समर्पण भाग-1

नौकरी से सेवानिवृत्ति के बाद मैं नियमित रूप से सुबह की सैर करने का आदी हो गया था. एक दिन जब मैं सैर कर घर लौट रहा था तो लगभग 26-27 साल की एक लड़की मेरे साथसाथ घर आ गई. वह देखने में बहुत सुंदर थी. मैं ने झट से पूछ लिया, ‘‘हां, बोलो, किस काम से मेरे पास आई हो?’’

उस ने कहा, ‘‘हम लोगों का एक आर्केस्ट्रा गु्रप है. मैं रिहर्सल के बाद रोज इधर होते हुए अपने घर जाती हूं. आज इधर से गुजरते हुए  आप दिखाई दिए तो मैं ने सोचा, आप से मिल ही लूं.’’

मैं ने बताया नहीं कि मैं भी उसे नोटिस कर चुका हूं और मेरा मन भी था कि उस से मुलाकात हो.

‘‘थोड़ा और बताओगी अपने कार्यक्रमों और ग्रुप में अपनी भूमिका के बारे में.’’

‘‘यहीं खडे़खडे़ बातें होंगी या आप मुझे घर के अंदर भी ले जाएंगे.’’

‘‘यू आर वेलकम. चलो, अंदर चल कर बात करते हैं.’’

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ड्राइंग रूम में बैठने के बाद उस ने अपना परिचय देते हुए कहा, ‘‘मेरा नाम सुधा है, वैसे हम कलाकार लोग स्टेज पर किसी और नाम से जाने जाते हैं. मेरा स्टेज का नाम है नताशा. हमारे कार्यक्रम या तो बिजनेस हाउस करवाते हैं या हम लोग शादियों में प्रोग्राम देते हैं. मैं फिल्मी गानों पर डांस करती हूं.’’

मैं ने उस से पूछा, ‘‘कार्यक्रमों के अलावा और क्या करती हो?’’

‘‘मैं एम.ए. अंगरेजी से प्राइवेट कर रही हूं,’’ सुधा ने बताया, ‘‘मेरे पापा का नाम पी.एल. सेठी है और वह पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट में काम करते हैं.’’

सुधा ने खुल कर अपने परिवार के बारे में बताया, ‘‘मेरी 3 बहनें हैं. बड़ी बहन की शादी की उम्र निकलती जा रही है. मुझ से छोटी बहनें पढ़ाई कर रही हैं. मां एक प्राइवेट स्कूल की टीचर हैं. घर का खर्च मुश्किल से चलता है. प्रोफेसर साहब, मैं ने आप की नेमप्लेट पढ़ ली थी कि आप रिटायर्ड प्रोफेसर हैं, इसलिए आप को प्रोफेसर साहब कह कर संबोधित कर रही हूं. हां, तो मैं आप को अपने बारे में बता रही थी कि मुझे हर महीने कार्यक्रम से साढ़े 3 हजार रुपए की आमदनी हो जाती है, जो मैं बैंक में जमा करवा देती हूं.’’

मैं ने सुधा के पूरे शरीर पर नजर डाली. गोरा रंग, यौवन से भरपूर बदन और उस पर गजब की मुसकराहट.

सुधा ने पूछा, ‘‘आप के घर पर कोई दिखाई नहीं दे रहा है. लोग कहीं बाहर गए हैं क्या?’’

मैं ने सुधा को बताया, ‘‘मेरे घर पर कोई नहीं है. मैं ने शादी नहीं की है. मेरा एक भाई और एक बहन है. दोनों अपने परिवार के साथ इसी शहर में रहते हैं. वैसे सुधा, मैं शाम को इंगलिश विषय की एम.ए. की छात्राओं को ट्यूशन पढ़ाता हूं. तुम आना चाहो तो ट्यूशन के लिए आ सकती हो.’’

सुधा ने हामी भर दी और बोली, ‘‘मैं शीघ्र ही आप के पास ट्यूशन के लिए आ जाया करूंगी. आप समय बता दीजिए.’’

सुधा के निमंत्रण पर मैं ने एक दिन उस का कार्यक्रम भी देखा. निमंत्रणपत्र देते हुए उस ने कहा, ‘‘प्रोफेसर साहब, आप से एक निवेदन है कि मेरे पापा भी कार्यक्रम को देखने आएंगे. आप अपना परिचय मत दीजिएगा. मैं सामने आ जाऊं तो यह मत जाहिर कीजिएगा कि आप मुझे जानते हैं. कुछ कारण है, जिस की वजह से मैं फिलहाल यह जानपहचान गुप्त रखना चाहती हूं.’’

ट्यूशन पर आने से पहले सुधा ने पूछा, ‘‘सर, कोचिंग के लिए आप कितनी फीस लेंगे?’’

मैं ने उत्तर दिया, ‘‘तुम से फीस नहीं लेनी है. तुम जब भी मेरे घर आओ किचन में चाय या कौफी बना कर पिला दिया करना. हम दोनों साथसाथ चाय पीने का आनंद लेंगे तो समझो फीस चुकता हो गई.’’

‘‘सर, चाय तो मुझे भी बहुत अच्छी लगती है,’’ सुधा बोली, ‘‘एक बात पूछ सकती हूं, आप ने शादी क्यों नहीं की?’’

मैं इस प्रश्न के लिए तैयार नहीं था किंतु अब तक हम एकदूसरे के इतने निकट आ चुके थे कि बडे़ ही सहज भाव से मैं ने उस से कहा, ‘‘पहले तो मातापिता की जिम्मेदारी मुझ पर थी, फिर उन के देहांत के बाद मैं मन नहीं बना पाया. मातापिता के जीवन काल

में एक लड़की मुझे पसंद आई थी, लेकिन वह उन्हें नहीं अच्छी लगी. बस, इस के बाद शादी का विचार छोड़ दिया.’’

सुधा अकसर सुबह रिहर्सल के बाद सीधे मेरे घर आती और ट्यूशन का समय मैं ने उसे साढे़ 5 बजे शाम का अकेले पढ़ने के लिए दे दिया था.

उस का मेरे घर आना इतना अधिक हो गया था कि महल्ले वाले भी रुचि दिखाने लगे. कब वह मेरे घर आती है, कितनी देर रुकती है, यह बात उन की चर्चा का विषय बन गई थी. जब मैं ने उन के इस आचरण पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई तो वे खुदबखुद ठंडे पड़ गए. हां, इस चर्चा का इतना असर जरूर पड़ा कि जो छात्राएं 4-5 बजे शाम को ग्रुप में आती थीं वे एकएक कर ट्यूशन छोड़ कर चली गईं.

इस बात की परवा न तो मैं ने की और न ही सुधा पर इन बातों का कोई असर था. मेरे भाई और बहन ने भी मुझे इस बारे में व्यंग्य भरे लहजे में बताया था, किंतु उन्होंने ज्यादा पूछताछ नहीं की.

सुधा को साउथइंडियन डिशेज अच्छी लगती थीं. अत: उसे साथ ले कर मैं एक रेस्तरां में भी जाने लगा था. वहां के वेटर भी हमें पहचानने लगे थे. एक दिन जब देर रात सुधा रेस्तरां पहुंची तो वेटर ने उस से कहा, ‘‘मैडम, आप के पापा का फोन आया था. वह थोड़ी देर से आएंगे. आप बैठिए, मैं आप के लिए पानी और चाय ले कर आता हूं.’’

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मैं जब रेस्तरां में पहुंचा तो सुधा ने हंसते हुए बताया, ‘‘प्रोफेसर, आज बड़ा मजा आया. वेटर कह रहा था आप के पापा लेट आएंगे. यहां के वेटर्स मुझे आप की बेटी समझते हैं.’’

इस पर मैं ने भी चुटकी ले कर कहा, ‘‘मेरी उम्र ही ऐसी है, इन की कोई गलती नहीं है. यह भ्रम बना रहने दो.’’

डिनर से पहले सुधा ने कहा, ‘‘प्रोफेसर, आप का मेरे जीवन में आना एक मुबारक घटना है.’’

वह बहुत ही भावुक हो कर कह रही थी. मुझे लगा जैसे किसी बहुत ही घनिष्ठ संबंध के लिए मुझे मानसिक रूप से तैयार कर रही हो. मैं अकसर उस के डांस की तारीफ किया करता था और उसे यह बहुत अच्छा लगता था.

एक दिन शाम को हम दोनों चाय पी रहे थे तो बडे़ प्यार से उस की पीठ सहलाते हुए मैं ने कहा, ‘‘सुधा, तुम्हें तो पता ही है कि रिटायरमेंट होने पर मुझे काफी अच्छी रकम मिली है. मेरी जरूरतें भी बहुत सीमित हैं. मेरा एक योगदान अपने परिवार के लिए स्वीकार करो. हर महीने तुम्हें मैं 1 हजार रुपए दिया करूंगा. वह तुम अपने एकाउंट में जमा करवाती रहना.’’

 अगले हफ्ते पढ़ें- मैं पूरी तरह से आप को समर्पित हूं. आप जो…

सिटी हलचल

घर और मौडलिंग में तालमेल

‘मिस और मिसेज उत्तर प्रदेश’ का आयोजन कमला फिल्म के द्वारा किया गया. लखनऊ की साक्षी सक्सेना विजेता रही. साक्षी जौब के साथ मौडलिंग भी करती हैं. साक्षी घर और नौकरी के बीच तालमेल बैठाने के साथसाथ अपने सपने को पूरा करने के लिए जीजान से मेहनत कर रही हैं. मिसेज उत्तर प्रदेश 2019 में प्रथम रनरअप रिचा और द्वितीय रनरअप नुपूर चुनी गईं.

 घर और मौडलिंग में तालमेल

‘मिस और मिसेज उत्तर प्रदेश’ का आयोजन कमला फिल्म के द्वारा किया गया. लखनऊ की साक्षी सक्सेना विजेता रही. साक्षी जौब के साथ मौडलिंग भी करती हैं. साक्षी घर और नौकरी के बीच तालमेल बैठाने के साथसाथ अपने सपने को पूरा करने के लिए जीजान से मेहनत कर रही हैं. मिसेज उत्तर प्रदेश 2019 में प्रथम रनरअप रिचा और द्वितीय रनरअप नुपूर चुनी गईं.

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मंच तक पहुंचा डांस

घरेलू महिलाओं को डांस का बड़ा शौक होता है. अब वह इस का प्रदर्शन मंचों पर भी करना चाहती हैं. ऐसे में अलगअलग तरह के आयोजन होने लगे है. अनुभूति क्लब लखनऊ में तीज के अवसर पर महिलाओं ने डांस और मस्ती की. आयोजक स्नेहलता सिंह ने बताया कि महिलाएं डांस सीख कर उस का प्रदर्शन मंच पर करती हैं. इस से उन में आत्मविश्वास आता है.

फैशन शो से दिया बेटी बचाओ का संदेश

प्लेनेट रूप से फैशन शो के जरीये ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का संदेश देने के लिए मिस और मिसेज की प्रतियोगिता का आयोजन किया- स्मृति सिंह, उर्मी साल्वे, अलका श्रीवास्तव, गुलशन बानो और विक्रम राव के जजमैंट पैनल के द्वारा मनी श्रीवास्तव, प्रतिक्षा मिश्रा और शालिनी गुप्ता को विजेता बनाया गया.

लड़के भी होते हैं मेकअप आर्टिस्ट

मेकअप आर्टिस्ट के रूप में आमतौर पर लड़कियां ही सब से आगे दिखती है. अब कई लड़के भी इस क्षेत्र में अच्छा काम कर रहे है. मेकअप आर्टिस्ट अजय रस्तोगी भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं. अजय कहते हैं कि बचपन से ही मुझे मेकअप आर्टिस्ट बनने का शौक था. ऐसे में मैं ने अलगअलग सैलून में नौकरी कर के काम सीखा और अब पर्सनल मेकअप कर रहा हूं. अच्छा लगता है जब लोग मेरे काम की तरीफ करते हैं.

 गरबा की धूम

गुजरात का गरबा अब पूरे देश में धूम मचा रहा है. ‘स्कूल औफ डांस ऐंड म्यूजिक’ की तरफ से गरबा का आयोजन किया गया. आयोजक दिव्या शुक्ला ने बताया कि इस में डांस करने वालों को उपहार भी दिए गए. विजेताओं को चुनते समय कविता शुक्ला, हरप्रीत कौर मौजद रहीं. डांडिया गर्ल ज्योति ओजस्विता बनीं.

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मसल्स बनाने से नहीं डरतीं महिलाएं

एक दौर था जब महिलाएं मसल्स के बन जाने से घबराती थीं. अब ऐसा नहीं है. फिटनैस के लिए जिम और जुंबा जैसे बहुत सारी ऐक्सरसाइज वे करने लगी हैं. जुंबा क्लासेज चलाने वाली सुप्रीती बाली कहती हैं कि जुंबा ऐक्सरसाइज के साथ ही डांस का भी तरीका है. महिलाओं को अब जिम जाने और मसल्स के बन जाने से कोई खतरा नहीं रह गया है. वह न केवल इन को बनाती है बल्कि उस को दिखाने से भी कोई परहेज नहीं करती है.

हेयर ऐक्सटैंशन की ऐसे करें केयर

बालों को बिना नुकसान पहुंचाए नया लुक देना चाहती हैं तो हेयर ऐक्सटैंशन आप के लिए बेहतर औप्शन है. हेयर ऐक्सटैंशन में इस्तेमाल किए जाने वाले बालों को पहले कीटाणुमुक्त किया जाता है. ऐसा करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि ये बाल किसी के कटे हुए असली बाल होते हैं. यह काम चाइना, सिंगापुर जैसे शहरों में बहुतायत में होता है. इस प्रक्रिया में कटे बालों के साथ ग्राहक के बालों का सैंपल भी भेजा जाता है ताकि उस की पौलीशिंग इस तरह हो कि वह ग्राहक के असली बालों जैसा लगे.

क्यों है बेहतर विकल्प

हेयर ऐक्सटैंशन के जरीए किसी भी तरह की हेयरस्टाइल बनाई जा सकती है. अगर बाल बौबकट हों तब भी जूड़ा या कमर तक लंबे कर्ली हेयर बनाए जा सकते हैं. साइड बन या मेसी ब्रेड्स भी बनाई जा सकती हैं. शादी के रिसैप्शन के लिए आजकल दुलहनें भी हेयर ऐक्सटैंशन का यूज कर रही हैं. इन दिनों कलर करवाने का क्रेज भी बढ़ रहा है. लेकिन कई महिलाएं बालों में किसी पसंदीदा कलर से हाईलाइटिंग तो चाहती हैं, लेकिन कलर नहीं लगवाना चाहतीं. ऐसे में ऐक्सटैंशन हेयर पर कलर लगा कर उन्हें हाईलाइटर की तरह  लगाया जा सकता है. यह पूरी तरह सेफ और आसान है. ऐक्सटैंशन को खास तरह के न दिखने वाले क्लिप्स के जरीए भी लगाया जा सकता है. यह सब से आसान तरीका है, क्योंकि क्लिप्स को कभी भी निकाला जा सकता है.

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नैचुरल जैसे सिंथैटिक

हेयर ऐक्सटैंशन में काम आने वाले नैचुरल और सिंथैटिक बालों में काफी अंतर होता है, क्योंकि सिंथैटिक बालों को आर्टिफिशियल तरीके से तैयार किया जाता है, जबकि नैचुरल बालों को लोग कई बार डोनेट कर देते हैं. इसलिए नैचुरल बालों से बने हेयर ऐक्सटैंशन खरीदने से पहले क्वालिटी चैक जरूर करें. सिंथैटिक हेयर ऐक्सटैंशन बहुत कम दाम पर आसानी से मिल जाते हैं इसलिए सिंथैटिक और नैचुरल हेयर ऐक्सटैंशन में प्राइस डिफरैंस भी होता है, लेकिन सिंथैटिक हेयर नैचुरल हेयर ऐक्सटैंशन की तुलना में टिकाऊ नहीं होते. चूंकि नैचुरल हेयर ऐक्सटैंशन को आप कलर भी कर सकती हैं इसलिए इन का दाम ज्यादा होता है. नैचुरल हेयर ऐक्सटैंशन एक साल तक आराम से चल जाते हैं. कुछ लोगों को सिंथैटिक हेयर ऐक्सटैंशन से ऐलर्जी होती है इसलिए इस के इस्तेमाल से पहले अपने हेयर स्टाइलिस्ट से सलाह लें.

शौर्ट टर्म ऐक्सटैंशन

अगर सिर्फ एक पार्टी के लुक के लिए हेयर ऐक्सटैंशन इस्तेमाल करना चाहती हैं तो आप क्लिप औन ऐक्सटैंशन करा सकती हैं. इस में आप के बालों की सतह पर हेयर क्लिप्स को अटैच कर दिया जाता है, जिन्हें आप पूरे दिन के इस्तेमाल के बाद आसानी से रात में निकाल सकती हैं. लेकिन अगर 1 हफ्ते तक बालों को उसी लुक में रखना चाहती हैं तो टैंपरेरी ग्लू औन बौंडैड ऐक्सटैंशन करा सकती हैं. इस में बालों के स्कैल्प पर लिक्विड ग्लू लगा कर ऐक्सटैंशन को सैट किया जाता है और बाद में निकालने के लिए औयल बेस्ड सौलवैंट का इस्तेमाल किया जाता है. इस के लिए आप हेयर स्टाइलिस्ट की मदद जरूर लें.

लौंग टर्म ऐक्सटैंशन

अगर 4-6 महीने के लिए ऐक्सटैंशन चाहिए तो फिर केराटिन बौंड का यूज किया जा सकता है. इस में नकली बालों के टिप पर केराटिन लगा होता है. इसे असली बालों के साथ मिला कर केराटिन को गरम रौड से हलका सा पिघला दिया जाता है, जिस से ऐक्सटैंशन असली बालों के साथ चिपक जाता है. बाल धोने पर भी यह निकलता नहीं है. लौंग टर्म ऐक्सटैंशन करवाने में काफी समय लगता है और अगर इसे अच्छी तरह सैट न करवाया जाए तो यह बालों को डैमेज भी कर सकता है.

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इसी के साथ इंटरलौक प्रक्रिया के जरीए आप के बालों के ऊपरी सिरे पर हेयर ऐक्सटैंशन को लगाया जाता है. इस में बालों को बिलकुल सीधा कर दिया जाता है. इस में आप चोटी नहीं बना सकतीं. ब्रेडेड वर्जन उन लोगों के लिए बहुत अच्छा है जिन के बाल मोटे होते हैं. ऐसे बालों में लगे हेयर ऐक्सटैंशन चोटी बनाने पर दिखते नहीं हैं. अगर केराटिन बौंड का उपयोग करना पसंद नहीं है तो सिलाई जैसा तरीका अपना कर हेयर ऐक्सटैंशन का इस्तेमाल किया जा सकता है, जिस में असली बालों के साथ नकली बालों को 2 कपड़ों की सिलाई की तरह जोड़ा जाता है. अगर आप सही तकनीक का प्रयोग करें तो बालों का ऐक्सटैंशन आप के लिए कभी भी हानिकारक साबित नहीं होता.

 -भारती तनेजा

डाइरैक्टर, एल्प्स ब्यूटी क्लीनिक ऐंड एकैडमी

सेहत और स्वाद के रंग

आज बदलते समय के साथ खानपान को ले कर हमारी आदतें भी बहुत बदली हैं. शारीरिक मेहनत कम हुई है, दिमागी कसरतें बढ़ी हैं. ऐसे में हृदयरोग, उच्चरक्तचाप, डायबिटीज जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं जो सीधे तौर पर हमारी जीवनचर्या से जुड़ी हुई हैं. नतीजा यह कि बीते जमाने में जो दूध और घी सेहत की निशानी माना जाता था, आज हम उसी से परहेज करने को बाध्य हो रहे हैं.

सेहत की खातिर हमें उस स्वाद, सुगंध और शुद्धता से वंचित होना पड़ रहा है जो कभी हमारी दादी और मां के हाथ के बने खाने में हुआ करता था. आज सहेत को ले कर लोग इतने सजग हैं और खाने का उद्देश्य सिर्फ भूख शांत करने तक सीमित रह गया है. फिर भी सेहत की बात कोई कितनी भी कर ले, ट्रैडिशनल भारतीय खाने को चखने की चाह तो हर दिल में दबी ही रहती है.

तपन गु्रप ने आम भारतीयों की इस मुश्किल को महसूस किया और एक ऐसा विकल्प तैयार करने की ठानी जो आम भारतीयों को भोजन से जुड़ी इस दहशत और शंकाआशंका से मुक्ति दिला सके. फूड टैक्नोलौजी की पढ़ाई कर लौटे तपन ग्रुप के युवा प्रबंध निदेशक सुदीप गर्ग ने अपने पिता एवं चेयरमैन सुरेशचंद्र गर्ग के निर्देशन में एक ऐसा उत्पाद तैयार किया जो सुगंध और स्वाद के मामले में पारंपरिक देशी घी जैसा ही है, लेकिन सेहतमंद भोजन के मौजूदा मानकों के अनुरूप भी है. अनुसंधानों की शृंखला तपन कुकिंग मीडियम से शुरू हुई और ऐश, दाऊजी, दीप जैसे ब्रांडों से होती हुई प्रीत लाइट पर आई. प्रीत लाइट कुकिंग मीडियम ने भारतीय भोजन के क्षेत्र में धूम मचा दी है. आज प्रीत लाइट लाखों भारतीय परिवारों की पहली पसंद बन चुका है.

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क्या बैस्ट है प्रीत लाइट

सभी जानते हैं कि फैट हमारे भोजन का एक महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व है. फैट ऐनर्जी देता है. इस के अलावा कुछ पोषक तत्त्वों को अवशोषित करने और शरीर के तापमान को बनाए रखने का भी काम फैट ही करता है.

फैट हमारे शरीर के लिए कितना महत्त्वपूर्ण होता है, यह इस बात से समझा जा सकता है कि हमारा लगभग 60% मस्तिष्क वसा से ही बना होता है. हार्मोन संतुलन के लिए भी फैट महत्त्वपूर्ण हैं.

हमारे भोजन में 3 तरह के फैट होते हैं:

– अनसैचुरेटेड फैट (अच्छा वसा)

– सैचुरेटेड फैट (खराब वसा)

– ट्रांसफैट (खराब वसा)

अनसैयुरेटेड फैट 2 तरह के होते हैं:

– मोनोअनसैचुरेटेड फैट (रूस्न्न)

– पौलीअनसैचुरेटेड  (क्कस्न्न)

रूस्न्न और क्कस्न्न गुड फैट होते हैं. ये कोलैस्ट्रौल को नियंत्रण में रख आप को हार्ट डिसीज के जोखिम को कम करते हैं जब आप उन्हें खराब वसा के स्थान पर लेते हैं.

प्रीत लाइट में (अनसैचुरेटेड) फैट की मात्रा देशी घी या हाइड्रोजेनेटेड फैट (वनस्पति घी) के मुकाबले कहीं अधिक होती है. प्रीत लाइट में रूस्न्न की मात्रा 32.27% है जबकि देशी घी में यह 26.8% और हाइड्रोजेनेटेड फैट में 28% होती है. इसी प्रकार क्कस्न्न की मात्रा 21.7%, जबकि घी में 3.6% और हाइड्रोजेनेटेड फैट में 4.5% होती है.

वहीं दूसरी ओर बैड फैट कहे जाने वाले सैचुरेटेड फैट और ट्रांसफैट की मात्रा प्रीत लाइट में देशी घी एवं हाइड्रोजेनेटेड फैट के मुकाबले काफी कम है.

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प्रीत लाइट में सैचुरेटेड फैट 43.47% है जबकि देशी घी में 65.15% तथा हाइड्रोजेनेटेड फैट में 58.20% होती है. ट्रांसफैट की मात्रा 2.5% होती है जो कि न्यूनतम स्तर है. वहीं देशी घी में ट्रांसफैट 4.5% और हाइड्रोजेनेटेड फैट में 5% होती है. इसी तरह कोलेस्ट्रोल के मामले में भी प्रीत लाइट बहुत संतुलित कुकिंग मीडियम साबित हुआ है. प्रीत लाइट में कोलेस्ट्रोल की मात्रा केवल 13.20 एमजी प्रति 100 ग्राम है, जबकि देशी घी में यह 250 एमजी प्रति 100 ग्राम होता है.

तो अपनी व अपने परिवार की अच्छी सेहत के लिए घी या वनस्पति नहीं, बल्कि चुनें प्रीत लाइट.

बौयफ्रैंड बनाएं पेरैंट्स से न छिपाएं

पाल के नजदीक बैरसिया कसबे की शीतलनगर कालोनी के बाशिंदे किशोरीलाल बैरागी पेशे से ट्रक ड्राइवर हैं. उन की बड़ी खवाहिश थी कि बेटा विकास और दोनों बेटियां अनुष्का और निधि पढ़लिख कर कुछ बन जाएं और उन का नाम रोशन करें. इस बाबत उन्होंने बच्चों की पढ़ाईलिखाई में कोई ढील या कसर नहीं छोड़ी थी, जिस का नतीजा था कि 21 वर्षीया निधि बीएससी के आखिरी और 17 वर्षीया अनुष्का पहले साल में पढ़ रही थीं.

दोनों जवान होती बहनों से घर की खस्ता माली हालत छिपी नहीं थी. लिहाजा, उन्होंने एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ाना शुरू कर दिया था. जो मामूली पगार उन्हें मिलती थी उस से वे अपना खर्च चला लेती थीं.

लेकिन बीती 31 जुलाई को दोनों ने घर में ही जहर खा कर खुदकुशी कर ली तो बैरसिया में सनाका खिंच गया. लोगों का लगाया यह अंदाजा गलत नहीं निकला कि जरूर लड़कों का चक्कर रहा होगा. दरअसल, हुआ यों था कि हादसे के दिन दोनों बहनें अपने बौयफ्रैंड्स के साथ घूमने चली गई थीं और शाम को देर से घर पहुंची थीं.

जवान होती लड़कियों की चिंता में डूबे किशोरीलाल को बेटियों का यह रवैया पसंद नहीं आया तो उन्होंने पिता का फर्ज निभाते हुए दोनों को डांट दिया. इस डांट से अनुष्का और निधि इतनी दुखी हुईं कि उन्होंने जिंदगी शुरू होने से पहले ही उसे खत्म करने का खतरनाक फैसला लेते जहर खा लिया जिस से दोनों की मौत हो गई.

क्या है दिक्कत

देखा जाए तो किशोरीलाल ने कुछ गलत नहीं किया था और दूसरे यानी आजकल के लिहाज से देखा जाए तो अनुष्का और निधि ने भी लड़कों से दोस्ती कर कोई संगीन गुनाह नहीं किया था क्योंकि बौयफ्रैंड आजकल अमूमन सभी लड़कियों के होते हैं.

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फिर दिक्कत कहां है, यह बात न सम झना ही सारे फसाद और ऐसे दुखद हादसों की जड़ है. इस पर लड़कियों के साथसाथ मांबाप को भी संजीदगी से सोचविचार करना चाहिए जिस से सांप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे. हुआ यों था कि जमाने की ऊंचनीच से वाकिफ किशोरीलाल इस बात से डर रहे थे कि बेटियां अभी नादान हैं और उन की उम्र पढ़नेलिखने की व कैरियर बनाने की है. दूसरी तरफ अनुष्का और निधि का सोचना यह था कि इस में कहां की नई बात है, आजकल तो हर किसी लड़की का बौयफ्रैंड होता है. इस का यह मतलब नहीं कि सभी गलत होती हैं और उन की मंशा खराब होती है.

दोनों अपनीअपनी जगह ठीक थे, लेकिन गलती लड़कियों की ज्यादा नजर आती है जिन्होंने एकतरफा सोचा और जाने क्यों यह नहीं सोचा कि मांबाप जो कह रहे हैं वह उन के भले के लिए है. खुदकुशी कर घरवालों को जिंदगीभर के लिए दुख के समंदर में ढकेल दिया है.

किशोरीलाल अब पछताते हुए कह रहे हैं कि उन्हें क्या मालूम था कि टोकने पर बेटियों को इतना बुरा लगेगा कि वे खुदकुशी कर लेंगी. वे दोनों पढ़ने में काफी होशियार थीं, इसलिए वे उन की बेहतरी के लिए चाहते थे कि वे लड़कों से दोस्ती कर घूमनेफिरने के चक्कर में अपना वक्त बरबाद न करें.

एक और हादसा आयागया हो गया लेकिन पीछे कई सवाल छोड़ गया कि लड़कियों को लड़कों से दोस्ती करनी चाहिए या नहीं, और इस पर घर वालों को एतराज जताना चाहिए या नहीं?

बौयफ्रैंड बनाएं लेकिन….

लड़कियां बौयफ्रैंड बनाएं, यह कतई हर्ज की बात नहीं. हर्ज की बात है इस दोस्ती को घरवालों से छिपाना और दोस्तों से चोरीछिपे वक्तबेवक्त मिलना. कम उम्र लड़कियों को इतना सम झदार नहीं कहा जा सकता कि वे अपने अच्छेबुरे का फैसला खुद कर सकें. इसलिए बेहतर है कि वे लड़कों से अपनी दोस्ती को छिपाएं नहीं और हिम्मत करते हुए मांबाप को बता दें. नाराज वे इस के बाद भी हो सकते हैं लेकिन इस से लड़कियों के मन का डर मिट जाएगा. मुमकिन यह भी है कि मांबाप दोस्ती पर एतराज न जताते उसे अच्छे ढंग से ले लें.

जब लड़कियां चोरीछिपे बौयफ्रैंड से मिलती हैं तो उन के बहकने के आसार बढ़ जाते हैं. कई दफा वे जज्बात में बह कर, खवाबों में डूबते अपना सबकुछ बौयफ्रैंड को सौंप देती हैं यानी जिस्मानी संबंध बना बैठती हैं जो अकसर उन्हीं के लिए नुकसानदेह साबित होते हैं. इसलिए अकेले में बौयफ्रैंड से चोरीछिपे मिलने से तो बेहतर है कि घर वालों के सामने मिला जाए.

इस पर मांबाप एतराज जताएं तो लड़कियों को चाहिए कि वे मांबाप को बताएंसम झाएं कि यह सिर्फ दोस्ती है जिस में ऐसा वैसा कुछ नहीं है जैसा कि वे सोचसोच कर डर रहे हैं. इस से तय है कि वाकई मांबाप का डर और चिंता कम होगी.

बौयफ्रैंड से आप का अकेले में ज्यादा घूमनाफिरना और मिलना कई दुश्वारियों की वजह बन जाता है, खासतौर से छोटी जगहों में जहां लोगों की निगाहें सीसीटीवी कैमरों की तरह लड़कियों पर लगी होती हैं. अगर लड़कियां मांबाप को भरोसे में ले लेंगी तो इन के मुंह बंद हो जाएंगे. लेकिन चिंता और अफसोस की बात यह है कि लड़कियां बताती ही नहीं, तो मांबाप को गुस्सा आना कुदरती बात है.

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मांबाप भी सोचें

आजकल लड़केलड़कियों की दोस्ती वक्त और उम्र की जरूरत हो चली है और यह जरूरी नहीं कि इस दोस्ती में कोई गड़बड़ बात हो. इसलिए उन्हें बेटियों के बौयफ्रैंड से बच्चों की ही तरह पेश आना चाहिए. इस से लड़कियों का डर कम होगा और वे बहकने से भी बची रहेंगी क्योंकि उन के साथ मांबाप का भरोसा होगा.

कभीकभार अगर लड़कियां दोस्तों के साथ घूमने जाने की बात कहें तो उन्हें एकदम से मना नहीं करना चाहिए. याद रखें यह उम्र बड़ी नाजुक होती है जिस में लड़कियों को लगता है कि उन की सम झ पर भरोसा न कर मांबाप उन के चालचलन पर शक कर रहे हैं, तो वे गुस्से में निधि और अनुष्का जैसा गलत कदम भी उठा बैठती हैं. याद रखें लड़कियों से ज्यादा सख्ती करना एक तरह से उन्हें चोरीछिपे बौयफ्रैंड बनाने के लिए उकसाने जैसी बात है.

मांबाप को चाहिए कि वे भी बेटी के बौयफ्रैंड से घुलेंमिलें, उन के घरपरिवार की जानकारी लें और यह साफ कह दें कि दोस्ती हर्ज की बात नहीं, हर्ज की बात है देररात तक अकेले में घूमनाफिरना और मिलना, जिस से दोनों की बदनामी होती है और ये बातें वे उन की अच्छाई और भलाई के लिए ही कह रहे हैं. उन्हें एहसास कराएं कि आप उन की दोस्ती के दुश्मन नहीं हैं, बल्कि हमदर्द हैं.

इस से लड़के के मन में अगर कोई खोट होगा या गलत इरादा पनप रहा होगा तो वह वक्त रहते होशियार हो जाएगा कि गर्लफ्रैंड के घर वालों को उन की दोस्ती की बात मालूम है और एक हद में ही उस से मिलनाजुलना है.

इस में कोई शक नहीं कि खासतौर से छोटी जगहों में समाज रूढि़यों और परंपरागत सोच का शिकार ज्यादा है. लेकिन अच्छी बात यह है कि माहौल धीरेधीरे बदल रहा है. ऐसे में अनुष्का और निधि जैसी लड़कियों की खुदकुशी की नासम झी और बुजदिली इस माहौल को सुधरने से रोकती ही है.

लड़कियों और लड़कों दोनों को चाहिए कि वे दोस्ती की हदें तय करते उन्हीं में रहें और अगर अपनी जगह ठीक हैं तो किसी से डरें नहीं. लेकिन, ऐसा तभी मुमकिन है जब वे चोरीछिपे लंबे वक्त के लिए न मिलें और सैक्स संबंध कायम न करें.

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दोस्ती बढ़ती है तो प्यार भी हो सकता है, यह भी कतई हर्ज की बात नहीं लेकिन इसे भी छिप कर किया जाएगा तो तय है वह गलत ही कहलाएगा और दोनों की मंशा को भी कठघरे में खड़ा करेगा. इसलिए, दोस्ती और प्यार से पहले एकदूसरे को हर लैवल पर खूब सम झ लें, फिर जिंदगी का कोई फैसला लें लेकिन अगर वह खुदकुशी होगा तो आप ही अपनेआप को गलत साबित करेंगे.

मुबारका फिल्म फ्लौप होने पर बोले अनीस बज्मी, जानें क्या कहा

फिल्म ‘नो एंट्री’ से इंडस्ट्री में अपनी अलग पहचान बनाने वाले निर्माता निर्देशक अनीस बज्मी कौमेडी फिल्मों के लिए जाने जाते है. उन्हें हमेशा से ही कौमेडी लिखना पसंद था, लेकिन इसको सही दिशा मिली, फिल्म ‘नो एंट्री’ से, जिसमें उनके काम को दर्शकों ने काफी सराहा. इसके बाद उन्होंने कई हास्य फिल्में बनायीं,जिसमें वेलकम, सिंह इज किंग, मुबारकां आदि कई है. अनीस मानते है कि जीवन में हंसना जरुरी है, क्योंकि आज के तनाव भरे माहौल में ऐसी फिल्में दर्शकों को ताजगी देती है, हालांकि इसके लिए कड़ी मेहनत उन्हें करनी पड़ती है, ताकि हंसी का आलम लगातार बनी रहे, जिसमें वे कास्टिंग को अधिक अहमियत देते है. उनकी फिल्म ‘पागलपंती’ के प्रमोशन पर उनसे बात करना रोचक था, पेश है कुछ अंश.

सवाल-फिल्म की सफलता को लेकर कितना प्रेशर महसूस कर रहे है, क्योंकि सफलता का श्रेय कलाकार को मिलता है, जबकि असफलता का जिम्मेदार निर्देशक को कहा जाता है?

ये सही है कि निर्देशक को फिल्म का कैप्टेन कहा जाता है, क्योंकि अगर शिप डूबती है तो कैप्टेन को ही जिम्मेदारी लेनी चाहिए, लेकिन फिल्म एक टीम वर्क है. अकेले कोई कुछ भी नहीं कर सकता. सारे कलाकार ही होते है, जो हमारी सोच को दर्शकों तक अपने सटीक अभिनय कर द्वारा पहुंचाते है. उन्होंने अगर अभिनय सही नहीं किया तो हमने जो लिखा है उसका अर्थ अलग हो जाता है. इसलिए मैंने इसमें बहुत बड़े एक्टर न लेकर सीधे सादे कलाकार लिए है, जो अभिनय अच्छी तरह कर कहानी को पर्दे पर उतार सकें. बड़े कलाकार के साथ काम करने में मुझे डर लगता है. प्रेशर की बात करें, तो मैं एक समय में केवल एक ही फिल्म करता हूं. इसके अलावा इंडस्ट्री में लास्ट फिल्म की सफलता को बहुत बड़ा माना जाता है. वह अगर फ्लॉप हो जाय, तो पहले की कामयाबी को भी कोई नहीं देखता. आप पर प्रेशर बन जाता है.

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सवाल- कौमेडी सही हो इसका ध्यान आप कैसे रखते है?

किसी भी कौमेडी फिल्म में कलाकार बहुत बड़ा होता है और मैंने शुरू से अनिल कपूर के काम को देखा है. उनके साथ काम करना बहुत आसान होता है. सेट पर वे एक पौजिटिव माहौल लेकर आते है. कौमेडी एक सीरियस बिजनेस है. लोगों को हंसाने के लिए बहुत कुछ करना पड़ता है और ऐसी फिल्में लिखने के लिए भी बहुत दिमाग लगाना पड़ता है. मुबारका फिल्म अधिक नहीं चली इसे लक और समय को मानता हूं, क्योंकि मैंने उसे बनाने में भी बहुत मेहनत की थी.

सवाल-आपकी अधिकतर कौमेडी फिल्में सफल रही है, इसकी वजह क्या मानते है?

अगर मैं राइटर नहीं होता, तो शायद मैं इस तरह की फिल्में नहीं बना पाता. अभी मैं एक फिल्म करने जा रहा हूं, जिसके लेखक कोई और है. मुझे उस कहानी को समझने में बहुत वक़्त लगा. मैं लेखक से एक हज़ार सवाल पूछता हूं, तो वे भी चौक जाते है, लेकिन मेरे लिए लेखक के मन में क्या चल रहा है उसे जानने की कोशिश मैं करता हूं.  इसके अलावा कहानी दोहराई न जाय, इस बात के ध्यान बहुत रखना पड़ता है और ये कठिन भी है. फ्रेश कॉमेडी के लिए मैं भारत की ही नहीं, बाहर की भी बहुत सारी फिल्में देखता, पढता और बहुत सारे लोगों के साथ बातें भी करता हूं. मेरे ऑफिस में लोगों का जमावड़ा हमेशा लगा रहता है. हर उम्र के यूथ के साथ मैं बातचीत करता हूं. कहानी अलग होने के बावजूद मेरी ही फिल्म बनी रहे, ये करना भी बहुत मुश्किल काम है.

सवाल-किसी फिल्म की सीरीज उतनी सफल नहीं होती, जितनी पहली फिल्म होती है, क्या आपको नहीं लगता है कि सीरीज से हटकर एक नयी फिल्म बनाना अधिक अच्छा होता है?

ये बिल्कुल सही है, इसलिए मैंने ‘नो एंट्री’ के बाद 12 साल का गैप लिया है. पैसा कमाने के लिए अगर मैं दो साल में ही फिल्म बना लेता, तो वैसी ही बात होती. इसे लिखने और समझने में बहुत समय लगा है. सही कास्टिंग भी इसके लिए करना जरुरी है.

सवाल-आगे आपकी कौन सी फिल्म है?

अभी मैंने फिल्म ‘नो एंट्री में एंट्री’ पर काम करने वाला हूं. मैंने सवा साल बैठकर इस फिल्म को लिखा है. ये एक बहुत ही अच्छी और दिल के करीब कहानी है. पहली फिल्म में 3 हीरो थे, इसमें 3 हीरो के डबल रोल और 10 एक्ट्रेस है. बोनी कपूर के ग्रीन सिग्नल के साथ ही ये फिल्म शुरू हो जाएगी. इसके अलावा भूल भुलैया 2 भी शुरू करने वाला हूं.

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रेटिंग: दो स्टार

निर्माताः मदन पालीवल और नील नितिन मुकेश

निर्देशकः नमन नितिन मुकेश

कलाकारः नील नितिन मुकेश, अदा शर्मा, शमा सिकंदर, गुल पनाग, सुधांशु पांडे, रजित कपूर, मनीष चौधरी, ताहिर शब्बीर

अवधिः दो घंटे 17 मिनट

धन दौलत के लोभ में इंसान किस कदर गिर गया है, उसी के इर्द गिर्द घूमती कहानी पर नमन नितिन मुकेश के रहस्यप्रधान रोमांचक फिल्म ‘‘बाय पास रोड’’ लेकर आए हैं, जो कि प्रभावित नही करती.

कहानीः

अलीबाग में रह रहे मशहूर फैशन डिजाइनर विक्रम कपूर (नील नितिन मुकेश) जिस दिन घातक दुर्घटना का शिकार होते है, उसी दिन उनकी कंपनी की सेक्सी और नंबर वन मौडल सारा ब्रिगेंजा (शमा सिकंदर) की अपने घर में रहस्यमयी मौत होती है. मीडिया को लगता है कि इन दोनों हादसों का आपस में कोई न कोई गहरा रिश्ता जरूर है. सारा की मौत पहली नजर में आत्महत्या लगती है. जबकि इस हादसे में विक्रम को कुचल कर मारने की कोशिश की जाती है.

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फिर कहानी अतीत में जाती है, जहां विक्रम और सारा के अतिनजदीकी रिश्तों का सच सामने आता है. हालांकि विक्रम अपनी ही कंपनी में इंटर्नशिप करने वाली डिजाइनर राधिका (अदा शर्मा) से प्यार करते है और सारा ब्रिगेंजा भी जिम्मी (ताहिर शब्बीर) की मंगेतर हैं.

अस्पताल में पता चलता है कि विक्रम के दोनों पैर बेकार हो चुके हैं और अब उन्हें सिर्फ व्हील चेअर का ही सहारा हैं. जब विक्रम अस्पताल से अपने पिता प्रताप कपूर (रजित कपूर) के साथ अपने घर पहुंचता है, तो घर पर उनकी सौतेली मां रोमिला (गुल पनाग), सात आठ वर्षीय सौतेली बहन नंदिनी (पहल मांगे) और नौकर की मौजूदगी के बावजूद हादसे का शिकार होते-होते बचते हैं.

उधर पुलिस अफसर हिमांशु रौय (मनीष चौधरी) सारा की मौत का सच जानने उजागर करने पर आमादा है. हिमांशु रौय को सारा के मंगेतर जिम्मी के अलावा विक्रम के व्यावसायिक प्रतिद्वंदी नारंग (सुधांशु पांडे) पर शक है. पुलिस की जांच अलग चल रही है, तो वहीं व्हील चेअर पर रहेन वाले विक्रम को मारने की कई बार कोशिश होती है. इसी बीच कुछ अन्य हत्याएं भी हो जाती हैं. अंततः सच सामने आता ही है.

लेखनः

अभिनय करने के साथ फिल्म की पटकथा व संवाद नील नितिन मुकेश ने ही लिखी है. उन्होने पूरी कहानी को अपनी तरफ से जलेबी की तरह घुमाते हुए रहस्य का जामा पहनाने का भरसक प्रयास किया है. पर वह पूरी तरह से इसमें सफल नहीं हुए.

कहानी पुरानी ही है. इस तरह की कहानी तमाम सीरियल व अतीत में कुछ फिल्मों में आ चुकी है. फिल्म का क्लायमेक्स तो लगभग हर रहस्यप्रधान सीरियल से मिलता जुलता है. वर्तमान से बार बार अतीत में जाने वाली कहानी काफी कन्फ्यूजन पैदा करती है. कहानी में कई कमियां हैं. एक दृष्य में सारा का प्रेमी जिम्मी पुलिस से भगते हुए कदई मंजिल उपर से नीचे गिरता है. पुलिस उसके पास पहुंच जाती है. और उसे देखकर वह मृत समझती है, पर इंटरवल के बाद जिम्मी पुनः कहानी में नजर आने लगते हैं. कुछ चरित्र ठीक से विकसित नही किए गए. फिल्म के कुछ संवाद बहुत सतही है. कुल मिलाकर फिल्म की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी नील नितिन मुकेश का लेखन है.

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निर्देशनः

अपने समय के मशहूर गायक स्व.मुकेश के पोते, गायक नितिन के बेटे व नील नितिन मुकेश के छोटे भाई नमन नितिन मुकेश ने ‘‘बायपास रोड’’ से पहली बार निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखा है. तकनीकी दृष्टिकोण से देखें, तो वह पूरी तरह  से सफल रहे हैं. मगर कथा व पटकथा की मदद न मिलने के कारण उनका सारा प्रयास विफल हो गया.

अभिनयः

विक्रम के किरदार को नील नितिन मुकेश ने इमानदारी व शानदार अभिनय के साथ निभाया है. अदा शर्मा ने भी ठीक ठाक अभिनय किया है. रजित कपूर, शमा सिकंदर और मनीश चौधरी अपनी छाप छोड़ जाते हैं. इसके अलावा अन्य कलाकारों के चरित्र लेखक की कमजोरी की भेंट चढ़ गए.

TRP की लिस्ट में हिट होते ही ‘छोटी सरदारनी’ में आएगा नया ट्विस्ट, नया मोड़ लेगी ‘परम’ की जिंदगी

फैंस का दिल जीतने वाल कलर्स का शो ‘छोटी सरदारनी’ 2019 के टीआरपी की लिस्ट में नंबर वन पर पहुंच चुका है. वहीं टीआरपी की रेस में नंबर वन पर आने के बाद शो के मेकर्स ने भी शो में नए-नए ट्विस्ट लाने शुरू कर दिये हैं. हाल ही के एपिसोड में आपने देखा होगा कि ‘परम की नानी’ उसे लंदन ले जाने की बात कहती हैं, लेकिन अब शो के मेकर्स जल्दी  ही शो में नया ट्विस्ट लाने वाले हैं. आइए आपको बताते हैं क्या होगा ‘छोटी सरदारनी’ में नया ट्विस्ट…

‘परम’ का बढ़ता ‘नानी’ के लिए प्यार

इन दिनों शो में ‘परम की नानी’ ‘नीरजा’ जहां ‘परम’ को लंदन ले जाने की पूरी कोशिश कर रही हैं तो वहीं ‘परम’ भी अपने पापा यानी सरबजीत को इग्नोर करता नजर आ रहा है.

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‘परम’ का टेस्ट लेती नजर आएंगी ‘नानी’

अपकमिंग एपिसोड में आप देखेंगे कि ‘परम की नानी’ यानी ‘नीरजा’ ‘परम’ की परवरिश पर सवाल उठाती हुई नजर आएंगी और ‘परम’ की परवरिश को लेकर ‘सरबजीत’ से ‘परम’ का टेस्ट लेने के लिए कहती हुई नजर आएंगी.

‘परम’ की कस्टडी का ड्रामा लाएगा नया ट्विस्ट

वहीं अपकमिंग ट्विस्ट में आप ‘परम’ की कस्टडी के लिए ‘मेहर’ और ‘सरबजीत’ को लड़ते हुए देखेंगे, जिसका फैंस बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. वहीं शो में ‘परम’ की नानी का भी ड्रामा फैंस को एंटरटेन करने वाला है.

‘सरबजीत’ और ‘मेहर’ की केमेस्ट्री को फैंस कर रहे पसंद

 

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जहां एक तरफ शो की टीआरपी फैंस का दिल जीत रही है तो दूसरी तरफ शो के मेन कैरेक्टर की फैन फौलोइंग भी बढ़ती जा रही है. शो को मिल रही जबरदस्त सफलता को देखकर इसके लीड एक्टर्स की खुशी का कोई भी ठिकाना नहीं है.

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हाल ही में एक इंटरव्यू में ‘मेहर’ यानी निमृत कौर आहलूवालिया का कहना है कि मुझे लगता है कि पूरी टीम ने शुरुआत से ही अच्छा काम किया है. इस सीरियल के किरदारों की ईमानदारी स्क्रीन काफी अच्छे से झलकती है. मुझे लगता है कि हमारी मेहनत और सब्र की वजह से ही हमें ये सफलता मिली है. मैं आशा करती हूं कि ये प्यार हमें हमेशा से ही मिलता रहे. वहीं अब देखना है कि क्या शो ‘छोटी’ सरदारनी शो अपने फैंस के दिल में ऐसे ही अपनी जगह कायम रख पाता है कि नही.

आप हम और ब्रैंड

प्रकाश सेखानी

ग्रुप चेयरमैन, सेखानी ग्रुप

भारतीय सैनिटरी नैपकिन के निर्माता होने के नाते हम भारतीय मौसम के कारण पीरियड्स में होने वाली परेशानी को जानते हैं और हमारे उत्पाद इस दौरान होने वाली समस्याओं में महिला को आराम देने के लिए बनाए गए हैं. हम भारत में बेहतर मैंस्ट्रुअल प्रैक्टिसिस के पक्षधर हैं और पर्सनल हाइजीन में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं…

भारत में आज भी अधिकांश महिलाएं माहवारी के दौरान पर्सनल हाइजीन से जुड़ी कुछ महत्त्वपूर्ण बातों से अनजान हैं. कई जगहों पर तो महिलाएं पीरियड्स  के दौरान कपड़ा इस्तेमाल करती हैं, जिस से उन के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है. इतना ही नहीं वे बारबार उसी कपड़े को इस्तेमाल करने से भी गुरेज नहीं करतीं. उन्हें इस बात का अंदाजा तक नहीं होता कि ऐसा करना उन्हें कैंसर जैसी जानलेवा बिमारी का भी शिकार बना सकता है. पर्सनल हाइजीन और सैनिटरी नैपकिन के प्रति जागरूकता की कमी इस की बड़ी वजह है. ऐसे में सेखानी ग्रुप के चेयरमैन प्रकाश सेखानी की पहल इस दिशा में काफी महत्त्वपूर्ण कदम है. आइए जानते हैं उन से हुए कुछ सवालजवाब:

सैनिटरी नैपकिन के व्यवसाय में आने की प्रेरणा कैसे मिली?

कुछ समय पहले नीलसन के एक अध्ययन में काफी चौकाने वाली बात सामने आई थी कि सिर्फ 12% भारतीय महिलाएं ही सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल करती हैं, जबकि 23% किशोरियां माहवारी शुरु होते ही स्कूल जाना छोड़ देती हैं. दुनियाभर में सर्वाइकल कैंसर से होने वाली मौतों में 27% मौत सिर्फ भारत में होती हैं. भारत में अधिकांश ग्रामीण महिलाएं पीरियड्स के दौरान कपड़े का ही इस्तेमाल करती हैं, जो उन के प्रजनन तंत्र में संक्रमण का कारण बनता है, क्योंकि उन के लिए उपयोग किए गए कपड़े को साफ और बैक्टीरिया मुक्त रखना काफी मुश्किल होता है. ऐसे में पर्सनल हाइजीन और सही सैनिटेशन की कमी सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक बड़ी चुनौती है. भारतीय महिलाओं के लिए मासिकधर्म एक सामान्य शारीरिक क्रिया से बढ़ कर उन के प्रति लिंगभेद को दर्शाने का एक और तरीका मात्र है. पीरियड्स से जुड़े अंधविश्वास और वर्जनाएं महिलाओं के स्वास्थ्य के हित में सही नहीं हैं.

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फेम केयर (wonderize) व्यवसाय को शुरू करने के पीछे मुख्य उद्देश्य अच्छी गुणवत्ता वाले उत्पादों का निर्माण करने के साथसाथ महिलाओं व लड़कियों को हाइजीन व कंफर्ट संबंधी सभी सुविधाएं भी प्रदान कर हाइजीन सैक्टर के विकास में योगदान देना है. इस के अलावा महिलाओं को मानसम्मान के साथ जीने की आजादी देने वाले उत्पादों को पेश कर उन की जिंदगी में सकारात्मक बदलाव लाना भी हमारा मुख्य उद्देश्य है.

wonderize के बेहतरीन क्वालिटी वाले उत्पाद किफायती दामों पर बाजार में उपलब्ध हैं ताकि महिलाएं उन दिनों में पर्सनल हाइजीन की चिंता छोड़ कर नारीत्व का खुल कर आनंद उठा सकें.

इस व्यवसाय के जरीए आपका लक्ष्य क्या है?

हमारा लक्ष्य स्वस्थ महिलाएं- स्वस्थ भारत के निर्माण का है. हम माहवारी के दौरान होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को जड़ से मिटाना चाहते हैं. हम भारत में बेहतर मैंस्ट्रुअल प्रैक्टिसिस के पक्षधर हैं और पर्सनल हाइजीन संबंधी बेहतर प्रोडक्ट्स बाजार में पेश कर हाइजीन श्रेणी में सकारात्मक बदलाव लाना चाहते हैं ताकि महिलाओं को भी खुल कर जीने की आजादी मिल सके. हम चाहते हैं कि हर भारतीय महिला को सैनिटरी नैपकिन उपलब्ध हो व साथ ही वह मासिकधर्म के दौरान अपनी सेहत के प्रति जागरूक भी रहे.

आप के उत्पादों की रेंज क्या है और आप ने इस व्यवसाय की प्रतिस्पर्धा से खुद को अलग कैसे रखा है?

हमारा फेम केयर ब्रैंड- wonderize सैनिटरी नैपकिंस और पैंटी लाइनर्स जैसे उत्पादों के साथ बाजार में मौजूद है, जबकि बेबी केयर के क्षेत्र में बेबी पैंट्स और बेबी वाइप्स जैसे Doobidoo के उत्पाद बाजार में उपलब्ध हैं. हमारे उत्पाद wonderize सैनिटरी नैपकिन की भी विस्तृत रेंज है, जैसे कि फ्लफ व अल्ट्रा. ये उत्पाद रैग्युलर से ले कर डबल एक्सएल साइज में उपलब्ध हैं.

हमारे सैनिटरी पैड्स उत्पाद कुछ खास विशेषताओं के चलते प्रतियोगी उत्पादों से अलग हैं. हम अपने ग्राहकों के लिए वर्ल्ड क्लास टैक्नोलौजी का इस्तेमाल कर के बेहतरीन गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार करते हैं.

मासिकधर्म के दौरान महिलाएं विभिन्न समस्याओं जैसे त्वचा पर रैशेज हो जाना और खुजली इत्यादि की समस्याओं से दोचार होती हैं. भारतीय सैनिटरी नैपकिन के निर्माता होने के नाते हम भारतीय मौसम के कारण पीरियड्स में होने वाली परेशानी को जानते हैं और हमारे उत्पाद इस दौरान होने वाली समस्याओं में महिला को आराम देने के लिए बनाए गए हैं. गरमी और उमस के मौसम में हमारे सैनिटरी पैड्स महिलाओं को लंबे समय तक आराम देने के साथसाथ रैशेज इत्यादि की समस्या से भी सुरक्षित रखते हैं.

मासिकधर्म से जुड़ी वर्जनाओं के बारे में आप का क्या मानना है?

अभी भी हमारे देश में मासिकधर्म को शर्म का विषय व टैबू ही माना जाता है और बहुत से लोग तो इस विषय पर बात भी करना पसंद नहीं करते. लोग इसे सामान्य शारीरिक क्रिया के रूप में नहीं देखते. इन दिनों बहुत सी महिलाओं व लड़कियों पर कई तरह की पाबंदियां भी लगा दी जाती हैं. प्राचीन समय में महिलाओं के पास सैनिटरी नैपकिंस व उचित स्वच्छता की कोई सुविधा नहीं थी, जिस के कारण उन्हें पूरी तरह से आराम करने को कहा जाता था. हालांकि आज के युग में मासिकधर्म के दौरान हाइजीन बनाए रखने के लिए जरूरी सुविधाएं उपलब्ध हैं मगर फिर भी इस से जुड़ी कुप्रथा को खत्म नहीं किया जा सका, जिस के चलते यह एक टैबू का रूप ले चुकी है.

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भारत में खराब मैंस्ट्रुअल हैल्थ के बारे में आप क्या सोचते हैं?

हर तीन में से एक लड़की को पीरियड्स के दौरान सही स्वच्छता नहीं मिल पाती जबकि अन्य को इस दौरान सामाजिक व सांस्कृतिक पाबंदियों का सामना करना पड़ रहा है. मासिकधर्म के दौरान उन के लिए हाइजीन का बहुत महत्त्व है. एक तरह से यह सही सैनिटेशन की सुविधाओं की उपलब्धता और उन के प्रति जागरूकता का अभाव ही है. ग्रामीण भारत में सैनिटरी नैपकिन को एक जरूरत के बजाए महंगी सुविधा का उत्पाद माना जाता है. जागरूकता का अभाव और सामाजिक मान्यताएं मासिकधर्म को इसी रूप में प्रस्तुत करती हैं. इन के चलते महिलाएं माहवारी के दौरान परंपरागत तरीकों का इस्तेमाल करती हैं जो कि उन की सेहत के लिए बड़ा खतरा साबित होते हैं.

इस व्यवसाय की शुरुआत करने में किन परेशानियों का सामना करना पड़ा?

हमारे सामने जो सब से बड़ी दिक्कत थी वह थी महिलाओं में जागरूकता की कमी. इस वजह से सैनिटरी नैपकिन का इस्तेमाल भी कम था और इस के बाजार में संभावनाएं भी सीमित थीं. अब स्थितियां बदल रही हैं और धीरेधीरे महिलाओं में जागरूकता बढ़ने के कारण वे मासिकधर्म के दौरान पर्सनल हाइजीन का ध्यान रखने लगी हैं.

भारतीय सैनिटरी नैपकिन बाजार की आज क्या स्थिति है और आने वाले समय में आप इसे कहां देखते हैं?

महिलाओं की हाइजीन और हैल्थ के लिए सैनिटरी नैपकिन बेहद महत्त्वपूर्ण है. हमारे सैनिटरी नैपकिन अलगअलग प्रकार व साइज में उपलब्ध है. हाल के वर्षों में भारत में सैनिटरी नैपकिंस ने अपनी उपयोगिता के प्रति खासा ध्यान आकर्षित किया है, क्योंकि सरकार व कई एनजीओ महिलाओं को व्यक्तिगत स्वच्छता के महत्त्व को समझाने के लिए विभिन्न पहल व प्रयोगशालाएं कर रहे हैं. महिलाओं में व्यक्तिगत स्वच्छता को ले कर बढ़ती जागरूकता भारतीय सैनिटरी नैपकिन बाजार को आने वाले समय में फायदा पहुंचाएगी. इस के अतिरिक्त बढ़ती आय और किफायती कीमत पर सैनिटरी नैपकिंस की उपलब्धता भी इस के बाजार को बढ़ाने का एक अहम कारक है.

Doobidoo के बेबी केयर उत्पाद अन्य बेबी केयर उत्पादों से किस तरह अलग हैं?

Doobidoo उत्पादों को सर्वश्रेष्ठ तकनीक का उपयोग कर के निर्मित किया गया है, जिस से शिशु को पूरा आराम मिल सके. इस की खास विशेषताएं शिशु की नाजुक त्वचा की देखभाल के साथसाथ पूरा आराम भी सुनिश्चित करती हैं. Doobidoo उत्पाद डर्मैटोलौजिकली टैस्ट करने के बाद बाजार में पेश किए जाते हैं. हमारी बेबी पैंट्स बबल सौफ्ट टैक्नोलौजी व ऐंटी लीकेज सिस्टम से लैस हैं जिससे शिशु की कोमल त्वचा पर रैशेज भी नहीं होते और वह दिनरात आराम भी महसूस करता है. इन खास फीचर्स के कारण ही Doobidoo उत्पाद सब से बेहतरीन बेबी केयर उत्पाद हैं.

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90s की तवायफ के रोल में नजर आएगी फिल्म ‘यारियां’ की ये एक्ट्रेस, जानें क्या है कहना

फिल्म ‘यारियां’ से चर्चा में आने वाली मौडल और अभिनेत्री रकुल प्रीत सिंह दिल्ली की है. उसने अपने कैरियर की शुरुआत मौडलिंग से की है. हिंदी के अलावा उसने तमिल, तेलगू,कन्नड़ फिल्मों में भी काम किया है. माध्यम चाहे कोई भी हो रकुल को किसी प्रकार की समस्या नहीं होती. उसे अच्छी और चुनौतीपूर्ण कहानियां प्रेरित करती है. छरहरी काया की धनी रकुल को एक्शन फिल्मों में काम करने की इच्छा है. उसे एडवेंचर और समुद्री तट बहुत पसंद है. समय मिलने पर वह नेचर के करीब जाना पसंद करती है. कौलेज के दिनों में वह गोल्फ प्लेयर रह चुकी है और फिटनेस को जीवन में अधिक महत्व देती है. उसके कई जिम सेंटर है, जिसकी देखभाल वह खुद करती है. इन दिनों उसकी हिंदी फिल्म ‘मरजावां’ के प्रमोशन को लेकर वह काफी उत्सुक है, पेश है उससे हुई बातचीत के कुछ अंश.

सवाल-इस फिल्म में आपकी भूमिका कैसी है?

तारा सुतारिया इस फिल्म में मूक अभिनय कर रही है और मुझे भारी भरकम संवाद निर्देशक ने दिए है. जब उन्होंने मुझे इस फिल्म के लिए नैरेट दिया तो उनका कहना था कि आजतक मेरी फिल्म में हीरो के लिए बड़ा संवाद होता है, लेकिन इस फिल्म में ये मौका मुझे मिलेगा और मुझे अच्छा भी लगा. इसमें मैंने 90 के दशक की तवायफ की भूमिका निभाई है, जो अदा और नजाकत के साथ शायरी बोलती है. पिछले कई सालों से ऐसी फिल्में आई नहीं है और मुझे लगता है, दर्शकों को ये फिल्म पसंद आयेगी. मेरे लिए ये चुनौती है, जिसमें मुझे कुछ नया करने को मिला है.

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सवाल-इसके लिए क्या-क्या तैयारियां की है?

मैंने पुरानी हीरोइनों के अभिनय नहीं देखे, पर ‘बार’ में जाकर बार डांसर्स के हाव-भाव को देखा है. वही मेरा होम वर्क रहा.

सवाल-एक्टिंग में आना इत्तफाक था या बचपन से ही सोचा था?

बचपन मेरा खेलकूद में गुजरा, क्योंकि मैं एक फौजी की बेटी हूं. 10वीं कक्षा के बाद मैंने फिल्में देखनी शुरू की थी, लेकिन मेरी मां चाहती थी कि मैं अभिनय के क्षेत्र में कुछ करूं, क्योंकि मेरी कद काठी अच्छी थी. उन्होंने मुझे मिस इंडिया में भी भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया था. तब मुझे अच्छा नहीं लगा था, पर 12वीं के बाद मुझे लगने लगा कि मैं मौडलिंग करूं और मैंने पढ़ाई ख़त्म करने के बाद मौडलिंग शुरू की, साथ में फिल्मों के लिए भी औडिशन देती रही. इस तरह इस प्रोफेशन में आ गयी.

सवाल-आपने दक्षिण की फिल्मों में अधिक काम किया है, इसकी वजह क्या थी?

जब मौडलिंग शुरू की थी तो मुझे साउथ की इंडस्ट्री के बारें में कोई जानकारी नहीं थी. मैंने पहली बार तो उन्हें मना भी कर दिया था, लेकिन बाद में फिल्म जान कर अभिनय किया. इससे मुझे कुछ पैसे भी मिल गए मैंने अपने पैसे से कार भी खरीद ली, इतना ही नहीं अभिनय के बारें में बहुत कुछ सीखने को भी मिला. ऐसे ही आगे बढती गयी और अभिनय में मुझे मज़ा भी आने लगा. अब मेरे लिए माध्यम कोई बड़ी बात नहीं है. काम करते रहना जरुरी है. ‘यारियां’ मेरी पहली हिंदी फिल्म सफल थी, जिससे काम मिलना थोडा आसान हो गया था.

सवाल-आप बेटी बचाओ, बेटी पढाओं की ब्रांड एम्बेसेडर है, इसके तहत क्या-क्या करती है?

मैं ढाई सालों से इस अभियान के साथ जुडी हूं. हमारा उद्देश्य छोटे शहरों और गावं में जाकर काम करना है, जिसमें उन्हें बताना है कि सरकार की तरफ से उन्हें किस तरह की फंडिंग मिलती है और वे उसका फायदा कैसे उठा सकते है. जागरूकता अभियान भी करती हूं. तेलंगाना के नालगोडा में जाकर मैंने लोगों से बात की और विज्ञापन लगवाएं. ये एक धीमी प्रक्रिया है, जो धीरे-धीरे कारगर होती है.

सवाल-इस तरह के काम में समस्या क्या आती है?

समस्या पैसों की कमी की है. उन्हें बेटी पसंद नहीं, क्योंकि बेटी के लिए दहेज़ देने पड़ते है. सरकार की स्कीम के अंतर्गत जो मुफ्त शिक्षा है. उन्हें पता नहीं होता. बेटियों को वे पढ़ाते नहीं. इन सारी चीजों को दूर दराज तक पहुँचाना मुश्किल होता है.

सवाल-इंडस्ट्री में कभी आपको किसी गलत परिस्थिति का सामना करना पड़ा?

मैं कभी भी काम के लिए हताश नहीं थी. अगर आप हताश है और जब ये बात किसी को पता चलता है तो लोग उसका फायदा उठाने की कोशिश करते है. मुझे जो काम मिला उसे करती गयी. इसके अलावा मेरे पास एक अच्छी फॅमिली सपोर्ट है, जिससे ‘डू ऑर डाई’ वाली परिस्थिति कभी भी नहीं आई. ऐसे कई कलाकार है, जो काम की तलाश में यहाँ आ जाते है और संघर्ष करते है, पर अच्छा काम नहीं मिल पाता. केवल ग्लैमर इंडस्ट्री ही नहीं, दुनिया में हर कोई लाभ उठाने के लिए बैठा है, ऐसे में आप उन्हें कितना उसे लेने देते है, ये आप पर निर्भर करता है.

सवाल-सिद्दार्थ मल्होत्रा के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?

सिद्दार्थ और मैं दोनों ही दिल्ली से है. दोनों की सोच अच्छी है, इसलिए काम करना मुश्किल नहीं था.

सवाल-आप कितनी फूडी है?

मुझे जंक फ़ूड पसंद नहीं. मां के हाथ का बना खाना बहुत पसंद है. घर जाने से पहले ही उन्हें मैं अपना मेन्यु दे देती हूं. काले चने, करेला, पालक सब मुझे उनके हाथ का बना पसंद है.मुझे खाना बनाना नहीं आता, पर बेकिंग पसंद है और करती हूं. मैं छोले भटूरे और बटर चिकन नहीं खाती. मैं फिटनेस पर अधिक ध्यान देती हूं. आयल मैं एकदम नहीं लेती.

सवाल-आपकी फिटनेस कोच कौन है?

मैं खुद अपने स्वास्थ्य के हिसाब से अपने आपको कोच करती हूं. मेरा ट्रेनर कुनाल सालों से है. इसके अलावा कई और ट्रेनर है.

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सवाल-अभिनय के अलावा किस बात में रूचि रखती है?

मेरे कई जिम सेंटर है, जिसकी देखभाल मैं खुद करती हूं.

सवाल-फिटनेस के लिए बेसिक क्या है?

हर किसी को अपनी फिटनेस का ख्याल रखनी चाहिए. जब आप घर को साफ रखते है, तो शरीर को क्यों नहीं और उसके लिए थोडा समय अवश्य निकाले. 20 मिनट भी आपके लिए काफी होता है. फिटनेस एक लाइफस्टाइल है और उसके लिए जिम की जरुरत नहीं होती.

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