सही कौमेडी फिल्म चुनना मेरे लिए चुनौती होती है –अनिल कपूर

अपने अलग अभिनय और अंदाज की वजह से चर्चित अनिल कपूर की शक्सियत से कोई अंजान नहीं. उन्होंने हौलीवुड और बौलीवुड में अपनी एक अलग छवि बनायीं है. उन्होंने हर शैली में काम किया है और आज भी अपने अभिनय से दर्शकों को चकित कर रहे है. कौमेडी  हो या सीरियस हर अंदाज में वे फिट बैठते है. हंसमुख और विनम्र स्वभाव के अनिल कपूर अभिनय करना और खुश रहना हमेशा पसंद करते है और यही उनके फिटनेस का राज है. जीवन एक है और इसमें उतार-चढ़ाव का आना स्वाभाविक मानते है. उनकी फिल्म ‘पागलपंती’ में उन्होंने कौमिक भूमिका निभाई है. जिसे लेकर वे बहुत खुश है, पर यहां तक पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था. इसका राज आइये जाने उन्ही से.

सवाल-आपके उपर फिल्म की सफलता और असफलता का प्रभाव अभी कितना रहता है? फिल्म की सफलता में अच्छी कहानी का होना कितना जरुरी होता है?

कोई भी कलाकार शुरू में छोटा काम कर धीरे-धीरे बड़ा अभिनय कर स्टार बनता है, लेकिन यहां ये समझना जरुरी है कि कलाकार से अधिक उसकी भूमिका हिट होती है जिसे लोग पसंद करते है. ये बात हर कलाकार को समझ में आनी चाहिए. इसका उदहारण अमिताभ बच्चन है, जो अभी तक भी पोपुलर है. मेरा भी यही सोच रही है. मैंने 17 साल से अपने ईगो को छोड़कर काम करना शुरू किया है और जो भी कहानी या किरदार सही हो, उसमें मैं काम करता हूं, लेकिन सही कौमेडी  फिल्म को चुनना मेरे लिए एक चुनौती होती है, क्योंकि अगर मैंने सही कौमेडी  को नहीं चुना, तो वह मेरे लिए ट्रेजिडी बन सकती है. कौमेडी  को सही स्तर तक ले जाने के लिए बहुत कम फासला होता है और वह सबके बस की बात नहीं होती.

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सवाल- पहले की फिल्मों में कलाकार और निर्देशक के बीच में एक गहरा सम्बन्ध होता था, जिससे कई बार कलाकार संबंधों की वजह से भी फिल्में साईन कर लेते थे, पर अब ये प्रोफेशनल अधिक हो चुका है आप इन बातों पर अब कितना ध्यान देते है?

मैं बहुत अधिक बदल नहीं सकता. पुराना स्वभाव आ ही जाता है. एक रिश्ता एक इमोशन अपने आप ही निर्माता निर्देशक के साथ आ जाता है. मैं एक आत्मविश्वासी इंसान हूं और बहुत अधिक किसी विषय पर नहीं सोचता. इसलिए फिल्म न चलने पर भी घबराहट नहीं होती.

सवाल-आपकी फिटनेस का राज क्या है? अपने अंदर सकारात्मकता को कैसे बनाए रखते है?

मैं नियमित वर्कआउट करता हूं. किसी प्रकार का नशा मैं नहीं करता. मुझे दक्षिण भारतीय व्यजन में स्टीम्ड इडली बहुत पसंद है, क्योंकि ये बहुत सुरक्षित भोजन है. इसके अलावा मेरे लिए मेरे कैरियर और लाइफ का हर दिन नया होता है. सुबह उठकर मैं जिन्दा हूं और काम कर रहा हूं. ये मेरे लिए बहुत बड़ी बात होती है. जीवन में उतार-चढ़ाव और तनाव को मैं अधिक समय तक अपने पास रहने नहीं देता. आधे से एक घंटे में उसका कोई सोल्यूशन निकाल ही लेता हूं. हर इंसान के जीवन में ऐसी परिस्थितियों से निकलने का एक नुस्खा होता है, जो उस व्यक्ति को खुद ही खोजकर निकालना पड़ता है. इसके साथ-साथ पौजिटिव लोगों की सान्निध्य में रहने की कोशिश करता हूं. जिसमें परिवार, दोस्तों और काम का सही होना जरुरी है.

असल में यहां तक पहुंचने में मैंने भी बहुत पापड़ बेले है. बहुत उतार-चढ़ाव से गुजरा हूं. मैंने बहुत मेहनत की है. मुझे अच्छा नहीं लगता, जब मेरी तुलना लोग मेरे बच्चों के साथ करते है. उन्हें इंडस्ट्री में आये कुछ ही साल हुए है. अनुभव से ही काम में परिपक्वता आती है. पहले मुझे भी फिल्म न चलने, मीडिया के कुछ लिख देने पर खराब लगता था. पहले मैं ऐसा पौजिटिव सोच नहीं पाता था. समय के साथ-साथ समझदारी बढ़ी है.

सवाल-आपकी प्रोड्यूस की गयी फिल्म ‘गांधी माय फादर’ नहीं चली, ऐसे में आपने अपने आपको कैसे सम्भाला?

मैंने उस फिल्म को बहुत ही मेहनत से बनायी थी, पर दर्शकों ने उसे पसंद नहीं किया, पर उसे दो अवार्ड मिले. टीम के सब लोग इसके न चलने से परेशान थे, पर मैं अधिक घबराया नहीं, क्योंकि उस समय मैं फिल्म ‘स्लम डौग मिल्लेनियर’ की शूटिंग कर रहा था. उसमें मैंने बहुत कम काम किया, पर फिल्म औस्कर में चली गयी. मुझे एक मोरल बूस्ट मिला. ‘गांधी माय फादर’ की असफलता में मुझे ‘स्लम डौग मिल्लेनियर’ की सफलता हासिल हुई और मैंने बहुत कम दाम में मेरी फिल्म को हाल तक जाने दिया, जिससे मेरा तनाव कम हो गया.जीवन में ऐसा होता है और आप इस दौर से गुजर कर बहुत सारी बातें सीखते है.

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सवाल-क्या कभी राजनीति में आने की शौक रखते है ?

नहीं मुझे कोई शौक अभी नहीं है. मैं अपने परिवार, दोस्तों और काम के साथ बहुत खुश हूं, लेकिन कल क्या होने वाला है ये आज बताना संभव नहीं.

डैमोक्रेसी और भारतीय युवा

हौंगकौंग और मास्को में डैमोक्रेसी के लिए हजारों नहीं, लाखों युवा सड़कों पर उतरने लगे हैं. मास्को पर तानाशाह जैसे नेता व्लादिमीर पुतिन का राज है जबकि हौंगकौंग पर कम्युनिस्ट चीन का. वहां डैमोक्रेमी की लड़ाई केवल सत्ता बदलने के लिए नहीं है बल्कि सत्ता को यह जताने के लिए भी है कि आम आदमी के अधिकारों को सरकारें गिरवी नहीं रख सकतीं.

अफसोस है कि भारत में ऐसा डैमोक्रेसी बचाव आंदोलन कहीं नहीं है, न सड़कों पर, न स्कूलोंकालेजों में और न ही सोशल मीडिया में. उलटे, यहां तो युवा हिंसा को बढ़ावा देते नजर आ रहे हैं. वे सरकार से असहमत लोगों से मारपीट कर उन्हें डराने में लगे हैं. यहां का युवा मुसलिम देशों के युवाओं जैसा दिखता है जिन्होंने पिछले 50 सालों में मिडिल ईस्ट को बरबाद करने में पूरी भूमिका निभाई है.

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डैमोक्रेसी आज के युवाओं के लिए जरूरी है क्योंकि उन्हें वह स्पेस चाहिए जो पुराने लोग उन्हें देने को तैयार नहीं. जैसेजैसे इंसानों की उम्र की लौंगेविटी बढ़ रही है, नेता ज्यादा दिनों तक सक्रिय रह रहे हैं. वे अपनी जमीजमाई हैसियत को बिखरने से बचाने के लिए, स्टेटस बनाए रखने का माहौल बना रहे हैं. वे कल को अपने से चिपकाए रखना चाह रहे हैं, वे अपने दौर का गुणगान कर रहे हैं. जो थोड़ीबहुत चमक दिख रही है उस की वजह केवल यह है कि देश के काफी युवाओं को विदेशी खुले माहौल में जीने का अवसर मिल रहा है जहां से वे कुछ नयापन भारत वापस ला रहे हैं. हमारी होमग्रोन पौध तो छोटी और संकरी होती जा रही है. देश पुरातन सोच में ढल रहा है. हौंगकौंग और मास्को की डैमोक्रेसी मूवमैंट भारत को छू भी नहीं रही है.

नतीजा यह है कि हमारे यहां के युवा तीर्थों में समय बिताते नजर आ रहे हैं. वे पढ़ने की जगह कोचिंग सैंटरों में बिना पढ़ाई किए परीक्षा कैसे पास करने के गुर सीखने में लगे हैं. वे टिकटौक पर वीडियो बना रहे हैं, डैमोक्रेसी की रक्षा नहीं कर रहे.

उन्हें यह नहीं मालूम कि बिना डैमोक्रेसी के उन के पास टिकटौक की आजादी भी नहीं रहेगी, ट्विटर का हक छीन लिया जाएगा, व्हाट्सऐप पर जंजीरे लग जाएंगी. हैरानी है कि देशभर में सोशल मीडिया पोस्टों पर गिरफ्तारियां हो रही हैं और देश का युवा चुप बैठना पसंद कर रहा है. वह सड़कों पर उतर कर अपना स्पेस नहीं मांग रहा, यह अफसोस की बात है. देश का भविष्य अच्छा नहीं है, ऐसा साफ दिख रहा है.

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सर्दियों में ऐसे करें ऊनी कपड़ों की देखभाल

सर्दियों का मौसम धीरे-धीरे आ रहा है. वहीं लोगों ने अपने गर्म कपड़े भी निकालना शुरू कर दिया है, लेकिन सर्दियों में गर्म कपड़े यानी ऊनी कपड़ों की केयर करना जरूरी होता है. ताकि वह लंबे समय कर हमारे साथ रहे. ऊनी कपड़ों का रखरखाव करना आसान होता है, पर अगर उनकी केयर ठीक से न की जाए तो उनसे बीमारियों का भी खतरा रहता है. इसीलिए आज हम आपको कुछ टिप्स बताएंगे, जिनका इस्तेमाल करके आप अपने कपड़ों का रखरखाव ठीक से कर पाएंगे.

1. वौशिंग मशीन में धोने से बचें

स्वेटर को वौशिंग मशीन में धोने से बचें. वाशिंग मशीन में धोने से स्वेटर जल्दी पुराने हो जाते हैं. ऊनी कपड़ों को नए जैसा रखने के लिए उन्हें एक मुलायम ब्रश से झाड़ते रहें. उन्हें हवा के साथ धूप लगाना भी जरूरी होता है. ताकि उनमें फंगस लगने का खतरा कम रहे.

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2. दाग धब्बे छुड़ाने के लिए रगड़ें नहीं

स्वैटर में अक्सर दाग-धब्बे लग  जाते हैं, जिन्हें छुड़ाने के लिए रगड़ने के बजाए तुरंत ड्राई क्लीन कराएं. वहीं अगर धब्बा ज्यादा गहरा नहीं है तो उसे ऊनी कपड़ों के लिए बने डिटर्जेंट से साफ करें. इससे आपके कपड़े जल्दी साफ भी हो जाएंगे और कपड़े नए जैसे लगेंगे.

3. सुखाने का सही तरीका जानना है जरूरी

ऊनी कपड़ों को कभी भी तार पर लटकाकर नहीं सुखाने चाहिए. इससे उनकी शेप और साइज बिगड़ जाती है. इसीलिए कोशिश करें की ऊनी कपड़ों को कपड़े सुखाने वाले रैक में लटकाने की बजाय फैलाकर सुखाएं. इसके अलावा ऊनी कपड़ों की शिकन दूर करने के लिए स्टीम प्रेस का भी आप इस्तेमाल कर सकते हैं.

4. धूप लगाना है जरूरी

सबसे जरूरी बात ऊनी कपड़ों के इस्तेमाल के बाद उसे बिना धूप दिखाए, बक्से में न रखें. क्योंकि इसे फंगस और कीड़े फैलने का खतरा रहता है, जो कि हमें नुकसान पहुंचा सकता है. वहीं कपड़ों को बक्से में रखते समय नेफ्थलीन की गोलियां डालना न भूलें.

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वेडिंग लुक में ऐसे दिखें खूबसूरत

वेडिंग सीजन करीब है और इस दौरान लड़कियों को सब से ज्यादा चिंता अपने लुक को ले कर होती है. हर लड़की सब से अलग और बेहतरीन दिखना चाहती है. वेडिंग सीजन में औफिस पार्टी, दोस्तों के साथ पार्टी और फैमिली के साथ पार्टी का सिलसिला लगातार चलता रहता है. ऐसे में खुद को सब से स्पैशल दिखाना तो बनता है. दीवाली के समय तक हलकी ठंड की शुरुआत तो हो ही जाती है और यह सब से अच्छी बात है क्योंकि ऐसे मौसम में मेकअप स्मज नहीं होता और जल्दी सैट भी हो जाता है. चेहरे पर मेकअप का ग्लो भी जल्दी देखने को मिल जाता है. आइए, जानते हैं मेकअप आर्टिस्ट शिवानी भारद्वाज से कैसा हो वेडिंग मेकअप.

वेडिंग सीजन में ब्राइट कलर यानी चटक रंग के कपड़े महिलाएं ज्यादा पहनना पसंद करती हैं, उस के अनुसार मेकअप लाइट हो तो चेहरा ज्यादा खिलाखिला नजर आएगा. मेकअप करते समय कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है. कई महिलाएं केवल फाउंडेशन का ही इस्तेमाल करती हैं और उन्हें लगता है चेहरे पर ग्लो आ गया. लेकिन, सिर्फ फाउंडेशन के इस्तेमाल से चेहरा बिलकुल फ्लैट दिखने लगता है. इसलिए फीचर्स को शार्प करना बेहद जरूरी है तभी आप की खूबसूरती निखर कर आएगी. फीचर्स को शार्प करने के लिए 3 प्रोडक्ट का इस्तेमाल किया जाता है, ब्लशर, कंटूरिंग और हाईलाइटर. इन प्रोडक्ट्स के इस्तेमाल से चेहरा पहले से ज्यादा अट्रैक्टिव दिखने लगता है.

1. जब चेहरे को निखारना हो

मेकअप करने से पहले चेहरा क्लीन करें. फ्रैश चेहरे पर मेकअप करने से मेकअप आसानी से सैट हो जाता है. इस के बाद चेहरे पर मौइस्चराइजर लगाएं. चेहरे को सौफ्ट एवं फ्लालैस लुक देने के लिए फाउंडेशन से पहले प्राइमर का इस्तेमाल जरूर करें. अब जब आप फाउंडेशन का इस्तेमाल करेंगी तो आप के चेहरे पर एक नैचुरल ग्लो देखने को मिलेगा. फाउंडेशन का इस्तेमाल करने से पहले और करते वक्त एक बात का ध्यान रखना जरूरी है कि यह आप के स्किन कलर से मैच होना चाहिए और फाउंडेशन लगाते वक्त कान और गरदन को कवर जरूर करें. यदि आप के चेहरे पर ज्यादा दागधब्बे हैं तो आप कंसीलर का इस्तेमाल कर सकती हैं. चेहरे को परफैक्ट शेप और फिनिश देने के लिए ब्लशर, हाईलाइटर और कंटूरिंग का इस्तेमाल करना जरूरी होता है.

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2. चेहरे को दें परफैक्ट शेप

फाउंडेशन लगाने के बाद अकसर चेहरा फ्लैट दिखने लगता है. इसलिए, चेहरे को उभारने के लिए कंटूरिंग जरूरी है. कंटूरिंग से आप चेहरे को जैसा चाहे वैसा लुक दे सकती हैं. यह फेस को पतला दिखाने के साथ फीचर्स को भी हाईलाइट करता है. कंटूरिंग हमेशा कान की शुरुआत और होंठों के कौर्नर तक जो लाइन बनती है उस पर की जाती है. कंटूरिंग के बाद गालों पर ब्लशर लगाएं. चेहरे पर शाइन लाने के लिए हाईलाइटर को अपने चीकबोंस, अपनी आईब्रोज के ऊपर इस्तेमाल करें. हाईलाइटर लगाने से पहले अपनी आईब्रोज को सेट कर लें.

इस से आप का चेहरा तैयार हो जाएगा. इस के बाद बारी आती है आंखों को सजाने की. अगर आप ने आंखों का सही मेकअप किया है तो आप की खूबसूरत आंखों की खूबसूरती और बढ़ जाती है.

3. आई मेकअप हो तो ऐसा

आई मेकअप आप की आंखों पर ज्यादा समय तक टिका रहे इस के लिए सब से पहले आंखों को औयल फ्री करने के लिए हलका प्राइमर लगाना जरूरी होता है. प्राइमर आंखों के ऊपर लगाएं और इसे आईब्रो तक फैलाएं. प्राइमर का इस्तेमाल आई शैडो को खराब होने और उस पर क्रैक पड़ने से बचाता है.

4. पीकौक टच आई मेकअप

आंखों को पीकौक टच लुक देने के लिए सब से पहले ब्राउन आईशैडो लगाएं. उस के बाद पर्ल और ग्रीन कलर के आईशैडो को आपस में मिला कर आईलिड पर लगाएं. शैडो को लगाने की शुरूआत आंखों के बाहरी तरफ वाले कोने से करें और फिर उसे ब्लैंड करते हुए दूसरे कोने तक ले जाएं. ब्लू आई लाइनर और मसकारा से इस लुक को पूरा करें.

5. स्मोकी आई लुक मेकअप

स्मोकी आई लुक देने के लिए आंखों पर पहले डार्क मैट आई शैडो लगाएं. फिर ब्लैक कलर के काजल को आंखों पर ब्लैंड करें. उस के बाद ब्लैक और ब्राउन आईशैडो को एकसाथ मिला कर आईलिड पर लगाएं. अब इस के बाद व्हाइट गोल्ड या कौपर कलर से हाईलाइटिंग करें और ऊपरनीचे की पलकों पर मस्कारा लगाएं.

6. बेबी पिंक आई मेकअप

बेबी पिंक आई मेकअप के लिए आंखों पर मैट गोल्डन आई शैडो का इस्तेमाल करें, फिर गुलाबी पिंक आई शैडो को लगा कर ब्लैंड करें. जब अच्छे से ब्लैंड हो जाए तब हलका व्हाइट पिंक आई शैडो इस के ऊपर लगाएं, अच्छे से ब्लैंड करने के बाद ब्लैक आई लाइनर से लुक को पूरा करें.

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7. न्यूड आई मेकअप

आज का ट्रैंडी नो मेकअप लुक सभी लड़कियों को बेहद पसंद आता है. न्यूड आई मेकअप के लिए लाइट ब्राउन आईशैडो को आंखों पर लगाएं और अच्छे से ब्लैंड करें. ब्लैंडिंग के बाद मोटा आई लाइनर लगा लें. इस से आप की आंखें बहुत आकर्षक दिखेंगी.

8. होंठों को दे नया रंग

ड्राई लिप्स पर लिपस्टिक की फिनिशिंग सही ढंग से नहीं आ पाती, इसलिए लिपस्टिक लगाने से पहले होंठों पर लिप बाम को जरूर लगाएं. नैचुरल लुक के लिए न्यूड शैड के साथ जाएं या फिर एक ज्यादा बोल्ड लुक के लिए आप बरगंडी, मैरून, रैड, हौट पिंक और डार्क ब्राउन लिपस्टिक शेड को चुन सकती हैं. लिपस्टिक को हमेशा अपनी लिप के सैंटर से स्टार्ट करें और कलर को बाहर की तरफ ब्लैंड करें.

ब्रेकअप के बाद डिप्रैशन से बचें ऐसे

दिल टूटने की आवाज नहीं होती, पर दर्द बेहिसाब होता है. प्यार जैसी भावना में जब विश्वास टूटता है और साथ छूटता है, तो उस दर्द को बरदाश्त करने की ताकत तकरीबन खत्म हो जाती है. और यही वजह है कि प्यार में हारे लोग गहरे अवसाद में चले जाते हैं या जिंदगी से हार कर अपनी जान तक खत्म कर लेते हैं.

करीब 2 साल तक रिलेशनशिप में रहने के बाद मीता का उस के बौयफ्रैंड से ब्रेकअप हो गया. ब्रेकअप के पीछे की वजह जो भी हो, पर अपने बौयफ्रैंड से ब्रेकअप का सदमा मीता  झेल नहीं पाईर् और डिप्रैशन में चली गई. यह सोचसोच कर उस की आंखों से आंसू गिरते रहते थे कि जिसे दिलोजान से प्यार किया उसी ने उस का दिल तोड़ दिया, आखिर क्यों? उसे लगता था जैसे उस के शरीर से उस का एक अंग निकाल लिया गया हो, ऐसा दर्द महसूस होता था उसे. मर जाना चाहती थी वह और शायद मर भी गई होती अगर दोस्त और परिवार का सपोर्ट न मिला होता.

नेहा कक्कड़, काफी समय से अपनी लवलाइफ को ले कर सुर्खियों में हैं. कुछ समय पहले खबर आईर् थी कि नेहा का अपने बौयफ्रैंड हिमांश कोहली से ब्रेकअप हो गया है. ब्रेकअप के बाद से ही नेहा कक्कड़ इतना टूट चुकी थीं कि इंडियन आइडल के सैट पर जोरजोर से रोने लगती थीं. नेहा कक्कड़ ने खुलासा किया था कि वे डिप्रैशन में हैं. इस बात का खुलासा नेहा ने अपने इंस्टाग्राम पर किया था.

हाल ही में विक्की कौशल की पर्सनल लाइफ को ले कर खबरें आई थीं कि उन का अपनी गर्लफ्रैंड हरलीन सेठी से ब्रेकअप हो गया है. दोनों एक साल से रिलेशनशिप में थे. वजह तो अभी नहीं पता, पर पिंकविला की रिपोर्ट की मानें तो विक्की से अलग होने का सदमा हरलीन  झेल नहीं पा रही हैं और वे डिप्रैशन में चली गई हैं. अभी वे ज्यादा से ज्यादा समय अपने परिवार के साथ बिता रही हैं.

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कुछ अध्ययनों से संकेत मिलता है कि रोमांटिक ब्रेकअप के कारण 5 में से एक किशोर अवसादग्रस्त हो जाता है.

कंसल्टैंट साइकोलौजिस्ट डा. राशि आहूजा के अनुसार, आजकल के दौर में रिलेशनशिप बनना और उस का टूटना (खासतौर पर युवाओं में) बेहद आम हो गया है. साथ ही आजकल ब्रेकअप और तलाक आदि की संख्या में भी इजाफा हुआ है. ऐसे में बेहद जरूरी है कि हम खुद पर थोड़ा ध्यान दें. किसी रिश्ते के टूटने पर हमारे दिल और दिमाग पर गहरा असर पड़ता है. लेकिन जो चीज खत्म हो चुकी है उस बारे में खुद को कोसने और दोष देने से कोई फायदा नहीं है. ब्रेकअप के बाद अकसर लोग बाहर निकलना बंद कर देते हैं और लोगों से मेलजोल भी कम कर देते हैं जिस के कारण वे और अकेले पड़ जाते हैं और डिप्रैशन का शिकार हो जाते हैं.

हर कोई नहीं जानता है कि कैसे ब्रेकअप के दर्द से बाहर निकलें, ब्रेकअप होने के बाद क्या करें और इस कारण व्यक्ति और डिप्रैशन में चला जाता हैं. लेकिन रोमांटिक ब्रेकअप के बाद डिप्रैशन से कैसे उबरें, यह जानते हैं इन टिप्स से.

अपनी भावनाओं को दबाएं नहीं

रोना आप की कमजोरी का संकेत नहीं है, इसलिए आप को कभी भी अपनी भावनाओं को दबाना नहीं चाहिए. भावनाओं को बह जाने दीजिए. इस से आप बेहतर महसूस करेंगे.

प्यार से जुड़ी चीजों को देखना और सोचना बंद कर दें

ब्रेकअप के बाद वही सब प्यार से जुड़ी बातें दिमाग में न चाहते हुए आती रहती हैं. लेकिन इस का अब कोई फायदा नहीं. तो सब से पहले आप उन सब बीती बातों के बारे में सोचना बंद कर दें. क्योंकि आप के सोचने से कुछ बदलने वाला नहीं है. इसलिए उस प्यार से जुड़ी सारी बातें, जैसे एक्स बौयफ्रैंड के दिए गिफ्ट, उस के साथ बिताए वे लमहे, सब भुला दें. वह फेवरेट रैस्तरां, कौफी शौप, जहां आप दोनों अकसर जाते थे, वहां जाने के बजाय एक नई जगह खोजें. जिन गीतों को आप ने एकसाथ सुना, उन्हें सुनने से बचें. जितना हो सके अपने जीवन से उस की उपस्थिति को मिटा दें. और नए सिरे से सोचना शुरू कर दें.

दोस्तों से बातें करें

अधिकांश लोग ब्रेकअप के बाद अकेले रहना पसंद करते हैं. लेकिन जान लें कि सब से ज्यादा सुकून आप को अपने दोस्तों के पास ही मिलता है. ब्रेकअप के बाद अगर आप मानसिक रूप से परेशान हैं, तो दोस्तों से मिलें और उन से बातें करें. ब्रेकअप के बाद जब आप अपने मन की बात दोस्तों से शेयर करेंगे तो आप को मानसिक तौर पर शांति मिलेगी और आप ज्यादा सुकून महसूस करेंगे.

हौबी को बढ़ावा दें

हर इंसान की कोई न कोई हौबी होती है. लेकिन, आप यह बात नहीं जानते होंगे कि दुख में हमारी सोच और गहरी हो जाती है जिस के कारण क्रिएटिविटी और बढ़ जाती है. इसलिए आप अपनी पसंद की हौबी चुनें, जैसे किसी को संगीत सुनना अच्छा लगता है, किसी को डांस, तो किसी को पेंटिंग करना आदि. इस से आप का मन बहलेगा और बेकार की बातों से ध्यान हटेगा. आप चाहें तो अपनी मनपसंद जगह पर घूमने भी जा सकते हैं.

कैरियर को महत्त्व दें

यंग एज में प्यार या ब्रेकअप होने पर लोगों का पढ़ाई से मन उचटने लगता है, मतलब कि वे अपने कैरियर को महत्त्व देना कम कर देते हैं. मगर प्यार के साथ इंसान के लिए कैरियर भी बहुत जरूरी है. इसलिए अगर आप ब्रेकअप के गम से उबरना चाहते हैं, तो अपने कैरियर पर फोकस करें. अपनेआप उस तरफ से, जिस से आप को दर्द हो रहा है, ध्यान हटने लगेगा.

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नए दोस्त बनाएं

नए दोस्त बनाएं, खूब मजेदार वीडियो देखें, गेम खेलें. उन दोस्तों से दूरी बना लें जो आप को पुरानी बातें याद दिला कर दुखी करें. हो सकता है नए दोस्त पुराने गम को दूर कर दें और आप की जिंदगी में फिर से रौनक आ जाए.

परिवार के साथ समय बिताएं

परिवार का साथ हो तो बड़े से बड़ा गम और परेशानियां दूर हो जाती हैं. ब्रेकअप के बाद इंसान पूरी तरह से टूट जाता है, लेकिन परिवार का साथ हो तो बुरा वक्त भी निकल जाता है. इसलिए ब्रेकअप के बाद ज्यादा से ज्यादा समय अपने परिवार के साथ बिताइए.

अपनेआप को व्यस्त रखें

अकेलापन दुख ज्यादा देता है, इसलिए अकेले रहने से बचें. आप जितना खुद को व्यस्त रखेंगे, उतनी जल्दी ब्रेकअप के गम से उबर पाएंगे. ऐसे बहुत से काम होंगे जिन्हें आप रिलेशनशिप में रहने के दौरान टालते जाते होंगे. उन कामों की लिस्ट बनाएं और उन्हें पूरा करें. पुराने और भूल चुके दोस्तों को फोन करें, उन से मिलें, बातें करें, फिल्म देखने जाएं, मनपसंद किताबें पढ़ें. किताबें हमारी सब से अच्छी दोस्त होती हैं. कुछ भी सार्थक करते रहें, ताकि आप के पास खाली समय ही न बचे.

एक्सरसाइज करें

एक्सरसाइज स्ट्रैस को खत्म करने का सब से आसान तरीका है. इस से आप के मन को शांति मिलेगी और पौजिटिव सोच भी आएगी और आप ब्रेकअप की यादों से बाहर आ सकेंगे.

लक्ष्य बनाएं

जिंदगी न मिलेगी दोबारा, यह सच है. लेकिन सच्चा प्यार फिर नहीं मिल सकता, यह सच नहीं है. इस एक रिश्ते के खत्म हो जाने से जिंदगी खत्म नहीं हो जाती. जो बीत गया सो बीत गया. आप कभी भी यह मत सोचिए कि आप की लाइफ बरबाद हो गई. सोचिए, हो सकता है लाइफ बर्बाद होने से बच गई. आप को एक नया मौका मिला है अपनी लाइफ खुल कर जीने का. तो खोलिए अपने पंख और उड़ान भरिए जी भर कर किसी की परवा किए बगैर. जीवन में आगे बढ़ने के लिए कोई लक्ष्य बनाइए और उसे हासिल करने की ठान लीजिए. इंसान के वश में सबकुछ है, बस, सोच होनी चाहिए.

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बाला फिल्म रिव्यू: जानें क्या है आयुष्मान की इस फिल्म में खास

रेटिंगः साढ़े तीन स्टार

निर्माताः दिनेश वीजन

निर्देशकः अमर कौशिक

कलाकारः आयुष्मान खुराना, भूमि पेडणेकर, यामी गौतम, दीपिका चिखालिया, धीरेंद्र कुमार, सीमा पाहवा, जावेद जाफरी, सौरभ शुक्ला, अभिषेक बनर्जी व अन्य.

अवधिः दो घंटे सत्रह मिनट

हमारे यहां शारीरिक रंगत,  मोटापा,  दुबलापन, छोटे कद आदि के चलते लड़कियों को जिंदगी भर अपमान सहना पड़ता है. वह हीनग्रंथि कर शिकार होकर खुद को बदलने यानी कि चेहरे को खूबसूरत बनाने के लिए कई तरह की फेअरनेस क्रीम लगाती हैं, कद बढ़ाने के उपाय, मोटापा कम करने के उपाय करती रहती है. तो वही लड़के अपने सिर के गंजेपन से मुक्ति पाने के उपाय करते नजर आते हैं. फिल्मकार अमर कौशिक ने इन्ही मुद्दों को फिल्म ‘बाला’ में गंजेपन को लेकर कहानी गढ़ते हुए जिस अंदाज में उठाया है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं. अंततः वह सदियों से चली आ रही इन समस्यओं से मुक्ति का उपाय देते हुए कहते हैं कि ‘खुद को बदलने की जरुरत क्यों? अपनी कहानी में वह काली लड़की के प्रति समाज के संकीर्ण रवैए को बताने में वह पीछे नही रहते.

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कहानीः

यह कहानी कानपुर निवासी बालमुकुंद शुक्ला उर्फ बाला (आयुष्मान खुराना) के बचपन व स्कूल दिनों से शुरू होती है. जब उसके सिर के बाल घने और सिल्की होते थे और वह अपने बालों पर इस कदर घमंड करता था कि स्कूल में हर खूबसूरत लड़की उसकी दीवानी थी. वह भी श्रुति का दीवाना था. मगर गाहे बगाहे बाला अपनी सबसे अच्छी दोस्त लतिका के काले चेहरे को लेकर उसका तिरस्कार भी करता रहता था. स्कूल में कक्षा के बोर्ड पर वह अपने गंजे शिक्षक की तस्वीर बनाकर उसे तकला लिखा करता था. मगर पच्चीस साल की उम्र तक पहुंचते ही बाला के सिर से बाल इस कदर झड़े कि वह भी गंजे हो गए. उनकी बचपन की प्रेमिका श्रुति ने अन्य युवक से शादी कर ली. समाज में उसका लोग मजाक उड़ाने लगे हैं. बाला अब एक सुंदर बनाने वाली क्रीम बनाने वाली कंपनी में नौकरी कर रहे हैं. इसके प्रचार के लिए वह औरतों के बीच अपने अंदाज में बातें कर प्रोडक्ट बेचते हैं. एक बार लतिका (भूमि पेडणेकर) भी अपनी मौसी के साथ पहुंच जाती है. और बाला के सिर से टोपी हटाकर कर लोगों के सामने उसका गंजापन ले आती है. बाला का मजाक उड़ता है. प्रोडक्ट नही बिकता. परिणामतः नौकरी मे उसे मार्केटिंग से हटाकर आफिस में बैठा दिया जाता है.

लतिका ने ऐसा पहली बार नही किया. लतिका स्कूल दिनों से ही बाला को बार-बार आईना दिखाने की कोशिश करती रही है, वह कहती रही है कि खुद को बदलने की जरुरत क्यों हैं. मगर बाला लतिका से चिढ़ता है. पेशे से जानी- मानी दबंग वकील लतिका काले रंग के कारण नकारी जाती रही है.मगर उसने कभी खुद को हीन महसूस नहीं किया.

बाला के माता (सीमा पाहवा) व पिता (सौरभ शुक्ला) भी परेशान हैं. क्योंकि बाला की शादी नहीं हो रही है. बालों को सिर का ताज समझने वाला बाला, बालों को उगाने के लिए सैकड़ों नुस्खे अपनाता है, वह हास्यास्पद व घिनौने हैं. मगर बाला को यकीन है कि उसके बालों की बगिया एक दिन जरूर खिलेगी. पर ऐसा नहीं होता. अंततः वह बाल ट्रांसप्लांट कराने के लिए तैयार होता है, पर उसे डायबिटीज है और डायबिटीज के कारण पैदा हो सकने वाली समस्या से डरकर वह ऐसा नही कराता. अपने बेटे को निराश देखकर उनके पिता (सौरभ शुक्ला) बाला के लिए दिल्ली से विग मंगवा देते हैं. विग पहनने से बाला का आत्म विश्वास लौटता है. इसी आत्मविश्वास के बल पर लखनउ की टिक टौक स्टार व कंपनी की ब्रांड अम्बेसेडर परी (यामी गौतम) को अपने प्रेम जाल में  फंसाकर उससे शादी कर लेता है. मगर सुहागरात  से पहले ही परी को पता चल जाता है कि उसका पति बाला गंजा है. परी तुरंत ससुराल छोड़कर मायके पहुंच जाती है. अपनी मां (दीपिका चिखालिया) की सलासह पर वह अदालत में बाला पर धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए शादी को निरस्त करने की गुहार लगाती है.बाला अपना मुकदमा लड़ने के लिए वकील के रूप में लतिका को ही खड़ा करता है. पर अदालती काररवाही के दौरान बाला को सबसे बड़ा ज्ञान मिलता है.

लेखन व निर्देशनः

अमर कौशिक ने लगभग हर लड़की के निजी जीवन से जुड़ी हीनग्रथि और समाज के संकीर्ण रवैए को हास्य के साथ बिना उपदेशात्मक भाषण के जिस शैली में फिल्म में पेश किया है, उसके लिए वह बधाई के पात्र हैं. मगर इंटरवल के बाद भाषणबाजी पर जोर देकर फिल्म को थोड़ा कमजोर कर डाला. फिल्म के संवाद कहीं भी अपनी मर्यादा नहीं खोते और न ही अश्लील बनते हैं. कुछ संवाद बहुत संदर बने हैं. अमर कौशिक ने महज फिल्म बनाने के लिए गंजेपन का मुद्दा नहीं उठाया, बल्कि वह इस मुद्दे को गहराई से उठाते हुए इसकी तह तक गए हैं. अमूमन फिल्म की कहानी व किरदार जिस शहर में स्थापित होते हैं, वहां की बोलचाल की भाषा को फिल्मकार मिमिक्री की तरह पेश करते रहे हैं, मगर इस फिल्म में कानपुर व लखनउ की बोलचाल की भाषा को यथार्थ के धरातल पर पेश किया गया है. फिल्मकार ने अपरोक्ष रूप से ‘टिकटौक स्टारपना’ पर भी कटाक्ष किया है. फिल्मकार ने इमानदारी के साथ इस सच को उजागर किया है कि जो लड़की महज दिखावे की जिंदगी जीती है, वह जिंदादिल नही हो सकती.

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अभिनयः

बाला के किरदार में आयुष्मान खुराना ने शानदार अभिनय किया है. दर्शक गंजेपन को भूलकर सिर्फ बाला के गम का हिस्सा बनकर रह जाता है. बाला की गंजेपन के चलते जो हताशा है, उसे दर्शकों के दिलों तक पहंचाने  में आयुष्मान खुराना पूरी तरह से सफल रहे हैं. पर बौलीवुड के महान कलाकारों की मिमिक्री करते हुए कुछ जगह वह थकाउ हो गए हैं. भूमि ने साबित कर दिखाया कि सांवले /काले रंग के चहरे वाली लड़की लतिका के किरदार को उनसे बेहतर कोई नहीं निभा सकता था. कई दृश्यों में वह चिंगारी पैदा करती हैं. टिकटौक स्टार परी के किरदार में यामी गौतम सुंदर जरुर लगी हैं, मगर कई दृश्यों में उन्होंने ओवर एक्टिंग की है. छोटे से किरदार में दीपिका चिखालिया अपनी उपस्थिति दर्ज करा जाती हैं. सौरभ शुक्ला, सीमा पाहवा, जावेद जाफरी, धीरेंद्र कुमार ने ठीक ठाक अभिनय किया है.

सैटेलाइट शंकर फिल्म रिव्यू: ज्यादा आशाएं नहीं जगाती फिल्म

रेटिंगः दो स्टार

निर्माताः मुराद खेतानी और अश्विन वर्दे

निर्देशकः इरफान कमल

कलाकारः सूरज पंचोली,मेघा आकाश, उपेंद्र लिमये,अनिल के रेजी,पालोमी घोष,राज अर्जुन व अन्य.

अवधिः दो घंटे बीस मिनट

फिल्मकार इरफान कमल फिल्म‘‘सेटेलाइट’’शंकर में भारतीय सेना के एक जवान की जिंदगी की व उसकी प्रेम कथा लेकर आए हैं, जो कि एक बेहतरीन रोमांचक और रोमांटिक फिल्म बन सकती थी, मगर  फिल्मकार ने उसे देशभक्त और हर मुसीबत के समय लोगों की मदद के लिए कूद पड़ने वाले हीरो के रूप में पेश करने के चक्कर में फिल्म को चैपट कर डाला.

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कहानीः

कहानी के केंद्र में केरला निवासी भारतीय सेना का जवान शंकर (सूरज पंचोली) है, जो कि कश्मीर सीमा पर कार्यरत है. उसकी बटालियन से जुड़े लोग उसे सैटेलाइट के नाम से जानते हैं, क्योकि उसके पास बचपन में उसके पिता द्वारा दिया गया एक उपकरण है, जिसकी मदद से वह किसी की भी मिमिक्री करके लोगों का मनोरंजन भी करता रहता है. वह केरला का रहने वाला है,मगर उसे हिंदी सहित कई दूसरे राज्यों की भाषाओं में भी महारत हासिल है. सैटेलाइट शंकर दूसरों की आवाजें निकालकर कई बार विषम परिस्थिति को भी अनुकूल बनाकर लोगों के बीच खुशियों की बहार ले आता है. सीमा पर गोलीबारी में घायल होने के बाद जब आर्मी अस्पताल के डाक्टर शंकर को आठ दिन अस्पताल में आराम करने की हिदायत देते हैं, तो वह अपने वरिष्ठ से बात कर आठ दिन अस्पताल में बिताने की बजाय अपने घर जाकर अपनी मां की आंख का आपरेशन कराकर वापस आने की आठ दिन की छुट्टी ले लेता है. उसके वरिष्ठ उसे सैनिक की शपथ दिलवाते हैं कि आठवें दिन वह अपने बेसकैंप सुबह मौजूद रहेगा.

जब शंकर अपने शहर पोलाची के लिए रवाना होता है, तो उसकी बटालियन के साथी उसे अपने घरों के लिए संदेश और तोहफे उसके हाथ से भिजवाते हैं. घर जाते हुए ट्रेन में वह अपनी मां के कहने पर नर्स प्रमिला (मेघा आकाश) से बात कर उसे अपने दोस्त श्रीधर से बात करने के लिए कहता है. क्योंकि उसे प्रमिला की तस्वीर पसंद नहीं आयी थी. पर श्रीधर की बातें सुनकर शंकर को अपनी गलती का अहसास होता है. आगे चलकर रास्ते में वह पुनः प्रमिला से बात करते हैं.

कश्मीर से पोलाची जाते समय उसका एक सैनिक की तरह मददगार और निस्वार्थ स्वभाव उसके लिए मुसीबतें खड़ी कर देता है. एक बंगाली बुजुर्ग दंपति को उनकी सही ट्रेन में बैठाने के चक्कर में उसकी अपनी ट्रेन छूट जाती है. अब उसे पठानकोट टैक्सी  से जाकर उसी ट्रेन को पकड़ना है. टैक्सी वाला दो हजार रूपए मांगता है. पर उसकी मुलाकात एक विडियो ब्लौगर मीरा ( पालोमी घोष) से होती है, जिसके साथ मिलकर वह टैक्सी माफिया का पर्दाफाश करता है. वहां भी उसकी ट्रेन छूट जाती है. वह सड़क के रास्ते चलकर पंजाब में अपने साथी के घर उसका समान पहुंचाता है. वह अपने दोस्त की आवाज में बातें करके उसकी कोमा में जा चुकी मां को होश में लाता है,फिर वह आगरा फोर्ट पहुंचाता है, पर उसे एक बार फिर ट्रेन छोड़नी पड़ती है,क्योंकि वह दुर्घटनाग्रस्त बस में फंसे लोगों को मौत के मुंह से बचाने लग जाता है. फिर ग्वालियर के नजदीक के एक शहर में अपनी बटालियन के साथी अनवर के घर जाकर भाइयों के आपसी मनमुटाव को दूर करता है. फिर महाराष्ट् में वह टेंपो ड्राइवर को गुंडों से बचाता है. इस समाज सेवा के चक्कर में अब सैटेलाइट शंकर के पास अपने बेस कैंप में पहुंचने में सिर्फ दो दिन बचे हैं. इसलिए अब वह अपनी मां के पास जाने की बजाय वापस लौटना चाहता है. पर एक शहीद महाड़िक की पत्नी के कहने पर मां के पास जाने का मन बना लेता है. उसी वक्त प्रमिला से उसकी बात होती है. वह अपनी समस्या बताता है. तब मेघा, शंकर को न केवल उसकी मां से मिलने की तरकीब बताती है, बल्कि उसके वापस कश्मीर लौटने का रास्ता भी सुझाती है. मेघा व शंकर की मुलाकात हो जाती है. शंकर, मेघा को दिल दे बैठता है. शंकर अपनी मां से मिलकर, उनकी आंखों का आपरेशन करवाकर किस तरह आर्मी बेस में हाजिर होता है, वह अपने आप में रोचक है.

निर्देशनः

फिल्मकार इरफान कमल ने यदि थोड़ी सावधानी के साथ इस फिल्म का निर्माण किया होता,तो यह एक बेहतरीन फिल्म बन सकती थी. क्योंकि वर्तमान समय में हमारे देश को जिस तरह के नायक की जरुरत है, फिल्म में उसी तरह देश को अखंड करने वाले नायक की कहानी बयां की गयी है. मगर फिल्म की शुरूआत से ही फिल्मकार इशारा कर देते है कि वह विषयवस्तु के साथ गंभीर नहीं है. पहले दृश्य में गोलीबार के दृश्य को जिस तरह से मजाकिया अंदाज में पेश किया गया,उसे सही नही ठहराया जा सकता. फिल्मकार ने अतिशयोक्ति अलंकार का उपयोग करते हुए एक सैनिक को निजी जीवन में भी नायक बताने के चक्कर में फिल्म का गुड़गोबर कर डाला. फिल्म की पटकथा कई जगह मैलोड्रामैटिक हो गयी है. इंटरवल से पहले फिल्म बेवजह लंबी कर दी गयी है, इसे एडीटिंग टेबल पर कसने की जरुरत थी. एक ही फिल्म में आपसी भाईचारा, भ्रष्टाचार को दूर करने सहित तमाम सामाजिक मुद्दे रखकर फिल्म को चूंचूं का मुरब्बा बना दिया गया. इंटरवल के बाद फिल्म कुछ ठीक हो जाती है,जब सैटेलाइट शंकर के रोमांस व सोशल मीडिया द्वारा शंकर की मदद के दृश्य रोचक बने हैं. फिल्मकार ने यदि एक सैनिक की प्रेम कहानी को कुछ ज्यादा तवज्जो दी होती,तो भी फिल्म रोचक बन सकती थी. वीडियो ब्लागर के किरदार को भी अतशयोक्तिपूर्ण और कई जगह अति बचकाना बना दिया गया है. फिल्म में जितने भी मुद्दे उठाए गए हैं,वह अपना प्रभाव डालने में असफल रहे हैं.  फिल्म की लंबाई हर हाल में कम की जानी चाहिए थी.

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अभिनयः

जहां तक अभिनय का सवाल है,तो चार साल बाद सूरज पंचोली ने इस फिल्म से वापसी की है. 2015 में वह असफल फिल्म ‘हीरो’ में नजर आए थे. सूरज पंचोली ने एक्शन व नृत्य के दृश्यों में अच्छा काम किया है, मगर संवाद अदायगी सहित इमोशनल दृश्यों के लिए उन्हे अभी और मशक्कत करने की जरुरत है.  प्रमिला के किरदार में दक्षिण भारत की अदाकारा मेघा आकाश सुंदर व प्यारी लगी हैं.  उनकी संवाद अदायगी आपको अपना बना लेती है. सूरज पंचोली और मेघ आका की औन स्क्रीन केमिस्ट्री बहुत क्यूट है. वीडियो ब्लागर के किरदार में पालोमी घोष ने ठीक ठाक अभिनय किया है,मगर कई जगह उन्होने ओवर एक्टिंग की है.

क्या खत्म हो जाएगी ‘कार्तिक-नायरा’ की लव स्टोरी? ‘ये रिश्ता’ में आएगा बड़ा ट्विस्ट

स्टार प्लस का सीरियल ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ से जहां फैंस के दिल में जगह बनाने वाले ‘नायरा और कार्तिक’ यानी शिवांगी जोशी और मोहसिन खान पौपुलर हो गए हैं तो वहीं अब शो के मेकर्स ने इन पौपुलर्स को स्टार्स को रिप्लेस करने का फैसला कर लिया है. आइए आपको बताते हैं क्या सच में रिप्लेस हो जाएंगे ‘कार्तिक-नायरा’…

शो के प्रोड्यूसर ने कही ये बात…

हाल ही में ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ के प्रोड्यूसर रंजन साहनी ने शो के बारे में मीडिया से बात करते हुए बताया है कि साल 2020 के फरवरी महीने में वो ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ में एक लम्बा लीप लेने जा रहे हैं, जिससे साफ लग रहा है की लीप के बाद शो से ‘कार्तिक और नायरा’ के किरदार को खत्म कर दिया जाएगा.

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2020 में क्या हो जाएगा ‘कार्तिक-नायरा’ का एक्जिट

प्रोड्यूसर रंजन साहनी के अनुसार, ‘साल 2020 के फरवीर महीने में आना वाला लीप पक्का है, जिसे कोई भी नहीं टाल सकता है. कोई भी शो से बड़ा नहीं है. यह मेरे करियर का सबसे बड़ा शो है और शो में आना यह लीप भी सबसे बड़ा होगा. यह एक बोल्ड लेकिन सबकी मर्जी से लिया गया फैसला है. हम 2020 में एक नई शुरूआत करने जा रहे हैं. मैं भविष्य में पहले की गई गलतियां नहीं दोहराऊंगा.’

फैंस को होगा दुख

‘कार्तिक-नायरा’ के लाखों फैंस उन्हें शो में साथ देखने के सपने देख रहे हैं, जिसके लिए वह सोशल मीडिया पर दोनों को प्रमोट करने का एक भी मौका नही छोड़ते, लेकिन ‘कार्तिक-नायरा’ के एक्जिट होने की इस खबर से फैंस को काफी झटका लगने वाला है.


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बता दें, शो में इन दिनों काफी ट्विस्ट एंड टर्न्स आ रहे हैं, ‘नायरा-कार्तिक’ एक दूसरे के करीब आ रहे हैं. वहीं ‘कार्तिक’ की वाइफ यानी ‘वेदिका’ शो से एक्जिट होने के बाद दोनों की शादी हो गई है, जिसके बाद देखना है कि क्या ‘कार्तिक-नायरा’ के फैंस शो से दोनों की एक्जिट होने देंगे.

मूंग दाल की बरफी

अगर आप फेस्टिवल में मीठा खाने के शौकीन हैं, लेकिन हेल्दी न होने के कारण नही खा रहे हैं तो ये रेसिपी आपके काम की है. आज हम आपको टेस्टी और हेल्दी मूंग दाल की बरफी के बारे में बताएंगे, जिसे आप आसानी से किसी भी फेस्टिवल या डेजर्ट के रूप में परोस सकती हैं.

हमें चाहिए

1 कप धुली मूंग दाल 5-6 घंटे पानी में भिगोई हुई

1 कप देशी घी

1 कप चीनी

1 कप पानी

50 ग्राम खोया

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1/4 छोटा चम्मच इलायची पाउडर

2 बड़े चम्मच रोस्टेड बादाम लंबे टुकड़ों में कटे

जरूरतानुसार चांदी वर्क.

बनाने का तरीका

मूंग दाल को दरदरा पीस लें. कड़ाही में घी और दाल को मिला कर भूरा होने तक धीमी आंच पर रखें. दाल भुन जाने पर उसे दूसरे बरतन में ठंडा होने के लिए रख दें. अब कड़ाही में खोया डाल कर उसे नरम होने तक भूनें. फिर भुना खोया और इलायची पाउडर मूंग दाल में मिला दें. एक पैन में चीनी और पानी डाल कर धीमी आंच पर शुगर सिरप तैयार कर उसे तुरंत मूंग दाल मिश्रण में मिला कर ग्रीस की प्लेट में सैट करें. फिर चांदी वर्क और बादाम के टुकड़ों से सजा कर इच्छानुसार पीस काट कर परोसें.

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