Mother’s Day 2019: हर मुश्किल फैसले में साथ होती है मां

ज्योति राघव (दिल्ली)

बात 2013 की है. मैंने पत्रकारिता की शुरुआत की थी. एक प्रमुख समाचार संस्थान में बतौर ट्रेनी काम कर रही थी. रविवार को छुट्टी होती थी और शनिवार की रात को मैं यूपी रोडवेज की बस से अपने होमटाउन खुर्जा जाती थी. शाम को सात बजे औफिस से निकलने के बाद बस में बैठते-बैठते करीब आठ बज जाते थे. बस का दो-तीन घंटे का सफर रात में तय होता था. एक बार बस में मुझे एक महिला मिली, जो पति से झगडा होने के बाद गुस्से में घर से निकलकर आ गई थी. साथ में उसके छोटा बच्चा था. वो महिला रात में निकलकर तो आ गई, लेकिन उसे न तो ये पता था कि जाना कहां है, न ही कोई रास्ता मालूम था.

रात का वक्त था, कंडक्टर ने टिकट काटने को कहा तो वो कुछ बता न पाए कि कहां जाना है. कंडक्टर ने अपनी मर्जी से अलीगढ़ का टिकट काटकर उससे पैसे वसूल लिए. उसी दौरान मेरा बस में चढ़ना हुआ था. वह महिला निरीह की तरह मेरी ओर एक टक देखने लगी. मैंने जैसे ही नजरें मिलाईं तो उसने कंडक्टर की शिकायत करते हुए कहा कि ‘हमाए पैसे नई दे रहा ये.‘ पूछने पर पता चला कि कंडक्टर ने उससे टिकट से ज्यादा पैसे वसूल लिए हैं और बाद में देने के लिए कह रहा है. महिला से पूछा कि आपको जाना कहां है, तो वो बता नहीं पा रही थी, जबकि कंडक्टर ने अलगीढ़ का टिकट काट दिया था. मैंने महिला से पूछा कि अलीगढ़ में कोई रहता है क्या ? तो वो यह तक नहीं समझ पा रही थी कि अलीगढ़ है क्या?

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कंडक्टर कह रहा था कि बस स्टैंड पर उतार देंगे रात में वहीं रुक लेगी सुबह जहां जाना होगा वहां चली जाएगी. महिला की सुरक्षा को देखते हुए मुझे ये ठीक नहीं लगा. मैंने महिला से पूछा आपको अपने पति का फोन नंबर याद है? उसने कहा हां और उससे नंबर लेकर पति को फोन लगाया. पति ने दिल्ली की ओर आने वाली दूसरी बस में बिठा देने की बात कही, लेकिन महिला जाने को तैयार नहीं. रात के अंधेरे में यह ठीक भी नहीं लग रहा था. उससे पूछा रात में अलीगढ़ में अकेले रुक लोगी? अब वो न हां कहे ना कहें.

मैंने पूछा मेरे घर चलोगी मेरे साथ? वो तुरंत राजी हो गई और बोली हां चलूंगी. बस में सवार कुछ सवारियों ने मेरी बात के साथ सहमति जताई कि हां सही कर रही हो आप, नहीं तो बेचारी कहां भटकेगी. वहीं कुछ ने जमाना खराब होने का हवाला दिया. खैर, मैंने महिला को साथ लाने का मन बना लिया, लेकिन मुझे डर था कि मम्मी इस बात की इजाजत देंगी या नहीं. मैंने मम्मी को फोन लगाया और पूरी बात बताई.

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 मां ने ऐसे की मदद…

पहली बार में तो मम्मी ने कहा कि कहां चक्कर में पड़ती रहती है, लेकिन फिर इंसानियत दिखाते हुए उन्होंने मुझे उस महिला को घर ले आने की इजाजत दे दी. फिर भी डर लग रहा था कि मम्मी और पापा कहीं मुझे डांटे ना, लेकिन मम्मी ने सारी स्थिति संभाल रखी थी. उन्होंने पापा को सब बात पहले ही बता दी. इसके बाद मम्मी ने मुझे और उस महिला को खाना खिलाया और उसके बच्चे के लिए तुरंत दूध का प्रबंध किया. रात में महिला के लिए आंगन में चारपाई बिछाई.

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 मां है सपोर्ट सिस्टम…

सुबह होने पर न सिर्फ मेरे परिवार, बल्कि आस-पड़ोस के लोगों ने उस महिला के प्रति सहयोगात्मक रवैया दिखाते हुए कुछ पैसे इकट्ठे किए. महिला के पति को फोन कर दिया गया था कि वह खुद खुर्जा आकर अपनी पत्नी को ले जाए. मैंने थाने में जाकर महिला को पुलिस के सुपुर्द किया, जहां से उसका पति आकर उसे ले गया साथ ही पुलिस वालों ने आगे से झगड़ा नहीं करने की हिदायत भी दी.

मेरी मां हमेशा इस तरह साथ रहती हैं, तभी मैं ऐसे फैसले ले पाती हूं. मां मेरा सबसे बड़ा सपोर्ट सिस्टम है.

क्या मां बनने वाली हैं दीपिका? जानें इस खबर की सच्चाई

‘मेट गाला 2019’ में बार्बी गर्ल ड्रैसअप के बाद एक्ट्रैस दीपिका पादुकोण एक बार फिर फिल्म और ड्रैसअप की बजाय अपनी पर्सनल लाइफ के चलते सुर्खियों में आ गईं हैं. दरअसल, मेट गाला की आफ्टर पार्टी के बाद सोशल मीडिया पर दीपिका की कुछ फोटोज वायरल हुई हैं, जिसके बाद फैंस ने कयास लगाना शुरू कर दिया है कि दीपिका प्रैंगनेंट हैं.

प्रियंका ने शेयर की फोटो…

‘मेट गाला 2019’ की आफ्टर पार्टी में दीपिका , प्रियंका चोपड़ा और उनके पति निक जोनस के साथ पोज देती दिखीं. जहां दीपिका पीले रंग के गाउन के साथ ब्लैक एंड व्हाइट कोट कैरी करती हुईं नजर आईं, फोटो को देखकर ऐसा लग रहा था कि दीपिका प्रेगनेंट है. इन फोटोज को प्रियंका ने अपने इंस्टाग्राम पर शेयर किया, जिसके बाद यह फोटो वायरल हो गई और लोग कमेंट कर रहे हैं कि दीपिका प्रेगनेंट हैं.

दीपिका की प्रेग्नेंसी की सच्चाई…

वहीं दीपिका के करीबी ने खुलासा करते हुए कहा है कि दीपिका प्रेगनेंट नहीं हैं. उनकी माने तो यह खबर एक दम झूठी है. इस तस्वीर में बस खराब कैमरा एंगल की वजह से दीपिका का पेट बाहर नजर आ रहा है. इसके अलावा बाकी सारी खबरें अफवाह से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं.

 

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बता दें दीपिका फिलहाल, मेघना गुलजार की फिल्म ‘छपाक’ की शूटिंग में बिजी चल रही हैं. फिल्म छपाक में दीपिका लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी को बड़े पर्दे पर उतारेंगी जो कि एक एसिड अटैक सर्वाइवर हैं.

फ्लोरिंग को दें स्टाइलिश लुक

आप अपने घर में कितनी भी महंगी चीजें क्यों न रखें, जब तक घर की फ्लोरिंग सही न होगी तब तक घर का इंटीरियर अच्छा नहीं लगेगा. फर्श के तौर पर टाइल्स बेहद टिकाऊ होती हैं तथा मजबूती के मामले में भी इन का मुकाबला नहीं होता. ये पानी से जल्दी खराब नहीं होतीं और साफसफाई में भी किसी तरह की दिक्कत नहीं होती.

टाइल्स में मैट फिनिश का चलन जोरों पर है. चमचमाती या ग्लौसी टाइल्स अब ट्रेंड में नहीं हैं. कई कंपनियां आप की पसंद के अनुसार भी टाइल्स बनाने लगी हैं, जिन्हें कंप्यूटर की मदद से बनाया जाता है. इन में आप अपनी पसंदीदा मोटिफ्स या परिवार के फोटो भी प्रिंट करा सकती हैं. टाइल्स फ्लोरिंग कराते समय इस बात का ध्यान रखें कि फ्लोरिंग आप की दीवारों से मैच करे. अगर आप के घर की दीवारें लाइट कलर की हैं, तो टाइल्स डार्क कलर की लगवाएं. अगर दीवारें डार्क कलर की हैं, तो लाइट टाइल्स लगवाएं.

कैसा हो बच्चे का कमरा

कहां और कैसे लगवाएं टाइल्स

घर की अलगअलग जगहों पर टाइल्स के चयन का तरीका भी अलगअलग होता है:

  1. लिविंग एरिया वह स्थान है जहां आप अपने मेहमानों का स्वागत करती हैं, दोस्तों से मिलती हैं, उन से बातें करती हैं. इस स्थान को खास बनाना जरूरी है. यहां आप कारपेट टाइल्स लगवा सकती हैं.

2. अगर आप का घर छोटा है, तो आप एक ही तरह की टाइल्स लगवा सकती हैं, जो घर को अच्छा लुक देती हैं. अगर घर बड़ा है तो अलग अलग डिजाइनों की टाइल्स लगवाएं. लिविंग एरिया में पैटर्न और बौर्डर वाली टाइल्स का भी ट्रैंड इन है.

3. बैडरूम में बहुत से लोग डार्क कलर की फ्लोरिंग करा लेते हैं. ऐसा करने से बचें. बैडरूम की टाइल्स फ्लोरिंग के लिए हलके और पेस्टल शेड्स का इस्तेमाल करें.

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4. किचन छोटी हो तो दीवारों पर हलके रंग की टाइल्स लगवाना ही सही रहता है. बड़ी किचन में सौफ्ट कलर का इस्तेमाल करना चाहिए. इन दिनों किचन में स्टील लुक वाली टाइल्स ट्रैंड में हैं.

5. बाथरूम घर में सब से ज्यादा इस्तेमाल होने वाली जगहों में से एक है. इसे सुंदर व आरामदेह बनाना बहुत जरूरी है. बाथरूम में हमेशा सौफ्ट फील वाली टाइल्स लगवाएं. ये टाइल्स नंगे पैरों को रिलैक्स फील कराती हैं. बाथरूम के लिए कई तरह की टाइल्स आती हैं. आप बौर्डर वाली, क्रिसक्रौस पैटर्न वाली टाइल्स लगवा सकती हैं.

6. टाइल्स कई सालों तक चलती हैं. इन्हें साफ करना भी आसान होता है. कई महिलाएं टाइल्स को साफ करने के लिए हार्ड कैमिकल का प्रयोग करती हैं. ऐसा न करें. टाइल्स को साफ करने के लिए टौयलेट क्लीनर का इस्तेमाल कर सकती हैं. सर्फ के पानी से भी टाइल्स को साफ किया जा सकता.

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डिप्रेशन में करण जौहर बनें सहारा-पुनीत मल्होत्रा

करण जौहर , निखिल अडवाणी, अमोल पालेकर के साथ बतौर सहायक निर्देशक काम करने के बाद फिल्म ‘आई हेट लव स्टोरी’’ से अकेले निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखने वाले पुनीत मल्होत्रा ने  2013 में फिल्म ‘गोरी तेरे प्यार में’ निर्देशित की थी, जिसे बौक्स आफिस पर कोई सफलता नहीं मिली थी. और अब पुनीत मल्होत्रा ने फिल्म ‘‘स्टूडेंट आफ द ईअर’ का निर्देशन किया है. पुनीत मल्होत्रा 2012 से ही करण जौहर  के साथ जुड़े हुए हैं. तो स्वाभाविक तौर पर उन पर करण जौहर की एक छाप भी है. पेश है उनसे हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश..

आपके निर्देशन में करण जौहर की छाप है. अमूमन जिसकी छाप होती है, उससे कुछ अलग कर पाना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन सिनेमा में अपनी पहचान के लिए निर्देशक को कुछ नया भी करना होता है. आपने क्या कोशिश की ?

आपका सवाल बहुत महत्वपूर्ण और बहुत ही अलग है. देखिए, आपका सवाल और बात बहुत मायने रखती है. क्योंकि सिनेमा में जिसकी छाप है, उसको बरकरार रखते हुए अपनी पहचान का सिनेमा देना बहुत जरूरी होता है. आप जानते हैं कि 2012 में जो फिल्म ‘स्टूडेंट औफ द ईअर’ बनी थी, उसे करण जौहर  ने निर्देशित किया था. अब जब उसका सिक्वअल ‘स्टूडेंट आफ द ईअर 2’ बनी है, तो निर्देशन की जिम्मेदारी उन्होंने मुझ पर डाली. अब मेरे सामने चुनौती थी कि मैं इसे किस तरह से अपने अंदाज में पेश करता हूं. मैंने वही कोशिश इस फिल्म को बनाते समय की है. आपने जो सवाल किया वह इस फिल्म के साथ बहुत सटीक बैठता है. क्योंकि मुझ पर करण जौहर  की छाप है. और यह फिल्म भी करण जौहर  की है. पर मैंने इसको अपने नजरिए से परदे पर उतारा है.

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स्टूडेंट औफ द ईअर से सिक्वअल फिल्म स्टूडेंट औफ द ईअर 2 कितनी अलग है?

-पहली फिल्म सेंट टेरीसा कौलेज पर आधारित थी. हम लोगों ने उस फिल्म के लिए सेंट टेरीसा कौलेज की दुनिया में प्रेम कहानी के साथ फैंटसी जड़ी थी. अब सिक्वअल में हमने सेंट टेरीसा कौलेज की उस दुनिया को तो रखा है, पर इसमे हमने एक दूसरी दुनिया भी गढ़ी है. इंटरवल तक तो सेंट टेरीसा कौलेज की दुनिया है, पर इंटरवल के बाद पूरी कहानी दूसरी दुनिया में पहुंच जाती है.

फिल्म में जो दूसरी दुनिया है, उस पर रोशनी डालना चाहेंगे?

-फिल्म में इंटरवल के बाद कबड्डी के खेल की दुनिया है. प्रो कबड्डी की जो दुनिया है, वह दर्शकों को बांध कर रखने वाली है.

पहली फिल्म से दूसरी फिल्म में जो अंतर आया है, वह समय के अंतराल की वजह से है या समाज में आए बदलाव के चलते आया है?

देखिए, सात वर्ष के समय का अंतराल भी है. इन सात वर्षों मे सिनेमा व समाज भी बदला है. आपको इस बात का अहसास होगा कि इन सात वर्षों में हमारे देश में स्पोर्ट्स में भी काफी बदलाव आया है. पहले हमारे देश में क्रिकेट ही सर्वाधिक लोकप्रिय खेल हुआ करता था. पर धीरे-धीरे दूसरे खेल भी लोकप्रिय हुए हैं. यह बदलाव भी हमारी फिल्म का हिस्सा है. दूसरी बात जब हम सिक्वअल बना रहे थे, तो हमारे उपर दायित्व था कि हम पहले से कुछ अच्छा और बेहतर पेश करें. हमारी तरफ से यह सारी कोशिश आपको इस फिल्म में नजर आएगी.

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आपने बिलकुल सही कहा एक सफल फिल्म के सिक्वअल को बनाते समय उसका स्तर पहले से उंचा रखना जरूरी होता है. यह आपके लिए कितनी बड़ी चुनौती रही?

देखिए, 2012 में जब इस फिल्म को करण जौहर  ने निर्देशित किया था, तब भी मैं उनके साथ जुड़ा हुआ था. अब उसी फिल्म के सिक्वअल के वह निर्माता हैं और मैं फिल्म का निर्देशक हूं. उनके साथ मेरे जुड़ाव ने उनके सिनेमा की समझ, उनके अंदर जो कुछ था, उसने मुझे आज इस फिल्म को बनाने में मदद की. इस फिल्म को करते समय हमने सोचा कि पहली फिल्म में हम यह कर चुके हैं, तो अब नई फिल्म में हमें यह करना चाहिए. इसी के चलते हमने इस फिल्म में टाइगर श्राफ को रखा है. इससे फिल्म का स्तर पहले वाली फिल्म से अपने आप उपर हो गया.

यानी कि टाइगर श्रौफ को फिल्म से जोड़ने के बाद फिल्म की कहानी में दूसरी दुनिया के रूप में कबड्डी के खेल को शामिल किया गया?

-ऐसा नहीं है. हकीकत यह है कि फिल्म की कहानी तय थी, पर उस वक्त फिल्म में कबड्डी की बजाय कोई दूसरा स्पोर्ट्स रखा हुआ था. फिल्म के साथ टाइगर श्रौफ के जुड़ने के बाद भी वही स्पोर्ट्स था. पर कुछ समय बाद जब कहानी थोड़ी बदली, तो हमें लगा कि यदि हम कबड्डी के खेल को रखें, तो ज्यादा अच्छा होगा. कबड्डी को रखने  के पीछे हमारी सोच यह रही कि परदे पर अब तक कबड्डी को इस तरह से रखा नहीं गया है. इस बात का निर्णय लेने के बाद हमने अपनी फिल्म के साथ प्रो कबड्डी के राव साहब को जोड़ते हुए उनसे राय ली.फिल्म में इंटरवल के बाद कबड्डी की जो दुनिया है, वह राव साहब ने ही डिजाइन की है.

खेल को लेकर आपकी अपनी सोच क्या रही?

मेरी राय में हर इंसान के लिए स्पोर्ट्स बहुत जरूरी चीज है. अफसोस की बात है कि हम सब लोग क्रिकेट पर ही ध्यान देते हैं. जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए.यदि मेरा वश चले, तो मैं बड़ी बड़ी इमारतों को गिरा का स्पोर्ट्स ग्राउंड बना देता. क्योंकि हर बच्चे को घर से बाहर निकलकर खंल के मैदान पर खेलना चाहिए. आज का बच्चा घर से बाहर निकलता ही नहीं. मोबाइल या आइपैड पर ही गेम खेलता रहता है,यह उनके सर्वांगीण विकास को अवरूद्ध कर रहा है. हमें अपने बच्चों को घर से बाहर निकलकर खेल के मैदान में खेलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. शिक्षा के साथ साथ स्पोर्ट्स को भी अहमियत दी जानी चाहिए. स्पोर्ट्स हमें ‘लूजिंग स्प्रिट’, ‘विनिंग स्प्रिट’ और टीम भावना सिखाता है.

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फिल्म के तीनों कलाकारों के किरदार क्या हैं?

टाइगर श्राफ ने रोहण का किरदार निभाया है, जो कि ‘अंडर डौग’ है, पर वह फिल्म का हीरो है. उसे चोट लगती है. पर वह किस तरह से पुनः उभर कर आता है. रोहण के किरदार में आमीर खान की फिल्म‘जो जीता वही सिकंदर’का टच है. अनन्या पांडे का श्रेया का किरदार एकदम फन है. श्रेया उन लड़कियों में से है, जिससे लोग नफरत करते हैं. तारा ने मिया का किरदार निभाया है. मिया ऐसी लड़की है, जिस पर कौलेज के सभी लड़के फिदा हो जाएंगे. इन तीनों के बीच बहुत ही जटिल रिश्ते हैं. प्रेम त्रिकोण है. आज की तारीख में युवा पीढ़ी में जिस तरह से ट्विस्टेड  रिलेशनशिप’ नजर आती है, वही हमारी फिल्म में भी नजर आएगी.

समाज में जो बदलाव है,वह आपकी फिल्म का हिस्सा कैसे है?

-मैंने पहले ही कहा कि पिछले सात वर्ष के अंतराल में सिनेमा व समाज काफी बदला है. पिछले कुछ वर्षो से ग्रास रूट@जमीन से जुड़ी कहानी वाली फिल्में बननें लगी हैं. यह वह फिल्में हैं, जिनमें रियालिटी होती है. अब मेट्रो पौलीटन सिटी के साथ साथ छोटे शहरों व गांवों को भी फिल्मों के साथ जोड़ा जाने लगा है. हमारी इस फिल्म में भी आपको दोनों दुनिया नजर आएगी. इसमें ग्रास रूट से जुड़ी कहानी भी है.

ग्रास रूट से जुड़ी एक फिल्म असफल हो चुकी थी. ऐसे में स्टूडेंट औफ द ईअर 2 में ग्रास रूट की कहानी जोड़ते समय आपको रिस्क नहीं लगा?

मैं एक ही बात कहूंगा कि ‘गोरी तेरे प्यार में’ और ‘स्टूडेंट औफ द इअर 2’ का एक दूसरे से कोई संबंध नहीं है. मेरे दिल में जो कहानी आयी, वह मैंने बतायी. यह कहानी एक ऐसे कौलेज में पढ़ने वाले लड़के की हैं, जो अपनी जिंदगी में तमाम मुसीबतों के बाद भी अपने सपने पूरे कर लेता है.

आप डिपरेशन से कैसे उबरे थे?

-देखिए, एक न एक दिन तो निराशा व हताशा से खुद को उबार कर नए सिरे से काम तो करना ही था. आगे बढ़ने के लिए यह बहुत जरुरी होता है. डिपरेशन के वक्त, मेरी निराशा के वक्त आगे बढ़ने में करण जौहर  ने मेरी बहुत मदद की. मुझे डिपे्रशन से उबारने में उनका बहुत योगदान रहा. मुझे अच्छी तरह से याद है कि वीकेंड पर मैं रो रहा था,तो करण जौहर  ने कहा था कि, ‘तू रो क्यों रहा है, हम इससे बड़ी फिल्म बनाएंगे.’

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घर पर करें ट्राई अचारी टिंडे

अक्सर सुना है कि टिंडे की सब्जी अच्छी नही होती, लेकिन वह हेल्थ के लिए हेल्दी होती है. तो आज हम आपको टिंडे को नया रूप देकर आपके घर वालों को खुश करने के लिए एक नई रेसिपी बताएंगे. जिससे आपकी फैमिली टिंडे का नाम सुनकर मुंह नही बनाएंगे.

हमें चाहिए…

500 ग्राम टिंडे

1 छोटा चम्मच मेथी दाना

1 छोटा चम्मच कलौंजी

1 छोटा चम्मच सरसों

1 छोटा चम्मच जीरा

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एक चौथाई चम्मच हींग

1/2 छोटा चम्मच सौंफ

1/2 छोटा चम्मच हल्दी

2-3 हरीमिर्चें

1 छोटा चम्मच देगी मिर्च

3-4 टमाटरों की प्यूरी

2 प्याज की प्यूरी

1 बड़ा चम्मच साबूत गरममसाला

5-6 कलियां लहसुन

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आवश्कतानुसार तेल

नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

टमाटर, प्याज, लहसुन, हरीमिर्च और साबूत मसाले को एक कुकर में डाल 1/2 कप पानी डालें और कुकर का ढक्कन बंद कर के 3-4 सीटियां आने तक पका लें.

ठंडा होने पर इसे पीस कर एक ओर रख दें. एक पैन में तेल गरम कर मेथी दाना, सरसों, राई, जीरा, सौंफ  और हींग डाल कर कुछ देर बाद प्याज व टमाटर की प्यूरी डाल अच्छी तरह भूनें.

फिर सूखे मसाले मिलाएं और कुछ देर फिर पकाएं. टिंडों को छील कर बीच में आरपार चीरा लगा लें. ग्रेवी पैन के किनारे छोड़ने लगे तो इस में 1/2 कप पानी मिला टिंडे डाल कर कुछ देर ढक कर टिंडों के गलने तक पकाएं. और फिर गरमागरम परांठे के साथ परोंसें.

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समर ट्रैंड: इस गरमी ट्रैंड में रहेंगे ये 9 मेकअप टिप्स

गरमियों में आपका भी मन करता होगा कि हम भी अपने लुक को और भी ज्यादा ब्युटीफुल बनाएं, लेकिन गरमी के कारण आप मेकअप लगाने से बचती नजर आती हैं. जिसके साथ-साथ आप ट्रैंडस भी भूलती चली जाती हैं. पर क्या आपको पता है कि कुछ ऐसे नए समर मेकअप ट्रैंड्स आए हैं जिन्हें महिलाएं चाह कर भी इनकार नहीं कर पाएंगी. आइए, जानते हैं उन्हीं समर मेकअप ट्रैंड्स के बारे में…

1. आईशैडो मेकअप

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गरमी के मौसम में महिलाएं हैवी मेकअप को अवौइड करती हैं खासकर आंखों का. इस साल जो शैडो मेकअप ट्रैंड में है वह आप को सुपर कूल और लाइट मेकअप का एहसास देगा. इसमें आप शिमरी गोल्ड शेड के साथ पिंक लाइनर इस्तेमाल करके अपने लुक को सुपर कूल बना सकती हैं. अगर आप की पर्सनैलिटी पर सिर्फ हल्के कलर्स ही अच्छे लगते हैं तो आप क्रीम कलर का आईशैडो इस्तेमाल कर सकती हैं.

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2. हाइलाइटर मेकअप

अगर आप एक्सपैरिमेंट करना पसंद करती हैं, तो आप इस समर सीजन रेनबो हाइलाइटर कैरी कर सकती हैं. होलोग्राफिक हूज हाइलाइटर की खास बात यह होती है कि यह धूप में आकर अलग रंग से हाइलाइट होता है. अगर आप ने ब्लू कलर का हाइलाइटर अप्लाई किया है तो वह धूप में पर्पल रंग में बदल जाता है. इस तरह का हाइलाइटर लंच डेट के लिए परफैक्ट रहता है.

3. लिपस्टिक समर ट्रैंड

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लिप्स को परफैक्ट कलर देकर अपने बोरिंग डे को रौकिंग बना सकती हैं. अब जब ट्रैंड की बात हो रही है तो 2019 के कुछ ऐसे बेहतरीन लिपस्टिक शेड्स हैं, जो आप को बौसी लुक देंगे जैसे कि फ्लेमिंगो पिंक. हर किसी को रैड कलर अच्छा लगे, जरूरी नहीं है, पर फ्लेमिंगो पिंक कलर एक ऐसा शेड है, जो हर तरह के कपड़ों पर जंचता है. यदि आप पूल पार्टी की शौकीन हैं तो आप ब्राइट पिंक कलर का शेड लगा कर पूल साइड पार्टी को और ज्यादा रौकिंग बना सकती हैं.

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4. आईलाइनर मेकअप

आईलाइनर आप के लुक को रीडिफाइन करने में मदद करता है. क्लासिक विंग तो सभी ने खूब अपनाया होगा, लेकिन अब यह विंग अपडेट हो कर ग्राफिक आर्ट में आ गया, जिस में आप 2 लेयर के साथ आईलाइनर इस्तेमाल कर सकती हैं. समर एक ऐसा मौसम है, जिस में आप आईलाइनर के साथ भी ऐक्सपैरिमैंट कर सकती हैं, यलो, पिंक, ब्लू आदि इस समर के लिए परफैक्ट आईलाइनर हैं.

5. रंगों से खेलें

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धीरे-धीरे महिलाएं न्यूट्रल रंगों से ऊब रही हैं और वे अब कुछ नया करना चाहती हैं. इसलिए आप रंगों के साथ खेलना शुरू कर दीजिए और हम बताते हैं कि आप को किस तरह इन्हें फौलो करना चाहिए. अगर आप न्यूड लिप ग्लौस और ब्रौंज आईज के साथ सिंपल लुक चाहती हैं, तो टर्किश आईलाइनर या रैड आईशैडो का टच आप के लुक के लिए परफैक्ट होगा. इस साल आप हर रंग के साथ खेल कर अपनी आंखों को सजा सकती हैं.

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6. मल्टीपल कंट्रास्टिंग कलर

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जैसे एक कलाकार अपनी पेंटिंग में हर रंग भरता है, ठीक उसी तरह आप भी मल्टीपल कलर इस्तेमाल कर के कुछ क्रिएटिव कर सकती हैं. पिछले कुछ वर्षों में न्यूड और ब्राउन रंग चलन में रहा और इस बार नया ट्रैंड सिर्फ बोल्ड और ब्राइट पौपी कलर्स का है यानी आप गुलाबी, बैंगनी और पीले रंग का इस्तेमाल कर सकती हैं. ये पिछले सालों से काफी हट कर हैं.

7. बोल्ड एंड ब्राइट आइज

एक फ्रैश व न्यूट्रल चेहरे पर ब्राइट और पौपी रंग काफी उभर कर आते हैं और यही इस साल ट्रैंड में होने वाला है. न्यूड लिपस्टिक के साथ व्हाइट हाईलाइटर और पौपी कलर का आई मेकअप बेहद शानदार लगेगा.

8. कलर ब्लौक्ड आईलाइनर

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आप अपने क्लासिक कैट आई लुक को एक लैवल ऊपर करना चाहती हैं, तो आप को सिर्फ करना यह होगा कि कोई भी 2 मनपसंद रंग के आईलाइनर लगाने हैं. आंखों के ऊपर पहले एक रंग का स्ट्रोक लगाएं, फिर उस के ऊपर दूसरे रंग का. कैट आईलाइनर को अच्छा बनाने के लिए हमेशा गीले आईलाइनर का इस्तेमाल करें. कैट आईलाइनर के लिए आप पहले व्हाइट लाइनर लगाएं उस के ऊपर इलैक्ट्रिक ब्लू शेड्स के साथ पेयर करें.

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9. मैटेलिक लुक

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पिछले साल भी मैटेलिक आई ट्रैंड काफी चलन में रहा है और 2019 में भी अधिक लोकप्रिय होने जा रहा है. बोल्ड लुक के लिए शिमरिंग सफायर, डस्की ब्रोंज और ग्लिटर का इस्तेमाल करें.

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प्यार का दुश्मन छोटा घर

मुरादाबाद की रहने वाली छाया की शादी दिल्ली के रहने वाले राजन के साथ हुई थी. उसकी मौसी ने इस शादी में मध्यस्थ की भूमिका निभायी थी, जो दिल्ली में ही ब्याही हुुई थीं. निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की छाया मुरादाबाद से ढेर सारे सपने लेकर दिल्ली में आयी थी. दिल्ली देश की राजधानी है. दिल्ली दिलवालों की नगरी है. यहां बड़ी-बड़ी कोठियां, चमचमाती चौड़ी सड़कें, बड़े-बड़े पार्क, दर्शनीय स्थल, राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट और पता नहीं किस-किस के बारे में उसने सुन रखा था. मगर ससुराल पहुंच कर छाया के सारे सपने छन्न से टूट गये. वो एक हफ्ते में ही समझ गयी कि यहां वह रह नहीं पाएगी. दरअसल दिल्ली तो बहुत बड़ी थी, मगर उसका घर बहुत छोटा था. इतना छोटा कि उसको अपने लिए एक घंटे का एकान्त भी यहां नहीं मिलता था. मुरादाबाद में छाया के पिता का पांच कमरों वाला बड़ा पुश्तैनी मकान था. घर में पांच प्राणी थे और पांच कमरे, सब खुल कर रहते थे, किसी को प्राइवेसी की दिक्कत नहीं थी. मगर यहां दो कमरों के किराये के घर में सात प्राणी रहते थे – छाया, राजन, उनके माता पिता, दादा दादी और राजन का छोटा भाई. घर में एक बाथरूम था, जिसका इस्तेमाल सभी सातों प्राणी करते थे. सुबह पहले सारे मर्द निपट लेते थे, उसके बाद औरतों की बारी आती थी.

यहां छाया और राजन को कोई प्राइवेसी उपलब्ध नहीं थी. मां, दादा-दादी तो पूरे वक्त घर में ही बने रहते थे. पिताजी भी बस सौदा-सुल्फ लेने के लिए ही बाहर जाते थे, बाकी वक्त चबूतरे पर कुर्सी डाल कर बैठे रहते थे. रात के वक्त घर की सारी औरतें एक कमरे में सोती थीं, और मर्द दूसरे कमरे में. ऐसे में छाया को पति की नजदीकियां भला कैसे मिल सकती थीं? दोनों दूर-दूर से एक दूसरे को बस निहारते रहते थे. शादी को महीना बीत रहा था, अभी तक उनके बीच शारीरिक सम्बन्ध भी नहीं बन पाया था. सुहागरात क्या होती है, छाया जान ही नहीं पायी. एक महीने में ही छाया की सारी खुशियां काफूर हो चुकी थीं, वह टूटने लगी थी, अपने घर वापस लौट जाने का ख्याल दिल में आने लगा था. आखिर ऐसी शादी का क्या मतलब था, जहां पति की नजदीकियां ही न मिल सकें?

राजन के पिता रिटायर हो चुके थे. उनकी थोड़ी सी पेंशन आती थी. राजन एक कोरियर कम्पनी में कोरियर बॉय का काम करता था. उसकी कमाई और पिता की पेंशन से सात प्राणियों का घर चलता था. राजन सुबह नौ बजे का निकला रात आठ बजे थका-हारा घर लौटता था. छाया उसके बिस्तर पर ही खाने की थाली धर जाती थी और वह खाना खाते ही सो जाता था. पत्नी से सबके सामने बातचीत भी क्या करता? उसकी कम्पनी से उसे छुट्टी भी नहीं मिलती थी कि पत्नी को लेकर कहीं घूम आये. छुट्टी लेने का मतलब उस दिन की देहाड़ी हाथ से जाना. वहीं दस लोग उसकी जगह पाने के लिए भी खड़े थे. इसलिए वह मालिक को नाराजगी का कोई मौका नहीं देना चाहता था.

यहां घर में छाया की ददिया सास ने शादी के पंद्रह दिन बाद ही पड़पोते की फरमाइश उसके आगे रख दी थी – ‘बिटिया, पड़पोते का मुंह भी देख लूं तो चैन से मर सकूंगी. भगवान जल्दी से तेरी गोद भर दे, बस…’ उनकी बातें सुन कर छाया को बड़ी खीज लगी. मन चाहा मुंह पर बोल दे कि जब पति-पत्नी को करीब आने का मौका ही नहीं दोगे तो पड़पोता क्या आसमान से टपकेगा? पति के प्रेम को छटपटाती छाया आखिरकार महीने भर बाद ही मां की बीमारी का बहाना बना कर अपने घर मुरादाबाद लौट गयी.

राजन उसको ट्रेन में बिठाने गया तो रास्ते में उसने धीरे से पूछा था, ‘क्या मां सचमुच बीमार हैं?’

छाया उससे मन की तड़प छिपा नहीं पायी, बोली, ‘नहीं, कोई बीमार नहीं है, मगर यहां रह कर अगर तुम्हारा साथ नहीं मिल सकता तो ऐसी शादी का मतलब ही क्या है? इतने छोटे घर में मेरा गुजारा नहीं हो सकता. जब अपना घर ले लेना, तब फोन कर देना, मैं लौट आऊंगी.’

राजन ने सिर झुका लिया. उसकी हालत छाया से अलग नहीं थी, मगर वह भी मजबूर था. दूसरा घर लेकर पत्नी के साथ रहने की उसकी औकात नहीं थी. आखिर घर के बाकी लोगों की जिम्मेदारी भी तो उस पर थी, मगर छाया की बात भी ठीक थी.शादी के बाद से उसकी आंखों से भी नींद लगभग गायब ही है. कई बार सोचता कि छाया को चुपचाप बुला कर छत पर ले जाये, मगर फिर यह सोच कर मन मार लेता कि छत पर ऊपर वाली मंजिल पर रहने वाले सोते हैं. कहीं किसी ने देख लिया तो? कई बार सोेचता कि पत्नी के साथ घूमने जाये, किसी सस्ते से होटल में उसके साथ एकाध दिन बिता ले, मगर उसकी जेब में इतने पैसे ही नहीं होते थे. रोज का आने-जाने का किराया काट कर महीने की पूरी तनख्वाह वह मां के हाथों में रख देता था. आखिर सात प्राणियों का पेट जो भरना था. परिवार की आमदनी का और कोई दूसरा स्रोत भी नहीं था. छाया को ट्रेन में बिठाते वक्त उसकी आंखों में आंसू थे. दिल इस आशंका से कांप रहा था कि पता नहीं अब कभी उसे देख पाएगा या नहीं. और फिर वही हुआ… हफ्ते, महीने, साल गुजर गये, न राजन के हालात सुधरे, न छाया वापस लौटी.

छोटा घर प्यार में बड़ा बाधक होता है. संयुक्त परिवार हो तो पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेमालाप या शारीरिक सम्बन्ध बनाने के मौके बहुत कम होते हैं. ऐसे में दम्पत्ति लम्बे समय तक एक दूसरे की भावनाओं, इच्छाओं और प्रेम को साझा नहीं कर पाते हैं. एक छत के नीचे रहते हुए भी वे अजनबी बने रहते हैं.

घरवालों के सामने बनना पड़ता है बेशर्म

कुछ कपल घर की इस हालत में थोड़े बेशर्म हो जाते हैं और सबके बीच ही अपनी शारीरिक जरूरतें भी किसी न किसी तरह पूरी कर लेते हैं. जैसे अमृता के बड़े भाई और भाभी. अमृता का परिवार दिल्ली के मंगोलपुरी में एक कमरे के छोटे से मकान में रहता है. अमृता, उसकी मां, उसका छोटा भाई और बड़े भाई अनिल और उनकी पत्नी रिचा रात में जमीन पर ही बिस्तर फैला कर एक साथ सोते हैं. कई बार रात में आंख खुलने पर अमृता ने भइया-भाभी को कोने में एक ही कम्बल में हिलते-डुलते देखा है. वह जानती है कि उसका छोटा भाई भी सब देखता है और कभी-कभी मां भी. मगर क्या किया जाए? मजबूरी है. उसकी भाभी रिचा भी जानती है कि कोई न कोई उन्हें देख रहा है. इसीलिए वह हर वक्त शर्मिंदगी में भी डूबी रहती है. जैसे उसने कोई चोरी की है और चोरी करते रंगे हाथों पकड़ी गयी है. वह घर में किसी से भी आंख मिला कर बात नहीं कर पाती है.

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सार्वजनिक स्थलों पर ढूंढते नजदीकियां

दिल्ली में कैलाश कौलोनी के पास बसा जमरुद्पुर एक मलिन बस्ती है. यहां गुर्जरों के कई दोमंजिला, तिमंजिला मकान हैं, जिनमें बिहार, यूपी से आये सैकड़ों परिवार किराये पर एक-एक कमरा लेकर रहते हैं. ऐसे मकानों में हर माले के कोने में एक शौचालय और एक स्नानागार होता है, जिन्हें ये सभी परिवार बारी-बारी से इस्तेमाल करते हैं. इन्हीं में एक कमरा सरिता का भी है, जिसमें वह अपनी बूढ़ी सास, पति और दो छोटे बच्चों के साथ रहती है. सरिता और उसके पति को जब सम्बन्ध बनाना होता है तो वह रात में पास के एक पार्क में चले जाते हैं, जहां एक कोने में झाड़ियों के पास अपना काम निपटाते हैं. सरिता के लिए यह डर और शर्मिंदा करने वाला वक्त होता है. कहीं से कोई आ न जाए. कहीं कोई देख न ले. कहीं रात में कुत्ते उनके पीछे न पड़ जाएं. कहीं कोई चौकीदार या पुलिसवाला उन्हें न धर ले. घर में बच्चे जाग कर कहीं उन्हें ढूंढने न लग जाएं. सास की आंख न खुल जाए. पति के सानिध्य में ऐसे तमाम ख्याल सरिता को परेशान किये रहते हैं. मगर पार्क में पति के साथ आना उसकी मजबूरी है, एक कमरा जहां सास और बच्चे सोये हुए हैं, वहां वह पति के साथ हमबिस्तर भी कैसे हो?

बहू पर बुरी निगाह 

कई बार छोटा घर बहू को शर्मिंदगी का ही नहीं, अपराध का शिकार भी बना देता है. ऐसे कई केस सामने आते हैं जब पति की अनुपस्थिति में जेठ, देवर या ससुर बहू के साथ नाजायज सम्बन्ध बनाने की कोशिश करते हैं और कई बार अपने इरादों में कामयाब भी हो जाते हैं. अक्सर बहुएं अपने साथ हुए बलात्कार पर चुप्पी साध जाती हैं या हालात से समझौता कर लेती हैं. घर में अगर बहू-बेटे का कमरा अलग हो, तो इस तरह के अपराध औरतों के साथ न घटें. बेटा-बहू लाख सोचें कि रात के अन्धेरे में चुपचाप सम्बन्ध बनाते वक्त उन्हें कोई देख नहीं रहा है, मगर ऐसा होता नहीं है. कब कौन उन्हें देख ले, कब किसके मन में कुत्सित भावनाएं जाग जाएं कहा नहीं जा सकता.

बच्चों पर बुरा असर

जब घर में एक या दो कमरे हों और घर के सभी प्राणी उन्हें शेयर करते हों तो पति-पत्नी के बीच बनने वाले शारीरिक सम्बन्ध अक्सर घर के बच्चों की नजर में आ ही जाते हैं. आप अगर यह सोचें कि बच्चा सो रहा है, या बच्चा छोटा है कुछ समझ नहीं पाएगा, तो यह आपकी गलतफहमी है. आजकल टीवी और इंटरनेट के जमाने के बच्चे सब कुछ समझते भी हैं और उन्हें दोहराने की कोशिश भी करते हैं. यह बातें बच्चों में उत्पन्न होने वाली आपराधिक प्रवृत्ति की जिम्मेदार हैं. ऐसे ही बच्चे जो बचपन में अपने माता-पिता को शारीरिक सम्बन्ध बनाते देखते हैं, वह अपने स्कूल में अन्य बच्चों के साथ गलत हरकतें करते हैं या लड़कियों को मोलेस्ट करने या उनसे बलात्कार करने की कोशिश करते हैं.

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पति-पत्नी में बढ़ती दूरी

छोटा घर और बड़ा परिवार पति-पत्नी के शारीरिक सम्बन्धों में तो बाधा है ही, यह पति-पत्नी को मानसिक और भावनात्मक रूप से भी एक-दूसरे के करीब नहीं आने देता है. छोटे घर में अन्य सदस्यों की मौजूदगी में पति-पत्नी अपनी उन फीलिंग्स को एक-दूसरे के साथ कभी शेयर ही नहीं कर पाते हैं, जो उन्हें एक-दूसरे के निकट लाती है. वे कभी एक-दूसरे की बाहों में लिपट कर नहीं बैठ सकते. प्यार के स्पर्श को महसूस नहीं कर पाते. अपने मन की बातें एक-दूसरे से नहीं कह पाते. वे बस रात होने का इंतजार करते हैं, सबके सोने का इंतजार करते हैं और सेक्स को डर और आशंकाओं के बीच किसी मशीनी क्रिया की भांति फटाफट निपटा लेते हैं. ऐसे कपल जीवन की पूर्णता के निकट भी नहीं पहुंच पाते हैं और उनके बीच सदा एक दूरी बनी रहती है. समय गुजरने के साथ ये दूरी बढ़ती जाती है और दोनों एक-दूसरे की भावनाओं और तकलीफों से भी कट जाते हैं.

छोटा घर तलाक का कारण

शुभांगी ने तो पति का छोटा घर देख कर शादी के पहले ही दिन तलाक की बात कह दी और अपने माता-पिता के साथ हैदराबाद लौट गयी. दरअसल शुभांगी दिल्ली में काम करती थी. यहां वह दो कमरे के किराये के फ्लैट में रहती थी. उसके माता-पिता हैदराबाद में थे. प्रतीक से वह एक मेट्रीमोनियल साइट पर मिली थी. प्रतीक ने उसको बताया था कि वह बेंगलुरु में एक अच्छी कम्पनी में काम करता है और शादी के बाद शुभांगी को अपने साथ बेंगलुरु ले जाएगा, जहां कम्पनी की तरफ से उसको बड़ा फ्लैट मिला हुआ है. दोनों ने अपने-अपने माता-पिता को इस रिश्ते के बारे में बताया. दोनों के माता-पिता हैदराबाद में एक पब्लिक प्लेस पर मिले और शादी की तारीख पक्की हो गयी. तय तारीख पर शुभांगी हैदराबाद पहुंची और दोनों शादी वहां एक मंदिर में हुई. शादी में दोनों के माता-पिता, प्रतीक का छोटा भाई और कुछ दोस्त मौजूद थे. शादी सम्पन्न होने पर शुभांगी अपने माता-पिता के साथ प्रतीक के हैदराबाद वाले घर में पहुंची तो वह छोटा सा दो कमरे का घर था. जहां एक कमरे में उसके माता-पिता रहते थे, और दूसरे में उसका भाई. वहां पहुंच कर प्रतीक ने शुभांगी से कहा कि उसकी नौकरी चली गयी है और वह नई कम्पनी जल्दी ही ज्वाइन करेगा. कम्पनी ने उसका फ्लैट भी खाली करवा लिया है, इसलिए वह अभी उसको अपने साथ बेंगलुरु नहीं ले जा सकता और शुभांगी को यहीं उसके छोटे भाई के साथ उसका कमरा शेयर करके रहना होगा.

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यह सुनते ही शुभांगी गुस्से से भर गयी. उसने पूछा कि यह बात उसने शादी से पहले क्यों नहीं बतायी? इस पर प्रतीक और उसके माता-पिता ने सिर झुका लिया. शुभांगी ने प्रतीक से कहा कि वह कोई पुलिस केस नहीं चाहती है, इसलिए तलाक की अर्जी कोर्ट में दाखिल करेगी और बेहतर होगा कि प्रतीक भी आपसी सहमति से तलाक के लिए राजी हो जाए, अगर वह राजी नहीं हुआ तो मजबूरन वह उन लोगों पर चार सौ बीसी का केस दायर करेगी, इसके साथ ही वह उन लोगों पर सामाजिक प्रताड़ना, मानसिक उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और महिलाओं को प्रोटेक्ट करने वाले तमाम मुकदमे भी दर्ज करवा देगी. उसकी धमकी सुन कर प्रतीक और उसके माता-पिता कांपने लगे और तुरंत तलाक के लिए राजी हो गये.

दरअसल शुभांगी इस बात से तो नाराज थी ही कि प्रतीक ने अपनी नौकरी जाने की बात उसे शादी से पहले नहीं बतायी, बल्कि इस बात से ज्यादा नाराज थी कि उसने यह नहीं बताया था कि नौकरी न रहने पर शुभांगी को उसके दो कमरे के छोटे से घर में उसके छोटे भाई के साथ कमरा शेयर करके रहना होगा. अगर यह घर थोड़ा बड़ा होता और शुभांगी को वहां रहने के लिए अपना कमरा मिलता तो शायद वह तलाक की बात न भी करती और प्रतीक को नई नौकरी ढूंढने का मौका देती.

क्या है उपाय

घर चाहे छोटा हो या बड़ा, मर्यादाओं का पालन होना ही चाहिए, वरना समाज और देश अमर्यादित और आपराधिक गतिविधियों में उलझ जाएगा. बच्चे का पहला शिक्षालय उसका घर ही होता है. वहां वह जो कुछ देखता, सीखता है, उसकी पुनरावृत्ति वह स्कूल, कॉलेज और उसके उपरान्त अपने जीवन में भी करता है. इसलिए कोशिश करें कि बच्चों के सामने ऐसी कोई हरकत न करें, जिसका उनके कोमल मन पर बुरा प्रभाव पड़े.

घर छोटा और परिवार बड़ा हो तो नये शादीशुदा जोड़े को एकान्त वक्त बिताने के लिए घर के अन्य सदस्यों को मौका देना चाहिए. इतवार या अन्य छुट्टी के दिन नये जोड़े को घर में छोड़ कर घर के बाकी लोग यदि पिकनिक पर या किसी रिश्तेदारी में चले जाएं तो यह वक्त नये कपल के लिए स्वर्ग से ज्यादा सुन्दर होगा.

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सास-ससुर को चाहिए कि शाम को बेटे के घर लौटने के वक्त ईवनिंग वौक पर इकट्ठे चले जाएं या बाजार-हाट कर आएं और बेटे-बहू को घर में कुछ वक्त अकेले में बिताने का मौका दें और बेटे-बहू को भी चाहिए कि वे भी माता-पिता को कुछ समय अकेले रहने का मौका दें. आखिर उनके मन में भी तो तमाम बातें होती होंगी, जो वे बेटे, बहू या अन्य बच्चों के सामने नहीं कर पाते होंगे. बेहतर तो यह होगा कि शादी के बाद नये जोड़े के लिए घर में अलग कमरे का इंतजाम हो. यदि घर बहुत छोटा है और ऐसा करना सम्भव नहीं है तो आमदनी ठीक होने पर नये जोड़े को अलग घर लेकर दे देना चाहिए. इसके लिए बहू को दोष देना ठीक नहीं कि आते ही उसने लड़के को घर से अलग कर दिया, जैसा की आमतौर पर भारतीय परिवारों में सुनायी पड़ता है. दो अनजान प्राणी एक दूसरे से तभी जुड़ पाएंगे, एक दूसरे के हमसफर सही मायनों में तभी बन पाएंगे, जब अकेले में एक दूसरे के साथ वक्त बिताएंगे. आज तलाक की बड़ी वजह यह भी है कि मां-बाप अपने शादीशुदा बेटे को उसकी पत्नी के साथ रहने का पूरा मौका नहीं देते हैं.

आ गया जिलेटिन का शाकाहारी पर्याय

खाने की दुनिया में बहुत कुछ नया हो रहा है जो थोड़ा एक्साइटिंग है तो थोड़ा पृथ्वी को बचाने वाला भी. पशुओं को मारे बिना मीट बनाने की प्रक्रिया चालू हो रही है. लैबों में पैदा सैल्स को कई गुना कर के असली स्वाद वाला मीट बन सकता है. इससे लाखों पशुओं को सिर्फ मार कर मीट के लिए पैदा नहीं किया जाएगा और वे पृथ्वी पर बोझ नहीं बनेंगे. इसी तरह बिना पशुओं का दूध बनने जा रहा है, जिसका गुण और स्वाद असली दूध की तरह होगा. चिकन भी ऐसा ही होगा.

यही जिलेटिन के साथ होगा. जिलेटिन पशुओं की हड्डियों से बनता है और दवाओं के कैप्सूलों में इस्तेमाल होता है. पेट में जाने पर जिलेटिन पानी में घुल जाता है और दवा अपना काम शुरू कर देती है. जो वैजीटेरियन हैं वे कैप्सूल नहीं लेना चाहते और वैजिटेरियन कैप्सूलों की मांग बन रही है.

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दवा कंपनियों का कहना है कि वैजिटेरियन कैप्सूल महंगे होंगे. फिलहाल चुनावों के कारण यह काम टल गया है. जिलेटिन खाने में डलता है और मीठी गोलियों, केकों, मार्शमैलो आदि में भराव का भी काम करता है और वसा यानी फैट की कमी को भी पूरा करता है. रबड़ की तरह का जो स्वाद बहुत सी खाने की चीजों में आता है वह जिलेटिन के कारण ही है.

जिलेटिन का फूड में इस्तेमाल असल में जिलेटिन का इस्तेमाल फूड इंडस्ट्री में फार्मा इंडस्ट्री से ज्यादा होता है.

इसे वैजिटेरियन खाने में भी डाल दिया जाता है जबकि यह सूअर, गाय, मछली की खाल व हड्डियों को गला कर ही बनाया जाता है.

होने को तो जिलेटिन के वैजिटेरियन अपोजिट हैं पर इस्तेमाल करने वाले उत्पादकों के लिए महंगे और प्रोसैस करने में मुश्किल हैं. अब जैलजेन नाम की कंपनी पशु मुक्त जिलेटिन टाइप का कैमिकल बना रही है जो खाने, दवाओं, कौस्मैटिक्स में इस्तेमाल हो सकता है. डा. निक ओजुनोव और डा. एलैक्स लोरेस्टानी मौलिक्यूलर बायोलौजिस्ट हैं और सिंथैटिक बायोलौजी पर काम करते हुए उन्होंने सोचा कि जैसा इंसुलिन के लिए हुआ कि सुअर के भगनाशय से निकली इंसुलिन की जगह कृत्रिम इंसुलिन बना लिया गया, वही काम जिलेटिन के लिए क्यों नहीं हो सकता.

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पशु मुक्त जिलेटिन जैलजेन जिस का नाम लैलटोर है अब जिलेटिन के उत्पादन को पशु मुक्त बनाने में लग गई है. ये लोग बिना पशु मारे सैल्स से बैक्टीरिया को मल्टीप्लाई कर के जिलेटिन बना रहे हैं. वैजिटेरियन उत्पादों की दुनियाभर में मांग बढ़ रही है और उस के पीछे धार्मिक कारण तो हैं ही, पर्यावरण संतुलन भी है.

पशुओं से बनने वाला मीट, स्किन, दूसरे कैमिकल प्रकृति पर भारी पड़ते हैं. पशु बेहद पानी, जगह, कैमिकल, दवाएं इस्तेमाल करते हैं और अब ये मार दिए जाते हैं. मारने के बाद बचे कूड़े के निबटान में भी बड़ी समस्याएं हैं और गरीब देशों में इस कूड़े को ऐसे ही ढेरों में फेंक दिया जाता है जहां से बदबू और बीमारियां फैलती हैं. अमेरिका के कैलिफोर्निया में स्थित यह कंपनी पर्यावरण संरक्षण में बड़ा सहयोग दे रही है.

अग्निपरीक्षा

भाग-1

स्मिता आज बहुत उदास थी. उस की पड़ोसिन कम्मो ने आज फिर उसे टोका था, ‘‘स्मिता, यह जो राज बाबू तुम्हारे घर रोजरोज आते हैं और तुम्हारे पास बैठ कर रात के 12-1 बजे घर जाते हैं, पड़ोस में इस बात की बहुत चर्चा हो रही है. कल रात सामने वाले वालियाजी इन से पूछ रहे थे, ‘यह स्मिता के घर रोज रात को जो आदमी आता है, उस का स्मिता से क्या रिश्ता है? अकेली औरत के पास वह 2-3 घंटे क्यों आ कर बैठता है? स्मिता उसे अपने घर रात में क्यों आने देती है? क्या उसे इतनी भी समझ नहीं कि पति की गैरहाजिरी में अकेले मर्द के साथ रात के 12 बजे तक बैठना गलत है.’ ’’

कम्मो के मुंह से यह सब सुन कर स्मिता का चेहरा उतर गया था. उफ, यह पासपड़ोस वाले, किसी के घर में कौन आताजाता है, सारी खोजखबर रखते हैं. उन्हें क्या मतलब अगर कोई उस के घर में आता भी है तो. क्या ये पासपड़ोस वाले उस का अकेलापन बांट सकते हैं? वे क्या जानें कि बिना एक मर्द के एक अकेली औरत कैसे अपने दिन और रात काटती है? फिर राज क्या उस के लिए पराया है? एक वक्त था जब राज के बिना जिंदगी काटना उस के लिए कल्पना हुआ करती थी और यह सब सोचतेसोचते स्मिता कब बीते दिनों की भूलभुलैया में उतर आई, उसे एहसास तक नहीं हुआ था.

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स्मिता की मां बचपन में ही चल बसी थी. उस के बड़े भाई उसे पिता के पास से अपने घर ले आए थे. तब वह 7 साल की थी और तभी से वह भाईभाभी के घर रह कर पली थी. भैयाभाभी के 2 बच्चे थे और वे अपने दोनों बच्चों को बहुत लाड़दुलार करते थे. उन के मुंह से निकली हर बात पूरी करते लेकिन स्मिता की हमेशा उपेक्षा करते. भाभी स्मिता के साथ दुर्व्यवहार तो नहीं करतीं, लेकिन कोई बहुत अच्छा व्यवहार भी नहीं करतीं. उन को यह एहसास न था कि स्मिता एक बिन मां की बच्ची है. इसलिए उसे भी लाड़प्यार की जरूरत है.

भाई भी स्मिता का कोई खास खयाल न रखते. भाई के बेटाबेटी स्मिता की ही उम्र के थे. अकसर कोई विवाद उठने पर भाईभाभी स्मिता की अवमानना कर अपने बच्चों का पक्ष ले बैठते. इस तरह निरंतर उपेक्षा और अवमानना भरा व्यवहार पा कर स्मिता बहुत अंतर्मुखी बन गई थी तथा उस में भावनात्मक असुरक्षा घर कर गई थी.

राज भाभी का भाई था जो अकसर बहन के घर आया करता. उसे शुरू से सांवलीसलोनी, अपनेआप में सिमटी, सकुचाई स्मिता बहुत अच्छी लगती थी और वह जितने दिन बहन के घर रहता, स्मिता के इर्दगिर्द बना रहता. उस की स्मिता से खूब पटती तथा अकसर वे दुनिया जहान की बातें किया करते.

स्मिता को जब भी कोई परेशानी होती वह राज के पास भागीभागी जाती और राज उसे उस की परेशानी का हल बताता. वक्त बीतने के साथ स्मिता व राज की मासूम दोस्ती प्यार में बदल गई थी तथा वे कब एकदूसरे को शिद्दत से चाहने लगे थे, वे खुद जान न पाए थे.

लगभग 3 साल तक तो उन के प्यार की खबर स्मिता के भैयाभाभी को नहीं लग पाई और वे गुपचुप प्यार की पेंग बढ़ाते रहे थे. अकसर वे अपने हसीन वैवाहिक जीवन की रूपरेखा बनाया करते. लेकिन न जाने कब और कैसे उन की गुपचुप मोहब्बत का खुलासा हो गया और भैयाभाभी ने राज के स्मिता से मिलने पर कड़ी पाबंदी लगा दी थी और स्मिता के लिए लड़का ढूंढ़ना शुरू कर दिया.

राज और स्मिता ने भैयाभाभी से लाख मिन्नतें कीं, उन की खुशामद की कि उन का साथ बहुत पुराना है, उन को एकदूसरे के साथ की आदत पड़ गई है और वे एकदूसरे के बिना जिंदगी काटने की कल्पना तक नहीं कर सकते, लेकिन इस का कोई अनुकूल असर भाई व भाभी पर नहीं पड़ा.

स्मिता की भाभी का परिवार शहर का जानामाना खानदानी रुतबे वाला अमीर परिवार था तथा भाभी सुरभि के मातापिता को राज के विवाह में अच्छे दानदहेज की उम्मीद थी. इसलिए उन्होंने सुरभि से साफ कह दिया था कि वे राज की शादी स्मिता से किसी हालत में नहीं करेंगे. इसलिए उन्हें स्मिता का विवाह जल्दी से जल्दी कोई सही लड़का ढूंढ़ कर कर देना चाहिए.

राज के मातापिता ने राज से साफ कह दिया था कि यदि उस ने स्मिता से अपनेआप शादी की तो वे उस को घर के कपड़े के पुराने व्यापार से बेदखल कर देंगे और उस से कोई संबंध भी नहीं रखेंगे. राज के परिवार की शहर के मुख्य बाजार में कपड़ों की 2 मशहूर दुकानें थीं. राज महज 12वीं पास युवक था और अगर वह मातापिता की इच्छा के विरुद्ध स्मिता से शादी करता तो कपड़ों की दुकान में हिस्सेदारी से बाहर हो जाता.

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इधर स्मिता के भैयाभाभी ने उस से साफ कह दिया था कि अगर उस ने अपनेआप शादी की तो वह न तो उस की शादी में एक फूटी कौड़ी लगाएंगे, न ही शादी में शामिल होंगे. इस तरह राज और स्मिता ने देखा था कि यदि वे घर वालों की इच्छा के विरुद्ध शादी कर लेते हैं तो उन का भविष्य अंधकारमय होगा.

स्मिता के पास भी कोई ऐसी शैक्षणिक योग्यता नहीं थी जिस के सहारे वह अपने परिवार का खर्च उठा पाती. अत: बहुत सोचसमझ कर वह दोनों अंत में इस निष्कर्ष पर पहुंचे थे कि उन्हें अपने प्यार का गला घोंटना पड़ेगा तथा अपने रास्ते जुदा करने पड़ेंगे. उन के सामने बस, यही एक रास्ता था.

सुरभि स्मिता के लिए जोरशोर से लड़का ढूंढ़ने में लगी हुई थी. आखिरकार सुरभि की मेहनत रंग लाई. उसे स्मिता के लिए एक योग्य लड़का मिल गया था. लड़के का अपना स्वतंत्र जूट का व्यवसाय था तथा वह अच्छा कमा खा रहा था. लड़के का नाम भुवन था तथा उस ने पहली ही बार में स्मिता को देख कर पसंद कर लिया था. उन की शादी की तारीख 1 माह बाद ही निश्चित हुई थी.

शादी तय होने के बाद जब स्मिता राज से मिली तो उस के कंधों पर सिर रख कर फूटफूट कर रोई थी. उस ने राज से कहा था, ‘राज, 15 तारीख को तुम्हारी स्मिता पराई हो जाएगी. किसी गैर को मैं अपनेआप को कैसे सौंपूंगी? नहीं राज नहीं, मैं यह शादी हर्गिज नहीं करूंगी.’

राज ने स्मिता को समझाया था, ‘व्यावहारिक बनो स्मिता, यही जिंदगी की वास्तविकता है. क्या करें, हर किसी को अपनी मंजिल नहीं मिलती, यही सोच कर तसल्ली दो अपने मन को. मैं तुम्हें ताउम्र प्यार करता रहूंगा, कभी शादी नहीं करूंगा. तुम शांत मन से शादी करो, भुवन बहुत अच्छा लड़का है, अच्छा कमाता है, तुम्हें बहुत खुश रखेगा,’ यह कहते हुए डबडबाई आंखों से राज ने स्मिता का माथा चूमा था और चला गया था.

स्मिता की शादी की तैयारियां जोरशोर से चल रही थीं. सुरभि ने भाई से साफसाफ कह दिया था, ‘राज, मुझ से एक वादा करो, स्मिता की शादी तक तुम घर नहीं आओगे. स्मिता को अपने सामने देख तुम सामान्य नहीं रह पाओगे तथा बेकार में लोगों को बातें करने का मौका मिल जाएगा.’

‘दीदी, मेरे साथ इतना अन्याय मत करो,’ राज गिड़गिड़ाता हुआ बोला, ‘मैं कसम खाता हूं, शादी होने तक मैं किसी के सामने स्मिता से एक शब्द नहीं बोलूंगा. उस की शादी का काम कर के मुझे बहुत आत्मिक संतोष मिलेगा. प्लीज दीदी, तुम ने मुझ से सबकुछ तो छीन लिया, अब यह छोटा सा सुख तो मत छीनो.’

भाई की यह हालत देख सुरभि का मन पसीज उठा था. लेकिन वह भी परिस्थितियों के हाथों मजबूर थी. मुंह मोड़ कर भर आई आंखों को भाई से छिपाते हुए उस ने राज से कहा था, ‘ठीक है, तू शादी का काम संभाल ले, पर इस बात का ध्यान रखना कि स्मिता से कभी बोलेगा नहीं?’ और राज सिर हिलाते हुए वहां से चला गया था.

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आखिरकार स्मिता और भुवन की शादी हो गई थी. विदाई के समय रोते हुए राज को सामने देख कर स्मिता अपनेआप पर काबू नहीं रख पाई और बेहोश हो गई. होश आने पर उसे ऐसा महसूस हुआ था जैसे उस की दुनिया उजड़ गई हो.

खैर, टूटा हुआ दिल ले कर स्मिता भुवन के साथ अपनी ससुराल आ गई थी. सुहागरात को उस ने टूटे मन से रोते हुए भुवन के सामने समर्पण किया था. उन क्षणों में उस के अंतर्मन का सारा संताप उस के चेहरे पर आ गया था, जिसे भुवन ने संकोच और घबराहट समझा था.

भुवन एक बहुत ही अच्छे स्वभाव का, सज्जन युवक था. उस ने स्मिता को अपना पूरा प्यार दिया था, उसे टूट कर चाहा था.

शुरू में राज के बिना स्मिता बहुत बेचैन और उदास रही थी. जबजब भुवन उसे छूता, वह छटपटा उठती. लेकिन धीरेधीरे भुवन के सरल सहज बेशुमार प्यार की छांव में स्मिता सहज होने लगी, तथा उस के मन में भुवन के लिए चाहत पैदा होने लगी. वक्त गुजरने के साथ वह धीरेधीरे राज को भूलने भी लगी थी. हां, जब भी वह भैयाभाभी के घर आती, तो पुराने घाव हरे हो जाते.

भुवन के साथ रोतेहंसते कब 2 साल बीत गए, पता तक न चला था. स्मिता राज को एक हद तक भूल चुकी थी तथा भुवन के साथ अपनी नई जिंदगी में कुछकुछ रमने लगी थी.

राज की शादी भी उस की जाति की एक धनाढ्य परिवार की सुशिक्षित सुंदर लड़की से हो गई थी. राज अपनी शादी का कार्ड देने स्मिता के घर आया था. राज की शादी में जाने के लिए भुवन ने उस से कहा तो वह सिरदर्द का बहाना बना कर शादी में नहीं गई. उस दिन राज सारे दिन उसे बहुत याद आता रहा था तथा वह राज के साथ बिताए पलों को दोबारा जेहन में जीती रही थी. बाद में उस ने भाभी से सुना था कि राज ने यह शादी बहुत मुश्किल से की थी. उस की मां ने बहुत मिन्नतों- खुशामदों के बाद उसे शादी के लिए राजी किया था.

इधर कुछ दिनों से स्मिता कुछ परेशान चल रही थी. उस की शादी हुए 2 वर्ष हो चुके थे लेकिन उस की गोद भरने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे. उस की परेशानी देख कर भुवन उसे डाक्टर के पास ले गया था. पूरी जांच करने के बाद डाक्टर ने उसे बताया कि आप की पत्नी में गर्भधारण की क्षमता सामान्य से कुछ कम है, लेकिन सही उपचार के बाद वह गर्भधारण कर सकती है.

डाक्टर की इस बात ने भुवन और स्मिता को हिला कर रख दिया था. उस दिन स्मिता फूटफूट कर रोई थी. रोतेरोते उस ने भुवन से कहा था, ‘भुवन, मैं बहुत बदनसीब हूं. विधाता ने बचपन में ही मेरी मां छीन ली. जिंदगी भर मैं मांबाप के प्यार से वंचित रही और अब मुझे बच्चे का सुख नहीं दिया?’

स्मिता की गर्भधारण क्षमता में कमी की बात सुन कर भुवन भी बहुत मायूस हो गया था. खैर, स्मिता का उपचार शुरू हो गया. स्मिता की शादी को 4 वर्ष पूरे होने को आए लेकिन उस को मातृत्व का सुख मिलने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे.

बच्चों की कमी से उबरने के लिए भुवन ने अपनेआप को पूरी तरह अपने व्यापार में डुबो दिया था. बढ़ते व्यापार की वजह से वह स्मिता को बहुत कम वक्त देने लगा था. उन दोनों के बीच धीरेधीरे शून्य पसरता जा रहा था. इधर व्यापार के सिलसिले में वह अकसर नेपाल जाया करता और 2-2 महीने में वहां से वापस घर आया करता.

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उस दिन सुबह ही भुवन नेपाल चला गया तो स्मिता को समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे वह अपना वक्त काटे? शाम को यों ही वह भैयाभाभी से मिलने उन के घर चली गई थी. अचानक वहां राज भी आ गया. एक लंबे अर्से बाद राज और स्मिता में बातचीत हुई थी. लौटते वक्त राज ने स्मिता से कहा था, ‘चलो, गाड़ी से तुम्हें घर छोड़ देता हूं.’

सुरभि भाभी ने भी राज से कहा था, ‘हांहां, तू इसे गाड़ी से इस के घर छोड़ दे. अकेली कहां जाएगी.’

स्मिता राज के साथ उस की गाड़ी में बैठ गई थी. अपने घर उतरते वक्त उस ने औपचारिकतावश राज को घर पर कौफी पीने का आमंत्रण दिया था, जिसे राज ने स्वीकार कर लिया था और वह स्मिता के घर आ गया था.

एक मुद्दत बाद राज और स्मिता एकांत में मिले थे. स्मिता की समझ में नहीं आ रहा था कि राज के साथ बात कहां से शुरू की जाए. तभी मौन तोड़ते हुए राज ने स्मिता से कहा था, ‘स्मिता, सुना है आजकल भुवन लंबे वक्त के लिए नेपाल जाया करते हैं. इस बार कितने दिनों के लिए नेपाल गए हैं?’

‘इस बार भी 2 महीने के लिए वह नेपाल गए हैं,’ स्मिता ने जवाब दिया था.

‘तो तुम 2 महीने यहां अकेली रहोगी?’

‘रहना ही पड़ेगा और कोई चारा भी तो नहीं है.’

‘स्मिता, तुम खुश तो हो?’

जवाब में स्मिता की आंखों से आंसू टपक पड़े थे, जिन्हें देख कर राज छटपटा उठा था और स्मिता के आंसू पोंछते हुए उस ने उस से कहा था, ‘बताओ स्मिता, क्या बात है? मेरा दिल बैठा जा रहा है. मैं सबकुछ देख सकता हूं लेकिन तुम्हारी आंखों में आंसू नहीं देख सकता. बताओ स्मिता, बताओ…’

जवाब में स्मिता ने उसे अपने गर्भधारण में अक्षमता, इस की वजह से भुवन का अपने व्यापार में ज्यादा से ज्यादा समय देने तथा उसे अकेला छोड़ कर नेपाल में महीनों रहने की बात सुनाई, जिसे सुन कर राज का जी कसक उठा और उस ने अचानक उठ कर स्मिता को अपनी बांहों में समेट लिया और बोला, ‘स्मिता, तो तुम भुवन के साथ सुखी नहीं हो. मैं भी शोभा के साथ बिलकुल सुकून नहीं महसूस करता. मैं उसे अपने जीवन में वह जगह नहीं दे पा रहा हूं जो कभी तुम्हारे लिए सुरक्षित थी. स्मिता, मैं अभी तक तुम्हें पूरी तरह भूल नहीं पाया हूं. क्या तुम मुझे भूल पाई हो? बोलो स्मिता, जवाब दो?’

यह कह कर राज ने स्मिता को जोर से अपने आलिंगन में भींच लिया था. राज की बांहों में स्मिता कसमसा उठी थी और उस ने राज की बांहों के बंधन से अपने को मुक्त करने का प्रयास करते हुए कहा था, ‘राज, यह तुम क्या कर रहे हो? यह गलत है राज, मैं शादीशुदा हूं. तुम भी शादीशुदा हो. राज, प्लीज, तुम चले जाओ यहां से.’ लेकिन राज ने स्मिता को अपनी बांहों के घेरे से मुक्त नहीं किया, उसे चूमता ही चला गया. भावुकता के उन क्षणों में स्मिता भी कमजोर पड़ गई थी. उस रात वे सारे बंधन तोड़ बैठे थे तथा कमजोरी के उन क्षणों में उस रात वह हो गया था जो नहीं होना चाहिए था. उस रात राज करीब 1 बजे अपने घर लौटा था.

राज के जाने के बाद स्मिता आत्मग्लानि से भर उठी थी. वह सोच रही थी, छि:छि:, वह यह क्या कर बैठी? उस ने भुवन जैसे सीधेसच्चे पति से विश्वासघात किया, नहींनहीं, अब वह दोबारा राज का मुंह तक नहीं देखेगी. उस प्रण ने उस के दिमाग को थोड़ा सुकून दिया था.

लेकिन अगले ही दिन रात को राज फिर उस के घर आया था. राज के आते ही स्मिता ने उस से कहा था, ‘राज, तुम अभी इसी वक्त अपने घर वापस चले जाओ. कल रात जो कुछ हुआ वह बहुत गलत था. हमें वापस अपनी गलती नहीं दोहरानी चाहिए.’

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Met Gala 2019: प्रिंसेस लुक में नजर आईं दीपिका पादुकोण, फोटोज हुईं वायरल…

बौलीवुड दीवा दीपिका पादुकोण आए दिन सुर्खियों में बनी रहती हैं. कभी अपनी शादी तो कभी अपनी फिल्मों को लेकर. लेकिन हाल ही में वो ‘मेट गाला 2019’ के फंक्शन में अपने बार्बी डौल के लुक को लेकर सोशल मीडिया पर छा गईं. आइए आपको दिखाते हैं दीपिका के बार्बी डौल लुक की कुछ खास तस्वीरें…

बार्बी डौल जैसी पिंक ड्रैस में दीपिका का कहर

 

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Deepika padukone tonight for the met gala ? ديبيكا الليلة لحفل الميت غالا ? #metgala #deepikapadukone

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बार्बी डौल बनीं दीपिका ने इस ड्रेस के साथ बोल्ड मेकअप किया हुआ था. इस लुक में दीपिका किसी परी से कम नहीं लग रही थीं.

रेड कार्पेट पर दीपिका ने दिखाया कमाल

 

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दीपिका को रेड कारपेट पर जिसने भी देखा बस देखता ही रह गया. सोशल मीडिया पर छाई फोटोज में दीपिका का यह एक्सपेरीमेंट उन पर काफी जंच रहा है.

रेड कारपेट पर जम कर पोज देती नजर आईं दीपिका

‘मेट गाला 2019’ फंक्शन के रेड कारपेट पर इंटरनेशनल मीडिया के सामने दीपिका जम कर पोज देती नजर आईं. दीपिका ने अपने खूबसूरत आउटफिट की फोटोज इंस्टाग्राम पर शेयर की. जिसके बाद सोशल मीडिया पर दीपिका की फोटोज वायरल हो गई. इस दौरान दीपिका का कातिलाना अंदाज लोगों को खूब पसंद आया.

 

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दीपिका नें सोशल मीडिया पर शेयर की फोटोज, फैंस बनें दीवाने

 

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बता दें, फिलहाल दीपिका, मेघना गुलजार की फिल्म ‘छपाक’ में बिजी चल रही हैं. फिल्म छपाक में दीपिका लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी को बड़े पर्दे पर उतारेंगी जो कि एक एसिड अटैक सर्वाइवर हैं.

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