैं, जिस में कैमिकल्स होने के कारण स्किन काली पड़ जाती है या स्किन पर ऐलर्जी भी हो सकती है. ऐसे में आप घर में सेफ तरह से नैचुरल चीजों से ब्लीच करें.

इस के लिए आप 1 छोटा चम्मच उरद दाल में 3-4 बादाम डाल कर रात भर के लिए भिगो दें. फिर सुबह पीस कर चेहरे पर लगा लें. यह प्रोटीन मास्क स्किन को पोषण देने के साथसाथ ब्लीच का भी काम करेगा.

दही से करें बालों कंडीशनिंग: खाने के साथ अगर हमें दही मिल जाता है तो खाने का स्वाद ही कई गुना बढ़ जाता है. वहीं दही एक नैचुरल कंडीशनर का भी काम करता है. इस के लिए आप बालों की लंबाई के हिसाब से दही ले कर पूरे बालों में 30 मिनट के लिए लगा छोड़ दें. इस से बाल सौफ्ट व उन में चमक आती है. इस तरह आप किचन में रखी चीजों से खुद को खूबसूरत बना सकती हैं.

#lockdown: जानलेवा बेरोजगारी

भारत की सुस्त पड़ी अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए पेश किया गया केंद्र सरकार का आर्थिक पैकेज बेरोज़गारी दूर नहीं कर सकेगा. देश में बेकारी की समस्या जानलेवा बीमारी जैसी हो चुकी है.

हालत यह है कि करोड़ों परिवारों के पास इतना भी पैसा नहीं है कि वे हफ्तेभर की जरूरी चीजें खरीद सकें. लोग कम खाना खा रहे हैं. यहां उनकी बात नहीं की जा रही जो बेघर हैं और भूखे रहते हैं. बात उनकी है जो कुछ काम करते थे, सरकार की भेदभावपूर्ण नीतियों के शिकार होकर बेरोज़गार हो गए.

जानकारों की मानें तो लंबे समय तक नौकरी न मिल पाने की समस्या को वक़्त रहते नहीं सुलझाया गया तो देश में सामाजिक अशांति बढ़ेगी. मारकाट होगी, लोगों की जानें जाएंगी.

दरअसल, जब देश में कार्य करने वाली जनशक्ति अधिक होती है किंतु काम करने के लिए राजी होते हुए भी उसको प्रचलित मजदूरी पर काम नहीं मिलता, तो उस विशेष अवस्था को ‘बेरोजगारी’ की संज्ञा दी जाती है.

लौकडाउन की वजह से देश में लगभग सभी व्यापारिक गतिविधियां रुकी हुई हैं. अधिकांश ग़ैरसरकारी दफ़्तर बंद हैं और असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले लाखों लोगों का काम ठप हो चुका है. इस दौरान 67 फ़ीसदी लोगों का रोज़गार छिन गया है. अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी द्वारा सिविल सोसाइटी की 10 संस्थाओं के साथ किए गए सर्वे में यह जानकारी सामने आई है.

आर्थिक मामलों पर गहन शोध करने के लिए जानी जाने वाली संस्था सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनौमी यानी सीएमआईई का अनुमान है कि तालाबंदी की वजह से भारत में अब तक 12 करोड़ लोग अपनी नौकरी गंवां चुके हैं. आज खाद्य सामग्री और दूसरी ज़रूरी वस्तुओं की मांग में आई गिरावट यह बताती है कि देश के सामान्य आदमी और ग़रीब की ख़र्च करने की क्षमता कम हुई है.

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक संगठन यानी इंटरनेशनल लेबर और्गेनाइजेशन के अनुसार, यह गिरावट बहुत गंभीर होने वाली है. आईएलओ का अनुमान है कि भारत के असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले क़रीब 400 करोड़ लोग पहले की तुलना में और ग़रीब हो जाएंगे.

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अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी और सिविल सोसाइटी की 10 संस्थाओं के साझा सर्वे के मुताबिक़, शहरी क्षेत्र में 10 में से 8 और गांवों में 10 में से 6 लोगों को रोज़गार खोना पड़ा है. सर्वे में आंध्रप्रदेश, बिहार, दिल्ली, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल के लोगों से बातचीत की गई. उनसे लौकडाउन के कारण रोज़गार, आजीविका पर पड़े असर और सरकार की राहत योजनाओं तक उनकी पहुंच को लेकर सवाल पूछे गए.

सर्वे से पता चला है कि शहरी इलाक़ों में स्वरोज़गार करने वालों में से 84 फ़ीसदी लोगों का रोज़गार छिन गया है. इसके अलावा वेतन पाने वाले 76 फ़ीसदी कर्मचारी और 81 फ़ीसदी कैजुअल वर्करों का भी रोज़गार चला गया है. ग्रामीण इलाक़ों में 66 फ़ीसदी कैजुअल वर्करों को रोज़गार खोना पड़ा है जबकि वेतन पाने वाले ऐसे कर्मचारी 62 फ़ीसदी हैं.

सर्वे के मुताबिक़, ग़ैरकृषि आधारित काम करने वाले लोगों पर भी लौकडाउन की जोरदार मार पड़ी है. इनकी कमाई में 90 फ़ीसदी की कमी आई है. पहले ये सप्ताह में 2,240 रुपए कमाते थे, अब इनकी कमाई सिर्फ़ 218 रुपए रह गई है.

सैलरी पाने वालों में से 51 फ़ीसदी कर्मचारियों की या तो सैलरी कटी है या फिर उन्हें सैलरी मिली ही नहीं है. इसके अलावा, यह भी जानकारी सामने आई है कि 49 फ़ीसदी घरों की ओर से कहा गया है कि उनके पास इतने पैसे भी नहीं हैं कि वे एक हफ़्ते का ज़रूरी सामान ख़रीद सकें. शहरी इलाक़ों में रहने वाले 80 फ़ीसदी और ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले 70 फ़ीसदी घरों की ओर से कहा गया है कि वे पहले से कम खाना खा रहे हैं.

टाटा इंस्टिट्यूट औफ़ सोशल साइंसेज़ के चेयरप्रोफ़ैसर आर रामाकुमार कहते हैं, “भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 2018 की तुलना में पहले ही धीमी थी जबकि असमानता की दर असामान्य रूप से बढ़ी हुई थी. 2011-12 और 2017-18 के नेशनल सैंपल सर्वे के मुताबिक बेरोज़गारी ऐतिहासिक रूप से बढ़ी हुई थी और ग्रामीण ग़रीबों द्वारा खाद्य सामग्री पर कम ख़र्च किया जा रहा था.

औब्ज़र्वर रिसर्च फ़ाउंडेशन के वरिष्ठ सदस्य और इकोनौमी ऐंड ग्रोथ प्रोग्राम के प्रमुख मिहिर स्वरूप शर्मा ने एक न्यूज पोर्टल से बातचीत में कहा, “युवा भारतीयों के सबसे आकांक्षात्मक खंड पर महामारी की वजह से जो अभूतपूर्व आर्थिक तनाव पड़ेगा, वह उनमें एक बड़े असंतोष को जन्म देगा. और घोर चिंताजनक बात यह है कि इससे अल्पसंख्यकों व दूसरे कमज़ोर वर्गों को लक्षितहिंसा का सामना करना पड़ सकता है, ख़ासकर, अगर महामारी का सांप्रदायीकरण जारी रहता है.”

गौरतलब है कि सरकार के कई मंत्री, सत्ताधारी दल भाजपा के नेता, आरएसएस से जुड़े संगठन, भाजपा का आईटी सैल और गोदी मीडिया देश में सांप्रदायिक नफरत फ़ैलाने में जुटे हैं. वे वायरसी महामारी के फैलने का ठीकरा संप्रदायविशेष पर फोड़ने में भी लगे हैं.

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ऐसे में सरकार, जो धर्मों से हटकर सभी देशवासियों के लिए होती है, का दायित्व बनता है कि वह यह सुनिश्चित करे कि मौजूदा घोर आर्थिक संकट का ख़मियाज़ा सिर्फ़ ग़रीबों को ही न उठाना पड़े. हालांकि, 6 वर्षों के मोदी सरकार के प्रदर्शन पर नजर डालें, तो यही समझ आता है कि वह अमीरों की हिमायती है.

 तलाक के 12 अजीब कारण

देश में शादियां टूटने की घटनाएं बढ़ रही हैं. किसी भी इंसान के लिए अपनी शादी को तोड़ने से ज्यादा कष्टदायक और कुछ नहीं हो सकता. यह बहुत ही मुश्किल भरा फैसला होता है. फिर भी पतिपत्नी में झगड़े के कारण पिछले 1 दशक में देश में तलाक की दर 3 गुना बढ़ गई है. विशेषज्ञों का मानना है कि तलाक के अधिकांश मामलों का आधार हिंसा, जिसे कानूनी भाषा में कू्ररता कहते हैं, होती है.

बिहार के आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप ने शादी के 6 महीने के भीतर ही कोर्ट में तलाक की अर्जी डाल दी. उन्होंने यह अर्जी कू्ररता के आधार पर डाली. सोशल मीडिया पर पोस्ट में उन्होंने अपने दर्द का इजहार भी किया था. हालांकि यहां कू्ररता को परिभाषित करना जरा मुश्किल है, क्योंकि रोटी का साइज मनमुताबिक न होना कू्ररता कैसे हो सकती है? कई बार लोग ऐसी ही अजबगजब वजहों से इतने अहम रिश्ते को खत्म करने का फैसला ले लेते हैं. देश में ढेरों ऐसे मामले हैं, जहां पति या पत्नी में से किसी एक ने किसी अजीब कारण के चलते कोर्ट में तलाक की अर्जी दे डाली या फिर ऐसा हुआ कि दोनों में से कोई एक किसी अजीब वजह से अपने साथी को परेशान करता हो और इस से तंग आ कर दूसरे साथी ने कू्ररता के आधार पर तलाक की मांग कर दी हो.

1. रिश्तेदारों का मामूली झगड़ा बना तलाक का कारण:

अहमदाबाद के गोंडल में एक पति और पत्नी शादी के चंद मिनटों में ही एकदूसरे से तलाक ले कर अलग हो गए. वर पक्ष की लड़की वालों से खाने को ले कर मामूली बहस हुई जो इतनी बढ़ गई कि बात तलाक तक आ गई. दोनों पक्षों ने अपनेअपने वकील को बुलाया और मिनटों में नवविवाहित जोड़े का तलाक हो गया.

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2. जरा सा मजाक बना तलाक की वजह:

एक कुवैती जोड़े ने कोर्ट में शादी की और कोर्टरूम से बाहर आते वक्त पत्नी का पांव फिसल गया और वह गिर पड़ी. उस का हाथ पकड़ कर उठाने के बजाय पति ने कह दिया कि बेवकूफ कहीं की. यह बात पत्नी को बहुत नागवार गुजरी. उसे लगा जिस शादी में उस की अभी इज्जत नहीं हो रही है तो आगे चल कर क्या होगी और फिर फौरन उस ने कोर्टरूम में वापस जा कर तलाक की मांग की. यह शायद इतिहास की सब से छोटी शादी होगी, क्योंकि यह शादी सिर्फ 3 मिनट ही चल पाई.

3. रोटी का साइज बना तलाक का कारण:

पिछले साल पुणे कोर्ट में एक अजीब केस आया. इस में तलाक की मांग कर रही पत्नी के अनुसार उस का पति उसे एक खास साइज की रोटी बनाने को कहता था. रोटी उस से छोटी या बड़ी होने पर पत्नी को सजा मिलती. यहां तक कि घरबाहर के कामों के लिए पत्नी को ऐक्सेल शीट भरनी होती थी, जिस में काम हुआ या नहीं जैसे कालम थे.

4. पार्टी बना तलाक का कारण:

मुंबई हाई कोर्ट ने 2011 में एक फैमिली कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया था, जिस में एक भारतीय नौसैनिक को तलाक की इजाजत दे दी गई थी. उस ने अपनी पत्नी पर लगातार पार्टी करने का आरोप लगाया था. 42 साल के उस आदमी की शादी 1999 में हुई थी और वह भी मस्ती के लिए पार्टियों में जाने का आदी था. तभी कोर्ट ने कहा कि यह नतीजा नहीं निकाला जा सकता कि महिला ने उस आदमी को किसी प्रकार से शारीरिक या मानसिक हिंसा का शिकार बनाया.

5. पैंटशर्ट बनी तलाक का कारण:

मुंबई में एक आदमी ने अपनी पत्नी को पोशाक पहनने के आधार पर कू्ररता का आरोप लगाते हुए तलाक मांगा. कथित तौर पर वह आदमी अपनी पत्नी से इसलिए नाराज था, क्योंकि वह काम पर पारंपरिक भारतीय पोशाक पहनने के बजाय पैंट और शर्ट पहन कर जाती थी. एक ?फैमिली कोर्ट ने तलाक का आदेश जारी किया, लेकिन मुंबई कोर्ट इस पर सहमत नहीं हुआ.

6. मुंहासे बने तलाक का कारण:

एक पति ने अपनी पत्नी से तलाक की अपील की और कारण बताया कि उसे पत्नी के मुंहासों से सदमा झेलना पड़ रहा है. अपने तलाक की अर्जी में उस ने तर्क दया कि उस की पत्नी के चेहरे पर मुंहासे और दानों की वजह से 1998 में उसे अपने हनीमून के दौरान वैवाहिक संबंध बनाने में रुकावटें आई थी. पति के पक्ष में फैसला देते हुए फैमिली कोर्ट ने कहा कि बेशक स्थिति पत्नी के लिए बहुत दुखद है, लेकिन यह पति के लिए भी बहुत सदमा पहुंचाने वाली है. कोर्ट ने कहा कि महिला ने अपनी बीमारी के बारे में पति को न बता कर अपने पति के साथ फ्रौड किया. लेकिन जब यह मामला मुंबई हाई कोर्ट में पहुंचा तो वहां खारिज हो गया.

7. अधिक सैक्स की मांग बना तलाक का कारण:

दुनियाभर में आमतौर पर यौन असंतुष्टि तलाक का कारण बनती है. लेकिन मुंबई में एक शख्स ने अपनी पत्नी से इस आधार पर तलाक की मांग की, क्योंकि उस की पत्नी बहुत अधिक सैक्स की मांग थी. अपनी तलाक की अर्जी में उस ने अपनी पत्नी के बारे में कहा कि जब से शादी हुई है वह बहुत अधिक सैक्स और इस के प्रति कभी न संतुष्ट होने वाली महिला रही. उस ने आरोप लगाया कि वह सैक्स के लिए तब भी मजबूर करती थी जब वह बीमार होता था और मना करने पर दूसरे पुरुष के साथ सोने की धमकी देती थी. मुंबई के एक फैमिली कोर्ट ने पति के पक्ष में फैसला दिया और पत्नी के पेश न होने पर उसे तलाक की इजाजत दे दी.

8. चाय बनाने से मना करना बना तलाक का कारण:

इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक मामला आया, जिस में पत्नी के अपने पति के दोस्तों के लिए चाय बनाने से मना करने पर पति ने तलाकनामा दायर कर दिया. शादी के डेढ़ महीने बाद ही पति इस बात पर भड़क गया. उस का कहना था कि पत्नी का उस के दोस्तों की खातिरदारी करने से मना करना बहुत बड़ी कू्ररता है. इस के अलावा पति को बिना बताए पत्नी ने गर्भपात भी करवा लिया था. बात 1980 की है, जिस में पति को तलाक की मंजूरी मिल गई थी.

9. गुलमंजन बना तलाक का कारण:

बाराबंकी में दहेज और गुलमंजन की आदत के चलते एक नवविवाहिता को उस के पति ने बेरहमी से पीटा और तलाक दे कर घर से भाग गया.

सब्जी के लिए 30 रुपए मांगना बना तलाक का कारण: एक महिला ने अपने पति से सब्जी खरीदने के लिए 30 रुपए मांगे तो गुस्से में आ कर पति ने पत्नी को तलाक दे दिया और उस से पहले उस ने पत्नी की जम कर पिटाई की.

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पत्नी का साफसुथरा नहीं रहना बना तलाक का कारण: 1 साल पहले हुई शादी में एक पति का कहना है कि उस की पत्नी कईकई दिनों तक नहाती नहीं है और न ही बाल धोती है. उस के बदन से बदबू आती है, जिस के कारण उस के साथ रहना मुश्किल हो रहा है. यही नहीं, घर के कामों में भी वह हाथ नहीं बांटती है. वहीं पत्नी का कहना है कि वह अपने मायके में ऐसे ही रहती थी.

10. करवाचौथ न मनाना बना तलाक का कारण:

चंडीगढ़ में एक व्यक्ति ने कोर्ट में पत्नी के करवाचौथ न मनाने पर तलाक की अर्जी दे दी. उस का कहना था कि उस के ऐसा करने से उसे और परिवार को तकलीफ हुई है. ऐसे कई मामले पंजाब और हरियाणा से लगातार आए, जिन पर कोर्ट ने साफ कहा कि करवाचौथ न मनाना या फिर किसी एक साथी का शादी की सालगिरह मनाने जैसी बातों पर यकीन न होना तलाक का आधार बिलकुल नहीं हो सकता है.

11. मीट न बनाना बना तलाक का कारण:

एक पति को अपनी पत्नी इसलिए नहीं भाई, क्योंकि उस के हाथों में मां के हाथों जैसा स्वाद नहीं था. ?2012 में यह मामला मुंबई कोर्ट में आया. यहां पति ने अपनी पत्नी से तलाक की इसलिए मांग की, क्योंकि वह उस की मां की तरह स्वादिष्ठ खाना और मीट नहीं बना

सकती थी. पति का कहना था कि वह इतना खराब खाना बनाती है कि कोई भी उलटी कर दे. ऐसे में साथ रहना मुमकिन नहीं.

12. भाषा बनी तलाक का कारण:

फिल्म ‘टू स्टेटस’ की तर्ज पर मुंबई में रहने वाले एक उत्तर और दक्षिण भारतीय युवकयुवती शादी के बंधन में बंध तो गए, लेकिन जल्द ही दोनों में भाषा को ले कर अनबन होने लगी. पत्नी को गुस्सा आता था जब दक्षिण भारतीय पति अपने डाक्टर या सीए से अपनी भाषा में बात करता था. गुस्सा इतना बढ़ गया कि पत्नी ने तलाक की अर्जी दे दी.

#coronavirus: घर से ऐसे करें कीटाणुओं का सफाया

मशहूर कहावत है कि चैरिटी बिगिंस एट होम, लेकिन आज के माहौल को देख कर कहा जा सकता है कि सेफ्टी बिगिंस एट होम. यानी घर साफ है तो आप भी सुरक्षित हैं और कोई भी बीमारी, वायरस, बैक्टीरिया आप को बीमार नहीं कर सकता, इसलिए घर के हर कोने, हर जगह को साफ करें. तभी आप खुद को व अपने परिवार को बीमारियों से बचा पाएंगे.

घर में किस तरह के कीटाणु

अकसर हम यही सोचते हैं कि हमारा घर साफ होता है और बाहर ही गंदगी का जमावड़ा होता है, जिस की वजह से हम बीमार होते हैं. जब कि सचाई इस के विपरीत है. अनेक शोधों में यह साबित हुआ है कि घर में बाहर से ज्यादा बैक्टीरिया, फंगी के होने का डर रहता है. जिस का कारण हम खुद हैं, क्योंकि हम जिस घर में रहते हैं, जिन चीजों को छूते हैं, जिन के संपर्क में ज्यादा आते हैं उन की सफाई का खास ध्यान नहीं रखते तो घर में पनपने वाले बैक्टीरिया जिस में यीस्ट, मोल्ड, कैलिफोर्म बैक्टीरिया, सालमोनेला, इकोली शामिल हैं का खतरा कहीं अधिक बढ़ जाता है. इन से बचाव हेतु घर की अच्छे से सफाई करना बहुत जरूरी है.

किन जगहों पर पनपते कीटाणु

डिश स्पौंज: हर किचन में आप को डिश स्पौंज मिल जाएगा, जिस से न सिर्फ आप बरतन बल्कि किचन का स्लैब भी साफ करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस में हर समय थोड़ा बहुत खाना रहने के कारण इस में मौइस्चर रहने से यह बैक्टीरिया को पनपने देता है. जो सिर्फ बीमारियों को न्यौता देने का काम करता है.

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नैशनल सैनिटाइजेशन फाउंडेशन के अनुसार, स्पौंज में मोल्ड, यीस्ट और कैलिफोर्म बैक्टीरिया होते हैं, जो पेट दर्द, उल्टी और डायरिया का कारण बनते हैं. कई बार इस के कारण इंफैक्शन इतना अधिक बढ़ जाता है कि जान पर आ बनती है.

अगर आप खुद को इस से बचाना चाहते हैं तो हर हफ्ते इसे बदलते रहें और इसे इस तरह साफ करें कि इस में बैक्टीरिया शरण न ले पाएं. क्योंकि स्पौंज में बैक्टीरिया काफी तेजी से बढ़ते हैं.

किचन सिंक: रिसर्च में यह साबित हुआ है कि किचन सिंक में कैलिफोर्म बैक्टीरिया और मोल्ड होता है. और यही वह जगह है जहां सब से ज्यादा बैक्टीरिया के पैदा होने के चांसेज होते हैं, क्योंकि सिंक में हम फल, सब्जियों को धोने के साथसाथ खाने के बर्तनों को भी साफ करते हैं. इसलिए जरूरी है कि सिंक को हर रोज बैक्टीरिया को नष्ट करने वाले डिश वाशर से अच्छे से साफ करें.

टूथब्रश होल्डर: आप सोच रहे होंगे कि वाशरूम तो बंद ही रहता है तो फिर वहां बैक्टीरिया कैसे पहुंच सकते हैं तो आप को बता दें कि जो टूथब्रश होल्डर होता है वो टौयलेट सीट के काफी करीब होता है तो जब भी हम फ्लश करते हैं तो हवा में मौजूद कण उड़ कर होल्डर पर जा कर चिपक जाते हैं. जिस से कैलिफोर्म बैक्टीरिया पनपने लगते हैं.

यूनिवर्सिटी औफ मैनचेस्टर की रिसर्च के अनुसार, बिना ढके हुए टूथब्रश पर 10 मिलियन से भी ज्यादा बैक्टीरिया, वायरस होते हैं.

इसलिए जब भी होल्डर में से ब्रश यूज करें तो उसे वाश करना न भूलें. और हफ्ते में एक बार टूथब्रश होल्डर को लिक्विड सोप से जरूर साफ करें.

बाथरूम फौसेट हैंडल्स: नैशनल सैनिटाइजेशन फाउंडेशन की स्टडी के अनुसार, 27 परसैंट फौसेट हैंडल्स में स्टैफ और 9% में कैलिफौर्म बैक्टीरिया पनपते हैं और जब भी हम उसे हाथ लगाते हैं तो उस से वह हमारे संपर्क में आ कर हमें बीमार कर देते हैं. इसलिए जरूरी है कि इसे रोजाना डिसइनफैक्टैंट स्प्रे या फिर वाइप्स से साफ करें.

स्टोव नोब्स: जब भी हम किचन को साफ करते हैं तो हम स्टोव नोब्स को साफ करना भूल जाते हैं. जबकि स्टोव नोब्स में मोल्ड, यीस्ट और कैलिफौर्म बैक्टीरिया होता है. इसलिए हर हफ्ते इसे साबुन के पानी से साफ करें.

काउंटर टौप: घर में किचन ऐसी जगह होती है जहां पर महिलाएं सब से अधिक समय बिताती हैं. लेकिन अकसर हम यह भूल कर देते हैं कि जब भी बाहर से कोई सामान लाते हैं तो उसे नीचे रखने के बजाय काउंटर टौप पर ही रख देते हैं और फिर उसे बिना साफ किए खाना बनाना शुरू कर देते हैं. आप को जान कर हैरानी होगी कि इस पर कैलिफौर्म बैक्टीरिया और मोल्ड होता है. जो आप को बीमार करने का कारण बन सकता है. इसलिए जब भी खाना बनाएं तो काउंटर टौप को डिसइनफैक्टैंट स्प्रे या वाइप्स से क्लीन जरूर करें. ताकि बैक्टीरिया खाने के जरिए आप के शरीर में प्रवेश न कर सके.

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किचन की सफाई का खास ध्यान कैसे रखें

घर में किचन वह जगह होती है, जहां हम न सिर्फ स्वादिष्ठ डिश बनाते हैं, बल्कि अपने परिवार को हैल्थी डिशेस बना कर उन की सेहत का खास ध्यान भी रखते हैं. अगर खाना बनाते वक्त स्लैब या यूज की गई चीजें साफ नहीं की गईं तो आप कीटाणुओं को ही न्यौता देंगे. इसलिए किचन की साफसफाई का खास ध्यान रखें. इस के लिए आप ये प्रयास कर सकते.

चाकू को दिन में एक बार गरम पानी में साबुन मिला कर उस से साफ करें. इस से बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं.

सब्जियों के कटिंग बोर्ड को यूज करने से पहले उसे गीले कपड़े से साफ जरूर करें. इस से उस में लगी गंदगी दूर होगी.

डस्टबिन को हर 3-4 दिन बाद साफ करें, क्योंकि उस में कूड़ा फेंकने के कारण कीटाणु हो जाते हैं. जिन्हें नष्ट करना बहुत जरूरी है.

गैस, बरतन स्टैंड व अन्य स्टैंड्स को हफ्ते में एक दिन जरूर साफ करें.

माइक्रोवेव व चिमनी की अच्छे से सफाई करें, क्योंकि उस पर जमी गंदगी के खाने में गिरने से आप बीमार हो सकते हैं.

दालों व मसालों के डब्बों को 15 दिन में साफ करें. इस तरह आप अपनी किचन को साफ रख सकते हैं.

क्यों जरूरी है होम सैनिटाइजेशन

घर ही वह जगह होती है, जहां हमें सब से ज्यादा सुकून मिलता है. ऐसे में अगर घर साफ सुथरा होगा तो वह अच्छा दिखेगा, घर में सकारात्मक ऊर्जा का भी अहसास होगा.

कीटाणुओं को दूर करें

जान लें कि कीटाणु हमारे इम्यून सिस्टम को कमजोर बना कर हमें बीमार करने का काम करता है. अगर हम रोजाना डिसइंफैक्टैंट स्प्रे से घर को साफ करते हैं तो हम कीटाणुओं से खुद को दूर रख कर खुद को व अपने परिवार को सुरक्षित रख सकते हैं.

इंडोर एयर को करें साफ

घर की हवा अगर साफ नहीं होगी तो आप को ऐलर्जी या फिर अस्थमा हो सकता है. लेकिन होम सैनिटाइजेशन से घर की हवा साफ होती है. इस के लिए आप वैक्यूम क्लीनर का यूज कर सकते हैं. यह कारपेट, सोफा इत्यादि पर जमी धूल व गंदगी को हटा कर वातावरण को साफ करता है. एयर प्यूरीफायर का भी इस्तेमाल कर सकते हैं.

हर कोई यही चाहता है कि उस का परिवार हमेशा हैल्थी रहे और इस में घर की साफसफाई का अहम रोल होता है. साथ ही घर को नियमित साफ करते रहने से चीजें फैली हुए नहीं रहतीं और समय पर मिल भी जाती हैं. इसलिए घर की साफसफाई का हमेशा ध्यान रखें. सब्जी कटिंग बोर्ड पर टौयलेट सीट से 200 गुणा ज्यादा बैक्टीरिया होते हैं. इसलिए बोर्ड की साफसफाई का खास ध्यान रखें. यही नहीं बल्कि फ्रिज का डोर भी साफ करना न भूलें, क्योंकि हम उस में बिना हाथ धोए उसे छूते हुए कच्चे फल व सब्जियां रखते हैं. इसलिए सावधान हो जाएं.

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2009 में यूनिवर्सिटी औफ कोलोराडो के अध्ययन के अनुसार, 30% शावर हैड्स में मैकोबैक्टेरियम अवियम होता है, जो सांस लेने में दिक्कत पैदा करने का कारण बनता है.

नारी भोग्या: कल भी आज भी

लेखिका- रोचिका अरुण शर्मा   

गत दिसंबर माह में एक अखबार में खबर छपी कि मुंबई के एक नामी इंटरनैशनल विद्यालय के 13-14 साल के कुछ छात्रों के चैट किसी अभिभावक ने पढ़े तो उन के पैरों तले की जमीन खिसक गई. यह बात उन्होंने विद्यालय के प्रधानाचार्य तक पहुंचाई और अखबार ने मीडिया तक. वैसे तो यह वीडियो उतना ज्यादा फौरवर्ड न हो सका, क्योंकि मामला नामी स्कूल का था तो हो सकता है किसी तरह दबा दिया गया हो. इतनी बात भी आगे इसलिए पहुंच सकी, क्योंकि सैलिब्रिटीज के बच्चे इस स्कूल में पढ़ते हैं और इन में से ही एक सैलिब्रिटी की मां ने चैट देख कर मामला प्रधानाचार्य तक पहुंचाया.

बात कुछ इस तरह से थी कि कक्षा 7-8 के विद्यार्थी जिन के पास अपने पर्सनल फोन भी हैं उन के सामूहिक चैट में बेहद चौंकाने वाले शब्दों समेत चौंकाने वाली बातें की गई थी. इन छात्रों ने अपनी सहपाठी लड़कियों को अपनी मापतोल के हिसाब से कुछ रेटिंग दी. किसी सैलिब्रिटीज की बेटी के लिए जब रेटिंग तय की जा रही थी तो छात्रों ने यह भी कहा कि शी इज टू फ्लैट और उस रेटिंग के हिसाब से सब से अच्छी लड़की का बलात्कार किस तरह करेंगे, यह भी तय किया गया. सिर्फ बलात्कार ही नहीं अपितु किस तरह से इस कुकृत्य के लिए रौड का इस्तेमाल किया जाएगा, यह भी डिस्कस किया गया. सामूहिक बलात्कार का नाम उन्होंने ‘गैंगबैंग’ दिया. ये छात्र ‘वन नाइट स्टैंड’ के बारे में बात करते हैं. किस छात्रा के साथ वन नाइट स्टैंड करना है बताते हैं. वे छात्राओं के प्राइवेट पार्ट्स और बौडी कौंटूर यानि रूपरेखा के बारे में बात करते हैं.

इस के बाद भी प्रिंसिपल ने कोई बड़ा ऐक्शन नहीं लिया, बस छात्रों को मामूली सजा दी गई और लड़कियों को निर्देश दिए गए कि अंगदिखाऊ कपड़े न पहना करें. इस पर उन की मांएं गुस्सा हो गईं और मामला मीडिया तक पहुंच गया.

वीडियो पर लोगों की राय

जब यह वीडियो व्हाट्सऐप पर देखा गया तो जितने मुंह उतनी बातें. कुछ लोगों ने बड़ा ही आश्चर्य जताया कि इतने बड़े रुतबे वाले लोगों के बच्चे ऐसे? ये कामवालियों और आयाओं के भरोसे पले बच्चे हैं. मातापिता ने बस पैदा कर के छोड़ दिया है.

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कुछ लोगों का कहना था कि यह बड़े ही शर्म की बात है कि लड़कों की गलती की सजा लड़कियों को दी जा रही है कि वे ढंग के कपड़े पहनें.

वहीं कुछ लोगों ने कहा कि इस कच्ची उम्र में स्मार्ट फोन और इंटरनैट के इस्तेमाल से बच्चे न जाने क्याक्या सीख लेते हैं और उस का बुरा असर उन की मानसिकता पर पड़ता है.

मनोचिकित्सक दीपक रहेजा कहते हैं, ‘‘ऐसा कहने और करने वाले छात्र सोचते हैं कि वे मैचो मैन हैं, वे बड़े हो गए हैं. बच्चे अनुशासित नहीं हुए हैं. बच्चे जिस तरह से सैक्स की बातें स्कूल में कर रहे हैं यह चिंता का विषय है. पेरैंटिंग के मानदंड बदल चुके हैं. इन बातों पर ध्यान देने की जरूरत है. हम अपनेआप को मौडर्न समझ रहे हैं, किंतु ये बातें स्कूल, पासपड़ोस में हो रही हैं तो अब समय बेटों और बेटियों को समझाने का है.’’?

अमीरी या इंटरनैट का दोष नहीं

क्या गांवों में इस तरह की बातें नहीं होती हैं? समस्या इंटरनैटजनित नहीं है. समस्या है कि लड़कियों को सैक्स औब्जैक्ट मान लिया गया है. यहां बात अमीर और गरीब परिवारों की नहीं है. निर्भया बलात्कार कांड में बलात्कारी अमीर नहीं थे और न ही डाक्टर प्रियंका रैड्डी के बलात्कारी अमीर थे. समस्या यह है कि स्त्री को सदियों से भोग की वस्तु माना जा रहा है. वह पुरुष पर ही आश्रित रहती आई है.

इस विषय पर जब कुछ महिलाओं से बात की गई जिन में कुछ महिलाएं ग्रामीण इलाकों से भी ताल्लुक रखती थीं तो कुछ नए केस सामने आए:

– एक महिला जो अब 40 साल की उम्र की है बताया कि वह मात्र दूसरी कक्षा में थी, उस का परिवार एक संयुक्त परिवार था. उस की मां को जब कहीं बाहर जाना होता तो बच्चों को उन के दादाजी के भरोसे छोड़ जाती. मौका पा कर दादाजी उस के कपड़ों में हाथ डाला करते. वह कुछ समझ नहीं पाती थी. फिर कभीकभी उस का बड़ा भाई जो उस समय 7 या 8वीं में रहा होगा वह भी उस के कपड़ों में हाथ डालने लगा. उसे ये सब अच्छा नहीं लगता था. वह अपने भाई से कहती भी थी कि मुझे अच्छा नहीं लगता पर कोई उस की सुनने वाला नहीं था. एक दिन उस के भाई ने यही हरकत बड़ी बहन के साथ कर दी. तब बड़ी बहन ने अपने पिता को बताया और घर वाले यह सब सुन कर हैरान रह गए.

– ऐसा ही केस करीब 27 वर्ष पुराना है जब एक मां ने अपनी बेटी को पढ़ने के लिए दूसरे शहर में अपनी बहन के पास भेजा और वह भी नौकरी करती थी. एक दिन बहन जब किसी कारण से जल्दी घर पहुंच गई तो देखा उस के पति और भानजी संदिग्ध अवस्था में थे. यह मौसा और भानजी के बीच का केस है. कालेज में पढ़ने वाली लड़की और विवाहित मौसा, सोच कर ही आश्चर्य होता है. किंतु यह सत्य है घर में रहने वाली लड़की को उस मौसा ने भोग की वस्तु समझा और अपनी पत्नी की गैरमौजूदगी में उस का भोग भी किया.

– एक महिला अपने आसपास की घटना बताते हुए कहती है कि उस के एक पड़ोसी का बेटा किसी कारणवश बच्चे पैदा करने में असक्षम था. सास ने पहले ससुर और बहू के संबंध बनवाए ताकि घर को एक वारिस मिल जाए. उस के बाद बहू को ससुर से दूर रहने की हिदायत दे दी गई. मामला तब सामने आया जब बहू हर बात में सास की अवमानना कर ससुर की सपोर्ट लेने लगी. सास को यह बात जमी नहीं और फिर ससुरबहू की पोलपट्टी खोल दी.

– 45 वर्षीय एक महिला का कहना है कि उस के यहां रिश्तेदारों का अकसर आनाजाना लगा रहता था. उस की मां नौकरी करती थी. मां की गैरमौजूदगी में उस के एक रिश्तेदार जोकि पिता की उम्र के थे उस से शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश करते थे. एक दिन वह बहुत डर गई और कुछ कह न पाई तो वे बोले कि अच्छा पहले मोमबत्ती इस्तेमाल कर के देख लो. आज भी वह उस घटना को याद कर के खीज उठती है और अपने स्त्री होने पर दुखी होती है.

– 50 वर्षीय एक महिला का कहना है कि उस के एक मामा ने जब वह मात्र चौथी कक्षा में थी तो उस से शारीरिक संबंध बनाने की कोशिश की. उस की मां ने देख भी लिया, किंतु कोई ऐक्शन नहीं लिया, क्योंकि परिवार की इज्जत का सवाल था. यही कोशिश मामा ने दोबारा की जब वह 10वीं कक्षा में थी. उस महिला ने अपनी मां को इस बारे में बताया, किंतु तब भी कोई ऐक्शन नहीं लिया गया. तीसरी बार उस के मामा ने फिर कोशिश की जब वह कालेज में थी और मामा भी विवाहित था. तब तक वह सयानी हो चुकी थी और उस ने मामा को लताड़ा. तब मामा ने परिवार की इज्जत और घर में कलेश होने का वास्ता देते हुए कहा कि किसी को न बताना.

साफ समझ में आता है कि मामा उसे भोग की वस्तु समझ भोगना तो चाहता ही?था और साथ ही यह भी चाहता था कि बात दबी रहे. उस की मां भी रिश्ते निभाने में भरोसा रखती थी, किंतु अपनी बेटी के प्रति कैजुअल थी. एक मां यदि अपनी बेटी के मर्म को न समझे तो फिर इस समाज में स्त्री तो भोग्या ही रहेगी.

– ऐसा ही एक केस 50 वर्षीय महिला ने बताया कि जब वह 8वीं कक्षा में थी, तो स्कूल की तरफ से पिकनिक में गई थी, उस के अध्यापक ने उसे बस में अपनी गोद में बैठा लिया और फिर सब से नजर बचा कर उस के अंगों से छेड़छाड़ करता रहा. जब उस ने घर आ कर अपनी मां को बताया कि वह अध्यापक की गोद में बैठी थी तो मां को समझते देर न लगी. किंतु मां ने उसे समझा दिया कि किसी को न कहना वरना इज्जत खराब होगी और पिता को मालूम हुआ तो वे स्कूल जा कर झगड़ा न कर बैठे.

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यहां मैं ने सभी मामले 40 पार की महिलाओं के लिए है ताकि यह समझा जा सके कि उस जमाने में इंटरनैट नहीं था, न ही महिलाएं आज जितने अंगदिखाऊ कपड़े पहनती थीं. यहां तक कि स्कूलों में भी सलवारकुरता और दुपट्टा की यूनिफौर्म होती थी. स्कूल भी कोएड कम ही होते थे. लेकिन इस तरह की छेड़छाड़ घर में रह रहे परिवार के सदस्यों और रिश्तेदारों द्वारा की जाती थी या फिर जहां कहीं भी लड़की जाए वहां आसपास के लोंगों द्वारा. मैं कहूंगी मौलेस्टर या रैपिस्ट घर के सदस्य या नजदीकी पहचान वाले ही होते थे.

चूंकि अब महिलाएं बाहर निकलने लगी है तो घर के बाहर भी उन के साथ ऐसे हादसे होने लगे और मीडिया उन्हें दिखाने लगा तो लोगों की नजर इन हादसों पर पड़ने लगी.

धार्मिक ग्रंथों में नारी

बात करें धार्मिक ग्रंथों की तो महाभारत में द्रौपदी के 5 पति थे. जबकि यदि स्त्री अपनी मरजी से 5 पति बना ले तो वह कुलटा और कलंकिनी बता दी जाती है. फिर धर्मराज युधिष्ठिर ने जुए में अपनी पत्नी को दांव पर लगा दिया और उसे हार गए. दुशाशन ने उस का चीर हरण किया. ये सभी घटनाएं दर्शाती हैं कि स्त्री उस समय भी भोग्य ही थी. हालांकि उस समय भी युधिष्ठिर द्वारा द्रौपदी को जुए में दांव पर लगाना और फिर उसे हार जाना, फिर दुशाशन द्वारा चीरहरण गलत ही ठहराया गया पर स्त्री भोग्या तब भी थी, इस तरह की घटनाएं तब भी होती थीं.

सीता का उस जमाने में रावण द्वारा अपहरण करना भी इसी तरह का उदाहरण है. रावण भी तो परस्त्री का भोग करना चाहता था, जबकि सीता इस के लिए राजी न हुई. सीता को इस के लिए देवी माना गया और रावण को राक्षस यानि कि उस जमाने में भी स्त्री यदि परपुरुष के साथ संबंध रखे तो कलंकिनी और कुलक्षिणी अन्यथा देवी. किंतु पुरुष 3 रानियां रख सकते थे जोकि मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पिता दशरथ ने रची थीं. राम को मर्यादा पुरुषोत्तम माना गया, क्योंकि उन्होंने एक पत्नी व्रत का पालन किया.

हो सकता है अन्य धर्मों के ग्रंथों में भी ऐसे कई उदाहरण देखने को मिल जाएं, क्योंकि मुझे इन की जानकारी है सो यहां इन का जिक्र किया.

इतिहास में भी नारी भोग्या

अब यदि इतिहास खंगाला जाए तो रानी पद्मावती ने जौहर किया था. इस के पीछे कारण यही थे कि अल्लाउद्दीन खिलजी रानी पद्मावती को अपने हरम में शामिल करना चाहता था इसलिए उस ने चित्तौड़ पर हमला बोल दिया. इस युद्ध में राव रतन सिंह मारे गए और तत्पश्चात रानी समेत हजारो दासियों ने जौहर किया, क्योंकि वे भलीभांति समझती थीं कि खिलजी के पास जा कर वे मात्र एक भोग्या बन कर रह जाएंगी और यह उसे मंजूर नहीं था. इसीलिए आज भी रानी पद्मावती का नाम वीरांगना के रूप में लिया जाता है.

इसी प्रकार जब ब्रिटिशर्स झांसी के महाराजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद रानी लक्ष्मी बाई से झांसी हड़प लेना चाहते थे तो रानी ने इन का डट कर मुकाबला किया और कहा कि मैं अपनी झांसी हरगिज न दूंगी. यहां भी जाहिर है स्त्री को कमजोर समझ उस पर आक्रमण किया गया. जब तक राजा रहे ब्रिटिशर्स उन के मित्र रहे. निश्चित रूप से यदि रानी लक्ष्मीबाई मुकाबला न करती और घुटने टेक देती तो यह ब्रिटिशर्स की दासी बन कर रहती.

नारी की आज स्थिति

विलियम डैलीरिंयल की नई पुस्तक ‘अनार्की’ जो ईस्ट इंडिया कंपनी के भारत आने के समय पर इतिहास को समेटती है. हर सेना के आम लोगों की औरतों के बलात्कारों के किस्सों से भरी है और इन में ब्रिटिश सैनिक भी शामिल हैं.

आज भी विवाह बाद पुरुष घर का मुखिया होता है. अच्छी बात है कि वह घर का मुखिया है, किंतु स्त्री को समान हक नहीं मिलता है. उसे तो पुरुष की अनुगामिनी ही बनना होता है. अन्यथा बिगड़ैल, चरित्रहीन बहू या पत्नी का खिताब दे दिया जाता है. स्त्री का विवाह होते ही उस का सरनेम और गोत्र बदल जाता है. उसे सभी धार्मिक आयोजनों में ससुराल के नियमों का पालन करना होता है.

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यहां तक कि नौकरीपेशा महिलाएं दोहरी जिंदगी जीने को मजबूर हैं. वे रुपए कमा कर तो लाती ही हैं, उस के बाद भी परिवार के हर सदस्य की जिम्मेदारी तो उसी पर डाल दी जाती है. वहां मैं एक बात और कहना चाहूंगी कि अपने पति के बराबर कमाने वाली महिला भी अपने पति की अनुमति और पसंदनापसंद का खयाल रखना अपना फर्ज समझती है. उसे पतिव्रता कहलाना अच्छा लगता है. इस मानसिकता के पीछे यही कारण है कि वह अपने घरों में ऐसे ही माहौल में पलीबढ़ी है. हर धार्मिक आयोजन में उसे पति, भाई, पिता पर आश्रित रख कर उस का स्थान पीछे ही रखा गया है.

यदि बात करें जायदाद में हिस्से की तो उस में भी बेटों का ही मुख्य स्थान है. आजकल कानून तो बन गए कि बेटियों का भी जायदाद में हक है, किंतु उन्हें खुशी से यह हक दिया नहीं जाता है. यदि वे अपने हक की मांग करें तो भाई और मातापिता उन्हें यह हक देने से कतराते हैं और नाराज भी होते हैं. कुल मिला कर मायके से उन के संबंध सदा के लिए खराब हो जाते हैं.

एक और बहुत ही अहम और जरूरी बात यह है कि जब महिलाओं के साथ बलात्कार होते हैं तो अकसर दोष उन का ही दिखाया जाता है. डा. प्रियंका रेड्डी बलात्कार केस में भी यही हुआ. उन की हत्या के बाद यह सुनने में आया कि जब वे दूर गई थीं तो घर क्यों फोन किया पुलिस को क्यों नहीं?

दोष भी अकसर महिलाओं द्वारा दिया जाता है. यदि महिला अपने पुरुष सहकर्मी के साथ मेलजोल बढ़ाती है तो भी उसे भोग की वस्तु समझ लिया जाता है. यह कोई सोच ही नहीं पाता कि जिस तरह एक महिला की सहेली महिला उन के आपसी विचार मेल खाने से बन सकती है, उसी प्रकार यदि एक महिला और पुरुष के विचार मेल खाएं तो वे भी मित्र हो सकते हैं. अकसर इस रिश्ते को संदेह की दृष्टि से देखा जाता है और कई बार पुरुष मित्र इस नजदीकी का फायदा भी उठा लेना चाहता है. मीटू केसेज इसी सोच का परिणाम है.

कुछ दिनों पहले ही एक नई बात पता चली. मैट्रो सिटी के पढ़ेलिखे, नौकरीपेशा मातापिता की पौश सोसायटी में रहने वाली एक 11 वर्षीय बेटी से जब यह पूछा गया कि तुम्हारे मातापिता तुम पर हाथ उठाते हैं तो उस का जवाब था कि मां तो नहीं उठातीं, किंतु पिताजी उठाते हैं.

जब पूछा कि क्यों? तो उस ने जवाब दिया कि यदि मैं मेकअप करूं तब.

तो तुम्हारी मां मेकअप नहीं करतीं? उस का जवाब था कि नहीं मेरे पिता को पसंद नहीं, इसलिए वे भी नहीं करतीं?

कहने का मतलब यह है कि 11 वर्षीय बच्ची जो सजनासंवरना चाहती है, एक औरत जो पुरुष के साथ कंधे से कंधा मिला कर घर चलाने में मदद करती है उसे सजनेसंवरने के लिए अपने पति की अनुमति की आवश्यकता है और उस के इस शौक पर उस के घर में रोक है. यहीं यदि 15 वर्ष का बेटा मातापिता को सम्मान न दे और शराब पी कर आए, टैटू बनवा आए या बाल कलर करवा ले तो मातापिता सिर पीटने के सिवा कुछ नहीं कर सकते.

नैट और गैजेट्स कहां दोषी

ऐसे में यदि बड़े रसूखदार परिवारों और स्कूलों के बच्चे इस तरह का आचरण करते हैं. सैक्स चैट करते हैं तो यह कोई नई बात नहीं है. उन्होंने अपने घरों, आसपास और आज के मीडिया की मार्फत जो देखासीखा उसी का प्रतिफल है यह चौंका देने वाली चैट. हम इंटरनैट और मोबाइल फोन या उन की अमीरी, आया और नौकरों को दोष दे कर अपना पल्ला झाड़ सकते हैं.

क्या हैं समाधान

– सब से पहले घरों में हरेक सदस्य को परिवार की महिलाओं के लिए उचित सम्मानजनक व्यवहार रखना होगा. यदि परिवार का मुखिया पत्नी को कमतर समझेगा तो वही आचरण बच्चे भी अपनाएंगे.

– परिवार में भाईबहन दोनों को एक सा दर्जा

दिया जाए.

– ससुराल में ननद और बहू का स्थान बराबर का हो. लड़की के मातापिता और लड़के के मातापिता का भेद खत्म किया जाए. अकसर बेटी के ससुराल में उस के पिता को जबतब कोसा जाता है, उन्हें तुच्छ दिखाने की कोशिश की जाती है, जबतब उन से माफी मंगवाई जाती है.

– यदि लड़केलड़की की सगाई होने के बाद टूट जाए तो लड़की को दोषी करार दिया जाता है और यदि विवाह उपरांत तलाक हो जाए तो भी पत्नी को ही दोषी माना जाता है. यहां यह दोष कोई अन्य नहीं देता उस के अपने मायके वाले ही देते हैं और कोसते भी हैं कि तुम ने ससुराल मे एडजस्ट नहीं किया. यहां मै कहूंगी कोई भी लड़की अपनी गृहस्थी में स्वयं आग नहीं लगाएगी. वह भी सामाजिक नियमों को समझती है. किंतु आत्मसम्मान तो उस का भी होता है.

शारीरिक रूप से पुरुष, स्त्री की अपेक्षा ज्यादा बलवान है. उस का भी पुरुष को फायदा मिलता है, किंतु यदि मानसिकता बदल दी जाए तो सुधार होने के आसार है अन्यथा इस तरह के चैट आम बात थी है और रहेगी.

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कोरोनावायरस के साइलैंट कैरियर्स

कोरोना वायरस का फैलाने में मूक वाहक यानि साइलैंट कैरियर्स का भी योगदान रहा है. कुछ लोगों में खांसी, बुखार या कोई अन्य कोरोना का सिम्पटम नहीं होता है पर वे इस वायरस के प्रसार में सक्षम हैं. वाशिंगटन डीसी की जौर्ज टाउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के अनुसार यह संभव है. ऐसे साइलैंट कैरियर्स बेरोकटोक समाज में अपने दोस्तों या प्रियजनों से मिलते हैं और अनजाने में कोरोना का प्रसार करते हैं. हालांकि कोरोना से संक्रमित होने के बावजूद रोग के सिम्पटम नहीं होना अचंभित करता है फिर भी यह सच है.

कितने लोग मूक वाहक श्रेणी में आते हैं और उन में कितनों का कोरोना के फैलाव में योगदान है, इस बारे में कुछ निश्चित नहीं है और इस दिशा में और ज्यादा जानने का प्रयास हो रहा है. मूक वाहकों को 3 श्रेणियों में रख कर इस का विश्लेषण किया गया है.

एसिम्पटोमैटिक: ये वे लोग हैं जिन के शरीर में कोरोना वायरस है पर उन में कभी भी वायरस का कोई लक्षण नहीं प्रकट होता है. चीन से मिले एक आंकड़े के अनुसार कहना है कि covid-19 के रोगियों के संपर्क में रहे कुछ लोगों में वायरस का कोई भी सिम्पटम नहीं रहा था. ऐसे लोगों का टेस्ट करने पर वे पौजिटिव पाए गए. फिर बाद में भी फौलोअप के लिए उन्हें बुला कर टेस्ट करने पर भी उन में वायरस का कोई सिम्पटम नहीं था. 1 अप्रैल को ङ्ख॥हृ के अनुसार चीन में ऐसे 24 लोगों की जांच करने पर करीब 3 सप्ताह बाद तक भी 25% में कोई सिम्पटम नहीं था और आश्चर्य की बात तो यह है कि उन की औसत उम्र 14 साल थी.

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प्रीसिम्पटोमैटिक: ये वे व्यक्ति हैं जो वायरस से संक्रमित हैं और वायरस को शरीर के अंदर पाल रहे हैं पर उन में रोग का कोई भी सिम्पटम नहीं होता है. वायरस से ग्रस्त होने पर भी इन मेंकोई लक्षण नहीं होता है क्योंकि वायरस के लक्षण 5 दिनों से 14 दिनों के बाद देखने को मिलते हैं. वायरस पकड़ने और उस के सिम्पटम दिखने के बीच का समय प्रीसिम्पटोमैटिक पीरियड है. इस बीच ऐसे लोगों से भी वायरस का प्रसार होता है.

1 अप्रैल की एक न्यूज कौंफ्रैंस में ङ्ख॥हृ के प्रवक्ता के अनुसार कोरोना वायरस के सिम्पटम दिखने के बाद उस से संक्रमण फैलने का सब से ज्यादा खतरा है. पर प्रीसिम्पटोमैटिक लोगों से भी वायरस के संक्रमण के प्रमाण मिले हैं, खास कर लक्षण प्रकट होने से एक से तीन दिन पहले एसिम्पटोमैटिक की तुलना में प्रीसिम्पटोमैटिक लोगों की संख्या ज्यादा है. 75% एसिम्पटोमैटिक लोग, जो बिना सिम्पटम के भी पौजिटिव पाए गए, बाद में प्रीसिम्पटोमैटिक होते हैं और आगे चल कर फौलोअप टेस्ट के दौरान उन में वायरस के लक्षण देखने को मिले. इस का मतलब यह हुआ कि सिम्पटम न होने के कारण जिन्हें आइसोलेट नहीं किया गया उन से भी वायरस का प्रसार हुआ है.

वैरी माइल्ड सिम्पटोमैटिक: ये वे लोग हैं जिन में वायरस के शुरुआती मामूली सिम्पटम दिखने के बावजूद आइसोलेट नहीं किए गए और अन्य लोगों के संपर्क में रहे हैं. इन से संक्रमित लोग जल्द ही covid-19 से बीमार हुए और दोनों पौजिटिव पाए गए. ऐसे लोगों ने कोरोना के लक्षणों को न समझ कोई अन्य गड़बड़ी की और गलतफहमी में अनजाने में वायरस फैलाया. ध्यान रहे यहां उन की चर्चा नहीं हो रही है जिन्होंने जानबूझ कर रोग छिपाए-ऐसे भी कुछ मामले हैं.

उलझन: यह मालूम करना लगभग असंभव है कि हमारे बीच कितने साइलैंट कैरियर्स हैं और समाज में covid-19 रोग जानेअनजाने फैला रहे हैं. अमेरिका के वाशिंगटन प्रांत में सब से पहले कोरोना वायरस मिला था, वहां के अनेक लोगों का टेस्ट करने पर 56% ऐसे लोग पौजिटिव पाए गए जिन में वायरस का कोई सिम्पटम मौजूद न था. फरवरी महीने में जापान में डायमंड प्रिंसेज क्रूज के यात्रियों में कुछ एसिम्पटोमैटिक रह गए. चीन और सिंगापुर से मिली रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस के प्रसार में करीब 13% योगदान प्रीसिम्पटोमैटिक लोगों का था.

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जौर्ज टाउन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर के अनुसार साइलेंट कैरियर्स से कोरोना वायरस के प्रसार के बारे में अभी और जानने और समझने की जरूरत है. फिर भी इस से ग्रस्त कुछ लोग स्वस्थ दिखने और महसूस करने के बावजूद अन्य स्वस्थ लोगों में वायरस फैला सकते हैं और उन में स्पष्ट सिम्पटम शुरू से ही दिखते हैं.

एक नया साइलेंट कैरियर

मृत व्यक्ति से भी संक्रमण का खतरा: कोरोना के पहले भी ऐसा मामला देखने को मिला था. इस से मिलतेजुलते वायरस जिस के चलते इबोला रोग हुआ था, उस के मृत रोगी से संक्रमण हुआ था और ङ्ख॥हृ ने इस के लिए दिशानिर्देश भी जारी किया था. 13 अप्रैल के एक समाचार के अनुसार थाईलैंड में इस तरह का पहला केस नजर आया है जिस में कोरोना से संक्रमित एक मृत रोगी के द्वारा एक डाक्टर में संक्रमण पाया गया है. यह एक अतिरिक्त चिंता का विषय है क्योंकि मृत व्यक्ति के पोस्टमार्टम और अंतिम संस्कार तक जो उस के शरीर के संपर्क में आएंगे उन में भी संक्रमण की आशंका रहेगी. अभी तक यह भी ठीक से पता नहीं लग सका है कि मृत शरीर में वायरस कब तक जीवित रह सकता है.

फिलहाल इस का कोई समाधान भी नहीं है और असमंजस की स्थिति बनी हुई है. सैद्धांतिक रूप से सभी लोगों का वायरस टेस्ट करना होगा जो लगभग असंभव है. इस के अतिरिक्त एक सिंगल टेस्ट से इस के बारे में ठीक से नहीं कहा जा सकता है. अभी तक इस से बचने की कोई सटीक दवा या टीका भी उपलब्ध नहीं है. एक भी वायरस पौजिटिव व्यक्ति समाज में वायरस फैला सकता है. इसलिए वर्तमान में सफाई आदि समुचित सुरक्षा के उपाए अपनाना ही उचित है.

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