मासिक धर्म के साए में क्यों?

मैंने बचपन में देखा है कि दादी मेरी मम्मी को पीरियड्स के दौरान घर के कामों से बेदखल रखती थी. मम्मी को रसोईघर में घुसने की अनुमति नहीं होती थी, साथ ही वह किसी भी चीज को छू भी नहीं सकती थीं. यही नहीं उन्हें उन दिनों कांच के बरतनों में भोजन दिया जाता था और उसे भी वे अलग कमरे में बैठ कर खाती थीं. बरतन भी अलग धोती थीं. बात सिर्फ धोने पर ही नहीं खत्म होती थी. वे बरतन उन्हें आग जला कर तपाने होते थे. हम छोटे-छोटे बच्चे जब भी ये सब देखते और सवाल करते थे तो जवाब मिलता था कि छिपकली छू गई थी.

अपने ऊपर विश्वास करो सारे सपने सच होंगे: अलीशा अब्दुल्ला

वैदिक धर्म के अनुसार मासिकधर्म के दिनों में महिलाओं के लिए सभी धार्मिक कार्य वर्जित माने गए हैं और यह दकियानूसी नियम सिर्फ हिंदू धर्म में ही नहीं, लगभग सभी धर्मों में है. लेकिन इस सोच के पीछे छिपे तथ्य को समझ पाना बहुत मुश्किल लगता है. सब लोगों से अलग रहो, अचार को हाथ मत लगाओ, बाल न संवारों, काजल मत लगाओ आदि. न जाने कितने दकियानूसी नियम आज भी गांवों और कसबों में औरतों को झेलने पड़ रहे हैं. क्या कोई लौजिक है? किस ने बनाए हैं ये रूल्स और आखिर क्यों? जवाब कोई नहीं, क्योंकि होता आ रहा है, इसलिए सही है. आज भी बहुत सी महिलाओं के दिमाग पर ताले पड़े हैं.

क्या है इसके पीछे का लौजिक

आज 21वीं सदी में जब इंसान चांद पर जीवन की या मंगल पर पानी की खोज कर रहा है तब यह सोच कितनी अवैज्ञानिक है. कैसी मूर्खतापूर्ण सोच है जिस के कारण रजस्वला नारी को अपवित्र मान लिया जाता है और पलभर में ही स्वयं के घर में वह अछूत बन जाती है. उस से अछूत की तरह बरताव किया जाता है. जबकि इस का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. बस परंपरा के नाम पर आज भी आंखों पर काला चश्मा चढ़ा हुआ है.

एक सहज और सामान्य शारीरिक क्रिया जो किशोरावस्था से शुरू हो कर सामान्य तौर पर अधेड़ावस्था तक चलती रहती है न जाने आज भी कितनी पाबंदियां झेलती है. यह एक सामाजिक पाबंदी बन गई है. उन के साथ अछूतों जैसा व्यवहार और हर महीने 4-5 दिनों का यह समय किसी सजा से कम नहीं होता है. पीरियड्स के दौरान महिलाएं न तो खाना बना सकती हैं और न ही दूसरे का खाना या पानी छू सकती हैं. उन्हें मंदिर और पूजापाठ से भी दूर रखा जाता है. कई मामलों में तो उन्हें जमीन पर सोने के लिए मजबूर किया जाता है.

उदाहरण- एक स्वामी किस तरह अज्ञानता फैला रहा है

‘‘इस का कारण यह कि रजस्वला के स्पर्श के कारण विविध वस्तुओं पर प्रभाव पड़ता है. इस के अलावा रजोदर्शन काल में अग्नि साहचर्य के कारण (रसोई बनाते समय) उसे शारीरिक हानि होती है.’’

इन अज्ञानताभरी बातों का असर आज भी बहुत से घरों में इन रूढि़वादी परंपराओं को तोड़ने नहीं देता. इन घरों में आम धारणा यह है कि इस दौरान महिलाएं अशुद्ध होती हैं और उन के छूते ही कोई चीज अशुद्ध या खराब हो सकती है.

एक स्कूल अध्यापिका मीरा का कहना है कि उस ने सारा जीवन इन पाबंदियों को माना, क्योंकि घर के बड़ों ने उसे ऐसा करने को कहा था. उसे हर बार इस का विरोध करने पर कहा गया कि ऐसा नहीं करने पर नतीजा बुरा होगा. जैसे दरिद्रता आएगी, बीमारियां फैलेंगी, घर के बड़े या बच्चे बीमार पड़ जाएंगे या पति की मौत हो जाएगी. ऐसी और न जाने कितनी बातें.

महिलाएं वर्जनाओं को तोड़ रही हैं: स्मृति मंधाना

मीरा दुखी होते हुए कहती हैं, ‘‘ये 4-5 दिन घर की महिलाओं के लिए किसी सजा से कम नहीं होते थे. पर घर की बड़ी महिलाएं आंख बंद कर के ये सब मानती थीं. उन्हें इस बात में कुछ भी बुरा नजर नहीं आता था. किसी भी पुजारी या महंत के द्वारा बताई गईर् सभी बातें घर के सब सदस्यों को जायज लगती थीं. रजस्वला को कुछ भी छूने की मनाही होती थी. मैं सोचती थी कि पुरुषों के साथ ऐसा भेदभाव क्यों नहीं होता. ये सब हम लड़कियों को ही क्यों भुगतना पड़ता है. आज मैं ने अपनेआप को इन बातों से आजाद ही नहीं करा, बल्कि मेरी कोशिश है कि हर घर में परंपराओं की ये बेडि़यां टूटें.’’

आशाजी कहती हैं कि उन के गांव में आज भी रजस्वला महिला के साथ ऐसा होता है. जैसे यह गुनाह वह जानबूझ कर रही है. इस से भी बड़ी हैरानी तो तब होती है, जब हमारे पोथीपुराणों का हवाला देते हुए पंडेपुजारी भी मासिकधर्म को अशुद्ध घोषित करते हैं. रजस्वला महिला को उन की अपनी ही चीजें छूने की मनाही होती है. यही नहीं उन के लिए अलग बिस्तर या चटाई बिछती है.

मासिकधर्म के विषय में यह मान्यता है कि इस दौरान स्त्री अचार को छू ले तो अचार सड़ जाता है. पौधों में पानी दे तो पौधे सूख जाते हैं. यही नहीं अगर घर के लोग इस स्थिति में किसी महिला को घर की किसी चीज को छूते हुए देख लें, तो बहुत अनर्थ होता है.

आज के हालात

मैं अपनी ननद के घर गई, जोकि उत्तराखंड में रहती है. वहां पहुंचने पर मैं ने देखा कि ननद एक प्लास्टिक की कुरसी पर बैठी है, जबकि बाकी सब सोफे पर बैठे थे. खानेपीने के समय भी उन्हें साथ नहीं बैठाया गया. जिस कुरसी पर बैठी थीं उसे भी बाद में सर्फ से धोया गया. लेकिन परिवार के हर सदस्य चाहे बच्चा हो या बुजुर्ग या नौकर या घर के पुरुष सब के लिए यह स्थिति बहुत सामान्य सी बात थी.

मैं ने जब ननद या ननदोई को समझाने की कोशिश की तो जवाब मिला, ‘‘इस में बुराई भी क्या है? हम सब वही कर रहे हैं जो हमारे स्वामीजी कहते हैं, पुरखे मानते आए हैं. तुम दिल्ली वाले ज्यादा पढ़लिख कर परंपराएं निभाना भूल जाते हैं.’’

मुझे यह देख दुख हुआ कि आज भी भारत के अधिकांश क्षेत्रों में यह छुआछूत का भयंकर रिवाज हमारे समाज में चालू है. इस लज्जा और अपमानजनक स्थिति के लिए क्या महिलाएं खुद दोषी नहीं हैं?

प्रकृति के नियमों पर कैसे चढ़ा धार्मिक रंग

अब वक्त बदला है. अब शहर के पढ़ेलिखे लोग, रजस्वला नारी के साथ ऐसा व्यवहार नहीं करते हैं. इस तरह की किसी परंपरा को नहीं मानते. लेकिन पूजा करना या मंदिर जाना आज भी वर्जित है. इस विषय पर आज भी महिलाएं खुल कर बात नहीं कर पातीं. बड़े शहरों की कुछ शिक्षित महिलाओं को छोड़ छोटे शहरों व कसबों में यह आज भी वर्जित विषय है.

अब जरा सोचिए, यदि एकल परिवारों के चलते, परिस्थिति से समझौता करते हुए, रजस्वला महिला को रसोईघर में जाने की इजाजत मिली है, तब क्या उस महिला का या उस के परिवार वालों का कुछ अनिष्ट हुआ?

दरअसल, मासिकचक्र या रजस्वला होना एक नैसर्गिक क्रिया है, जो पूरी तरह से शरीर के गर्भावस्था के लिए तैयार होने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है. यह कहना कि इस से दूषित रक्त बाहर निकलता है सर्वथा गलत है. चिकित्सीय दृष्टिकोण से नारी का ठीक समय पर रजस्वला होना बेहद जरूरी है. इस नैसर्गिक क्रिया से हर महिला को गुजरना पड़ता है. सभी लोगों को खासकर महिलाओं को भी समझना होगा कि इस का पवित्रता से कोई लेनादेना नहीं है. यहां तो खुद औरत ही औरत के ऊपर इस तरह की बेबुनियाद परंपराएं थोपते हुए नजर आती है.

एक चर्चित केस

नेहा को अचानक स्कूल में पीरियड शुरू हो गया और उसे पता नहीं चला. राह चलते समय मर्द उसे घूर रहे थे और महिलाएं उसे अपनी टीशर्ट नीचे कर खून के धब्बे छिपाने की सलाह दे रही थीं. लेकिन वह समझ नहीं पा रही थी. तभी एक महिला ने उसे सैनिटरी नैपकिन दिया. तब जा कर उसे लोगों के घूरने का माजरा समझ आया.

फिर क्या था? घर आ कर नेहा ने अपनी वही स्कर्ट बिना किसी शर्म और झिझक के सोशल साइट पर शेयर करते हुए लिखा कि क्या औरत होना गुनाह है? यह पोस्ट उन सभी महिलाओं के लिए है जिन्होंने औरत होते हुए भी मेरे वूमनहुड को छिपाने के लिए मुझे मदद का औफर दिया. मैं शर्मिदा नहीं हूं. मुझे हर 28 से 35 दिनों में पीरियड होता है जोकि एक नैसर्गिक क्रिया है. मुझे दर्द भी होता है. तब मैं मूडी हो जाती हूं. लेकिन मैं किचन में जाती हूं और कुछ चौकलेट, बिस्कुट खाती हूं.

अब आप ही बताएं यदि पीरिएड्स स्त्री का गुनाह है, तो इन के हुए बिना वह मां कैसे बनेगी? संसार में रजस्वला होना प्रकृति का नारी को दिया हुआ एक वरदान है. इस वरदान से ही पूरी सृष्टि की रचना हुई है. क्या इस बात को झुठलाया जा सकता है?

परंपरा के पीछे का सच

इस प्रक्रिया के दौरान 3 से 5 दिनों में करीब 35 मिलीलीटर खून बहता है, तो महिला का शरीर थोड़ा कमजोर हो जाता है. बहुत सी महिलाओं को तो असहनीय दर्द भी होता है. ऐसे में महिला को आराम की जरूरत होती है. शायद इसी वजह से हमारे पूर्वजों ने यह परंपरा शुरू की कि इसी बहाने से रजस्वला को थोड़ा आराम मिल जाएगा. लेकिन अच्छी पहल का भी परिणाम उलटा ही हुआ. रजस्वला नारी को अपवित्र माना जाने लगा और उसे रसोई से छुट्टी देने की जगह उस का पारिवारिक बहिष्कार किया जाने लगा.

ताकि प्राकृतिक संतुलन बना रहे

हैरानी की बात तो यह है कि इन नसीहतों में कहीं भी सेहत से जुड़ी बातें शामिल नहीं होतीं. आज भी कई गांवों में मासिकधर्म के दौरान महिलाओं का किचन में जाना और बिस्तर पर सोना वर्जित है. आज भी महिलाओं की बड़ी संख्या सैनिटरी नैपकिन के बजाय गंदे, पुराने कपड़ों का इस्तेमाल करती हैं, जिस कारण महिलाओं में बीमारी का खतरा बढ़ जाता है. आज भी हमारे देश में जहां हम पौर्न और सैक्स कौमेडी के बारे में तो खुलेआम बाते करते हैं, मगर जब बात महिला की सेहत की आती है, तो उसे टैबू बना कर रखना चाहते हैं.

वैसे इस टैबू को तोड़ने की जिम्मेदारी खुद महिलाओं के कंधे पर है. जब तक महिलाएं शर्म और झिझक छोड़ कर अपनी बेटियों को इस बारे में नहीं बताएंगी, कोई कैंपेन, कोई संस्था कुछ नहीं कर सकती. बड़े पैमाने पर बदलाव के लिए पहल महिलाओं को ही करनी होगी.

6 टिप्स: इस गरमी महकते रहेंगे आप

गरमी में पसीना न आएं ऐसा हो नही सकता, लेकिन अगर पसीने में बदबू आए तो वह आपकी पर्सनेलिटी को खराब कर देता है. साथ ही आपको शर्मिंदगी का भी सामना करना पड़ता है. जिसके लिए आप महंगे-महंगे परफ्यूम का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन अगर आप गलत तरीके से या परफ्यूम को लगाने में गलती करते हैं तो यह आपकी स्किन को भी नुकसान पहुंचा सकता है. इसीलिए आज हम आपको कुछ टिप्स बताएंगे, जिससे आपकी बौडी में दिन भर परफ्यूम की महक रहेगी और आप तरोताजा भी महसूस भी करेंगे.

1. नौर्मल टैम्प्रेचर में रखें परफ्यूम

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ज्यादा गरमी, नमी या तेज रोशनी वाली जगह पर परफ्यूम रखने से उस की फ्रैगरैंस की क्वालिटी कम हो सकती है. इसलिए इसे हमेशा साधारण तापमान वाली जगह पर रखें.

2. ड्राई स्किन के लिए ऐसे करें परफ्यूम का इस्तेमाल

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यदि आपकी स्किन ज्यादा रूखी है तो परफ्यूम का इस्तेमाल करने से पहले बिना फ्रैगरैंस वाला लोशन जरूर लगाएं. इस से फ्रैगरैंस ज्यादा देर तक टिकेगी.

3. कपड़ों और बौडी पर कब और कैसे करें इस्तेमाल

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नहाने के तुरंत बाद परफ्यूम का इस्तेमाल करना सही रहता है. सिल्क के बने कपड़ों या ज्वैलरी पर परफ्यूम का स्प्रे न करें. ऐसा करने से उन की चमक जा सकती है.

4. फ्रैगरैंस को कैसे करें चैक

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फ्रैगरैंस चैक करने के लिए जब अपनी कलाई पर स्प्रे करें तो उसे दूसरी कलाई से न रगड़ें. ऐसा करने से सही फ्रैगरैंस का पता नहीं चलता.

5. हल्की फ्रैगरैंस के लिए करें ये काम

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अगर हलकी फ्रैगरैंस पसंद है तो परफ्यूम को बौडी पर स्प्रे करने के बजाय बौडी से थोड़ी दूर स्प्रे करें. बोतल में जब थोड़ा सा ही परफ्यूम बचे तो उस का इस्तेमाल बिना फ्रैगरैंस वाली क्रीम या लोशन को महकाने में कर सकती हैं.

6. परफ्यूम को बौडी पर चैक करने से पहले करें ये काम

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परफ्यूम को बौडी पर स्प्रे कर के उस की फ्रैगरैंस चैक नहीं करना चाहतीं तो इस के लिए विजिटिंग कार्ड या ब्लौटर स्ट्रिप का इस्तेमाल कर सकती हैं. फ्रैगरैंस को सही तरह से परखने के लिए स्प्रे करने के बाद उस के सूखने का इंतजार करें. अपने हैंडबैग को अच्छी खुशबू से महका रखने के लिए एक कौटन बौल पर थोड़ा परफ्यूम स्प्रे कर उसे बैग में रख लें.

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5 टिप्स: अब घर बैठे दूर करें डस्ट एलर्जी प्रौब्लम

आजकल हर जगह धूल मिट्टी हो गई है, जिसका असर हमारी हेल्थ पर पड़ता है. लेकिन धूल और धूएं के डर से औफिस जाने वाले बड़े और स्कूल जाने वाले बच्चे घर से निकलना तो बंद नही कर सकते. धूल और धूएं से कईं बिमारियां होती हैं जैसे छींक आना, नाक बहना, आंखों से पानी आना और आंखों का लाल होना, कोल्ड-कफ और सांस लेने में परेशानी महसूस होना. ये ऐसी एलर्जी है जिससे बचना बहुत ही मुश्किल हो जाता है. मास्क लगाने के बाद भी कई बार माइक्रो पार्टिकल्स नाक या मुंह के जरिये बौडी के अंदर चले जाते हैं. वहीं इस बिमारी के लिए हम डौक्टर के पास जाना ज्यादातर जरूरी नही समझते, लेकिन आज हम आपको कुछ ऐसे होममेड टिप्स बताएंगे जिससे आपको डौक्टर के पास भी नहीं जाना पड़ेगा और डस्ट एलर्जी से भी छुटकारा मिल जाएगा. तो आइए जानते हैं डस्ट एलर्जी के लिए होममेड टिप्स…

एलर्जी के लिए इफेक्टिव है हनी

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हनी में वो गुण होता है जो न केवल एलर्जी को खत्म करता है बल्कि आपको जुकाम और छींक से भी राहत पहुंचाता है. साथ ही यह आपके गले में होने वाले खराश और सांस लेने वाली नली में आई सूजन को भी सही करता है. ये ल्युब्रिकेंट की तरह खराश और खांसी को सही करने का काम करता है. जब भी आपको ऐसा लगे कि आपको डस्ट एलर्जी हो रही तो आप एक चम्मच हनी पी लें. इसके बाद कुल्ला करें लेंकिन पानी न पीएं.

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प्रोबायोटिक्स यानी दही या दही से बनी चीजें खाएं

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एलर्जी प्रतिरक्षा प्रणाली में असंतुलन के कारण होती है. इसके लिए जरूरी है कि अच्छे बैक्टिरया को पैदा किया जाए जो कि आंत में होते हैं. इसके लिए प्रोबायोटिक्स बेस्ट होते हैं, ये एलर्जी को ठीक करने का काम करते हैं. आंत के बैक्टीरिया को बढ़ावा देने के लिए दही या दही से बनी चीजें लें क्योंकि इनमें प्रोबायोटिक्स होते हैं.

खांसी की प्रौब्लम के लिए बेस्ट है सेब का सिरका

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एक गिलास पानी में 1 चम्मच एप्पल साइडर सिरका मिलाएं और दिन में तीन बार इसका सेवन करें. यह पेय कफ यानी बलगम के बनने की प्रक्रिया को तेजी से धीमा करता है और लसीका प्रणाली को साफ करता है.

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भाप यानी स्टीम जरूर लें

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भाप लेना धूल एलर्जी के इलाज सबसे कारगर और अचूक तरीका है. कम से कम 10 मिनट के लिए भाप लें ये आपके नाक से लेकर फेफड़े तक काम करता है. इससे कंजेशन खत्म होता है और खुल कर सांस लिया जा सकता है.

विटामिन सी नाक की ब्लौकेज को कम करने में है मददगार

बाथरूम की दुर्गंध को यूं भगाइए दूर

जिद्दी डस्ट एलर्जी से राहत पाने के लिए यह सबसे सरल और आसान तरीका है आप विटामिन सी का इंटेक बढ़ा दें. खट्टे फल जैसे संतरे और मीठे नीबू के फल विटामिन सी से भरपूर होते हैं और ये सफेद रक्त कोशिकाओं द्वारा होने वाले हिस्टामाइन के स्राव को रोकते जिससे शरीर में ब्लौकेज बढ़ती है. विटामिन सी नाक के स्राव और ब्लौकेज को भी कम करता है.

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Mother’s Day 2019: हर मुश्किल फैसले में साथ होती है मां

ज्योति राघव (दिल्ली)

बात 2013 की है. मैंने पत्रकारिता की शुरुआत की थी. एक प्रमुख समाचार संस्थान में बतौर ट्रेनी काम कर रही थी. रविवार को छुट्टी होती थी और शनिवार की रात को मैं यूपी रोडवेज की बस से अपने होमटाउन खुर्जा जाती थी. शाम को सात बजे औफिस से निकलने के बाद बस में बैठते-बैठते करीब आठ बज जाते थे. बस का दो-तीन घंटे का सफर रात में तय होता था. एक बार बस में मुझे एक महिला मिली, जो पति से झगडा होने के बाद गुस्से में घर से निकलकर आ गई थी. साथ में उसके छोटा बच्चा था. वो महिला रात में निकलकर तो आ गई, लेकिन उसे न तो ये पता था कि जाना कहां है, न ही कोई रास्ता मालूम था.

रात का वक्त था, कंडक्टर ने टिकट काटने को कहा तो वो कुछ बता न पाए कि कहां जाना है. कंडक्टर ने अपनी मर्जी से अलीगढ़ का टिकट काटकर उससे पैसे वसूल लिए. उसी दौरान मेरा बस में चढ़ना हुआ था. वह महिला निरीह की तरह मेरी ओर एक टक देखने लगी. मैंने जैसे ही नजरें मिलाईं तो उसने कंडक्टर की शिकायत करते हुए कहा कि ‘हमाए पैसे नई दे रहा ये.‘ पूछने पर पता चला कि कंडक्टर ने उससे टिकट से ज्यादा पैसे वसूल लिए हैं और बाद में देने के लिए कह रहा है. महिला से पूछा कि आपको जाना कहां है, तो वो बता नहीं पा रही थी, जबकि कंडक्टर ने अलगीढ़ का टिकट काट दिया था. मैंने महिला से पूछा कि अलीगढ़ में कोई रहता है क्या ? तो वो यह तक नहीं समझ पा रही थी कि अलीगढ़ है क्या?

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कंडक्टर कह रहा था कि बस स्टैंड पर उतार देंगे रात में वहीं रुक लेगी सुबह जहां जाना होगा वहां चली जाएगी. महिला की सुरक्षा को देखते हुए मुझे ये ठीक नहीं लगा. मैंने महिला से पूछा आपको अपने पति का फोन नंबर याद है? उसने कहा हां और उससे नंबर लेकर पति को फोन लगाया. पति ने दिल्ली की ओर आने वाली दूसरी बस में बिठा देने की बात कही, लेकिन महिला जाने को तैयार नहीं. रात के अंधेरे में यह ठीक भी नहीं लग रहा था. उससे पूछा रात में अलीगढ़ में अकेले रुक लोगी? अब वो न हां कहे ना कहें.

मैंने पूछा मेरे घर चलोगी मेरे साथ? वो तुरंत राजी हो गई और बोली हां चलूंगी. बस में सवार कुछ सवारियों ने मेरी बात के साथ सहमति जताई कि हां सही कर रही हो आप, नहीं तो बेचारी कहां भटकेगी. वहीं कुछ ने जमाना खराब होने का हवाला दिया. खैर, मैंने महिला को साथ लाने का मन बना लिया, लेकिन मुझे डर था कि मम्मी इस बात की इजाजत देंगी या नहीं. मैंने मम्मी को फोन लगाया और पूरी बात बताई.

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 मां ने ऐसे की मदद…

पहली बार में तो मम्मी ने कहा कि कहां चक्कर में पड़ती रहती है, लेकिन फिर इंसानियत दिखाते हुए उन्होंने मुझे उस महिला को घर ले आने की इजाजत दे दी. फिर भी डर लग रहा था कि मम्मी और पापा कहीं मुझे डांटे ना, लेकिन मम्मी ने सारी स्थिति संभाल रखी थी. उन्होंने पापा को सब बात पहले ही बता दी. इसके बाद मम्मी ने मुझे और उस महिला को खाना खिलाया और उसके बच्चे के लिए तुरंत दूध का प्रबंध किया. रात में महिला के लिए आंगन में चारपाई बिछाई.

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 मां है सपोर्ट सिस्टम…

सुबह होने पर न सिर्फ मेरे परिवार, बल्कि आस-पड़ोस के लोगों ने उस महिला के प्रति सहयोगात्मक रवैया दिखाते हुए कुछ पैसे इकट्ठे किए. महिला के पति को फोन कर दिया गया था कि वह खुद खुर्जा आकर अपनी पत्नी को ले जाए. मैंने थाने में जाकर महिला को पुलिस के सुपुर्द किया, जहां से उसका पति आकर उसे ले गया साथ ही पुलिस वालों ने आगे से झगड़ा नहीं करने की हिदायत भी दी.

मेरी मां हमेशा इस तरह साथ रहती हैं, तभी मैं ऐसे फैसले ले पाती हूं. मां मेरा सबसे बड़ा सपोर्ट सिस्टम है.

क्या मां बनने वाली हैं दीपिका? जानें इस खबर की सच्चाई

‘मेट गाला 2019’ में बार्बी गर्ल ड्रैसअप के बाद एक्ट्रैस दीपिका पादुकोण एक बार फिर फिल्म और ड्रैसअप की बजाय अपनी पर्सनल लाइफ के चलते सुर्खियों में आ गईं हैं. दरअसल, मेट गाला की आफ्टर पार्टी के बाद सोशल मीडिया पर दीपिका की कुछ फोटोज वायरल हुई हैं, जिसके बाद फैंस ने कयास लगाना शुरू कर दिया है कि दीपिका प्रैंगनेंट हैं.

प्रियंका ने शेयर की फोटो…

‘मेट गाला 2019’ की आफ्टर पार्टी में दीपिका , प्रियंका चोपड़ा और उनके पति निक जोनस के साथ पोज देती दिखीं. जहां दीपिका पीले रंग के गाउन के साथ ब्लैक एंड व्हाइट कोट कैरी करती हुईं नजर आईं, फोटो को देखकर ऐसा लग रहा था कि दीपिका प्रेगनेंट है. इन फोटोज को प्रियंका ने अपने इंस्टाग्राम पर शेयर किया, जिसके बाद यह फोटो वायरल हो गई और लोग कमेंट कर रहे हैं कि दीपिका प्रेगनेंट हैं.

दीपिका की प्रेग्नेंसी की सच्चाई…

वहीं दीपिका के करीबी ने खुलासा करते हुए कहा है कि दीपिका प्रेगनेंट नहीं हैं. उनकी माने तो यह खबर एक दम झूठी है. इस तस्वीर में बस खराब कैमरा एंगल की वजह से दीपिका का पेट बाहर नजर आ रहा है. इसके अलावा बाकी सारी खबरें अफवाह से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं.

 

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CAMP:NOTES ON FASHION MET GALA 2019 @zacposen @lorraineschwartz @sandhyashekar @georgiougabriel @shaleenanathani @nehachandrakant

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बता दें दीपिका फिलहाल, मेघना गुलजार की फिल्म ‘छपाक’ की शूटिंग में बिजी चल रही हैं. फिल्म छपाक में दीपिका लक्ष्मी अग्रवाल की कहानी को बड़े पर्दे पर उतारेंगी जो कि एक एसिड अटैक सर्वाइवर हैं.

फ्लोरिंग को दें स्टाइलिश लुक

आप अपने घर में कितनी भी महंगी चीजें क्यों न रखें, जब तक घर की फ्लोरिंग सही न होगी तब तक घर का इंटीरियर अच्छा नहीं लगेगा. फर्श के तौर पर टाइल्स बेहद टिकाऊ होती हैं तथा मजबूती के मामले में भी इन का मुकाबला नहीं होता. ये पानी से जल्दी खराब नहीं होतीं और साफसफाई में भी किसी तरह की दिक्कत नहीं होती.

टाइल्स में मैट फिनिश का चलन जोरों पर है. चमचमाती या ग्लौसी टाइल्स अब ट्रेंड में नहीं हैं. कई कंपनियां आप की पसंद के अनुसार भी टाइल्स बनाने लगी हैं, जिन्हें कंप्यूटर की मदद से बनाया जाता है. इन में आप अपनी पसंदीदा मोटिफ्स या परिवार के फोटो भी प्रिंट करा सकती हैं. टाइल्स फ्लोरिंग कराते समय इस बात का ध्यान रखें कि फ्लोरिंग आप की दीवारों से मैच करे. अगर आप के घर की दीवारें लाइट कलर की हैं, तो टाइल्स डार्क कलर की लगवाएं. अगर दीवारें डार्क कलर की हैं, तो लाइट टाइल्स लगवाएं.

कैसा हो बच्चे का कमरा

कहां और कैसे लगवाएं टाइल्स

घर की अलगअलग जगहों पर टाइल्स के चयन का तरीका भी अलगअलग होता है:

  1. लिविंग एरिया वह स्थान है जहां आप अपने मेहमानों का स्वागत करती हैं, दोस्तों से मिलती हैं, उन से बातें करती हैं. इस स्थान को खास बनाना जरूरी है. यहां आप कारपेट टाइल्स लगवा सकती हैं.

2. अगर आप का घर छोटा है, तो आप एक ही तरह की टाइल्स लगवा सकती हैं, जो घर को अच्छा लुक देती हैं. अगर घर बड़ा है तो अलग अलग डिजाइनों की टाइल्स लगवाएं. लिविंग एरिया में पैटर्न और बौर्डर वाली टाइल्स का भी ट्रैंड इन है.

3. बैडरूम में बहुत से लोग डार्क कलर की फ्लोरिंग करा लेते हैं. ऐसा करने से बचें. बैडरूम की टाइल्स फ्लोरिंग के लिए हलके और पेस्टल शेड्स का इस्तेमाल करें.

इन 13 टिप्सों को अपनाकर घर को रखें जर्म फ्री

4. किचन छोटी हो तो दीवारों पर हलके रंग की टाइल्स लगवाना ही सही रहता है. बड़ी किचन में सौफ्ट कलर का इस्तेमाल करना चाहिए. इन दिनों किचन में स्टील लुक वाली टाइल्स ट्रैंड में हैं.

5. बाथरूम घर में सब से ज्यादा इस्तेमाल होने वाली जगहों में से एक है. इसे सुंदर व आरामदेह बनाना बहुत जरूरी है. बाथरूम में हमेशा सौफ्ट फील वाली टाइल्स लगवाएं. ये टाइल्स नंगे पैरों को रिलैक्स फील कराती हैं. बाथरूम के लिए कई तरह की टाइल्स आती हैं. आप बौर्डर वाली, क्रिसक्रौस पैटर्न वाली टाइल्स लगवा सकती हैं.

6. टाइल्स कई सालों तक चलती हैं. इन्हें साफ करना भी आसान होता है. कई महिलाएं टाइल्स को साफ करने के लिए हार्ड कैमिकल का प्रयोग करती हैं. ऐसा न करें. टाइल्स को साफ करने के लिए टौयलेट क्लीनर का इस्तेमाल कर सकती हैं. सर्फ के पानी से भी टाइल्स को साफ किया जा सकता.

घर की दीवारों को इन 5 टिप्सों से बनाएं खास

डिप्रेशन में करण जौहर बनें सहारा-पुनीत मल्होत्रा

करण जौहर , निखिल अडवाणी, अमोल पालेकर के साथ बतौर सहायक निर्देशक काम करने के बाद फिल्म ‘आई हेट लव स्टोरी’’ से अकेले निर्देशन के क्षेत्र में कदम रखने वाले पुनीत मल्होत्रा ने  2013 में फिल्म ‘गोरी तेरे प्यार में’ निर्देशित की थी, जिसे बौक्स आफिस पर कोई सफलता नहीं मिली थी. और अब पुनीत मल्होत्रा ने फिल्म ‘‘स्टूडेंट आफ द ईअर’ का निर्देशन किया है. पुनीत मल्होत्रा 2012 से ही करण जौहर  के साथ जुड़े हुए हैं. तो स्वाभाविक तौर पर उन पर करण जौहर की एक छाप भी है. पेश है उनसे हुई एक्सक्लूसिव बातचीत के अंश..

आपके निर्देशन में करण जौहर की छाप है. अमूमन जिसकी छाप होती है, उससे कुछ अलग कर पाना बहुत मुश्किल होता है, लेकिन सिनेमा में अपनी पहचान के लिए निर्देशक को कुछ नया भी करना होता है. आपने क्या कोशिश की ?

आपका सवाल बहुत महत्वपूर्ण और बहुत ही अलग है. देखिए, आपका सवाल और बात बहुत मायने रखती है. क्योंकि सिनेमा में जिसकी छाप है, उसको बरकरार रखते हुए अपनी पहचान का सिनेमा देना बहुत जरूरी होता है. आप जानते हैं कि 2012 में जो फिल्म ‘स्टूडेंट औफ द ईअर’ बनी थी, उसे करण जौहर  ने निर्देशित किया था. अब जब उसका सिक्वअल ‘स्टूडेंट आफ द ईअर 2’ बनी है, तो निर्देशन की जिम्मेदारी उन्होंने मुझ पर डाली. अब मेरे सामने चुनौती थी कि मैं इसे किस तरह से अपने अंदाज में पेश करता हूं. मैंने वही कोशिश इस फिल्म को बनाते समय की है. आपने जो सवाल किया वह इस फिल्म के साथ बहुत सटीक बैठता है. क्योंकि मुझ पर करण जौहर  की छाप है. और यह फिल्म भी करण जौहर  की है. पर मैंने इसको अपने नजरिए से परदे पर उतारा है.

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स्टूडेंट औफ द ईअर से सिक्वअल फिल्म स्टूडेंट औफ द ईअर 2 कितनी अलग है?

-पहली फिल्म सेंट टेरीसा कौलेज पर आधारित थी. हम लोगों ने उस फिल्म के लिए सेंट टेरीसा कौलेज की दुनिया में प्रेम कहानी के साथ फैंटसी जड़ी थी. अब सिक्वअल में हमने सेंट टेरीसा कौलेज की उस दुनिया को तो रखा है, पर इसमे हमने एक दूसरी दुनिया भी गढ़ी है. इंटरवल तक तो सेंट टेरीसा कौलेज की दुनिया है, पर इंटरवल के बाद पूरी कहानी दूसरी दुनिया में पहुंच जाती है.

फिल्म में जो दूसरी दुनिया है, उस पर रोशनी डालना चाहेंगे?

-फिल्म में इंटरवल के बाद कबड्डी के खेल की दुनिया है. प्रो कबड्डी की जो दुनिया है, वह दर्शकों को बांध कर रखने वाली है.

पहली फिल्म से दूसरी फिल्म में जो अंतर आया है, वह समय के अंतराल की वजह से है या समाज में आए बदलाव के चलते आया है?

देखिए, सात वर्ष के समय का अंतराल भी है. इन सात वर्षों मे सिनेमा व समाज भी बदला है. आपको इस बात का अहसास होगा कि इन सात वर्षों में हमारे देश में स्पोर्ट्स में भी काफी बदलाव आया है. पहले हमारे देश में क्रिकेट ही सर्वाधिक लोकप्रिय खेल हुआ करता था. पर धीरे-धीरे दूसरे खेल भी लोकप्रिय हुए हैं. यह बदलाव भी हमारी फिल्म का हिस्सा है. दूसरी बात जब हम सिक्वअल बना रहे थे, तो हमारे उपर दायित्व था कि हम पहले से कुछ अच्छा और बेहतर पेश करें. हमारी तरफ से यह सारी कोशिश आपको इस फिल्म में नजर आएगी.

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आपने बिलकुल सही कहा एक सफल फिल्म के सिक्वअल को बनाते समय उसका स्तर पहले से उंचा रखना जरूरी होता है. यह आपके लिए कितनी बड़ी चुनौती रही?

देखिए, 2012 में जब इस फिल्म को करण जौहर  ने निर्देशित किया था, तब भी मैं उनके साथ जुड़ा हुआ था. अब उसी फिल्म के सिक्वअल के वह निर्माता हैं और मैं फिल्म का निर्देशक हूं. उनके साथ मेरे जुड़ाव ने उनके सिनेमा की समझ, उनके अंदर जो कुछ था, उसने मुझे आज इस फिल्म को बनाने में मदद की. इस फिल्म को करते समय हमने सोचा कि पहली फिल्म में हम यह कर चुके हैं, तो अब नई फिल्म में हमें यह करना चाहिए. इसी के चलते हमने इस फिल्म में टाइगर श्राफ को रखा है. इससे फिल्म का स्तर पहले वाली फिल्म से अपने आप उपर हो गया.

यानी कि टाइगर श्रौफ को फिल्म से जोड़ने के बाद फिल्म की कहानी में दूसरी दुनिया के रूप में कबड्डी के खेल को शामिल किया गया?

-ऐसा नहीं है. हकीकत यह है कि फिल्म की कहानी तय थी, पर उस वक्त फिल्म में कबड्डी की बजाय कोई दूसरा स्पोर्ट्स रखा हुआ था. फिल्म के साथ टाइगर श्रौफ के जुड़ने के बाद भी वही स्पोर्ट्स था. पर कुछ समय बाद जब कहानी थोड़ी बदली, तो हमें लगा कि यदि हम कबड्डी के खेल को रखें, तो ज्यादा अच्छा होगा. कबड्डी को रखने  के पीछे हमारी सोच यह रही कि परदे पर अब तक कबड्डी को इस तरह से रखा नहीं गया है. इस बात का निर्णय लेने के बाद हमने अपनी फिल्म के साथ प्रो कबड्डी के राव साहब को जोड़ते हुए उनसे राय ली.फिल्म में इंटरवल के बाद कबड्डी की जो दुनिया है, वह राव साहब ने ही डिजाइन की है.

खेल को लेकर आपकी अपनी सोच क्या रही?

मेरी राय में हर इंसान के लिए स्पोर्ट्स बहुत जरूरी चीज है. अफसोस की बात है कि हम सब लोग क्रिकेट पर ही ध्यान देते हैं. जबकि ऐसा नहीं होना चाहिए.यदि मेरा वश चले, तो मैं बड़ी बड़ी इमारतों को गिरा का स्पोर्ट्स ग्राउंड बना देता. क्योंकि हर बच्चे को घर से बाहर निकलकर खंल के मैदान पर खेलना चाहिए. आज का बच्चा घर से बाहर निकलता ही नहीं. मोबाइल या आइपैड पर ही गेम खेलता रहता है,यह उनके सर्वांगीण विकास को अवरूद्ध कर रहा है. हमें अपने बच्चों को घर से बाहर निकलकर खेल के मैदान में खेलने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए. शिक्षा के साथ साथ स्पोर्ट्स को भी अहमियत दी जानी चाहिए. स्पोर्ट्स हमें ‘लूजिंग स्प्रिट’, ‘विनिंग स्प्रिट’ और टीम भावना सिखाता है.

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फिल्म के तीनों कलाकारों के किरदार क्या हैं?

टाइगर श्राफ ने रोहण का किरदार निभाया है, जो कि ‘अंडर डौग’ है, पर वह फिल्म का हीरो है. उसे चोट लगती है. पर वह किस तरह से पुनः उभर कर आता है. रोहण के किरदार में आमीर खान की फिल्म‘जो जीता वही सिकंदर’का टच है. अनन्या पांडे का श्रेया का किरदार एकदम फन है. श्रेया उन लड़कियों में से है, जिससे लोग नफरत करते हैं. तारा ने मिया का किरदार निभाया है. मिया ऐसी लड़की है, जिस पर कौलेज के सभी लड़के फिदा हो जाएंगे. इन तीनों के बीच बहुत ही जटिल रिश्ते हैं. प्रेम त्रिकोण है. आज की तारीख में युवा पीढ़ी में जिस तरह से ट्विस्टेड  रिलेशनशिप’ नजर आती है, वही हमारी फिल्म में भी नजर आएगी.

समाज में जो बदलाव है,वह आपकी फिल्म का हिस्सा कैसे है?

-मैंने पहले ही कहा कि पिछले सात वर्ष के अंतराल में सिनेमा व समाज काफी बदला है. पिछले कुछ वर्षो से ग्रास रूट@जमीन से जुड़ी कहानी वाली फिल्में बननें लगी हैं. यह वह फिल्में हैं, जिनमें रियालिटी होती है. अब मेट्रो पौलीटन सिटी के साथ साथ छोटे शहरों व गांवों को भी फिल्मों के साथ जोड़ा जाने लगा है. हमारी इस फिल्म में भी आपको दोनों दुनिया नजर आएगी. इसमें ग्रास रूट से जुड़ी कहानी भी है.

ग्रास रूट से जुड़ी एक फिल्म असफल हो चुकी थी. ऐसे में स्टूडेंट औफ द ईअर 2 में ग्रास रूट की कहानी जोड़ते समय आपको रिस्क नहीं लगा?

मैं एक ही बात कहूंगा कि ‘गोरी तेरे प्यार में’ और ‘स्टूडेंट औफ द इअर 2’ का एक दूसरे से कोई संबंध नहीं है. मेरे दिल में जो कहानी आयी, वह मैंने बतायी. यह कहानी एक ऐसे कौलेज में पढ़ने वाले लड़के की हैं, जो अपनी जिंदगी में तमाम मुसीबतों के बाद भी अपने सपने पूरे कर लेता है.

आप डिपरेशन से कैसे उबरे थे?

-देखिए, एक न एक दिन तो निराशा व हताशा से खुद को उबार कर नए सिरे से काम तो करना ही था. आगे बढ़ने के लिए यह बहुत जरुरी होता है. डिपरेशन के वक्त, मेरी निराशा के वक्त आगे बढ़ने में करण जौहर  ने मेरी बहुत मदद की. मुझे डिपे्रशन से उबारने में उनका बहुत योगदान रहा. मुझे अच्छी तरह से याद है कि वीकेंड पर मैं रो रहा था,तो करण जौहर  ने कहा था कि, ‘तू रो क्यों रहा है, हम इससे बड़ी फिल्म बनाएंगे.’

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घर पर करें ट्राई अचारी टिंडे

अक्सर सुना है कि टिंडे की सब्जी अच्छी नही होती, लेकिन वह हेल्थ के लिए हेल्दी होती है. तो आज हम आपको टिंडे को नया रूप देकर आपके घर वालों को खुश करने के लिए एक नई रेसिपी बताएंगे. जिससे आपकी फैमिली टिंडे का नाम सुनकर मुंह नही बनाएंगे.

हमें चाहिए…

500 ग्राम टिंडे

1 छोटा चम्मच मेथी दाना

1 छोटा चम्मच कलौंजी

1 छोटा चम्मच सरसों

1 छोटा चम्मच जीरा

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एक चौथाई चम्मच हींग

1/2 छोटा चम्मच सौंफ

1/2 छोटा चम्मच हल्दी

2-3 हरीमिर्चें

1 छोटा चम्मच देगी मिर्च

3-4 टमाटरों की प्यूरी

2 प्याज की प्यूरी

1 बड़ा चम्मच साबूत गरममसाला

5-6 कलियां लहसुन

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आवश्कतानुसार तेल

नमक स्वादानुसार.

बनाने का तरीका

टमाटर, प्याज, लहसुन, हरीमिर्च और साबूत मसाले को एक कुकर में डाल 1/2 कप पानी डालें और कुकर का ढक्कन बंद कर के 3-4 सीटियां आने तक पका लें.

ठंडा होने पर इसे पीस कर एक ओर रख दें. एक पैन में तेल गरम कर मेथी दाना, सरसों, राई, जीरा, सौंफ  और हींग डाल कर कुछ देर बाद प्याज व टमाटर की प्यूरी डाल अच्छी तरह भूनें.

फिर सूखे मसाले मिलाएं और कुछ देर फिर पकाएं. टिंडों को छील कर बीच में आरपार चीरा लगा लें. ग्रेवी पैन के किनारे छोड़ने लगे तो इस में 1/2 कप पानी मिला टिंडे डाल कर कुछ देर ढक कर टिंडों के गलने तक पकाएं. और फिर गरमागरम परांठे के साथ परोंसें.

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समर ट्रैंड: इस गरमी ट्रैंड में रहेंगे ये 9 मेकअप टिप्स

गरमियों में आपका भी मन करता होगा कि हम भी अपने लुक को और भी ज्यादा ब्युटीफुल बनाएं, लेकिन गरमी के कारण आप मेकअप लगाने से बचती नजर आती हैं. जिसके साथ-साथ आप ट्रैंडस भी भूलती चली जाती हैं. पर क्या आपको पता है कि कुछ ऐसे नए समर मेकअप ट्रैंड्स आए हैं जिन्हें महिलाएं चाह कर भी इनकार नहीं कर पाएंगी. आइए, जानते हैं उन्हीं समर मेकअप ट्रैंड्स के बारे में…

1. आईशैडो मेकअप

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गरमी के मौसम में महिलाएं हैवी मेकअप को अवौइड करती हैं खासकर आंखों का. इस साल जो शैडो मेकअप ट्रैंड में है वह आप को सुपर कूल और लाइट मेकअप का एहसास देगा. इसमें आप शिमरी गोल्ड शेड के साथ पिंक लाइनर इस्तेमाल करके अपने लुक को सुपर कूल बना सकती हैं. अगर आप की पर्सनैलिटी पर सिर्फ हल्के कलर्स ही अच्छे लगते हैं तो आप क्रीम कलर का आईशैडो इस्तेमाल कर सकती हैं.

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2. हाइलाइटर मेकअप

अगर आप एक्सपैरिमेंट करना पसंद करती हैं, तो आप इस समर सीजन रेनबो हाइलाइटर कैरी कर सकती हैं. होलोग्राफिक हूज हाइलाइटर की खास बात यह होती है कि यह धूप में आकर अलग रंग से हाइलाइट होता है. अगर आप ने ब्लू कलर का हाइलाइटर अप्लाई किया है तो वह धूप में पर्पल रंग में बदल जाता है. इस तरह का हाइलाइटर लंच डेट के लिए परफैक्ट रहता है.

3. लिपस्टिक समर ट्रैंड

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लिप्स को परफैक्ट कलर देकर अपने बोरिंग डे को रौकिंग बना सकती हैं. अब जब ट्रैंड की बात हो रही है तो 2019 के कुछ ऐसे बेहतरीन लिपस्टिक शेड्स हैं, जो आप को बौसी लुक देंगे जैसे कि फ्लेमिंगो पिंक. हर किसी को रैड कलर अच्छा लगे, जरूरी नहीं है, पर फ्लेमिंगो पिंक कलर एक ऐसा शेड है, जो हर तरह के कपड़ों पर जंचता है. यदि आप पूल पार्टी की शौकीन हैं तो आप ब्राइट पिंक कलर का शेड लगा कर पूल साइड पार्टी को और ज्यादा रौकिंग बना सकती हैं.

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4. आईलाइनर मेकअप

आईलाइनर आप के लुक को रीडिफाइन करने में मदद करता है. क्लासिक विंग तो सभी ने खूब अपनाया होगा, लेकिन अब यह विंग अपडेट हो कर ग्राफिक आर्ट में आ गया, जिस में आप 2 लेयर के साथ आईलाइनर इस्तेमाल कर सकती हैं. समर एक ऐसा मौसम है, जिस में आप आईलाइनर के साथ भी ऐक्सपैरिमैंट कर सकती हैं, यलो, पिंक, ब्लू आदि इस समर के लिए परफैक्ट आईलाइनर हैं.

5. रंगों से खेलें

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धीरे-धीरे महिलाएं न्यूट्रल रंगों से ऊब रही हैं और वे अब कुछ नया करना चाहती हैं. इसलिए आप रंगों के साथ खेलना शुरू कर दीजिए और हम बताते हैं कि आप को किस तरह इन्हें फौलो करना चाहिए. अगर आप न्यूड लिप ग्लौस और ब्रौंज आईज के साथ सिंपल लुक चाहती हैं, तो टर्किश आईलाइनर या रैड आईशैडो का टच आप के लुक के लिए परफैक्ट होगा. इस साल आप हर रंग के साथ खेल कर अपनी आंखों को सजा सकती हैं.

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6. मल्टीपल कंट्रास्टिंग कलर

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जैसे एक कलाकार अपनी पेंटिंग में हर रंग भरता है, ठीक उसी तरह आप भी मल्टीपल कलर इस्तेमाल कर के कुछ क्रिएटिव कर सकती हैं. पिछले कुछ वर्षों में न्यूड और ब्राउन रंग चलन में रहा और इस बार नया ट्रैंड सिर्फ बोल्ड और ब्राइट पौपी कलर्स का है यानी आप गुलाबी, बैंगनी और पीले रंग का इस्तेमाल कर सकती हैं. ये पिछले सालों से काफी हट कर हैं.

7. बोल्ड एंड ब्राइट आइज

एक फ्रैश व न्यूट्रल चेहरे पर ब्राइट और पौपी रंग काफी उभर कर आते हैं और यही इस साल ट्रैंड में होने वाला है. न्यूड लिपस्टिक के साथ व्हाइट हाईलाइटर और पौपी कलर का आई मेकअप बेहद शानदार लगेगा.

8. कलर ब्लौक्ड आईलाइनर

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आप अपने क्लासिक कैट आई लुक को एक लैवल ऊपर करना चाहती हैं, तो आप को सिर्फ करना यह होगा कि कोई भी 2 मनपसंद रंग के आईलाइनर लगाने हैं. आंखों के ऊपर पहले एक रंग का स्ट्रोक लगाएं, फिर उस के ऊपर दूसरे रंग का. कैट आईलाइनर को अच्छा बनाने के लिए हमेशा गीले आईलाइनर का इस्तेमाल करें. कैट आईलाइनर के लिए आप पहले व्हाइट लाइनर लगाएं उस के ऊपर इलैक्ट्रिक ब्लू शेड्स के साथ पेयर करें.

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9. मैटेलिक लुक

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पिछले साल भी मैटेलिक आई ट्रैंड काफी चलन में रहा है और 2019 में भी अधिक लोकप्रिय होने जा रहा है. बोल्ड लुक के लिए शिमरिंग सफायर, डस्की ब्रोंज और ग्लिटर का इस्तेमाल करें.

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प्यार का दुश्मन छोटा घर

मुरादाबाद की रहने वाली छाया की शादी दिल्ली के रहने वाले राजन के साथ हुई थी. उसकी मौसी ने इस शादी में मध्यस्थ की भूमिका निभायी थी, जो दिल्ली में ही ब्याही हुुई थीं. निम्न मध्यमवर्गीय परिवार की छाया मुरादाबाद से ढेर सारे सपने लेकर दिल्ली में आयी थी. दिल्ली देश की राजधानी है. दिल्ली दिलवालों की नगरी है. यहां बड़ी-बड़ी कोठियां, चमचमाती चौड़ी सड़कें, बड़े-बड़े पार्क, दर्शनीय स्थल, राष्ट्रपति भवन, इंडिया गेट और पता नहीं किस-किस के बारे में उसने सुन रखा था. मगर ससुराल पहुंच कर छाया के सारे सपने छन्न से टूट गये. वो एक हफ्ते में ही समझ गयी कि यहां वह रह नहीं पाएगी. दरअसल दिल्ली तो बहुत बड़ी थी, मगर उसका घर बहुत छोटा था. इतना छोटा कि उसको अपने लिए एक घंटे का एकान्त भी यहां नहीं मिलता था. मुरादाबाद में छाया के पिता का पांच कमरों वाला बड़ा पुश्तैनी मकान था. घर में पांच प्राणी थे और पांच कमरे, सब खुल कर रहते थे, किसी को प्राइवेसी की दिक्कत नहीं थी. मगर यहां दो कमरों के किराये के घर में सात प्राणी रहते थे – छाया, राजन, उनके माता पिता, दादा दादी और राजन का छोटा भाई. घर में एक बाथरूम था, जिसका इस्तेमाल सभी सातों प्राणी करते थे. सुबह पहले सारे मर्द निपट लेते थे, उसके बाद औरतों की बारी आती थी.

यहां छाया और राजन को कोई प्राइवेसी उपलब्ध नहीं थी. मां, दादा-दादी तो पूरे वक्त घर में ही बने रहते थे. पिताजी भी बस सौदा-सुल्फ लेने के लिए ही बाहर जाते थे, बाकी वक्त चबूतरे पर कुर्सी डाल कर बैठे रहते थे. रात के वक्त घर की सारी औरतें एक कमरे में सोती थीं, और मर्द दूसरे कमरे में. ऐसे में छाया को पति की नजदीकियां भला कैसे मिल सकती थीं? दोनों दूर-दूर से एक दूसरे को बस निहारते रहते थे. शादी को महीना बीत रहा था, अभी तक उनके बीच शारीरिक सम्बन्ध भी नहीं बन पाया था. सुहागरात क्या होती है, छाया जान ही नहीं पायी. एक महीने में ही छाया की सारी खुशियां काफूर हो चुकी थीं, वह टूटने लगी थी, अपने घर वापस लौट जाने का ख्याल दिल में आने लगा था. आखिर ऐसी शादी का क्या मतलब था, जहां पति की नजदीकियां ही न मिल सकें?

राजन के पिता रिटायर हो चुके थे. उनकी थोड़ी सी पेंशन आती थी. राजन एक कोरियर कम्पनी में कोरियर बॉय का काम करता था. उसकी कमाई और पिता की पेंशन से सात प्राणियों का घर चलता था. राजन सुबह नौ बजे का निकला रात आठ बजे थका-हारा घर लौटता था. छाया उसके बिस्तर पर ही खाने की थाली धर जाती थी और वह खाना खाते ही सो जाता था. पत्नी से सबके सामने बातचीत भी क्या करता? उसकी कम्पनी से उसे छुट्टी भी नहीं मिलती थी कि पत्नी को लेकर कहीं घूम आये. छुट्टी लेने का मतलब उस दिन की देहाड़ी हाथ से जाना. वहीं दस लोग उसकी जगह पाने के लिए भी खड़े थे. इसलिए वह मालिक को नाराजगी का कोई मौका नहीं देना चाहता था.

यहां घर में छाया की ददिया सास ने शादी के पंद्रह दिन बाद ही पड़पोते की फरमाइश उसके आगे रख दी थी – ‘बिटिया, पड़पोते का मुंह भी देख लूं तो चैन से मर सकूंगी. भगवान जल्दी से तेरी गोद भर दे, बस…’ उनकी बातें सुन कर छाया को बड़ी खीज लगी. मन चाहा मुंह पर बोल दे कि जब पति-पत्नी को करीब आने का मौका ही नहीं दोगे तो पड़पोता क्या आसमान से टपकेगा? पति के प्रेम को छटपटाती छाया आखिरकार महीने भर बाद ही मां की बीमारी का बहाना बना कर अपने घर मुरादाबाद लौट गयी.

राजन उसको ट्रेन में बिठाने गया तो रास्ते में उसने धीरे से पूछा था, ‘क्या मां सचमुच बीमार हैं?’

छाया उससे मन की तड़प छिपा नहीं पायी, बोली, ‘नहीं, कोई बीमार नहीं है, मगर यहां रह कर अगर तुम्हारा साथ नहीं मिल सकता तो ऐसी शादी का मतलब ही क्या है? इतने छोटे घर में मेरा गुजारा नहीं हो सकता. जब अपना घर ले लेना, तब फोन कर देना, मैं लौट आऊंगी.’

राजन ने सिर झुका लिया. उसकी हालत छाया से अलग नहीं थी, मगर वह भी मजबूर था. दूसरा घर लेकर पत्नी के साथ रहने की उसकी औकात नहीं थी. आखिर घर के बाकी लोगों की जिम्मेदारी भी तो उस पर थी, मगर छाया की बात भी ठीक थी.शादी के बाद से उसकी आंखों से भी नींद लगभग गायब ही है. कई बार सोचता कि छाया को चुपचाप बुला कर छत पर ले जाये, मगर फिर यह सोच कर मन मार लेता कि छत पर ऊपर वाली मंजिल पर रहने वाले सोते हैं. कहीं किसी ने देख लिया तो? कई बार सोेचता कि पत्नी के साथ घूमने जाये, किसी सस्ते से होटल में उसके साथ एकाध दिन बिता ले, मगर उसकी जेब में इतने पैसे ही नहीं होते थे. रोज का आने-जाने का किराया काट कर महीने की पूरी तनख्वाह वह मां के हाथों में रख देता था. आखिर सात प्राणियों का पेट जो भरना था. परिवार की आमदनी का और कोई दूसरा स्रोत भी नहीं था. छाया को ट्रेन में बिठाते वक्त उसकी आंखों में आंसू थे. दिल इस आशंका से कांप रहा था कि पता नहीं अब कभी उसे देख पाएगा या नहीं. और फिर वही हुआ… हफ्ते, महीने, साल गुजर गये, न राजन के हालात सुधरे, न छाया वापस लौटी.

छोटा घर प्यार में बड़ा बाधक होता है. संयुक्त परिवार हो तो पति-पत्नी के बीच आपसी प्रेमालाप या शारीरिक सम्बन्ध बनाने के मौके बहुत कम होते हैं. ऐसे में दम्पत्ति लम्बे समय तक एक दूसरे की भावनाओं, इच्छाओं और प्रेम को साझा नहीं कर पाते हैं. एक छत के नीचे रहते हुए भी वे अजनबी बने रहते हैं.

घरवालों के सामने बनना पड़ता है बेशर्म

कुछ कपल घर की इस हालत में थोड़े बेशर्म हो जाते हैं और सबके बीच ही अपनी शारीरिक जरूरतें भी किसी न किसी तरह पूरी कर लेते हैं. जैसे अमृता के बड़े भाई और भाभी. अमृता का परिवार दिल्ली के मंगोलपुरी में एक कमरे के छोटे से मकान में रहता है. अमृता, उसकी मां, उसका छोटा भाई और बड़े भाई अनिल और उनकी पत्नी रिचा रात में जमीन पर ही बिस्तर फैला कर एक साथ सोते हैं. कई बार रात में आंख खुलने पर अमृता ने भइया-भाभी को कोने में एक ही कम्बल में हिलते-डुलते देखा है. वह जानती है कि उसका छोटा भाई भी सब देखता है और कभी-कभी मां भी. मगर क्या किया जाए? मजबूरी है. उसकी भाभी रिचा भी जानती है कि कोई न कोई उन्हें देख रहा है. इसीलिए वह हर वक्त शर्मिंदगी में भी डूबी रहती है. जैसे उसने कोई चोरी की है और चोरी करते रंगे हाथों पकड़ी गयी है. वह घर में किसी से भी आंख मिला कर बात नहीं कर पाती है.

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सार्वजनिक स्थलों पर ढूंढते नजदीकियां

दिल्ली में कैलाश कौलोनी के पास बसा जमरुद्पुर एक मलिन बस्ती है. यहां गुर्जरों के कई दोमंजिला, तिमंजिला मकान हैं, जिनमें बिहार, यूपी से आये सैकड़ों परिवार किराये पर एक-एक कमरा लेकर रहते हैं. ऐसे मकानों में हर माले के कोने में एक शौचालय और एक स्नानागार होता है, जिन्हें ये सभी परिवार बारी-बारी से इस्तेमाल करते हैं. इन्हीं में एक कमरा सरिता का भी है, जिसमें वह अपनी बूढ़ी सास, पति और दो छोटे बच्चों के साथ रहती है. सरिता और उसके पति को जब सम्बन्ध बनाना होता है तो वह रात में पास के एक पार्क में चले जाते हैं, जहां एक कोने में झाड़ियों के पास अपना काम निपटाते हैं. सरिता के लिए यह डर और शर्मिंदा करने वाला वक्त होता है. कहीं से कोई आ न जाए. कहीं कोई देख न ले. कहीं रात में कुत्ते उनके पीछे न पड़ जाएं. कहीं कोई चौकीदार या पुलिसवाला उन्हें न धर ले. घर में बच्चे जाग कर कहीं उन्हें ढूंढने न लग जाएं. सास की आंख न खुल जाए. पति के सानिध्य में ऐसे तमाम ख्याल सरिता को परेशान किये रहते हैं. मगर पार्क में पति के साथ आना उसकी मजबूरी है, एक कमरा जहां सास और बच्चे सोये हुए हैं, वहां वह पति के साथ हमबिस्तर भी कैसे हो?

बहू पर बुरी निगाह 

कई बार छोटा घर बहू को शर्मिंदगी का ही नहीं, अपराध का शिकार भी बना देता है. ऐसे कई केस सामने आते हैं जब पति की अनुपस्थिति में जेठ, देवर या ससुर बहू के साथ नाजायज सम्बन्ध बनाने की कोशिश करते हैं और कई बार अपने इरादों में कामयाब भी हो जाते हैं. अक्सर बहुएं अपने साथ हुए बलात्कार पर चुप्पी साध जाती हैं या हालात से समझौता कर लेती हैं. घर में अगर बहू-बेटे का कमरा अलग हो, तो इस तरह के अपराध औरतों के साथ न घटें. बेटा-बहू लाख सोचें कि रात के अन्धेरे में चुपचाप सम्बन्ध बनाते वक्त उन्हें कोई देख नहीं रहा है, मगर ऐसा होता नहीं है. कब कौन उन्हें देख ले, कब किसके मन में कुत्सित भावनाएं जाग जाएं कहा नहीं जा सकता.

बच्चों पर बुरा असर

जब घर में एक या दो कमरे हों और घर के सभी प्राणी उन्हें शेयर करते हों तो पति-पत्नी के बीच बनने वाले शारीरिक सम्बन्ध अक्सर घर के बच्चों की नजर में आ ही जाते हैं. आप अगर यह सोचें कि बच्चा सो रहा है, या बच्चा छोटा है कुछ समझ नहीं पाएगा, तो यह आपकी गलतफहमी है. आजकल टीवी और इंटरनेट के जमाने के बच्चे सब कुछ समझते भी हैं और उन्हें दोहराने की कोशिश भी करते हैं. यह बातें बच्चों में उत्पन्न होने वाली आपराधिक प्रवृत्ति की जिम्मेदार हैं. ऐसे ही बच्चे जो बचपन में अपने माता-पिता को शारीरिक सम्बन्ध बनाते देखते हैं, वह अपने स्कूल में अन्य बच्चों के साथ गलत हरकतें करते हैं या लड़कियों को मोलेस्ट करने या उनसे बलात्कार करने की कोशिश करते हैं.

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पति-पत्नी में बढ़ती दूरी

छोटा घर और बड़ा परिवार पति-पत्नी के शारीरिक सम्बन्धों में तो बाधा है ही, यह पति-पत्नी को मानसिक और भावनात्मक रूप से भी एक-दूसरे के करीब नहीं आने देता है. छोटे घर में अन्य सदस्यों की मौजूदगी में पति-पत्नी अपनी उन फीलिंग्स को एक-दूसरे के साथ कभी शेयर ही नहीं कर पाते हैं, जो उन्हें एक-दूसरे के निकट लाती है. वे कभी एक-दूसरे की बाहों में लिपट कर नहीं बैठ सकते. प्यार के स्पर्श को महसूस नहीं कर पाते. अपने मन की बातें एक-दूसरे से नहीं कह पाते. वे बस रात होने का इंतजार करते हैं, सबके सोने का इंतजार करते हैं और सेक्स को डर और आशंकाओं के बीच किसी मशीनी क्रिया की भांति फटाफट निपटा लेते हैं. ऐसे कपल जीवन की पूर्णता के निकट भी नहीं पहुंच पाते हैं और उनके बीच सदा एक दूरी बनी रहती है. समय गुजरने के साथ ये दूरी बढ़ती जाती है और दोनों एक-दूसरे की भावनाओं और तकलीफों से भी कट जाते हैं.

छोटा घर तलाक का कारण

शुभांगी ने तो पति का छोटा घर देख कर शादी के पहले ही दिन तलाक की बात कह दी और अपने माता-पिता के साथ हैदराबाद लौट गयी. दरअसल शुभांगी दिल्ली में काम करती थी. यहां वह दो कमरे के किराये के फ्लैट में रहती थी. उसके माता-पिता हैदराबाद में थे. प्रतीक से वह एक मेट्रीमोनियल साइट पर मिली थी. प्रतीक ने उसको बताया था कि वह बेंगलुरु में एक अच्छी कम्पनी में काम करता है और शादी के बाद शुभांगी को अपने साथ बेंगलुरु ले जाएगा, जहां कम्पनी की तरफ से उसको बड़ा फ्लैट मिला हुआ है. दोनों ने अपने-अपने माता-पिता को इस रिश्ते के बारे में बताया. दोनों के माता-पिता हैदराबाद में एक पब्लिक प्लेस पर मिले और शादी की तारीख पक्की हो गयी. तय तारीख पर शुभांगी हैदराबाद पहुंची और दोनों शादी वहां एक मंदिर में हुई. शादी में दोनों के माता-पिता, प्रतीक का छोटा भाई और कुछ दोस्त मौजूद थे. शादी सम्पन्न होने पर शुभांगी अपने माता-पिता के साथ प्रतीक के हैदराबाद वाले घर में पहुंची तो वह छोटा सा दो कमरे का घर था. जहां एक कमरे में उसके माता-पिता रहते थे, और दूसरे में उसका भाई. वहां पहुंच कर प्रतीक ने शुभांगी से कहा कि उसकी नौकरी चली गयी है और वह नई कम्पनी जल्दी ही ज्वाइन करेगा. कम्पनी ने उसका फ्लैट भी खाली करवा लिया है, इसलिए वह अभी उसको अपने साथ बेंगलुरु नहीं ले जा सकता और शुभांगी को यहीं उसके छोटे भाई के साथ उसका कमरा शेयर करके रहना होगा.

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यह सुनते ही शुभांगी गुस्से से भर गयी. उसने पूछा कि यह बात उसने शादी से पहले क्यों नहीं बतायी? इस पर प्रतीक और उसके माता-पिता ने सिर झुका लिया. शुभांगी ने प्रतीक से कहा कि वह कोई पुलिस केस नहीं चाहती है, इसलिए तलाक की अर्जी कोर्ट में दाखिल करेगी और बेहतर होगा कि प्रतीक भी आपसी सहमति से तलाक के लिए राजी हो जाए, अगर वह राजी नहीं हुआ तो मजबूरन वह उन लोगों पर चार सौ बीसी का केस दायर करेगी, इसके साथ ही वह उन लोगों पर सामाजिक प्रताड़ना, मानसिक उत्पीड़न, घरेलू हिंसा और महिलाओं को प्रोटेक्ट करने वाले तमाम मुकदमे भी दर्ज करवा देगी. उसकी धमकी सुन कर प्रतीक और उसके माता-पिता कांपने लगे और तुरंत तलाक के लिए राजी हो गये.

दरअसल शुभांगी इस बात से तो नाराज थी ही कि प्रतीक ने अपनी नौकरी जाने की बात उसे शादी से पहले नहीं बतायी, बल्कि इस बात से ज्यादा नाराज थी कि उसने यह नहीं बताया था कि नौकरी न रहने पर शुभांगी को उसके दो कमरे के छोटे से घर में उसके छोटे भाई के साथ कमरा शेयर करके रहना होगा. अगर यह घर थोड़ा बड़ा होता और शुभांगी को वहां रहने के लिए अपना कमरा मिलता तो शायद वह तलाक की बात न भी करती और प्रतीक को नई नौकरी ढूंढने का मौका देती.

क्या है उपाय

घर चाहे छोटा हो या बड़ा, मर्यादाओं का पालन होना ही चाहिए, वरना समाज और देश अमर्यादित और आपराधिक गतिविधियों में उलझ जाएगा. बच्चे का पहला शिक्षालय उसका घर ही होता है. वहां वह जो कुछ देखता, सीखता है, उसकी पुनरावृत्ति वह स्कूल, कॉलेज और उसके उपरान्त अपने जीवन में भी करता है. इसलिए कोशिश करें कि बच्चों के सामने ऐसी कोई हरकत न करें, जिसका उनके कोमल मन पर बुरा प्रभाव पड़े.

घर छोटा और परिवार बड़ा हो तो नये शादीशुदा जोड़े को एकान्त वक्त बिताने के लिए घर के अन्य सदस्यों को मौका देना चाहिए. इतवार या अन्य छुट्टी के दिन नये जोड़े को घर में छोड़ कर घर के बाकी लोग यदि पिकनिक पर या किसी रिश्तेदारी में चले जाएं तो यह वक्त नये कपल के लिए स्वर्ग से ज्यादा सुन्दर होगा.

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सास-ससुर को चाहिए कि शाम को बेटे के घर लौटने के वक्त ईवनिंग वौक पर इकट्ठे चले जाएं या बाजार-हाट कर आएं और बेटे-बहू को घर में कुछ वक्त अकेले में बिताने का मौका दें और बेटे-बहू को भी चाहिए कि वे भी माता-पिता को कुछ समय अकेले रहने का मौका दें. आखिर उनके मन में भी तो तमाम बातें होती होंगी, जो वे बेटे, बहू या अन्य बच्चों के सामने नहीं कर पाते होंगे. बेहतर तो यह होगा कि शादी के बाद नये जोड़े के लिए घर में अलग कमरे का इंतजाम हो. यदि घर बहुत छोटा है और ऐसा करना सम्भव नहीं है तो आमदनी ठीक होने पर नये जोड़े को अलग घर लेकर दे देना चाहिए. इसके लिए बहू को दोष देना ठीक नहीं कि आते ही उसने लड़के को घर से अलग कर दिया, जैसा की आमतौर पर भारतीय परिवारों में सुनायी पड़ता है. दो अनजान प्राणी एक दूसरे से तभी जुड़ पाएंगे, एक दूसरे के हमसफर सही मायनों में तभी बन पाएंगे, जब अकेले में एक दूसरे के साथ वक्त बिताएंगे. आज तलाक की बड़ी वजह यह भी है कि मां-बाप अपने शादीशुदा बेटे को उसकी पत्नी के साथ रहने का पूरा मौका नहीं देते हैं.

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