पूर्व कथा
टूर से घर वापस जाते हुए सुमन की ट्रेन में सरयूप्रमोद से जानपहचान होती है. उन की गोद ली 5 साल की बेटी सुवर्णा सुमन के मन में रचबस गई.
सुमन ने सरयू के मायके का फोन नंबर लिया और उसे अपने घर सपरिवार आने का निमंत्रण भी दिया. घर आने के बाद सुमन अपने पति विकास और बेटे सुदीप से सुवर्णा के विषय में ढेर सी बातें करती है.
थोड़े दिन बाद सरयूप्रमोद सुवर्णा के साथ सुमन के घर आते हैं. सरयू सुमन को बताती है कि नानानानी की सुवर्णा लाडली बन गई है लेकिन दादादादी उसे देख खुश नहीं हुए. पराए खून को वह अपना नहीं पाए.
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सुमन उसे धीरज से काम लेने की सलाह देती है. दोनों परिवार आपस में अच्छी तरह हिलमिल जाते हैं. सुवर्णा के कहने पर सरयू एक गीत गाती है जिसे सुन सब विभोर हो जाते हैं. अब आगे…
अंतिम भाग
गतांक से आगे…
गाना सुन कर सुमन उस से बोली, ‘‘सरयू, तुम्हारी आवाज बहुत मीठी है.’’
‘‘दीदी, सरयू पहले रेडियो के लिए गाती थी,’’ प्रमोद बोले, ‘‘लेकिन बीच में इस की तबीयत ठीक नहीं थी, इसलिए गाना बंद कर दिया. अब सुवर्णा के आने के बाद इस ने फिर रियाज करना शुरू किया है.’’
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‘‘फिर सरयू, तुम को अपना रियाज जारी रखना चाहिए. क्या तुम अगले साल यहां रेडियो स्टेशन पर अपना कार्यक्रम पेश करना चाहोगी? इस कार्यक्रम में ‘नवोदित गायक’ शीर्षक से मासिक कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है, जिस में नवोदित गायक कलाकारों को अपनी कला प्रदर्शित करने का अवसर दिया जाता है. इसी बहाने तुम फिर नागपुर आ सकोगी,’’ सुमन बोली.
‘‘अब तो आनाजाना जारी रहेगा, दीदी. अगर तुम लोग हमें भूलना चाहो तब भी हम तुम्हें भूलने नहीं देंगे,’’ सरयू और प्रमोद हंसते हुए बोले.
‘‘चेन्नई पहुंचने पर खत लिखना,’’ सुमन ने याद दिलाई.
‘‘दीदी, हम यहां से पहले पुणे जाएंगे. फिर वहां से टैक्सी ले कर चेन्नई जाएंगे. उस के बाद जरूर खत लिखेंगे. हमारे साथ अब मेरे मातापिता भी जाने वाले हैं. वे भी करीब 6 माह तक हमारे साथ रहेंगे,’’ सरयू ने अपना पूरा कार्यक्रम बता दिया.
‘‘अच्छा, बीचबीच में खत लिखते रहना. गाड़ी की पहचान समझ कर भूल मत जाना,’’ सुमन ने उसे प्यार से ताकीद की.
‘‘और मौसी, तुम भी मुझे भूलना नहीं.’’
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सुवर्णा की यह हाजिरजवाबी सब को भा गई. सुमन ने सुवर्णा की पप्पी ली और फिर छाती से लगा कर बोलीं, ‘‘नहीं बिटिया रानी, मैं तुम्हें कैसे भूल सकती हूं.’’
इस बात को बीते पूरे 4 महीने हो चुके थे. सरयूप्रमोद का खत तो दूर कोई फोन भी नहीं आया था. सरयू के मातापिता भी उन के साथ 6 माह रहने वाले थे. इसलिए उन के घर फोन करने का कोई लाभ नहीं था. फिर भी सुमन ने दोचार बार फोन करने की कोशिश की. लेकिन किसी ने भी फोन नहीं उठाया.
सरयू की ससुराल का फोन नंबर उन के पास नहीं था तो सुमन क्या करती, लेकिन उस की बातचीत में सुवर्णा का जिक्र जरूर आता. आखिर विकास और सुदीप बोले, ‘‘लगता है गाड़ी में मिली तुम्हारी सहेली आखिर तुम्हें भूल ही गई.’’ सुमन को भी अब ऐसा आभास होने लगा था. कुछ दिनों बाद सरयू के खत या फोन आने की प्रतीक्षा करना छोड़ कर सुमन अब रोजाना के अपने कामों में व्यस्त हो गई. उस दिन लेटरबाक्स में एक खत देख कर वह खुश हो गई. शायद सरयू का खत होगा, लेकिन खत देखा तो वह सुभी का था.
सुभी यानी सुभाषिनी, उस की बचपन की सहेली जिस ने उसे अपनी इकलौती बेटी की शादी में शामिल होने का बुलावा भेजा था. खत में लिखा था.
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‘मैं खुद आ कर तुम्हें आमंत्रित करना चाहती थी लेकिन लगता कि यह संभव नहीं हो पाएगा. 8 जनवरी को शादी तय हो चुकी है. तुम्हें पूरे परिवार के साथ यहां आना है. और यहां तुम्हें 4-6 रोज रहना है. यह सोचसमझ कर तुम्हें आना होगा. रिजर्वेशन की टिकटें मैं यहीं से भेज रही हूं, इसलिए समय पर छुट्टी ले कर आना है, बाद में तुम्हारा कोई बहाना नहीं सुनूंगी.’
खत पढ़ते-पढ़ते सुमन को ही हंसी आ गई. विकास ने खत पढ़ा तो कहने लगे, ‘‘यह आमंत्रण है या धमकी. नाम सुभाषिनी और खत में धमकियों की बरसात.’’ शादी में शरीक होना जरूरी था. इसलिए सुमन और विकास ने छुट्टी के लिए अर्जियां दे दीं और उन्हें छुट्टी मिल भी गई. वह समय पर पुणे पहुंच गई और शादी ठीक से हो गई.
शादी के 2 दिन बाद सुभी के पास काफी समय था. सुमन से बातचीत करना और पुणे के दर्शनीय स्थलों का पर्यटन आदि उसे कराना था. सुमन के अनुरोध पर सब लोग दर्शनीय स्थल देखने गए तो सुमन को सरयू व सुवर्णा की फिर से याद आ गई, लेकिन वह किसी से कुछ नहीं बोली. उस दिन शाम को सुभी बोली, ‘‘सुमन, हमारी संस्था हर साल मकर संक्रांति के बाद एक दिन अवश्य बच्चों को तिलगुड़ खिलाने का आयोजन करती है. चूंकि इस बार हम शादी के कामों में व्यस्त रहे अत: बच्चों को कुछ खिला- पिला नहीं सके. वह अधूरा पड़ा कार्यक्रम हम कल पूरा करने वाले हैं. तुम घर में बैठीबैठी बोर होगी अत: मेरे साथ चल पड़ो.’’
‘‘चलो, ऐसे काम में मैं भी तुम्हारे साथ चलूंगी,’’ अगले दिन सुमन समय पर तैयार हो गई. जातेजाते एक दुकान से आर्डर किए हुए तिलगुड़ के डब्बे गाड़ी में रखवा दिए और आगे बढ़ गई.
‘‘आयोजन कहां है?’’ सुमन ने पूछा.
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‘‘एक अनाथाश्रम में? अनाथ बच्चों को समाज के मिठास की कल्पना होनी चाहिए, इसलिए वरना उन के हिस्से में समाज की नफरत ही आती है.’’
‘‘बहुत अच्छी बात है.’’
‘‘हम यह आयोजन पिछले 4-5 साल से लगातार कर रहे हैं. खासतौर पर त्योहारों पर यानी दीवाली, गुढीपाडवा, संक्रांति आदि के मौके पर हम अनाथाश्रम में जाते हैं. इस से उन अनाथ बच्चों का दिल बदल जाता है.’’
वे अनाथाश्रम पहुंच चुकी थीं. सुमन और सुभाषिनी नीचे उतरीं. वहां की महिला कर्मचारी आगे आईं और सुभाषिनी ने अपने साथ लाए डब्बे उन्हें सौंप दिए. आश्रम की महिलाएं डब्बे उठा कर भीतर ले गईं.
सुभी के महिला मंडल की बाकी महिलाएं भी वहां आई हुई थीं. वे सब कार्यक्रम के आयोजन को सफल बनाने में जुट गईं. सुमन एक कुरसी पर बैठ कर सब तरफ देखने लगी.
आश्रम की महिला कर्मचारियों ने बच्चों को कतार में बिठाना शरू कर दिया. अलगअलग उम्र के मासूम बच्चे. बिलकुल सामने 3 साल की उम्र के बच्चे और उन के पीछे उन से बड़ी उम्र के बच्चे कतार में बैठे थे.
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थोड़ी ही देर में कार्यक्रम शुरू हो गया. संस्था की महिलाएं एक के बाद एक आ कर अपनीअपनी बात कहती रहीं. उधर सुमन ने अपनी नजर सभी बच्चों पर डाली और मूक बच्ची पर उस की नजर मानो जम सी गई. अबतक तो यह बच्ची वहां नहीं थी फिर वहां कब आई. उस का चेहरा जानापहचाना क्यों लगता है. बच्ची के हाथ में एक गुडि़या थी और बच्ची भी लगातार उसी की ओर देख रही थी. सुमन ने धीमी आवाज में पड़ोस में बैठी आश्रम की एक महिला से पूछा, ‘‘वह आखिर में बैठी बच्ची कौन है?’’
उस महिला ने उस बच्ची को देखा और बोली, ‘‘वह है न, अभी यहां नई-नई आई है, 3-4 महीने पहले. वह किसी से बात नहीं करती. हमें लगा कि वह गूंगी है, लेकिन अब वह ‘क्या चाहिए, क्या नहीं’ इतनी ही बात करती है. वह दूसरे बच्चों से अलगथलग रहती है और कुछ बोलती भी नहीं.’’
‘‘इतनी बड़ी बच्ची को यहां कौन छोड़ गया?’’
‘‘यह भी एक कहानी है. उस के मातापिता एक सड़क दुर्घटना में चल बसे. अब वह बिलकुल अकेली है. आप इतनी दिलचस्पी से पूछ रही हैं इस बच्ची के बारे में, क्या बात है?’’
‘‘हां, मेरा परिचित एक परिवार था, लेकिन वह चेन्नई का रहने वाला था,’’ सुमन ने बताया.
‘‘इस बच्ची की एक मजे की बात बताऊं. वह अभी बाहर आने के लिए तैयार न थी, लेकिन उस से कहा गया कि नागपुर की रहने वाली एक चाची आई हुई हैं तो बाहर आ कर पीछे बैठ गई. मैं भी देख रही हूं कि बच्ची आप की ओर टकटकी लगाए देख रही है.’’
‘‘क्या उस बच्ची का नाम सुवर्णा है?’’
‘‘हां.’’
सुमन यह जान कर भौचक्की रह गई.
‘‘इस के मातापिता तो दुर्घटना में चल बसे पर इस के नानानानी हैं.’’
तभी कार्यक्रम समाप्त हो गया और तिलगुड़ बांटने का काम शुरू हो गया. सुमन ने तिल की एक डली उठाई और सीधे सुवर्णा की ओर चल दी. सुवर्णा के पास पहुंचते ही उस ने आवाज दी, ‘‘सुवर्णा, पहचाना अपनी मौसी को. क्या भूल गई?’’
सुवर्णा ने अब सुमन को पहचान लिया था और वह दौड़ कर ‘सुमन मौसी’ कह कर उस की कमर से लिपट गई. सुमन ने उस मासूम को गले से लगा लिया और सुवर्णा जोरों से रोने लगी.
यह देख कर आश्रम की संचालिका प्रेरणा ने सुमन को दफ्तर में आने का अनुरोध किया. सुवर्णा को गोद में उठा कर सुमन आगे बढ़ी तो सुभी भी उस के पीछे चलने लगी.
प्रेरणा दीदी ने सब को बैठने के लिए कहा.
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इधर-उधर की बातें न करते हुए वह सीधे मुद्दे की बात पर आ गई, ‘‘सुमन, आप सुवर्णा को जानती हैं, ऐसा मालूम होता है, और इस से भी बड़ी बात यह है कि आप को देख कर वह खुशी से खिल उठी है.’’
सुवर्णा से मुलाकात कैसे हुई और जानपहचान कैसे बढ़ी, यह बातें संक्षेप में बताने के बाद सुमन बोली, ‘‘इस के मातापिता दुर्घटना में चल बसे. यह बात आप के यहां काम करने वाली एक महिला ने बताई, क्या यह सच है?’’
‘‘हां, सिर्फ मातापिता ही नहीं, इस के नानानानी भी.’’
यह सुन कर सुमन को भारी आघात पहुंचा है. यह उस के चेहरे से साफ जाहिर हो रहा था.
सुमन सरयू का खत न पा कर उस पर भूल जाने का आरोप लगा रही थी, इस पर उसे बहुत अफसोस हो रहा था. अब सुमन का ध्यान प्रेरणा की बातों पर गया.
‘‘पुणे से चेन्नई जाते समय एक टैक्सी दुर्घटनाग्रस्त हो गई. उस में सिर्फ यह बच्ची बच पाई. कुछ लोगों ने दुर्घटनाग्रस्त लोगों को अस्पताल पहुंचाया. तब तक रक्तस्राव ज्यादा होने से सब लोग मारे गए. उस में टैक्सी ड्राइवर भी शामिल था. डाक्टर की कोशिश से यह मासूम बच गई. उस दुर्घटना से बेचारी अनाथ हो गई. सुवर्णा को मानसिक रूप से काफी आघात लगा था, इसलिए वह हमेशा खामोश रहती थी, मानो मौन धारण कर लिया हो.
अस्पताल से डिस्चार्ज होने पर उसे कहां रखा जाए, यह सवाल खड़ा हो गया था. पुलिस ने बड़े प्रयास के बाद इस के दादादादी का पता लगाया, लेकिन उन्होेंने इसे अपनाने से साफ इनकार कर दिया. इसलिए पुलिस इसे सीधे यहां ले कर आई.’’
पे्ररणा के मुंह से यह सुन कर सुमन का दिल सन्न रह गया है, ‘‘और…’’
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‘‘और क्या?’’
‘‘सुवर्णा गोद ली हुई थी अत: अब मांबाप के जाने पर इस दुनिया में इस का कोई नहीं, यह सोच कर इस को भारी सदमा पहुंचा है.
‘‘इस बच्ची को कैसे रिझाया जाए, उसे ठीक करना मेरे सामने एक टेढ़ा सवाल था. इसलिए अगर आप दोचार दिन यहां रह कर इसे मिलती रहें, तो इस की हालत में कुछ सुधार हो सकता है. इसलिए आप इतना उपकार हम पर जरूर कीजिए. वैसे अभी आप यहां रहने वाली हैं न?’’ प्रेरणा दीदी ने पूछा.
‘‘हां, दोचार दिन तो मैं हूं.’’
इतनी देर तक सुमन का हाथ अपने हाथ में पकड़ कर रखने वाली सुवर्णा अचानक बोल पड़ी, ‘‘तो मौसी तुम भी मुझे छोड़ कर चली जाओगी, मम्मीपापा गए, नानानानी भी गए, अब तुम भी जाओगी और मुझे भी भूल जाओगी,’’ कहतेकहते वह बेहोश हो गई और सुमन की जांघ पर आड़ी हो गई.
प्रेरणा दीदी और सुभी ने झट से उठ कर सुवर्णा को गोद में उठा कर पड़ोस के सोफे पर लिटा दिया. प्रेरणा ने घंटी बजाई और कर्मचारी को आदेश दिया कि वह तुरंत डाक्टर ले आए. फिर सुमन और सुभी से उन्होंने कहा, ‘‘अब आप जा सकती हैं. कल आप जरूर आएं, तब तक मैं इसे मानसिक रूप से तैयार कर के रखूंगी. आज अचानक मौसी को देख कर इसे बहुत खुशी हुई थी, लेकिन विरह की कल्पना से इसे फिर गहरा आघात लगा है. इसलिए कल आप थोड़े समय के लिए यहां आएंगी तो यह बच्ची सदमे से उबर जाएगी.’’
सुभाषिनी और सुमन गाड़ी में बैठ कर निकल पड़ीं. थोड़ी देर वे खामोश रहीं.
फिर सुभी बोली, ‘‘बड़ी प्यारी बिटिया है. तुम्हें देख कर तो वह बहुत खुश हो गई थी.’’
‘‘हां.’’
‘‘तुम्हारे जाने के बाद वह फिर मुरझा जाएगी यह सच है. लेकिन ऐसा नहीं होना चाहिए.’’
सुमन काफी देर तक खामोश रही, फिर अचानक बोल पड़ी, ‘‘मेरे मन में एक बात आई है. अगर मैं सुवर्णा को अपने घर ले जाऊं तो?’’
‘‘इरादा तो नेक है, लेकिन इस उम्र में क्या यह ठीक रहेगा? अगले कुछ सालों में सुदीप की शादी हो जाएगी. तुम भी अब 40-45 की हो गई हो.’’
‘‘हां, लेकिन बच्ची बहुत होशियार और समझदार है.’’
‘‘अगर तुम ऐसा सोचती हो तो अच्छी बात है. एक बच्ची का भला हो जाएगा, लेकिन यह सवाल अब तुम्हारा ही नहीं है. तुम्हें विकास और सुदीप की राय भी लेनी पडे़गी.’’
घर लौटने पर सुमन का चेहरा देख कर विकास बोला, ‘‘तुम्हारा चेहरा देख कर ऐसा लगता है कि तुम्हारी अपने किसी प्रिय से मुलाकात हो गई है.’’
सुभी चौंक कर बोली, ‘‘आप को कैसे मालूम?’’
‘‘मैं ने इस के साथ 25 साल गुजारे हैं तो इतनी बात तो मैं समझ सकता हूं.’’
‘‘लेकिन असली सवाल तो आगे है.’’
‘‘क्यों? क्या हुआ?’’
सुमन ने सुवर्णा से मिलने का सारा किस्सा बयान कर दिया और बोली, ‘‘वह अपनेआप को बहुत अकेली महसूस करती है, अत: इस हालत से उबरने में पता नहीं कितने दिन लग जाएंगे.’’
सुमन ने विकास की ओर देखा. विकास उस की भावनाओं को समझ रहा था. सवाल मुश्किल था.
दूसरे दिन सुमन अनाथाश्रम जाने लगी तो विकास भी उन के साथ हो लिए.
अपेक्षानुसार सुवर्णा दरवाजे पर खड़ी उन का इंतजार कर रही थी. गाड़ी में बैठी सुमन को देख कर वह दौड़ कर आई और विकास को देख कर बहुत खुश हो गई. दोनों के हाथों में हाथ डाल कर उन्हें आश्रम की संचालिका प्रेरणा दीदी के आफिस में ले गई. उन के आने की खबर मिलते ही प्रेरणा दीदी आईं.
‘‘आइए, बैठिए, सुवर्णा आप लोगों का ही इंतजार कर रही थी. सुबह से नहाधो कर वह दरवाजे पर ही बैठी है. उस ने खाना भी नहीं खाया. बोली, ‘अगर मौसी को मैं नहीं दिखाई दूंगी तो वह घबरा जाएंगी.’
‘‘सुबह से 10 बार तो पूछ चुकी है कि क्या मौसी आएंगी? क्या मौसी मुझे भूल जाएंगी.’’
‘‘शायद इस बच्ची को यही डर लग रहा था,’’ सुमन ने विकास की ओर देखा. विकास ने उस का हाथ अपने हाथ में ले कर धीरज बंधाया. फिर सुवर्णा को नजदीक बुला कर पूछा, ‘‘सुवर्णा, क्या तुम्हें यह मौसी अच्छी लगती है?’’
‘‘हां.’’
‘‘तो तुम इस मौसी के पास आ कर रहना चाहोगी?’’
‘‘कितने दिन? 1-2-3…’’ सुवर्णा उंगलियां गिनने लगी. दोनों हाथों की उंगलियां खत्म होने पर बोली, ‘‘10 दिन.’’
‘‘हां, 10 दिन, 10 साल या खूब बड़ी होने तक,’’ विकास उस मासूम बच्ची की ओर देखते हुए बोले.
शायद सुवर्णा 10 साल समझ नहीं पाई. वह भ्रमित मुद्रा में बोली, ‘‘क्या मैं जब तक चाहूं रह सकती हूं?’’
‘‘हां, तुम जब तक चाहो तब तक रह सकती हो,’’ विकास ने उसे आश्वस्त किया.
उस की यह बात सुन कर प्रेरणा दीदी, सुमन और सुभाषिनी की आंखों से आंसू निकल पड़े और सुवर्णा…
सुवर्णा विकास के गले में अपनी नन्ही बांहें डाल कर लिपट गई.
edited by- rosy