7 टिप्स: अगर घर में नहीं आती धूप तो इन तरीकों से बढ़ाए रोशनी

धूप आंगन में खिली हो और पूरा परिवार बैठ कर उस का आनंद ले रहा हो, सुबह के सूरज की मखमली किरणों के कमरे में आने पर खुशनुमा, ताजगी भरे वातावरण में नींद खुले, अपने सपनों के घर के बारे में कल्पना करते हुए हर किसी की इच्छा होती है कि खुला, हवादार, धूप वाला घर मिले. छोटे शहरों में तो फिर भी ये आकांक्षाएं साकार हो जाती हैं, लेकिन महानगरों में जीवन का विस्तार जितना बड़ा होता है, रहने की जगह उतनी ही सिमटीसिकुड़ी हुई होती है. बड़े शहरों में रहने की एक ही शर्त होती है कि कोई शर्त न रखो. यहां आवासीय समस्या इतनी गंभीर है कि सिर छिपाने को एक छत मिल जाए, इतना ही काफी होता है. ऐसे में धूप वाला घर मिले, यह जरूरी नहीं.

लेकिन जिस घर में धूप न आती हो, वहां रहना भी आसान नहीं है. जहां दिन में भी अंधकार छाया हो, ऐसे घर में रह कर तो कोई भी व्यक्ति डिप्रेशन में जा सकता है. पर अगर ऐसे घर में रहना ही पड़े, तब क्या किया जाए? आइए जानें, कुछ ऐसे तरीके, जिन्हें अपना कर घर को रोशन बनाया जा सकता है.

1. पेंट हलके रंग का हो

इंटीरियर डैकोरेटर सुरभि चिकारा कहती हैं, ‘‘दीवारों के पेंट का रंग घर को एक विशिष्ट लुक प्रदान करता है. जिन घरों में धूप की कमी होती है, उन में हलके और ग्लौसी फिनिश वाले पेंट रोशनी को प्रतिबिंबित करते हुए अंधेरे का आभास नहीं होने देते. ऐसे घरों में सफेद, क्रीम, हलके नीले, गुलाबी, हरे रंग इस उद्देश्य के लिए बिलकुल फिट बैठते हैं. ये रंग खिड़कियों से आने वाले उजाले को पूरे कमरे में फैलाते हैं, जिस से घर के रोशन होने का एहसास होता है.’’

2. परदे पारदर्शी हों

मोटे कपड़े और गहरे रंग के परदे खिड़कियों से आने वाले प्रकाश को रोक देंगे. अत: बेहतर यही होगा कि परदे झीने फैब्रिक और हलके रंग जैसे पीला, सुनहरा, क्रीम के हों, जिन से प्रकाश छन कर भीतर आ सके.

3. ट्यूबलाइट अधिक होनी चाहिए

घर में धूप न आती हो, तो कमरे में सिर्फ एक लाइट होने से काम नहीं चलेगा. दीवारों पर लगी ट्यूबलाइटों के अलावा फ्लोर लैंप भी होने चाहिए, जिस से कि कमरों के कोने भी प्रकाशित हो सकें. यह ध्यान रखें कि लैंप शेड्स गहरे न हों, बल्कि सफेद या हलके रंग के हों जो रोशनी को सही तरह से पूरे कमरे में फैला सकें. इस के अलावा कोन आकार के लैंप शेड पढ़ने के काम के लिए ज्यादा ठीक रहते हैं, पर सारे कमरे को रोशन नहीं कर सकते हैं. ऐसे लैंप शेड जो बल्ब को पूरा ढक लेते हैं, ज्यादा रोशनी फैलाते हैं. अत: कमरे में इन का इस्तेमाल ही अधिक करें.

4. सही बल्ब चुनें

सुरभि रोशनी के लिए सही बल्ब के चुनाव की महत्ता पर जोर देती हैं. वे कहती हैं, ‘‘बहुत चुभती हुई रोशनी न रखें वरन बाजार में मिलने वाले सीएफएल बल्ब इस्तेमाल करें जोकि पावर बचाने के साथसाथ घर को प्राकृतिक रोशनी जैसा ग्लो देते हैं. इन्हें घर के अंधेरे कोनों में लगाया जाना चाहिए.’’

वे सलाह देती हैं कि फुल स्पैक्ट्रम लाइट बल्ब इस्तेमाल किए जाने चाहिए. इन बल्बों की विशेषता यह होती है कि ये नियोडाइमियम नामक रासायनिक पदार्थ से रंगे होते हैं और बिलकुल सूरज की रोशनी जैसा प्रकाश देते हैं.

5. आईने से रोशनी बढ़ाएं

आजकल दीवारों पर सजाने के लिए पेंटिंग्स के अलावा बड़े आईने लगाने का भी बहुत चलन है. हालांकि पेंटिंग्स की तरह बहुत सारे आईने नहीं लगा सकते, लेकिन एक आईना सजावट के साथसाथ कमरे की रोशनी को भी काफी बढ़ा सकता है. इस के लिए खिड़की के सामने वाली दीवार पर एक बड़ा आईना लगा दें. यह खिड़की से आ रही रोशनी को प्रतिबिंबित कर पूरे कमरे में प्रकाश भर देगा.

6. फर्नीचर हलके रंग का हो

गहरे रंग का फर्नीचर रोशनी कम होने का आभास देता है, इसलिए डार्क वुड के बजाय हलके रंग की लकड़ी का फर्नीचर लें.

7. घर को रोशन करने के कुछ और टिप्स

अलमारियों में भी बल्ब लगवाएं, जो खोलने पर जल उठें और आप को सामान निकालने में आसानी हो.

किचन काउंटर और फर्श सफेद या क्रीम मार्बल का रखें ताकि वह रोशनी को प्रतिबिंबित करे.

इसी तरह डाइनिंग टेबल और सैंटर टेबल कांच की रखें जिस से कि प्रकाश प्रतिबिंबित हो.

खिड़की के बजाय कांच का स्लाइडिंग दरवाजा भी लगवा सकते हैं, जिस से ज्यादा से ज्यादा रोशनी घर में आ सके.

यदि सब से ऊपरी मंजिल पर रहते हों और प्राइवेसी की समस्या नहीं है, तब स्काई लाइट लगवाना भी एक विकल्प हो सकता है.

सुबह उजाले में उठना चाहते हों तो आजकल टाइमर वाले बल्ब भी उपलब्ध हैं जिन पर आप अपने उठने के समय का टाइमर लगा सकते हैं. तब रोज वे उस निर्धारित समय पर अपनेआप जल उठेंगे और आप को धूप जैसा एहसास होगा.

सजावट की चीजें भी ऐसी हों, जो प्रकाश प्रतिबिंबित करें जैसे कांच अथवा क्रिस्टल के फूलदान या शोपीस.

बैडशीट और सोफा कवर भी सफेद या हलके रंगों के हों तो कमरा ज्यादा प्रकाशमय लगेगा.

आप के घर में धूप नहीं आती, तब भी आप को चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है. थोड़ी सी सूझबूझ से आप उसी घर को खुशनुमा और प्रकाशमय बना सकते हैं. बस, आप को अपनी ओर से प्रयास करना है. यकीन मानिए, आज के प्रगतिशील जमाने में अगर आप असली धूप नहीं तो उस से मिलतीजुलती नकली धूप ही सही, अपने घर ला सकते हैं और उस से अपने जीवन के अंधेरे को मिटा कर रोशनी से सराबोर कर सकते हैं.

महिलाएं नहीं बतातीं अपनी इच्छा

आज भले ही महिलाऐं अपने हुनर और काबिलियत के बल पर हर क्षेत्र में पुरुषों के कंधे से कंधा मिला कर चल रही हो मगर अगर समाज में ओवरऔल कंडीशन देखा जाए तो ज्यादातर महिलाएं खुद को कतार में पीछे खड़ा रखती हैं. वे आगे बढ़ सकती है पर बढ़ती नहीं. अपनी बात रखने या अपनी इच्छा का काम करने से हिचकिचाती हैं. हाल ही में पोंड्स द्वारा किए गए एक सर्वे के मुताबिक महिलाएं लंबे समय से खुद को रोक रही हैं. 10 में से 9 महिलाएं कहती है कि वे अपनी इच्छा की बात कहने या इच्छा का काम करने से खुद को रोकती हैं. पोंड्स द्वारा 2019 में किये गए सर्वे के मुताबिक़ 10 में से 6 महिलाएं खुद को कुछ कहने से रोकती हैं.

खुद को रोकने के  कारण

59% महिलाओं को जज किए जाने का डर होता है. 58% महिलाएं इस बारे में अनिश्चित रहती हैं कि दूसरे क्या प्रतिक्रिया देंगे जब कि 10 में से 5 यानी 52 % महिलाओं को यह चिंता भी होती है कि वह जो कहेंगी उस से दूसरे उन के बारे में नकारात्मक बात सोचने लगेंगे.

जाहिर है मन का डर कि समाज या परिवार क्या सोचेगा और वह क्या प्रतिक्रिया देगा, यह महिलाओं को खुद के फैसले से अपने मन का काम करने से रोकता है.

खुद को रोकने वाले इस संकोच के अनेक रूप और नाम है. इसे भले ही महिलाएं अंदर की आवाज कहें पर वास्तव में यह एक तरह की नकारात्मक सोच है. यह सोच महिलाओं के आगे बढ़ने के मार्ग की सब से बड़ी बाधा है.

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यह सोच रातोंरात जन्म नहीं लेती बल्कि सालों से समाज द्वारा किये जा रहे ब्रेनवाश और समाज के तथाकथित परंपरावादी नियमों में जकड़े जाने और यह बताये जाने का परिणाम है कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं.

नतीजा यह होता है कि महिलाएं अपनी इच्छा का काम करने का हौसला ही नहीं जुटा पाती. उन्हें लगता है कि कुछ गलत हो गया तो पूरा समाज उन के पीछे पड़ जाएगा. व्यंग्य भरे ताने और जलील करती निगाहें उन्हें अंदर तक बेध देंगी.

यही नहीं लगभग आधी यानी 47 प्रतिशत महिलाएं बड़े समूह में प्रश्न पूछने में संकोच करती हैं. इसी तरह 10 में से 4 महिलाएं यानी 40% बॉस को न कहने से खुद को रोकती हैं.

व्यक्तिगत जीवन में 10 में से 4 महिलाएं यानी 40% बाहर जा कर अपने बॉयफ्रेंड के साथ रहने से खुद को रोकती हैं क्यों कि उन्हें डर होता है कि दूसरे लोग इस पर क्या प्रतिक्रिया देंगे.

खुद को क्यों रोकती हैं महिलाएं

बहुत सी औरतों को यह विश्वास नहीं होता कि अगर वे बड़े समूह में कोई प्रश्न पूछती है तो वह काम का होगा भी या नहीं. उन्हें डर होता है कि कहीं उन का मजाक न बन जाए. महिलाएं इस वजह से भी हिचकती हैं क्यों कि उन्हें यह समझ नहीं आता कि दूसरे क्या प्रतिक्रिया देंगे.

कई महिलाओं का कहना होता है कि वे सोचने में बहुत ज्यादा समय लेती हूं जिस से काम करने का अवसर हाथ से निकल जाता है. उन्हें लगता है कि वे जो कुछ भी कहेंगी उस के लिए उन्हें जज किया जा सकता है , दूसरों के सामने छवि पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है.

यह सर्वे स्वतंत्र शोध कंपनी, इप्सोस द्वारा एक सेल्फ एडमिनिस्टर्ड ऑनलाइन सर्वे द्वारा किया गया. यह सर्वे भारत में 18 से 35 साल की महिलाओं के बीच मुंबई ,चेन्नई ,दिल्ली ,कोलकाता ,बेंगलुरु ,चंडीगढ़ ,लखनऊ ,पुणे विजाग और मदुरई में किया गया. (भारत में 16 से 26 अप्रैल ,2019 के बीच 1000 महिलाओं के बीच)

सच तो यह है कि कभी कपड़ों के आधार पर , कभी उन के व्यवहार को देख कर या लड़कों से बातें करता देख या फिर किसी और तरह से समाज हर पल उन्हें जज करता रहता है. बिंदास लड़कियां तो ऐसे लोगों की परवाह नहीं करतीं मगर सामान्य लड़कियों के कदमो पर हमेशा यही डर बेड़ियां डाले रखतीं हैं. कुछ भी करने से पहले उन के दिल में खौफ पैदा हो जाता है कि पता नहीं लोग कैसे जज करें. किस नजर से देखें.

कितने अफसोस की बात है कि 10 वीं और 12 वीं के रिजल्ट के समय समाचारों की सुर्ख़ियों में लड़कियां छाई रहती हैं. स्कूल कौलेजेस में अक्सर वे ही टौप करती हैं. मगर जब बात नौकरी और सैलरी की आती है तो वे पीछे हो जाती हैं. अपना हक़ भी बड़ी सहजता से छोड़ देती हैं.

औनलाइन करियर ऐंड रिक्रूटमेंट सलूशन प्रवाइडर मॉनस्टर इंडिया के हालिया सर्वे से पता चलता है कि देश में महिलाओं की औसत सैलरी पुरुषों के मुकाबले 27 प्रतिशत कम है. पुरुषों की औसत सैलरी जहां 288.68 रुपए प्रति घंटा है, वहीं महिलाओं की 207.85 रुपए प्रति घंटा है. सरकारी नौकरियों को छोड़ कर यह भेदभाव हर क्षेत्र में हैं.

जाहिर है महिलाओं को बचपन से सिखाया जाता है कि पुरुषों की बराबरी न करो. जितना मिल जाए उस में संतोष कर लो. बाहर वालों के आगे ज्यादा बकबक न करो और किसी ऐसे पुरुष के आगे जुबान न खोलो जो आप से बड़ा या सीनियर हो या जिस पर आप निर्भर करती हो. पुरुष स्वामी हैं और आप दासी. कभी भी अपने हक़ की बात न करो ….

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इसी का नतीजा है कि महिलाओं के दिलोदिमाग में यह बात इतनी गहराई से रच बस गई है कि वे अनजाने में भी इसी हिसाब से चलती हैं और कभी अपना मुँह नहीं खोलती.

अपनी मरजी का नहीं कर सकती महिलाएं

एक पुरुष को कभी भी कौन सी नौकरी करनी है इस बात पर अपने घरवालों या बीवी की सहमति की जरुरत नहीं होती. वह अपनी मरजी से नौकरी का चुनाव कर सकता है. उसे किसी की अनुमति की जरुरत नहीं. दूसरी तरफ लड़कियों और महिलाओं को पढ़ाई करने ,काम करने, रोजगार योग्य नए कौशल सीखने के लिए अपने पिता, भाई, पति और कुछ मामलों में समाज तक से अनुमति लेनी पड़ती है.

उषा एक प्राइवेट कंपनी में काम करती है. उस की शादी नवंबर में नौसेना में काम करने वाले एक लड़के से होने वाली है. ज्योति के काम करने पर उसे कोई एतराज नहीं है. लेकिन यह एतराज केवल सरकारी नौकरी करने पर नहीं है. उषा कहती हैं, “ मैं सरकारी नौकरी पाने के लिए प्रयास कर रही हूं लेकिन यह आसान नहीं है. शादी से पहले अपनी प्राइवेट जॉब से इस्तीफ़ा दे दूंगी क्यों कि यही मेरे वुड बी हस्बैंड की मरजी है. ”

कमोबेश यही सोच और स्थिति सभी अविवाहित और विवाहित लड़कियों की रहती है.  पहली प्राथमिकता घरपरिवार और पति होता है. नौकरी और करियर दुसरे स्थान पर होते हैं. हाल तो यह है कि कुछ लड़कियां महज समय बिताने के लिए काम कर लेती है. करियर में अच्छा करना, आगे बढ़ना या लीडर बनना जैसी बातें उन के फ्यूचर प्लान का हिस्सा होती ही नहीं.

ऐसा नहीं कि महिलाओं में योग्यता की कमी होती है. अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का दावा है कि महिलाओं का मस्तिष्क उन के हमउम्र पुरुषों की तुलना में तीन साल जवां रहता है. इस वजह से महिलाओं का दिमाग लंबे अरसे तक तेज़ चलता है.

इस अध्ययन में 20 से 84 वर्ष की 121 महिलाओं और 84 पुरुषों ने हिस्सा लिया. उन के मस्तिष्क में ग्लूकोज और ऑक्सीजन के प्रवाह को मापने के लिए उन का पीईटी स्कैन किया गया. ऐसा नहीं है कि पुरुषों का दिमाग तेजी से वृद्ध होता है. दरअसल वे दिमागी तौर पर महिलाओं से तीन साल बाद वयस्क होते हैं.

फाइनेंस संबंधी फैसलों पर भी घरवालों और पति पर निर्भरता रिसर्च एजेंसी नीलसन के साथ मिल कर किये गए  डीएसपी विनवेस्टर पल्स 2019 सर्वे में यह बात सामने आई है कि देश में 33% महिलाएं जीवन में किसी भी तरह के निवेश के फैसले खुद लेती हैं जब कि 64% पुरुषों के मामले में यह बात सही साबित होती है. यानी देश में पुरुषों के मुकाबले आधी महिलाएं ही निवेश के फैसले स्वतंत्र रूप से लेती हैं भले ही वे कितना भी क्यों न कमा रही हों. इस सर्वे में देश के आठ शहरों में 4,013 महिलाओं और पुरुषों की राय जानी गई.

ऐसी महिलाएं जो निवेश के फैसले खुद करती हैं उस में उन के पति या मातापिता के प्रोत्साहन का अहम योगदान होता है. करीब 13% महिलाओं ने कहा कि उन्हें पति की मौत या तलाक की वजह से अपने निवेश के फैसले खुद लेने पड़े. 30% महिलाओं के मुताबिक़ वे निवेश इसलिए कर पाईं क्यों कि उन्होंने खुद निवेश करने का फैसला लिया.

जहां तक निवेश की आवश्यकता या मकसद की बात है तो ये तकरीबन एक जैसे ही रहे. मसलन बच्चों की पढ़ाईलिखाई, घर खरीदना, बच्चों की शादी, अच्छा लाइफ स्टाइल आदि मुख्य मकसद के रूप में नजर आये. यह भी पाया गया कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं का अपने बच्चों से जुड़े लक्ष्यों की ओर झुकाव अधिक रहता है.

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पुरुष जहां कार या घर खरीदने का फैसला अधिक लेते हैं वहीं महिलाओं ने सोना,ज्वैलरी, रोजमर्रा की जरूरतों की चीजें और टीवी-फ्रिज जैसे टिकाऊ सामान खरीदने में ज्यादा रूचि दिखाई. अध्ययन में यह बात भी सामने आई कि निवेश के निर्णय लेने वाले 2,160 महिलाओं और 1,853 पुरुषों की उम्र 25 से 60 वर्ष के बीच थी.

सर्वे के मुताबिक जब महिलापुरुष लम्बे समय के निवेश के फैसले मिल कर लेते हैं तब स्थितियां बेहतर होती हैं. महिलाओं में आत्मविश्वास ज्यादा होता है. पैसा और इस से जुड़े तनाव कम होते हैं. ज्यादा अच्छा यही है कि महिला और पुरुष मिल कर ही वित्तीय योजनाएं बनाएं. और केवल वित्तीय योजनाएं ही नहीं बल्कि जिंदगी के सारे अहम् फैसलों पर महिलाओं को अपनी राय देने से बचना नहीं चाहिए. क्यों कि इस तरह वे अपने परिवार और पति के लिए बेहतर कर पाने में सक्षम होंगी.

बोरिंग मैरिड लाइफ भी है जरूरी, जानें क्यों

शनाया और सुदीप्त शादी के 3 साल बाद ही मन ही मन इस बात की चिंता करते रहते हैं कि उन के रिश्ते में जो बात शुरू के दिनों में थी, वह आज नहीं है. दोनों को लगता है कि 4 साल के अफेयर के बाद इस प्रेमविवाह में वह चीज कुछ मिसिंग सी है, जो शुरू में दोनों को उत्साह से भरे रखती थी.

दोनों की यह चिंता बेमानी है. शुरू के दिनों का जादू खत्म होने पर अकसर लोग इस मिसिंग स्पार्क की चिंता में यों ही परेशान होते रहते हैं. जब हनीमून पीरियड खत्म हो जाता है, वास्तविकता से सामना होता है, तो कुछ अजीब सा लगता है. हर चीज बोरिंग लगनी शुरू हो जाती है, धीरेधीरे हाथों को पकड़ कर बातें करना, कैंडल लाइट डिनर पर जाना, घंटों फोन पर बातें करना खत्म होता चला जाता है.

हम अकसर यह शिकायत करने लगते हैं कि रिश्ते में स्पार्क मिसिंग है पर रियल लाइफ में हर दिन रोमांस से भरा नहीं हो सकता. समय के साथ चीजें सैटल होती हैं और इस में अच्छाई ही होती है, तो अगली बार जब आप यह शिकायत करें कि आप का रिश्ता बोरियत भरा हो रहा है, इस से पहले यह जान लें कि यह जरा सी बोरियत आप के रिश्ते के लिए कितनी अच्छी है.

बोरियत की जरूरत

मशहूर रिलेशनशिप एक्सपर्ट जोनाथन बैनेट ने एक बार कहा था, ‘‘रिश्ते में बोर होना नौर्मल है. कोई भी रिश्ता चाहे रोमांटिक हो या न हो, हर समय उत्साह और उत्तेजना से भरा नहीं रह सकता. बहुत बोरिंग समय में भी अपने पार्टनर को स्वीकार करना और प्यार करना रिश्ते में गहराई और ताकत बढ़ाता है.’’

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कुछ मौकों पर बहुत बोर होने के बाद भी आप दोनों एकदूसरे के साथ हों, यही दिखाता है कि आप की बौंडिंग बहुत स्ट्रौंग है और यह बोरडम आप के रिश्ते को खत्म नहीं कर सकती है. इस बोरियत में भी आप का रिश्ता मजबूत हो रहा होता है.

अगर आप ने इंटरैस्टिंग और बोरिंग टाइम एकदूसरे के साथ बिता लिया है और एकदूसरे को अब भी प्यार करते हैं तो यकीन कीजिए कि आप का रिश्ता बहुत अच्छा चल रहा है. रिश्ते को लगातार उत्तेजक बनाए रखने के प्रैशर में आप थक सकते हैं और आप तनाव में आ सकते हैं.

अगर आप रोज पार्टनर को खुश रखने का प्रैशर ले रहे हैं तो आप को तनाव हो सकता है. अगर आप को ये सब करने की जरूरत नहीं है, तो आप राहत की सांस ले सकते हैं.

यही नहीं, बोरडम सेफ्टी और सिक्युरिटी की निशानी है. हम लगभग काफी समय जीवन में सेफ और खुश रहने की कोशिश में बिताते हैं. हम कुछ रियल कंफर्टेबल रिश्ते में रहना चाहते हैं. हमें भले ही अपने रिश्ते में बोरियत लगती हो, पर सिक्युरिटी की भावना रिश्ते को मजबूत रखे रखती है, फिर कठिन परिस्थितियां भी रिश्ते को कमजोर नहीं कर पातीं.

कभी यों भी बिताएं दिन

किसी-किसी दिन कुछ ऐक्ससाइटिंग न करना भी ठीक है, बिना कुछ किए यों ही दिन बिताने में भी कभीकभी कोई हरज नहीं है, क्योंकि कुछ न करना भी कुछ है. कभीकभी सिर्फ घर में रहना, बाहर जा कर पार्टी न करना भी ठीक है. घर पर भी रहना काफी कंफर्टिंग हो सकता है. आप की सोशल ऐक्टिविटीज आप के रिश्ते को परिभाषित नहीं करती हैं. अगर आप एकदूसरे से बिना बात किए भी एकदूसरे से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं, तो आप का रिश्ता बैस्ट है.

10 में से 4 लोग यह मानते हैं कि दोनों एकदूसरे को जब ग्रांटेड लेने लगते हैं तब स्पार्क मिसिंग होने लगता है. कुछ लोग लंबे वर्किंग आवर्स, कुछ बच्चों का होना इस का कारण मानते हैं.

मिसिंग स्पार्क की क्या पहचान है, आइए जानते हैं.

– आप सैक्स बहुत कम करते हैं.

– आप अब आई लव यू कहने की जरूरत महसूस नहीं करते.

– आप कुछ साथ में नहीं करते.

– आप डेट्स पर नहीं जाते.

– आप अलगअलग रूम में सोते हैं.

– छोटीछोटी बातों पर एकदूसरे की आलोचना करते हैं.

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– आप चीटिंग करते हैं.

– आप अब तारीफ नहीं करते.

– आप अलगअलग टाइम पर सोने जाते हैं.

– आप को पार्टनर के बजाय दोस्तों के साथ घूमना ज्यादा अच्छा लगता है.

– पार्टनर से बात करने से ज्यादा आप सोशल मीडिया पर ज्यादा टाइम बिताते हैं.

यों ताजा करें रिश्ता

अगर आप अपने रिश्ते में मिसिंग स्पार्क को वापस लाना चाहते हैं, तो कुछ ऐसा कर के देखें:

– एकदूसरे की बात सुनें.

– उन्हें बताते रहें कि आप उन्हें प्यार करते हैं.

– अकसर किस करते रहें.

– बिना किसी कारण के भी छोटेछोटे गिफ्ट देते रहें.

– बैडरूम में कुछ स्पाइसी चीजें करें.

– कैंडल लाइट डिनर पर जाएं.

– बजट साथ दे तो रोमांटिक जगह घूमने जाएं.

– अपने फोन से दूरी बनाएं.

– साथसाथ कुछ नई ऐक्सरसाइज करनी शुरू करें.

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– कुछ समय के लिए सोशल मीडिया से दूरी बना लें.

– कुछ टाइम के लिए दूरी बनाएं, जिस से आप एकदूसरे की कंपनी फिर और ऐंजौय करेंगे.

‘बाहुबली’ प्रभास से मिलते ही खिलखिला उठीं टीवी की ‘NAIRA’, फैंस ने कही ये बात

स्टार प्लस के पौपुलर शो ‘ये रिश्ता कहलाता है’ की ‘नायरा’ यानी शिवांगी जोशी इन दिनों सातवें आसमान पर हैं. जहां एक तरफ शिवांगी का शो टीआरपी चार्ट में हिट चल रहा है तो वहीं  शिवांगी की वायरल फोटो उनके फैंस को बहुत पसंद आ रही है. साथ ही फैंस शिवांगी की तारीफें भी करने में लगे हैं. आइए आपको बताते हैं वायरल फोटो की क्या है खास बात…

इंस्टाग्राम पर फोटो की शेयर

‘ये रिश्ता क्या कहलाता है’ की एक्ट्रेस शिवांगी जोशी ने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर प्रभास के साथ ली गई कई तस्वीरों को शेयर किया. जिसे फैंस काफी पसंद कर रहे हैं.

 

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बाहुबली प्रभास की फैन हैं शिवांगी

एक इवेंट के दौरान ही शिवांगी की मुलाकात प्रभास से हुई और एक फैन गर्ल की तरह शिवांगी ने प्रभास के साथ फोटो क्लिक करवाने में देर नहीं की.

‘नायरा’ का सपना हुआ पूरा

दरअसल शिवांगी ने एक इंटरव्यू के दौरान बताया था कि उनका सपना है कि वह साउथ सुपरस्टार Prabhas से मिले. शिवांगी के सामने जैसे ही प्रभास आए, उनकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा.

फैंस ने दिए ऐसे रिएक्शन

शिवांगी जोशी के फैंस इन फोटोज को देखकर कमेंट करना शुरू कर दिया. साथ ही ये फोटोज भी वायरल कर दी, जिसके कारण कुछ लोग ये भी कह रहे है कि क्या शिवांगी फिल्मों की दुनिया में एंट्री भी वाली है.

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बता दें, हाल ही में शिवांगी जोशी ने जयपुर में एक फोटोशूट भी करवाया था, जिसकी फोटोज सोशल मीडिया पर वायरल हो गई थीं. वहीं अगर शिवांगी की फैन फौलोइंग की बात करें तो अभी तक इंस्टाग्राम पर शिवांगी को 2.3 मिलियन लोग फौलो करते है.

प्रैग्नेंट वाइफ के साथ बेबी शावर में पहुंचे कपिल, गिन्नी का दिखा बेबी बंप

टीवी के कौमेडियन कपिल शर्मा जल्द ही पापा बनने वाले हैं और इन दिनों वो अपनी प्रेग्नेंट वाइफ गिन्नी चतरथ के साथ स्पेशल टाइम स्पेंड कर रहे हैं. अब हाल ही में कपिल, गिन्नी के साथ अपने दोस्त के बेबी शावर पार्टी में पहुंचे. कपिल और गिन्नी ने दोस्तों के साथ खूब मस्ती की. इसके साथ ही इस दौरान गिन्नी का बेबी बंप भी साफ़ नजर आ रहा था. देखें तस्वीरें-

बेबी शावर में मस्ती करते दिखी कपिल के शो की टीम

बेबी शावर कपिल के शो के राइटर वंकुश अरोड़ा की पत्नी रिद्धि भट्ट के लिए रखा गया था. वंकुश अरोड़ा की पत्नी रिद्धि भट्ट की बेबी शावर पार्टी में कपिल के साथ-साथ उनके शो की पूरा टीम वहां पर मस्ती करती नजर आई.

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कपिल ने की गिन्नी की प्रेग्नेंसी कंफर्म

कपिल ने गिन्नी की प्रेग्नेंसी कंफर्म करते हुए उन्होंने कहा, ‘मैं सिर्फ अपनी पत्नी की देखभाल करना चाहता हूं. पहले बच्चे को लेकर पूरा परिवार काफी एक्साइटेड है. मेरी मां सबसे ज्यादा खुश है. वो इस पल का सालों से इंतजार कर रही हैं. हम सिर्फ गिन्नी और बच्चे की हैल्थ के लिए प्रार्थना कर रहे हैं.’

 

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❤️ you n I in this beautiful #world ?#love #whistler #beautifulbritishcolumbia ? @ginnichatrath

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गिन्नी की प्रेग्नेंसी को लेकर कहा ये

कपिल ने ये भी कहा था, हम नहीं जानते कि लड़का होगा या लड़की. लेकिन जो भी हो परिवार नए सदस्य के स्वागत के लिए काफी एक्साइटेड है’.

 

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कपिल की प्रोफेशनल लाइफ की बात करें तो वो जल्द ही हौलीवुड फिल्म एंग्री बर्ड्स 2 में अपनी आवाज का जादू बिखेरने वाले हैं. 23 अगस्त को रिलीज हो रही इस फिल्म का प्रमोशन कपिल जोर-शोर से कर रहे हैं. कपिल के साथ अर्चना पूरण सिंह और कीकू शारदा भी फिल्म का प्रमोशन कर रहे हैं क्योंकि इन दोनों स्टार्स ने भी फिल्म में अरनी आवाज दी है.

लैक्मे फैशन वीक 2019: Katrina Kaif ने रैंप पर मारी रौयल एंट्री 

Lakme Fashion Winter Festive का इंतजार हर किसी को रहता है, जिसमें बौलीवुड के फेमस एक्ट्रेसेस के साथ फेमस डिजाइनर रैंप वौक पर नजर आते हैं. हाल ही में Lakme Fashion Winter Festive 2019 का आगाज मुंबई में हुआ. जहां विंटर कलेक्शन को शो केस करने कटरीना कैफ शोज टौपर बनकर जलवे बिखेरती नजर आईं. आइए आपको दिखाते हैं कटरीना के लुक की खूबसूरत फोटोज…

रैंप पर दिखा कटरीना के हुस्न का जलवा

Lakme Fashion Winter Festive 2019 की शानदार शुरुआत हो चुकी है जहां पर कैटरीना कैफ रैंप पर शानदार वौक करती नजर आईं. रैंप पर कटरीना इतनी खूबसूरत लग रही थीं.

 

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अबाउट लास्ट नाईट ?@manishmalhotra05

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विंटर कलेक्शन को शो केस करती दिखीं कटरीना

सरदी के वेडिंग सीजन फैशन को शो केस करने के लिए कटरीना बौलीवुड के जाने-माने फैशन डिजाइनर मनीष मल्होत्रा के लिए रैंप पर उतरी थीं. वहीं कटरीना का ये लुक स्टाइलिश लग रहा था.

रैंप पर कुछ ऐसा था कटरीना का अंदाज

रैंप पर कटरीना ब्लैक और गोल्डन कलर के लहंगे में नजर आई. इस लहंगे के साथ कटरीना ने डीप नेक का टौप कैरी किया था. इस लहंगे का दुपट्टा कटरीना ने अपने हाथ में बांधा हुआ था. कटरीना का यह अंदाज विंटर वेडिंग सीजन के लिए परफेक्ट औप्शन है.

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रैंप पर मस्ती के अंदाज में दिखीं कटरीना

जहां एकतरफ अपने हुस्न के जलवे बिखेरती हुए कटरीना एलिंगेट लुक में नजर आईं तो वहीं रैंप पर मस्ती भरे अंदाज में रिलेक्स करते हुए रैंप वौक करते हुए नजर आईं.

अपने ब्लैक लहंगे के साथ कटरीना ने बड़ा ही शानदार नेकपीस भी पहना हुआ था। इस गोल्डन नेकपीस की वजह से उनका लहंगा और भी ज्यादा खूबसूरत लग रहा था। एकदम अलग डिजाइन होने की वजह से हर किसी की निगाहें इस नेकपीस पर ही जा टिकी थीं.

600 की साड़ी के साथ लाखों का बैग लेकर निकली कंगना, जमकर हुईं ट्रोल

बौलीवुड की क्वीन यानी एक्ट्रेस कंगना रनौत इन दिनों सुर्खियों में छाई हुई हैं. अब चाहें उनकी फिल्म को लेकर विवाद हो या पर्सनल लाइफ को लेकर खबरें, लोग हमेशा उन पर नजर रखते हैं. वहीं इस बार सुर्खियों में आने की वजह बहन रंगोली की शेयर की हुई फोटो के साथ उनका कैप्शन है, जिसके कारण कंगना ट्रोलिंग का शिकार हो गई हैं. आइए आपको बताते हैं कंगना का ट्रोलिंग केस का पूरा मामला…

बहन की वजह से हुईं ट्रोल

बीते दिनों रंगोली ने कंगना की एक फोटो शेयर की जिसमें वो कौटन की साड़ी पहने नजर आ रही थीं. इस फोटो को शेयर करते हुए रंगोली ने बताया कि उस साड़ी की कीमत 600 रुपए है.

 

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Sari + trench = ????? (tap for credits) . . Trench: Givenchy Bag: Prada Sari: Kolkatta Cotton Sari Photos: @varindertchawla

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बहन रंगोली ने किया ये ट्वीट

कंगना की बहन रंगोली ने ट्वीट करते हुए लिखा, ”जयपुर जाते समय कंगना ने 600 रुपए की साड़ी पहनी जो उन्होंने कोलकाता से खरीदी थी. उस समय वो हैरान रह गईं थी कि इतनी कम कीमत में भी इतना अच्छा कौटन मिल सकता है. लोग कितनी ज्यादा मेहनत करते हैं और इसके बदले में कितना कम हासिल करते हैं.”

लोगों ने इस तरह किया कंगना को ट्रोल

रंगोली के इसी पोस्ट को लेकर कंगना ट्रोल हो गई. ट्रोलिंग का खास कारण उनकी एक सिंपल सी कौटन की साड़ी नहीं बल्कि हाथों में प्राडा का ब्रांडेड हैंडबैग लिए नजर आ रही हैं. इसी को लेकर यूजर्स के मजेदार रिएक्शन सामने आए हैं.

यूजर्स ने ये किया ये कमेंट

यूजर ने लिखा, इस प्राडा बैग की कीमत 1 लाख 20 हजार रुपए है. एक ही फोटो में कितना दोहरापन है. प्राडा का बैग जिसकी कीमत 2-3 लाख है, सनग्लास और हील्स की कीमत भी लाखों में है.आपको प्रौपगेंडा भी प्राइस लेस है. फेक होने की भी कोई लिमिट होती है. एक अन्य यूजर ने लिखा कि साड़ी के साथ-साथ सेंडल, मेकअप, कोट और बैग की कीमत भी लिखिए.

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बता दें, हाल ही में कंगना की बहन ने फिल्म ‘जजमेंटल है क्या’ के पोस्टर पर भी एक्टर वरुण धवन को ट्रोल करने की कोशिश की थी. साथ ही एक्ट्रेस तापसी पन्नू को कंगना की ‘सस्ती कौपी’ कहा था, जिसके कारण वह लोगों के निशाने पर आ गई हैं.

‘me too’ पर अनु मलिक ने दिया ये बयान, पढ़ें पूरी खबर

बौलीवुड में पिछले 42 वर्षों से लगातार काम करते आ रहे गीतकार, गायक व संगीतकार अनु मलिक ने कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया. वह हमेशा अपनी मर्र्जी का काम करते रहे हैं.जब बौलीवुड फिल्मों में एक ही फिल्म में चार से छह संगीतकारों की परंपरा शुरू हुई, तब भी अनु मलिक ने उन्ही फिल्मों में संगीत दिया, जिनमें उन्हें अकेले काम करने का अवसर मिला.इसके बावजूद जब बौलीवुड में ‘‘मी टू’’का मसला उठा, तो उन पर उंगली उठी. पर वह शांत रहे.कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. मगर पूरे दस माह तक उन्हें कोई काम नहीं मिला. उन्हें टीवी के रियलिटी शो से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. मगर अब एक बार फिर वक्त ने करवट ली है. उन्हे टीवी के रियालिटी शो से बुलावा आ गया है, तो वहीं उनके द्वारा लिखा, स्वरबद्ध और संगीत से संवारे गए गीत ‘‘मंडे’’ का वीडियो ‘यूट्यूब’पर धूम मचा रहा है. मजेदार बात यह है कि अनु मलिक ने इस म्यूजिक वीडियो में खुद एक्टिंग किया है. प्रस्तुत है अनु मलिक के संग हुई एक्सक्लूसिब बातचीत के अंश..

सवाल- दस महीने आपके पास काम क्यों नही था?

-जो भी वजहें रही हों, मैं उन पर जाना नहीं चाहता.वह सब समय था.समय कभी आपके साथ होता है.कभी आपके साथ नही होता है. आप समय को गलत नहीं कह सकते. समय को प्रणाम करके आगे बढ़ने के बारे में सोचना पडे़गा. मैंने अपने पिता सरदार मलिक साहब से सीखा है कि कोई भी इंसान आपसे प्यार करे या नफरत करे, पर आपके दिल में उसके प्रति नफरत नही पैदा होनी चाहिए. कभी सामने वाले के प्रति जहर मत रखो. यदि मेरे अंदर जहर होता, तो मैं ‘मंडे’ गीत न बना पाता.शायद मैं शराब पीकर लोगों को गालियां दे रहा होता. आप मेरा पिछले 10 माह का रिकौर्ड देख लें. सोशल मीडिया पर लोगों ने मेरे खिलाफ अनगिनत गालियां बकी.पर मैं चुप रहा.अब सामने वाले ने मुझे गालियां क्यों दी, यह तो वह जाने.मैं तो सत्यमेव जयते में यकीन रखता हूं.मेरे लिए तो सत्यमेव जयते यह है कि मैंने ‘मंडे’ गाना बना दिया, जिसकी लोग तारीफ कर रहे हैं.अब मुझे टीवी रियालिटी शो से जुड़ने का भी निमंत्रण मिल गया है. एकता कपूर ने अपनी फिल्म के लिए मुझे बुलाया है.

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सवाल- मी टू ….?

-कृपया इसको यहीं छोड़ दें. मैं इसको लेकर कोई चर्चा नही करना चाहता. मैं कभी किसी को गाली नही दूंगा.  मैं सबकी इज्जत करता हूं.

सवाल- अपने सिंगल गीत ‘‘मंडे’’को लेकर क्या कहेंगे?

-मंडे गाना मेरे दिल से निकला हुआ गाना है. इसे हमेशा याद रखा जाएगा.यह हर उस युवक की आवाज है,जिसके पास काम नहीं है. यह गाना मेरी आप बीती भी है.यह उन युवकों की भी आप बीती है,जिनके पास काम होता है,पर एक दिन काम चला जाता है.दस माह की बेकारी के दिनों में सोचते सोचते  मेरे दिमाग में एक मुखड़ा आया -‘‘ना कोई काम ना कोई पैसा ना मेरी लाइफ में कैटरीना जैसा कोई चेहरा ना बंगला ना गाडी….बार बार कुंडलियां दिखायी कि दिन कैसा कैसा..ना कोई प्यार या कोई मीटर ….या फोन कब बजेगा आई एम वेटिंग …काम से ना बढ़कर कोई महबूबा …महबूबा आ जा माई हार्ट इज बीटिंग …लाइफ इज संडे बोरिंग होली डे ..गिव मी माई मंडे.’’फिर इसे ंसंगीत से संवारा.ख्ुाद ही गाया और वीडियो मंे एक्टिंग किया.

सवाल- संगीत में जो बदलाव आया है,उसे आप किस तरह से देखते हैं?

-देखिए,संगीत में इतना बड़ा बदलाव नही आया है कि आप उस पर सवाल करने लगे.बदलाव तकनीक का आया है. पर संगीत के सुर तो वही हैं. हिंदुस्तानी जज्बा सुर मांगता है,वह संगीत के सुरों की कद्र करता है. अगर मेरा मंडे गाना लोगों के दिलों को छुएगा तभी वह लोग गुनगुनाएंगे.पर आवाज बदली है. लोग रीमिक्स करने लगे हैं.

सवाल- पर मौलिक गाने बनाने की बजाय लोग रीमिक्स के पीछे क्यों भाग रहें हैं?

-आपने बहुत अच्छा सवाल किया. आपका सवाल सही है.रीमिक्स गीत नहीं बनने चाहिए.मैं बार बार सभी युवा संगीतकारों से कह रहा हूं कि वह कुछ मौलिक धुनें बनाएं.मैंने कहा कि तकनीक के बदलाव के चलते सब कुछ गड़बड़ हो गया है.पहले हम दिमाग से सोचकर संगीत की धुनें बनाया करते थे.अब तो गूगल सर्च पर गए और कई गीतों की धुने मिलाकर एक धुन बना दी. बड़ा आसान काम हो गया है.पर यदि  आप संगीत की संगत करेंगे,तो अच्छा मौलिक काम कर सकते हैं.हम लोग तो एक एक गाने पर छह छह माह लगा देते थे.

सवाल- आप रीमिक्स गानों के पक्ष में हैं या..?

-मुझे बुरा नही लगता.मुझे लगता हैं कि आज की पीढ़ी ने यदि मेरा गीत ‘काली काली आखें..’ या ‘छम्मा छम्मा..’नहीं सुना हैं,तो वह रीमिक्स सुन लें.लेकिन रीमिक्स करने वालों को चाहिए कि जिसने मौलिक मुखड़ा बनाया था,उसका नाम सही ढंग से दें.आप कल्याणजी आनंदजी का गाना उठाकर रीमिक्स करते हैं और कोने में छोटे में उनका नाम लिख देते हैं या देते ही नही हैं,यह गलत है.

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सवाल- क्या वजहें हैं कि हिंदी में ही मौलिक गाने नहीं बन रहे हैं?

-चिंता ना करें यह एक दौर है,जो बहुत जल्दी गुजर जाएगा.

सवाल- आपके संगीत के 42 साल के टर्निग प्वाइंट क्या रहे?

-मेरे करियर का पहला टर्निंग प्वाइंट वह था,जब हरमेश मल्होत्रा ने मुझे फिल्म ‘पूरब पश्चिम’दी थी. जब मेहरा साहब के परिवार ने मुझे ‘एक जान’ और ‘सोनी माहिवाल’ फिल्में दी.मेरे करियर में तीसरा बहुत बड़ा टर्निंग प्वाइंट तब आया,जब मनमोहन देसाई ने मुझे फिल्म ‘मर्द’में संगीत देने के लिए चुना. चौथा टर्निंग प्वाइंट वह था,जब महेश भट्ट और मुकेश भट्ट ने मुझे फिल्म‘फिर तेरी कहानी याद आयी’दी. उसके बाद मेजर टर्निंग प्वाइंट रहा-फिल्म ‘‘बाजीगर’’का मिलना.फिर ‘टिप्स’कंपनी के कुमार तोरानी ने मुझे ‘मेजर साहब’दी. उसके बाद 2015 में बहुत बड़ा टर्निंग प्वाइंट तब आया,जब आदित्य चोपड़ा ने मुझे बुलाकर ‘‘दम लगाकर हईसा’’ दी.

अगर आप छोटे परदे की बात करें,तो रियालिटी शो ‘इंडियन आइडल’से जुड़ना मेरा बहुत बड़ा टर्निंग प्वाइंट था.इससे मेरे संगीत को मेरा चेहरा मिल गया.

सवाल- कहा जा रहा है कि टीवी के रियालिटी शो में बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं?

-यह तो हर इंसान की अपनी अपनी सोच का मसला है.मेरी राय में हिंदुस्तान में टैलेंट की कमी नहीं है. टीवी के इन रियालिटी शो में देश के कोने कोने से बच्चे आते हैं,जिन्हें आगे बढ़ने के लिए रियालिटी शो के रूप में एक प्लेटफार्म मिल गया है.आप नही जानते हैं कि इन रियालिटी शो में बच्चे कितनी गरीबी से उठकर आते हैं.वह इस प्लेटफार्म पर आकर अपने गला,अपनी आवाज का प्रदर्शन करते हैं.फिर जब वह टीवी के रियालिटी शो से बाहर जाते हैं,तो हम सबसे कहीं ज्यादा दुनिया देख चुके होते हैं.यदि मैंने लंदन पांच बार देखा,तो वह 100 बार देख चुके होते हैं.जो बच्चा छोटे से गांव से आकर इतना सब कुछ पाता है, उसके भविष्य से खिलवाड़ कहां हुआ? मैं बता रहा हूं कि यदि बच्चे में टैलेंट नहीं होता है,तो अनु मलिक उनसे कह देता है कि वापस चले जाओ,पढ़ाई करो.डॉक्टर या इंजीनियर बनो.यहां अपनी जिंदगी बर्बाद मत करो.कुछ बच्चे मुझसे नाराज हो जाते हैं.पर मैं अच्छे कलाकार को प्रोत्साहित भी करता हूं.

सवाल- मगर रियालिटी शो में सभी स्टार बन जाते हैं.जबकि विजेता एक होता हैं.विजेता को भी फिल्मों में पाश्र्वगायन का काम नहीं मिलता?

-यह आपकी सोच है.मेरी राय में रियालिटी शो से निकले बच्चे दुनिया देखते हैं,वह कई तरह के संगीत के शो करते हैं.गाना गाते हैं.अच्छे पैसा कमाते हैं.अच्छी जिंदगी जीते हैं.यह हर माह इतना कमाते हैं कि कोई दूसरा आम आदमी नहीं कमा सकता. यदि आपके पास कला है,तो उसका उपयोग किया जाना चाहिए.इसमें कुछ भी गलत नही है.

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सवाल- आपकी बिटिया अनमोल क्या कर रही हैं?

-वह अंग्रेजी गाने बहुत गाती हैं और काफी नाम कमा रही हैं. उसका एक गाना जस्टिन वीवर के साथ एशिया चार्ट में 4 नंबर पर आया था. हैरानी की बात यह है कि भारत में किसी भी पत्रकार ने इस बारे में एक लाइन नहीं लिखी. मेरी बेटी तो हमेशा कहती है कि आप किसी से मेरे बारे में बात मत कीजिएगा. मेरी कला को वक्त ही बताएगा.बहुत मेहनती है. पर प्रचार से दूर रहती है. छोटी बेटी अदा फैशन की दुनिया में अच्छा नाम कमा रही है.

बरसों की साध-आखिर क्या था रूपमती का फैसला?

पहले भाग में आपने पढ़ा…

प्रशांत भाभी का मुंह उत्सुकता से ताकता रहा. वह मन ही मन खुश था कि उस की भाभी गांव में सब से सुंदर है. मजे की बात वह दसवीं तक पढ़ी थी. बैलगाड़ी गांव की ओर चल पड़ी. गांव में प्रशांत की भाभी पहली ऐसी औरत थीं. जो विदा हो कर ससुराल आ गई थीं. लेकिन उस का वर तेलफुलेल लगाए उस की राह नहीं देख रहा था.

इस से प्रशांत को एक बात याद आ गई. कुछ दिनों पहले मानिकलाल अपनी बहू को विदा करा कर लाया था. जिस दिन बहू को आना था, उसी दिन उस का बेटा एक चिट्ठी छोड़ कर न जाने कहां चला गया था.

उस ने चिट्ठी में लिखा था, ‘मैं घर छोड़ कर जा रहा हूं. यह पता लगाने या तलाश करने की कोशिश मत करना कि मैं कहां हूं. मैं ईश्वर की खोज में संन्यासियों के साथ जा रहा हूं. अगर मुझ से मिलने की कोशिश की तो मैं डूब मरूंगा, लेकिन वापस नहीं आऊंगा.’

इस के बाद सवाल उठा कि अब बहू का क्या किया जाए. अगर विदा कराने से पहले ही उस ने मन की बात बता दी होती तो यह दिन देखना न पड़ता. ससुराल आने पर उस के माथे पर जो कलंक लग गया है. वह तो न लगता. सब सोच रहे थे कि अब क्या किया जाए. तभी मानिकलाल के बडे़ भाई के बेटे ज्ञानू यानी ज्ञानेश ने आ कर कहा, ‘‘दुलहन से पूछो, अगर उसे ऐतराज नहीं हो तो मैं उसे अपनाने को तैयार हूं.’’

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आगे पढ़िए…

दुर्भाग्य के भंवरजाल में फंसी नवोदा के लिए ज्ञानू का यह कथन डूबते को तिनके का सहारा की तरह था. उस ने ज्ञानू से शादी कर ली थी. प्रशांत का भी मन ज्ञानू बनने का हो रहा था. लेकिन अभी वह छोटा था. उस की उम्र महज 13 साल थी. दुलहन को घर में बैठा कर पिया का इंतजार करने के लिए छोड़ दिया गया.

अगले दिन इंतजार की घडि़यां खत्म हुईं. ईश्वर भैया शाम की गाड़ी से आ गए. लेकिन आते ही उन्होंने फरमान सुना दिया कि वह इस दुलहन को नहीं रखेंगे. लोगों ने समझायाबुझाया पर वह किसी की नहीं माने.

पति का फरमान सुन कर भाभी रोने लगीं. सुबह भाभी का चेहरा उतरा हुआ था. आंखें इस तरह लाल और सूजी थीं, जैसे वह रात भर रोई थीं. प्रशांत ने इस बारे में पूछा तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. रूपमती की चुप्पी पर प्रशांत ने अगला सवाल किया, ‘‘भाभी, दिल्ली से भैया आप के लिए क्या लाए हैं?’’

‘‘मौत.’’ रूपमती ने प्रशांत को संक्षिप्त सा जवाब दिया.

भाभी के इस जवाब पर प्रशांत को गहरा आघात लगा. उस ने कहा, ‘‘लगता है भाभी आप रात में बहुत रोई हैं. क्या हुआ है, कुछ बताओ तो सही.’’

‘‘भैया, अभी यह सब तुम्हारी समझ में नहीं आएगा. दूसरे के दुख में आप क्यों दुखी हो रहे हैं. मेरे भाग्य में जो है वही होगा.’’ कह कर भाभी फफक कर रो पड़ी. दिल का बोझ थोड़ा हलका हुआ तो आंचल से मुंह पोंछ कर बोली, ‘‘आप के भैया बहुत बड़े अधिकारी हैं. मैं उन के काबिल नहीं हूं. उन्हें खूब पढ़ीलिखी पत्नी चाहिए. इसीलिए वह मुझे साथ रखने को तैयार नहीं हैं.’’

रूपमती के साथ जो हुआ था. वह ठीक नहीं हुआ था. लेकिन प्रशांत कुछ नहीं कर सकता था. उसी दिन ईश्वर चला गया. जाने से पहले उस ने प्रशांत के पिता से कहा, ‘‘काका, मुझे यह औरत नहीं चाहिए. इस देहाती गंवार औरत को मैं अपने साथ हरगिज नहीं रख सकता.’’

ईश्वर के जाने के बाद रूपमती ननद के गले लग कर रोते हुए कहने लगी, ‘‘अगर इस आदमी को ऐसा ही करना था तो मुझे विदा ही क्यों कराया गया. विदा करा कर मेरी जिंदगी क्यों बरबाद की गई. अब कौन मुझे कुंवारी मानेगा. मैं न इधर की रही न उधर की.’’

अब सवाल था रूपमती को मायके पहुंचाने का. मामला तलाक का था. इसलिए घर का कोई बड़ा रूपमती को मायके ले जाने के लिए राजी नहीं था. जब कोई बड़ाबुजुर्ग रूपमती को ले जाने के लिए राजी नहीं हुआ तो उसे मायके ले जाने की जिम्मेदारी प्रशांत की आ गई.

रेलवे स्टेशन से रूपमती का घर ज्यादा दूर नहीं था. कोई संदेश मिला होता तो शायद स्टेशन पर कोई लेने आ जाता. प्रशांत और रूपमती पैदल ही घर की ओर चल पडे़. सामान स्टेशन पर ही एक परिचित की दुकान पर रख दिया गया था.

राह चलते हुए अपनी व्यथा व्यक्त करने की खातिर गांव के ज्ञानेश उर्फ ज्ञानू के बारे में बता कर प्रशांत ने कहा, ‘‘आज मुझे अपने देर से पैदा होने पर अफसोस हो रहा है भाभी. अगर मैं 8-10 साल पहले पैदा हुआ होता तो…’’

दुख की उस घड़ी में भी रूपमती के चेहरे पर मुसकान आ गई. मासूम देवर के कंधे पर हाथ रख कर उस ने कहा, ‘‘तो फिर मैं तुम्हारे बड़े होने की राह देखूं?’’

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प्रशांत झेंप गया. गांव आया, फिर घर. गौने गई लड़की के चौथे दिन मायके आने पर उसे देखने के लिए आसपड़ोस की औरतें इकट्ठा हो गईं. उस समय दिल पर पत्थर रख कर रूपमती मुसकराती रही. उस के इस भोलेभाले देवर को ताना न सुनना पड़े, इस के लिए उस ने किसी से कुछ नहीं बताया.

प्रशांत उसी दिन शाम की गाड़ी से लौट आया. रूपमती गांव के बाहर तक उसे छोड़ने आई. विदा करते समय उस ने कहा, ‘‘इस जन्म में फिर कभी मुलाकात हो, तो देवरजी पहचान जरूर लेना. इन चार दिनों में तुम ने जो दिया,’’ प्रशांत का हाथ पकड़ कर सीने पर रख कर कहा, ‘‘इस में समाया रहेगा.’’

इतना कहते हुए रूपमती की आंखों में जो आंसू आए थे, देवनाथ उन्हें आज तक नहीं भूल सका था. इस के बाद से देवनाथ को हमेशा लगता रहा कि जिंदगी में कहीं कुछ छूटा हुआ है, जो तमाम तलाशने पर भी नहीं मिल रहा है.

धीरेधीरे यह प्रसंग मन के किसी कोने में दबता गया और इस के मुख्य पात्रों की स्मृति धुंधली होती गई. इस की मुख्य वजह यह थी कि दोनों ओर से संबंध लगभग खत्म हो गए थे. बदल रही जीवन की घटनाओं के बीच यह दु:सह याद उस ने अंतरात्मा के किसी कोने में डाल दी थी.

प्रशांत को सोच में डूबा देख कर रूपमती ने कहा, ‘‘आप बड़े तो हो गए, पर किया गया वादा भूल गए, निभा नहीं पाए.’’

‘‘भाभी, आप ने भी तो मेरी राह कहां देखी.’’

‘‘देखी देवरजी, बिलकुल देखी. बहुत दिनों तक देखी. आप का इंतजार आज तक करती रही. राह आंख से नहीं, दिल से देखी जाती है देवरजी.’’

प्रशांत आगे कुछ कहता, उस के पहले ही रूपमती ने उठते हुए बहुओं से कहा, ‘‘सुधा बेटा, तुम्हारे यह चाचाजी, मेरे सगे देवर हैं, तुम इन के पास बैठो. इन के लिए आज मैं खुद खाना बनाऊंगी और सामने बैठ कर खिलाऊंगी. बरसों की अधूरी साध आज पूरी करूंगी.’’

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बिजली मुफ्त औरतें मुक्त

दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का 2 बत्ती, 1 टीवी, 1 पंखा, 1 फ्रिज, 1 कूलर, 1 कंप्यूटर के लायक 200 यूनिट तक की बिजली मुफ्त करने का फैसला चतुराईभरा है. 200 यूनिट तक का बिल अब माफ कर दिया गया है. शहर के 45 लाख उपभोक्ताओं को इस से लाभ होगा और बिजली का बिल भुगतान न होने के कारण बिजली इंस्पैक्टरों की धौंस का सामना नहीं करना पड़ेगा.

सरकारी आंकड़ों के हिसाब से वैसे भी 33% घरों में 200 यूनिट से कम बिजली खर्च होती है. अब तक लोग 200 यूनिट के 600-700 ₹ देते थे. इस से पहले खर्च ₹1,200 था जिस की खपत ज्यादा है, वे पक्की बात है कि अब कम बत्ती का इस्तेमाल कर के 200 यूनिट के नीचे रहना चाहेंगे. सब से बड़ी बात यह है जब बत्ती मुफ्त मिल रही है तो घर के सामने खुले तारों पर कांटा डाल कर बत्ती जलाने की आदत भी खत्म हो जाएगी.

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इस पर खर्च 1,400 करोड़ ₹ तक आ सकता है पर 60,000 करोड़ के बजट में यह कोई खास नहीं. खासतौर पर तब जब सरकार को कम बिल भेजने पड़ेंगे. एक बिल छापने, भेजने, पैसा वसूल करने में ही 50 से 100 रुपए लग जाना मामूली बात है. बिजली दफ्तर जा कर बिल जमा कराने में शहरी गरीब जनता को न जाने कितना खर्च करना पड़ता है.

जब सरकार जगहजगह वाईफाई फ्री कर ही रही है कि लोग मोबाइलों का इस्तेमाल कर के हर समय सरकार के फंदे में रहें तो गरीबों को यह छूट देना गलत नहीं है. गरीब औरतों के लिए यह वरदान है कि अब उन की बिजली कटेगी नहीं और वे न रातभर खुले में सोने को मजबूर होंगी और न उन के बच्चे रातभर पढ़ने से रह जाएंगे.

सरकारें बहुत पैसा वैसे भी जनहित के कामों के लिए खर्च करती हैं. हर शहर में पार्क बनते हैं पर पार्क में जाने के लिए पैसे नहीं लिए जाते. सड़कें, गलियां बनती हैं जिन पर चलने की फीस नहीं ली जाती. सस्ते सरकारी स्कूल, कालेज, विश्वविद्यालय हैं जहां बहुत कम पैसों में पढ़ाई होती है. बहुत अस्पतालों में तामझाम का पैसा न ले कर इलाज होता है.

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जो लोग इसे टैक्सपेयर की जेब पर डाका मान रहे हैं यह भूल रहे हैं कि उन के अपने कर्मचारी अब ज्यादा सुरक्षित, सुखी और प्रोडक्टिव हो जाएंगे, क्योंकि वे अंधेरे के खौफ में न रहेंगे.

जनहित काम केवल कांवड़ यात्रा का नहीं होता, पटेल की मूर्ति का नहीं होता, मन की बात का जबरन प्रसारण नहीं होता, बिजलीपानी भी जरूरी है. साफ हवा की तरह गरीब औरतों के लिए थोड़ी सी बिजली मुफ्त हो तो एतराज नहीं. यह उन्हें कटने के खौफ से मुक्त रखेगा.

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