कामकाजी महिलाओं का बढ़ता रुतबा

देश में नौकरी करने वाली महिलाओं की संख्या तेजी से बढ़ रही है. आजादी के 7 दशक बाद पहली बार नौकरियों में शहरी महिलाओं की हिस्सेदारी पुरुषों से ज्यादा हो गई है. सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक शहरों में कुल 52.1% महिलाएं जबकि 45.7 प्रतिशत पुरुष कामकाजी हैं। वैसे ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं नौकरियों में अभी भी पुरुषों से पीछे हैं.

कहीं न कहीं महिलाओं की बढ़ती प्रोफेशनल और टेक्नीकल शिक्षा और लोगों की सोच में परिवर्तन ने बदलाव की यह बयार चलाई है. आज पुरुष भी स्त्रियों को सहयोग देने लगे हैं. लोगों की मानसिकता स्त्री सपोर्टिव बनती जा रही है.

औरतें आज न सिर्फ जरुरत के लिए बल्कि अपने मन की ख़ुशी के लिए भी कामकाजी होना पसंद करती हैं. औफिस के बहाने वे घर के तनावों से बाहर निकल पाती हैं. अपनी पहचान बना पाती हैं.

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घर से ज्यादा औफिस में खुश रहती हैं महिलाएं

पेन स्टेट यूनिवर्सिटी द्वारा हाल में हुई एक स्टडी की रिपोर्ट के मुताबिक महिलाओं को अपने घर के मुकाबले औफिस में कम तनाव होता है. स्टडी के दौरान शोधकर्ताओं ने एक हफ्ते लगातार 122 लोगों में कोर्टीसोल हार्मोन (तनाव पैदा करने वाला हार्मोन) के स्तर की जांच की. इस के साथ ही दिन में अलगअलग समय उन के मूड के बारे में पूछा. नतीजों में सामने आया कि महिलाओं को अपने घर के मुकाबले औफिस में कम तनाव होता है. इस स्टडी में अलग-अलग बैकग्राउंड से आए लोगों को शामिल किया गया. शोधकर्ताओं के मुताबिक़ महिलाएं ऑफिस में ज्यादा खुश रहती हैं जब कि पुरुष अपने घर में ज्यादा खुश रहते हैं.

इस का एक कारण यह भी है कि जब महिलाओं को उन की जौब से संतुष्टि नहीं होती है, तो वे अपनी जौब बदल लेती हैं और जहां उन्हें अच्छा महसूस होता है वहीं जौब करती हैं. लेकिन पुरुष ऐसा नहीं करते हैं. अपनी जौब से संतुष्ट न होने के बाद भी वे उसी कंपनी में काम करते रहते हैं जिस कारण वे औफिस में खुश नहीं रह पाते हैं. इस के अलावा पुरुषों में अधिक अधिकार पाने की जंग भी चलती रहती है. उन का ईगो भी बहुत जल्दी हर्ट होता है.

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घर को महकाएं कुछ ऐसे

रिमझिम फुहारें माहौल को खुशनुमा बना देती हैं. भीषण गरमी के बाद बारिश सब को राहत देती है, लेकिन इसे आप तभी ऐंजौय कर सकती हैं, जब आप का घर फ्रैश और सुगंधित हो. इस बारे में इलिसियम एबोडेस की फाउंडर और इंटीरियर डिजाइनर हेमिल पारिख बताते हैं कि असल में लगातार बारिश की वजह से हवा में नमी की मात्रा बढ़ जाती है. घर के अंदर भी यह नमी प्रवेश कर जाती है. गरमी और नमी की अधिकता से घर की दीवारों पर सीलन आ जाती है, फफूंदी आदि लग जाती है, जिस से बासी गंध चारों तरफ फैल जाती है. स्वच्छ हवा की कमी होने लगती है. इसलिए जरूरी है कि आप अपने घर और आसपास के क्षेत्र को साफसुथरा रखें, ताकि आप को स्वच्छ और अच्छा वातावरण मिले. पेश हैं, कुछ जरूरी टिप्स:

1. कपूर को अधिकतर लोग किसी खास अवसर पर ही जलाते हैं. बारिश में इसे जलाने से फंगल इन्फैक्शन और बासी गंध से बचा जा सकता है. इसे जलाने के बाद कमरे के दरवाजे और खिड़कियां बंद कर 15 मिनट बाद खोल दें. रूम में ताजगी आ जाएगी.

2. अगर आप के कमरे में फर्नीचर है तो उसे गीला होने से बचाएं. गीले फर्नीचर से कई बार दुर्गंध आती है.

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3. पायदान को गीला न होने दें. हर 2-3 दिन बाद उसे पंखे के नीचे रख कर सुखाएं.

4. कुछ लोग बारिश के मौसम में कीड़ेमकोड़ों के डर से दरवाजे और खिड़कियां बंद रखते हैं. इस से कमरे के अंदर बासी गंध अधिक होती है. अत: थोड़ी देर के लिए ही सही पर खिड़कीदरवाजे खुला रखें ताकि बाहर की ताजा हवा अंदर आ सके. इस से क्रौस वैंटिलेशन होने के साथसाथ कमरे की दुर्गंध भी जाएगी.

5. समुद्री नमक किसी भी गंध को सोखने के लिए अच्छा विकल्प है. यह कमरे की नमी को कम करने के अलावा दुर्गंध को भी सोख लेता है. नमक को पतले कपड़े में रख चारों तरफ से सिल कर कमरे में रखें. हर 3-3 दिन बाद नमक को बदल दें.

6. बासी गंध को दूर करने के लिए विनेगर बहुत अच्छा काम करता है. चौड़े मुंह वाले बरतन में 1 कप विनेगर डाल कर कमरे के किसी कोने में रख दें. थोड़ी ही देर में आप को ताजगी का एहसास होने लगेगा.

7. आजकल बाजार में रूम फ्रैशनर आसानी से मिलते हैं. अपनी पसंद के अनुसार ले कर कमरे में स्प्रे कर सकती हैं. इस में लैवेंडर, जास्मिन, गुलाब आदि फ्रैशनैस महसूस कराते हैं.

8. नीम के पत्ते फफूंद को दूर करने में कारगर होते हैं. इस के पत्तों को सुखा कर कपड़ों के बीच और अलमारी के कोनों में रख सकती हैं.

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9. किचन में मस्टी स्मैल को कम करने के लिए बेक करने का आइडिया बहुत अच्छा है. बेकिंग से इस की खुशबू पूरी किचन में फैल जाएगी.

10. इस मौसम में तरहतरह के फूल खिलते हैं और इन फूलों की खुशबू को कोई भी नजरअंदाज नहीं कर सकता. ये फूल केवल सुगंध ही नहीं देते, बल्कि फ्रैशनैस भी कायम रखते हैं. गुलाब चंपा, चमेली, जास्मिन आदि सभी फूल अपनी खुशबू से घर को महकाते हैं, इसलिए इन्हें गुलदस्ते में अवश्य सजाएं.

11. सुगंधित मोमबत्तियां और तेल जलाने से भी घर का वातावरण ताजगीयुक्त हो जाएगा.

पैंसठ की उम्र में भी मां बनना संभव

डौ. अर्चना धवन बजाज बांझपन उपचार और आईवीएफ के क्षेत्र में एक जाना-माना नाम हैं. चिकित्सा के क्षेत्र में एमबीबीएस, डीजीओ, डीएनबी और एमएनएएस की डिग्रियां हासिल करने के बाद उन्होंने यूके स्थित नॉटिंघम विश्वविद्यालय से मेडिकल रिप्रोडक्टिव टेक्नोलौजी में मास्टर्स डिग्री प्राप्त की है. वे हैचिंग, वीर्य भू्रण के संरक्षण, ओवरियन कौर्टिकल पैच, क्लीवेज स्टेज भ्रूण पर ब्लास्टमोर बायोप्सी और ब्लास्टक्रिस्ट की अग्रणी विशेषज्ञ हैं. दिल्ली में नर्चर आईवी क्लिनिक की निदेशक के तौर पर काम करते हुए डौ. बजाज ने स्त्रीरोग विशेषज्ञ, एक परामर्शदाता, प्रसूति विशेषज्ञ और फर्टिलिटी एंड आईवीएफ विशेषज्ञ के तौर पर विशेष ख्याति पायी है.

एक विवाहित युगल के लिए मां-बाप बनना उनके जीवन का सबसे सुखद क्षण होता है, लेकिन कभी-कभी तमाम प्रयासों के बावजूद शादीशुदा जो अपने घर के आंगन में बच्चों की किलकारियां सुनने से महरूम रह जाते हैं. ऐसे दम्पत्तियों के लिए आईवीएफ सेंटर्स एक वरदान साबित हो रहे हैं. आईवीएफ उपचार के चमत्कारी परिणाम देखे जा रहे हैं. ‘पैंसठ साल की आयु में भी मां बनने का सुख उठाने वाली उस महिला की खुशी का अंदाजा आप नहीं लगा सकते, जिसने पूरी जवानी एक बच्चे की आस में गुजार दी. दुनिया भर के ट्रीटमेंट कर डाले, मगर उनके आंगन में खुशी का फूल खिला तो आईवीएफ उपचार के बाद…’ ऐसा कहना है दिल्ली के नारायणा विहार स्थित ‘द नर्चर आईवीएफ क्लिनिक’ की निदेशक डौ. अर्चना धवन बजाज का. ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी औफ नौटिंघम से रिप्रोडक्टिव टेक्नोलौजी में मास्टर्स डिग्री प्राप्त करने वाली डौ. अर्चना धवन बजाज एक स्त्रीरोग विशेषज्ञ, एक परामर्शदाता, प्रसूति विशेषज्ञ और फर्टिलिटी और आईवीएफ के क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित नाम बन चुका है. आज ‘द नर्चर आईवीएफ क्लिनिक’ में भारतीय दम्पत्ति ही नहीं, बल्कि विदेशी दम्पत्ति भी बच्चे की उम्मीद लेकर आते हैं, और अपने साथ खुशियों की सौगात लेकर जाते हैं.

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आईवीएफ के प्रति आज भी लोगों में कई तरह की भ्रांतियां व्याप्त हैं. इससे जुड़े अलग-अलग प्रकार के ट्रीटमेंट से भी लोग वाकिफ नहीं हैं. इसके साथ ही आजकल गली-मोहल्लों में तेजी से खुल रहे आईवीएफ सेंटर्स में ठगे जाने के बाद कई दम्पत्ति निराश हो जाते हैं. आईवीएफ और उससे जुड़ी तकनीकी बातों पर डॉ. अर्चना धवन बजाज ने ‘गृहशोभा’ से विस्तृत बातचीत की.

आईवीएफ क्या है?

आईवीएफ मतलब इन विट्रो फर्टिलाइजेशन अर्थात जो काम शरीर के अन्दर नहीं हो पा रहा है, उसको लैब में टेस्ट्यूब में सम्पन्न कराया जाता है और इस तरह एक महिला को मां बनने का सुख हासिल होता है. आमभाषा में इसको टेस्ट्यूब बेबी कहते हैं. महिलाएं कई कारणों से मां नहीं बन पाती हैं, जैसे उनकी फेलोपियन ट्यूब बंद हो या यूटेसर सम्बन्धी कोई रोग हो, या अनियमित मासिक हो अथवा कोई अन्य वजह हो, तो ऐसी महिला को हॉरमोंस के इंजेक्शन देकर हम उसके गर्भाशय में अंडे बनने की प्रक्त्रिया को तेज करते हैं.

तैयार अंडों को ओवरी से बाहर निकाल कर लैबोरेटरी में उसके पति के स्पर्म के साथ फर्टीलाइज कराके एम्ब्रियो तैयार किया जाता है और तीन या पांच दिन के एम्ब्रियो को महिला की बच्चेदानी में डाल दिया जाता है. जब गर्भाशय की दीवार से एम्ब्रियो अटैच होकर मल्टीप्लाई करने लगता है तब कहते हैं कि महिला को गर्भ ठहर गया है. हम एक बार में ही दो या तीन एम्ब्रियो गर्भाशय में डालते हैं, ताकि गर्भ धारण में आसानी हो, लेकिन महिला की उम्र यदि ज्यादा है, अथवा अंडो की क्वालिटी बहुत अच्छी नहीं है, अथवा वह पहले भी आईवीएफ करवा चुकी है और वह फेल हो चुका है तो हम पांच या छह एम्ब्रियो भी डालते हैं ताकि गर्भधारण की सम्भावना बढ़ जाए.

आईवीएफ ट्रीटमेंट में कितना वक्त लगता है?

एक आईवीएफ साइकल को पूरा होने में बीस से पच्चीस दिन लगते हैं. ये निर्भर करता है महिला के अंडो की क्वालिटी पर भी. यदि क्वालिट अच्छी नहीं है तो हम क्वालिट इम्प्रूव करने के लिए कुछ दवाएं देते हैं. ऐसे में कुछ अधिक समय लग सकता है.

आईवीएफ द्वारा गर्भधारण करने के उपरान्त डिलीवरी नौरमल होती है अथवा सिजेरियन से बच्चा पैदा होता है?

इस बारे में कोई हार्ड एंड फास्ट रूल नहीं है. यह पेट के अन्दर बच्चे की कंडीशन पर निर्भर करता है. यदि बच्चे की पोजिशन गर्भाशय में बिल्कुल ठीक है, ब्लड सप्लाई ठीक है, बच्चे के आसपास द्रव्य बेहतर है, तो नॉरमल डिलीवरी भी होती है. लेकिन यदि किसी तरह की दिक्कत है, बच्चा आड़ा है, उसका वजन ज्यादा है, या जुड़वां बच्चे हैं तो आमतौर पर महिलाएं किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती हैं, इसलिए सिजेरियन कराना ही पसन्द करती हैं. आईवीएफ के जरिये बच्चा पाना किसी भी दम्पत्ति के लिए फाइनेंशियल और इमोशनल मैटर होता है, इसलिए वह बच्चे के जन्म के वक्त किसी तरह की परेशानी नहीं चाहते हैं. वे चाहते हैं कि उनका बच्चा बिल्कुल सेफ रहे, अत: ज्यादातर दम्पत्ति सिजेरियन द्वारा ही बच्चे को जन्म देने के इच्छुक होते हैं.

आईवीएफ से पहला बच्चा पाने वाली महिला को क्या भविष्य में नॉरमल प्रेग्नेंसी भी ठहर सकती है?

हां बिल्कुल हो सकती है. दरअसल आईवीएफ ट्रीटमेंट के दौरान महिला को जो दवाएं मिलती हैं, उससे गर्भाशय में अंडों की क्वालिटी अच्छी हो जाती है. इसलिए ऐसा हो सकता है कि बाद में वह नौरमल तरीके से भी गर्भ धारण कर ले. ऐसे बहुत से उदाहरण मेरे सामने आये हैं. कभी-कभी ये पता नहीं चलता कि गर्भधारण क्यों नहीं हो रहा है. ऐसी स्थिति में अगर पहला बच्चा आईवीएफ से हुआ है तो बहुत सम्भव है कि दूसरी बार महिला नौरमल तरीके से ही गर्भ धारण कर ले.

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अगर एक बार में गर्भाशय में दो से चार एम्ब्रियो डाले जाते हैं तो क्या जुड़वा या इससे ज्यादा बच्चे होने की सम्भावना नहीं होती?

जी हां, बिल्कुल होती है. दो या कई बार तीन बच्चे भी हो जाते हैं. कई कपल्स तो इस बात से बहुत खुश होते हैं कि उनका परिवार एक ही बार के एफर्ट में पूरा हो गया. मगर कई बार आर्थिक रूप से कमजोर दम्पत्ति दो या तीन बच्चे होने पर उतनी खुशी व्यक्त नहीं कर पाते. इसके अलावा एक परेशानी बच्चे की सेहत को लेकर भी होती है. यदि तीन बच्चे मां के गर्भ में हैं तो आमतौर पर उनका वजन कम होता है. कभी-कभी डिलिवरी वक्त से पहले हो जाती है. ऐसे में जन्म के उपरान्त बच्चों को लम्बे समय तक इंटेंसिव केयर यूनिट में रखना पड़ता है, जिसके कारण दम्पत्ति पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ता है.

कम से कम और अधिक से अधिक कितनी उम्र की महिलाएं आईवीएफ के लिए आपके पास आती हैं?

अधिक से अधिक मैंने पैंसठ साल की महिला का आईवीएफ किया है. वह बच्चा पाकर बहुत खुश हुई थीं. मगर इस उम्र में आईवीएफ कराने की राय मैं नहीं देती हूं. क्योंकि जब आप 75 साल के होंगे, तब आपका बच्चा सिर्फ दस साल का होगा. ऐसे में उसकी देखभाल, शिक्षा और अन्य जिम्मेदारी आप किसके कंधे पर डाल कर जाएंगे? फिर साठ या पैंसठ साल की उम्र में महिलाओं का शरीर काफी कमजोर हो चुका होता है. अंडों की क्वालिटी भी अच्छी नहीं रहती. ऐसे में होने वाले बच्चे में भी स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियां पैदा हो सकती हैं. वह मानसिक रूप से कमजोर हो सकता है. इसलिए मेरा मानना है कि अगर शादी के सात से दस साल के अन्दर आप मां नहीं बन पायी हैं तो पैंतीस से पैंतालीस साल के बीच आपको आईवीएफ करवा लेना चाहिए. इस उम्र में महिला शारीरिक रूप से भी तंदरुस्त होती है और मानसिक रूप से भी. वहीं कम उम्र में आईवीएफ उसी हालत में कराना चाहिए जब गर्भाशय सम्बन्धित कोई सीरियस प्रौब्लम महिला को हो, या उसकी फेलोपियन ट्यूब ही पूरी तरह से बंद हो. ऐसे में आईवीएफ ही गर्भधारण का एक रास्ता बचता है.

आईवीएफ ट्रीटमेंट के दौरान पेशंट को काफी इंजेक्शन्स लगते हैं. इसके क्या साइड इफेक्ट होते हैं और यह कितने वक्त तक बने रहते हैं?

किसी भी तरह के रसायन का प्रयोग शरीर पर होता है तो कुछ साइड इफेक्ट तो होते ही हैं. आईवीएफ ट्रीटमेंट के बाद भी ऐसा होता है. मगर यह कोई गम्भीर समस्या नहीं है. आमतौर पर औरतों का वजन बढ़ना, बे्रस्ट का साइज बढ़ना, चिड़चिड़ाहट, थकान, एक्ने या पति के साथ शारीरिक सम्बन्ध बनाने में दिलचस्पी न होना जैसी समस्याएं होती हैं, मगर यह थोड़े वक्त का ही असर है. कभी-कभी ऐसा होता है कि गर्भाशय में बहुत ज्यादा अंडे बनने से पेट में पानी भर जाता है. इस तरह का साइड इफेक्ट खत्म होने में थोड़ा वक्त लगता है और इसका ट्रीटमेंट करना पड़ता है. आजकल हौरमोंस के लिए जो इंजेक्शन यूज हो रहे हैं, वह नेचुरल बौडी हौरमोंस से बहुत ज्यादा मिलते-जुलते हैं, जिससे साइड इफेक्ट की समस्या अब काफी कम हो गयी है. आईवीएफ ट्रीटमेंट अभी भी आम जनता के लिए काफी मंहगा है, जिसके चलते कई दम्पत्ति माता-पिता बनने की खुशी से वंचित रह जाते हैं.

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क्या आपके द नर्चर आईवीएफ क्लिनिकमें आर्थिक रूप से कमजोर दम्पत्तियों के लिए कुछ विशेष छूट है?

हमारे सेंटर की पौलिसी है कि हम ‘नो प्रौफिट-नो लौस’ के सिद्धान्त पर चलते हैं. कई फार्मास्यूटिकल कम्पनियां हमारे उद्देश्यों को पूरा करने में हमारी मदद भी करती हैं. हम आर्म्ड फोर्सेस, पैरा मिलिटरी फोर्सेस या एलाइड सर्विस के लोगों को काफी छूट देते हैं. जो पेशंट आर्थिक रूप से कमजोर हैं हमारी कोशिश होती है कि कम से कम खर्च में हम उनको मां-बाप बनने की खुशी दे सके

आईवीएफ की सफलता की दर कितनी है?

आईवीएफ की सक्सेस रेट पर अलग-अलग डौक्टर्स की राय अलग-अलग है. मैं मानती हूं कि आईवीएफ चालीस प्रतिशत तक सफल रहता है. साठ फीसदी महिलाओं को पहली बार में गर्भ नहीं ठहरता है और उन्हें दो या तीन बार इस प्रौसेस से गुजरना पड़ता है. इसके कई कारण है. इसमें अगर महिला की उम्र बहुत ज्यादा है, उसका वजन बहुत ज्यादा है, गर्भाशय में प्रौब्लम है, अंडों की क्वालिटी खराब है, मेंटल स्थिति कमजोर है या वह कई बार आईवीएफ ट्रीटमेंट से गुजर चुकी है तो पहली बार में आईवीएफ सफल होना मुश्किल होता है.

जिस तरह से देश में आईवीएफ सेंटर्स गली-मोहल्लों में खुल रहे हैं, उनकी विश्वसनीयता कितनी है?

किसी भी चीज की सफलता निर्भर करती है कि आप कितना डिलिवर कर रहे हैं. आपका आउटपुट कितना है. अगर छोटे आईवीएफ सेंटर में भी अत्याधुनिक मशीनों पर काम हो रहा है तो उसकी सफलता निश्चित है. देखना पड़ता है कि वहां डॉक्टर कितना समझदार है, उसकी क्वालिफिकेशन क्या है, उसकी सफलताएं क्या हैं, वह अपने पेशंट्स के प्रति कितना डेडिकेटेड है, उसकी लैब कैसी है, एम्ब्रियोलोजिस्ट कैसा है. एक छोटी सी जगह में भी एक अच्छी साफ-सुथरी, अत्याधुनिक यंत्रों से सुसज्जित लैब रख कर हम वही  रिजल्ट प्राप्त कर सकते हैं जैसे बड़े क्लीनिक में मिलते हैं. मेरा कहने का आशय है कि जगह महत्वपूर्ण नहीं है, सुविधाएं महत्वपूर्ण हैं. जिनकी छानबीन कर लेनी चाहिए.

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डौ. अर्चना धवन बजाज

‘द नर्चर आईवीएफ क्लिनिक’ की निदेशक डौ. अर्चना धवन बजाज       

61 की उम्र में भी इतनी स्टाइलिश हैं रणबीर की मां नीतू कपूर

बौलीवुड की आईकौनिक जोड़ियों में से ऋषि कपूर और नीतू कपूर के साथ होने के सफर को 40 साल पूरे हो गए हैं. हाल ही में ऋषि कपूर कैंसर की लड़ाई को पूरी तरह जीत चुके हैं, जिस सफर में उनकी वाइफ नीतू कपूर ने उनका पूरी तरह साथ दिया. वहीं नीतू कपूर के लुक्स की बात करें तो वे अपने टाइम की खूबसूरत एक्ट्रेसेस में से एक रह चुकी है और आज भी उनकी फैशन वर्किंग वूमन और लेडिज के बीच पौपुलर है. इसलिए आज हम आपको उनके कुछ लुक्स के बारे में बताएंगे. जिन्हें आप किसी भी पार्टी या आउटिंग के लिए अपना सकते हैं.

1. नीतू का सिंपल लुक है परफेक्ट

नीतू कपूर अपने सिंपल फैशन के लिए जानी जाती हैं. उनकी सिंपल वाइट टौप और ग्रीन पैंट आपके लुक को कम्पलीट करने के लिए बेस्ट है. आप नीतू कपूर के इस लुक को औफिस के लिए ट्राय कर सकते हैं.

 

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So many memories dances weddings with @masterjirocks was quite a reunion reminiscing ????

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2. ग्रीन लुक है पार्टी के लिए परफेक्ट

 

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Congratulations Shweta ?? outstanding collection ?? #shwetabachchan#mxsworld

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ग्रीन लुक मौनसून के लिए परफेक्ट है. मौनसून में आजकल लोगों को ब्राइट कलर ज्यादा पसंद आते हैं. अगर आप भी मौनसून में कुछ नया ट्राय करना चाहते हैं तो ये लुक आपके लिए परफेक्ट रहेगा. सिंपल ग्रीन टौप विद ग्रीन पैंट के साथ हिल्स आपके लुक को पार्टी के लिए परफेक्ट बनाएगा.

3. मौनसून में शौर्ट्स लुक है परफेक्ट 

 

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Acha chalte hain ??will miss the madness ❤️??

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अगर आप मौनसून में कहीं beach पर या कहीं घूमने का प्लैन कर रहें हैं तो ये लुक आपके लिए परफेक्ट रहेगा. सिंपल शर्ट के साथ ब्राउन शौर्ट्स और उससे मैचिंग के शूज आपको कम्फरटेबल का एहसास दिलाएगा.

4. ब्लैक लुक औफिस या फौर्मल गैदरिंग के लिए है परफेक्ट

 

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Super time @kapilsharma show !!!great talent ?? never laughed so much ?????

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नीतू कपूर का ब्लैक पैंट और बो के साथ चेक शर्ट आपके लिए परफेक्ट लुक है. ये लुक आप अपने औफिस या किसी सिंपल फौर्मल गैदरिंग के लिए ट्राय कर सकते हैं. ये लुक सिंपल के साथ-साथ एलिगेंट भी है.

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बता दें, नीतू कपूर ने अपने और ऋषि कपूर के साथ अब 40 साल पूरे होने की खुशी में एक पोस्ट शेयर किया था, जिसमें उन्होंने अपनी और ऋषि कपूर की पहली मुलाकात का किस्सा शेयर किया.

वर्ल्ड कप से बाहर हुई टीम इंडिया, बौलीवुड ने ऐसे किया सपोर्ट

‘वर्ल्ड कप 2019’ सेमीफाइनल में भारत के न्यूजीलैंड से मैच हारने के बाद जहां कईं इंडियन फैन निराश हो गए तो वहीं इंडियन टीम के सपोर्ट में बौलीवुड ने कदम बढाया है.  बौलीवुड सेलेब्स अमिताभ बच्चन, आमिर खान और अनुपम खेर जैसे बड़े सितारों ने टीम के जज्बे की तारीफ करते हुए सोशलमीडिया पर लगा तार ट्वीट किए. आइए आपको दिखाते हैं सेलेब्स के इंडिया के सपोर्ट में कुछ खास ट्वीट…

टीम इंडिया के सपोर्ट में अमिताभ बच्चन भी आए आगे

अमिताभ ने लिखा, ‘आप लोगों ने आज चैंपियन्स की तरह कमाल का खेल खेला. इससे पता चलता है कि आपमें काबिलीयत है. रिजल्ट चाहें जो भी रहा हो, मेरे लिए आप दुनिया की सबसे बेहतरीन टीम है और हमेशा रहेंगे.’ अमिताभ बच्चन और आमिर खान के अलावा अर्जुन कपूर, सारा अली खान, अनुपम खेर और स्वरा भास्कर जैसे सितारों ने भी टीम इंडिया का जमकर सपोर्ट किया.

आमिर ने बढ़ाया टीम इंडिया का हौसला

इंडियन टीम का हौसला बढ़ाते हुए सबसे पहले आमिर खान ने ट्वीट किया, जिसमें लिखा, ‘विराट हमारी किस्मत खराब थी. शायद आज हमारा दिन है ही नहीं. मेरे लिए आप वर्ल्ड कप 2019 का खिताब पहले ही जीत चुके हो क्योंकि आप सेमी फिनाले में पहुंचने वाली टीमों में सबसे आगे थे.’ आगे टीम इंडिया की तारीफ करते हुए आमिर ने लिखा, ‘आप बहुत अच्छा खेले, लेकिन काश कल बारिश न हुई होती तो शायद हम यह मैच भी जीत जाते. इस सब के बावजूद भी हमें आप पर नाज है. वहीं अमिताभ बच्चन ने भी टीम इंडिया और कैप्टन विराट की खूब तारीफ की.’

अनुपम खेर भी नही रहे पीछे

अनुपम खेर ने ट्वीट करते हुए लिखा, ‘अपने खेल और आपके प्रयासों के लिए #IndianCricketTeam थैंक्यू. आपने बहुत अच्छा खेला. आप हमें एक साथ बांधते हैं. आप हम में इंडियन को बाहर लाए. रियलिटी में आपने हमारे दिलों में तिरंगा लहराया. आप हमेशा हमारे हीरो रहेंगे. हम आपसे प्यार करते हैं.’

बता दें, बीती शाम हुए ‘वर्ल्ड कप 2019’ सेमीफाइनल में इंडिया और न्यूजीलैंड के मैच में भारत केवल 19 रन से हार गई, जिसके बाद वे वर्ल्ड कप 2019 की रेस से बाहर हो गई है. वहीं कुछ फैंस तो मैच हारने पर टीम का सपोर्ट कर रहे हैं तो वहीं कुछ तरह-तरह के मीम्स बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल कर रहे हैं.

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‘सुपर 30’ फिल्म रिव्यू: रितिक रोशन और पंकज त्रिपाठी की शानदार एक्टिंग

रेटिंगः तीन

निर्माताःफैंटम फिल्मस, नाडियादवाला ग्रैंडसंस इंटरटेनमेंट और रिलायंस इंटरटेनमेंट

निर्देशकः विकास बहल

कलाकारः रितिक रोशन,मृणाल ठाकुर, वीरेंद्र सक्सेना,नंदिश सिंह, पंकज त्रिपाठी,जौनी लीवर

अवधिः दो घंटे 35 मिनट

पटना में ‘‘सुपर 30’’ नामक कोचिंग क्लास चलाने वाले जाने माने गणितज्ञ और बिहार के द्रोणाचार्य के रूप में मशहूर आनंद कुमार के जीवन व कृतित्व पर आधारित फिल्म दर्शकों को मोटीवेट प्रेरणा देती है. आनंद कुमार के पढ़ाए हुए सैकड़ों बच्चे आईआईटी पास कर देश विदेश में नाम रोशन कर रहे हैं.

कहानीः

फिल्म की कहानी शुरू होती है अमरीका में पुरस्कार लेने के बाद फुग्गा के भाषण से. वह अपने भाषण में बताता है कि किस तरह से वह आनंद कुमार (रितिक रोशन) की वजह से यहां तक पहुंचा है. फिर कहानी शुरू होती है अतीत से. आनंद कुमार (रितिक रोशन) के पिता राजेंद्र (वीरेंद्र सक्सेना) पोस्टमैन हैं और राजेंद्र के उपर आनंद कुमार व उसके भाई प्रणव कुमार(नंदिश सिंह) की परवरिश की जिम्मेदारी है. पढ़ाई में तेज आनंद कुमार को एक समारोह में राज्य के शिक्षामंत्री श्री राम सिंह (पंकज त्रिपाठी) पुरस्कृत करते हुए किसी भी जरुरत के लिए उनसे मिलने के लिए कह देते हैं. आनंद कुमार पुरस्कृत होने की खबर सबसे पहले अपनी प्रेमिका रितु रश्मी (मृणाल ठाकुर) को देते हैं. आनंद कुमार हर शनिवार व रविवार पटना जाकर पुस्तकालय में कैम्ब्रिज की पत्रिका से कुछ सवाल हल करते हैं. पर उसे वहां से भगा दिया जाता है, लेकिन पुस्तकालय का एक कर्मचारी आनंद कुमार से कहता है कि यदि वह अपना लेख कैम्ब्रिज की मैग्जीन मे छपवा लें, तो उसे यह पत्रिका हमेशा निःशुल्क मिलेगी. आनंद कुमार गणित पर एक लेख लिखते हैं और उसे डाक टिकट के पैसे पोस्ट आफिस के कर्मचारियों से चंदा जुटाकर लंदन भेजता है. उसका लेख कैम्ब्रिज की पत्रिका में छपने के साथ ही उसे कैम्ब्रिज में पढ़ने के लिए प्रवेश मिल जाता है. अब इंग्लैड जाने के लिए पैसे का जुगाड़ करते हुए राजेंद्र अपने पीएफ से कर्ज ले लेते हैं. फिर भी टिकट के पैसे पूरे नही होते. यहां तक कि शिक्षामंत्री भी मदद नहीं करते. इसी सदमे में राजेंद्र की मौत हो जाती है. उसके बाद आनंद कुमार और प्रणव दोनों भाई साइकिल से घूम घूम कर पापड़ बेचना शुरू करते हैं.

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एक दिन आनंद कुमार पर लल्लन सिंह (आदित्य श्रीवास्तव) की नजर पड़ती है. लल्लन सिंह एक्सलेंस कोचिंग अकादमी चलाते हैं. असल में यह कोचिंग इंट्टीट्यूट शिक्षा मंत्री का है. लल्लन सिंह,आनंद कुमार को एक्सलेंस कोचिंग अकादमी में नौकरी देकर प्रचार करते हैं और फीस दुगनी कर देते हैं. आनंद कुमार के घर में खुशहाली आ जाती है. समय बीतता है. एक दिन एक घटनाक्रम से उन्हें अहसास होता है कि इस तरह वह भी ‘राजा का बेटा ही राजा बनेगा’को बढ़ावा दे रहे हैं. गरीब व कमजोर तबके तक शिक्षा पहुंच ही नहीं रही है. फिर वह एक निर्णय लेते हैं कि इस निर्णय के बाद आनंद कुमार एक्सलेंस कोचिंग अकादमी की नौकरी छोड़ खुद का कोचिंग सेंटर शुरू करते हैं, जहां वह हर बच्चे को मुफ्त में पढ़ाने के साथ ही रहने व खाने की व्यवस्था भी करते हैं. शुरूआत में ही उनकी जमा पूंजी खत्म हो जाती है. इसी के साथ आनंद कुमार के इस कदम लल्लन सिंह उनका दुश्मन बन जाता है. आनंद कुमार अपनी कोचिंग सेंटर में गरीब तबके के सिर्फ तीस लोगों को ही प्रवेश देते हैं. प्रणव कुमार अपने भाई आनंद कुमार का पूरा साथ देते हैं. लल्लन सिंह, आनंद कुमार की कोचिंग सेंटर को बंद करवाने और आंनद कुमार को फिर से एक्सलेंस कोचिंग अकादमी से जोड़ने के लिए कई तरह के हथकंडे अपनाते हैं. यहां तक कि आनंद कुमार की हत्या करवाने की भी कोशिश करते हैं. पर अंत में आनंद कुमार के कोचिंग सेंटर में पढ़ रहे सभी तीस तीस बच्चे आईआईटी प्रवेश परीक्षा पास करने में सफल हो जाते हैं.

पटकथा व निर्देशनः

पटकथा काफी चुस्त दुरूस्त है,लेकिन यदि आप इसे लौजिक तर्क की कसौटी पर कसेंगे, तो काफी खामियां हैं. पटकथा लेखक व निर्देशक को इस पर गौर करना चाहिए था. वैसे यह एक मोटीवेट करने वाली कहानी है. बतौर निर्देशक विकास बहल ने सिनेमा की स्वतंत्रता का भरपूर उपयोग करते हुए कहानी को अति नाटकीय बनाने की पूरी कोशिश की है. इंटरवल तक फिल्म काफी सधी हुई, मगर इंटरवल के बाद फिल्म में नाटकीयता ही नाटकीयता है. फिल्म में बच्चो की भूख, पढ़ने की लालसा, उनकी बेबसी आदि को बहुत भावनात्मक तरीके से पिरोया गया है. अस्पातल का दृश्य जरुरत से ज्यादा फिल्मी हो गया है.

गीत-संगीतः

फिल्म का गीत संगीत प्रभावित नही करता.

अभिनयः

जहां तक एक्टिंग का सवाल है, तो रितिक रोशन ने पहली बार डिग्लैमरज किरदार निभाया है. उन्होंने बिहार के पहनावे व भाषा के टोन को भी पकड़ने की कोशिश की है. यूं तो उनकी एक्टिंग शानदार है, मगर कई दृश्यों में वह अपने आपको दोहराते हुए नजर आते हैं. इसके बाद शिक्षा मंत्री के किरदार में पंकज त्रिपाठी अपनी गजब परफार्मेंस के चलते अंत तक याद रह जाते हैं. फिल्म में वीरेंद्र सक्सेना व आदित्य श्रीवास्तव ने भी अच्छा एक्टिंग किया है. मृणाल ठाकुर के हिस्से इस फिल्म में करने के लिए कुछ है नहीं. एक तरह से मृणाल ठाकुर की प्रतिभा को जाया किया गया है. वह सिर्फ खूबसूरत नजर आयी हैं. पत्रकार के अति छोटे किरदार में अमित साध ने ठीकठाक परफार्मेस दी है.

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जब प्यार और शादी बन जाए तनाव का कारण

जी हां ऐसा अक्सर होता है जब इंसान प्यार किसी और से और शादी किसी दूसरे व्यक्ति से करता है… इसके कई कारण होते हैं जैसे परिवार की सहमति ना मिलना या लड़के के माता-पिता का राजी ना होना या फिर जाति अलग-अलग होना भी परिवार को रास नहीं आता.

कास्ट एक ना होना तो सबसे बड़ी वजह होती है. आपने एक फिल्म देखी होगी ‘हम दिल दे चुके सनम’ में ऐश्वर्या राय की शादी अजय देवगन से होती है जबकि वो व्यार सलमान खान से करती है. भले ही वो लाइफ में बाद में आगे बढ़ती है लेकिन उससे पहले काफी समय तक वो एक मानसिक तनाव से गुजरती है. भले ही वो एक फिल्म थी लेकिन जो सच दिखाया गया असल जिंदगी में भी वैसा ही होता है.

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खासकर अगर एस लड़की की बात की जाए तो उसकी मानसिक स्थिति तो इसलिए भी ठीक नहीं होती क्योंकि वो जिससे शादी करती है वो उसके लिए एकदम नया होता है.वो जिससे प्यार करती थी उसे भूलना या उसकी यादों को भूलाना इतना आसान नहीं होता. पति जब-जब उसके करीब आने की कोशिश करेगा तब-तब उसे अपने पहले प्यार की याद आएगी जिससे वो बेइंतहां मोहब्बत करती थी.

ऐसे में वो पति से दूर-दूर रहती है,जिसके कारण उसका पति भी सोचने पर मजबूर हो जाएगा कि आखिर बात क्या है? उस वक्त पति को भी मानसिक तनाव की स्थिति से गुजरना पड़ता है और उसके अंदर चिड़चिड़ापन सा आ जाता है. इधर पत्नी भी अपने पूरे तन,मन और धन से पति को नहीं अपना पाती उसकी भी मानसिक स्थिति ठीक नहीं रहती साथ ही उसे भी चिढ़न होने लगती है.

बात-बात पर पति से झगड़े होने लगते हैं,उनमें तालमेल नहीं बैठ पाता कभी-कभी तो स्थिति इस कदर बिगड़ जाती है कि तलाक की नौबत आ जाती है और फिर क्या रिश्ता ही खत्म हो जाता है…..लेकिन हर रिश्ते में ऐसा नहीं होता है कभी-कभी लड़के और लड़की की समझदारी काम आती है दोनों एक-दूसरे से अपनी पिछली जिंदगी के बारे में बात करके रिश्ते को आगे बढ़ाने की कोशिश करते हैं और पति-पत्नी का रिश्ता सफल भी हो जाता है.

लड़की ने शादी से पहले उस लड़के के साथ बहुत से सपने देखे होते हैं कि जिंदगी में आगे हम क्या करेंगे कहां घूमने जाएंगे ऐसी बहुत सी चीजें होती हैं और जब किसी और के साथ वैवाहिक जीवन में बंध जाती हैं तो ये सारी बातें उसे याद आती हैं और तनाव बढ़ता है जिसके कारण वो और ज्यादा चिड़चिड़ी होने लगती है,क्योंकि उसे उसकी मनचाही चीजें नहीं मिलती. ऐसी स्थिति में वैवाहिक जीवन भी सुखमय नहीं होता कभी और फिर अगर किसी तरह ये रिश्ता आगे बढ़ भी जाए तो इसका परिवार और बच्चे दोनों पर बहुत बुरा असर पड़ता है. ऐसी बहुत सी चीजें होती हैं जो हरपल उसे अपने पहले प्यार की याद दिलाती हैं और अंदर ही अंदर उसे घुटन होने लगती है.

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मानसिक तनाव से रिश्ता तो खत्म होता ही है साथ ही उसकी जिंदगी भी तबाह सी हो जाती है और उसे लगता है कि जीवन में अब कुछ भी नहीं बचा..लेकिन कुछ उपाय करके आप अपनी जिंदगी को अच्छा और उस शादीशुदा रिश्ते को सफल बना सकती हैं.

1.होने वाले पति से अपनी पिछली जिंदगी के बारे में बताएं.

2.उसे समझने की कोशिश करें शायद वो आपको उतना ही प्यार दे पाए.

3.अपनी समस्या उससे साझा करें,उसके बारे में भी जाने इससे एक रिश्ता सफल हो सकता है.

4.पति को सबकुछ बताएं…उसे भी प्यार करने की कोशिश करें शायद वो भी आपको वो सबकुछ दे सकता है जो आपको अपने पहले प्यार से चाहिए था. ये सारे उपाय आपको मानसिक तनाव से भी उभरने में मदद करेंगे.

भीड़ में अकेली होती औरत

अवंतिका को शुरू से ही नौकरी करने का शौक था. ग्रैजुएशन के बाद ही उस ने एक औफिस में काम शुरू कर दिया था. वह बहुत क्रिएटिव भी थी. पेंटिंग बनाना, डांस, गाना, मिमिक्री, बागबानी करना उस के शौक थे और इन खूबियों के चलते उस का एक बड़ा फ्रैंड्स गु्रप भी था. छुट्टी वाले दिन पूरा ग्रुप कहीं घूमने निकल जाता था. फिल्म देखता, पिकनिक मनाता या किसी एक सहेली के घर इकट्ठा हो कर दुनियाजहान की बातों में मशगूल रहता था.

मगर शादी के 4 साल के अंदर ही अवंतिका बेहद अकेली, उदास और चिड़चिड़ी हो गई है. अब वह सुबह 9 बजे औफिस के लिए निकलती है, शाम को 7 बजे घर पहुंचती है और लौट कर उस के आगे ढेरों काम मुंह बाए खड़े रहते हैं.

अवंतिका के पास समय ही नहीं होता है किसी से कोई बात करने का. अगर होता भी है तो सोचती है कि किस से क्या बोले, क्या बताए? इतने सालों में भी कोई उस को पूरी तरह जान नहीं पाया है. पति भी नहीं.

अवंतिका अपने छोटे से शहर से महानगर में ब्याह कर आई थी. उस का नौकरी करना उस की ससुराल वालों को खूब भाया था, क्योंकि बड़े शहर में पतिपत्नी दोनों कमाएं तभी घरगृहस्थी ठीक से चल पाती है. इसलिए पहली बार में ही रिश्ते के लिए ‘हां’ हो गई थी. वह जिस औफिस में काम करती थी, उस की ब्रांच यहां भी थी, इसलिए उस का ट्रांसफर भी आसानी से हो गया. मगर शादी के बाद उस पर दोहरी जिम्मेदारी आन पड़ी थी. ससुराल में सिर्फ उस की कमाई ही माने रखती थी, उस के गुणों के बारे में तो कभी किसी ने जानने की कोशिश भी नहीं की. यहां आ कर उस की सहेलियां भी छूट गईं. सारे शौक जैसे किसी गहरी कब्र में दफन हो गए.

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घरऔफिस के काम के बीच वह कब चकरघिन्नी बन कर रह गई, पता ही नहीं चला. शादी से पहले हर वक्त हंसतीखिलखिलाती, चहकती रहने वाली अवंतिका अब एक चलतीफिरती लाश बन कर रह गई है. घड़ी की सूईयों पर भागती जिंदगी, अकेली और उदास.

यह कहानी अकेली अवंतिका की नहीं है, यह कहानी देश की उन तमाम महिलाओं की है, जो घरऔफिस की दोहरी जिम्मेदारी उठाते हुए भीड़ के बीच अकेली पड़ गई हैं. मन की बातें किसी से साझा न कर पाने के कारण वे लगातार तनाव में रहती हैं. यही वजह है कि कामकाजी औरतों में स्ट्रैस, हार्ट अटैक, ब्लडप्रैशर, डायबिटीज, थायराइड जैसी बीमारियां उन औरतों के मुकाबले ज्यादा दिख रही हैं, जो अनब्याही हैं, घर पर रहती हैं, जिन के पास अपने शौक पूरे करने के लिए पैसा भी है, समय भी और सहेलियां भी.

दूसरों की कमाई पर नहीं जीना चाहती औरतें

ऐसा नहीं है कि औरतें आदमियों की कमाई पर जीना चाहती हैं या उन की कमाई उड़ाने का उन्हें शौक होता है. ऐसा कतई नहीं है. आज ज्यादातर पढ़ीलिखी महिलाएं अपनी शैक्षिक योग्यताओं को बरबाद नहीं होने देना चाहती हैं. वे अच्छी से अच्छी नौकरी पाना चाहती हैं ताकि जहां एक ओर वे अपने ज्ञान और क्षमताओं का उपयोग समाज के हित में कर सकें, वहीं आर्थिक रूप से सक्षम हो कर अपने पारिवारिक स्टेटस में भी बढ़ोतरी करें.

आज कोई भी नौकरीपेशा औरत अपनी नौकरी छोड़ कर घर नहीं बैठना चाहती है. लेकिन नौकरी के साथसाथ घर, बच्चों और परिवार की जिम्मेदारी जो सिर्फ उसी के कंधों पर डाली जाती है, उस ने उसे बिलकुल अकेला कर दिया है. उस से उस का वक्तछीन कर उस की जिंदगी में सूनापन भर दिया है. दोहरी जिम्मेदारी ढोतेढोते वह कब बुढ़ापे की सीढि़यां चढ़ जाती है, उसे पता ही नहीं चलता.

अवंतिका का ही उदाहरण देखें तो औफिस से घर लौटने के बाद वह रिलैक्स होने के बजाय बच्चे की जरूरतें पूरी करने में लग जाती है. पति को समय पर चाय देनी है, सासससुर को खाना देना है, बरतन मांजने हैं, सुबह के लिए कपड़े प्रैस करने हैं, ऐसे न जाने कितने काम वह रात के बारह बजे तक तेजी से निबटाती है और उस के बाद थकान से भरी जब बिस्तर पर जाती है तो पति की शारीरिक जरूरत पूरी करना भी उस की ही जिम्मेदारी है, जिस के लिए वह मना नहीं कर पाती है.

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वहीं उस का पति जो लगभग उसी के साथसाथ घर लौटता है, घर लौट कर रिलैक्स फील करता है, क्योंकि बाथरूम से हाथमुंह धो कर जब बाहर निकलता है तो मेज पर उसे गरमगरम चाय का कप मिलता है और साथ में नाश्ता भी. इस के बाद वह आराम से ड्राइंगरूम में बैठ कर अपने मातापिता के साथ गप्पें मारता है, टीवी देखता है, दोस्तों के साथ फोन पर बातें करता है या अपने बच्चे के साथ खेलता है. यह सब कर के वह अपनी थकान दूर कर रहा होता है. अगले दिन के लिए खुद को तरोताजा कर रहा होता है. उसे बनाबनाया खाना मिलता है. सुबह की बैड टी मिलती है. प्रैस किए कपड़े मिलते हैं. करीने से पैक किया लंच बौक्स मिलता है. इन में से किसी भी काम में उस की कोई भागीदारी नहीं होती.

और अवंतिका? वह घर आ कर रिलैक्स होने के बजाय घर के कामों में खप कर अपनी थकान बढ़ा रही होती है. घरऔफिस की दोहरी भूमिका निभातेनिभाते वह लगातार तनाव में रहती है. यही तनाव और थकान दोनों आगे चल कर गंभीर बीमारियों में बदल जाता है.

घरेलू औरत भी अकेली है

ऐसा नहीं है कि घरऔफिस की दोहरी भूमिका निभाने वाली महिलाएं ही अकेली हैं, घर में रहने वाली महिलाएं भी आज अकेलेपन का दंश झेल रही हैं. पहले संयुक्त परिवार होते थे. घर में सास, ननद, जेठानी, देवरानी और ढेर सारे बच्चों के बीच हंसीठिठोली करते हुए औरतें खुश रहती थीं. घर का काम भी मिलबांट कर हो जाता था. मगर अब ज्यादातर परिवार एकल हो रहे हैं. ज्यादा से ज्यादा लड़के के मातापिता ही साथ रहते हैं. ऐसे में बूढ़ी होती सास से घर का काम करवाना ज्यादातर बहुओं को ठीक नहीं लगता. वे खुद ही सारा काम निबटा लेती हैं.

मध्यवर्गीय परिवार की बहुओं पर पारिवारिक और सामाजिक बंधन भी खूब होते हैं. ऐसे परिवारों में बहुओं का अकेले घर से बाहर निकलना, पड़ोसियों के साथ हिलनामिलना अथवा सहेलियों के साथ सैरसपाटा निषेध होता है. जिन घरों में सासबहू के संबंध ठीक नहीं होते, वहां तो दोनों ही महिलाएं समस्याएं झेलती हैं. आपसी तनाव के चलते दोनों के बीच बातचीत भी ज्यादातर बंद रहती है. ऐसे घरों में तो सास भी अकेली है और बहू भी अकेली.

कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि जो लड़की शादी से पहले पूरी आजादी से घूमतीफिरती थी, अपनी सहेलियों में बैठ कर मन की बातें करती थी, वह शादी के बाद चारदीवारी में घिर कर अकेली रह जाती है. पति और सासससुर की सेवा करना ही उस का एकमात्र काम रह जाता है. शादी के बाद लड़कों के दोस्त तो वैसे ही बने रहते हैं. आएदिन घर में भी धमक पड़ते हैं, लेकिन लड़की की सहेलियां छूट जाती हैं. उस की मांबहनें सबकुछ छूट जाता है. सास के साथ तो हिंदुस्तानी बहुओं की बातचीत सिर्फ ‘हां मांजी’ और ‘नहीं मांजी’ तक ही सीमित रहती है, तो फिर कहां और किस से कहे घरेलू औरत भी अपने मन की बात?

अकेलेपन का दंश सहने को क्यों मजबूर

स्त्री शिक्षा में बढ़ोतरी होना और महिलाओं का अपने पैरों पर खड़ा होना किसी भी देश और समाज की प्रगति का सूचक है. मगर इस के साथसाथ परिवार और समाज में कुछ चीजों और नियमों में बदलाव आना भी बहुत जरूरी है, जो भारतीय समाज और परिवारों में कतई नहीं आया है. यही कारण है कि आज पढ़ीलिखी महिला जहां दोहरी भूमिका में पिस रही हैं, वहीं वे दुनिया की इस भीड़ में बिलकुल तनहा भी हो गई हैं.

पश्चिमी देशों में जहां औरतमर्द शिक्षा का स्तर एक है. दोनों ही शिक्षा प्राप्ति के बाद नौकरी करते हैं, वहीं शादी के बाद लड़का और लड़की दोनों ही अपनेअपने मातापिता का घर छोड़ कर अपना अलग घर बसाते हैं, जहां वे दोनों ही घर के समस्त कार्यों में बराबर की भूमिका अदा करते हैं. मगर भारतीय परिवारों में कामकाजी औरत की कमाई तो सब ऐंजौय करते हैं, मगर उस के साथ घर के कामों में हाथ कोई भी नहीं बंटाता. पतियों को तो घर का काम करना जैसे उन की इज्जत गंवाना हो जाता है. हाय, लोग क्या कहेंगे?

सासससुर की मानसिकता भी यही होती है कि औफिस से आ कर किचन में काम करना बहू का काम है, उन के बेटे का नहीं. ऐसे में बहू के अंदर खीज, तनाव और नफरत के भाव ही पैदा हो सकते हैं, खुशी के तो कतई नहीं.

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आज जरूरत है लड़कों की परवरिश के तरीके बदलने की और यह काम भी औरत ही कर सकती है. अगर वह चाहती है कि उस की आने वाली पीढि़यां खुश रहें, उस की बेटियांबहुएं खुश रहें तो अपनी बेटियों को किचन का काम सिखाने से पहले अपने बेटों को घर का सारा काम सिखाएं.

आप की एक छोटी सी पहल आधी आबादी के लिए मुक्ति का द्वार खोलेगी. यही एकमात्र तरीका है जिस से औरत को अकेलेपन के दंश से मुक्ति मिल सकेगी.

हेल्थ के लिए खतरनाक हो सकती हैं ये इनरवियर मिस्टेक्स

फैंसी ब्रा, लेस वाली पैंटी देख कौन महिला अट्रैक्ट नहीं होगी, क्योंकि आज महिलाएं सिर्फ अपनी आउटर पर्सनैलिटी को ही नहीं निखारती, बल्कि इनर पर्सनैलिटी पर भी खास ध्यान देती हैं. दें भी क्यों न, क्योंकि लौंजरी न सिर्फ कौन्फिडैंस बढ़ाती है, बल्कि आउटफिट्स की रौनक को भी बढ़ाने का काम करती है. मगर कई बार महिलाएं लौंजरी के स्टाइल को देख कर या फिर सस्ते के चक्कर में कुछ भी खरीद लेती हैं, जिसे पहन न तो खुद को फ्री फील करती हैं और न ही हैल्थ के लिहाज से वह सही होता है. पर आज हम आपको लेडिज कौमन मिस्टेक्स के बारे में बताएंगे, जो आपकी हेल्थ पर भी असर डालती है.

1. शेपवियर पहनने में गलती

कुछ महिलाएं देखा-देखी परफैक्ट लुक पाने के लिए शेपवियर का छोटा साइज खरीद लेती हैं, जो बौडी को नुकसान पहुंचाता है, क्योंकि हम जब भी ज्यादा टाइट अंडरगारमैंट्स पहनते हैं, तो ब्लड ठीक ढंग से फ्लो नहीं हो पाता, जो धीरे-धीरे हमें बीमार ही करता है. इसलिए हमेशा अपने साइज का शेपवियर ही पहनें.

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2. ब्रा उतारने की आदत

अकसर महिलाएं जब घर पर होती हैं तो खुद को रिलैक्स फील कराने के लिए ब्रा को उतारना ही बेहतर समझती हैं, जबकि ऐसा करने से ब्रैस्ट धीरे-धीरे अपना आकार खोने लगती है, जो शेप को बिगाड़ने का काम करती है. ऐसे में ब्रा को उतारने से बेहतर है कि आप स्पोर्ट्स ब्रा पहनें, जो हलकी होने के साथ-साथ आप को कंफर्ट भी देगी और फिगर भी खराब नहीं होगी.

3. ब्रा साइज चुनने में मिस्टेक

कुछ महिलाएं सोचती हैं कि अगर वे छोटे साइज की ब्रा पहनेंगी तो उनकी ब्रैस्ट ज्यादा उभरी हुई दिखाई देगी, जबकि इस से ब्लड फ्लो ठीक से नहीं होता. ऐसे ही बड़े साइज की ब्रा पहनने से न तो फिटिंग सही आती है और साथ ही इससे बैक पेन की भी प्रौब्लम हो जाती है. इसलिए अगर आप अपनी ब्रैस्ट को बड़ा दिखाना चाहती हैं, तो पुशअप या पैडेड ब्रा यूज करें.

4. घटिया फैब्रिक का चयन

अधिकांश महिलाओं को सिर्फ स्टाइल देख कर ही ब्रा खरीदने की आदत होती है, जबकि उस के मैटीरियल का भी ध्यान रखना जरूरी है. खराब मैटीरियल के गारमैंट्स शरीर पर रैशेज, ऐलर्जी जैसी प्रौब्लम खड़ी कर सकते हैं. बैस्ट औप्शन यही होगा कि आप 80% कौटन और 20% ऐलास्टेन फैब्रिक के कपड़े पहनें, क्योंकि ये ज्यादा आरामदायक होने के साथसाथ जल्दी फटते भी नहीं हैं.

5. थौंग्स से स्किन इरीटेशन

बहुत सारी महिलाएं छोटी पैंटी पहनना पसंद करती हैं, क्योंकि वह अच्छा लुक देने के साथ-साथ कपड़ों में से दिखती भी नहीं है, जबकि वे इस बात से अनजान रहती हैं कि अधिकांश थौंग्स सिंथैटिक की बनी होते हैं, जिस से सैंसिटिव स्किन में इरीटेशन पैदा होने से बैक्टीरिया आसानी से पनप जाता है.

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6. मैचिंग इग्नोर

हमारे अंडरगारमैंट्स कौन देखने वाला है, यह सोच कर महिलाएं किसी भी कलर का अंडरगारमैंट पहन लेती हैं, जो उन्हें भद्दा लुक देने का काम करता है. अगर आप खुद को एलिगैंट लुक देना चाहती हैं, तो ब्रा व पैंटी मैंचिंग ही पहनें या फिर मिलता-जुलता कलर ट्राई करें.

7. बौडी टाइप इग्नोर

बिना अपने बौडी टाइप को देखे अकसर महिलाएं अंडरगारमैंट्स खरीद लेती हैं, जो उन्हें कंफर्ट फील नहीं कराते. आप ऐसा न करें, बल्कि अपनी बौडी शेप को ध्यान में रखें. जैसे अगर आप की पीयर बौडी शेप है यानी आप का हिप एरिया बस्ट एरिया से बड़ा है, तो आप सिंपल शौर्ट्स या लेस शौर्ट्स पहनें. अगर आप का कर्व बौडी शेप है, तो आप हाई राइज पैंटी पहनें, जो आप को परफैक्ट लुक देगी व कंफर्ट फील कराएगी.

8. सस्ते का लालच

कई बार महिलाएं अट्रैक्टिव स्टाइल्स को सस्ते दाम में देख कर तुरंत कई ब्रा व पैंटी खरीद लेती हैं. ऐसा करना ठीक नहीं, क्योंकि ये आप की स्किन को नुकसान ही पहुंचाने का काम करेंगी. इसलिए लालच मेंन फंसें.

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9. रैग्युलर चेंज की आदत नहीं

अधिकांश महिलाओं को डेली अंडरगारमैंट्स बदलने की आदत नहीं होती. वे एक ही अंडरगारमैंट को 2-2, 3-3 दिन पहने रहती हैं, जिस से न सिर्फ उन के शरीर से दुर्गंध आती है, बल्कि उन्हें इन्फैक्शन होने का भी डर बना रहता है. इसलिए आप अपने पास 5-6 अंडरगारमैंट्स जरूर रखें, ताकि रोज चेंज कर सकें. गरमियों में तो दिन में 2 बार इन्हें जरूर बदलें.

30 के बाद इन ट्रीटमेंट से पाएं ब्यूटीफुल स्किन

डौ. अप्रतिम कहती हैं कि 30 की उम्र पार करते ही चाहे आप कितनी भी व्यस्त क्यों न हों स्किन की देखभाल के लिए समय जरूर निकालें वरना देखभाल न करने से कीलमुंहासे, झुर्रियां आदि पड़ने लगती हैं. ऐसा होने पर डाक्टर की सलाह पर सौंदर्य उत्पाद का प्रयोग करना चाहिए. एंटीएजिंग को कम करने की कुछ प्रक्रियाएं निम्न हैं:

1. स्किन पौलिशिंग से स्किन में खोई नमी वापस आ जाती है, क्योंकि इस से डैड सैल्स निकल जाते हैं और स्किन फिर से ग्लो करने लगती है.

2. मसल रिलैक्सिंग बोटुलिनम इंजैक्शन से माथे पर पड़ी पतली रेखाओं और झुर्रियों को कम किया जाता है.

3. लेजर और लाइट बेस्ड टैक्नोलौजी से स्किन में फाइन रिंकल्स को लाइट करने में मदद मिलती है.

4. रिंकल फिलर्स भी झुर्रियों को कम करने के अलावा प्लंपिंग लिप्स, चिक लिफ्ट, चिन लिफ्ट आदि करने में सहायक होते हैं.

5. कैमिकल पील स्किन की ऊपरी परत को हटा कर चेहरे की फाइन रिंकल्स को हटाती है. मिल्क पील और स्टैम सैल पील के प्रयोग से इंस्टैंट ग्लो मिलता है.

5 टिप्स: 30 के बाद ऐसे पाएं ब्यूटीफुल स्किन

6. स्किन टाइटनिंग और कंटूरिंग से स्किन में फाइन लाइंस और कोलोजन नहीं हो पाता, जिस से स्किन की सुंदरता कायम रहती है.

न करें ये गलतियां

स्किन बहुत संवेदनशील होती है. अत: कोई भी चीज कभी भी लगा लेने से स्किन ठीक होने के बजाय और खराब हो जाती है. ये गलतियां महिलाएं अकसर करती हैं:

1. अधिकतर महिलाएं होम रैसिपी पर अधिक विश्वास करती हैं. ऐसे में बिना सोचेसमझे किसी के कहने पर कुछ भी लगा लेती हैं, जिससे बाद में समस्या होती है. अत: घरेलू रैसिपी भी किसी एक्सपर्ट से राय ले कर ही लगाएं.

2. धारणा है कि औयली स्किन पर मौइश्चराइजर की जरूरत नहीं होती, जो गलत है. स्किन को हाइड्रेट करने के लिए नमी का होना जरूरी है, जो मौइश्चराइजर से ही मिलती है.

3. घर में रहने वाली महिलाएं सनस्क्रीन नहीं लगाना चाहतीं, जबकि उन की स्किन भी टैन होती है. अत: उन्हें भी सनस्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए.

4. मुंहासे होने पर अधिकतर महिलाएं सोचती हैं कि थोड़े दिनों में ये अपनेआप ठीक हो जाएंगे, जबकि ऐसा नहीं होता. फिर मुंहासे जाने के बाद दाग भी रह जाते हैं, जो आसानी से नहीं जाते.

5. महंगे उत्पाद अधिक प्रभावशाली हों यह जरूरी नहीं. डाक्टर द्वारा दी गई दवा ही ठीक होती है.

एंटी एजिंग के लिए अपनाएं होममेड टिप्स

इन घरेलू नुस्खों को अपना कर अपनी स्किन को खूबसूरत बनाएं:

1. चेहरे को क्लीन करने के लिए दूध और बेसन को मिला कर पेस्ट तैयार कर उसे चेहरे पर लगा कर 10 मिनट बाद धो लें.

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2. मूली को घिस कर उस से चेहरे की मालिश करने से स्किन के दागधब्बे हलके हो जाएंगे.

3. बादाम, ओट्स और खीरे को मिला कर पेस्ट तैयार कर उस से स्किन को साफ करें. यह पेस्ट स्किन को नमी प्रदान करने के साथसाथ उस की चमक भी बनाए रखता है.

4. बालों को चमकदार बनाने के लिए मेथी को भिगो कर पीस लें. इसे सप्ताह में एक बार बालों पर लगाएं. इस से स्कैल्प के क्लीन होने से साथसाथ बालों में चमक भी आ जाएगी.

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