घर का भूला भाग-2

पिछला भाग- घर का भूला भाग-1

लेखिका- डा. छाया श्रीवास्तव

कुछ दिनों बाद आभा को फिर झटका लगा, देखा कि वह मम्मी की महंगी साड़ी और चमड़े की चप्पल पहने रसोई में खाना बना रही है. उस का मन जल उठा. उस की मम्मी कभी चमडे़ की चप्पल पहन कर रसोई में नहीं जाती थीं और यह नवाबजादी मजे से पहने खड़ी है. वह तेज स्वर में बोली, ‘‘मालती, तुम चमडे़ की चप्पल पहने खाना बना रही हो? यह मम्मी की महंगी साड़ी और यह नई पायल तो मम्मी करवा चौथ पर पहनने को लाई थीं, ये चीजें तुम्हें कहां मिलीं?’’ क्रोध से उस का मुंह लाल हो गया.

‘‘ये सब तुम अपने पापा से पूछो बेबी, उन्होंने मुझ से अलमारी साफ करने को कहा तो पौलीथीन की थैली नीचे गिरी. मैं ने साहब को उठा कर दी तो वह बोले तुम ले लो मालती, आभा तो यह सब नहीं पहनती, तुम्हीं पहन लो. उन्होंने ही सैंडिल भी दी, सो पहन ली.’’

‘‘देखो, यहां ये लाट साहिबी नहीं चलेगी, चप्पल उतार कर नंगे पांव खाना बनाओ समझी,’’ वह डांट कर बोली तो मालती ने सकपका कर चप्पल आंगन में उतार दीं. अमित भी बोल उठा, ‘‘पापा, यह आप क्या कर रहे हैं? क्या अब मम्मी के जेवर भी इस नौकरानी को दे देंगे? उन की महंगी साड़ी, सैंडिल भी, ये सब क्या है?’’

‘‘अरे, घर का पूरा काम वह इतनी ईमानदारी से करती है, और कोई होता तो चुपचाप पायल दबा लेता. इस ने ईमानदारी से मेरे हाथों में सौंप दी. साड़ी आभा तो पहनती नहीं है, इस से दे दी. इसे नौकरानी कह कर अपमानित मत करो. तुम्हारी मम्मी जैसा ही सफाई से सारा काम करती है. थोड़ा उदार मन रखो.’’ ‘‘तो अब आप इसे मम्मी का दर्जा देने लगे,’’ आभा तैश में आ कर बोली.

‘‘आभा, जबान संभाल कर बात करो, क्या अंटशंट बक रही हो. अपने पापा पर शक करती हो? तुम अपने काम और पढ़ाई पर ध्यान दो. मैं क्या करता हूं, क्या नहीं, इस पर फालतू में दिमाग मत खराब करो. परीक्षा में थोड़े दिन बचे हैं, मन लगा कर पढ़ो, समझी,’’ वह क्रोध से बोले तो आभा सहम गई. इस से पहले पापा ने इतनी ऊंची आवाज में उसे कभी नहीं डांटा था. वह रोती हुई अपने कमरे में घुस गई. अमित के समझाने पर भी वह मन का संदेह नहीं दबा पा रही थी. उस का अब पढ़ने में रत्ती भर भी मन नहीं लगता था. उस ने घबरा कर अपनी नानी को खत लिख दिया. नानाजी तो थे नहीं, सोचा, नानी यहां घर पर रह कर सब संभाल लेंगी. तब तक उस की परीक्षा भी निबट जाएगी.

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हफ्ते भर के अंदर नानी आ गईं. महेंद्र अचानक उन्हें देख कर चौंके जरूर परंतु ज्यादा कुछ कहा नहीं, ‘‘अरे अम्मांजी, आप…अचानक कैसे आ गईं?’’ ‘‘भैया महेंद्र, 6 मास से बच्चों को नहीं देखा था. इसलिए नरेंद्र को ले कर चली आई. यह तो कल लौट जाएगा, मैं रहूंगी.’’ ‘‘अच्छा किया आप ने, बच्चों की परीक्षाएं भी पास हैं. आभा को भी कुछ राहत मिलेगी. वैसे मालती बहुत अच्छी औरत हमें मिल गई है. सुबहशाम काम कर के चली जाती है. काम भी सफाई से करती है.’’

‘‘ठीक है भैया, अब तो अमित का एम.ए. फाइनल होने जा रहा है. आभा भी बी.ए. कर लेगी. अमित के लिए लड़की और आभा के लिए अच्छा घरवर देख कर दोनों को निबटा दो. बहू आने से घर-गृहस्थी की समस्याएं सुलझ जाएंगी.’’ ‘‘अम्मांजी, अमित अपने पैरों पर तो खड़ा हो ले, तभी तो कोई अपनी बेटी देगा उसे. आभा के लिए भी अभी देर है. वह एम.ए. करना चाहती है. 2 साल और सही. अभी तो सब काम चल ही रहा है.’’

‘‘ठीक है भैया, जैसा तुम चाहो. पर एक बात पर और ध्यान दो, माया के सब सोनेचांदी के जेवर लाकर में रख दो. घर पर रखना ठीक नहीं है. तुम तीनों घर से बाहर रहते हो, बडे़ नगरों में चोरियां बहुत होती हैं, इसलिए कह रही हूं.’’

‘‘हां, यह ठीक कहा आप ने. अब बैंक में लाकर ले ही लूंगा.’’ बहुत बार कहने पर भी वह लापरवाही बरतते रहे. तब अलमारी के लाकर की चाबी आभा अपने पास रखने लगी थी. जब से उस ने मालती के पैरों में मां की पायल देखी थीं, तभी दोनों भाईबहनों ने बैंक में चुपचाप एक लाकर ले कर सारे जेवर उस में रख दिए थे. पिता से इस की चर्चा नहीं की. सोचा, समय आने पर बता देंगे. बस कुछ नकली जेवर ही उन्होंने घर पर छोड़ रखे थे. नानी एकडेढ़ माह के पश्चात चली गईं. आभा ने कम्प्यूटर क्लास ज्वाइन कर ली थी, इस से वह पापा के नानी के साथ जाने के आग्रह को टाल गई. अमित भी कंप्यूटर कोर्स के साथ ही कोचिंग कर रहा था.

उस दिन आभा जल्दी लौट आई थी, क्योंकि सर के किसी निकट संबंधी की मृत्यु हो गई थी. घर आ कर उसे आश्चर्य हुआ क्योंकि मालती घर पर मौजूद थी, जबकि घर की दूसरी चाबी केवल पापा के पास रहती थी. ‘‘अरे, आज तुम समय से पहले कैसे आ गईं?’’ वह पूछ बैठी. ‘‘साहब आ गए हैं न, उन की तबीयत कुछ ठीक नहीं है,’’ वह कुछ घबराहट में अटकअटक कर बोली. ‘‘तो तुम्हें किस ने बतलाया कि उन की तबीयत ठीक नहीं है. क्या पापा तुम्हें लेने गए थे तुम्हारे घर?’’

‘‘अरे नहीं, वह सुबह कह रहे थे. इस से मैं यों ही चली आई.’’ आभा लपक कर पापा के कमरे में घुस गई, देखा वह अपने बेड पर आंखें बंद किए चुपचाप लेटे हैं. ‘‘पापा, आप ने सुबह हम लोगों को क्यों नहीं बतलाया कि आप की तबीयत ठीक नहीं है. मैं आज नहीं जाती,’’ वह उन के माथे पर हाथ रख कर बोली तो उन्होंने पलकें खोलीं, ‘‘अरे, ऐसी खराब नहीं है. थोड़ा सिरदर्द था सुबह से, सोचा ठीक हो जाएगा, इस से आफिस चला गया, पर दर्द कम नहीं हुआ तो लौट आया. सुबह मालती से यों ही कह दिया था तो वह चली आई.’’

परंतु टेबिल पर जूठी पड़ी प्लेटों में समोसे-रसगुल्लों के टुकड़े कुछ और ही कहानी कह रहे थे. 2 प्लेटें, 2 चाय के मग, क्या यह सब नित्य उन के जाने के बाद होता है? मन के किसी कोने में शंका के अंकुर सबल पौध से सिर उठाने लगे. उस ने देख कर भी अनदेखा कर दिया और कुछ क्षण वहां बैठ कर रसोई की ओर आई तो देखा, मालती गैस के नीचे कोई पालीथीन की थैली छिपा रही है. ‘‘यह गैस के नीचे कचरा क्यों ठूंसा तुम ने?’’ उस ने झपट कर थैली को बाहर घसीटा तो 2 रसगुल्ले, 2 समोसे जमीन पर आ गिरे. मालती का मुंह सफेद पड़ गया. ‘‘अरे, ये कहां से आए?’’

‘‘ये…ये बचे थे, साहब ने कहा कि रख लो, बच्चों को दे देना. इसलिए रख लिए.’’ आभा कुछ भी न बोल पाई. उस का मन किसी भावी आशंका की चेतावनी दे रहा था. शाम को जब अमित घर आया तो आभा ने उसे सब बता दिया. उस के ललाट पर भी चिंता की गहरी रेखाएं खिंच गईं. जब से उन की मां नहीं रहीं पापा खाना प्राय: अपने कमरे में ही मंगा कर खाते थे. मालती 1-1 फुलके के बहाने कई चक्कर उन के कमरे के लगा लेती थी. यह आभा को बहुत अखर रहा था.

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एक दिन वह बोली, ‘‘मालती, तुम जल्दी खाना बना कर घर चली जाया करो.’’ ‘‘साहब को गरम फुलके पसंद हैं और आप लोगों को भी तो. देरसवेर की क्या बात है. बना खिला कर चली जाया करूंगी. आप क्यों परेशान हो, मुझे तो आदत है.’’

‘‘नहीं, तुम कल से हम दोनों का खाना कैसरोल में बना कर रख दिया करो और आटा सान कर रख देना, मैं पापा को खुद सेंक कर खिला दूंगी. जैसा मैं ने कहा है वैसा करो, समझी,’’ उस ने जरा सख्त लहजे में कहा तो वह चुप रह गई. परंतु थोड़ी देर पश्चात ही उस की चुप्पी का कारण सामने आ गया. पापा ने आभा को आवाज दी. ‘‘तुम ने मालती को शाम का खाना बनाने से क्यों मना किया?’’

‘‘मना कहां किया, पापा. यह कहा कि हम दोनों का खाना बना कर कैसरोल में रख दे, अगर आप गरम फुलके चाहेंगे तो मैं सेंक कर आप को खिला दूंगी, तो वह आप से शिकायत कर गई?’’ आभा को गुस्सा आ गया. ‘‘शिकायत क्यों, बस कह रही थी कि कल से बेबी आप की रोटियां सेंकेगी. बेकार में तुम क्यों गरमी में मरो, बनाने दो उसे.’’

आभा किसी भी तरह मालती को काम से हटाना चाहती थी इसीलिए पापा के हर सवाल का जवाब पर जवाब दिए जा रही थी, ‘‘पापा, पसीने से तरबतर पता नहीं रोज नहाती भी है या नहीं, पास से निकलती है तो बदबू मारती है. अब तो मैं ने उसे मना कर ही दिया है. आप उस से कुछ न कहें, बल्कि मैं तो सोचती हूं बेकार में 1 हजार रुपए महीना क्यों जाए, मैं ही खाना बना लिया करूंगी. मुझे खाना बनाने का अभ्यास भी हो जाएगा.’’

‘‘अरे नहीं, लगी रहने दो उसे, वह बहुत अच्छा खाना बनाती है. बिलकुल तुम्हारी मम्मी जैसा.’’

‘‘बिलकुल झूठ पापा, मम्मी जैसा तो नानी भी नहीं बना पातीं. दादीमां भी कहा करती थीं कि माया जैसा खाना बिरली औरतें ही बना पाती हैं.’’

‘‘पर अब वह बनाने वाली हैं कहां?’’

‘‘पापा, अब मैं बनाऊंगी मम्मी जैसा खाना. कोशिश करूंगी तो सीख जाऊंगी, अब शाम का खाना मैं ही बनाऊंगी.’’

‘‘अरे आभा, उसे लगी रहने दे. उस ने हमारे घर के लिए कई घरों का काम छोड़ दिया है. उस के छोटेछोटे बच्चे हैं. उस का आदमी दारूबाज है, उस को मारतापीटता है. इतनी सुघड़ औरत की कदर नहीं करता.’’

‘‘पर पापा, आप ने सब का ठेका तो नहीं लिया. कल से शाम के खाने से उस की छुट्टी,’’ कह कर वह पापा के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना कमरे से बाहर निकल गई. पास खड़ा अमित भी सिर हिला कर मुसकरा रहा था.

इधर मालती के मुख पर उदासी का आवरण चढ़ गया. सुबह का खाना निबटा कर वह बोली, ‘‘बेबी, तो मैं जाऊं? पर साहब जाते समय कह गए थे कि शाम को नहा कर आया करूं . सुबह के कपड़ों से पसीने की बदबू आती है, इसलिए वह आप की मम्मी की ये 4 साडि़यां, ब्लाउज दे गए हैं. ये देखिए…’’

उस ने अपने झोले से कपड़े निकाल कर दिखाए तो आभा चकित रह गई. अमित भी पास खड़ा देख रहा था. गुस्से से बोला, ‘‘जब आभा ने कह दिया कि वह अब खाना बनाएगी तब तू पीछे क्योें पड़ी है. हम एक सा खातेखाते ऊब गए हैं. जब से मम्मी गई हैं तेरे हाथ का ही तो खा रहे हैं. अब शाम को नहीं आएगी तू, समझी.’’

‘‘भैयाजी, क्यों एक गरीब के पेट पर लात मार रहे हो. पगार कम मिलेगी तो 4 बच्चों का पेट मैं कैसे भरूंगी?’’

‘‘बस मालती, तेरी गरीबी मिटाने को दुनिया में हम ही तो नहीं बचे हैं, और घर पकड़ ले जा कर,’’ वे दोनों एकसाथ चिल्लाए तो वह आंसू पोंछती बाहर निकल गई. तब दोनों में बहुत देर तक पापा की हरकतों पर चर्चा होती रही.

धीरेधीरे शाम को मालती को न देख कर पापा उदास रहने लगे. आभा शाम को उन की पसंद का ही खाना बनाती. 1-1 चपाती सेंक कर कमरे में दौड़दौड़ कर पहुंचाती परंतु वह चुपचाप ही रहते, कुछ न बोलते. मालती सुबह सब को बना कर खिलाती फिर स्वयं खा कर चुपचाप चली जाती. नित्य के इस नियम से दोनों खुश थे कि इस औरत के चंगुल से उन्होंने पापा को बचा लिया.

जब से मालती का शाम का आना बंद हुआ था पापा 7-8 बजे तक आफिस से घर लौटते. जब वे दोनों पूछते तो कह देते कि आफिस में काम बहुत था या किसी दोस्त का नाम लेते कि वहां चला गया था.

परंतु उस दिन जब अमित ने वह दृश्य देखा तो घबरा कर दौड़ा आया, ‘‘आभा, आज जो देखा उसे सुनोगी तो सिर थाम लोगी. आज पापा के साथ मालती कार में उन की बगल में बैठी थी. मम्मी के जेवर, कपड़े पहने हुए थी. पापा उसे होटल ले गए. वहां उन्होंने कमरा बुक करवाया.’’

‘‘अरे, यह क्या हो रहा है. पापा इतने गिर जाएंगे, कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था, अब हम क्या करें?’’ वह सिर पकड़ कर कुर्सी पर बैठ गई और फूटफूट कर रोने लगी.

‘‘घबरा मत, आभा, रोने से क्या होगा? कोई उपाय सोचो जिस से इस औरत से पापा को बचा सकें.’’

‘‘भैया, असली जेवर तो सब बैंक में हैं, यहां तो आर्टीफिशयल ही हैं. क्या वही दे दिए पापा ने. मैं अलमारी का लाकर देखती हूं,’’ वह आंसू पोंछती हुई दौड़ी, लाकर खोल कर देखा तो स्तब्ध रह गई. डब्बे खाली पडे़ थे, जेवर गायब थे.

‘‘अच्छा किया, जो जेवर बैंक में रख आए, वरना सब चले जाते,’’ दोनों ने चैन की सांस ली.

‘‘भैया, पापा के दोनों खास दोस्तों से बात करें. संभव है, पापा उन की बात मान लें? नहीं तो मामामामी, नानी, बूआफूफाजी को फोन कर के सब हाल बता दें. बूआजी पापा से बड़ी हैं. पापा उन का लिहाज भी बहुत करते हैं.’’

‘‘नहीं, आभा, अभी हम किसी से कुछ नहीं कहेंगे. पहले मालती का पीछा कर उस के घर व घरवाले का पता लगाऊंगा, तब तुम मेरा खेल देखना. पापा अपने को बहुत होशियार समझते हैं.’’

‘‘मुझ को डर लग रहा है कि कहीं वह कमबख्त इस घर में धरना ही न दे दे.’’

‘‘अपना उतना बड़ा परिवार छोड़ कर क्या वह यहां पापा के साथ आ सकेगी?’’

‘‘ऐसी औरतें सब कर सकती हैं. अखबार में जबतब पढ़ते नहीं कि अपने 6 बच्चों को छोड़ कर फलां औरत अपने प्रेमी के साथ भाग गई, पति बेचारा ढूंढ़ता फिर रहा है.’’

‘‘उस औरत को भी क्या कहें? अभी मां को गए एक साल भी पूरा नहीं हुआ और पापा को औरत की जरूरत पड़ गई, धिक्कार है.’’

‘‘भैया, अगर ऐसी नौबत आई तो मैं मामा के पास चली जाऊंगी,’’ वह आंसू पोंछ कर बोली.

‘‘अपने भैया को बेसहारा छोड़ कर? तब मैं कहां जाऊंगा?’’

‘‘तब तो हम दोनों को नौकरी की तलाश करनी चाहिए. हम किराए का मकान ले कर रह लेंगे. सौतेली मां की छांह से भी दूर. तब मामा आदि के पास क्यों जाएंगे भला, इसी शहर में रहेंगे.’’

‘‘मां, तुम हम दोनों को बेसहारा छोड़ कर क्यों चली गईं. राह दिखाओ मम्मी, हम दोनों कहां जाएं, क्या करें?’’ अमित का धैर्य भी आंसू बन कर फूट पड़ा, आभा भी रो पड़ी.

दूसरे दिन अमित जल्दी घर से निकल कर मालती के इंतजार में स्कूटर लिए छिपा खड़ा था. जैसे ही वह घर से निकली वह छिपताछिपाता पीछे लग गया. उस का घर लगभग 2 किलोमीटर दूर था. अमित ने देखा उस के घर से छिपा कर लाई रोटीसब्जी मालती ने अपने बच्चों और पति में बांट दी. बच्चे खा कर यहांवहां खेलने निकल गए और जल्दी से अपने घर का काम निबटा कर मालती अपने घरवाले के जाते ही सजधज कर निकली. अमित उस के पीछेपीछे चलता रहा. वह मेन बाजार में जा कर खड़ी हो गई. थोड़ी देर बाद पापा गाड़ी ले कर आए. मालती लपक कर कार में बैठ गई. कार फिर उसी होटल की ओर बढ़ी. वे दोनों फिर उसी होटल में जा पहुंचे. अमित लौट आया.

दूसरे दिन मालती के घर से निकलते ही वह उस के पति हरिया के पीछे लग गया. घर से जब वह दूर आ गया तब स्कूटर उस के सामने कर के खड़ा हो गया, ‘‘सुनो भैया, हमारे यहां ढेरों सामान इकट्ठा है. वह हमें बेचना है.’’

‘‘कहां है, आप का घर?’’ वह खुश हो कर बोला.

‘‘वह है दूर. अब आज नहीं कल ले चलूंगा. वह मालती तुम्हारी घरवाली है?’’

‘‘हां, तुम कैसे जानते हो?’’ वह बोला.

‘‘वह हमारे घर के पास ही काम करती है इसलिए जानता हूं. इस टाइम वह कहां जाती है?’’

‘‘वह किसी साहब के यहां जाती है, नौकर है वहां?’’

‘‘परंतु मैं ने तो उसे एक साहब के साथ बड़े होटल में जाते देखा है.’’

‘‘कब? कहां?’’ वह आंखें फाड़ कर बोला.

‘‘वह तो सजधज कर रोज जाती है. चलो, तुम्हें दिखाऊं,’’ बिना कुछ सोचे- समझे वह ठेला एक तरफ फेंक कर  उस के साथ हो लिया. रास्ते भर अमित नमकमिर्च लगा कर ढेरों बातें बताता चला गया. सुन कर वह क्रोध से पागल हो उठा.

‘‘उधर…ऊपर 22 नंबर कमरा खटखटाओ, साहब के साथ मालती जरूर मिलेगी. एक बात और, मेरा जिक्र किसी से मत करना, यही कहना कि मैं ने तुम्हें कार में बैठे देखा था, तभी से पीछा करते यहां आया हूं.’’

‘‘हां, भैया, यही कहूंगा. आज मैं उस की गति बना कर रहूंगा. कहती थी खाना बनाने जाती हूं,’’ इतना ही नहीं ढेर सारी भद्दी गालियां बकता हुआ वह कमरे की ओर बढ़ रहा था.

अमित एक कुरसी पर बैठ कर आने वाले तूफान का इंतजार करने लगा. उसे अधिक इंतजार नहीं करना पड़ा. ऊपर से घसीटते, मारते, गालियों की बौछार करते वह मालती को नीचे ले आया. चारों ओर भीड़ जुटने लगी. तभी पुलिस भी आ पहुंची. पीछेपीछे भीड़ थी. थोड़ी देर की हुज्जत के बाद अमित ने देखा कि पुलिस वाले पापा का कालर पकड़े उन्हें धकियाते नीचे घसीटते ला रहे हैं. पापा का मुंह लज्जा से लाल पड़ गया था पर उसे दया नहीं आई. पुलिस वाले गालियों की असभ्य भाषा में उन्हें झिंझोड़ रहे थे. शायद वह ऊपर से खासी मरम्मत कर के लाए थे.

पुलिस वाले ने एक झन्नाटेदार थप्पड़ मालती के मुंह पर भी दे मारा, उस के मुंह से चीख निकल गई. मुंह से खून बह आया, उसे देख कर पापा पर घड़ों पानी पड़ गया, शर्म से सिर झुकाए वह पुलिस का हाथ झटक कर कार की ओर बढे़, तभी हरिया ने पीछे से उन का कालर पकड़ा, ‘‘ऐ साहब, मैं ऐसे ही नहीं छोड़ूंगा तुम्हें, मेरी औरत की इज्जत लूटी है तुम ने, मैं इस की डाक्टरी जांच कराऊंगा, समझा क्या है तुम ने?’’

‘‘छोड़ कालर, पहले तू अपनी औरत को संभाल फिर बात कर. जब वह राजी है तो दूसरों को दोष क्यों देता है?’’

‘‘तुम ने क्यों बहकाया मेरी घरवाली को?’’

‘‘पहले उस से पूछ, वह क्यों बहकी?’’

‘‘साहब, आप को थाने चलना पडे़गा,’’ पुलिस वाले ने बांह पकड़ कर खींचा.

भीड़ बढ़ती जा रही थी. वह किसी तरह फंदे से निकल कर कार स्टार्ट कर भाग छूटे, लोग चिल्लाते ही रह गए, इधर अमित भी स्कूटर स्टार्ट कर के घर की ओर रवाना हो गया. आते ही उस ने आभा को पूरी घटना बयान कर डाली. सुन कर आभा का मन जहां खुश था वहीं पिता के न आने से दोनों ने रात आंखों ही में काटी. वे दोनों उन के मोबाइल पर भी बात नहीं कर पाए.

दूसरे दिन न मालती आई न पापा. अमित छिप कर मालती के घर के चक्कर लगा आया. वह घर पर जैसे कैद थी. हरिया दरवाजे पर पहरा लगाए बैठा था. जब 3 दिन तक पापा का कुछ पता न लगा तो दोनों ने घबरा कर सब रिश्तेदारों को फोन कर दिए. तुरंत ही सब घबरा कर दौड़े आए. घर आ कर सब चिंता में पड़ गए. अमित ने अपनी चतुराई की रत्ती भर चर्चा नहीं की. वह पिता की व परिवार की नजरों में पाकसाफ रहना चाहता था. आभा ने भी होंठ नहीं खोले.

वे लोग अखबारों में विज्ञापन देने की सोच रहे थे कि दिल्ली से फोन आया कि वह आगरा आदि घूम कर घर लौट रहे हैं. सुन कर सब का चेहरा प्रसन्नता से खिल उठा. जब  वह वापस आए, किसी ने कुछ नहीं पूछा. अमित भी ऐसा बना रहा जैसे उसे कुछ मालूम ही नहीं है. वे दोनों अपने पापा को वापस अपने बीच पाना चाहते थे, शर्मिंदा करना नहीं चाहते थे. पापा के चेहरे पर भी पश्चात्ताप साफ नजर आ रहा था. सब को देख कर वह न हैरान हुए न परेशान, यह जरूर बतलाया कि उन्होंने अपना ट्रांसफर दूसरे शहर में करा लिया है. वह शीघ्र ही यहां से रिलीव हो कर चले जाएंगे.

तभी एक दिन बूआ ने पास बैठ कर गंभीर स्वर में कहा, ‘‘महेंद्र, अगर तू चाहे तो कहीं किसी विधवा से या तलाकशुदा किसी लड़की से बात चलाएं. पेपर में विज्ञापन देने से ढेरों आफर आ सकते हैं.’’

‘‘अरे  नहीं, दीदी, अब इस की जरूरत नहीं है. माया की याद क्या कभी दिल से निकल सकेगी? अब तो अमित और आभा के लिए सोच रहा हूं. दोनों को अच्छे मैच मिल जाएं तो घर आबाद हो जाएगा. मैं अमित को बिजनेस में डालने की सोच रहा हूं. जब तक इस का कारोबार जमेगा आभा भी एम.ए. कर लेगी. अब यहां मेरा मन नहीं लगता, न इन बच्चों का लगता है, क्यों अमित?’’

‘‘हां, पापा, अब यहां नहीं रहेंगे,’’ दोनों चहक उठे. तभी उन्होंने अकेले में अमित से पूछा, ‘‘अमित, तुम ने उस दिन की घटना किसी से बताई तो नहीं?’’ अमित को समझते देर न लगी कि पापा ने उस दिन उसे घटना वाली जगह पर देख लिया था.

बिना घबराए वह बोला, ‘‘नहीं, पापा, मेरी तो समझ में नहीं आया था कि यह क्या हो रहा है. मैं तो रोज की तरह उधर से गुजर रहा था कि झगड़ा और शोर सुन कर उधर आ गया, पता नहीं मालती किस के साथ थी, नाम आप का लग गया. जो हो गया उसे भूल जाइए, पापा. नए शहर में नया माहौल और नए लोग होंगे. आप यहां का सब भूल जाएं तो अच्छा है. इज्जतआबरू बची रहे यही सब से बड़ी बात है,’’ उसे विश्वास हो गया था कि पापा को जो ठोकर लगी है वह जिंदगी भर के लिए एक सबक है. सुबह का भूला घर आ गया था.

उद्यापन: पाखंड नहीं तो और क्या

धर्मगुरू अपनी पैनी नजर महिलाओं पर रख धर्म के पालन की जिम्मेदारी उन्हीं के कंधों पर रखते रहे हैं. वे जानते थे और जानते हैं कि धर्मभीरु महिलाएं जल्द उन के प्रवचनों को आत्मसात कर उन के दिखाए मार्ग पर चल पड़ती हैं. तभी तो धर्म के ठेकेदार महिलाओं को पतिपुत्र, पिताभाई की उम्र, स्वास्थ्य व उन के कुशलमंगल के पूजापाठ में उलझाने में पूरी तरह सफल रहे हैं.

अभी तक पूजापाठ, व्रतउपवास का ही मकड़जाल था पर अब ‘उद्यापन’ भी इन में जुड़ गया है, जो अंधविश्वास के धरातल को और मजबूत कर रहा है. उद्यापनपूर्ति में धन और समय के अपव्यय के साथसाथ महिलाएं कूपमंडूक बन अपनी सोचनेसमझने की शक्ति को शून्य बना अपने आसपास व रिश्तेदारी में स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करती हैं. इस दौड़ में शिक्षित वर्ग भी बढ़चढ़ कर भाग लेता है, क्योंकि हर व्रत की कथा का सार कहता है कि जब तक उद्यापन नहीं होगा व्रत सफल नहीं होगा.

नंदीपुराण और निर्णय सिंधु में वर्णन है कि ‘‘उद्यापनं बिना यत्रुतद् व्रत निष्फलं भवेत.’’

उद्यापनों की लंबी फिहरिस्त

‘दशा डोरा’ का उद्यापन, ‘करवाचौथ’ का उद्यापन, ‘सोलहसोमवार’ का उद्यापन, ‘मंगला गौरी’ का उद्यापन, ‘प्रदोष व्रत’ का उद्यापन, ‘पूर्णमासी व्रत’ का उद्यापन, ‘संकष्ट चतुर्थीव्रत’ का उद्यापन, ‘संतोषी माता व्रत’ का उद्यापन, ‘गनगौर व्रत’ का उद्यापन, ‘सूरज’ का उद्यापन आदि. यानी जो भी व्रत रखा जाए उस का उद्यापन तो करना ही है तभी मन्नत पूर्ण होगी.

हर उद्यापन के पहले संबंधित व्रत की कथा पढ़ी व सुनी जाती है. इन कथाओं को पूर्ण निष्ठा व विश्वास के साथ बिना कोई तर्कवितर्क किए सुना जाता है. तर्क करने पर ‘पाप’ लगेगा तथा ईश्वर के दंड के भागी न बन जाएं, इस भय से कोई भी जातक तर्ककरने की सोचता भी नहीं.

सोशल मीडिया में ऐसे उद्यापनों की भरमार है. वैबसाइटों पर उद्यापनों के प्रचार सहित उन पर आए खर्च सहित उद्यापन पूजा कराने का पूरा विवरण प्रसारित हो रहा है. यू टयूब पर धार्मिक वीडियो, उद्यापन की पूरी विधि सहज उपलब्ध है.

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कुछ उद्यापनों की मायानगरी

करवाचौथ उद्यापन: सुहाग की लंबी आयु के लिए महिलाएं इस व्रत को पूरी श्रद्धा के साथ भूखीप्यासी रह कर रखती हैं. शाम को 4 बजे के लगभग सभी महिलाएं एक जगह इकट्ठी हो कर पंडितजी से बड़ी श्रद्धापूर्वक कथा सुनती हैं. पंडितजी हर साल की तरह अपनी रटीरटाई कथा सुना कर हजारों रुपए और खाद्यसामग्री समेट लेते हैं. यहां तक देखा जाता है कि अनपढ़ पंडितानी भी कथा सुना कर सैकड़ोंहजारों रुपए पा जाती है, साथ ही कथा द्वारा यह संदेश भी दिया जाता है कि यदि भूखे रह कर व्रत नहीं किया तो सुहाग पर आंच आएगी.

अब सुहागिन महिला जब इस व्रत का उद्यापन करती है तो विचार आया कि एक तरफ तो महिला कहती है कि जब तक सांस चले मैं व्रत करती रहूं, फिर उद्यापन क्यों? जबकि उद्यापन का अर्थ है- समाप्त/पूर्ण.

उद्यापन करती एक स्कूल टीचर ने बताया कि उद्यापन के बाद चाय, फल लिया जा सकता है. तबीयत ठीक न होने पर व्रत न रखने से कोई दोष नहीं होगा.

उद्यापन विधि: 13 सुहागिनों को सुपारी दे कर आमंत्रित किया जाता है. उन्हें चंद्रमा दर्शन के बाद भोजन करा कर शृंगार का सामान, वस्त्र और पैसे दे कर विदा किया जाता है. पंडितजी या पंडितानी को संतुष्ट कर के लिए अलग से धन दिया जाता है.

अगर उद्यापन किए बिना चाय, पानी, फल लिया जाए तो क्या पति की आयु पर प्रहार होगा?

इतनी छोटी सी बात पर तर्क नहीं किया जाता. सदियों से चली आ रही लकीर की फकीर बनी उच्चपदासीन व शिक्षित महिलाएं स्वयं को सौभाग्यशाली मान फक्र करती हैं. अगर कोई दुस्साहस करे तो आसपास की महिलाएं हिकारत की नजरों से देखती हैं. बैंक में कार्यरत व्रत न करने वाली निशा गर्ग, व्रत के दिन चपरासी से जब भी पानी मंगाती तो वह अजीब सी नजरों से देखता और पास बैठी महिलाएं भी उसे अजीब नजरों से देखती कि उन के बीच यह पाखंड विरोधी कहां से आ गई.

ऋषिपंचमी उद्यापन: यह व्रत भाद्रपद की शुक्ल पंचमी को किया जाता है. इस में 7 ब्राह्मणों की पूजा महिला अपने दोषों से मुक्त होने के लिए करती है. जो महिलाएं माहवारी के समय नियमपालन से चूक कर दोषी हो जाती हैं वे यह व्रत करती हैं.

कथानुसार, एक ब्राह्मण की बेटी ने माहवारी में घर के बरतन छू लिए, इसलिए उसे पाप लगा. वह विधवा हो गई और उस के शरीर में कीड़े पड़ गए. इस सब से छुटकारा पाने और अगले जन्म में सुखी जीवन पाने के लिए उस ने यह व्रत किया.

इसी व्रत के लिए एक और कथा है कि महाभारत काल में उत्तरा के गर्भ को अश्वत्थामा ने नष्ट कर दिया. तब इसी व्रत को कर के उत्तरा ने परीक्षित को जन्म दिया. मान्यतानुसार इस व्रत को करने से उत्तरा ‘गर्भपात’ के दोष से मुक्त हो गई. सोचने की बात है कि गर्भ नष्ट किया अश्वत्थामा ने तो फिर उत्तरा कैसे और क्यों दोषी? क्या इसलिए कि हर बात के लिए नारी को दोषी ठहराना सहज है कि पुरुष के बलात्कार की दोषी नहीं होती है. मजे की बात यह है कि ऋषि पंचमी का उद्यापन माहवारी बंद होने पर ही किया जाता है. इस के लिए 7 ब्राह्मणों को वस्त्र, भोजन, दान, धन आदि सूर्योदय से पूर्व दे कर हवन किया जाता है.

दशा डोरा उद्यापन: एक पत्रिका में एक खबर छपी थी: ‘‘महिलाओं ने बड़ी मात्रा में शनिवार को दशामाता का व्रत कर पीपल पर सूत लपेटा.’’

इस का उद्यापन करने से होली (लकडि़यों के ढेर) पर कच्चा सूत लपेटने और गले में कच्चे सूत की 16 लडि़यों की माला पहनने का बंधन खत्म हो जाता है. इस पूजा में भी 8 महिलाओं को बरतन, मिठाई, दक्षिणा तथा इच्छानुसार वस्त्र दिए जाते हैं.

एकादशी व्रत उद्यापन: एकादशी व्रत माह में 2 होते हैं. इन में गीता पाठ व निर्जला या फलाहार व्रत का विधान रखा गया है. इस का उद्यापन एक बड़े उत्सव के रूप में किया जाता है. एकादशी के दिन 26 ब्राह्मणों को निमंत्रित कर पूजापाठ किया जाता है. उन्हें फलाहार दिया जाता है. फिर दूसरे दिन उन्हीं 26 ब्राह्मणों को पूरा भोजन आदि कराया जाता है और वस्त्र, फल, दक्षिणा दे कर विदाई दी जाती है. विशेष बात यह है कि परिवार के सभी लोगों को, आसपास के लोगों को भी बुलाया जाता है. बेटी, बहनों को वस्त्र, दक्षिणा आदि दी जाती है. यह फंक्शन एक विवाह समारोह जैसा ही किया जाता है.

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मथुरा शहर की सरलाजी का कहना है, ‘‘एकादशी उद्यापन कर के मेरे दिल पर रखा  बोझ उतर गया. इस के लिए बिना मेरा व्रत व्यर्थ ही रह जाता.’’

एमए, पीएचडी की डिग्रीधारक महिलाएं भी व्रत, उपासना, साधुसंतों, दान, उद्यापन आदि की ओर बिना किसी तर्क के चल देती हैं. ये सब बचपन से दिए गए विचारों और मानसिक कमजोरी का प्रतिफल होता है. तभी तो हर धार्मिक स्थल पर महिलाओं की भारी भीड़ दिखती है.

सोलह सोमवार उद्यापन

नारदपुराण के अनुसार 3 प्रकार के सोमव्रत होते हैं- ‘प्रति सोमवार,’ ‘7 सोमवार’, ‘16 सोमवार’.

हर प्रकार के सोमवार व्रत का उद्यापन किए बिना फल नहीं मिल सकता.

शास्त्रों में हर देवता का दिन निश्चित है. शिवपार्वती का दिन सोमवार है. कथा में डराया जाता है कि अगर व्रत/उद्यापन में कोई गड़बड़ी की गई तो शिवजी के कोपभाजन का शिकार बनना होगा.

उद्यापन प्रथम या महीने के तीसरे सोमवार को करना चाहिए. इस में इतने ब्राह्मणों को भोजन, दानदक्षिणा आदि देनी चाहिए जितने सोमवार व्रत किए गए हो.

इसी तरह ‘सूरज उद्यापन’ रविवार को, ‘शुक्रवार व्रत उद्यापन’ संतोषी माता को प्रसन्न करने के लिए शुक्रवार को किया जाता है. इतना ही नहीं, उद्यापनों की लंबी सूची है- ‘प्रदोष व्रत उद्यापन’, ‘मंगला गौरी उद्यापन’ आदि.

अंधविश्वास को एक कदम और आगे ले जाने वाला रास्ता.

अगर उद्यापन, पूजा आदि के लिए समयाभाव हो, आप का परिवार एकत्र न हो पाए तो आप पंडित/पुरोहित द्वारा यह कार्य करा कर पूर्ण फल प्राप्त कर सकते हैं. बस आप को एक निश्चित धनराशि देनी होगी. इस प्रकार के प्रवचन, आश्वासन जातक को बांधे रहते हैं और पंडितों की जेबें भरते रहते हैं.

एक कथा वाचक के जादुई वाक्य, ‘‘हमारी माताएं, बहनें, बेटियां सदियों से अपने परिवार के लिए उत्सर्ग करती आई हैं. यही नारीशक्ति तो इस धरणी का भार संभाले हुए है…’’

अभी वाक्य पूरा भी नहीं हुआ था कि पूरा पंडाल महिलाओं की तालियों से गूंज उठा. इस समूह में रिटायर्ड उच्चपदासीन व टीचर वर्ग भी था. इस प्रकार के जादुई शब्दों द्वारा नारीमंडल स्वयं को भाग्यशाली व गौरवान्वित महसूस कर कृतार्थ होता है.

दुख की बात है कि टीवी चैनल और सोशल मीडिया भी अंधविश्वास को बढ़ाने में बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं. ताबीजगंडा, रत्न, पूजा आदि को हर परेशानी का हल बता कर दुखी व्यक्ति को चंगुल में फंसाने का भरपूर प्रयास होता है.

गूगल पर पैकेज भी मिलते हैं- पूजा पैकेज, पूजा साम्रगी, बुक पंडित औनलाइन, औन साइट पूजा आदि. अब इस धर्म के फंदे से बचना स्वयं स्त्री वर्ग के हाथ में है.

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अगर बच्चा करता है बिस्तर गीला तो ऐसे करें इलाज

अगर बच्चे को यह प्रौब्लम तनाव या किसी और स्वास्थ्य प्रौब्लम के कारण है तो पहले उसे दूर करने का प्रयास किया जाता है. कईं तरीके हैं जिससे नौकटर्नल एनुरेसिस को कम किया जा सकता है या रोका जा सकता है. ऐसे ही कईं तरीके हैं, जिससे इस परेशानी से छुटकारा पाया जा सकता है…

बेड वीडिंग अलार्म

अनुसंधानों में यह बात सामने आई है कि जो बच्चे एनुरेटिक (बेडवेटिंग) अलार्म का इस्तेमाल करते हैं उनमें से लगभग आधे बच्चे कुछ सप्ताह पश्चात रात में बिस्तर गीला नहीं करते हैं. जैसे ही बच्चे का अंडरवियर गीला होता है, अलार्म बजने लगता है. समय के साथ मस्तिष्क इस बात के लिए प्रशिक्षित हो जाता है कि अलार्म बजने पर उठकर यूरीन पास करने के लिए जाना है. इसमें परिवार के सदस्यों को भी सक्रिय रूप से भाग लेना होता है ताकि अलार्म बजने पर बच्चे को पूरी तरह उठाकर बाथरूम भेजें.

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दवाईयां

इसके लिए एफडीए (फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन) द्वारा दो ही दवाईयां अनुमोदित की गई हैं; इमिपरामीन और डेस्मोप्रेसिन. लेकिन जब दवाईयां लेना बंद कर दिया जाता है तब यह प्रौब्लम वापस आ जाती है.

माता-पिता के लिए टिप्स

  1. बच्चे को ऐसे खाद्य पदार्थों का सेवन कम करने दें जिसमें कैफीन, नमक और शूगर की मात्रा अधिक होती है, विशेषकर शाम के समय.
  2. अपने बच्चे को दिन के समय नियमित रूप से (प्रत्येक दो या तीन घंटे में) और बिस्तर पर जाने के ठीक पहले यूरीन पास करने के लिए प्रेरित करें.
  3. रात में एक बार बच्चे को यूरीन पास करने के लिए उठाएं, लेकिन एक बार से अधिक नहीं क्योंकि इससे उसकी नींद खराब हो जाएगी.
  4. अगर बच्चा रात को कहीं रूक रहा है तो उसे डिस्पोज़ेबल अंडरपेंट्स पहनाएं और उसके ऊपर बॉक्सर शार्ट्स. किसी जिम्मेदार व्यक्ति से इस प्रौब्लम के बारे में चर्चा भी करें ताकि वो बच्चे की निजीतौर पर सहायता कर सके.

क्या व्यस्क होने तक रहती है यह प्रौब्लम

अधिकतर बच्चों में किशोरवास्था प्रारंभ होने तक या उसके पहले ही यह प्रौब्लम अपने आप ठीक हो जाती है. सेकंडरी एनुरेसिस को इसके कारणों का पता लगाकर ठीक किया जा सकता है. अगर किशोरावस्था समाप्त होने तक भी यह प्रौब्लम न रूके तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं. इस प्रौब्लम के बारे में पैडियाट्रिक सर्जन से बात करने में देर न करें.

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विशेषज्ञ- डौ. संदीप कुमार सिंहा, सीनियर कंसल्टेंट-पीडियाट्रिक सर्जरी, रेनबो चिल्ड्रन्स हौस्पिटल, नई दिल्ली

‘राम’ का नाम लेकर एक एक्ट्रेस को गालियां देना, क्या यहीं आपकी संस्कृति है?

लेखिका- अक्षरा उपाध्याय

हाल ही में रिलीज हुई ऋतिक रोशन और टाइगर श्रॉफ स्टारर फिल्म वॉर में एक्ट्रेस वाणी कपूर भी नजर आई थीं. जिसमें उनके रोल से ज्यादा उनके बिकिनी सीन ने खलबली मचाई थी. लेकिन इस बार रियल लाइफ में भी कुछ ऐसा ही हुआ है. दरअसल, वाणी ने इंस्टाग्राम पर एक फोटो शेयर किया. जिसमें वह स्टाइलिश नॉट टॉप पहनी दिखाई दे रही थीं. इसके साथ उन्होंने लिखा ‘जिंदगी को ज्यादा गंभीरता से न लें, वैसे भी यहां से कोई जिंदा बचकर नहीं जाने वाला है’.

इस बात पर हुआ बवाल…

फोटो और कैप्शन की बात छोड़ दीजिए क्योंकि बवाल तो वाणी के टॉप पर होना था, जिस पर संस्कृत में कुछ लिखा था, लेकिन ढूंढने वालों ने जूम कर-करके उसमें से ‘हरे राम हरे कृष्णा’ ढूंढ निकाला. बस यहीं से शुरू हो गई ट्रोलिंग. लोगों ने आपत्ति जताई की उनके ‘भगवान राम’ के नाम का ऐसे कपड़ों पर उपयोग उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचा रहा है. पता नहीं क्यों किसी ने राम के बगल में लिखे भगवान कृष्ण की सुध नहीं ली.

लोगों ने गालियां देकर किया वाणी को ट्रोल…

सो हुआ ये कि लोगों ने सोशल मीडिया के जरिए वाणी को निशाना बनाना शुरू कर दिया. कुछ लोगों ने बड़े ही सभ्य लहजे में इस पर आपत्ती जताई और कार्रवाई की मांग की. वहीं कुछ लोग जो राम के नाम की इस बहती गंगा में हाथ धो लेना चाहते थे उन्होंने वाणी के लिए ऐसी बातें लिखना शुरू कर दीं जिन्हें शायद उनकी घर की महिलाएं पढ़ें तो उनका सिर भी शर्म से झुक जाए. किसी ने वाणी को वेश्या कहा तो किसी ने मां-बहन की गालियां दे दीं. इतना ही नहीं एक सज्जन तो बकायदा अपने ट्वीट में इसकी मांग करते दिखे कि भाई लोग आप भी आएं और वाणी के खिलाफ गंदा से गंदा लिखें ताकि इसे सबक मिले.

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ट्रोलिंग के बाद वाणी ने हटाई फोटो…

आखिर में हुआ यह कि वाणी ने अपनी तस्वीर हटा ली. इसे लोगों ने अपनी विजय के रूप में देखा और इसका जश्न भी सोशल मीडिया पर वाणी को एक बार फिर गालियां देते हुए मनाया गया.

आप होते कौन है किसी पर उंगली उठाने वाले?

“मेरा सवाल यह है कि माना कि आपकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची लेकिन यह हक आखिर आपको किसने दिया कि आप किसी महिला के खिलाफ इस तरह के अभद्र कॉमेंट्स करें? आखिर आप होते कौन हैं दूसरों को गंदे से गंदा कॉमेंट करने का न्योता देकर वाणी को सबक सिखाने वाले? और जो आप लोगों ने जूम कर कर के वाणी के क्लीवेज की तस्वीर बड़ी शान से लगाई थी उसका क्या? लड़की होकर किसी का ध्यान इस पर शायद ही गया हो लेकिन भई संस्कृति के कथित चौकीदारों ने तो वाणी के क्लीवेज को ढंकने वाले टॉप को इतने ध्यान से देखा कि उन्हें राम मिल ही गया.”

ये कैसी भक्ति?

“मैं हैरान हूं कि कैसे जिस मुंह से राम निकलता है उसी मुंह से एक औरत के लिए गंदी से गंदी गाली निकलती है? कैसे राम नाम का झंडा बुलंद करने का सपना देखने वाले एक महिला को नीचा दिखाने का मौका नहीं छोड़ते? कैसे जिस दिमाग में राम का नाम चलता है वह महिला को लेकर गंदी बातें सोच सकता है?”आखिर ये कौन से राम हैं जिनके लिए आप यह सब कर रहे हैं? क्योंकि रामायण के राम तो इसकी शिक्षा देते नहीं हैं. वह तो मर्यादा पुरुषोत्तम कहे जाते हैं तो आपकी सोच इतनी गिरी हुई क्यों है? अगर आपको लगता है कि ऐसा करके आप राम के नाम को बचा रहे हैं तो आप गलत हैं.

बंद करे राम नाम का पाखंड…

बेहतर यही है कि राम के नाम पर इस तरह का पाखंड करना बंद कर दें और पहले अपने दिमाग की गंदगी और मन के मैलेपन को दूर कर लें. इसलिए कहते हैं…

मन मैला तन उजरा बगुला कपटी अंग
तासौ तो कौआ भला, तन मन एक ही अंग.

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जानें ऐसा क्या हुआ कि एकता कपूर बोलीं- मेरी मां मुझे घर से निकाल देंगी

एकता कपूर सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव रहती हैं और वो अपने बेटे के साथ भी फोटोज शेयर करती रहती हैं. हालांकि आज तक उन्होंने कभी अपने बेटे का चेहरा नहीं दिखाया है.

चिल्ड्रन्स डे के मौके पर शेयर की वीडियो

अब चिल्ड्रन्स डे के मौके पर एकता कपूर ने अपने बेटे और जितेंद्र का एक क्यूट वीडियो शेयर किया है. वीडियो शेयर करते हुए एकता ने लिखा, चिल्ड्रन्स डे.

 

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My other kid with a grown up@kid? #happychildrensday

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वीडियो पर फैन्स के साथ-साथ बॉलीवुड सेलेब्स ने भी खूब कमेंट्स किए. तो वहीं नीना गुप्ता ने कमेंट किया, ‘अब तो चेहरा दिखादो.’ जिसके बाद एकता कपूर कमेंट करती हैं, ‘नीना गुप्ता मैम मेरी मां घर से निकाल देंगी.’  एकता का ये कमेंट फैन्स को बहुत क्यूट लगा.फैन्स एकता के इस कमेंट को खूब लाइक कर रहे हैं.

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एकता ने इसके बाद तुषार कपूर के बेटे यानी अपने भतीजे का भी वीडियो शेयर किया है. इस वीडियो को शेयर करते हुए एकता ने लिखा, ‘मेरा दूसरा बेटा…बड़े बच्चे के साथ.’

 

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Children’s day! Raviolis first !

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एकता कपूर की प्रोफेशनल लाइफ की बात करें तो इस साल वो अपने दमदार कंटेंट के साथ सभी प्लेटफार्म पर छाई हैं. इतना ही नहीं हाल ही में एकता कपूर को  एंटरटेनमेंट इंडस्ट्री से ‘मोस्ट पावरफुल बिज़नेस वीमेन ऑफ़ द इयर’ के अवार्ड से सम्मानित किया गया है.

 

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Friend for life!!! #maaasilove

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एकता की कुछ समय पहले रिलीज हुई फिल्म ‘ड्रीम गर्ल’ हर लिहाज से शानदार बॉक्स औफिस नंबर के साथ ब्लॉकबस्टर बनकर उभरी है. वही डिजिटल प्लेटफौर्म पर उनका शो ‘द वर्डिक्ट – स्टेट वर्सेस नानावती’ खूब सुर्खियां बटोर रहा है और टेलीविजन पर एकता कपूर ने अपने शो ‘कसौटी जिंदगी की’ में आमना शरीफ के रूप में नई कोमोलिका पेश की है जो भारतीय टेलीविजन पर सबसे ज्यादा टीआरपी वाला शो है.

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इससे पहले, एकता कपूर के बालाजी मोशन पिक्चर्स के तहत बनी उनकी आगामी फिल्म ‘डौली किटी और वो चमके सितारे’ बुसान इंटरनेशनल फिल्म में अपनी जगह बनाने में सफ़ल रही, जिसके साथ उनकी उपलब्धियों की लंबी सूची में एक ओर नाम शामिल हो गया है.

मरजावां फिल्म रिव्यू: अविश्वसनीय कैरेक्टर और ज्यादा मैलोड्रामा

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः निखिल अडवाणी, मेानिशा अडवाणी, मधु भोजवाणी, भूषण कुमार, किशन कुमार, दिव्या खोसला कुमार

लेखक व निर्देशकः मिलाप मिलन झवेरी

कलाकारः सिद्धार्थ मल्होत्रा,रितेश देशमुख, रकुल प्रीत सिंह, तारा सुतारिया, रवि किशन, शाद रंधावा.

अवधिः दो घंटे 16 मिनट

अस्सी व नब्बे के लार्जर देन लाइफ वाले सिनेमा के शौकीन रहे लेखक व निर्देशक मिलाप मिलन झवेरी ‘सत्यमेव जयते’के सफल होने के बाद लार्जर देन लाइफ कथानक वाली फिल्म ‘‘मरजावां’’ लेकर आए हैं, मगर वह एक दमदार मसाला फिल्म बनाने में बुरी तरह से असफल रहे हैं.

कहानीः

मुंबई में पानी के टैंकर माफिया अन्ना(नासर)ने गटर के पास पड़े एक लावारिस बच्चे रघु को अपनी छत्र छाया में पाल पोस कर उसे बड़ा किया.अब वही लड़का रघु (सिद्धार्थ मल्होत्रा)अन्ना के अपराध माफिया के तमाम काले कारनामों और खून-खराबे में अन्ना का दाहिना हाथ बना हुआ है.अन्ना के कहने पर रघु दशहरा के दिन एक दूसरे टैंकर माफिया गायतोंडे के बेटे को मार देता है.रघु,अन्ना के हर हुक्म की तामील हर कीमत पर करता है. इसी के चलते अन्ना उसे अपने बेटे से बढ़कर मानते हैं.मगर इस बात से अन्ना का अपना बेटा विष्णु (रितेश देशमुख) को रघु से नफरत है. शारीरिक तौर पर बौना होने के कारण विष्णु को लगता है कि अन्ना का असली वारिस होने के बावजूद सम्मान रघु को दिया जाता है.पूरी बस्ती रघु को चाहती है. बार डांसर आरजू (रकुल प्रीत) भी रघु की दीवानी है.रघु के खास तीन दोस्त हैं.पर जब नाटकीय तरीके से कश्मीर से आई गूंगी लड़की जोया(तारा सुतारिया) से रघु की मुलाकात होती है, तो उसमें बदलाव आने लगता है. जोया, रघु को एक वाद्ययंत्र देती है. फिर संगीत प्रेमी जोया, पुलिस अफसर रवि यादव (रवि किशन) के कहने पर रघु को अच्छाई के रास्ते पर बढ़ने के लिए प्रेरित करने लगती है.मगर विष्णु अपनी चाल चलता है,जिसमें फंसकर रघु को अपने प्यार जोया को अपने हाथों गोली मारनी पड़ती है और रघु जेल पहुंच जाता है. जोया के जाने के बाद जेल में रघु जिंदा लाश बनकर रह जाता है.जबकि  बस्ती पर विष्णु का जुल्म बढ़ता जाता है. अहम में चूर विष्णु, रघु को अपने हाथों मारने के लिए चाल चलता है और अदालत रघु को बाइज्जत बरी कर देती है. फिर कहानी में मोडत्र आता है. अंततःएक बारा फिर रावण दहन होता है.

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लेखन व निर्देशनः

फिल्म ‘‘मरजावां’’ के प्रदर्शन से पहले मिलाप झवेरी ने खुद बताया था कि कहानी व पटकथा उन्होने ही लिखी थी,पर पहले इस फिल्म को कोई दूसरा निर्देशक निर्देशित करने वाला था,मगर पटकथा पढ़ने के बाद उस निर्देशक ने इस फिल्म से खुद को अलग कर लिया था,तब मिलाप झवेरी ने खुद ही इसके निर्देशन की जिम्मेदारी स्वीकार की. फिल्म देखने के समझ में आया कि पहले वाले निर्देशक ने इसे क्यों नहीं निर्देशित किया.कुछ दृश्यों को जोड़कर बेसिर पैर की कहानी का निर्देशन करने से अच्छा है,घर पर खाली बैठे रहे.प्यार-मोहब्बत, बदला, भावनाएं,मारधाड़,कुर्बानी आदि पर सैकड़ों फिल्में बन चुकी हैं.

सफल फिल्म ‘‘बाहुबली’’ के मार्केटिंग वाले संवाद‘बाहुबली को कटप्पा ने क्यो मारा’ की तर्ज पर  अपनी फिल्म ‘मरजावां’ में इंटरवल से पहले ही हीरो के हाथ हीरोईन को मरवा कर फिल्म को सफल बनाने का उनका प्रयास विफल नजर आ रहा है. अतिकमजोर पटकथा, उथले व अविश्वसनीय किरदारों के चलते फिल्म संभल नही पायी.पानी के माफिया टैंकर को तो अब मुंबई वासी भी भूल चुके हैं. मिलाप को यह भी नहीं पता कि पानी टैंकर माफिया के पास उस तरह की सशस्त्र सेना नही होती है, जैसी की विष्णु के पास है.फिल्म में रकुल प्रीत के किरदार आरजू को कोठेवाली बताया जा रहा है, पर वह बार डांस में नाचती नजर आती है. फिल्मकार को बार डांस व कोठे का अंतर ही नहीं पता? एक्शन के तमाम दृश्य अविश्वसनीय लगते हैं. व्हील चेअर पर बैठे शाद रंधावा एक भारी भरकम व छह फुट कद के इंसान को रामलीला मैदान से उठाकर ऐसा फेंकते हैं कि वह सीधे मस्जिद में जाकर गिरता है. फिल्म में इमोशन या रोमांस तो ठीक से उभरता ही नहीं.

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अभिनयः

सिद्धार्थ मल्होत्रा बुरी तरह से निराश करते हैं. रितेश देशमुख ने जरुर अच्छा अभिनय किया है. तारा सुतारिया छोटे किरदार में भी अपना प्रभाव छोड़ने में सफल रही हैं. रकुल प्रीत सिंह के हिस्से सुंदर दिखने के अलावा कुछ खास करने को रहा ही नही. रवि किशन की प्रतिभा को जाया किया गया.

मोतीचूर चकनाचूर फिल्म रिव्यू: लीड एक्टर्स की जानदार एक्टिंग

रेटिंगः ढाई स्टार

निर्माताः राजेश भाटिया,किरण भाटिया और वायकौम 18

निर्देशकः देबामित्रा बिस्वास  

कलाकारः नवाजुद्दीन सिद्दिकी, आथिया शेट्टी,नवनी परिहार,विभा छिब्बर.

अवधिः दो घंटे 15 मिनट

दहेज कुप्रथा के साथ  वर्तमान पीढ़ी की लड़कियों की विदेशी दूल्हों संग शादी करने की बढ़ती महत्वाकांक्षा पर कटाक्ष करने के साथ साथ छोटे शहरों में रहने वाली कुंठाओं को हास्य व्यंग के साथ फिल्मकार देबामित्रा विस्वास ने फिल्म ‘‘मोतीचूर चकनाचूर’’में पेश करने का प्रयास किया है.मगर फिल्म कई जगह बहुत ढीली होकर रह गयी है.

कहानीः

यह कहानी है बुंदेलखंड इलाके के निवासी परिवारों की, जो कि भोपाल में बसे हुए हैं. अवस्थी परिवार की बेटी एनी उर्फ अनीता (आथिया शेट्टी) से उसके माता इंदू (नवनी परिहार) व पिता बहुत परेशान हैं. एनी के सिर पर शादी करके विदेश में बसने का भूत सवार है. उसे ऐसे युवक से शादी करना है, जो कि लंदन, अमरीका या सिंगापुर सहित किसी देश में रह रहा हो. वह सोशल मीडिया पर अपने पति के साथ विदेशी धरती पर खींची गयी सेल्फी पोस्ट करना चाहती हैं. इसी के चलते ऐनी अब तक दस लड़कों को ठुकरा चुकी है.लंदन में रहने वाले लड़के के परिवार वालों को अपमानित करके भगा देती है, क्योंकि वह लड़का शादी के बाद पत्नी को अपने साथ लंदन नहीं ले जाएगा. तो वहीं अवस्थी परिवार के पड़ोस में त्यागी परिवार रहता है. जिसकी बड़ी बेटी हेमा से ऐनी की अच्छी दोस्ती है. दोनों परिवारों के बीच काफी आना जाना है. इस परिवार में दो बेटे व एक बेटी हैं. परिवार का बड़ा लड़का पुशपिंदर त्यागी (नवाजुद्दीन सिद्दिकी) दुबई में नौकरी करता है. 36 साल की उम हो गयी, पर अब तक उसकी शादी नहीं हुई.पुशपिंदर की मां(विभा छिब्बर) को बेटे की शादी में दहेज 25 से तीस लाख रूप चाहिए. क्योंकि उनका बेटा दुबई मंे नौकरी करता है.बेटे की शादी मंे जो कुछ मिलेगा,वह सब वह बेटी हेमा की शादी में देना चाहती हैं. एक अति मोटी लड़की के साथ पुशंपिंदर शादी करने के लिए तैयार हो जाते हैं. क्योंकि अब उम्र के इस पड़ाव पर लड़की को लेकर उनकी कोई पसंद नहीं है.पर सगाई के बाद जैसे ही पुशपिंदर की मां दहेज की रकम बताती हैं, शादी टूट जाती है. इससे पुशंपिंदर बहुत दुःखी हो जाते हैं.

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उधर पुशपिंदर को देखकर ऐनी की मौसी (करूणा पांडे) उसे समझाती है कि पुशंपिंदर में एक अच्छा चरित्रवान व दुबई मे रहने वाला लड़का है. दुबई भी विदेश ही है. उसके बाद ऐनी बिना अपने माता पिता को बताए, पुशंपिंदर के सामने प्रेम का इजहार कर चुपचाप मंदिर में शादी कर लेती है,जिससे पुशपिंदर की मां विघ्न न डाल पाए.घर पहुंचने पर दोनों परिवार हक्के बक्के रह जाते हैं. बहरहाल, किसी तरह वह मान जाते हैं. पर समाज की नजरों में दोनो की पुनः रीतिरिवाज के साथ शादी होती है. मगर सुहागरात से पहले ही त्यागी परिवार के साथ ऐनी को भी पता चल जाता है कि पुशंपिंदर की दुबई की नौकरी छूट गयी है और उसे अब भोपाल में ही नौकरी मिल गयी है. फिर कई घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं. अंततः पुशपिंदर की मां और ऐनी को भी बहुत कुछ समझ में आ जाता है.

लेखन व निर्देशनः

कथानक के स्तर पर नवीनता न होते हुए भी फिल्म की प्रस्तुतिकरण कमाल की है.फिल्म में छोटे शहरों और संयुक्त परिवार के जीवन मूल्यों को बेहतरीन भी उकेरा गया है. फिल्म में ह्यूमर के साथ साथ दहेज व वैवाहिक जीवन को सफल बनाने सहित कई सामाजिक संदेश भी अच्छे ढंग से बिना भाषणबाजी के परोसे गए हैं. मगर इंटरवल तक फिल्म की गति काफी धीमी है. इंटरवल के बाद फिल्म तेज गति से दर्शकों को अपने साथ लेकर आगे बढ़ने का प्रयास करती है, मगर यहां भी कुछ ज्यादा ही खींच दिया गया. क्लायमेक्स में नवाजुद्दीन सिद्दिकी और आथिया शेट्टी के बीच एक दूसरे से मिलने के उतावले पन के दृश्य को इस कदर खींचा गया कि दर्शक कह उठता है कि अब बस भी करो. फिल्म को एडीटिंग टेबल पर कसने की जरुरत थी.

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अभिनयः

गंभीर किस्म की भूमिकां निभाने में महारत रखने वाले नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने इसमें हलकी फुलकी भूमिका में बेहतरीन अभिनय किया है. वह भावनात्मक दृश्यों में छा जाते हैं. आथिया शेट्टी ने ऐनी के किरदार में जान डाल दी है. पहली फिल्म ‘हीरो’ की असफलता का दंश झेल रही आथिया शेट्टी के करियर को इस फिल्म से नई गति मिलेगी. नवनी परिहार, विभा छिब्बर व करूणा पांडे ने भी ठीक ठाक अभिनय किया है.

रिसेप्शन के बाद धूमधाम से हुई मोहेना कुमारी की विदाई, पति के साथ पहुंचीं ससुराल

हाल ही में टीवी एक्ट्रेस और रीवा की राजकुमारी मोहेना कुमारी का ग्रेंड रिसेप्शन हुआ. ये प्रोगाम उनके मायके यानी मध्य प्रदेश के रीवा शहर में हुआ. फंक्शन के बाद मोहेना दोबारा अपने ससुराल देहरादून पहुंच गई हैं. उनकी इस विदाई की फोटोज सोशल मीडिया पर काफी वायरल हो रही है. आइए आपको दिखाते हैं मोहेना की विदाई की खास फोटोज…

मायका छोड़ ससुराल चलीं मोहेना…

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मोहेना और सुयश की शादी पिछले महीने हरिद्वार में हुई थी. शादी होने के बाद मोहेना के पापा ने अपने होम टाउन में एक ग्रैंड रिसेप्शन दिया, जिसके बाद रीवा ने अपनी राजकुमारी को धूमधाम से विदा किया.

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विदाई पर इमोशनल हुईं मोहेना…

विदाई के वक्त परिवार से बिछुड़ते वक्त मोहेना कुमारी की आंखों में आंसू उतर आए. वहीं अपनी राजकुमारी को विदा करने के लिए पूरा शहर को सजाया गया था. राजकुमारी को विदा करने पहुंचे लोगों को मोहेना कुमारी ने कुछ ऐसे बाय-बाय भी कहा.

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राजकुमारी के लुक में सजीं मोहेना कुमारी…

अपनी रिसेप्शन पार्टी के लिए मोहेना कुमारी बिल्कुल पारंपरिक राजकुमारी की तरह सजी थीं. मोहेना कुमारी की फोटोज सामने आते ही सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल होने लगी हैं.

बता दें, मोहेना डांस शो में नजर आ चुकी हैं. साथ ही कई शो में फेमस हो चुकी हैं, जिसके बाद शादी के लिए मोहेना ने एक्टिंग करियर शो छोड़ने का फैसला किया है.

दर्दनाक हादसे में पौपुलर सिंगर की हुई मौत, पढ़ें खबर

मराठी फिल्म इंडस्ट्री पौपुलर सिंगर गीता माली की एक दर्दनाक हादसे में मौत हो गई है. हाल ही में मराठी प्लेबैक सिंगर गीता यूएस से लौटकर अपने घर लौट रही थीं, जिस दौरान ये दर्दनाक हादसा हो गया. आइए आपको बताते हैं हादसे की पूरी कहानी…

मुंबई-आगरा हाईवे पर हुआ हादसा

मराठी प्लेबैक सिंगर गीता माली की मौत मुंबई-आगरा हाईवे पर हुआ. खबरों के अनुसार, हाल ही में मराठी प्लेबैक सिंगर गीता माली यूएस से लौटी थी, जिसके बाद वह अपने घर नाशिक जा रही थीं. वहीं इसी दौरान एक गीता की कार सड़क के किनारे खड़ी कंटेनर में टकरा गई. कार में बैठी पौपुलर सिंगर गीता माली और उनके पति गंभीर रूप से घायल हो गए.

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हालत बिगड़ने से हुई मौत

हादसे के तुरंत दोनों को शाहपुर रूरल हौस्पिटल ले जाया गया, लेकिन डौक्टर के ट्रीटमेंट के दौरान गीता की हालत बिगड़ने से उनकी मौत हो गई.

मौत से पहले आखिरी सेल्फी की थी शेयर

अमेरिका से मुंबई आने के बाद गीता ने अपने सोशल मीडिया पेज पर एयरपोर्ट में एक सेल्फी भी शेयर की थी. साथ ही फोटो के साथ कैप्शन लिखा था- ‘घर लौट कर बेहद खुश हूं. ‘

मराठी फिल्म इंडस्ट्री में हैं फेमस

गीता माली एक जानी मानी सिंगर है. वो दर्शकों के बीच काफी पौपुलर भी है. मराठी फिल्म इंडस्ट्री में उनका नाम भी है. गीता माला ने मराठी के कई फिल्मों में अपनी आवाज दी है. वहीं उनकी म्यूजिक एल्बम भी मराठी फैंस को काफी पसंद आ चुकी है.

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आखिर क्यों रोमेंटिक रोल में नजर आना चाहते हैं नवाजुद्दीन, पढ़ें खबर

साधारण कद काठी के अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने अपने अभिनय बल पर यह सिद्ध कर दिया है कि कलाकार को सिर्फ अभिनय का मौका मिलना बहुत आवश्यक  है, ताकि वह अपनी प्रतिभा को आगे ला सकें. हालांकि इसके लिए उन्होंने सालों बहुत मेहनत किये, पर आज वे अपनी कामयाबी से खुश है और नयी-नयी भूमिकाएं करने की चुनौती को स्वीकार रहे है. किसान परिवार में जन्में नवाज को बचपन से ही अभिनय का शौक था और इसके लिए उन्होंने हर तरह का प्रशिक्षण लिया और अभिनय क्षेत्र की ओर मुड़े. देर से ही सही पर आज उनका नाम नामचीन अभिनेताओं की सूची में शामिल हो चुका है. उनके हिसाब से वक़्त बदलता है, पर इंडस्ट्री कभी नहीं बदलती. नवाज ने कई ग्रे शेड के अभिनय किये और सफल रहे, पर अब उन्होंने रोमांटिक कौमेडी ड्रामा फिल्म ‘मोतीचूर चकनाचूर’ में पुष्पिंदर त्यागी की भूमिका निभा रहे है, उनसे मिलकर बात करना रोचक था, पेश है अंश.

सवाल-फिल्म में आपने दिखाया है कि शादी को लेकर आप चूजी नहीं, किसी भी लड़की से आपकी शादी हो जानी चाहिए, क्या रियल लाइफ में आप ऐसे ही थे?

मैंने अपनी शादी को लेकर बहुत अधिक सोचा नहीं था,क्योंकि काम और कैरियर को लेकर मैं बहुत व्यस्त था. संघर्ष ही कर रहा था, ताकि कुछ अच्छा काम मिले, ऐसे में विवाह को लेकर अधिक चिंता नहीं थी.

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सवाल-शादीशुदा जिंदगी में सामंजस्य रखना कितना जरुरी है?

शादी में एक दूसरे के काम को समझना और उसे सम्मान देना बहुत जरुरी है. मैं एक मध्यमवर्गीय परिवार से हूं, जहाँ मेहनत काम के लिए करना पड़ता है. कई बार काम करते हुए रात भी हो जाती है, समय का पता नहीं चलता, ऐसे में घर पर रहने वाले व्यक्ति को समझने की बहुत जरुरत होती है.

सवाल-फिल्म इंडस्ट्री में शादी लोग जल्दी नहीं कर पाते, क्योंकि कैरियर की बात होती है, आपकी सोच इस बारें में क्या है? किस उम्र में शादी कर लेना सही होता है?

शादी की उम्र से कोई लेना-देना नहीं होनी चाहिए. जब आपको अपना मनपसंद साथी मिले, आप शादी कर सकते है. कैरियर को सेट करने के बाद शादी करना अच्छा होता है.

सवाल-इस फिल्म में आपको खास क्या लगा?

मेरी फिल्मों को पूरा परिवार कभी नहीं देख सकते थे, क्योंकि मेरी फिल्मों में एडल्ट कन्टेन अधिक रहता था. ग्रे, डार्क या इंटेंस फिल्में होती थी, जिसमें रोमांस की कोई जगह नहीं होती थी. ये फिल्म रोमकौम फिल्म है, जिसे पूरा परिवार साथ बैठकर देख सकते है. ये मेरी पहली ऐसी फिल्म है और इसे करने में भी बहुत मज़ा आया. अभी मेरी बेटी शोरा 9 साल की हो गयी है और वह मेरी फिल्में नहीं देख पाती थी, अब मैंने उसका ख्याल रखा है. ये कॉमेडी और गुदगुदाने वाली फिल्म है. किसी प्रकार के वल्गर जोक्स इसमें नहीं है. इसे करते हुए बहुत अच्छा लगा. इसके अलावा इस फिल्म के लिए अधिक तैयारियां भी नहीं करनी पड़ी,क्योंकि यह एक आम लडके की कहानी है.

सवाल-अथिया शेट्टी के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?

अथिया ने इस फिल्म के लिए पिछले 3 महीने से मेहनत की है. उसने सारे संवाद अच्छी तरह से याद किये और उसी लहजे में बोले है,जो अच्छी लगी.

सवाल-लोग विदेश जाने को लेकर बहुत उतावले रहते है, पहली बार आप विदेश कब गए? आपकी रिएक्शन क्या थी?

विदेश जाना हर कोई पसंद करता है. मैं पहली बार दुबई एक्टिंग की वर्कशौप लेने गया था.

सवाल-आपने एक सफल कैरियर तय किया है, क्या कोई मलाल अभी बाकी है?

मैंने इंटेंस भूमिका बहुत निभाई है और अब लव स्टोरी करने की इच्छा है. मैं लाइट स्टोरी पर ध्यान देना चाहता हूं. इंटेंस भूमिका करने पर दिमाग पर बहुत जोर लगता है. बहुत डिटेल चरित्र में जाना पड़ता है. इस तरह की फिल्मों में अधिक डिटेल में जाना नहीं पड़ता .लोग इन्हें जानते है और मैं भी आसपास में ऐसे कई चरित्र को देखता हूं.

सवाल- कोई ऐसा चरित्र जिससे निकलने में समय लगा हो?

मंटो और ठाकरे ऐसी ही फिल्में थी ,जिससे निकलने में मुझे महीनों लगे थे. उस चरित्र से बाहर निकलना ही पड़ता है नहीं तो आप उस कॉम्फोर्ट जोन में चले जाते है. सेल्फिश होकर उससे अपने दिल से निकालना पड़ता है, क्योंकि ऐसा न करने पर अगले चरित्र में भी उसकी झलक देखने को मिलती है. नए भूमिका को हमेशा जीरो लेवल से ही शुरू करना अच्छा होता है.

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सवाल-आप लक या हार्डवर्क किस पर अधिक विश्वास करते है?

मैं लक पर नहीं मेहनत, पर अधिक विश्वास करता हूं.  मैं एक प्रशिक्षित कलाकार हूं और अच्छी अभिनय की हमेशा कोशिश करता हूं.

सवाल-अवार्ड आपके लिए कितना महत्व रखते हूं?

अवार्ड का महत्व तब होता है जब उसका आकलन सही तरीके से हो. मेरा उसपर अधिक विश्वास नहीं है. अगर पुरस्कार स्किल और एबिलिटी को देखकर दिया जाय, तो अच्छा लगता है.

सवाल-आपकी आगे आने वाली फिल्में कौन सी है?

मेरे भाई एक फिल्म मेरे साथ बना रहे है. बहुत ही इंटेंस लव स्टोरी है. इसके अलावा बांग्लादेश के लिए ‘मुस्तफा फारुखी’ एक फिल्म कर रहा हूं. जिसकी शूटिंग न्यूयार्क और सिडनी में होने वाली है. अलग-अलग भाषा में काम करते हुए मुझे बहुर ख़ुशी होती है और ये एक कलाकार के लिए जरुरी होता है. इससे आप बहुत कुछ सीखते है.

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